कालार्वा प्रकृतिविकृतीः कामभोगेनु दोषा
न्या लाग
प्रतिमदुरितोदरदुःखानुभूतिं
याथातथ्यं स्पपरनियतं यच्चदिव्यं पदन्त ता. कल्पं वपुरपि विदस्तितिक्षेत बनम् ॥१८॥
श्रीमते निगमान्य महादेशिकाय नमः सारचन्द्रिक व्याख्यान
मुमुक्षुत्व - मोक्षदल्लि आसॆयुण्टागुवुदक्कॆ हन्तगळु :-
हीगॆ बद्ध जीवियु स्वाभाविक सर्वविध बन्धुवाद भगवन्तन परमकारण्यदिन्द, अब्दवाद समयदल्लि यादृच्छिक स कृतगळिन्द घटितनागि, जायानान कटाक्षदिन्द संवादिसल्पट्ट सं गादिगळिन्दुण्टाद सात्त्विक बुद्धिय न्नु हॊन्दि, महत्तरवाद आचार् कटाक्षरूप दयामृत पूरितनागि शारीरक न्यायकलावगळिन्दलू उप बृंहणगळिन्दलू उपनिषत्तुगळ परम तत्पर गळन्नु निष्पकम्प्यवागि तिळिदुकॊळ्ळुत्तानॆ. अनन्तर न्यानोपासनात्मक स्वाधिकरोचितवाद ब्रह्म विद्यॆयन्नु अनुष्ठिसलु अन्तरङ्ग सहकारियाद औवदॆशीक रहस्य सारार्ध निर्णयवन्नु अपेक्षिसु पवनागि परमकार णिकराद सदाचारर कटाक्षगळिन्द वीक्षितनागि आ आचाररिगॆ अनकूल नागि अवर चरणवरिचा परायणनागि, अवर उपदेशगळिन्द, इतर ऎल्ला रहस्यमन्त्रगळिगि० तलू उत्कृष्टगळाद
गळाद रहस्यत्रय सारार्धगळन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ हागॆ अवर उपदेशगळिन्द तिळियल्पट्ट आरु अर्धगळल्लि, प्रधान प्रति तन्त्रार्थवाद जगदीश्वरर शरीरात्मभाववन्नु मॊदलु तिळिदुकॊण्डु, अदन्नु उपजीविसि बरुव अर्थ पञ्चकवन्न रहस्यत्रयगळल्लि यथास्थान तिळिदु कॊण्डु, अदरल्लियू शारीरकादि ग्रन्थगळल्लि शिक्षितवाद तत्वत्रय विवेकवन्नु रहस्य ग्रन्थगळ मूलकवागियू बहळ उपयोगवॆन्दु तिळिदु निश्चयवडिसिकॊळ्ळुत्तानॆ. अनन्तर शारीरक शास्त्रगळल्लि व्यक्तवागि हेळदॆ केवल उवदेश मात्रदिन्द तिळिदुकॊळ्ळल्पडतक्कन्थ, श्री भाष्यका रर सम्प्रदायदिन्द ब०द “लक्ष्मी विशिष्ट नारायणने न्यासोपासनात्मक अशेष ब्रह्म विद्यावेद्यनॆम्ब परदेवता वारमार्धज्ञानवन्नु रहस्यत्रय रूपक्षीर सागर दिन्द जनिसिद अमृतवॆम्बुदागि पडॆयुवनु ई दिव्यामृत रूपवाद परदेवत पारमार्थ्य
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श्रीमद्रहस्यत्रयसारे
ज्ञानव भगवद्वकुळधरवंश्यराद अन्दरॆ आ आचार परंवरॆगॆ सेरिद नमगॆ कुलधनवॆन्दु तिळिदु आ वरदेवतॆय अनुभव परीवाहवाद सर्वविध कैङ्कय्यगळु भोग्यवादुवु मत्तु हृदयङ्गम वादवु ऎन्दु निश्चयिसि अन्धह दिव्यमिधुनद प्रसादन प्रधानवाद ब्रह्म विद्यॆयन्नु (न्यानो वासनॆगळन्नु आन ष्टिसलु त्वरॆयुळ्ळवनागुत्तान. अनन्तर स्वाधिकारोचितवाद आ ब्रह्म विद्यॆयन्नु (न्यास अधवा उपासनॆयन्नु ) अनुष्टिसलु याव आडचणॆगळू बारदन्तॆ इरलु, प्रवृत्ति धर्वगळल्लि विरक्तनागि निवृत्ति धर्मगळल्लि प्रवृत्तनागुत्तानॆ. रसिकनाद ई बद्ध जीवि, वरनु वुरुषार्ध कल्पतरुविगॆ अङ्कुर धर्मगळु ब्रह्मविद्यॆय न्नु अन षिसलु अधिकारवन्नुण्टु माडुत्तवॆ. वन्नु संवादिसिकॊडुत्तवॆयॆन्दर्ध
परमशेषि कैङ्कय्य रूपगळागि ई निवृत्ति आन्दरॆ मुमुक्षुत्व
स्वतन्त्रवाद न्यासविद्यॆयन्नु अनुष्ठिसलु प्रवृत्तनादवनिगॆ, आ अधिकारवन्नु हॊन्दलु निवृत्ति धर्मगळन्नु अनुष्टिनबेकॆन्दु हेळुवुदु सरिये ? पुरुषकार प्रपत्तियिन्दले मोक्षार्थशरणागत्यनु ष्ठ नक्कॆ अधिकारवु लभिसुत्तदॆयल्लवे, हागिरुवाग निवृत्ति धर्माचरणॆयु बेके, ऎम्ब संशयवु उदयिसुत्तदॆ इदक्कॆ समाधानवेनॆन्दरॆ अनादियाद संसारदल्लि पुरुष कार प्रपत्तियन्नु आन ष्ठिसल ई जन्मदल्लि इल्लियवरॆगॆ विळम्बवु एर्पट्टिरुवुदु प्रत्यक्ष सिद्ध इदक्कॆ प्रतिकूलवाद प्रकृष्ट पापवे कारण आ पापद प्रशमनवू “धर्मेण पापमपनुदति धर्मानुष्टानदिन्द पापवन्नु होगलाडिसिकॊळ्ळुत्तानम्ब श्रुति प्रतिपन्नवाद निवृत्ति धर्माचरणॆ यिन्दले साध्य इ मांस विशेषः - उवासनाधिकारवु अनभिसंहितफल सङ्गकर्तृत्वादि त्याग पूर्वकवाद *र्म योग ज्ञानयोगगळिन्दले सम्पाद्य - न्यासविद्याधिकारवु - यधाबल आत्मवञ्चनॆ इल्लदॆ सर्वशास्त्रीय नियमानुवर्तनदिन्द कूडि, फलसङ्ग कर्तृत्वादि त्यागदिन्द कूडिद वण श्रम धर्मानुष्ठान पूर्वक परमशेषिचित्तरञ्जन प्रदक्षिण प्रणाम सङ्कीर्तन ध्यानजवादि गळिन्द सम्पादिसल्पडुत्तदॆ. ई अंशवु शास्त्रीय नियमनाधिकारदल्लि इन्दनियमानुवर्तनं, पूर्णोपायरल्लादवधिकारिहळुक्कु उपाय पूर्ति विरोधिये शमिप्पित्तुकॊण्डु भगवत्पसादनमायिरुक्कु” ऎन्दु स्पष्टवागि आनुग्रहिसल्पट्टिदॆ. शास्त्रीय नियमनाधि कारवु प्रपन्त्यवॆम्बुदु संशयविल्लदुदु,
वस्तरः पुरुषकार प्रपदनवु भक्ति प्रपत्ति ऎम्ब ऎरडु विद्यॆगळिगू आधिकारवन्नु पूर्ति गॊळिसुत्तदॆ. भक्तियोगनिष्ठन, अङ्ग प्रपत्तियन्नु अनुष्ठिसबेकु, भगवत्पत्तियन्नु अनुष्ठ सल) तडॆयाद उपायविरोधि पापवु पुरुषकार प्रपत्तियिन्द निवर्तिसल्पडुत्तदॆ, “प्राय श्चित्त प्रसङ्गेतु सर्वपाप समुद्रवे । माव कुन्देव देवस्य महिषीं श्रयणं श्रयेत् ॥” “ऎम्ब वचनवु स्वतन्त्राङ्ग प्रसत्यु भयसभारण ” सर्ववाद प्रायश्चित्तगळु भक्ति प्रपत्तिगळॆन्द भाष्यादिगळल्लि निर्णीत तदुनुष्ठान प्रसङ्गदल्लि श्री प्रपत्तिय स्व०त्राङ्ग प्रपत्तिगळिगॆ परकवॆम्बुदु श्लोकतात्पर “आत्मविद्याचदेवित्वं निव.क्ति फलदायिनी”, ऎम्बल्लि ई अंशवु अभि प्रेतवागिदॆ. यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या ऎन्दु ऎल्ला विद्यॆगळू लक्ष्मिगॆ अधीन. अन्दरॆ अवळ कटाक्षदिन्द लभिसतक्कावु. हागॆये तत्वज्ञान सामान्यवू लक्ष्मिय अनुग्रह
मुमुक्षुत्वाधिकार
