श्रीमद्विशिष्टाद्वत सिद्धान रत्न माला रत्नमाला द्वितीय रत्नवु-हन्नॊन्दनॆय सञ्चिकॆयु श्रीमन्नि गमा महादेशिक प्रणीत श्रीमद्रहस्यत्रयसारद गतिचिन नाधिकार एकविंशः. परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारो द्वाविंशः, विद्याभ्यासद इलाखा रिटैर्डु सरल् र्इस्पॆक्टरु सि. यं. विजयराघवाचाररिन्द रचिसल्पट्ट आचार हृदयान्वेषिणी ऎम्ब कन्नड अक्ष तात्पय्यगळॊन्दिगॆ मुद्रिसल्पट्टिरुत्तदॆ.
- बॆङ्गळूरु सिट क्रय १२ आणॆगळु________________
श्रीयॆ नमः श्रीनिवासाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमते निगमान्न महादेशिकाय नमः U श्रीमन्निगमा महादेशिक विरचित श्रीमदहस्यतय सारे गतिचिननाधिकारः, २१ ज्वलन दिवस ज्योत्सा पक्षेतरायण वत्सर्रा । पवन तपन प्रालेयांशून्यवाद चरद्युतिम् । हिन्दिन अधिकारदल्लि प्रपन्ननु दिव्य वैकुण्ठयात्रॆगॆ उपक्रमदल्लि माडिकॊळ्ळुव, देहदॊळगेने इरुवाग नडॆयुव एर्पाडुगळु तिळिसल्पट्टवु. ई अधिकारदल्लि आतनु तन्न स्कूलदेहवन्नु बिट्टु परम पदक्कॆ होगुव मार्गवु यावुदॆम्बुदू, आ मारवन्नु तोरिसतक्क वरु यारु, अवरुगळिन्द उण्टागुव सत्कारगळु यावुवु ऎम्बुदु उपदेशिसल्पडुत्तवॆ. ई मारक्कॆ अड्डिरादि मारवॆन्दू देवयान वॆन्दू हॆसरु. गीतॆयल्लि इदक्कॆ शुक्लगति ऎम्ब हॆसरु कॊडल्पट्टिरु इदॆ. ई मार्गदल्लि अग्नि अहस्सु मॊदलाद हन्नॆरडु अभिमान देवतॆगळु सश्वरनिन्द नियमिसल्पट्टिरुत्तारॆ. इवरुगळिगॆ आतिवाहिक देवतॆगळॆन्दु हॆसरु. प्रपन्ननादवनु तनगॆ हीगॆ प्राप्तवागुव सद्धति यन्नू, आतनु होगुव मारद अनुसन्धानदुपयोगवन्नू, ई________________
श्रीमद्र हस्य त्रयसारे जलध (च) रपतिं देवा धीशं प्रजापति मागत । सरति विरजां दूरेवाच स्वतः परमद्भुतम् ॥४६॥ వి अधिकारदल्लि हेळुवदरिन्द इदक्कॆ गतिचिन्तनाधिकारवॆम्ब हॆसरु. आदरॆ सारप्रकाशिका व्याख्यातृगळाद भारद्वाज श्रीनिवासाचाररु मात्र गति विशेषाधिकारवॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. विक्क नाल्कु व्याख्यानगळिन्द श्री भाष्यं श्रीनिवासाचार्यर सारदीपिकॆयल्ल, श्रीम द्योपाल महादेशिकर उत्तर सारास्वादिनियल्ल, श्रीशैल श्रीनिवासाचारर सारविवरणॆयल्ल, श्री परकाल संयमान्द्रर सारप्रकाशिकॆयल्लि गतिचिन्तनाधिकारवॆम्ब प्रयोगवे इदॆ.
अम्म :- ज्वलन - अग्नि, दिवस - अहस्सु, ज्योत्सा पक्ष - बॆळदिङ्गळिरुव पक्ष ऎन्दरॆ शुक्ल पक्ष, उत्तरायण, वत्सर्रा - संवत्सरगळन्नु, पवन - वायु, तपन, सूर्यनु, प्रालेयां शु - हिमांशवु, चन्द्रनु, इवरुगळन्नु, क्रमात् - क्रमवागि, ऎन्दरॆ मेलॆ हेळिद क्रमदिन्द ऎम्बर्थवु, अचिर द्युतिम् - क्षणका लद तेजस्सु ऎम्बुदरिन्द विद्युत्तन्नु, जलधरपतिं - मेघगळिगॆ पति याद वरुणनन्नु, देवाधीशम्- देवतॆगळिगॆ स्वामियाद इन्द्र नन्नु, प्रजापतिं - ब्रह्मनन्नू कुरितु, आगतः - बरमाडिकॊळ्ळल्पट्ट वनागि, विरजां विरजॆयॆम्ब नदियन्नु, तरति - दाटुत्तानॆ, दाटुवनु ऎम्बर्थवु, ततःपरं-आ विरजॆय आचॆगॆ अथवा विरजॆयन्नु स्नानमाडि दाटिद नन्तर, अद्भुतं- अत्याश्चकरवादुदु दिव्यवैकुं ठवु, वाचः - वाक्किगॆ, दूरे - दूरवागिरतक्कद्दु, भवति ऎन्दु इल्लि क्रियापदवन्निट्टु कॊळ्ळबहुदु. अदर महिमॆयन्नु वर्णिसलु वाक्कि गू कूड साध्यवल्लवु ऎम्बर्थवु. अथवा वाचः दूरे - वाक्किगू कूड दूरवागुव हागॆ, अद्भुतं - अत्याश्चररूप पदवाद परमा त्मनन्नु, इल्लियू तॆरति ऎम्ब क्रियापदवन्नु इट्टु कॊण्डु, हॊन्दुव नॆम्बर्थवन्नु माडबहुदु. इल्लि ई अभिमान देवतॆगळिन्द मार्ग तोरिसल्पट्टवनागि मत्तु सत्करिसल्पट्टवनागि, विरजॆयन्नु दाटि अत्यद्भुतवाद वैकुण्ठवन्नु सेरुवनु ऎम्बर्थवु.________________
(20) गतिचिन्तनाधिकारः १७६७ तात्पर :- सुषुम्मा नाडियन्नु प्रवेशिसि स्कूल देहत्याग माडिद नन्तर ई प्रपन्ननिगॆ प्राप्तवागुव अर्चिरादि गतिय मत्तु आ मार्गदल्लि नियमिसल्पट्टिरुव हन्नॆरडु जन आतिवाहिकरल्लि प्रति यॊब्बनू ईतनन्नु बरमाडिकॊण्डु आतनन्नु सत्करिसि तन्न ऎल्लॆय वरॆगू करॆदुकॊण्डु होगि बिडुव, प्रकारवन्नु तिळिसुत्तारॆ. ई मेलिन मार्गवु प्रपन्नरिगॆ मात्रवे विना, पुनर्जन्मवन्नु हॊन्दुववरिगल्लवु इवरुगळु मिक्क नूरु नाडिगळल्लि यावुदादरू ऒन्दन्नु सरेश्वर सङ्कल्पान सार प्रवेशिसि, धूमादि मार्गवन्नु हॊन्दि पुनर्जन्मवन्नु ऎत्तुवरु इदर क्रमवु छान्दोग्यादि श्रुतिगळल्लि उपपादितवागिरुत्तदॆ. इदु ईग प्रकृतवल्लवु. ई अर्चिरादि गति रूपवाद मार्गवेनु ऎल्ला प्रपन्नरिगू ऒन्दॆये अथवा अनेकविदॆये ऎम्ब चर्चॆयल्लि, अरादिना तत्र थितेः ऎम्ब सूत्रदल्लि, व्यासमहर्षियु, ऎल्ला प्रपन्नरिगू अर्चि रादि रूप राजमार्गवु ऒन्दे ऎन्दु सिद्धान्तिसिरुत्तारॆ. पुराणादि गळल्लि बेरॆ मार्गगळु हेळिरबहुदु. सर्व श्रुतिगळू अर्चिरादि मार्गवन्ने बोधिसुवदरिन्द प्रपन्नरिगॆल्ला मार्ग ऒन्दे ऎम्बभि प्रायवु. ऎरडनॆय विषयदल्लि नावु ग्रहिसतक्कद्देनॆन्दरॆ :- ई हन्नॆरडु अभिमानि देवतॆगळेनु, अवरवरुगळ स्थळदल्लि निन्तिद्दु, दॊड्डमनुष्यन मोटार् कार् बन्दाग कै तोरिसि मार्ग तोरि सुव पोलीसिनवर हागॆये ऎन्दरॆ, हागल्लवु. ई दिव्य वैकुण्ठ यात्रॆयन्नु हॊन्दलु श्रियःपतियिन्दाज्ञप्तरागिरुवदरिन्द, इन्तह प्रपन्नरन्नु ऎदुरुगॊण्डु बन्दु सत्करिसि तम्म ऎल्लियवरॆगू करॆदु कॊण्डु होगि बिट्टु मुन्दिन आतिवाहिकदेवतॆयिन्द बरमाडिकॊळ्ळ ल्पडुवरॆम्ब भाववु. ई अभिप्रायवु “ आतिवाहिकारल्लि जात् ऎम्ब सूत्रदल्लि उपपादिसल्पट्टिरुत्तदॆ. “आतिवाहक” शब्दवे करॆ दुकॊण्डु होगुववरॆम्बर्थवन्नु सूचिसुत्तदॆ. ई आतिवाहकरल्लि वैद्युतनन्ने श्रुतियल्लि “स एर्ना ब्रह्मगमयति” ऎन्दु हेळिरु वदरिन्द वैद्युत नॆम्ब अमानवनु परब्रह्मनल्लिगॆ करॆदुकॊण्डु हो गुवनु. वैद्युतनादमेलॆ इरुव वरुण, इन्द्र, प्रजापतिगळादरो अनुग्राहकरागि अवरु आतिवाहकरल्लि सेरिदवरॆन्दु तिळियतक्कद्दु. n________________
१७६८ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे ३. मूरनॆय विषयवेनॆन्दरॆ, ई आतिवाहिकरु इरुव क्रम हेगॆ ? याराद नन्तर यारु ऎम्बुदु. ई क्रमवन्नु बोधिसुव मुख्य श्रुतिगळु यावुवॆन्दरॆ :- १, छान्दोग्य (४, १५, ५. ६), “ अथ यदुचास्मिं भव्यं कुल्वनि, यदुचन, तेल्टि षमेवाभि सम्भवन्ति, अग्नि स्नेह रत्न आपूर माण पक्ष, मापूर माण पक्षार्द्या षडुद इति मासांस्ता, मानेभ्य सृंवत्सर, संवत्सरादादित्य, मादित्याळ ननसं, चन्न मसो विद्युतं, तत्पुरुषो मानव, सृ एर्ना ब्रह्मगमयतोषदेव पथो ब्रह्मपथः, एतेन प्रतिपद्य नाना इमं मानव मावरं नागरने नावरन” इदर अर्थवेनॆन्दरॆ :- “ ब्रह्मवित्तिन विषयदल्लि पुत्ररु प्रेतकार्यवन्नु माडिदरू सरिये, बिट्टरू सरिये, अन्तवरु मॊदलु अर्चि ऎन्दरॆ अग्नि भिमान देवतॆयाद आति वाहकनन्नु हॊन्दुत्तारॆ आतनु बन्दु सन्मानिसि ईतनन्नु करॆदु कॊण्डु होगुवनु. अर्चिस्सिनिन्द अहस्सिनभिमानदेवतॆयन्नू, * अहस्सिनिन्द शुक्ल पॆक्षाभिमान देवतॆयन्नू, अल्लिन्द उत्तरायणाभि मान देवतॆयन्नू, अल्लिन्द संवत्सराभिमान देवतॆयन्नू, अल्लिन्द आदित्यनन्नू, आदित्यनिन्द चन्द्रनन्नू, चन्द्रनिन्द विद्युत्तन्नू, हीगॆ ई अभिमान देवतॆगळन्नु हॊन्दुवनु. इन्तह अमानवनॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव आतिवाहकनु ब्रह्मवित्तिगॆ मार्ग तोरिसि परब्रह्मन हत्तिरक्कॆ करॆदुकॊण्डु होगुवनु. इदे देवयानवु. इदे अव रुगळु तम्म तम्म सरहद्दिनल्लि करॆदुकॊण्डु होगुव मार्गवु. ई मार्गदल्लि बन्दवरु घट यन्त्रद हागॆ सुत्तुव जनन मरणादि गळिगॆ कारणभूतवाद मनुष्यादि शरीररूप संसारचक्रवन्नु पुनः हॊन्दुवदिल्लवु.” इल्लि हन्नॆरडरल्लि कॆलवु क्रमवागि हेळल्पट्टु मिक्कवु हेळल्पडलिल्लवु. २. हागॆये कौषीतकीयल्लि “स एतं देवयानं पानमा पद्यागि लोक मागच्छति, सवायुकं, सवरुणलोक, स आदित्यलोक, स इन्द्रलोक, स प्रजापतिलोकं” (१.३.) आ ब्रह्मवित्तादवनु ई देवयान मार्गवन्नवलं -सि, अग्निलोक, हागॆये वायुलोक, आदित्यलोक, इन्द्रलोक, चतुर्मुख________________
गतिचिन्तनाधिकारः १७६९. लोक, अनन्तर परब्रह्मलोकवाद वैकुण्ठवन्नु हॊन्दुवनु ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. इल्लि अग्नियन्नु हेळि, अहस्सु, शुक्ल पक्ष, उत्तराय णादिगळन्नु हेळदॆ, अनन्तर वायु, वरुण, आदित्य, इन्द्र, चतु र्मुख ब्रह्मलोकगळन्नु मात्र हेळिरुत्तदॆ. इल्लिन्द बदरिकाश मक्कॆ मार हेगॆ ऎन्दरॆ मध्यॆ हन्नॆरडु पट्टणगळिद्दरॆ, अवुगळल्लि कॆलवन्नु हेळिद हागॆ ई उपनिषत्तु तिळिसुत्तदॆ. 2. हागॆये बृहदारण्यकदल्लि “य एव मेत द्विदुचे मेर श्रद्धां सत्य मुपासते, तेषमभिसम्भव, अरि सोह, रन्न आपूरमाण पक्ष, मापूरमाण पक्षार्द्या षण्मासानुदज्जादित्य एति मार्सा, मासेभो देवलोकं, देवलोकादादित्य नादित्याद्यु तं वैद्यु तात्पुरुषो मानव स एत्य ब्रह्मलोर्का गमयति” (बृ, ८, २. १५) इदु पञ्चाग्नि विद्यॆय प्रकरणवु. ये - यारु, एवं - ई प्रकार वागि ऎन्दरॆ द्यु, परन्य, एतल्लोक, पुरुष, योषित रूपद पञ्चा ग्निगळल्लि श्रद्धा, सोम, वृष्टि, अन्न, रेतस्सु, सम्बन्धदिन्द सञ्चरि सुत्तिरुव जीवात्मनु परब्रह्मनन्नॆ आत्मावागि उळ्ळवनॆन्दु याव पञ्चाग्नि निष्ठरु तिळिय वरो मत्तु यारु अरण्यदल्लिरुववरागि श्रद्धापुरस्सरवागि, सत्यशब्द वाच्यनाद परमात्मनन्नु हीगॆन्दु तिळिदु उपासनॆ माडुत्तारो, इवरिब्बरू कॊनॆगॆ अर्च्यभिमान देवतॆ यन्नु हॊन्दुवरु, अल्लिन्द अहस्सु, शुक्ल पक्ष, अल्लिन्द उत्तरायण, अल्लिन्द वायुलोक, आदित्य, चन्द्र द्वारा वैद्युत् हीगॆ अमानव निन्द परब्रह्मनन्नु हॊन्दुवनु” इल्लियू कॆलवु हेळल्पट्टु कॆलवु हेळल्पडलिल्लवु. ई हीगिरुवदरिन्द क्रमवन्नु निर्धरिसुवदरल्लि अनेक पूर्वपक्षग ळुण्टागुत्तवॆ. अवुगळन्नॆल्ला खण्डिसि, श्री भाष्यद नाल्कनॆय अध्या यद मूरनॆय पाददल्लि स्थापिसल्पट्टिरुत्तदॆ. अदन्ननुसरिसि स्वामि निगमान्त देशिकरवरु क्रमवन्नु ई श्लोकदल्लि तोरिसिरुत्तारॆ श्लोकवन्नु ज्ञापकदल्लिट्टरॆ गतिचिन्तन क्रमवु तोरिबरुत्तदॆ. ई मार्गक्रमवन्नॆ श्री वात्सवरद देशिकरवरनुग्रहिसिरुव पर मार्थस्तुतिय श्लोकदिन्दलू तिळियबहुदु. अदु यावुदॆन्दरॆ :________________
0220 श्रीमद्रहस्यतयसारे मुरिरिन पूर पक्ष षडुदजासाब नातांशुमत् । विद्युद्वरु केन्द्र धातृ महितमान्य सिद्धापुतः । मुक्तनु होगुव मार्गवु ; अग्नि, दिन पूर्व पक्ष ऎन्दरॆ शुक्ल पक्ष, षडुदज सवॆम्बुदरिन्द उत्तरायण, अब्बवॆम्बुवदरिन्द संवत्सर, वातवॆन्दरॆ वायु, अंशुमत् सूर्यनु, गौ चन्द्रनु, विद्युत्, वरुण, इन्द्र, धातृ ऎम्बुदरिन्द ब्रह्मा, हीगॆ हन्नॆरडु आतिवाहकर मूलक होगुवनु ऎन्दू अल्लिन्द विरजॆयल्लि स्नानमाडि, मुन्दॆ, e 3 “ श्री वैकुण्ठ मुत्य नित्य मजडं तस्मिन्नर ब्रह्मण । सायुज्यं समवाक्य नन्नति सवं तेनैव धन्यः पुर्मा ऎन्दु उत्तरार्धविरुत्तदॆ. श्री वरद मिश्रर श्लोकवाद, “अड्डिरहस्सित पक्षा नुदगयनाब मरुदरेर्नू अपिवैद्युत वरुणेन्द्र प्रजापती नाति वाहि कानाहुः ॥” ऎम्बुदू ई श्लोकवन्ने समर्थिसुत्तदॆ. ई प्रपन्ननु ब्रह्मनाडियन्नु प्रवेशिसुवागलू इन्द्रियगळु, मनस्सु, प्राण, भूत सूक्ष्म, इवुगळॊन्दिगॆ सूक्ष्मदॆशॆयल्लि स्कूल देहवन्नु बिट्टु बरुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु. ई सूक्ष्म प्रकृति देह वन्नु ऎल्लि बिडुवनु ऎम्ब प्रश्नॆगॆ विरजा नदियल्लि अवगाहनॆयिन्द ई सूक्ष्मदेह परित्यागवॆन्दु मुन्दॆ अधिकारोपपादनॆयल्लि तिळिसु त्तारॆ, अड्डि रा दिगतियु-१२ आतिवाहिकरु. मुन्दॆ ई देवयान अथवा अक्क रादि गतियन्नु ऒन्दु दॊड्ड वाक्यद मूलक तिळिसु त्तारॆ मॊदलु पुरप्पट्टु ऎम्बुदरवरॆगू हिन्दिनधिकारार्थवन्नु ऒन्दु दृष्टान्त मूलक सङ्ग्रहिसि तिळिसुत्तारॆ. इप्पडि - हीगॆ ऎन्दरॆ हिन्दिन अधिकारदल्लि तिळिसिद हागॆ, मूरन नाडियिलॆ - हृदयद मध्यदल्लिरुव १०१नॆय नाडियल्लि, प्रवेशितॆ नान - प्रवेशिसल्पट्टवनाद, मुमुक्षु - मोक्षार्थियन्नु इल्लि प्रपन्ननन्नु ऎम्बर्थवु, सूल शरीरवागिर - स्कूलशरीरवॆन्दॆनि सुव, ब्रह्मपुरल् निन्नु - वेददल्लि ब्रह्मपुरवॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव________________
गतिचिन्तनाधिकारः अड्डि रादि गतिः, आति वाहिक निरूपणञ्च १७७१ (१) इप्पडि मूर न्य नाडियिलॆ प्रवेशितनान मुमुक्षु ओ स्कूलशरीरवागिर ब्रह्मपुरल् निन्नु तलैवाशलाले वत्सलनान हार, वा ब्रह्मनाडियागि तॊल्लक्कर मुख वश्य नान (मुग्धनान) राजकुमार राजा ऎडुत्तु क्कॊण्णु उलावु माप्पोलॆ कॊण्डु पुरप्पट्टु, आतन देहदिन्द, ब्रह्मनाडियागि - ब्रह्मनाडि ऎन्दॆनिसुव, त वाशलाले-मुख्यवाद बागलु मूलकवागि, वत्सलनान हार्र- अन्तह प्रपन्ननल्लि विशेष वात्सल्यवन्नु हॊन्दिरुव हृदयगुहॆयल्लि रुव सत्येश्वरनु, इदु मुन्दॆ बरुव अनेक कृद्वाचिगळिगॆल्ला कर्तृ पदवु, इष्टु दिवसवू तन्नन्नगलि इद्दु, ईग तन्नल्लि शरणागतनागि पुनः बन्दु सेरिदवनादुदरिन्द आतनल्लि तुम्बा वात्सल्यवन्नु तोरि एनेनु उपकारगळन्नु माडुत्तानॆ अथवा माडिसुत्तानॆम्बुदन्नु ई कृद्वाचिगळ मूलक उपदेशिसुत्तारॆ ; आदुदरिन्द ई हा ऎम्बुवदु, (१) पुरप्पट्टु, (२) वळिप्पडुत्ति, (३) नड, (४) अनु भविप्पित्तु, (५) पोगविडुवित्तु, (६) अक्क रै पडुत्ति, (७) कॊडुत्तु, (८) शेर्त्तु, (९) किट्ट वित्तु, (१०) ऎदिर् कॊळ् वित्तु, (११) अलं करिप्पित्तु, (१२) प्रवेशिप्पित्तु, (१३) कुरुकुवित्तु, (१४) किट्टि वित्तु, (१५) पण्णिवित्तु, (१६) पुकुरविट्टु, (१७) काय्दॆ, (१८) कॊण्डु, (१९) इरु, (२०) यिक्कुवर्, ऎम्ब इवुगळिगॆल्ला कर्तृपदवु ; वारॆ कॊल्लक्कर - ईगताने मातुगळन्नु कलियुत्ता मुद्दु मातुगळन्नाडुव, मुखवश्यना न सर्वलावण्ययुक्त मुखदिन्द तन्दॆयाद राजनन्नू मत्तु. इतररन्नू सह वश माडिकॊळ्ळुव योग्यतॆयुळ्ळ, राजकुमार - राजकुमारनन्नु, राजा . तन्दॆ याद राजनु, ऎडुत्तुकॊण्डु - ऎत्तिकॊण्डु, उलावु मा ल् - हेगॆ प्रीतियिन्द सुत्तुत्ता आडिसुवनो, कॊण्डु पुरप्पट्टु- - हागॆ आतनन्नु करॆदुकॊण्डु हॊरट बन्दु : ई वाक्यदल्लि मूरन्य प________________
و022 श्रीमद्रहस्य त्रयसारे नाडिये बेरॆ, ब्रह्मनाडिये बेरॆ, ऎन्दु भाविसतक्कद्दल्लवु; ई नाडिगॆ मूरन्य नाडि ऎम्ब हॆसरु एतक्कॆम्बुदरुपपादनवागि, ई देहवे ब्रह्मपुरवॆन्दू, परब्रह्मन हत्तिरक्कॆ करॆदुकॊण्डुहोगुव हॆब्बागि लागि भाविसतक्कद्दॆन्दू हेळिरुत्तारॆ. परमभागवतनागि, तन्न पाद कमलवन्ना श्रयिसिदवनागिरुव चेतननु इदुवरॆगू बरदॆ ईग प्रथ मतः तन्न पट्टणवाद दिव्य वैकुण्ठवन्नु कुरितु बन्दरॆ आतनिगॆ सुस्वागतवन्नु कॊट्टु करॆदुकॊण्डु तन्न अरमनॆगॆ बरमाडिकॊळ्ळु वदु युक्तवाद मर्यादॆयादुदरिन्द अदर हॆब्बागलाद ब्रह्म नाडियल्लिद्दु आतनन्नु तन्न वैकुण्ठक्कॆ करॆदुकॊण्डुहोगुव तन्न कडॆयवराद अतिवाहकरिगॆ आज्ञापिसि करॆदुकॊण्डुहोगुवनॆन्दु भाविसबहुदु. अथवा ईतन स्कूल शरीरद दहर कुहरदल्लिद्दनु. इन्नु आ स्कूलशरीरवु प्रेतवागुवदरिन्द इन्नु अल्लि हार्दनागिरुव आवश्यकतॆयिल्लदुदरिन्द आतनॊन्दिगॆ तानू हॊरटु, तन्न प्रियनागि जॊतॆयल्लिये इद्द ई प्रियमित्रनिगॆ मार्ग तोरिसुववनागि, ई ब्रह्म नाडि ऎम्ब हॆब्बागलन्नु तोजोमयवागि माडि प्रवेशिसुव हागॆ माडुवनॆन्दागलि तलैवाशल् ऎन्दु हेळल्पट्टितॆन्दु भाविस बहुदु ; अथवा अड्डिरादिना तथितेः ऎम्ब सूत्रदल्लि हेळिरुव हागॆ प्रपन्नरिगॆल्ला अर्चिरादि गतियु ऒन्दे ऎन्दू बोधिसुवदक्का गियागलि, आ राजमार्ग प्रवेशक्कागि इदॊन्दे मुख्यवाद बाग लॆन्दु तलैवाशलॆन्दु हेळल्पट्टितु. इल्लि स्कूलशरीरवन्नु ब्रह्मपुर वॆन्दु हेळिरुवदु एतक्कॆन्दरॆ, दहरविद्योपक्रमदल्लि 66 श्रुतियु,
- अथ यदि दर्म ब्रह्मपुरे दहरं पुण्डरीकं” ऎन्दु हेळि रुवदरिन्द तत्ज्ञापकार्थवागि ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. अष्टगुण विभवैश्वय्यादिगळिन्द परत्व महत्वगळन्नु हॊन्दिदवनु, इष्टु दिनवू निकृष्ट दॆशॆयल्लि बिद्दवनन्नु हीगॆ ताने सत्करिसि करॆदुकॊण्डु होगु वनो ऎम्ब संशय निवृत्तिगागि वत्सलनान हार्ल्ड् ऎम्ब प्रयो गवु. दोषयुक्तवाद शरीरवन्नु हॊन्दिरुव वत्स ऎन्दरॆ करुवि नल्लू कूड धेनुविगॆ हेगॆ विशेष ममतॆयो हागॆ, तन्नन्ना श्रयि सिद नन्तर आतनल्लि दोषगळन्नु परिगणिसदॆ प्रीति तोरिसि रक्षिसुव गुणवुळ्ळवनु. “यव धेनुस्सवति स्नेहाद्वत्तस्य वत्सला________________
गतिचिन्तवाधिकार १७६३ (२) १. “ मन्नं कडु कतिरोन्मल नन्निडुवुळ् अन्न दोरिल्लियिनॊडु पोम्” ऎन्नुम्, २. “तेरार् निरै करुविनल्लिरुव प्रीतियिन्द धेनुवु तन्न करुविनल्लि वात्सल्यवुळ्ळद्दागि हेगॆ हालन्नु स्रविसुत्तदो, हागॆये सत्येश्वरनु तन्न कुमारनाद ई चेतननल्लिरुव परमवात्सल्यदिन्द ई मुन्दॆ हेळिरुव १९ विधवाद उपकारगळन्नॆल्ला सुरिसुवनु. धेनुवु हालन्नु सुरिसुव हागॆ नमगॆ अमृतवन्नु वर्षिसुवनु ऎम्बर्थवु. हीगॆ वात्सल्यवन्नु प्रदर्शिसुवदक्कागि, हिन्दॆ उपोद्घातदल्लि उपपादिसल्पट्ट निदर्शनवन्ने इल्लियू उपपादिसुत्तारॆ. अल्लि राज कुमारनु राजन विहार कालदल्लि राजनन्नु इन्नु मातु बरुवदक्कॆ मुञ्चॆये बिट्टगलिद्दनॆन्दु हेळल्पट्टितु. ईग आ तन्न बालने स्वल्प मातु कलियुव दॆशॆयल्लि दैववशात् तन्नल्लिगॆ परमगुरु कृपा प्रभावदिन्द बन्दिरुत्तानॆ. हिन्दॆ सात्मना ज्ञानविल्लद दॆशॆयु हेळल्पट्टितु. ईग गुरुगळु दादिमारुगळ हागॆ स्वल्प ज्ञानकॊट्टु ऒन्दॆरडु मातन्नु कलिसिरुत्तारॆ. अन्तह सर्वलावण्ययुक्त मुग्ध बालनागियू तन्न हागॆये गुणाष्टकगळिन्द कङ्गॊळिसुत्तलू इरुव राजकुमारनन्नु कण्डरॆ राजनु मोहगॊण्डु ऎत्ति लालिसुव तॆरदि, सश्वेश्वरनू ई चेतननन्नु तानू सत्करिसि, तन्न कडॆयवरन्नू सत्य बिसि करॆदुकॊण्डु होगुव हागॆ आज्ञापिसि, तन्न अरमनॆयल्ले अनन्तर सर्वानन्दवन्नु निरन्तरवागि अनुभविसुव हागॆ माडुव नॆम्ब तात्पर्यवु. अल्लिन्द मुन्दक्कॆ अरादि गतियन्नु हॊन्दुवनॆन्दु हेळलु हॊरटु, आ गतिय विषयदल्लि आळ्वारुगळ दिव्य सूक्तिगळन्नु उदाहरि सुत्तारॆ– नन्न म् * बहुकाल स्थायियागि, कडु - तीक्ष वाद, गदिरो९ - किरणगळुळ्ळ सूरन, मण्णल? - मण्डलद नन्नडुवु - ऒळ्ळॆ मध्यदल्लि ऎन्दरॆ सरियाद मध्यदल्लि, अन्नदु- प्रसिद्धवाद, श्रेष्ठवाद, ओर् - अद्वितीयवाद, इल्लिर्य-रन्ध्रद 1 (१) पॆरिय तिरुमडल् १६, (२) शिरय तिरुमडल् ७,________________
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे कदिर्रो मण्डल कीण्णु पुक्कु” ऎन्नुम्, ३ “शण्ण मण्ण लत्ति नूडु शॆन्नु ” ऎन्नुम्, ४. “ इरळ त्तु मॆरि कदिर्रो 1 ऊडु - मध्यदल्लि, पोय् - होगि,” ऎन्नुम् ऎम्बदागियू, इदरिन्द अर्चिरादि गतियल्लि होगुववनु सूरमण्डलवन्नु हॊन्दि अल्लि सूर्याभिमान देवतॆयिन्द सत्करिसल्पट्टु, आतनिन्द तोरिस ल्पट्ट ऒन्दु रन्ध्रद मूलक तॆरळुवनॆम्ब भाववु. “स आदित्य वा गच्छति, तक्ष्मि स तत्र निजहीतॆ यथाडम्बरखं, तेन स ऊर्ध्वमा क्रमतॆ” ऎन्नुव बृहदारण्यक श्रुत्यर्थवु इल्लि हेळ ल्पट्टितु, (बृ. ७. १०. १) ई ब्रह्मवित्तु वायुलोकवन्नु बिट्टु आदित्यलोकवन्नु हॊन्दुवनु, आग ब्रह्मवित्तिगॆ ई आदित्यनु, आडम्बर वॆम्ब वाद्य विशेषदल्लिरुव रन्ध्रदष्टु इरुव द्वारवन्नु माडि कॊडु वनु” ऎम्बुदु इदरर्थवु. (२) “ तेर् - रथदल्लि, आर् . परि पूर्णनाद, निरै ऎन्दरॆ निरैन्न - तुम्बिरुव, दशदिक्कुगळन्नू व्यापि सुव, कदिरो९ . किरणगळुळ्ळ सूर्यन, मल कीणु पुक्कु- मण्डलवन्नु भेदिसि प्रवेश माडि, “ एषन मण्डलं भिता ऎन्दू, “ अदित्य भिनत्ति’ ऎन्दू हेळिरुव हागॆ अर्चिरादि मार्ग दल्लि होगुववनु सूर्यमण्डलवन्नु हॊन्दि अदन्नु बेधिसि मुन्द क्कॆ होगुवनॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. बेधिसि ऎन्दरॆ आदित्यनु तोरिसुव ऒन्दु रन्ध्रद्वारा होगुवनॆम्ब भाववु ; (३) शण्ड मण्डलत्तिन- चण्डवाद ऎन्दरॆ क्रूरवाद रगळुळ्ळ सूर्यमण्डलद, अथवा प्रपन्नरल्लद इतररिन्द हॊन्दलसाध्यवाद, ऊडु शॆन - मध्य प्रदेशवन्नु सेरि,’’ ऎन्नुव - ऎन्दू, “ इरुळ, अन्धकारवन्नु, अगुत्तु म नाशमाडुवदागिरुव, ऎरिकदिरो९ - उरियुव किरणगळुळ्ळ सूर्यन मण्डलत्ति नोडु - मण्डलद मध्य प्रदेश मूलक, एत्ति - दिव्य वैकुण्ठवन्नु हत्तुव ऎन्दरॆ सेरुव हागॆ माडि, वैत्तु - अल्लि स्थापिसि, एणि वाणि - अल्लिन्द पुनस्संसारक्कागि आवर्तिरूप एणियन्नु तॆगॆदुहाकि, ऎन्दरॆ नच पुनरावरते ऎन्दु
239 (३) तिरुचन्दविरुत्तं ६७. (४) पॆरिय तिरुमॊळॆ ४. ९, ३.________________
गतिचिन्तनाधिकार १७७५ मण्णलत्तू डे वैत्तेणि वाज्” ऎन्नुम्, तॊल्लुगिर देव यान मारलॆ वळिप्पडुत्ति (३) “ अमरडुयर् नि चॆन्नरुव तन्निरनियरॆये? ऎरपडिये अरिसॆ 3 हेळिरुव हागॆ, आतनु हिन्तिरुगि बारद हागॆ माडि,’’ ऎम्बर्थवु. (उत्तर कृत्याधिकारदल्लि नॆय पुट नोडि ) ऎन्नुम् - ऎन्दू, शूल्लुगिर - हेळिरुव, देवयान मारत्तिलॆ - अद्दिरादि मार्ग वॆन्दू, देव पथवॆन्दू, ब्रह्मपथवॆन्दू, देवयानवॆन्दू, शुक्लगत्ति यॆन्दू, हीगॆल्ला हेळिरुव मार्गदल्लि, ऎळिप्पडुत्ति - मार्गवन्नु सेरुव हागॆ माडि ; (५) अमरडु - आतिवाहिकरॊन्दिगॆ, उय मैल् शॆन्नु - विरजा नदियन्नु सेरि, र्त सिरवि - तन्न जन्मवॆम्बुव, इरै - क्रूर कारागृहवन्नु, अरुवर्. छेदिसुवरु ; ऎन्दरॆ सूक्ष्मशरीरवन्नु त्यजिसुवरॆम्ब भाववु. इदु नाल्कनॆय पादवु. मॊदलु मूरु पादगळु : अमरगळ तॊळुतॆळ मिकडल् कडॆनवन । अमर पॊळिल् वळरुगूर् चडगोर्प कुत्तेवल्गळ अमर शुवै यायिर वत्ति सुळिवै हत्तु ं वल्लार् ॥ “ब्रह्मादि देवतॆगळु आश्रयिसि क्षेमवन्नु हॊन्दुव हागॆ अलॆ गळुळ्ळ क्षीरसमुद्रवन्नु कडॆद श्रीयःपतियन्नु कुरितु, गुम्पागिरुव तोटसमृद्धियुळ्ळ कुरकापुरिगॆ स्वामियाद नन्नाळ्वारवर वाचिक कैङ्करवाद शब्दार्थ रसगळु तुम्बिरुव साविर पाशुरगळल्लि ई हत्तु पाशुरगळन्नु अभ्यास माडिरुववरु आतिवाहिकरिन्द सत्करिसल्पट्टु, विरजॆयल्लि जन्मबन्धवाद सूक्ष्म शरीरवन्नु त्यजिसि, कारागृह बन्ध वन्नु छेदिसिकॊळ्ळुवरु,” ऎम्बुदु ई पाशुर तात्सरवु, ऎच्चर पडिय - ऎन्दु हेळिरुव हागॆ, अल्लि सैनम् - (१) अस्सु अथवा अग्नियॆन्दू, (२) अहस्सॆन्दू, (३) पूरैपक्ष वॆन्दरॆ शुक्ल पक्षवॆन्दू, (४) उत्तरायण वॆन्दू, (५) संवत्सर वॆन्दू, (६) वायुवॆन्दू, (७) आदित्यनॆन्दरॆ सूर्यनॆन्दू, (८) चन्द्रनॆन्दू, (३) तिरुवाय्मॊळि १. ३. ११. ఒ________________
१६६ श्रीमद्र हस्य त्रयसारे नुम्, अहनुम् पू पक्ष मॆनु, उत्तरायणमॆनु ं संवत्सरवॆनुम्, वायुननुम्, आदित्यनॆ नुम्, चन्द्रनॆन्नुम्, वैद्युत नॆन्नु, अमानव सञ्ज्ञनान इव मुक्कु सहकारिगळान वरुणेन्द्र प्रजापतिगळॆन्नु, कॊल्ल प्पडुगिर वळि नडु म् मुदलिगळॊ इट्टु (२) “अहंस्मरामि मद्भक्तं नयामि परमाङ्गं’ ऎरपडिये र्ता प्रधान नाय् नडत्ति (४) अन्नो ऎल्लॆ गळिल् भगवच्छास्त्रले परक्कॆ पेरिन भोगयुमनुभविप्पित्तु, O (९) वैद्युतनॆन्दू, अमानव सञ्ज्ञनान इवनुक्कु - अमानव नॆन्दु करॆयल्पडुव ई वैद्युतनिगॆ, सहकारिगळान- सहाय माडुव, (१०) वरुण (११) इन्द्र (१२) प्रजापतिगळॆनु - चतुर्मुख ब्रह्मनॆन्दू कॊल्लप्पडुगिर - हेळल्पट्टिरुव, वळिनडत्तु म् मुद लिगळ्ळॆयिट्टु - मार्ग नडॆसुव ऎन्दरॆ जॊतॆयल्लि करॆदुकॊण्डुहो गुव प्राज्ञराद आतिवाहिकर मूलकवागि “नानु नन्न भक्तनन्नु देह वियोग कालदल्लि स्मरिसुवन्तॆ माडुवनागि, आतनिगॆ सर्व श्रेष्ठवाद गतियन्नु हॊन्दिसुवॆनु, ऎरपडिये - ऎम्ब श्री वराहपुराण वाक्यद हागॆ, र्ता प्रधाननाय् नडत्ति - ताने मुख्यवागि निन्तु नडॆसि, (४) अवॊ ऎल्लॆगळिल् - ई १२ देवतॆगळ ऎल्लॆयल्ल, भगवच्छास्त्रलॆ - श्री पाञ्चरात्रादि भगवच्छास्त्रगळल्लि, परक्कॆ पेशिन - विस्तरवागि हेळिरुव, भोगण्णकैयुमनुभविप्पित्तु - भोगगळन्नॆल्ला ई प्रपन्ननु अनुभविसुव हागॆ माडि ; ई वाक्य दल्लि (१) आतिवाहिकरु १२ मन्दि ऎन्दू, (२) अवरुगळु ई बन्द प्रपन्ननन्नु ऒब्बॊब्बरु क्रमवागि तम्म गडियु इरुववरॆगू करॆदु कॊण्डु होगुव क्रमवु यावुदु ऎम्बुदन्नू, (३) ई अस्सु, अहस्सु, शुक्ल पक्षगळिन्द बोधितरा वरु, वळिनडत्तु म् मुदलि गळ् - ऎदरुगॊण्डु मार्ग तोरिसि करॆदुकॊण्डु होगुव देवतॆ गळॆन्दू मत्तु अवरुगळु तत्तदभिमान देवतॆगळॆन्दू, (४) इदरल्लि कडॆगॆ परब्रह्मन हत्तिर करॆदुकॊण्डु होगुवनु वैद्युतनु ऎन्दू,________________
गतिचिन्तनाधिकारः १७७७ “वैद्युतेनैव ततस्तच्छुतेः” ऎन्दु सूत्रदल्लि हेळिरुव हागॆ, “स एर्ना ब्रह्म गमयति” ऎम्ब प्रमाणवॆन्दू, (५) हागादरॆ वरुण, इन्द्र, प्रजापतिगळ कॆलसवेनॆन्दरॆ, अवरू अवरवर ऎल्लॆ गळल्लि वैद्युतन जॊतॆयल्लिद्दु सत्करिसुवदरिन्द अवरुगळु ई वैद्युत निगॆ सहकारि ऎन्दू, (६) हीगॆ वैद्युतनु, ई मेलॆ हेळिद इतर देवतॆगळिगॆल्ला स्वल्प विलक्षणवागि परब्रह्मनवरॆगू करॆदुकॊण्डु होगुवदरिन्द आतनु नित्यसूरिगळल्लॊब्बनॆन्दू, (७) ई आतिवाहिकरु बरी मार्ग तोरिसुवरेयागलि मार्ग नडिसुववरेयागि इल्लवु, इवरुगळु आ बन्द प्रपन्नरन्नु सत्करिसि आदरिसु ववरॆन्दू, ई प्रपन्न रिगॆ मार्गदल्लि उपभोगानुभवगळुण्टॆन्दू, (८) इवष्टु एर्पाडु गळन्नॆल्ला इट्टु नडिसुववनु, प्रधाननागि सश्वेश्वरने ऎन्दू, उप देशिसल्पट्टितु. मार्गदल्लि हीगॆ सत्कारवू भोगानुभववू उण्टॆं बुदु भगवच्छास्त्र प्रमाणगळिन्द व्यक्तवॆम्ब निदर्शनक्कागि वाख्या तृगळु, “ अथेन ममरास्त्रत सह दिव्यारोगः । सोपहाराः प्रदक्षिण प्रत्यु च्छन्त्युहागतम् ॥ अल्लि रादि कया गा तत्र तत्राश्चित स्सुरै- 11 अतीत्यलोका नज्योति वैकुण्ठं वीतकल्मषः । (6 ई मेलिन श्लोकगळन्नु उदाहरिसिरुत्तारॆ. “ ई वैकुण्ठवन्नु कुरितु बन्द प्रपन्नवन्नु अड्डिरादिगळ अभिमान देवतॆगळु मार्ग दल्लि दिव्याप्प रस्समूहदिन्द सेरिदवरागि, उपहारादिगळॊन्दिगॆ बहु सन्तोषदिन्द ऎदरुगॊण्डु स्वागतवन्नु हेळि, हीगॆ अड्डिरादि गति यिन्द अल्लल्लि अभिमान देवतॆगळिन्द पूजिसल्पट्ट वनागि अवरवरुगळ लोकगळन्नॆल्ला दाटि, कल्मषगळिन्द बिडल्पट्टवनागि महा परिशुद्ध नागि वैकुण्ठाभिमुखनागि तॆरळुवनु” ऎन्दु इल्लि हेळिरुत्तदॆ. शाकटायन संहितॆयल्लि अहस्सिगू शुक्लपक्षक्कू मध्यॆ कौमुदि ऎम्ब अभिमानदेवतॆ युण्टॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. आदरॆ श्रुतिगळल्लि हेळल्पट्टिरुवदु मुख्यवॆन्दु भाविसि हन्नॆरडु आतिवाहकरु मात्र इल्लि हेळल्पट्टरु. धूमादि मार्गदल्लि प्रपन्न नल्लदे इरुववरिगू चन्द्र प्राप्तिय हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. चन्द्राभिमान देवतॆयु अवरिगॆ________________
१७७८ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे सूक्ष्म शरीर परित्यागति (५) “ लोकं वैकुण्ठना नानं दिव्यं पाद्गुण्य संयु तं 1 अवैष्णवानाम प्राप्यं गुणत्रय विवरि तम् । नित्यसिद्ध ఆ अर्चिरादि गतियन्नु तोरिसदॆ स्वर्गक्कॆ होगुव मार्गवन्नु तोरिसुवनॆन्दु भाविसतक्कद्दु, प्रपन्ननु दक्षिणायनदल्लि मृतना दरॆ चन्द्रसायुज्यवन्नु हॊन्दि, अल्लि स्वल्प विश्रमिसिकॊण्डु मुन्दॆ होगुवनॆन्दु तैत्तिरीयदल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. सूर्यनु तोरि सिद आडम्बरवॆम्ब वाद्य विशेषद रन्ध्रदष्टु तन्नल्लिरुव रन्ध्रदल्लि प्रवेश माडिसिद ऒडनॆये, चन्द्रदेवतॆयु बन्दु ऎदुरुगॊण्डु करॆदुकॊण्डु होगुवनु ; सत्कारवाद नन्तर दुन्दुभि वाद्यरन्ध्रद हागिरुव रन्ध्रदल्लि प्रवेश माडिसि कळुहिसुवनु. ऒडनॆये वैद्यु तनु बन्दु ऎदुरुगॊण्डु करॆदुकॊण्डु होगुवनु इवनिगॆ अमा नवनॆन्दु हॆसरु. ईतनु आ प्रपन्न नन्नु वरुण लोक, इन्द्रलोक, चतुरुख लोकगळ मार्गवागि परब्रह्मन हत्तिरक्कॆ करॆदुकॊण्डु होगुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु ; आदुदरिन्द ई वरुण, इन्द्र, प्रजा पतिगळु तम्म तम्म ऎल्लॆगळल्लि मात्र सत्करिसि मार्ग तोरिसुवराद अनुग्राहकरॆन्दु निर्धरिसल्पट्टिरुत्तदॆ. ई अमानवनिगॆ श्रुत्यन्तर गळल्लि मानसनॆन्दु हॆसरुण्टु. इवरु बेरॆ बेरॆ ऎन्दु कॆलव रभिप्रायपट्टु बेरॆ बेरॆ निर्वाहवन्नु हेळुत्तारॆ. इदु नमगीग प्रकृतवल्लवु. सत्येश्वरनु अनेक अण्डगळिगॆ ईशनल्ला, अल्लॆल्ला हेगॆ ऎन्दरॆ, प्रतियॊन्दु अण्डदल्लि अरादिगतिगळुण्टॆन्दु भाविसतक्कद्दु, ई विषयगळॆल्ला बहु विस्तरवागि श्री देशिकरवरनुग्रहिसिरुव परम पद सोपानद अर्चिरादि पर्वदल्लि उपपादितवागिवॆ. सूक्ष्म शरीरद परित्यागवु. “ दिव्यं - अप्राकृतवाद, षाडुण्य संयुतं - ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य, तेजस्सु, शक्ति ऎम्ब आरु गुणगळिन्द कूडिद (५) द्वितीय जितन्या १८, २१,________________
गतिचिन्तनाधिकार १७७९ *मा केरं तन्मयोः पाञ्चकालिकै 8 । सभा प्रासाद संयु पवन् (रुतं) शुभम् । वासीकूट तटाकैश्य वृक्षपण्डै मण्डितम् । अप्राकृतं सुरैरन्द्य मयुतार समप्रभ ! प्रकृष्ट सराशिन्तं कदाद्रक्षामि चक्षुषा।” ऎन्नु नॆडु बालवर् काण आशॆ प्पट्ट दूरु देशविशेषलॆ 3 FT 8- ऎन्दरॆ आ गुणगळिगॆ प्रकाशकवाद अवैष्णवानाम् अप्राप्यं- विष्णु भक्तरल्लदॆ इतररुगळिन्द हॊम्बलसाध्यवाद, गुणत्रय विवश्चितं - सत्व रजस्तमोगुणगळिन्द बिडल्पट्टु दागि, तन्मयोः - भगव य९दल्ले यावागलू इडल्पट्ट मनस्सु, पाञ्चकलिकै - ऐदु कालगळल्लि कर्तव्यवॆन्दु विधिसिरुव कैङ्कय९गळन्नुळ्ळ, नित्यसिद्ध नित्य सरिगळिन्द, सर्मा९९० - तुम्बिद, सभा प्रासाद संयु कम् - सभा मण्टपगळुळ्ळ उप्परिगॆ मनॆगळिन्द कूडिरुव, वनै - वनगळिन्द, उपव नै - उद्यानवनगळिन्दलू, युतं - सेरि रुव, वासी कूप तटाकै, वापी - इळियुव भाविगळिन्दलू, कूप - सेदुव भाविगळिन्द, तटाक्वॆस्ट् - कॆरॆ, पुष्करिणि अथवा सरस्सुगळिन्दलू वृक्ष षण्डैश्य - मरगळ समूहगळिन्दलू, मं डितं - अलङ्करिसल्पट्ट, अप्राकृतं - सुखदुःखगळिगॆ आकरवाद प्रकृति सम्बन्धविल्लदॆ, आनन्दक्कॆ निलयवाद सत्वमयवाद, सुरै द्वन्द्यं - देवतॆगळिन्द स्तुतिसल्पट्टिदुदागि, अयुतार सम - प्रभव - कोटि सूर्यरिगॆ समानवाद कान्तियुळ्ळ, स्वयं प्रकाशवाद, प्रकृष, सत्व शिव - निरतिशयवाद सत्वगुणद राशी भूतवाद, ऎन्दरॆ शुद्ध सत्वववाद पं - अन्तह प्रसिद्ध महिम युळ्ळ, वैकुण्ठ न मानं - वैकुण्ठवॆन्दु हॆसरुळ्ळ, लोक - लोकवन्नु, कदा - याव ग, चक्षुषा - दिव्य चक्षुस्सिनिन्द, द्रक्षा, मि - नोडुवॆनो” ऎन्नु - ऎम्बदागि, नॆडु बलम काणबहु दीर्घकालदिन्दलू काणबेकॆन्दु, आशै पट्टिदु 6 भिलाषॆयुळ्ळ, ऒरु देश विशेषले शेव्र वारे- ऒन्दु माहात्म देशवन्नु सेरिद ऒडनॆये, कल्म फलविशेष भोगर मागम- निक्कॆ - कर________________
१७८० श्रीमद्रहस्यत्रयसारे शॆनवरे, कल्मफलविशेष भोगारमागमनि, विद्यॆ यालॆ स्थापितवाय् गतिमात्रार्थवाग अनुवृत्तमान सूक्ष्म शरी र आरु कदु पृत्तिन तॆप्पम् पोगविडुवाप्पोलॆ पोगविडुवित्तु ; (६) निरजैक्करैप्पडुत्ति ; (७) अप्राकृत
फलानुभवक्कागियल्लदॆ, विद्यॆयालॆ स्थापितवाय् ब्रह्मविद्यॆ न्यासविद्यॆयिन्द स्थिरपडिसल्पट्ट, गतिमात्रा र्थवाग - अर्चिरादि गति यल्लि सञ्चार मात्रक्कागि, अनुवृत्त मान सूक्ष्म शरीर - भग वपॆयिन्द अनुसरिसि बन्द सूक्ष्म शरीरवन्नु, आरुकडक्कु - नदिय आचॆ दडवन्नु दाटुवदक्कागि, पत्तिन तॆप्प - हत्तिद तॆप्प वन्नु, पोगविडुमाप्पोलॆ- अदु हिन्तिरुगि होगुवदक्कागि बिट्टु बिडुव हागॆ, पोगविडवित्तु - हिन्तिरुगुव हागॆ त्यजिसि ; (५) विर जैकु . विरजा नदिगॆ, अक्करैप्पडुत्ति - आचॆय दडवन्नु तलपुव हागॆ माडि ; ई ४, ५नॆय वाक्यखण्डगळिन्द सूक्ष्मशरीरपरित्यागवू मत्तु विरजात रणवू बोधिसल्पट्टितु. वैद्युत अमानवनु ईत नन्नु प्रकृति मण्डलवन्नु दाटि, दिव्य वैकुण्ठद ऎल्लॆगॆ करॆदुकॊण्डु होगुवनु. आ दिव्य वैकुण्ठवु ऎष्टु निरतिशयवादुदॆम्बुदु द्वितीय जिनना स्तोत्रगळ मूलक वर्णिसल्पट्टितु. ई ऎरडु ऎल्लॆगळ मध्यॆ विरजानदि इरुत्तदॆन्दु हेळल्पट्टितु. ईतनिगॆ सूक्ष्म प्राकृत त शरीर परित्यागवॆल्लि ऎम्ब चर्चॆयल्लि, प्रथमतः स्कूलशरीर त्यागानन्तर सूक्ष्मशरीर प्राप्ति एतक्कॆम्बुवदन्नु ग्रहिसतक्कद्दॆन्दु भाविसि, ई सूक्ष्मशरीरवु कफल भोगक्कागियल्लवॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. आदरॆ “तस्य पुत्रादाय मुपयन्ति, सुहृदस्साधु कृत्यां, द्विषन्तः पापकृत्यां” ऎम्ब श्रुति प्रकार, उत्कान्ति कालदल्ले पुण्य पापगळॆल्ला सुहृत्तु मत्तु शत्रुगळल्लू होगि सेरिबिडुवदरिन्द कफलगळू इल्लवु, अवुगळ फलानुभववू इल्लवु. आतिवाहिकर सत्का रद उपभोगक्कागि सूक्ष्म शरीर प्राप्तियॆन्दरॆ, नित्यविभूतियल्लू सह अदे शरीरदिन्दले भोग एकॆ कूडदॆम्ब आक्षेपणॆ उण्टागु तॆदॆ. हीगॆ ई सूक्ष्मशरीरवु कल्मफलोपभोगक्कागि अल्लदिद्दरॆ,________________
गतिचिन्तनाधिकार… अदर प्रयोजनवेनॆन्दरॆ :-सूक्ष्मशरीरवु न्यासविद्याप्रवृत्तियिन्द सिद्धवादुदागि अर्चिरादि गतियल्लि परमपदवन्नु कुरितु होगबेका दुदु इरुवदरिन्द, अदक्कागि मात्रवे ई सूक्ष्म शरीरवॆन्दु हेळिरु त्तारॆ. अर्चिरादि गतियु प्रकृति मण्डलक्कॆ सेरिद भागदल्लि गमन क्कागि ऎन्दु निर्धरिसिद नन्तर, प्रकृति मण्डलवन्नु दाटि विरजॆयन्नु सेरिद ऒडनॆये सूक्ष्मशरीर विच्छेदवॆम्बदागि तोरिबरुत्तदॆ. अदु विरजॆयॆम्ब अमृत नदिय ईचॆय दडदल्ले प्राप्तवागुत्तदॆन्दु भाविसतक्कद्दागिरुत्तदॆ. आदुदरिन्दले “ऒरु देशवि शे षलॆ शॆन्न वारे” ऎम्ब प्रयोगवु. ई नदियु ऎल्लि इदॆ ऎन्दरॆ :- कौषीतकी ब्राह्मणवन्ननुसरिसि हेळिद “ वैकुण्ठसीमि विरजां सैन्दना नां महानदीं” ऎम्ब “गत्वायो विरजां निमुञ्चति तनुं सूक्षां” ऎम्ब उक्तिगळिन्द लीलाविभूति नित्य विभूतिगळ ऎल्लॆयन्नु निर्धरिसुवन्थाद्दॆन्दु भाविसल्पट्टिरुत्तदॆ. नदियन्नु दाटुवदक्कॆ ऒन्दु तॆप्पद आवश्यकतॆयु, अदु दाटिद नन्तर आ तॆप्पद आवश्यकतॆ हेगॆ इल्लवो हागॆये ई अर्चिरादि मार्गवन्नु दाटुवदक्कागि ई सूक्ष्मशरीरवु. अदु दाटिद नन्तर इन्नु ई सूक्ष्मशरीरद आवश्य कतॆयु इल्लदुदरिन्द, अदु प्रकृति मण्डलक्कॆ हिन्तिरुगि होगि सेरि कॊळ्ळुत्तदॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. ई सूक्ष्मशरीरवू कूड प्रकृ तिय कार्यरूपवादुदरिन्द इदक्कॆ नाशविल्लवागि प्रकृतियन्ने होगि सेरुत्तदॆन्दु भाविसतक्कद्दु. आदुदरिन्द “पोगविडुवित्तु” ऎम्ब प्रयोगवु. प्रकृतिगॆ नाशविल्लवॆन्दु श्रुतिये “अजामॆकां लोहित शुक्ल कृष्णां” ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द यावुदक्कॆ उत्पत्ति इल्लवो अदक्कॆ नाशवू इल्लवु ऎन्दु ग्रहिसतक्कद्दु. हीगॆ प्रमाण विद्दरू कूड मिथ्यावादवु हेगॆ कॊडुत्तदो तिळियदु. e हीगॆ विरजॆय ईचॆय दडदल्ले सूक्ष्मशरीर परित्यागवादरॆ, विरजॆयन्नु दाटुवदक्कॆ शरीर बेडवो ऎन्दरॆ कौषीतकी ब्राह्मण दल्लि “स आगच्छति विरजां नदीं, ताम्मन वातैति” ऎन्दु हेळिरुव प्रकार, शरीरविल्लदेने सङ्कल्प मात्रदिन्दले दाटुव शक्ति यन्नु ईतनु पडॆयुवनॆम्ब भाववु. आदुदरिन्दले विरजैक्कक्करॆ पडुत्ति ऎम्बुदरिन्द सत्येश्वरने विरजावतरणवन्नु नडिसिकॊडुव________________
श्रीमद्रहस्य त्रयसारे शरीरक्कॊडुत्तु, (८) ऐरं मदीय मॆच्चर सरस्सिन वुं शेर् त्तु, सोमसवन मॆजर अश्वत्थ क्किट्टु वित्तु, नॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. परमपदसोपानद दिव्य देश प्राप्ति पर्व दल्लि “विमल मधुर सुरभि शीतळमान विरजा प्रवाह अव गाहित्तु अळक्कु पवित्रपाणियानव मानवनुडैय कर सरत्तालॆ वासना विशेषळिन्दर्व दिव्य देश प्राप्ति यालॆ सलोकनाय, अप्राकृतामृतमय विलक्षण विग्रहयोग तालॆ सरू पनाम्” ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द अमानव करस्पर्शवू दिव्यमङ्गळ विग्रह प्राप्तियू उण्टागुत्तवॆयॆन्दु हेळिरुवदरिन्द सालोक्यवू सारूप्यवू प्राप्तवागुत्तदॆन्दु तिळिसिदन्तायितु. मुन्दॆ सायुज्यवू उण्टागुत्तदॆन्दु हेळल्पडुत्तदॆ. इल्लि मात्र अमानव करस्पर्शवु हेळल्पडलिल्लवु, आदरॆ अप्रा कृत शरीर कॊडुत्तु ऎन्दरॆ शुद्ध सत्वमयवाद दिव्यमङ्गळ विग्रहवन्नु कॊट्टु ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. आ शरीरवु सश्वरन रूपक्कॆ समानवादुदु, चतुर्भुजयुक्तरागि शङ्खचक्रधररागिरुव रूपवु. अल्लिन्द मुन्दक्कॆ होगुव मार्गदल्लि एनेन इरुत्तदॆम्बुदु कौषीतकी ब्राह्मणदल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. अदन्नु विस्तरिसुत्तारॆ. (८) मत्तु (९) ऐरं मन्दिय मेजर सरस्सिन ळवु व शेरु - ऐरं मदीयवॆन्दु हॆसरुळ्ळ सरस्सिरुववरॆगू सेरिसि ; “तरं मदीयं सरस्तद श्वत्थ समसवन स्वदपराजिता पूर ह्मणः प्रभुविमित ग् हिरण्मयं” ऎन्दु (छां. ८. ५. ३) श्रुतियल्लि हेळिरुव ऐरम्मदीयवॆन्दु हॆसरुळ्ळ सरस्सन्नू, सोम सवन वॆंर अश्वत्थ किडुवित्तु - सोव सवनवॆम्ब अश्वत वृक्षवन्नु सेरुव हागॆ माडि ; इवुगळु विरजा नदियन्नु दाटि न नन्तर श्रीयःपतिय सभामण्टपक्कॆ होगुव मार्गदल्लि सिक्कुत्तवॆम्ब भाववु. इवु नित्यविभूतिगॆ सेरिदवु. ऐरम्मदीय वॆन्दरॆ, इर यामाद्यनॆ र्य तत् ऎम्ब व्युत्पत्तियिन्द अमृतमयवादु________________
(6) गति चिन्तनाधिकार (१०) मालाञ्जन चूर्णवासो दिव्याप्सरस्सु कॊळ्ळॆ इट्टु ऎदि अलङ्करप्पित्तु (१२) तालॆ १७८६३ भूषण हक्किगळान ऐन्नूरु कॊळ्ळवित्तु (११) ब्रह्मालङ्कार ब्रह्मगन्ध रस तेजस्सुक्क दॆम्ब भाववु; सोमसवनवॆन्दु ई अश्वत्थक्कॆ एकॆ हॆसरॆन्दरॆ, चन्द्रन हागॆ तुम्बा अह्लादकरवादुदरिन्द ; अल्लिन्द मुन्दक्कॆ श्रुतियु प्रभु विनितं – सत्येश्वरन दिव्यमङ्गळ विग्रह विशिष्टवाद, हिरण्मयं - बहु प्रकाशवाद सभामण्टपविदॆ ऎन्दु हेळल्पट्टरु इदॆ. इल्लि छान्दोग्यवु ब्रह्मचर्यदल्लिद्द महाभागवतनु सत्व श्वरन सभॆयन्नु कुरितु होगुवनॆन्दु हेळि, आ मारदल्लि ई सरस अश्वत्थवू सह सिक्कुत्तवॆन्दु बोधिसुत्तदॆ छान्दोग्यदल्लि मूरु सरस्सुगळु सिक्कुत्तवॆन्दु हेळल्पट्टिदॆ :-) अरवॆन्दू, (२) अरण्य वॆन्दू, इवॆरडन्नू अर्णवगळॆन्दु हेळिरुत्तदॆ, (३) ऐरन्नदीय श्री देशिकरवरु इल्लि मूरनॆयदॊन्दन्नु मात्रवे तिळिसिरुत्तारॆ. इदु मिक्क ऎरडक्कू उपलक्षणवु, मार्गदल्लिरुवदॆल्लवन्नू हेळवॆ मुख्यवादुदन्नु मात्रॆ हेळुव पद्धतियू उण्टु. (१०) अल्लिन्द मन्दक्कॆ ईतनिगुण्टागुव सत्कारवन्नु कौषि तकी ब्राह्मणदल्लि हेळिरुव प्रकार उपदेशिसुत्तारॆ : मालाञ्जन चूर वासो भूषण हगळान दिव्या रस्सु गळ्ळि इट्टु - पुष्प हार, धूप, गन्धद सुवासनॆ य हुडि, पीताम्बर, दिव्याभरण गळन्नु कैगळल्लि धरिसिद दिव्यराद अप्सरस्सुगळ मूलक, ऎदिर कॊळ्ळ वित्तु - ऎदुरुगॊळ्ळुव हागॆ माडिसि, अवरुगळ मूलकवागिये, (११) ब्रह्मालङ्कारत्ताले अलङ्करप्पित्तु - परब्रह्मनन्नु होगि सेरुवदक्कॆ योग्यवाद परवासुदेवनिगॆ समवाद अलङ्कारदिन्द अलङ्करिसल्पडुव हागॆ माडि ऎम्बर्थवु काषितकियु हेळिरुवदॆ? नॆन्दरॆ :-“तं पञ्च शतान्यर सां प्रधावन्ति शतं माता हस्ता श्य तमञ्जन हस्ता शतं चूर्ण हस्ता, शतं वासोह सा शतं भूषणहस्ता ं ब्रह्मालङ्कारेणालङ्कुन्ति,” ऐनूरु अप्परस्सुगळु ओडिबन्द सुखागमनवन्नु हेळुवरु. अवरल्लि नूर________________
६८४ श्रीमद्र हस्य त्रयसरे دة प्रवेशिप्पित्तु, (१३) “कुडियडियारिवर् गोविन्दनक्कॆनु ! मन्दियु कैयल्लि हारवन्नु हिडिदिरुववरागियू, इन्नु नूरु मन्दियु गन्धद हुडियन्नू, इन्नु नूरु मन्दियु ऒळ्ळॆ ऒळ्ळॆ बट्टॆगळन्नु कैयल्लि हिडिदवरागियू, बाकि नूरु मन्दियु आभरण गळन्नु कैयल्लि हिडिदवरागियू बन्दु ऎदुरुगॊळ्ळुवरु. इदॆल्ला एतक्कॆन्दरॆ, अलङ्कारमाडि शियःपतिय सभामण्टप प्रवेशक्कॆ योग्यवाद, आतनिगॆ समवाद उडुपु आभरणगळिन्द अलङ्करिसुवद क्कागि ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. (१२) ब्रह्म गन्ध रस तेजस्सुळ्ळॆ प्रवेशिप्पित्तु - स आग शृति तिल्यं वृक्षं, तं ब्रह्म गन्धः प्रविशति, स आगच्छति साल ज्ञं स्थानन्तं ब्रह्मरसः प्रविशति, स आगच्छति अपराजितॆ मा यतनं, तं ब्रह्मतेजः प्रवेशति, ऎन्दु कौषीतकियल्लि हेळिरुव हागॆ, सत्येश्वरन सभॆयन्नलङ्करिसुवदक्कॆ योग्यवाद गन्ध रस तेजस्सुगळन्नु ईतनु हॊन्दिरबेकागिरुवदरिन्द, ब्रह्मगन्दवू, ब्रह्म रसवू, ब्रह्मतेजक्कू सह ईतनन्नु प्रवेशिसुत्तवॆ ऎन्दु इल्लि हेळ ल्पट्टिरुत्तदॆ. (१३) मुन्दॆ सत्येश्वरन गोपुर बागलल्लागुव सत्कारवन्नु वर्णिसुवरागि, नम्माळ्वारवर दिव्य सूक्तियिन्दले आ सत्कार प्रकार वन्नु पदेशिसुत्तारॆ :- इवर् .. ईग वैकुण्ठवन्नु कुरितु बन्दिरुव भागवताग्रेसररु, गोविंर्द तनक्कु ऎन्दरॆ सत्येश्वरनिगॆ, “गां विन्दते” ऎम्ब व्युत्पत्तियिन्द भूमियन्नु हॊन्दिदवनु ऎन्दरॆ तन्न स्वाधीनवागि वुळ्ळवनु, अथवा अवतार दॆशॆयल्लि आकळन्नु हॊन्दिदवनु ऎम्बर्थवागुत्तदॆ, कुडियडियार् - कुलक्रमवागि बन्द दासभूतरु, अथवा शिय पतियु हेगॆ कुलदैवतॆयो, आदुद रिन्द हागॆ इवरु कुलदासरॆम्ब भाववु, यावाग दासभूतरॆम्बुदु आ ऎदुरुगॊण्ड नित्यसूरिगळिगॆ वेद्यवायितो आग अवरुगळु हीगॆ श्लाघिसि, सत्करिसि, ऎदुरुगॊळ्ळलु कारणवु. ऎन्नु - हीगॆ श्लाघिसि, (१३) तिरुवाय मॊळि १०, ९, ८.________________
गतिचिन्तनाधिकारः १७८५ मुडियुडै नानवर् मुरै मुरै यॆदिगॊळ्ळक्कोडियणि नॆडुमति पुरुरुकवित्तु” (१४) इन्द्र प्रजापतिगळनु मुडियुडैवानवर्. अभिषिक्तराद अथवा मकुट धरिसिद नित्यसूरि गळू, मुक्तरू, सत्येश्वरनीग साम्राज्य पदवियल्लि अभिषिक्तनाद चक्र वर्तियु, हीगिरुवाग इवरुगळु हेगॆ अभिषिक्तरु ऎन्दरॆ कैङ्कर्य साम्राज्य पदविय माहात्मयन्नरितु, “ अहं सत्वं करिष्यामि ऎन्दु हेळिद महनीयरादुदरिन्द इवरू अभिषिक्तरॆन्दु हेळल्प ट्टितु, इवरुगळु ई वै कुण्ठवन्नु सेरलु बन्दवनन्नु, मुरै मुरै ऎदिर् गॊळ्ळ - प्रत्येक प्रत्येकवागि बन्दु ऎदुरुगॊण्डु बरमाडि कॊण्डु, कॊडियणि - ध्वजदिन्दलङ्कृतवाद, नॆडुमदिळ् गो पुरं - ऎत्तरवाद प्राकारगळुळ्ळ गोपुरवन्नु, कुरकवित्तु - समा पिसुव हागॆ माडि ऎम्बर्थवु. इल्लि मूरु पाद मात्र उदाहरिस ल्पट्टितु. नाल्कने पादवु, “कुरुगिनर् । वडिवुड् मातर्व वैगुन्दम् पुगवे? एतक्कॆ गोपुर समीपक्कॆ होगिद्दुदु, ऎन्दरॆ आळ्वारु हेळुत्तारॆ. अडिवुड् यावागलू सक्षान्मन्मथ मन्मथः ऎन्दु हेळिरुव हागॆ सर्वायुध सर्वभूषणयुक्तनागि सर्वलावण्यमहोदधियागिरुव, माधर्व, द्वयद उत्तरखण्डद श्रीमच्छब्ददल्लि तोरुव, मत्तु वैकुण्ठेतु परेलोके श्रिया सारम् ऎम्बल्लियू व्यक्त पडुव प्राप्यनाद शियःपतिय, वैगु नं पुगवे - वैकुण्ठवन्नु प्रवेशिसुवदक्कागि, गोपुर बागिल समप वन्नु सेरुव हागॆ सत्करिसि करॆदुकॊण्डु होगुवरॆन्दु हेळल्पट्टितु. नित्यसूरिगळु ध्वजदिन्दलङ्करिसल्पट्ट प्राकारगळुळ्ळ गोपुरद ईचि गेने बन्दु ऎदुरुगॊण्डु, सुखागमनवन्नु बयसि, लीला विभूति यल्लि अवरु माडिद भगवद्भागवत कैङ्कर्यगळन्नु कॊण्डाडि, तावु यारारॆम्बुदन्नु ऒब्बॊब्बरागि तिळिसि, अवरन्नु गोपुरद बागिल वरॆगू करॆदुकॊण्डुहोगि बिट्टु ऎम्ब भाववु. (१४) इन्द्र प्रजापतिगळॆन्नु पेरुडैय-इन्द्रनॆन्दू प्रजा पति ऎन्दू हॆसरु हॊन्दिरुव, द्वारगोप-द्वारपालकरन्नु किट्ट 70________________
१७८६ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे सेरुडैय द्वारगोप किट्टवित्तु, (१५) “वैगुन्सम् पुगुत वित्तु-हॊन्दुव हागॆ माडि, देवेन्द्रनू चतुरुखनू द्वारपालक रल्लवु, आदुदरिन्द, ई इन्द्र प्रजापतिगळु, पेरुडैय ऎन्दु हेळिरु वदरिन्द बेरॆ ऎन्दु भाविसतक्कद्दु, “स आगच्छतीन्द्र प्रजापती द्वारगोप् तावाद पाद्रवत” इति ऎम्ब कौषीतकी वाक्यानु सार ई द्वारपालकरन्नु हॊन्दुवनॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. मुन्दॆ विलक्षणगळाद राजोपचारगळु ईतनिगॆ नडॆयुत्तवॆ. ऎम्बुदन्नु नम्माळ्वारवर पाशुरगळ मूलक तिळियपडिसुत्तारॆ. “वैगु नम्” ऎम्ब पाशुरवु यावुदॆन्दरॆ :- वै कुनु कुतलुं वाशलिल् नानवर् वैकु ननमरॆमरॆ मतियन्नु कुदॆनु वैकुउत्तमररु मुनिवरुं वियन्ननर् वैकुन्नु गुवदु मण्णवर् विदिये वैकुन, पुगुतलुम्-वैकुण्ठवन्नु प्रवेशिसिद ऒडनॆये, नाशलिल् वानवर् - बागलल्लिरुव नित्यसूरिगळु, वैकुमर्- श्री वैकुण्ठनाथनिगॆ आदरणीयरादवरु ऎन्दरॆ अन्तह नीवु, ऎमर् - नमगॆ तुम्बा बेकादवरु, ऎमतिडुम् पुकुदु ऎन्नु- नम्म स्थानदल्लि, पु कुदु - नीवु प्रवेशिसतक्कद्दु, ऎन्दरॆ नावु अनु भविसुव कैङ्कय्य सम्पत्तन्नु तावून अनुभविसतक्कद्दु, ऎन्नु - ऎम्बदागि, वियन्दनर् , आश्चर्य पट्टरु. वैकुन्दत्तु - श्री वैकुण्ठदल्लिरुव, अमररुम् मुनिवरु - गुणनिष्ठरू कैङ्कय्य पररू, मण्णवर् - ई भूमण्डलक्कॆ सेरि प्रकृतिबद्धरागि इन्द्रिय गळिगॆ वशवागिरुववरु, वैगु नम् पुगुवदु - वैकुण्ठवन्नु बन्दु प्रवेशिसुवदु, विदिये - ऒन्दु परमभाग्यवल्लवे ऎन्दु, वियन्न नर् - सन्तोषपट्टरु अथवा आश्चर्यपट्टरु. ई नित्यसूरिगळु बन्दु गोपुरद्वारदल्लि ऎदुरुगॊण्डु सत्करिसि, प्रकृतियिन्द कट्ट ल्पट्टु, इन्द्रियगळिगॆ वशवागिरुव ई भूमण्डलदवरु परमपदक्कॆ (१५) तिरुवाय् मॊळि १०. ९. ९,________________
गतिचिन्तनाधिकार १७८६ बरुवदॆम्बुदु तुम्बा भाग्यवाद विषयवे ऎन्दु कॊण्डाडि, नावु अनुभविसुव कैङ्कर्य साम्राज्यवन्नु नीवू अनुभविसतक्कद्दॆन्दु सन्तोषगॊण्डरॆम्बभिप्रायवु. इदर मुन्दिन पाशुरवु : विदिवगै पुगुळनरन्नुदल् वेदियर् । पॆदियिनिक्षा निर् पादळ् कळुविन 1 निदियुनरुण्ण मुनिरै कुडविळक्कु । मदिमुक मडय रेन नने । इदरर्थवु :- विदिवगै - नम्म भाग्यरूपवाद ईश्वराज्ञॆय प्रकार पुगनन - बन्दु ई वैकुण्ठ लोकवन्नु प्रवेशिसिदरु, ऎन्नु - ऎन्दु सन्तुष्ट चित्तरागि, नल्वेदियर् - तद्वि प्रासो विपन्यवो जागृवांस सृमिन्दते ऎन्दरॆ मेधाविगळागियू भग वद्विषय स्तुतिपररागियू, भगवदनुभवैकाग्रेसररागियू इरुव नित्यसूरिगळु प्रकाशिसुत्तिद्दारॆ ऎम्बिवे मॊदलाद प्रमाणगळल्लि चन्नागि श्रुति प्रतिपाद्यराद नित्यसूरिगळु हदियिनिल् - तम्म तम्म स्थळगळल्लि, पाजुनिल् - सोपचारवागि, पादण्ण कळुविन पाद्यवन्नु समर्पिसिदरु, पादगळन्नु तॊळॆदरु. निधियुम् “धनं मदीयं तव पाद पद्मजं” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ आश्रितरिगॆ निधिरूपवाद श्री शठगोपवन्नू, नक्कुमुव - ऒळ्ळॆ श्री चूर्णवन्नू, निन्नॆ कुड . पूर्ण कुम्भवन्नू, विळक्कुमु - दीपवन्नू सह, मदिमुकम् - चन्द्रन हागॆ मुखवुळ्ळ, मड यर् स्त्रीयरुगळु अप्परस्त्रीयरु, नन्नु एनरे - ऎदुरु गॊण्डु बन्दु धरिसिदरल्लवे ? ऎन्दरॆ वेदप्रतिपाद्यराद नित्यसूरि गळु ऎदुरिगॆ बन्दु, तावुगळु लीलाविभूतियन्नु बिट्टु इल्लिगॆ नम्मॊं दिगॆ इरलु बन्दिद्दु तम्म भाग्यदय ऎन्दु श्लाघिसि, तावु अस्पृष्ट संसार गन्धर्, इवरुगळादरो बह, कालक्कीग मुक्त बन्धरु ऎम्ब अहङ्कार ऒन्दू इल्लदॆ अवर तिरुवडिगळन्नु तॊळॆदु अवरिगॆ मत्या दार्थवागि पद्धति प्रकार अति सुन्दरराद हॆङ्गसरिन्द तरल्पट्ट, श्री चूर्ण, पूर्णकुम्भ, दीपगळ मूलक श्रीशठारियन्नु समर्पिसि इदीग नम्म मुख्य धनवॆन्दु निरूपिसिदरॆम्ब भाववु. महनीयरुगळु देवालयक्कॆ बन्दरॆ ई मय्यादॆगळु नडॆयुत्तवॆ. ईगलू________________
१७४८ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे लु” ऎन्नु तुड मेल्मनु पाट्टलु सॊल्लुगिर पडिये अप्राकृतज्ञळान राजोपचार वैय्य सृणिवित्तु (१६) अनन्दमयमान मण्णपल् अळगोलक्कलॆ पुकु । 8 वनवरॆदिर् कॊळ्ळमा मणिहण्ण मत्तु । अन्नमिल् सेरिनत्तडियरोडिरुद्ध कॊन्सलर् पॊळिल् कुरुगूडचड गोर्प शू ! इद्दळायिर तिव्व वार् मुनिवरे । ई पाशुरद पूर्वार्धदिन्द, ईतनु सश्वेश्वर सभामण्टपक्कॆ करॆदुकॊण्डु होद ऒडनॆये, तनगॆ परमप्रियनागिद्द, इदुवरॆगू मार्ग तप्पिहोदवनु पुनः सरियाद मार्गक्कॆ बन्दु सेरिदने ऎम्ब प्रीत्यतिशयदिन्द सन्तुष्टनाद सत्येश्वरने बन्दु ऎदुरुगॊण्डु होगि परमानन्दवन्नु हॊन्दुवनु ऎन्दु हेळि उत्तरार्धदिन्द ई हत्तु पाशुरगळन्नु पठनादिगळिन्द तिळिदवरु भगवद्गुण मनन शील रागुवरॆन्दु हेळुत्तारॆ. हीगॆ ई मनु पाट्टिलुं शूल्लुगि र पडिय - हीगॆ मूरु पाशुरगळिन्दलू श्री नम्माळ्वारवरु उपदेशिसिरुव हागॆ, अप्राकृतज्ञळान राजोपचारलै स्पण्णिवित्तु - निरुपाधिक गळाद राजोपचारगळु ईतनिगॆ उण्टागुव हागॆ माडि, प्राकृत राज भोगगळु अनित्यगळु मत्तु भययुक्तवादवु, हागल्लदॆ निरुपा धिकगळादवु ऎम्ब भाववु ; अदू अल्लदॆ प्राकृत राजोपचारगळु भयानुसार नडॆयतक्कवु मात्रवे विना निर्हेतुक प्रीति पुरस्सर वादवल्लवु ; हागल्लदॆ इवु निर्हेतुक प्रीति पुरस्सरवादवादुदरिन्द अप्राकृतगळॆन्दु हेळल्पट्टवु. अथवा, इल्लिन उपचार द्रव्यगळल्लि त्रिगुणात्मकवाद प्रकृति सम्बन्धवे इल्लदिरुवदरिन्दागलि अप्राकृत वादवॆन्दु हेळल्पट्टितु. (१६) आनन्द मयमान - निरुपाधिक निरतिशय आनन्दद प्राचुरैवुळ्ळ, मण पल्-मण्टपदल्लि, अळगोलक्कत्तिलॆ - दिव्य सुन्दरवाद श्रीयःपतिय ऒडोलगदल्लि, पुकुरविट्टु - प्रवेश________________
गति चिन्तनाधिकारः १७८९ (र) त निट्टु (१७) * अनयाहं वशीभूतः कालमेतन्न बुद्ध र्मा । उच्च मध्यम नीचानां तामहं कथमावने ! अपे त्याहमिमां हि(बि) त्वा संश्रयिनिरामयम् । अनेन साम्यं यास्यामि नानयाह मचेतसा । क्षमं मम सहानेन उण्टागुव हागॆ माडि ; सरेश्वरने हीगॆल्ला माडुवनॆम्बभि प्रायवु.
