०५ तत्त्व-त्रयाधिकारः

B

प्रकृत्यात्म भ्रान्तिर्गळति चिद चिल्ल क्षण थिया तथाजीवेशैक्य प्रकृति कलह द्विभजनात् । अतो भोक्ता भोग्यं तदुभय नियन्तेति निगन्न द्विभक्तं नस्तत्वत्रय मुहदिशं त्यक्षतधियः ॥ 14 ॥

तत्वत्रयज्ञान प्रयोजन

सम्बन्धवु अर्थपकनु जड आरर्थमरियवेळॆयिरुक्क इवलेकदेश मानतत्वत्रयक्कॆ मुमुक्षुवुक्कु विशेषित्तरियवेणुवॆन्नु आचार‌हळुपदेशित्तु स्पोरुक्कडि ऎन्‌ऎल्? अदुक्कडि प्रकृत्यात्मभ्रमवु, स्वतात्मभ मनुव इदन्नु निदानमानवनीश्वरवाद रुचियु माहिर महाविरोधिहळ्ळि मुप्पडक्कक्कप्राप्त मा, इनिच्चॆत्तु, भोक्ष्य, भोग्य,निय रूपाले, शास्त्रले तत्वविवेकं

«

पणं हिरदु,

(श्रीमनि गमान्त महादेशिक विरचित

तत्रयाधिकार सारचन्द्रिका व्याख्या

मुमुक्षुविगॆ विशेषवागि तिळियबेकाद, प्रधान प्रतितन्त्रवाद शरीरात्मभाव सम्बन्धवन्नू अर्थपञ्चकगळन्नू निरूपिसियायितु. ईग तत्वत्रयगळ स्वरूपवन्नू ई अधिकारदल्लि निरूपिसुवव रागि प्रकृत्यात्म भ्रान्तिः, ऎन्दारम्भिसुत्तारॆ ई तत्वत्रयगळु आर्धवञ्चकगळल्लि अडगिद्दाग्यू

भोक्ताग्यं प्रेरितारञ्चमत्सा, जुष्टस्ततस्तेना मृतत्वमेति” ऎम्ब श्रुतिय प्रकार, जीवात्म परमत्मर मत्तु अचेतनद स्वरूपवैलक्षण्यगळन्नु चन्नागि तिळिदुकॊण्डरेने, देहात्म भ्रमवू स्वतन्त्रात्मभ्रमवू तॊलगुत्तदॆ. आगतान मोक्षार्धदल्लि अभिरुचियू हुट्टुत्तदॆ ऎम्बुदु अभिप्राय. इदन्नु अचारवरु “प्रकृत्यात्मभ्रान्तिः” ऎन्दारम्भिसि तावे विवरिसुत्तारॆ.

प्रकृत्यात्म भ्रान्ति :- चेतनवाद प्रकृति परिणामवाद देह इन्द्रिय, मन, प्राणि गळल्लि, देवोsहम् इत्यादि भ्रमवु, चिदचिल्लक्षणधिया, चेतना चेतनगळ लक्षणज्ञानदिन्द गळति तानागिये जारिगॊळ्ळुत्तदॆ. तथा हागॆये, जीवेशैक्य प्रकृति कलह- जीवनू, ईश्वरनू ऒन्दे ऎम्ब स्वतन्त्रात्मभ्रम मूलवाद निरीश्वरत्व, ‘निर्जीव कलहवू, तद्वि भजनात्-अवुगळ लक्षणदिन्द, अदागि अणुसति चेतनत्वम्,-जीवलक्षण, विभुसति चेतन इव ईश्वरलक्षण, ऎन्दु हेळि जीवेश्वररुगळु बेरॆ बेरॆ ऎन्दु निरूपिसिदरॆ, इब्बरू ऒन्दे

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116

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

त्रिविधमान आचेतन स्वरूप स्वभावादि कथन

इवट्रल् वैत्तुकॊट्टु (1) “अचेतना परार्थ्याच नित्यासततविक्रिया । ” त्रिगुणा कणां क्षेत्रं प्रकृते रूप मुच्यते ॥” (2) “अनादि र्भगर्वा कालो नाण्डोस्य द्विजविद्यते”, (3) “कलामुहूर्तादि मय कालो नयद्विभूतेः परिणाम हेतुः,” (4) “ज्ञानानन्द मया लोकाः,”

ऎन्दु

ऎम्ब कलहवु शान्तवागुत्तदॆयल्लवॆ जीवने इरुवुदु, ईश्वरनिल्ल जीवनु स्वतन्त्र, (निरीश्वर मिमांसक, निरीश्वर साङ्ख्यर मातु ईश्वरने इरुवुदु, जीवनिल्ल (इदु शाङ्कर भास्करर मातु) ऎम्ब कलहवू गळति-पामरर देहात्म भ्रमद हागॆ सुलभवागि होगिबिडुत्तदॆ. अतः- हीगॆ देहात्म, स्वतन्त्रात्म भ्रमगळ निवृत्तिगोस्कर निगमै -श्वेताश्वतरादि वेदगळिन्द, भोक्ता भोग्यं तदुभय नियन्ता, इति- भोक्ता भोगवन्नु अनुभविसुववनु (जीवात्म), भोग्यं भुजिसल्पडतक्कद्दु अचेतन पदार्ध, इवॆरडन्नू नियमिसुववनु परमात्मा, विभक्तं तत्वयं-विभागिसल्पट्ट मूरु तत्वगळन्नु, नः-नमगॆ, अक्षतधियः-मेलॆ हेळल्पट्ट भ्रमगळिल्लद ज्ञानवन्नुळ्ळन्द नम्म आचाररु, उपदिशन्ति - श्रुतियल्लि हेळल्पट्ट रीतियल्लि अर्थगळन्नु उपदेशिसुत्तारॆ. इदरिन्द श्रुति प्रामण्यवू सम्प्रदाय प्रामाण्यवू हेळल्पट्टितु तात्पय्य, देहात्मभ्रमवु चित्, अचित् इवु गळ लक्षण ज्ञानदिन्द तॊलगुत्तदॆ. हागॆये जीवने, ईश्वरनु, ऎम्ब कलहवू अवरवर लक्षण विभागदिन्द तॊलगुत्तदॆ. आद्दरिन्द भोक्ता भोग्यं, अवरुगळ नियन्तावाद ईश्वरनॆन्दु विभक्तवाद तत्वत्रयगळन्नु नम्म आचाररु नमगॆ उप देशिसिद्दारॆ.

तत्रत्रयवन्नु विश्लेषिसि तिळियबेकाद प्रयोजनवेनॆम्बुदन्नु सम्बन्धनुव अर्थपञ्चकवुव ऎन्दारम्भिसि आचाररु तिळिसुत्तारॆ आदागि शरीरात्मभाव सम्बन्धवू, अर्थपञ्चकवू सेरि आरु अर्धगळन्नु तिळिदुकॊळ्ळबेकागिरुवाग, इवुगळल्लि एक देशवाद तत्त्व त्रयवन्नु मोक्षदल्लि अभिलाषॆयुळ्ळवनु विशेषवागि तिळिदुकॊळ्ळबेकॆन्दु आचाररुगळु उपदेशिसिरुत्तारॆ. इदक्कॆ कारणवे नॆन्दरॆ, प्रकृत्यात्म भ्रम (प्रकृति परिणामवाद, देह, इन्द्रिय, मनस्सु, प्राण इवुगळ ल्लॊन्दु आत्मावॆम्ब भ्रमवू) स्वतन्त्रात्म भ्रम (आत्यास तन्त्रनु ईश्वरनॊब्बनिल्ल ऎम्बुदु) इदक्कॆ कारणवाद ईश्वरनिल्लवॆम्बवाददल्लि रुचि ऎम्ब महाविरोधिगळन्नु मॊट्ट मॊदलु निवृत्ति माडिकॊळ्ळबेकु. ई भ्रम निवृत्तियु, होग बेकाददु अवश्यवॆन्दु भोक्ता, भोग्यं, नियन्ता ऎम्ब रीतियल्लि श्वेताश्वतर उपनिषदादि शास्त्रगळु, तत्वगळ स्वरूपगळन्नु बेरॆ बेरॆयागि तिळिसुत्तवॆ.

त्रिविध आचेतन विभाग

इवुगळ

इवट्रल् वैत्तु कॊण्डु इत्यादि ई तत्वत्रयदल्लि अडगिरुव अचेतन तत्ववु अचेतना परार्थ्याच इत्यादियागि, त्रिगुण, काल, शुद्ध सत्व ऎन्दु मूरु विधवागिदॆ. स्वभावगळू, ई श्लोकगळल्लि हेळल्पट्टिवॆ.

(1), (2), (3), (4)

पति, न,तत्रयाधिकरु

117

(5) “कालंसपचते तत्रन कालस्कत्रवै प्रभुः,” इत्यादिहळिले त्रिगुण, काल, शुद्ध सत्व रूपङ्गळान त्रिविधाचेतन ळुडैय स्वभावं कॊल्लित्तु.

त्रिविध जीव प्रकारः

C

(6) “सुमान देवोननरः,” (7) “नायन्देवो नमवा,” (8) “क्षरस्साणि भूतानि कूट

सक्षर उच्यते, (9) “यवश्यनि सरयः, इत्या दिगळिल्ले त्रिविध जीवर् हळुडैय प्रकारं विवेकिक्कप्पट्टदु.

त्रिविध जीव प्रकार '

पुमान्‌नदेवो, इत्यादि प्रमाणगळिन्द बद्ध, मुक्त, नित्यरॆम्ब मूरु विधवाद जीवरुगळ प्रकारवु बेरॆ बेरॆयागि हेळल्पट्टिदॆ.

  1. परम संहितॆ-प्रकृतियु ज्ञानविल्लददु इतरर प्रयोजनक्कागिये इदॆ. स्वववु. नित्यवु आदरू

सततवागि (यावगलू बेरॆ बेरॆ रूपवन्नु हॊन्दतक्कदु सत्य रजस्सु तमस्सु ऎम्ब मूरु गुणगळिन्द कूडिरुवुदु पुण्य पाद ताप कर्मगळन्नु माडिदवरिगॆ शरीरवागिदॆ. हीगॆ ई प्रकृतिय स्वरूपवु हेळल्पट्टिदॆ

  1. अनादिर्भमदान्‌ कालो सान्ता द्विज विद्यते ।

अवुच्छिन्ना स्ततस्कृते सर्ग स्थित्यन्त संयमः ॥

(.) 1-2-26)

मैत्रेयरे! भगवन्तन रूपवाद (शरीरवाद ; कालवु अनादि इदक्कॆ अन्त्यविल्ल सृष्टि, स्थिति, संहारगळु कालदिन्द व्यवस्थितगळु, सृष्टिकाल, स्थितिकाल

(व्यवस्थितियु) आवुच्चिन्नवु बेरॆ बेरॆयल्ल ऒन्दे

  1. कलामुहूर्ताधिमयश्चका नयद्विभूत परिणाम हेतु-

अजन्मनाशसदेक मूर्तरनाम रूपस्य सनातनस्य

संहारकालवॆन्दु कालद निरोधव

(4-1-34)

कला ऎघळिगॆ, मूहूर्त-2 घळिगॆगळिन्द कूडिद कालवु कर्म निमित्तवाद जन्म नाशविल्लदॆ, सदा एक रूपवाद, कर्मदिन्द उण्टाद देवादि नाम पदिल्लद ब्रह्मनु सनातननु अवन नित्य एभूतिय परिणामक्कॆ कालवु कारणवागलारदु प्राकृत विभूतियल्लि वस्तुगळिगॆ कालदिन्द परिणामवुण्टु नित्य विभूतियल्लि (वैकुंर लोकदल्लिरुव भगवन्तन आप्राकृत शरीर, मण्टप गोपरादि नित्य लोकदल्लि रुव अचेतन वस्तुगळिगॆ कालपरिणामविल्ल अल्लिय परिणामगळॆल्ला भगवन्तन सङ्कल्प मात्रदिन्दले उण्टागुत्तवॆ

  1. पाञ्चरात्र - शुद्ध सत्य रूपवाद अचेतन द्रव्यगळिगॆ प्रमाणविदु ज्ञानानन्दमया लोर्का ऎम्बुव प्राकृत लोकदल्लिरुव आचेतनगळु जड द्रव्यगळु, नित्य विभूतियल्लिरुव अचेतन द्रव्य गळु, ज्ञानानन्द स्वरूपगळु. ज्ञान ऎन्दरॆ स्वयं प्रकाशवादवु ज्ञानमय ऎम्बल्लि स्वार्थ मय ज्ञानदिन्द कूडिदवु ऎन्दर्थ हागॆये आनन्दमय ऎन्दरॆ आनन्दवागिरुवुवु

नोडुववरिगॆ, अनुभविसुववरिगॆ आनन्दवन्नुण्टु माडतक्कवु. आनन्ददिन्द कूडिरुवुवु ऎन्दर्धवल्ल, जडपदार्थक्कॆ ज्ञानवू, आनन्दवू इल्ल

  1. कालंसपचते तत्रन कालस्कत्रवै प्रभुः 1

सकलस्य प्रभूराजन् सर्वस्कान्तदेश्वरः । .

(433 3305-196-9}

118

श्रीमद्रहस्य त्रयसारे ईश्वर तत्वम्

(10) “सत्वज्ञ सृत्वदृक‌ शक्ति र्ज्ञान बलर्धिमान्1 (11) *म तन्द्र भय शोध

शक्तिर्ज्ञान . कामादिभिर संयुतः॥” इत्यादिगळाले ईश्वर स्वभाव (स्वरूप) मुपदिष्टवायित्तु. इस्रो शेशितव्यरूपमान तत्वप्रियम् निक्कुं निन्नॆ “स्वाधीन त्रिविध चेतना चेतन स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति भेदं” ऎन्नु तुरुष्णवरुळिच्चॆयार्,

ईश्वर स्वभाव

सर्वज्ञ - इत्यादि कल्याण गुणगळिन्द कूडिदवनागियू, क्षम-श्रम, तं-सोमारि तन इत्यादि हेय गुणगळिल्लदवनागियू इरुव ईश्वर स्वभाववु उपदिष्टवायितु. पूर्वदल्लि “त्रिविध जीवर प्रकारवु विवेकिसल्पट्टितु”ऎम्बल्लि प्रकारवॆन्दु हेळिरुवुदु बद्द दशॆयु स्वरूपानुबन्धि धर्मवल्लवॆम्बुदन्नु तिळियपडिसुत्तदॆ. मॊदलु आचेतन स्वभाववॆन्दु हेळि, नन्तर जीवन प्रकार ऎन्दु हेळि, अनन्तर ईश्वर स्वभाववॆन्दु हेळिरुवुदु उत्तरोत्तर उत्कर्ष सूचक हीगॆ अचेतन तम्म मूरु विध, चेतनतत्व मूरु विध, ईश्वरनु (नियन्ता) ऒब्बनु ऎन्दु, निरूपिसिरु वुदक्कॆ स्वाधीन त्रिविध चेतना

चेतना चेतन ऎन्दु श्री भाषकारर श्री सूक्तियन्नु

  • प्रमाणीकरिसुत्तारॆ.