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दिन्दले सम्पारनॆम्ब दु निश्चयिसडुत्तदॆ ई अंशवु स्थिरीकरण भागो पक्रमदल्लि “अस्तुमे ऎन्नपेक्षित्ताल् अस्तुतेतव सर्वंसम्पत्ते, ऎन्हिरतिरुमहप्पाशुरम् ” ऎम्बश्री सूक्तियल्लि व्यक्तवु श्रीमत्वमुक्ताकलापद आरम्भद य 11) लक्ष्मी नेत्रोत्पलश्री : इत्यादिगळल्लि लक्ष्मिय कीर्तनवु सर्वविद्यॆगळू अवळ अधीनवॆम्ब अभीप्रायदिन्द ६चररिन्द अनुष्ठिसल्पट्टिदॆ. तदाचॆ, पुरुषकार, प्रपदनानन्तर ब्रह्म विद्याविरोधि पापगळन्नु होगलाडिसलु बेरॆ यावुदू अवेक्षॆयिल्ल सपकर वुरुषकार प्रपत्तिय निवृत्तिगू (सिद्धिगू), अकिञ्चनाधिका रिगू सह स्वाधिकारोचितवाद पुर.षकर प्रपत्ति विरोधियाद भगवग्रह रूपपापवु सदाचारर अनुग्रहद हागॆ परमैकान्त्यनुरूपवाद निवृत्ति धर्मानुष्ठानदिन्दले होगु इदॆयाद्दरिन्द अन्तह निवृत्ति धन गळन्नु अवश्य आनष्टिसबेकॆन्दु आचारर हृदय निवृत्ति धन ९ ळू श्री मन्मूलमन्त्रदिन्द निश्चय वाद स्वरूपयाधा न न्नु तिळिदु अनु सबेकॆन्दु हेळिरुवुदरिन्द रहस्यत्रयार्ध व्याख्यानवन्नु आचाररु निबन्धिसिरुवुदु ई अधिका रक्कॆ सङ्ग मुगिदॆ
ऎल्ला
ई अभिप्रायदिन्द आचाररु ई अधिकारदल्लि कलावर्तान् ऎन्दारम्भिसि अनुग्रहिसुत्तारॆ कालार्वा कालद सुळिगळन्नु, अन्दरॆ, क्षण, दिवस, पक्ष, मास, संवत्स, युग कल्पा दिरूपगळाद सळगळु. महाप्रवाहदल्लि सुळिगॆ सिक्किदवनु हेगॆ नीरिनल्लि मुळुगि, तेलुत्ता सुत्तुत्तिरुत्तानो, हागॆ संसार सागरदल्लि कालरूपवाद सुळिगळिगॆ सिक्कि गर्भजन्न जरामरणादि परिभ्रव णदिन्द अतिदुस्सह अनुवरत अत्यन्त परवश्यतापादक केशगळिन्द कूडि स्वल्पवू विशान्त्रियिल्लदॆ जीवनु कष्ट पडुत्तिरुत्तानॆन्दु सूचित. प्रकृति विकृति - मूलप्रकृतियनु अदर एकरवाद महदहङ्कारादिगळेनु, इवुगळन्नु निदन्-तिळिदवनागि ऎम्बुदरॊडनॆ अन्वय मल प्रकृतिगळु महाप्रळयदल्लि जीवनिगॆ अत्यन्त जैनसङ्कोचवन्नुण्टु माडुत्तदॆ. मह दादिगळु सृष्टिदशॆयल्लि शरीरेन्द्रिय सम्बन्धद्वारा देहात्म भु, स्वतन्त्रात्म भ्रमगळन्नुण्टु माडुत्तवॆ ऎम्बुदन्नु तिळिदु ऎन्दन्वय, कामभोगोषु-काम्यन्त इति कामा..आसपडतक्कवु ऐहिकामुस्मिक शब्दादि जन्म सुख विशेषगळु, दोषान्-अल्प अस्थिर दुःख मित्यादि दोषगळन्नु, ज्वालागर्त प्रतिम अग्नि ज्वालुरूपवाद हळ्ळक्कॆ समानवाद दुरितोर्द दुःखानुभूतिम पापगळिगॆ उत्तरफलगळाद कुम्भीपाकादि नरकानुभवगळन्नु पापगळन्नु माडुव कालदल्लि स खवागिद्दरू फलगळन्नु अनुभविसुव कालदल्लि बहळ कृशवागिवॆ ऎम्बुदु इल्लि भाव, स्वपरनियतं याथातथ्यं -तनगू भगवन्तनिगू व्यवस्थितवाद ई धावस्थितवाद स्वरूप आदागि शेष शेषिभाव सम्बन्ध मच्च व्यं पदं, तत्- याव परम पदवू-अप्रा
- लक्ष्मिनेडलश्री सतक परिचय देश संवर्धमानः
नाभी नाळीक रिं खन्मधुकर पटली दत्त हस्तावलम्बः । अस्माकं सम्पदो घानविरल तुळसी दाम सं जात भूमा कवळिन्दि कान्तिहारि कलयतु कुशलं काळ मा कैटभारे ।
(तत्वमुक्ता कलाप मङ्गळ श्लोक)
मुमुकु स्वाधिकार
आत्मादेहक्किन्तलू ईश्वरनिगिन्तलू बेरॆ
225
इप्पडि इवर आध्यात्म शास्त्रङ्गळाले तॆळिद्दु स्वयं प्रकाशत्व, ज्ञातृत्व, त, भोक्तित्व, शरीर, अणुत्व, नित्यत्व, निरवयव, छेदन दहन केदन शोष द्यनरत्व, वृद्धि प्रास रहित स्वरूपादिगळाले आवुक्कु विशेष भूतदेह यादि वैल क्ष ण्य कण्णु, इवनुडैय परलोकगमन देहान्तर प्राप्ति
स्थान विशेषवो, अदन्नू सह-त", तत् ऎम्ब शब्दगळु प्रसिद्धि द्योतक. अदागि परिपूर्ण नुभव प्राप्तिहेळुवाद परमपदक्कॆ पूर्वोक्तसकलदोषराहित्यवू, निरतिशय सुखाव वू, प्रमाण प्रसिद्धवॆम्बुदु तात्पय्य, काराकल्पंवपुर-कारागृहक्कॆ सदृशवाद देह -राजकुमार तुल्यनाद तनगॆ नित्यनू, सदृशवाद भोगार्द इरुवाग अदक्कॆ प्रति ‘कवागि अत्यन्तानुचित स्थानवाद कारगृहतुल्यवाद प्राकृत शरीरवन्नू, अदरल्लि बद्दना न तन्नन्नू निदन् तत्व प्रयाधिकारादिगळिन्द चन्नागि तिळिदुकॊण्डु कक्षेत बन्धव रुताने कर्मकृतवाद प्रकृतिसम्बन्धवन्नु सहिसिकॊळ्ळुत्तानॆ. इतर प्राकृत विषयगळल्लि * दोषगळन्नू, परमपदद वैलक्षण्यवन्नू तनगू भगवन्तनिगू इरुव स्वस्वामिभावादि बन्धगळन्नू अदर मूलक दाय प्राप्तवाद भगवत्पाप्ति तङ्कर रूप धनवन्नू पडॆयलु 8 प्रवर्तिसुत्तानॆम्बुदु तात्पय्य,
देहक्किन्तलू ईश्वरनिगिन्तलू बेरॆ
हीगॆ बन्धवन्नु सहिसदॆ मोक्षदल्लि इच्छॆयुण्टागुव रीतियन्नु क्रमवागि, इप्पडि इद्द ग ऎन्दारम्भिसि तिळिसुत्तारॆ. अदागि प्रधान प्रतितन्त्राद्यधिकार चतुष्टयगळल्लि हेळिर * शरीरात्मभाव सम्बन्ध, अर्थपञ्चक तत्वत्रयगळ विवेक, परदेवता पारमार्थ्य विष गळन्नु उपनिषत्तुगळिन्दलू, सात्त्विक इतिहास पुराणगळिन्दलू आळ्वारुगळ श्रीसूक्तिगळिन्दलू दु-संशय विपरगळिल्लदे तिळिदुकॊण्डु, जीवनु, स्वयं प्रकाशत्व, ज्ञातृत्व, कर्तृत्व, कृत्व, शरीरत्व, अ णु त्व, नि त्य त्व, निरवयवत्व, छे, धन, दहन, कूदन, षणाद्यनर्हत्व, वृद्धि, (दॊड्डदागुवुदु), प्रास (चिक्कदागुवुदु) रहितवाद स्वरूप * कूडिदवनागि, देहेन्द्रियगळु ई गुणगळिन्द बेरॆयागिवॆ, अन्दरॆ जडत्वादिगुणगळिन्द
निगिन्त बेरॆ, आत्मा देहेन्द्रिय विलक्षणनु अन्दरॆ देहक्किन्तलू, इन्द्रियगळिगिन्तलू आर यादवनु ऎम्बुदन्नु, ममशरीर, ममेन्द्रियं, अडञ्जानामि, इत्यादि व्यतिरेक प्रत्यक्ष नगळिन्द तिळिदुकॊळ्ळुत्तानॆ. हीगॆ तिळिदुकॊळ्ळुवुदरिन्द तानु परलोकगळिगॆ होगि देहान्त न्नु पडॆयलु योग्यतॆयुळ्ळवनॆम्बुदन्नु निश्चयिसुत्तानॆ. इदरिन्दागि स्वर्गलोकक्कॆ होगि तानुभव माडलु शक्यनु. हागॆये मोक्षवन्नु पडॆदु मोक्षा नन्दवन्नु पडॆयलू तॆयुळ्ळवनॆन्दु तिळिदुकॊळ्ळुत्तानॆ. इदरिन्दागि सामान्यवागि लोकोत्कर्ण पुरुषार्थ पडॆयलु योग्यवॆम्बुदु तिळियुवहागॆ पापगळिगॆ शिक्षारूपदल्लि नरकदल्लि बीळुवन्तह ऎ०तर केशगळु सम्भविसुत्तवॆयॆन्दु तिळिदु अदक्कॆ हॆदरि आ नरकपतनादिगळिगॆ कारणगळाद 3 कर्मगळन्नु माडदॆ निवृत्तनागलु यत्निसुत्तानॆ.