(१७) अहं - नानु, अनया - ई प्रकृतियिन्द, वशी भूतः - वश माडिकॊळ्ळल्पट्टवनागि, ऎन्दरॆ प्रकृतिगॆ वशनागि, एतत् कालं - इष्टु कालदवरॆगू, न बुद्धवा नानु तिळि यदॆ होदॆनु, ननगॆ बुद्दि बरलिल्लवु ऎन्नुवदरिन्द इष्टु कालवू बुद्धियिल्लदॆ व्यर्थवागि कळॆदॆनु ऎम्ब तात्सरवु. उच्च मध्यम नीचना, उच्च उत्कृष्टवाद देवशरीरवेनु, मध्यम - उत्कृष्टवू नीचवू अल्लद मनुष्य शरीरवेनु, नीचनाम् इवॆरॆडू अल्लदॆ मिक्क ऎल्ला पशु पक्षि सरीसृपादि नीच शरीरगळे कॊनॆयागि वुळ्ळ, ताम् आ प्रकृतियन्नु, कथं हेगॆ, आवसे - प्रवेशिसि वसिसुवॆनु ? अहं - नानु, इमां - ई प्रकृति यन्नु, हित्वा - त्यजिसि, अपेत्य - दूरवागि बन्दु, निरामयं - दोषगन्धविल्लदॆ आनन्दमयनाद सत्येश्वरनन्नु, संश्रयिष्य - चन्नागि आश्रयिसुवॆनु, अनेन - ई आनन्दमयनाद परब्रह्मनॊं दिगॆ, साम्यं - “निरञ्जनः परमं साम्य वुति” ऎम्ब श्रुतियल्लि हेळिरुव हागॆ साम्यवन्नु, यास्यामि - हॊन्दुवॆनु, अहं-नानु, अचेतसा - ज्ञानशून्यवागि जडवाद, अनया - ई प्रकृतियॊं दिगॆ, साम्यं - साम्यवन्नु, न यास्यामि , हॊन्दुवदिल्लवु, मनु - ननगॆ, अनेन सह - ई परमात्मनॊन्दिगॆ, एकत्वं – सेरि ऒन्दागि ऒट्टिगिरुवदु, क्षमं - योग्यवादुदु, अनया सह - ई प्रकृति यॊन्दिगॆ, मम - ननगॆ, एकत्वं . ऒट्टिगॆ ऒन्दागिरुवदु, नक्षमं योग्यवादुदल्लवु. प्रकृतिगॆ वशनागि, देहदॊन्दिगॆ एकीकरिसि, (१७) भारत, शान्ति. ३१२, ३०, ३८, ३९.________________
श्रीमद्र हस्यश्रयसारे नैकत्व मनया सह” (१) “क्रीडन्तं रमया सारं लीला भूमिषु केशवम् । मेघ श्यामं विशालाक्षं कद द्रक्षामि भ्रमयुक्तनागिरुवदु तनगॆ उचितवादुदल्लवु. इष्टु दिनगळू इदु तिळियदॆ अज्ञानदिन्द देहवे आत ऎन्दु भ्रमिसि व्यद्धवागि कालगळन्नु कळॆदुबिट्टॆनु, आदुदरिन्द देहक्किन्त नानु विलक्षणनॆम्ब ज्ञान उण्टागिरुवदरिन्द अदन्नु त्यजिसि सरेश्वरनन्ने आश्रयिसिरु त्तेनॆ. इदरिन्द नानु कालानन्तर परब्रह्मनॊन्दिगॆ साम्यवन्नु मुक्तिदॆसॆयल्लि हॊन्दुवनु. ई अचेतनवाद प्रकृतियॊन्दिगॆ एकी भविसि साम्यवन्नु हॊन्दिरुवदु ननगॆ सुतरां स्वरूपवल्लवॆम्बभिप्रा यवु. इदु वसिष्ठ कराळजनक संवाददल्लि वसिष्ठर उक्तियु. * अजामॆकां लोहित शुक्ल कृष्णां बं प्रजं जन यं सरूपाम् । अजोकॊ जुषानुशेते जहा तै नां भुक्तभोग मजोन्यः” ऎम्ब तैत्तिरीयवु अनुसन्धे यवु. “रमयासारं - लक्ष्मियॊन्दिगॆ, लीलाभूमियु - लीलो द्यानगळल्लि, क्रीडन्तॆं - विहरिसुत्तिरुव, केशवं . ब्रह्मरुद्रादि गळिगू स्वामियाद भगवन्तनन्नु, कदा-यावाग, मेघ श्यामं विशालाक्षं - मेघद हागॆ कप्पगिरुव, विशालगळाद कण्णुगळुळ्ळ, इदरिन्द स्वामियन्नु नोडुव मात्रदिन्दले उण्टागुव दुःख सम्बन्धविल्लद आनन्दत्ववू, कृपापरिपूर्णतॆय बोधिसल्पट्टवु, चक्षुषा-अप्राकृतवाद दिव्य चक्षुस्सिनिन्द, द्रक्षा मि नोडुवॆनो, ई श्लोकदिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदल्लिरुव उत्कटेच्छॆयु प्रद सल्पट्टितु. भरतनन्नु हिम्बालिसि बन्द नागरिकरिगॆ हेगॆ श्रीरामनन्नु नोडबेकॆम्ब उत्कट मनोरथवित्तॊ हागॆये वैकुण्ठवन्नु कुरितु होगुव प्रपन्ननिगू उण्टॆन्दु तोर्पडिसुत्तारॆ :-मेघ श्यामम् ऎम्बुवदरिन्द दर्शन मात्रदिन्दले सर्व सन्तापवन्नू होगलाडिसुववनु ऎम्बर्थवु महाबाहुं - आजानुवागियू दुण्डगू सुन्दरवागियू इरुव तोळुगळुळ्ळवनादुदरिन्द आश्रितनि (१) द्वितीय जितन्ता, २१.________________
(98) गतिचिन्तनाधिकार १९१ चक्षुषा” (२) “मेघ श्यामं महाबाहुं स्थिरसत्वं दृढव्रत म् । कदाद्रक्षा महेरामं जगतशोकनाशनम् । दृष्ट एवहि नक मपनेष्यति राघवः । तमस्सत्वस्य लोकस्य समु दन्निन भास्करः” इत्यादिगळिल् कट्टळ्ळॆयिले इर्व मनोरथि तपडिये इळन्न विळवॆल्ला तीर निरतिशयभोग्यनान गिरुव सर्व विध आपत्तुगळन्नु परिहरिसुव, स्थिरसत्वम् आश्रित संरक्षणॆ यल्लि स्थिरवाद व्यवसायगळुळ्ळ, दृढव्रतं सुग्रीवादि अन्तरङ्गराद वरिन्दलू कूड विभीषणनन्तह शरणागतनन्नु रक्षिसुवॆनॆम्ब व्रतदिन्द कदलिसलागदष्टु स्थिरप्रतिज्ञॆयुळ्ळ, जगतशोक नाशनं - जगत्तिन शोकगळन्नु नाशमाडुव, श्रीरामनन्नु, कदा - यावाग, द्रक्षा महे - नोडुवॆवो ? दृष्ट एवहि - नमगॆ आतनु कण्णिगॆ बिद्दरॆ, ऎन्दरॆ नावु आतनन्नु आश्रयिसि आतनु नम्मन्नु कृपाकटाक्षदिन्द नोडि दरॆ, आतनन्नु नावु नोडिदरेने आतनु नम्मन्नु नोडुवनु ऎम्ब भाववु, सः राघवः - अन्तह श्ला फ्यगुणगळुळ्ळ श्रीरामन, नः . नम्मगळ, शोकं - शोक समुदायवन्नु, अप नेष्यति - हॆग लाडिसुवनु. हेगॆन्दरॆ– सर्मु भास्करः-उदयिसुव सूरनु, सत्व स्य लोकस्य - समस्त लोकद, तव इव अन्धकारवन्नु हेगॆ होगलाडिसुवनो हागॆ, ऎम्ब भाववु. ई श्लोकगळल्लि द्रक्षा मि, द्रक्षा महे ऎम्बुदरिन्द बरी नोडुवदरल्लि मात्रवे तात्स र्यवल्लवु, तत्पलवाद कैङ्कर्य प्राप्तियल्लि अभिप्रायवु ऎन्दु भाविसतक्कद्दु ; इत्यादिगळिल् , इवे मॊदलाद अवतार सन्दर्भ गळल्लि तोरिबरुव, कट्टयिलॆ - रीतियल्लि, इर्व मनोरथि पडिये - ईतनु तुम्बा आशॆपट्टदक्कॆ सरियागि, इळन्न इळवॆल्ला म् - इदुवरॆगू अनुभविसलिल्लवॆ ऎम्ब कॊरतॆयॆल्ला, तीर - होगुव हागॆ, निरतिशय भोग्यनान - नित्यमुक्तरिगॆ परम भोग्यनाद, तन्नॆ र्ता कट्टि - तन्नन्नु पर पदवासियागि प्रियः पतियागिरुव, हार्दनाद ताने तोरिसिदवनागि, (१८) तन्नै - (२) रामा, अयोध्या. ८३ ८-९, 1________________
S १७९२ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे तन्नॆत्ता९ काट्टि, (१८) त न्नै पॆरुत्तिर्त्त ताळि हैक्किळ कॊण्णु (१९) तन्नॊडु समानभोग लक्षण मान सायुज्यत्तालॆ स्वरूपवन्नु, पॆरुत्ति - उण्ट माडि, ऎन्दरॆ सैनरूपेणाभि निम्म द्यते ऎन्दु हेळिरुव हागॆ स्वस्वरूपाविर्भाववन्नुण्टुमाडि मत्तु * अपहत पास्माविजरो निन्नत्यु र्विशोको विजिघzपि पासस्सत्य काम नृत्यसङ्कल्प” ऎन्दु हेळिरुव गुणाष्टकगळन्नुण्टु माडि, र्त ताळिक्कि कॊण्डु तन्न पादारविन्दद कॆळगॆ स्वीकरिसि, ऎन्दरॆ तन्न पादकमलगळिगॆ ऒन्दु दिम्बागि माडिकॊण्डु ऎन्दु सारा स्वादिनि सारविवरणॆयवरु वाख्यान माडिरुत्तारॆ ; सारप्रकाशिका यवरु चरणारविन्दद किङ्करनागि माडिकॊण्डु ऎन्दु व्याख्यान माडिरुत्तारॆ. (१९) तन्नॊडु - तन्नॊन्दिगॆ, समान भोग लक्षण मान-समानभोगत्ववे लक्षणवागियुळ्ळ, सायुज्यत्तालॆ- सायुज्यदिन्द, नावुगळु परमात्मनॊन्दिगॆ सेरिदरू प्रत्येकवागिरुव स्थितिगेने सायुज्यवॆन्दु हॆसरु, इवनुक्कु- ई हॊसदागि वैकुण्ठक्कॆ बन्दिरुव प्रपन्न निगॆ, सजातीयरान - तन्न जातीयराद, अन्न मिल् पेर् - अन्तविल्लदॆ इरुव कालस्वरूपगळ परिच्छेदविल्लद, इवृत्त - आनन्दवन्नु हॊन्दिरुव, अडियरोडु - दासभूतराद नित्यसूरिगळॊन्दिगॆ, इरुत्ति-निल्लिसि, भोगत्ववु सश्वेश्वरनिगू तनगू नित्यसूरिगळिगू ऎल्लरिगू समानवादुदरिन्द, समानभोग लक्षण उळ्ळद्दॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. परमं साम्यमुति ऎम्ब श्रुति यु इल्लि उपपादिसल्पट्टितु. ई अभिप्रायवे, “भोग मात्र साम्य लिङ्गाच्च” (४. ४. २२) ऎम्ब सूत्रदल्लि भोगदल्लि मात्र साम्यवे विना, जगद्वा पारगळाद सृष्टि स्थिति पालन लयगळल्लिल्ल वॆन्दु उपदेशिसल्पट्टिरुत्तदॆ. हालु तन्नल्लिगॆ बन्द नीरिगॆ तन्न सत्वस्व वन्नू कॊट्टु, “क्षीरेणात्मगतोदकायहिगुणा दत्ताः पुराते खिलाः” ऎन्दु कवियु हेळिरुव हागॆ, सव माडिकॊळ्ळुव शक्तियिरु वाग गुण ष्ट काविर्भाव मूलकवागि तनगॆ समनागि माडिकॊण्डु, पितावादवनु तन्न ऊट वसनादि भोगगळन्ने मगनिगू उण्टु e________________
गतिचिन्तनाधिकार १७९३ इवनुक्कु सजातीयरान अन्समिल् सेरि वृत्तडियरोडिरुत्ति (२०) इप्पडि समस्त प्रतिबन्धक निवृत्ति पूरकवागवुद, माडुव तॆरॆदि, लोकपितावाद सरेश्वरनू इष्टु काल मार्ग तप्पि होगिद्दु बन्द पुत्रनिगॆ तनगॆ समवाद आनन्दवन्नुण्टुमाडुवनु ऎम्बुवदरल्लि एकॆ कॆलवरु सन्देहपडुवरो तिळियदु. “सोन्नु ते सर्काकार्मा सह ब्रह्मणा विपश्चि ता” ऎम्ब श्रुतियल्लि मोक्षदशि यल्लि ईतनु आ परब्रह्मन कल्याणगुणगळन्नु परब्रह्मनॊन्दिगॆ अनुभ विसुवनु ऎन्दरॆ आ परब्रह्मन कल्याणगुणगळ अनुभववु यावाग आयितो, तन्मूलक परब्रह्मानुभववु ईतनिगॆ उण्टागुत्तदॆन्दु हेळि रुवदरिन्द, सः, ब्रह्मणा सह ऎन्दु पृथक्कागि श्रुतियु हेळिरुवद रिन्द अभेदार्थवु इल्लि साम्य पदक्कॆ ऎन्दिगू सरिहोगुवदिल्लवॆन्दु ग्रहिसतक्कद्दागिरुत्तदॆ. आदुदरिन्दले महानुभावरु समान भोगत्व लक्षणमान सायुज्यम् ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. स्वरूपैक्यक्कॆ समानत्ववॆल्लियदु ? समानभोगत्ववन्नु श्रुतियु बोधिसिदरॆ आनन्द तारतम्यवु ताने ऎल्लियदु ? इवॆरडभिप्रायवू सरियल्लवॆन्दु तोरिसुवदक्कागि द्वासुपर्णा सयुजा ऎम्ब श्रुतियल्लि तोरिबरुव सायुज्यवे सरियादभिप्रायवॆन्दु ई वाक्य खण्डदिन्द तोरिसिरुत्तारॆ. लीलाविभूतियल्लिरुवागलू सत्येश्वरनु हार्दनागिरुवदरिन्द ईतनु सयुक्त, हागॆये परमपददल्लिय कूड ईतनु सयक्कॆ ऎम्ब भाववु. इल्लि परिच्छिन्नवाद दुःखमिश्र त्यादि दोषयुक्तवाद आनन्दवु, उपासकनादरॆ इन्नू हॆच्चिन आनं दवु, आदरॆ अदू परिच्छिन्न वादुदु ; वैकुण्ठदल्लादरो निरतिशय वाद अपरिच्छिन्नवाद सश्वरानन्दक्कॆ समवाद आनन्दवॆम्ब भाववु यावाग सश्वेश्वरानन्दक्कॆ समवॆन्दु श्रुतियु हेळितो आग नित्य सूरिगळानन्दक्कॆ समवॆम्बुदु कैमुतिक नायसिद्धवु. आदुदरिन्दले पेरिन्नत्तडियरोडॆ इरुत्ति ऎम्ब प्रयोगवु. (२०) हिन्दॆ सत्येश्वरनु नडॆसिद हत्तॊम्भत्तु वाक्यखण्डगळल्लि उपपादितगळाद महत्ताद उपकारगळन्नॆल्ला सङ्ग्रहिसि हेळुत्तारॆ :- इ प्पडि - ई________________
१९४ श्री मद्रहस्यत्रयसारे स्वस्वरूपा विरावपूर्वकवागवु, देशकालावा सज च मिल्लाद पडियागवु, र्त मनोरथत्तु कु अनुरूप मेलॆ उपपादिसिद रीतियल्लि, समस्त प्रतिबन्धक निवृत्ति पूरैक मागवु - ईतनिगॆ पुण्य पापरूप करगळे प्रतिबन्धकगळु, अवु गळु यावाग ऎल्लवू नाशवादवो आग समस्त प्रतिबन्धकगळू निवृत्तियादवॆन्दु भाववु ; हीगॆ ऎल्ला प्रतिबन्धकगळ निवृत्ति पूरैक वागियू, स्वस्वरूपाविराव पूर कमागवुवर् - प्रकृतियॊं दिगॆ इदुवरॆगू ईतनु इद्दुदरिन्द ईतन स्वरूपवन्नु अदु मरॆसि द्दितु, ईग प्रकृति सम्बन्धवु निशेषवागि तॊलगिदुदरिन्द, तन्न मॊद लिन श्रेष्ठवाद स्वरूपद पुनः आविर्भविसुविकॆय मूलकवागियू, देशकालावस्था सच मिल्लादपडियागवुम् , ई देश ई काल ई अवस्थॆगळल्लि उण्टु, इन्नॊन्दु देश, काल, अवस्थॆगळल्लि इल्लवॆम्ब हागॆ इल्लदॆ अनन्तवादुदागियू, र्त मनोरथत्तुक्कु - परमात्मनाद तन्न इष्टक्कॆ, अनुरूपवाग - अनुसारवाद, इर्व मनोरथि कैर व०गळ्ळि यॆल्ला म् - ई मुक्तनु अपेक्षि सिद कैङ्कय९ समूहवन्नॆल्ला, यावदात्म भावियाग - आत्म स्वरूपविरुववरॆगू ऎम्बुदरिन्द निरन्तरवागि नित्यदल्लि, कॊण्णूरुळि, स्वीकरिसुवदर मूलक कृपॆगैयु ; हिन्दिन वाक्यखण्डदिन्द नित्य सूरिगळॊन्दिगॆ आतनिगू परिपूर्ण ब्रह्मानुभव उण्टॆन्दु हेळ ट्टितु. ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु ऎन्थाद्दॆम्बुदु ईग विशदी करिसल्पडुत्तदॆ. कण्मरूपवाद प्रतिबन्धकगळॊन्दू इल्लदॆ स्वस्वरू पाविर्भाव उण्टागि गुणाष्ट कप्राप्तियुण्टागिरुवदरिन्द विकसितवाद ज्ञान उण्टागि, शेषियादवनिगॆ “अहं सत्यं करिष्यामि” (रा. अयोध्या ३१ २५) ऎन्दु हेळिरुव हागॆ नित्यकैङ्कवन्नु माडु वदे शेषनादवनिगॆ, स्वरूपवॆन्दु भाविसि, शियःपतिगॆ याव कैङ्क र्यगळु भोग्यवादवो, उचितवो अन्थाद्दन्नु श्रियःपतिय कृपॆ यिन्दले तिळिदु माडिसि, अवुगळन्नॆल्ला सत्येश्वरनु परम कृपया स्वीकरिसुवनॆम्ब भाववु. आतनिगॆ इष्टविल्लदुदन्नु ई मुक्कनु ऎन्दिगू________________
गति चिन्तनाधिकारः १७९५ माग इर्व मनोरथि कैरवर यॆल्ला याव दात्मभावियाग कॊण्णरुळि (१) “सवयस इवये नित्यनिरोष गन्धाति” माडुवदिल्लवु. परस्पर इङ्गितगळन्नरितवरादुदरिन्द सश्वेश्वरनिगॆ, भोग्यवागि, योग्यवादवुगळन्ने सत्येश्वरनु इवन मूलक माडि सुवहागॆ माडि अदरिन्द आनन्दिसुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु. इन्तह आनं दक्कॆ यावागलादरू च्युतियुण्टो ऎन्दरॆ ऎन्दिगू अदु परिच्छिन्न वादुदल्लवॆन्दु तिळिसुवदक्कागि “देशकालावस्था सचविल्लाद पडियागवु” ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. यावुदो ऒन्दु काल दल्लि परस्पर विरस उण्टागि, सत्येश्वरनु ईग मुक्तनागिरुववनन्नु पुनः लीलाविभूतिगॆ एकॆ दब्बिडकूडदु ऎम्ब सन्देहदल्लि श्रुतियू सूत्रवू सह “न च पुनरावरते, न च पुनरावत्रते” ऎन्दु हेळि सन्देह विच्छेदवन्नु माडिरुत्तवॆ. दयावात्सल्यादि कल्याण गुणाकरनु, इन्तह प्रियनाद ज्ञानियादवनिगॆ अभय प्रदानवन्नु माडि तन्न सत्य सङ्कल्पतॆयन्नु ऎन्दिगादरू नाशपडिसिकॊळ्ळुवने ऎन्दु श्री भाष्यकाररु प्रश्निसिरुत्तारॆ; मत्तु स्मृतियू ई अभि प्रायवन्ने बोधिसुत्तदॆन्दु हेळि उदाहरिसिरुत्तारॆ :-मामु पेत्य पुनरन्म दुःखालय मशाश्वतम् । नापुवन्ति महत्मान संसिद्धिं परमाङ्गताः” (गी) ऎन्दरॆ हीगॆ कर्मबन्धगळन्नॆल्ला नीगिकॊण्डु, ज्ञानसङ्कोचविल्लदवरागि, परब्रह्मानुभववन्नु हॊन्दि दवरागि आतनिगॆ सर्वविध कैङ्कर्यगळन्नॆसगुवदे तनगॆ स्वरूपवॆन्दु चन्नागि तिळिदवरागि, पॆरम निश्रेयस्सन्नु पडॆद ई महात्मरु दुःख गळिगॆ तौरुमनॆयागिरुव अशाश्वतवाद भूलोकवन्नु पुनः ऎन्दिगू हॊन्दलाररु ऎन्दु सत्येश्वरने हेळिरुवदरिन्द अन्तह संशयक्कॆ कारणवे इल्लवॆन्दु हेळुवदक्कागिये, देशकालावस्ता सञ्च विल्लवॆन्दू, यावदात्मभावियॆन्दू हेळल्पट्टितु, अनन्त गरुड विश्वक्केनादिगळु नियत कैङ्कर पररागिद्दारॆ. अन्तह कैङ्कर्यगळु (१) श्रीगुण रत्नकोश २७.________________
१७९६ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे भगर्वा कथं निरतिशयानंर्द ऎरपडिये तनुक्कु मन्यमु मॊरु वयस्सिल् तोर्ळ मात्रॆ पोलॆ इरुक्किर नित्यसूरिगळॊडु इन्नुवन्न विव नोडुव वाशिय रफ्तुरैयरप्परिमारि, स्तोत्रलुम् ई तनिगॆ इल्लवल्ला, आदुदरिन्द कैङ्कय्यक्कॆ सङ्कोचवुण्टायितल्लवे ऎन्दरॆ दासभूतनाद ई चेतननिगॆ सरेश्वरन इष्टानुसार कैङ्कय्य माड- वदे स्वरूपवादुदरिन्द, स्वामि मनोरथक्कॆ विरुद्धवागि कैङ्क रेच्छॆयुण्टागलारदादुदरिन्द, “र्त मनोरथत्तुकु अनु (कवागि इव९ म नोडि कैरवरळॆल्ला ” ऎम्ब प्रयोगवु. कैरवर मॆल्ला कॊण्डरुळि - स्वामि इष्टानु सार नडॆसिद कॆलवु कैङ्कय्यगळिन्द सर्व कैङ्कर्यगळन्नू नडॆसिदन्तॆ स रैश्वरनु परिग्रहिसुवनॆम्ब भावक्कागि कॊण्डरुळि - ऎन्दु प्रयो गिसिरुत्तारॆ. परमात्मनु हेगॆ निरतिशयानन्दनु. सवयस इव - समानराद ऒन्दे वयस्सिन स्नेहितरुगळ हागॆ इरुव, नित्यनिरोष गन्ध - नित्यदल्लि स्वल्प वागलि दोष गन्ध विल्लदवरागि, मुक्तरिगादरो बद्धदॆशॆयल्लि दोषगन्ध सम्बन्धवुण्टु, इवरादरो निरन्तरवागि दोषगन्धविल्लदवरॆम्ब भाववु, इदु नित्यसूरिगळिगॆ विशेषणवु, ई “सवयस इव” ऎम्ब श्लोकार्थवन्नु तावे उपपादिसुत्तारॆ, ऎरडिये - ऎन्दु हेळिरुव हागॆ, तनु कु - सश्वेश्वरनाद तनगॆ, अन्यून्यं - परस्परानुरागयुक्त रागिरुव, ऒरु वयस्सिल् - ऒन्दे वयस्सिनल्लिरुव, कोर्टि मारै प्रोलॆ स्नेहितर हागॆ, इरुत्तिर - इरुव नित्यसूरिगळॊडु - अनादियागि कैङ्करगळन्नु माडुत्तिरुव अनन्त गरुड विश्वक्केनादि गळिगू, इन्नु वक्ष विव नोडुव- ईवत्तु बन्दु कैङ्कर्य माडुव ई मुक्तनिगू, वारियर - एनॊन्दू व्यत्यासविल्लद हागॆ, पुरैयर________________
गतिचिन्तनाधिकार स्वल्पवू भॆदविल्लद हागॆ, परिमारि - संश्लेषवन्नु हॊन्दि ; सत्व श्वरनिगॆ वैषम्य नैर्तृण्यगळ्याववू इल्लवु; अनन्त गरुड विश्वक्के नादिगळॆल्लरू समान वयस्कराद स्नेहितर हागॆ अन्नोन्य प्रीतियिं दिद्दु कॊण्डु अनादियागि कैङ्क माडुत्तिरुवर, आदुदरिन्द अवरु गळल्लि सश्वेश्वरनिगॆ हॆच्च प्रीतिय, ई मुक्तनु ईवत्तु बन्दु कैङ्कर्य माडुववनागि अदक्कागि अष्टु विशेष प्रीतियिल्लदॆयू इरुत्तानॆ ऎन्दरॆ, हागॆ ऎन्दिगू इल्लवु ऎन्दु तिळिसुवदक्कागि श्री पराशर भट्टरॆ दिव्यसूक्तियन्नु उदाहरिसिरुत्तारॆ. आ पूरा श्लोक यावुदॆन्दरॆ :- तॆ साध्या स्पन्तिदेना जननिगुणवपुष वृतस्वरूपै । गैरा नि शेषा सृवयस इदॆये नित्य निरॆ षगन्धा81 हे श्रीः श्रीरण्ण भरुस्तव च पद परिचार वृत्तॆ सदापि । प्रेम प्रद्राण भावा विलहृदय हठात्कार कैरभ गा ऊ, इदु लक्ष्मी स्तोत्रवु, “हे जन नि - ओ तायिये, श्री - लक्ष्मिये, गुण……..स्वरपैः - गुण - गुणाष्टकगळिन्दलू, वपुः- शङ्ख चक्रादियुत चतुर्भुजगळिन्द कूडिद दिव्यमङ्गळ विग्रहदिन्द स्वरूपैः-ज्ञानानन्दावलताद्यात्मस्वरूपगळिन्दलू, भोग्य रा. भोगगळिन्दलू कूड, सवयस इव - स्नेहितर हागॆ, निशे पाः - एनॊन्दू व्यत्यासविल्लदॆ, नित्य निरषगन्धाः - यावागलू संसारसम्बन्धादिगळॊन्दू इल्लदॆ दोषरहितरागि, साध्या - साध्य रॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव, देवाः - नित्यसारिगळु, ॆ - यार, सन्ति इरुत्तारो, अन्तह, ते - अ नित्यसूरिगळु (मक्तर हेळल्पट्टरु), श्रीरज् भरः तव च. श्रीरङ्गनाथरिगू मत्तु आतन प्रियपत्नियाद निनगू सह, पद परीचार वृ- पादारविन्दगळल्लि कैङ्कय्य माडु व दक्कागि, सदापि - यावागल, प्रेम…………. गः - प्रीति यिन्द करगिद मनस्सिनिन्द कैङ्कय - त्वरॆ माडुव प्रवृत्तिये तनगॆ सुख नायकवॆन्दु तिळिदवरागिद्दरु” ऎम्बुदु ई श्लोकार्थवु * नित्य सूरिगळॊडव, इन्नु नन्न वित नोडुव; वाशियर ऎन्दु हेळिरुव तरिन्द नित्यसूरिगळिगॆ मत्तु मुक्तरिगू इरुव आनन्द दल्लि व्यत्यासविल्लवॆन्दु हेळिद नन्तर, मुक्तरल्ले आनन्द तारतम्यविल्ल________________
श्रीमद्रहस्य त्रयसारे श्री वैकुण्ठ गद्यलुम् अरुळिच्चॆ द मनोरर्थ पडि ये ऐकान्तिकात्यनिक नित्यकिङ्करनान इवनुकप्पाले तान् निरतिशयानन्द नायिरुक्कु, / वॆन्दु इन्नु बेरॆ हेळबेकादुदिल्लवु. हीगॆ “निरञ्जनः परमं साम्यमुति” ऎम्ब श्रुतियु उद्योषिसुत्तिद्दरू अदक्कॆ विरोध वागि आनन्ददल्लि तारतम्य उण्टॆन्दु हेळलु हेगॆ साध्यवु ? ·
? हीगॆ नित्यरॊन्दिगॆ हेगो हागॆये ई हॊसदागि बन्द मुक्त रॊन्दिगू संश्लेषिसि, सरेश्वरनु निरतिशयानन्द नायिरुक्कुम् ऎन्दु मुन्दॆ हेळुत्तारॆ ; स्तोत्रलम् - स्तोत्ररत्नवॆन्दॆनिसि प्रसिद्धवागिरुवदरिन्द स्तोत्रवॆन्दरॆ यामुनेयर स्तोत्रदल्ल मत्तु श्री वैकुण्ठ गद्यलुम् - श्री यतिवर्यरु रचिसिरुव श्री वैकुण्ठ गद्यदल्लि, अरुळिच्चॆद कृपॆ माडि हेळिरुव, मनोरर्थ पडिये पुरुषार्थद हागॆये, ऐ कान्ति कात्यन्तिक नित्यकिङ्करनान, ऐकान्तिक - प्रयोजनान्तरशन्यनादुदरिन्द आ ऒन्दु प्रयोजनदल्ले नियतनाद, आत्यन्तिक - आदुदरिन्द नित्यवू अनुवृत्तनाद, नित्यकिङ्करनान - सदा कैङ्कर्यनिरतनाद, इवन् - ई हॊसदागि प्राप्तनाद मुक्तन, उगप्पाले - भोग्यभावदिन्द ऎन्दरॆ आतनिगॆ ई परम मनोरथरूप कैङ्कर्यवन्नु ऒदगिसिकॊट्टु हीगॆ आतनिगॆ तानु परमभोग्यनागुवदरिन्द, र्ता - तानू कूड निरतिशयानन्द नायिरुक्कुम् - हीगॆ तुम्बा आनन्ददायक नागुवदरिन्द परमसन्तोष हॊन्दुवनागिरुवनु ऎम्ब तात्सरवु. ई वाक्यदल्लि “रसोवै सः, रसग् हेमयं ला नन्दी भवति 1 कॊवान्याः प्राण्या त् । यदेष आकाश आनं दोनस्यात् । एषवननया ति” ऎम्ब श्रुत्यर्थवु उपपादिस ल्पट्टितु. परमात्मनु आनन्दस्वरूपनु, ईतनु अदन्ने हॊन्दु वदरिन्द ईतनिगू आनन्दत्ववु ; हीगॆ ई परमात्मनु अपरिच्छिन्नवाद आनन्द स्वरूपनल्लदे इद्दरॆ सांसारिकवादुदेयागलि अथवा आवु करूपवादुदेयागलि इरुव सुखवन्नु यावनु ताने हॊन्दु 1 00________________
(२५) गतिचिन्तनाधिकारः ୦ वनु, ईतने सकल विधवाद आनन्दक्कू कारणभूतनागिरुवदरिन्दले आतनिगॆ प्राप्यत्व उण्टु, आतनु ऎल्लरिगू आनन्दवन्नुण्टुमाडुवनु ऎम्बुदु ई श्रुत्यभिप्रायवु. (तै. आनन्द ७नॆय अनुवाक) श्री यामुनॆयरु तम्म स्तोत्ररत्नदल्लि एनन्नु अपेक्षिसिरु तारॆन्दरॆ :- “ भवन्तमेवा नुचरन्निरन्तर प्रशान्त निशेष मनोरथान्तरः । कदाह मै कान्तिक नित्य किङ्कर प्रहरयिष्यामि सनाथ जीवितः” ॥ ४६ १ परम पुरुष- र्थ काष्ठाभूतवादुदु सत्येश्वरन निरुपाधिक कैङ्कर्यवु. अदन्नु प्रार्थिसुव ई श्लोकवन्ने मनस्सिनल्लिट्टु ई श्लोकाभिप्रायवन्ने स्वामियवरु उपपादिसिरुत्तारॆ. भवन्तं - “कदापुनश्यङ्ख” ऎम्ब श्लोक मॊदलुगॊण्डु इदुवरॆगू ई १५ श्लोकगळल्लि हेळिद हागॆ सर्वविधदल्लि पूर्णतॆयन्नु हॊन्दिद निन्नन्नॆ, तनगॆ सेव्यान्तरविल्लवॆन्दु तिळिसुवदक्कागि एव कारवु. अथवा ऒन्दुवेळॆ भागवतरिगॆ शुशूषा रूपदल्लि कैङ्क माडिदरू अदू कूड निनगेने सल्लुत्तदॆ ऎम्ब भावदिन्दागलि भवन्तमेव ऎम्ब प्रयोगवु. अनुचर्र शुशूषॆ माडुवनागि, अदक्कागि परम कृपाळुवाद नीनु एनु माडतक्कद्दॆन्दरॆ, प्रशान्त निश्लेष मनोरथान्तरः - निन्न कृपॆयिन्दले इतर तुच्छ मनोरथगळ ल्लपेक्षॆयु निश्लेषवागि चन्नागि शान्तवागतक्कद्दु, स्वल्पवू निल्लद हागॆ शान्तवागतक्कद्दु, अदू अल्लदॆ इन्तह इच्छॆय शमनवु सार् कालिकवागिरबेकु, आदुदरिन्द निरन्तर प्रशान्तवॆन्दु हेळल्पट्टितु. हीगॆ बेरे मनोरथगळॊन्दू इल्लदवनागि, आदुदरिन्दले, एकां तिकः - निन्न निरन्तर ऒब्बरल्ले नियतनागि, नित्यकिङ्करः यावागलू नित्यवाद ऎन्दरॆ अन्यदेवतासम्बन्धविल्लद, किङ्करः – कैङ्कर्यगळ नैसगुव दासनागि, निन्नन्नु, प्रहरयिष्यामि - प्रीतिगॊळिसुवॆनु, हीगॆ दासभूतनाद निनगॆ सन्तोषवन्नुण्टु माडुवदे ननगॆ प्रधान प्रयोजनवे विना मिक्क यावुदू प्रयोजनविल्लवॆम्ब भाववु. इदरिन्द तनगॆ अधीनवादुदु मत्तु तनगॆ प्रयोजनवादुदु ऎम्ब________________
१८०० श्री मद्रहस्य त्रयसारे भ्रमॆ इल्लदॆ कैङ्करवन्नु सश्वरनिगॆ ऎरगुवदे ईतनिगॆ परमानं दवु, हीगॆ आनन्दवन्नुण्टु माडुवदरिन्द सत्येश्वरनु निरतिशयानन्द वन्नु हॊन्दुवनु. मुक्तनिगॆ हीगॆ आनन्दवन्नुण्टुमाडुव द्वारा तानू आनन्दिसुवनु ऎम्ब तात्पर्यवु हीगॆ माडुवदरिन्द तानु ईग सनाथजीवितः - निन्नन्नु नाथनन्नागि वरिसि जीवसार्थक्यवन्नु हॊन्दिदवनादॆनु. हिन्दॆ उपॆक्षॆ माडि जीवश्रवद हागॆ इद्दॆनु ऎम्ब भाववु. श्री भाष्यकारर वैकुण्ठ गद्य वाक्यगळु यावुवॆन्दरॆ :- ऎरडु मूरु कडॆयल्लि इदन्ने उपपादिसिरुत्तारॆ– (१) कल्याणगुणेघ महारैवं परम पुरुषं भगवन्तं श्रीमन्नारायणं स्वामि तेन सुहृतेन गुरुतेन च परिगृ कान्ति कात्यन्तिक तत्पा दामु जद्वय परिचरक मनोरथ” “इन्तह सत्येश्वरनन्नु स्वामियॆन्दू, सर्व सुहृत्तॆन्दू, परमगुरुवॆन्दू भाविसि, एकान्तिक वाद आत्यन्तिकवाद, आतन पादकमलगळल्लि कैङ्कर्य माडबेकॆम्ब मुख्य मनोरथवुळ्ळवनागि” ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. इन्नॊन्दु कडॆयल्लि * कदाहं भगवत्पादाम्बुजद्वय परिचरा करणयोग्यस्तदेक भोगस्तत्पाद् परिचरिष्यामि” “यावाग नानु आ भगवन्तन पादकमलगळल्लि परिचर्य माडलु योग्यनागि, अदन्ने मुख्य भोगवुळ्ळवनागि, आतन पादकमलगळल्लि परिचर्यॆ माडुवॆनो ” ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इन्नू ऒन्दु कडॆयल्लि “मामै कानिक त्यन्तिक परिचाकरणाय परिसृष्ट” इन्तह एकान्तिका त्यन्तिक कैङ्कर्यवन्नु माडुवदक्कागि नन्नन्नु अङ्गीकरिसु’ ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इतर गतिगळ विषयवु बेकिल्लवु. ई अर्चिरादि गतियल्लदॆ इतर बेरॆ गतिगळ मूलकवागियू मोक्षवुण्टॆन्दु कॆलवु भारत वचनगळल्ल, जयत्संहितॆयल्ल, ब्रह्म सूत्रद पाञ्चरात्राधिकरणदल्लि हेळिदॆयल्ला, इवुगळू प्रमाण गळल्लवे ऎन्दरॆ, अवुगळु कॆलवु अधिकारिविशेषरन्नु कुरितु हेळुवद रिन्द, अवु नमगीग बेकिल्लवॆन्दु हेळुत्तारॆ.________________
गतिचिन्तनाधिकारः १८०१ वसि गत्यन्तराण मनपेक्षितत्वव परिश 5. 2015 (१) वादि पदप्राप्ति, पूरैक मोक्षसाधनमान मधु
वादि पदप्राप्ति पूरैक - वस्त्रादिगळ लोक प्राप्ति पूर्वक, मोक्षसाधनमान मोक्षवन्नु साधिसिकॊडुव, मधु विद्यादिगळिलु - मधुविद्यवे मॊदलादवुगळल्ल, इल्लि आदिपद दिन्द पञ्चाग्नि विद्यॆयू हेळल्पट्टितु, मधुविद्यानिष्ठनिगॆ वादि प्राप्तिये हेळिरुवदरिन्द, तन्नन्नु ताने उपास्यवागि भाविसुवदु अयुक्तवॆन्दु जैमिन्याचार्यरु भाविसिदरु. अदू अल्लदॆ वादि त्यरुगळिगॆ “तं देवा ज्योतिषां ज्योतिः” ऎम्बल्लि परञ्ज्योति स्पाद परब्रह्मवे उपास्यवॆन्दू हेळिरुवदरिन्द मध विद्यॆयल्लि अधि कारविल्लवॆम्ब भिप्रायवु. मधु विद्यॆयल्लि आदित्यन पूत्व दक्षिण पश्चिमो तर ऊर्ध्वभागगळु, क्रमवागि वसु, रुद्र, आदित्य, मरुत्, साध्यरु गळिगॆ मधुविन हागॆ भोग्यगळॆन्दु हेळल्पट्ट, इवुगळे उपास्य गळु, इवुगळ प्राप्यगळु ऎन्दु उपदॆ शिसल्पट्टिरुत्तदॆ. व्यासरभि प्रायवु जैमिन्याचार्यरभिप्रायक्कॆ विरुद्धवागि, वसुरुद्रादित्यादि गळिगू मधुविद्यॆयल्लि अधिकार उण्टॆन्दू कल्पान्तदल्लि वस्त्रादिप्राप्ति युण्टागि, अल्लिन्द मुन्दक्कॆ मोक्षप्राप्तियुण्टागबहुदु ऎम्बुदु. आदरॆ तनगॆ ताने उपास्य हेगॆ ऎन्दरॆ वस्त्रादित्य शरीरक परब्रह्म वॆन्दु भाविसतक्कद्दु. इदु मधुविद्यानिष्ठनाद उपासकनिगॆ हेळिरव बेरॆ गतियादुदरिन्द नमगॆ बेकादुदल्लवॆम्ब भाववु. हागॆये पञ्चाग्नि विद्यानिष्ठनिगॆ, कैवल्य प्राप्तियुण्टागि अनन्तर मोक्षवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. ( नॆय पुट नोडि, पञ्चाग्नि विद्यानिष्ठनॆन्दरॆ– प्रकृतिविलक्षणवाद परिशुद्धवाद तन्न आत्मस्वरूपवु ब्रह्मात्मकवॆन्दु उपासिसुववनु. इवनिगॆ फलवु मधुविद्यानिष्ठनिगॆ हेगॆ वस्त्रादिलोक प्राप्ति मूलक अवान्तरफलवो, हागॆये इवनिगू कैवल्यदल्लि स्वात्मानुभववु अवान्तर फलवु, अल्लिन्द मुन्दक्कॆ मोक्षफलवु. हीगॆ इन्तह उपासकरुगळिगॆ बेरे गतियु हेळिरुत्तदॆ. इदु________________
८०२ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे ह विद्यादिगळिलु (२) “ सत्वं वहति शुद्धात्मा देवं नारायण म् (प्रभुम्) हरिम् । प्रभुत्वहति शुद्धात्मा परमात्मान मात्मना” (३) “येतु दग्धन्धना लोके पुण्य पाप विवरि उपासक विषयवादुदरिन्द नमगॆ बेकिल्लवॆन्दु उपदेशिसुत्तारॆ. इल्लियू कूड अर्चिरादि गतियिन्दले होगि, अल्लल्लि निन्तु होगु तारॆन्दु एकॆ हेळकूडदॆन्दरॆ, अर्चिरादि गॆतियल्लि आदित्यनन्नु बेधिसि कॊण्डु होगुत्तानॆन्दु हेळिरुवदरिन्द, अदे प्राप्यवॆन्दु हेळुवदु विरुद्धवागुवदरिन्द अर्चिरादि गतिगिन्तलू बेरॆयादुदॆन्दे भाविस तक्कद्दु. (२) मुन्दॆ शान्ति पर्व ३०७ नॆय अध्यायदल्लि हेळिरुव मार्गान्तरवन्नु कुरितु हेळुत्तारॆ :- शुद्धात्मा - परिशुद्धवाद स्वरूपवुळ्ळ, सत्वं - सत्ववु, प्रभुम् - समर्थनागियू, देवं - प्रकाशिसुवनागियू, इरुव, नारायण - सङ्कर्षणावतारियाद ओ नारायणनन्नु वहति - सेरिसुत्तदॆ. शुद्धात्मनाद, प्रभुवाद ई अ) अनिरुद्धरूपी नारायणनु, आत्मना - ताने, परमात्मानं - पर – वासुदेवनन्नु, वहति - सेरिसुवनु” ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इल्लि 9 भीष्मरु साङ्ख्यर विषयवागि युधिष्ठिरनिगॆ उपदेशिसुव प्रकरणवु. (२) इवरन्नु सूर्यनु तन्न रश्मिगळ मूलक नभस्सन्नू, नभस्सु तम सृन, तमस्सु रजस्सन्नू, रजस्सु सत्ववन्नू सेरिसुत्तवॆन्दु हेळि, सत्ववु अनिरुद्धनन्नू, अनिरुद्धनु वासुदेवनन्नू सेरिसुवनॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इदू ज्ञानयोगिगळाद सिद्धर विषयवादुद रिन्द नमगॆ बेकादुदल्लवॆम्ब भाववु. इल्लि नारायणनु परमात्म नन्नु सेरिसुवनु ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द सङ्कर्षण रूपियाद नाराय * णनु वासुदेवरूपियाद परमात्मनन्नु सेरिसुवनॆन्दु अर्थ माड बेकु. एकॆन्दरॆ मुन्दॆ ३५४ नॆय अध्यायदल्लि हागॆये पुनः साङ्ख्यर विषयदल्लि हेळल्पट्टिरुवदरिन्द, सङ्कर्षण वासुदेव रूपि गळॆन्दु अर्थ माडतक्कद्दु. श्रीर्मा शॆट्टलूरु नरसिंहाचारैरु (२) भारत, शान्तिपर्व ३०७, ७७, (३) भारत, शान्ति, ३५४, १३. २०.________________
गति चिन्तनाधिकारः १८०३ ताः । तेषां वै (क्षेममध्यानं ष्णन मध्यानं गच्छतां द्विजसत्तम । सत्वलोक तमोहन्ता आदि द्वारमुच्यते । ज्वाला माली महातेजा येनेधं धाक्यते जगत् । आ आदित्य नारायणनॆन्दरॆ अनिरुद्ध रूपि ऎन्दु अर्थ माडिरुत्तारॆ. इल्लियू व्यूहावतारियन्नु हेळिदन्तायितु. (३) “येतु.यारादरॆ, लोके- ई लोकदल्लि, दन्धना-सु डल्पट्ट कट्टिगॆय रूपवाद पापवुळ्ळवरागि, ऎन्दरॆ उपासनादिगळिन्द कर्मगळ नाशवुळ्ळवरागि, आ कारणदिन्द, पुण्य पाप विवरि ताः-पुण पापगळिल्लदवरागि क्षेममध्यानं गच्छतां- ऎल्लि पूर क्षेमवुण्टो अन्तह मार्गवन्नु कुरितु होगुत्तिरुव, तेषां - अन्तह योगि गळाद साङ्ख्यरुगळिगॆ, हे द्विज सत्तम - ओ ब्राह्मण श्रेष्ठराद नार दरे, इदु नारदरिगॆ नरनारायण ऋषिगळु माडुव उपदेशवु ; सलोक तमोहन्ता - समस्त लोकद अन्धकारवन्नु नाश माडुव, आदित्यः - सूर्यनु, द्वारं - मार्गवागि, उच्यते - हेळल्पडुवनु ऎन्दरॆ अन्थावरु सूर्यन मूलकवागि, क्षेमवं टागुव स्थळवाद वैकुण्ठक्कॆ होगतक्कद्दॆम्ब भाववु ; आ सूर्यनु ऎन्थावनॆन्दरॆ, ज्वालामाली . ज्वालॆगळन्ने मालॆयागि उळ्ळवनु’ महातेजः - महा तेजस्सुळ्ळवनु, येन याव सूर्यनिन्दले, इदं जगत्- ई जगत्तु, धान्यते - धरिसल्पट्टिरुत्तदो, सूर्यनिं दले ई जगत्तिनल्लि प्राणिगळ वासवादुदरिन्द धारते ऎन्दु प्रयो गिसल्पट्टिरुत्तदॆ ; हीगॆ आदित्यद साङ्ग8 - सूर्यनिन्द सुड ल्पट्ट सावयववुळ्ळवरागि, केनचित्-यारॊब्बरिन्दलू, कृचित् - यावुदॊन्दु प्रदेशदल्लागलि, अदृश्या - काणिसदवरागि, परमा क्या भूताश्च - अति सूक्ष्मवाद शरीरवुळ्ळवरागि, तं देवं - आ अनिरुद्धनाद देवनन्नु, प्रविशन्ति - हॊन्दुवरु, अनिरुद्ध तन् स्थिताः - आ अनिरुद्ध शरीरदल्लिरुववरागि, तस्मादपि विनिरुक्ता अल्लिन्दलू बिडल्पट्टवरागि, मनोभूता8 - मनस्सन्नॆ शरीरवागि उळ्ळवरागि, ततः . अल्लिन्द मुन्दक्कॆ, भूयः- पुनः, प्रद्युम्न .. ఒ 8 080________________
१८०४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे दग्ध सङ्ग अ दृश्याः केन चित्रचित् । परमाात्मभू ताश्च तं देवं प्रविशन्नु त । तस्मादपि विनिरुक्ता अनिरुद्ध त त … । मनोभूता स्वतो भूयः प्रद्युम्म प्रविश स्तुत । प्रद्युवा विनिरुक्ता जीवं सङ्करणन्ततः । विशक्ति विप्रप्रव सं३ योगारह । ततगुण्य हीना * परमात्मान मञ्जस । प्रविशस्ति द्विजष्ठा क्षेत्रज्ञं निर्गुणात्मकम् । सर्वानासं वासुदेवं क्षेत्रज्ञ विद्धि तत्व तः । समाहितमन स्कान्नु नियता स्पंयतेन्द्रियाः ! ऐकान्त्य भावोपगता वासुदेवं विशन्ति ते ॥ ” इत्यादिगळान महा 00 प्रद्युम्मनन्नु, प्रविशन्ति - प्रवेशिसुवरु, ऎन्दरॆ आ व्यूहलोक वन्नु सेरुवरु ऎम्बर्थवु ; प्रद्युम्याच्च विनिरुक्ताः - आ प्रद मृ निन्द बिडल्पट्टवरागि, जीवं सङ्करणं तॆतःनिशन्ति - अनन्तर ‘जीवाभिमानियाद सङ्कर्षण लोकवन्नु प्रवेशिसुवरु, तैस्सह - 2. अ नरगळॊन्दिगॆ, ३ प्रप्र8 - ब्राह्मण श्रेष्ठराद, साङ्ख्याय ofce गा - ज्ञानयोग कर्मयोग निष्ठरू सह, ततः - आ सङ्कर्षण नन्नु बिट्टु, त्रिगुण्य हीनाः - मूरु गुणगळाद सत्वरजस्तमो गुणगळिन्द बिडल्पट्टवरागि, ते - आ, द्विजश्रेष्ठाः - ब्राह्मण श्रेष्ठरु, अञ्ज ना - शीघ्ररल्लि, क्षेत्रज्ञ - क्षेत्रज्ञनॆन्दु हेळिसिकॊ ळ्ळुव, निरुणात्मकं - ई हेयवाद प्रकृतिगुणगळॊन्दू इल्लदि रुव, परमात्मानं - परमात्मनाद वासुदेवनन्नु, विशन्ति - हॊन्दुत्तारॆ. क्षेत्रज्ञ आ क्षेत्रज्ञनन्नु, सवासं - समस्त क आवासभूतनाद, वासुदेवं - वासुदेवनन्नागि, निद्दितकृत यथार्थवागि तिळि, ते - अवरु, समाहित व न सत्तु - शान्त मनस्स रागि, नियताः - शास्त्रसियवदिन्दिरुववरागि, संयतेन्द्रिया8 - अडगिसल्पट्ट इन्द्रियगळुळ्ळवरु, ऎन्दरॆ इन्द्रियनिग्रह माडिद वरू, ऐ कान्त्य भावोपगताश्च - अनन्य प्रयोजनरादवरु, स श्वरनॊब्बनल्ले मनस्सिट्ट, ते - अवरू, वासुदेवं विशन्ति - वासु देवनन्नु हॊन्दुवरु, हीगॆ साङ्ख्यरिगॆ आदित्य, अनिरुद्ध, प्रद्युम्म,________________
गतिचिन्तनाधिकारः १८०५ भारतादि वचनङ्गळिलुम् (४) “श्वेतद्वीप मितः प्राप्य विश्व रूपधरं हरिम् । ततोनिरुद्ध मासाद्य श्रीमत् क्षीरो दध हरिम् । ततः प्रद्युम्म वासाद्य देवं सत्येश्वरेश्वर म् । ततस्सङ्करण दिव्यं भगवन्तं सना तनन : अयम परो मात्र स्पदा ब्रह्मसुख्षिणाम् । सरमै कानि सिद्दानां पञ्चकाल रतात्मना ।” ऎ पुडैगळिले जयत्संहितादि गळिलु, (५) “ विभवार्चनाद्रू हं प्राप्य व्यूहर्चना 3 सङ्करणर मूलकवागि वासुदेवनन्नु हॊन्दुवरॆन्दु बेरॆ मारवु इल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ.” इवॆ मॊदलादवुगळाद, महाभारतवे मॊदलाद वचनगळल्लू ; इल्लियू कॆलवु विध योगिगळिगॆ ई गतियु हेळल्पट्टिरुवदरिन्द नमगॆ बेकादुदल्लवॆम्ब भाववु.
(३) मुन्दॆ जयत्संहिता वाक्यगळन्नु दाहरिसुत्तारॆ :- इतः- ई लोकदिन्द, श्वेतद्वीपं - श्वेतद्वीपवन्नु हॊन्दि अल्लिरुव, विश्व रूपधरं हरिव - विश्वरूपवन्नु धरिसिरुव श्रीहरियन्नू, पाप्य हॊन्दि, ततः - अल्लिन्द, श्रीमत् क्षीरोदध - क्षीरसमुद्रदल्लि रुव, हरिम् - श्रीहरियन्नु, प्राप्य - हॊन्दि, ततः - अल्लिन्द, सश्वरेश्वरं - ब्रह्मादि समस्त देवतॆगळिगू ईश्वरनाद, देवं- लीलासक्तनाद प्रद्युम्ननन्नु आसाध्य - हॊन्दि, ततः अल्लिन्द मुन्दक्कॆ, सङ्करणं सङ्कर्षणनन्नु, आ साद्य हॊन्दि, ऎन्दु इट्टुकॊळ्ळबेकु; ततः - अल्लिन्द, सनातनं - अनादियाद, भगवन्तं - भगवन्तनन्नु हॊन्दुत्तारॆ ऎन्दु इट्टु कॊळ्ळतक्कद्दु. सदा - यावागलू, ब्रह्मसुखैषिणाम् – ब्रह्मानुभवानन्दवन्नु अपेक्षिसुव, परमै कानि सिद्दानां, परमात्मनन्नु एकाग्रचित्ततॆ यिन्द ध्यानिसुवदरिन्द सिद्धियन्नु हॊन्दिरुव, पञ्चकालरतात्मनां- अभिगमन, उपादान, इज्या, स्वाध्याय, योगवॆम्ब ऐदु कालदल्लि भगवन्तन आराधनॆयल्लि मनस्सुळ्ळवरिगॆ, अयमपि - इदू कूड ई मेलॆ हेळिदुदू कूड, अपरो मारति - इन्नॊन्दु मारवु. (४) श्रीभाष्य, २. २. ४१. –________________
R १८०६ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे त्रं ब्रह्म वासुदेवाख्यं सूक्ष प्राप्यत इति वदन्ति” ऎन्नु श्री पाञ्चरात्राधिकरणलु, शिलवधिकार विशेषण्ण प्पत्तक्कॊल्ल. र क्रम मुक्ति पक्षलु, सत्यलोकादिगळिलि
- जय ऎनि पुडैगळिले – ई रीतिगळल्लि, जयत्संहितादिगळिलु तंहितवे मॊदलादवुगळल्लि ; इल्लि हेळिरुव मार्गवु कॆलवु अधिकारि विशेषवन्नु कुरितु हेळिरुवदरिन्द नमगॆ प्रकृतवादुदल्लवॆम्ब भाववु. { (५) विभवारनात् - राम कृष्णादि अवतार रूपिय अर्चनॆ यिन्द ऎन्दरॆ ध्यानदिन्द व्यूहं प्राप्य - अनिरुद्ध प्रद्युम्म सङ्कर्षण रूपियाद भगवन्तनन्नु हॊन्दि, ऎन्दरॆ क्रमवागि अव - रन्नु हॊन्दि, व्यूहानात् - आ व्यू . आ व्यूहगळ अर्चनॆयिन्द, वासु * देवाख्यं - वासुदेवनॆम्ब हॆसरुळ्ळ, सूक्ष्म - केवल सूक्ष्मवाद माडु इविग्रहवाद परम्ब्रह्मवु, प्राप्य ते हॊन्दल्पडुत्तदॆ, इति - ऎम्बदागि, वदन्ति - हेळुत्तारॆ” इदु श्री भाष्यकारोक्तियु, ऎन्नु- ऎम्बदागि, श्री पाञ्चरात्राधिकरण लुम् , पाञ्चरात्र शास्त्र वन्नु कुरित अधिकरणदल्ल, (इदक्कॆ उत्पत्यसम्भवाधिकरण वॆन्दु हॆसरु) इल्लियू विभव व्यूहावतारिगळन्नु उपासनॆ माडुववरन्नु कुरितु हेळिरुवदरिन्द नमगॆ सम्बन्धिसिदुदल्लवॆम्ब तात्पर्यवु. हीगॆ शिल अधिकार विशेष - कॆलवु उपसनादि अधिकार विशेषगळन्नु, विशेषङ्गळ्ळि पत्र - कुरितु, शूल्लुगिर - हेळुव, क्रममुक्ति पक्षलुम् - क्रमवागि मुक्तियुण्टागुव पक्षदल्लि, ऎन्दरॆ विभवदिन्द व्यूहवू, आ 3 व्यूहदल्लि अनिरुद्ध, अनन्तर प्रद्युम्न, आमेलॆ सङ्कर्षण, अनन्तर 2- वासुदेव, हीगॆ क्रमवागि मुक्तियुण्टागुव पक्षदल्लि ऎम्बर्थवु. सत्यलोकादिगळिलिरुन्नु - चतुर्मुखन लोकवाद सत्यलोकवे मॊदलादवुगळल्लिद्दु, कूर्मपुराण पूर्व खण्डदल्लि “ब्रह्मणा सह ते सत्व सम्प्राप्त प्रतिसञ्चरे : परस्याने कृतात्मानः प्रवि शक्ति परम्पदं” ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. इदरर्थवेनॆन्दरॆ :- सम्पा ई प्रतिसञ्चरे प्रळयवु प्राप्तवागलागि, परस्यान् - ई चतुर्मुखन आयुस्सु कळद नन्तर, ते स - अवरॆल्लरॆ, कृता 3 6 2 e________________
(92) गतिचिन्तनाधिकार १८०७ रुन्नु मुक्त रामवरुगळुक्कु मुळ्ळ गतिविशे षादिगळिरुक्कुं कट्टळॆगळन्नू अधिकारिगळु ज्ञातव्यङ्गळागैयालिङ्ग वै वकुत्तु चॊल्लुगैयपेक्षितमनु. त्मानः - कृतकृत्यरागि, ब्रह्मणा सह - चतुर्मुखनॊन्दिगॆ, प्रवि शनि परम्पदं - परमपदवन्नु प्रवेशिसुत्तारॆ.” इदर प्रकार ईग मुक्तिये इल्लवॆन्दू, सत्यलोकदल्लि चतुर्मुख सायुज्यवन्नु हॊन्दिद्दु, कल्पान्तदल्लि चतुर्मुखनॊन्दिगॆ मुक्तियु ऎन्दु कॆलव रभिप्रायपडुत्तारॆ. इदु बादरियवरभिप्रायवु. जैमुन्याचा र्यरू व्यासमहर्षिगळू ई अभिप्रायवन्नु खण्डिसिरुत्तारॆ. (ब्रह्म सूत्र ४. ३. १०-१४) हागादरॆ ब्रह्मणा सहते सत्व – ऎम्बुदक्कॆ अर्थ हेगॆ ऎन्दरॆ सत्यलोकवासिगळागिरुववरिगॆ चतुर्मुखनॊन्दिगॆ मुक्तियु ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इल्लि आदि शब्ददिन्द तपोलोक (इल्लि सनकादिगळिद्दारॆम्ब प्रसिद्धियु), सान्तानिक लोकगळु (आयो धैयल्लिद्दवरु श्रीरामनॊन्दिगॆ सरयू नदि प्रवेश माडि इल्लिद्दा रॆम्ब प्रसिद्धियु हेळल्पट्टवु, मुक्तरामवगळक्कु - मुक्तियन्नु हॊन्दुववरिगू, उळ्ळ गतिविशेषादिगळ - प्राप्तवाद गतिविशेष गळु, इरुक्कु कॆट्टळ्ळिगळ् - हेळल्पट्ट क्रमगळु, अन्नो अधि कारिगळुक्कॆ - आया अधिकारिगळिगेनॆ, ज्ञातव्यनागै याले . तिळि यतक्कद्दादुदरिन्द, इष्टु - ई स्थळ दल्लि, ई सन्दर्भदल्लि अवै - आ गतिविशेषगळन्नॆल्ला, वगुत्तु चॆल्लुगै - विस्तरिसि हेळबेकादुदु, अपेक्षितनन्नु - बेकागिल्लवु. सत्यलोकदल्लू तपोलोकदल्लू सान्तानिक लोकदल्लि इरुववरिगेने तमगॆ यावाग मोक्षवॆम्बु वदु तिळियुवदु ; ईग ई लोकदल्लिरुवन्था नमगॆ अदु बेकादुदल्ल वॆम्ब भाववु ; अप्रस्तुत प्रशंसॆयु अनावश्यकवॆम्ब भाववु. इवॆल्ला तिळिदुकॊळ्ळतक्कद्दु ननगॆ अनावश्यकवॆन्दु हेळिदन्ता यितु. नम्मन्तह स्वतन्त्रप्रवत्ति निष्ठरिगादरो इन्तह विळम्बग ळॊन्दू इल्लदॆ अर्चिरादि गतिये मार्गवॆन्दु सा स्थापिसल्पट्टितु. आदरॆ ई अर्चिरादि गतियनुसन्धानवु भक्तियोगनिष्ठनिगॆ नित्यवू________________
१८०८ श्री मद्रहस्य त्रयसारे मुमुकॊ६ भरन्यास पूरोत्तरकालयो गति चिन्तनस्य प्रयोजन म इग्गत्यनुसन्धानादिगळ स्वतन्त्र प्रपत्ति निष्ठनान इवनु क्कु सद्वारक प्रपत्ति निष्ठनुक्कु पोलॆ उपायाङ्गनाग ना माडतक्कद्देनो कर्तव्यवु. ई भरसमर्पणॆ माडुववनिगागलि अथवा माडिदवनिगागलि नित्यदल्लि ई गनुसन्धानवु आवश्यकवे? भरन्यास माडुववनिगू आवश्यकवॆन्दरॆ इदेनू अङ्गवागि हेळल्पड लिल्लवल्ला? भरन्यास माडिदवनिगॆ आवश्यकवे ऎन्दरॆ इदॊ ऒन्दु अङ्गवे ऎम्ब क्षेपणॆगॆ ऒळगागुत्तदॆ. हीगिरुवल्लि ई गत्यनु सं धानवु उपायानुष्ठानक्कॆ मुञ्चॆयागलि, अनन्तरवागलि आवश्यक वागि तोरुवदिल्लवल्ला ऎन्दरॆ, हागल्लवॆन्दु, ई गत्यनुसन्धानवु ऎरडु सन्दर्भदल्लि उपयोगवादुदरिन्द आवश्यकवॆन्दुपदेशिसु तारॆ :- मुमुक्षुविगॆ भरन्यासक्कॆ मॊदलू अनन्तरवू ई गतिय चिन्तनदिन्दुण्टागुव प्रयोजनवु. इग्गत्यनुसन्धानादिगळ - ई अर्चिरादि गतियन्नु नित्यदल्ल स्मरणॆगॆ तन्दुकॊळ्ळुवदे मॊदलादवुगळु, इल्लि आ पददिन्द अल्लल्लि उण्टागुव सत्कार, कॊनॆगॆ परमफलप्राप्ति इवॆल्लवू बोधिसल्प ट्टवु, स्वतन्त्र प्रपत्ति निष्ठनान इवनुक्कु - भरन्यासवन्ननुष्ठिसिद ई प्रपन्ननिगॆ, सद्वारक प्रपत्तिनिष्ठनक्कु प्रोलॆ .. भक्तु पाय निष्ठनाद योगिय हागॆ, नाळॆ तोरुम् - प्रतिनित्यदल्ल, कत्रव्य s ळल्लेयागिलु - माडलेबेकॆम्ब नियव निल्लदिद्दरू, ऎन्दरॆ निल्दाण, गतिचिन्तन, परिपूर्णानुभव इवुगळनुसन्धानवु भक्ति मार्ग निष्ठनिगॆ हेगॆ नित्यदल्लि आवश्यकवो हागॆ ई भरन्यास निष्ठनिगॆ आवश्यक विल्लवॆम्बुदु तात्पर्यवु, भक्ति मार्गदल्लिरुववनिगॆ इवॆल्ला आवश्यक________________
गतिचिन्तनाधिकारः तोरुव कत्रव्यळनेयागिलु つ १८०९ इवु सायलिळियु मैदु अधिकारत्व सिद्धिक्काग फलारित्वम् अपेक्षितमागैया ले फलप विशेषानु सन्धानवाय् फु किरक्कडवन. ऎ पिन्नु वरप्पुगुगिर कालत्तुक्कु नाळॆण्णॆ यिरुक्कु मा प्रॊलॆ पूरै प्राश्चित पुरु षार स्मरणमात्रमाय् इप्पुरु पापॆरप्पु कुकिरोमॆर प्रीत्यतिशय निळ्ळॆप्पित्तु कॊण्णु स्वयम्प्रयोजनवायिरुक्कु, वॆन्दु श्री भाष्यदल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ ; इवु पायल् इळियु मॊदु . ई भरन्यासवन्नु अनुष्टिसुव कालदल्लि, अधिकारत्व सिद्धि काक - अधिकारवु सिद्धिसुवदक्कागि, फलार्थित्वं - फलापेक्षॆयु, अपेक्षितमागैयालॆ - अपेक्षितवादुदरिन्द ऎन्दरॆ आवश्यकवादुद रिन्द, फलपर विशेषानु सन्धाननाय् - फलकाल विशेषद चिन्त नॆयागि, पुगिरक्कडवन - अदरल्ले अन्तर्गतवु ऎन्दरॆ फलदल्ले अन्तर्गतवु. अधिकारत्ववु सिद्धिसुवदक्कॆ फलार्थित्ववु आवश्यकवु ; आदुदरिन्द मोक्षफलापेक्षॆयु यावाग अधिकारसिद्धिगॆ आवश्यकवा यितो, आवाग मोक्षक्कॆ होगुव दारि यावुदु ऎम्बुदरनुसन्धा नवु आ फलदल्ले अन्तर्गतवॆम्ब भाववु. आदुदरिन्द मोक्षार्थिगॆ ई गति चिन्तनवु भरन्यासक्कॆ पूर्वभावियागि अधिकार सिद्धिगॆ अपेक्षित वादुदु ऎम्ब तात्पर्यवु, भरन्यासानन्तर हेगॆ प्रयोजनवॆम्बु दन्नु मुन्दिन वाक्यदिन्दुपदेशिसुत्तारॆ :- पिन - उपायानुष्ठानानन्तरवू वरप्पु गुगिर कण्णाल वरप्पुगुगिर तु कु - मुन्दॆ बरुव मदुवॆगॆ, नाळॆण्णॆ यिरुक्कु मालॆ - ईवत्तिगॆ हत्तु दिनविदॆ, ईवत्तिगॆ ऒम्बत्तु दिन, ईवत्तिगॆ ऎण्टुदिनविदॆ, हीगॆ दिनगळन्नु ऎणिसिकॊण्डिरुवदर हागॆ, पूरै प्रार्थित पुरुषा * स्मरण मात्र माय् - भरन्यासकालदल्लि प्रार्थिसिद पुरुषार्थद स्मरणॆय रूपवादुदागि, इप्पुरुषं पॆरप्पुगिगरोम् - ई महत्ताद परिपूर्ण ब्रह्मानुभव रूपवाद पुरुषार्थवन्नु नावु मुन्दॆ हॊन्दुवॆवु, ऎर प्रीत्यतिशय - ऎन्नुव हॆच्चाद________________
१८१० श्रीमद्रहस्य त्रयसारे गत्यनुसन्धान विषये निदरनम् आगैयालिट्टु समुदाय ज्ञानमात्र तालुम् इवनुक्कु प्रीतियन्नु, विळ्ळॆप्पित्तु कॊण्डु - अभिवृद्धि पडिसिकॊण्डु, स्वयं प्रयोजनवा यिरुक्कुवन् - स्वतः प्रयोजनवागुत्तदॆ. ऒब्ब निगॆ विवाहक्कॆ लग्न निश्चयिसिद्दरॆ, इन्नु ऎष्टु दिनगळिवॆ विवाहक्कॆ ऎन्दु प्रतियॊन्दु दिवसवू दिनगळन्नु ऎणिसुत्तले इरलि, ऎणिसदे इरलि, अन्तू विवाहवेनो नडॆयुत्तदॆ. आदरॆ ई दिवसगळन्नॆणिसुवुदरल्लि आ विवाहोत्सव विषयदल्लि प्रीत्यतिशयवु हेगॆ हॆच्चुत्तदो, हागॆ ये ई गतिचिन्तनदिन्द इन्तह निरुपमवाद पुरुषार्थवन्नु सद्य दल्ले हीगॆ हॊन्दुवॆवु ऎन्दु तोरिबरुवदरिन्द, पुरुषार्थ प्राप्ति यल्लि प्रीत्यतिशयवु अभिवृद्धियन्नु हॊन्दुत्तदॆ. निरुपाधिक सहज शेषभूतनाद ई प्रपन्ननिगॆ अत्यर्थप्रियनाद सश्वरनल्लिगॆ होगु वदु तुम्बा अपेक्षितवादुदरिन्द, अन्तह अपेक्षॆयन्नु वृद्धिहॊन्दिसु वदरल्लि उपयोगवादुदरिन्द, स्वयं प्रयोजनवादुदॆन्दु हेळ ल्पट्टितु. आदुदरिन्द नित्यदल्लि गत्यनुसन्धानवु आवश्यकवॆन्दु उप देशिसल्पट्टितु. अर्चिरादि मार्गदल्लि तनगुण्टागुव सत्कारगळन स्वामि सन्निधियु दॊरॆत नन्तर तनगुण्टागुव भोगगळेनु इवुगळु तनगॆ तिळियतक्कद्दु आवश्यकवॆन्दु स्थापिसल्पट्टितु. इष्टॆल्ला विशद वागि गतिविशेषवन्नॆल्ला समग्रवागि ऎल्लि ऎल्ला भरन्यास माडिदवरु तिळिदिरुत्तारॆ ? ऎन्दु प्रश्निसिदरॆ अष्टु सम्पूर्ण ज्ञानविल्लदिद्दरू समुदाय ज्ञानविद्दरू साकु, अदरिन्दलू सिद्धियुण्टॆन्दु तिळिसु त्तारॆ. हीगॆ ऒन्दु विशेषगतियु परमात्मन कृपॆयिन्द प्राप्तवा गुत्तदॆन्दू, अल्लि आतिवाहिकरु सत्करिसि तन्नन्नु मुन्दक्कॆ करॆदु कॊण्डु होगुवरॆन्दू, अल्लि ब्रह्मालङ्कारादिगळु प्राप्तवागुत्त दॆन्दू, अल्लिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभव उण्टॆन्दू, इष्टु मात्र समुदाय ज्ञानदिन्दलू अपेक्षित सिद्धि युण्टॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. आदु दरिन्द इदु स्वयं प्रयोजनवादुदागुत्तदॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ.________________
गतिचिन्तनाधिकार १८११ अपेक्षित सिद्धियुण्णु, (१) “समीपं राजसिंहस्य रामस्य विदि तात्मनः । सङ्कल्प हयसंयुक्तान्तीनि. मनोरथैः”, यल्लि गत्यनु सन्धानद विषयदल्लि ऒन्दु निदरनवु. आगैयाल् - हीगॆ गत्यनु सन्धानवु भरन्यासक्कॆ पूर्वभावि यागि अधिकार सिद्धिगॆ उपकारकवॆन्दू, उत्तर कालदल्लि मोक्षप्राप्ति प्रीत्यतिशयवन्नुण्टुमाडि आ उत्सव काल प्रतीक्षॆयन्नु माडुव हागॆ उपकारकवॆन्दू ऒप्पिकॊण्ड नन्तर, इष्टु - ई अर्चिरादि गति विशेष चिन्तनॆयल्लि, समुदाय ज्ञानत्तालुम् - विशदवाद गति क्रमद ज्ञानविल्लदॆ ऒट्टिनल्लि स्वल्प ज्ञानविरुवदरिन्दलू, इवनु क्कु - ई मुमुक्षुविगॆ, अपेक्षित सिद्दियुण्डु-अपेक्षितवादुदु प्राप्तवा गुत्तदॆ. अपेक्षितवु यावुदॆन्दरॆ– भरन्यासानुष्ठान कालदल्लि फलापे कैय मूलक अधिकारसिद्धिगू, अनन्तरदल्लि पुरुषार्थ प्राप्तियल्लि प्री त्यतिशयवू, कॊनॆगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभववू सह. “राजसिंहस्य- राजश्रेष्ठनाद, विदितात्मनः- सर्ववन्नू तिळिद मनस्सु, रामस्य - तन्न पतियाद श्रीरामन, समासम्- समासवन्नु, सल्प हय संयुति - सङ्कल्पवॆम्ब कुदुरॆगळिन्द कट्टल्पट्ट, मनोरथ्- मनोरथगळिगॆ आश्रयवाद मनस्सॆम्ब रथगळिन्द, यान्तीमिव - हॊन्दिरुवळो ऎम्ब हागिरुव, सीतान्ददर - सीतॆयन्नु रावणनु कण्डनु ऎम्बुदरॊन्दिगॆ अन्वयवु. सल्पवु मनस्सिगॆ सम्बन्धिसिदुदु, आदुदरिन्द सङ्कल्पगळे कुदुरॆगळादरॆ, मनस्सॆम्बुदे रथवॆन्दु भाविस तक्कद्दागिरुत्तदॆ; ऎन्दरॆ रावणनु ऎदुरिगॆ बन्दिद्दरू मनस्सिनिन्द तन्न पतियन्ने ध्यानिसुत्ता, हेगादरू माडि आतन सन्निधिगॆ होगि सेरतक्कद्दॆम्बुदे सङ्कल्पवु, इदु सिद्धिसुव क्रम हेगॆ ऎन्दु गति चिन्तन माडुत्तिद्दळॆम्ब भाववु. आ गति हेगॆन्दरॆ हनुमन्तनिगॆ ताने हेळुत्ताळॆ. बिलैस्तु सङ्कुलां कृत्वा लङ्कां पॆरबला रनः । मां नयेद्य दिकाकुत् तस्य सदृशं भवेत् ॥ (१) रा. सुन्दर, १९, ७.________________
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे 13 ऎन्नुव पडि पिराट्टि इरु विरुपु इवनुडैय गत्यनुसन्धा नत्तुक्कु निदर्शनम्, हीगीग सङ्कल्पिसि, तन्न मनोरथव पूर्णवागि श्रीरामन समाप वन्नु हॊन्दुवॆनॆन्दु गति चिन्तनवन्नु माडुत्तिद्दाळॆम्ब भाववु. आदरॆ रश्मि ऎम्ब बहुवचन हेगॆ ऎन्दरॆ, अपेक्षॆयु पुनः पुनः उण्टागुवदरिन्दलागलि, अथवा “ अदितिः पार्शा” ऎम्बल्लि ऒन्दु पाशक्कॆ बहुवचन हेगो हागॆ ऎन्दागलि भाविसबहुदु. मनोरथैः ऎम्ब प्रयोगविल्लिरुवदरिन्द श्रीरामनन्नु यावाग हॊन्दु नॆनॆ ऎम्ब मनोरथवे पुनः पुनः इवळिगॆ उण्टागुति तॆम्ब भाववु तोरिबरुत्तदॆ. हीगॆ सीता मनस्सु श्रीराम समीप वन्नु हॊन्दिदुदरिन्द, दुष्यन्तनल्ले सक्तवाद शकुन्तला मनस्सु हेगॆ दुर्वासागमनवन्नु हेगॆ अरियदे होयितो हागॆ रावणा गमनवन्नु तिळियलिल्लवॆम्ब भाववू तोरिबरुत्तदॆ. श्री र्मा सार विवरणॆ व्याख्यातृवू श्रीर्मा शॆट्टरु नरसिंहाचाद्यरवर सह, यान्तीव मनोरथैः ऎम्बुदक्कॆ मनोरथगळॆम्ब रथगळिन्द ऎन्दु अर्थ माडिरुत्तारॆ. ऎन्नुव पडि - ऎन्दु हेळिरुव हागॆ, पिराट्टि - सीतादेवियु, इरुद्ध विरुवु - अशोक वनदल्लिद्द स्थिति यु, इवनुडैय गत्य नुसन्धानत्तुक्कु - ई प्रसन्नन अर्चिरादि गतिय अनुसन्धानक्कॆ, निदर नम् - उदाहरणॆयु, सीतादेवियु हेगॆ अनवरत तन्न पतियन्नु ध्यानिसुत्ता इन्नॆरडु तिङ्गळल्ले होगि सेरलुळ्ळवळॆन्दु निष्कर्षॆ माडिकॊण्डु आ पतियु बन्दु ऎन्दिगू करॆदुकॊण्डु होगदॆ इरनॆन्दु अदरल्ले त्वरातिशयवन्नू प्रीति शयवन्नू हेगॆ हॊन्दिद्दळो, हागॆये ई प्रपन्ननू तनगू पति याद शिर्यपतियु कृपॆगैयु सीतॆय हागॆ दुरवस्थॆयल्लिरुव तन्नन्नु ई देहवॆम्ब लङ्कॆयल्लि मनोरूप रावणन बन्धक्कॆ सिलुकि रुव तन्न निगळवन्नु छेदिसि अर्चिरादि गतियन्नुण्टुमाडि तन्न पट्ट णक्कॆ यावाग करॆदुकॊण्डु होगुवनो ऎन्दु नित्यवू चिन्तिस तक्कद्दॆम्ब भाववु.________________
ऎण्टिसिगॆ गति चिन्तनाधिकार नडै पॆर वस्तप्पगळॊळि नाळुत्तरायण मा is १८१३ डैवरु कारनि यिरर्निपति र्मि वरुर्ण ० ०. कुडैयुडैना (नवर्) नोर् कोर्मा पिरशापतियॆवराल् इडो इडो पोगङ्गळॆयदि यॆळिरद मेरुवरे ॥२८॥ 081-55W-21555. eod, non, man. Shans. A- 3 मेलॆ हेळिद अर्चिरादि गति प्रकारवन्नु ऒन्दु अधिकार सङ्ग्रह पाशुरदिन्द उपदेशिसुत्तारॆ– नडै पॆर - देहावसानदल्लि स्कूल शरीरवन्नु त्यजिसिद नन्तर गमनवु प्राप्तवागलागि, अङ्गि-अग्नियु, हॆगल् - दिनवु, ऒळिनाळ् - प्रकाशविरुव दिनगळॆम्बुवदरिन्द शुक्ल पक्षवु, उत्तरायणवु, आण्णु - संवत्सरवु, इडैवरुकात्तु - संव तादादित्यम् ऎन्दु हेळिद्दरू, संवत्सरक्कू आदित्यनिगू मध्यॆ वायुविद्दानॆन्दु निष्कर्षिसल्पट्ट हागॆ, मध्यॆ इरुव वायुवु इरवि - आदित्यनु, इरर्वि पति - रात्रिगॆ पतियाद निशापति ऎनिसुव चन्द्रनु, र्नि - वैद्यर्त, वरुणनू, कुडै युडै . एकच्छ क्राधि पतियाद, वानोर् कोर्मा - देवतॆगळिगॆ स्वामियाद इन्द्र नु, सिरशापति - प्रजापति, चतुर्मुख ब्रह्मनु, यॆवराल् ऎम्बुवी आतिवाहकरुगळिन्द, इडो इच्छॆ भोगण्णळॆय दि – मध्यॆ मध्यॆ इवरुगळु माडुव सत्काररूप भोगगळन्नु हॊन्दि, ऎळिल् पदं - हीगॆ ऒन्दक्कॊन्दक्कॆ उत्कृष्टवाद गमनदल्लि सिक्कुव स्थान गळन्नु अथवा “ अत्यानिलदीप्तं तत्नं विषन्महा त्मनः” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ देदीप्यमानवागि इवॆल्लक्कू सत्तो त्कृष्ट पदवाद दिव्यवैकुण्ठवन्नु, एरुवरे - आरोहण माडुवरु, हत्तुवरु. तात्पर्य. इल्लि नडै पॆर ऎम्बुदरिन्द वागिन्द्रियवु, सूक्ष्म दॆशॆयल्लि मनस्सिनल्लि, मनस्सु प्राणदल्लि इत्यादि गमनगळू, अनं तर परमात्मनन्नु बिट्टु मूर्धन्य नाडिय मूलक देहदिन्द हॊरगॆ बन्दु, गतियु प्राप्तवादाग ऎम्बर्थवु. इड्डॆ वरुकात्तु - मध्यॆ बरुव वायुवु ऎन्दु एकॆ हेळल्पट्टि तॆन्दरॆ, छान्दोग्यदल्लि “संवत्सरादादित्यं” संवत्सरवाद नन्तर________________
१४१४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे पितृ पथ घटीयन्त्रा रोहावरोह परिभ्रमै र्निरयपदवी या तायात क्रमैश्च निरन्तरैः । आदित्यनॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. बृहदारण्यकदल्लि “देवलोकादा दित्यं” देवलोकवाद नन्तर आदित्यनॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. इन्नॊन्दु कडॆयल्लि वायुलोकदिन्द आदित्यनॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. इवु मूरु श्रुतिगळिगू समन्वय माडि हेळुवदक्कागि “वायुमब्बाद विशेष विशेषाभ्याम्” ऎम्ब सूत्रद मूलक व्यास महर्षियु देव लोक, वायुशब्दगळु समानार्थ उळ्ळवुगळादुदरिन्द, संवत्सर वाद नन्तर वायुवन्निडतक्कद्दॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. इल्लि भोगण्ण ळॆयदि ऎन्दु हेळिरुवदु आतिवाहिकरॆ अप्पर स्त्रीयरुगळ सत्कारा लङ्कारादिगळनुभववू भोगवागि तोरुत्तदॆ. आदरॆ ई अनुभववु यावुदू श्री परवासुदेव सन्निधियल्लि उण्टागुव भोगक्कॆ समा नवागदु. आदुदरिन्द अदन्नु, ऎळिल् पदव . सर्वसमृद्धियुळ्ळ पदवॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. ई ऎळिल् पदम् एरुवरे ऎन्दु हेळि रुवदरिन्द मुन्दॆ अनुग्रहिसुव परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारवन्नु सूचिसिद हागायितु; 1 प्रसन्ननिगेनो अर्चिरादि मार्गवॆन्दु हेळल्पट्टितु. हागादरॆ प्रपन्नरल्लदवरिगॆ याव मार्गवॆम्बुव प्रश्नॆयु न्यायवागि तोरि बरुवदरिन्द आ मार्ग यावुदॆम्बुदन्नु तिळिसि, ई ऎरडु मार्ग गळिगू इरुव वैलक्षण्यवन्नु ई श्लोकद मूलक तोरिसि अधिकार समाप्तियन्नु माडुत्तारॆ :- ईतनेनो ईग प्रपन्ननु ; “बह नां जन्मनाम” ऎम्बल्लि हेळिरुव हागॆ सृष्टि मॊदल्गॊण्डु इदुवरॆगू अनेक जन्मसन्ततिगळु ईतनिगॆ कळॆदु होदवु. हीगॆ अनेक सारि मरण प्राप्तियादागॆल्ला याव मार्गदल्लि होगि पुनः पुनः जन्मवन्नु ऎत्तिद्दायितॆन्दरॆ तिळिसुत्तारॆ– पितृ पथ घट यन्त्रारोहावरोह परिभ्रमैः, पितृपथ - पुनःपुनः जनन मरणादिगळन्नु कॊडुव मार्गक्कॆ पितृपथ ऎन्दरॆ पितृयाण अथवा धूमादि मार्गवॆन्दु हॆसरु, आ मार्गवॆम्ब घट यन्त्र -________________
(92) गतिचिन्तनाधिकार अधिगत परिशास्त्र न्याज्ञाधरैरतिवाह न स्सुखयति निजच्छायादाय स्वयं हरिचन्दनः । इति कविता कसिंहस्य सत्वतन्त्रस्वतन्त्र १८१५ श्री मुद्दॆ टनाथस्य वे दाना चारस्य कृतियु श्रीमद्रहस्यत्रय सारे गतिचिन नाधिकार एकविंशः, श्रीमते निगमान्य महादेशिकाय नमः. नीरॆत्तुव यातद, आरोहावरोह - भाविय मेलक्कॆ हत्तुवदु इळियुवदु, इवुगळ, परिभ मै . सुत्तोणदरिन्दलू, ऎन्दरॆ स्वर्गारोहण माडुवदु, अनन्तर ई लोकक्कॆ पुनः इळियुवदु हीगॆ सुम्मनॆ अलॆयुवदरिन्दलू मत्तु, निरय पदवी या ता यात क्रश्च - नरकलोकक्कॆ होगुवदेनु, पुनः बरुवुदेनु, ई क्रमगळिन्दलू कूड, अधिगत परिर्शा - हॊन्दिद अत्यायास वुळ्ळ, नः - नम्मन्नु, आज्ञाध - सत्करिसि मार तोरिसतक्कद्दॆम्ब श्री हरिय आज्ञॆयन्नु वहिसिरुव, अल्लिये मॊदलाद आतिवाहिकर मूलकवागि, अतिवाक्य - सत्कारपूर्वकवागि लीलाविभूतियन्नु दाटिसुव हागॆ माडि, हरिचन्दनः - श्रीहरि ऎम्ब चन्दन वृक्षवु, स्वयं - ताने, निजच्छाया दाया स्वकीयवाद नॆरळन्नु कॊट्टु, तनगॆ इवरु छायॆयो ऎन्दु तोरुव हागॆ तन्न साम्य वन्नू कॊट्टु ऎन्दु इन्नॊन्दर्थवु, सुखयति - कैङ्कय्य प्राप्ति परि पूर्ण ब्रह्मानुभवरूप परमानन्दवन्नु कॊट्टु भोगपडिसुवनु.
