०५ अनुवादशोधनिका

श्रीमद्रहस्यवयसारानुवादशोधनिका

-4-2

भूताख्य

34-15

पिच्छिकायातत्त्वा

5-11

गतिश्चासि

38-8

एतदेक-

7-6

प्रबन्धाः

39-7

क्रौर्य

-12

तोड़प्प

40-4

प्रकारः

8-12

गोष्ठी

45-17

धर्मभृतज्ञानं

11-5

दृप्ति

-18

प्रत्येव

-22

-21

आलवन्दा

प्रकाशनशक्ति

12-10

हयवदन

46-14

शीलस्यास्य

-18

49-16

हयवदन

कर्मोपाधिक

13-19

59-11

नालुमुहक्क

शरीरिणः

14-6

हृहयंगमः

69-5

श्रीशठकोप

-12

वैकुण्ठे

79-7

परिपूर्ण

15-4

कुर्वाणै

83-13

निरन्तर

-6

प्राप्त्य

86-14

स्थितं कर्म

-11

अवलम्ब

88-10

विशिष्यमाणो

16-16

मतिशयित

90-4

संश्रयन्ते

17-11

पाकांक्षो

-13

वश्यम्भवन

21-8

शाखानामुपरि

91-17

प्रातिकूल्य

24-19 प्रथमरहस्ये

92-20

प्रातिकूल्य

25-2

प्रपत्त्यनुष्ठा

97-7

प्रेप्साजनकं

-6

नुष्ठानसमयेनुसंधे

-18

श्रीवादिहंसा

-27-15 वयसारे प्रधानप्रति -

98-8

उपायार्थीक

तन्त्रा

99-4, 5

स्वल्पांशेनापि

30-2

दीप !

102-21

आत्मापहार

-14

श्रुतं

106-8

सांगप्रपदनाधि

शोधनिका

१३

114-11

सम्यक

255-4

प्रारब्ध

123-14

पादुकाभ्यां

259-9

अवैष्णव

131-11

कैङ्कर्यमपि

274-5

प्राप्तत्वात्

133-17

वर्धकं

317-7

टितः पदैस्त्रि

137-14

श्रीयामुना

357-14

धिकारं

142-3

सुहृदः

366-16

कर्माखिलं

161-10

आसीदित्येव

378-22

श्वरगत

167-6

अमानव संज्ञ

381-12

मुपायत्वेन

168-3

पर्यायेण

397-15

तिशयं

169-3 मेतन्मनो

412-19

जगन्नाथः

171-8

आज्ञाधरै

416-13

173-22

राजकुमारं

-15

संबन्धोऽपि

त्यत्रोक्तो यः ॥

177-6

निर्व्यापारैः

417-16

वर्णाश्रमादि

-7

पुत्रादिभिश्च

428-12

शिष्यकृता

199-7

षूपदेशानाम्

431-17 श्रुत्वा

207-3

वादिहंसा

532-8

षत्वानुसंधा

217-21 बहिष्का

-19

श्रोत्रे

238-6

जन्मसिद्धाः

438-16

काशमुपविष्टं

241-3

निर्माल्यं

4-3-

बहुसंस्कृत

२४

348 पुढे इयं गाथा -

“ओदुमिरण्डे विशैन्दरुला लुदतिरुमाल पादमिरण्डु शरणेन पर्टि नम्पंगयत्ताल नातनैर्नाण्ण नलं तिकड़ नाट्टिलडिमैयेल्लाम कोदिलुणर्त्तियुडन कोल्लुमारु कुरित्तनमे”

349 पुढे इयं गाथा -

ओणूतोडियाल तिरुमहळु तानुमाकि ओरुनिनेवाली बुयिरेल्लामुय्य घण्तुवरैनगर वाड़ बसु देवक

2

मन्नवकुत्तेर पाकना किनिन्र तण्तुळवमलरमान् तानेशोन्न तनित्तरुमं तानेमक्काय् तन्नैयेनुं कण्डकळित डिशहविलक्कायूनित्र कण्णुदैयल विल्लेयाकड़िक्कित्राने ॥

कारिकातिरिक्तश्लोकाः

श्रीरहस्यत्रय सारगताः

अधिजिगमिषु

423

करबदरित

434

अध्यासीन

434

कर्मज्ञान

87

अप्राप्तितः

344

कर्मत्रह्मा

13

अभीष्टे

100

कर्माविद्या

18

अर्थित्वेन

87 कलकण्ठ

440

अविश्रान्त

180

कल्याणमा

265

अशिथिल

428

कालावर्तान्

70

आकर्णितो

318

गुरुभ्यस्तद्

3

55

चातुर्वर्ण्य

254

आदौ प्राप्यं

28

जनपद

69

आधेयत्व

22

ज्वलन दिवस

166

आभगवत्तः

13

तत्तद्वैतुक

231

आवापोद्वापतः

55

तारं पूर्व

265

आस्तिक्यवान्

441

दहरकुहरे

165

इति यतिराज

440

दुर्विज्ञानैः

349

‘इत्थं संघटितः

317

न वेदान्तात्

348

इदमष्टपदं

347

नाथेन स्तृण

133

  • इयानित्थं

90

निरवधिदया

428

इह निज

301

निर्विष्टं यति

441

इहमूलमन्त्र

265

पितृपथ

171

इह संग्रहतः

298

प्रकृत्यात्म

38

उपायः स्वप्राप्तेः

81

प्रख्यातः पञ्च

99

एकं द्वयं

348

प्रत्येयस्तु

426

एकं सर्वप्रद

422

प्रणयिनमिव

127

एते मह्यम्

10 प्रपन्नादन्येषां

81

१६

श्रीरहस्यत्रयसारगताश्लोकाः

प्राप्यं ब्रह्म

37

विश्राम्यद्भि

प्रारब्धेतर

151

विषमधु

भक्तथादौ

90

वैराग्यविजित

347

भगवति हरौ

109

व्यासाम्नाय

422

मणिवर व

13

शाखानामुपरि

21

मनसि करण

157

शिलादेः

254

मुकुन्दे

134

श्रुतिपथ

19

मुमुक्षुत्वे

75

श्रुतिस्मृत्या

140

य उपनिषदा

349

समर्थे

106

यतैकायं

152

संतोषार्थ

115

यथाधिकरणं

संदृष्टः

181

यदन्तस्स्थं

265

सा काशीति

156

यद्येतं यति

27

स्वच्छस्वादु

141

युगपदखिलं

182

स्वतन्त्र

127

युग्यस्यन्दन

106

स्वरूपं यद्

231

रहस्यत्रय

444

स्वरूपोपाया

110

रागद्वेषमदा

264

स्वापोद्बोध

114

-वितमसि

172

हृद्या हृत्यम

11