名
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श्रीमद्र हस्यत्रयसारे
नरक
योग्यत्व निश्चयत्ताले सामान्यन लोकोस्कर पुरुषार्थयोग्यराय हतनादि जन्मानर कोशगळुक्कळ, अवत्तिनारणळिल् निन्नुम् निवृत्तराय, यत्व, विधेयत्व, शेषाल्प शक्ति त्याणुत्व ज्ञान संशय विपर्य दुःखादि योग्यत्वा शुभाश्रयादिहळाले युज्ञान विशेष्यभूतेश्वर व्यावृत्ति निश्चयत्ताले भगवच्च रूपमान स्वरूप प्राप्त वैभव अपेक्षॆक्कयोग्यराम् :
3
भगवङ्कर् विरोधि आहङ्कार ममकार निरसन
सापेक्षित सहमान तिरुम कॊट्टु सारतमारण्णकैयनुसक्कणोदु प्रथम पदल् तृतीयाक्षरत्ताले प्रतिपन्न मान ज्ञानक्काद्यनु सन्धानत्तालॆ देह तदनुबन्धिहळिल् वरु अहार ममकारकैयुव, प्रथमाक्षरल् लुप्त चतुरियाले प्रतिपन्न मान तादर्थ्यत्ताले देहातिरिक्तात्म स्वरूपतद्गुणण्ण आल् (1) “त्वं मे हं मे” ऎन्नर श्लोर्क पडिये तनक्कुरिष्ट युण्णाह निनैक्किर
देहक्किन्तलू, ईश्वरनिगिन्तलू जीवातु बेरॆयादवनॆम्ब ज्ञानद फल-
I
आधेयत्व इ८९ आनन्तर प्रधानप्रदन्ताधिकारदल्लि निर्णी वाद इर, जीवनु धेयप्प (धरिसल्पडुवुदु) विधेयत्व (नियमन) तर्ष (अधीनतॆ)गळिन्दलू, तत्वत्र राधिकारद र्नितवाद प्रकार अणु, विषय (व्यत ज्ञान संशयगळिन्द कूडिरुवुद न्द कर्म सम्बन्धवाद ज्ञान सङ्कोच विकासगळन्नवनॆन्दु तिळिदु, संसार बङ्गनदिन्द ऒक्कॆ आश्रयनागिरुवुदन्नु तिळिदु कॊण्डु परदेव पाठाभ्याधिकारद निर्णीतव रीतियल्लि, पूर्वद धर्मगळगॆ विरुद्ध वाद धर्मगळन्नु - ०ध (ईश्वरव्यावृत्ति निश्चयत्ताले) प्रकारिभूतनाद ईश्वरनिगिन्त (शिय ः पति गण्ड इन बेरु ादरॆ ) ऎम्ब न तिळि द * भूनाद (भगवङ्कर रूपमान इत्यादि) भगवन्तनिगॆ कैन्तर माद वुदॆम्ब स्वरूप प्राप्तवाद वैभववन्नु आसरि योग्यनाग तानॆ हेगॆन्दरॆ शेषादि ज्ञानिल्लवादरॆ गं वु इनिग पुरुषार वॆन्दु तिळियलारनु विधेयत्ववू इदक्कॆ सहकारि भगवन्तनिगॆ अप्पधगवन ऎन्दु तिळिदु सर्वदा आ कैङ्करवन्नु अपेक्षिसलु आधेय वु कारणवाग इद तानु अल्पवनॆन्दु तिळियुवुदरिन्द सर्वशक्त नाद भग न्तनिगिन्त अन्यनु (ईश्वरव्यावृत्ति ऎम्ब निश्चय वू सह स्वरूप प्राप्तवाद कैङ्कय्य वन्नु माडलु अपेक्षॆयन्नुण्टुमाडुत्तदॆ जीवनु तानु सर्वशक्तनु, विभव, अज्ञान सङ्घ यादि दोषरहितनु, शुभश्रय वाद शरीरदिन्द कूदवनु ऎन्दु तिळिदरॆ अन्त अ ईश्वरनन्दे भाविसलु अवकाशवेर्पट्टु ईश्वर कैन्तरापेक्षये इल्लदवागि आगुत्तानयल्लवॆ. आग ईश्वर कैङ्करावेक्षॆयु घटिसुवुदिल्लवल्लवे.
भगवङ्कर् विरोधिगळाद अहङ्कार ममकारगळ निरसन ज्ञान :
:-
अनन्तर अष्टाक्षरदल्लि कैङ्कर विरोधि निरसन स्थलगळन्नु ऎत्ति तोरिसि अर्थपञ्चकाधिकार दल्लि हेळिरुव ज्ञानवू मुमुक्षुत्व साधकवॆन्दु सर्वापेक्षित सङ्ग्रहमानवॆन्दारम्भिसि आचाररु निरूपिसुत्तारॆ, अदागि मुमुक्षुवु भगवङ्करक्कॆ विरोधिगळाद आहङ्कार ममकारगळन्नु सवासनवागि बिडबेकु, सर्वापेक्षिर्तार्धसङ्ग्राहकवाद अष्टाक्षरदल्लि, सारतमवाद अर्धगळन्नुमुमुक्षत्वाधिकार-
227
अहार ममकार युन्, मध्यमाक्षरलवधारणार्थत्ताले ‘अन्यशेषभू तोहं” ऎन्नुम्, “ममान्यषि” ऎन्नुम् वरुम् अहारममकारङ्गधैयुम्, मध्यमपदल् प्रतिपन्न मान निषेध विशेषत्ताले स्वरक्षण व्यापार वृत्त वरु निरपेक्ष स्वान्त निरुपाधिक शेषित्याभिमान रूपल्गळान अहारममकार टैयुम्, इन्द निषेध सामर्थ्यनन्ना ले तृतीयपदल् चतुर्थियालभिप्रेत
अनुनन्धिसुवाग “ॐ” ऎम्ब प्रधव, पदवन्नु अ-उम् ऎन्दु विभजिसि अदरल्लि “म” ऎम्ब मूरने अक्षरदल्लि एने, मन अवबोधने ऎम्ब धातुविनिन्द प्रतिपन्नवाद, ज्ञान त्याज्यनु सन्धानदिन्द (आदिशब्ददिन्द - अणु स्वरूपनु) जीवनु देह मत्तु अदन्नु अनुबन्धिसि बरुव पुत्रादिगळल्लि उण्टागुव अङ्कार ममकारगळन्नू (देहवे आत्मा ऎम्बुदु अहङ्कार, नन्न मक्कळु नन्न स्वत्तु इता दिगळु म म क र आत्मज्ञानस्वरूपनु ज्ञानग णकनु
नम कार ऎन्दु तिळ यु वु द रि०द जडवाद देहक्किन्त तानु ब र य न नु ऎ० दू तिळिय तानॆ. इदरिन्दागि अहङ्कारवु निव ई वा ग त दॆ. हागॆये आयव ऎम्ब अनु सन्धानदिन्द तानु परतन्त्रनु ऎन्दु तिळिदु, अदरिन्दागि स्वतन्त्रात्म भ्रमवॆम्ब ममकारवु ओदल्पडुत्तदॆ. मुन्दॆ हेळुव आडियरुत्तु ऎम्ब शब्ददॊडनॆ अन्वयिसबेकु, ॐ ऎम्ब प्रथमा क्षरदल्लि आय ऎम्बल्लिय लुप्त चतुर्थियिन्द प्रतिपन्नमान-तिळियल्पट्ट तार्ददिन्द अवनिगे सेरिदवनु ऎम्ब ज्ञानदिन्दागि देहक्किन्तलू बेरयाद आत्म अदर ज्ञानादि गुणगळल्लि 1) त्वं मे आरंवॆ ” ऎम्ब श्लोकद प्रकार तनगॆ स्वातन्त्र्यवुण्टॆन्दु तिळियुव अहङ्कार ममकार गळन्नु प्रणवदल्लि मध्यमाक्षरवाद “ई” ऎम्ब एवकाररार्थदिन्द, आन्यशेषभूतह- अन्यनिगॆ नानु शेष भतनु ऎम्बुदु अहङ्कारद मातु, ममान्यषि