तात्सर :- ई प्रपन्नर अड्डिरादि मार्गक्कॆ देवयानवॆम्बुदु इन्नॊन्दु हॆसरु. हागॆये प्रसन्नरल्लदवर इन्नॊन्दाद धूमादि मार्गक्कॆ पितृयाणवॆन्दू हॆसरु, ई पितृयाण क्रमदल्लि आवर्ति युण्टु, देवयानदल्लि आवर्तियिल्लवु. पितृयाण क्रमवु छान्दोग्य ५. १०, ३, ४, ५. ६ गळल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. यारु अग्नि होत्रादि कर्मवन्नागलि, वापी कूप तटाकद निर्माण वन्नागलि, पात्रवरितु दानादिगळन्नागलि आचरिसुवरो अवरु धूमादि आतिवाहकरन्नु हॊन्दुवरु ; अवरु यारॆन्दरॆ : धूम, रात्रि, कृष्ण पक्ष, दक्षिणा यन मास, अल्लिन्द संवत्सराभिमान देवतॆयन्नु हॊन्दुवदिल्लवु दक्षिणायन मासगळिन्द पितृलोक, अल्लिन्द क्रमवागि, आकाश, चन्द्रनु, इवरुगळिन्द सत्करिसल्पट्टु, स्वर्गभोगक्कॆ योग्यवाद twxenica________________
१८१६ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे 1 दिव्य देहवन्नु हॊन्दुवनु, अल्लिद्दु अल्लिन्द अनन्तर कर्मशेषविरु वदरिन्द पुनः अदे मार्गदल्ले हिन्तिरुगि बरुवनु. चन्द्रनिन्द आकाशवू आकाशदिन्द वायुवू, वायुविनिन्द धूमद हागू, अभ्रद हागू, मेघद हागू आगि, अनन्तर वर्षिसुव हागॆ आगि, इदरिन्द भूत सूक्ष्मुक्तनागि भूमियल्लि द्दु, नॆलॆ, गोधि यो, सस्यवो, ऎल्लो, उद्यो यावुदरल्लि सेरुत्तानॆ. अदर सेवनॆयिन्द पिताविन रॆ’तॆस्सन्नु हॊन्दि, तायियाद योषिद्द र्भदल्लि स्कूलशरीरकनागुत्तानॆ. ऒळ्ळॆ कर्मशेष विद्दरॆ ब्राह्मणादि ऒळ्ळॆ योनिगळल्लि हुट्टुवन्नु कॆट्ट कर्मशेषविद्दरॆ नायि योनियन्नो, सूकर योनियन्नू, चण्डाल योनियन्नो, हॊन्दुवनॆन्दु श्रुति यल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हीगॆ यज्ञादि धर्म कॆलसगळन्नु माडिदवरु स्वर्गारोहण माडि, अदु तीरिद नन्तर पुनः इल्लिगेने “क्षीणेपु है मलोकं विश” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ अवरोहण माडि बरुवदरिन्द, पितृपथद आरोहावरोह परिभ्रमॆ ऎन्दु प्रयोगिसल्पट्टितु; हत्तुवदु इळियुवदु हीगॆ परिभ्रमविरुवदरिन्द ई पितृ पथवन्नु घटीयन्त्रद हत्तुविकॆ इळियुविकॆगॆ होलिसिरुत्तारॆ. श्री शङ्कर भाष्यदल्लि आनन्दगिरि टीकिनल्लू सह ई देवयानद आरो हावरोहगळन्नु घटीयन्त्रद आरोहावरोहगळिगॆ होलिसिरु त्तारॆ. शरणागतियन्ननुष्ठिसिदरॆ अथवा योगदिन्द परब्रह्म साक्षा तारवादरॆ अड्डिरादि गतियू, पुण्य माडिदरॆ धूमादि गतिय ऎन्दु हेळल्पट्टितु. आदरॆ इल्लि ऒन्दु संशयवु प्राप्तवागबहुदु. एनॆन्दरॆ, पुण्य माडिदवनिगॆ धूमादि गतियु प्राप्तवागि द्युलोक प्राप्तियुण्टागुवदरिन्द प्रपन्ननु पुण्यवन्नु माडकूडदु ऎम्ब शब्द उण्टागबहुदु फलापेक्षॆयिन्द पुण्य माडिदवनिगीग ई मार्गवु फलसङ्ग त्याग, कर्तृत्व त्यागादिगळिन्द प्रसन्ननु पुण्य कर्मगळन्नु माडिदरॆ प्रत्यवायविल्लवु. ई तत्ववु हिन्दॆये अप राध परिहाराधिकारदल्लि उपपादिसल्पट्टिरुत्तदॆ. इन्नु पाप माडि दरॆ यावगति ऎन्दरॆ मूरने गति ऎन्दु अदे छान्दोग्यद ५, १०, ८ रल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इदरिन्द दंश मशक कीटादि क्षुद्र जन्मगळु प्राप्तवागि पुनः पुनः “ज्यायस्थ मियस्क” ऎन्दु हेळि रुव हागॆ जनन मरणादिगळु उण्टागुत्तवॆ. अनन्तर ९नॆय वाक्यदल्लि चिन्नवन्नु कदियुववनु, हॆण्डवन्नु________________
गति चिन्तनाधिकार… १८१७ कुडियुववनु, गुरुतल्पगामियु, ब्रह्मघातुकनु इन्तह पाप माडि दवरु नरकवन्नु हॊन्दुवरु ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. हागॆये इन्नु मिक्क कडॆगळल्लि शास्त्रदल्लि नरकपतनवु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इदन्नु मनस्सिनल्लिट्टॆ निरय पदवी याता यात कमॆ र्निरन्तरै ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. सृष्टि मॊदलु इदुवरॆगू नावुगळु लॆविल्लदॆ जन्मगळन्नॆ रुवदरिन्द अरादि गतियन्नु इन्नू हॊन्दिल्लवॆम्बुदु सुव्यक्तवु. एतक्कॆन्दरॆ आ मार्गदल्लि होगिद्दरॆ पुनरावर्तियु इल्लवु. ऎरडनॆय पितृयाणदल्लि होगि स्वर्गलोकदल्लिद्दु हिन्तिरुगि कॆळगिळिदु बन्दि द्दरू बन्दिरबहुदु, घटी यन्त्रवु मेलक्कू कॆळक्कू ओडाडुव हागॆ, हत्ति इळिदु हीगॆ आयासवन्नु हॊन्दिरबहुदु, अथवा अनेक घोरपापगळन्नु माडि नरकदल्लि बिद्दु, यातनॆगळन्ननुभविसि बन्दिर बहुदु. ई अभिप्रायगळन्ने पराशररु “ अनेक जन्म साहसीं संसार पदवीं वर्ज 1 मोहानं प्रयातास् वासना रेणु कुण्ठितः ॥” ऎम्ब श्लोकदल्लि बहु चॆन्नागि हेळिरुत्तारॆ. (वि, पु. ६. ७. १९) इदरर्थ मत्तु उपपादनॆगॆ उपोद्घाताधिकारद १५३- ४नॆय पुटगळन्नु नोडि. हीगॆ अधिगत परिश्राप्तरागि, बहळ आयासपट्टु बॆन्दु बळलिरबहुदु. इदन्नॆल्ला आ कृपासागरनु मनस्सिनल्लिट्टु यावाग नावु निम्मवरु ऎन्दु याचिसि शरणा गतियन्नु अनुष्ठिसिदॆवो, आग सन्तोषयुक्तनागि “लोचनाभ्यां पिबन्निव” (रा. युद्ध काण्ड १८ ) ऎन्दु हेळिरुव हागॆ कृपा कटाक्षदिन्दवलोकिसि, अन्तिम स्मरणॆ, सुख निल्याण, मूर्धन्य नाडि प्रवेश, अग्निरादि गतिगळन्नुण्टुमाडि, आज्ञाधरै अतिवाह, सरो श्वराज्ञॆयन्नु शिरसा वहिसिरुव हन्नॆरडु आतिवाहिकरिन्दलू सत्करिस ल्पट्टवरागि, स्वस्वरूपाविर्भाव उण्टागुवदर मूलकवागि, निज च्छायादायिा ऎम्बल्लि हेळिरुव हागॆ श्रीयःपतिगॆ समानभाववन्नु हॊन्दुत्तारॆ. “पुण्यपापे विधूय निरञ्जनः परमं साम्य मुति” ऎन्दु श्रुतियु हेळुत्तदॆ. बहुदूर नडॆदु आयासदिन्द बळलिदवरिगॆ शैत्योपचारवू वृक्षद नॆरळनल्लिरोणवू आप्यायनवु, हीगॆ आयासपट्टवरिगॆ शैत्योपचारगळन्नु माडुवदक्कागि आतिवाहिक रन्नू अप्प रस्सुगळन्नू श्रियःपतियु नेमिसिरुवदल्लदॆ, ताने “ब्रह्म तरु” वागि आश्रितरिगॆ नॆरळन्नु कॊट्टु कापाडुवनॆन्दु हेळल्पट्टरु________________
१८१८ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे हागॆये तारॆयु “निवासवृक्षस्सा धूनाम् आपन्ना नां परागतिः” ऎन्दु हेळिरुत्ताळॆ. आदरॆ श्री देशिकरवरु श्री हरि यन्नु सामान्यवृक्षक्कॆ होलिसलिल्लवु. निजच्छायॆयन्ने युव श्री हरि ऎम्ब चन्दनवृक्षवॆन्दु हेळुत्तारॆ. ई वृक्षवु, तापत्रय गळु इन्नु मुन्दक्कॆ इल्लद हागॆ माडुवदल्लदॆ, सत्व गन्धस्सश्वरस (छां. ३, १४, ४) श्रीयः पतियल्लि अप्राकृतवाद स्वासाधारणवाद निरवद्यवाद निरतिशयवाद कल्याणतमवाद भोग्यभूतवाद सत्व विधगन्धरसगळु इवॆ ऎन्दु श्रुति प्रतिपाद्यवादुदरिन्द, आतनु सत्वविध भोगानन्दगळन्नु कल्पिसुवनॆम्बरवु. “रसोवैसः आनन्दयाति ऎन्दु मेलॆ उदाहरिसिरुव तैत्तरीयवाक्यवु निरतिशयानन्दवन्नू कल्पिसुवनॆन्दु हेळिरुवदरिन्द चन्दनवृक्षरूपकवु तुम्बा समञ्जस वादुदु. “वासुदेवतरु च्छाया नाति शीता नघरदा । नर काङ्गार शमनी साकिमरं नसेव्यते” हीगॆ सत्वतापनिवारकवा गियू, परम सुखदायिकवागियू भोग्यभूतवागियू, नरक तापभयविल्लदुदागियू इरुव ई वासुदेववॆम्ब वृक्षद नॆरळन्नु ई मूढ मनुजरु एकॆ सेविसुवदिल्लवो ? ऎन्दु हेळल्पट्टिरुवदु इल्लि अनुसन्धेयवु. हीगॆ तन्न निद्दे तुक कृपॆयिन्द प्रपन्ननिगॆ आतिवाहिकर मूलक सत्कारगळन्नुण्टुमाडि, ब्रह्मालङ्कारमाडिसि, स्वस्वरूपा विराव मूलक तनगॆ समवाद भाववन्नु ०टु माडि, परम भोग्यनागि परि पूर्ण ब्रह्मानुभव रॊपानन्दवन्नु कॊट्टु आतनु माडुव कै र गळन्नु तानू स्वीकरिसि, हीगॆ सुखयति, सुख पडिसुवनॆन्दु हेळिरु त्तारॆ. ई सुखवे सुखवु, मिक्किद्दॆल्लवू नरक तुल्यवॆन्दू, इदक्कॆ होलिसिदरॆ, “एते निरयास्तात स्थानस्य परमात्मनः” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ भयनिदानवॆन्दू, इदॊन्दे अभयरूपवॆन्दू तिळि सुवदक्कागि सुखयति ऎम्ब प्रयोगवु. आ सुखवु ऎन्थाद्दॆन्दु विशदवागि तिळिसुवदक्कागि मुन्दिन परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारवन्नु परम कृपया उपदेशिसुत्तारॆ. इन्तु श्री मद्रहस्यतयसारद इप्पत्तॊन्दनॆय गतिचिन नाधि कारक्कॆ तिरुनारायणपुरं विजयराघवशरन आचार हृदया नैषिणि ऎम्ब कन्नड अर्थ तात्पर्यगळु समाप्तवादवु. श्रीमते श्रीनिवास महादेशिकाय नमः,________________
श्रियॆ नम श्रीनिवासाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमते निगमान्य महादेशिकाय नमः श्रीमन्निग मा महादेशिक विरचित श्रीमद्र हस्यतय सारे परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार वितमसि पदे लक्ष्मीकान्तं विचित्र विभूतिकं सचिव गमित स्टम्प द्याविरवत्सहजाकृतिः, श्रीमते श्रीनिवास महादेशिकाय नमः 7.82002 ई अधिकारदल्लि अग्निरादिगतिय मूलक आतिवाहिक सत्कारवू, अप्परस्सिनिन्द ब्रह्मालङ्कारवू उण्टागि वैद्युतन मूलक परवासु देव प्राप्तियुण्टाद मुक्तनिगॆ लभिसुव परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद स्वरूपवॆन्थाद्दॆम्बुदन्नु तिळिसुत्तारॆ ई अधिकारक्कॆ हीगॆ एकॆ हॆसरॆम्बुवदन्नु उपपादनॆय प्रथम वाक्यदल्लि तिळिसुवदरिन्द इल्लि हेळुवदु अनावश्यकवु. अर-नितमसिपदे तमोगुणक्कॆ आकरविल्लद दिव्य वैकुण्ठदल्लि यावाग तमोगुण हेळल्पट्टितो, आवाग रजोगुणवू, इवुगळिन्द कूडिद सत्व गुणवू सह इल्लवॆन्दु हेळिदन्तायितु. इदु हागादरॆ ऎन्थाद्दॆन्दरॆ शुद्ध सत्वमयवादुदॆम्ब भाववु, अन्धकारवॆम्बुदे इल्लदॆ सदा स्वयं प्रकाशवाद दिव्य वैकुण्ठदल्लि, विचित्रविभूति कं________________
८२० श्रीमद्र हस्यत्रयसारे स्पुटतद पृथक्सिद्धि ध्यतुणाष्टक तलो भजति परमं साम्यभोगे निवृत्ति कथोज्जि तम् 119211 d * आश्चरकरवाद नियाम्यवस्थॆगळन्नु हॊन्दिरुव, लक्ष्मि कान्तं - श्रीयःपतियन्नु, सचिव गमितः- हिन्दिन अधिकारदल्लि हेळिद हागॆ आतन आज्ञाधारिगळाद आतिवाहिकरिन्द हॊन्दिसल्पट्टवनागि, सम्पद्य - आत नन्नु हॊन्दि, आविरवत सहजाकृति, आविरैवत् - इदुवरॆगू अप्रकाशवागिद्दु ईग प्रकाशवागिरुव, सहज - तनगॆ सहजवाद ऎन्दरॆ स्वकीय वाद, आकृति - स्वरूप स्वभावगळुळ्ळवनागि, स्पुट तद पृथक्षिद्ध, स्पुट - प्रत्यक्षिसल्पट्ट, तद सृ हद्दि : - आ पर मात्मनन्नु बिडदॆ सेरिरुव सिद्धियुळ्ळवनागि, ऎन्दरॆ तानु परमा तनिगॆ शरीरवु, आतनु तनगॆ आत्मा ऎम्ब भाववन्नु चॆन्नागि तिळिदव नागि, ऎन्दरॆ आतनॊन्दिगॆ सायुज्यवन्नु हॊन्दि ऎम्बर्थवु ; सिध्य द्दुणाष्टक तत्सलः, सिध्यत् - अभिव्यक्तवाद, गुणाष्टक तत्सलः - गुणगळ ऎण्टेनु, अवु यावुवॆन्दरॆ, अपहत पापत्व, विजरत्व, विमृत्युत्व, विशोकत्व, विजि घतृत्व, अपिपासत्व, सत्यकामत्, सत्य सब्बगळु, तत्सलः - आ गुणाष्टकगळिन्द उण्टागुव फलवेनु, इदु यावुदॆन्दरॆ, आतनिगॆ इष्टगळागि माडुव, कैङ्कर्य पठ्यन्तवाद परिपूर्णानुभववुळ्ळवनागि, भोगे - जगत्तिन सृष्टि स्थिति लयादिगळे मॊदलादवुगळिल्लदॆ, आनन्दानुभवदल्लि मात्र परमं साम्यं - अत्यन्त समभाववन्नु, निवृत्ति कथॆजितं - पुनरा वर्तिय प्रसङ्गवे इल्लदे इरुवन्थाद्दन्नागि, भजति - हॊन्दुवनु. CC 6 LADE तात्पर्यवु :- इवनु आतिवाहिकरिन्द सत्करिसल्पट्टु होद स्थळवॆन्ताद्दॆन्दरॆ, ई प्रकृतिमण्डलद हागल्लदॆ विलक्षणवादुदु, अदु तमश्यब्द वाच्यवाद प्रकृति सम्बन्धविल्लदॆ, अप्राकृतवादुदु. श्रुतियु “ तमसः परस्तात् ” ऎन्दू, “तमसस्तुपारे” ऎन्दू ई दिव्य वैकुण्ठवन्नु कुरितु हेळिरुत्तदॆ. तमश्यब्दवु बद्धराद चिद्विशिष्ट वाद प्रकृतियन्नु बोधिसुत्तदॆ. अन्ताद्दरिन्द विवर्जितवादुदॆम्ब भाववु. अदु प्रकृतिगिन्त हेगॆ विलक्षणवॆम्बुवदु तत्वयाधिकार________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार दल्लि उवपादितवागिदॆ (४५८, ५२८-९ पुटगळन्नु पराम्बरिसि). इदु स्वयम्प्रकाशवागि, रजस्तमोगुणगळिन्द सेरद शुद्ध सत्ववागि, स श्वरनिगॆ भोगोपकरणवागि, ई चेतननिगॆ दिव्य मुळविग्रह प्राप्तिगू शियःपतिय कैरगळिगॆ उपयुक्तवाद उपकरणगळागियू आगुवं थाद्दु. आ दिव्य वैकुण्ठदल्लिरुव स्वामिय नित्यानायिनियाद लक्ष्मि युक्तनागि लक्ष्मिगू इतररिगू अति मनोहरनागियू इरुत्तानॆन्दु हेळुवदक्कागि लक्ष्मीकान्तम् ऎम्ब प्रयोगवु. द्वयवु पूर्व खण्डदिन्द उपायस्थितियल्ल, उत्तरखण्डदिन्द उपेय (प्राप्य) स्थितियल्लि हीगॆ यावागलू लक्ष्मीविशिष्टवाद रूप उळ्ळवनॆन्दु तिळिसुत्तदॆ. प्राप्यदल्लि लक्ष्मी विशिष्ट नॆम्बभिप्रायवन्नु नम्म पङ्गड दवरॆल्ला ऒप्पिरुत्तारॆयादुदरिन्द इदु निर्विवाद विषयवु. ई श्रीयःपतियॆन्तवनॆन्दरॆ विचित्र विभूतिकम् ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. विभूति ऎन्दरॆ नियाम्यवर्गवु. ऒब्ब साधारणनाद राजने अनेक विचित्र नियाम्यवर्गवुळ्ळवनागिरुवाग राजाधिराजनन्नु इन्नु केळ बेके ? ई लीलाविभूतिये बहु विचित्रवु आ नित्यविभूतियु विचित्रतॆयुळ्ळद्दागिरुवदरल्लि सन्देहविल्लवु. हीगॆ आतनु उभयविभूतिनाथनु. इदन्नु ज्ञानिगळाद महाभागवतरु बहु वागि पुराणेतिहासगळल्लि वर्णिसिरुत्तारॆ. ई दिव्य वैकुण्ठवन्नु श्री भाष्यकाररु श्री वैकुण्ठगद्यदल्लि सङ्ग्रहवागि वर्णिसिरुत्तारॆ. साविर कम्भगळुळ्ळ ई आनन्दमयवॆम्ब हॆसरुळ्ळ महामण्टपदल्लि श्री पर वासुदेवनु लक्ष्मियुक्तनागि हेगॆ अनन्त गरुडादि नित्यरुगळिन्दलू सेवितनागिरुत्तानॆम्बुदु आ श्री वैकुण्ठगद्य पठनदिन्द व्यक्तपडुत्तदॆ. * ई मुक्तियन्नु हॊन्दुववनु प्राप्यवन्नु कडॆगॆ होगि सेरुवनु; हागॆ सेरलु मार्गवन्नु तोरिसिदवरु यारु ऎन्दरॆ, सचिव गमि तः, सत्येश्वरन आज्ञाधारकराद अतिवाहिकरिन्द सत्करिसल्पट्टु मुख्य वागि अमानवनिन्द करॆदुकॊण्डु होगल्पट्टवनागि प्राज्यवन्नु हॊन्दुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु. ई मुक्तात्मन ऐश्वर वॆन्थाद्दॆम्बुव दन्नु मुन्दॆ सङ्गहवागि तिळिसुत्तारॆ. प्रथमतः ईतनिगॆ हॊसदागि एनादरू स्वरूप प्राप्तियुण्टागुत्तदॆये अथवा मॊदलु इद्दुदे ईग चॆन्नागि प्रकाशिसुत्तदॆये ऎम्ब चक्कॆयल्लि, हॊसदागि एनू इन्नू________________
१८२२ श्री मद्र हस्यत्रयसारे उण्टागुवदिल्लवु. ईतनिगॆ नैजवागि इद्द स्वरूपवु प्रकृति सम्बन्ध दिन्द इदुवरिविगू तिरोहितवागिद्दुदु, ईग प्रकृति सम्बन्धवू करवू तॊलगिदुदरिन्द, हिन्दिन स्वस्वरूपवे आ विद्भविसुत्तदे विना हॊसदागि एनू उत्पत्तियागुवदिल्लवु. ई अभिप्रायवु “एव मे वैष सम्प्रसादोz स्माच्छरी रात्समुत्ताय परञ्ज्योतिरुप सम्पद्य सैनरूपेणाभि निद्यते” ऎन्दरॆ “हागॆये. ई जीवा तनु ई शरीरवन्नु बिट्टु हॊरटवनागि, परञ्ज्योतिस्साद परम पुरुषनन्नु सेरि, तन्न स्वकीयवाद स्वरूपद आविराववन्नु हॊन्दु तानॆ” ऎन्दु छान्दोग्य (८ - १२- २) दल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. अदन्ने “सम्पद्याविध्याव सैन शब्दात्” ऎम्ब व्यास सूत्रवु उपपादि सुत्तदॆ. ई अभिप्रायगळिगनुसारवागि इल्लियू “सम्पद्याविश्ववत्स हज कृति” हिन्दॆ प्रकाशिसदे इद्द स्वरूपवु, ईग परमात्मनॊन्दिगॆ सेरुवदरिन्द, तनगॆ मॊदलु सहजवागिद्द स्वरूपवु ईग आविवि सुत्तदॆ, ऎन्दरॆ आत्माविन धर भूतज्ञानवु एनॊन्दु तडॆयू इल्लदॆ, स्वयं प्रकाशवागि कङ्गॊळिसुत्तदॆ. ऎम्ब भाववु. हीगॆ हेळलु साधनवेनॆन्दरॆ श्रुतियल्लि सैनरूपेण ऎम्बल्लि सैन ऎम्ब शब्द विरुवदरिन्द ; आदुदरिन्दले इल्लि सहजाकृतिः ऎम्ब प्रयोगवु, ऎरडनॆय विषयवेनॆन्दरॆ- स्पुटतद पृथक्सिद्धि- ई मुक्तन यावागलू सश्वेश्वरनिगॊन्दिगेने इरुव स्थितियुळ्ळवनागुवनु. ई अभिप्रायवु व्यास सूत्रद अविभागेन दृष्ट त्वात् ऎम्बधिकरणदल्लि उपपादितवागिरुत्तदॆ. ई आवित निजस्वरूपनाद मुक्तनेनु परमात्मनिगिन्त तानु बेरॆये ऎन्दॆनिसि ब्रह्मानुभववन्नु माडु तानॆये, अथवा तानु परमात्मनिगॆ आत्मावागिरुवदरिन्द अविभाग दिन्द विभागविल्लद हागॆ अप्प थक्किद्द विशेषणवु तानु ऎन्दु भाविसि, अहम्ब्रह्मास्मि ऎन्दु परब्रह्मानुभववन्नु माडुत्तानॆये ऎम्ब सन्देहदल्लि, ई ऎरडने अभिप्रायवे समञ्जसवादुदॆन्दू, “अहं ब्रह्मास्मि” ऎन्दे अनुभविसुवनु. मनुष्यहु ऎम्बल्लि शरीर वाद मनुष्य देहक्कू, शरीरियाद आत्मानाद अहम् ऎम्बुवदक्कू हेगॆ सामानाधिकरणवो हागॆये, अहम्ब्रह्मास्मि ऎम्बल्लियू शरीरवाद अहम् ऎम्बुवदरिन्द हेळल्पट्ट जीवात्मनिगू, ब्रह्म________________
(9) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८२३ शब्ददिन्द हेळल्पट्ट शरीरि ऎन्दरॆ आत्मावाद परब्रह्मक्कू सामानाधि करण्यवु. अहं ब्रह्मास्मि ऎम्बुदरर्थवु अहं ब्रह्मात्मकः ऎम्ब दागि ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. श्रीमच्छङ्कराचार्यरु हेळुव हागॆ जीवात्मने परमात्मनल्लवु; स्वरूपैक्य अर्थवल्लवु. “इदं ज्ञान मुपाश्रित्य नमसाधर मागताः” (१. १४, २) ऎम्ब गीता वाक्यवु जीवात्मनिगॆ स्वस्वरूपा विर्भाव मूलक गुणाष्टक उण्टागु वदरिन्द, आतनिगॆ परब्रह्मनॊन्दिगॆ समान भाववन्नु बोधिसुत्तदॆ. हागॆये “यदापश्यः पठ्यते रुक्कवर कारखाशं पुरुषं ब्रह्मनिम् । तद विर्द्वा पुण्यपापे विधय निरञ्जनः परमं साम्य मुपै ति” (मुण्डक ३. २. ३) “यावाग ब्रह्मदर्शि याद उपासकनु, आदित्यवर्णम् ऎन्दु हेळिरुव हागॆ देदीप्यमान वाद दिव्यमङ्गळ विग्रहयुक्तनाद, जगत्कर्तावाद, जगन्नि यामकनाद परम पुरुषनाद, ब्रह्मशब्द वाच्यनाद, प्रकृतिगॆ कारणभूतनाद पर ब्रह्मनन्नु साक्षात्करिसुवनो, आग पुण्य पापगळॆरडन्नू कळॆदु कॊण्डु प्रकृतिसम्बन्धविल्लदॆ परिशुद्धनागि, अपहतपात्मत्यादि गुण ष्टकगळुळ्ळवनागि, परब्रह्मनॊन्दिगॆ समानभाववन्नु हॊन्दुवनु ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. तैत्तरीय आनन्दवल्लियू “सोन्नु ते र्सा कार्मा ब्रह्मणासह विपश्चितेति” “कल्याणग-णविशिष्टनाद परब्रह्मनन्नु आतनॊन्दिगॆ अनुभविसुत्तानॆ’’ ऎन्दु हेळुत्तदॆ. इद रिन्द अपृथक्सिद्ध विशेषणनाद जीवात्मनु विशेष्यवाद शियः पतियॊं दिगॆ समानानन्दवन्ननुभविसुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु. मूरनॆय विषयवेनॆन्दरॆ :- सिद्धद्दु हाष्टक तत्सलः . ईतनिगॆ परब्रह्म सम्पत्तियुण्टादरॆ स्वस्वरूपाविर्भाव उण्टागुत्त दॆन्दु हेळल्पट्टितु. आतनिगॆ नैजवाद स्वरूपाविर्भववु मेलॆ हेळिद छान्दोग्य ८. ७. १ रल्लि हेळल्पट्ट ऎण्टु गुणगळ आविर्भा ववे अथवा (२) ज्ञानस्वरूपविर्भाव मात्रवे (३) इल्लवे इवॆ रडर आविर्भाववे ऎम्ब सन्देहदल्लि व्यासशिष्यराद बैमिन्याचाररु मॊ लिन अभिप्रायवन्नू, औडुलोम्याचाररु ऎरडने अभिप्राय वन्नू अवलम्बिसिदरु. श्री व्यासमहर्षियु इवरिब्बरॆभिप्रायवू सरियल्लवॆन्दु हेळि, ई मूरनॆय अभिप्रायवन्नु तिळिसि स्वस्वरूपावि________________
१८२४ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे र्भावदल्लि इवॆरडू सेरिदवॆन्दु उपपादिसिरुत्तारॆ. ई अभिप्राय वन्नु तिळिसुवदक्कागि सिध्यद्दु णाष्टकनु ई मुक्तनु ऎन्दु हेळिदरु. इष्टु मात्रवे अल्लदॆ आ आविर्भविसिद ई ऎल्ला गुणगळिन्द युक्त वाद स्वरूपदिन्दुण्टागुव फलवुळ्ळवनू आगुत्तानॆन्दु तत्सलः ऎन्दु प्रयोगमाडिरुत्तारॆ. आ फलगळु यावुवॆन्दरॆ :-ई मुक्त नू सत्य सङ्कल्पनागुवदरिन्द, “सज्जादेव तच्छुतेः” ऎम्ब व्यास सूत्रदल्लि हेळिरुव हागॆ, ई सत्य सङ्कल्प महिमॆयिन्दले इन्या वुदरपेक्षॆयू इल्लदॆ, “सा देवास्य पितरस्समुष्ण” (छां. ८. २ १) “आ मुक्तन सङ्कल्प मात्रदिन्दले आतन पितृगळु उण्टागु वरु” ऎन्दु श्रुतियल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. मत्तेनॆन्दरॆ, ईतन धर्म भूतज्ञानवु बहु प्रकाशवादुदागि विभ वागुवदरिन्द स एकधा भवति, श्रीधाभवति (छां, २६, २) ऎन्दु हेळिरुव हागॆ अनेक देहगळन्नु पडॆदु धर्मभूतज्ञानद व्याप्तियिन्द अवुगळॆल्ला सत्तॆ यन्नु हॊन्दुव हागॆ माडिकॊळ्ळबहुदु. ई देहगळू कूड शुद्ध सत्वमयवादरू अनित्यवागिरलि ऎम्ब सङ्कल्पदिन्दुण्टादुवादुद रिन्द अनित्यगळागुववु. सश्वरनु माडुव अवतार परिसमाप्ति कालदल्लि आतन दिव्यमङ्गळ विग्रहवेनागुत्तदॆ ऎम्ब प्रश्नॆगॆ उत्तरवु इदरिन्द दॊरकबह.दु. सरेश्वरनु अवुगळु अनित्यवागिरलॆन्दु सङ्कल्पिसिदुदरिन्द अवुगळिगू विकारत्ववू अन्त्यवू उण्टु. जनन उण्टॆन्दु भाविसिद नन्तर अन्त्य उण्टॆन्दु भाविसलु एनॊन्दू तॊन्दरॆयिल्लवु सौभरि मॊदलाद ऋषिगळिगॆ धरभूतज्ञानवु तुम्बा विकासवन्नु हॊन्दिदुदरिन्दले अवरु आ ज्ञानद व्याप्ति मूलक ऐवत्तु शरीरगळन्नु धरिसि, मान्धातरायन ऐवत्तु राजकन्निकॆगळन्नू मदुवॆ माडिकॊण्डु अवरुगळॊन्दिगॆ रमिसिदरॆम्ब इतिहास उण्टु. हागॆये मुक्तनिगू तन्न सत्य सङ्कल्पतॆयिन्द अनेक शरीर परिग्रहण माडुव फलवुण्टागुत्तदॆन्दु हेळल्पट्टितु. मत्तु इन्तह सङ्कल्पदिं दले ई मुक्तनु “जक्षत् क्रीर्ड रममाण” (छां, ८. १२. ३) ऎन्दु हेळिरुव हागॆ सर्वविध भोगवन्नू हॊन्दबहुदु. गुणाष्टक फलवन्नॆल्ला ई मुक्तनु हॊन्दुवनु ऎन्दु हेळल्पट्टितु. हीगॆ हीगॆ ई मुक्तन सङ्कल्पदिन्दले इवुगळु प्राप्तवागुत्तवॆन्दरॆ________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८२५ कॆलवु पूर्वपक्षगळु तलॆदोरुत्तवॆ. १. ईतनिगॆ सङ्कल्पदिन्दले इवुगळु उण्टागुत्तवॆयो, इतर सहायवेनू बेडवो, ऎन्दरॆ इतर सहायवेनू बेडवॆन्दु सङ्कल्पा देव, सङ्कल्प मात्रदिन्दले उण्टागुत्तदॆन्दु हेळि, श्रुतियु सस्वराद्भवति ईतनु यावुदक्कू, कर्मक्कू कूड वश्यनल्लवॆन्दु हेळल्पट्टितु. आगलि हीगॆ सर्व स्वातन्त्र हेळितल्ला शास्त्रवश्यतॆयू इल्लवो ऎन्दरॆ अदू इल्लवॆन्दु हेळल्पट्टितु. हागादरॆ स्वच्छा प्रवृत्ति, अधर्म प्रवृत्तियो ऎन्दरॆ ईतनिगॆ स्वरूपविर्भाव उण्टागुवदरिन्द प्रतिकूल प्रवृत्तिये इल्लवु. प्रतिकूल प्रवृत्ति इद्दरॆ ताने, शास्त्रावादश स्त्रद आवश्यक तॆयु ; अन्तह प्रतिकूलतॆये इल्लदुदरिन्द शास्त्रवश्यतॆयिल्लवु आदुद रिन्द सस्वराद्भवति - अकर्मवश्यनागि स्वतन्त्रनागिरुवनु ऎम्ब भाववु. आदरॆ स्वतन्त्रनॆन्दरॆ परमात्मनिगू अधीनवल्लवो ऎन्दरॆ भगवन्तनिगॆ मात्र पारतन्त्रवे विना इन्यारिगागलि यावुदक्कागलि अधीननल्लवु. “ अत एवचनन्याधिपतिः” ऎम्ब सूत्रदल्लि इदु उप पादिसल्पट्टिरुत्तदॆ, (२) ई मुक्तनु अनेक शरीरगळन्नु सङ्कल्पदिन्दॆत्त बहुदु ऎन्दु हेळिदनन्तर, मुक्त दॆशॆयल्लि ई आत्मनिगॆ शरीर उण्टे इल्लवे ऎम्ब सन्देहदल्लि बादरि ऎम्बुवरु शरीरविल्लवॆन्दू, जैमिनियवरु “ एकधा भवति त्रिधाभवति” ऎन्दिरुवदरिन्द उण्टे उण्टॆन्दू हेळुव पक्ष गळन्नू श्री व्यासमहर्षियु चर्चिसि, मुक्तनु तन्न सङ्कानुसार अशरीरनू आगबहुदु, सशरीरनू आगबहुदॆन्दु तीर्मान माडि रुत्तारॆ. हीगॆ तन्न सङ्कल्पानुसार ऎत्तिद शरीरदिन्दलू मत्तु परमात्म ननग्रहिसिद शरीरदिन्दलू इवनु परिपूर्ण परब्रह्मानुभव रूप भोगवन्नू हॊन्दुवनु ऎन्दु हेळिदन्तायितु. ई भोगवु ऎन्दरॆ आनन्दवु ऎन्थाद्दॆन्दरॆ भोगे परमं साम्यम् ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ मॆलॆ उदाहरिसिरुव “निरञ्जनः परमं साम्यमुति” ऎम्ब छान्दोग्य श्रुतियु इदक्कॆ आधारवु. “साम्यमुति” ऎन्दु हेळि रुवाग अदैतिगळ स्वरूपैक्यवॆम्ब भाववू असमञ्जसवॆम्बुदू, हागॆये दैतसिद्धान्तिगळ आनन्द तारतम्यवू असमञ्जसवॆम्बुदू________________
१८२६ श्री मद्र हस्यत्रयसारे तोरिबरुत्तदॆ. ई साम्यवु याव सन्दर्भगळल्लि ऎन्दरॆ भोगे भोगदल्लि मात्र, आनन्ददल्लि मात्र साम्यवे विना एक व्यापार गळल्लि इल्लवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. ब्रह्मसूत्रद जगद्या पार वराधिकरणदल्लि श्री व्यासर मुक्तनिगॆ जगतृष्टि स्थिति नियमन लयादिगळल्लि सम्बन्धविल्लवॆन्दु स्थापिसिरुत्तारॆ, एकॆन्दरॆ “यतो ना इमानि भूतानि जाय” इत्यादि सृष्टि क्रमवन्नु हेळुव श्रुतिगळल्लि परम पुरुषनिगॆ मात्रवे सम्बन्ध हेळिरुवदरिन्द आ प्रक रणगळल्लि मुक्तन हॆसरु अल्लिल्लददरिन्दलू ई साम्य रूप मुक्त श्वरवु जगद्वा पार वरवादुदु. हीगॆये अनेक श्रुति स्मृ गळु उपपादिसुत्तवॆ. हागादरॆ इन्नु एतरल्लि साम्यवॆन्दरॆ, “भोग मात्र साम्य लिस्ताच्च” (४. ४. २१.) ऎम्ब सूत्रदल्लि “सोरुते र्सा कार्मा सह ब्रह्मणा विपश्चिता” (तै. आनन्द २ १.२) ऎम्ब तैत्तरीय वाक्यवन्ननुसरिसि परिपूर्ण परब्रह्मानुभवरूप आनन्दवू परब्रह्मानन्दवू समवॆन्दु ग्रहिसतक्कद्दु ; आदुदरिन्द मुक्तनिगॆ परम पुरुष साम्यवन्नु हेळुवदरल्लियू, सत्य सङ्कल्प दल्लि इब्बरू समवॆन्दु हेळुवदरल्लू परम पुरुषनिगॆ सृष्टि नियमनलयादिगळन्नु बोधिसुव श्रुतिगळिगॆ विरोधविल्लदन्तॆ अन्न यिसुवदु युक्तवु. श्रुतिगळिगॆ परस्पर विरोधवन्नु कल्पिसुवदु अन्यायवु. आदुदरिन्द स्वामि देशिकरवरु, मुक्तनु परमं साम्यं भोगे भजति ऎन्दु हेळिदरे विना सुम्मनॆ परमं साम्यं भजति ऎन्दु हेळलिल्लवु. यावाग भोगमात्रदल्लि साम्य वॆन्दायितो, मिक्क जगद्या पारादिगळिल्लवॆम्बुवदु सुस्पष्टवु. हीगॆ मुक्तश्वरवन्नेनो मुक्तनु हॊन्दबहुदु. यावुदादरू ऒन्दु कारणदिन्द दिव्य वैकुण्ठवासवु तप्पि पुनः इल्लिगेनादरू बरुव हागॆ आदीतो ऎम्ब सन्देहदल्लि श्री निगमान्त देशिकरवरु हेळुत्तारॆनॆन्दरॆ :- ई भगवत्पाम्य रूपभोगवु, “ निवृत्ति कथो जितम्” पुनरावृत्ति प्रसङ्गवे इल्लदुदॆन्दुपदेशिसिरुत्तारॆ. मुक्तने ऒन्दु वेळॆ अपेक्षिसि ई लीलाविभूतिगेनॆ एकॆ बरकूडदु ऎम्ब शङ्का उण्टादरॆ, ई चॆ तननु तानु हिन्दॆ अनुभविसिद नाना विध दुःखगळन्नॆल्ला तिळिदवनागि, दुःखलेशक्कू कूड अवकाशविल्लद, S 66 ई________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार । १८२७ अनवधिकवाद निरतिशय परिपूर्ण ब्रह्मानुभववन्नु हॊन्दिद नन्त रवू आ नरक रूपद अवस्थॆयन्नु ऎन्दिगादरू अपेक्षिसुवने ? ई अभिप्रायवन्नु सश्वरने अर्जुननिगॆ उपदेशिसिरुत्तानॆ. “मा मुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयम शाश्वतं ! नाप्पुवन्ति मह त्मान संसिद्धिं परमाङ्गताः । आब्रह्म भुवनालोकाः पुन रावरि नोरुन ! मावु पेत्यतु कौस्त्रीय पुनर्जन्म न मावुचेत्यतु विद्यते ” (गी ८. १५-१६) नन्नन्नु महा कष्टदिन्दलू प्रयास दिन्दलू श्रद्धॆयिन्दलू ऐकान्त्यदिन्दलू भजिसि उपायानुष्ठान माडि नन्नन्नु पडॆदु, नन्न स्वरूप ज्ञानादिगळन्नु यथावत्तागि तिळिदु, नन्नन्नॆ परमप्रियवागि भोग्यवॆन्दु भाविसि, नन्नन्नु बिट्टरॆ तनगॆ सत्तॆये इल्लवॆन्दु चन्नागि अरित महात्मरु, परमैश्वर रूप सिद्धियन्नु हॊन्दिद नन्तर पुनः पुनः जन्म मरणादिगळिगाकरवागि रुव, द ःखक्कॆ तौरुमनॆयागिरुव, अस्थिरवाद, ई लीलाविभूतियन्नु ऎन्दिगू अपेक्षिसुवदिल्लवु, हॊन्दुवदू इल्लवु. चतुर्मुख ब्रह्मन लोकवाद सत्यलोक मॊदलुगॊण्डु ऎल्ला लोकगळल्लू आवर्ति युण्टु, अवुगळॆल्ला अस्थिरवाद ऐश्वरवन्नु कॊट्टु अदु मुगिद नन्तर अवु आवर्तिगॆ हेतुभूतवादवुगळागुत्तवॆ. ई नित्यविभूति यल्लिरुव तन्नन्नु हॊन्दिदवरु, तानु सर्वज्ञनागि, सत्य सङ्कल्पनागि, परमकारुणिकनागिरुवदरिन्द पुनर्जन्मवन्नु ऎन्दिगू हॊन्दुवदिल्ल वॆन्दु हेळिकॊण्डिरुत्तानॆ. हीगॆ सत्येश्वरने हेळिरुवदरिन्द, कार णान्तरदिन्द सश्वेश्वरने एनादरू ई मुक्तनिगॆ आवृत्तियन्नुण्टु माडिबिडुवनो ऎम्ब शङ्कॆयु दूरीकृतवादुदु. हीगॆ “निवृत्ति कथोजितं” ऎम्बुदरिन्द, छान्दोग्यद उपसंहार वाक्यवाद “सखवं वार्य यावदायुषं ब्रह्मलोक मभि सम्प द्यते न च पुनरावरते” ऎम्बुदरभिप्रायवन्नू ब्रह्मसूत्रगळ कॊने सूत्रद अभिप्रायवन्नू उपदेशिसिरुत्तारॆ. ई श्रुत्यर्थवे नॆन्दरॆ, प्राणविरुव तनक हीगॆ परम पुरुषोपासकनागिद्दवनु दिव्य वैकुण्ठवन्नु हॊन्दुवनु, अवनिगॆ पुनरावर्ति इल्लवॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. आवृत्तिगॆ मुक्तनिगेने इच्छॆयॆन्दिगू उण्टागुवदिल्लवु. परम कृपाळुवाद सरेश्वरनिगॆ “ज्ञानीताव मेमतं” ऎन्दु 66 66________________
१८२८ श्रीमद्रहस्यत्यसारे परिपूर्ण ब्रह्मानुभव स्थितिः कीदृशी ? इग्गति विशेषत्ताले शॆनवनुडैय परिपूर्णानुभव इरुक्कु मूडि ऎष्टने यॆन्निल्-(१) “ अनैत्तु लकु मुडैय हेळिदवनिगॆ इच्छॆयु ऎन्दिगू उण्टागलारदु, कर्मवशदिन्देना दरू उण्टादीतो ऎन्दरॆ सम्पूर्णवागि उच्छिन्न कर्मबन्धवादुद रिन्द आवर्ति शङ्का इल्लवे इल्लवॆम्बभिप्रायवु. हीगॆ मुक्तनु दिव्य वैकुण्ठदल्लि दिव्यालङ्कारगळिन्द कूडिद आनन्दमय सभॆयल्लि प्राप्यराद दिव्यलोक दम्पतिगळन्नु हॊन्दि, तनगॆ अवरुगळु आत्मावॆन्दु तिळिदवनागि गुणाष्टकगळॊन्दिगॆ कूडिद स्वस्वरूपविर्भाववन्नू अवुगळिन्द प्राप्तवागुव फलगळन्नू हॊन्दि दवनागि, पुनरावृत्ति शङ्काविगॆ कारणविल्लदवनागि, तन्न सङ्कल्पानु सारवू सत्येश्वर सङ्कल्पानुसारवू शरीरगळन्नु धरिसुवनागि तन्न इष्टानुसार भोगगळन्नु अनुभविसुवनागि भोगमात्रदल्लि स श्वरनिगॆ समानवाद आनन्दवन्नु हॊन्दिदवनागि लोकदम्पतिगळिगॆ कैङ्कर्य माडुव साम्राज्य पदवियन्नु पडॆदवनागि परिपूर्ण ब्रह्मानुभव रूप मुक्तिश्वरवन्नु हॊन्दुवनु ऎम्बुदु ई श्लोक तात्पर्यवु, परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद प्रकारवॆन्थाद्दु ? 3 सङ्ग्रह श्लोकदल्लि हेळिदुदन्ने सविस्तरवागि हेळलु पक्रमिसि प्रथमतः परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु ऎन्थाद्दॆन्दु तिळिसुवरागि परि पूर्ण ब्रह्मानुभव शब्ददर्थवन्नु तिळिसि ई अधिकारद हॆसरिन सार्थ क्यवन्नु तोरिसुत्तारॆ :- इति विशेष त्तालॆ - ई अर्चिरादि गति विशेष मूलकवागि, शॆन्नवनुडैय . प्राप्यवन्नु हॊन्दिद मुक्तन, परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु, इरुक्कुन्नडि - इरुव स्थितियु, ऎण्णने यॆन्निल् - ऎन्थाद्दॆन्दरॆ :- अनैत्तु लकु मुडैय - ई ऎल्ला लोकगळिगू नियामकनागि स्वामियागिरुव ऎन्दरॆ उभय विभूति________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः अरविन लोशन नैत्ति नैत्तनॆयुं विडाळ् इत्यादिगळिरडिये स देश सत्व काल सरावस्त्रगळिलुं सश्वरन् अनन्त घान विग्रह गुणविभूति चेषि तज्ञ लॊग्रुं कुरै यामल् निरतिशय भोग्यवाग विषया करित्तुकॊण्डिरुकु, Обличия родит मुं नई রন- नायकनागिरुव, अरविन्द लोशन-पुण्डरीकाक्षनन्नु, इदरिन्द सत्वरन्नू तन्न कण्णिन सौन्दय्यदिन्द आकर्षिसुव शिय पतियु ऎम्ब भाववु, ई कण्णु उपलक्षणवागि साक्षान्मन्मथमन्मथः ऎन्दु हेळि रुव हागॆ ऎल्लरन्नू आकर्षिसुव रूपलावण्यगळिन्द ऒप्पिरुववनॆम्ब भाववु, तिनत्त नैयुं डाळ्, तिन - बहळ सूक्ष्मवागिरुव धान्य, इदरिन्द तिनत्त नैयुम्-स्वल्पवादरू, अथवा ऒन्दु क्षणकाल नादरू, विडाळ - श्रीयःपतियन्ननुभविसदे बिट्टिरलारळु. ईश्वर निगू जीवनिगू भर्तृ भारा सम्बन्धविरुवदरिन्द, महापतिव्रतॆ याद स्त्रीयु हेगॆ पतियन्नु ऒन्दु क्षण कूड अगलदॆ, आतन लावण्य, गुण, विभूति व्यापारगळॊन्दिगिरुव आ तन्न स्वामियॊन्दिगॆ अनुभविसुत्ता आनन्दिसिकॊण्डिरुव हागॆ ऎम्बभिप्रायवु. दक्कॆ “ अर्व शेर् तिरुक्कोळू म नैक्कु वान्सळॆयु निन्नॆ याळ् शॆल्लवैत्तनळे” ऎन्दिरुत्तदॆ. अर्व शेर् - अन्तह श्रियः पतियन्नु होगि सेरबेकॆन्दु, तिरुक्कोळूरिगॆ, शॆल्लवैत्त नळे होगि सेरिदळल्लवे. मनैक्कु - अदरिन्द तन्न मनतनक्कॆ उण्टागुव, र्वा पळिनिनैयाळ् - दॊड्ड अपराधवन्नु ऎणगळु ऎम्बर्थवु” इत्यादिगळिरडिये - इवे मॊदलादवुगळ हागॆ, समस्त देश काल अवस्थॆगळल्लि, सरेश्वरन् - सश्वेश्वरनन्नु, अनन्तान - कॊनॆ इल्लदे इरुव, दिव्यमङ्गळ विग्रहगळेनु, गुणगळेनु, चेष्टि तज्ञ इल् व्यापारगळेनु, इवुगळल्लि, ऒनु - यावुदॊन्दू, कुरैया मल् - न्यूनतॆयिल्लदॆ, निरतिशय भोग्यवाग - अतिशयवादुदे इल्लदिरुव सर्वश्रेष्ठ भोग्यवागि, विषयाकरित्तु - साक्षात्करिसि कॊण्डु, इरुक्कुम् इरुवन्तह स्थितियागिरुत्तदॆ. कॆलवु कोश गळल्लि “सश्वरनै अनन्तङ्गळान विग्रहगुण चेष्टितङ्गळिन्नु n________________
(१८३० श्रीमद्रहस्य त्रयसारे कुरैयामै निरतिशय भोग्यवाग विषयाकरित्तु कॊण्णु निरुम्” ऎम्ब पाठान्तर उण्टॆन्दु सारविवरणॆयवरु अप्पणॆ कॊडिसिरुत्तारॆ ; आ सत्येश्वरन अनन्तगळाद दिव्यमङ्गळ विग्रहगळु, कल्याणगुण, दिव्य चेष्टितगळु इवुगळल्लि यावुदॊन्दरल्लू न्यूनतॆ यिल्लदिरुविकॆयन्नु निरतिशय भोग्यभूतवागि साक्षात्करिसिकॊण्डु निल्लुवदु.” ई वाक्यदिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभव वॆन्दरेनॆन्दु हेळल्पट्टितु. इल्लि साक्षात्कारवु परिपूर्णनाद परब्रह्मन विषय वादुदु. आतनु अनन्तगळाद विग्रह, गुण, विभूति चेष्टितगळिन्द युक्तनागि परिपूर्णनु. अन्तह परब्रह्मनन्नु सर्वदेश सर्वकाल सर्वावस्थॆगळल्लि हीगॆ परिपूर्णवागि भोग्यवादुदागि साक्षात्करि सुवुदे, परिपूर्ण ब्रह्मानुभववॆन्दु हेळल्पट्टितु. इल्लिन भोगा नुभववु अल्लिय अनुभवद हागल्लवु. इल्लि, ई कालदल्लि, अथवा ई अवस्थॆयल्लि सुखविरबहुदु. इन्नॊन्दु प्रदेशदल्लि, इन्नॊन्दु काल दल्लि अथवा इन्नॊन्दवस्थॆयल्लि सुखवु बयलागबहुदु, दुःख प्राप्तियागबहुदु. इल्लि “सुखस्यानन्तरं दुःखं, दुःखस्या नन्तरं सुखं” ; परमपददल्लि हीगल्लवु, अविच्छिन्नवागि सर्वदेश सर्वकाल सर्वावस्थॆयल्लियू परिपूर्ण ब्रह्मन अनुभववु, परिपूर्ण वागि भोग्यवागिरुवदु. सत्व देश सर काल सावस्थॆगळिलुम् भोग्यवाग ऎन्दु हेळिरुवदु अनन्त भोग्य वॆन्दू ऎन्दरॆ परि पूर्णवागि भोग्यवॆन्दु हेळुवदर व्याख्यानवु. आदुदरिन्द परि पूर्ण ब्रह्मानुभव ऎम्बुवदरल्लि परब्रह्मनू अनन्तगळाद विग्रह गुण विभूति चेष्टितगळुळ्ळवनादुदरिन्द परिपूर्णनू, भोग्यवू सर्वदेश सर्वकाल सर्वावस्थॆयल्लि इरुवदरिन्द परिपूर्णवादु दॆम्बभिप्रायवू श्री यतिवर्यरु अनुग्रहिसिरुव श्री वैकुण्ठ गद्य दल्लि तियः पतियु विग्रह गुण विभूति चेष्टितगळल्लि परिपूर्णनॆम्ब भाववन्नू, “सत्वदेश सर काल सावस्थॆचि तात्यन्त शेषभा वाय स्वीकृतोनुज्ञात” ऎम्ब प्रयोगवन्नू सह काण बहुदु. हीगॆ मुक्तनिगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभव उण्टादरॆ, छान्दोग्य श्रुतियु “निरञ्जनः परमं साम्यमुति” ऎम्बल्लि ईश्वरनॊन्दिगॆ________________
(2) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८३१ परम साम्य श्रुत्यभिप्रायः ; भगवत्सरूपं भोग्यम्, इव्वनुभवम् ईश्वरनु कुम् इवनुक्कु अत्यन्त तुल्य वागै याले परमसाम्यं शॆल्लुगिरदु. (१) “उण 66 परम साम्यवन्नु बोधिसुवदरिन्द, “तथाविध भगवदनुभव जनि तानवधिकातिशय प्रीति किरि ताशेष रचि ताशेष शेष क र ति रूप नित्य किङ्क भवानि” ऎन्दु हेळिददु हेगॆ ? ताने पर मात्मनिगॆ समानवागुवाग परिपूर्ण ब्रह्मानुभववॆन्दरेनु ? ऎम्ब शङ्काविगॆ मुन्दिन वाक्यदिन्द समाधान हेळुववरागि परम साम्य वन्नु हेळुव श्रुत्यभिप्रायवन्नु तिळिसुत्तारॆ. परमसाम्यवन्नु हेळुव श्रुतियभिप्रायवु, भगपरूपवु भोग्यवादुदु, आ इव्वनुभवम् - ई भोगवू अदरिन्दुण्टागुव आनन्दवू सह इल्लि अभिप्रायवु, इवनुकु - ई मुक्तनिगू, ईश्वरनुक्कुम् - सश्वेश्वरनिगू, अत्यन्त तुल्य मागैयाले – हॆच्चागि समवादुद रिन्द, परमसाम्य वॆन्दु, कॊल्लुगिरदु - हेळुवन्थाद्दागिरुत्तदॆ. यावुदु ऎन्दरॆ “निरञ्जनः परमं साम्य मु ति” ऎम्ब श्रुतियल्ल, “ममसा धरमागताः” इत्यादि स्मृतियल्लि तोरिबरुव प्रमाणवु ऎन्दु इट्टुकॊळ्ळतक्कद्दु. सर्वज्ञतॆयू उभयत्र साधारणवादुदरिन्दलू, आ सार्वज्ञतॆयु अनुभवक्कॆ कारणवागि, तन्मूलक आनन्दवू उण्टागुवदु इब्बरिगू साधारण वादुदरिन्दलू, आनन्ददल्लि साम्यवॆम्ब भाववु. ई परम साम्य वेनु इब्बरिगू ऎल्ला विधदल्लू समवे ऎन्दरॆ भोग-आनन्द मात्रदल्ले विना इतर विषयगळल्लिल्लवु ; भगवन्तनिगॆ ई सत्ववू तन्नदागि अदरल्लि ई मुक्तरू सेरिरुवदरिन्द आनन्दवु; ई दासनाद मुक्तनिगादरो ऎल्लवू तन्न स्वामियाद सत्येश्वरनदे ऎम्ब (१) तिरुवाय मॊळॆ १. १. २,________________
श्रीमद्र हस्यत्रयसारे मुळु नलम्” ऎन्नुम्, (२) “निरस्तातिशयाह्लाद सुखभा आनन्दवु. इवॆरडू अत्यन्त तुल्यवॆम्ब भाववु. अत्यन्त तुल्यमा गैयाले ऎन्दु हेळिदुदरिन्दले सर्व विषयदल्लू तुल्यवल्लवॆम्बुदु तोरिबरुत्तदॆ. ई इब्बर अनन्दवु समवादुदरिन्द, अत्यन्त तुल्क वॆन्दू परमसाम्य वॆन्दू हेळल्पट्टितु. व्यत्यास याव सन्दर्भ गळल्लॆम्बुदु मुन्दॆ हेळल्पडुत्तदॆ. भगवत्सरूपवु तुम्बा भोग्य वादुदॆम्बुदक्कॆ नम्माळ्वारवर पाशुरवन्नू विष्णु पुराण श्लोक वन्नू उदाहरिसिरुत्तारॆ. नम्माळ्वारवर तिरुवाय् मॊळिय ऎरड नॆय पाशुरवु :- कळॆदु मननक मलमर मलकै बॆळुदरु । मननुणरळविर्ल पॊरियुण वैयिल । निननुण मुळु नल मॆदिरिगळ विनु । मिननिल नॆननुयिर् मिगुनरै यिलने ॥ इदरर्थवेनॆन्दरॆ :- मनस्सिन मलगळाद काम, क्रोध, लोभ, हर्ष, मान, मद, अगुण, विषाद वॆम्ब ऎण्टन्नू कॊण्डु, हागॆ मलगळु नाशवागुवदरिन्द प्रकाशिसि वृद्धि हॊन्दुव, मानस ज्ञानवाद योगबलदिन्द परिच्छेदिसुव हागॆ तोरुवनागि, बान्द्रिय गोचरवाद प्रकृतिगिन्तलू विलक्षणनागि, हागॆये ई अणुत्वादि धर्मगळुळ्ळ चेतननिगिन्तलू विलक्षणनागि, “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ सम्पूर्ण ज्ञानस्वरू पनू, सम्पूर्णानन्दस्वरूपनू आद, भूत भविष्य द्वर्तमान काल गळल्लू निस्समाभ्यधिकनाद, सत्येश्वरनीग ननगॆ धारकनु. इल्लि मुळु ऎम्बुदु मध्यॆ इरुवदरिन्द, मुळु उणर् मुळुन लवर् ऎन्दु इट्टु कॊळ्ळतक्कद्दु. इदरभिप्रायवेनॆन्दरॆ, सर्वदेश सर्व काल सर्वावस्थॆयल्लू अप्रकाश स्वरूपवेयागलि, तनगॆ अनुकूल वल्लदे इरुव स्वरूपवागलि इल्लवॆम्ब भाववु. ई अभिप्रायगळन्नु “यथा सैन्यव घनः” “ऒन्दु हरळु उप्पिनल्लि ऎल्लवू हेगॆ उप्पो (२) वि. पु. ६. ५. ५९,________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः (१८३३ वैक लक्षणा । भेषजं भगवत्पाप्ति रे कान्तात्यन्ति कीमता" ऎन्नुम्, मॊल्लुगिरपडिये भगवरूपम् भोग्यवाग हागॆये” “आनन्नो ब्रह्मति व्यजनात्, “ परमात्म स्वरूपवे आनन्दवॆन्दु तिळियतक्कद्दु ” इत्यादि श्रुतिगळु हेळुत्तवॆ. विष्णु पुराण श्लोकार्थवु :- निरस्ताशय - यावुदरिन्द बेरॆ सुखद अतिशयवु निरस्तवायितो, तडॆयल्पट्टितो, ऎन्दरॆ निरतिशयवाद ऎम्बर्थवु, अन्तह, आह्लादसुख - आह्लादरूप सुख, आह्लादवॆन्दरॆ इन्नु बेरॆ सुखानुभव तनगॆ बेकिल्लद हागॆ उत्कर्ष वन्नु हॊन्दिरुव सुखवु. इन्तह सुखद भाव वॆन्दरॆ आह्लाद मात्र वे इरुवदे विना इल्लिन सुखद हागॆ दुःखनिवृत्ति रूपवादुदल्लवॆम्ब तात्सरवु. इल्लिय सुखवादरो “दुःखान प्रभवं सुखं” ऎन्दू, “दुःख स्यानन्तरं सुखं” ऎन्दू महरियु हेळिरुत्तारॆ. (मोक्ष १७३) हागल्लवु. आह्लाद सुखभाववे, आदुदरिन्दले एकलक्षण - इदॊन्दे लक्षणवागि उळ्ळद्दु, विषयानुभव माडिदहागॆल्ला, इन्नू बेकु इन्नू बेकॆम्बभिलाषॆयन्नु हेगॆ वृद्धिगॊळिसुत्तदो, हागॆ ई परब्रह्मप्राप्तियिन्दुण्टागुव आह्लादवु अनुभवदिन्द वृद्धि हॊन्दुत्तदॆम्ब भाववु. ई भगवत्पाप्ति ऎम्ब भेषजं - औषधवु, यारिगॆ औषधवॆन्दरॆ श्री पराशररु हेळुत्तारॆ :-संसार दुःखार तापतापित चेतसं - संसारद दुःखवॆम्ब सूर्यन तापदिन्द बॆन्दु होद मनस्सुळ्ळवरिगॆ इदु तापशमनरूपवाद परमषध ऎम्ब भाववु. आ प्राप्ति ऎन्थाद्दॆन्दरॆ, एकान्ता - प्रयोजनां तरद गन्ध कूड इल्लदिरुवन्थाद्दु मत्तु आत्यन्तकी - अन्त्यविल्लद हागॆ इरुवन्थाद्दु ऎन्दरॆ नित्यवागिरुवन्थाद्दु. इन्तह भगवत्पा प्रियु परमौषधवॆम्बुवदु, मता - नन्नभिप्रायवु. आ भगव ताप्ति, अदरिन्दुण्टागुव आह्लादक्कॆ ऎन्दिगू च्युतियिल्लवॆम्ब भाववु तोरिबरुत्तदॆ” ऎन्नुम् - ऎन्दु, तॊल्लुगिरपडिये - हेळिरुव हागॆ, भगवत्सरूपवु भोग्यवादुदागुत्तदॆ. इन्तह भगवत्सरू पानुभवदल्लि मुक्तन आनन्दवु भगवन्तनानन्दक्कॆ समानवादुदु ऎम्ब तात्पर्यवु, 1________________
१८३४ प्राप्तव, मत्तुळ्ळ राजमहिषिक्कु राजा छा अवनुडैय भोगस्थानादिगळु पोलॆ, इष्टु ं श्री मद्र हस्यत्रयसारे भोग्यवाडि यॆने ऎन्निल् ? भोग्य नानाथ् अवनुक्कु अभिमतक्क भोगत्तु कुरुप्पान भोगोपकरण इवळुकु अनुकूलमायिरुक्क मा भगवत्सरूपानु बन्धिगळान वैयॆल्लां हीगॆ ई वाक्यदिन्द भगवत्सरूपवु मुक्तनिगॆ भोग्यवॆन्दु हेळल्पट्टितु. आदरॆ इदर हिन्दिन वाक्यदल्लि अनन्तगळाद गुणविभूति चेष्टितगळॊन्दरल्लि न्यूनतॆयिल्लद हागॆ भोग्यवागिरुत्तदॆन्दु हेळ ल्पट्टितल्ला ; ई मिक्क गुणविभूति चेष्टितगळू कूड हेगॆ भोग्यवु ऎन्दु केळबहुदु. अदक्कॆ ऒन्दु लोकदृष्टान्त मूलक उत्तरव नियुत्तारॆ.