आ नित्य विभूतियल्लि कालक्कॆ परिणामविल्ल एतक्कॆन्दरॆ अदक्कॆ प्रभुत्वविल्ल. ऎल्लवक्कू भगवन्तने प्रभु अवने नियामकनु, नित्यविभूतियल्लि भगवन्तने काल नियामकनु,

  1. पुमान्‌नदेवोननरः नपशुः र्नचपादपः ।

शरीरातिभेदास्तु भूत कर्म नयः ।

पुमान जीवनु, देवनल्ल, मनुष्यनल्ल, पशुवल्ल वृक्षवल्ल देव मनुष्यादि रूपगळु जीवन पुण्य पाप

भूपकर्मगळिन्द उण्टागिदॆ

  1. नायन्देवोनमवनापरोपिन ।

ज्ञानानन्द मयात्मा शेषोहिपरमात्मनः ।

इवुगळु कर्म सम्बन्धदिन्द उण्टाद

ई जीवनु देवनल्ल, मर नल्ल, रक् प्राणियल्लि स्थावरवू अल्ल शरीरगळु, आत्मा ज्ञानानन्द स्वरूपनु ज्ञानानन्द गुणगळिन्द कूडिदवनु

नानन्द गुणगळिन्द कूडिदवनु परमात्मनिगॆ शेषभूतनॆम्बुदु इवन स्वरूप ई वाक्यवु मुक्तात्मरिद्दारॆ ऎम्बुदक्कॆ प्रमाण

  1. द्वापरुपौलो केक्षराकर एवच 1

करसर्वाणि भूतानि कूटक्षर उच्यत् #

(गीतॆ 15-16)

लोकदल्लि क्षरनॆन्दा अक्षरनॆन्दू ऎरडु विधवाद पुरुषरिद्दारॆ ब्रह्मादिष्टादरान्तवाद प्राणिगळु क्षर शब्ददिन्द हेळल्पडुववरु इवरु बद्धरु कूट - कायिसिद कब्बिणवन्नु बडियलु आधारमद कब्बिणद गूटवु परिणामवन्नु हॊन्ददॆ इरुवन्तॆ, देह परिणामादिगळिल्लदॆ इरुव मुक्तनु-अक्षरनॆन्दु हेळल्पडुत्तानॆ

एकान्तिनस्सदा ब्रह्मध्यानयोगिनोडिये । तेषान्तत्परमंस्थानं यवैश्यन्तिसारयः ।

(. 1-6-39)

ब्रह्मनल्लिये आक्षवन्निट्टु, सदा ब्रह्मवन्ने ध्यान माडुव योगिगळु, यारो अवरु आ उत्सव स्थानवन्नु हॊन्दुववरु, अवरिगॆ श्री वैकुंरवु वासस्थान, निम्म सूरिगळु आ परम पददल्लि भगवन्तनन्नु सदा दर्शन माडुत्तिरुत्तार. ‘सदापन्तिसारय", ऎम्ब श्रुतिवाक्यक्कॆ प्रत्यभि ज्ञापकवाद वाक्यविदु नित्यसूरिगळु उण्टु, ऎम्बुदक्कॆ प्रमाण वचनविदु.

T

तत्वयाधिकार

119

“भोक्ता भोग्यं प्रेरितार चमत्सा, जुष्ट स्ततसेनामृतत्व मेति", ऎन्दु तत्वत्रय विवेकक्कॆ मोक्षवु प्रयोजन (फल) ऎन्दु हेळि इतररु तत्वक्रय निरूपणवन्नु तम्म ग्रन्थगळल्लि मूडिरुवुदु अनिरूपण मूल तत्वत्रयवु साक्षात्तागि मोक्षवन्नु कॊडुवुदिल्ल,

अमृतत्वमेति ऎन्दु हेळिदॆयल्ला, ऎन्दु केळुववरिगॆ बदिलु श्रुतिय तात्सरगति प्रकार वन्नु परीक्षिसबेकु, ऎम्बुदु, अदागि तम्मय विवेक पूर्वकवागि ब्रह्मविद्या विशेषवु अमृतत्ववन्नु मोक्षवन्नु, कॊडुत्तदॆ, ऎम्बुदे श्रुतिय तात्पर, तत्रयविवेकवु साक्षात्तागि देहात्मभाम, स्वतन्त्रात्मभ्रमवॆम्ब प्रधान विरोधिगळन्नु निर्मलगॊळिसि तन्मूलक विद्या विशेष निष्पत्तियन्नुण्टुमाडुत्तदॆ यॆम्बुदु श्रुतिय तात्पय्य, “भोक्ता भोग्यं प्रेरितारञ्च मता, पृथगात्मानं प्रेरितारं चमत्सा”, इत्यादि उपनिष् द्वाक्यगळल्लि तत्वत्रय मननवु अमृत मोक्षपायवॆन्दु हेळिदॆयल्ला ऎन्दु केळबहुदु इल्लि भो भोग्यत्व ज्ञानवु, अचेतन चेतनर, निरूपणॆयन्नु माडि, तन्मूलकवागि, इवरिगिन्त मेलाद मत्तु बेरॆयाद सर्वेश्वर तत्ववन्नु निरूपिसुत्तदॆ. सर्वेश्वर तत्वज्ञानवन्नु विवि-चेतना चेतनगळिन्त बेरॆयॆन्दु तिळिदु उपासनॆ माडिदरॆ मोक्षवु लभिसुत्तदॆयॆम्बुदु श्रुतिय मार्ग, अदरिन्दले आळवन्दार श्री भाष्यकाररु, “स्वाधीन त्रिविध चेतनाचेतन स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति भेद, ऎन्दु, चेतना चेतन गळ ज्ञानवु ईश्वर ज्ञानक्कॆ अन्तरङ्ग सहकारिगळॆम्ब अभिप्रायदिन्द निरूपिसिरुत्तारॆ. आद्दरिन्द चिदचित्तत्व ज्ञानवु मेलॆ निरूपिसिद रीतियल्लि मोक्ष प्राप्तिगॆ उपकरिसुत्तदॆये हॊरतु, अदे मोक्षवन्नु कॊडलारदु ऎन्दु अभिप्रायपट्टु आचारवररु इशेशितव्यरूपमान ऎन्दारम्भिसि आरुळिच्चॆया‌ ऎन्दु निगमिसिद्दारॆ.

सेश्वरसाङ्ख्यनु तत्रयवन्नु ऒप्पिद्दरू, ऎल्लवू स्वतन्त्रवॆन्दु हेळुत्तानॆ अदु सरियल्ल ऎन्दु तिळियपडिसलु, ईशशितरूपमान ऎन्दु ईश्वरनिन्द नियमिसल्पड न चेतना चेतनगळु ऎन्दु चेतनाचेतनगळ ईश्वर पार तन्त्रवन्नु तिळिसुत्तारॆ निक्कुन्निय इवुगळ परस्पर विलक्षणवाद स्वरूप स्थिति प्रवृत्तिगळु. हीगॆ ईशेशित रूपवाद तत्वत्रयगळ स्थितियन्नु “स्वाधीन त्रिविध चेतनाचेतन स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति भेदव” ऎन्दु श्री भाष्यकाररु गद्य त्रयदल्लि कृपॆमाडि तिळिसिरुत्तारॆ चेतनाथ् अचेतनाश्च-चेतना चेतना त्रिविधाश्च त चेतना चेतना-त्रिविध चेतनाचेतनाः तासां, स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति भेदाः, स्वाधीनाः त्रिविध चेतना चेतन स्वरूप स्थिति प्रवृति भेदाः यस्यसः तं

ऎन्दु विग्रह इदन्नु आचाररु

  1. व्यक्ताव्यक्त स्वरूपं समप्ति व्यप्ति रूपवान् ।

(2.5-1-47)

सर्वज्ञः सर्वदृक् सर्वशक्ति र्ज्ञान बलद्दिमान् । चेतना चेतनगळ काव्य कारण भावावाद्वयरूपनु-कारभाव सृष्टि रूप, कारणभाव प्रळयदल्लिरुव सक्षभाद, समष्टि सृष्टि मत्तु दृष्टि सृष्टि रूपगळन्नुळ्ळवनु सर्वश्या ज्ञ सर्वज्ञ, सर्व शरीरकनु. ज्ञानवुळ्ळवनु अदागि सर्ववन्नू साक्षात्करिसतक्कवनु. सर्वशक्तनु सर्वज्ञनु, सर्वबल, सर्वॆश्वर युक्तनु,

  1. अननश्चाप्यवृद्धिश्च स्वाधीननादिमानव ।

क्षम तन्द्रीभय क्रोध कामादिभिरसंयुतः ।

(A. 5-1-48)

वृदिप्रासगळिल्लदवनु, सर्ववन्नू तन्न वशदल्लिट्टु कॊण्डिरुववनु श्रम, सोमारितन, भय, कोप, काम

मॊदलाद हेय गुणगळिल्लदवनु.

1

120

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

त्रिविध चेतनरॆन्नदु, बद्धरैयुन्, मुक्तयुम्, नित्यरॆयुव त्रिविधा चेतन मॆन्नदु, त्रिगुण द्रव्यतॆ युवर् कालक्ष्मियु, शुद्ध स मान द्रव्यतॆयु स्वरूप मॆदु, स्वसाधारण धरताले निरूपितमान धरियॆ, स्थितियावदु— इदिनु जैय कालान्तरानुवृत्ति. इदु र्का नित्य वस्तु हळुक्कु नियायिरुक्कुव अनित्य वस्तुक्कुक्कु ईश्वर सङ्कल्पत्तुक्कीडाह एरियुम् शुरुजियु मिरुक्कु, इ प्रवृत्तियावरु प्रवृत्ति निवृत्ति रूपमान व्यापारव, इवॆयॆल्लाव, वस्तुक्कळ् तोरुव प्रमाण प्रतिनियतवायिरुक्कु, इप्रमाण वस्तुकक्काट्टु म् पोदवो वस्तुक्कर्ळि स्वरूपुट्, स्वरूप निरूपक धर्मळ्ळॆयुव, निरूपित स्वरूप विशेषणळॆयुव, व्यापारण्णकैयुव, कट्टुव, आदिल्‌ रूप स्वरूप

स्वरूप निरूपक धर्मबळाले विशिष्ट माडबेकाट्टु , अन्न स्वरूपत्तॆ जॊल्लुव फोदु अन्नोधर्मलैयिट्टल्लदु कॊल्लवॊज्जादु. आवत्तु स्पाल् शशविषाण तुल्क

मान

له

तावे विवरिसुत्तारॆ -त्रिविध चेतनरु-बद्ध, मुक्त, नित्यरु त्रिविध आचेतनगळु-सत्व रजस्तमो गुणात्मकवाद प्रकृति द्रव्य, काल, शुद्ध सत्व द्रव्यवॆम्बुवु - प्रकृति मण्डलदल्लिरुव अचेतन द्रव्यवु अदर एकारगळाद महदहङ्कार, एकादशेन्द्रिय, पञ्चभूतगळॆन्दु इप्पत्तनाल्कु विभागवागिदॆ शद्ध सत्ववॆम्ब तत्ववु अप्राकृतलोकवाद श्री वैकुण्ठदल्लि मण्टप, गोपुर रूपवागियू जीवेश्वरर शरीरगळागिद्द परिणमिसिरुव अचेतन द्रव्यवु इदु स्वयं प्रकार वागिदॆ. जीवन धर्म भूत ज्ञानवु अचेतनवादरू, चेतन शब्दवु चैतन्य विशिष्टनन्नु तिळिसुवुदरिन्द, अल्लि सेरिदॆ त्रिविध अचेतन तत्वदल्लि अदु सेरिसल्पडलिल्ल. हागॆये ईश्वरनू चेतन नागिद्दरू, चेतनाचेतनगळन्नु स्वाधीनवागि उळ्ळवनॆम्ब स्वाधीन त्रिविध, भेदवर्न् ऎम्ब बहुहि समासदिन्द अन्यपदार्धवागि हेरल्पट्टिरुवुदरिन्द त्रिविध चेतनरल्लि परिगणिसल्पडलिल्ल,

ईग वुदिल्ल

स्वरूपनॆन्दु हेळिरुवुद ननगॆ असाधारणवाद धर्मदिन्द कूडिद धर्मि नम्म सिद्धान्त दल्लि र्निशेष वन्नु प्रतीतिय ल्ल र्निशेषवाद वस्तुवु चदु अदन्नु शब्ददिन्दलू हेळ आद्दरिन्द स्वासुधारणवाद स्वरूप निरूपक धव ९दिन्दलॆ विशिष्टवाद धर्मियु स्पुरिसुत्तदॆ घटवॆन्दरॆ घटत्वरूपधर्म विशिष्टवाद धर्मियुग्राह्य. हागॆये चेतनवॆन्दरॆ चैतन्य विशिष्टवाद धर्मियु शोधवागुत्तदॆ चैतन्यवॆम्ब धर्मविल्लद केवल धर्मिय शश विषाणतुल्यवु स्थितियॆम्ब दु ई स्वरूपद कालान्तरानुवृत्ति उत्तरकाल सम्बन्धि ऎन्दर्ध इदु अनित्य वस्तुगळिगॆ ईश्वर सङ्कल्पानुसार हॆच्चु कडिमॆयागिरुत्तॆ अप्रमेयो, अनियोज्यश्च ऎम्बन्तॆ, अनियाम्यनाद (स्टेच्छॆयिन्द कूडिद) भगवन्तन सङ्कल्पवु हेगो हागॆ वस्तुगळ स्थितियिरुत्तॆ. इल्लि प्रवृत्ति ऎम्बुदु प्रवृत्ति निवृत्ति रूपवाद व्यावार, निवृत्तियू अकरण सङ्कल्प रूपवाद प्रव्यक्ति विशेषवाद्दरिन्द प्रत्येकवागि प्रवृत्ति निवृत्ति ऎन्दु हेळलिल्ल. प्रवृत्ति शब्ददल्लि अन्तर्गतवॆन्दु आचाररु तिळिसुत्तारॆ. इवॆयॆल्ला स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति रूपवाद ई व्यापारगळॆल्ला, ऒन्दॊन्दु वस्तुगळल्लि प्रत्यक्षादि प्रमाणगळु तोरिसुवन्तॆ व्यवस्थितवागिरुवुवु. ई प्रत्याक प्रमाणगळु वस्तुगळन्नु तिळिसुवाग, आयाया वस्तुगळ

1

तत्व त्रयाधिकार क

121

जीवस्वरूप कथनम्

आयाल् जीवस्वरूप ज्ञान मानन ममल मणुत्व मित्यादिहळान

  • निरूपकधर्मयिट्टु निरूपित्तु, ज्ञानमानन्दममल मणुवॆन्नु, इमुखब्बळाले कॊल्लक्कडवदु.

जीवात्मनः भगवतः शेषत्वं

इत्तीवतत्वं सर्वॆश्वरनुक्कु शेषमाये इरुक्कु मॆन्नुव, अवनुक्कॆ निरुपाधिक शेषवॆनु, आयोगायोग व्यवच्छेदकाले प्रथमपदल् तोत्तिन विश्ले

षत्वम् सम्बन्धरूपमायाले सम्बन्धिस्वरूपं निरूपितमानालिल्लदु अरियवॊणा मैयाले जीवनुक्कु इदु निरूपित स्वरूप विशेषवॆन्नलार्,

अणुत्तेसति चेतनत्वम्पोले, “तषसति चेतनत्ववु जीवलक्षणवाह वट्रा हैयाले इषत्वं जीवनुक्कु स्वरूपनिरूपक तन्न वुमाम्,

स्वरूपवन्नू, स्वरूप निरूपक धर्मगळन्नू निरूपित स्वरूप विशेषण धर्मगळन्नू व्यावार गळन्नू ऒन्दु ग “डिसिये तोरिसुत्तवॆ. अदिल् अवुगळल्लि स्वरूववन्नु स्वरूप निरूवक धर्म गळिन्द कूडिद हागॆये तोरिसुत्तदॆ. आ स्वरूपवन्नु, आयाया धर्मगळन्नु हेळदॆ हेळ लागुवुदिल्ल आयाया धर्मगळन्नु बिट्टु हेळुवुदु, शशविषाणक्कॆ सम. मॊलक्कॆ कॊम्बिल्ल. मॊलद कॊम्बन्नु हेगॆ निरूपिसलागुवुदिल्लवो हागॆ स्वरूप निरूवक धर्मगळन्नु बिट्टु स्वरूपवन्नु निरूपिसलागुवुदिल्लवॆन्दर्ध.