ननगॆ अन्यनुशेष ऎम्बदु ममकारद मातु, ई रीतियाद अहङ्कार ममकारगळन्नू (बिडुवनागुत्तान) मध्यमपदल् प्रतिपन्न मान मध्यमपद - न म : ऎम्बुदु न, म म ऎरडु पदवागुत्तदॆ इदरूडनॆ “स्वातन्त्र्य’ ऎम्ब पदवन्नू, “इषित्वं” ऎम्ब पदवन्नु * रिसिकॊण्डर “नममस्वतन्त्र्यम्”, “नमन शषित्वम्” ऎन्दागुत्तदॆ इल्लि निषेध्यवा दद्दु, स्वातन्त्र्य मत्तु शेषित्व ई निषेध विशेषदिन्द स्वरक्षण स्वव्यापारवन्नु उद्देशिसि बरुव निरपेक्ष स्वातन्त्र, निरुपाधिक शषित्ववॆम्ब अन्दरॆ तन्नन्नु रक्षिसिकॊळ्ळुव व्यापारदल्लि इतरा पेक्षॆयिल्लदॆ शषि (यजमाननु) अहं-नानु, ऎम्बुदु अहङ्कार, स्वरक्षणार्थद व्यापारदल्लि मम- ननगॆ निरपेक्षवार स्वातन्त्रविदॆ मम-ननगॆ स्थिरवेक्षवाद शेषित्ववु इदॆ ऎम्बुदु ममकार, इवुगळन्नू बिडुवनागुत्तानॆ अनन्तर इन्निषेधसामर्थ्यन्नाले नममस्वातन्त्रम् - नममशेषित्वं, ऎन्दु स्वातन्त्र्य शीषित्वगळन्नु निषेधिसुव न कारद निषेध सामर्थ्यदिन्द मूरने पदवाद “नारायणय” ऎम्बल्लि “आय.” ऎम्ब चतुर्थि विभक्तियल्लि अभिप्रेतवाद भावियान मोक्षदशॆयल्लि उण्टागुव, भगवङ्कर परन्तानुभववाद- अन्दरॆ भगवदनु
- ई श्लोकवन्नू इदर अर्धवन्नू 28ने पटदल्लि नोडि
- ० द
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श्री मद्रहस्यश्रयसारे
હૈ
माय् भावियान कैर पर्यनानुभव माहिर फल वृत्तविप्पोदु फलान्त रानुभव न्यायाले वरुव, स्वाधीन कर्तृत्व भोक्तित्व सारकर्तृत्व भोक्तित्व भ्रमरूपळान, अहच्चारममकारकैयुव यथायोग्यं, आर् माहवु, शाब्द माडवु, अडियरुत्तु इप्पडि स्थिरप्रतिष्ठित ज्ञानराय्,
शब्दादि विषय कैवल्यानु भवङ्गळिलुळ्ळ दोषङ्गळु, भगवदनुभवत्तिन् मेयुम् 1) “अर्पशारङ्गळ कुवैत्त
हन्”
- कण्णु कट्टुत्तु मॊग्गुट्टु लु मैरुवि कण्ण विन्सरिवरियवळ विल्लाचिट्रस्टम्
भववु परिवहिसि कैङ्कय्य रूप फलवन्नु इस्रोदु ई बद्ध दतॆयल्लि, फलान्तरगळन्नु अनुभवि सुवाग उण्टागुव रीतियल्लि, स्वाधीन कर्तृत्व भोक्तित्व स्वार्थ कतृत्व भोक्तित्वभ्रम रूपङ्गळान- नानु (अं) कर्त, नानु अ०) भोक्का, ननगॆ (मम) कर्त, ननगॆ (ममु ) भक्ष्यत्व- स्वार्धक्कागि कैङ्करवन्नु अहं-नानु माडुत्तेनॆ -स्वार्थवागि फलवन्नु अहं नानु भुजिसुत्तेनॆ ऎम्बुदु अङ्कारद मातु हागॆये, ममस्वाधीन कर्तृत्वं, मन-ननगॆ कर्तृत्ववु अधीन, मनस्वाधीनं भूत, ननगॆ फलान भववु आधीनवॆम्बुदु ममकारद मातु ई रीतियाद भ्रमरूववाद अहङ्कार ममकारगळन्नु बिडुववनागुत्तानॆ. यथा योग्यं इत्यादि- देह मत्तु अदन्नु अनुसरिसि बरुव विषयगळल्लि उण्टागुव अहङ्कार मनु कारगळु, जीवनु ज्ञानस्वरूपनु ज्ञान गणकनु ऎन्दु अनुसन्धान माडुवुदरिन्द, निवृत्ति युण्टागुत्तदॆ, ऎन्दु अर्थ शेषादनु सन्धानदिन्द स्वरूपतदुनुबन्धिगळल्लि उण्टागुव, “नानु स्वतन्त्र” इत्यादिगळ निवृत्तियु आर्थ बाकियवु इन्थह अनुसन्धानविल्लदॆ उण्टागुवुवु शाब्द. इन्तह अहङ्कार ममकारगळन्नू आडियरुत्तु-सवासनवागि छेदिसुववनागि अन्दरॆ ई रीतियाद ऎल्ला अहङ्कार ममकारगळन्नु सवासनवागि त्यजिसुवन्तॆ, स्थिरप्रतिष्ठित ज्ञान राय् स्थिर अचञ्चलवागि दुर्वादिगळिन्द भेदिसलु अशक्यवाद ज्ञानवन्नुळ्ळवनागुत्तानॆ
शब्दादि विषयगळ मत्तु कैवल्यगळ दोषगळु भगवदनुभवद श्रेष्ठतॆ
हीगॆ स्थिर प्रतिष्ठित ज्ञानवु इद्दरू, कुद्र पुरुषार्थगळल्लि आसॆयुण्टादरॆ मुमुक्षु त्ववु उण्टागुवुदिल्लवॆन्दु आजाररु अल्पसारङ्गळ इत्यादियागि निरूपिसिरुत्तारॆ 1) अक्ष शारङ्ग इत्य अल्पसारगळाद विषय सुखगळन्नु सुत्तु-रुचिनोडि, अहन् प्राकृत सुखगळल्लि आसॆयिन्द, भगवन्तनन्नु त्यजिसिबिट्टॆ. (2) कण्डु केट्टुत्तु इत्यादि कण्णु,
- किर्पन् किल्लेन् ऎलन् मुननाळाल्
अल्पशारङ्गळ सुत्हनिन्देन् । पप्पायिर
नन्नूर् जोदित्ता
उयिर् शयद परमा, निन्
नसुहुवुदु विजान् 1
(SC5D205* 3-2-6)
(2). 3. nc.
मुमुक्षुत्वाधिकार-
- “र्त प्रसन्ने कमिहास्त्र लभ्यं धार कारलमल्प कास्तॆ” 1 4) “आवत्तु फलं तेषान्तद्भवत्यल्प मेधसां,”
229
किवि, त्व, मूगु, नालिगॆ, ई ऐदु ज्ञानेन्द्रियगळ मूलक शब्द स्पर्शरूप रसगन्धवॆम्ब विषय सुखगळन्नु अनुभविसि, तॆरिवरिय पञ्चेन्द्रियगळिगॆ गोचरवागद अळविल्ला- इन्द्रियानु भवगळिगिन्त मेलाद, शिट्रन्स-भगवदुनुभवक्किन्त कीळाद अल्पसुखवाद आत्मानुभवरूप कैवल्य,
-
तस्मिन् प्रसन्नॆ इत्यादि आ भगवन्तनु प्रसन्ननादरॆ नमगॆ सिगदॆ इरुवुदु एनु, अपरि मितवाद मोक्षवू सिगुत्तदॆ धमार्धकामगळु साकु अवु अल्पगळु, बेकिल्ल
-
अन्तवत्तु फलन्तेषां इत्यादि ऐहिक पुरुषार्धगळल्लि आनॆयुळ्ळ अल्पबुद्धियुळ्ळ वरिगॆ आ फलगळु परिमितगळु
पूर्वकालगळॆल्लॆल्ला, शास्त्रविहितवाद कर्मगळन्नु माडलु शक्तनु, निषिद्ध कर्मगळन्नु बिडलु शक्तनु ऎन्दु योचिसदॆ अल्पसारगळाद प्राकृत विषय भोगगळन्नु अनुभविसुत्ता, भगवन्तनाद निन्नन्नु बिट्टॆ, अनेकानेक साविर जीवराशिगळन्नु सृष्टिसिद भगवन्तने, निन्न शुभाश्रयवाद ज्योतिरूपवाद पादपद्मगळन्नु नानु ऎन्दिगॆ हॊन्दलि निन्न पादगळन्नु हॊन्दुवन्तॆ ननगॆ अनुग्रहिसुवुदु निनगॆ दॊड्ड कॆलसवे
- कण्डु कट्टुट्टु मॊन्दुण्डुलु, बिङ्गरुव
कण्डविस्टम् तॆरिवरिय अळविल्ला ट्रस्टम् ।
ऒन्दॊडियॊळ् तिरुमहळ० नियम निलानिर
कण्डशर् कण्डॊन्देन् अटैन्देन् उन् तिरुवडिय ।
(305503 4-6-10)
उज्वलवाद बळॆगळन्नु धरिसिरुव महालक्ष्मियू महाविष्णुवू आद नीनू श्रीवैकुण्ठदल्लि बिजय माडिसिरुव चातुरवन्नु साक्षात्करिसिदनन्तर पञ्चेन्द्रियगळिन्द अनुभविसल्पडुव प्राकृत सुखगळन्नू अवुगळिगिन्त मेलाद कैवल्य सुखदन्नू सवासनवागि बिट्टॆ निन्न पादपद्मगळन्नु आश्रयिसिद्देनॆ.