मत्तुळ्ळ - भगवत्सरूपवल्लदॆ मिक्क विशेषणगळागिरुव गुणविभूति चेष्टितगळॆल्ला, भोग्य मावडि ऎने ऎन्निल् - हेगॆ भोग्यवागुत्तवॆ ? ऎन्दरॆ, राजमहिषिक्कु राजन पट्ट महिषिगॆ, राजा - राजनु, भोग्यनादरॆ, अवनुकु - आ राजनिगॆ, आ भिमतज्ञळाय्-इष्टवादवुगळागि, अवनुडैय भोगत्तु कु आ राजन भोगक्कॆ, उरुप्पान - उपयुक्तगळाद, भोगोप करण - भोगसामग्रिगळु, वाहन, ध्वज, छत्र, चामर, सिंहासनादि गळु, भोगानदिगळु - उद्यानवन, प्रासाद मॊदलादवु गळु, इवळुकुव ई महा पतिव्रतॆयाद पट्ट महिषिगॆ अनुकूलवा यिरुक्कमा पोलॆ - अनुकूलवागिरुव हागॆ ऎन्दरॆ सुखकरवागि रुव हागॆ, इट्टु म् - ई सन्दर्भदल्ल, भगवत्सरूपानुबन्धि गळानवै - भगवन्तन स्वरूपक्कॆ सम्बन्धपट्ट विशेषणगळाद गुण विभूति चेष्टितगळॆल्ला, भोग्यवागक्कु कैयि ई मुक्तनिगॆ भोग्यवागिरलु एनॊन्दू कुण्डकविरुवदिल्लवु. ऒब्ब राजन पट्ट महिषिगॆ राजनु तुम्बा भोग्यवागिद्दरॆ, राजन भोगक्कॆ बेकाद भोगोपकरण भोगस्थानगळॆल्ल हेगॆ आकॆगू अनुकूलवागि, भोगरूपवागिरुत्तवॆयो हागॆये सत्येश्वरन सुखरूप वागि, 3________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८३५ भोग्यमागक्कुरै इल्ल, इस्टडि सत्व प्रकार विशिष्ट नाय कॊण्डु सरेश्वर्र भोग्यनॆन्नु मिडव श्रुति स्मृत्यादि स्वरूपक्कॆ सेरिद सकल विशेषणगळू कूड भगवत्स रूपदॊन्दिगॆ भोग्यभूतवादवुगळे ऎम्ब भाववु राजभोगगळू भोगोप करणगळू, भोगस्थानगळू कूड पतिव्रतॆ याद पत्निगॆ अनुकूलवा गुत्तदे विना दुष्ट स्त्रीयाद पत्नियल्लि विपरीतवादवुगळे आगुत्तवॆ. मुक्तनिगू परमेश्वरनिगू, सतिपति सम्बन्धविरुवदरिन्द दृष्टान्तवु उपपन्न वु. इल्लि अनुकूलवागिरुविकॆये सुखवॆन्दू भोगवॆन्दू हेळिसिकॊळ्ळल्पडुत्तदॆ. राजपत्निगॆ राजनू राजनिगॆ सम्बन्धपट्ट भोगोपकरण भोगस्थानादिगळेनो ऒन्दु कालदल्लि भोग्यवा गिरबहुदु. अनन्तर वृद्धतॆयुण्टागि बेसर अथवा व्याधियु प्राप्त वादरॆ आग भोग्यविल्लदॆ होगबहुदु. हागॆ ऎन्दिगू इल्लवु ऎम्बभिप्रायवु. पतिव्रता शिरोमणिय कूड हागॆ ऎन्दिगू जहासॆयन्नु तोरुवदिल्लव, पतिव्रता धर्मक्कॆ प्रथमोदाहरणॆ याद सीतॆये हागॆ हेळिकॊण्डिरुत्ताळॆ. कौसलैयु सॊसॆयन्नु कुरितु हेळुत्ताळॆ. ओ सीतॆये निन्न पतियु राजकुमारनॆन्दॆणिसि समस्त राज भोगगळन्नू अनुभविसुत्तिरुवाग नीनु आतनिगॆ शुशू षादिगळन्नु माडुत्तिद्दुदु दॊड्डदल्लवु, ईग वनचारियागि नारुमडि यन्नुट्ट कन्दमूलादिगळन्नु तिन्न ता पृथ्विशय्यनागिरुवागलू पतियन्नु तुच्छवागि काणदॆ शशूषादिगळन्नु माडुवदु युक्तवु, ऎन्नलु, अदक्कॆ सीतॆयु हेळुत्ताळॆ :- नितन्ददाति हि पिता मितं ना ता नितं सुतः । अमितस्य च दातारं भारं कानपूजयेत् । अमितवागि कॊडुव दातृवु भर्ता, अन्तवनन्नु यारे आगलि पूजिसदे इरुवरे ? ऎन्दु उत्तर हेळिद्दल्लदॆ, श्रीरामनॊन्दिगॆ “यया सह सरॊ निरयोयं या विना” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ इरुव भोगस्थानवे स्वर्गवु, आतनॊन्दिगिल्लदिरुव स्थळवे तनगॆ नरकवु. इदु काल अवस्थॆगळिगू उपलक्षणवु,________________
Cera श्रीमद्रहस्यत्रयसारे हीगॆ सत्व विशेषणगळॊन्दिगॆ युक्तनागि सदा सत्येश्वरनु भोग भूतनॆम्बुदक्कॆ शास्त्रप्रमाणगळुण्टॆन्दु मुन्दॆ तिळिसुत्तारॆ. इप्पडि- हीगॆ मेलॆ उपपादिसिद रीतियल्लि, सप्रकार विशिष्ट नाय्क्कॊं डु-समस्त रूपगुण विभवैश्वरादि विशेषगळिन्द युक्तनागि, लक्ष्मी विशिष्टतॆय कूड इदरिन्द हेळिदन्तायितु, सत्येश्वर्र - श्री वासु देवनु, भोग्यनु ऎन्नुमिडं - ऎन्नुव प्रमाणवु, श्रुति स्मृति मॊदलादवुगळु, इल्लि आदिशब्ददिन्द इतिहास पुराणगळू हेळल्पट्टवु, प्रसिद्ध म् - प्रसिद्धवादुदु, निर्विवादवागि स्थापितवादुदु ऎम्ब भाववु. ई विषयदल्लि कॆलवरु सन्देहपट्टु आतनु निर्विशेषनॆन्दु हेळुवदु सुतरां सरियल्लवॆम्बभिप्रायवु. श्रुति श्रुति प्रमाणगळु यावुवॆन्दरॆ :- 0. सोत्तुते स कर्मा सह ब्रह्मणा विपश्चिता (तै, आनन्द, १) मुक्तातनु, सद्विविधवागि नोडुव ऎन्दरॆ सज्ज सुव परब्रह्मनॊन्दिगॆ आतन कल्याणगुणगळे मॊदलादवुगळन्नु भोग्यवादुवागि अनुभविसुवनु. 9.
- रसं हैवायं लज्ञानन्दी भवति” (तै. आनन्द. ७. १) ई मुक्तनु आनन्दस्वरूपनन्नु मत्तु आनन्द गुणकनन्नु प्राप्य वागि हॊन्दि, निरतिशयानन्द हॊन्दिदवनागुवनु.
8 e ३, “ न मृत्युं पश्यति नरोग त दुःखतां सत्वं ह पश्यः पश्यति समास्कोति सल्वशः” (छां. ७. २६. २) ब्रह्मवित्ताद मुक्तनु मरणवन्ने यागलि, रोगवन्नॆ यागलि, ई जगत्तिनल्लि काणबरुव कोशगळन्नॆ यागलि काणुवदिल्लवु ; ऎन्दरॆ सङ्कल्प मात्रदिन्दले सङ्कल्पिसिदुदन्नॆल्ला अनुभविसुवनु. जगत्तू कूड बद्दन हागॆ ईतनिगॆ प्रतिकूलवल्लवु. पित्तरोगिगॆ हालु कहि, आ रोगविल्लदवनिगॆ हालु हेगॆ भोग्यवो हागॆ ऎम्बभिप्रायवु. सतिगळु : :- (6 S “ इदं ज्ञान मुपाश्रित्य नमसाधर मागताः । सरेपि नोपॆजाय नै प्रळये नव्यथ च” ई मुन्दॆ नानु उपपादिसि हेळुव ज्ञानवन्नाश्रयिसि गुणाष्टक आविर्भाव स्वस्वरूपा विर्भाव इवुगळु उण्टागुवदरिन्द नन्नॊन्दिगॆ समानवाद________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८३६ गळिले प्रसिद्धम्, इव्वरत्तै भूमाधिकरणत्तिले साधि इरुळिना. भोग, आनन्दवन्नु हॊन्दिदवरु सृष्टियल्लि पुनः हुट्टुवदिल्लवु, प्रळ यक्कॆ सिक्कि केशपडुवदिल्लवु., हीगॆ सत्वविशेषणगळिन्दलू युक्तनाद सत्येश्वरनु मुक्तनिगॆ परमभोग्यनागिरुवनु ऎन्दु हेळिदुदक्कॆ श्रुति स्मृति प्रमाणग ळेनो उण्टु ऎन्दु ऒप्पतक्कद्दे. आदरॆ श्री यतिवररू हीगॆये अभिप्रायपट्टिद्दारो ? ऎन्दरॆ, अवरू श्री भाष्यदल्लि भूमाधिकरण दल्लि हागॆये उपपादिसिरुत्तारॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. इव्व - हीगॆ सत्व प्रकार विशिष्टनाद सत्येश्वरने भोग्य भूतनॆम्बभिप्रायवन्नु, भूमाधिकरणत्तिलॆ-व्याससूत्रद भूमा धिकरणद भाष्यदल्लि, साधित्तु अरुळिनार् - स्थापिसि कृपॆगैदिरुत्तारॆ. ई भूमाधिकरणद सूत्रवु यावुदॆन्दरॆ :- भूमा सम्प्रसादाद ध्यपदेशात् - भूम शब्द वाच्यनु अथवा भूम गुण विशिष्टनु परमात्मनु जीवात्मनल्लवु; एकॆन्दरॆ ईतनु, सम्प्रसादाधि - ई जीवात्मनिगिन्त अधिकनॆन्दु, उपदेशात् , श्रुतियल्लि उपदेशिसिरु वदरिन्द भूमा शब्दक्कॆ अर्थवेनॆन्दरॆ :-“यत्र नान्यश्यति ना नृच्छणोति नान्यद्वि जानाति सभूमा” “यत्र - याव प्रसिद्ध नाद परमात्मनॆम्ब वस्तुवु, अनुभूयमानेसति- अनुभविसल्पड लागि, आतनिगिन्त बेरॆयावुदू नोडल्पडुवदू इल्लवो, केळल्पडु वदू इल्लवो, तिळियल्पडुवदू इल्लवो, अन्तह वस्तुवु भूमा ऎन्दु हेळिसिकॊळ्ळुत्तदॆ.” मत्तु “ अथ यत्राश्यति अन्य च्छणॆति अन्यद्वि जानाति तदं” “याव वस्तुवन्न नभविसिद नन्तर अदक्किन्तलू बेरॆयादुदु काणबेकु, केळबेकु, तिळियबे कॆन्दागुत्तदो आ वस्तुवु अल्पवादुदु” (छां. ७. २४ १) ऎन्दु उपनिषत्तु हेळुत्तदॆ. अनवधिकातिशय सुखरूपनाद परब्रह्मनन्न नुभविसिद नन्तर, इन्यावदन्नू कूड कण्णॆत्ति मुक्तनु नोडनु. आदुदरिन्द ई मुक्तनू आतन विभूतिगॆ सेरिदवनागि आतन स्वरूप________________
(१८३८ श्रीमद्रहस्य त्रयसा दॊन्दिगॆ गुणविभूति ऐश्वरगळन्नू अनुभविसुवनागि, तद्व तिरिक्तवा दवुगळॊन्दन्नू कूड कण्णॆत्ति नोडनु. एकॆन्दरॆ मिक्किद्दॆल्लवू अति तुच्छवादवु. ई मुक्त दॆशॆयल्लि अनुभविसुवदॆल्ला अनुकूलवादवु गळागि निरतिशय सुखरूपवादवु, प्रतिकूलवे इल्लदुदरिन्द दुःख गन्धवू इल्लवु. आदरॆ ई जगत्तू परमात्मन विभूतियल्लि अन्तर्गत वादरू परमात्मनिगिन्तलू बेरॆयादुदे. इदरनुभववु परिमित सुख रूप वागियू दुःखमिश्रवागियू इरुवन्थाद्दु, हीगिरुवन्थादू कूड मुक्तनिगॆ सुखरूपवादुदु हेगॆ ऎम्बक्षेपवु तोरबहुदु. इदक्कॆ हिन्दॆ उदाहरिसिरुव श्रुतिये समाधानवन्नु हेळुत्तदॆ. कावश्य नादवनु ई जगत्तु परमात्मनिगिन्त सम्पूर्णवागि बेरॆयादुदॆन्दु भाविसि अनुभविसुवदरिन्द, कर्मानुरूपवागि परिमित सुखरूपवा दुदागलि, दुःखरूपवादुदागलि आगुत्तदॆ. मुक्तदॆशॆयल्लि ई कर्म वॆम्ब व्याधियु तॊलगुवदरिन्द सश्वरन विभूतियन्नॆल्ला सत्व श्वरनॊन्दिगॆ साक्षात्करिसुवदरिन्द निरतिशय सुखवे विना दुःख रूप वल्लवु. इदक्कॆ ति- भाष्यकाररु कॊट्ट दृष्टान्तवु मेलॆ हेळल्प ट्टितु. पित्त व्याधिपीडितनिगॆ हालु कहियागि तोरुत्तदॆ. ఆ వ్యాధి यिन्द निवृत्तनादवनिगॆ हेगॆ अदे स्वादवागुत्तदो हागॆ ऎम्ब भाववु. ई सन्दर्भदल्ले ई आक्षेपवु तोरबहुदादुदरिन्द विवरिसिरुत्तदॆ. स्वामि देशिकरवरे मुन्दॆ चॆन्नागि उपपादनॆ माडुत्तारॆ. इन्तह निरतिशय भोग्यत्ववु भगवत्सरूप गुणविभूतिगळुळ्ळ भोगोपकरण भोगस्थानगळन्नू उळ्ळ दिव्य वैकुण्ठदल्लिरुवदरिन्द इदक्कॆ परमपदवॆम्ब हॆसरॆन्दु तिळिसुववरागि, अन्तह भोग्यत्वविरु वदरिन्द परम पदक्कॆ रूढियिन्दलू वुत्पत्ति मूलकवागियू मूरु अर्थगळॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. (१) निरतिशयानन्द रूपवाद प्राप्यवाद भगवत्सरपक्कू, (२) निरतिशयानन्द स्थानवाद दिव्य वैकुण्ठक्कू, (३) अन्तह स्थळवन्नु सेरि अन्तह प्राप्यवन्नु हॊन्दि निरतिशयानन्दवन्नु हॊन्दुव मुक्तनिगू परमपद शब्दवु अन्व यिसुत्तदॆन्दु उपदेशिसुत्तारॆ.________________
(~) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८३९ परमपद शब्दस्य त्रयः अर्था इवल् निरतिशयानुकूलत्तालॆ परम प्राप्य मा यालॆ भगवत् रूप परमपदरदु. इब्बगव रूपत्ति सुडैय परिपूर्णानुभवम् पॆरुवदु, भोग्यतम माय् सरॆत्तरनाय् इरुप्पदॊरुस्थान विशेषलॆ शालागैयाले, अन्न स्थान विशेषतॆयुव परम पदम् परमपद शब्दद मूरु विधवाद अरगळु, १. इवल् - ई परब्रह्मन दिव्यात्मस्वरूप विग्रहगुण विभू त्यादिगळ, निरतिशयानुकूलत्तालॆ - सरोत्कृष्ट अनुकूल मूल कवागि, पॆरम प्राव्यमागैयालॆ परमप्राप्यवागुवदरिन्द, याव दक्किन्त उत्कृष्टवादुदिल्लवो अदु परम वॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुत्तदॆ, भगवरूप-भगवन्तन स्वरूपवन्नु, परम पदवॆरदु - परमपदवॆन्दु हेळुवदु. श्रीयः पतिगू परमपदवॆम्ब हॆसरु. ऎल्लवू अनुकूलवागि तन्मूलक निरतिशय सुखरूपवागि परम प्राप्य वागिरुवदरिन्द परमपद ऎन्दु आतनु हेळल्पडुवनु, पद्यते ऎन्दरॆ गम्यते - चेतननिन्द प्राप्यवागि हॊन्दल्पडुवनु, आदुद रिन्द परमपदवॆम्ब प्रयोगवु. २. इब्बगवरू पत्ति नुडैय - ई भगवत्सरूपद, परिपूर्णानुभववन्नु, पॆरुवदु - हॊन्दुवदु, भोग्यतमवागि, सरमा - सत्कृष्टवागि, इरुप्पुदु - इरबेका दुदु, ऒरु स्थानविशेषल्-ऒन्दु प्रसिद्धवाद स्थानदल्लि, शॆट्राल् आगैयाले - सेरिदरेनॆ प्राप्तवागुवदरिन्द, अन्न स्थानविशेष युम् - अन्तह स्थानविशेषवन्नू, परमपद वॆन्दु, ऎण्ण रदु - हेळुवदु. ऒन्दु देश विशेषवु प्राप्यवादरेने भगवं तन्न परिपूर्णनुभववु दॊरॆतु अदु परम भोग्यवागुत्तदॆ. अन्तह स्थळवु दिव्य वैकुण्ठवु, इदक्कू परमपदवॆन्दु हॆसरु,________________
१८४० श्रीमद्रहस्य त्रयसारे ऎरदु. इव्वनुभवत्तुक्कु आश्रयमाय् कॊण्णु अनुभाव्य मागैयाले भगवद्विभूति भूतमाय् ज्ञानानन्द लक्षण मान र्तस्वरूपत्तॆयुं परम पदम् ऎरदु. इवै मू न्नक्कु मत्तु मुळ्ळवत्तु क्कुव प्राप्य मात्र मविशिष्टम्, पद्यते अस्मि९ ऎम्ब वु त्पत्ति मूलक, ऎल्लि प्राप्यद प्राप्ति युण्टो अदु परमपदवु. ३. मूरनॆय अर्थवन्नु बोधिसुत्तारॆ. इव्व नुभवत्तुक्कु. ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभवक्कॆ, आश्रयनाय् कॊण्डु - आश्रय वागि, अनुभाव्यवागैयाले - अनुभविसलु योग्यवादुदरिन्द, भगवद्विभूति भूतमाय् - भगवन्तन नियाम्यवर्गक्कॆ सेरिदु दागि, ज्ञानानन्द लक्षणमान - ज्ञानत्व आनन्दत्वगळे लक्षणवागि युळ्ळ (स्वरूपवन्नु निर्धरिसुव लक्षणगळु इवु ऎम्ब भाववु), र्त स्वरूपुन् - मुक्तनाद तन्न स्वरूपवन्नू सह, परम पद म् ऎरदु - परमपदवॆन्दु हेळतक्कद्दागिदॆ. गुणाष्टकावि र्भाव स्वस्वरूपविर्भावगळुळ्ळ मुक्तदॆशॆयल्लिन तन्न स्वरूपवु ईग चन्नागि प्रकाशिसुव स्थितियल्लिद्दु, परिपूर्ण ब्रह्मानुभवक्कॆ आश्रय वागिरुवदु, तन्न स्वरूपवू सह परम प्राप्यवागि अनुभाव्यवादुद रिन्द परमपदवॆम्ब शब्दवु इदक्कू अन्वयिसुत्तदॆम्ब तात्पर्यवु इवॆ मूरुक्कुम् - भगवत्सरूप, दिव्य वैकुण्ठ, मुक्तात्म स्वरूप, हीगॆ ई मूरक्कू, मत्तु मुळ्ळ वतुक्कु - मत्तू मिक्कवुगळाद कल्याणगुण, विभूति चेष्टितगळिगू कूड, प्रास्यत्व मात्रवे, अविशिष्टम् - विशेषविल्लदुदु ऎन्दरॆ ऎल्लक्कू साधारण वादुदु ई मूररल्लू इरुव भोग्यभाववु मात्र भगवत्सरू पक्कू अदक्कॆ सम्बन्धिसिद विग्रहगुण विभूतिगळिगू समवॆन्दु हेळ ल्पट्टितु. नित्यविभूतियेनो निरतिशय सुखरूपवागि भोग्यवादुदॆम्बु दन्नु ऒप्पतक्कद्दु. लीलाविभूतियु अनित्यवाद अल्प सुखरूपवा गियू दुःख बाहुळ्यवुळ्ळद्दागियू इरुवदॆम्बुदु प्रत्यक्षसिद्धवागिरु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्तस्य लीलाविभूतिर ह्यनुकूला १८४१ इप्पडि भगवत्सरूप गुणविग्रहादिगळु, शुद्ध सत्याश्र यमान नित्यविभूतियुम्, स्वस्व रूपमम् भोग्यमाना लु, प्रतिकूलवाग प्रत्यक्षादि प्रमाण सिद्धनाय् मुमु कुवुक्कु त्याज्यमाक शास्त्रळिल् कॊल्लप्पट्ट लीलाविभूति यिल् पदार्थ मुक्त नुक्कु भोग्यवाग कूडुनो वॆन्निल्, अदिलुं कुरैयल्लि, १. पित्तोपहतनक्कु प्रति वाग, मत्तु ऐहिकवॆल्ला तुच्छवागि प्रपन्ननिगॆ त्याज्यवॆन्दु शास्त्रग इल्लि हेळल्पट्टिरुवाग मुक्तनिगॆ अदू कूड अनुकूलवादुदु हेगॆ ऎं बाक्षेपणॆयु युक्तवादुदे. अदक्कॆ समाधानवन्नु “इप्पडि ऎन्दारम्भिसिद वाक्यद मूलक सदृष्टान्तवागि मूरु निदर्शनगळ मूलक तिळियपडिसुत्तारॆ. मुक्तनिगॆ लीलाविभूतियू कूड अनुकूल रूपवादुदु. इप्पडि - हीगॆ, ऎन्दरॆ मेलॆ उपपादिसिद रीतियल्लि, भगव रूपगुण विग्रहादिगळु - भगवन्तन स्वरूप दिव्यमङ्गळ विग्रह आतन कल्याणगुणगळु, आदि पददिन्द ऐश्वर चेष्टितगळू सङ्ग्रहिस ल्पट्टवु, मत्तु शुद्ध सत्वाश्रयमान नित्यविभूतियुम् - शुद्ध सत्वक्कॆ आश्रयवाद नित्य विभूतिय, स्वस्वरूपमुव - मुक्तनाद तन्न स्वरूपवू सह, भोग्यमानालुम् - भोग्यवादुवु आदरू, प्रतिकूलवाग - अनित्य अल्प सुख मत्तु बहु दुःखयुक्तवागि हीगॆ प्रतिकूलवादुदॆन्दु, प्रत्यक्षादि प्रमाणसिद्ध माय - प्रत्यक्ष मत्तु शास्त्र प्रमाणगळिन्द स्थापितवागि, त्याज्य नाग . हीगॆ बद्ध दॆशॆयल्लि ऐहिकवॆल्ला त्याज्यवॆन्दु, कॊल्लप्पट्ट- हेळल्पट्ट, लीला विभूतियल्लि पदार्थगळु मुक्तनिगू कूड, भोग्यवागक्कूडु नो वॆन्निल् - भोग्यवादुवु आगुववो ऎन्दरॆ, अदिलुं कुरै यिल्फ् - हागॆ भोग्यवादुवागुवदक्केनू न्यूनतॆयिल्लवु, ऎन्दरॆ________________
१८४२ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे अवुगळू भोग्यवादवुगळे ऎम्बर्थवु. ऐहिकवॆल्ला दुःखमयवा दुदॆम्बुदक्कॆ बेरॆ प्रमाण बेकिल्लवु प्रत्यक्षदिन्दले सिद्धवु. अनेक दुःखसन्ततिगळन्नु ऒब्बनु तन्न जीवमानदल्लि अनुभविसिरबहुदु. आदरॆ ऐहिकदल्लिरुव अल्पसुखदिन्द भ्रान्तनागि ई ऎल्ला दुःखगळन्नू मरॆतुहोगुवनु, संसारदु ः खवॆम्ब सूर्यन तापदिन्द तप्पिसि होगिद्दरू ई अल्प सुख रूप शैत्योपचारदिन्द मरॆयुवनु. आदु दरिन्द शास्त्र प्रमाणदिन्दलू अदु दुःखमयवादुदॆन्दु तिळिय बहुदु. शास्त्रवेनु हेळुत्तदॆ ऎन्दरॆ :- “यावजीवति तावच्च दुःखैरा नाविध्यॆः स्मृतः । तन्तु कारण पक्ष फै रास्तॆ काास बीजवत् । द्रव्यनाशे तथोत्त पालनेच सदानृणाम् । भवन्त्यनेक दुःखानि तथैवेष्ट विपत्तिष्टु ॥ यद्य तिकरं पुंसांवस्तु मैत्रेय जायते । तदेवदुःख वृक्षस्य बीजत्व मुगच्छति ॥” (वि. पु. ६. ५, ५३-५) हत्तिय बीजवु हेगॆ बिडिसलु कष्टवागिरुवदो हागॆ जीवविरुववरॆगू नानाविधवाद कोशगळल्लि मुळुगिरुवनु. द्रव्यनाशदल्लि, द्रव्यवन्नु गळिसुवदरल्ल, अदन्नु रक्षिसुवदरल्ल मनुष्यरु नानाविध दुःखगळन्ननुभविसुवरु. हागॆये इतर इष्ट वादवुगळ विघातदल्लि अनेक केशगळुण्टु, मनुष्यरिगॆ यावुदु प्रीतिकरवागि तोरुव वस्तु उण्टो, ओ मैत्रेयरे, अदे मुन्दॆ दुःखवॆम्ब वृक्षक्कॆ बीजवागि परिणमिसुत्तदॆ ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. हागॆये गीतॆयल्लि, 66 “येहि संस्परजा भोगा दुःखयो नय एवते । आद्यन्तवन्तः कौन्तेय नतेषु रमते बुधः i” (५. २२) विषय सुखगळॆल्ला कालान्तरदल्लि दुःख रूप फलवन्ने कॊडतक्कवु गळे, मत्तु अवुगळिगॆ आदि, अन्त्यगळिरुवदरिन्द अस्थिरवादवु. तत्व वन्नु तिळिद पण्डितनु अवुगळल्लि रमिसुवदिल्लवु. हीगॆ अनेक शास्त्र प्रमाणगळू उण्टॆम्ब भाववु. हीगॆ प्रत्यक्षसिद्धवागियू शास्त्रग ळिन्द वेद्यवागियू इदॆ ऎम्ब तात्पर्यवु. हीगिद्दरू इवॆल्लवू मुक्कनिगॆ मात्र अनुकूलवागिवॆ ऎन्दु हेळलु एनॊन्दू अभ्यन्तर________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८४३ कूलमान पाल्, पित्तं शमित्ताल् अनुकूलमाप्पोलु वुम. २. साल्व भौमनान सितविनुडैय शिक्षॆ कूडम्, शिरैक्कि डक्किन राजकुमारनुक्कु अप्पोदु प्रतिकूलमाय्, राजा शिरै कूडल् निन्नुम् पुरप्पडविट्टुगन्नु तुल्य भोग नाग वैत्तवळविल् शिरैकॊडमान कॊपुक्कुलॆयादिरुक्क ऎल्लवु, अदु हेगॆ ऎन्दरॆ ऎरडु दृष्टान्तगळ मूलक तिळिसुत्तारॆ १. पित्तॊष हतनु क्कु - पित्ताधिक्य जाड्यदिन्द पीडितनाद वनिगॆ, प्रति लमान पाल् - कहियागि तोरुवदरिन्द सेरद हालु, पित्तं शमित्ताल् - पित्तवु शमनवादरॆ, अनुकूलवा पोलुवु - रुचियागि सेरुव हागू ; हालु पित्त जाड्यवुळ्ळव निगॆ कहियागि तोरुत्तदॆ. हालु कहियो ? अल्लवु, जाड्यविरु वदरिन्द हागॆ तोरुत्तदॆ. आ रीतियल्ले ई लीला विभूतिय वस्तु गळु वास्तववागियू प्रतिकूलवादवुगळागि दुःखप्रदगळल्लवु, कर्म वॆम्ब व्याधियिन्द हागॆ तोरुत्तवॆ. कर्मवु नशिसिहोदरॆ, अवुगळु प्रतिकूलगळल्लव; अवुगळिगॆ सहजवाद अनुकूलत्वदिन्द युक्तवागिये तोरुवुवु. आदुदरिन्द संसारदॆशॆयल्लि प्रतिकूलगळे विना मुक्त दॆसॆ यल्लि अनुकूलवादवुगळे ऎम्ब तात्पर्यवु. ई हालिन दृष्टां तदल्लि पदार्थवेनो अनुकूलवादुदु, उपाधि इरुव तनक प्रति कूल, उपाधि तॊलगिदरॆ अनुकूलवागुत्तदॆ. ई दृष्टान्तवेनो ऒप्पतक्कद्दे. आदरॆ कॆलवु पदार्थगळु प्रतिकूलवागिये तोरु तवल्ला, ई कारागृहवु प्रतिकूलवादुदॆन्दु ऎल्लरू ऒप्पतक्क द्दागिरुत्तदॆ. अदु हेगॆ अनुकूलवॆन्दाक्षेपिसिदरॆ, अदू कूड अनु कूलवागुत्तदॆन्दु ई ऎरडनॆय दृष्टान्तवन्नु पपादिसुत्तारॆ. २. साल्व भौमनान पिताविनुडैय - चक्रवर्तियाद तन्न तन्दॆय, शिरै डम् - विभूतिगॆ सेरिद कारागृहवु, शि किडक्किर सजा अनुभविसुत्तिरुव, राजकुमारनिगॆ, अप्पोदु - आ शिक्षानुभव समयदल्लि, प्रतिकूलवाय् - प्रतिकूलवादुदागि, राजा - चक्र वर्तियु, शिरै कूडल् निन्नु कारागृहदिन्द, पुरप्पडविट्टु-________________
१८४४ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे चॆय् दे पितार्वि विभूति ऎन्नु अनुकूलनाप्पोलवुम्, (१) “यया सहसस्यर्गॆ निरयोययाविना” ऎन्नु हॊरक्कॆ बिडिसि, उगन्नु सन्तोषिसि, तुल्य भोगनाग - चक्र वर्तियाद तनगॆ समानवाद भोगवुळ्ळवनागि, वैत्तवळविल् - आतनन्नु युवराज पदवियल्लिट्ट सन्दर्भदल्लि, कोपु कुलैयादि रुक्क चॆम्दे - कारागृहविरुव प्रकारवु नष्टवागदे इद्द पक्ष दल्लि, पितार्वि विभूति ऎन्नु - राजनाद तन्न तन्दॆय नियाम्य वर्गक्कॆ सेरिदुदॆन्दु, अनुकूलमापोलुवु - अनुकूल वागि तोरुव हागू, (इदक्कॆ मुन्दॆ भोग्यवरत्तिलॆ शेरुगै उप पन्नम् ऎम्बुदरॊन्दिगॆ अन्वयवु ) बद्धदॆशॆयल्लि कर्मानु रूपवागि भगवद्विश्लेषॆयिरुवदरिन्द प्रतिकूलवे विना, मुक्तदॆशॆ यल्लि कर्मवु तॊलगि भगवत्संश्लेषॆयुण्टादाग अनुकूलवागुवद रल्लि सन्देहविल्लवॆन्दु सीतावृतान्तमूलकवागि उपदेशिसुत्तारॆ ; त्वया सह . निन्नॊन्दिगॆ, यः - याव, वासवो ऎन्दु इट्टुकॊळ्ळ तक्कद्दु, सः - अदु, स्वरः - मोक्षसुखवु, त्वया विना - नीनिल्लदॆ इरुव, यः . याव वासवो अदु, निरय-नरकवु. इदु सीता वाक्यवु. वनदल्लि तुम्बा कष्टवॆन्दु श्रीरामनु जॊतॆयल्लि सीतॆ यन्नु करॆदुकॊण्डु होगलु सम्मतिसदिरुव वेळॆयल्लि, तुम्बा दैन्य दिन्द करॆदुकॊण्डु होगबेकॆन्दु बेडि महा पतिव्रता शिरोमणि याद तन्न सिद्दान्तवेनॆम्बुदन्नु तिळिसुत्ताळॆ. पतियाद निन्नॊन्दिगॆ इरुवदे ननगॆ मोक्षसुखक्कॆ समानवादुदागि सर्वानुकूलवादुदु? निन्नन्नु ऒट्टिरुवदे ननगॆ ऎल्ला विधदल्लू प्रतिकूलवादुदागि नरक वास समानवादुदु ऎन्दु हेळुत्ताळॆ. ई श्लोकद उत्तरार्धवु * इति जार्न पर प्रीतिं गच्छ राम मया सह” हीगॆ निन्नन्नु ऒन्दु क्षणवागलि अगलिरलु ननगॆ साध्यवे इल्लवॆम्बुदन्नू अन्त ह उत्कृष्टवाद प्रीतियु ननगुण्टु ऎम्बुदन्नु चॆन्नागि अरितिरुवॆ यादुदरिन्द नन्नन्नु करॆदुकॊण्डे वनप्रवेश माडतक्कद्दॆम्ब (१) रामा. अयोध्या. ३०. १८.________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८४५ 8 न (२) “नहिमे जीविते ना नैनार्नचभूषणैः । वसन्त्याराक्षसी मध्यॆ विनारामं महारथ ऎन्नुम् (१) “एरेळु मिरै योनि” लुं तॊल्लुगिरपडिये, भाववु, ऎन्नुम् – ऎन्दू, मुन्दिन उदाहरणॆयल्लि सीतॆयु तनगॆ ऎरडु विधवाद नरकवु प्राप्तवागिदॆयॆन्दु हेळुत्ताळॆ. प्रतिकूल गळ मध्यॆयिरुवदॊन्दु नरकवु, पतियन्नगलिरुवदु ऒन्दु नरकवु, इन्तह दुस्थितियल्लि तानिरबहुदे ? आदुदरिन्द तनगीग भेषजवु प्राण त्यागवे विना बेरॆ यावुदू तोरुवदिल्लवॆम्ब दैन्यावस्थॆयल्लि द्दाळॆ. मुख्य तात्सर्यवु सरेश्वरन सान्निध्यदल्लि प्रतिकूलवागि तोरुवदू कूड अनुकूलवे ऎम्ब भाववु. महारथं रामं विना - रणदल्लि समर्थनाद रामनन्नगलि, युद्धदल्लि तन्नन्नू सारथि यन्नू रथवन्नू कापाडिकॊण्डु युद्ध माडुव महावीरनिगॆ महा रथनॆम्ब हॆसरु. मे - ननगॆ, जीवितेन-बदुकिरुवदरिन्द, अः - प्रयोजनवु इल्लवष्टॆ. आकॆगॆ प्रयोजनवेनॆन्दरॆ पतियॊन्दिगिद्दु पतिगॆ सन्तोषवुण्टागुव हागॆ कैङ्कर्यवन्नॆसगुवदे, अदु इल्लदु दरिन्द बदुकि एनु प्रयोजनवॆम्ब भाववु. आगलि, द्रव्यवू भूषणा दिगळू प्राप्तवादरॆ ऒन्दु वेळॆ जीविसिरोणवॆम्बाशॆ उण्टागबहु देनो ऎम्ब शङ्कॆयुण्टागबहुदु. नैवार् - द्रव्यद आधिक्य दिन्दलू ननगॆ जीविसिरबेकॆम्ब आशॆयिल्लवु. हॆङ्गसिगॆ बरी दुड्डिगिन्त भूषणगळल्लि आशॆ हॆच्चु, अदरिन्द जीविसिरुव आशॆयुण्टागबहुदु ऎन्नुत्तीयो, न च भूष8 . अन्तह भूषणगळन्दलू जीविसबे कॆम्ब आशॆयुण्टागुवदिल्लवु” ऎन्नुम् - ऎन्दू, श्रीरामनिल्लदॆ अर्थ भूषणादिगळु प्रत्युत प्रतिकूलगळे, आतन सान्निध्य उण्टा दरॆ प्रतिकूलगळू कूड अनुकूलगळे ऎम्ब भाववु ; मत्तु “ एरा ळु मिरैयोनु” ऎन्दु प्रारम्भिसि हेळुव नम्माळ्वारवर तिरुवाय्मॊळि नाल्कनॆय पत्तु ऎण्टनॆय तिरुवायु मॊळॆयल्ल, शूल्लुगिरपडिये - हेळिरुव मेरिगॆ, अल्लि एनु हेळिरुत्तदॆ ऎन्दरॆ, (२) रामा, सुन्दर. २६, ५. (१) तिरु, ४. ८.________________
१८४६ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे नम्माळ्वारवरु तम्मन्नु ऒब्ब नायिकॆय हागॆ भाविसिकॊण्डु नायक नाद सत्येश्वरनु तनगॆ मुख तोरिसि ऒलियद बळिक “माराळ कवराद मणि मामै कुर निलमे” तन्न सॊगसाद देहकान्ति यिन्द तनगेनु प्रयोजनवॆन्दु प्रथमपाशुरदल्ल, ऎरडनॆय पाशुरदल्लि “मणि मार्य कवराद नडनॆञ्जारु निलमे” विधेयवाद नन्न मनस्सिनिन्द तनगेनु प्रयोजनवॆन्दू, मूरनॆय पाशुरदल्लि “नॆडुमार्य कवराद निरैविनारु निलमे” तन्न स्त्रीत्व पूर्तियिन्द तनगेनु प्रयोजनवॆन्दू, नाल्कनॆय पाशुरदल्लि * शरैयिनार् कवराद तळिर् निरत्तारु रॆ विलमे” चिगरिन हागॆ मनोहरवाद तन्न कान्तियिन्द तनगेनु प्रयोजनवॆन्दू, ऐदनॆ यदरल्लि “ अळिमिर्का कवराद वरिविनारु विलमे” तन्न ज्ञान दिन्द तनगेनु प्रयोजनवॆन्दू, आरनॆयदरल्लि “ किरियर्वा कव राद किळरॊळियारुरॆ निलमे” तन्न लावण्यदिन्देनु प्रयो जनवॆन्दू, एळनॆयदरल्लि “वळ तॊळिर्या कवराद वरिवळ्ळिया रुरै निलवॆ” तनगॆ बळॆ मॊदलाद आभरणगळिन्देनु प्रयोजन वॆन्दू, ऎण्टनॆयदरल्लि “ विरिपु कुर्ळा कवराद मेकयारु रै विलमे” तनगॆ ऒळ्ळे वस्त्रगळिन्देनु प्रयोजनवॆन्दू, ऒम्भत्तनॆय दरल्लि हागॆये तनगॆ देहदिन्देनु प्रयोजनवॆन्दू, हत्तनॆयदरल्लि ई आत्माविन्द ताने एनु प्रयोजनवॆन्दू, हेळिकॊण्डिरुत्तारॆ, इदरिन्द सत्येश्वर सान्निध्यदिन्द इवॆल्ला अनुकूलवॆन्दू, इल्लदिद्दरॆ इवॆल्ला प्रतिकूलवॆम्ब भाववु. ज्ञाननिधिगळाद यामुनेयरू ई अभिप्रायवन्नॆल्ला नदेहं नाणा न्नच सुख मशेषाभिलषितं ! न चात्मानं नान्यमपि तवशेष विभवात् । बहितं नाथक्षणमपि सहेयातु शतथा । विनाशं तत्सत्यं मदुमथन विज्ञापन मिदम् १५७॥ ऎम्बदागि ऒन्दे श्लोकदल्ले सङ्ग्रहिसिरुत्तारॆ. इदरर्थवेनॆन्दरॆ :- हे नाथ - ओ स्वामिये, तव - भक्तनाद दासनल्लि परम करुणॆयुळ्ळ निन्न, शेषप्प विभवात् - किङ्करभावद फलभूतवाद कैङ्करवॆम्ब समृद्धिगिन्तलू, बहितं - हॊरगाद, ऎन्दरॆ निन्न________________
(95) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८४७ 1 कैङ्कर्यक्कनु पयुक्तवाद, यावाग नीनु ऎल्लक्कू स्वामियो, आदुदरिन्द दासनाद ननगू नीनु स्वामियु ; ई दासत्वक्कॆ कैङ्कर्य माडुवदे फलवु, अन्तह कैङ्कर्यक्कॆ उपयोगवागद अशेषाभिलषि तं सार्वत्रिकवागि ऎल्लरिन्दलू अपेक्षिसल्पडुव अथवा निन्न शेषत्वद महिमॆयन्नरियदवरिन्द अपेक्षिसल्पडुव, देहं नन्न देहवन्नू, क्षणमसि - ऒन्दु क्षणवागलि, नसदे - नानु सहिस लारॆनु. ऎन्दरॆ अन्तह शरीरवु ननगॆ बेकागिल्लवॆम्ब भाववु ; आदरॆ प्राणविरुवदक्कागियल्लवे देहवु, प्राणविरुवदक्कागियादरू देह बेडवे ऎन्दरॆ अनुपयोगवाद प्राणवू बेकिल्लवॆन्दु हेळुत्तारॆ ; हागॆये, प्रार्णा न सहे - प्राणगळन्नू सहिसलारॆनु ऎन्दरॆ प्राणगळू बेकिल्लवु ऎन्दु हेळिबिट्टरु. आगलि, प्राणगळु मुख्यवागि सुखानुभवक्कागि बेकादवु ; सुखक्कागियागलि बेडवो ऎन्दरॆ, सश्वेश्वरनिगॆ अनुपयुक्तवाद सुखवन्नु सुडबेकु ऎन्दु हेळुत्तारॆ; नच सुखं सह - अन्तह सुखवन्नू कूड सहिसलारॆनु, मत्तु नचात्मानं सहे - नन्न आत्म स्वरूपवन्नू कूड सहिसलारॆनु. आन्य मसि - ई मेलॆ हेळिद देहादिगळिगिन्तलू बेरॆयाद पत्नि पुत्रादिगळेनु, गृहारामादिगळेनु इवगळु यावुदॊन्दन्नू, न सहे - सहिसलारॆनु. हीगॆ इवुगळु निन्न कैङ्कर्यक्कॆ अनुपयोग वादवुगळादरॆ, शतधा विनाशं या तु - नूरु भागवागि नाश वन्नु हॊन्दलि, तत्सत्यं - अदु नालिगॆय तुदिय मातल्लवु, सत्य वाद हेळिकॆयु, हे मधुसूदनने, इदं विज्ञापनं - इदीग नन्न विज्ञापनॆयु ; अथवा तदिदं विज्ञापनम् अन्तह ई विज्ञापनॆयु, सत्यं - सत्यवादुदु ऎम्बभिप्रायवु. आदुदरिन्द लीलाविभूतियल्लिरुव सर्व वस्तुगळू मुक्तनिगॆ अनुकूलवागिये तोरुवदरिन्द भोग्यवादवुगळे. आदरॆ अल्पानु कूलवागियू प्रतिकूलवागियू तोरुत्तवल्ला ऎन्दरॆ हागॆ तोरु वदु कर्म प्रतिबन्धदिन्द ऎन्दरियतक्कद्दु ऎम्ब तात्पर्यवु a आदरॆ ऒन्दे पदार्थवु बद्धरिगॆ प्रतिकूलवागियू, मुक्तरिगॆ अनुकूलवागियू इरुवदॆल्लादरू उण्टे ऎन्दरॆ अदु भगवदिच्छा सिद्धवॆन्दु हेळुत्तारॆ. ऒब्बनिगॆ देहवु अनुकूलवागियू, इन्नॊब्ब________________
१८४८ २ श्रीमदहस्य त्रयसारे W भगवत् संश्लेषमिनिक्कॆ र्ता निन्नदु करानुरूप माग तनुकु प्रतिकूलवायु मल्लानुकूलवायुव तोन लीलाविभूतियिल् पदार्थङ्गळ मुक्तना निर नर भगवदनु भवं हॆण्णुगिरवनुक्कु निरतिशय भोग्यवर निगॆ प्रतिकूलवागियू आगबहुदु. मृष्टान्नवु यौवनस्थनिगॆ बहु भोग्यवागियू परिणामशूलॆयिन्द पीडितनिगू, पित्तरोगिगू अदु विषप्रायवागियू परिणमिसबहुदु, द्रव्यवु ऒब्बनिगॆ भगवद्भागवत कैङ्करद्वारा विशेष श्रेयस्सिगू, हॆङ्गसु, दूत, पानादिगळ द्वारा अनेक दुःखगळिगू कारणवागबहुदु. इदक्कॆ श्रुति प्रमाणवु हेगॆन्दरॆ :– नवा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति, आत्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति” “गण्डनु तानु हॆण्डतिगॆ प्रियनागबेकॆम्ब सङ्कल्पदिन्द प्रियनागुवदे इल्लवु, आदरॆ परमा त्मन सङ्कल्पदिन्द गण्डनु हॆण्डतिगॆ प्रियनागुवनागुत्तानॆ” ऎन्दु प्रारम्भिसि, “नवा अरे सस्य कामाय सत्वं प्रियं भवति, आत्मनस्तु कामाय सत्वं प्रियं भवति” “सर्ववू ओ मैत्रे यिये, सल्प मात्रदिन्द प्रियवादवुगळागुवदिल्ल, परमात्मन सङ्कल्पदिन्दीग अवॆल्ला प्रियवादवुगळागुवुवु” ऎन्दु श्रुतियु मुगि सिरुत्तदॆ. इदॆल्ला भगवत्सलाधीनवादुदरिन्द, बद्धरिगॆ अल्पानु कूलवागिरुवदु अथवा प्रतिकूलवागिरुवदु, मुक्तरिगॆ पूरानुकूल वागिरबहुदॆम्बुदु निस्सन्देहवॆन्दु हेळुत्तारॆ. भगवत्संश्लेष मिक्कॆ - भगवन्तनॊन्दिगॆ सायुज्यवल्लदे ऎन्दरॆ भगवत्पाप्तियिल्लदॆ, र्ता निन्न पोदु - तानु इरुवाग ऎन्दरॆ बद्धदॆशॆयल्लि लीलाविभूतियल्लिरुवाग, कानुरूपवाग तन्न करान गुणवागि, तनक्कु - तनगॆ प्रतिकूलवागियू, अल्पानु कूलवागियू, तोत्तिन - तोरुव, लीलाविभूतियल्लिन पदार्थ गळु, भगवदनुभवन पण्णु गिर विवनुक्कु , मुक्तदॆशॆयल्लि परि पूर्ण ब्रह्मानुभववन्नु माडिकॊण्डिरुव इवनिगॆ, निरतिशय भो ग्यवर्गले निरतिशयवागि भोग्यवागिरुववुगळ कोटियल्लि,________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः ३८ शेरुगै (कॊरुगै) यु पषम, इलि, 20 १८४९ इप्पडि बद्धरुक्कु प्रतिकूलवायुम् अल्पानुकूलवा यु, करबन्धविल्ला दारु अनुकूल स्वभाववायुव इरुक्कॆ, अपदार्थळुक्कु भगवदिच् सिद्ध, सत्व प्रकारयुक्त श्रीमान्नारायण एव प्राप्य इप्पडि स्वच्छासिद्द मान अनुकूल्यतॆ युडैतान र्त प्रकारणळॆल्ला तोडुव कूडिन श्रीमानान नारायर्ण शेरुगै - सेरुवदु, उपपन्न - समञ्जसवादुदे ; कॊरुगै ऎन्दु पाठवादरू, सेरिसिबिडुवुदु ऎम्बुदे अर्थवु. लीलाविभूति पदार्थगळॆल्ला मुक्तनिगॆ भोग्यवर्गदल्लि सेरिद हागॆये तोरुत्त वॆम्ब भाववु. इप्पडि - ई मेलॆ उपपादिसिद रीतियल्लि, बद्धरिगॆ प्रतिकूल वागियू, कॊञ्च अनुकूलवागियू इरुवन्थाद्दु, करबन्धविल्ला दारु - करबन्धविल्लद मुक्तरिगॆ, अनुकूल स्वभाववुळ्ळवुगळागि, अप्पदार्थळुक्कु इरु - आ पदार्थगळिगॆ अन्तह स्थितियु अथवा इरोणवु, भगवदिच्छासिद्दम् भगवन्तन सङ्कल्पदिन्द उण्टागतक्कद्दागि रुत्तदॆ. पदार्थगळॆल्ला स्वामिसङ्कल्पदिन्द अनु कूलवादुवुगळे ; आदरॆ करबलदिन्द बाधकगळु ऎम्ब तात्सरवु. निर्विशेष ब्रह्मवल्लदॆ सविशेषनाद स्वरूप रूपगुण विभूति मॊदलादवुगळिन्द युक्तनाद शियः पतिये प्राप्यनॆन्दु ई रहस्यग ळल्लि ऎल्लियादरू तोरिबरुत्तदो ऎन्दरॆ हागॆ तोरिबरुत्तदॆन्दु उपदेशिसुत्तारॆ. सत्व प्रकारगळिन्दलू युक्तनाद श्रीमन्नारायण ने प्राप्य नु,
स्टेच्छासिद्धमान - तन्न इप्पडि - मेलॆ हेळिद रीतियल्लि, सङ्कल्प मूलक प्राप्तवाद, अनुकूल्य युडत्तान - आनुकू________________
श्रीमद्रहस्यतयसारे प्राप्यनन्नु मिडं तिरुमलु द्वयत्तिलु चतु र्थ्य पदळिलॆ अभिप्रेम, मुन्सुन्न कैरन ल्यतॆयन्नु हॊन्दिद, श्रीमानन नारायर्ण - लक्ष्मीयुक्तनाद नारायणनु, प्राप्यनन्नु विडम् , प्राज्यनु ऎन्नुव सन्दर्भदल्लि प्रमाणवु, तिरुमनत्तिलु - मूलमन्त्रदल्लि, द्वय लुम्- द्वयमन्त्रदल्लू, इरुव, चतुर्थ्यन्त पदळिले - चतुर्थियु कॊनॆयल्लिरुव पदगळाद नारायणाय ऎम्ब शब्दगळल्लि, ऎन्दरॆ मूलमन्त्रद नारायणाय ऎम्ब पददल्ल, द्वयमन्त्रद श्री मते नारायणाय ऎम्ब पददल्ल, अभिप्रेतम् - तोरिबरु इदॆ. इल्लि स्वच्छासिद्धमान ऎन्दु एकॆ हेळल्पट्टितु ऎन्दरॆ परेच्छा सिद्धवादुदादरॆ सरेश्वरनिगिन्तलू उत्कृष्ट वादुदु इन्नॊन्दु वस्तु उण्टॆन्दागुत्तदॆ. अदु असङ्गतवादुदॆन्दु तिळिसुवदक्कागि स्वच्छासिद्ध मान वॆम्ब प्रयोगवु नारायण शब्ददल्लिरुव नार शब्दवु नित्यवागिरुव सर्व चिदचित्रन्नू बोधिसुत्तदॆ. इवुगळि गॆल्ला आधारनागियू, मत्तु अवुगळन्नॆल्ला शरीरवागि हॊन्दि अवुग आगॆ आत्मावागिरुवदरिन्द, नारायणशब्ददिन्द सर्व प्रकार युक्तनॆम्ब भाववु तोरिबरुत्तदॆ. ई नारायण शब्दवु चतुर्थ्यन्त पदवा दुदरिन्द ई मुक्तनु माडुव सर्व विध कैङ्कर्यवू श्रीमन्नारा यणनिगेने ऎम्बभिप्रायवु तोरिबरुत्तदॆ. इदरिन्द सर्वप्रकार युक्तनाद श्रीमन्नारायणनिगॆ माडुव सर्व विध कैङ्कर्यगळू कार्यरूपवागुवदक्कॆ, कारणवु परिपूर्ण ब्रह्मानुभववादुदरिन्द, ई चतुर्थ्यन्त नारायण शब्दगळु परिपूर्ण ब्रह्मानुभववन्नू बोधिसुत्तवॆ ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. 3 3 आदरॆ श्री यतिवर्यरु द्वय विवरण रूपवाद श्री वैकुण्ठ गद्य दल्लि प्राप्यद फलवु श्रीमन्नारायणनिगॆ कैङ्कर्य माडुवदे ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ. हागॆये शरणागति गद्यदल्लि ई कैङ्कर्यवु प्रीति कारित वॆन्दु तिळिसिरुत्तारॆ. इवुगळल्लि परिपूर्णानुभव विषयवु एकॆ हेळ लिल्लवॆन्दरॆ, यावाग परिपूर्णानुभवदिन्दुण्टागुव प्रीतिविशेषवू________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार అది ఎందరో १८५१ न इप्पडि परिपूर्णानुभवत्तालॆ पिरन्न प्रीति विशेषत्तुक्कु परीवा हवन्नु मिडि गद्यलॆ पलकाल आरुळिच्चॆय् दार्- उतर अदर परीवाहवाद कैङ्कर्यगळू हेळल्पट्टवो, आग परिपूर्णानु भववू सह हेळल्पट्टितॆम्बदागि भाविसतक्कद्दॆन्दु हेळुत्तारॆ. हीगॆ परब्रह्मनिगॆ माडुव सर्वविध कैङ्कर्यगळिगू कारणवु परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदिन्द उण्टाद परमप्रीतियॆन्दु श्री भाष्यकाररवरु उपपादिसिरुत्तारॆम्बदागि मुन्दिन वाक्यदिन्द तिळिसुत्तारॆ. त्तारॆ. <6 मुन्नु सॊन्न - हिन्दॆ उत्तर कृत्याधिकारदल्लि पुरुषार्थवागि हेळल्पट्ट, कैरन्-सत्येश्वरनिगॆ माडुव कैङ्कर्यवु, परिपूर्ण परब्रह्मानुभवदिन्द, सिरन्न-हुट्टिद, प्रीति विशेषत्तु कु-प्रीति विशे षक्कॆ, परीवाहम्- कोडियहागॆ उक्कि बरुव प्रवाहवु, ऎन्नु मिड * - ऎन्नुव प्रकरणवन्नु, गद्यले - शरणागति गद्यदल्लि, पल कालम् - स्वल्प काल, अरुळिच्चॆ दार् . कृपया उपदेशिसिरु अल्लि हेळिरुवदेनॆन्दरॆ : तथाविध भगवदनुभव जनि ता नवधिकातिशय प्रीति कारि ताशेषावक्कोटि ताशेष शेषक रति रूप नित्यकिरो भवानि” हिन्दिन वाक्यदल्लि उपपादिसल्पट्टन्था परिपूर्ण भगवदनुभवदिन्दुण्टाद, अवधियिल्लद अतिशयवाद प्रीति यिन्द ऎन्दरॆ भक्तियिन्द माडल्पट्ट, भगवन्तन समस्त अवस्था विशेषगळिगू योग्यवाद तन्न दासत्वदल्लि मुख्यसक्तियुळ्ळ, कैङ्क र्यवन्नु माडुववनागुवनु ऎम्बर्थवु. इदर तात्पर्यवेनॆं दरॆ, निन्न परिपूर्णानुभवदिन्द निन्नल्लि अवधियिल्लदिरुव विश्वा साति शयवु उण्टागि, आ प्रीत्यतिशयवु निनगॆ सदा दासभूतनागिरुव नन्नल्लि, निनगॆ सर्वावस्थॆयल्लियू तत्त्वदवस्थॆगॆ उचितवाद सर्व विध कैङ्कर्यगळन्नू ऎसगुव हागॆ निन्न अनुग्रह उण्टागलि ऎम्बुदु. हीगॆ कैङ्कर्यवु भगवदनुभवदिन्दुत्पन्नवादुदरिन्द, राय णाय ఎంబ पदद चतुर्थियल्लि तोरुव कैङ्कर्य दिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु अभिप्रेतम ऎन्दु हेळल्पट्टितु. आदरॆ भगवदभिमतानुगुणवाद कैर्यपरन्तवादुदु ई परि ऎं 324 25251________________
१८५२ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे मुक्तस्य जक्षण क्रीडनादीनां कै राष्ट्रराव कथनम् मु (कि) क्त द कैयिले श्रुति सिद्धमान जक्षणादिगळु व क्त पूर्ण ब्रह्मानुभववु, ऎन्दु हीगॆ हेळिदुदादरॆ, सतत्र परीति जक्ष तनननाणः भिल्वा यानैर ज्ञातिभिरा” (छां, ८. १२. ३) ऎन्दरॆ आ प्रास्तावाद जीवात्मनु परमात्मनन्नु हॊन्दि आतन सुत्तलू अनुसञ्चरिसुत्ता आतनन्ननुभविसुवनु, स्त्रीयरिन्दलू वाहनगळिन्दलू, ज्ञातिगळिन्दलू सेरिदवनागि रमिसुवनु ऎन्दरॆ सश्वरन सलाधीननागि तन्न इष्टानुसार सर्व विध भोगग इन्नू अनुभविसुवनॆन्दु श्रुतियु हेळिरुत्तदॆयल्ला मत्तु इन्नॊन्दु कडॆयल्ल अदे उपनिषत्तु “सय दि पितृलोक कामो भवति, सङ्कला देवास्य पित रस्स मुत्ति स्म” “ ावाग मुक्तनागुवनो आग तन्न हिन्दिन जन्म सन्ततिगळ पितृवर्गवन्नॆल्ला नोडबेकॆम्ब अपेक्षॆयुण्टादरॆ, आ पितृवर्गवॆल्ला ईतन सल्पदिन्दले प्राप्तरा गुवरु, अवरिन्द युक्तनागि पूजिसल्पडुवनॆन्दू प्रारम्भिसि हेळि, कॊनॆगॆ “यं यमन मभिक मो भवति, यं कामयते, सोस्य सङ्कलादेव समुष्णति” “ई मुक्तनिगॆ याव याव अन्वर् ऎन्दरॆ फलदल्लि अभिरुचियो, यावुदु अपेक्षित वॊ, अवॆल्ला आतन सल्पमात्रदिन्दले प्राप्तवागुत्तदॆ” ऎन्दु मुगिसि रुत्तदॆ. हीगॆ सर्व विध भोगगळू अनुभवगळू हेळल्पट्टिरुवाग, कैङ्कर परन्तवाद भगवदनुभववे प्राप्ति हेगागुत्तदॆन्दु प्रश्निसि दरॆ अदक्कॆ समाधानवन्नु मुन्दिन वाक्यदिन्दुपदेशिसुत्तारॆ. मुक्तनिगुण्टागुव जक्षण क्रीडनादिगळॆल्ला भगवरदल्ले अन्तरतगळु. मुक्तद शैयिले - मुक्तनागिरुव अवस्थॆयल्लि, मुक्तिद ले ऎम्ब पाठवादरॆ, मुक्तियन्नु हॊन्दिरुव अवस्थॆयल्लि ऎम्ब र्थवु, श्रुतिसिद्धमान - छान्दोग्यद अष्टम प्रपाठक मूरनॆय________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८५३ ज्ञात्यादि सम्पादनळु मॆल्लाम् पुण्य पापरूप कर निर पेक्ष भगविदिानुगुण स्वच्छा मूलङ्गळागैयाले कर्म फल मन्रिक्कॆ अनुभव परीवाहमान केवल कै रले अन्ततज्ञळ्. खण्डदल्लि “जक्षर्ड रममाण” ऎन्दु मेलॆ उदाहरिसिरुव श्रुति प्रमाणवुळ्ळ, जक्षणादिगळु . ऊट मॊदलादवुगळू, आदि शब्ददिन्द आट मॊदलादवु सङ्ग्रहिसल्पट्टवु, ज्ञात्यादि सम्पादन ळुमॆल्ला - आ श्रुति वाक्यदल्लि “भिरा यानैय्या ज्ञाति भिरा” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ, ज्ञातिगळॊन्दिगॆ समागम मॊदलादवु गळॆल्ला, इल्लि आदि पददिन्द, स्त्रीगळ, वाहनगळ प्राप्ति यु हेळल्प ट्टितु, ऎल्ला ऎम्बुवदरिन्द माता, भारा, भ्राता, गीतवादित्र मॊदलादवुगळ प्राप्तियु सूचिसल्पट्टितु, हीगॆ इवॆल्लवू पुण्य पाप वॆम्ब ऎरडु विधवाद करगळ, निरपेक्ष-मूलकवल्लद, भगवदिच्छा नुगुण - भगवन्तन इष्टानुसारवाद, स्वच्छा मूलङ्गळागै याले - तन्न इष्टवे मूलकारणवागि उळ्ळवुगळादुदरिन्द, ई भोगगळॆल्ला, कफलमग्रि - कफलगळल्लदे, अनुभव परी वाहमान - परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद प्रवाहरूपवाद, केवल कैय्यले - केवल कैङ्कय्यदल्ले, अन्तरू तज्ञळ् - अडगिदवु, सेरिदवु. आ ऊट आटगळू, इतर भोगगळू, तायि, तन्दॆ, भाल्या, भ्राता, मुन्तादवरुगळ समागमवू, अदरिन्दुण्टागुव हर्षवू इवॆल्लक्कू भगवदनुभवदिन्दुण्टाद कैङ्कदल्ले परवसानवॆन्दु हेळल्पट्टितु. हेगॆन्दरॆ मुक्तदॆशॆयल्लि ईतनिगॆ पुण्यपापरूप कर सम्बन्धक्कॆ कारणवे इरुवदिल्लवु. “यथेष का तूलमगौ प्रोतं प्रदूयेत, एवं हास्य सरै सात्मानः प्रदूयं ते” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ पुण्यपापगळॆल्लवू बॆङ्कियल्लि बिद्द ऊबिन हत्तियन्तॆ दग्धवागि होगिबिडुत्तवॆ. हीगिरुवाग ईतनिगॆ प्राप्त वागुव, श्रुतियु हेळिरव, सर्व विध भोगगळू कर्मफलवल्लवु. सस्वराष्ट्रवति ऎन्दु हेळिरुव हागॆ करवशनल्लदॆ, सश्वरन इष्ट________________
१८५४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे परब्रह्मप्राप्तः सिद्दानेषु निर्णि तोर्थ आगैयाल् प्राप्तियायित्तदु यथाभिमत कैय्य पठ्यन्त परिपूर्ण ब्रह्मानुभव (नन्नदायित्तु) म्. परिपूर्ण ब्रह्मानुभवस्य नित्यत्वं प्रमाणानिच. పి इव्वनुभवन्नुण्णा नाल् सिन्नूरु काललु अळियादॆ नुसारवागि तानू तन्न सङ्कल्पदिन्द तनगॆ इष्टवाद भोगगळन्नु अनुभविसुवनु. सश्वरनु हेगॆ तन्न इष्टानुसार भोगगळन्ननु भविसि प्रीतनागुवनो, हागॆये तन्न प्रियभक्तनाद मुक्तनू कूड ई मेलॆ हेळिद भोगगळन्ननुभविसुवदरिन्द शियःपतियु सुप्रीत नागुवनु. हीगॆ भगवदभिमतानुवर्तियागिद्दु कॊण्डु माडुव ईतन सर्व विध व्यापार भोगादिगळिन्द भगवन्तनु सुप्रीतनागि आनन्दिसुवदरिन्द भगवङ्करदल्ले इवू अन्तर्भूतगळॆन्दु हेळु वदरल्लेनू विरोधविल्लवॆम्ब भाववु. परब्रह्मप्राप्ति ऎम्बुवदक्कॆ सिद्धानदल्लि निश्चयिसल्पट्ट अल्लवु. अर्थपञ्चक विवरणॆयल्लि परब्रह्म प्राप्तिरूप फलवु अवुगळल्लि ऒन्दॆन्दू, आ फलद स्वरूपवु मुन्दॆ प्राप्त स्थळदल्लि तिळिसल्पडुव दॆन्दू, हेळल्पट्टित्तु. आ परब्रह्मप्राप्ति ऎम्बुदु ऎन्थाद्दॆन्दु ईग तिळिसुत्तारॆ. ईग परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदिन्दुण्टाद प्रीत्यति शयवु कैङ्कर्यरूपवागि परिणमिसुत्तदॆन्दु हेळिदुदरिन्द, ई कैङ्कर्यपरन्तवाद परिपूर्ण ब्रह्मानुभववे परब्रह्मप्राप्ति ऎन्दु हेळिसिकॊळ्ळुत्तदॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. आगैयाल् - आदुदरिन्द, प्राप्तियायित्तदु - परब्रह्म प्राप्ति ऎन्दु हेळिसिकॊळ्ळुवदु, यावुदॆन्दरॆ :-यथाभिमत - भग वन्तन इष्टक्कनुसारवाद, कैङ्कर्यपर्यन्तवाद, परिपूर्ण ब्रह्मा नुभववु.________________
(2) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८५५ न्नु मिडम्, (१) “ प्राप्यते परमं धाम यतो नानरते यतिः”, (२) “म मुहेळ्य पुनर्जन्म दुःखालय मशा परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद नित्यत्ववू, प्रमाणगळू सह. तवाद सत्येश्वर कृपॆयिन्द ऒन्दानॊन्दु कालदल्लि परिपूर्ण ब्रह्मानु भववु लभिसिदुदादरॆ, तदनन्तर अदक्कॆ ऎन्दिगू च्युति इल्लवॆन्दु हेळ लुद्युक्तरागि कॆलवु प्रमाणगळन्नु उदाहरिसिरुत्तारॆ. इव्वनुभव मुण्णा नाल् ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु भगवदनुग्रहदिन्द लभि सिदुदादरॆ, सिट्टूरु कालत्तिलु - अनन्तर यावुदॊन्दु काल दल्ल, अळियादु नाशवागुवदिल्लवु, ऎन्नु मिडम् - ऎन्नुव सन्दर्भवु, (१) “यतिः - ब्रह्मनिष्ठनाद सन्यासियु, यतः - याव दिव्य वैकुण्ठदिन्द, नावते - पुनः ई प्राकृत लोकक्कॆ बरुव दिल्लवो, अन्तह, परमन्धाम - सत्कृष्टवादुदरिन्द परम पदवॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव स्थानवु, हॊन्दल्पडुत्तदॆ.” (२) “महा त्मानः - सरोत्कृष्टवाद मनस्सुळ्ळवरु, ऎन्दरॆ यथावस्थित नन्न स्वरूपद ज्ञानवुळ्ळवरागि, नन्नल्ले अत्यन्त भक्ति विश्वासगळन्नुळ्ळ वरागि, नानिल्लदॆ आत्मधारणॆयन्नु माडलशक्तरादवरागि, नन्नल्ले सेरिद मनस्सुळ्ळवरु ऎम्बर्थवु. इन्तह, परमां संसिद्दिङ्गताः - सत्कृष्टवाद श्रेयोरूपवाद तन्न प्राप्तियन्नु हॊन्दिदवरु, माम् उपेत्य - नन्नन्नु हॊन्दिद नन्तर, दुःखालयं - सर्व विध दुःखगळिगू तौरुमनॆयाद, अशाश्वतं - अस्थिरवाद, पुनर्ज नवन्नु, नाप्पुवन्ति हॊन्दुवदिल्लवु. आब्रह्म भुवनालोका ब्रह्माण्डोदरदल्लिरुव ब्रह्मलोक पठ्यन्तवाद समस्त लोकद जन रू हे अर्जुनने, पुनरावरिनः - पुनः हिन्तिरुगि बरतक्कवरु ऎन्दरॆ अल्लिन्द पुनः ई लोकक्कॆ बरबेकागुत्तदॆ ऎम्ब भाववु, ओ कुन्ति पुत्रने, मामुपेत्यतु - नन्न नाश्रयिसि नन्नन्नु हॊन्दिद वरादरो, नानु सर्वज्ञनागि, सत्य सङ्कल्पनागि, समस्त जगत्तुगळ (१) अहि, ३७, २६, (२) गी, ८-१५. १६.________________
१८५६ श्रीमद्रह सैत्रयसारे तम् । नाप्पुवन्ति महात्मान स्पंसिद्दिं परमाङ्गताः ॥ ब्रह्म भुवनालोकाः पुनरावरि नोरुन । मामुपेत्यतु कौन्वय पुनर्जन्म नविद्यते ”, (३) “यदास केवली भूत पंश मनुपश्यतितदा ससत्वसिद्धता तुनर्जन्म नविन्द ति (४) “गागा निवर्तन्ते चन्द्रसादयोग्रहाः । Z उत्पत्ति स्थितिलयगळन्ने लीलॆयागुळ्ळवनागि, परम कारुणिकनागि, यावागलू ऒन्दे विधवागिरुववनादुदरिन्दले, नन्नन्नु हॊन्दिद वरिगॆ, पुनर्जन्म न विद्यते - पुनर्जन्मविल्लवु,” ई सन्दर्भदल्लि “न च परम पुरुष सत्यसङ्कzत्य प्रियं ज्ञानिनं ला कदाचिदावरयिष्यति” ऎन्दरॆ सत्य सङ्कल्पनाद परम पुरु षनु तनगॆ अत्यन्त प्रियनाद ज्ञानियन्नु हॊन्दिदवनागि ऎन्दिगू आतनिगॆ आवर्तियन्नुण्टुमाडुवदिल्लवॆन्दु, श्री यतिवररु अप्पणॆ कॊडिसिरुत्तारॆ. (३) “यदा - यावाग, सः - आ मुक्तनु, केवली भूतः - प्रकृतिसम्बन्धविल्लद वनागि, षड्वंशं - २६नॆय तत्ववाद परमात्मनन्नु, साङ्ख्यर विभाग प्रकार २४ अचितत्वगळु, २५नॆय तत्ववु जीवात्मनु, २६नॆय तत्ववु परमात्मनु, अनुपश्यति - साक्षात्करिसि अनुभविसुवनो, तदा - आग, सः - आ आत्मनु, सर सिद्धत्वात् - परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदिन्द सर्वविध भोगवू उण्टा गुवदरिन्द, पुनर्जन्म न विन्दति - पुनर्जन्मवन्नु हॊन्दुवदिल्लवु. इदु श्री भीष्मरु हेळुव जनक याज्ञवल्क, संवाददल्लि, मिथिला धिपनिगॆ याज्ञवल्क रुपदेशवु.” ई सन्दर्भदल्लि “ न च पर ब्रह्मानुभवैक स्वभावस्य तदेक प्रियस्य अनवधिकानं ब्रह्मानुभव तोz न्यापेक्षा” ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभववन्ने सदा माडिकॊण्डु, आ परमात्मनॊब्बनल्ले परिपूर्ण प्रीति इरुववनिगॆ अनवधिकानन्द स्वरूपनाद परब्रह्मन अनुभवक्किन्त बेरॆ यावुद रल्ल अपेक्षॆयिरुवदिल्ल” ऎन्दु श्री यतिवररु हेळिरुत्तारॆ. (४) * चन्द्रसूय्यादयो ग्रहाः - चन्द्रसूर्यरे मॊदलाद ग्रह CC (३) भारत शा ३२८-८१ (4) D. J. 7. 2. 40. 99________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८५७ अद्यापि ननिवरने द्वादशाक्षर चिन्न काः॥” (५) “नायि नाल् नमो नारणावॆनु मत्तॆ क डैगळ्ळि कूप्पि पोयिनाल् पिन्नॆ इ न्नु म् पुण् कॊडुक्कि लुव पोगविट्टरे? इत्यादिगळिले प्रसिद्ध. गळु, गत्वा गा - तम्म तम्म अधिकारगळन्नु हॊन्दिदवरागि, कॊनॆगॆ प्रळयकालदल्लि, निवरने - तम्म स्थानदिन्द हिन्तिरुगुवरु, स्थान भ्रष्टरागुवरु, इल्लि चन्द्रसूररन्नु मुख्यवागि हेळिरुवदु, अवरु कालनियामकरागिरुवदरिन्द ; हागॆ हेळिरुवदु चतुरख ब्रह्म मॊदलादवरिगू कूड उपलक्षणवु ; हीगॆ अनेकरिगॆ जन्म सन्ततिगॆ ळुण्टु; इन्नु यारिगॆ पुनरावर्तियिल्लवॆन्दरॆ हेळुत्तारॆ, द्वादशा कर चिन्न कः - द्वादशाक्षर मन्त्रवन्नु जपिसुववरु, अद्यापि - ईगलू कूड, न निवत्रनॆ - हिन्तिरुगि ई लोकक्कॆ बन्दु जन्मव न्नॆत्तुवदिल्लवु ऎन्दरॆ दिव्यवैकुण्ठदल्ले सदा इरुवरॆम्ब भाववु, द्वादशाक्षर मन्त्रवु श्री वासुदेव मन्त्रवु, हन्नॆरडु अक्षर ई गळुळ्ळ मन्त्रवु ; इदन्ने नारदरु प्रह्लादरिगॆ बोधिसिदुदु ; द्वादशाक्षरवॆन्दु हेळिदुदु इतर मन्त्रगळाद अष्टाक्षर मन्त्र मत्तु विष्णु षडक्षर मनॆगळिगू उपलक्षणवु. इल्लि अद्यापि ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द सृष्टि मॊदलुगॊण्डु इन्दिनवरॆगू अवरिगॆ पुनरा वृत्ति इल्लवॆन्दु हेळिदु दरिन्द ऎन्दिगू अवरिगॆ पुनरावरि इल्लवॆम्ब भाववु (५) “नायिनाल् नमोनारणावॆनु - बायिगॆ सारक्य वागि, बायियिन्द नमो नारायणा ऎन्दु मूल मन्त्रवन्नु जपिसि, इदु वाचक कैरवु, मत्तॆ क डैगळ्ळॆक्कुप्पि - तलॆगू कैगळिगू सार क्यवागि, मस्तकद मध्यदल्लि ऎन्दरॆ तलॆय मेलुभाग दल्लि कैगळन्नु जोडिसि अञ्जलि रूपदल्लि नमस्कार माडि, इदु कायिक कैरव, पोयिनाल्-हीगॆ कालयापनॆयन्नु माडि देह त्याग माडिदरॆ, नित्य विभूतिय प्राप्तियुण्टागुवदरिन्द, पिन्नॆ- पुनः इक्कु - ई लीलाविभूतिय कडॆगॆ, ऎन्नुम् - ऎन्दिगू, याव
(५) पॆरिय तिरुमॊळि ४. ५. २.________________
१८५८ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे गलू, पिणै कॊडुक्किलुम् . यार जामीनन्नु कॊट्टरू, पोग वॊट्टार् - होगलु सम्मतिसुवदिल्लव; बायियल्लि मूल मन्त्र वन्नु चरिसि सक्ष शरणागतियन्नु माडिदवरिगॆ दिव्यवैकुण्ठ प्राप्ति युण्टागुत्तदॆ. अवरिगॆ आमेलॆ एनु समाधानवन्नु हेळि, याव जाविनन्नु कॊट्टु नीवु लीलाविभूतिगॆ स्वल्प काल होगि बन्नि, पुनः इल्लिगॆ करॆदुकॊळ्ळुवॆवु, इदरल्लि सन्देह बेडवॆन्दु हेळिदरू अवरु ऎन्दिगू सम्मतिसरु, अल्पकालीनवाद ई शरणागत्यनुष्ठानदिन्द निरन्तर दिव्य वैकुण्ठ प्राप्तियुण्टागि पुनरावर्तियन्नु ऎन्दिगू अपेक्षिसुवदिल्लवॆम्ब भाववु. इदु पाशुरद उत्तरार्धवु. पूर्वार्ध वेनॆन्दरॆ :- “शीयिनार् चिरस्थॆरिय पुण् मेर् चॆं लॆक्कुळ मैरुन्नॆष्टु व । ईयिनालरिप्पुण्णु मयज यॆलैवा चैनु चेर्वदन्नुन्नम् ॥” ऒन्दु हुण्णु ऎद्दु कीतुकॊण्डु, बातु, अदर मेलॆ नॊण कूतु, अदर बाधॆ उरि सहिसुवदक्कागदॆ मूर्छ हॊन्दि चरम दॆशॆयु प्राप्तवागि देहावसान प्राप्तवागुवदक्कॆ मुञ्चितवागि, नावु नमो नारायण ऎन्दु हेळ शरणागतियन्न नुष्ठिसि परमपद वन्नु हॊन्दुवदु लेसु. अन्तह दिव्य वैकुण्ठवु दॊरॆत नन्तर ई तुच्छवाद लीलाविभूतिगॆ हिन्तिरुगि बरलु ऎन्दिगू नावु सम्मतिसला रॆवु ऎम्बुदु ई पाशुरार्थवु.” इत्यादिगळिलॆ - इवे मॊदलाद प्रमाणगळल्लि, प्रसिद्धवु. हीगॆ मुक्तनिगॆ श्रुतिय, “ न च पुनरा वर ते” ऎन्दुपदेशिसिद रीतियल्लि पुनरावरिगॆ अवकाशवे इल्लवॆन्दु हेळिरुता रॆ. ई “दुःखालय मशाश्वतव” ऎम्बदागि हेळिरुव ई मर लोकवन्नु मुक्तनु ऎन्दिगू अपेक्षिसुवदिल्लवु. सश्वेश्व रेनादरू कारणदिन्द अल्लिन्द कळुहिसिबिडुवनो ऎन्दरॆ, भक्तन विष यदल्लि अपार कारुण्य महोदधियादवनु, भक्तनु परमपदक्कॆ बन्दाने ऎम्ब अवसर प्रतीक्षॆयल्लिद्दवनु, आ भक्तनिगॆ मुक्तियन्नित्तु, अवनिगॆ पुनः अति दुस्सहवाद दुःखवन्नुण्टुमाडि अल्लिन्द ओडिसिबिडु वने ? आदुदरिन्द पुनरावरि, शब्याविगॆ कारणवे इरुवदिल्लवॆन्दु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्तस्य प्राकृतलोक सञ्चारो नपुनरावृत्ति Cerge भगवरान्तर्भूतमान स्वच्छन्द विहारत्तालॆ हेळि, सह श्लोकदल्लिरुव “निवृत्ति कथोतॆं” ऎम्बुवदर उप पादनवन्नु पूरैसिरुत्तारॆ. ई लीला विभूतियल्ले इरुव कारै रूप वाद लोकगळिन्द पुनरावरि इद्दरू, ई लीलाविभूतियन्नति क्रमिसि, प्रकृतिसम्बन्धविल्लद त्रिपाद्विभूतियिन्द पुनरावर्तियिल्लवॆम्ब तात्पर्यवु. 66 & 66 आदरॆ, “सस्वराद्भवति तस्य सरोपु लोकेषु कामचारो भवति” (छां ७. २५. २) “ आ मुक्तनु अकरवश्यनागुवनु, आतनिगॆ ऎल्ला लोकदल्लू इष्टानुसार सञ्चार उण्टागबहुदु” ऎन्दु हेळि रुवदरिन्द ई लीलाविभूतिगू कूड ऒन्दु सञ्चरिसबहुदु ऎन्दु श्रुतियु हेळुत्तदॆ. हागॆये शै रीय भैगुवल्लियल्ल, (१०.५) तैत्तरीय इर्मा लोर्का कामा काम रूप्यनु सञ्चर्ग” ऎन्दरॆ * ई मुक्तनु विकारगळिगॆ ऒळपट्ट ई लोकवे मॊदलाद बन्द्रादि अधिकारिगळ मण्डलगळागिरुव लोकगळल्लि सञ्चरिसि, अल्लिन समस्त भोगगळन्नू अनुभविसुवनु” ऎन्दु हीगॆल्ला हेळिरुवदरिन्द ई लोकद उप भोगगळू कूड आ मुक्तन इष्टानुसार ईतनिगॆ लभिस बहुदॆन्दु हेळिरुत्तदॆयल्ला ऎन्दरॆ, अदक्कॆ मुन्दिन वाक्यदिन्द समाधान हेळुववरागि, अन्तह सन्दर्भदल्लि ईतनु कवश्यनल्ल दुदरिन्द सर्ववू ईतनिगॆ अनुकूलवागिये आदवुगळागि बन्धविल्लदॆ तन्निष्टानुसार समस्त भोगानुभववागुवदरिन्द, आगलू पुनरा वर्तियिल्लवॆन्दे तिळियतक्कद्दॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. मुक्तन लीलाविभूतिय सञ्चारवु पुनरावृत्तियागुवदिल्लवु. भगवन्तन कैङ्कय्यदल्ले भगवरान्तर्भतॆ मान अडगिरुव, स्वच्छन्द विहारलॆ - तन्निष्टानुसारवाद विहारदल्लि भोगदल्लि, लीलाविभूतियल्लि, पुक नालुम् - प्रवेशिसिदरू, इव्व________________
८६० श्रीमद्र हस्यत्रयसारे लीलाविभूतियिलॆ पुकन्सालु इव्वनुभव सचादिगळ सिरनामैयाले पुनरावरि यिल्लि ऎरदु. अपकृष्ण शरीराद सि मुक्तिस्सा ध्या, नमुक्त तारतम्य प्रसङ्गः, इप्पडि उत्तराव (लाद वनुभवम् पॆरुवाक्कु नुभव सजादिगळ - ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदल्लि, न्यूनतॆ गळु, पिरामैयाले - उण्टागदे इरुवदरिन्द, पुनरावर्तियु आगलू इल्लवु, ऎरदु - ऎन्दु हेळतक्कद्दागिरुत्तदॆ. हिन्दॆ भग वक्षीणनवन्नुण्टुमाडुव ईतन सर्व भोगगळू भगवङ्कर्य दल्ले अन्तर्भूतगळॆन्दु हेळल्पट्टितु. अदन्ननुसरिसि इल्लियू कूड भगवं य्यान्तरतमान स्वच्छन्द विहार वॆन्दु हेळल्प ट्टितु. इन्तह उपभोगगळॆल्ला स्वच्छन्द वॆन्दु हेळिदुदरभिप्रा यवु, करमूलकवागि अल्लवॆन्दु हेळुवदक्कागि ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. इवु स्वच्छन्दवादरू, भगवन्तन इष्टक्कॆ विरोधवादुदल्लवॆम्ब तात्प र्यवु, लीलाविभूतियिलॆ पुकालुम्, ऎन्दु हेळुवदरल्लि मेलॆ उदाहरिसिरुव “इर्मा लोर्का” ऎम्ब मत्तु * कानु चारो भवति” ऎम्ब श्रुत्यर्थगळु अनुसन्धेयगळु, इल्लि सचि चाडि ऎम्बल्लि आदि शब्ददिन्द अनुभवद अभाव तन्मूलक भगव कर्य विच्छेदगळु ग्रहिसल्पट्टवु. हीन जन्मदिन्दलू कूड मुक्ति साध्यवु. आदरॆ मुक्तियल्लि तारतम्यविल्लवु. इप्पडि - मेलॆ उपपादिसिद स्वरूपवुळ्ळ, उत्तरावधियिल्लद उत्तरकालावधियिल्लद ऎन्दरॆ नित्यवाद, यव्वनुभव - ई कैङ्कर्यपरन्तवाद परिपूर्ण ब्रह्मानुभववन्नु, पॆरवाक्कु - हॊन्दुववरिगॆ, अम शरीरम् - कॊनॆय प्राकृत शरीरवु, देव मनुष्यादिगळिल् - देवतॆय शरीरवो, मनुष्य शरीरवो, आदि________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः ८६१ अम शरीरं देव मनुष्यादिगळि इन्न दिलॆ ऎन्नु तॆरि शब्ददिन्द, पक्षि मृगादि शरीरगळल्लि, इन्न दिलॆ - इन्ताद्दरल्ले, ऎन्नु इन्नलॆ ऎम्बदागि, तॆरियादु - गॊत्तागुवदिल्लवु ; ऎन्दरॆ इन्तह शरीरदिं दले मुक्तियु, देवतॆगळिगॆ मनुष्यरिगॆ मात्रवे मुक्तियु, इतर जन्तुगळिगिल्लवॆम्बुदिल्लवु. सत्येश्वरनिगॆ कृपॆ बन्दरॆ याव शरीरदिं दलेयागलि मुक्तियु प्राप्तवागबहुदु ऎम्ब तात्पर्यवु मो क्षवु मनुष्य शरीरदिन्दलागलि, देवशरीरदिन्दलागलि अथवा तिरक्कुगळ शरीरगळिन्दलागलि प्राप्तवागबहुदु. गजेन्द्रनिगू, जटायुविगू, जाम्बवाननिगू तिरग्नन्तु शरीरगळे अन्तिम शरीरगळादवु. विदुर निगॆ शूद्र देहवे अन्तिमशरीरवायितु. हागॆये श्री भागवतदल्लि (9.2.46) “तेवॆ विदतितरन्ति च देवमायां स्त्री शूद्र हूण शबरा अपि पाप जीवाः । यद्यद्भुत क्रमपरायण शीलशिक्षा सिरग्गण अपिकमुश्रुत धारणाये ” स्त्रीयरू, शूद्ररू, हूणरू, पापकृत्यगळिन्द जीविसुव शब ररू सह ई प्राकृत शरीरवन्नु त्यजिसि सत्येश्वरनन्नु हॊन्दबहुदु. हेगॆ हॊन्दबहुदु ऎन्दरॆ, अद्भुतक्रमनाद त्रिविक्रमावतारियन्ने परायणवॆन्दरॆ उत्कृष्टवाद प्राप्त प्रापक आधारवागिवुळ्ळ महा भागवतर शीलदल्लि शिक्षॆयुळ्ळवरादरॆ ऎन्दरॆ भागवतरन्नु इवरुगळु आश्रयिसिदरॆ आग मुक्तियन्नु हॊन्दबहुदु. मत्तु अन्तह भागवत संश्रयणवुळ्ळ तिरग्गणगळू कूड मुक्ति हॊन्दबहुदु. हीगिरुवल्लि किमुश्रुतधारणाये - ई तिरक्कुगळिगादरो श्रुतवाद अर्थ वन्नु धरिसुव शक्तियिल्लवु, अन्तह शक्तियुळ्ळ ब्राह्मण मॊदलाद मनुष्यर विषयदल्लि हेळतक्कद्देनिरुत्तदॆ. हीगॆ अन्तिम शरीरवु तिर गादि ादि शरीरवादरू आगबहुदॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. “पशुर नुष्यः पक्षवा येत वैष्णव संश्रयाः। तेनैव ते प्रया स्वन्ति तद्विष्टोः परमं पदम् ।” ऎन्दू हेळिरुवदरिन्द महा________________
