आरिन समरता कतनुस्सम्पिण्डिताधिक्रिया साजाष्टा पडङ्गयोग नियतावा व्यवस्थापिता । शृति सत्वशरण्या भगवतःस्मृत्यापि सत्यापिता सत्यादिव नैगमेधिकृतिस्सरास्पदे सत्पथे ॥२४॥
श्रीमतॆ निगमान्त महादेशिकाय नमः
श्री मद्रहस्य त्रयसारे प्रपत्तियोग्याधिकारक्कॆ - “सारचन्द्रिका” नाट्यां प्रपत्तिगॆ योग्यनादवनिगॆ इरबेकाद अधिकार,
पूर्वाधिकारदल्लि ‘‘भक्तियोग वर्णिकरॆयॊन्दार्कु” ऎन्दारम्भिसि उपक्षिप्त वाद प्रपत्यधिकारवन्नु, ई अधिकारदल्लि आचारर निरूपिसुववरिगागि, आर्थिन ऎन्दारं भिसि अनुग्रहिसुत्तारॆ.
एकदेशिगळु उपायान्तरगळल्लि स्वरूप विरोध ज्ञानवु प्रपत्तिगॆ अधिकार प्रपत्तियु सिद्धोपायाधिकारि विशेषण मात्र स्वरूपवादद्दु, हागिद्दरू विधेयतयू इदक्कॆ उपपन्न वागुत्तदॆ साद्योपायाधिकारिगळिगॆ विधेयत्ववु इल्लदिद्दरू, सिद्धोपायाधिकारक्कॆ विधेय इवु युक्तवॆम्ब अप्रामाणिकवादगळन्नु स्थिरीकरणभागदल्लि निराकरिसुववरागि, सङ्ग्रहवागि इल्लियू निराकरिसुत्तारॆ उपायान्तरगळल्लि अज्ञान शक्ति विळम्बाक्ष मत्यादिगळिन्द उण्टाद नैरा श्यदिन्द कूडिद आकिञ्चन्यवे प्रपत्तिगॆ अधिकार. उपासनॆय हागॆ प्रपत्तिय मोक्षदल्लि आसॆ युळ्ळवनिगॆ कर्तव्यवागि विधिसल्पट्टिरुवुदरिन्द अधिकारि विशेषणवागलारदु, उपासनॆय हागॆ साक्षादुपायत्ववे प्रपत्तिगॆ उपपन्नवु. सिद्धोपायनाद भगवन्तनु प्रपत्तिगॆ पूर्वभावि यागि भरस्वीकारक्कॆ अनुगुणवाद स्वाभाविक परम कारण्यदिन्द कूडिद्दरू प्रपत्तियिन्दले भरवन्नु स्वीकरिसि फलोपहितवाद उपायनागुत्तानॆ आद्दरिन्द उपासनॆय हागॆ प्रपत्तिय भगवन्तन निग्रहवन्नु शमिसि अनुग्रहवन्नुण्टुमाडुत्तदॆ, प्रसन्ननाद भगवन्तनु सिद्ध पायनु, ऎम्ब तत्ववन्नु निरूपिसि मुमुक्षुविगॆ प्रपत्ति योग्यतॆयेनॆम्बुदन्नु ई अधिकार दल्लि अर्थिन समर्थ ऎन्दारम्भिसि निरूपिसुत्तारॆ. अदागि त्रिकतनु– श्रीकातनु–स्वरूपं
प्रपत्ति योग्याधिकार
अधिकारं, उपायं, फलन् इवट्रन लक्षणङ्गळ
289
इप्पडि अभिमत फलत्तुक्कु उपायास्तर निस्पृहनाय् न्यासविद्यॆयिले इरियु मवनुक्कु इविद्यॆ क्कु अधिकार विशेषम् मुदलान
मुदलानवॆ इरुक्कु
वेणुव.