जीवस्वरूप कथनम्

आद्दरिन्द जीवस्वरूपवन्नु ज्ञान, आनन्दत्व, अवलत्व, अणुत्व ऎम्बी मॊदलाद स्वरूप निरूवक धर्मगळन्निट्टु रूपिसि, ज्ञान, आनन्द, अमल, अणु ऎन्दु ई प्रकार हेळतक्कद्दु, अणुत्वमित्यादिहळान ऎम्बल्लि आर्दिब्दवु प्रत्यक्ष्यवन्नु विवक्षिसुत्तद.

जीवनु भगवच्छेप भूतनु

A

ई जीवतत्ववु सर्वॆश्वरनिगॆ शेषभूतवागिये इरुत्तदॆ.

इदु अयोग व्यवच्छेद. अयोग - सम्बन्धवल्लदिरुवुदन्नु, व्यवच्छेद - तडॆयुवुदु, अदागि शेषभूतवॆम्ब सम्बन्ध वन्नु निबन्धिसुत्तदॆ. अवनिगॆ निरुवाधिकशेषवॆन्दु अन्यरिगॆ इल्लवॆन्दु हेळि अयोगवन्नु - अन्यरिगॆ सम्बन्धवन्नु व्यवच्छेदिसुत्तदॆ. तडॆयुत्तदॆ. शङ्ख पाण्डर एन ऎम्बल्लि शङ्खक्कॆ विशेषणवाद पाण्डर (बिळिपु) शब्ददॊडनॆ सेरिद एवकारवु अन्दरॆ विशेषण सम्बन्ध एवकारवु अयोग व्यवच्छेदक

श०खक्कॆ बिळिपु सम्बन्धद अभावक्कॆ अभाववन्नु तिळिसुत्तदॆ. वार्ध ऎव धनुर्धरः ऎम्बल्लि विशेष्यदॊडनॆ कूडिद एवकारवु, धनुर्धरत्व सम्बन्धवन्नु पार्धनन्नु बिट्टु अन्यरल्लि व्यवच्छेदिसुत्तदॆ. अभाववन्नु हेळुत्तदॆ. व्यवच्छेद (अभाव), प्रणववु, अ, , ’ व आकारवु लक्ष्मि विशिष्ट नारायणवाचक, उकारवु

इदु अन्ययोग (अन्यरिगॆ सम्बन्धद) ऎम्ब मूरु अक्षरगळिन्द कूडिदॆ एवकारार्ध, नकारवु, पञ्चविंशति

122

श्रीमहस्यत्रयसारे

ఆయ

तत्ववाद जीववाचक, आत न’ ऎम्बल्लि आकारवु विशेष्य, मकारवु विशेषण, एव ऎम्बुदु अन्ययोग व्यवच्छेद, जीवनु अकार वाच्यनाद भगवन्तनिगे शेषभूतनु मत्तवरिगल्ल आय म आकारवाच्यनाद भगवन्तनिगॆ जीवनु दासऎम्बल्लि उपाधियिल्लदिरुवुदु अयोग व्यवच्छेदक. ई शेषत्ववु जीवनिगॆ निरूपित स्वरूप विशेषणवॆन्दु हेळबहुदु एकॆन्दरॆ अष्टाक्षर प्रथम पददल्लि अन्दरॆ प्रणवदल्लि तोरुव शेषत्ववु सम्बन्ध रूपवागिरुवुद रिन्द सम्बन्धि (शीषियाद भगवन्त) य स्वरूपवन्नु रूपिसदॆ तिळियलागदु. आद्दरिन्द जीवनिगॆ शेषत्ववु निरूपित स्वरूप विशेषणवॆन्दु हेळबहुदु अणुसति चेतन ऎम्बुदु जीवलक्षण. 4 णुत्ते ऎम्बुदरिन्द विभुवाद ईश्वरनन्नु व्यावर्तिसुत्तदॆ. चेतन ऎम्बुदु जडवाद आचेतन पदार्थवन्नु व्यावर्तिसुत्तदॆ तडॆयुत्तदॆ ऎन्दर्थ. अदरिन्द ईश्वरनिगिन्तलू, अचेतन क्किन्तलू जीवनु बेरॆयादवनु ऎन्दु सिद्धिसुत्तदॆ. हागॆये “स्वतः शेषसति चेतनत्व”वू जीवलक्षणवागलु साध्यवाद्दरिन्द शेषत्ववन्नु स्वरूप निरूपक धर्मवॆन्दू हेळबहुदु. स्वतः-स्टेच्छानधीन शेषत्ववु विवक्षित, जीवनु भगवन्तनिगॆ निरुपाधिकशेषनु लक्ष्मियु भगवन्तनिगॆ स्टेच्छॆयिन्द शेषभूतळु. 1) “युवातुलै

“युवादौतु” ऎम्ब पराशर भट्टर श्लोकदल्लि, पति पारार्धवन्नु तन्निच्छॆयिन्द विभागिसि इट्टु कॊण्डिद्दाळॆन्दु निरूपिसल्पट्टिदॆयल्लवॆ. (2) ‘स्वतः श्री विष्टोमसि’ ऎम्बल्लियू स्वतः पदवु कर्माद्युपाधिगळिल्लदॆ, तन्निष्ट दन्तॆ भगवन्तनिगॆ शेषभूतळु ऎन्दु निरूपिसल्पट्टिरुवुदरिन्द स्टेच्छाधीन शषत्ववु लक्ष्मियदु. जीवनदु स्वच्छा नधीन शेषत्ववु आद्दरिन्द ई लक्षणक्कॆ लक्ष्मियल्लि अतिव्याप्तियिल्ल. स्टेच्छॆयिन्द शेषनाद्दरिन्द अवनल्लि ई लक्षणक्कॆ

भगवन्तनु

दशरध वसुदेवादिगळिगॆ

अति व्याप्तियिल्ल.

1

स्थिरत्वादीन् कृत्वा भगवतिगुणास्‌पुंस्कृ

युवादौतुपरवशता शत्र शमन

सुलभान् ।

त्वयि कान्तामदिमपतिपारार्थ करुण

क्षमादीन वास्तु भवति युवरात्मनिभदा ।

गॆये

(श्री गुणरत्नकोश) लक्ष्मीनारायणरि ब्बरिगू युवत्ववु समानवागिद्दरू परवशतॆ इल्लदिरुवुदु, शत्रुशमन, स्थिरत्व मॊदलाद पुरुषनिगॆ बेकाद गुणगळन्नु भगवन्तनु तट्टुकॊण्डनु. लक्ष्मियु स्त्रीत्वक्कॆ एकान्तवाद, मृदुस्वभाव, पतिगॆ अधीनवागिरुवुदु, करुणॆ, क्षमॆ ऎम्ब गुणगळन्नु तानिट्टुकॊण्डळु पतिषारार्धवु अवळु तन्निच्छॆयिन्द इट्टुकॊण्ड गुण,

2 स्वतः त्र्यं विष्णः स्वमसि ततविष भगवान्

त्वदायत्नर्धित्व प्रभवदपराधीन विभवः । स्वयादीप्पारत्नं भवद महार्घनविगुणं

नकुंर स्वातन्त्र्यं भवतिचनचााहितगुणम् ॥

ऎलै श्रीये नीनु स्वतः लौकिक दम्पतिगळ हागॆ उपाधियिल्लदॆ विष्णुविगॆ सॊत्तु अवन अधीनळु

भगवन्तन

निन्न अधीनवाद ऋद्धि समद्धियुळ्ळवनु हागादरॆ अवन ऐश्वरवु पराधीनवे ऎन्दरॆ अल्ल रत्नक्कॆ तन्न कान्ति यिन्द बॆलॆ अधिकवाद मात्रक्कॆ रत्नक्कॆ कुन्दुकवेनू इल्ल. अदर हिरिमॆ कडिमॆयागलिल्ल. इदरिन्द अदक्कॆ अस्वाधीन गुणवेनू इल्लवल्ल हागॆये लक्ष्मिय हिरिमॆयिन्द भगवन्तनिगॆ हिरिमॆयु हॆच्चागुत्तदॆये विनह कडिमॆयाग तारदु अन्यरिन्द बन्द गुणवल्ल ऎम्बुदु भाव

ንእና

तत्वत्रयाधिकारः

ईश्वर लक्षणव

123

इप्पडिविभुसति चेतनत्वमुव, अनन्याधीनत्व निरुपाधिक शेषित्यादिहळु ईश्वर लक्षण ४.

जीवेश्वर सामान्य लक्षणव

जीवेश्वररूपमान आत्मवर्गुल्लाव पॊदुवान लक्षणवर् चेतनत्वमुम्, प्रत्यमुम्, चेतनत्वमावदु? ज्ञानाश्रयमाहै.. प्रत्यमानदु ? तनकु र्तातोत्तु. अप्पोदुदरतज्ञान निरपेक्षमाह, नानॆन्नु तोत्तुव इप्पडि चेतनत्यादिहळ् ईशरनुक्कुम् जीवनुक्कुव पॊदुवाद्रॆयाले अवनि कट्टल् व्यावृत्ति तॊत्तुक्काह जीवलक्षणत्तिल् स्वतषत्यादिहळ कॊल्लुहिरदु. अयोगान्ययोगव्यवच्छेदार्थ निरूपणम्,

प्रथमाक्षरल् चतुरियिल् तोन तादर्थत्तुु उपाधियिल्लामैयाले, सर्वरक्षकनान श्रीयः पतिक्कु जीवात्म निरुपाधिक शेषमायेयिरक्कुवॆनु, इप्पडि यावरूपं सम्बन्धं शूल्लु अयोगव्यवच्छेदन, मध्यमाक्षरल् अवधारण सामरत्ताले यवनु निरुपाधिकशेषं बेरॊरुत्तरुक्कु निरुपाधिक शेषम आन्ययोग व्यवच्छेदवर्, इषत्वम् भागवत शेषप्प परन्तमाह वळरुन्नुडि मेले कॊल्लक्कडवोम्

ईश्वर लक्षण

हीगॆ विभुत्वदिन्द कूडिद चेतनत्ववू, अनन्याधीनत्व-अन्यरिगॆ अधीनविल्लदिरुवुदु, निरु धिकशेषित्यादिगळू निष्कारणवागि स्वामियागिरुवुदू, आदि शब्ददिन्द, निरुपाधिक नियङ्कृताडि गळू ईश्वर लक्षणगळु विभुसतिचेतनत्वं ऎम्ब ईश्वर लक्षणदल्लि विभुत्व ऎम्बुदरिन्द अणुवाद जीवनु व्यावर्तिसल्पडुत्तानॆ पृथक्करिसल्पडुत्तानॆन्दर्थ हागॆये चेतनत्वं ऎम्बद रिन्द अचेतनवाद प्रकृतियु बेरॆ माडल्पडुत्तदॆयाद्दरिन्द ई लक्षणवु चेतनाचेतनगळिन्द बेरॆयाद ईश्वरनन्नु तिळियपडिसुत्तदॆ

जीवेश्वर सामान्यलक्षण–

जीवेश्वर रूपवाद आत्मवर्गक्कॆल्ला सामान्य लक्षणवु चेतनत्ववू प्रत्यकवू, चेतना वॆन्दरॆ ज्ञानक्कॆ आश्रयवागिरुवुदु. प्रत्यकवॆन्दरॆ तनगॆ ताने तोचुवुदु. आवाग धर्म भूत ज्ञान निरपेक्षवागि “नानु” ऎन्दु तोचुत्तदॆ. “आप्रभोदात् अहमित्यकाकारे णस्सुरणात्” ऎम्ब भाष्यवन्नु अनुसरिसि स्वरूपवु अहन्त्व प्रकारकवागि अहं ऎन्दु तोचु वुदु इल्लदिद्दरॆ निर्विशेषवस्तु प्रतीतियन्नु ऒप्पबेकु. इदु नमगॆ इष्टविल्ल. हीगॆ चेतन त्यादिगळु ईश्वरनिगू जीवनिगू सामान्यवागिरुवुदरिन्द ईश्वरिनिगिन्त जीवनिगॆ व्यावृत्तियु (भेदवु) तोचलु जीवलक्षणदल्लि स्वत शेषादिगळु हेळल्पडुत्तवॆ.

अयोगान्ययोग व्यवच्छेद–

प्रथमाक्षरद ‘आय’ ऎम्बल्लिय चतुर्थियल्लि तोरुव तादर्थ्यक्कॆ उपाधि (कारणि) यिल्लदॆ इरुवुदरिन्द सर्वरक्षकनाद लक्ष्मीपतिगॆ जीवात्मा निरुपाधिक शेषनागिये इरुत्तानॆन्दु…

124

श्रीमहस्यत्रयसारे

जीवात्म प्रवृत्ति निरूपणव,

इप्पडि यिरुक्किर चेतनरुडैय प्रवृत्ति यावदु पराधीनमुवाय परार्थमु मानकरु, भोक्तित्वमुम्, ईश्वरः र्त भोग्यतार्थवाह इव‌हळुक्कु कत्वभोक्यत्वङ्गळ्ळि युण्डाकुयालि परार्थ४.

बद्धमुक्तनित्यानं स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेद कथनं

बद्ध चेतनरुक्कु नीक्कियुळ्ळारिल् भेद अविद्याकर वासनारुचि प्रकृति सम्बन्ध युक्तरायिरु, इव‌ळुक्कु अन्नोन्यंवरु ज्ञानसुखादिभेद ब्रह्मादिस्तम्ब परनगळान वहुप्पुहळिले कण्णुकॊळ्ळदु. इब्बद्द चेतन‌ तन्मामुक्कु, कान रूपवाह शरण्य नडै शरीरङ्ग धरिस्वरूपत्तालु, धरभूतज्ञानवालु, धरियानिद्द हळ्, धरियाल् वरुहिरधारणं शरीर नुडैय सक्कु प्रयोजक मायिरुक्कुम् जाग्रदाद्यवस्थॆयिल् धरभूतज्ञानाले वरुहिर शरीरधारण

Ad

हीगॆ याव रूप सम्बन्धवन्नु हेळुवुदु अयोग व्यवच्छेद. मध्यमाक्षरवाद, “उ” एवअवनिगे ऎम्ब अवधारणार्थवन्नु कॊडुत्तदॆ. ई अवधारण सामर्थ्यदिन्द जीवनु अकारवाच्यनाद ईश्वरनिगॆ (लक्ष्मीविशिष्टनिगॆ) निरुपाधिक शेष-याव कारणवू इल्लदॆ शेष भूतनु. बेरॆयारिगू हागॆ निरुपाधिक शेषभूतनल्ल ऎम्बुदु अन्ययोग व्यवच्छेद अदागि इतररिगॆ योग-सम्बन्धवन्नु व्यवच्छेदिसुवुदु इल्लवॆन्दु हेळुवुदु सर्वरक्षकनाद प्रियः पतिक्कु- अ’ ऎम्ब प्रथमाक्षरदल्लि रूढियिन्द शेषित्ववु श्री विशिष्टनिगॆ, ऎम्बुदु हृदय. अवरक्षणॆ, ऎम्ब धातुविन प्रकार, रक्षण व्यापारवू श्री विशिष्टसाद वरब्रह्मनिगॆ अन्वयिसुत्तदॆ. इदरिन्द शेषत्व प्रतिसम्बन्धित्ववू श्री विशिष्टनिगेनॆ एर्पडुत्तदॆ. ई शेषत्ववु निरुपाधिकवॆन्दु निर्दॆशिसिरुवुदरिन्द आयोग व्यवच्छेदवु सिद्धिसि, नियत शेषशेषिभाववु द्योतवागुत्तदॆ. इदरिन्द आधेयत्व प्रकृति नियमैरादिकर्तु रीरं” ऎम्ब श्री सूक्तिय प्रकार शरीरात्म भाववु हेळल्पट्टु, श्री विशिष्ट परतत्वक्कॆ सर्वशरीरित्ववु निरूपिसल्पडुत्तदॆ

ई शेषत्ववु भागवत शेषत्व पठ्यन्तवागि बॆळॆयुत्तदॆ ऎम्बुदन्नु आचाररु मुन्दॆ प्ररुषार्धकाष्ठाधिकारदल्लि निरूपिसुत्तारॆ.