- तस्मिन प्रसन्ने किमिस्वालं धर्मार्थकाम्यरलमल्प का ।
समाश्रितुत् धर्मतरोरनन्तान्निस्संशयो मुक्ति फल प्रपात #
, . (1-17-91)
भगवन्तनु प्रसन्ननादरॆ सर्ववू लभिसुत्तदॆ, ऐहिक पुरुषार्धगळु अल्पगळु अनित्य. अवुबेकिल्ल अनन्तवाद धर्म वृक्षवन्नु (भगवन्तनन्नु) आश्रयिसुवुदरिन्द मोक्षवॆम्ब फलवु (नम्म कैयल्लि बन्दु) बीळुवुदु निस्संशय.
- अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्प मेधसाम्
देवास् देवयजोयान्ति दुक्तायान्ति मामपि #
nes(7-2-3)
इन्द्रादिगळन्नु मात्र पूजिसुव अल्प बुद्धियुळ्ळवरिगॆ सिगुव फलवु अनित्यवु, देवतॆगळन्नु पूजिसुववरु देवतॆगळ सायुज्यवन्नु हॊन्दुत्तारॆ आदे कर्मगळु नन्न आराधन रूपवागुवु ऎन्दु तिळिदु फलदल्लि आसॆ ल्लदॆ नन्नल्ले आसॆयुळ्ळ भक्तरु नन्नन्ने हॊन्दुत्तारॆ फलदल्लि आसॆयुळ्ळवरु आ फलानुभवगळन्नु हॊन्दि क्रमेण वैराग्यवन्नु हॊन्दि नन्नन्नु पडॆयुत्तारॆ,
230
श्रीमद्रहस्यत्रयसारे
- “आनित्यसुखं लोकमिमं प्राप्य भजमां” । 6) “महाबलात्म हावीराननन्तधन सञ्चर्या । गतानालेन महता कथा शेषान्नराधिर्पा ॥ श्रुत्यान पुत्र दारागृहक्षेत्रादिकेपि वा । प्रवादवा कृतप्रज्ञ ममत्वङ्कुरुते नरः ॥” 7) “सर्व० दुःखमयञ्जगत्
8; “स्वर्गपिताभीतस्य क्षयिस्कॊंर्डि निवृतिः ।
- अनित्य मसुखं लोकं इत्यादि अब्बरवू, दुखः मिश्र सुखवू आद ई लोक वन्नु पडॆदिरुव नीनु इदरल्लि आसॆयन्नु ऒट्टु शाश्वतवाद सुखप्रदनाद नन्नन्नु कृष्ण
वरमात्मनन्नु आश्रयिस
-
महाबलान्-इत्यादि महापराक्रम शालिगळाद मत्तु अनन्तैश्वय्यगळिन्द कूडिद राजरुगळु बहळ कालद नन्तर तम्म चरित्रॆ मात्र उळियुवन्तॆ होगिबिट्टरु. ई ऐश्वरगळु शाश्वतवल्ल आद्दरिन्द ई चरित्रॆयन्नु केळिद पण्डितनु हॆण्डति मक्कळु मनॆ मर हणकासुगळल्लि ममत्व-नन्नदु ऎम्ब अभिमानवन्नु इडुवुदिल्ल. ऎल्लवू नश्वरवादुवु ऎन्दर्ध.
-
सर्वदुःखमयं जगत्-प्राचुय्यार्थदल्लि मयट् प्रत्यय, प्राकृतवाद ऎल्ला सुख गळू दुःख प्रचुरवागिवॆ.
-
स्वर्गपि इत्यादि स्वर्गदल्लि सुखवे अल्लवे ऎन्दरॆ मुन्दॆ अन्दरॆ सुखनिमित्तवाद पुण्यवु मुगिद नन्तर भूलोकक्कॆ बीळुत्तॆनम्ब भयवु तन्निमित्तवाद दुःखवू जतॆयल्ले इरुत्तवॆ. आद्दरिन्द स्वर्गवासिगू क्षेमविल्ल.
-
किम्पुनः ब्राह्मणाः पुण्या भाराजर्षयस्पधा
अनित्यम सुखंलोकमिदप्राप्य भजस्वमाम् ।
(nes 9-33)
पापयोनिगळाद स्त्री शूरू नन्नन्नु आश्रयिसि मोक्षवन्नु हॊन्दुत्तारॆ. हागिरुवाग पुण्य योनिगळाद ब्राह्मणरू, राजर्षिगळू नन्नल्लि भक्तियुळ्ळवरागि नन्नन्नु आश्रयिसिदरॆ मोक्षवन्नु हॊन्दुवुदरल्लि एन संशय ऎलै अर्जुनने अनित्यवू आसुखवू आद ई लोकदल्लिरुव नीनु शाश्वतनू, आनन्दमयनू आद नन्नन्नु भजिसि नन्नल्लि भक्तियिडु
-
.. 4-24-142, 143
-
गर्भच सुखलेशोsपि भवद्धिरनुमीयते ।
यदितत्कथ्यतामेव सर्व दुःखमयं जगत् ॥
(.1-17-69)
तायिय गर्भदल्लि जन्तुवु बहळ केशवन्नु अनुभविसुत्तदॆ अल्लि अल्पवाद सुखवन्नु नीवु अनुमानदिन्द तिळियुवुदादरॆ तिळिसि प्रपञ्चदल्लि सर्ववू दुःख प्रचुरवु
न केवलं द्विज श्रेष्ठ नरके दुःख पद्धतिः ।
स्वर्गsपि पात भीतस्यक्षॆ डॊर्ना नितिः ।
(., 6-5-50)
ऎलॆ ब्राह्मणोत्तमने नरकदल्लि मात्र दुःखवॆम्बुदु अल्ल. स्वर्गदल्लियू पुण्य क्षयदिन्द पतन भयवु
इद्दे इदॆ. इदरिन्द स्वर्ग लोकवासिगु, क्षेमविल्ल,
मुमुक्षुत्वाधिकारु
- “राज्यद, विद्वांसो ममत्याकृतचेतसः । अहम्मान महापान मदमत्ता न मादृशाः ॥ 10) “आब्रह्मभवनादेते दोषास्सन्ति महामुने । आत एवहिनेच्छन्ति स्वर प्राप्तिं मनीषिणः,” । 1 ) “ब्रह्मणस्पदनाद्रूत्वं तद्विः परमम्पदं । शुद्धं सनातनं ज्योतिः परम्ब्रह्मति तद्विदुः । नतत्र मूढा गच्छन्ति पुरुषा विषयात्मकाः । तम्भ लोभ मदद द्रोह मोरभिद्रुताः । निरना निरहङ्कुरा निन्द्वा स्पंयतेन्द्रिया ध्यानयोग रताव तत्र गच्छ साधन” । 12) “रम्याळ कामचाराणि विमानानि सभास्तथा ।
आक्रीडा विविधारार्ज सन्यामलोदक” । 13) “एते निरयास्तात स्थानस्य परमात्मनः ”
231
-
राष्ट्रीकृद्दन्ति इत्यादि अहङ्कार ममकारगळिन्द कूडिदवरु राज्यदल्लि आसॆयुळ्ळवरु. नन्नन्थहवरु (खाण्डिनु) हागल्ल.
-
अब्रह्मभवनादेताः इत्यादि ब्रह्मलोक पठ्यन्त इन्थह अल्पत्वास्थिरत्वादि दोष गळु उण्टु ऎलै मुनिये आद्दरिन्द बुद्धिवन्तरादवरु स्वर्ग प्राप्तिगॆ आसॆ पडुवुदिल्ल.
ब
-
ब्रह्मणस्पदनादूर्ध्वं ब्रह्मलोकक्कू मेलॆ महाविष्णुविन आ परम पदवु इदॆ. अदु शुद्धवाददु सनातन यावागलू इरतक्कद्दु ज्योतिर्मयवाद लोक. परम्ब्रह्म शिब्द वाच्यवु, मूढरु- अन्दर देहवे आतुवॆम्बवरु, विषय सुखगळल्लि आसॆयुळ्ळवरू डम्भ, लोभ, मद, कोप, द्रोह, मोहगळिन्द कूडिदवरु, आ परम प द क्कॆ होगलाररु. अहङ्कार ममकारगळिल्लदॆ, सुख दुःखगळन्नु सहिसिकॊण्डु इन्द्रियगळन्नु अडगिसि भगवा न योगदल्लि प्रितियुळ्ळ साधुगळु आ परम पदवन्नु पडॆयुत्तारॆ.