पडि अरिय
यस्यास् त्रिकतन : मूरु विधवाद स्वरूपदिन्द कूडिद समर्थ सामर्थ्यवु, अर्थि तेन-आयाया फलगन्नु अपेक्षिसुवुदरिन्द सम्पिण्डिता कूडिद दागि अधिक्रिया, भति ऎम्बुदु अध्याहार, आयाया कर्मगळन्नु माडल अधिकारवागुत्तदॆ. अदागि शास्त्रद ९न तिळियुवुदु अदन्नु तिळिदन्तॆ अद ष्ठिसलु शक्तनागुवुदु, शास्थान मत जातिगुणादि योग्य तॆयिन्द कूडिरुवुदु, ऎन्दु वरु विधवाद स्वरूप निन्द कूडिदुद, सामर्ध्य. इदरिन्द ई मरल्लॊन्दु इल्लदिद्दरू अधिकारियागलारनु ऎम्बुदु सूचित
इदर ज०गॆ ई सामर्ध्यवु फलदल्लि आसयिन्द कूडिय इरबेकु. अगताने फलवन्नु पडॆयलु अधिकारियागुत्तानॆ ऒब्बनिगॆ ज्ञानशक्ति जाति ग हादियोग्यतॆय पूर्णवागि इद्दरू छलदल्लि आसॆ इल्लदिद्दरॆ अनाया कर्मगळन्नु अनुष्ठिसुवुदिल्लवाद्दरिन्द फलेच्छॆयिन्द कूडिद सामर्ध्यवे आयाया कर्मान सा नदल्लि अधिकारवॆम्बुदु तिानवाद अर्ध साचाष्टाङ्ग षडङ्गयोग नियतावना आ अधि कारवू, अष्टाङ्गयोग-भक्ति, षडङ्गयोग- प्रपत्ति, इरगळल्लि प्रतिनियतवाद स्थितियन्नुळ्ळद्दा
अदागि भक्तनिगॆ साङ्गवाद भक्तियोगदल्लि परिपूर्ण ज्ञानशक्ति, वर्णकत्व गुणवू प्रपन्न निगॆ साङ्गवाद प्रपत्ति ज्ञानवू, अनुष्ठिसलु शक्ति, आकिञ्चानन्य गति गुणगळू, परस्पर भिन्नवाद स्थितिगळु, व्यवस्थापिता-समीचान न्यायदिन्द कूडिद प्रमाण सम्प्रदाय गळिन्द निरूपिसल्पट्टवु. आनन्तर प्रपत्तियु सवा धिकारवॆम्बुदन्नु निरूपिसुत्तारॆ - “ सर्व स्यारं सु” ऎम्ब श्वेताश्वतरू पनिषत् हेळुवन्तॆ, भगवतः सर्वशरण्यता भगवन्तनु सर्वरिगू शरण्यनु इदरल्लि जात्यादि व्यत्यासगळिल्ल ऎम्ब ई अंशवु त्यापि “सव लोक ७र न्याय” “सर्वयोग्यमनायासं’, इत्यादि स्मृतिगळल्लिय सत्यापिता- स्थापिसल्पट्टिदॆ वेदोक्तवाद कम गळल्लि वर्णिकरल्लादवरिगॆ अधिकारवुण्टो ऎन्दरॆ अदक्कॆ दृष्टान्तवन्नु * त्यादिव ऎन्दारम्भिसि निरूपिसुत्तारॆ नैगमेषुसत्यंवद” “धर्मञ्चर इत्यादि निम वितॆगळाद, सत्यादिष्टिव सत्यवदन, धर्मदानाद्यनुष्ठानगळ हागॆ सर्वास्पदे-सर्वरिगू अनु स्मयवागि हेळल्पट्ट, सत्पथ प्रपत्ति रूप सन्मार्गदल्लि अधिकारवुण्टॆम्बुदु सिदन्त, सत्पधॆ ऎन्दु सामान्यवागि हेळिरुवुदु वैदिकवाद नाम सङ्कीर्तन, अर्चन, प्रणामादिरूप अग्नि विद्या साध्यवल्लद सद्धर्मगळल्लि सर्वाधिकारत्ववु उण्टॆम्बुदु सूचित.
(
आधिकार, उपाय, फलगळ लक्षण
स
हीगॆ
श्लोकार्थवन्नु आचाररु तावे इप्पडि अभिमत फलत्तुक्कु ऎन्दारम्भिसि विवरिसुत्तारॆ. अदागि हीगॆ - तम्म योग्यतॆयन्नु तिळिदु अद्वारकवागि प्रपत्तियन्नु मोक्षेपायवागि अनु सुववरिगॆ अभिमत फलत्तुकुमोक्षक्कॆ उपायन्तर निस्पृहनाय कर्मयोगाद्यु पायान्तरगळल्लि तनगॆ सामर्थ्यविल्लदिरुवुदन्नु तिळिदु अवुगळल्लि आसॆयिल्लदवनागि न्यासविदॆ यिले मवनुक्कु प्रपत्ति विद्यॆयन्नु अनुष्ठिसलु प्रवर्तिसुववनिगॆ अधिकारि विशेषव
290
ఆరి
श्रीमद्रहस्य त्रयसारे
सामान्यतः अधिकारस्वरूपं
अधिकारमावरु ? अन्नो फलोपायळिले प्रवृत्तनाम् पुरुषनुक्कु फलल् रित्वमुम्, उपायल् सामर्थ्यवु, इवत्तिल् सामथ्यमानदु ? शास्त्रार्थ रियु, अरिन्दपडि यनुषिक्कवल्ल माहैयु, शास्त्रानुमत जातिगुणादि योग्यतॆयु, इष्टधिकार मुप्पे सिद्ध मायिरुक्कु, इदुड्डॆयवनुक्कु प्रयोजनवाय कॊट्टु साध्यमाह आनुवदिक्कॆ स्पडुवदु फलव ; तदर माह साध्यवाह विधिक्कप्पडुवदु उपाय.