जीवात्म प्रवृत्ति निरूपणॆ-हीगॆ चैतन्य स्वरूपराद चेतनर प्रवृत्तियु एनॆन्दरॆ पराधीनवू, परप्रयोजनवू आद कर्तृत्व भोक्तत्वगळु, ईश्वरनु तन्न भूक्तत्वक्कागि ई चेतनरिगॆ कर्तृत्व भोत्वगळन्नु उण्टुमाडुवुदरिन्द इवु परार्धगळु अन्दरॆ जीवन भोक्तित्वगळिन्द भगवन्तनिगॆ लीलार सानुभववू भोगरसानुभववू उण्टागुवुदरिन्द ईश्वरन भोक्‌तृगळु,

इवु

बद्धमुक्त नित्यर स्वरूप स्थिति प्रवृत्ति भेदगळु :-

बद्ध चेतनरुक्कु इत्यादि बद्द चेतनरिगॆ मुक्त नित्यरिगिन्त भेदकाकारवु अविद्याकर्मवासना रुचि प्रकृतिसम्बन्धदिन्द कूडिरुवुदु अविद्या देहवे आत्मा ऎम्ब बुद्दिय आत्मास्वन्तत्रनु ऎम्ब बुद्धिय कर्म-पुण्य पाप रूपवादरू वासना-पुण्य पापदिन्द उण्टाद संस्कार- पूर्व

तत्रयाधिकारः

125

पुरुषार्थ तदुपायानुष्ठानुक्कु, कृतोपायनान परमै काक्कु भगवदनु भव कैरळुक्कु उपयुक्तमा यिरुक्कुम् पापकृत्तु क्कळुक्कु इच्चरीरधारणव विपरीतफलत्तुक्कु हेतुवायिरुक्कु, इष्टेवर्‌हळ इक्करीर निट्बाल् इदिन् सङ्घात, कुयुमित्त, शरीरत्तु कु पादानमान द्रव्यङ्गळ् ईश्वरशरीरवाय् कॊण्डु किडक्कु.

बद्धानां नित्यमुक्तिभ्यः स्थिति प्रवृत्ति भेद कथनं बद्ध चेतनरुक्कु इतररिल् काट्टि स्थितिभेदव :-संसार सम्बन्ध यावन्नोक्ष मनुवक्कॆ, प्रवृत्तिभेदम्….पुण्यपापानुभयरूपळान त्रिविध प्रवृत्ति हळम्,

पूर्वजन्म पुण्यपापगळ दॆसॆयिन्द मुन्दिन जन्मगळल्लि अदक्कॆ सदृशवाद काव्यगळल्लि प्रवृत्ति युण्टा गुवन्तॆ बुद्धियु उण्टागुत्तॆ. इदेकर्मवासनॆ, रुचि. तदनुगुणवाद प्रीति, प्रकृतिसम्बन्ध; - आयाया कर्मानुगुणवाद शरीरसम्बन्ध इवु बद्धरिगॆ चक्रदहागॆ परिवर्तिसुत्तिरुत्तदॆ. नित्यमुक्तरिगॆ इवु इल्ल इव‌ळुक्कु ई बद्ध जीवरिगॆ अनोन्य भेदवु अवरवर ज्ञानसुखाद्यनुभवदिन्द चतुर्मुखब्रह्मनिन्द आरम्भिसि सम्भ (स्थावर) परन्तगळाद वहुप्पु विभागगळिन्द तिळियतक्कद्दु, ई बद्द चेतनरु तमतमगॆ कर्मानुरूपवागि ईश्वरनु कॊट्ट शरीरगळन्नु धर्मि स्वरूपदिन्दलू धर्म भूत ज्ञानदिन्दलू धरिसुत्तिरुत्तारॆ. कर्मानु रूप माह ईश्वरनड्क शरीरङ्ग - “रमणीय चरणाति रमणीयं योनिमापरन् ब्राह्मण योनिन्दा क्षत्रिय योनिन्दा वैश्य योनिंवा” ऎम्ब श्रुतियप्रकार पुण्य कर्मगळिन्द ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शरीरगळु उण्टागुत्तवॆ.वेदाध्ययन यज्ञयोगगळल्लि अधिकारवु ब्राह्मणक्षत्रियरिगॆ उण्टु. वैश्यरिगॆ वेदाध्यय नदल्लि मात्र अधिकार, इवु रमणीय उत्कृष्ट जन्मगळु, “अधयइह कपूय चरणा कपूयॊं योनिमा परन्‌ योनिन्दा सूकर योनिन्दा चण्डाल योनिन्दा” ऎम्ब श्रुतियप्रकार कुतवाद कपूय)कर्म(चरणगळन्नु माडिदवरु नायि, हन्दि, चण्डालादि कुतवाद जुगुप्पा वहवाद) शरीरगळन्नु हॊन्दुवरु. धर्मियल् वरुहिर धारणम् इत्यादि जीवन धर्मिस्वरू पदिन्द शरीर धारणवु शरीरद इरुविकॆगॆ (सत्तॆ) प्रयोजक, इदन्नु सुषुप्ति मार्छावस्थॆगळल्लि शरीरधारणदिन्द तिळियबहुदु. जाग्रदाद्यवस्थॆ- ज्ञानप्रसरणावस्थॆयल्लि धर्मभूत ज्ञान दिन्द शरीरधारणवु एर्पट्टु पुरुषा र्धतदुपायगळन्नु - अन्दरॆ सुखदुःखानुभव रूप आत्मप्र योजनादि कर्मानुष्ठानगळन्नु मडलु उपयुक्तवागुत्तदॆ. कृतोपायनाद इत्यादि-मो कार्थवागि भक्ति प्रपत्तिरूप उपायानुष्ठान माडिद परमै कान्तिगॆ भगवङ्करगळन्नु अनुष्ठिसलु उपयुक्तवागुत्तदॆ. पापकृत्तुक्कळु पापमाडुववरिगॆ, ई शरीरधारणवु विषमिश्रवाद अन्न भोजनद हागॆ विपरीतफलक्कॆ कारणवागिरुवुदु. ई जीवरुगळु ई शरीरवन्नु बिट्टरॆ ई शरीरद सङ्घात-अवयव सम्बध विशेषवु कु यु-शिथिलवागुत्तदॆ, द्रव्यस्वरूपवु नित्यवाद्दरिन्द अदर अवस्थॆगॆ नाशवे हॊत्तु नैयायिकरु हेळुवन्तॆ निरन्वयविनाशविल्ल. सत्कारवादिगळाद नमगॆ अवस्थॆगॆ मार्पाडु एर्पडुत्तदॆ. शरीरक्कॆ उपदानवाद द्रव्यगळु अन्दरॆ शरीरांश भूतद्रव्यगळु • ईश्वर शरीरवागिरुवुवु. अणुवाद जीवनु शरीरांशगळिगॆ धारकनागिल्लदॆ होदरू, विभुवाद ईश्वरनु ई शरीरांशगळन्नु धरिसिकॊण्डिरुवुदरिन्द अवनिगॆ शरीरवागि इरुत्तवॆ ऎन्दु अर्थ

126

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

मुक्तानां इतरेभ्यः स्वरूपादि भेद कथनम्

मुक्तरुक्कु नीक्कियुळ्ळारिल् भेद–प्रतिबन्धक निवृत्तियाले आविरतस्वरूप रायिरुक्कॆ, स्थितिभेदं- पूरावधियुक्तान वाविद्यावत्तु क्कुत्तरावधियनियिरु

इव हळक्कन्यं स्थिति भेदमाविरावल् मुप्पाडु पिराडुहळालुण्णान मुन्नुत्तवे चुरुक्कम्

प्रवृत्ति भेदव :अनादि काल निन्नु पॆत्त परिपूर भगवदनुभवजनित प्रीति करितमान यथाभिमत कैय्य तद्वि शेषण्णळ्

नित्यानां स्वरूप स्थितिप्रवृत्ति भेदकनन

नित्यरुक्कु नीक्कियुळ्ळारिल् भेद :- अनाद्याविरत स्वरूपराय परतन्त्र रायिर कै इव‌ हुक्कु नीक्कियुळ्ळारिल् काल् स्थितिभेदं अनाद्यनुवृत्तमान शेषि ता- भवन, इदु नित्यरुक्कॆल्ला पॊदुवानपडियाले इवर् हळुळ्ळ न्यून्यम् स्थितियिल् वैषम्यविल्ल इव‌ हळुकु प्रवृत्ति भद आनादिप्रवाह नित्यबळान कैर

विशेष- आ.

नित्यमुक्तानां सर्वविध कैङ्कय्य सिद्धि.

अनन्य गरुडादिहळुक्कधिकारविशेषण कुम् तदुचितकैरङ्गळु, व्यवस्थितङ्ग ळायिरुक्क

बद्ध मुक्त नित्यर स्थिति प्रवृत्ति भेद

बद्द चेतनरिगॆ इतररिगिन्त स्थिति बेदवु मोक्षवन्नु पडॆयुववरगॆ संसारबन्धवु अनुवर्तिसिरुवुदे. प्रवृत्ति भेदवु प्रण्यपाप अवॆरडू इल्लदिरुव (आन भय) मूरुविध प्रवृत्तिगळु, मुक्तरिगॆ नीक्कियुळ्ळारिल् -बद्द नित्यरहागिल्लद प्रतिबन्धक निवृत्तियु एर्पट्टु अदरिन्द अपहतपात्मत्यादिगळिन्द कूडिद स्वरूवाविर्भाव इवर स्थितिभेदवु पूर्वावधियुण्टाद आविर्भावक्कॆ उत्तरावधियिल्लदिरि वुदु स्वस्वरूपविर्भाववु मुक्तनागि होदनन्तर एर्वडुवुदरिन्द अदक्कॆ र्वावधियुण्टु. अनन्तर आस्वरूपक्कॆ याव तिरोभाववू उण्टागदॆ इरुवुदरिन्द उत्तरावधियिल्ल ई मुक्तरिगॆ स्थितिभेदवु मोक्षवुलभिसिद्दुदु मुन्दॆ हिन्दॆ ऎम्ब परस्पर कालव्यत्यासवे प्रतिभेदवु अनादिकाल लभिसदॆ ईग लभिसिद परिपूर्ण भगवदनुभवदिन्द उण्टाद प्रीतियिन्द माडुव यथाभिमत कैङ्कय्य विशेषगळु. नित्यरुक्कु इत्यादि नित्यरिगॆ नीक्कियुळ्ळारिल् बद्धमुक्तरिगिन्त भेदवु आनादिकालदिन्द इरुव स्वरूपा विर्भावदिन्द कूडिदवरागि भगवन्तनिगॆ परतन्त्ररागिरुवुदु इवरिगॆ बाकियवरिगिन्त स्थितियल्लि भेदवु अनादियागि अनुवर्तिसिबरुव शेषियद भगवन्तन अनुभव ई अनुभववु नित्यात्मरिगॆल्ला समानवाद्दरिन्द इवरिगॆ स्थितियल्लि अनोन्य भेदविल्ल. इवरुगळिगॆ प्रवृत्ति भेदवु अनादि प्रवाहनित्यवाद कैङ्कर् विशेषगळु

नित्यमुक्तरिगॆ सर्वविध कैङ्कय्य सिद्धि

अनन्तगरुड विष्यक्केनरे मॊदलाद नित्यरिगॆ अधिकार विशेषगळुयावुवु अन्दरॆ अनन्त-आदिशेषनु भगवन्तनिगॆ, आसन, हासिगॆ, पादुका मॊदलाद रूपदल्लिद्दु कैङ्कर माडुवुदु. गरुडनु

}तत्वत्रयाधिकारः

नित्यरु क्कुम् मुक्तरुक्कुम् सत्वविधक्कॆ सिद्धियु निर वठ

@ 00

127

कूडुव वॆन्निल् ? स्वामियनुडैय अभिप्रायतुक्कीडाहतनक्कभिमतङ्गळान कैरङ्गळिले किडयादवॆ यॆन्नुमिल्लामैयालुव, ओरोरुत्तरुक्कु व्यवस्थितङ्गळान कैर छत्ताङ्गळ नुषिक वेणुमॆनहिरवभिसद्धि वेरॊरुत्तरुक्कु क्षीरवामै यालुव, आरेनुमॊरुवरनुषिक्कुम् कैरमुव स्वामिक्कु प्रियमान पडियाले, तदुचित कैरळु सरुक्कुव प्रियवाय् कैय्य फलमान प्रीतियिल् वाशियिल्ला सत्वविधरसिद्धियुण्णॆ यिल् विरोधविल्लॆ,

धरभूतज्ञान निरूपणम्

3

यालु

इव्वात्याक्कळॆल्ला रुक्कु धरिस्वरूपम्मेले धरभूत ज्ञानवु

सरुक्कुम्

द्रव्यमायि

रुक्क, इदिन् स्वरूपत्तॆत्त निरुळिच्चॆयादॊड्डदु, चेतनरॆडुत्त विशिष्टत्तिले विशेषणमाय् चोरुहि नियडियाद,

इद्दरभूत ज्ञान विषयप्रकाशन दयिले स्वाश्रयत्तुक्कु स्वयम्प्रकाश मायिरुक्कुव, इदु ईश्वरनुक्कु, नित्यरु नित्यविभुवायिरुक्कु,

मळ्ळारु संसारावस्थॆयिल् कानुरूपवाद बहुविधसत्कच विकास वत्ताय मुक्तावस्थॆयले नैजविकासत्तालॆ पिन्नु यावत्कालम् विभुवायिरुक्कुम् भगवन्तनिगॆ वाहनवागिरुवुदु, विष्टक्केनरु सेनानायकरागिद्दु भगवदाज्ञापालकरागिरुवुदु. ई अधिकारगळू कैङ्कय्यगळू इवरुगळिगॆ व्यवस्थितवागिरुवाग, नित्यरिगू मुक्तरिगू सर्वविध कैङ्कय्य सिद्धि उण्टॆन्दु हेळुव अर्धवु सरिये ऎन्दरॆ, सरियॆन्दु आचारैरु निरूपिसुत्तारॆ. हेगॆन्दरॆ स्वामियाद भगवन्तन अभिप्रायानुसारवागि तन्नभिम तविरुवदु दासन स्वभाव. आ रीति याद अभिमतक्कनुसारवाद कैङ्करगळल्लि तनगॆ लभिसदे इरुवुदु यावुदू इल्लवु. ऒब्बॊब्बरिगॆ व्यवस्थितगळाद कैङ्क‌गळन्नु तावु अनुष्ठिसबेकॆम्ब अभिसन्धियु अभिलाषॆयु, इन्नॊब्बरिगॆ उण्टागदु, एकॆन्दरॆ श्री वैकुण्ठदल्लि “नित्याभिवाञ्चित परस्पर नीतिभावै” ऎम्ब श्री सूक्तिय प्रकार परस्पर दासभाववु इरुवुदरिन्दलू स्वाम्यनभिमतवु तमगॆ इष्टवल्लवाद्दरिन्दलू ऒब्बर मेलॆ मत्तॊब्बरिगॆ पोटियिरुवुदिल्ल. यूरॊब्बरु अनुष्ठिसुव कैङ्करवु स्वामिगॆ प्रिय वागिरुवुदरिन्द, तदुचित कैङ्कय्यगळु सर्वरिगू प्रियवागि कैङ्कर फलवाद प्रीतियल्लि तार तम्यविल्लदिरुवुदरिन्द, सर्वरिगू सर्वविध कैङ्कय्य सिद्धियुण्टॆम्बुदरल्लि विरोधविल्ल, धर्मभूतज्ञान निरूपणॆ

ई ऎल्ला आत्मरिगू धर्मि स्वरूपद हागॆ धर्मभूत ज्ञानवू द्रव्यवागिरुवाग इदर स्वरूपवन्नु “त्रिविध अचेतनवॆम्बल्लि प्रतेकवागि चतुर्विध अचेतन’गळॆन्दु, भाष्यकाररु निरूपिसदॆ इरुवुदक्कॆ कारणवेनॆन्दरॆ, “त्रिविध चेतनरॆन्दु हेळिरुव चेतन शब्ददल्लि विशेषण विशिष्टवागि ‘सेरिरुवुदे, चेतना बुद्धियेषांअति चेतना– मत्वर्थिय आच् प्रत्ययान्त चेतना शब्दार्थदल्लि ऎन्दर्थ चेतनाविशिष्ट चेतननिगॆ भगवदधीनत्ववन्नु हेळिरुवुदरिन्द, चेतना-धर्मभूत ज्ञानवॆम्ब विशेषणक्कू भगवदधीनत्ववु हेळल्पट्टितु.