-
राणि कामचाराणि-इत्यादि रम्यवागियू स्टेच्छॆयिन्द सुत्तलर्हवाद विमानगळू रम्यवाद सभामण्ट पगळ, हागॆये उद्यानवनगळू, तळुवाद नीरिनिन्द कूडिद सरोवरगळू आ परम वददल्लिवॆ. इदरिन्द परम पदवू अतिरमणीयवागिदॆ ऎम्बुदु द्योतित
-
एतेवै-इत्यादि. आ परमपदक्कॆ होलिसिदरॆ, स्वर्गलोकादिगळु नरकप्रायगळागिवॆ. इत्यादि प्रमाणङ्गळाले - मेलॆ हेळिद हन्नॊन्दु प्रमाणगळे आदियाद अनेक प्रमाण वचनगळिन्द प्राकृत भोगगळु- अन्दरॆ मनुष्य लोकदिन्द हिडिदु ब्रह्मलोक पठ्यन्त प्रकृति
-
D.. (6-7-7) 12) wat. Jao3. (196-4)
-
3 Audio, (3-48)
-
j 3. Nor
-
भार वनपर्व (217-37, 38, 39)
232
श्रीमद्र हस्यतयसारे
इत्यादि प्रमाणङ्गळा अल्पत्यास्थिरत्व दुःखमूलत्व, दुःखमिश्रत्व दुःखो दरत् विपरीताभिमान मूलत्व, स्वाभाविकानन्द विरुद्धत्वङ्गळाहिर दोष सप्त कण्ण युव, इवल् यथासम्भव मुख्यान चेतनमात्रानुभव दोष युव, इव्वनुभवट्टळु कैदिर् कट्टान भगवदनुभव लक्षण्ययुम् विशदवाहवनु सत्तु, “परमात्मनियो र विरsपरमात्मनि”र व्यवस्थॆयुडैयराम्,
मण्डलदॊळगॆ इरुव लोकगळल्लि अनुभविसतक्क सुखगळु, अल्प-अल्पगळु, अस्थिरत्व-शाश्वत वादवल्ल. दुःखमलत्व-शरीरेन्द्रियगळन्नु आयासपडिसि सम्पादिसतक्कवाद्दरिन्द दुःख मूल गळु, दुःखमिश्रत्व-सुख विरोधि भयदिन्द दुःतु मिश्रितवागिवॆ दुःखदर्कत्व - सुखवु कळॆदुहोदरॆ उत्तर कालदल्लि दुःखवु प्राप्तवागुत्तदॆ विपरीत अभिमानमूलत्व-स्वाधीन कतृत्व भोक्तित्व रूपवाद श्रम मूलवादवु, स्वाभाविकानन्दविरुद्धत्व - भगवद्दास्य वृत्तिगॆ तक्कन्ध स्वाभाविकवाद भगवदनुभवानन्दक्कॆ विरुद्धगळु, ई भोगगळु यावुवु ऎन्दरॆ, अटिद्विषयानुभव-कामिनी, प्रश्चन्दनाश्वरानुभवगळु इवुगळु मेलॆ हेळिद एळु दोष गळिन्द कूडिवॆ. इवट्रिल् यथासम्भवम् इत्यादि कैवल्यलोकदल्लि केवल आत्मानुभववु दुःखमूलत्ववॆम्ब करण कळेबरगळ प्रेरणारुपवागिल्ल, दुःखमिश्रत्वविल्ल अदर दुःखदर्कत्व- कैवल्य लोकद सुखानुभववु मुगिदरॆ तिरुगि संसारदल्लि हुट्टुवन्तह उत्तर कालिक दुःख वुण्टु पञ्चाग्नि विद्या निष्ठनिगॆ दुःखदर्कविल्ल. अवनु स्वल्प काल कैवल्यानन्दवन्नु अनुभविसि अनन्तर मोक्षवन्नु पडॆयुत्तान ई कैवल्यानुभवक्कॆ बाकि दोषगळुण्टु
इव्वनुभवङ्गळुक्कॆ दित्तट्टान-इत्यादि ई ऐश्वय्य कैवल्यानुभवगळिगॆ विरोधवाद भगवदनु भवद वैलक्षण्ययुव, विलक्षण स्वरूपवन्नु अन्दरॆ ई एळु दोषगळावुवू इल्लदॆ अप्राकृत स्थानदल्लि निरतिशयानन्द रूपवाद भगवत्सरूप सगुण विषयगळन्नु, विशदवागि अनुसन्धान माडि, परमात्मनि इत्यादि-भगवन्तनल्लि प्रीतियुळ्ळवनागि, इतर विषयगळल्लि प्रीतियिल्लदवनागिरु वन्थह अवस्थॆ-वैराग्य दशयन्नु हॊन्दिदवनागि आगुत्तानॆ परमात्मनल्लि प्रीतियॆन्दरेनु ऎम्बुदन्नु गीतार्थसङ्ग्रहदल्लि आळवन्दारवरु वर्णिसिद्दारॆ अथागि, ज्ञानीतु परमै कुन्ती परमैकान्ती परायत्तात्म जीवनः । तत्संश्लेष वियोगैक सुख दुःखस्तदेकधीः ॥
- रादित्यवनाञ्च तधान्यषां दिवौकसाम् ।
एनेवैनिरयास्तात स्थानस्य परमात्मनः ।
(408) 5008 196-6)
रुद्र आदित्य मॊदलाद देवतॆगळ स्थानगळु परमात्मन स्थानक्कॆ होलिसि नोडिदरॆ, नरक तुल्बगळु.
1 परमात्मनिय रक्कू निरs परमात्मनि ।
सर्वषणा विनिर्मुक्त सभॆक्षं भोक्तु मर्हति 1
(बार्हस्पत्य स्मृति)
भगवन्तनल्लि प्रीतियुळ्ळवनागि इतर विषयगळल्लि वैराग्यदिन्द कूडिदवनु प्राकृत विषयवाद पुत्रदार
गृहक्षेत्र वित्तेषणॆ (आसॆ) गळन्नु बिट्टु, भिक्षॆयिन्द जीविसतक्कवनु
मुमुक्षुत्वाधिकार
233-
- प्रवृत्ति धर्मङ्गविट्टु निवृत्तिधर्मङ्गळ् कैकॊळ्ळवरे मुमुक्षु, 1): “प्रवृत्ति लक्षणन्दरं प्रजापतिरथाब्रवीत्” ऎल्लरप्रवृत्ति धर्मण्ण ळिल्निन्नुव निवृत्त राय्, 2) निवृत्ति लक्षणं भर मृषिरा रायब्रवीष्” ऎर निवृत्ति धरल्ल इले प्रवृत्तरानवर मुमुक्षुक्कळान वधिकारिहळ्
சூழ்
परमपुरुषार्थोपायानुष्ठानव आवश्यक.
की चॆन्न पडियिले परावरङ्गळान तत्वज्ञळु, पुरुषार्थङ्गळु तॆळिना लुम्, इप्पडि वैराग्यपूर्वकवाद परमपुरुषार्थोपायानुष्ठानल् प्रवृत्ति
अब्बा तातन प्राणः मनॆ बुद्धिन्द्रिय क्रियः ॥
इतर देवतॆ
ऎन्दु भगवन्तनल्लिये नॆट्ट मनस्कनादवनु तन्न जीवनवु भगवदनुभवाधीन गळल्लियू इतर पुरुषार्धगळल्लियू आसॆयिल्लदवनु, भगवत्संश्लेषवे-भगवन्तनॊडनॆ कूडि इरुवुदे सुख, भगवन्तन अगलिकॆय दुःख प्राण, मनस्सु, बुद्धि, इन्द्रिय व्यापारगळॆल्लवू अवनल्लिये इरुवुवु. अदरिन्दागि अवन आत्मा नत्तॆयिन्द कूडिरुत्तदॆ. परमात्मनन्नु बिट्टु इतर विषयगळल्लि विरक्ति ऎन्दरॆ, “नदेहं नप्राणान्नच सुखमशेषाभिलषितं नाचात्मानं नान्यत् किम पितवशेष विभवात् बहिर्भूतव!” ऎम्ब आळनान्दार् स्तोत्ररत्न (शे 257) श्री सूक्तियल्लि हेळिरुवन्त भगवन्तन कैङ्कय्यक्कॆ उपयोगपडद शरीर, प्राणेन्द्रियगळु, आत्मा, ऐश्वरा दिगळु ननगॆ बेकिल्ल अवुगळु नूरु चूरागि ऒडॆदु होगि हाळागि होगलि ऎम्ब वैराग्यावस्थ प्रवृत्ति निवृत्ति धर्म
इन्थह अवस्थॆयिन्द कूडिदवनु 1) प्रवृत्ति लक्षणं-इत्यादि हेळुव प्रवृत्ति धर्मगळन्नु धमार्थ कामगळन्नु सम्पादिसुव काम कर्मगळन्नु अनुष्ठिसुव प्रयत्नदिन्द निवृत्तनागि, 2) निवृत्ति लक्षणं-इत्यादि निवृत्ति धर्मगळल्लि मोक्ष साधकवाद व्यापारगळल्लि प्रवृत्तिसु ववरु, मोक्षवन्नु पडॆयलु अधिकारिगळु
वैराग्यदिन्द मोक्षेपायदल्लि प्रवर्तिसदॆ इरुववन ज्ञानव्यर्थ
हीगॆ परदेवता पारमार्थाधिकारदिन्दारम्भिसि इल्लियवरॆगॆ हेळिरुव विषयगळन्नु तिळिदु कॊण्डु मोक्षपायदल्लि प्रवर्तिसदे इरुववर ज्ञानवु व्यर्थवॆन्दु कीचॆपडियिले ऎन्दारम्भिसि आचाररु
आचाररु उपदेशिसुत्तारॆ - अदागि प्रधान प्रतितन्त्राधिकारदल्लि हेळिरुवन्तॆ,
- प्रवृत्ति लक्ष० धमं प्रजापति रधाब्र दीत् । प्रवृत्ति परावृत्ति- निवृत्ति परवागिति ।
(38. 3303 219-4)
- पु. ति. न
प्रवृत्ति धर्मगळन्नु ब्रह्म देवनु हेळिदनु, प्रवृत्ति ऎन्दरॆ पुनरावृत्ति-स्वर्गलोकादिगळन्नु पडॆद पुनः भूलोकदल्लि हुट्टुवुदु निवृत्ति ऎन्दरॆ शाश्वतवाद परम पद सुख.