प्रपत्तेः अधिकार विशेषवरनं
इष्टु मुमुक्षुत्वमुण्णाय स्वतन्त्र प्रपत्तिरूप मोपाय विशेषनिष्ठनुक्कु शास्त्र जन्य समृद्ध ज्ञानादिहळ उपासक नोडु साधारणमायिरुक्क, विशेषित वधिकारम् तन्नुडैय आकिञ्चन्यमुव, अनन्यगतित्ववु, अकिञ्चनमावदु ? उपा यावर सामाभ वम्, अनन्यगतित्वमानदु ? प्रयोजनान्नर वैमुख्यं, शरण्या
मुदलानयिरुक्कुम्पडि विशेषवाद अधिकारवेनु, फल अङ्गगळु मॊदलादवेनु इवुगळु इरुव रीतियन्नु अरियवेणु-अवश्य ज्ञातन्य अधिकारमावदु इत्यादि - अधिकारवु यावुदॆन्दर, फलवन्नु साधिसिकूडुव उपायगळल्लि प्रवर्तिसुव पुरुषनिगॆ फलदल्लि अर्धित्ववू उपायदल्लि सामर्थ्यवू अधिकार. इवुगळल्लि सामर्ध्यवु शास्त्रदल्लि हेळल्पट्ट आयाया उपा यस्वरूपवन्नू अदर अङ्गगळ स्वरूपवन्नू चॆन्नागि तिळियुवुदु तिळिदहागॆ अनुष्ठिसलु शक्त नागुवुदु. शास्त्रानु मतवाद ब्राह्मणत्वादि जाति- आस्ति क्यादिगुणगळु आचारादिगळु इवुगळिन्द कूडिरुवुदु इव्वधिकारम् ई अधिकारवु मुञ्चॆये सिद्धवागिरुवुदु, इदुडैयवनक्कु इत्यादि ई उवायवन्नु अनुष्ठिसुववनिगॆ प्रयोजनवु उपाय साध्यवाद फल अन्दरॆ ऒन्दु फलवन्नु साधिसलु अधिकारियादवनु मॊदलु प्रयत्न पूर्वक उपायवन्नु अनुष्ठिसबेकु, उपायसाध्यवाददु फल. अदु प्रयोजनवाद्दरिन्द अदन्नु उद्देशिसि उपाय साध्यवु. तदर्थ माह-फलार्धवागि साध्यवागि विधिसल्पडुवुदु उपाय. “यजेतस्वर्गकामः, अग्नि होत्रं जुहुयात्" इत्यादि फलार्धवागि अनुवाद माडल्पडुवदु फल, आ फलवन्नु हॊन्दलु विधिसल्पडु
वुदु उपाय,
मुमुक्षुविगॆ विशेषवाद अधिकार,
想
इङ्गु इत्यादि, ई प्रकरणदल्लि मुमकुत्ववु मोक्षदल्लि आसॆयु उण्टागि, स्वतन्त्र प्रप रूप मोक्षपायदल्लि निष्ठनादवनिगॆ, शास्त्र जन्य सम्बन्ध ज्ञानादिगळु उपासकनिगू तनगू तुल्यवागिरुवाग, विशेषवाद अधिकार, तनगिरुव आकिञ्चन्य, अनन्यगतित्वगळु, ई ऎरडू सेरिये विशेषाधिकारवागुत्तदॆ. प्रयोजनान्तर परनिगॆ अनन्यगत्तित्ववु सम्भविसुवुदिल्लवादरू, मोक्षपाय निष्कनागि प्रपत्तियन्नु माडुववनिगॆ अधिकारवागुत्तवॆ यॆम्बुदु तात्पर. आकिञ्चन्यावदु इत्यादि आकिञ्चन्यवॆन्दरॆ उपायां
आकिञ्चन्यानन्यगति त्वगळॆरडू सेरिये तरवाद भक्तियोगदल्लि, सामर्थ्यविल्लदिरुवुदु. अनन्यगतित्व मावदु इत्यादि अनगतित्ववु
प्रपत्तियोग्याधिकार
291
नर वैमुख्य मादवुमाम्, इदु प्रयोजनान्तर वै मुख्यत्तालुम् अर्थसिद्दम्. इव्वर् (१ “ब्रह्माणं शितिकण्ठञ्च, याज्ञाना देवतास्कृताः । प्रतिबुद्धान सेवने यस्मात्परिमितं फलं” इत्यादिहळिले कण्णुकॊळ्ळदु.