हीगॆ विशेषण भूतवाद धर्मभूत ज्ञानक्कॆ भगवदधीनत्ववन्नु हेळिदरॆ स्वरूप स्थिति प्रकृतिगळन्नु निरूपिसबेडवे ऎन्दरॆ अदन्नु निरूपिसुत्तारॆ,

128

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

धर्मभूत ज्ञाननुडैय प्रवृत्ति,

इदुक्कु प्रवृत्तियावदु (1) विषय प्रकाशिप्पियुव, (2) प्रयत्ना वस्थॆयिले शरीरादिहळ्ळि प्रेरियुव, (3) बण्णदयिल् सजचविकासङ्गळु, (4) आनुकूल्य प्राति कूल्य प्रकाशमुखत्ताले भोगवन्हिरववस्थॆ

यु.

सुख दुखः व्यवहारः-अनुकूल प्रतिकूल विभाग भोगमावदु ? - तननुकूलवाहवादल् प्रतिकूल माहवादलॊन्नॆयनु भवि, ईश्वरविभूतियान सत्ववस्तुक्कळुक्कुम् - अनुकॊल्य स्वभावमायिप्पडि ईश्वरनुव नित्यरुव मुक्तरु मनुभवियानि, संसारिहळुक्कु कालभेदत्तालु,

धर्मभूत ज्ञानद प्रकृति निरूपणॆ-

ई धर्मभूत ज्ञानवु विषयगळन्नु प्रकाशिसुव वेळॆयल्लि, तनगॆ आश्रयवाद आत्म वस्तुविगॆ स्वयं-तानागिये प्रकाशवागिरुवुदु,

घटादिगळु इतररिगॆ प्रकाशवागुत्तवॆ.

“घट महं जानामि” ऎम्बल्लि घटवु अहंशब्द वाच्यनाद जीवनिगॆ तिळियुत्तदॆये हॊरतु तन्नन्नु तानु तिळियुवुदिल्ल. धर्मभूत ज्ञानवु तनगॆ आश्रयवाद जीवनिगॆ घटवन्नू तिळियपडिसुवाग, तन्नन्नु ताने तोरिसुकॊडुत्तदॆ ऎम्बुदु तात्पर ई धर्मभूत ज्ञानवु ईश्वरनिगू, नित्यरिगू नित्यविभुवागिरुत्तदॆ. बाकियवरिगॆ संसारावस्थॆयल्लि कर्मानु रूपवागि अनेक विधवाद सङ्कोच विकासगळिन्द कूडिद्दु मुक्तावस्थॆयल्लि मोक्षवन्नु पडॆदनन्तर, नैजविकासत्ताले-स्वाभाविकवाद विकासदिन्द ऒट्टु अनन्तर कालतत्ववु इरुववरॆगॆ विभुवागिरु इदॆ. इदरिन्द धर्मभूत ज्ञानक्कॆ काल सम्बन्धदिन्द उण्टाद स्थितिय हेळल्पट्टितु. ई धर्म भूत ज्ञानक्कॆ प्रवृत्तियु विषयगळन्नु प्रकाशपडिसुवुदू, प्रयत्नावस्थॆयल्लि (अन्दरॆ जानाति इच्छति, यतते, ऎम्बन्तॆ मॊदलु तिळुवळिकॆ, अनन्तर आ काव्यदल्लि इच्छॆ, अनन्तर प्रयत्न) शरीरादिगळन्नु प्रेरेपिसुवुदू, बद्धदशॆयल्लि सङ्कोच विकासगळू, अनुकूल्य प्रातिकूल्य गळन्नु प्रकाशपडिसुवुदरिन्द भोगवॆम्ब अवस्थॆयन्नु हॊन्दुवुदू सह.

सुखदुःख व्यवहार

1;

भोगवॆम्बुदु तनगॆ अनुकूलवागियागलि प्रतिकूलवागियागलि इरुव ऒन्दु सुख अधवा दुःखवन्नु अनुभविसुवुदु. अदागि सुख दुःखगळु ज्ञानद प्रवृत्ति विशेषगळे हॊरतु बेरॆ यिल्ल. ऒन्दु वस्तुवु तनगॆ अनुकूलवागि प्रकाशिसुवुदे सुख प्रतिकूलवागि प्रकाशिसुवुदे दुःख. तार्किकरु चन्दनवन्नु मैगॆ हच्चिकॊळ्ळुवाग, इदु अनुकूलवॆम्ब बुद्धियुण्टागु इदॆ. नन्तर सुखवु उत्पत्तियागुत्तदॆ, अनन्तर अदर अनुभव ऎन्नुवरु. विशिष्टाद्व गळाद नावु, चन्दनवन्नु हच्चिकॊळ्ळुवाग, इदु अनुकूलवॆन्दु उण्टागुव ज्ञानवे सुख

बेरॆयल्ल ऎन्नुत्तेवॆ.

पुरुषभेदत्तालु,

तत्वत्रयाधिकार :

129

देशभेदत्तालुम् अल्पानुकूलवायुव, प्रति कूल मायुव‌, उदासीनवायुवन्, इरुक्किर इद्विभागळॆल्ला मिन्नस्तुक्कुक्कु स्वभाव सिद्धण्णन्नु, इदु इवर् हळुडैय करळुक्कीडाह सत्यसङ्कल्पनान वीश्वरनिव‌हळुक्कु फल प्रदानं हण्णिन प्रकार,

कफलानुभव योग्यता

इक्क फलवनुभविक्कु बद्धरुकु स्वरूपयोग्यतॆयु, सहकारियोग्यतॆयु मुण्णु, स्वरूपयोग्यतॆ परतन्न चेतनत्वम् ;

अनुकूल प्रतिकूलविभाग

पुण्य पाप रूप

ईश्वर विभूतियान इत्यादि ईश्वर विभूतियाद (लीला, नित्यविभूति) सर्ववस्तुगळिगू अनुकूल्यवु स्वाभाविकवागिरुत्तदॆ. ईश्वरनू नित्य मुक्तरू सर्ववस्तुगळन्नू तमगॆ अनुकूल वागिये अनुभविसुत्तारॆ आदरॆ संसारिगळिगॆ (कर्माधीनरिगॆ) कालभेददिन्दलू, पुरुषबेध दिन्दलू, देशभेददिन्दलू, अल्पानुकूलवागिये प्रतिकूलवागियू, उदासीनवागियू इरुव विभागगळॆल्ला, ई वस्तुगळिगॆ स्वभाव सिद्धवल्ल. ई विभागगळु इ‌हळुडैय ई बद्ध चेतनर

कर्मक्कॆ अनुसारवागि, सत्य सङ्कल्पनाद ईश्वरनु इवरुगळिगॆ फलप्रदानवन्नु माडिद प्रकार ईश्वरनिगू, नित्य मुक्तरिगू पुण्य पाप रूप कर्म सम्बन्धविल्लदिरुवुदरिन्द सर्व वस्तुगळू अवरुगळिगॆ अनुकूलवागिये इरुत्तवॆ बद्धरिगू कॆलवु समयगळल्लि अनुकूलवागियू कॆलवु समयगळल्लि प्रतिकूलवागियू कॆलव वस्तुगळु तोरुत्तवॆयष्टॆ आद रिन्द ऒन्दे वस्तुविगॆ ऎरडु स्वभाववु सरियिल्लदिरुवुदरिन्द ऎल्ला वस्तुगळिगू अनुकूल्यवे स्वभाव. अनुकूल्य प्रातिक्यूल ज्ञानवे सुख मत्तु दुःख, कालभेदत्तालु-शीतकालदल्लि अग्नियु सुखानुभववन्नुण्टु माडुत्तदॆ. उष्णकालदल्लि अदे अग्नियु दुःखानुभववन्नु उण्टुमाडुत्तदॆ पुरुषभेदालुर् ऒण्टिगॆ बेविन सॊप्पु भोग्यवागिरुत्तॆ हसुविगॆ हुल्ल- भोग्यवागिरुत्तदॆ अन्नम्भोज्यं मनुष्याणां अमृतन्तुदिनौकसव । स्व पशूट् हाल् सन्तो दास्यक जीवना, ऎम्बन्तॆ मनुष्यरिगॆ अन्नवु भोग्य, देवतॆगळिगॆ अमृत, नायिगॆ अमेध्य, पशुविगॆ हुल्लु, सत्पुरुषरिगॆ भगवद्दास्यवु भोग्यवु, देशभेदत्तालुव-हुणसॆहण्णु, मॆणसिकायि मॊदलादवु कॆलवु देशगळल्लि अधिकवागि अपेक्षितवागिरुत्तवॆ. कॆलवु देशगळल्लि कडिमॆयागि अपेक्षितवागिरुत्तवॆ आद्दरिन्द ई आनुकूल्य प्रातिकूल्यगळिगॆ औपाधिक कर्मवे उपाधि ई उपाधिय सम्बन्धदिन्द अनु कूलानुभववे (ज्ञानवे) सुख प्रतिकूलानुभाववे (ज्ञानवे) दुःख

कफलानुभवक्कॆ योग्यतॆ

इक्कर्मफलं अनुभविक्कु इत्यादि .ई कर्मफलवन्नु अनुभविसलु बद्ध चेतनरिगॆ स्वरूप योग्यतॆय सहकारि योग्यतॆयू उण्टु. स्वरूप योग्यतॆयु भगवत्परतन्त्ररागि चैतन्य गुणदिन्द कूडिरुवुदु सहकारियोग्यतॆ ऎन्दरॆ अपराधदिन्द कूडिरुवुदु. नित्यरिगू मुक्तरिगू परतन्त्र चेतनत्ववु इरुवुदरिन्द स्वरूप योग्यतॆ उण्टु आदरॆ ईश्वरनिगॆ अभि मत (इष्ट) वल्लद विपरीतानुष्ठानवन्नु इवरु माडदॆ इरुवदरिन्द अपराध प्रसक्तिये इल्लदॆ

130

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

सहकारि योग्यतॆ सापराधत्वम्, नित्यरुक्कुम् मुक्तरुक्कुव परतन चेतन याले स्वरूपयोग्यतॆयुण्णॆयालुव ईश्वरानभिमत विपरीतानुष्ठानमिल्ला याले सहकारियोग्यतॆयि ईश्वर्र सप्रशासितावाय, तानॊरुत्तुरुकु शासनीयनक्कॆ निक्कियाले सरतन्न चेतनत्वमाहिर स्वरूपयोग्यतॆयुनि स्वतनाया ले स्वताज्ञातिलङ्घन माहिर सहकारियोग्यतॆयु.

सहकारियोग इल्ल ईश्वरन्- ईश्वरनु सर्व प्रशासितावाय् ऎल्लरन्नू नियमिसुववनागि तानु यारिन्दलू नियमिसल्पडदे इरुवुदरिन्द, इवनिगॆ वरतन्त्र बेतनत्ववॆम्ब योग्यतॆ इल्ल स्वतन्त्रन्-स्वतन्त्रनागिरुवुदरिन्द, स्वतन्त्राज्ञातीङ्घन प्रसक्तियिल्ल आ रीति स्वरूव याद स्वतन्त्राज्ञातिलङ्घनवॆम्ब सह कारियोग्यतॆयू इल्ल

  • ऎम्ब वाक्यद

ईश्वर विभूतियान ऎन्दारम्भिसि, सहकारियोग्ययुव इल्लि परन्त, ६ चाररु अभिप्राय पडुवुदेनॆन्दरॆ अनुकूल, प्रतिकूलत्ववॆम्ब ई ऎरडू वस्तु विन शक्ति विशेष, अन कूलत्ववु नित्यवस्तुगळिगॆ नित्यवागिदॆ अनित्य वस्तगळिगॆ यावर्मि

आ रीतियाद

भावि अन्दरॆ धर्मि स्वरूपविरुववरॆगॆ मात्र बद्द जीविगॆ, नित्यानित्य वस्तुगळल्लि परिमित पुण्य वशदिन्द, प्रियत्ववु उण्टादाग आ फलदिन्द कूडिरुत्तदॆ फलवॆम्बुदु प्रीति अदे सुख प्रातिकल्यविल्लदॆ अनुकूल्यदिन्द कूडिद वस्तुविनिन्द उण्टागुव अनुभववे सख अदरिन्द उण्टागुव बेरॆयॊन्दल्ल, यावाग अदे प्ररुषनिगॆ पाप विशेषदिन्द अदे वस्तुविनल्लि अप्रियत्ववु उण्टागु इदॆयो, अवाग आवस्तुविनल्लि प्रतिकूल रूपवाद शक्ति विशेषवु उण्टागुत्तदॆ प्रतिकूलान भववन्नु उण्टुमाडुव कर्मदिन्द अनुकूता रूप शक्ति विशेषवु, स्वभाव सिद्धवागि द्दरू तडॆयल्पट्टदागि फलदायकवागुवुदिल्ल आग वस्तुविन प्रतिकूलानुभववु अप्रीतिकर रूपवाद दुःखवन्नुण्टु माडुत्तदॆ उण्टागुव बेरॆ अनुभववल्ल

अप्रीतिये दुःखकर ऎन्दर्थ अदरिन्द हीगॆ ऒब्बनिगॆ पुण्यवशदिन्द वस्तुविनल्लि नित्यप्रियत्ववू, पापवशदिन्द नित्य अप्रियत्ववू उण्टागि मेलॆ हेळिद रीतियल्लि सुखदुःख व्यवस्थॆयन्नु उण्टु माडुत्तदॆ अनुकूलत्व प्रति लत्ववॆम्ब ऎरडू आयाया पुरुषन प्रतिसम्बन्धिकरु हागिद्दाग्यू सर्वसुहृत्ताद सर्वेश्वरन सङ्कल्पदिन्द चेतनन नित्यानित्य वस्तुगळल्लि अनुकूलत्ववु उण्टागुत्तदॆ.

पुण्य निरपेक्षवागि पुण्यवु सहकरिसुत्तदॆ. याव काव्यगळल्लियू पुण्यापेक्षॆयिल्लद, नित्यरुगळिगॆ, सर्व सुहृत्ताद अदर फललाभक्कॆ बद्धावस्थॆयल्लि जीवर भगवन्तन सङ्कल्पानुगुणवागि, सर्व वस्तुगळू तडॆ यावुदू इल्लदॆ सुखात्मकानुभवक्कॆ विषयवागुत्तवॆ. सर्वेश्वरनिगो ऎन्दरॆ स्वतः अनुकूलस्वभावगळागि, फलक्कॆ अपहतवात्मनाद्दरिन्द, तन्न सङ्कल्पदिन्द सर्ववू तनगॆ अनुकूलवागिरुवन्तॆ निरचिसिरुवुदरिन्द सर्ववस्तुगळू तनगॆ विभूतियागि सर्वदा सुखरूपानुभवक्कॆ पापिगळिगॆ आ पापक्कॆ अनुगुणवागि फलप्रदवाद सर्वॆश्वरन सङ्कल्प विशेषदिन्द, वस्तुवु इरुव विषयवागिये इरुत्तवॆ. परन्त अधवा स्वल्प काल, आपाप कर्मदिन्द अनुकूलवु तडॆयल्पटु प्रतिकूलानुभवक्कॆ

कारणवागुत्तदॆ.