१८६२ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे यादु. ब्रह्मादिगळु कुम् मोक्ष मुण्ण, अप्पडिये भागवतोत्तमनन्नु आश्रयिसिद पशुवागलि, मनुष्यनागलि, पक्षिया गलि परमपदवन्नु हॊन्दुत्तदॆन्दु हेळिरुवदरिन्द, ई शरीरगळॆल्ला अन्तिम शरीरगळागबहुदॆम्ब तात्पर्यवु प्रपत्तुपायक्कॆ हेगॆ उत्कृष्टा पकृष्ण शरद नियमविल्लवो भक्तु पायक्कू कूड हागॆये ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यरिगॆल्ला उपासनक्कॆ योग्यतॆयिरुवदरिन्द प्रारब्ध कळॆद नन्तर मुक्तियुण्टु, इन्नु देवतॆय शरीरदिन्दलू मुक्तियुण्टो ऎन्दरॆ, तदु हरसि बादरायण स्पम्भवात् (१. ३. २५) ऎम्ब सूत्रदल्लि, तत् - आ परब्रह्मपासनवु, उ पठ्यपि सम्भवति - देवा दिगळल्लू उण्टु ; एकॆन्दरॆ अवरिगू कूड अर्थित्व सामर्थ्यगळु इरुवदरिन्द अवरिगू उण्टॆन्दु बादरायणरु अङ्गीकरिसुत्तारॆन्दु हेळिरुवदरिन्द देवतॆगळिगू मुक्तियुण्टादुदरिन्द देवशरीरवू अन्तिम शरीरवागबहुदु. ई कारणगळिन्द याव शरीरदिन्द मुक्ति ऎन्दु गॊत्तागि हेळलु साध्यविल्लवॆम्ब भाववु, मनुष्य शरीरदिं दले मुक्ति ऎन्दु कॆलवरु भाविसबहुदु, एकॆन्दरॆ उपासनॆगॆ अधिका रियु मनुष्यने विना इतररल्लवॆम्बभिप्रायदिन्द हागॆ हेळुत्तारॆ. देवतॆगळू अधिकारिगळॆन्दु हेळुवदक्कागि, ब्रह्मादिगळुक्कु मोक मुण्डु ऎन्दु हेळिदरु. आदरॆ उपासन मात्रवे मोक्षक्कॆ कारण वल्लवादुदरिन्द, तिरग्गण मॊदलादवू कूड मोक्षवन्नु हॊन्द बहुदॆन्दु हिन्दॆ हेळल्पट्टितु. हीगॆ मोक्षक्कॆ अन्तिम शरीर नियम निल्लवॆन्दु हेळिद नन्तर चतुम्मुख ब्रह्मादि देवतॆगळिगू मोक्ष उण्टॆन्दु तिळिसुत्तारॆ :- ब्रह्मादिगळुक्कु - चतुरुख ब्रह्म मॊदलाद देवतॆगळिगू, आदि शब्ददिन्द रुद्रेन्द्रादि देवतॆगळॆल्ला हेळल्पट्टरु. उपासनवु मोक्षवन्नु हॊन्दुवदक्कॆ ऒन्दु ऒळ्ळॆ उपायवॆन्दु हेळल्पट्टु, देवतॆगळू, मनुष्यरल्लि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यराद उत्कृष्ट मनुष्यरे योग्यरागिरुवल्लि याव देहदिन्दला गलि मोक्षवु सिद्धिसुत्तदॆये ऎम्ब सन्देह दल्लि याव शरीरदिन्दले________________
(2) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८६३ (१) “भ ग्याढा पयोग्य भूरि भासजागुते । वा सम्प्रा प्रान्सि सिद्धि श्रमणि या” ऎन्नु महगळ वर शो न्ना गळ्. 1 चशरिर आगलि उत्कृष्टा पकृष्ट नियमविल्लदॆ आगबहुदॆन्दु हेळल्पट्टितु. हीगॆल्लादरू उण्टॆ ऎन्दरॆ अदक्कॆ प्रमाणवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ. अन्य धरव्याधादयोपि - इतराद धर्मव्याधरे मॊदलाद वरू कूड जुगुप्पितॆ – मनस्सिगॆ असह्यवाद वावर. नीच वर्णदल्लि हुट्टिरुवदु, सम्भविसिरुवाग ऎन्दु इट्टुकॊळ्ळतक्कद्दु, पूराभ्यासत् - हिन्दिन जन्मदल्लि माडिद उपासनॆ फलदिन्द, सं सिद्धिम् - मोक्षफलवन्नु श्रमणीयण - शबरियु हेगॆ हॊन्दि - दळो हागॆ, सम्प्रास्ताः - हॊन्दुत्तारॆ.” ऎन्न) - ऎम्बदागि, मह गल् - महर्षिगळु, सॊन्सार् गळ - हेळिरुत्तारॆ. दिन्द मोक्षवु युक्तवो ऎन्दरॆ, अदक्कॆ समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ; अन्तवरिगॆ अवरु माडिरुव भयोगि उपासनगळिन्द मोक्षवु सिद्धिसिरबेकु ; आदरॆ अवरिगॆ इन्नू प्रारब्दवु कळॆयलिल्लवादुदरिन्द ई हीनजन्मवन्नु ऎत्तबेकागि बन्तु; ई ारवु कळॆद ऒडनॆये पूर्वाभ्यासद फलवागि मोक्षवुण्टागुवदरल्लेनू विरोधविल्लवु. हागॆये प्रप नुष्ठान माडिद मत भागवतन सम्बन्धवु परम सुकृत परिपाकदिन्द हीन जन्मवुण्टाद मन ष्यनिगागलि तिरगन्तुविगा गलि प्राप्तवागबहुदु ; अदरिन्द मोक्षप्राप्तियुण्टागबहुदु. आदुदरिन्दले श्री यामुनॆय * तव दास्य सुबैकस नां भव नेतृपि कीटजन्म” ऎम्बुददिन्द महाभागवत मनॆयल्लि कीटजन्मवू कूड उत्तारकवॆन्दुपदेशिसिदरु. धर्मव्याधन वृत्तान्त वेनॆन्दरॆ :- ऒब्ब ब्राह्मणनु वृद्ध मातापितृगळिद्दरू, अवर शुशूषॆयल्लि निरतनागदॆ कर्मनिष्ठादिगळिन्द युक्तनागि महा तेजस्वि यागिद्दनु. ऒन्दु दिन भिक्षार्थियागि पक्कद ग्रामक्कागि तॆरळि मार्गायासदिन्द ऒन्दु मरद कॆळगॆ विश्रमिसिकॊण्डनु. (१) वि. ध. १०२. २९, ऒन्दु________________
१८६४ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे पक्षियु आतन मेलॆ विष्ठिसिदुदरिन्द, ब्राह्मणनु कोपदिन्द पक्षियन्नु नोडलु अदु दग्धवागि कॆळगॆ बिद्दु सत्तितु. अनन्तर आ ग्रामदल्लि ऒन्दु मनॆगॆ बिक्षॆगागि होगलु, मनॆयल्लिन महा पतिव्रतॆयु, पति शुशूषॆयन्नु मॊदलु मुगिसि, स्वल्प कालविळम्बदिन्द बिक्षॆयन्नु नीडलु, अदक्का ब्राह्मणनु कुपितनागि पक्षियन्नु नोडिदन्तॆ अव ळन्नू नोडलु, आग आ साधियु ‘निन्न कोपाग्नियु नन्नन्नु सुडलु नानु पक्षियल्ल’ ऎन्दु हेळलु, अदक्का ब्राह्मणनु आश्चर्यभरितनागि इदु निनगॆ हेगॆ तिळियितु, नीनु महापतिव्रतॆयागिरबेकु, तिळिसॆन्दु प्रार्थिसलु, मिथिलानगरदल्लि धर्मव्याधनिरुवनु, अवनिन्द नीनु तिळि यबहुदॆन्दु हेळलु, आग ब्राह्मणनु अवनल्लिगॆ होगलु, व्याधनु “तम्मन्नु ब्राह्मणपत्नि यु नन्नल्लिगॆ कळुहिसिदळे’ ऎन्दु प्रश्निसलु इन्नू आश्चर्यभरितनागि, इदु निनगॆ हेगॆ तिळियितु ऎन्नलु, मातृ देवोभव, पितृदेवोभव ऎन्दु हेळिरुव हागॆ मातापितृ गळन्ने लोकदम्पतिगळन्नागि भाविसि आराधिसिरुवदरिन्द ननगॆ तिळि यितु, हागॆये आ ब्राह्मणपत्निय पतिये परदेवतॆ ऎन्दु नम्बि रुवदरिन्द आकॆगू तिळियुवदॆन्दु हेळिदुदरिन्द, हिन्तिरुगि बन्दु मातापितृ शुशूषॆयल्लि निरतनागिद्दनु. शबरियु मतङ्ग शिष्यरिन्द उपदिष्टळाद ऒब्ब तापसियु ; श्रीरामागमनवन्नु निरीक्षिसुत्तिद्दु, आतनिगॆ सत्व विध सत्कारगळन्नॆ सगि, पम्पातीरदल्लि बॆळद बहु रुचिकरवाद फलगळन्नर्पिसि, श्रीरामा ज्ञॆयं पडॆदु देहत्यागवन्नु माडि मुक्तियन्नु हॊन्दिदळॆम्ब वृत्तान्तवु आरण्यकाण्डद ७४नॆय अध्यायदल्लि बरुत्तदॆ. ई स्थळदल्लि आकॆयु फलगळन्नु रुचि नोडि तुम्बा रुचिकरवादुवन्नु आरिसि इट्टिद्दळॆन्दू, श्रीरामनु शबरिय ऎञ्जलु हण्णन्नु तिन्द नॆन्दू, हेळिल्लवु. पाद्म पुराणदल्लि “ फलानिच सुपक्कानि मू लानि मधुराणिच । स्वयमासाद्य माधुरं परीक्ष परि भक्षच । पश्चान्निवेदयामास राघवाभ्यां दृढव्रता ॥ ऎम्बदागि हेळिरुत्तदॆ. इतर समान फलगळ रुचिनोडि, उत्तम फलगळन्नारिसिट्टिरबहुदु, विदुरनु शूद्रनागिद्दरू हेगॆ उपा सनाधिकारियादनो, हागॆये ई शबरियु स्त्रीयागिद्दरू उपा________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्त आनन्द तारतम्यं नास्ति, माध्वमत निरासः १८६५ आकैयाल् मुमुक्षु दशॆयिल् औपाधिकङ्गळान उत्क राहकरण्णण्णु मुक्त दशैयिलुम् अनुभव तारतम्य मुनवानन्द तीरियर् मुक्तरुक्कॆल्ला सरेश्वर नो सकळु. इन्तह परम ज्ञानियादवळु तानु तिन्दु नोडि ऎञ्जलु माडिद्दुदन्नु श्रीरामनिगॆ अर्पिसिदळॆम्बुव हेळिकॆयु शबरिय माहात्मक्कॆ कुन्दकवु. इदक्कॆ आधारवेनो तिळियलिल्लवु. हिन्दिन वाक्यदल्लि उत्कृष्टापकृष्ण शरीरतारतम्यविल्लदॆ ई चेत ननिगॆ मुक्तियुण्टु, ऎन्दु हेळिद नन्तर ई उत्कृष्णा पकृष्ण शरी रानुगुणवागि आनन्दवे अथवा ऎल्लरिगू ऒन्दे विधवाद भोगवे ऎम्ब प्रश्नॆयु उण्टागुत्तदॆ. दैतसिद्दानिगळाद माध्यरु ऎल्ल रिगू ऒन्दे विधवाद आनन्दवु मुक्ति दॆशॆयल्लिल्लवॆन्दू, आयाया शरीरिगळिगॆ अनुगुणवाद भोगवॆन्दू हेळुवदल्लदॆ कॆलवरिगॆ ऎन्दिगू मुक्तियू इल्लवॆन्दभिप्रायपडुवरु. इदु सरियल्लवॆन्दू, ऎल्ला आत्मरुगळू ज्ञानै काकारतॆयिन्द समरादुदरिन्द ऎल्लरिगू आनन्दवु समवॆन्दु सिद्दान्तिसि हेळुत्तारॆ. मुक्तिदॆशॆयल्लि सैनरूपेणाभि निष्पद्यते ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द, गुणाष्टकगळॊन्दिगॆ स्वस्वरूपावि र्भाववु बोधिसल्पट्टिरुवदरिन्द आनन्द तारतम्यक्कॆ कारणवे इल्लवु. ऎल्ला मुक्तरिगू ऒन्दे विधवाद स्वस्वरूपविर्भाववु प्राप्तवागु वदरिन्द अनुभवदल्लि व्यत्यास उण्टागलु कारणवे इल्लवु. आगैयाल् - आदुदरिन्द ऎन्दरॆ हीगॆ अन्तिम शरीरक्कॆ निय मविल्लदॆ उत्कृष्णा पकृष्टवागिरबहुदॆन्दु एर्पट्ट नन्तर, मुमुक्षु दयिल् - मोक्षवन्नु प्रार्थिसुव दॆशॆ यल्लि, औपाधिकळान - करोपाधिय मूलकवागि उण्टाद, उत्करापकरण्ण कॊण्णु- उत्कृष्ट जन्म निकृष्ट जन्म मूलमाडिकॊण्डु, मुक्त दकैयिलु- मुक्तावस्थॆयल्ल, अनुभव तारतम्यमुण्डॆन - भोगदल्लि तार तम्य उण्टॆन्दु हेळिद, आनन्दतीरियर् - श्री मध्वाचारर परु,________________
श्रीमद्र हस्यत्रयसारे डे सरनु साम्यव जॊल्लुगिगॆ शादिगळ मरन्सागळ, मुक्तरिगॆल्ला, सश्वरनॊन्दिगॆ, पर न साम्यम् - विशेष सम भाववन्नु, कॊल्लुगिर - हेळुव, श्रु त्यादिगळ्ळि - श्रतियन्नू, आदि शब्ददिन्द स्मृतियाद गीता वाक्य मॊदलादवुगळन्नु, मरा गल् - ज्ञापकक्कॆ तन्दुकॊळ्ळलिल्लवु ; आनन्द तारतम्य हेळिदरॆ, ई श्रुति स्मृतिगळिगॆ विरोधवागुत्तवॆम्बुदन्नु मरतरॆम्ब भाववु. उत्कृष्टरागि ऋषियागिद्दु उत्कृष्ट देहवन्नॆत्तिद्द व्यासरिगू, हिंसारूप करावलम्बियाद व्याधनिगू ऒन्दे विधवाद मुक्ति ऎन्दरॆ मन ऒडम्बडदॆ इब्बरिगू आनन्ददल्लि व्यत्यासविरबेकॆन्दु अभि प्राय पडुव कालदल्लि, परम साम्यवन्नु हेळुव श्रुतिगू इतर प्रमाणगळिगू विरोधवागुत्तदॆम्बुदन्नु मरॆतरॆम्ब भाववु. अवु गळन्नु ज्ञापकक्कॆ तन्दुकॊळ्ळलिल्लवु. आ श्रुति यावुदॆन्दरॆ — “ताविर्द्वा पुण्यपापे निधय निरञ्जनः परमं साम्य मु पैति” (मुण्डक, ३. १. ३) “यावाग सश्वर साक्षात्कार उण्टा यितो, आग ई ब्रह्मवित्रा दवु, पुण्य पापगळन्नॆल्ला कॊडविकॊण्डु ऎन्दरॆ अवुगळिन्द एनुक्तनागि, प्रकृति लेपविल्लदवनागि कर्मबन्ध विल्लदॆ, अपहत प्राप्रत्वादि गुणाष्टकगळॊन्दिगॆ स्वस्वर पाविर्भाव उण्टागुवदर मूलक परब्रह्मनॊन्दिगॆ अत्यन्त साम्यवन्नु हॊन्दु त्तानॆ. ऎन्दरॆ समान आनन्द समान भोगवन्नु हॊन्दुत्तानॆ.” हागॆये स्मृतियू हेळुत्तदॆ :- *इदं ज्ञानमु पाश्रित्य नमसधर मग । सरेपि नोपचायन्ने प्रळये नव्यथच ” (. ८.२) इदु भगवाक्यवु. मुन्दॆ नान- निन्नल्लिरुव प्रीत्यशनदिन्दु पदे शिसुव ज्ञानवन्नाश्रयिसि, नन्नॊन्दिगॆ समानधर्मवन्नु हॊन्दिदवरु (इदन्नॆ श्रुतिय साम्यवॆन्दु हेळितु. सृष्टियल्लि पुनः जन्मवॆत्तु वदिल्लवु, यावाग जन्मविल्लवो प्रळयक्कॆ सिक्कि दुःखिसुवदू इल्लवु ऎन्दु हेळिरुत्तदॆ. अतिगळु परमात्मनल्लि ऐक्यवे साधरवॆन्दु हेळित्तारॆ. इवरिगॆ ई गीता वाक्यवू ई साम्य________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८६६ श्रुतियू विरोधवादुवु. साध्यवॆन्दरॆ सश्वेश्वरनॊन्दिगॆ समान धरवु, असहत नात्मादि 7ुष्ट कविरावदिन्दलू, समानानन्द भोगदिन्दलू समान धरवॆन्दु तिळियतक्कद्दु, एतरल्लि समान धरनॆम्बुवदन्नु श्री व्यासमहर्षियु व्यक्त पडिसिरुत्तारॆ. जगद्वा नि पारधविल्लवॆन्दू, भगदल्लि मात्र ऎन्दरॆ आनन्ददल्लि मात्र साम्य वॆन्दु पदेशिसिरुत्तारॆ. व्यासोक्तिगिन्त आवाक्यवु बेरे दॊरॆय लारदु इन्तह प्रमाण गळन्नॆल्ला मनस्सिन ऒट्टु श्री वाल्मीकि मह र्षिय ई अभिप्राय नन्नॆ व्यक्तवडिसिरुत्तारॆ. श्री विभीषणाळ्वा रवरु, “ता पुत्र दं” ऎन्दु सत्व विध प्रति कल्य वन्नू तॊरॆदु महा विरक्तिभावदिन्द, पूर्ण भरन्यासवन्नु यावागनुष्ठिसिदनो, मत्तु यावाग श्रीरामनु सुग्रीवनभिप्रा यक्कॆ विरोधवागि तन्न शरणागळ रक्षणॆ प्रतिज्ञॆयन्नु व्यक्तपडि सिदनो, आग श्रीरामनभिप्रायवन्न करिसिदवनागि सुग्रीवनु हेळुत्तानॆ :- तस्मात् प्रं सहानि सभवतु राघव । विभीष महाप्राज्ञ “खित्यं 8 भुपै तु नः । चा भुपैतुन (रामा, युद्ध. १८. ३८) ‘विषणनु म क प्राज्ञनादुदरिन्द नमगॆ मित्रनागि नम्मॆल्लरॊन्दिगू समभाववन्नु हॊन्दलि ऎन्दरॆ समान भोगवन्नु हॊन्दलि ऎं हेळिदरु. इदरिन्द मुदॆशॆयल्लि मुक्त रिगॆ परस्पर समानानन्दवू, ई आनन्दवू परमात्मनिगॆ समानवा दुदॆन्दु एप्पट्टितु. हीगॆल्ला प्रमाणगळिद्दरू रैतसिद्धानिगळाद श्रीमध्वाचाररवर- आनन्द तारतम्यवन्नु तम्म शिष्यरुगळिगॆ उपदे शिसिदरु. ई अभिप्रायवु, अभयं सर भूतेभो ददामि ऎम्बल्लिरुव सत्व भूतेभ्यः ऎम्ब प्रयोगक्कू “समोहं स भूतेषु” ऎम्ब प्रमाणक्कू, सस्य तरं सुहृत् ऎम्ब श्रुति गू सह विरोधवागुत्तदॆ. उत्कृष्ट शरीरदिन्द मुक्तनादवनिगू निकृष्ट शरीरदिन्द मुक्तनादवनिगू ऒन्दे विधवादानन्दवु हेगॆ ऎम्ब श तुम्बा अवरन्नु बाधिसिद हागॆ तोरुत्तदॆ. विगॆ समाधानव र्पु नदेवो नभो सपशर च पादपः । शरीराकृति भेदास्तु भूपैवे कल्मनॆयः (वि.पु. २. १३, ९८)________________
१८६८ 3 श्रीमद्रहस्यत्रयसारे – ऎन्दरॆ आत्मनु देवतॆयू अल्लवु, मनुष्यनू अल्लवु, वृक्षवू अल्लव ई देहगळॆल्ला चेतनरुगळिगॆ कर्म मूलक उण्टादवु ऎन्दु हेळि रुवदरिन्द, मुक्तदॆशॆयल्लि कर्मगळू, आ कारणदिन्द ई देहगळू इल्लदिरुवदरिन्द आनन्द तारतम्यवु हेगॆ ? आनन्ददल्लि भेद उण्टॆम्ब भाववु वि. पु. षष्टांश सप्त मोध्याय ९५, ९६नॆय श्लोकगळल्लि श्री पराशररिन्द निरसन माडल्पट्टिरुत्तदॆ. “तद्भाव भाववापन्न सतोस् परमात्मना । भवत्यभेदी भेद तस्याज्ञान कृतो भवेत् ।” तद्भाव भावं - आ परब्रह्मन भावगळाद अपहत पात्म त्यादि धरगळ भाव ऎन्दरॆ प्रादुर्भाववन्नु, आपन्नः - हॊन्दिद मुक्तनाद, अस् , इवनु, परमात्म ना परमात्मनॊन्दिगॆ, अभेदी - भेदविल्लवनु ऎन्दरॆ आनन्दसाम्य हॊन्दिदवनु, भवति - आगुवनु, ज्ञानानन्दवे मॊदलाद आकारगळिन्द परमात्मनॊन्दिगॆ समानाकारवुळ्ळवनागुत्तानॆ. तस्य - अन्तह मुक्तनिगॆ, भेदः – भेदवु, अज्ञान कृतो भवेत् - करमूलकवागि बन्द अज्ञान दिन्दुण्टागुत्तदॆ ; अथवा, तस्य, आ मुक्तनिगॆ, भेदः - बद्धदॆशॆ यल्लि भेदवॆन्दॆणिसुवदु, अज्ञान कृतो भवेत् - करॆ मूलक वागि बन्द अज्ञानदिन्द हागॆ तोरुत्तदॆ. ई अभिप्रायवन्ने मुन्दिन श्लोकदल्लि विवरिसि हेळुत्तारॆ– विभेद जनकेzज्ञाने नाशमात्यन्तिकं गते । आत्मनो ब्रह्मणो भेदनसन्तं कः करिष्यति ” (वि. पु. ६ ७, ९६) विभेद जन के - नाना विधवाद तिर कावर रूपदिन्दुण्टाद, अज्ञाने - अज्ञानवु, नाशमात्यन्तिकं गते - ज्ञानैकाकारतॆयिन्द ऎल्ला आत्मरुगळू समरु ऎम्ब ज्ञान दिन्द सम्पूर्णवागि नाश हॊन्दलागि, आत्मनः जीवात्मरुगळिगू (जात्येक वचन), ब्रह्मणः - परब्रह्मनिगू, असन्तम् इल्लदे इरुव, भेदं - भेदवन्नु, ई करिषति - यावनु ताने माडु वनु ? ऎन्दरॆ इब्बरिगू परमसाव्य उण्टॆम्ब भाववु.
इदल्लदॆ कॆलवरिगॆ अधिकानन्दवू, इन्नु कॆलवरिगॆ कम्मि आनन्दवू हीगादरॆ, सश्वरनिगॆ वैषम्य नैर्तृणादि दोष हेळिद हागा यितु. न्यूनाधिकानन्दवुण्टॆन्दरॆ, न्यूनानन्दवुळ्ळवनु, अधिकानन्द विरुववनन्नु कण्डु, तनगॆ अन्तह आनन्दविल्लवे ऎम्ब शोकवन्नु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८६९ हॊन्दबहुदु, अन्तह स्थितियु आनन्दावस्थॆयॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळलु हेगॆ साध्यवादीतु ? अपरिच्छिन्नवाद ई निश्रेयस्सिगॆ, न्यूनाधिक्यवन्नु हेळुवदरिन्द निरवधिक निरतिशयवाद पुरुषार्थक्कॆ उपाधियन्नू परिच्छितियन्नू कल्पिसिद हागागुवदिल्लवे ? परम पुरुषार्थवॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुवदक्कॆ तर तम भाव उण्टो ? ई आनन्द तारतम्यक्कॆ अवरुगळु उदाहरिसुव मुख्य प्रमाण गळु यावुवॆन्दरॆ :- तैत्तरीय आनन्दवल्लि मत्तु बृहदारण्यकद (६. ३, ३३) वाक्यगळु, तैत्तरीयदल्लि परमात्मन आनन्दद “मा मांसा” साध्यवे ऎन्दरॆ, अदर इरत्ता इष्टु ऎन्दु अळतॆमाडलु साध्यवे ऎन्दु हेळलु हॊरटु, ऒब्ब युवा - यव्वनस्थनु सकल आयुरारोग्यश्वरगळन्नुळ्ळवनागि, चक्रवर्तियागि, ई समस्त लोकवन्नू आळुववनागि पूर्णकामनागिद्दानॆन्दु ऊहिसि, अन्तवन आनन्दवन्नु ऒन्दु मनुष्यानन्दवॆन्दु इट्टुकॊण्डरॆ, अन्तह नूरु आनन्दगळु मनुष्यगन्धन आनन्दवागुत्तदॆन्दू, अदर नूररष्टु देवगन्धरन आनन्दवागुत्तदॆन्दु हेळुत्ता होगि, कडॆगॆ अदर नूर रष्टादरॆ, इन्द्रनानन्दवॆन्दू, इद्रन नूररष्टु आनन्दवु बृहस्पति यानन्दवॆन्दू, अदर नूररष्टु चतुरुखनानन्दवू, अदर नूर रष्टु परब्रह्मनिगॆ ऎन्दु हेळिदरू हेळबहुदु. हीगॆ ऒन्दक्किन्त ऒन्दु नूररष्टु ऎन्दु हेळुवाग, ई प्रतियॊब्बराद मनुष्यगन्ध, देव गन्धादिगळे मॊदलाद इन्द्र, बृहस्पति, चतुर्मुख, परब्रह्मा नन्दगळू प्रतियॊन्दू, प्रोत्रियस्य चा कामहतस्य, ब्रह्मनिष्ठ नागि अपहतपात्मत्वादि गुणगळुळ्ळ मुक्तनिगू उण्टॆन्दु हेळि, ब्रह्म णः आनन्दः, प्रोत्रियस्यच कामहतस्य ऎम्बल्लि च कारविरुवद रिन्द परब्रह्मने बेरॆ आतनिगॆ अपृथक्षिद्द विशेषणनाद मुक्तनू बेरॆ ऎन्दु अदैतवन्नु खण्डिसि हेळि, परब्रह्मानन्दवू मुक्तनानन्दवू ऎरडू समवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. निरञ्जनः परमं साम्य मुपै ति ऎम्ब छान्दोग्य श्रुत्यर्थवे इल्ल उपपादिसल्पट्टिरुत्तदॆ. इवॆल्ला आनन्दगळू मुक्तनिगू उण्टॆन्दु हेळुवदक्कागिये, प्रोत्रिय स्य च कामहतस्य ऎम्ब शब्दगळु प्रतियॊन्दु वाक्यदल्लि पल्लवियहागॆ प्रयोगिसल्पट्टिरुत्तदॆ. आदरॆ रैतसिद्धान्तिगळु मनुष्यगन्धर्व,________________
१८७० श्रीमद्रहस्यत्रयसारे देवगन्धर्व, इन्द, चतुर्मुख मॊदलादवर आनन्दगळिगॆ हेगॆ तारतम्य उण्टो, ई म नानन्दवु हागॆ तारतम्य उळ्ळद्दॆन्दु अर्थ माडिदरु. इदु समञ्जसवाद अर्थवागुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ, शत्रियस्य जा कामरस्य ऎम्बदागि ऒन्दे विधवाद धरगळुळ्ळ मुक्तरिगॆ बेरॆ बेरॆ विधवाद आनन्द प्राप्ति ऎम्बुदु युक्तवल्लवु. आग वरमात्मनिगॆ वैषम्य नैर्तृज्यगळन्ना दरिन्द ई प्रतियॊन्दानन्द मुक्तनिगू आ दु हिसिदन्तायितु. उण्टॆन्दु अर्थ माडु वदे सरसवु, समञ्जसवु. इदर मेलॆ ऒन्दु पूर्व पक्षवन्नु माडबहुदु, एनॆन्दरॆ, परब्रह्मनन्दक्कॆ ई मुक्तानन्दवू समवॆन्दु हेळिदरॆने, मिक्क ऎल्लर आनन्दवू उण्टॆन्दु हेळिद हागॆ आगुवाग प्रतियॊब्बरानन्दवू मुक्तनिगण्टॆन्दु उपनिषत्तु हेळु वदु निरर्थकवल्लवॆ ऎन्दरॆ, उपनिषत्तुगळु पदेशवे पौनरुक्तियु इद्दु. सरेश्वरनिगॆ समस्तवू शरीरवॆन्दू, आतनु सान्तरामि ऎन्दू हेळलु हॊण्टु, पृथिवियल्लि अन्तर्यामियागिद्दानॆन्दू, हागॆये अप्पिनल्लि, अग्निय, अन्तरिक्षदल्लि, वायुविनल्लि ऎन्दु २१ द्रव्यगळिगॆ अन्तरामि ऎन्दु उपदेशिसिरुत्तदॆ, (बृह, ५, ७, २ रिन्द २३) इन्तह अनेक निदर्शनगळन्नु तोरिसबहुदु. आदरॆ हीगॆ ऒन्दक्किन्त ऒन्दु नूररष्टु ऎन्दु हेळुत्ता होदरॆ परमात्मन आनन्दक्कॆ परिच्छिन्नतॆयन्नु हेळिदहागागुवदिल्लवे ऎन्दरॆ, अपरिच्छिन्न वॆन्दु तिळिसुवदक्कागिये हीगॆ ऒन्दक्किन्त ऒन्दु नूररष्टॆन्दु हेळु ता होगि कडॆगॆ “यतो वाचो निवद्रन्ते अप्राप्य मनस सह” अदरिन्द वाक्कू हिङ्गुत्तदॆ, मनस्सिनिन्दलू ऊहिसलसा ध्यवु ऎन्दु हेळि श्रुतियु विरामवन्नु हॊन्दितु. ई श्रुतियु परमात्मन ऒन्दु गुणद विरामांसा साध्यवे ऎन्दु हेळिद हागॆ, स्वामि देशिकरवरु पादुका सहस्रदल्लि पादुकॆगळ माहातॆयन्नु वर्णिसलु साध्यवे ऎम्बुदक्कॆ हेळुत्तारॆ : ఒ निष मुम्बरसलं यदि पति कास्या तृप्तार्णनीयदि समेत्य मही भवित्रि ! वक्ता सहस्रवदनः पुरुषःयञ्चे इख्यत रङ्गपति सादुकयोः प्रभावः ॥________________
66 परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८७१ “ निष्कषवाद आकाश प्रदेशवॆल्ला ऒन्दु कागदवागि, सप्त समु द्रवू मशियागि, वर्णिसि हेळुववनु सत्वश्वरने आगि सहस्रमुख दिन्दलू वर्णिसिदरॆ आगीग ऒन्दुवेळॆ पादुका प्रभाववन्नु बरॆदरू बरॆयबहुदु.” ऎन्दु हेळिदरॆ प्रभावक्कॆ परिच्छत्तियन्नु हेगॆ हेळिद हागॆ आगलिल्लवो हागॆये ई मेलिन आनन्दवल्लिय वाक्यदल्लि ऎन्दु तिळियतक्कद्दु. (बृह. ५. ७. २ रिन्द २३) ई आनन्द तारतम्यक्कॆ इन्नॊन्दु प्रमाणवु बृहदारण्यकवु L. 2. 22. इदु मेलिन तैत्तरिय वाक्यगळ हागॆये इरुत्तदॆ. * सयो मानुष्याणाग् राद्धः समृद्धो भवत्यषामधिपति सर् ानु ष्य रोग्य सम्पन्न तमः समनुष्याणां परम आनन्नः” ऎन्दु प्रारम्भिसि, समपायगळिन्द सिद्धनागि, युव त्यादि गुण समृद्धियुळ्ळवनागि, इतर मनुष्यरिगॆल्ला राजनागि, परि पूर्ण मनोरथनागि इरुववनॊब्बनिद्दरॆ, अन्तवनु मनुष्यरल्लि पर मानन्द उळ्ळवनॆन्दु हेळबहुदु. इन्तह नूरु आनन्दवु इन्नू ब्बनिगॆ, अदर नूररष्टु मत्तॊब्बनिगॆ ऎन्दु हीगॆ हेळुत्ता, अदू प्रोत्रियोव्यजिनोकामहतः, ब्रह्मनिष्ठनागि, पापरहितनागि, याव विधवाद कामनॆय केशविल्लदिरुव मुक्तनिगू उण्टॆन्दु हेळि, हीगॆये हेळुत्ता अनन्तर अदर नूररष्टु आनन्दवु चतु रुखनिगॆन्दू, आ आनन्दवू मुक्तनिगुण्टॆन्दू, चतुरुखन नूररष्टा नन्दवु परब्रह्मनिगू, आ आनन्दवु मुक्तनिगू उण्टॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. इदरिन्द मुक्तनानन्दवु परब्रह्मानन्दक्कॆ समनादुदु ऎन्दू बोधिसिरुत्तदॆये विना, आनन्द तारतम्यवन्नु बोधिसुवदिल्लवु. ई ऎरडु उपनिषत्तुगळल्लदॆ, ऒन्दु पाद्मपुराण श्लोकवन्नू *ति वाक्यवन्नू ई आनन्द तारतम्यक्कॆ दैत सिद्धान्तिगळु उदा हरिसुत्तारॆ. इवुगळु उपनिषत्तिन हागॆ मुख्यवादवुगळल्लवादुद रिन्द अवुगळ चर्चॆयु इल्लि प्रकृतवल्लवु. आदुदरिन्द निरञ्जनः परमं साम्य मुपैति ऎम्ब वाक्यवन्न नुसरिसि, ऎल्ला मुक्तर आनन्दवू समवॆन्दु भाविसि, आ आनन्दवु पर ब्रह्मानन्दक्कू समवादुदॆन्दु ऒप्पतक्कद्दु. इदन्ने श्री यति वररु “यज्ञात्ता न पुनरहं” ऎम्ब गीता ४नॆय अध्याय________________
१८७२ श्री मद्र हस्य त्रयसारे
- आचार वैकल्य”मुडैय मुमुक्षुक्कळुक्कु आनन्द हास मुण्णाननु शिलर् जॊल्लुव वचन वाप्त मानालु मुक्त नावदक्कु मुन्नॆ वरुव भगवदनुभवल्ल सच मॊल्लित्ता मत्तॆ नै. नॆय श्लोकद व्याख्यानदल्लि “ नामरूप विनिरुक्त स्यात्म वस्तु नः परस्व रूप साम्य मुहॆगम्यते, अतः प्रकृति विनिरु कं सत्वम् आत्मवस्तु परस्परं समं, सत्वश्वरेण च सम” ऎन्दु स्पष्टवागि हेळिरुत्तारॆ. प्रकृति सम्बन्धदिन्द बिडल्पट्टु दरिन्द ईगिन हागॆ नामरूपगळिल्लद आत्म समुदायक्कॆल्ला परब्रह्म साम्य उं टॆन्दू, हीगॆ प्रकृति वियुक्तराद आत्मरुगळॆल्ला ज्ञानैकाकारतॆयिन्द परस्पर समरॆन्दू निरञ्जनः परमं साम्यमुति ऎम्ब श्रुत्य र्थवन्नु व्यक्तपडिसिरुत्तारॆ.
- आगलि, “मुमुक्षणां सदाचार वैकल्यं यावदा युषम् । भवेद्यदि तदानन्दे न्यूनतां जनयेव !” “मोक्षार्थिगळिगॆ सदाचारदल्लि न्यूनतॆय आयुस्सु इरुववरॆगू उण्टादद्देयादरॆ, आग आनन्ददल्लि न्यूनतॆयन्नुण्टुमाडुत्तदॆ?? ऎम्ब “आनन्दे तारतम्यंस्या दाचारे तारतम्य तः” “आचार तारतम्यदिन्द आनन्दतारतम्यवुण्टागुत्तदॆ’’ ऎम्ब नम्म आप्तर वचन गळु आनन्दतारतम्यवन्नु हेळुत्तवॆयल्ला ऎन्दरॆ आ वचनगळु मुक्तात्मरुगळ आनन्द तारतम्यवन्नु हेळुवदिल्लवॆन्दु अप्पणॆ कॊडि सुत्तारॆ. “आचार वैकल्य” मुडैय - आचारदल्लि न्यूनतॆयिरुव, मुमुक्षुक्कळुक्कु - मोक्षार्थिगळिगॆ, आनन्दहास - आनन्द दल्लि न्यूनतॆयु, उण्डानन्नु - उण्टॆम्बदागि, शिलर् - कॆलवरु, शूल्लुं वचनम्- हेळुव वचनवु, आप्त मानालु - आप्तरु हेळिद मातादरू, मुक्त ना वदरु - मुक्तियन्नु हॊन्दुवदक्कॆ, मुन्न - मुञ्चितवागिये, वरुष - उण्टागुव, भगवदनुभव दल्लि, सच ल्लि तायित्तु - न्यूनतॆयन्नु हेळिदन्तॆ भाविसतक्कद्दु. * मुमुक्षणां सदाचार वैकल्यं” ऎम्ब 1________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८७३ वचनवु आप्तरु हेळिदुदादरू, आनन्द तारतम्यवन्नु मुक्तदॆशॆयल्लि हेळितॆन्दरॆ, आ वचनवु श्रुति स्मृति सूत्रादिगळिगॆ विरोधवागुवद रिन्द प्रमाणवे आगुवदिल्लवु ; आदरॆ आप्त वाक्यवन्नु प्रमाणवागि भाविसतक्कद्दल्लवे ऎन्दरॆ, आग ऐहिकानन्ददल्लि न्यूनतॆयन्नुण्टुमा डुत्तदॆन्दु अर्थ माडतक्कद्दॆम्ब भाववु. वर्णाश्रमाचारगळल्लि न्यूनतॆयुण्टादरॆ ऐहिक भोगगळल्लि न्यूनतॆयुण्टॆन्दु प्रमाणवु हेळितॆन्दु तिळियतक्कद्दु, “सन्ध्याहीनो? शुचिरित मनर सत्व करसु । यदत्तुरुते कर नतस्य फलभाग्यवेत् ॥ वाश्रमाचारवता पुरु षेण परः पुर्मा । विष्णु राराध्यते पन्ना नान्यस्ततोषकारकः ॥” इत्यादि प्रमाणगळ भावानुगुण वागि अन्वयिसतक्कद्दु. “सन्ध्यावन्दनवे मॊदलाद नित्यकर्मगळ न्यूनतॆयुळ्ळवनु अशुचियादवनु, इतर कर्मगळिगॆल्ला अनर्हनु. इतर कर्मगळन्ननुष्टिसिदरू अवुगळ फलगळन्नु पडॆयलारनु, वर्णा श्रमाचारगळुळ्ळ मनुष्यनिन्द परम पुरुषनाद विष्णुवु आराधिस ल्पडुवनु, इन्नु यावुदू श्री महा विष्णुविगॆ अष्टु सन्तोषव न्नुण्टुमाडुवदिल्लवु” ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द आचारन्यूनतॆयिन्द भगवदनुग्रहक्कॆ कुन्दकवुण्टागि ऐहिकद आनन्ददल्लि न्यूनतॆयुण्टाग बहुदॆम्ब तात्पर्यवु आदरॆ कॆलवरु भक्ति मार्गदल्लिळिद उरासकनिगॆ मुक्तदॆशॆयल्लि आनुभव मात्रवे आनन्दवु, भरन्यास निष्ठरिगॆ कै र प्राप्ति मात्रवे आनन्दवु, हीगॆ आनन्द भेद उण्टॆन्दु ऊहिसबहुदु. इन्तह पूर्वपक्षक्कू कूड अवकाशविल्लवु. मुक्तरिगॆ सकनाशवन्नु श्रुतिगळु बोधिसुवदरिन्द आनन्द तारतम्यक्कॆ कारणवे इल्लवु. अदू अल्लदॆ, “ सायुज्य प्रतिपाये तीव्रभक्तास्त्र पस्टि नः । किराममते नित्यं भवन्ति निरु पद्रवाः ॥” ऎन्दु हेळिरुवद रिन्द, ऎल्ला मुक्तरू किङ्कररादुदरिन्द परब्रह्मानुभव कैङ्कय्यगळु ऎल्लरिगू समवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. मुन्दिन वाक्यदिन्द इन्नॊन्दु पूर्वपक्षक्कॆ समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ. कॆलवरिगॆ बहळ कालगळ मुञ्चॆये मुक्तियुण्टागु तदॆ. कॆलवरिगॆ ईगलू, कॆलवरिगॆ बहु कालगळु कळॆद नन्तरवू________________
श्रीमद्र हस्यत्रयसारे पिरड मुक्त रानार् कुं नाळवे पोक्कि (प्रॊगुळिळ) प्रेरिळनि, सालोक्यादौ मुक्तत्वव्य प्रदेशो औपचारिक8 श्री विष्णुलोकादिगळिले सालोक्य सारूप्यादि मात्रम् मुक्तियुण्टागबहुदु. बहु कालक्कॆ मुञ्चॆ मुक्तियुण्टादवरिगॆ हॆच्चु आनन्दवू, ईचिगॆ उण्टादवरिगॆ कम्मि आनन्दवू उण्टागि हीगॆ आनन्द तारतम्यवु उण्टागुवदिल्लवे ऎन्दरॆ, ईग विवादास्पदवागि रुवदु आनन्द स्वरूपवादुदरिन्द नाधिक कालव्यत्यासविद्दरू स्वरूप व्यत्यासविल्लवॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. २. सिड पिग्नड मुक्तानार् कुम्, अनन्तर मुक्तियन्नु हॊन्दिदवरिगू, नाळवे पोक्कि - कालद अतिक्रम व्यत्यास मूलक वागि, पेरिळ विल्लॆ - पुरु षार्थदल्लि व्यत्यासविल्लवु, पॊरुळिळविल्लॆ - ऎम्ब पाठवादरॆ वस्तु तारतम्यविल्लवु, ऎम्बर्थवु. प्राप्यदल्लेनू व्यत्यासविल्लवॆम्बर्थवु. प्रति बन्धकवागिद्द बन्धद निवृत्तियु कर्मा नुगुणवागि कालव्यत्यासदिन्दुण्टादरू, आनन्द स्वरूपदल्लि तारतम्य विल्लवॆम्ब भाववु. मुन्दॆ मूरनॆय पूर्वपक्षक्कॆ समाधानवु हेळल्पडुत्तदॆ. कॆलवरिगॆ सालोक्यवू, कॆलवरिगॆ सारूप्यवू, कॆलवरिगॆ सामान्यवू, इन्नु कॆलवरिगॆ सायुज्यवू, प्राप्तवागुत्तवॆन्दु शास्त्रदल्लि हेळिरु वदरिन्द आ सन्दर्भदल्लि आनन्द तारतम्यविल्लवो ऎन्दरॆ, सालोक्य, सारूप्य, सामान्यवॆल्ला मोक्षवागुवदिल्लवॆन्दू, सायुज्य मात्रवे मोक्षवन्नु बोधिसुत्तदॆन्दु समाधानवन्नु हेळि इल्लियू आनन्द तारतम्यवु हेळल्पडलिल्लवॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. अदक्कागि भागवत प्रमाणवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ. सालोक्यादिगळिगॆ मुक्तत्ववॆन्दु हेळॊणवु औपचारिकवु, ३. श्री विष्णुलोकादिगळिलॆ-विष्णुववु हिन्दॆ श्रीमन्नारायणन प्रथमावतारवॆन्दु हेळल्पट्टितु, आतन लोकक्कॆ विष्णुलोकवॆन्दु हॆसरु, इल्लि आदि शब्ददिन्द सत्यलोक, कैलास मॊदलादवुगळु हेळ________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः पाक्कु मुक्तव्यपदेशव अदूर विप्रकल्पत्तालॆ या ल्पट्टवु, इन्तह लोकगळल्लि, सालोक्य - आ लोकाधिपर लोक गळल्लिरुवदु, सारूप्य - आ लोकाधिपर रूपवन्नु ताळुवदु, आदि शब्ददिन्द सामान्यवु हेळल्पट्टितु, अवर समीपदल्लिरुवदु, मात्र म् . इष्टु मात्रवन्ने, पत्तार् कु - हॊन्दिदवरिगॆ मुक्तव्यप देशम् - अवरन्नु मुक्तरॆन्दु हेळोणवु, अदूरविप्रकरत्तालॆ यावत्त नै मोक्षक्कॆ तुम्बा दूरविल्लदॆ इरुवदेनु, हत्तिरदल्ले इरुवदेनु, इवुगळिन्दुण्टागुव व्यत्यासवे विना बेरॆयल्लवु. अवरु गळु मुक्तरु ऎन्दिगू अल्लवु. मोक्षक्कॆ समीपदल्ले अवरुगळु इरु ववरागि अल्लिन्द होगि परमपदवन्नु सेरुववरु ऎम्बर्थवु. ई सालोक्य, सारूप्य, सामान्यवॆम्ब स्थितियु परमपददल्ले इरुव अवस्थॆगळन्नु बोधिसिदरॆ, आग आनन्ददल्लि तारतम्यवन्नु ऒन्दु वेळॆ हेळबहुदु. कॆलवरु हीगॆ भाविसि आनन्द तारतम्य उण्टॆन्दु अङ्गीकरिसुवरु; इदु शुद्ध तप्पादभिप्रायवॆन्दु तिळिसुवदक्का गिये, श्री विष्णु लोकादिगळिले सालोक्य सा रूप्य वॆम्ब प्रयोगवु मात्र पत्तार् कु ऎन्दु एकॆ प्रयोगिसिरुत्तारॆन्दरॆ, सायुज्यवन्नु हॊन्दिदरॆ, ई सालोक्यादिगळू प्राप्तवागुत्तवॆ, आदुदरिन्द, सालोक्य मात्र सारूप्य मात्र हॊन्दिदवरिगॆ ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ. स्वर्गादि लोकप्राप्तिगळ हागॆ ई विष्णु लोक प्राप्ति यल्लवु ; विष्णुलोक, सत्यलोकगळिन्द परमपदक्केने होगु वरु, स्वर्गादि लोकगळन्नु सेरिदवरु “क्षीणे पुण्य मु लोकं विशन्ति” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ ई लोकक्कॆ बरुवरु. आदुदरिन्द स्वर्गादि लोकगळल्लि सालोक्यादिगळु, परमपददिन्द दूरवागिरुवुवु; आदरॆ विष्णुलोकादिगळ सालोक्यादिगळु हाग ल्लवु, आदुदरिन्द अदूर विप्रकल्पत्तालॆया ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ. अत्तनै - ऎन्दु हेळिदुदरिन्द अवुगळॆन्दिगू मुक्ति प्रभेदगळल्लवु. हीगॆ मुक्तिगॆ सन्निहितवादुदरिन्द मुक्ति ऎम्ब शब्दवु इल्लि औपचा रिकवु, वास्तववल्लवु. अदर रादरॆ परस्पर सम्बन्धविरुवदरिन्द________________
१८७६ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे मत्त नै, इव्वरम्, (१) “लोकेषु निष्ठॆ शिवसन्ति केचि तृ कोप मृच्छन्ति च केळिद । अन्यतु रूपं सदृशं भजन्ते सायुज्यम सतु मोक्ष उक्तः ” ऎन्नु नियमि कैयाले सिद्ध, साधरवु उण्टागुत्तदॆ विप्रकर विद्दरॆ अन्तह परस्पर सम्बन्ध विल्लदिरुवदरिन्द साधविल्लवु विपकरवु शास्त्रगळल्लि मूरु विध वॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ ; (१) देश विप्रकर्ष, (२) स्वभाव विप्रकर्ष, (३) कालवि प्रकर्ष देशविप्रकल्पक्कॆ उदाहरणॆयु जलार्कवु. सूर्यनु नीरिनल्लि प्रतिफलिसिद्दरू नीरिनल्लिरुव दोषचलनादिगळिन्द स्पर्शिसल्पडुवदिल्लवु, स्वभाव विप्रकल्पक्कॆ उदाहरणॆयु घटाका शादिगळु. बिन्दिगॆ चॊम्बुगळल्लि आकाश विद्दरू, वृद्धि प्रासरूप गुण गळिन्द आकाशक्कॆ स्पर्शविल्लवु. कालप्रकरक्कॆ उदाहरणॆयु नित्यविभूति ज्ञान मॊदलादवुगळु, कालव्यत्यासवु इवुगळन्नु स्पर्शि सुवदिल्लवु. ई अभिप्रायक्कॆ प्रमाणवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ : केचित् - कॆलवरु भागवतरु, निष्टोति - विष्णुविन, लोकेषु लोकगळल्लि, निवसन्ति - वासमाडुवरु, विष्णति - ऎम्बुवदन्नु ऎल्लादक्कु अन्वयिसतक्कद्दु, केळिद “ - इन्नु कॆलवरु, विष्णुविन सम पं समासवन्नु, ऋच्छन्ति - हॊन्दुत्तारॆ. अनैतु इन्नु कॆलवरादरो विष्णुविन, सदृशं रूपं - स तानवाद शरीर वन्नु, भजन्ते - हॊन्दुवरु ; अन्य - इन्नु कॆलवरु, सायु ज्यम् - जॊतॆयल्लिरुववरागि समानवाद भोगवन्नु हॊन्दुवरु, सतु - अन्तह सायुज्यवादरो, मोक्ष उक्त8 - मोक्षवॆन्दु हेळल्पडुवदु ; मोक्षवॆन्दु हेळिदुदरिन्द, सायुज्यवॆम्बुदु परमपददल्लि उण्टागुव समान भोगानुभववन्नु सूचिसुत्तदॆन्दु तिळियतक्कद्दु, ऎन्नु - ऎम्बदागि, नियमि यालॆ सिद्ध सिद्धव - नियमिसोणदरिन्द, प्रमाणवागि विधिसिरुवदरिन्द ई मेलिन अभि प्रायवु सिद्धवादुदु ऎन्दरॆ व्यवस्थितवादुदु; याव अभिप्राय (१) भागवत. -________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार सायुज्यव मोक्ष शब्दार्थ कथनं १८७७ इदु परम पदलॆ शॆट्राल् वरु सायुज्यमे मॊ क्षमॆरदु. वॆन्दरॆ उभय विभूति विशिष्ट परब्रह्मानुभवरूपवाद सायुज्यवु, क्षीराभि विष्णु लोकादिगळल्लि उण्टागदॆ इरुवदरिन्द, इदु मुक्ति यागदु, परमपददल्लि मुक्तियु उभय विभूति विशिष्ट परब्रह्मानु भववन्नुण्टुमाडुवदरिन्द, अन्तह मुक्तिये सायुज्यवॆन्दु हेळ ल्पडुत्तदॆन्दु ग्रहिसतक्कद्दागिरुत्तदॆ. इन्तह वैलक्षण्यवु सायु ज्यक्कॆ उण्टॆन्दु तिळिसुवदक्कागियॆ, सतु - ऎम्बल्लि तु शब्द प्रयो गवु. सत्तु मोक्षः ऎन्दरॆ स एव मोक्ष, अदे मोक्षवु, मिक्क वल्लवॆम्बर्थवु, आदरॆ सायुज्यवु ई मेलॆ हेळिद लोकगळल्ले प्राप्तवादरॆ अदू कूड मोक्षवॆन्दे एकॆ अर्थ माड कूडदु ऎन्दाक्षेपिसिदरॆ, अल्लिन सायुज्यक्कॆ उभय विभूति विशिष्ट परमात्मानुभवविल्लवा दुदरिन्द मोक्षवागुवदिल्लवॆन्दू, ई सायुज्यवु परमपददल्लुण्टाद रेनॆ, सायुज्यवु मोक्षवागुत्तदॆन्दू मुन्दिन वाक्यदिन्द “इदु परम पदले” ऎन्दारम्भिसि समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ. सायुज्यक्कॆ मात्रवे मोक्षवॆम्ब हेळिकॆयु सल्लुत्तदॆ. इदु . ऎम्बुदक्कॆ “लोकेषु निषेः” ऎम्ब श्लोकवॆन्दु सारदीपिकॆयवरु व्याख्यान माडिरुत्तारॆ. सारा स्वादिनियवरु “सतु मोक्ष उक्तः” ऎम्ब वचनवॆन्दु अर्थ माडिरुत्तारॆ. मोक्षवु प्रकरणवादुदरिन्द, ई ऎरडने अभिप्रायवे युक्तवागि तोरुत्तदॆ. परमपदलॆ शॆट्राल् परमपददल्लि सेरिदरॆ अथवा अन्वयिसिदरॆ, वरुव सायुज्यम्, उण्टागुव सायुज्य नन्न, मोक्षमॆरदु - मोक्षवॆन्दु हेळतक्कद्दु ; सालोक्य, सारूप्य, सामान्यगळिन्द व्यावृत्तवाद परमपददल्लि प्राप्तवागुव________________
१८७८ गळॆल्ला श्रीमद्र हस्य त्रयसारे अदुक्कु सहस्रल् शतादिगळॊप्पोलॆ, सालोक्यादि अन्तर्भूतज्ञ, आगैयाल् आडिरुवरु क्कु वैषम्यविल्ल. सायुज्यवे मोक्षवॆम्ब भावव; “निरञ्जनः परमं साम्य मु पैति,” “ममसाधरमागताः” इत्यादि प्रमाणानुसार परम पद प्राप्तियल्लि उण्टागुवदु सायुज्य शब्द बोधितवे विना, मिक्क मूरु शब्दगळू अदन्नु बोधिसलारवु. ई अभिप्रायवु, परम ई पदलॆ वरुव सायुज्यवे ऎम्ब प्रयोगदिन्द व्यक्तवु. इतर लोकगळल्लि उण्टागुव सालोक्यादिगळु आ कारणदिन्द ऎन्दिगू मुक्ति शब्ददिन्द हेळलु योग्यवल्लवु. ऒन्दु वेळॆ हागॆ प्रयो गविद्दुदादरॆ औपचारिकवॆन्दु भाविसतक्कद्दु. आदुदरिन्द परम पददल्लि सायुज्यवे यावाग उण्टायितो, आग मिक्क मूरू अदरल्ले अन्तर्गतगळागि, सालोक्यवू, सारूप्यवू सामान्यवू प्राप्तवागुत्तवॆम्ब भाववु. परमपददल्ले सालोक्य मात्रवे, सारूप्य मात्रवे, सामान्य मात्रवे उण्टॆन्दू, आ कारणदिन्द आनन्द तारतम्य उण्टॆन्दू, हेळुव भि प्रायवु सात्मना श्रुति त्यादि प्रमाणवचन विरुद्धवॆन्दु भाविसतक्कद्दु. अदुदरिन्द परम पददल्लि उण्टागुव सायुज्यदल्ले सालोक्यादिगळॆल्ला अडगिवॆ ऎन्दू, आनन्द तारतम्यदिन्दुण्टागुव वैषम्यक्कॆ कारणवे इल्लवॆन्दू मुन्दिन वाक्यगळिन्द सिद्दान्तिसि उपदेशिसुत्तारॆ :- अदुक्कु – आ परमपददल्लि लभिसुव सायुज्यदल्ले, सहस्र आल् शतादिगळ्ळॆ पोलॆ - साविर सङ्ख्यॆयल्लि नूरु इन्नूरु मु नूरु मॊदलाद सङ्ख्यॆगळु हेगॆ अडगिवॆयो हागॆ, सालोक्यादि गळॆल्ला - सालोक्य, सारन्य, सामान्यगळॆल्लवू, अन्तर्भूत ङ्गळ् , अडगिरुववु. यावाग सायुज्यवे प्राप्तवायितो आग परमात्मन लोकदल्ले इरुवदु, आतन हागॆ चतुर्भुज, शङ्ख चक्रा दिगळुळ्ळ समानवाद दिव्यमङ्गळ विग्रह प्राप्तियू, हागॆये आतन समासदल्लि रोणवू ऎल्लवू सिद्धिसुत्तवॆम्ब भाववु. आगैयाल् -________________
(F) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकागळ (१) “मोक्षं सालोक्य सारूप्यं प्राश्चयेन कडा चन । इच्चाम्यहं महाबाहो सायुज्य तव सुव्रत । P ऎच्चर निडलुव इरं कण्डुकॊळ्ळदु. आ n आ कारणदिन्द, अण्ण - परमपददल्लि, ऒरुवरु कुम् - यारॊब्ब रिगू, वैषम्यविल्फ्. आनन्ददल्लि व्यत्यासविल्लवु ऎन्दरॆ मुक्तरॆल्लरू आनन्ददल्लि परस्पर समरु ऎम्ब भाववु, अथवा ऎल्लरिगू समवाद आनन्दवादुदरिन्द यारिगू वैषम्यविल्लवॆन्दू अर्थ हेळ बहुदु. अथवा परमपददल्लि यारॊब्बरिगू ऎन्दु हेळिदुदरिन्द परमात्म निगू कूड, वैषम्यमि - ऒब्बरिगॆ हॆच्चाद आनन्दवन्नू, इन्नॊ ब्बरिगॆ कम्मि आनन्दवन्नू कॊडुव वैषम्यविल्लनु ऎम्बर्थवू सूचितवु. आदरॆ जितन्ता स्तोत्रद “ मोक्षं सालोक्य सा रूप्यम्* ऎम्ब श्लोकदल्लि सालोक्य सारूप्यादिगळु पक्षभेदगळॆन्दू अन्तह मोक्षगळु बेडवॆन्दू, सायुज्य रूप मोक्षवे अपेक्षित वॆन्दू हेळिरुत्तदॆयल्ला ऎन्दरॆ, आ श्लोकक्कॆ ई मेलिनर्थवल्ल वॆन्दू, आ श्लोकवू कूड ई मेलॆ उपपादिसल्पट्ट, अभिप्राय वन्ने समर्थनॆ माडुत्तदॆन्दू तिळिसुत्तारॆ. मोक्षं स लोक्य सारूप्यम् इतर लोकादिगळल्लुण्टागुव सालोक्य सारूप्य सामान्यवॆम्ब औपचारिक मोक्षवु, अथवा सालोक्यादि रूप मोक्षवु परमपददल्ले ऒन्दु वेळॆ इद्दुदादरॆ ऎन्दागलि अर्थ माडबहुदु ; सालोक्यादिगळु परमपददल्लि इल्लवु, ऒन्दु वेळॆ अवु इद्दु दादरॆ ऎन्दागलि अर्थ माडबहुदु. मॊदलनॆय आर्धवे स्वारस्यवादुदु कदाचन ऎन्दिगू, न पारये नानु प्रार्थिसुवदिल्लवु, हे सुव्रत - “ सहृदेव प्रसन्नाय तवास्क्रिति चयाचते । अभयं सत्व भूते दवा तप्प तं नन ” ऎन्दरॆ निन्नवनय्या रक्षिसु ऎन्दु हेळि ऒन्दु सल शरणागति माडिदरॆ सत्व चेतनरिगू अभयवन्नु कॊडुत्तेनॆम्बुव (१) द्वितीय जितन्ता ३६. तन्न________________
श्री मद्रहस्यत्रयसारे सायुज्य शब्दस्य निष्कर्षार 8 सायुज्यमावनु ? सयुक्तिनुडैय भाव, सुक्का नानॊरु भोग्य भोक्ता वा कॊणु कूड वन्वयिक्कु मर्न. इष्टु सप्रकार ब्रह्मनागि भोग्यलॆ ब्रह्ममुं सराचीनवाद व्रतवॆन्दु भाविसिरुव सत्वश्वरने, हे मह बाजि - ओ आजानुबाहुवुळ्ळवने, संसारसागरदल्लि मुळुगिरुव वरन्नु ऎत्ति उद्दार माडुवदक्कागि दीर्घवाद बाहुगळुळ्ळवने, अहं - नानु, तन्न सायुज्यम् - निन्न सायुज्य रूप मोक्षवन्नु, इच्छामि - अपेक्षिसुत्तेनॆ,” ऎर विडत्तिलुवु - ऎन्दु हेळिरुव स्थळ दल्ल, प्रमाणदल्ल, इव्वरं - ई अभिप्रायवन्ने कण्डु कॊळ्ळदु - तिळिदुकॊळ्ळुवदु. सायुज्यवे मोक्षवॆन्दु हेळल्पट्टितु. अदर निष्कर्षार्थवे नॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. इदू अल्लदॆ, मोक्ष विषयदल्लि दैतिगळ आनन्द तारतम्यवु सरियल्लवॆन्दु तिळिसिदुदरिन्द, अद्वितियु तन्न स्वरू सैक्यरूप मोक्षवे सरियादभिप्रायवॆन्दु भाविसि, सायुज्यवॆन्दरॆ परमात्म स्वरूपदल्लि ऐक्यवॆन्दु हेळबहुदॆम्बभिप्रायदिन्दलू सायुज्यशब्दद सरियाद अर्थवन्नु तिळिसुत्तारॆ :- सायुज्य शब्दद निष्कर्षवाद अरवु. d सायुज्यमानदु - सायुज्यवॆम्बुवदु यावुदु ? सायुज्य वॆन्दरेनु ऎम्बुवदु प्रश्नॆयु. सयुक्किनुडैय भाव - ऒन्दु वस्तुवन्नु इब्बरु अनुभविसिदरॆ अवरिब्बरिगू सयुक्कॆन्दु हॆसरु, अन्तवर भावक्कॆ सायुज्यवॆन्दु हेळुत्तारॆ. अदन्ने मुन्दॆ विवरिसि हेळुत्तारॆ. सयुक्कावान् - सयुक्कादवनु, ऒरु भोग्यत्तिलॆ- ऒन्दु भोग्यवादुदल्लि, भोक्ता वाय् कॊण्डु – आनुभविसुव नागि, कूड - आ भोग्यवस्तुविनॊन्दिगॆ, अन्वयिकुमवन् - सम्बं धिसिकॊण्डिरुववनु. हीगॆ साधारणवागि हेळि, इण्णु - ई सन्दर्भ________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९८१ मुक्तनुं कूड, भोक्ताक्कळा आन्वयिकैयालॆ, मुक्त नै सयुक्कॆ३रदु. अ दू दल्लि ऎन्दरॆ मुक्तनु परब्रह्मनन्नु सेरि सायुज्यवन्नु हॊन्दुवाग, सप्रकारब्रह्मनागिर. समस्त विशेषण विशिष्टनागिरुव ऎन्दरॆ उभय विभूतिनाथनागि अनन्त कल्याणगुणाकरनागिरुव परब्रह्मनू, मुक्त नुम कूड - मुक्कनू कूड, भोक्ताळाय् - भोक गळागि, अन्वयिकैयालॆ - सम्बन्धिसिकॊण्डिरुवदरिन्द मुक्तनन्नु, सयुक्कॆरदु सयुक्कॆम्बदागि हेळोणवु. सश्वेश्वरनिगॆ याव आनन्दवो अन्तह आनन्दवू ई मुक्तनिगू उण्टागतक्कद्दु. इन्तह अनुभवदल्लि इब्बरू सम्बन्धिसि ऒट्टिगॆ इरबहुदु. अल्लदॆ ई परब्रह्मानुभववॆन्थाद्दॆन्दरॆ सत्व विशेषण विशिष्ट नागिरुव परब्रह्मानुभववु; उभयविभूति विशिष्टनागि कल्याणगुणाकरनागि हीगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभव उण्टागि आतनॊन्दिगॆ सम्बन्धिसिद्दरॆ, आग मुक्तनिगॆ सयुक्कॆम्ब हॆसरु. अन्तवन अनुभववे सायुज्यवॆन्द स देशिसिदरु. हीगॆ सायुज्यदल्लि समानानुभवविरुव इब्बरु चेतनरिर बेकाद प्रयुक्त, मोक्षदॆशॆयल्लि शाङ्कररु हेळुव स्वरूपैक वु ऎन्दिगू कूडुवदल्लवॆन्दू, हागॆये अवरुगळ निर्गुणवादरू कूड समञ्जसवादुदल्लवू ऎम्ब भाववु. निरु णनॆन्दरॆ यावदॊन्दु गुणवू इल्लद निशेष ब्रह्मनॆन्दु अर् हेळिदरीग असामञ्जसवु. आदरॆ परब्रह्मनु सगुणनॆन्दू निरुणनॆन्दू शास्त्रगळल्लि हेळिदॆयल्ला ऎन्दरॆ सगुणनॆन्दरॆ कल्याणगुण महोदधि ऎन्दू निरुणनॆन्दरॆ हेयवाद ई प्राकृतॆ गुणगळ सम्बन्धविल्लदवनॆन्दू तिळियतक्कद्दु. महरियु श्रीमद्भागवतदल्लि जीवात्मने इन्तह हेयगुण रहित नॆन्दु, प्रकृति स्कोपि पुरुषो नाज्यते प्राकृरु हैः । अविकाराद कर तृतारुणताज्जलावत् । ऎम्ब श्लोकदल्लि उपपादितवागिरुत्तदॆ. ई देहदल्लि शयनिसिरुव जीवात्मनु, प्रकृतियॊडनॆ हीगॆ सेरिद्दरू कूड ई प्राकृत गुण________________
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे गळिन्द स्परिसल्पदुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ, मूरु हेतुगळन्नु तिळिसुत्तारॆ. जीवात्मस्वरूपवु ऎन्दिगू विकार हॊन्दुवदिल्लवु, प्रकृति सम्बन्ध विल्लदॆ आ नक्कॆ कत्ववे इल्लवु, आ कारणदिन्द अदु निरुणवॆन्दु हेयवल्लवॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुत्तदॆ ; हेगॆन्दरॆ ? जलावत्-तटाकादि गळल्लिरुव जलदल्लि प्रतिफलिसिरुव सूरनोपादियल्लि ; ऎन्दरॆ तटाक जलद मलगळिन्द सूर प्रतिबिम्बवागलि सूरकिरणगळागलि हेगॆ दूषितवागुवदिल्लवो हागॆये ज्ञानस्वरूपनागियू ज्ञान गुणक नागिय गुणाष्टकगळिन्द विराजिसुत्तिरुव ई परिशुद्धनाद आत्मनु देहक्कॆ सम्बन्धपट्ट पेय गुणगळिन्द कलुषितनागदिरुवदरिन्द नि णनॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुवनु. जीवात्मनिगेने हेयगुण सम्बन्धविल्ल वॆन्दु हेळिद नन्तर परमात्मनिगू इल्लवॆम्बुदु कै मुतिक न्याय सिद्धवु. निर्गुण शब्दक्कॆ प्राकृत गुणविल्लवॆम्बर्थवे सरसवे विना शाङ्कगानिगळु हेळुव सर्वगण विशेषण शून्यवॆम्बर्थवु समञ्जस वागुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ, निर्गुणवादुदु श्रुतियल्लि उपपादिसलसा ध्यवादुदागि, स्वरूप शोधक वाक्यगळिगॆ श्रुतियल्लि अवकाशवे इल्लवा गुत्तदॆ परब्रह्मवन्नु कुरितु श्रुतियु हेळुत्तदॆन्दु ऒप्पिकॊण्डरॆ आग सविशेषणवन्नू ऒप्पिकॊण्ड हागागुत्तदॆ. धर्मविल्लदॆ द्रव्यवे इल्लवु. धर्मविल्लवॆन्दरॆ गगन कुसुम, शशशृङ्ग मॊदलादवुगळ हागॆ परब्रह्मक्कू तच्छतॆयन्नु आरोपिसिद हागॆ आगुत्तदॆ. आदुदरिन्द श्री देशिकरवरु सप्रकार ब्रह्म वॆन्दु प्रयोगिसि रुत्तारॆ. आदुदरिन्द परब्रह्मनु नम्म सिद्धान्त रीत्या सत्व विशेषण विशिष्टनु. आदुदरिन्द आतनु लक्ष्मीविशिष्टनागि सपत्निकनु, कल्याण कुणाकरनु, हेयगुण सम्बन्ध रहितनु, उभयविभूतिनाथनु, शुभा श्रयन्नु विविध विचित्र रूपधारियु, सश्वरयुक्तनागि परिपूर्ण कामनु, इन्तह परब्रह्मवे भोग्य वस्तुवु, अदन्नु मनु अनु भविसुवनु. ई आनन्दवु परब्रह्मानन्दक्कॆ समानवादुदु. रिन्द परब्रह्मवू मुक्तनू सह सयुक्कुगळु ऎन्दरॆ समानभोग वुळ्ळवरु ऎम्ब भाववु. आ दुद हीगॆ सायुज्य शब्दक्कॆ, ऒन्दाद भोग्यवस्तुविनल्लि ऒब्बरॊन्दिगॆ इन्नॊब्बरिगू समानवाद अन्वय उण्टॆन्दु अर्थ हेळिदरॆ, श्रुति________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः सायुज्या द न्यदेवहि सार्षित्वं. इप्पडिया (नाल्) किल् श्रुतियिल् सायुज्य शब्द मुन्, र्साता शब्दमुम्, शेर प्रयोगिस्पाने नॆन्निल् ? सायुज्यमु भयो रत भोक्त व्यस्या विशिष्ट ता । सार्षिता तत्र भोगस्य तारतम्य विहीनता ॥२०। यल्लि इदे अभिप्रायवु तोरुव सार्षि शब्दवु सायुज्य शब्ददॊं दिगॆ “एता सामेव देवता नां सायुज्य ग्ं सार्षिताग् समानलोकतामापोति” ऎम्बल्लि प्रयोगिसल्पट्टिरुवदरिन्द, पुनरुक्ति दोषवु प्राप्तवागुवदिल्लवे ? सार्षिता शब्दक्किन्त बेरॆ अर्थवन्नु सायुज्य शब्दक्कॆ कल्पिसि, स्वरूपैक्यवॆन्दर्थवन्नु हेळु वदु सरियल्लवो ऎन्दरॆ, र्सा शब्द सायुज्यगळ सरियादभिप्रा यगळन्नु ऒन्दु कारिकॆय मूलक उपदेशिसुत्तारॆ. सार्षित्ववु सायुज्यक्किन्त बेरॆयादुदु. इप्पडियागिल् - सायुज्यशब्दक्कॆ हीगॆ अर्थवादरॆ, श्रुति यल्लि सायुज्य शब्दवन्नू सार्षिता शब्दवन्नू, शेर- ऒट्टिगॆ, प्रयो गिप्पाने नॆन्निल् - प्रयोगिसिरुवदु एतक्कॆन्दरॆ, अवुगळ निष्कर्षा र्थवन्नु मनस्सिनल्लिडुवदु आवश्यकवादुदरिन्द सिद्दान्तिसि तम्म कारि कॆय मूलक तिळिसिरुत्तारॆ. अत्र - इल्लि ऎन्दरॆ परमपददल्लि, सायुज्यं - सायुज्यवॆं बुदु यावुदॆन्दु, उभयोः - मुक्त जीवनिगू परमात्मनिगू, भोक्तव्यस्य – परिपूर्ण ब्रह्मरूपवाद भोग्यवस्तुविनल्लि, अविशि स्मृता - विशेषवेनू इल्लदिरुविकॆयु, भोग्यवागिरुवदु इब्बरिगू सववु ऎम्ब भाववु. तत्र - आ भोग्यवस्तुविनल्लि, अथवा आ सन्द र्भदल्लि, सार्षिता-सार्षिता ऎम्बुदु यावुदॆन्दरॆ :- भोगस्य- भोगदल्लि, अनुभवदल्लि तारतम्य विहीनता - तरतम भावविल्लदिरु विकॆयु ऎन्दरॆ, साम्यविरोणवु सायुज्यदल्लि भोग्यवु इब्बरिगू________________
श्रीमदहस्यत्रयसारे मुक्तस्य भोगमात्रॆ साम्यं, जगद्वापार वर्जं. मुक्त नुक्कु जगद्वापारविल्लॆयेयागिलु, कृषि पण्णिन पितावु निर्व्यापाररान पुत्रादिगळुं कूड, कृषि फल समवु, सार्षितॆयल्लि भोगवु समानवु. हेगॆन्दरॆ क्षीरवे मॊद लादवु इब्बरिगू भोग्यवागिरबहुदु. आदरॆ ऒब्बरिगॆ अनुकूल्याति शयदिन्द अनुकूलरूप सुखवु हॆच्चागिरबहुदु. इन्नॊब्बरिगॆ मन्दानु कूल्यदिन्द अष्टु प्रीति रूप सुखविल्लदॆ होगि, हीगॆ भोग दल्लि वैषम्यविरबहुदु. परमपददल्लि हागल्लवु. परब्रह्मनिगू मुक्तनिगू भोग्यवु ऒन्देयागिद्दरू भॆ गदल्लि व्यत्यासविल्लवु. अदरल्लू समत्व उण्टॆम्ब भाववु. आदुदरिन्द सायुज्य शब्दक्कॆ भोग्यवु इब्बरिगू समानवागिरोणवॆम्बर्थवु, सार्षिता शब्दक्कॆ भोग अथवा अनुभववु इब्बरिगू समानवॆम्बर्थवु इदरिन्द सायुज्य शब्दक्कॆ स्वरूपैक्य हेळबेकाद आवश्यकतॆयू इल्लवु, सायुज्य सार्षिता शब्दगळु भिन्नार्थगळुळ्ळवादुदरिन्द पुनरुक्ति दोषवू इल्लवॆम्ब भाववु, आदरॆ मुक्तनिगॆ जगद्वा पारदल्लि अन्वयविल्लवॆन्दु शास्त्रगळल्लि हेळिरुवाग मुक्तनिगू परब्रह्मनिगू परमसाम्यवु हेगॆ ? ऎम्ब शाविगॆ मुन्दिन वाक्यदिन्द समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ. मुक्तनिगॆ भोगदल्लि मात्र साम्यवु, जगद्वापारविल्लवु. मुक्तनु क्कु-मुक्तनिगॆ, जगद्वा पारविल्लॆयेयागिलु जगत्तिन व्यापारगळाद सृष्टि, स्थिति लयादिगळल्लि सम्बन्धविल्लदे इद्दरू, कृषि पण्णिन पिता वुम् -. क्षेत्रवन्नु सम्पादिसि, अदक्कॆ बेकाद कृषियन्नु माडि, हॆच्चागि दवस धान्यादिगळन्नु बॆळदु विशेष धनार्जनॆ माडिद तन्दॆयू, इल्लि कृषि व्यापारवु इतर विध धनार्जनॆय रूपवाद व्यापारक्कू उपलक्षणवु, निर्व्यापाररान प्रतादिगळु कूड कृष्णादि अन्तह व्यापारगळन्नेनू________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार भुजिक्कु माप्पोलॆ, जगद्वापारत्ताल् वरु १८८५ रसम्, व्यापि रुक्किर ईश्वरनु कुम्, पार् रुक्किर मुक्त मुक्कु, तुल्बम्. माडद, मक्कळे मॊदलादवरू कूड, इल्लि आदि शब्ददिन्द भार्या भ्रातादि इतर बन्धुगळू हेळल्पट्टरु, कृषि फल - कृषि माडि दुदरिन्दुण्टाद फलवन्नु, भुजिक्कु मालॆ - ऊट माडुव हागॆ, अनुभविसुव हागॆ, जगद्वापारत्ताल् वरु - जगत्तिन सृष्टि स्थिति लयादिगळिन्दुण्टागुव, रसम् - आनन्दवु, व्यापरिक्किर- अन्तर हिापिसुव शक्तियुळ्ळ ईश्वरनुक्कुव - सश्वरनिगू, पात्तिरुक्किर - नोडुत्तिरुव, मुक्त नुक्कु - मुक्तनिगू सह, तुल्यं - समानवादुदु. जगद्वापारवु मुक्तनिगिल्लदुदरिन्द, आ व्यापारदिन्दुण्टागुव आनन्दवु परब्रह्मनिगॆ मात्रवे प्राप्तवागुवदरिन्द, आनन्ददल्लि सम वॆम्ब शास्त्र मरादॆयु हेगॆ सरिहोगुत्तदॆ, ऎम्ब आक्षेपक्कॆ ऒन्दु दृष्टान्त मूलक समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ. पितावादवन्नु अनेक गद्दॆ हॊल तोटगळन्नु सम्पादिसिकॊण्डु, अवुगळ आडळितदल्लि निरत नागि, बहु द्रव्यवन्नु तन्मूलक गळिसि, तुम्बा समृद्धियल्लिद्दु कॊण्डु अनुभविसुव भोगगळल्लि, इवु यावुदन्नू माडदे इरुव पुत्रनिगू सह ई समृद्धि उपभोग आनन्दादिगळू हेगॆ समवो हागॆये परब्रह्मनिगू मुक्तनिगू कूड आनन्ददल्लि समभाववु. इल्लि व्यापिरुत्तिर ईश्वरनु कुम्, ऎन्दु हेळिरुवदरभिप्राय वेनॆन्दरॆ :- तत्सष्टातदेवानु प्राविशत्” आ जगत्तन्नु सृष्टिसि अदन्ने अन प्रवेश माडिरुत्तानॆन्दु श्रुतिगळल्लि हेळिरुवदरिन्द आतनु मात्रवे जगत्कारणने विना मुक्तनु आ प्रकरणगळल्लि हेळल्पडलिल्ल वादुदरिन्द जगत्कारणनल्लवॆम्बुदन्नु तिळिसुवदक्कागि ऎन्दु ऊहिस तक्कद्दु. ईश्वर शब्द दल्ले सत्वव्याप्ति आतनिगॆ मात्रवे उण्टॆम्बुदु तोरिबरुत्तदॆ. “यो लोकत्रय माविश्य बिभव्यय ईश्वरः” (गी, १५, १७) ईश्वरनॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुवदक्कॆ विकार हॊन्दुव अचितेनु, अदर सम्बन्धवुळ्ळ बद्ध चेतननेनु, अदर________________
श्री मद्र हस्यत्रयसारे व ऎ सम्बन्धवीगिल्लद मुक्तनेनु इन्तह लोकत्रयवन्नू व्यापिसि अवुगळि गिन्त विलक्षणवागि बेरॆयागि अवुगळिगॆ नियामकनागिरबेकु. अभिप्रायवन्ने श्री यामुनेयरू गीतार सङ्गहदल्लि परमा त्मनु ईश्वरनु हेगॆन्दरॆ :-“व्यापनाकृरणात्सा मात्” उभय विभूतियन्नु व्यापिसि, भरणमाडि, अवक्कॆल्ला नियामकनागि स्वामि यागिरुवदरिन्द ईश्वरनॆन्दु हेळल्पडुवॆनॆन्दुपदेशिसिरुत्तारॆ कनु विभुवू अल्लवु, आतनिगॆ भरणनियामक शक्तियू इल्लवु, ईतनु सत्वश्वरनिगॆ स्वम् आगि याव स्वत्तू इवनिगिल्लवु ; आदुदरिन्द ईतनु जगत्तिगॆ ऎन्दिगू कारणनल्लवु. आदरॆ मुक्तनादुदरिन्द पुनसृष्टियल्लि सेरदे इरुवदरिन्द, सश्वरनु ई लीलाविभूतियन्नु सृष्टिसि, रक्षिसि, लय हॊन्दिसुवाग सुम्मनॆ नोडुत्तिरुवनॆम्बुदन्नु तिळिसुवदक्कागि *पात्तिरुक्किर मुक्त नुव ” ऎम्ब प्रयोगवु. आदरॆ अनेकरु ऒन्दर उपभोगवन्नु हॊन्दिदरॆ आनन्ददल्लि व्यत्यासवन्नु कण्डिरु तेवॆयल्ला ऎन्दरॆ, अन्तह व्यत्यासवॆल्ला ई करभूमियल्लि रुव प्रकृतियिन्द बद्धरागि तिरोहित स्वरूपवुळ्ळवरिगॆ विना, गुणाष्टकगळिन्द स्वस्वरूपाविर्भाव उण्टाद मुक्तरिगॆ हागल्लवु. इन्तह स्वरूपविर्भाववु ऎल्ला मुक्तरिगू समवागि उण्टागुवद रिन्द आनन्ददल्लि परस्पर साम्यवू परमात्मनॊन्दिगॆ साम्यवू उण्टागुवदु, आनन्दवॆन्दरॆ अनुकूलदर्शनदिन्दुण्टागुव प्रीति विशेषवु. मुक्तरागि नित्यविभूतियल्लिरुववरिगॆ सर्ववू अनुकूलवा गिये तोरुवुवॆन्दु हिन्दॆये उपपादिसल्पट्टिरुत्तदॆयादुदरिन्द सर्वरिगू आनन्ददल्लि साम्यवुण्टॆम्बुदु स्वतस्सिद्दवु. ई विषय दल्लि दैत सिद्धान्तिगळु सन्देहपडुवदक्कॆ कारणवे इरुवदिल्लवु. ई साम्यवु भोगदल्लि मात्रवे विना जगद्वापारादिगळल्लिल्लवॆन्दु सूत्रगळु उपदेशिसुत्तवॆ. आदुदरिन्द श्री देशिकरवरु तावु ईग उपदेशिसिदुदक्कॆ प्रमाणबल उण्टॆन्दु आ व्यास सूत्रगळन्नु उदा हरिसुत्तारॆ :- सूत्रकाररु शारीरक मामांसा सूत्रगळन्नु रचिसिद श्री व्यास महर्षिगळु, ई अभिप्रायगळन्ने “जगद्वा पार वं” (४,४, १७) ऎन्दु तुडजि - प्रारम्भिसि, “भोग मात्र साव________________
(१०) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८८७ सूत्रकाररु मात्र साम्यलिङ्गाच्च” ऎनरुळिच्चॆ दार्. “जगद्वापार वध्वं” ऎन्नु तुडचि, “ भोग य ఒ
लिङ्गाच्च” (४. ४, २१) ऎम्ब सूत्रदवरॆगू, अरुळिच् दार् - कृपया उपदेशिसिरुत्तारॆ. हीगॆ ई ऐदु सूत्रगळल्लि ई विषयगळु उपपादितवागिवॆ ऎम्ब भाववु. “जगद्वापार वं प्रकरणाद सन्निहितत्वाज्ञॆ” ऎम्ब सूत्रदल्लि मुक्तनिगॆ जगद्दापार सम्बन्धविल्ल वॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ ; एकॆन्दरॆ यतोवा इमानि भू तानि जाय (तै. नृग) ऎन्दु प्रारम्भिसि हेळिदुदु यावुदॆन्दरॆ “तदृह्म” अदे परब्रह्मवॆन्दु हेळिरुवदरिन्द, प्रकरणदिन्द पर ब्रह्मनिगेने जगद्वापारद अन्वयवु. “ असन्निहित त्वाच्च” सृष्टादि क्रमवन्नु हेळुव सन्दर्भगळल्लि मुक्तन सान्निध्यवु अन्तह श्रुतिगळल्लि काणदिरुवदरिन्दलू मुक्तनिगॆ जगद्दा पारविल्लवु. इदर मुन्दिन सूत्रदल्लि “तस्य सषु लोकेषु कामचरो भवति” ऎन्दु छान्दोग्यदल्लि हेळिरुवदरिन्द, मुक्तनिगॆ समस्त लोकगळल्लू काम चार उण्टॆम्बुदरिन्द जगद्वापरविरुव हागॆ तोरुवदिल्लवे ऎन्दरॆ, हागल्लवु, परमपुरुषनिन्द लोकनियवनाधिकारदल्लि नियविसल्पट्ट चतुर्मुख ब्रह्मादिगळ लोकदल्लिरुव भोगवन्नु अनुभविसबेकॆम्ब इच्छॆयुण्टादरॆ, आग परम पुरुषन अनुग्रहदिन्द आ लोकगळ भोगगळन्ननुभविसुवनॆन्दु हेळल्पट्टितु. अदर मुन्दिन सूत्रदल्लि, मुक्तन भोगवॆन्थाद्दॆम्बुदु तिळिसल्पडुत्तदॆ : उत्पत्तादि विकारगळ ओक्कॆ इल्लदिरुव परिपूर्ण ब्रह्मानुभववे मुक्तन भोगवु, एत कॆन्दरॆ “रसोवै सः, रसंवायं लानन्दीभवति” ऎन्दरॆ (तै. आनं. २. ७. ३) ब्रह्मनिष्ठ ब्रह्मव लज्ञानन्दीभवति इत्यादि शु) तिवाक्यगळु हागॆ उपदेशिसुत्तवॆ ऎन्दु हेळल्पट्टिरु इदॆ. इन्नु मुन्दिन सूत्रदल्लि जगदापारगळॆल्ला परब्रह्मनिगॆ सेरिदवॆन्दू, मुक्तनिगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभवरूप भोगवॆन्दू श्रुतिस्मृतिगळु तोरिसुत्तवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. आ श्रुति स्मृति गळु यावुवॆन्दरॆ :- 0________________
66 श्रीमद्र हस्यत्रयसारे
- सामरस्यंहि सायुज्यं वद ब्रह्मवादिनः” ऎन्नु शाकटायननं शूर्न्या १. “ तस्माद्वा, एतस्मादात्मन आकाश सम्भूतः” (तै.) ऎम्बिवे मॊदलादवु श्रुतिगॆ उदाहरणॆयु.