दृप्त प्रपन्ननुक्कु मोक्षल् विळम्ब,
तीव्रतममान मुमुक्षुत्वमक्कॆ देहानुकृत्यादि प्रयोजनान्तर सक्तनानर्व मोक्षर माह प्रपत्तियॆप्पत्तिनाल् अप्रयोज नान्तरङ्गळिल् मोक्षम् विळम्बिक्कु,
अकिञ्चन्यानन्य गतिहळुक्कुक्कार
रणव
अळवुक्कीडाह
इन्याकिञ्चन्यत्तुक्कु, अनन्यगतित्वत्तुक्कुम् निबन्धनं उपायारल् इद्द धिकारियिनुडैय अज्ञानाशक्तिहळु, फलविळम्बासहत्व मुम्
इदिल् शरण्यानर नैमुख्यत्तुत्तु निबन्धनं - (2 “यथानायोणाग्राणि वत यान्ति बलीयसः । धातुरेवं वशंयान्ति सत्वभूतानिभारत !”ऎरपडिये तनक्कुम् पिररुक्कुव ऒत्तिरुक्कर भगवदेक पारतन्त्र ध्यवसायमुव प्रयोजनान्तर वैमु ख्यमुम्
एनॆन्दरॆ प्रयोजनान्तर-मोक्षेतर पुरुषार्थगळल्लि वैमुख्य-आसॆयिल्लदिरुवुदु शरां तर वैमुख्य माहवु माव-बेरॆयवरु तनगॆ रक्षकरु ऎम्ब विषयदल्लि वैमुख्यतॆ प्रयोज नान्तर वैमुख्यतयिन्दलू ई अर्थवु सिद्ध प्रयोजनान्तरक्कॆ शरण्यान्तराश्रयणवू सम्भा वित. प्रयोजनान्तरदल्लि आसॆयल्लदवनिगॆ शरण्यान्तरायणवु असम्भावितवॆम्बुदु तात्पय्य इदक्कॆ इन्वर्थ ऎन्दारम्भिसि प्रमाणवन्नु तिळिसुत्तारॆ अदागि 1) ब्रह्माणम् शितिकञ्च इत्यादि, ब्रह्मदेवनन्नू विषकण्ठनाद रुद्रनन्नू, हागॆये बेरॆ देवतॆगळन्नू प्रति बुद्धराद ज्ञानिगळु सेविसुवुदिल्ल, इत्यादि परदेवता पारमार्ध्यादिकारदल्लि हेळिरुवुदन्नु ओदि तिळियुवुदु दृस्त प्रपन्ननिगॆ मोक्षक्कॆ विळम्ब
तीव्रतम मान इत्यादि. मोक्षदल्लि आसॆयु बहळ तीव्रवागिल्लदॆ देहानु वृत्ति, आदिशब्द दिन्द आर्चावतार सेवादि प्रयोजनान्तरगळल्लि सक्तनादवनु, मोक्षार्थवागि प्रपत्तियन्नु अनुष्ठिसिदरॆ, आयाया प्रयोजनान्तरगळल्लिरुव अळुवुक्कीडाह-परिमाणक्कॆ अनुग णवागि मोक्षवु विळम्बिसुत्तदॆ. अन्दरॆ देहावसानदल्लियो, कर्मावसानदल्लि बेरॆ कालवन्नु निर्देशिसिदरॆ अदर कॊनॆयल्लियो ऎन्दर्थ, इन्याकिञ्चन्यत्तुकुम् इत्यादि ई आकिञ्चन्यक्कू अनन्यगतित्वक्कू कारणवेनॆन्दरॆ- उपायान्तरगळल्लि ई अधिकारिय आज्ञाना शक्तिगळू, फलविळम्ब वन्नु सहिसदॆ इरुविकॆयू कारण. इदिल् शरण्यान्तर इत्यादि-इदरल्लि बेरॆ रक्षकरल्लियो फलदल्लियो आसॆयिल्लदॆ इरुवुदक्कॆ कारण यावुवॆन्दरॆ, 1) यथवायोणाग्राणि इत्यादि हेळिरुवन्तॆ, हुल्लिन तुदिगळु हेगॆ बलिष्ठवाद गाळिगॆ वश पट्टु आडुत्तवॆयो, हागॆ सर्वभूतगळू धातु-सर्व सृष्टिकर्तनाद भगवन्तनिगॆ, वशवागिवॆ, ऎन्दु हेळुवन्तॆ तनगू इतररिगू समानवाद भगवदेक पारतन्त्रदल्लि तीरानवाद बुद्धियू, प्रयोजनान्तरगळल्लि आसॆयिल्लदिरुवुदू सह. 1) भारत शान्तिपर्व 350-33 2) भारत अरण्यपर्व 39-29,
292