ग रि *

तत्वयाधिकारः

धरधरूप ज्ञानळुडैय असाधारणाकार,

131

जीवेश्वररूपरान वात्याक्कळॆल्ला रुडैयवु स्वरूपं, स्वस्वयम्प्रकाश, इद्दरॆ स्वरूप प्रकाशत्तुक्कु बद्धरुक्कु मुड वॊरुकालत्तिलुमचविकासङ्गलि, सात्माळुडैयवु धरभूतज्ञानम् विषयप्रकाशनवेळॆयिले स्वाश्रयत्तु कु स्वयम्प्रकाशवागिरुक्कुम्, ज्ञानत्वमु, स्वयम्प्रकाशत्वमुम्, धरधरिक्कळुकु * साधारणव धरभूतज्ञानत्तुक्कु विषयित्वं एत्तम्, धरियानवात्म स्वरूपत्तु कु

प्रत्यक्षं एत्तम्,

धर्मधर्मि ज्ञानगळ असाधारणाकार

जीवेश्वर रूप इत्यादि जीवेश्वर रूपवाद आत्मरुगळॆल्लर स्वरूपवु तनगॆ ताने प्रकाशि सुत्तदॆ. (स्वस्थॆ स्वयं प्रकाशं तनगॆ ताने प्रकाशिसुत्तदॆ. जीवेश्वररॆल्लरिगू बद्ध जीवरिगू सेरि याव कालदल्लि य (सुषुप्ति, महाप्रळय कालगळू सेरि) स्वरूपक्कॆ सङ्कोच विकासगळिल्ल कारण धर्म ज्ञानवु नित्य तथाच स्वस्वयं प्रकाशत्ववे, समान धर्मवॆन्दु हेळल्पडुत्तदॆ. सर्वात्मरुगळ धर्म भूत ज्ञानवु विषयवन्नु प्रकाशपडिसुव वेळॆयल्लि स्वात्रयत्तन्नु तनगॆ आश्रयवाद धर्मिज्ञानक्कॆ-स्वयं प्रकाश तानागिये प्रकाशिसुत्तदॆ. अन्दरॆ बेरॆ ज्ञानद अपेक्षॆयिल्लदॆ तिळियुत्तदॆ. ज्ञानत्ववू स्वयं प्रकाशत्ववू धर् धर्मिगळिगॆ साधारण धर्म भूत ज्ञानक्कॆ विषयित्ववु (विषयगळन्नु तोरिसि कॊडुवुदु ) अधिक (असाधारणाकार), धर्मि यद आत्म स्वरूपक्कॆ (जीवेश्वररिब्बर रूपक्कॆ) प्रत्यक्ष्यवु अधिक (असाधारणकार).

ज्ञानत्ववॆन्दरॆ कस्यचित् प्रकाशकत्व कि०चिन्नि प्रकाशकारणत्वम्-किञ्चित् शब्दवु आत्मविषयवादरॆ आ आत्मतत्ववन्नु प्रकाश पडिसलु कारण भूतवॆन्दर्थ, धर्म भूत ज्ञानवन्नु किञ्चित् शब्दवु तिळिसिदरॆ, आ धर्म भूत ज्ञानवु अदक्कॆ विषयवाद (अदरिन्द तिळियल्पडुव) वस्तुगळन्नु विषयीकरिसुत्तदॆ अदावदु (अदागि) तन्न विषयवागियागलि, बेरॆयॊन्दर विषय वागियागलि, इवॆरडरल्लि यावुदादरू ऒन्दर व्यवहारानुगुण्यवन्नु मूडुवुदु व्यवहारा नुगुण्यवॆन्दरॆ ज्ञानवु ऒन्दु वस्तुवन्नु विषयीकरिसिदरॆ आ विषयवु व्यवहारानुगुणवागुत्तदॆ. ज्ञानविषयित्ववे व्यवहारानु गुण्यवॆन्दर्थ ऒन्दु ज्ञानवु उण्टादरॆ आग, तनगो बॆरॊन्दु वस्तुविगो विषयित्ववु उण्टागुत्तदॆ तथाच “अहं’ ऎम्ब धर्मि ज्ञानवु तन्न व्यवहारानु गुण्यतॆयन्नु तन्नल्ले उण्टुमाडुत्तदॆ “घटञ्जानामि” ऎम्ब धर्म भूत ज्ञानवु, घटवन्नु तन्न व्यवहारक्कॆ अनुगुणवागि तिळियपडिसुत्तदॆ याद्दरिन्द धर्म धर्मिज्ञानगळॆरडक्कू व्यारानुगुणा पादकत्व रूपज्ञानत्ववु सिद्ध व्यवहारानु गुण्यत्व-व्यवहरिसलु अर्ह ति

ऎन्दर्थ

ई धर्म धर्मिज्ञानगळिगॆ इरुव साधर्म्यवन्नु (समानाकर) मात्र तिळिदुकॊण्डु अवुगळ वैर्थवन्नु (व्यत्यासवाद आकार) तिळिदुकॊळ्ळदॆ मन्तान्तरस्थरु धर्मियाद आत्म तत्ववन्नु धर्म ज्ञानवॆन्दु भ्रमिसिद्दारॆ ऎम्बुदन्नु तिळियपडिसुवुदे आचार सार्वभौमर हृदय. हेगॆन्दरॆ, जीव मत्त ईश्वर रूपवाद आत्मरुगळ स्वरूपवु तनगॆ ताने

132

~

श्रीमद्रत्रयसारे

तिळियुत्तदॆ. * धर्मिरूपवाद ज्ञानक्कॆ यारिगू बद्ध जीविगळिगू सेरि याव कालदल्लियू सङ्कोच विकासरूपवाद विकारगळिल्ल स्वप्रकाशक्कॆ तानु फलियागिरुवुदु धर्मिज्ञानक्कॆ उण्ट धर्म भूत ज्ञानक्कॆ इल्ल. इदन्नु तिळियुत्तेनॆ, इदन्न तिळियलिल्ल, ऎम्ब रीतियल्लि कॆलवु समय अनुभववू, इदल्लवन्नू तिळियुत्तेनॆ ऎम्ब कॆलवु सव यगळल्लि अनुभववू उण्टागुवुदरिन्द धर्मभूरज्ञानक्कॆ सङ्कोच विकास रूप विकारगळुण्टु आत्म स्वरूपवु यावागलू ऒन्दे रूपवागिरुत्तॆ हीगॆ सविकारत्व निर्मिकारत्वगळिन्दउभय विधवाद ज्ञानगळु अन्दरॆ धर्मिज्ञान धर्मभूतज्ञानवॆम्ब ऎरडु ज्ञानगळू उण्टु ऎन्दु एर्पडुत्तदॆयल्लवे धर्मभूत ज्ञानवन्नु कॆलवरु “काम सङ्कल्पः एतत्सर्वं मनुव” ऎन्दु मनस्सिन वृत्ति ऎन्दु हेळुत्तारॆ. इदु सरियल्ल. मनस्स ज्ञानात्मक वल्लवे “एतत्सर्वन्ननएव’ ऎन्दु काव्य कारणगळ अभेदोपचार दिन्द हीगॆ प्रयोगविदॆये हॊरतु बेरॆयिल्ल. हागादरॆ धर्मभूतज्ञान धर्मिज्ञान ई ऎरडु ज्ञानगळू इवॆयॆम्बुदक्कॆ एनु प्रमाणवॆन्दु केळबहुदु, निद्रॆ माडि ऎद्दवनु, “सुखमहमस्वा शृं” “स खवागि निद्दॆ माडिदॆ” ऎन्दु हेळुव स्वानुभववे प्रमाण, सुषुप्ति(गाढनिद्रॆ) माडुव काल दल्लि, ई अनुभवविल्ल. ऎद्द नन्तरवॆ उण्टागुत्तदॆ सुमप्ति कालदल्लि इन्द्रियगळिगॆ व्यापार विल्ल. आद्दरिन्द आग धर्मभूतज्ञानक्कॆ विकासविल्ल आद कारण स्वरूप सुखवे (अहं’, ऎन्दु ऎच्चरगॊळ्ळुववरॆगॆ अनुभविसल्पट्टु ऎद्दनन्तर धर्मभूत ज्ञानदिन्द प्रतिसन्धान माडल्पडुत्तदॆ. आद्दरिन्द धनर् वु ज्ञानानन्द स्वरूपवॆम्बुदन्नु तिरस्करिसलागुवुदिल्ल, आत्रायं पुरुषः स्वयञ्ज्योतिर्भवति (उपनिषत् ), ज्ञानस्वरूपमत्यन्त निर्मलं परमार्थतः (सि पु) ऎम्ब प्रमाणगळिन्द आत्म स्वरूपवु ज्ञानाकारवॆम्बुदु सिद्ध

“यथा प्रकाशय कः कृत लोकमिमन्तविः । (गीतॆ)

क्षेत्रं क्षेत्र तथाकृतं प्रकाशयतिभारत ॥ (ne₺ – 13–33)

सूरनु प्रपञ्चवन्नॆल्ला तन्न प्रकाशदिन्द प्रकाशपडिसुवन्तॆ जीवनु ई शरीरवन्नु तन्न धर्म भूतज्ञानदिन्द प्रकाशपडिसुत्तानॆ, ऎम्ब प्रमाणदिन्द धर्मधर्मिज्ञानगळु विशेषण विशिष्टवागि सूर अवन प्रकाश दृष्टान्तदिन्द व्यक्तवागुत्तवॆ

मेलू धर्मभूत ज्ञानवु विषयगळन्नु प्रकाशपडिसुव वेळॆगळल्लि तन्न आश्रयवाद धर्मिगॆ स्वयम्प्रकाशवागिरुवुदु धर्मिनवु नित्यवू स्वयम्प्रकाशवु धर्मभूतज्ञानवु स्वप्रकाशक्कॆ ताने फलियु अल्ल. जडत्ववु धर्मभूतज्ञानक्केनॆ आद्दरिन्द ज्ञानमात्रात्म वादवु सरियल्ल.

हागादरॆ व्यवस्थित स्वभावगळिन्द धर्म धर्मिज्ञानगळन्नु ज्ञानवॆन्दु करॆयुवुदु हेगॆ सरि ऎन्दरॆ सौसादृश्यभाववन्ननुसरिसि हागॆ व्यपदेश ज्ञानत्ववू स्वयम्प्रकाशत्ववू धर्म धर्मिगळिगॆ साधारणवाद आकार. धर्मभूतज्ञानक्कॆ विषयित्ववु (विषयगळन्नु तोरिसि कॊडुवुदु) असाधारणवाद आकार धर्मिज्ञानक्कॆ प्रत्यक्तवु (तनगॆ ताने तोचुवुदु) असाधारणवाद आकार, प्रत्यक्षवे अहुत्व धर्मिस्वरूपज्ञानवु प्रत्य, अनुकूल एकत्व विशिष्टवागिये तोचुत्तदॆ “प्रत्यद अनुकूल, एकत्व विशिष्ट तयातुस्वप्रकाशतास्का त्मनाव” ऎम्बुदु न्यायसिद्धाञ्जन श्रीसूक्ति, “स्ववातातुसिद्धिं मतिरनुभवति स्वान्य योः सिद्धि भावं” ऎम्ब तत्वमुत्ता कलाप श्रीसूक्तिगॆ आचाररु ताने सर्वार्थसिद्धियल्लि

cânta

तत्वत्रयाधिकारः

133

1 ज्ञानत्वमावुदु ? कस्य चित्रकाशकत्वम्

माम, वरॊनु

प्पण्ण है.

अदावदु ? तन्नुडैय वाहवु

वाहवुमाम्, एदेनु मॊत्रिमुडैय व्यवहारानु गुण्य

  1. स्वयम्प्रकाशत्वमानदु? तन्नॆ विषयाकरिप्प दॊरु ज्ञानान्तराल पेटॆर शानेप्रकाशि

  2. धर्मभूतज्ञानत्तुक्कु विषयित्ववावदु ? तन्नॆयॊनिन्द दॊक्कट्टु.

व्याख्यान माडुत्ता “स्वपदं स्वासाधारण किञ्चिद्द र्मविशिष्ट परम् । धर्मभूत ज्ञान स्यतु तावदधिक ग्राहित्वं विशेष माह-मतिरनु भवति स्वान्ययोस्सिद्धिभाव मिति” ऎन्दु अनुग्रहिसिरुत्तारॆ. तधाच धर्मभूतज्ञानक्कॆ स्वाुसाधारणवाद ज्ञानदिन्द कूडि द स्वावगाहन ज्ञानवु, व्रत्यक्कॆ अनुकूल एकत्ववॆम्ब स्वसाधारण धर्मविशिष्ट आत्मस्वरूपाव गाहियाद ज्ञानदॊडनॆ समानवागिद्दरू अधिकवाद अन्तर वाह सम विषयगळन्नु अवगाहिसु वुदरिन्द (तिळियुवदरिन्द धर्मभूतज्ञानक्कॆ विषयित्ववु अधिक प्रत्यानुकूलकत्वरूप स्वासाधारण धर्मत्रयदिन्द कूडिद आत्मस्वरूपक्कॆ अव्यवस्तुगळन्नु तोरिसिकॊड व शक्तियु इल्ल. धर्मभूतज्ञानक्कॆ सङ्कोचविल्लद समर्मरह । शक्तियु नित्य वागिदॆ. धर्निज्ञानक्कॆ किञ्चिदव गाहन शक्ति, इवन्नु निमित्तवागिट्टुकॊण्डु ज्ञानपद प्रवृत्ति यु ऎरडु ज्ञानगळल्लियू आश्रयिसल्प डुत्तदॆ. तावात्र शक्तिय - धर्मधर्मी गळॆरडरल्लियू इदॆ इदन्नु अभिप्रायदल्लिट्टु कॊण्डु आचाद्यरु “ज्ञानत्वमानदु-एदेनुवनुडैय व्यवहारानुगुण्यप्पण्णु है” ऎन्दु अनुग्रहिसिरुत्तारॆ अहन’ ऎम्ब धर्मिज्ञानवु तन्न व्यवहारानुगुण्यतॆयन्नु (ज्ञान विषयत्ववन्नु) तन्नल्ले माडुत्तदॆ (घटञ्जानामि” ऎम्ब धर्मभूत ज्ञानवु, तन्न मत्तु घट विषयवाद व्यवहारवन्नुण्टु माडुत्तदॆयाद्दरिन्द व्यवहारानुगुण्यापादक ज्ञानत्ववु, धर्मधर्मिज्ञानगळिगॆ समान स्वयम्प्रकाशत्ववु तन्नन्नु ताने प्रकाशपडिसुवुदु,

धर्मभूतज्ञानक्कॆ विषयित्ववॆम्बुदु, तन्नन्नु बिट्टु बेरॊन्दु विषयवन्नु तोरिसिकॊडु वुदु, धर्मिज्ञानवु प्रत्यक्ष्य आनुकूलत्व, एकत्वविशिष्टवाद तन्नन्नु बिट्टु बेरॆ विषयगळन्नु तिळियपडिसुवुदिल्ल कॆलवरु धर्मि स्वरूपपु प्रत्य, एक, अनुकूलत्वगळॊडनॆ प्रकाश सुवुदिल्ल. प्रत्यादिगळु स्वयम्प्रकाशगळन्नुत्तारॆ इदु सरियल्ल निर्धमर्ात्मकवाद धर्मि ज्ञानवन्नु विशिष्टाद्वतिगळु ऒप्पिल्ल हागॆ हेळुवुदु अपरामर्शमूल निर्विशेष चैतन्यवु ऒन्दे ऎम्बुदु कुदृष्टिगळमत अदन्नु विशिष्टाद्वतिगळाद नावु खण्डिसिद्देवॆ प्रत्यक्ष्य, अनुकूलत्व, एकत्वगळु स्वयम्प्रकाश वस्त्रन्तरगळु ऎन्दु हेळि अनेक जीवात्म रूप निर्धमर्ात्मक धर्मियन्नु ऒप्पि, अवुगळिगॆ धर्मभूत ज्ञानवन्नु ऒप्पुवुदु अपहास्यस्पद आदैतियु ऒन्दु निधर्मात्मक तत्ववन्नु ऒप्पिद्दानॆ नीवुगळु आनन्तकोटि निर्धमर्ात्मक वस्तुगळन्नु ऒप्पिदन्तागुत्तदॆ.