ఒ “ अहं सस्य प्रभवः मत्तः सत्वं प्रवरते” (गी, ७. ६) ऎम्बिवे मॊदलादवु स्मृतिगॆ उदाहरणवु तिगॆ उदाहरणवु. इदाद नन्तर भोग मात्र सावु लिङ्गा (४, ४. २१) ऎम्ब सूत्रदिन्द मुक्त निगॆ पपूर्ण ब्रह्मानुभवदिन्दण्टाद आनन्ददल्लि मात्र साध्य वॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. तैत्तरीय आरण्यक वाक्यवाद (२, १. २) * सोरुते र्सा कर्मा सहब्रह्मणा विपश्चिता” ऎम्बुवद रिन्द मुक्तनिगॆ उण्टागुव परब्रह्मानुभव भोगमात्रदिन्द पर ब्रह्मनॊन्दिगॆ साम्यवु हेळल्पट्टिरुवदरिन्द, आनन्द मात्रदल्लि साम्यवे विना, जगद्दा. पारगळल्लिल्लवॆन्दु निर्धरिसल्पट्टिरुत्तदॆ. सायुज्य शब्दक्कॆ इन्तह भोगसाम्यवे अर्थवॆन्दु ईग उपपादिसिदुदक्कॆ व्याकरण सूत्रगळन्नु रचिसिद श्री शाकटायनर प्रमाणवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ : सामरस्यंहि - समरसवुळ्ळ भाव नन्नल्लवे ऎन्दरॆ “रसो वै सः, रसग्ं वायं लानन्दी भवति” ऎन्दु श्रुतियल्लि हेळिरुव हागॆ रसवॆन्दरॆ आनन्दमयनाद परब्रह्मनु, अवनॊन्दिगॆ समानवाद आनन्दवन्नुळ्ळ भाववन्नॆ ऎम्बर्थवु, ब्रह्मवा विनः - ब्रह्मवित्तुगळु, सायुज्यवॆम्बदागि, वद - हेळुत्तारॆ, ऎन्नु - ऎम्बदागि शाकटायनरू, शून्मान् - हेळिरुत्तारॆ. सामरस्यम् ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द इब्बरिगॆ ऒन्दे विध : वाद आनन्दवॆन्दु हेळिरुवदरिन्द, सायुज्यवु स्वरूपैक्यवन्नु बोधिसुत्तदॆ ऎन्दु हेळुव अदैतिगळभिप्रायवु समञ्जसवादु दल्लवॆम्बुदु तोरिबरुत्तदॆ. “निरञ्जनः परमं साम्य मुपै ति ऎम्बल्लि समशब्दवन्नु बोधिसिरुवदरिन्दले, मुक्तनू परमात्मनू ऒन्दे ऎम्ब आदैतसिद्धान्तक्कॆ प्रबल विरोधवु. इदु कुदुरॆगॆ सम ऎन्दु हेळिदरॆ इदु कुदुरॆयल्लवॆन्दु कण्ठोक्तवागि हेळिदन्ताग 99________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार श्री शरोक्त सायुज्यारस्य खण्डनं शब्द शक्तियनि यिरुक, भेदश्रुतिगळु विरोधिक्क, सायुज्य शब्दत्तुळ्ळु ऐक्यम् पॊरुळाग निनैत्तिरुप्पाकु, मुर्क्त परम साम्यतॆ यडैयु मॆनु, ताक्का मॆन्नुव, कॊल्लुगिर श्रुतिगळुव विरोधिक्कु. 9 для подат लिल्लवे ? आदुदरिन्द मुक्तन स्वरूपवे बेरॆ परमात्मन स्वरूपवे बेरॆ ऎम्बुदु व्यक्तपट्टितु. यावुदरल्लि साम्यवॆन्दरॆ भोगमात्र साम्यम् ऎन्दु श्री व्यासार्यरु निर्धरिसिदरु. इल्लि आनन्ददल्लि मात्र साम्यवॆन्दु हेळिदुदरिन्दले इल्लू व्यत्यास उण्टॆन्दु हेळिदन्ता यितु, ऎल्लि व्यत्यासवॆन्दरॆ जगद्यापार वर्जम् ऎन्दु हेळिदरु. आदुदरिन्द सायुज्यवॆन्दरॆ स्वर पैक्यवॆम्ब शङ्कराभिप्रायवु सरि यल्लवॆम्बुदु “ सामरस्यं हि सायुज्यं वदन्ति ब्रह्मवादिन ऎम्बुदरिन्द एर्पडुत्तदॆ. ई अभिप्रायवन्ने मुन्दिन वाक्यगळन्द समर्थन माडि हेळुत्तारॆ. ୧ d सायुज्य शब्दद श्री शङ्कराचाररर्थद खण्डनवु. equal in all respecti शब्दशक्तियनिक्के इरुक्क - सा युज्य शब्द सामर्थ्यवु ऐक्य * वॆम्बर्थवल्लदे इरुवाग, भेदश्रुतिगळु परमात्म जीवात्मरिगॆ भेदवन्नु हेळुव श्रुतिगळू, विरोधि विरोधवादवुगळागिरुवाग, सायुज्य शब्दक्कॆ, ऐक्यं पॊरुळाग - परमात्म जीवात्मर ऐक्यवे तात्पर्यवागि, निन्नॆत्तिरुप्पा क - ऎणिसिरुववरिगॆ, मुर्क्त मुक्तनु, परमसाम्यतॆ यडॆ युवनु - परमसाम्य वन्नु हॊन्दुवनॆन्दू, तादृक्का ऎन्नुम् - परमात्मनिगॆ सदृश नागुवनॆन्दू, कॊल्लुगिर हेळुव, श्रुतिगळू सह विरोधिक्कु म विरोधवादवुगळागुववु. मुक्तदॆसॆयल्लि जीवात्मन परमात्मनल्लि ऐक्य हॊन्दुवनॆन्दू, इदे सायुज्य शब्दार्थवॆन्दू श्री शङ्करा चाररु अभिप्रायपट्टिरुत्तारॆ. ई अभिप्रायवु अनेक श्रुति 3 మా________________
१८९० श्रीमद्रहस्यत्रयसारे प्रमाणगळिगॆ विरोधवागुत्तदॆन्दु हेळुत्तारॆ. आ भेद श्रुतिगळु यावुवॆन्दरॆ :- यो १. “नित्यो नित्यानां चेतनश्चतनानाम् एको बहूनां विदधाति कार्मा (शे. ६. १३, कर २. ५. १३) नित्यानां बहू नां चेतना नां - अनेकरागि असङ्ख्याकराद नित्यराद चीवात्मरुगळिगॆ, नित्यः एकः चेतनः - नित्यनाद ऒब्बनाद याव परमात्मनु सर्व इष्टार्थ भोगगळन्नॆल्ला उण्टुमाडुवनो. (२) पृथगात्मानं प्रेरितारञ्चमा . जीवात्मवर्गवू, नियामकनाद परमात्मनू, पृथक् - बेरॆ ऎन्दु तिळिदवनागि (&c. n. a) (३) “ द्वासुपा सयुजा सखाया (मुं. ३, १. १, श्री. ४. ६) नम्म हृदय कुहरदल्लि इब्बरु आत्मरुगळु, जीवात्म पर मात्म रुगळिद्दारॆ, अवरु यावागलू ऒट्टिगॆ इरुववरु, परम मित्ररुगळु, इत्यादि. (४) “यस्यात्मा शरीरं” (बृ. ५, ७. २२) याव परमात्म निगॆ ई जीवात्मनु शरीरवो, (५) भोक्ता भोग्यं प्रेरितारञ्चमा. (श्री. १. १२) (६) सत्व स शरणं सुहृत - समस्त चेतनरिगू परमात्मनु उपायवु मत्तु परम मित्रनु, परमोपकारियु. (७) *ईशनीश्” श्वेत. १. ९) ऒब्बनु सश्वरनु सर्व नियामकनु, इन्नॊब्बनु (जात्यक वचनवु आतनिगॆ दासनु. (८) प्रधान क्षेत्रज्ञ पतिर्गुणेशः (श्वेत ६. १६) प्रकृतियाद अचेतनवर्गक्कू, चेतनवर्गक्कू कल्याणगुणगळिगू सह नायकनु. ఒ (९) “क्रियागु रात्मगुणैश्च तेषां संयोगहेतुर प रोपि दृष्टः” (श्री, ५ १२) करगळिगू संसारक्कू कारणभूतवाद गुणगळेनु, चेतनसम्बन्ध गुणगळागि मोक्षक्कॆ कारणभूतवाद गुण गळेनु इवुगळन्नु आ चेतनरॊन्दिगॆ सेरिसुवदक्कॆ हेतुवागिरुव पर ब्रह्मनॆम्बवनु इवरुगळिन्द बेरॆयागि तोरुवनु. (श्वेत, ६, १६) (१०) सकारणं करणाधिपाधिपः - इन्द्रियगळिगॆ अधिपति________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८९१ गळागिरुव चेतनरिगू कारणवागि परब्रह्मनिद्दानॆ (श्वेत, ६, ९) (११) “य आत्म नि र्ति - याव परमात्मनु जीवनल्लि आतनिगॆ आत्मावागिरुवनागि (बृ. ३. ७. २२) (१२) * त मेन विदित्यातिव्रत्युमेति” (श्वेत. ३ ८) आ त परब्रह्मवन्नु हीगॆ तिळिदवनागि, साक्षात्करिसिदवनागि संसारसागर वन्नु दाटुत्तानॆ. (१३) * प्राज्ञॆनात्मना नारूढः उत्सर्जन्याति” (बृ. ३. २१) सर्वज्ञनाद परमात्मनिन्द सेरिदवनागि देह त्याग माडिदव नागि होगुत्तानॆ. (१४) अन्तः प्रविष्टः शास्ता जननाग् सात्मा (तै. आ. ३. २४) परब्रह्मनु ऎल्ला चेतनरल्लि प्रवेश माडि अवरिगॆ निया मकनागि, ऎल्लरिगू सत्तॆयन्नीयुव आत्मावागिद्दानॆ. (१५) “यथा नद्यः ०दनाना मुद्रॆ अस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय । तथा विर्द्या नाम रूपा द्विमुक्तः परा तरं पुरुषमु पैति दिव्यवम् ॥” हेगॆ नदिगळु समुद्रद कडॆगॆ प्रवहिसुववुगळागि तम्म रूपगळन्नू हॆसरुगळन्नू कळॆदुकॊण्डु समुद्रदल्लि सेरिहोगुववो, हागॆये उपासकनू कूड तन्न नामरूपगळिन्द बिडल्पट्टवनागि ऎन्दरॆ नामरूपगळ कारणवाद प्रकृतिसम्बन्धदिन्द बिडुगडॆयन्नु हॊन्दिदवनागि दिव्यवाद परब्रह्म वन्नु हॊन्दुवनु ऎम्ब भाववु इल्लि कर्तृवु उपासकनु, कर्मवु परब्रह्मवु. आदुदरिन्द कर्तृ कण्मगळु ऒन्दे आगलारदु. ऒब्बनु प्राप्ता, इन्नॊब्बनु प्राप्यनु. हीगॆ नूरारु श्रुतिगळन्नारिसि हेळबहुदु, हागॆये स्मृतियू कूड. (१) करस्साणि भूतानि कूटस्फोक्षर उच्यते । उत्तमः पुरुषनः परमात्मत्युदाहृतः । (२, १५, १६) बद्ध मुक्त नित्यरुगळिगिन्त बेरॆयागि विलक्षणनागि परमात्मनॆनिसुवनु. (२) हागॆये विष्णु पुराणदल्ल (६ ७ ३०) “आत्मभाव नयनं तद्द ह्मध्यायिनं मुनिं विकार मात्मन का लोहनाकर को यथा ।” 2________________
१८९२ श्रीमद्र हस्कृतयसारे (४) “ममसाधर, नागताः” ऎन्नु गीता चारनु 2. हागॆये श्री वेदव्यास वेदव्यासरू महा भारतद आदि पर शकुन्तलोपाख्यानदल्लि “एहमति च मनसेळ्वं न च हैच्छयं वेत् कनिं पुराणं” “नीनु ऒब्बने ऎन्दु तिळिदिरु तीयो, निन्न हृदय गुहॆयल्लिये शयनिसिरुव महानुभावनन्नु नीनु अरियॆ या” ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. आकर कः - अयस्कान्त शिलॆयु. आत्मनश्या - तन्न शक्ति यिन्द, लोहं - कब्बिणवन्नु, अत्मभाव - तन्न स्वभाव हेगो, हागॆये आकर्षिसुव स्वभाववन्नु, नयति - कॊदिसुत्तदॆ हागॆ ये, विकारं - प्रकृति सम्बन्धदिन्द दोषयुक्तवादुदागिद्द, एनं - ई, ब्रह्मध्यायि नं - परब्र जोपासकनाद, मुनिं - मौनदिन्द मननशीलनादवनन्नु, तण् - आ परब्रह्मनु, आत्मनः शक्ता - तन्न शक्तियिन्दले, नयति - हॊदिसुवनु. इत्यादि अनेक प्रमाणगळिगॆ श्री शङ्कराचार्यर स्वरूपै क्या भिप्रायवु विरोधवारदागिरुतदॆ. इल्लि परमात्मनिगॆ स्वभाववु टॆन्दु हेळिरुवदरिन्द निर्गण वादवू अप्रामाणिकवागुदॆम्बुदु स्पष्टवु. आदुदरिन्द सायुज्यवॆन्दरॆ सुक्किन भाववु. ऎन्दरॆ जीवात्मनु परमात्म स्वभाववुळ्ळवन परमात्मनिगॆ सदृशनादव नागुवनॆम्ब भाववु. निरञ्जनः मं सावमति ऎम्ब श्रुत्यभिप्रायवे, मनसाधर मागा ऎन्दु गीता वाक्यदल्लि उपपादितवागिरुवदरिन्द, परमं सुळ्ळु ऎम्बुवदक्कॆ परब्रह्म साधरवॆन्दे अर्थ माडबेकॆन्दु हेळिदन्तायितु. परब्रह्मनिगॆ सदृशवाद धर्म उळ्ळोणवे सायुज्यवु मत्तु परब्रह्मनु प्राप्य स्थितियल्लि धर्मवुळ्ळवनॆन्दु हेळिदन्तायितु. इदरिन्द निर्गुण ब्रह्मवॆम्बुवदु अपसिद्धान्तवॆम्बुदू तोरिबरुत्तदॆ. (४) “मम नन्न, साधरं-समान धरवळ्ळ भाववन्नु, आग - (४) ५. १४. १२.________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १८९३ ताःहॊन्दिदवरु” ऎन्दु गीताचारनु गीतोपदेशिकराद श्री कृष्ण भगर्वारवरु, अरुळि दार् - कृपया हेळिरुत्तारॆ. मुन्दॆ “सर्गपि नोपजायन्ने प्रळये नव्यथनि च” ई मुक्तरु सृष्टि कालदल्लि पुनः जन्मवॆत्तुवदिल्लवु, प्रळयदल्लि केश वन्नु हॊन्दुवदिल्ल ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. 8 साध्यवॆन्दु हेळिरुवदरिन्द परब्रह्मवू मुक्तनू इब्बरू धरयुक्तरॆन्दु तोरिबरुवदरिन्द निर्गुणवादक्कॆ अवकाशवे इल्लवु. इब्बरू समान धरयुक्तरॆन्दु हेळिरुवुदरिन्द, स्वरूपैक्यवादवु ऒन्दु क्षणवू निल्ललारदु. स्वरूपैक्यवागि बेरे स्थितिये इल्लदिरुव ई मोक्षक्किन्त, ऋषिगळ हागॆ प्रवर्तनॆयन्नु हॊन्दि ई लोकदल्ले सदा इरुव स्थितियु साध्यवादुदादरॆ सत्कृष्ट स्थितियॆन्दु आग भाविसतक्कद्दागुत्तदॆ. श्री शङ्कराचाररवरु “मम साधर * माग” ऎम्बुदक्कॆ व्याख्यानवागि “मरूपं प्राप्ताः, नतु समान धरता साधर, क्षेत्रक्षेश्वरयो भेदानभ्युप गमात् गीताशास्त्र” ऎन्दु बरॆदिरुत्तारॆ. साधरम् ऎम्बुदक्कॆ स्वरूपवॆन्दर्थवे विना समान धर्मवुळ्ळ भाववॆन्दल्लवु ऎन्दु हेळि, गीताशास्त्रदल्लि जीवात्म परमात्मरुगळिगॆ भेदवन्नु अङ्गीकरि सुवदिल्लवादुदरिन्द, ऎम्ब हेतवन्नु हेळिरुत्तारॆ. ई हेतुवु आ सिद्धि दोषयुक्तवादुदु ; एकॆन्दरॆ गीतावाक्यदल्ले “उत्तमः पुरुष स्तन्यः” (गी, १५-१६) ऎन्दु विशदवागि भेदवु कण्ठोक्तवा गिरुवदरिन्द अदैत सिद्धान्तवन्नु गीताशास्त्रवु अङ्गीकरिसिल्लवु ऎन्दु हेळिद्दरॆ प्रामाणिकवाद वाक्यवागुत्तित्तु. इल्लि अन्यः ऎन्दरॆ स्वरूपतः अन्यनागि विलक्षणनादवनु ऎन्दु अर्थ माडदॆ उपाधि स्वभावदिन्द अन्यः ऎन्दु अर्थ माडिरुत्तारॆ. साधरक्कॆ समान धर्मवल्ल, समान स्वरूपवॆन्दु अर्थ माडुवदू, स्वरूपतः अन्य वादुदक्कॆ उपाधि मात्रदिन्द अन्यवॆन्दु अर्थ माडुवदू, हेगॆ समञ्जसवॆम्बुदन्नु निष्पक्षपातिगळु आलोचिसबहुदु. गीतॆयु “न नाहं जातुनासं” ऎम्बल्लि, सरियाद ज्ञानविल्लदॆ शोकिसुत्ता, तनगॆ परमार्थ ज्ञानवन्नु पदेशिसय्या, “शाधिमां त्वां प्रपन्न ऎन्दु अति दैन्यदिन्द बेडिद अर्जुननिगॆ परमार्थवन्नु हेळल________________
१८९४ K1 34 श्रीमद्रहस्यत्रयसारे इव्वक्कॆ (१) “परेण परधच भवतैषि समेत्यवै । विशुद्धधम्मा शुद्धन बुद्धन च स बुद्धि र्मा । विमुक्त धरा मुक्तन समेत्य भरतर्षभ ! वियोग धणाचैव नियो 66 तॊडगिद प्रथम श्लोकदल्ले, “ अहं, त्वम् इमे” ऎम्ब शब्दगळिन्द जीवात्म परमात्म भेदवन्नू, जीवात्मर परस्पर भेदवन्नू, बोधि सिरुत्तारॆ. कॊनॆय श्लोकदल्लि “सत्वर्धा परित्यज्य” ऎम्बल्लि यू, अहं त्वा ऎम्ब प्रयोगदिन्द प्रास्तावे बेरॆ, प्राप्यने बेरॆ ऎन्दु गीतॆयल्लॆल्ला प्रतिपादितवे विना, अभेदवॆन्दिगू इल्लवु. श्री व्यासमहर्षियु “ आलोड्य सत्व शास्त्राणि विचार च पुनः पुनः” सत्वशास्त्रगळल्लि निपुणतॆयन्नु हॊन्दिदवरागि, पुनः पुनः अवुगळन्नु परिशीलिसि निष्कर्षार्थगळन्नु व्यवस्थॆ माडिरुवद रिन्द, अन्तह महनीयरभिप्रायक्कू ई श्री शङ्कराभिप्रायवु परमविरुद्धवादुदॆन्दु तिळिसुवदक्कागि मोक्षधद वसिष्ठ कराळ संवाददल्लि सिद्धान्तिसल्पट्ट अभिप्रायवन्नु दाहरिसिरुत्तारॆ. परमं साम्यम् ऎन्दरॆ साधर’ ऎन्दु गीतॆयल्लि सङ्ग्रहवागि हेळिदुदन्ने विशदवागि उपपादनॆ माडि ई संवाददल्लि हेळिरुवदरिन्द, आ तत्वा र्थवे परमग्राह्यवॆन्दु तिळिसुवदक्कागियू अल्लिन श्लोकगळन्नु दाहरिसिरुत्तारॆ. 66 “ एषः - ई मुक्तनु, परेण समेत्य - परवस्तुवाद वासु देवनॊन्दिगॆ सेरिदवनागि, परधच भवति - परब्रह्मनु याव धरगळुळ्ळवनो, अन्तह धरगळुळ्ळवने आगुत्तानॆ ऎन्दरॆ प्रकृति सम्बन्ध तॊलगिदुदरिन्द तत्सदृशवाद धरगळुळ्ळवनागुत्तानॆ. मुन्दॆ इदन्ने विस्तरिसि हेळुत्तारॆ :- शुद्धन - अविद्यादि दोषगन्धरहित नागि अपहतपात्मनाद परमात्मनॊन्दिगॆ, समेत्य, विशुद्ध धरा - अविद्यादि दोषगन्धरहितनागुवनु, बुद्धन च समेत्य - सत्वज्ञनाद परमात्मनॊन्दिगॆ सेरि, बुद्धि र्मा भवति - मुक्तनू सत्वज्ञनागुवनु. ओ भरतर्षभ - ओ भरतवंशद कराळराजने ; (१) भारत शान्ति, ३१३-२६ ३१.________________
(00) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १८९५ भवत्विक दीप्ति र्मा : विमला 5m2 गौत्मा भवतैसि । विमोक्षिणा विक्षीच समेष तथा भवेत् । शुचि करणा शुचि ता च भवति समेत्य विमलात्मना । केवलात तथाचैष केवॆ स्वतन्त्र स्वतन्त्रण स्वतन्त्र JJ, लेन समेत्य मुपारु ते ऎन्दु सम्बोधिसि वसिष्ठरु हेळुत्तारॆ, मुक्तन समेळ - याव बन्धवू इल्लद परमात्मनॊन्दिगॆ सेरि मुक्तनू, विमुक्त नम्म भवति - बिडल्पट्ट ऎल्ला बन्धगळुळ्ळवनागुत्तानॆ. मुक्तन - ऎन्दरॆ सारसङ्ग्रह व्याख्यातवु इन्द्रियाधीनवाद ज्ञानविल्लद परमात्म नॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. वियोग धणा - दुःखवु इल्लदिरुव, पर मात्मनिन्द, समेत्य - सेरिदवनागि, वियोगात्मापि ईतन दुःखविल्लदन्थावनू कूड, भवति, आगुवनु, एषः - ई मनु, विमोक्षिणा समेत्य - महानन्दवन्नु हॊन्दिरुव परब्रह्मनॊं दिगॆ बन्दु सेरिदवनागि, तथा - हागॆयॆ, विमोडे च भवे - तानू निरतिशयानन्द युक्तनागुवरु.” “रसोवैसः रसं नायं लज्ञानभवति” ऎम्ब तैत्तरीय आनन्दवल्लिय श्रुत्य र्थवु इल्लि उपपादिसल्पट्टितु “मुक्तिर्मॊको महानन्दः” ऎम्ब वाक्यानुसारवागि, इल्लि मोक्षशब्दक्कॆ आनन्दवॆम्बर्थ साध्य प्रकाशिकॆयवरु, विमोक्ष ऎम्बुर्वक्कॆ अद्याक वासनागचिगळिन्द बिडल्पट्टवरागुत्तारॆन्दु अर्थ माडिरुत्तारॆ. शाकरणा - केय वाद करसम्बन्धविल्लदवनादुदरिन्द परिशुद्धवाद व्यापारगळुळ्ळ पं मात्मनॊन्दिगॆ, समेत्य - सेरिदवनागि, एषः - ई मुक्तनु, कुचिः- हागॆये कर सम्बन्धविल्लदॆ परिशुद्ध व्यापारगळुळ्ळवनागियू, अमित दीप्ति र्मा - निरवधिक ज्ञानदीप्तियुळ्ळवनागियू अथवा निरतिशय कान्तियुळ्ळ दिव्यमङ्गळ विग्रहयुक्तनागियू अपहतसात्मत्यादि गुणा प्रकगळिन्द प्रकाशिसुवनागियू, भवति आगुवनु. विमुतात्मन सत्यादि गुणराहित्यदिन्द परिशुद्धनाद परमात्मनिन्द सत्य - सेरि दवनागि, एषः - ई मुक्तनू, विमल त्याज सत्यादि गुणरहितनागि, भवति - आगुवनु, केवलेन समेत्यवै - प्राकृत देहेन्द्रियादि________________
१८९६ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे (मनाप्पुते) एतावदे तत्कथितं मयाते तथ्यं महाराज यथार्थतत्वम् । अमत्सर प्रतिगृह्य चारं सनातनं 2 गळिल्लद अप्राकृत दिव्यमङ्गळ विग्रहवुळ्ळ परमात्मनॊन्दिगॆ सेरिदव नागि, एषः तथा - ई मुक्तनू हागॆये, केवलात्मा (भवति) - प्राकृत देहेन्द्रियगळिल्लदॆ, दिव्यमङ्गळ विग्रहयुक्तनागुवनु, स्व * तन्त्रण समेत्य - अकरवश्यनॊन्दिगॆ सेरिदवनागि तानू स्वतं प्रश्नॆ- अकवश्यनागि, स्वतन्त्रत्ववु पाश्चुतेभगवन्तन स्वातन्त्र नन्ननु भविसुवनु. सना परमात्मनिगधीननादवनागुवनु ऎम्बरवु. “सराद्भवति” ऎम्ब शत्यवू “पारतन्त्रं परेपुंसि” पर मात्मनिगॆ तानु यावागलू परतन्त्रनॆन्दु तिळियुवनु ऎम्ब श्रुत्य रवू इल्लि हेळल्पट्टितु. इल्लि अनापुते ऎम्ब पाठान्तरवादरॆ स्वातन्त्र्यवन्नु हॊन्दुवनॆम्बर उण्टागुवदरिन्द, अदु स्वतन्त्रश्च ऎम्बल्लिये उण्टागुवदरिन्द ई पाठान्तरवु स्वारस्यवादुदल्लवु. अकवश्यनागि स्वतन्त्रनादरू, भगवन्तनिगधीनवल्लदॆ स्वतन्त्रनल्लवु ऎन्दु हेळुवदक्कागि स्वतन्त्रत्वमुताश्रुते - भगवन्तन स्वतन्त्र वन्ननुभविसुवनु ऎन्दरॆ आतनिगॆ सदा अधीननागिरुवदरल्लि तुम्बा आसक्तियुळ्ळवनॆम्ब स्वारस्यार्थवु तोरिबरुत्तदॆ. मुन्दिन वाक्य दिन्द कराळनृपनु, मुक्तनिगॆ सत्येश्वरन कृपया प्राप्तवागुव इन्तह परम वैभववन्नू परमात्मनॊन्दिगॆ परम साम्यवन्नू हॊन्दुवनॆन्दु तावु विशदवागि हेळिद मातिनल्लि संशयवुळ्ळवनादा नॆन्दु तिळिदु वसिष्ठ महर्षियु तावु ईग हेळिदुदु परम यथा र्थाभिप्रायवॆन्दु पदेशिसुत्तारॆ :- “हे महाराज “ हे महाराज - ओ महा राजनाद कराळने, एतावत् इष्टु मात्र मोक्ष विषयदल्लि, मया - नन्निन्द, ते - निनगागि, यथार्थ तत्वम् - निजवाद तत्वाभिप्रायवॆन्दु, कथितं - हेळल्पट्टिद्दु, तथ्य - सत्यवादद्दु, आमत्सर - ई नम्म अभिप्रायगळल्लि मात्सर्यविल्लदवनागि, त्वं - नीनु, अरम् - नावु हेळिदुदन्नु, प्रतिगृह्य - अङ्गीकरिसि, सना तनं - अनादियागिरुव, विशुद्धं - अविद्यादि दोषगन्धवू इल्लद,________________
CG परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९९६. ब्रह्मविरुद्ध माद्यम् ” ऎन्नु वसिष्ठ कराळ संवादलुम् परक्कप्पेशि, इदुवे परमारमॆन्नु मह निगमित्ता. इष्टु मुक्त नै स्वतन्न नॆरदु करवश्यन नन्न पडि, मुक्त विष यमान स्व राष्ट्र * अकवश्य ऎन्नु, भाष्यकारर् व्याख्यानम् पण् यरुळिनार्, ముత్తను శ్చరంత్య్ర, నందరి आद्य - ऎल्लादक्कू मूलकारणभूतनाद, ब्रह्म - परब्रह्म नन्नु, उपास्य - उपासनॆ माडतक्कद्दु . एनु ऎम्बदागि, वसिष्ट कराळ संवाददल्लि, परपेशि-सविस्तरवागि हेळि, इदुवे - परमं साम्यम् ऎम्ब शब्दक्कू सायुज्य शब्दक्कू समान धर्मवे, परमार मॆनु - समञ्जसवाद सत्यवाद अर्थवॆन्दु, मह - वसिष्ठ महर्षियु, निगमिर्ता - मुगिसि हेळिरुत्तारॆ. हीगॆ परम साम्य” ऎम्बुदक्कू, “नारायण सायुज्यमवाज्योति” ऎम्बल्लिरुव “सायुज्य, शब्दक्कू “साधर” वॆम्बर्थवन्नु श्री भगवद्गीतॆयल्लि हेळिरुवदन्ने इल्लि विवरिसि मुक्तनु परमात्मनिगॆ समानवाद धर्मगळुळ्ळवनागुत्तानॆन्दु हेळल्पट्टितु. आदरॆ मेलिन संवाददल्लि परमात्मनन्तॆ स्वतन्त्रनागुत्तानॆन्दु हेळिरुवदरिन्द इन्नॊब्बनू स्वतन्त्रनागुवनॆन्दरॆ परमात्मन स्वातन्त्रक्कॆ विरुद्ध वागुवदरिन्द स्वतन्त्र ब्रह्मक्यवॆम्बभिप्राय उण्टादीतॆन्दु भाविसि स्वतन्त्र शब्दक्कॆ अकर्मवश्यनॆन्दु अर्थ हेळि, यावाग कराधीनतॆ यिल्लवो आग ईतनु स्वतन्त्रन हागॆम्ब भाववु. इट्टु - ई मेलिन वसिष्ठ कराळ संवाददल्लि मुक्त स्वतन्त्र नॆरदु - मुक्त नन्नु स्वतन्त्रनॆन्दु हेळिरुवदु, अकरवश्य नॆनपडि - आग कर्म वश्यतॆ इल्लदवनॆन्दु हेळिद हागॆम्ब भाववु. मुक्त विषयमान - मुक्तनन्नु कुरितु श्रुतियल्लि हेळिरुव, स्वराष्ट्री“ सस्कृराष्ट्र वति” (छां. ७ २५,२) ऎम्बुदरल्लिरुव स्वराट् ऎम्ब शब्दक्कॆ, आकर वश्यनॆन्दु श्री भाष्यकाररु व्याख्यान माडि, अरुळिनार् - कृपया उपदेशिसिदरु. “दासभूता तस्सत्व ह्यात्मानः परमात्मनः”! ‘नान्यथा लक्षणं तेषां बन्धे मोक्षे तथैव च” ई चेतननु________________
१८९८ श्रीमहस्यत्रयसारे स्वभावत बद्धावस्थॆयल्लागलि मुक्तावस्थॆयल्लागलि परमात्मनिगॆ दासभूतनागिद्दुकॊण्डु आतनिगॆ यावागलू कैङ्कर्य माडुवदे स्वरवॆन्दु हेळिरुवाग, स्वतन्तनु हेगॆ ऎन्दरॆ सरेश्वरनु हेगॆ *र्मक्कॆ अधीननल्लवो हागॆये ई मुक्तनू अल्लवॆन्दु अर्थ हेळ तक्रक्कॆ रु, मुक्तनु स्वराद्भवति ऎन्दु हेळिरुव श्रुतियू ई अकर्म वश्यतॆयन्ने बोधिसुत्तदॆन्दु श्री भाष्यकाररु स्वराट् शब्दक्कॆ अकर्मवनॆन्दु अर्थ बरॆदिरुत्तारॆ. इदु ऎल्लि ऎन्दरॆ श्री भाष्यदल्लि आ आत एवचानाधिपतिः” (शा, सू. ४. ४, ९) ऎम्ब सूत्र दल्लि मुक्तनु अपहतात्मनु सत्य सङ्कल्पनॆन्दु छान्दोग्यदल्लि हेळि रुवदरिन्द, ईतनु इन्नु मुन्दक्कॆ यावागलू कर्मवश्यनागुवदिल्ल वॆन्दु हेळुव सन्दर्भदल्लि “सरावति, तस्य सद्वेषु लोकेषु कामचारि भवति, मुक्तमु कर्मवश्यनागुवदिल्लवु, अवनु समस्त लोकगळल्लि तन्निष्टानुसार भगवन्तनप्पणॆयन्नु पडॆदु सञ्चरिसुवनागुवनु, ऎन्दरॆ ई मुक्तनु विकारास्पद लोकगळल्लि सञ्जॆ सुवदु कर्मवश्यर हागल्लवु ऎम्ब तात्पर्यवु. आदुदरिन्द परमात्मनु हेगॆ स्वतन्त्रनो हागॆ मुक्तनु स्वतन्त्रनल्लवु, आगलू सरेश्वरनिगॆ शेषभूतनागि अधीननागि आतनिगॆ दासनादुदरिन्द, आत निगॆ कैङ्कय्य माडुव साम्राज्य पदवियन्नु हॊन्दुवनु ऎम्ब भाववु. • दुदरिन्द पारतन्त्र परेपुंसि प्राप्य निरत बन्धनः । स्वातन्त्र मतुलं प्राप्यते नैव सहमोदते” ऎम्ब वाक्यदल्लि तोरुव प्रकृति सम्बन्ध कराविद्यादि बन्धनगळिल्लदे इरुव स्वतन्त्रवु इल्लि तोरुव अभिप्रायवॆन्दू इदरिन्द भगवत्पार तन्त्रविल्लवॆम्बवल्लवॆन्दू ग्रहिसतक्कद्दु, ई विष्णु तत्वश्लोकाभि प्रायक्कॆ अधिकारि विभागद ८४४-५नॆय पुटगळन्नु पराम्बरिसतक्कद्दु. आदरॆ कॆलवु श्रुति स्मृति सूत्रगळु मुक्तनिगॆ परब्रह्मनॊन्दिगॆ समत्ववागलि साधनागलि व्यक्तवागि बोधिसदॆ ऐक्यवन्नु “ अहं ब्रह्मास्मि”, “ब्रह्मव भवति, इत्यादि वाक्यगळिन्द बोधि सुत्तवॆयल्ला, अन्तह सन्दरदल्लि हेगॆ अरॆ निराहवॆन्दरॆ, हेळु त्तारॆ. इवुगळिगॆ अवन्नु हेळुवाग स्पुटवागि भेदवन्नु बोधिसुव श्रुति स्मृति सूत्रगळिगॆ विरोधविल्लद हागॆ अर हेळि, ई ऎरडु विध________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्त विषये ऐक्य परप्रमाणनाम् अर निराहनाह, १८९९ इप्पडि श्रुति स्मृति सूत्रज्ञळिगॆ साम्यं कण्ठोक्त मा गैयाल्, मुक्तदलैयिल् ऐक्यं तोत्तिन विडळॆल्ला म् (१) “रामसुग्रीव रैक्यं देवं समजायत” इत्या दिगळिर् पडिये भेद श्रुत्य विरोधेन कण्णु कॊळ्ळदु. प्रमाणगळिगू सामञ्जस्यवन्नु कल्पिसतक्कद्दु. परस्पर विरुद्धार्थ गळन्नु कल्पिसकूडदु. श्रुतिगळिगू स्मृतिगळिगू सूत्रगळिगू पर स्परवागलि ऒन्दक्कॊन्दागलि विरोधवॆल्लादरू उण्टे ? आदुदरिन्द समञ्जसारवन्नु कल्पिसतक्कद्दु युक्तवॆन्दु हेळुत्तारॆ. इल्लियू ऐक्य हेगॆ ऎन्दरॆ, समान धर भोगगळिन्द ऐक्यवे विना, श्री शङ्क राभिप्रायवाद स्वरूपैक्यवल्लवॆन्दु मुन्दिन वाक्यदिन्दुपदेशिसु त्तारॆ. हागादरॆ मुक्तरिगॆ परब्रह्मनॊन्दिगॆ ऐक्यवन्नु हेळुव प्रमाणगळिगॆ अल्लि निराह हेगॆ ? इप्पडि - ई मेलॆ हेळिद रीतियल्लि, श्रुतियल्लू स्मृतियल्लि सूत्रगळल्लि, मेलॆ उदाहरिसिद प्रमाणगळ मूलक, साम्यं - मुक्तरिगू परमात्मनिगू सह भोगदल्लि साम्यवॆम्बुवदु, कण्ठो क्त क मागैयालॆ - व्यक्तवागि हेळिरुवदरिन्द, मुक्त दॆशॆयल्लि, ऐक्यं तोत्तिन विडण्णळॆल्ला - ऐक्यवॆन्दु तोरुव ऎन्दरॆ यथार्थवागि ऐक्यविल्लदॆ ऐक्यद हागॆ तोरुव स्थळगळ ल्लॆल्ला “राम सुग्रीव योगैत्यं देवं समजायतु “श्री राम सुग्रीवरिगॆ परमसहाररूप ऐक्यवु ओ सीतादेवि ये ई परियल्लि उण्टायितु”, इत्यादिगळिगॆ पडिये - इवे मॊदलाद प्रमाणगळल्लि हेळिरुव हागॆ, भेदश्रुत्यविरोधेन - भेद श्रुतिगळिगॆ विरोधविल्लदहागॆ, कण्णुकॊळ्ळदु - तिळियतक्कद्दु. इल्लि राम सुग्रीवरिगॆ सख्यदिन्द ऐक्यवे विना, भिन्नराद इवरिब्बरिगू e रामा, सुन्दर ३५-५१.________________
१९०० श्रीमद्रहस्यत्रयसारे स्वरूपैक्यवु सात्मना कूडुवदिल्लवु. हीगिरुवदरिन्द विभुवागि शेषियागि साधारनागिरुव परमात्मनागिरुववनिगू, अणुवागि शेषनागि आधेयनागियू इरुव जीवात्मनिगू, स्वरूपैक्यवु कूडुव दिल्लवादुदरिन्द, इब्बरिगू परम मैत्रि इरुवदरिन्द ऐक्य हेळुव स्थळगळल्लॆल्ला, रामसुग्रीवरिगॆ मदग्नियु हेगॆ ऐक्यवन्नु हेळिदरो, हागॆ परम मैत्रियिन्द समान भोगादि धन्मगळुळ्ळवरॆन्दु अम्म हेळतक्कद्दॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. एकॆन्दरॆ स्वरूपैक्यवॆम्ब माडिदरॆ भेद श्रुतिगळिगॆ विरोधवादुदागुत्तदॆ. हागॆ ऐक्य तोरुव प्रमाण गळावुवॆन्दरॆ :- १. “अयमाता ब्रह्म” (बृ.६.४.५) ई संसारियाद जीवा त्मनु परब्रह्मवे आगुत्तानॆन्दु श्री शङ्कराचाररु अर माडिदरु. सरियाद अग्गवादरो, ई आत्मनु अपहत पाल्मत्यादि गुणगळिन्द परब्रह्मनिगॆ समाननागुवदरिन्द, ई जीवात्मनु परब्रह्मवॆन्दु हेळ ल्पट्टितु. ऒब्ब बालनु सिंहदहागॆ पराक्रम उळ्ळवनादरॆ, “सिंहो माणविकः” ऎम्ब प्रयोगदल्लि बालने सिंह हेगल्लवो, हागॆ, २. “तत्वमसि श्वेत केतो” (छां, ६, ८, ७) आ हेय प्रत्य नीकनागि कल्याणगुणाकरनागि जगत्कारणभूतनाद सत्य कामसङ्कल्प नाद परमात्मने आचिच्छरीरकनाद निन्न शरीरवागि उळ्ळवनु ओ श्वेतकेतुवे. हीगॆ हेळिदुदरिन्द, सामानाधिकरण्यवू कूडु तदॆ. आदुदरिन्द जगत्कारणनल्लद जीवनू जगत्कारणनाद परमा त्मनू बेरॆ ऎम्बुवदु सिद्धवु. श्री शङ्कराभिप्राय प्रकार स्वरू पैक्य हेळिदरॆ सामानाधिकरण्यवे सरिहोगुवदिल्लवु. ३. “ब्रह्मवेद ब्रह्मव भवति” (मुं. ३, २, ९) परब्रह्म वन्नु पासिसि परब्रह्म साक्षात्कार हॊन्दिदवनु परब्रह्मवे आगुवनु ऎन्दरॆ आविर्भविसिद स्वस्वरूपदिन्द परब्रह्मनिगॆ समाननागुवनु. गुणदल्लि भोगदल्लू तत्सदृशनागुवनु. ब्रह्मनॊब्बनु साक्षात्करि सुवनॊब्बनु हीगॆ इब्बरॆम्बुवदु ब्रह्मवेद शब्ददिन्दले व्यक्तवु. हीगिरुवल्लि ब्रह्मव भवति ऎम्बल्लि स्वरूपैक्यार्थवु कूडुवदिल्लवु. अधिकन्तु भेदनिर्दॆशात् (ब्र. सू, २. १. २२) ऎम्ब सूत्रदल्लि________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९०१ अधिकोपदे तात् ऎम्ब सूत्रदल्लू परमात्मनु जीवात्मनिगिन्त बेरॆ यागि अधिकनॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हागॆये श्रुतियल्लि “पृथगा त्मानं प्रेरितारञ्चमत्वा” ( श्वेता. १. ६) ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. ४, “अहं ब्रह्मास्मि” (बृ. ३. ४, १०) उपासनॆ माडुवनु अहम्ब्रह्मास्मि” ऎन्दु उपासनॆ माडतक्कद्दॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इदु स्वरूपैक्यवन्नु हेळुव वाक्यद हागॆ तोरुत्तदॆ. इदर समञ्जसार्थवु “ननगॆ परमात्मनु आत्मा ऎन्दु तिळिदवनागि उपा सिसतक्कद्दॆम्ब भाववु. ५. “विभेद जनके ज्ञाने नाशमात्यन्तिकङ्गते । आत्म नो ब्रह्मणो भेदवु सन्तं कः करिष्यति ।” (वि, पु. ६ ७, ९६) इदरर्थवु हिन्दॆये विवरिसल्पट्टिरुत्तदॆ. ६. “तद्भाव भावमापन्न सदा परमात्मना । भवत्य भेदी भेदश्च तस्याज्ञान कृतो भवेत् ॥” इदरर्थवू हिन्दॆ विवरिसल्पट्टिरुत्तदॆ. ७. “आत्मति तूपगच्छनि ग्राहयच (ब्र, सू. ४१.३.) तानु परमात्मनॆन्दे उपासनॆ माडतक्कद्दु, शास्त्रगळु इदन्ने अप्करिसिरुत्तवॆ ऎम्बरवु ई सूत्रक्कॆ तोरिबरुत्तदॆ. हीगॆ अर हेळिदरॆ हिन्दिन “ अधिकन्तु भेद निशात् इत्यादि ब्रह्मसूत्र गळिगॆ विरोधवुण्टागुवदरिन्द विरोधविल्लदहागॆ तात्सरवन्नु बरॆय तक्कद्दु. उपासनॆयन्नेनो तानु परमात्मनॆम्ब भावदिन्दले माडतक्कद्दु. अभिप्राय हेगॆन्दरॆ परमात्मनु तनगॆ आत्मावादुद रिन्द आत्मा ऎन्दे उपासनॆयन्नु माडतक्कद्दु. अदु हेगॆन्दरॆ, मनुष्यहम् ऎम्बल्लि मनुष्य शरीरकनाद तनगॆ आत्मावाद आहम् ऎम्ब शब्दवू आ बुद्धियू सह हेगॆ सल्लुत्तदो, हागॆये आत्मशरी रकनाद परमात्मनिगॆ जीवात्मनन्नु बोधिसुव अहं शब्दवू तद्भुद्धि यू सल्लुत्तवॆम्ब भाववु. आदुदरिन्द परमात्मनु तनगॆ आत्मा वॆन्दु उपासिसतक्कद्दु, हागॆये शास्त्रगळु हेळुत्तवॆ. इवुगळिन्द नावु मुख्यवागि ग्रहिसुव विषयवेनॆन्दरॆ, इन्तह अदैत तोरुव श्रुतिगळिगॆ अर हेळुवाग इतर व्यक्तभेद श्रुतिगळिगॆ विरोधविल्लद हागॆ अल्लि हेळबेकु. ऎल्ला श्रुतिगळू, स्मृतिगळू________________
१९०२ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे स्वरूपैक्य बाधक प्रदश्य नम् इण्णनाद पोदु (१) “यदातु मन्यते न्यूह मन्य पुराणेति हासगळू, चेतन वर वु परमात्मनिगॆ शरीरवॆन्दू, परमात्मनु ई चेतन वरक्कॆल्ला आत्मावॆन्दू हेळि, परमात्मनिगू चेतन वरक्कू स्वामि दास सम्बन्धवन्नु उपपादिसि, चेतननु परमात्मनन्नु कुरितु होगुव प्रास्तावॆन्दू, उपायानुष्ठानदिन्द परमात्मनाद प्राप्यवन्नु हॊन्दुत्तानॆन्दू हेळुत्तवॆ. ऐक्यवन्नु हेळुवाग ई अभिप्रायगळिगॆ विरोधविल्लदहागॆ अर हेळबेके विना, ऐक्य बोधॆयिन्द स्वरूपैक्यवे हेळल्पट्टितॆन्दु नम्बि परस्पर विरुद्धार्थ कल्पनॆयु सरियल्लवु. वेदवे ऒन्दु कडॆयल्लि सरिया गियू इन्नॊन्दु कडॆयल्लि सरियल्लदॆयू उपदेशिसलारदष्टे, आदु दरिन्द स्वरूपैक्यवन्नु हेळदॆ, रामसुग्रीवरु ऒट्टिगॆ सेरिदरु, सयुक्कादरु, समान भोगादिगळन्नु हॊन्दिदरु, मित्रतॆयन्नु हॊन्दिदरु, ऎम्बभिप्रायदल्लि “रामसुग्रीवरैक्यं” ऎन्दु ऐक्यशब्द प्रयोगवन्नु महरियु हेगॆ माडिरुत्तारो, हागॆ ई ऐक्यश्रुतिगळ विषयदल्लि अन्वयिसतक्कद्दॆन्दुपदेशिसिरुत्तारॆ. राम सुग्रीवरिगॆ हेगॆ स्वरूपैक्यवन्नु हेळलु साध्यविल्लवो, हागॆये ई ऐक्यश्रुतिगळल्लू साध्यविल्लवॆम्ब भाववु. हागॆ स्वरूपैक्य हेळिदरॆ बहु बाधकगळु प्राप्तवागुत्तवॆम्बवदन्नु श्री भाष्यन्याय सिद्धाञ्ज नाडिगळल्लि काणबहुदु. हीगॆ स्वरूपैक्यवन्नु ई श्रुत्यादिगळिगॆ कल्पिसिदरॆ उण्टागुव बाधकवेनॆन्दरॆ सूक्ष्मवागि हेळुत्तारॆ. अनेक महगळ वाक्य गळिगू गीताचारोपदेशादि अनेक प्रमाणगळिगू उण्टागुत्तदॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. स्वरूपैक्य हेळिदरॆ प्राप्तवागुव बाधकगळु, विरोध इण्णनाद पोदु. ई ऐक्य प्रतिपादक प्रमाणगळिगॆ मेलॆ (१) भारत, शान्ति, ३२३-७७, ८०.________________
(१२) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः обовит १९०३ एष इतिद्विजः । तदासकेवलीभूतप्पड्वंश मनुपश्यति । अन्यश्चरार्जि सपरः स्वथान्यः पञ्चविंशकः तत्त्वादनुपश्यनि हैकएवेति साधवः अन्यश्चरार्जि सपरथान्यः पञ्चविंशक तेनैतन्नाभिजानन्ति पञ्चविंशक मच्युतम् । जन्ममृत्यु हेळिद हागॆ अर्थ हेळदॆ, स्वरपैक्यवन्नु विपक्षिगळु हेळुव हागॆ हेळिदरॆ, अनेक प्रमाणगळिगॆ विरोध उण्टागुत्तदॆन्दु हेळुव दक्कागि ऐक्यारवन्नु चॆन्नागि उपपादिसि हेळुव तत्वार्थ निर्णय दल्लि महाग्रेसरराद श्री व्यासमहय वाक्यगळन्नु प्रथमतः उदा हरिसुत्तारॆ :-“यदातु - यावागलादरॆ, अहं - नानु, अन्यः - परमात्मस्वरूपक्किन्त बेरॆयादवनॆन्दू, एषः - ई परमात्मनु अन्यः . जीवात्म स्वरूपक्किन्त बेरॆयादवनॆन्दू, द्विजः- ब्राह्म णनु, मन्यते - तिळियुवनो, तदा - आग, सः - आ ब्राह्मणनु, केवली भूतः - प्राकृत देहादिगळिल्लदवनागि, षड्वंशं - इप्प तारनॆय तत्ववाद परमात्मनन्नु, अनुपश्यति - साक्षात्करिसुवनु, परमपददल्लि परमात्मनॊन्दिगॆ सेरि आतनन्ने नोडुत्ता आनन्दिसुव नॆम्बर्थवु. हे रार्ज - ओ जनकमहाराजने, याज्ञवल्करु जनकनुहाराजनन्नु कुरितु हेळुत्तारॆ. सपरः . आ परवस्तुवाद सश्वेश्वरनु, अन्यश्च - बेरॆयादवनु, तथा . हागॆये, सञ्च विंशकः - इप्पत्तैदनॆय तत्ववाद जीवात्मनु, अन्यः - बेरॆ ऎन्दरॆ स्वरूपतः इब्बरू बेरॆबेरॆयादरू, साधवः - महा ज्ञानिगळु, तत्त्वात् . पञ्चविंशकनाद जीवात्मनिगू अन्तरात्मावागिरुवद रिन्द, एकएवेति - हीगॆ ऒट्टिगॆ सेरिरुवदर मात्रदिन्दले ऒब्बरे ऎन्दे, अनुपश्यन्ति - काणुवरु, भाविसुवरु. इदरिन्द स्वरूपैक्य दिन्द ऒन्दागि ऎणिसुवदिल्लवॆन्दू, परमात्मनिगॆ जीवात्मनु शरीरवा गियू जीवात्मनु परमात्मनिगॆ अन्तरात्मावागियू इरुवदरिन्द देहात्मगळिगॆ हेगॆ एकीभाववो हागॆ एकीभाववॆम्बभिप्रायवु, हे रार्ज - ओ जनकराजने, सपरः . आ परमात्मने, अन्यश्च - बेरॆ, पञ्चविंशकः - २५नॆय तत्ववाद जीवात्मने अन्यः - बेरॆ ;________________
१९०४ श्री मद्रहस्यत्रयसारे भयातास्साङ्ख्ययोग काश्यप । षंशमनुपश्यनि शुचयस्तत्परायणाः ” ।
तेन - आ कारणदिन्द, एतम् अच्युतं - ई अच्युतनाद परमात्म नन्नु, पञ्चविंशक - इप्पत्तैदनॆय तत्ववाद जीवात्मनन्नागि, नाभिजानन्ति - तिळियुवदिल्लवु. ई महर्षि वाक्यदिन्द जीवात्म परमात्मरुगळिगॆ स्वरूपैक्यवादवु दूरीकृतवायितु. हे काश्यप - ओ कश्यप् कुलोद्भवन, जन्ममृत्यु भयाताः .. जनन मरण गळ भयदिन्द हॆदरिद, साङ्ख्ययोगाश्च - ज्ञानयोगनिष्ठरु, शुचयः - करयोगनिष्ठॆयिन्द स पापगळ सम्बन्धविल्लदॆ परिशुद्ध रागि, तत्परायणाः - आ परमात्मनन्ने सेरबेकॆम्ब आशॆयिन्द सदा आतनन्नु चिन्तिसुवरागि, षड्रिंशं - २६नॆय तत्ववाद पर मात्मनन्नु, अनुपश्यन्ति - निरन्तर तैलधारॆय हागॆ अविच्छिन्नवाद सतिसन्तानदिन्द आतनन्नु साक्षात्करिसुत्तारॆ,” सत्व शास्त्रगळ विवरनॆयन्नु माडि, अवुगळन्नु पुनः पुनः विचार माडिदवरु गळल्लि अग्रेसररु श्री व्यासमहर्षियु, अवर दिव्य सूक्तिगिन्त परमा प्र वाक्यवु बेरॆ इरलारदु. इल्लि कण्ठोक्तवागि जीवने बेरॆ पर मात्मनॆ बेरॆ ऎन्दु पुनः पुनः हेळि स्वरूपैक्यवु कूडुवदिल्लवॆन्दु बहु स्पुटवागि उपपादिसिरुत्तारॆ. आदरॆ उपनिषत्तुगळल्लि अवुगळ उपब्रह्मणगळल्लि ऐक्यवु हेळिदॆयल्ला, इदन्ननुसरिसि अनेक ज्ञानवृद्धरु ऐक्यवन्नु हेळुत्तारल्ला ऎन्दरॆ ऎल्ल स्वरूपैक्यवु हेळल्पडलिल्लवॆन्दू, जीवात्मनिगॆ परमात्मनु अन्तरात्मावादुद रिन्द ऐक्यवॆन्दु उपदेशिसिरुत्तारॆ. ऎरडू ऒन्दे अल्लवॆन्दु दृढी करिसि हेळुवदक्कागि जीवात्मनन्नु पञ्चविंशकनॆन्दू, परमात्म नन्नु षड्रिंशकनॆन्दू हेळिरुत्तारॆ. इब्बरू स्वरूपतः ऒब्बरे आगिद्द पक्षदल्लि पञ्चविंशक, षंशकवॆन्दु विवेचनॆ माडि हेळलु साध्यविल्लवष्टे बाकि २४ तत्वगळु यावुवु ऎम्बुवदक्कॆ तत्वयाधि कारद ५१३नॆय पुटवन्नु पराम्बरिसबहुदु. हीगॆ २४ तत्वगळु साङ्ख्यरु विभागिसि हेळिदुदु अचित्तत्वगळु ; २५, २६ ऎरडू चित्तत्व e.________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९०५ A (२) *उत्तमः पुरुषः”. मुन्दॆ आ गळु, अदरल्लि २५नॆयदु जीवात्म तत्ववु, २६नॆयदु परतत्ववु. गीतॆयल्लि हीगॆये बहु स्पुटतरवागि परमात्मनु ऎरडु विध जीवात्मरुगळिगिन्त बेरॆयादवनॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. प्रमाणवन्नु दाहरिसुत्तारॆ :- द्वाविम् पुरु पौलो केक्षरा कर एवच 1 करस्सराणि भूतानि कूटस्टोक्षर उच्यते । उत्त मः पुरुषः परमात्मत्युदाहृतः । योलोकत्रय माविश्य बिभर व्यय ईश्वरः ॥ समस्त वेदगळल्लू सारभूतवाद यथारवाद अग्गवन्नु तन्न प्रिय शिष्यनाद अर ननिगॆ श्री कृष्ण भग वारवरु उपदेशिसुत्तारॆ. पार मारिकवाद अग्गवन्नु हेळुव सन्दरदल्लि व्यावहारिक विषयवन्नु पदेशिसिदरॆन्दु हेळुवदु असङ्गत वष्टे. आदुदरिन्द तत्रोपदेशवन्ने माडुत्तारॆन्दु नम्बतक्कद्दागि रुत्तदॆ. करवॆन्दू अक्षरवॆन्दू इब्बरु पुरुषरु, जीवकोटिगॆ सेरि दवरु. चतुर्मुख मॊदलुगॊण्डु क्रिमिकीटादिगळवरॆगू इरुव जीवराशियु ऎल्ला देहरूपवाद अचिन्त्संसर्गदिन्द जन्मस्थित्यादि परिणामगळुण्टाद हागॆ तोरुवदरिन्द करशब्द वाच्यवु. इन्तह अच तंसर्गविल्लदॆ परिणामावस्थॆयिल्लदुदरिन्द, स्वस्वरूपदिन्द विराजिसुव नित्यर मत्तु मुक्कर वरवु अक्षर शब्ददिन्द बोधिसल्पट्टिरुत्तदॆ इवरिब्बरुगळिगिन्तलू उत्तमपुरुषनु, पुरुषोत्तमनु, पर मात्मनु विलक्षणनागि अन्यः - बेरॆयादवनु. ई बद्धमुक्तनित्यरु गळिगिन्त सत्येश्वरनु विलक्षणनु ऎन्दु इल्लि हेळल्पट्टितु. अदु हेगॆ ऎन्दरॆ मुन्दॆ विवरिसि तिळिसुत्तारॆ. यः - याव परमात्मनु, लोकत्रयं - चिदचिदात्मकवाद मूरु लोकगळन्नू, आविश्य - अन्तरात्मवागि प्रवेशिसि, अदरिन्द यावुदॊन्दु परिणामगळन्नु हॊन्ददॆ निश्चिकारनागि, ईश्वर- अवुगळिगॆल्ला तानु स्वामियागियू अवॆल्ला तनगॆ, स्वं - स्वत्तागियू, बिभरि - नियमनादिगळ मूलक रक्षिसु त्ता नो, आ कारणदिन्दले अवनु विलक्षणनु. आतन अनुप (२) १. १५,१७,________________
