लक्ष्मीहयवदन लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः
मत्ते रामानुजाय समः
मत निगमान्तमहादेशिकाय नमः
अब्रह्मतन्त्रस्वतं परकालगुरुपरम्पराय्कॆ नमः
नम्म देश अध्यात्म क्षेत्र, केवल भौतिक भोग भूमियल्ल इदु. इल्लि हुट्टि बॆळॆदिरुवष्टु तम्मग्रन्तगळु प्रपञ्चदल्लि बेरल्लू नोडलु सिक्कदु, इल्लि अवतरिसिदष्टु साधु सन्तरु बेरॆल्लू अवतरिसिल्ल.
ईगिन गॊन्दलमयवाद प्रपञ्चद परियल्लू अध्यात्म चिन्तनॆ यल्ले काल कळॆयुव सत्पुरुषरन्नु ई पुण्य भारत भूमियल्लि नावु मानवन वैयक्तिक अथवा सामाजिक समस्यॆगळिगॆ ई भारतद संस्कृतियिन्दले शाश्वत परिहार साध्य.
नोडबहुदु.
क
ई संस्कृति अध्यात्म संस्कृति मॆलॆ नोटक्कॆ अनेक मतगळु, पन्थगळु, सिद्धान्तगळु परस्पर विलक्षणवागि, परस्पर विरुद्दवागि कण्डु बन्दरू इवॆल्लक्कू अध्यात्मवे मूल. ऎल्लक्कू गुरि ऒन्दे.
वति
हीगॆ विविधतॆयल्लि सामरस्यवन्नु कण्डवरल्लि भगवद्रामानुजरु मकुटप्रायरु. तदल्लि अद्वितवन्नु कण्डवरु अवरु. एतॆ सति नानात्व, नाना सति चैकता । अचिन्त्यं ब्रह्म रूप कस्तद्वेदितु मर्हति’ ऎम्ब विष्णु पुराण वचनवन्नु वेदार्थ सङ्ग्रहदल्लि सरियाद घट्टदल्लि उदाहरिसि, तम्म निलुवन्नु भगवद्रामानुजरु स्पष्ट पडिसिद्धारॆ. ई महापुरुषर सिद्धान्तवन्नु नूरारु ग्रन्थगळिन्द मत्तष्टु पुष्टिकरिसिदवरु श्रीमन्नि गमान्त महादेशिकरवरु.
इवर प्रथम शिष्यराद श्रीब्रह्मतन्त्रस्वतन्त्र स्वामिगळे ई पीठक्कॆ मूलसंस्थापकरु.
इदल्लदॆ, ई सिद्धान्तद मूलपुरुषराद भगवद्रामानुजरिगॆ सर स्वतियिं दअनुग्रहिसल्पट्टु अवर आराध्यमूर्तियागिद्द दिव्य हयग्रीव मूर्तियु श्रीवेदान्तदेशिकादि आचार्य परम्परॆय मूलक ई पीठदल्ले ईगलू आराध्य मूर्तियागिद्दु ज्ञान प्रसार माडुत्तिरु वुदू ई पीठद मत्तॊन्दु वैशिष्ट्य . ई कारणगळिन्दले ई पीठदल्लि अनेक ज्ञान कैङ्कर्यगळु अविच्छिन्नवागि नडॆदु बन्दिवॆ.
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vi
जगत्पसिद्धरागिद्द श्री श्रीमदभिनव रङ्गनाथ ब्रह्मतन्त्र स्वतन्त्र परकाल स्वामिगळ कालदल्लि ई ज्ञान कैङ्कर्य अद्भुतरीतियल्लि नॆरॆवेरिरुव विषय विद्वत्पञ्च विदित. आ स्वामिगळे अनेक ग्रन्थगळिगॆ कर्तगळू आगिद्दरु. अवुगळल्लि तत्त्वमुक्ताकलाप भावप्रकाशवू ऒन्दु. जा न प्रचारदृष्टियिन्द अवरु स्थापिसिद श्रीमद्वेदान्तदेशिक विहार सभॆय हणदिन्दले ई ग्रन्थ प्रकाशन आगुत्तिदॆ.
ईग अवर प्रधान शिष्यरल्लि ऒब्बराद श्री उ । वॆ । पण्डितरत्नं कॊत्तमङ्गलु वरदाचार्यरु ई कालक्कॆ तक्कन्तॆ अत्यावश्यकवाद ऒन्दु ज्ञान कैङ्कर्यवन्नु नॆरवेरिसिरुत्तारॆ.
इवरु श्रीमन्निगमान्त महादेशिकर प्रौढग्रन्थवाद तत्त्वमुक्ता कलापक्कॆ तिळिगन्नडदल्लि विस्तारवाद व्याख्यानवन्नु श्री श्रीगळवर आज्ञॆय मेलॆ रचिसि श्री श्रीगळवर अनुग्रहक्कॆ पात्ररागिद्दारॆ. इवर मूलक इन्तह ज्ञानकैङ्कर्यगळु इतोपतिशयितवागि नडॆयलॆन्दु हारैसुवुदु नम्म कर्तव्य.
मैसूरु
1-5-1979
नान् चक्रवर्ति, विजयराघवाचार्यरु
कार्यं
श्रीब्रह्मतन्त्रस्वतन्त्र परकाल मठ