हागिरुवाग

आचेतन्न पदार्थगळु प्रकृति, काल, शुद्ध सत्व मत्तु धर्मभूतज्ञान, इष्टे इदक्कॆ मेलॆ प्रत्यक्त, अनुकॊलत्व, एकत्वनॆम्ब स्वयम्प्रकाशरूप अचेतन तत्वगळन्नु श्रीभाष्यकार

!

134

श्रीमद्र हस्यश्रयसारे

  1. आत्माक्कळुकु प्रत्यक्षावदु ? - स्पस्ट् भासमानत्वं, अदावदु ? र्त प्रकाशत्तु कुर्त्ता फलियायिरुक्कॆ ऎन्न पडि,

હૈ

एदेनु हॊरुवस्तुविन् प्रकाशत्तुक्कु फलिऎर सामान्याकार तन् प्रकाशत्तुकु र्त फलि, ऎत्तु विश्लेषित्तवार प्रत्याम्, विशेष मल्लादवस्तुवुक्कु इस्लामा न्यमु मिडु व्याप्तमान चेतनत्वमुव इच्छॆ, इद्दरधरिगळिरुण्णुव स्वयं प्रकाशवायिरुसालु, नित्यत्वादि भविशेषविशिष्ट रूपळाले ज्ञानान्तरवेद्यळु माम्, तन्नु डै धरभूतज्ञानं तनुक्कु ज्ञानान्तरवेद्य मादु, प्रसरण भेद मात्रत्ताले ज्ञानान्यर व्यपदेश,

23

सम्प्रदायदल्लि ऎल्लियू हेळिरुवुदु काणॆवु प्रत्यक्ष, अनुकूल, एक िगळु गुणगळे हॊरतु, द्रव्यगळल्ल. स्वयम्प्रकाशगळन्दु हेळिदरॆ धर्मभूत ज्ञानक्कॆ समानवाद

बेरॆ द्रव्यवन्दु हेळबेकागुत्तॆ. हागॆ आचाररु ऒप्पिल्ल अद्रव्यवॆन्दरॆ, अद्रव्यक्कॆ स्वयम्प्रकाशत्वविल्ल. उण्टॆन्दरॆ “बुद्धिः द्रव्यं विकारान्वयित इतरवत् बोवज्ञा जडतात्” ऎम्ब तमुक्ता कलाप श्लोक व्याख्यान सर्वार्थसिद्धियल्लि ‘तदयं प्रयोग - बुद्दिः द्रव्यं स्वयम्प्रकाश तादात्मव” ऎम्ब आनुमनदल्लि द्रव्यत्याभाववत्तुगळाद प्रत्यादिगळाद अद्रव्यगळल्लि स्वयं प्रकाश त्वरूप हेळुविरुवुदरिन्द आ हेतुविगॆ व्यभिचार दोषवुण्टागुत्तदॆ

A

आद्दरिन्द धर्मिज्ञानवु नृत्य (अह) अनुकूलत्व एकत्व विशिष्टवागिये तनगॆ ताने स्पुरिसुवुद’, धर्मभूत ज्ञानवु तनगॆ अन्वयवद धर्मिज्ञानक्कॆ इतर विषयगळन्नू तन्नन्नू तोरिसि कॊडुवुदु, ऎम्बुदे, अचालाजिमन्त

आत्माक्कळुक्कु प्रत्यमावदु इत्यागि वैषिकादिगळु जडा

जडात्मवादिगळु चेतन क्किन्त प्रत्यक्कॆ अन्त्वगळु बेरॆयिल्लवॆन्नुत्तारॆ

इदु सरियिल्ल एकॆन्दरॆ चेतनत्ववु सर्वात्म साधारण आयाया आत्म विश्रान्तवाद अहन्त्ववु अदक्किन्त बेरॆ, अदे इदु ऎन्दु हेळिदरॆ ऒन्दे आत्म प्रति कदिर भिन्न वल्लवॆन्दु एर्पट्टु, असं चेतनः ऎम्ब अनुभववु अन्यरन्नु तिळिसि, अन्य शरीरद जीवन सुखद खाभववु तनगू उण्टागबेकु. आदरॆ हागॆ अनुभवविल्ल दुदरिन्द अन्त्ववे बेरॆ, चेतनत्ववे बेरॆ अतन्त्ववु प्रतिशरीर भिन्नवाद आत्मनधर्म. ६ने कात्म वादवु आचारर हृदयवॆम्ब दन्नु आत्माक्कळुक्कु प्रत्यक मावदु ऎन्दु आरम्भिसिद ऎरडु वाक्यगळ हृदय. आत्मरुगळिगॆ प्रत्यवॆम्बुदु तनगॆ भासवागुवुदु अदागि तन्न प्रकाशक्कॆ तानु नलियागिरुवुदु यावुदादरू ऒन्दु वस्तुविन प्रकाशक्कॆ फलि ऎम्ब सामान्याकारवन्नु तन्न प्रकाशक्कॆ ताने फलि ऎन्दु विश्लेषिसुवुदु प्रत्यक्ष फलि फल प्रयोजनक्कॆ आश्रय हीगॆ विशेषवागि हेळदॆ, सामान्यधर्मवन्ने प्रत्यक्षवॆन्दरॆ, अदक्कॆ अहं बुद्धि विषयत्ववन्नु हेळबेकागि बरुत्तदॆ. आग यञ्चित् फलियाद ऒब्ब आत्मा मत्तॊब्ब आत्मनिगॆ आहम्बुद्धि विषयवागबेकाद प्रसङ्गवु बरुत्तदॆ आदरू ई आत्मरुगळिगॆ ई विशेषद हागॆ ई सामान्यवू, इदक्कॆ व्याप्तवाद चेतनत्ववू असाधारणवागिरुवाग, प्रत्यक्षवन्नु मात्र अदक्कॆ हिरिमॆ (एट्रम) असाधारणवॆन्दु हेळुवुदक्कॆ अभिप्रायवॆनॆम्बुदन्नु इद्विशेष विल्लाद वस्तुवुदु इस्यामान्यमुम् इत्तोडु व्याप्तमान चेतनत्वमुव इल्लि

भूतनु ऎन्दर्थ

तत्वत्रयाधिकारः

135

ऎन्दु आचाररु निरूपिसुत्तारॆ ई प्रत्यक्ष्यवॆम्ब विशेषविल्लद वस्तुविगॆ, यावुदादरू ऒन्दु वस्तुविन प्रकाशक्कॆ फलित्ववॆम्ब सामान्याकारवू, इदरॊडनॆ व्याप्तवाद चेतनत्ववू इल्ल, आद्दरिन्द ई सामान्याकारवू, चेतनत्ववू प्रत्यक्षक्कॆ आधीनगळु, स्वप्रकाशफलित्वरूप पत्यवु इल्लद ऒन्दु वस्तुविगॆ, तदुखजीवकवाद घमहञ्जनामि” ऎम्ब व्यवहाराश्रयत्व रूप यञ्चित् प्रकाश फलित्ववु घटिसुवुदिल्ल.

व्याप्तमान चेतनत्वन -

तथा च निष्पति सम्बन्धिकवाद चेतनत्ववु सर्वात्मसाधारणवु. स्वप्रकाशफलित्ववादरो, आयाया आत्मव्यक्तिगळिगॆ प्रत्येक असाधारणवागि, आहन्त्वापरपायवागि बेरॆ. आत्मशब्दवु अस्मच्छब्द स्थानदल्लियू, चेतनमात्रदल्लियू प्रयोगिसल्पट्टरू चेतन, प्रत्यक्ष्यवॆम्बुव व्यवहारगळु बेरॆबेरॆयागि, यथा प्रयोग अर्थ,

अनन्तर प्रकृतार्धदल्लि बेरॆ शङ्कॆयन्नु परिहरिसुवुदागि आचाररु इद्दर्मधर्मि हळिरण्डुम इत्यादि ज्ञानान्तर व्यपदेश, ऎन्दु अनुग्रहिसुत्तारॆ

इल्लि ज्ञानवु स्वयम्प्रकाशवागिरुवाग ज्ञानान्तरदिन्द तिळियपडदु ऎन्दु सर्यवसान वागुत्तदॆ. ऎम्ब अर्धवन्नु कुदृष्टिगळु हेळुत्तारॆ. इदु अङ्गीकरिसल्पडुवुदिल्ल. तन्न ज्ञानवू अन्यरज्ञानवू नित्यत्वादाकारगळिन्द शास्त्र वेद्यवॆम्बुदु अनुभव साक्षिक

3

ई धर्मभूत ज्ञान, धर्मिज्ञानगळॆरडू स्वयम्प्रकाशवाद्दरिन्द ज्ञानान्तर निरपेक्षवागि प्रकाशिसिदरू, धर्मिज्ञानदल्लि प्रत्य, अनुकूल, एकत्वगळु प्रकाशिसिदरू, धर्मभूत ज्ञानदल्लि ज्ञानत्व विशिष्ट तन्न रूपवु अन्यानपेक्षवागि प्रकाशिसिदरू, इवुगळ नित्यत्व विभुत्व अणु तादि धर्मगळु विशेषण विशिष्टगळागि ज्ञानान्तरदिन्द तिळिय ल्पडुत्तवॆ हागादरॆ ऎरडु धर्मभूतज्ञानवन्नु ऒप्पुकॊळ्ळुविरा ऎन्दु केळिदरॆ अदक्कॆ आचाररु, तन्नुडैय धर्मभूत ज्ञानवर्, इत्यादि निरूपिसुत्तारॆ अदागि नीलवाद घटवन्नु नोडिदॆनु ऎन्दु ज्ञापिसिकॊळ्ळु

वाग,

नीलघट दश९न ज्ञानवु, ज्ञापिसिकॊळ्ळुवुदॆम्ब ज्ञानान्तरदिन्द तिळियल्पडुत्तदॆ. ज्ञानान्तरवू मॊदलनॆय ज्ञानद प्रसरण भेद - अवस्थाभेद ई प्रसरण भेद - अवस्था भेद मात्रदिन्द ज्ञानान्तरवॆन्दु व्यपदेशिसुत्तारॆये हॊरतु ऎरडू बेरॆ बेरॆ ज्ञानवल्ल

धर्म

भूतज्ञानवु ऒन्दे अनेक वस्तुगळन्नु तिळिदुकॊळ्ळुवुदु अनेक अवस्था भेद हागॆये ऒन्दु वस्तुवन्नु नोडि तिळिदुकॊण्डु, अदन्नु पुनः ज्ञापिसिकॊळ्ळुवुदु प्रधम ज्ञानद अवस्थाभेद आद्दरिन्द ज्ञानान्तरविल्लदॆ धवि स्वरूपवु प्रत्यादिगळिन्दलू, धर्म भूतज्ञानवु ज्ञानादि गळिन्दलू तानागिये तिळियल्पडुत्तदॆ स्वयम्प्रकाश शास्त्रवु इदरिन्द सव तार्धवागुत्तदॆ ज्ञान नित्यत्व धर्मक्कू लोपविल्ल

हीगॆ हेळिदरू ननगॆ ईग शास्त्रार्थ ज्ञानवु उण्टायितु उण्टाद ज्ञानवु ईग नष्ट वायितु (मरॆतुहोयितु) ऎम्ब व्यवहारदिन्द वैशेषिकादिगळ हागॆ अनेक ज्ञानवन्नु ऒप्प बेकल्लवॆ, ऎन्दु केळबहुदु, मेलू इदु हिन्दॆये ननगॆ गॊत्तित्तु ऎन्दु प्रति सन्धान ज्ञावक उण्टागुत्तदॆ. इदरिन्द प्रमाण प्रमयगळिगॆ भेदवु दुर्वारवु. आद्दरिन्द निद्रादिदशयल्लि

136

त्रिविधाचेतनङ्गळुव

श्रीमद्र हस्य त्रयसार

त्रिविध अचेतन निरूपणव

पररुक्कॆ तोनक्कडवनवायिरुक्कु, अचेतनत्व मावु ? ज्ञानाश्रयमयोगि. सिररुतोनुहैयावुदु ? र्तप्रकाश तुक्कुत्ता थ ययो, इवै इरु धरभूतज्ञानाडिहळुक्कुम् तुम्. त्रिविधा चेतनळॆडुत्त वाल् प्रकृतियुव कालमु जडङ्गळ्, शुद्ध सत्व मान द्रव्य जडमॆनु शिलर् शॆल्लुवहळ्

जडत्व निरूपण

जडत्वमानदु ? स्वयम्प्रकाशमयिरुक्कॆ, भगवच्छास्त्रादिपरामरं पट्टि नव‌ हळ्, ज्ञानात्मकत्व शास्त्रसिद्ध- मायाले शुद्ध सत्वद्रव्य स्वयम्प्रकाश

धर्मभूत’ज्ञानक्कॆ सङ्कोच, जागरिदिदशॆयल्लि विकासवॆन्दु हेळुवुदु सरियल्ल, ऎम्ब शङ्कॆयन्नू

तन्नु डैय धर्मभूतज्ञान प्रसरण भेदत्ताले ‘ज्ञानान्तर व्यपदेशव’ ऎम्ब वाक्यदिन्द निराकरिसुत्तार इदर भाववेनॆन्दरॆ, “नविज्ञा र्विज्ञा तेर्वि परियोपो विद्यते नित्या एवात्मनो हिते”, इत्यादि श्रुति स्मृतिगळिन्द, धर्मिज्ञानद हागॆ धर्मभूत ज्ञानवू अनादि, अविना अन्तह ऒन्दे ज्ञानदिन्दले ऎल्ला व्यवहारगळू उण्टागुवाग

अनेक ज्ञान गळन्नु कल्पिसुवुदु सरियल्ल प्रकृति प्राकृत वस्तुगळग, आयाया परिणाम भेद मात्रदिन्दले अवुगळ उत्पत्ति विनाश व्यवहारगळू, परस्पर उपकारोपकारक भाववू, यथाप्रमाण उप पन्न वागुवन्तॆ, ज्ञानैक्यदल्लियू तडपा भेददिन्द भिन्नत्ववू, ऒन्दे उपादानकत्वदिन्द विषय विषय भावदि सर्ववू उपपन्नवागुत्तद सुषुप्ति कालदल्लि धर्मभूत ज्ञानक्कॆ प्रसरणॆ विल्ल, धर्मिज्ञानदिन्दले सुपोतनु “सुखमहमस्वाप्पं” ऎन्दु प्रति सन्धान माडुत्तानॆ त्रिविथा चेतनद्रव्य निरूपणॆ

?