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे
प्रपत्यधिकार विशेष प्रमाणानि
इप्पत्यधिकार विशेषम् 1) “स पित्राच परित्यक्तसुरै समहर्षिभिः । श्री लोर्का सम्परिक्रम्म तमेव शरणङ्गतः” 2) (आहमत्मपराधाना मालयोकिञ्चनॆ गतिः” 3) “अकिञ्चनन्य गतिश्रण्य” 4) “अनागतानन्न काल समीक्षया दृष्टसना रोपायः” 5) “तत्पाप्तयेच तत्पादाम्बुज द्वय प्रपत्ते रन्यन्न मे कल्पकोटि सहस्रेणापि साधनॆ मसीति मानः” 6) “पुकल्लावडियेन्” ऎन्नु इवॆ मुद तान प्रमाण सम्प्रदायळाले सिद्धम्
प्रपत्तिय अधिकारगळिगॆ प्रमाण सम्प्रदायगळु,
ई आकिञ्चानन्य गतिगळिगॆ प्रमाण सम्प्रदायगळन्नु इप्रवत्यधिक रवि शेषम् ऎन्दा रम्भिसि आचाररु तिळिसुत्तार अदागि ई प्रपत्तिगॆ अधि, इंविशेषवु 2) सपित्राच इत्यादि पूवार्ध दल्लि पित्रादि सर्वरिन्दलू बिडल्पट्टवनागिद्दनु क कासुर ऎन्दु हेळिरुवुदरिन्द आकिञ्चनवु सूचित “तमेव शरणङ्गतः” ऎम्बल्लि एव इरदिन्द शरण्यान्तर वैरख्यरूप अनन्य गतित्ववु सूचित 3)
अहमपराधान
पराधान इत्यादि नान सव९पराधगळिगॆ स्थान अकिञ्चनः-ज्ञनकर्मादि सर्वगुण शून्य, आगति- प्रयोजनान्तरगळल्लि आनि ल्लदवनु, अदरिन्दागि बेरॆ रक्षकरारू इल्लदवनु 4) अकिञ्चनोनन्यगतिः, शरण्यत्वद० शरणं प्रर्प” ऎम्बुदु उत्त ई उत्तराध दल्लि शरणागति माडुवुदरिन्द, अकिञ्चानन्य गतित्वगळु प्रपत्यधिकार ऎम्बुद सञ्चित 1: अनागतानन्तकाल इत्यादि, अदृष्ट सन्तारोप - ऎम्ब.दरिन्द आकिञ्चन्यवू 6) तत्पादाम्बुज प्रपत्तॆ : इत्यादियिन्द अनन्यगतित्ववू हेळल्पट्टिदॆ. 7) पुहलॊ लावडियेन्-इवरि आकिञ्चन्यवू, उन्नडिक्कि अमर्न्नु मुन्देनॆ-इल्लि अवधारणदिन्द अनगति वू इदे मॊदलाद प्रमाण सम्प्रदायगळिन्द सिद्ध
-
रामा Roc 33-33 आ काकासुरनु तन्दॆयिन्दलू, चकारदिन्द तायियिन्दलू देवतॆगळिन्दलू, महर्षि गळिन्दलू बिडल्पट्टवनागि, मूरु लोकवन्नू सुत्ति सुत्ति ऎल्लियू तनगॆ आश्रयवु सिगदॆ, आ रामचन्द्रन कालगळल्लिये शरण हॊन्दिदनु
-
अहमस्यॆ पराधानामालिय किङ्कनोगतिः ।
त्वमेवोपाय भट् भवति प्रार्थनामति- ।
नागति दिन कासदेवेस्मिन् प्रयताम् ।
अहि (सरि 7-30) नानु अपराधगळिगॆल्ला आश्रय भूतनु नन्नन्नु नानु रक्षिसिकॊळ्ळलु आशक्कनु, निन्नन्नु बिट्टरॆ बेरॆ रक्षकरिल्लदवनु अनन्यगति ऎन्दर्थ, नीवे ननगॆ उपायवागिरु, ऎम्ब प्रार्धना रूप अध्यवसायवु तर जागति आ शरणागतियन्नु भगवन्तनल्लि आचरिसु
- वधर्मनिगॊस्मिन जात्मवेधि नभक्तिमान् त्व स्मरणारविन्दे ।
आकिञ्चन्, वव्यगति कैरळ्ळि कृष्णादमूलक शरणं प्रपद्म #
कळस्तोत्र 22, कर्मज्ञान भक्तियोगळन्न मुच्चिसलु बेकाद ज्ञानशक्तिगळिल्ल, अकिञ्चनन्नु अनन्यगति-रक्षाकान्त रविल्लदवनु करण्य निन्नॆ उदरूलवन्नु शरणुकॊन्दिद्देन