234
श्रीमद्रहस्यत्यसारे
यानाहिल्, (3) “शीलवृत्त फलंश्रुतं” 4) “कमारं सत्वशास्त्राणि विहितानि मनीषिभिः तस्मात् सत्वशास्त्रज्योयस्य शास्त्रं मनस्सदान ऎण्णिर क्रुत फलयुव इन्नु,
- कनाष्टादयति कौपीनं न दन्तमशकाप
शुनः पुच्छमिवानर्थ० पाण्डित्यं धवर्जितम् ॥” ऎन्नॊरपडिये हास्यनाम्, आहैयाल्
- “वयसः करणोरस्य श्रुतस्याभिजनस्य च ।
वेषवागृति सारूप्य वाचरन विचरेदिह ”
ऎल्लिर पडिये श्रुतानु रूपमाह *चितमान परम पुरुषाथपायानुष्ठा नले त्वरिक्कुववर्हळ्, तन्नरुमव शॆल्यप्पिररुहन्सार्” ऎम्पडिये (7) “तन्देवा ब्राह्मणं विदुः, (8) “प्रणवन्ति देवताः”
इत्यादिहळिल् चॊल्लु मेत्तव
परावरगळान तत्वङ्गळु-चिद चिदीश्वर तत्वगळन्नू (परावर) पुरुषार्थङ्गळुं धर्मार्थ कामगळन्नू, मोक्षवन्नू, तिळुवागि अरितिद्दरू, ई अधिकारदल्लि हेळिरुव रीतियल्लि वैराग्य पूरैक वागि परम प्ररुषार्दोपायवाद भक्ति प्रपत्तिगळल्लॊन्दरल्लि प्रवर्तिसदे होदरॆ 3) शीलवृत्त फलं श्रुतवर्, 4) शमार्थंसर्वशास्त्राणि ऎम्बन्तॆ चील आत्म गुण, वृत्त-सदाचार इवुगळु ओदिदक्कॆ फल, शमादिगुणगळन्नु सम्पादिसिकॊळ्ळलु ऎल्ला शास्त्रगळू विहितगळागिवॆ, आद्दरिन्द यावनमनस्सु अर्थकामप्रावण्यविल्लदॆ शान्तवागिदॆयो - वैराग्यदिन्द कूडिदॆयो अवने सर्वशास्त्रज्ञः-ऎल्ला शास्त्रगळन्नू तिळिदवनु, ऎन्दु हेळिरुव फलवन्नु हॊन्दुवुदिल्ल. मेलू 5) नाच्छादय पीनम्-ऎम्बन्तॆ नायिय बालवु गुह्य प्रदेशवन्नु मुच्चुवुदिल्ल; कडियुव सॊळ्ळॆयन्नु होगलाडिसदु, आ रीतियल्लि धर्मानुष्ठानदल्लि इळियदवन पाण्डित्यवु अनर्थकर स्वल्प प्रयोजनवन्नू उण्टु माडुवुदिल्ल ऎन्दु हेळिरुवन्तॆ ऎल्लरिन्दलू परिहास्य नागुत्तानॆ आय्कॆयाळे इत्यादि.आद्दरिन्द परम पुरुषार्दोपायानुष्ठानदल्लि प्रवर्तिसदॆ होदरॆ परमपुरुषार्थवु लभिसदॆ, शीलवृत्त शवादि रूपगळाद फलगळिगॆ हानियुण्टागुवुद
- व्यक्रं मृत्यु मुखं विद्यात् आव्यक्त ममृतं पदम् !
निवृत्ति लक्षणं धर्म ऋषिर्नारायws ब्रवीत् #
yaʊ. aao3. (219-2)
व्यक्तवॆन्दरॆ यमनबायि, आव्यक्तवॆन्दरॆ अमृत स्नान-परमपद निवृत्ति लक्षणदिन्द कूडिद धर्मवन्नु बदरिकाश्रमवासियाद नारायणनु हेळिदनु. फलदल्लि आसॆयिन्द अनुष्टिसुव कर्मगळिगॆ प्रवृत्ति धर्मगळॆन्दू, आसॆयिल्लदॆ अनुष्ठिसुव कर्मगळु निवृत्ति धर्मगळॆन्दू व्यवहार
- अग्नि होत्र फलावेदा- शीलवृत्त फलं श्रुतम् । रतिपुत्र फलादादाः दत्त भुक्तफलं धनम् ।
वेदाध्ययन माडुवुदु अग्निहोत्र माडलु उपयोगि हॆण्डतियु रति क्रीडॆगू मक्कळन्नु हडॆयुवुदक्कू फलभूतळु 4) 8 (12-37) समु,
भार सभा (5-117)
ओदिदुदक्कॆ ऒळ्ळॆय स्वभाव, सद्वतिगळु फल हणक्कॆ दान, ऊट माडुवुदु इत्यादि फल
5), 6),7), 8). प, ति, नो
战
मुमुक्षुत्वाधिकार-
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रिन्दलू, सन्मार्गदल्लिरद पण्डितनन्नु नोडि लोकदल्लि जनरु परिहास्य माडुवुदरिन्दलू, 6) वयसःकर्मथ्रस्य ऎम्बन्तॆ तन्न वयस्सु कर्म, ऐश्वय्य, विद्यॆ, सत्कुल प्रसूतित्र मॊदलादवुगळिगॆ अनुगुणवागि वेष्टॆ मातु, नडतॆगळु एकरूपवागिद्दुकॊण्डु नडॆदुकॊळ्ळबेकु ऎन्दु हेळिरुवन्तॆ, तानु ओदि तिळिदिरुव शास्त्र ज्ञानक्कॆ अनुरूपवागि सूचितमान - तन्न अधिकारक्कॆ तक्क, परम पुरुषार्थक्कॆ उपायगळाद भक्ति प्रपत्तिगळॊन्दन्नु अनुष्ठिसलु त्वरॆ पडबेकु. हीगॆ तन्न करुमय्य- तनगॆ शास्त्रविहितवाद कर्मगळन्नु अनुष्ठिसिदरॆ, हिरर्- हागॆ अनुष्ठिसि फलवन्नु हॊन्दद सत्पुरुषरु, उहन्दार्-यमारा क्रियमाणं प्रशंसन्ति सधर्म” ऎम्बन्तॆ प्रशंसापूर्वकवागि सन्तोषपडुत्तारॆ. 7) तन्देवाःब्राह्मणंविदुः ऎम्बन्तॆ हीगॆ कर्मानुष्ठान माडुववनन्नु देवतॆगळु ब्रह्मज्ञानि ऎन्दु तिळिदु श्लाघिसुत्तारॆ. 8) प्रणवन्ति देवताः ऎम्बुदे मॊदलाद वाक्यगळल्लि हेळिरुवन्तॆ ऎल्लरू गौरविसुव रीति यल्लि हिरिमॆयन्नु पडॆयुत्तान. इवनु ई श्लाघनॆगळिगॆ आसॆपट्टु माडुत्तानॆन्दल्ल. तानागिये ऎल्लरू इवनन्नु गौरविसुत्तारॆ ऎन्दर्थ, इवनिगॆ आत्म प्रशंसॆयू कूडदु ऎम्बुदु तात्प 5) कौपीनं-गुह्य प्रदेश पाण्डित्यवन्नु सम्पादिसि धर्मानुष्ठान माडदिरुवुदु अनर्थकर 6) WORD. (4-18)
- असितंसितकर्माणं यधादान्तन्तपस्विनम् ।
चण्डालमसि व्यवस्थं तन्देवा ब्राह्मणंविदुः ।
(wad wood 118-11)
शुद्धसमाचारनागि इन्द्रियगळन्नु अडगिसिकॊण्डिरुव तपस्वियाद ब्राह्मणनन्तॆ, तन्न वर्णाश्रमगळिगनु गुणवाद ऒळ्ळॆय नडतॆयुळ्ळवनु चण्डालनागिद्दरू, अवनन्नु देवतॆगळादियागि ऎल्लरू गौरविसुत्तारॆ
- आग्नि होत्सवतोदान्तु सन्तोषनिरतः शुचिः ।
तपाध्याय शील तन्देवाः ब्राह्मणंविदु- ।
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- येनकेन दाच्छन्न नकेन चिदाडितः ।
यक्षचन शायिसु तन्देवा- ब्राह्मणं ऎदुः ।
c) योsहेरिवगणाः सन्मानारणादिवॆ ।
कुणपादिव यज्ञः तन्देव ब्राह्मणंविदुः ।
d) कामक्रोधान्यत द्रोह लोभ मोह मदादयः । नसन्ति यराजेन्द्र तन्देवा ब्राह्मणंविदुः ।
993, 2030. 28-88, 89, 92, 93)
३) आग्नि होत्र माडुववनु, इन्द्रियगळन्नु अडगिसिरुववनु, अल्पतुष्टनु, शुचियागिरुववनु, तवस्स वेदाध्ययन मॊदलादवन्नु माडुव स्वभाववुळ्ळवनु, ब्राह्मणनॆन्दु देवतॆगळु गौरविसुत्तारॆ.