१९०६ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे वेशक्कॆ, ई चिदचित्तुगळू नित्यवागि इरबेकष्टॆ. अचित्तु परिणाम हेतुवागिद्दरू “ अजामेकां लोहित शुक्ल कृष्णां” ऎम्ब श्रुतियल्लि प्रकृतियु (अचित्तु) नित्यवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. म वंशो जीवलोके जीव भूतस्सनातनः ऎम्बल्ल, “ अच्छे द्योमदाह्वयम् आक्षेद्योशोष्य एवच । नित्यस्सत्वगत स्टाणरचलोयं सनातनः” (गी, २. २४) ऎम्बल्ल, हागॆये *नित्यनित्यानां” मॊदलाद अनेक श्रुतिगळल्लू, जीववरवू नित्य वॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हीगॆ चिद चिदीश्वरराद मूरु तत्वगळू नित्यवागिरुवल्लि, स्वरूपैक्यवन्नु साधिसुव वादवु तुम्बा साहसवा दुदु. श्री शङ्कराचाररवरु क्षराक्षरगळॆरडू उपाधियिन्दुण्टाद हागॆ अभिप्रायपट्टिरुत्तारॆ. अदू अल्लदॆ परमारवन्नु श्री कृष्णनु ई श्लोक मूलक तिळिसुत्तानॆन्दु हेळुत्तारॆ. हागादरॆ विशदवागि इल्लि अवु उपाधि मूलक हागॆ तोरुत्तवॆन्दु हेळबेड वे ? श्रीधराचाररवर टीकॆयल्लि कूटस्थ शब्दक्कॆ परतद हागॆ चलिसदे इरुववनु ऎन्दरॆ, देहवु नाश हॊन्दिदरू स्थिरवागिरुव जीवनॆन्दु अम्म बरॆदिरुत्तारॆ इदीग सरियादभिप्रायवु श्री भाष्य काररु कूटस्थ शब्दक्कॆ -चित्तिन संसरदिन्द बिडल्पट्टु तन्न नैज स्वरूपदिन्दिरुव मुक्तात्मनॆन्दु अर्थ बरॆदिरुत्तारॆ. अक्षर शब्दक्कॆ दैत सिद्धानिगळु लक्ष्मी ऎम्बदागि अरॆ माडिरुत्तारॆ. इदू तुम्बा साहसमाडि हेळुवरवे. एकॆन्दरॆ विम् पुरुष ऎन्दू, अक्षरवॆन्दू पुल्लिङ्ग प्रयोगविरुवाग लक्ष्मी ऎन्दर हेळ बहुदे ? श्री व्यासमहर्षियु परमार बोधिसुव स्थळदल्लि हीगॆ सन्दिग्धवाद प्रयोगवन्नु माडिबिट्टु भ्रामकक्कू अज्ञानक्कू संशयक्कू आस्पदवन्नुण्टुमाडियारे ? इन्तह अति साहसार गळन्नु बिट्टु क्षरवल्लदुदु अक्षरवॆन्दु हेळि, बद्ध जीवनल्ल दवनु यारॆन्दरॆ मुक्त जीवनॆन्दु अप्प हेळुवदु युक्त विषय वल्लवे ? आददरिन्द स्वरूपैक्य हेळुव वादवु ई प्रमाणक्कॆ प्रबल विरुद्धवॆन्दु हेळलेनॊन्दू सन्देहविरुवदिल्लवु. जीवने बेरॆ परमात्मने बेरॆ ऎन्दु श्री व्यास महर्षियु अनेक स्थळगळल्लि * स्पटवागि हेळिरुत्तारॆ. इदे गीतॆयल्ले “ अपरेयं मितव ධ________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः (३) “तत्र यः परमात्मातु सनित्य १९०७ निरुणस्कृतः । य न्यां प्रकृतिं विद्धि मेपराम् । जीवभूतां महाबाहो येदं धारते जगत् ॥” (७, ५) ऎन्दु तनगॆ शरीर रूपदल्लि सम्बन्धिसिद ऎरडु प्रकृतिगळॆन्दू, ऒन्दु जड प्रकृतियॆन्दू, इन्नॊन्दु जीववर्गवॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव परा प्रकृतियॆन्दू हेळिरुवदरिन्द जीवरुगळे बेरॆ परमात्मने बेरॆ ऎन्दू स्पुट वागि हेळिरुत्तदॆ. हिन्दॆ जीवनन्नु पञ्चविंशकनॆन्दू, परमात्म नन्नु षंशकनॆन्दू बेरॆयागि उदाहरिसिद शान्तिपर श्लोकगळे साकागिरुत्तवॆ. इदू अल्लदॆ महरियु इन्नॊन्दु कडॆयल्लि आदिपद शकुन्तलोपाख्यानदल्लि, (४) एकोह मस्कृति च मन्यसेत्वं न हृच्छय नेत्र मुनिं पुराणम् । योवेदिता करणः पापकस्य तस्यान्ति केत्वं वृजिनं करोषि । ऎन्दु हिन्दिन श्लोकदल्लि ई जीवात्मनु स्वामिय स्वं - स्वत्तागि द्दरू तन्नदु ऎन्दु चोर कृत्यवन्नु माडुवनॆन्दु हेळि, ओ जीवा त्मने नीनॊब्बने ऎन्दु दुरभिमानदिन्दिरुव हागॆ तोरुत्तदॆ. निन्न पक्कदल्ले निन्न हृदयवॆम्ब देवालयदल्लि निनगागि दिव्यमङ्गळ विग्रह वन्नु धरिसि निनगॆ नियामकनागि सनातनवाद हारावतारियु नॆलसि रुवनॆम्बुदु तिळियदो एनु ? ई आत्मापहार चोर कृत्यवन्नु माडिद पापकरवन्नु मॊदलु तिळियुवने आ सत्वज्ञनु. अन्थावन समासदल्लिये इद्दु कॊण्डु नीनु ई पापकृत्यवन्नु नडिसुत्तीये, इदु तुम्बा शोचनीयवाद विषयवॆन्दु शकुन्तलॆयु दुष्यन्तनिगॆ हेळुत्ताळॆ. मेलॆ महय प्रमाणवे साकागिद्दरू तृप्ति इल्लदॆ श्री देशिकरु पुनः इन्नॊन्दु प्रमाणवन्नु दाहरिसि, जीव परमात्म भेदवन्ने उपदेशिसुवदरिन्द स्वरूपैक्यक्कॆ सुतरां विल्लवॆन्दु व्यक्तपडिसुत्तारॆ. e अवकाश (३) भार, शान्ति ३६१-१४, १५. (४) भार, आदि ९८-८________________
१९०८ 80 श्रीमद्र हस्यत्रयसारे सतुनारायणोज्ञॆय स्सराता पुरुषोहि सः । नलिप्यते कफलैः पद्म पत्रनिवाम्भस । कराता त्ववरोयोस् मोक्ष बन्धॆ, युज्यते” ॥ 3 (३) इदु “नित्योनित्यानां चेतनश्चतनानाम् एको बहू नां योविदधाति कार्मा” ऎम्ब श्रुत पब्रह्मणवागि चतुरुख ब्रह्मनु तन्न मगनाद रुद्रनिगॆ उपदेशिसुव प्रकरणवु तत्र-आ जीवा त्मनल्लि अन्तरामियागिरुव विषयदल्लि, यः -याव, परमात्मातु- परमात्मनादरो, नित्यः शाश्वतनादवनु, निरुणः ई लोकद गुण गळिल्लदवनु ऎन्दु, स्मृतः-स्मरिसल्पडुववनु अथवा स्मृतियल्लि हेळ ल्पट्टवनु. याव गुणगळू इल्लदवनॆन्दु एकॆ अर्थ माडकूडदु ? ऎन्दरॆ याव गुणगळू इल्लद वस्तुवु इल्लवे इल्लवु. हागॆ निर्गुण वाद वस्तुवन्नु शास्त्रगळु हॊगळलारवु. आग शास्त्रवु व्यर्थवागु तदॆ. श्री व्यासमहर्षियभिप्रायवु हागल्लवॆम्बुदु मुन्दॆ इदे अध्यायद १८नॆय श्लोकदिन्द व्यक्तवु. “ज्ञा ताज्ञॆयं सगुणं निरुणञ्च” ऎन्दु क्रमवागि हेळिरुवदरिन्द ज्ञात इल्लिन सत्व रज समोगुणगळिन्द युक्तनागदिरुवदरिन्द सगुणनाद जीवात्मनु. जेयं - इन्तह सत्व रजस्तमोगुणगळिन्द युक्तनागदिरुवद रिन्द निर्गुणनॆनिसुव, अप्राकृत कल्याण गुणगळिन्द युक्तनाद पर मात्मनु ऎन्दु मुन्दॆ हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. सतु . अन्तह परमात्म नादरो, नारायणः - नारायणनु, यः - आतने तिळिय डतक्क वस्तुवु, शास्त्रजन्य ज्ञानदिन्द तिळियल्पडतक्कवनु, साता- आतने समस्तक्कू अन्तरात्मा, सः - आतने, पुरुषोहि - परम पुरुषनु, अथवा, एकः पुरुषः - मुख्य पुरुषनु, अथवा, स्त्री प्रायमितरत् ऎम्ब व्यासोक्तिय प्रकार, आतनॊब्बने पुरुष सूक्तदल्लि प्रतिपादिसल्पट्टिरुव पुरुषनु ; अम्भा - उदकदिन्द, पद्मपत्रं - कमलपत्रवु हेगॆ, नलिप्यते - लेपिसल्पडुवदिल्लवो, हागॆ, कल्मनि - करगळ फलदिन्द ऎन्दरॆ तानु प्रेरकनागि माडि सुव करफलगळिन्द, नलिप्यते - लेपिसल्पडुवदिल्लवु. आदरॆ आ कर ရွာ________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः आह 23 १९०९ (४) “अयःपिण्डे यथावर्भिन्नत्य भिन्नवत् । तथाविश्वविदं देवोहा नृत्य परितिष्टति !!” इत्यादि प्रमाण सहस्रं विरोधि क्कु, गळिगॆ गुरि यारु ? ऎन्दरॆ हेळुत्तारॆ. करात्मातु - आ करगळ आ स्वरूपक्कॆ शिलुकिदवनादरो, अवरः - आ परमात्मन हागॆ स तष्टनल्लद, योस् - याव ई जीवात्मनादरो, अस् ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द निन्नल्लू नन्नल्लू इद्दु हीगॆ अनेकरागिरुव ई जीवा त्मनादरो ऎम्ब भाववु. कॆलवु पुस्तकगळल्लि अवरः ऎम्बुदक्कॆ बदलागि अपरः ऎम्ब पाठान्तरवुण्टु, आग परमात्मनिगिन्त बेरॆ यादवनु ई जीवात्मनु ऎम्बर्थवु. आगलू जीव परमात्मर भेदवे हेळल्पट्टितु, मॊदलनॆय पाठवे सरसवादुदु ; सः – अन्तह जीवात्मनु, मोक्ष बंर्धॆ - मोक्षफलवेनु, संसारबन्ध वेनु ई फलगळिन्द, युज्यते - हॊन्दुवनागुत्तानॆ.” इल्लि सत्तु नारायणोज्ञॆयः ऎम्ब वाक्यवु चतुरुखनु रुद्रनिगॆ उपदे शिसुव वाक्यदल्लिरुवदरिन्द, ई इब्बरिगिन्त विलक्षणनागि उत्कृष्टनॆं बुदु व्यक्तवु. (४) * अयःपिण्डे - काद कब्बिणद मुद्दॆयल्लि, व - अग्नि यु, भिन्न - यथार्थवागि भिन्न वागिद्दरू, यथा - हेगॆ अभिन्नवत् - भिन्नवल्लवॆम्ब हागॆ, तिष्ठति - इरुत्तदॆयो, तथा - हागॆये, देवोहि - क्रीडापरनाद परमात्मनू कूड, विश्व मिदम् अनृत्य - वास्तववागियू तनगिन्तलू बेरॆयाद ई विश्वव न्नॆल्ला प्रवेशिसि, परितिष्ठति - अदरॊन्दिगॆ सेरिरुवदरिन्द ऒन्दॆयो ऎन्नुवहागॆ, “यच्च किञ्चित् जगर्त्य दृश्यते शूयतेपिना । अन्तर्बहित्य तत्त्वं व्याप्यनारायण स्थितः ।” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ इरुत्तानॆम्ब भाववु. इल्लि अभिन्नवत् - बेरॆयल्लवो ऎन्नुव हागॆ, ऎन्दिरुवदरिन्द भिन्न वादुदॆम्बुदु सुस्पष्टवु.” इत्यादि - इवे मॊदलाद, प्रमाण सहस्रं - साविरारु प्रमाणगळु, विरो (४) जयाक्य संहितॆ.________________
0030 श्रीमद्रहस्यत्रयसारे परमसाम्य श्रुतेरभि प्रायः आगैयाल् मुक्त नुक्कु ज्ञान भोगादिगळाल् नन्न परमसाम्य मे युळ्ळदु. धिक्कुम् - विरोधवादवुगळागुत्तवॆ. इल्लि सहस्र शब्दवु अनेक वॆम्बर्थदल्लि उपयोगिसल्पट्टिरुत्तदॆ. स्वरूपैक्य हेळिदरॆ साविरारु प्रमाणगळिगॆ विरोधवागुत्तवॆम्ब भाववु. हागादरॆ ऐक्यवन्नु हेळुव वाक्यगळिगॆ अर्थ हेगॆ ऎन्दरॆ रामसुग्रीवयोरॊ क्यम् ऎन्दु हेळिरुव हागॆ सयुक्कागिरुव भाववॆन्दु हिन्दॆये हेळ ल्पट्ट तु. परमसाम्यवन्नु हेळुव श्रुतिय अभिप्रायवु. इष्टु दूतॆ उपपादन माडि दैतिगळ आनन्दतारतम्यवन्नू, अदैतिगळ स्वरूपैक्यवन्नू, खण्डिसिदुदरिन्द “पुण्यपापे विधूय निरञ्जनः परमं साम्यमुपैति” ऎम्ब श्रुतियल्लि साम्यद अभिप्रा यवेनु ऎल्ला विषयदल्लू समवे ? ऎल्ला विषयदल्लू समवादरॆ ऐक्याभिप्रायवे आगुत्तदॆ. आदुदरिन्द यावाग परमात्मनिगॆ सम वॆन्दु हेळल्पट्टि तो, अदरिन्दले कॆलवु विषयगळल्लि समवल्लवॆम्बुदु व्यक्तवु. मॊदलु याव विषयदल्लि समभाववॆम्बुदन्नु हेळि, अनं तरॆ याव विषयगळल्लि भिन्नतॆयॆम्बुदन्नु तिळिसुत्तारॆ. विषयाकरिसुव आगैयाल् - आदुदरिन्द, मुक्तनिगॆ, ज्ञानभोगादिगळाल्- ज्ञान वॆन्दरॆ एककालदल्लि प्रत्यक्षवागि समस्तवन्नू सत्वज्ञत्ववु, भोगवॆन्दरॆ तनगॆ यावागलू अनुकूलवागिरुव हागॆ ऎल्लवू सत्येश्वरनिगॆ शरीरवागिरुवदरिन्द हीगॆ ऎल्ला विभूतियिन्दलू सेरिदवनागि परमात्मनन्नु अनुभविसुविकॆयु, इल्लि आदि शब्ददिन्द अपहत पाल्मत्वादि गुणाष्टकवु बोधिसल्पट्टितु, इवुगळिन्द, नन्न - प्राप्तवाद, परमसाम्यवे उळ्ळदु . परमात्मनॊन्दिगॆ समत्ववे इल्लि अभिप्रायवु. सश्वरनॊन्दिगॆ साम्यवॆं बुदरॆ अभिप्रायवु________________
(02) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्त अविद्यमाना 8 भगवदसाधारणधरा, ईश्वरनुक्कु छत्रचामरादिगळ्ळि प्रॊलॆ, लक्षणवाग एनॆन्दरॆ (१) परमात्मन हागॆ, ऎल्लवन्नू एककालदल्लि साक्षात्करिसुव सत्वज्ञतॆयन्नु हॊन्दुवदु. (२) ऎल्लवू अनुकूलवागुवदरिन्द, सत्ववू अनुकूलवादुदागि उभयविभूतिविशिष्टनाद परमात्मनन्न नुभविसुव निरतिशय सुखवन्नु हॊन्दुवनु. (३) स्वस्वरूपाविर्भा ववु उण्टागुवदरिन्द सरेश्वरन हागॆ अपहत पारतादि गुणाष्टक गळन्नुळ्ळवनागुवदु. ई अभिप्रायगळॆल्ला ब्रह्मसूत्रद सम्पद्यावि राव सल्पाधिकरणगळल्ल, मत्तु भोगमात्र साम्य लिजाच ऎम्ब सूत्रदल्लि उपपादितगळागिवॆ. आदुदरिन्द ज्ञानभोगादि साम्यदल्लि मात्रवे “ परमसाम्य” श्रुतिगॆ अभिप्रायवॆन्दु तिळिय तक्कद्दु. हिन्दॆ इदु कुदुरॆगॆ सम” ऎन्दु हेळिदरॆ, इदु कुदुरॆयल्लवु कुदुरॆय कॆलवु गुणगळु मात्रविरुवदरिन्द कुदुरॆगॆ समवॆन्द - हेळल्पट्टितॆन्दू इदक्कू कुदुरॆगू व्यत्यास उण्टॆम्बुवदु स्वतः व्यक्तवॆन्दू हेळल्पट्टितु. हागॆये इल्लियू मुक्तनु परमात्मनिगॆ समनागुवनु ऎन्दरॆ याव धरगळल्लि समवॆम्बुवदु इल्लि व्यक्तगॊळि सल्पट्टितु. इन्नु मुन्दॆ याव विषयगळल्लि भिन्नतॆ ऎम्बुदन्नु विशदीकरिसुत्तारॆ. परमात्मनिगॆ मात्रवे असाधारणवाद धर गळु यावुवु, हागॆये जीवकोटिगॆ सेरिरुव मुक्तनिगॆ मात्रवे असाधारणवाद धम्मगळावुवु ऎम्बुवदन्नु मुन्दॆ तिळिसुत्तारॆ. मुक्तनल्लिल्लदिरुव भगवन्तनल्लि मात्रविरुव धरगळु, ईश्वरनु कु - सत्येश्वरनिगॆ, छत्र चामर मॊदलादवुगळ हागॆ, इल्लि आदिपददिन्द श्री वत्स, कौस्तुभ वैजयन्ति मॊदलादवु हेळल्पट्टितु, लक्षणवागचॆन्न - परमात्मनिगॆ मात्रवे असाधा रण विशेषणगळागि हेळल्पट्ट, ऎन्दरॆ छत्रचामरादिगळु भगवन्तनिगॆ मात्रवे हेगॆ असाधारण विशेषणगळो हागॆ ऎम्बवु लक्षण________________
१९१२ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे ऎन्दरॆ असाधारणवाद धरवॆम्बरवु, अवुगळु हेगॆ लक्षणगळॊ हागॆये मुन्दॆ हेळुव धरगळॆल्ला परमात्मनिगॆ मात्रवे असाधा रण धरगळे विना इन्यारल्ल ऎन्दरॆ चतॆरुखरुद्रादि सत्व जीवात रल्ल इल्लवॆम्ब भाववु. इवुगळु मुख्यवागि जगद्वा परधरगळु दुदरिन्द श्री व्यासरु इवुगळन्नॆल्ला जगदापार वर्जम् ऎम्ब सूत्रद मूलक बोधिसिदरु. अवुगळु यावुवॆन्दरॆ :- S (१) जगत्कारणत्व समस्त जगत्तिगू कारणभूतनागिरु विकॆयु, “यतोवा इमानि भूतानि जायन्ने येन जातानि जीवन्ति यत्पयन्नभि संविशक्ति तद्विजिज्ञासस्य तह्म” (तै. भैगु.) ऎम्ब श्रुत्यनुसारवागियू जन्माव्यस्ययतः ऎम्ब सूत्रानुसारवागियू, जगत्तिन जन्मसि तिलयादिगळिगॆ कारणभूतन्न यारो आतने परब्रह्मवॆन्दु बोधिसुवदरिन्दल, मुक्तरे मॊद लादवरिगॆ इन्तह शक्ति इल्लदिरुवदरिन्द, परब्रह्मनिगॆ मात्रवे असा धारण धरवु कारणवु मूरु विध, उपादान कारण, निमित्त कारण, सहकारिकारण, घटवॆम्ब कार्यक्कॆ मृत्तु उपादान कारणवु, कुलालनु निमित्तकारणरु, दण्ड चक्रादिगळु सहकारि कारणगळु, ई जगत्तॆम्ब कारक्कॆ ई मूरुविध कारणनू परब्रह्मने. हागॆये श्रुतियु हेळुत्तदॆ :- “यघोर नाभि जते कृते च” (मुं. १. १. ७) जाडर हुळवु तन्तुवन्नुण्टुमाडि अदन्ने हेगॆ नुङ्गुत्तदो हागॆ; जाडरहुळुविन द्रव्यदिन्दले तन्तुवागिरुवदरिन्द जाडरहुळुवु तन्तुविगॆ उपादान कारणवु. अदु सङ्कल्पिसि तन्तुवन्नु बिडुवदरिन्द अदे निमित्त कारणवु तन्न कालुगळ सहायदिन्द नूलु वदरिन्द सहकारि कारणवू अदे. हीगॆ सश्वरनु सृष्टिसिद ऒन्दु हुळक्केने मूरु विध कारणवू आगलु शक्तियिद्दरॆ, सशक्तनाद सश्वेश्वरनिगॆ अन्तह शक्तियिल्लवे ? हीगिद्दरू, दैतसिद्धान्तिगळु सश्वरनु निमित्त कारण मात्रवॆन्दू प्रकृतियु उपादान कारण वॆन्दू हेळुवरु. नम्म सिद्धान्त प्रकार सूक्ष्मचिचिद्विशिष्ट स श्वरने कारणवु, स्कूलचिद चिद्विशिष्ट सश्वरने कारवु, हीगॆ हेळु वदरिन्द परमात्मनिगॆ जगत्कारणत्ववन्नु हेळुव श्रुतिगळु ननगॆ समञ्जसवादवु. कारवू कारणवू ऒन्दे ऎन्दु हेळुव, “तदनन्य________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९१३ चॆन्न, जगत्कारण, मोक्षप्रद, साधारत्व, सत्वनियं तृत्व, सत्व शेषि, सल्व शरीरित्य, सत्व शॆब्द वाच्यत्व, सत्ववेद " त्वम् अरम्भण शब्दादिभ्यः” ऎम्ब सूत्रार्थवू नमगॆ समञ्जस वादुदे, दैत सिद्दान्तिगळु निमित्त कारण मात्रवन्नु हेळुवद रिन्द ई सूत्रक्कॆ बेरॆ विधवागि अर्थवन्नु हेळुत्तारॆ. 1 (२) मोक्ष प्रदत्व - मोक्षवन्नु कॊडुव शक्तियु. इदु श्रीमन्नारायणनिगॆ मात्रवे इदॆये विना इन्यारिगू इल्लवु. चतुरुख रुद्रादिगळिगॆ ई शक्तियिल्लवॆम्बुदक्कॆ परदेवता पारमा र्थ्याधिकारद ६९०-६०० नॆय पुटगळन्नु नोडि, इतिहासगळल्लि ऎल्लि य रुद्रनु मोक्षवन्नित्तनॆम्बुदक्कॆ निदर्शनविल्लवु. मार्कण्डेय रिगॆ रुद्रनिन्द आ पद्रक्षणॆय “नारायणनरुळॆ” (तिरु. ४. १०. ८) श्रीमन्नारायणन कृपॆये यॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. (३) साधारत्व - समस्तक्कू इदु नारायण शब्ददिन्द व्यक्तवु. (४) सनियत्व - समस्तक्कू आधारभूतनागिरुविकॆयु, अन्तर मियागि समस्त वन्नू नियमिसोणवु, “ भोक्ता भोग्यं प्रेरितारञ्च मता (3.0.2.0.9 (श्री. १. १. २) ऎम्ब श्रुतियल्लि ऎल्लक्कू प्रेरकनॆन्दु हेळिरुत्तदॆ. हागॆये अन्तरॊयमय ति” ऎम्बिवे मॊदलाद वाक्यगळिन्दलू * तोरिबरुत्तदॆ (५) सत्व शेषि - समस्तवन्नू तनगॆ शेषभूतवागि उळ्ळो णवु. समस्तवू परमात्मन स्वं- स्वत्तादुदरिन्द सशेषित्ववू पर मात्मनिगॆ मात्रवे सल्लुत्तदॆ. जीवात्मनिगॆ सल्लुवदिल्लवु. “ पतिं विश्व स्य” ऎम्ब श्रुति प्रमाणविरुत्तदॆ. (६) सत्व शरीरित्व - समस्तवू तनगॆ शरीरवागि अवक्कॆल्ला तानु आत्मावागिरुवदु. इदु बृहदारण्यक ५. ७. १-२२ दल्ल मत्तु सुबाल. ७ खण्डद छां, ६ ८. ७ रल्ल उपपादितवागिरु तदॆ. शरीरि शरीर लक्षणव्यावुदॆम्बुदक्कॆ प्रधान प्रतितन्त्राधिकारद २२५७-२६२ नॆय पुटगळन्नु नोडि________________
१९१४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे वेद्यत्व, सलोक शरण्य, सत्व मुमुक्षपास्यत्व, सत्व फल (७) सत्व शब्द वाच्य इदु शरीरित्वदिन्द प्राप्तवागुव धरवु, शरीरवन्नु बोधिसुव शब्दवु शरीरिगू अन्वयिसुवदरिन्द समस्त वस्तुगळन्नु बोधिसुव शब्दगळु तच्छरीरक परमात्मनन्ने बोधिसुत्तवॆ ऎम्ब भाववु. रहमेव वेद्य” (ne. nas nas) कॆलवु वाक्य मॊदलादवु (८) सत्ववेद वेद्यत्व - समस्त वेदगळिन्दलू तिळियल्पडु वदु. “वेदैश्च स सम स वेदगळू आतनन्नॆ हेगॆ बोधिसुत्तवॆ ऎन्दरॆ गळेनो आतन स्वरूप, रूप, गुण विधवैश्वर चेष्टॆ गळन्नु प्रतिपादिसबहुदु. इन्नु कॆलवु चन्द्र, अग्नि, सूर, इन्द्र मॊद लादवरुगळ स्वरूपादिगळन्नु तिळिसबहुदु. इवरुगळिगॆल्ला सश्वरने अन्तरात्मावादुदरिन्द, अवरन्नु कुरितु यज्ञ, हविस्स मर्पणॆ, मॊदलाद आराधनॆगळॆल्ला सत्येश्वरनन्ने होगि सेरुवद रिन्द, सत्ववेद वेद्यत्ववु आतनिगॆ उण्टु. जीवात्मनिगॆ ई धरविल्लवु. * (९) स लोक शरण्यत्व - इदन्ने श्री भाष्यकाररु अना लोचित विशे षाशे षलोक शरण्यवॆन्दु हेळिरुत्तारॆ, कुल, गुण, वृत्तदिन्द हीनरागिद्दरू शरणागतराद पक्षदल्लि ऎल्लरन्नू उद्ध रिसविकॆयु. इदु हिन्दॆये प्रपत्तिगॆ सराधिकारत्ववन्नु सपादि सुव सन्दरदल्लि समर्थिसल्पट्टिरुत्तदॆ. दैत सिद्धान्तिगळु कॆलवरिगॆ ऎन्दिगू मोक्षवे इल्लवॆन्दू कॆलवरु नित्य संसारिगळागियू कॆल वरु नित्य नरकभागिगळागियू इरुत्तारॆन्दू हेळुवरु, गीतॆयल्लि “तानहं द्विषतः करर्ण संसारेषु नराधर्मा 1 क्षिपाप्य जस मशुर्भा आसुरीवयोनिमु !! असुरीं यो निमा पन्ना- मूढाः जन्मनि जन्मनि माम प्राज्यवनॆ (यु तक यानधमाङ्गति” (गी. १६, १९, २०) ऎन्दरॆ ननगॆ परत्ववन्नु साधिसिदरॆ सहिसदे इरुव अति क्रूर राद मुनुष्याधमरन्नु जनन मरणादि रूपदल्लि सुत्तुव संसारदल्लि, अदरल्ल ननगॆ ऎन्दिगू अनु कूलरल्लदे इरुव योनिगळल्लि यावागलू तळ्ळिबिडुवॆनु, ऎन्दु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९१५ हेळिरुवदरिन्द, इन्थावरिगॆ ऎन्दिगू मोक्षविल्लवॆन्दू अवरु नित्य संसारिगळॆन्दू हेळुवरु. हीगॆ हेळदिद्दरॆ लीला विभूतिगॆ नित्यत्ववु इल्लदॆ होगुवदॆन्दू हेळुवरु ; एकॆन्दरॆ ऎल्लरिगू ऒन्दानॊन्दु कालदल्लि मुक्तियागि बिट्टरॆ, लीला विभूतियल्लि चेतनरे इल्लवागि हो गबहुदॆम्बुदु अवरभिप्रायवु. इदु सरियाद अभिप्रायवागु वदिल्लवु ; एकॆन्दरॆ ऒन्दु वेळॆ ६०तह नित्य संसारिगळु मात्रवे ई लीला विभूतियल्लि निन्तु होगि ऎल्ला मुक्ति हॊन्दलु योग्यरादवरु मुक्तियन्नु हॊन्दिदरू, आगलू सश्वनिगॆ लीलाविभूतियल्लि एनू कॆलसविल्लदुदरिन्द ई लीला विभूतियु इद्दरू व्यर्थवादुदागुत्तदॆ. आदुदरिन्द मनुष्यनु तानु माडुव क्रूर कर्मगळिन्द उपायानु स्थानवन्नु माडदे नित्य संसारियागबहुदु. * य दिन रावण *य” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ आ तह करकरिये ई षत्तु कृत माडिदरॆ, तन्मूलक प्रीतनागुव श्री हरियु आतनिगू मारवन्नु तोरिसि रक्षिसुवनॆम्बुदरल्लि सन्देहविल्लवु. हीगॆ हेळिदरेने स्वामिय निरेतुक कृपॆगॆ न्यूनतॆ इल्लवागुत्तदॆ. आतनिगॆ वैषम्य नैर्तृण्यरूपवाद अपवाद हॊरिसिद हागू आगुवदिल्लवु. F आदुदरिन्द स्वामि देशिकरॆवरु तम्म शास्त्र सम्मतवादभिप्राय वेनॆम्बुवदन्नु तम्म न्याय सिद्दाञ्जनदल्लि सूचिसिरुत्तारॆनॆन्दरॆ, ई जीवात्मन स्वरूपवन्नु लोकिसिदरॆ आतनु स्वत सुखियु, उपाधि वशदिन्द संसार पदवियन्नु हॊन्दुत्तानॆ. आत्मरु ऎरडु विध, संसारि, असंसारि ऎम्बदागि; पुण्यपापगळ सम्बन्धविरुववरु संसारिगळु. अवु गळ सम्बन्धविल्लदवरु असंसारिगळु (नित्यरू मुक्तरू), संसारिगळु ऎरडु विधवु. नित्य संसारिगळु मत्तु भावि संसार विरहिगळु नित्य संसारिगळु यारॆन्दरॆ, ईग सृष्टि मॊदलुगॊण्डु ईवरॆगू मुक्ति हॊन्ददिरुवदरिन्द इदरन्तॆयू मुन्दक्कू बहु काल हीगॆये संसारदॆशॆयल्लिरुववरु. इन्थावरिगू कड उपायानुष्ठान सम्बन्धवु विरुद्धवल्लदुदरिन्द बहु काला नन्तर ईश्वर कृपॆयु प्राप्तवागलु अभ्यन्तरविल्लदुदरिन्द सश्वरनु सलोक शरण्य नॆन्दु हेळल्पडलु एनॊन्दू विरोधविल्लवु. प्रपदनरप उपा यानुष्ठानक्कॆ साधिकारत्ववन्नु हिन्दॆये शास्त्र मुखेन स्थापिसिरु________________
१९१६ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे प्रदत्व, सत्व व्याप्ति ज्ञानानन्दस्वरूपत्व, लक्ष्मीसहायत्पादि गळ प्रति नियतब्बळ् वदरिन्द, सलोक शरण्यत्ववू सह सरसवादभिप्रायवु. भावि संसार विरहिगळ्ळारॆन्दरॆ, मुन्दॆ उपायानुष्ठान माडि मोक्ष हॊन्दुव चेतनरु. (१०) सर मुमुपास्यत्व - समस्त मोक्षारिगळिन्दलू उपासिसल्पडलु योग्यतॆयु, मोक्ष कॊडुव शक्ति इरुववन्नु ताने मोक्षार्थियु उपासिसतक्कद्दु, ई शक्तियु चतुरुख रुद्रादि मॊदलुगॊण्डु याव जीवात्मरिगू इल्लदिरुव धवु. आदरॆ योग रूप उपासनॆयु वर्णिकरिगॆ मात्र हेळिरुवाग स कूपास्यत्व हेगॆ ऎन्दाक्षेपिसिदरॆ भक्तियोग रूप उपसनानुष्ठा नाधिकारवु त्रिवर्णिकरिगॆ मात्र इद्दरू, तदितररिगू कूड भरन्या सानन्तरवू आतन्नु फलरूप भक्तिय मूलक धैयवस्तुवादुदरिन्द स मुमुक्षपास्यत्ववु सण्णतवादवॆम्ब भाववु. मुव (११) सर फलप्रद - यावाग श्रीयःपतिय सत्व मुमुक्षु गळिन्दलू उपास्यनादनो, आग अवर इष्टार्थगळन्नॆल्ला सल्लिसलु शक्तियुळ्ळवनॆम्बुदु एर्पट्टितु. आदुदरिन्द आतनिगॆ सर्व फल गळन्नू कॊडुव शक्तियुण्टॆन्दु हेळतक्कद्दु. चतुर्विध पुरुषार्थ गळल्लि, मोक्षवल्लद इतर मूराद धार्थकामगळन्नु ब्रह्मरुद्रादि गळू कॊट्टरू, सश्वरन अनुमति मूलक कॊडुत्तारॆ. वन्नु इवरुगळु तम्मन्नु कुरितु तपस्सु माडिदवरिगॆ कॊट्टरॆम्ब यावदॊन्दु इतिहासवू शास्त्रदल्लि इल्लवाददरिन्द, इवरुगळिगॆ आ शक्ति इल्लवॆम्बुदु व्यक्तवु. ई मूरु पुरुषार्थगळॊन्दिगॆ मोक्ष वन्नू सह कॊडुव शक्तियु लक्ष्मिपतिगॆ मात्र इरुवदरिन्द आतने सत्वरिन्दलू उपास्यनु, आतने सत्व फलप्रदनु. (१२) सत्वव्याप्तज्ञानानन्द रूपत्व - समस्त जगत्तिनल्लि व्यापिसल्पडुव ज्ञानानन्द स्वरूपवणवु, ऎन्दरॆ विभु स्वरूप वुणवु सर्वगतत्ववु. “यज्ञ किञ्चि गस्पृश्यते शू 66________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः मुक्त प्रतिनियत धा मुक्त मुक्कु आधेयत्व, निधेयत्व, शेषाणु त्यादिगळ व्यवस्थितज्ञळ्, यतेपिना ! अन्तरहित्व तत्त्वं व्याप्यनारायणस्थितः” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ इरुव विध स्वरूपवु. यद्यपि जीवात्मन ज्ञान नन्द स्वरूपनु. आदरॆ ईतनु ऎल्लवन्नू व्यापिसिल्लवु. आदुदरिन्द सत्वव्याप्ति ज्ञानानन्दत्ववु जीवनल्लिल्लवु. आदरॆ धर्मभूतज्ञान द्वारा व्यापनॆयुण्टु. (१३) लक्ष्मी सहायत्व - लक्ष्मियु पत्नियागि, आकॆय सहा यवन्नु आतन ऎल्ला व्यापारगळल्लि हॊन्दिरोणवु ; सर स्थिति लयादि व्यापारगळल्लि अन्तरामियागि सत्ता दायकनागिरुवागलू विभवावतारियागि अदन्मूलनवन्नु माडि धरसंस्थापन माडु वागलू, आश्रित परिपालनवन्नु माडुवागलू, दुष्ट निग्रह माडु वगलू, लक्ष्मीयु सहायकळादुदरिन्द लक्ष्मि सहायवन्नु हॊन्दि रुविकॆयु. इदु इन्यारिगू इल्लवु. इल्लि आदिगळु - ऎम्ब पददिन्द भामिनी नायकत्व, अनन्त भोगहरङ्कत्व, गरुडध्वजादिगळु हेळल्पट्टवु ई धरगळॆल्ला सरेश्वरनिगॆ मात्र प्रतिनितण्ण - असाधारणवाद धरगळु, ई धरगळु भगवन्तनल्लदॆ इन्यारिगू इल्लवॆम्ब भाववु परमात्मनिगॆ हेळिद ई असाधारण धरगळु तनॆन्दिगॆ यावागलू सेरिरुव लक्ष्मीगू उण्टॆन्दु भाविसतक्कद्दु आदरॆ सत्वनियन्त्रत्ववु लक्ष्मिगॆ हेगॆ ऎन्दरॆ तन्न वल्लभ्यातिशयदिन्द परमात्मनन्नु वश माडिकॊण्डु नियमिसबल्लळॆन्दु भाविसबहुदु, अथवा परमात्मन अनुमतियिन्द आतन विना ऎल्लवन्नू नियमिसुव शक्तियुळ्ळवळॆन्दू ऊहिसबहुदु लक्ष्मिगॆ अन्वयिसुवाग लक्ष्मीसहा यत्वक्कॆ बदलागि सल्वेश्वर सहायत्व वॆन्दिट्टुकॊळ्ळबहुदु. हीगॆ सश्वरनिगॆ मात्रवे असाधारण वॆन्दु व्यवस्थॆ हॊन्दिद धरगळन्नु हेळि, जीवात्मनिगॆ मात्रवे असा धारणवॆन्दु व्यवस्थॆ हॊन्दिद धरगळन्नु बोधिसुत्तारॆ.________________
१९१८ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे मुक्तस्य पुनरावर्ति शङ्का निरासः, इप्पडियागिल्, (१) “ सम्पदां समाहारे विपदां मुक्तनिगॆ मात्र व्यवस्थितवाद धरगळु, मुक्तनुक्कु मुक्त मुक्कु - मुक्तनिगॆ (जात्येक वचनवु.) अधेयत्न, विधॆ’यत्व, शेषत्व, अणुत्व मॊदलादवुगळु, व्यवस्थितज्ञ - ऎन्दरॆ सरेश्वरनिगॆ अन्वयिसदॆ मुक्तनिगॆ मात्र एल्पट्ट धरगळु. यावाग मुक्तनिगॆ इवुगळु उण्टॆन्दु हेळल्पट्टवो बद्धरिगू उण्टॆम्बु वदु कै मुतिक न्याय सिद्धवु. इल्लि आदि शब्ददिन्द विधेयत्वदिन्द प्राप्तवाद पारतन्त्र्यवू, तत्ववे मॊदलादवू सह हेळल्पट्टवु. आधेयत्व, विधेयत्व, शेष शब्दगळ अर्थक्कॆ प्रधान प्रतितन्त्राधि कारद प्रथमश्लोकवन्नु पराम्बरिसतक्कद्दु, मुक्तनिगॆ पुनरादयुण्टादीतॆम्ब शज्ञाविन निरसनवु. ऒन्दु वेळॆ पुनरावरियुण्टादरॆ सश्वरन मूलकवागि यागलि अथवा मुक्तन मूलकवागियागलि आगतक्कद्दागिदॆ. स श्वरन मूलकवॆन्दरॆ - इल्लवे आतन सल्प मूलकवागि मोक प्रानि) ऎन्दु हेळिरुव हागॆ, आदरयिष्यामि अथवा निव बिषनि) ऎन्दु सल्लिसि ई शनिगधिर नाद मुक्तनिगॆ पु तरावरि यन्नुण्टु माडबेकु. अथवा आतन प्रपत्तिगळिन्द अतृप्तनागि पुनरावरियन्नुण्ट माडबेकु. हागॆयॆ तन्न मूलकवागि आग बहुदे ऎन्दु विकल्पिसिदरॆ, बेरॆ पुरषार्थदल्लि इच्छॆयुण्टागि आग बहुदु ऎन्दु शसबहुदु. अथवा आ मुक्तन अज्ञानदिन्द हागॆ आदरियन्न पेक्षिसबहुदु. हीगॆ नाल्कु विधवागि विकल्पिसुवद रिन्द तोरुव शबागळिगॆ कारणविल्लवॆन्दु मुन्दॆ उपपादिसुत्तारॆ, (१) भगवत्सङ्कल्पदिन्दागलि, (२) भगवदप्रीतियिन्दागलि, (३) तन्न इच्छानुसारवागलि, (४) तन्न अज्ञान मूलकवागलि पुनरावर्तियुं टागुव सम्भवविल्लवॆन्दु पदेशिसुत्तारॆ :— n. D. J.________________
(ne) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९१९ विनिव नेसव विद्यतेकश्चिन्निना पुरुषोत्तमम्”(१) ऎच्चर निलैयाय, स्वतन्त्ररल्लाद मुक्तरुक्कु एदेनु मॊगु हेतुवालॆ आवृत्ति शवारादो वॆन्निल्? अदु नानादु. (१) “सायुज्यम् प्रतिपाये तीव्रभक्ता स्वषस्सिनः । किर 80
इप्पडियागिल्-हीगॆ मुक्तनिगॆ आधेयत्व, विधेयत्व, शेष पारतन्त्रादिगळु व्यवस्थित धर्मगळाद पक्षदल्लि, “ सम्पदा - सर्व सम्पत्तुगळ, श्रेयस्सुगळ, समाहरे - सेरिसुवदरल्लू, विदां - विपत्तुगळ, विनिवत्त ने - होगलाडिसुवदर- 2, पुर पोत्तमु विना - पुरुषरल्लि सर्वश्रेष्ठनाद प्रियः पतियल्लदॆ, कश्चित् सर यावनॊब्ब समर्थनू, न विद्यते - इरुवदिल्लवु ” ऎ दनि याम् - ऎन्नुव सिद्दान्तानुसारवागि, स्वतन्त्ररल्लाद - स्वतन्त्र रल्लदॆ भगवन्तनिगॆ सम्पूर्ण परतन्त्रराद, मुक्तरुक्कु, मुक्तरिगॆ एदेनुवॆरु हेतुवाले . यावुदो ऒन्दु काणदिन्द आवृत्ति श वारादो वॆन्निल् - आवृत्ति उण्टॆम्ब शक्तियु उण्टाग कन लारदॆ ऎन्दरॆ, अदुवारादु - अन्तह शकॆयुण्टागलु कारण ऎल्लवु, ई चेननु मुक्तनाद नन्तर यावुदादरू ऒन्दु कारण दिन्द पुनः ई लीलाविभूतिगेनॆ बरुव सन्दर्भद शङ्का उण्टॆ ऎन्दरॆ अन्तह शङ्कॆगॆ हेगॆ योचिसिदरू कारणवे इल्लवॆन्दुवदे शि सुत्तारॆ. ई शङ्का नाल्कु विधवागिरबहुदॆन्दु ई वाक्यद अवतारिकॆ यल्लि तोरिसिरुत्तदॆ. शियःपतियु “मोक्ष ह्यामि मासुचः” ऎन्दु लीलासारथियागि हेळिद अमोघवाद अमृतरसप्रायवाद वाक्किगॆ विरोधवागि ताने ईग “निवरयिष्यामि” ऎन्दु हेळि आव र्तिसि तन्न सत्यसङ्कल्पतॆयन्नु हाळु माडिकॊळ्ळुवे ? हाग ऎन्दिगू इल्लवॆम्बुदक्कॆ प्रमाणवन्नु तोरिसुत्तारॆ :-“सयु प्रति पर मपददल्लि परमात्म सायुज्यवन्नु हॊन्दुववरु तीव्र भक्ताः परमभक्तियुळ्ळवरागि, भक्तियोग निष्ठरागि, तपः, “तस्मान्मासवॆनां तपसाम तिरिक्त माह- 8” ऎन्दरॆ ई बळसु (१) परम संहितॆ,________________
१९२० श्रीमद्रह सैत्रयसारे ममते नित्यं भवन्ति निरुपद्रवा” ऎन्नु ताने अरुळिच्चॆट् दानरे, २ मुमुक्षुदयिल् केवलाचियुम्, केवल चियु, अनुभवियागिर ऐश्वय्य कैवल्यळिल् वैरा ग्यम् पिरन्हविदु मुक्त नुक्कु ब्रह्मात्मकवाग सत्वयुं काणॆयाले केवलानुभव प्रसङ्ग मिल्ला मैयालुम् अन्न पुरुषारान्तरण्ण नुडैय दोषमॆल्ला नित्य प्रत्यक्षित मा सवु इतर तपस्सुगळिगिन्तलू मेलादुदु ऎन्दु हेळुवरु ऎन्दु श्रुतियु हेळिरुव हागॆ न्यासरूपतपोनिष्ठरु, ये - यारो, ते - अवरू, नित्यं - यावागलू, मनु किर8 - नन्न दासभूत रागि, निरुपद्रना… - एनॊन्दू केशतानगळिल्लदवरागि, भवन्ति – आगुवरु” ऎन्नुताने - ऎन्दु ताने, अरुळिचॆ दानिरे - हेळि रुवष्टे. इल्लि नित्यं ममकिरा ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द, सदा मुक्तदॆशियल्ले इरुववरॆम्बुदु व्यक्तवु. इल्लि तीव्रभक्ताः ऎम्बुद रिन्द भक्तु पायनिष्ठरु हेळल्पट्टरु, तपस्विनः - ऎम्बुदरिन्द भर न्यासनिष्ठरु. हीगॆ ऎरडु विधवाद उपायानुष्ठानदिन्दलू मुक्ति यन्नु हॊन्दिदवरिगॆ पुनरावृत्ति भयविल्लवॆम्बुदु मुख्य तात्सरवु. मुन्दॆ तन्न इच्छॆयिन्देनादरू आवृत्ति शङ्का उण्टो ऎन्दरॆ अदक्कॆ अवकाशवे इल्लवॆन्दु हेळुत्तारॆ– मुमुक्षु दशॆयिल् - मोक्षार्थियागिरुव अवस्थॆयल्लि, केवलाचियु - अब्रह्मा त्मकवागि बरी अचित्रन्नू, केवल चित्रयुम् - अब्रह्मात्मकवागि चित्रन्नू, अनुभवियागिर - अनुभविसोणवागिरुव, ऐश्वर्य कैवल्यगळल्लि, वैराग्यम् - विरक्तिभाववु, आशॆयिल्लदिरोणवु, पिरन निदु - हुट्टिदन्था इदु, मुक्तनुक्कु मुक्तनिगॆ, ब्रह्मात्मक माग - परब्रह्मनन्ने आत्मावागि वळ्ळ भावदिन्द, सत्वयु काणॆयाले – समस्तवन्नू काणुवदरिन्द, केवलानुभव प्रस मिल्लामैयालुम् - बरी अनुभव उण्टायितॆम्बुदु इल्लदुद रिन्दलू, मत्तु अल्लि पुरुषारान्तरण्ण नुडैय - आ मोक्षेतर पुरुषार्थगळाद ऐश्वर् कै वल्यगळ, दोषमॆल्लाम् ୧
ऎल्ला________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९२१ गैयालुव प्रतिष्ठितमायित्तु. आस्ट्रियाल् तन्निच्छॆयडि याग आवृत्ति शस्ट् यि, ई दोषवू, नित्य प्रत्यक्षित मागै यालुम् - मुक्तनु सज्ञतॆ यन्नु हॊन्दुवदरिन्द, सदा प्रत्यक्षवागिये तोरुवदरिन्दलू, प्रतिष्ठितमायित्तु - सिद्धानिसल्पट्टितु. इदक्कॆ करपदवु * आवृत्ति शट्टु वारादु” ऎम्बुवदु. इदु हिन्दिन वाक्यदल्लिरुत्तदॆ. मोक्षारिगॆ केवल अचिदन भवरूपवाद ऐश्वरदल्लि, केवल चिदनु भवरूपवाद कैवल्यदल्लू ममतॆ इरुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ आतनिगॆ इवुगळल्लि वैराग्य उण्टागिरुत्तदॆ. ई पुरुषार्थगळु अल्पास्थिरवा दुवुगळादुदरिन्द आतनिगॆ ई ऐश्वय्य कैवल्यगळल्लि ममतॆ इरुवदिल्लवु. मुमुक्षुविगेने हीगिरुवाग इन्नु मुक्तनिगॆ हेळतक्कद्देनिरुत्तदॆ. मुमुक्षुविगॆ ब्रह्मात्मकवॆन्दु तोरदे इद्दुदू कूड मुक्तनिगॆ स्वस्वरॊपाविरावदॊडनॆ सत्वज्ञतॆयु प्राप्तवागि समस्तवू बह्मा त्मकवागिये तोरुवदरिन्द मोक्षेतर पुरुषार्थगळॆल्ला आसार वादुवु, दोषयुक्तवादवॆम्बुदन्नु सदा प्रत्यक्षिसुत्तिरुवनु. इन्थावनु निरतिशय परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद आनन्दवन्नु त्यजिसि, अल्पास्थिर फलगळिगागि परमपदवन्नु बिट्टु बरुवने ? आदुदरिन्द आवृत्ति शब्बाविगॆ अवकाशवे इल्लवॆन्दु हेळिदुदु स्थापितवायितॆन्दु हेळल्पट्टितु. हागॆये श्री भाष्यकाररवरु कॊनॆय सूत्रद भाष्य दल्लि हेळिरुवदेनॆन्दरॆ :- मुक्तनिगॆ आवरि शक्कॆगॆ कारणवे इल्ल वॆन्दु उपपादिसि, आवरि श (१) करमूलकवागियागलि (२) मुक्तन स्वच्छामूलकवागलि (३) भगवन्तन सल्प मूलकवागलि पाप्तवागबहुदॆन्दु विकल्पिसि, मूरर मूलकवू शाविगॆ कार णवे इल्लवॆन्दु पपादिसिरुत्तारॆ करद विषयदल्लि हेळिरुवदेनॆन्दरॆ– * उपासीनाननादि काल प्रवृत्ता नन्नदुस्तर करसञ्चयरूपा विद्यां विनिव स्वयाथात्मानु भव रूपा नवधिका तिशया नन्न प्रापय्यपुनः नावयतीत्यपि शब्दा देवावगत्यते” (शा, ३, ४, ४, २२) अनादिकालदिन्द अनुसरिसि बन्द अनन्तगळागि $________________
१९२२ श्रीमद्रहस्य त्रयसारे दाटलसाध्यवाद करसमूह रूपवाद अविद्यॆयन्नु होगलाडिसि तन्न निजवाद अनुभवर पवाद निरवधिकवाद अतिशयवुळ्ळ आनन्द वन्नुण्टु माडि पुनः संसाररूप आवृत्तियन्नु हॊन्दिसुवदिल्लवॆम्बु दु शुशि वाक्यदिन्दले तोरिबरुत्तदॆ. आ श्रति पाक्यवु यावुदॆन्दरॆ– “सखवं वार्य यावदायुषं ब्रह्मलोकमभिसम्प द्यते न च पुनावत्ततॆ” (छां. ८-१५-१) ब्रह्मप्राप्तिगागि उपा सनवु मरणवागुववरिगू माडबेकॆम्ब विधि इरुवदरिन्द हीगॆ इरु ववनागि ऎन्दरॆ आ मरणान्त उपासिसुवनागि, ब्रह्म वित्तादवनु विव्य वैकुण्ठ लोकवन्नु हॊन्दुत्तानॆ, आतनिगॆ पुनरावृत्ति इल्लवॆन्दु हेळि रुत्तदॆ. हागॆये गीळियल्लू “मामु पेत्य पुनर्जन्म दुःखा लय मताश्वतम् । नावु वन्ति महात्मान संसिद्धिं परमं गताः” हीगॆ ब्रह्मवित्तादवरु नन्नन्नु हॊन्दि परमनिश्रेयसवन्नु पडॆद बळिक दुःखक्कॆ तौरुमनॆयागियू अशाश्वतवागियू इरुव ई प्रकृति मण्डलवन्नु कुरितु बरुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ अवरु महा तानः, महत्ताद उत्कृष्टवाद मनस्सुळ्ळवरु ऎन्दरॆ नन्न यथा वत्ताद स्वरूपज्ञानवुळ्ळवरागि ननगॆ अति प्रियरागि नानिल्लदॆ शरीर धारणॆयन्नु हॊन्ददवरागि नन्नल्ले सक्तवाद मनस्सुळ्ळवरु. (ne. es. nas.) (२) मुक्तन स्टेच्छानूलकवागियू आवरि शब्यविल्लवॆन्दु हेळुत्तारॆ :- “ सचोच्चिन करबन्धस्या सक्कु हॆज्ञानस्य पर ब्रह्मानुभवैक स्वभावस्य तदेक प्रियस्या नवधि कातिशया नन्न ब्रह्मनुभव अन्यापेक्षा; तदारवाद्य समृवा पुनरावृत्ति शजा” करबन्धवु निशेषवागि तॊलगि, इदर सच विल्लदॆ स्वस्वरूपविराव, गषाष्टकगळ प्राप्ति उण्टागि, परब्रह्मानु भववन्ने मुख्य स्वभाववागि वुळ्ळ, परमात्मनिगॆ परमप्रियसखना गिरुव मुक्तनिगॆ, निरवधिकवागि निरतिशय वाद आननरूपनाद पर ब्रह्मनन्नु अनुभविसुवदक्किन्तलू बेरॆ विधवादपॆक्षॆयु ऎन्दिगू हुट्टलारदु, आदुदरिन्द परमपदवन्नु बिट्टु होगुव प्रयत्न वु असम्भववादुदरिन्द, ई विधवाद पुनरावरि शाविगू कारणविल्लवु. (३) परमपुरुषन सल्प मूलकवागियू आवृत्ति शाविल्ल________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९२३ चिदचि दीश्वर तत्वतय विषयवागवु, हेयोपा देय विषयवागवु, मुन्नु सिरन्न ज्ञानमिदु वॆन्दु श्री भाष्यकाररु तम्म भाष्यद परिसमाप्तियल्लि उपदेशि सिरुत्तारॆ. हेगॆन्दरॆ “न च परम पुरुषस्सत्य सत्य प्रियं ज्ञानं लज्ञा कदाचिदावरयिष्यति” आतनु सामान्य पुरुषर हागॆ तन्न मनबन्दहागॆ नडिसुवनल्लवु, परम पुरुषनु सत्कृष्टनु, एनो तन्न सङ्कल्पवन्नु बदलायिसलारनो ऎन्दरॆ सत्यसनु, “मित्र भावेन सम्प्राप्तं नत्यजेयं कथञ्चन” शरणागतनन्नु ऎन्दिगू बिडुवदिल्लवॆन्दू, “ अभयं सरभूते भो ददाम्य ततं मनु शरणागतनिगॆ अभय प्रदान माडुवॆनॆन्दू, स्थिरसल्प माडिदवनॆन्दु हेळलु सत्यसङ्कल्ल ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. तुम्बा प्रियतमनन्नु बहुकालक्कॆ दिव्य वैकुण्ठक्कॆ बरमाडिकॊण्डवनागि “समहत्मासु दुरभः” अन्तह महात्मरु तनगॆ वैकुण्ठ वासिगळागि सिक्कुवदु अति दुरभ वॆन्दु हेळि, अन्तह महात्मनन्नु पुनः अल्लिन्द दब्बि बिडुवने ? हीगॆ ऎन्दिगू इल्लवु. मूरु विधवाद शगळू असम्भववॆन्दु तोरि सिरुत्तारॆ. इदरन्तॆये श्री देशिकरवरू ई विध शस्त्रागळिगॆ कारणविल्ल वॆन्दुपदेशिसुवरागि मुक्तन स्वच्चा मूलकवागि शब्दा असम्भव वॆन्दु हेळिदरु. आदरॆ ताने अपेक्षिसि आवरियन्नुण्टुमाडिकॊळ्ळ दिद्दरू अज्ञानमूलकवागलि आवरियन्नु हॊन्दुवनो ऎन्दरॆ अन्तह अज्ञानद शगू अवकाशविल्लवॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. चिद चिदीश्वर तत्वत्रय विषयवागवु - चित्तु, अचित्तु ईश्वर राद मूरु तत्वगळ यथार्थवाद विषयदल्लू, हेयो पादेय विषयवागवु म्म् - अल्पास्थिर फलगळुळ्ळवुगळल्लि अभिरुचियु हेय वादुदरिन्द त्याज्यवॆम्ब मत्तु महत्ताद शाश्वत फलगळुळ्ळवुगळल्लि अभिरुचियु उपा डेय वा मदरिन्द ग्राह्यवॆम्ब विषयदल्ल, मुस्सु - ई लीला विभूतियल्लि ममुक्षुवाद अवस्थॆयल्लि, पिरन्न -________________
१९२४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे विच्छेद सज चङ्गळिल्लाद पडि विकसितवायित्तु. आगैयाल् र्त अज्ञानमडियाग आवृत्ति श वॊण्णादु. भगवद्विषय वैलक्षण्यज्ञानत्तालॆ मुन्नु सिरन्न भक्ति शब्दवाच्यमान प्रीतिरूपापन्न ज्ञानमिप्पोदु शास्त्रज्ञळुक्कु निलमिल्लाद भगवदैलक्षण्य मॆल्लाम् प्रत्यक्षमान पडियालॆ Ofn Wde Disavow 2NEJ. शास्त्रमूलकवागियू, गुरूपदेश मूलकवागियू, विवेकमूलक वागियू हुट्टिद, ज्ञानवु, इस्रोदु ई मुक्तावस्थॆयल्लि, विच्छेद सचगळिल्लाद पडि - नाश मत्तु सचगळिल्लद हागॆ, विक सितवायित्तु - विकासवन्नु हॊन्दितु. स्वस्वरूपाविद्भाव उण्टा गुवदरिन्द शास्त्रादिगळ मूलक उण्टाद ज्ञानक्कॆ नाशवागलि, न्यूनतॆ यागलि, इल्लदॆ सदा प्रकाशिसुवन्थाद्दागिरुत्तदॆ. मुमुक्षु दॆशॆयल्लि ई लोकदल्लिरुवाग ज्ञानक्कॆ विच्छेद हासवृद्धिगळुण्टु. मुक्त दॆशॆयल्लि ज्ञान तिरोधानविल्लदुदरिन्द सदा सत्वज्ञनागिरुवनु, आगैयाल्-आ कारणदिन्द, र्त अज्ञान मडियाग तन्न अज्ञान मूलकवागि, आवृत्ति उण्टागुवदॆन्दु शब्दक्कॆ वॊण्णादु - शबिस तक्कद्दल्लवु. मुक्तनिगॆ अज्ञानविद्दरल्लवे आवृत्तिय शहावन्नु आ रोपिसबहुदु. अज्ञानक्कॆ कारणवे इल्लदिद्दरॆ, कारणभावे काल्याभाव ऎम्बुवहागॆ, आवृत्ति शब्दवे उण्टागुवदिल्लवॆम्ब भाववु. 2 मुन्दॆ परम पुरुषन सल्प मूलकवागि एनादरू आ वृत्ति युण्टो ऎम्ब शाविगॆ कारणविल्लवॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ :- भगवद्वि षय वैलक्षण्यज्ञानत्तालॆ-भगवन्तन विषयवादुदु, प्राकृत विष यगळिन्द विलक्षणवागि निरतिशय महिमॆयुळ्ळदु ऎम्ब ज्ञानदिन्द, मुन्नु सिरन्न - मुक्त दॆशॆगॆ मुन्दॆ मुमुक्षावस्थॆयल्लुण्टाद, भक्ति शब्द वाच्यमान - भक्ति शब्ददिन्द हेळिसिकॊळ्ळुव, प्रीतिरूपापन्न ज्ञानम् प्रीतिरूपवागि परिणमिसिद ज्ञानवु, इस्रोदु - ई मुक्तावस्थॆयल्लि शास्त्रळुक्कु निलविल्लाद शास्त्रगळिगू कूड हेळुवदक्कागलि अथवा तिळिसुवदक्कागलि साध्यवल्लद, भगवद्व लक्षण्य________________
قدرة سعد परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः निरतिशय प्रीति रूपापनज्ञानमाय् तलॆ कॆट्टित्तु.