- 5), 6), . 3. det
प्रपत्तियोग्याधिकार- प्रप साधिकारत्वं
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इव्वळवधिकारम् पॆण्ट्रल् प्रपत्तु जात्यादि नियमविल्ला मैयाले साधिकारत्वं सिद्धव,
प्रपत्तिगॆ सर्वाधिकारत्व
इव्वळवधिकारम्पॆट्राल् इत्यादि, आकिञ्चन्यानन्य गतित्वरूप अधिकारवन्नु हॊन्दिद्दरॆ साकु प्रपत्तिगॆ जात्यादि नियमविल्लदिरुवुदरिन्द प्रपत्तियन्नु अनुष्ठिसलु सर्वरिगू आधिकारवुण्टु . भाधिकारिगॆ आकिञ्चन्यानगतित्वविल्लवाद्दरिन्द अ न नु
व्र पुत्तिगॆ अधिकारियागलारनु उवासनक्कॆ त्र्यवर्णिकत्वादि त्र्य
नियमवुण्टु, अपरूप्राधिकरणदल्लि अग्नि विद्या साद्यगळाद वैदिक कर्मोपासनगळल्लि शूद्रनिगॆ अधिकारवुनिषिद्धवॆम्बुदु निरूपिसल्पट्टिदॆ उपासन दल्लि वैदिक मन्त्रगळिन्दले उपक्रमोपसंहारादिगळु विद्यॆ गळिगॆ हेळल्पट्टिरुवुदरिन्द अवर्णिकरिगॆ इदरल्लि प्रवेशविल्ल प्रपत्तियल्लि अन्थह निर्बन्धगळिल्ल, स र्वरि ग आधिकारवाद तान्त्रिक मन्त्रगळिन्द प्रपत्तियन्नु अनुष्ठिसबहुदु. “नमोनारायणेतु कावाकः पुनरागम
श्ववारादियागि सर्वाधिकारत्ववु सूचितवाद रिन्द मेलॆ हेळिद आकिञ्चानन्य गतित्वगळु विनह जात्यादि नियमगळिल्लवॆम्बुदु भाव
-
अनागतानन्त कालसमीक्षयदृष्ट सन्तारोपाय निखॆल जन्तु जात शरण्य श्रीमन्नारायण तवचर णारविन्द युगळं शरणमहं प्रष्य (श्रीरङ्गगद्य) भविष्यत् कालदल्लॆल्ला संसारवन्नु दाटुव मार्गवन्नु तिळियदवनु, ऎल्ल प्राणिगळिगू रक्षकने श्रीमन्नारायण निन्न पादारविन्दगळन्नु शरणहॊन्दिद्देनॆ.
-
ताप्तयेच तत्वादाम्बुजदय प्रपत्तॆ रमॆ कल्पकोटि सहस्रापि साधनम प्रीति मानः-आ भङ्ग वन्तनन्नु हॊन्दलु अवन षदारविन्दगळल्लि शरणागति विनह कोटि सहस्र कल्पगळल्लियू बेरॆ उपायविल्लवॆम्बुदन तिळिदवनागि (वैकुण्ठ गद्य)
-
अहलहिनियुमलर् मेल् मङ्गैयुरमारा
निहरिल् पुह्मpr उलमूनुडैयाय ऎन्नॆाने । निहरि लमरर् मुक्कणङ्गळ विरुम्बुव तिरु बेङ्गडत्ताने पुहलॊल्ला वडियेन् उन्नडि अवरु पुहुन्देने ।
तिरुवाय् मॊ (6-10-10)
क्षणकालवू निन्नन्नु बिट्टिरलारॆ ऎन्दु हेळुव लक्ष्मियु नित्य वासमाडुव विशालवाद ऎदॆयन्नुळ्ळवनॆ, निनगॆ समानविल्लदॆ इरुव कीर्तियुळ्ळवने, मूरु लोकक्कू स्वामिये, नन्नन्नु रक्षिसुववने, निनगॆ समान रिल्लदॆ देवतॆगळू ऋषिगळू आसॆपडुव तिरुवेङ्गडनाधने इदरिन्द समस्तकल्याण गुणत्व, स्वामित्व, रक्षक सौलभ्यादि गुणगळु हेळल्पट्टवु उपायान्तरवू रक्षकान्तरवू इल्लद दासभूतनाद नानु निन्न पादारविन्द गळन्नु शरणु हॊन्दिद्देनॆ.