b) सिक्किदुदन्नु उट्टु सिक्किदुदन्नु ऊटमाडि, ऎल्लियादरू ऒन्दु कडॆ मलगिकॊण्डिरुववनन्नु ब्राह्मण नन्नागि देवतॆगळु भाविसुत्तुरॆ
c) हावन्नु नोडि पॆदरुवन्तॆ, जनस्तोमदल्लि अन्वयिसदॆ इरबेकु. सन्मानवन्नु मरणद हागॆ तिळिदु त्यजिसबेकु स्त्रीगळन्नु शवद हागॆ तिळिदु त्यजिसबेकु. अन्धहवनन्नु देवतॆगळु ब्राह्मणनन्तॆ गौरविसुत्तारॆ. d) काम, क्रोध, सुळ्ळु, द्रोह, लोभ, मोह, मद (गर्व) मॊदलादवु यावनल्लि इल्लवो अवनन्नु देवतॆगळु ब्राह्मणनॆन्दु तिळियुत्ता
ई वाक्यगळिगॆ जातिनिमित्तवाद ब्राह्मण्यवन्नु हॊन्दुत्तारॆम्बुदु अभिप्रायविल्ल. इन्द्रिय निग्रहरूप गुणनिमित्तवाद प्रशंसॆ, ब्राह्मणनल्लिरबेकाद ई गुणगळु यारल्लिद्दरू अवनु प्रशंसार्हनु ऎन्दु तात्पर
(8) पु. ६,
(8). or.
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श्रीमद्रहस्यत्यसारे
निन्न पुराण नडॆयिणॆ यन्नु नॆडुम् हनुम् । पॊळ्ळुदले नियॆन्रिड प्रॊट्टुम् पवक्कडलुम् ॥ नदु तीयदिदॆन्नु नविस्रवर् नल्लरुळाल् । वन्नु पुलन्गळ्ळि वीडि(डिडै) वेण्णु वर् पॆरुमयने ॥१४। विषमधुबहिष्णुर्वन् धीरो बहिर्विषयात्मकं । परिमितसुखस्वात्म प्राप्ति प्रयासराजुखः ॥ निरवधिमहानन्द ब्रह्मानुभूति कुतूहली । जगति भविता दैवातृहासित संस्कृति ॥१६।
।
इति कविता सिंहस्य सर्वतन्त्र स्वतन्त्र श्रीमङ्कटनाथस्य वेदान्ताचारस्य कृतिषु श्रीमद्रहस्यत्रयसारे
मुमुक्षुत्वाधिकारः समाप्तः
श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः
ई अधिकारदल्लि हेळिद भगवदनुदभवपूर्वकवाद भगवङ्कर् वैलक्षण्यवन्नू सांसारिक फलद हेयत्ववन्नू उपदेविसिद आचारर कृपाविशेषदिन्द इन्द्रियगळन्नु जयिसि, ऒब्बनु मोक्ष वन्नु हॊन्दलु आसॆपडुत्तानॆन्दु निन्नपुराणन् ऎन्दारम्भिसि आचाररु अनुग्रहिसुत्तारॆ. निन्नदु राणन्-महालक्ष्मियॊडगूडि सर्वस्मात्परनॆन्दु प्रकाशिसुव पुराण पुरुषनाद महाविष्णुविन, अडियि- परस्पर सदृशगळाद ऎरडु पादगळन्नु ऎन्दु शिरसा धरिसि कैङ्कय्य माडुव नॆडुम्पयनु-दीर्घकाल (नित्य) पुरुषार्धवन्नू, पॊन्नुदले नि लैयॆड-नशिसि होगु वुदे स्वभाववाद, पॊङ्गुम्पवक्कडलु-अभिवृद्धवागुत्तिरुव संसार सागरवन्नू, नदु. इदु ऒळ्ळॆयदु, तीयदु इदु. इदु कॆट्टदु हेयवादद्दु ऎन्नु नविन्यवर् ऎन्दु उपदेशिसिद आचाररुगळ, नल्लरुळाल्, ऒळ्ळॆय कृपॆयिन्द पुलन्गवॆन्नु, इन्द्रियगळन्नु जयिसि,
पॆरुम्पयने - परम पुरुषार्धवाद वीडि.-परमपदवन्नु अन्दरॆ मोक्षवन्नु, वेण्डु (मुमुक्षवाद ऒब्ब महात्मा) अपेक्षिसुत्तानॆ,
- द्रवन्ति दैत्या- प्रणमन्ति देवताः
वश्यन्ति रक्षांस्य पयान्तिकारयः । यर्तनात् सोद्भुत रूप केसरी
ममास्तु माङ्गल्य विदर्धये हरिः ।
(माङ्गल्य स्तोत्र विष्णु धर्म 43-28)
अद्भुत रूपदिन्द कूडिद लक्ष्मीनृसिंहनन्नु, स्तोत्र माडिदरॆ दैत्यरु नीरागि होगुत्तारॆ. देवतॆगळु नमस्करिसुत्तारॆ. राक्षसरु सात हॊन्दुत्तारॆ. शत्रुगळु ओडिहोगुत्तारॆ. अन्धह करियु ननगॆ माङ्गल्यवन्नु *अभिवृद्धिगॊळिसलमुमुक्षुत्याधिकार
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कोटियल्लॊब्बनु जन्मान्तरार्जितवाद अदृष्ट विशेषदिन्द ऐश्वय्य कैवल्यगळल्लि विरक्तनागि भगवदनुभव कुतूहलियागि मोक्षदल्लि आनॆयुळ्ळवनागुत्तानॆन्दु ‘विषमधुबहिष्कुर्वन ऎम्ब श्लोकदिन्द आचार सार्वभौमरु अनुग्रहिसुत्तारॆ. अदागि जगतिक-व्रपञ्चदल्लि कोटिय लॊब्बनु, दैवान् विलक्षणवाद अदृष्ट विशेषदिन्द, धीरस्सन् - मनस्सन्नु कलगिसुव विषय गळिन्द कलगदवनागि, बहिर्विषयात्मकं शब्दादि बहिविर्षयरूपवाद विषमधु विषमिश्रितवाद जेनुतुप्पवन्नु प्राकृत शब्दादि भोगगळु अनुभव समयदल्लि बोग्यवागिद्दरू, उत्तर कालदल्लि दुःखदिन्द कूडि अनर्थवन्नुण्टुमाडुत्तवॆयॆम्बुदु तात्पर बहिष्णुर्वन् वरित्यजिसि, परिमितरसस्वात्मप्राप्ति. भगवदनुभवक्किन्त अत्यल्पवाद, केवलस्वात्मानुभव प्राप्तिगोस्कर प्रयासपराजु माडुव प्राणाद्युपासन प्रयासदिन्द पराजुखनागि, अन्दरॆ आ प्रयास वन्नु बिट्टवनागि निरवधिमहानन्द ब्रह्मानुभूति कुतूहली ऎल्लॆ इल्लदॆ महानन्द रूप वाद ब्रह्मानुभवदल्लि कुतूहलनागि (प्रीतियुक्तनागि), जिहासित संस्कृतिः - संसारदल्लि जिहानॆ युळ्ळवनागि (हातुमिच्छा जिहास) भविता आगुत्तानॆ.
“कां वेत्ति तत्वतः” ऎन्दु गीतॆयल्लि हेळिरुवन्तॆ यावनो ऒब्ब अदृष्टशालियु संसारदल्लि विरक्तियिन्द, भगवन्तनन्नु अनुभवसि आनन्दपट्टु ततवाहवाद कैङ्करवन्नु माडलु आनॆ युळ्ळ ननागुत्तानॆम्बुदु भाव,
मुमुक्षुत्वाधिकारक्कॆ सार चन्द्रिका व्याख्यानवु समाप्त श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नम-
प्रियॆ नमः
श्रीमते रामानुजाय नम-
श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नम-
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