d १९२५ मॆल्लाम् - भगवन्तन अप्राकृत विषयवॆल्लवू, प्रत्यक्षमानपडि याले - प्रत्यक्षवागुवदरिन्द, निरतिशय प्रीतिरूपापन्न ज्ञान माय् - अत्यन्तातिशयवाद प्रीतियागि परिणमिसिद ज्ञानवादु दागि ऎन्दरॆ परमाभक्ति ऎन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव ज्ञानरूपवागि, तलॆ कट्टित्तु - सम्पूर्णतॆयन्नु हॊन्दितु. शास्त्रमूलकवागिया गलि, गुरूपदेशमूलकवागलि भगवन्तनु सत्व चिद चित्तुगळिगिन्तलू विलक्षणनागि, पुरुषोत्तमनॆन्दु प्रथितनागिरुत्तानॆ. अन्तह भग वन्तनिगॆ अधीनवागि तन्न सत्व सत्तास्थम प्रयतन फलादिगळॆल्ला इवॆ ऎन्दु यावाग अरितनो, आवाग ईतनिगॆ अन्तह परमोपकारक नल्लि भक्तियुण्टागुत्तदॆ. भक्ति ऎन्दरॆ स्नेहरूपमनुध्यानं भक्तिरित्यभिधीयते ऎन्दु हेळिरुव हागॆ प्रीतिरूपापन्न ज्ञान वॆन्दु इल्लि उपपादिसिरुत्तारॆ. ई भक्तिये उत्कावस्थॆयन्नु हॊन्दिदाग पराभक्तिः ऎन्दू, अत्युत्कर्षावस्थॆयन्नु हॊन्दिदाग परमाभक्तियॆन्दू हेळिसिकॊळ्ळुत्तदॆ. (८८५-८९४ नॆय पुटगळन्नु नोडि. शास्त्रगळिगॆ परमपुरुषन वैलक्षण्यवन्नु चॆन्नागि तिळिसुव शक्तियु सालदु ; यतोवाचो निवत्रन्ते अप्राप्य मन सा सह ऎन्दु श्रुतियु हेळुत्तदॆ. अथवा ऒन्दुवेळॆ श्रुतियु तिळिसुव शक्तियुळ्ळद्दॆन्दु ऒप्पिकॊण्डरू अदन्नु ग्रहिसुव शक्तियु नमगिल्लवु. आदुदरिन्द शास्त्रगळिन्द भगवन्तन वैलक्षण्यद महिमॆयन्नरियुवदु सुतरां साध्यवल्लवु. मुक्तदॆशॆयल्लादरो हागल्लवु. प्रत्यक्षदल्लि सत्ववू वेद्यवागुवदरिन्द, भगवन्तनल्लि मुक्तनिगुण्टागुव प्रीतियु निरतिशयवादुदॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. आदुदरिन्द मुक्त दॆशॆयल्लि ई भक्तियु वरमात्मनिन्द विश्लेषवन्नु ऒन्दु क्षणवागलि सहिसद पर म भक्तिरूपवागिरुव सत्कृष्ट रूपवादुदु आगुवदरिन्द तलॆ कट्टित्तु ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. इन्तह निरतिशय प्रीतियु भगवन्तन विषयदल्लि ई मुक्तनिगॆ उण्टागिरुवाग, याव कालदल्ले यागलि ई मुक्तनिगॆ भगवन्तन विषयदल्लि अप्रीति ऎम्बुवदु प्राप्त वादीते ? एन्दिगू इल्लवॆम्ब भाववु.________________
श्रीमद्र हस्य त्रयसारे इप्पडि इरुयाले (१) “स च मम प्रियः” ऎन्न ईश्व र नुडैय प्रीत्यतिशयम् अर्व तालं नियनिक्क वॊण्णाद पडि करैपुरणि न नोडु परम्परया सम्बन्ध मुडैय तिद निलज्जळिलु मेरिप्पायुन्नुडियायित्तु. आगैयाल् कर ई मुत्तनिगॆ आवृत्तियन्नुण्टुमाडबेकॆम्ब भगवत्सज्यल्प उण्टागबेकादरॆ मूरु कारणगळिन्दुण्टागबहुदु :- १) मुक्तनि गेने भगवन्तनल्लि अप्रीतियुण्टागुवदर मूलक भगवन्तनु ईत नन्नु शिक्षिसुवदक्कागि आवरिसबहुदु. अथवा (२) भगवदाज्ञॆयन्नु उल्लङ्घिसोणदिन्दरागलि आवरियन्नुण्टुमाडबहुदु, अथवा (३) भगवन्तनिगेने मुक्तनल्लुण्टागुव अप्रीतियिन्दलागलि आगबहुदु. मेलिन वाक्यदल्लि मुक्तनिगॆ श्रीयःपतियल्लि सत्कृष्टवाद विशेष दुस्सहवागुवन्तह निरतिशय प्रीति इरुवाग, आ मुक्तनिगॆ भगवन्तनल्लि आ प्रीति ऎम्बुवदु अब्बरिसीते ? ऎन्दिगू इल्लवु. आदु दरिन्द प्रथम विकल्पद शाविगॆ आस्पदविल्लवु. मुन्दॆ आज्ञातिलङ्घन द्वारा भगवत्स ल्पमूलक आवृत्तियुण्टादीतॆम्ब शक्तिगू कारण विरुवदिल्लवॆन्दुपदेशिसुत्तारॆ. इप्पडि इरुक्कॆयाले - इन्तह विश्लेष सहिसदिरुव निरति शय प्रीतियु मुक्तनिगॆ भगवन्तनल्लिरुवदरिन्दले, “स च मन प्रियः” अवनू कूड ननगॆ तुम्बा प्रियन्नु” ऎन-ऎन्दु हेळिरुव, प्रीत्यतिशयवु, अर्व, तन्ना लुव आ भगवन्तनिन्दलू, नियमिक्क वॊण्णादपडि नियमिसलु साध्यविल्लदहागॆ, करैपुरण्डु ऎल्लॆयन्नु मारि, इव नोडु - ई मुक्तनॊन्दिगॆ, परम्परयासम्बन्धमु डैय-परम्परॆयागि सम्बन्धवन्नु हॊन्दिद, तिडर् निलळिलुम् ऎत्तरवाद प्रदेशगळल्ल, एरिष्टायु प्पडि - हत्ति प्रवहिसुवहागॆ अयित्तु - आगुत्तॆदॆ. हिन्दिन वाक्यदल्लि मुक्तनिगॆ सत्येश्वरनल्लिरुव प्रीत्यतिशयवु सत्कृष्टवादुदागि सश्वरनिन्द ऒन्दु क्षणकाल विश्लेषॆयन्नू कूड सहिसनॆन्दु हेळल्पट्टितु. हीगॆ सष्ट (n) ne.2.02.________________
(nas) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९२७ वाद प्रीतियन्नु तोरिदरॆ अदक्कॆ बदलागि करुणासागरनु ई मुक्त नल्लि ऎन्दिगादरू अप्रीतियन्नु तोरिसुवने ? श्री कृष्ण भगर्वा रॆवरे हेळिरुवदेनॆन्दरॆ :- 66 तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकछक्ति द्विष्यते । प्रियो हि ज्ञानि नोzत्यर महं स च मत्तुप्रियः । むら ΕΩ
- आ नाल्कु जन भक्तराद आनु, जिज्ञासुवु, अरारि यु, ज्ञानी इवरुगळल्लि ज्ञानियादवनु परमश्रेष्ठनु. एकॆन्दरॆ, इन्नु मूरु जनवु हागल्लदॆ ज्ञानियु मात्र एभक्तिः - नन्नॊब्ब नल्ले मुख्यवाद भक्तियुळ्ळवनु. आदुदरिन्द विशिष्यते - इतररि गिन्त विलक्षणनु, ऎन्दरॆ साधन दॆशॆय प्राप्यदशियल्ल. निरति शय प्रेमरूप भक्तियुळ्ळवनागिद्दानॆम्ब भाववु. इतर भक्ता दरो हागल्लवु, अवरु एकभक्तियुळ्ळवरल्लवु. एकॆन्दरॆ फलदल्ले अवरिगॆ मुख्य दृष्टि, परमात्मनल्लि भक्तिय साधनरूप मात्रवागि ऎम्ब भाववु. इष्टे अल्लवु. आ ज्ञानियु नित्ययुक्त-सदा ध्यान योगियु, यावजीववू, उपासकनु. आनन्तरवू भक्तनु. इतररु योगियागिरुवदु फलप्राप्तियवरॆगॆ मात्रवे, अनन्तर विल्लवु. आदुद रिन्द अवरु नित्ययुक्तरल्लवु. आदुदरिन्द ज्ञानी विशिष्यते ऎन्दु हेळ ल्पट्टितु. इतररु मरुजन भक्तरू च्यवनधरवुळ्ळवरॆन्दू “ प्रतिबु दस्तु मोक्षाक् ” ऎन्दु ज्ञानियु महा पज्ञनॆन्दू, इन्नॊन्दु कडॆयल्लि प्रशंशिसल्पट्टिरुत्तानॆ. आहं-नानु यद्यपि सत्वज्ञनागि सत्व शक्तनागिद्दरू कूड, ज्ञानिगॆ अत्यरम् इष्टॆन्दु हेळलसाध्यवागु वष्टु, प्रियोहि आतनिगॆ परमप्रिय वस्तुवल्लवे ? आ कारणदिन्दले स च आ परमभक्तनू कूड, अत्यं मम प्रियः-“मम प्राणा हि पाण्डवाः” ऎन्दु नाने इन्नॊन्दु सन्दरदल्लि हेळिद हागॆ, ननगॆ प्राणप्रियनु, एकभक्तिश्वशिष्यते ऎन्दु हेळल्पट्ट तल्ला, इदक्के नादरू निदनवुण्टो ऎन्दरॆ, महा प्राज्ञनाद आञ्जनेयनु ऒन्दु ऒळ्ळॆ निदरनवॆन्दु भाविसतक्कद्दु. आ परमभनु हेळिकॊण्डि रुवदॆ नॆन्दरॆ– स्नेहोमे परमो गार्जि त्य नित्यं प्रति स्मितः । भक्तिश्च नियतावीरभावो नान्यत्र गच्छति” ओ सजन चित्ताप्पादकरनाद श्री रामने निन्नल्लि ननगिरुव निरतिशयवाद 1________________
श्री मद्र हस्य त्रयसारे मिये यागिलुं स्वतन्त्रनान ईश्वरनुप्पॆय इच्छॆ प्रीतियु सदा शाश्वतवागिरुवन्थाद्दागिरुत्तदॆ. निन्नल्लि भक्ति ऎम्बुदु स्वभावजन्यवादुदागि निरतवागिरुत्तदॆ. नन्न मनस्सु निन्नन्नु बिट्टु मत्तॆल्लियू होगुवदिल्लवॆन्दु हेळिकॊण्डिरुत्तानॆ. श्री यतिवररू ऒन्दु ऒळ्ळॆ निदनवन्नु प्रदरिसिरुत्तारॆ- “ सत्यास मतिः कृष्ण दमानो महोरगैः न निवेदात्मनो गत्रं तत् त्या ह्लाद संस्थितः” (वि. पु. १. १६, ३९) ज्ञानिगळल्लि अग्रेसरराद प्रह्लादरु श्री कृष्णनल्ले मग्नवाद मनस्सुळ्ळवराद प्रयुक्त तन्न * दुष्ट पिताविन आज्ञॆय प्रकार घटसरगळिन्द कच्चल्पट्टरू तन्न शरीरक्कॆ वेदनॆयुण्टायितॆन्दु आ परम भागवतररियले इल्लवु; एकॆन्दरॆ तन्न त्यागसंस्कृतः, ऎन्दरॆ आ परमात्मनन्नु निरं तर स्मरिसुव, एकान्त बुद्धियिन्दुण्टाद परम सन्तोषदल्लि मग्ननागि रुवदरिन्द, अवरिगॆ याव केशवू तोरलिल्लवु. इन्तह प्रह्लादरल्लि सश्वरनिगिरुव प्रीत्यतिशयवु ऎन्थाद्दॆम्बुदन्नु सरेश्वरनु प्रह्लाद परिपालनवन्नु माडुवदक्कागि ऒन्दु विलक्षणवाद अवतार विशेषवन्नॆ कैकॊण्डनॆम्बुदु ऎल्लरिगू तिळिदंशवे आगिरुत्तदॆ. ई प्रीत्यतिशयवन्नु ऒन्दु जलप्रवाहक्कॆ होलिसिरुत्तारॆ. प्रबल प्रवाहवन्नु हेगॆ तडॆयुवदरक्यवागि, अदु दडगळन्नतिक्रमिसि, मेलक्कॆ हाय्दु, ऎत्तर प्रदेशवन्नू कूड नीरिनल्लि मुळुगुवहागॆ माडुत्तदॆ, हागॆये सश्वेश्वरनिगॆ एकान्तभक्तनल्लिरुव प्रीत्यति शयद प्रवासवु पाप प्राचरदिन्द सश्वेश्वरन अन्तह प्रीत्यति शयक्कॆ अनर्हवागिद्दरू, अन्तवुगळन्नू सह होगलाडिसुवहागॆ आक्रमिसुत्तदॆ ऎम्ब भाववु. आदुदरिन्द स्वामियु ताने स्वतन्त्रिसि अन्तह मुक्तनन्नु ऎन्दिगू आवरिसुवहागॆ माडलारनॆन्दु मुन्दॆ हेळुत्तारॆ :- आगैयाल् - आदुदरिन्द ऎन्दरॆ अन्तह मुक्तनल्लि सत्येश्वरनिगॆ निरवधिकवाद प्रीत्यतिशयवु सदा नित्यवागिरुवदरिन्द, कवि ये यागिलुम् - मुक्तनल्लि कल्मशेषवेनू इल्लदि द्दरू, स्वतन्त्रनान ईश्वरसुगैय - स्वतन्त्रनाद सत्येश्वरन________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९२९ यालॆ पुनरावरियुण्णागिरदो वॆन्नु कुवॊण्णादु. शास्त्रवश्याधिकारं कळिगैयाले मुक्त दशैयिल् आज्ञाति 1) लङ्घन मिल्फ्. अवनु कप्पाले (पै) तनक्कु कप्पागैयाले త 2nd den. इच्छॆयालॆ - इष्ट प्रकार, पुनरावृत्तियुण्डागिरदो वॆनु - पुनरावृत्ति एनादरू सम्भविसितो ऎन्दु शब्दवॊण्णादु - शम्मिसलु साध्यविल्लवु. एकॆन्दरॆ मुन्दिन वाक्यदिन्द कारणवन्नु हेळुत्तारॆ. शास्त्रवशाधिकारम् - स्वामियु वेद रूपदल्लि दय पालिसिरुव विधि निषेधवाक्यगळिगॆ वशवागिरुव अधिकारवु, कळिगॆ यालॆ मुकदॆशॆयल्लि कळॆदुहोगुवदरिन्द, मुक्तदशॆयल्लि, आज्ञातिलङ्घनविल्फ् - भगवदाज्ञॆयन्नु मारि नडॆयुव सम्भ ववे इल्लवु. भगवन्तनु एनॊन्दू कारणविल्लदॆ, तन्नन्नु परमभक्ति यिन्द बन्दु सेरिदवनन्नु कै बिट्टु, तन्न परम पददिन्द तळ्ळिसि बिडुव दिल्लवु. ईगिन मदान्धराद अधिकारिगळ हागॆ भगवन्तनल्लवु, तानु स्वतन्त्रनादरू मार्गतप्पि ऎन्दिगू नडॆयुवनल्लवु. ता म माडिद विधि निषेध वाक्यगळिगॆ कट्टु बिद्द ऎल्लवन्नू नडॆसुवनु. भगवन्तनु लोकापवादक्कॆ ऎन्दिगू सिक्कुवनल्लवु. श्रीरामने इदक्कॆ निदनवु. स्यमन्तकोपाख्यानवु इदन्ने समर्थिसुत्तदॆ. तन्न मनबन्दन्तॆ नडॆसिदुदादरॆ आतनिगॆ वैषम्य नैर्फग्यादिगळु सम्भविसुत्तवॆ. आवरियुण्टागुवदक्कॆ भगवदप्रीतियुण्टागबेकु. भगवदप्रीतियुण्टागलु मुक्तरु आज्ञातिलङ्घनवन्नु माडबेकु. हिन्दिन पापशेषदिन्दलेनादरू भगवन्तनिगॆ आप्रीतियो ऎन्दरॆ पापवॆल्ला कळॆदुहोगिरुत्तदॆ. आगलि, परमपददल्ले ई मुक्तनु एकॆ आज्ञातिलङ्घनवन्नु माडकूडदु ? “शु ति तिरमै वाज्ञया मुल्लङ्घवरते। आज्ञ च्छे मनद्रोही मच्छपि न वैष्णव ” ऎन्दु हेळिरुवहागॆ अष्टोल्लङ्घन वन्नु माडकूडदु ? ऎन्दरॆ, ई चेतननिगॆ ज्ञानवु सङ्कोचवन्नु हॊन्दिरुवागष्टे शास्त्रद आवश्यकतॆयु ; यावाग ज्ञानवु विकासवन्नु हॊन्दितो, आग उण्टाद सत्व 3________________
१९३० श्रीम ब्रहस्यत्रयसारे ईश्वराभिन तत्तुक्कु विपरीतमान वनुष्ठानमिल्फ्. आगैयाल् कैर परन्त परिपूर्ण ब्रह्मानुभवरूपमान मोक्षाख्य पुरुषार्थम् मेलॆ यावदात्मभावियायि, इ ऎल्ला 3 ऎदुरु साक्षात्कारॆरूपवाद प्रत्यक्षज्ञानदिन्द प्रतिकूलाचरणॆयु ईषदपि इरुवदिल्लवु. आदुदरिन्द आग शास्त्रगळु बेकिल्लवु. ईतनिगॆ आग शास्त्र वश्याधिकारवु कळॆयितॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हीगॆ परमभक्तियिन्द वरिसुवनादुदरिन्द आज्ञातिलङ्घन प्रवत्रनॆगॆ कारणवे इल्लवु. एकॆन्दरॆ यावागलू मुक्तनु सश्वेश्वरन प्रसन्नतॆयन्ने नोडुववनागि आतनिगॆ सदा कैगळन्नॆसगुवदरल्ले निरतनागिरु ववनु. आदुदरिन्द सश्वरन अभिमतवे तन्न अभिमतवॆन्दु मुक्तनु वरिसुवनॆन्दु मुन्दिन वाक्यदिन्द हेळुत्तारॆ :- अवनुक प्राले - श्रीयःपतियु प्रीतियन्नु हॊन्दुवदरिन्द, तनक्कु कप्पा गैयाल् - मुक्तनाद तनगू प्रीतियुण्टागुवदरिन्द, ईश्वराभि मतत्तुक्कु - आ सश्वरन इष्टक्कॆ, विपरीतमान - विरुद्धवाद, व्यत्यस्तवाद, अनुष्ठानविल्स् - आव रणॆयिल्लवु. हीगॆ सत्व विध आवृत्ति शब्यागळन्नू पूप क्षरीत्या अनुवाद माडि, आ शब्यागळिगॆ कारणवे इल्लवॆन्दु सिद्धानिसि उपपादनॆ माडि दुदरिन्द आ परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु शाश्वतवादुदॆन्दु मुगिसु तारॆ :– आगैयाल् - हीगॆ मेलॆ उपपादिसिद रीतियल्लि याव विध पुनरावृत्ति शाविगू कारणवे इल्लदुदरिन्द, कैर हरन्त-श्रियः पतिय अभिमतानुसार ऎल्ला कैरवन्नु माडुव परन्तवाद, परिपूर्ण ब्रह्मानुभवरूपवाद, मोक्षा पुरुषार्थं - मोक्ष - वॆन्दु हेळिसिकॊळ्ळुव पुरुषर्थवु, मेल् - अरादि मार म लक प्राप्यवन्नु परमपददल्लि हॊन्दिद नन्तर, यावदात्मभावि यायित्तु - आत्मा हेगॆ नित्य शाश्वतवो हागॆये शाश्वतवा दुदु ऎम्ब भाववु. मुक्तनिगॆ उण्टागुव मोक्षवॆम्ब पुरुषा र्थवु ऎन्थाद्दॆम्बुदक्कॆ ई वाक्यदल्लि कै र परन्त परिपूर्ण ब्रह्मानुभववॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. आदरॆ कॆलवरु भक्तु पायनिष________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९३१ युव निनैत्तु (१) “ अनावृत्तिश्यब्दात, अनावृत्तिश्य ब्लात” ऎन्नु सूत्रकाररु मरुळिच्चॆय् दार्. निगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभववू, प्रसनिष्ठनिगॆ कैर मात्रवू प्राप्तियागुत्तदॆन्दु हेळुवरु. ई अभिप्रायवु सरियल्लवॆन्दु तिळिसुवदक्कागियू मोक्षदॆशॆयल्लि ऎरडू प्राप्तवागुत्तदॆन्दु हेळु वदक्कागि कैर पठ्यन्त ऎम्ब प्रयोगवु. तावु मेलॆ उपपादिसिद शब्बागळिगू तन्निरसनगळिगू शास्त्राधार उण्टॆन्दु मुन्दिन वाक्यदिन्द तिळिसुत्तारॆ- इ वै यॆल्लायु ई शब्दागळन्नू, अवुगळ निरसनगळन्नू, निनैत्तु - मनस्सिनल्लिट्टु * अनावृत्तिश्य ब्लाक्, अनावृत्तिश्यब्दात् ” ऎम्ब कॊनॆय सूत्र दल्लि, सूत्र काररु - बादरायणरू व्यासमहळ्ळिय, अरुळि ई दार् कृपया उपदेशिसिरुत्तारॆ. श्री बादरायणरु ई ऎल्ला शस्त्रागळिगू समाधानवागि मुक्तनिगॆ ऎन्दिगू अनावृत्तिः - आवृत्ति इल्लवु, पुनः शरीरवन्नॆत्ति ई लीलाविभूतियल्लि जनिसुवदिल्लवु. एकॆन्दरॆ, शब्दा - श्रुतियल्लि हागॆ हेळिरुत्तदॆ. ऎल्लि हागॆ हेळिरु तदॆ ऎन्दरॆ, छान्दोगोपनिषत्तिन उपसंहार वाक्यवाद “सख लैवं वायन्यादायुषं, ब्रह्मलोक मभिसम्पद्यते न च पुनरावते न च पुनरावरते” ऎम्बल्लि हेळिरुत्तदॆ. ई शङ्कागळन्नू, अवुगळन्नु खण्डिसि सिद्दान्यवन्नू, श्री भाष्यकाररु चॆन्नागि तावु अनुग्रहिसिद श्री भाष्यदल्लि उपदेशिसिरुवाग अदन्नु तिळिसदॆ श्री व्याससूत्रवन्नु मात्र तिळिसिरुवदक्कॆ कारणवेनॆन्दु प्रश्निसबहुदु. व्याससूत्रवन्नु यावाग उदाहरिसिदरो, आ व्यास सूत्रगळिगॆ श्री भाष्यवन्नु नम्म सिद्दा रीत्या अनुग्रहिसिरुव वरु श्री यतिवय्यरागि, अदु ऎल्लरिगू वेद्यवाद विषयवादुदरिन्द, अन्तह विषयवन्नु हेळुवदु अनावश्यकवादुदरिन्द हेळलिल्लवु. श्री देशिकरवरु तावु बरॆदिरुवदॆल्ला श्री भाष्यकाररु सङ्क्षेपवागि (१) शा, ३. ४. ४. २२,________________
१९३२ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे एरि ऎळि पदवॆल्ला वुयर्कु मितवु कक्कुम् । नारु तुळा मुडि नाथनै नण्णियडिमॆ यिनम् । कूरु कवनद कुरुक्कळ कुळाळ् कुरै कळर् कीळ् । मारुदलिसि मकिट् नैळुव पोगत्तु मन्नु वमे २९ बरॆदुदर उपपादनवॆन्दे हेळिकॊण्डिरुत्तारॆ, आदुदरिन्द श्री भाष्यद उपकृतियन्नु इल्लि स्मरिसलिल्लवॆन्दु हेळलागुवदिल्लवु. ई प्रकरणदल्लि श्री भाष्याभिप्रायवेनॆम्बुवदक्कॆ हिन्दॆ १९२१-२३ नॆय पुटगळन्नु पराम्बरिसतक्कद्दु. अदू अल्लदॆ श्री व्यास सूत्र दिन्दुण्टाद महदुपदेशक्कॆ श्री भाष्यकाररु प्रथमोपकाररादरू, श्री भाष्यकाररिन्दले उपदेशिसल्पट्ट भाष्यारगळ उपपादनॆयन्नु परम्परया ऒदगिसिकॊट्ट श्री सुदरन भट्टरु, नडादूरम्माळ्, श्री वादि हरिसाम्बुवाहरे मॊदलाद पूराचाररुगळन्नू स्मरिसि दवरागि, मुन्दिन अधिकार संस्कृहरूपवाद गाधाश्लोकदिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभववु–गुणविग्रह विभूत्यादि विशिष्ट नाद परब्र ह्मने परमभोग्यवॆम्बनुभववू, मत्तु अदर परीवाहवागि आतनिगॆ सविध कैय्य माडोणवू, मत्तु अदरल्लि निरतिशय श्रद्धॆयू ऎन्दू, अदक्कॆ ऎन्दिगू च्युति इल्लदिरुवदरिन्द शाश्वतवादुदॆन्दू हेळुवदरॊन्दिगॆ, अल्लियू कूड भगवरवू इन्तह आचारर कैर परनवादुदॆन्दु तिळिसुत्तारॆ :- अल्ल - ऎळिल् पदं - साभीष्ट वरकवाद, स्थानवु ऎन्दरॆ परमपदवन्नु, एरि - अरादिगतिय मूलक आरोहणमाडि, हत्ति, ऎल्ला उयर् कुम् - ऎल्ला चेतनरिगू, यितमुकक्कुम् परमहितवन्नु दयपालिसुवनाद, नारु तुळाय् मुडि नाथनै - सुगन्धवुळ्ळ तुळिसिय मालॆयन्नु किरीटदल्लि धरिसिरुव स्वामियन्नु, न - समिपिसि, सेरि, अडिमैयिल् - कैरदल्लि, नं करु कवर् न - नमगॆ सेरिद अंशवन्नु ऎन्दरॆ इष्टु दिनवू अनुभविसदे बिट्टु होद भागवुण्टागबेकॆन्दपेक्षिसिद, कुरुक्क - गुरुगळ,________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार कुळाळ् - समूहगळ, कुरैकल् कीळ् कुरॆ ऎन्दरॆ कालन्दिगॆ यिन्दलू अदर शब्ददिन्दलू सेरिसि पादगळ कॆळगॆ मारुदलिनि - विच्छेदविल्लदहागॆ ऎन्दरॆ ऎन्दिगू पुनरावरि इल्लदहागॆ, मकिळिद्दु परिपूर्ण ब्रह्मानुभवदिन्द निरतिशयानन्दयुक्तरागि, ऎळ्ळुम् पो गत्तु - मेलॆ मेलॆ वृद्धि हॊन्दुव कैर साम्राज्य रूपवाद भोगदल्लि, मन्नुनमे दृढवागि, शाश्वतवागि ऎन्दिगू पुनरावृत्ति यिल्लद हागॆ, प्रतिष्टितरागुवॆवु. तार - प्राप्यनिगेने प्रापक भाववु सल्लतक्कद्दॆम्बभिप्राय वन्नु प्रदर्शिसुवरागि, प्राप्ति फलदल्लि निरतिशयप्रियरूपवाद परि पूर्ण ब्रह्मानुभवद परीवाहरूपवाद कैरवु, स्वाचार परन्त वादुदु ऎन्दु तिळिसुत्तारॆ. इदु शबरी वृत्तान्तदिन्द सुव्यक्तवु. परम भागवतळाद “सण्ठितव्रत” ळाद तापसियाद शबरियु श्री रामनन्नु कण्डु धन्यळागि “चक्षुषा तव सौम्यन पूतास्मि रघु नन्दन : गमि स्वाम्य कर्या लोकांस्कृत सादादरिन्द न” “ओ रघुकुलोत्पन्नने निन्न कृपासूचकवागि तम्पागिरुव कटाक्ष दिन्द दासळाद नानु परिशुद्धळादॆनु. सत्त पापगळिन्दलू बिडुगडॆ यन्नु हॊन्दिदॆनु, इन्नु पुनरावृत्तियिल्लद दिव्य वैकुण्ठवन्नु हॊन्दुवॆनु.” ऎन्दु हेळिकॊण्डिरुत्ताळॆ. उक्ति प्रत्युक्तिगळु नडॆद नन्तर श्रीरामनन्नु शबरियु प्रार्थिसुवळु :- अदु हेगॆन्दरॆ (१) “तेषामिच्छाम्य हङ्गन्तुं समीपं भाविता त्मनां २० 1 मुनीनामाश्रमो येषा महं च परिचारिणि” इदु याव महर्षियादवर आश्रमवो, याव ऋषिगॆ नानु परिच यन्नु माडुव दासियो, अन्तह ब्रह्मनिष्ठरागि ज्ञानिगळाद मतङ्ग महर्षिगळिरुव दिव्य वैकुण्ठवन्नु कुरितु होगलपेक्षिसुवॆनॆन्दु केळि कॊण्डिरुत्ताळॆ. इन्तह अत्याश्चरकरवाद प्रार्थनॆगॆ श्रीरामनु मॆच्चि, याव कोटिसूर प्रभॆयिन्द विराजिसुत्तिद्द. मत्तु “यत्र ते सुकृतात्मनो विहरन्ति महप्पयः” आ मतङ्ग महर्षिगळु विहरिसुत्तिद्द परम पदवन्नु आ परम तापसियु हॊन्दिदळु ऎन्दु (१) रामा, आर ७५, २९.________________
१९३४ श्रीमद्र हस्य त्रयसारे हेळिरुवदरिन्द मुक्तनिगू कूड भगव रवु भागवत कै परवॆन्दु ई पातुरदिन्द हेळि मुक्तनिगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानु भववू उण्टु, अदर परीवाहवागि कैरवू उण्टॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. * भगवद्वन्दनं स्वाद्यं गुरुवन्दन पूरैकम् । श्रीरं शरर यायुक्त स्वदतेहि विशेषतः” हाले स्वतः बहु रुचिकरवागि द्दरू सक्करॆयिन्द सेरिदरॆ हालु कीरॆन्दॆनिसि हेगॆ विशेष स्वादुवादु दागुत्तदो हागॆये भगवरवु भोग्यवु. अदु भागवत कैरदिन्द मिळितवागिद्दरॆ तनगू स्वामिगू सह इल्लि हेगॆ परम भोग्यवो हागॆये अल्लियू ऎम्ब भाववु. देहावसानानन्तर हीगॆ आचार पादमूलवू आचार कैरवू परमपददल्लि सिक्कुवद रिन्दले देहावसानवागि मुक्तियन्नु हॊन्दिदरॆन्दु हेळुवदक्कॆ बद लागि आचारतिरुवडियन्नु सेरिदरॆन्दु हेळुव वाडिकॆयुण्टु. इल्लि परम पदवु ऎळिल् पद, अत्यन्त उज्वलवाद पदवॆन्दु हेळिरु तारॆ. इदु स्वयं प्रकाशवादुदॆन्दु हिन्दॆ उपोद्घाताधिकारदल्लि तत्वत्रयाधिकारदल्लि उपपादितवागिरुत्तदॆ. इदक्कॆ अनेक शास्त्र प्रमाणगळुण्टु. अवुगळल्लि ऒन्दॆरडन्नु सूचिसुवॆवु :- आदित्यवल्लं तमसः परस्तात्, हिरण्मये परेलोकॆ, इल्लि परम पदवु सुवरदहागॆ प्रकाशमानवादुदॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हागॆये इन्नॊन्दु कडॆयल्लि, “देवाज्ञॆयन्न पश्य दिव्यं तेजो मयं पदम् । अत्यानल दीप्तं तत् स्थानं विष्यत्महात्मनः” “आ महाविष्णु विन स्थापनवाद परमपदवु दिव्य तेजोमयवादुदु ; सूराग्निगळ तेजस्सुगळिगिन्त उज्वलवादुदु, देवतॆगळु कूड तम्म ऎवॆ इल्लद नोटदिन्द काणलाररु, अवरिगू कूड दुश्यकवागि दुस्तर वादुदॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. मत्तु, “स्वय्यन प्रभया रार्ज दुक्षं देवदानवै” ऎम्बुव प्रमाणवु नित्य विभूतियु स्वयम्प्रकाशवागि देवदानवरिन्दलू नोडलसाध्यवादुदॆन्दु सूचि सुत्तदॆ. उपायानुष्ठानवन्नु माडिसि देहावसानानन्तर अरादि गतिय मूलक इन्तह परमपदवन्नु हॊन्दिसुववनु अवने ; “य मेष वृणु ते तेनलभ्यः” ऎम्ब श्रुतियल्लि उपपादिसिरुव हागॆ आतने प्रापकनू, आतने प्राप्यनू ऎन्दु तिळिसुवदक्कागि,________________
Jnk) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९३५ ऎल्ला उयर् कु, हितमुकक्कुम् ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. समस्त चेतनरू स्वामियिन्द करानुसार कॊडल्पट्ट करणकळेबर योगदिन्द, सुकृतवन्नु सम्पादिसिकॊण्डु उपायानुष्ठानवन्नु माडबहुदु. “सक देव प्रसन्नाय तनाति च या च ते । अभयं सत्वभूतेस्को ददा तम्म तं नम” ऎन्दु हेळि रुव मेरॆगॆ सकलरिगू उपायानुष्ठान मूलक मुक्तियन्नित्तु कापाडुववनु. “ सस्य शरणं सुहृत् समस्तरिगू उपाय भूतनु ऎन्दू हागॆये “समोहं सभूतेषु” ऎन्दू हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. आदरॆ कॆलवरु नित्य संसारिगळागिये इरु तारल्ला अदु हेगॆ ऎन्दरॆ अवरुगळु करप्राबल्यदिन्द उपा यानुष्ठानमाडलु अशक्तरुगळागिये आगुवदरिन्द ऎन्दु भाविस तक्कद्दु, आदरॆ सत्येश्वरनेनो समस्तर विषयदल्लि तन्नन्नाश्रयिसि दरॆ साकॆन्दु अवसर प्रतीक्षॆयन्नु माडुत्तलिरुवनु, आदुदरिन्दले हितमुकक्कुम् ऎम्ब प्रयोगवु, स्वल्प व्याजदिन्दले आतनु तृप्तनागि ईतनिगॆ हितवन्नुण्टुमाडुवनु. ई कथं चिदुपकारेण कृतेनैकेन तुष्यति” ऎम्ब, महर्षिय उक्तियुण्टु. “अण्ण पुषाकृतं र्भमा भूव मे भवेत्” भक्तरिन्द अल्प स्वल्पवागि तरल्पट्टि द्दू कूड तनगॆ प्रीत्यतिशयदिन्द अनन्तवागु इदॆन्दु श्री कृष्णनु परमभागवतनाद कुचेलनिगॆ हेळिरुत्तानॆ. कू कवर् न - नावॆल्लरू लोकपिताविगॆ प्रजॆगळु, आदुद रिन्द नमगॆ सल्लतक्कॆ दायभागवाद पुरुषार्थवन्नु नमगागि इट्टि रुत्तानॆ. आ अंशवु यावुदॆन्दरॆ आतन ऎल्ला विभूतियन्नू नावु अनुभविसोणवु. आतनु परिपूर्ण विभूति विशिष्ट नॆन्दु तिळिसुव दक्कागि नार् तुळाय् मुडि नात नॆन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. “सत्वगन्धस्सत्व रस” नॆम्ब भाववु नार् तुळार् ऎम्बुवदरिन्द तोरि बरुत्तदॆ. मुडिनात नॆम्ब प्रयोगदिन्द, उभय विभूति नायकनागि मकुटधारियागि आतनु राजाधिराजनाद सशेषि ऎम्ब भिप्रायवु सूचिसल्पट्टितु. आदुदरिन्द ई अनुभववु परिपूर्ण ब्रह्मानुभववॆन्दु हेळिदन्तायितु. इष्टु मात्रवे नम्म दाय भागवल्लवु; अडिमैयिल् कूड ऎन्दरॆ कैर साम्राज्यदल्लि कूड________________
१९३६ श्रीमद्र हस्यत्रयसारे नम्म भाग उण्टॆन्दु तिळिसुत्तारॆ. नमगॆ श्री हरिकृपया प्राप्त वागुव मोक्षदल्लि बरी आनुभवमात्रवे अल्लवु, भगवरदल्लि, नमगॆ अंशवुण्टॆन्दु तिळिसुवुदक्कागि, “ अडिमैयिल् नङ्कूरु कव आन्नु” ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. हीगॆ नम्म दायभागवाद परिपूर्ण ब्रह्मानुभव कैर प्राप्तिगळु नमगॆ प्राप्तवागुवदु “देशि कोमेदयाळुः” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ नम्म गुरुगळ परम कृपौदार् माहात्मय प्रभा ववु. आदुदरिन्द अन्तह कृपाशालिगळाद गुरुगळु तम्म शिष्यरिगॆ इन्तह परमश्रेयस्सु उण्टायिते, नावु अवरुगळिगागि माडिद महत्ताद यत्नवु फलिसिते, ऎन्दु परमानन्दभरितरागुवन्तवरु ऎन्दु तिळिसुवुदक्कागि “कवन्न कुरुक्कळ” ऎन्दु प्रयोगिसिरु त्तारॆ. इन्तह परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद परीवाहरूपवाद कैर वन्नु प्रियःपतिगॆ मात्रवे अल्लदॆ, तम्म पुरुषकारद प्रभावदिन्द ननगू सह स्थिरपडिसिदुदरिन्द, अन्तह गुरुगळ पादमूलवन्नु हॊन्दि अवरिगू सह कैरवन्नॆसगुव निरतिशयानन्दवन्नु स्थिरवागि हॊन्दुवॆवु ऎन्दु ऎळु भोगत्तु मन्नुवष्टे ऎम्बुवुदरिन्द तिळिसुत्तारॆ. आ गुरुगळ पादमूलवॆन्थाद्दॆन्दरॆ, परै कळर् की- मञ्जीर (कालन्दिगॆय) शब्द विशिष्टवादुदु. बाह्य कुदृष्टिगळ अपसिद्धानगळन्नॆल्ला तम्म सत्तर्कदिन्द गॆद्दु, अवुगळन्नॆल्ला तम्म वामपाददिन्द नॆलक्कुरुळिसि अन्तह वादवागुव कालदल्लि न्यायाधि पतिगळागि निन्त राजरुगळु अन्तवर जयसूचकवागि कालिगॆ सुवरा भरणवन्नु पारितोषकवागि कॊट्टरॆम्बभिप्रायवन्नु तिळिसुव हागॆ ई गुरुगळ पादारविन्दगळु गल्ल् ऎन्दु विमत निरसन जयध्वनियन्नेनादरू अनुकरिसुत्तवो ऎम्बभिप्रायवन्नु तोरि सिरुत्तारॆ. हागॆये सल्प सूदयदल्लि उपपादितवागिरुत्तदॆ. अल्लि शिष्यरु (तावे) कुवादिगळन्नॆल्ला वाददल्लि गॆद्दुदरिन्द गुरुवु (यतीन्द्ररु) राजनू सह सन्तुष्टरागि कालन्दिगॆयन्नु पारितोषिक वागि दयपालिसिरुत्तारॆन्दु ई मुन्दिन श्लोकदल्लि हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. “तय्य स्थापकोयं दृढतर ममुना तत्व दृष्टिश्च दिष्टा । दिष्टाचादिष्ट मे तद्दि शिदिशि लडहोडिण्डिमस्ताडनीयः ।________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९३७ अविश्रान्त श्रद्धा शतकलह कल्लोल (विषमा) कलुषा । ममावियासु र्मन मुनि सिद्धादि सुलभाः ॥
- शुषोपन्यास शिक्षापटमकटु रट्टिदैरि विद्वत्करोट ! कुट्टाक क्रीड मष्टापद कटक मसौवामपादे बिभत्तु । (सल्प सूद्योदय १०१) इदन्नॆल्ला मनस्सिनल्लिद्दे कुरैकल् कीळॆ ऎम्बुदरिन्द परम पददल्लि भागवत कैर परवाद भगवरक्कॆ विच्छेदवॆन्दिगू इल्लवॆन्दु, मारुदलिन्नि उपदेशिसिरुत्तारॆ. आदुदरिन्द मुक्तनिगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभववू उण्टु, कैरवू उण्टु. आ कैरवु तन्न आचार परनवू तन्मूलक सत्व भागवत परवादुदॆन्दु तिळियतक्कद्दु. ऎम्बुदरिन्द ई अधिकारदल्लि मुक्तनिगॆ परम पददल्लि प्राप्तवागुव पुरु षार्थनिर्णयवॆन्थाद्दॆन्दु स्थापिसल्पट्ट नन्तर, अदरल्लि तुम्बा श्रद्धॆयू तैरातिशयवू उण्टागि, अन्तह पुरुषार्थरूपवाद परिपूर्ण ब्रह्मानुभववू, अदर परीवाहरूपवाद सत्व देश सत्व काल सावचित सत्वविध भगव ज्वरगळू कूड इल्लि तम्म मनस्सि नल्लि प्रत्यक्षवागि आविर्भविसलि ऎन्दु प्रार्थिसुत्तारॆ. अर-अविश्रान्त श्रद्धाशत कलह कल्लोल कलुषाः, इदु मुन्दॆ ब्रह्मानुभव परिवाहाः ऎम्बुदरल्लि तोरिबरुव कैर विशेषगळिगॆ विशेषणवु. आ कैगळु ऎन्थावॆन्दरॆ, अविश्रान्ति - विश्रान्तिये इल्लदहागॆ, इदन्नु श्रद्धाशतक्कागलि, कलहक्कागलि अन्व यिसबहुदु, श्रद्धाशत-“श्रद्धा सम्प्रत्ययहा” ऎन्दु अमर विरुवदरिन्द तावु माडुव कै रवु भक्ति पुरस्सरवागि चॆन्नागि नडॆयबेकॆम्ब कुतूहलक्कॆ श्रद्धा ऎन्दु हॆसरु, इन्तह कैरवन्नु नानु माडबेकु, नानु माडबेकॆम्ब अनेक मुक्तर मूलक उण्टाद श्रद्धाशतगळ, अथवा ऒब्बॊब्बरु “ अहं सं करिष्यामि, अहं सत्वं करिष्यामि” ऎम्ब कुतूहलवागलि आगबहुदु. इन्तह श्रद्धाशतदिन्दुण्टाद, कलह परस्पर स्पर्धॆय, कल्लोल मेलॆ________________
१९३८ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे मधुक्षीर न्याय स्वगुण विभवा सञ्जन कनन् महानन्द ब्रह्मानुभव परिवाह बहुविधाः ॥४९॥ इति कवितार्किकसिंहस्य स तन्त्र स्वतन्त्र स्य श्रीमद्वेट नाथस्य कृतिष्णु श्रीमद्र हस्यत्रय सा रे परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारो द्वाविंशः श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः, 1 मेलॆनिरन्तरवागि उक्किबरुव तरङ्गगळिन्द, कलुषा-नीरु हेगॆ चल नॆयिन्द स्वच्छवल्लदहागॆ तोरुत्तदो हागॆ सडगरदिन्द विपरीतवागि तोरुवुवुगळाद, (कैरगळु), विषमा-ऎम्बुदु पाठान्तरवु, आग, व्यत्यस्तवागि तोरुववुगळाद ऎम्बद्धवागुत्तदॆ. इन्नू ऎन्थावु गळॆन्दरॆ, मुनिसिद्दादि सुलभ, मुनि - पराशर, व्यास, शुक मॊद लाद मुनिगळेनु, सिद्ध - नित्यराद अनन्त गरुड विश्वक्केनादिगळेनु आदि शब्ददिन्द नम्माळ्वार् मॊदलाद आळ्वाराचार प्रकृतिगळेनु इवरुगळिगॆ, सुलभाति, सुखलज्ञा-सुखदिन्द लभिसुवन्तवुगळाद, मधुक्षीर न्याय - जेनुतुप्पवू हालू बॆरॆतरॆ हेगॆ बहु भोग्य वाद सम्मेळन उण्टागुत्तदो हागॆ, स्वगुण विभव - परमात्मन कल्याणगुणगळेनु, उभयविभूतियेनु इवुगळ, आसञ्जन - सम्मे ळनदिन्द, कनत् - देदीप्यमाननागिरुव, महानन्द ब्रह्म इष्टॆन्दु अळविडलु साध्यविल्लवॆन्दु श्रुत्युपपाद्यवाद आनन्दमयनाद पर ब्रह्मन, अनुभव – अनुभवद, परिवाहा प्रवाहरूपवाद कै रगळु, बहुविधाः - सत्व देश सकाल सावचित सत्वविध कैरगळागि, मम मनसि - नन्न मनस्सिनल्लि, आवियासु आविद्भविसलि, भासमानवादुवागलि, प्राप्यदल्लि त्वराशिशयवन्नुण्टु माडलि ऎम्ब प्रार्थनॆयु, स्वगुणविभववॆम्बुदक्कॆ सारदीपिकॆ, सार विवरणॆ, सारसङ्ग्रह वाख्यातृगळु स्वस्य ऎन्दरॆ स्वस्वरूपविर्भाव हॊन्दिद मुक्तात्मन अपहतपात्मत्यादिगुणगळ सम्पत्तिन आ सञ्जन वॆन्दु अर्थमाडिरुत्तारॆ. सास्वादिनि सारप्रकाशिकायवरुगळ व्याख्यानवे स्वारस्यवादुदु.________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९३९ ताक्षर- ई अधिकारदल्लि परिपूर्ण ब्रह्मानुभव रूप प्राप्तिय स्वरूपवॆन्थाद्दॆन्दु उपपादिसल्पट्टितु, ई परब्रह्मानुभववु गुण विभवैश्वरादिगळिन्द युक्तवादुदागि परिपूर्णनाद परब्रह्मन अनुभववॆन्दू हेळल्पट्टितु. अदु ऎल्लरिगू समनॆन्दू समर्थिस ल्पट्टितु. अनन्तर ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद परीवादवागि सत्व विध कैरगळ प्राप्तियू सह उण्टागुत्तदॆन्दु हेळल्पट्टितु. ई अभिप्रायगळन्नॆल्ला ई श्लोकदिन्द सण्ण हिसुवरागि इन्तह अमोघ रूप प्राप्तियु मुन्दॆ लभिसतक्कदादुदरिन्द तत्पाप्तियल्लि ऊराति शयवु तम्म मनस्सिनल्लि जनिसबेकागि प्रार्थिसुत्तारॆ. ई परिपूर्णानुभवदल्लि तमगॆ मुख्यवादंशवु मूलमन्त्र दल्लू द्वयदल्लू इरुव नारायणाय ऎम्ब पदद व्यक्ति चतुर्थि यिन्द व्यक्तवागुव परम पुरुषनिगॆ तावु माडुव कैरगळु. इवु बहुविधाः-नानाविधवादुवॆन्दु हेळुत्तारॆ. छत्रवन्नु समर्पिसु वदु, वालव्यजनवन्नु बीसुवदु, चामरवन्नु हाकुवदु, सामगान दिन्द स्तोत्रमाडुवदु इत्यादि सत्वविध कैरगळु इन्तह कै रै गळन्नॆल्ला माडबेकॆम्ब श्रद्धॆयू त्वरॆयू नन्न मनस्सिनल्लि अविर विसलॆन्दु प्रार्थिसुत्तारॆ. ई कै रगळॆन्तवॆन्दरॆ मूरु विशेषण गळिन्द प्रशंसिसि हेळुत्तारॆ : (१) ई कृत्यगळन्नु चॆन्नागि माड बॆकॆम्ब अनवरत कुतूहलवु सत्वमुक्तरिगू उण्टागतक्कद्दु. ऒन्दु कैरवन्नॆसगुव कालदल्लि इन्नॊन्दु कैवु महोपकारि याद पुरुषोत्तमनिगॆ उचितवॆन्दु तोरबहुदु. अथवा अने करु अन्तह कै रगळन्नु माडबेकॆम्ब कुतूहलवुण्टागबहुदु ; आदुदरिन्द श्रद्धाशत वॆन्दु हेळल्पट्टितु. इन्तह श्रद्धॆय, उत्सा हवू, अदरिन्दुण्टाद सडगरवू आ परमपददल्लि तोरिबरुवदरिन्द अदन्नु कलह शब्ददिन्द इल्लि व्यक्तपडिसिरुत्तारॆ. अथवा ऒब्बरि ऒब्बरिगिन्त ऒब्बरु उत्कृष्टवागि कैय्य नडिसबेकॆम्ब स्पारूप कलहवॆन्दा दरू आगबहुदु. इन्तह कलहगळु गुणरूपवादवे विना दोष रूपवादवुगळल्लवु., अल्लि ईर्षासूयॆयिन्दुण्टागुव कलहवु इल्लवु. ऎल्लरू सत्वज्ञरादुदरिन्द ईर्षासूयॆगॆ बेकाद अज्ञा नवु अल्लिल्लवु. इवुगळ विजृम्भणॆयॆल्ला ई लोकदल्ले विना परम________________
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे पददल्लिल्लवु. ई सडगरगळॆल्ला तरङ्गतरङ्ग रूपदल्लि उण्टागबहु दादुदरिन्द कल्लोल शब्द प्रयोगवु. इन्तह सडगर प्रवाहदिन्द विषमवादवुगळु, व्यत्यस्तवादवुगळॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. अथवा ऒन्दु कैज्ञ रक्किन्त इन्नॊन्दु कैर वुचितवॆन्दू उत्कृष्टवॆन्दू तोर बहुदागि, इन्तह कालुष्ययुक्तवादुवॆन्दु तिळिसिरुत्तारॆ. अथवा आ कालुष्यवॆन्थाद्दॆन्दरॆ ई कैबरगळिगॆ नानु मुन्दॆ, नानु मुन्दॆ ऎम्ब कुतूहलदिन्दादरू उण्टागबहुदु ऎम्ब तात्परवु. 8 (२) मुनिसिद्दादि सुलभाः ऎम्ब ऎरडनॆय विशेषणदिन्द इवु यारिगॆ सुलभवागि उण्टागुत्तदॆ, यारिगॆ सुखलब्बाः सुख वागि केशविल्लदॆ उण्टागुत्तवॆ, ऎन्दरॆ, मुनिसिद्दादिगळिगॆ ऎन्दु हेळु त्तारॆ. सनकादि मुनिगळिगू, अनन्त गरुड विश्वक्केनादि नित्यरिगू, आदि शब्ददिन्द परमभागवतोत्तमरागि प्रसन्नरागि मुक्ति हॊन्दि दवरिगू इवु सुलभवु. इतर साधारण जनगळिगॆ सुलभसाध्यवल्ल वॆम्ब भाववु, “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिव्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चि नां वेत्ति तत्वतः” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ अन्तह कै रगळ प्राप्तियन्नु हॊन्दिदवरु अति विरळरॆम्ब भाववु. इन्तह मुनिसिद्दादिगळिगुण्टाद परमुनिश्रेयसवाद भगव रवन्नु माडुवदरल्लि त्वरातिशयवू श्रद्धॆयू नन्न मनस्सिनल्लि स्थिरवागिरलि ऎन्दु प्रार्थिसुत्तारॆ. (३) इल्लि नमगॆ प्राप्तवागुव कैरगळु उपाधियुक्तवागि अष्टु आनन्दयुक्तवादवल्लवु, आदरॆ कॆलवु प्रपन्नरु बहु श्रद्धॆ यिन्द इल्ल भगवद्भागवत कैगळन्नॆ सगुवदन्नु कण्डिल्लवे ? अन्तह कै रगळे नमगॆ प्राप्तवागुवन्तवु, ऎन्दरॆ इवुगळल्ल परिमिति इरुवदरिन्द अन्थावल्लवॆन्दू अल्लि प्राप्तवागुव कैगळु निरतिशयवादुदॆन्दू परिपूर्ण ब्रह्मानन्दक्कॆ समवाद आनन्द दिन्दुण्टाद पॆरीवाहरूपवादुवु ऎन्दुपदेशिसुत्तारॆ. अधिकारादि श्लोकदल्लि “विचित्र विभूति कं परमं साम्यं भजति” हीगॆ परि पूर्ण ब्रह्मानुभववन्नु हॊन्दि परब्रह्मनॊन्दिगॆ समवाद आनन्द वन्नु हॊन्दुवनॆन्दु हेळिदुदन्ने ई मूरनॆय विशेषणदिन्द उप पादिसि हेळुत्तारॆ. परिपूर्ण ब्रह्मानुभवॆम्बुवदन्नु मुख्यवागि ।________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः ई निगमन सहश्लोकदिन्दलू तिळिसुत्तारॆ. ई परब्रह्मानुभव वॆन्थाद्दॆन्दरॆ :-स्वगुण विभवा सञ्जन कनन्महानन्दरूपवा दुदु ऎन्दु तिळिसुत्तारॆ. तन्न कल्याणगुण समूहवेनु, उभय विभूतियिन्द युक्तनागिरुवदेनु, लीलाविभूतिय सृष्टि स्थिति नियम नादिगळेनु, नित्य विभूतिय स्थितिनियमनादिगळेनु, इन्तह स्वरूप रूपगुण विभवैश्वरादि सकलविशेषणगळिन्द युक्तनागि कोटि सूर प्रकाशदन्तॆ जाज्वल्यमानवागि, “तस्य भासा सत्वविदं विभाति ” ऎन्दु श्रुतियल्लि हेळिरुव हागॆ कङ्गॊळिसुत्तिरुव आनन्दमयनॆन्दु श्रुतियल्लि उपपादितनाद परब्रह्मनॆन्दु हेळिरुत्तारॆ. ई आनन्दवु महानन्दवॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. एकॆन्दरॆ, श्रुतियु अदर मामांसा साध्यवे ऎन्दु योचिसि हेळलु हॊरटु मनुष्यानन्द दिन्द ब्रह्मानन्दवरॆगू ऒन्दक्किन्त ऒन्दु नूररष्टु ऎन्दु हेळुत्ता होगि कडॆगू परब्रह्मानन्दविन्थाद्दॆन्दु हेळलु साध्यविल्लदॆ होगि, यतोवाचो निवन्ते प्राप्य मनसासह, वाक्कु इष्टॆन्दु हेळलारदु, मनस्स इष्टॆन्दु ऊहिसलारदॆन्दु हेळि श्रुतियु विराम हॊन्दितॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. ई कारणदिन्द महिमानन्द वॆम्ब प्रयोगवु. इन्तह आनन्दस्वरूपनू आनन्दगुण कनू आद परब्रह्मन अनुभववॆम्ब भाववु. हीगॆ स्वकीयवाद स्वरूप रूप गुण विभ वैश्वरादि विशेषणगळिन्द परिपूर्णनाद परब्रह्मन अनुभववु मुक्तनिगॆ उण्टागुत्तदॆ. ई अनुभवद परिवाह रूपग ळादवु कैङ्कर्यगळॆन्दु हेळल्पट्टवु. आदरॆ ई परिपूर्णनाद पर ब्रह्मन विषयदल्लि, कल्याणगुणगणवे मॊदलाद विशेषणगळिन्द पर ब्रह्मनिगॆ उत्कर्षवे अथवा परब्रह्मनिन्द अवुगळिगॆ उत्कर्षवे ऎम्ब चर्चॆयल्लि ऎरडू उत्कृष्टवादुदरिन्द ऎरडर आसञ्जनवु सम्मेळनवु सत्कृष्टतॆगॆ कारणवॆम्ब भाववु. ई अभिप्राय वन्नु विशदीकरिसुवदक्कागि मधुक्षीरन्याय दृष्टान्तवन्नु कॊट्टरु त्तारॆ. मधुवू मधुरवागिरुत्तदॆ, क्षीरवू मधुरवागिरुत्तदॆ, इवॆरडू बॆरतरॆ हेगॆ सष्ट रुचियु उण्टागि क्षीर, मधु इवुगळिगिन्तलू श्रेष्ठवाद भोग्यवस्तुवॆनिसुत्तदो हागॆये कल्याणगुणविशेषणादिगळिन्द युक्तनादवने प्राप्यनॆन्दॆणिसि परम________________
१९४४ श्रीमद्रहस्यत्रयसारे सन्दृष्ट स्पारनागिपर निशित थी शृङ्ग जिक संस्कृ सृष्टिपायोति खिन्न सृपरिकर भरन्यास निष्पन्न कृत्य अवतारिकॆ, ई इप्पत्तॆरडु अधिकारगळिन्दलू ऎन्दरॆ प्रधान प्रतित प्राधिकार मॊदलुगॊण्डु ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारां त्यदवरॆगू तत्वहित पुरुषार्थगळु यावुवु ? ऎन्दु उपदेशिसि इवॆल्ला श्रीमद्र हस्यत्रयदल्लि अडगिवॆ ऎन्दु तोरिसिदुदन्नॆल्ला ऒन्दु श्लोकदिन्द सत्वरू क्रमवागि अनुसन्धान माडलि ऎम्बाशय दिन्द सङ्ग्रहिसि हेळुत्तारॆ,
ऎम्बुवु इल्लि ऒब्ब मुक्त अन्तह परि च्युतवल्लदॆ अर्थवु-एकः अच्युतं नित्यम् अनुभवति कक्रियापदगळु. एक ऎन्दरॆ कश्चिदेक ऎल्लो नागुवनु, अच्युतं यावनिन्द च्युतवादुदु इल्लवो पूर्ण ब्रह्मानुभववन्नु कॊडुव अथवा यावुदू अवाप्त समस्त कामनाद सरेश्वरनन्नु, नित्यं - सदा, ऎन्दरॆ पुनरावर्ति इल्लदहागॆ, अनुभवति – अनुभविसुवनु ऎम्बर्थवु. आ मुक्तनु ऎन्तवनॆन्दरॆ हेळुत्तारॆ :- सन्दृष्टः - बद्ध दॆशॆ यल्लि प्रथमतः गुरुकटाक्षदिन्द ईक्षिसल्पट्टवनाद इदरिन्द उपोद्घाताधिकारर्थवु हेळल्पट्टितु, सारवागित् - शास्त्रगळल्लॆल्ला सारतमवादुदु रहस्यतयार्थगळॆन्दु तिळिद सारज्ञनागि इदरिन्द सारनिष्कर्षार्थवु सूचिसल्पट्टितु, स्वपर निशितधीः - स्व स्व ऎम्ब व्युत्पत्तियिन्द जीवात्मनाद तानू तनगॆ भोग्यभूतवाद अचेतनवू ऎरडू स्वशब्ददिन्द हेळल्पट्टितु. हीगॆ चिदचित्तुगळ मत्तु पर-परमात्मन विषयवाद, निशितधी8 - निष्कृष्टवाद यथार वाद ज्ञानवुळ्ळवनाद, इदरिन्द चिदचित्रगळु सरेश्वरनिगॆ शरीर वॆन्दु हेळिरुव प्रधान प्रतितन्त्राधिकार, अर पञ्चकाधिकार, तत्वत्र याधिकार, परदेवता पारमार्थ्याधिकारगळ अर्थवू हीगॆ नाल्कु अधिकारगळ अर्थगळू सङ्ग्रहिसल्पट्टवु. सङ्गजित् - ऐहिक विषय भोगरूप ऐश्वर्य, स्वादि लोकगळ उपभोग, कैवल्य मॊद लादवुगळल्लि अभिलाषॆयन्नु जयिसिदवनागि, ममतॆयन्नु त्यजिसिदव नाद, इदरिन्द मुमुक्षुत्वाधिकारार्थवु उपदेशिसल्पट्टितु, नैक________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९४५ स्वावस्थारां सहाविधि मिह नियतं व्यागसङ्क्यापिबिभ । निर्मुक्तस्कूल सूक्ष्म प्रकृतिरनुभव च्युतं नित्य मेकः ॥ इति कवितार्किक सिंहस्य सत्व तन्त्र स्वतन्त्र श्रीमद्वे ट नाथस्य वेदान्ताचारस्य कृतिवु श्रीनव्रहस्यतयसारे अर्थानुशासन भागः प्रथमः श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः, संस्कृः, नैक-ऒन्दल्लदॆ इरुव ऎन्दरॆ भक्ति प्रपत्ति ऎम्ब ऎरडु विध उपायगळ संस्कृ8- अधिकारिगळ ज्ञानवुळ्ळवनाद, इदरिन्द अधिकार विभागाधिकारार्थवु व्यक्तवु, स्पष्टोपायः – ऎरडु विध उपाय गळ स्पष्टवाद ऎन्दरॆ निर्णितवाद उपायज्ञानवुळ्ळवनाद, इल्लि उपाय विभागाधिकारार्थवु स्मरिसल्पट्टितु, अतिखिन्न- तन्न अकिञ्च नत्व अनन्यगति त्वावस्थॆगळिन्द अति दुःखितनाद, इल्लि प्रपत्तियोग्याधि कारवु निरूपिसल्पट्टितु. सपरिकर भरन्यास निष्पन्न कृत्य- परिकरग ळिन्द सेरिद साज्य भरन्यासदिन्द कृतकृत्यनागि, इदरिन्द परिकरविभा गाधिकार, साज्य प्रपदनाधिकार, कृतकृत्याधिकार इवुगळर्थगळु ज्ञापि सल्पट्टवु, स्वावस्थार्ह, इदू सपल्यानिं, इहनियतं, व्यागसं, इवुगळिगॆल्ला बिभ्रत ऎम्बुवदरॊन्दिगॆ अन्वयवु ; स्वान स्टार्हं - तन्न ईग प्राप्तवाद महत्ताद अवस्थॆगॆ योग्यवादु दन्नु अदु यावुदॆन्दरॆ स्वनिष्ठाभि ज्ञानवन्नु, समाविधिं-कैङ्कय्य विधियन्नु, इदरिन्द उत्तरकृत्याधिकारवू मत्तु पुरुषार्थ काष्ठाधि कारवू सह प्रदर्शिसल्पट्टवु, इह नियतं . ई लोकदल्ले शास्त्र गळल्लि निश्चयिसल्पट्टिरुव हागॆ, शास्त्रीय नियमनाधिकारार्थवु बोधिसल्पट्टितु, व्यागसं - पापगळॊन्दू इल्लदहागॆ, इदरिन्द अपराधपरिहाराधिकारार्थवु शिक्षितवायितु ; क्यापि - यावुदादरू ऒन्दु स्थानविशेषदल्लि, स्थानविशेषाधिकाराभिप्रायवु व्यवस्थितवा यितु ; बिभ्रत् - धरिसुववनागि, निरुक्त स्कूल सूक्ष्म प्रकृति- बिडल्पट्ट स्कूलवाद प्रकृति शरीर सम्बन्धवन्नू मत्तु सूक्ष्म 3________________
१९४६ श्रीमद्रहस्यतयसारे शरीर सम्बन्धवन्नू उळ्ळवनागि ; इदरिन्द निराणगति चिन्तनाधिकार गळ तात्पर्यवु स्पष्ट माडल्पट्टितु, इन्तह प्रपन्ननु यावनो ऒब्बनु, (इन्तवनु दॊरकुवदु दुर्लभवॆम्बुदु तिळिसल्पट्टितु.) अनुभवत्यच्युतं नित्यं - परिपूर्णब्रह्मनन्नु पुनरावरि भय विल्लदॆ अनुभविसुवनु ऎम्बुदरिन्द परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारवु उपदेशिसल्पट्टितु. तात्सर- ई परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारद निगमनदिन्द श्रीमद्रहस्यत्रयसारद अरानुशासनवॆम्ब प्रथम भागवु पूरै सितु. ई इप्पत्तॆरडु अधिकारगळिन्द श्रीमद्रहस्यत्रयदल्लि तोरिबरुव तत्वहित पुरुषार्थगळ स्वरूपवेनॆम्बुदन्नू विशदवागि उपदेशिसिरु वदरिन्द इदक्कॆ अर्थानुशासनवॆम्ब हॆसरु. इदु श्रीमद्रहस्यत्रय सारद प्रथम भागवु. अरानुशासन वॆन्दरॆ रहस्य त्रयारगळ शिक्षणवु, उपदेशवु. तत्ववेनॆम्बुदन्नु मॊदलिन आरु अधिकारगळिं दलू, हितवेनॆम्बुदन्नु अनन्तर हन्नॆरडु अधिकारगळिन्दलू, पुरुषा र्थवन्नु अनन्तर इन्नु मूरु अधिकारगळिन्दलू उपदेशिसिरुत्तारॆ. ई श्लोकदिन्द ई २२ अधिकारगळ अर्थगळन्नु ज्ञापकक्कॆ तन्दु कॊण्डु अनुसन्धानक्कॆ सहकारियागुव हागॆ अनुग्रहिसिरुत्तारॆ. हीगॆ प्रपन्ननागि प्रपन्ननागि मुक्तियन्नु हॊन्दुवरु अति विरळरागि ऎल्लियो ऒब्बॊब्बरॆन्दु तिळिसुवदक्कागि एकः ऎम्ब प्रयोगवु. “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद ततिसिद्धये” ऎम्ब गीताश्लोक तात्पर्यवु (७-३) इल्लि सूचिसल्पट्टितु. अदेनु अष्टु दुर्लभ वॆन्दरॆ तत्वज्ञान बेकु, उपायानुष्ठान माडबेकु. इद क्कॆल्ला मूलकारण चेतनन सुकृत मूलक उण्टाद सिद्योपाय नाद सश्वरन कृपा प्रभाववॆन्दु हेळुवदक्कागि सन्दृष्ट ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ. आग श्रीहरिय जननकालदल्लि तन्न कृपाकटाक्षदिन्द नोडुववनागि “जायमानंहि पुरुषं यम्पन्मधुसूधनः। सात्विकतु निजेयस्स मोक्षार चिन्तकः ॥” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ सात्विक स्वभाववुळ्ळवनागि, सात्विकरॊन्दिगॆ सम्भाषणॆयन्नु हॊन्दि मोक्षार्थचिन्तकनागि आग सद्गुरुविनिन्दलू कूड सन्दृष्ट नागि मोक्षार्थचिन्तॆयुळ्ळवनागुवनु. अन्तह सद्गुरुविन कृपा 8________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकार १९४६ कटाक्षदिन्द शास्त्रगळल्लि सारतमवादुदु श्रीमद्रहस्यत्रयवॆम्बुदन्नु अरितु सारवागित्तागुवनु. ई सारतमवाद रहस्यत्रयगळु उपदेशिसुव अर्थगळन्नु चॆन्नागि ग्रहिसलु स्वल्प मट्टिगॆ ज्ञान बेकु. सृष्टियल्लि मनुष्यनु सरोत्कृष्टनाद प्राणियु, करण कळेबरयोग इतर जन्तुगळ हागॆये इद्दरू, इवनिगॆ कॊट्टिरुव ज्ञान विवेकगळु अमोघ वादवु. इवनिगोस्करवागिये सश्वेश्वरनु शास्त्रगळन्नू शास्त्रप देशिकरन्नू दयपालिसिरुत्तानॆ. आदुदरिन्द ईतनु स्वल्प मट्ट गादरू शास्त्रज्ञानवन्नु हॊन्दबेकु, आ शास्त्रज्ञानवु ऎष्टु मट्टिगॆ बेकु ऎन्दरॆ, नमगॆ मुख्य प्रमाणवाद श्रुतिगळिगॆल्ला सामञ्जस्य वन्नुण्टुमाडुव प्रधान प्रतितन्त्रवु यावुदॆम्बुदन्नु तिळिदु कॊळ्ळबेकु. इदन्नु इतररु तिळियदॆयू अकरिसदॆयू इरुवद रिन्द अवरुगळ सिद्धानदल्लि श्रुतिवाक्यगळिगॆ परस्पर विरोधवु तोरि बरुत्तदॆ. सत्ववू सश्वेश्वरनिगॆ शरीरवु, आतनु नम्मगळिगॆल्ला आत्मा वॆन्दु श्रुतियल्ले हेळिरुवदन्नु नावु मुख्यवागि मनस्सिनल्लि इट्टरॆ, श्रुतिगळिगॆ परस्परवागियू अवुगळिगू स्मृतिगळिगू सात्विक पुराणेति हासगळिगू एनॊन्दू विरोधविल्लदॆ सत्व सामञ्जस्यवु एप्पट्टु तनगॆ परमात्मनु आधारवु, नियामकनु, शेषियु ऎम्ब यथार्थज्ञानवु उण्टागुत्तदॆ. शास्त्रज्ञानवु मुख्यवागि नमगॆ एतक्कॆ आवश्यकवॆन्दरॆ नम्म अज्ञान, अन्यथा ज्ञान विपरीतज्ञानगळिन्दुण्टागुव भ्रान्तिगळु तॊलगलु आवश्यक पु. इन्तह भ्रान्तिगळॆल्ला तॊलगुवदक्कागि शास्त्रगळॆल्ला तिळिसुवदु मुख्यवागि एनॆन्दु ग्रहिसतक्कद्दु ; अवु ऐदु विषयगळाद अर पञ्चकगळन्नु मुख्यवागि तिळिसुत्तवॆ. तनगॆ ईगिरुव बन्धवु कळॆयलु तानु यारन्नु आश्रयिसतक्कद्दु, अन्तवन स्वरूप वॆन्ताद्दु, प्राप्तवाद तन्न स्वरूपवॆन्ताद्दु, आतनन्नु हॊन्दुव उपायगळु यावुवु, अदरिन्दुण्टागुव फलस्वरूपवॆन्ताद्दु, अन्तह प्राप्तिगॆ विरोधिगळु यावुवु ऎम्बुदन्नु ग्रहिसतक्कद्दु. इष्टु मात्रवे अल्लवु, इन्तह भ्रान्तिगळु तॊलगुवदक्कॆ तन्नॊन्दिगॆ यावागलू अनुवर्तिसिकॊण्डिरुव अचितेनु, परमात्मनेनु, हीगॆ मूरु तत्वगळ, स्वरूप, स्वभाव, प्रवृत्तिगळ ज्ञानवु चन्नागि________________
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे अवुग तक्कद्दु. इवुगळ विषयदल्लि अनेक अपसिद्धानगळुण्टु. ळॆल्ला, श्रुतिवाक्यगळन्नु दूरीकरिसि अथवा अवुगळिगॆ सरियाद सामञ्जस्यवन्नु कल्पिसदॆ, श्रुतिगळिगॆ परस्पर विरोधवन्नुण्टुमाडि बाध्य बाधकगळन्नु कल्पिसुत्तवॆ. आदुदरिन्द अवुगळिगॆ मनगॊट्टरॆ पुनः भ्रान्तिगॆ मूलवागुत्तदे विना भ्रान्तियु तॊलगुवदिल्लवु. आदुदरिन्द मुमुक्षुवु स्वपर निशितधी युळ्ळवनागबेकॆन्दु तिळिसिरु त्तारॆ. ई चेतननु अचित्रंसर्गदिन्द भान्तनागि, ताने कर्ता भोक्तावॆन्दु भाविसि, तनगिन्त बेरॆ परमात्मनिल्लवॆन्दु भ्रमिसु वनु, तनगॆ परमात्मन दास्यवु नियतवॆन्दु तिळिदु, तन्न कत्व भोक्त्ववॆल्ला परायत्तवादुदरिन्द तानू सम्पूर्णवागि अस्व तन्त्रनॆन्दु तिळिदु, तानु माडुव काव्यवॆल्ला धर्म प्रतिष्ठितवादुदागि अवुगळन्नॆल्ला स्वामियल्लि समर्पिसि, आतन प्रीत्यनुग्रहगळिगॆ पात्र नागबेकु. मुमुक्षुवु मुख्यवागि आराधिसतक्क परदेवतॆयु श्रुति स्मृतिहासादिगळल्लि याव हॆसरिनिन्द बोधितवागिदॆ ऎन्दु तिळिय तक्कद्दु. एकॆन्दरॆ मोक्षप्रदत्ववु आतनिगॆ मात्रवे विना मिक्क इतर देवतॆगळाद चतुरुखरुद्रेन्द्रादिगळिगॆ यारिगू इरुव दिल्लवु. आ परतत्ववु ई मेलॆ हेळिद शास्त्रगळल्लॆल्ला श्रीमन्नारा यणनॆन्दे उद्योषिसल्पट्टिरुत्तदॆ. हीगॆ परतत्व स्वरूपवन्नु यथार्थवागि तिळिदवनागि, तनगॆ हित वादुदु यावुदॆन्दु तिळिदवनागि उपायानुष्ठानवन्नु माड तक्कद्दु. इन्तह मुमुक्षुविगॆ “ परमात्मनियोरक्त- विर परमात्मनि” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ विरक्तिभाववु बेकु. ऐहिकदल्लि जहासॆयु आवश्यकवु, ऐहिक भोगगळू स्वर्गादि सुखगळू कूड अस्थिरमात्रवल्लदॆ “सुखस्यानन्तरं दुःखं” ऎन्दु हेळिरुव हागॆ पर्यवसानदल्लि दुःखप्रदगळु. आदुदरिन्द इन्तह सुखगळू कैव ल्यवू सह एतेवॆ निरयास्तात स्थानस्य परमात्मनः ऎन्दु हेळि रुव हागॆ नर कतुल्यगळॆम्ब भावनॆयिरतक्कद्दु. इन्तह विरक्ति भाववु आवश्यकवॆन्दु तिळिसुवदक्कागि सङ्गजित् ऎन्दु मुमुक्षुत्वाधिकारर्थ तिळिसिरुत्तारॆ. हीगॆ मोक्षार्थियु प्रसन्ननागबेकादरॆ भक्ति मार्गावलम्बियागियागलि, अथवा भरन्यासानुष्ठातावागि वन्नु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९४९ यागलि आगबेकु. तनगॆ यावुदु योग्यवॆन्दु तिळिदु, मूवत्तॆ रडु रूपवाद भक्ति मार्गदल्लि ऒन्दन्नागलि, अथवा स्वनिष्ठॆ, उक्ति निष्ठॆ आचारनिष्ठॆ ऎम्ब प्रभेदगळल्लि ऒन्दाद भरन्यासवन्नागलि अवलम्बि सतक्कद्दु. इन्तह प्रपन्नाधिकारियागदे ईतनिगॆ मोक्षविल्ल दुदरिन्द ई ऎरडु विध उपायगळन्नु चॆन्नागि तिळिदु, अवुगळल्लि तनगॆ यावुदक्कॆ योग्यतॆयो अदन्नु अवलम्बिसबेकागुत्तदॆयादु दरिन्द नैकसंस्कृति ऎन्दु अधिकारि विभागार्थवन्नु ग्रहिसिदवनागि अनन्तर ई ऎरडु विध उपायगळिगू इरुव वैलक्षण्यवन्नु तिळिय तक्कद्दु. इदक्कागि स्पष्टोपाय वॆन्दु उपाय विभागाधिका रर्थवु हेळल्पट्टितु. अनन्तर मुमुक्षुत्वाधिकारदल्लि हेळिरुव हदिनैदु विधराद अशक्तरल्लि तानॊब्बनागि तोरि अर्थित्व साम र्थगळु इरुवरॆल्लरिगू ई भरन्यासवु उपायवॆन्दु हेळिरुवद रिन्द, अनन्यगतिकनागियू अकिञ्चननागियू इरुवदरिन्द प्रपत्तिगॆ योग्यतॆयुण्टॆन्दु भाविसतक्कद्दॆन्दु, * अति खिन्न ” ऎम्बुदर मूलक प्रपत्तियोग्याधिकारद सारांशवु व्यक्तगॊळिसल्पट्टितु. इन्तह उत्तमवाद उपायक्कॆ परिकरगळु (अङ्गगळु) आनुकूल्य सङ्कल्पादि ऐदु अङ्गगळॆन्दु तिळिदवनागि, (परिकरविभागाधिकारद अर्थवु) अनन्तर अङ्गियावुदॆम्बुदन्नु निष्कर्षिसि तिळिदु, भरन्यासा नुष्ठानवन्नु माडतक्कद्दु. (इदु साङ्गप्रपदनाधिकारद अर्थवु). हागॆ भरन्यासवन्नु अनुष्ठिसिदवनु भरन्यास निष्पन्न कृत्यः, निर्भर नागि निर्भयनागि निस्संशयवागि हृष्ट मनस्कनागि कृतकृत्यनागुव नॆन्दु हेळल्पट्टितु. अन्तह प्रपन्ननिगॆ स्वरूपो पाय पुरुषार्थ गळल्लू स्वनिष्ठाभिज्ञानविरबेकॆन्दु हेळुवदक्कागि स्वावस्था हाम् ऎम्ब प्रयोगवु इन्तह स्वनिष्ठाभिज्ञानवुळ्ळ प्रपन्ननु कृतकृत्य नादरू ईतनु माडतक्क कॆलवु इतिकर्तव्यगळुण्टॆन्दू, अवुगळल्लि प्रथमतः आज्ञा कैङ्कर्यगळाद नित्य नैमित्तिक कर्मगळन्नु भगव श्रीत्यर्थवागियू, अनुज्ञा कैङ्कर्यगळन्नु भगवन्मुखोल्लासक्का गियू माडुत्ता, ज्ञानिगळ मूलक शास्त्राभ्यासवन्नु माडुत्ता, तिळियदिरुववरिगॆ उपदेशिसुत्ता कालयापनॆयन्नु माडबेकॆन्दू, ई कैङ्कर्यगळ पराकाष्ठॆयु भागवत शेषानुसन्धानपूर्वकवॆस________________
१९५० श्रीमद्रहस्यत्रयसारे गुव भागवत कैङ्कर्यवॆन्दू हेळि इदन्नु तिळिसुवदक्कागि समरा विधिम् ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. ई भगवद्भागवत कैङ्कर्यगळन्नु तन्न इष्ट बन्दन्तॆ नडॆसतक्कद्दल्लवॆन्दू शास्त्रीय नियमनानुसारवे अनुष्ठिसतक्कद्दॆम्बुदन्नू इह नियत ऎम्ब पदगळ मूलक तिळिसिरु त्तारॆ. इन्तह प्रपन्ननिगॆ देहावसानदल्लि मुक्तियु सिद्धवादरॆ आतन पुण्यपापगळ परिहार हेगॆ ऎम्ब सन्देहदल्लि प्रारब्ध मात्रवे ईतनु अनुभविसतक्कद्दॆन्दू, दूरागळू, प्रमाददिन्दुण्टागुव उत्तराघगळू सह ईतननुष्टिसिद उपायद माहात्म यिन्दले कळॆदुहोगुत्तवॆन्दू हेळि, भरन्यासानन्तर ईतनु ऎन्दिगू बुद्धि पूर्वकवागि अपराधवन्नु माडुवदिल्लवॆन्दू, ऒन्दु वेळॆ बुद्दि पूर्वकवागि माडिदरॆ, परितापमूलकवागि प्रायश्चित्त शरणागति यन्नु माडिकॊण्डरॆ आ अपराधवु नशिसिहोगुवुदॆन्दू, हागॆ ऒन्दु वेळॆ प्रायश्चित्तवन्नु माडिकॊळ्ळदिद्दरॆ, अल्पशिक्षॆयिन्द दण्डिसि, हीगॆ सर्वापराधगळु निवृत्तिसि होगुवहागॆ भरस्वीकार माडिद करुणा सागरनु माडुवनॆन्दू हेळुवुदक्कागि व्यागसम् ऎन्दु प्रयोगिसि रुत्तारॆ. इदरिन्द भरन्यासवन्नु अनुष्ठिसिद प्रपन्ननिगॆ उपाय वॆन्दिगू विफलवागदॆन्दु तिळिसुवदक्कागियू व्यागसम् ऎम्ब प्रयो गवु. इन्तह स्वनिष्ठॆयन्नरित प्रसन्ननु शास्त्रीय नियमनानुसार वागि भगवद्भागवत कैङ्कर्यगळन्नॆसगुत्ता देहावसानदवरॆगू इरतक्क स्थळवु, तन्न ईगिन महत्ताद दॆशॆगॆ उचितवाद स्थळगळाद श्रीरङ्गादि दिव्यदेशगळागलि अथवा भागवत मण्डलियिरुव स्थळगळागलि आगबहुदॆन्दु हेळि अवरुगळ मध्यॆ इरबेकादुदु आवश्यकवॆन्दु क्वापि ऎम्ब शब्ददिन्द ज्ञापिसिरुत्तारॆ. कॊनॆगॆ इन्तह महत्ताद उपायवन्नवलम्बिसि प्रपन्ननॆनिसिदन निगॆ देहावसानदल्लि ईतनु हेगॆ दिव्य वैकुण्ठवन्नु सेरुवनु ऎम्बु दन्नु ज्ञापकक्कॆ तरुवदक्कागि निरुक्तस्तूलसूक्ष्म प्रकृतिः ऎन्दु निराणाधिकारार्थवन्नु हेळिरुत्तारॆ. मॊदलु देहावसानदल्लि स्कूल शरीरद वियोगवू, अनन्तर अर्चिरादिगतियल्लि विरजावगाहनॆ यिन्द सूक्ष्म शरीरवियोगवू उण्टागुत्तदॆम्बुदन्नु इदरिन्द तिळि सुत्तारॆ. प्रसन्ननिगॆ उत्कान्तियु उण्टागुवाग सूक्ष्मरूपदल्लि________________
(१८) परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधिकारः १९५१ इन्द्रियगळॆल्ला मनस्सिनल्ल, अवॆल्लवू प्राणदल्लि, अनन्तर जीवात्मनल्ल, हीगॆ भूतसूक्ष्म दॊन्दिगॆ परमात्मनल्लि ईतनु सेरुवनु ; अल्लिन्द आतन कृपॆयिन्द सुषुम्ना नाडिय मूलक अरादि गतियन्नु हॊन्दुवनु ; मोक्षवल्लदॆ फलान्तरापेक्षॆ युळ्ळवनादरॆ मिक्क हृदयद नूरु नाडिगळ मूलक हॊरटु धूमादि इतर मार्गगळ मूलक होगि तन्न कर्मगळिगॆ योग्यवाद फलवन्नु हॊन्दुवनु. प्रसन्न नादरो मेलॆ हेळिद अब्बरादि गतियन्नु हॊन्दिदवनागि, अर्चिस्, ऎन्दरॆ अग्नि, अहस्, शुक्ल पक्ष, उत्तरायण, संवत्सर ऎम्ब आतिवाहिक रुगळिन्द सत्करिसल्पट्टवनागि अवरुगळिन्द मार्गतोरिसल्पट्टव नागि मुन्दक्कॆ तॆरळुवनु. संवत्सर देवतॆयाद नन्तर वायु (देवलोकवॆन्दु अपरनामधेयवु) देवतॆयू अल्लिन्द रथ चक्रदहागिरुव ऒन्दु रन्ध्रद मूलक आदित्यनन्नु सेरुवनु ; अल्लिन्द चन्द्रनन्नु सेरिदुन्दुभि रन्ध्रद हागिरुव मार्ग मूलक होगि वैद्युतनन्नु सेरुवनु. इवनिगॆ अमानवनॆम्बदागियू हॆसरु. ईतने ई प्रपन्ननन्नु वरुण, इन्द्र, चतुरुख ब्रह्म रिन्द सत्करिसल्पट्ट नन्तर परमपदक्कॆ करॆदुकॊण्डु होगि सश्वरन मुन्दॆ निल्लिसुववनु. दिव्य वैकुण्ठलोकद ऎल्लॆयल्लि विरजॆ ऎम्ब अमृतनदियुण्टु. “वैकुण्ठ सीमि विरजां सन्द मा नां महानदीं” ऎम्ब प्रमाणदिन्द इदन्नु ग्रहिसबहुदु. “गत्वा यो विरजां विमञ्चति तनुं सूक्षां” ऎन्दु हेळ ल्पट्टिरुवदरिन्द इल्लि आतन सूक्ष्म शरीरवु बिट्टु तॊलगुत्तदॆ. इवॆल्ला अभिप्रायगळिगू सङ्ग्राहकवागि “ निरुक्त स्कूल सूक्ष्म प्रकृतिः” ऎन्दु प्रयोगिसिरुत्तारॆ. (गतिचिन्तनाधिकारार्थवु.) हीगॆ विरजावगाहनदिन्द सहेय सम्बन्धवन्नू कळॆदु कॊण्डवनागि, जॊतॆयल्लिद्द अमानवनॆम्ब नित्यसूरिय करस्पर्शवन्नु हॊन्दि दिव्यमङ्गळ विग्रहयुक्तनागि, कोटि सरप्रकाशवुळ्ळद्दागि, तेजोमयवागि शुद्ध सत्ववागिरुव दिव्यवैकुण्ठलोकवन्नु हॊन्दु वनु. उपनिषत्तुगळल्लू भगवच्छास्त्र संहितॆगळल्लू हागॆये श्री यतिवर वैकुण्ठगद्यदल्लि हेळिरुव मेरिगॆ, मार्गदल्लि अर________________
१९५२ श्रीमद्रह स्यत्रयसारे ఆల్లి वॆन्दू, अरण्यवॆन्दू हॆसरुळ्ळ अमृतमयवाद समुद्रगळन्नू दिव्यद्यानमणि पत नदीतटाकगळन्नू ऐरन्मदीय वॆम्ब अमृत सरस्सन्नू दाटि अल्लिन्द मुन्दक्कॆ बहु मनोहरवागि सूरिसेवॆ वाद सोमसवनवॆम्ब अश्वज्ञवन्नू सेरुवनु. अल्लिन्द मुन्दॆ ऐनूरु दिव्याप्ति रस्सुगळु नूरुनूराद गुम्पिनल्लिरुववरागि ई हॊस मुक्तनन्नु ब्रह्मालङ्कार मूलक अलङ्करिसुवरु. अल्लिन्द मुन्दक्कॆ गोपुर बागलन्नु दाटि, हिरण्मयवाद दिव्य विमानवन्नु सेरि, अल्लि चण्डादि द्वारपालकरिन्द सत्यतनागि मण्टपवन्नु प्रवेशिसि, सभॆय नित्यसूरिगळ अरुळप्पाडु मूलकवागि श्रियःपतिगॆ अभिमुख नागि निन्तु लक्ष्मीनारायणरिब्बरिगू साष्टाङ्गवॆरगुवनु. लक्ष्मि नारायणनू हेगॆ सेवॆयन्नीयुवरॆम्बुदन्नु श्री वैकुण्ठ गद्यद मूलक ग्रहिसबहुदु. श्री आळवन्दारवरु अनुग्रहि सिरुव स्तोत्ररत्नदल्लि काणबहुदु. पञ्चायुध मॊदलाद दिव्या युध दिव्याभरण पीताम्बर वनमालादिगळिन्दलू अलङ्कृतनागि नित्य मुक्तरुगळिन्द सेवितनागि लक्ष्मियिन्दलू भूमि नीळादेविगळिन्दलू सेवितनागि, सामगानदिन्द स्तुतिसल्पट्टवनागि, शेष परङ्कदल्लिद्दु कॊण्डु, सकल विभूतिगळन्नू धरिसिदवनॆन्दु तिळिसुवदक्कागि आया अभिमान देवतॆगळन्नॆल्ला आ श्रियःपतिय अवयवगळल्लि सत्व तत्वगळ मूलक परिपूर्णनन्नागि काणुवनु. श्रीयः पतियु तनगॆ माडिद महोपकारक्कागियू, तन्न आचाररुगळन्नु कूड आ सभॆयल्ले कण्डु अवरुगळु पुरुषकाररूपदल्लि माडिद महोपकारक्कू सह, कृतज्ञताभावदिन्द आनन्दसागरदल्लि मग्ननादन्तॆ तिळियुवनु. ईतनु श्रीयः पतिय चरणारविन्दवन्ने उपायवागि वरिसिदवनादुदरिन्द लोकजनक जननिगळाद इब्बरू ईतनन्नॆत्ति तम्म पादगळल्लिट्टवरागि, असदृशवाद परमानुरागदिन्द तमगॆ समानवाद भोगवन्नु एर्प डिसिदवरागि, हीगॆ परिपूर्ण ब्रह्मानुभवद आनन्दवन्नू, तमगॆ कैङ्कय्य माडुव साम्राज्यवन्नू ऒदगिसि कॊट्टु तम्म शरणागत परिपालना रूपसु सल्पवन्नु कापाडिकॊण्डु “कृत कृत्यस्त दारामोविज्वरः प्रमुमोदह” ऎन्दु हेळिरुवहागॆ श्रियः पतिय विष्णु पत्निय परमानन्द भरितरागुवरु. हीगॆ ई चेतननु परिपूर्ण ब्रह्मानु________________
परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधि कारः १९५३ भववन्नु हॊन्दुवनु ऎम्बुदन्नु ज्ञापकक्कॆ कॊडुवदक्कागि, आनु भवत्यच्युतम् ऎन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. इल्लि अच्युतन अनुभवपा प्रियु भगवङ्क प्राप्तिगू उपलक्षणवु नित्यमनुभवति ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द ई अनुभवदिन्द पुनरावरि ऎन्दरॆ पुनः संसार बन्धवु इल्लवॆन्दु हेळल्पट्टितु. इदु परिपूर्ण ब्रह्मानुभवाधि कारार्थवु, इन्तह अत्यर्थप्रियनाद ज्ञानियन्नु सश्वेश्वरने ऎन्दिगू परमपददिन्द ई लोकक्कॆ होगुवहागॆ कळुहिसिबिडुवदि इवु ; आदरॆ वैदिक पुत्ररन्नु श्री कृष्णनु तन्दु ब्राह्मणनिगॆ कॊट्टु अर्जुनन सङ्कल्पक्कॆ विघात बन्द हागॆ माडलिल्लवे ? ऎन्दरॆ आ पुत्ररुगळिगॆ अर्चिरादि गतिय मूलक ई परम पदप्राप्ति युण्टागिरलिल्लवॆन्दु तिळियतक्कद्दागिरुत्तदॆ. आ पुत्ररुगळिगॆ उण्टादुदु मोक्षप्राप्तियल्लवु. अर्जुनन अहङ्कार शमनार्थ वागि माडिद कौतुकवॆन्दु भाविसतक्कद्दागिरुत्तदॆ. मत्तु इन्तह निरतिशयवाद आनन्ददल्लिरुव मुक्तनु, ताने पुनः इल्लिन बन्धरूपवाद दॆशॆयन्नु अपेक्षिसुवदिल्लवु. ई अभिप्रायवन्नु ज्ञापकक्कॆ तरुवदक्कागि नित्यं-सदा, अनुभविसुवॆनॆन्दु हेळल्पट्टितु. आदुदरिन्द मुक्तनु आवर्तिसुवदिल्लवु ऎन्दु हेळिदुदर मुख्याभिप्रायवेनॆन्दरॆ अवनिगॆ संसारबन्धविल्लवॆम्ब अभिप्राय मात्रवे विना आतनिगेनॆ अपेक्षॆयुण्टादरॆ, अपेक्षित लोकगळल्लि सञ्चार माडुव शक्तियुण्टॆन्दु श्रुतिये हेळुत्तदॆ, हेगॆन्दरॆ :- *तस्य सद्वेषु लोकेषु कामचारो भवति” (छां, ७, २५. २) * इर्मा लोर्का कामा काम रूप्यनु सञ्चर (तै. भैगु. १०. ५) हीगॆ नित्यरू मुक्तरू सह तावागिये ईश्वराज्ञॆ मूलक आळ्वार् आचाररूपदिन्द अवतरिसबहुदु. आद प्रयुक्त अन्तवर विषयदल्लि केवल मानुषशरीरवन्नाश्रयिसिदवरॆम्ब भावनॆ युळ्ळवनु नरकभागियागुवनॆन्दु हेळल्पट्टिरुत्तदॆ. हीगॆ मेलॆ हेळिद तत्वज्ञानवन्नु हॊन्दिदवनागि उपायानु स्थानवन्नु माडि उत्त र कृत्यगळन्नु शास्त्र नियमनानुसार नडॆसि देहत्याग माडि परमात्मनन्नु सेरुवदु दुर्लभवॆम्बुदरल्लेनू सन्देहविल्लवु. आदुदरिन्दले नित्यमेक ऎन्दु मुगिसिरुत्तारॆ.________________
1524 श्रीमद्र हस्य त्रयसारे अनुभवति ऎन्दु हेळिरुवदरिन्द शेषत्ववे असाधारण धरवाद ई मुक्तनिगॆ तन्न स्वामिगॆ कैबिरवन्नॆसगुवदू अनुभवदल्ले सेरिदुद रिन्द तन्न शेषिगॆ नित्य सेवॆयन्नॆसगुव कै साम्राज्य पदवियन्नू अनुभविसुवनॆम्ब भाववू द्योतितवु. ऎम्बल्लिगॆ श्रीमद्रहस्यतयसारद प्रथमभागवाद अर्थानु शासनभागक्कॆ तिरुनारायणपुरं विजयराघव शन आचार हृदया न्वेषिणी ऎम्ब कन्नड अर्थ तात्पर्यगळु समाप्तवादवु. श्रीमते श्रीनिवास महादेशिकाय नमः________________
नम्मल्लि दॊरॆयुव ग्रन्थगळु आचार हृदया नैषिणी ऎम्ब कन्नड प्रतिपदार्थ तात्सरगळॊडनॆ श्रीमन्निगमा महादेशिकरवर अभीतिस्तववॆम्ब श्रीरङ्गनाथस्तोत्रवु श्रीस्तुति ऎम्ब श्री रङ्गनायकीस्तोत्रवु श्रीमद्र हस्य त्रयसारवु :- (१) गुरुपरम्परा सारवु (२) उपोद्घाताधिकारवु मत्तु सारनिष्कर्षाधि कारवु (३) प्रधान प्रतितन्त्राधिकारवु मत्तु अर्थ प? काधिकारवु (४) तत्वयाधिकारवु (५) परदेवता पारमार धिकारवु मत्तु मुमुकुत्याधिकारवु (६) अधिकारि विभागाधिकारवु उपायविभागाधि कारवु मत्तु प्रपतियोग्याधिकारवु (७) परिकरविभागाधिकारवु मत्तु सण्ण प्रपदनाधिकारवु (८) कृतकृत्याधिकारवु, स्वनिष्ठाभिज्ञानाधिकारवु मत्तु उत्तर कृत्याधिकारवु (९) पुरुषार काष्टाधिकारवु, शास्त्रीय नियमना धिकारवु मत्तु अपराधपरिहाराधिकारवु १ (१०) स्थानविशेषाधिकारवु, नित्याणाधिकारवु (११) गतिचिन्तनाधिकारवु परिपूर्णब्रह्मानुभवाधि कारवु (१२) सिद्योपाय शोधनाधिकारवु ४, श्री यामुनेयरवर चतुश्लोकी 8. श्री विष्णु सहस्रनामावळि (अर्थ सहित) GU § अच्चागुत्तलि सि. यं. विजयराघवाचार्, विद्याभ्यासद इलाखा रिटैर्ड् सर्कल् र्इस्पॆक्टर् बसवनगुडि, बॆङ्गळूरु सिटि. बॆङ्गळूरु सिटि अविन्यू रोडिनल्लिरुव गिरिजा विलास प्रॆस्सिनल्लि प्रॊप्रैटराद हॆच्. वॆङ्कटरमणय्यनवरिन्द मुद्रिसल्पट्टितु.