“अहलहिल्ले निरैयुम्* इत्यादियिन्द महालक्ष्मिय पुरुपकारवू, अलमेल् मङ्गैयुडैमाबार्, ऎन्दु लक्ष्मीविशिष्टनाद नारायणनु सम्बोधिसल्पट्टु, उन्नडिक्कि अवरु पुहुन्देने - निम्मिब्बर पाद रविन्दगळल्लि शरणागतनागिद्देनॆ ऎन्दु हेळुवुदरिन्द लक्ष्मियू उपाय भूतळु ऎन्दर्थ उन्नडिक्कि य ऎन्द एकवचनवु पुरुष प्राधान्य विवक्षया हेळिदॆ अष्टे
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श्रीमद्रहस्यत्रयसारे
अनरयरॆयिल् निन्न नन्नत्तु लहुम् । नॊन्नवरे मुदलाद नुडजरॆयनयराम् । वन्नडॆयुव व वक् तहदेवरुयनम् । आमिलादिय्कॆ यक्षर रिन्नरिवित्तनरे ॥१२॥
।
भादौ शक्ति भावः प्रमिति रहितता शास्त्रतः परुदासः कालक्षेपाक्षमत्वं ति नियति वशादाप तप्पिद्दु तुरिसि । एकद्वित्रादि योग व्यति भिदुर निजाधिक्रिया स्पंश्रय सशं स्वतः प्रपदन विधना मुक्तये निशाः ॥२५॥
।
इति कवितार्किक सिंहस्य सत्वत स्वतन्त्र श्री मटनाथस्य वेदा चारस्य कृतिसु श्रीमद्रह,त्रयसारे प्रपत्तियोग्याधिकरो दनुः श्रीमते निगमान्य महादेशिकय नमः
ई रीति नाद नर्म धिकार वन्नु, वे इवे वच एतूट ऎम्ब रीतियल्लि नम्म आचारर गळु स्वचाररुगळिन्द तिळिदु कॊण्डु भगवन्तनन्नु आश्रयिसुव प्रकारवन्नु नमगॆ उर्वसिद्दारॆन्दु “अन्दणरङ्गि तर्” ऎन्दारम्भिसुव वर रदिन्द आचार सार्वभौमरु निरूपिसिरुत्तारॆ
अदागि अन्दणर् ब्रार, अन्दियर्-चण्डारु, ऎल्लॆयिल् निन्न नन्नत्तुलगम् ई ऎरडु अवधिगळ वद्य इरुव ऎल्ला जातिय, नॆन्दवरेमुदलह, संसार तापा अन्तरागि परादियागि, नुडङ्गि अकिञ्चनरागि अनन्नियराय नन्दु-अरब्दवु प्रयोज ना०तरवन्नू, उवाय०रवन्नू शाण्यान्तरवन्नू सूचिसुत्तदॆ अनन्यरागि ऎन्दरॆ इवु मूरू इल्लदवरागि अन्दरॆ अवनोपायरागियू, अनन्य प्रयोजनरागियू, अनन्य शरणरागियू, बन्दु, वनतहवेन्दि वरुन्दिय बलिष्ठवाद कृपॆय न्नुळ्ळवनागि श्रमपडुव अदागि चेतनरन्नु उद्बविसलु कृषि माडुत्तिरुव नम् अन्दमिलादि नमगॆ स्वामियागि, अद्यन्तरहितनाद त्रिविध परिच्छेद रहितनादवॆन्दर्ध, जगत्कारण रूपनाद भगवन्तनन्नु, अड्डॆयुव -शरणा गति हॊन्दुव प्रकारवन्नु अन्नर् अरिन्दु नम्मल्लि परम कृपॆयन्नुळ्ळ अचाररुगळु तावु हिळिदुकॊण्डु, अरिवित्तनरे नमगॆ उपदेशिसिद्दारॆ
आदागि ई अधिकारदल्लि “प्रपत्ति 3 सर्वाधिकारवॆम्बुदु प्राचीन सम्प्रदाय परम्परॆ यागि निर्णीतवु ऎन्दु हेळल्पट्टितु
अन्तर उपायन्तरदल्लि सामर्थ्यविल्लदिरुव आकिञ्चन्यवन्नु हदिनैदु प्रकारवागि निरूपिसि ई हदिनैदु अधिकारदल्लि यावुदादरू ऒन्दन्नुळ्ळवरु प्रपत्तियन्ना करिसबहुदु हदिनारने अधिकारवे भक्तियोगक्कॆ साथकवॆन्दु भक्ता दश भाव ऎन्दारम्भिसुव श्लोकदिन्द आचाररु निरूपिसुत्तारॆ अणागि भाद् भक्तियोग, आदिपददिन्द कर्मयोग, ज्ञानयोगगळु हेळल्पडुत्तवॆ. इवुगळल्लि, तक्क भाव- शक्ति इल्लदिरुवुदु प्रमितिरहित-ज्ञानविल्लदिरुवुदु
प्रपत्ति योग्याधिकार
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शास्त्रतः परुदास* वर्णिकरल्लवॆम्ब कारणदिन्द शास्त्रमूलवाद बहिस्कृति-अन्दरॆ शास्त्रवु अवकाशकॊडदॆ इरुवुदु, कालक्षेपाक्षमत्वं कालविळम्बवन्नु सहिसदे इरुवुदु, इति-ई रीतियाद नियतिवशात् -भाग्यवदिन्द अन्दरॆ अवरवर अदृष्टवशदिन्द आवतः चतुर्भिः- प्राप्तगळाद नाल्कु धर्मगळिन्द एकद्वित्रादियोग ऒन्दॊन्दु, ऎरडॆरडु, मूरु वर इवुगळिन्द कूडिद चतुधर्म घटित समुदायदिन्द व्यतिभिदुर विविधवागि अत्यन्त भिन्नगळाद निजाधिक्रियतम्म तम्म अधिकारवुळ्ळवरु, अदागि 1) कर्मयोग ज्ञानयोगगळल्लि शक्ति इल्लदिर वुदु, 2) ज्ञानविल्लदिरुवुदु, 3) जातिनिबन्धनदिन्द शास्त्रवु अवकाशकॊडदॆ इरुवुदु 4) कालविळम्ब दल्लि सहिष्णतॆ ऎम्ब नाल्कु अधिकारगळल्लि,
(a) (1), (2), (3), (4), इवुगळु ऒन्दॊन्दु इल्लदिरुवुदु नाल्कू,
(b) 1 + 2, 1+ 3, 1+ 4, 2 + 3, 2 + 4, 3 + 4, soddayadıgæs
आरु विध.
ई मूरु मूर
(c) 1 + 2 + 3, 1 + 3 + 4, 1 + 2 + 4, 2 + 3 + 4, Jordi Hindi
इल्लदिरुवुदु नाल्कु विध
(d) 142 + 3 + 4, ई नाल्कू
हदिनैदु पङ्गडगळिगॆ सेरिदवरू अधिकारिगळु
इल्लदिरुवुदु - ऒन्दु विध ऒट्टु 15 विध भक्तियोगक्कॆ अधिकारिगळल्ल.
प्रपत्तियोग
(e) 1 + 2 + 3 + 4 * ई नाल्कू उळ्ळवरु मात्र भक्तियोगक्कॆ अधिकारिगळु,
हीगॆ 15 विधवाद अधिकारवुळ्ळ सन्तःसत्पुरुषरु, श्रीश-लक्ष्मी पतियन्नु, स्वतन्त्र प्रपदनविधिना-स्वतन्त्र प्रपत्तियिन्द, निर्विशङ्का महाविश्वास शालिगळागि, मुक्तये मोक्षक्कॆ संश्रयन्ते आश्रयिसुत्तार, वर्तमान निर्देशदिन्द ईवत्तिगू ई रीतियाद प्रपत्र धिक- 2 गळु प्रपत्तियन्नु अनुष्ठिसि मोक्षवन्नु हॊन्दुतिद्दारॆम्बुदु सूचित श्री शं” ऎम्बुदरिन्द दिव्य दम्पतिगळिब्बरू उपायवॆम्बुदु भाव
श्री मन्निगमान्त महादेशिक विरचितवाद प्रपत्रधिकारक्कॆ “सारचन्द्रिका व्याख्यानवु समाप्त
क्रियॆ नमः
श्रीमते रामानुजाय नम-
श्रीमतॆ निगमान्त महादेशिकाय नम
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