अनन्तर आचेतन द्रव्य निरूपणॆयन्नु “त्रिविधाचेतन०गळ” ऎन्दारम्भिसि आचाररु निरूपिसुत्तार प्रकृति, काल, शुद्ध सत्यवॆम्ब मूरु विधवाद अचेतनगळू, धर्मभूत ज्ञानद हागॆ इतररिगेनॆ प्रकाशिसलु योग्यवादवुगळु, अचेतनवॆन्दरॆ ज्ञानक्कॆ आश्रयविल्लदे बेरॆयागि इरुवुदु प्रळयकालदल्लि चेतननु अत्यन्त सङ्कुचितवाद ज्ञान प्रसरणवुळ्ळवनागिरु तानॆये हॊरतु ज्ञानाश्रयविल्लदे इल्ल ऎम्बुदु

ज्ञानाश्रय मक्कॆ, ऎन्दु ज्ञानान्तराभाववु अचेतनक्कॆ तिळिसल्पडुत्तदॆ. पिररुक्कॆ तोन्नु है इत्यादि, इतररिगॆ मात्रवे तोरुवुदॆम्बुदु, तन्न प्रकाशक्कॆ तानु फलियल्लवॆम्बुदु. अदागि तन्न प्रकाशवन्नु तानु अनुभविसदे इरुवुदु - पराक्तवॆन्दर्थ, इतररिगेनॆ भासमानवागि अवर व्यवहारक्कॆ अनुगुणवागिरुवुदु, ई अचेतनत्ववू परावू, धर्मभूतज्ञान, शब्दगुणक्रियादि आद्रव्यगळिगू, तुल्य.

1

जड द्रव्य निरूपणॆ.*

त्रिविधा चेतनगळॆन्दु हेळिरुवुदरल्लि प्रकृतिय, कलवू जडपदार्थगळु,तत्वत्रयाधिकारः

शुद्ध बस्य स्वयम्प्रकाशपवादनम्

137

इप्पडि स्वयम्प्रकाशमाहिल्, संसारिहळुकु शास्त्रवेद्यवाह वेण्णादे, ताने तोव्र वेस्टावो वॆन्निल् ? सात्मक्कळुडैयवु स्वरूपनुम् धर्मभूत ज्ञाननु स्वयम्प्रकाशमायिरुक्क, स्वरूपम् तनक्कॆ स्वयं प्रकाशवाय् वेरॆल्ला रुम, ज्ञानान्यर वेद्यनानालवु, धर्मभूतज्ञानं स्वाश्रयुत्तुक्कु स्वयं प्रकाशवाय, इतररु स्वयम्प्रकाश मल्लादलवु, इदुवु नियतविषय माह स्वयम्प्रकाशमानाल् विरोधविल्लॆ,

योवेयुगपतृत्व प्रत्यक्षण सदास्वतः ।

तम्प्रणव हरिं शास्त्रं न्यायतत्वं प्रचक हे ।

ऎस्‌हिर पडिये धरभूतज्ञानत्ताले सत्तॆयुव साक्षात्करित्तुकॊण्डिरुक्किर ईश्वरनुक्कु शुद्ध सत्वद्रव्यम्म् स्वयम्प्रकाशमायिरुक्किर पडिऎष्टनेयॆन्निल् ? इवनु डैय धर्मभूतज्ञानम् दिव्यात्म स्वरूपम् मुदलाह सर्वयुव विषयि करियानि, दिव्यात्म स्वरूपम् स्वयम्प्रकाशमाहिराप्पोले इदुवुव स्वयं प्रकाशमायिरुक्कलाम्, इप्पडि नित्य रुक्कु तुल्यम्, विषयप्रकाशकालत्तिले धर्मभूतज्ञानं स्वाश्रयत्तु स्वयम्प्रकाशमानाय्तले मुक्तरुक्कुमव्ववस्थॆ यिले इदु स्वयं प्रकाशमान

शुद्ध सत्वद स्वयम्प्रकाश निरूपणॆ

विरोधवि

इतिहास

शुद्द सत्व द्रव्यवन्नु कॆलवरु जड वदार्धवॆन्दु हेळुत्तारॆ इदु देशिकरिगॆ अभिमतवल्ल. जडत्ववॆन्दरॆ स्वयम्प्रकाशवल्लदे इरुवुदु भगवच्छास्त्रादि ग्रन्थगळन्नु परामर्शॆ माडिदवरु ज्ञानात्मकत्ववु शास्त्र सिद्धवाद्दरिन्द शुद्ध सत्व द्रव्यवु ज्ञानस्वरूपवु. आद्दरिन्द अदु स्वयम्प्रकाशवन्नु त्तारॆ इदु श्री देतिकरिगॆ अभिमत (रहस्यानाय) चिन्मय्य- सप्रकाश । किमात्मको भगवान् । किमाका व्यक्तिः । ज्ञानात्म भगवान् । ज्ञानाका व्यक्तिः । (अथर्वशिखोपनिषत्तु) तदिदम्परं प्रण्डरीक विज्ञान घनं । (पञ्चरात्र संहितॆ) ज्ञानानन्द मया लोकाः ।

गळ * ग्र ह 3 ) ( व्यक्ति-दि व्य म० ग ळ

आदिपदवु रहस्याम्याय, पुराणगळन्नु तिळिसुत्तदॆ ई प्रमाणगळिन्द भगवन्तन भूषणायुधगळु दिव्य मङ्गळ विग्रहगळु, श्री वैकुंरलोक, अल्लिरुव मण्टप गोपुरादिगळु ऎल्ला ज्ञानस्वरूपवाद स्वयम्प्रकाश रूप शुद्ध सत्त द्रव्यगळु, ऎम्बुदु व्यक्तवागुत्तदॆ इप्पडि-शुद्ध सत्व द्रव्यवु स्वयम्प्रकाशवादरॆ, संसारिगळिगॆ शास्त्रदिन्द तिळियल्पडदॆ, ताने तिळियल्पडबेकल्लवे, ऎन्दरॆ सर्वात्मरुगळ स्वरूपवू, धर्मभूत ज्ञानवू माह स्वयं प्रकाशवागिरुवाग स्वरूपक्कॆ स्वयं प्रकाशवागिद्दु इतररिगॆ स्वयं प्रकाशवल्लदॆ इरुव हागॆ, इदुवु-शुद्ध सत्ववू नियतविषयवागि स्वयं प्रकाशवादरॆ विरोधविल्ल नियत विषय - स्वयम्प्रकाश मानाल्-इत्यादि ऎन्दरॆ बद्ध जीवियन्नु बिट्टु ससम्बन्धिगळाद ईश्वर नित्यमुक्तरुगळिगॆ स्वयं प्रकाशवागि, शुद्ध सत्व द्रव्यवु इरुवुदु बाधक वेनू इल्ल. हागादरॆ स्वरेश्वरनिगू, नित्यमुक्तरिगू, अवरवर धर्म भूतज्ञानवु यावागलू याव सङ्कोचवू इल्लदॆ प्रकाशवागिरुवाग, शुद्ध सत्व द्रव्यवन्नु धर्म भूतज्ञानवु सदा

138

श्रीमद्रहस्य त्रयसारे

धरभूतज्ञान नुड्डॆय स्वात्मप्रकाशन शक्तियानदु विषयप्रकाशविल्लाद कालत्तिल् कर्मविशेषळाले प्रतिबद्ध यानाले शुद्ध सत्वत्तिनुडैय स्वात प्रकाशन शक्तियुवर् बण्ण दयिल् प्रतिबद्ध यायाले शुद्ध सत्वं बद्धरु प्रकाशि

यादॊ हिरदु.

धिययम्प्रकाशत्वं मुक्त स्वाभाविक यथा । बद्ध कदाचित्संरुद्धं तथात्रापि नियमते loll

विषयीकरिसुत्तिरुवाग, शुद्ध सत्ववु अवरुगळिगॆ स्वयं प्रकाशवागुव बगॆ हेगॆ ऎम्ब सन्देशवन्नु “यो वे युग पतसर्वं” ऎन्दारम्भिसि निवर्तिसुत्तारॆ. ई श्लोकवु श्रीमन्मधमुनि गळु अनु ग्रहिसिद न्याय तत्त वॆम्ब ग्रन्थद मङ्गळ श्लोक यः - याव दरियु युगवत् - एककालदल्लि (योगिगळिगॆ क्रमेण सर्व प्रत्यक्ष हागॆये आत्मरुगळिगॆ यक्किञ्चित् वेदन, अदू परोक्षवागि), हागिल्लदॆ एककालदल्लि सर्वं, प्रत्यक्षण सर्ववन्नु हरियु प्रत्यक्षिसिकॊण्डिरुवनु. सदा बद्ध जीविगळिगॆ बद्ध दशॆयल्ले सर्वसाक्षात्कारविल्ल हागल्लदॆ भगवन्तनिगॆ सदा सर्व विषय साक्षात्कार नित्य सूरिगळिगू सदा साक्षात्कारविद्दरू अदु स्वतः अल्ल भगवदन, भगवन्तनिगॆ स्वाधीन - अनाधीनवल्ल, साभाविकवॆन्दर्ध इन्थह हरियन्नु नमस्करिसि न्याय तत्त्ववन्नु हेळुत्तेनॆन्दु श्लोकार्ध, श्रुत प्रकाशिकॆयल्लि स्वयं प्रकाशवाद धर्मि स्वरूपवु धर्मभूत ज्ञानदिन्द प्रकाशिसुत्तदॆ ऎम्बुदन्नु ऒप्पुकॊळ्ळकूडदु ऎन्दु हेळिरुवुदु, सम्भव पक्षान्त रोदाहरणवॆन्दु श्री करूरु सामिगळुवरु तम्म व्याख्यानदल्लि तिळिसिरुत्तारॆ

बद्ध जीविगळिगॆ स्वयम्प्रकाशवाद शुद्ध सत्व द्रव्यवु अदर परिणामवाद श्री वैकुण्ठादि लोकगळू सद एकॆ प्रकाशिसुत्तिल्लवॆन्दरॆ धर्मभूत ज्ञाननुड्डॆय, ऎन्दारम्भिसि तिळिसु तारॆ धर्मभूतज्ञानद स्वयम्प्रकाशन शक्तियु, विषय स्पुरणविल्लद कालदल्लि, कर्मविशेषदिन्द प्रतिबद्धवागिरुवन्तॆ, शुद्ध सत्वद्रव्यद स्वात्म प्रकाशन शक्तिय सह, बद्ध दशॆयल्लि प्रतिबद्ध वागिरुत्तदॆ. आद्दरिन्द शुद्ध सत्वद्रव्यवू, अदर परिणामवाद श्री वैकुण्ठादि दिव्य लोकगळू, *कर्म बद्धराद चेतनरिगॆ प्रकाशिसुवुदिल्ल एतावन्मात्रेण नास्तिकवादवु कूडदु ऎम्बुदु भाव.

धर्मभूत ज्ञाननुडैय स्वात्म प्रकाशन शक्ति इत्यादियिन्द धर्मभूत ज्ञानक्कॆ `सर्व वस्तुगळन्नु तिळिसुव शक्ति, स्वयम्प्रकाशन शक्ति ऎन्दु ऎरडु शक्तिगळिवॆ. आत्म स्वरूपक्कॆ स्वयम्प्रकाशन शक्ति मात्र बाह्य पदार्धगळन्नु प्रकाश पडिसुव शक्तियिल्ल. आद्दरिन्दलू धर्म धर्मि ज्ञानगळ वैलक्षण्यवु तिळिसल्पडुत्तदॆ.

कारिकॆ :-

धियः स्वयम्प्रकाशत्वं, ऎम्ब कारिकॆयिन्द मेलॆ हेळिद अर्धगळु सङ्ग्रहिसल्पडुत्तवॆ. योवे युगपत् सर्वं इत्यादि श्लोकदल्लि हेळिरुवन्तॆ धर्मभूत ज्ञानदिन्द सर्व नन्नू साक्षात्करिसिकॊण्डिरुव ईश्वरनिगॆ शुद्ध सत्यद्रव्यवु स्वयं प्रकाशवागिरुव प्रकारवु

तत्वत्रयाधिकार-

139

इव्वळवु अवस्थान्तराम विकारि द्रव्यत्तुन्नु विरुद्ध मनु, आय्कॆयाले प्रमाण प्रतिपन्नारत्तुक्कु युक्ति विरोध कॊल्लवनियिल्लि इण्ण नक्कॆ उपचाराले निर्वहिक्क स्पार्किल्, आत्मस्वरूपलुव ज्ञानादि शब्दळॆ उपचारत्ताले अन्यपर ङ्गळाकलाम

md’

हेगॆन्दरॆ, इवनुड्डॆ इत्यादियगि तिळिसिरुत्तारॆ

इवनुडैय ई भगवन्तन धव भूतज्ञानवु दिव्या स्वरूपवे आदियागि ऎल्लवन्नू विषकरिसुत्तिरुवाग, (प्रत्यक्षवागि तिळियु तिरुवाग), ई दिव्यात्म स्वरूपवु (भगवन्तन स्वर प) स्वयं - तानागिये प्रकाशवागुत्तिरु नन्त, ई ई शुद्ध सत्व द्रव्यवू स्वयम्प्रकाशवागिरलु साध्य हागॆये ज्ञानानन्दमया लोकाः - ज्ञानात्मकाव्यक्ति ऎम्ब प्रमाणगळन्नु अपलाप माडलागुवुदिल्ल. हागॆ माडिदरॆ, सत्यं, ज्ञानं ऎम्ब स्वरूप निरूवक धर्मवन्नु तिळिसुव, ज्ञान शब्दक्कू अपलाप माडबहु दागुत्तदॆ. हागॆ नयध्यरू माडदॆ धर्मिज्ञानक्कॆ स्वयम्प्रकाशत्ववन्नु ऒप्पिद्दारॆयल्लवॆ

ई प्रकरणदल्लि स्वयम्प्रकाशवाद दिव्यात्म स्वरूपवु धर्मभूत ज्ञानदिन्दलू नित्यवू प्रकाशि सुत्तदॆ ऎम्ब वचनदिन्द स्वयम्प्रकाशवाद जीवात्म स्वरूपवू, “इदमहं विज्ञानामि इत्यादि सर्वानुभव साक्षिकवागि धर्मभूत ज्ञानदिन्दलू प्रकाशिसुत्तदॆ.

धियः-धर्नुभूतज्ञानक्कॆ, मुक्त मुक्तिदशॆयल्लि स्वाभाविक स्वभावसिद्धवाद, (कदाचिदपि) यावागलादरू, ऒन्दु सलवादरू (असरिरुद्ध) - फिरोहितविल्लद, स्वयं प्रकाशत्वं स्वयं प्रकाशत्ववु, यथा- हेगॆ, बद्ध कदाचित् संरुद्ध ब जीविगॆ विषय प्रकाशनविल्लद समयदल्लि कर्मदिन्द तिरोहितवागिदॆयो, तथा, आन्याय द०ति, आत्रापिनियन्नु ते-शुद्ध सत्वविषयदल्लियू ई व्यवस्थॆयू इदॆ अदागि मुक्तर विषयदल्लि शुद्ध सत्वक्कॆ इरुव स्वयम्प्रकाशत्ववु बद्ध दशॆयल्लि कर्मगळिन्द अवरिगेनॆ प्रतिबद्ध वार इदॆ ऎम्ब व्यवस्थॆयन्नु अङ्गीकरिसिदरॆ, ऎल्लवू समञ्जसवागुत्तदॆ. नित्यसूरिगळिगू, भग वन्तनिगू सदाकालवू याव प्रतिबन्धकवू इल्लदॆ धर्मभूत ज्ञानदन्तॆ, शुद्ध सत्वद्रव्यवू स्वयं प्रकाशवागिरुत्तदॆ

हीग धर्मभूत ज्ञानदृष्टान्तदिन्द शुद्ध सत्वक्कॆ स्वयम्प्रकाशत्व तदभावगळन्नु भेद पुरुषभेददिन्द निर्वहिसलु दृष्टान्त दाष्टान्तिकगळल्लि, अनेकावस्थॆगळन्नु ऒप्पुवुदु विरुद्धवल्लवॆ ऎन्दरॆ, इव्वळवु ऎन्दारम्भिसि समाधान हेळुत्तारॆ, अदागि मेलॆ निरूपिसिदन्तॆ इष्टु अवस्थान्तर हॊन्दुविकॆयु विकारद्रव्यगळिगॆ विरुद्धवल्ल, आ हैयाले आद्दरिन्द प्रमा इनचनगळिन्द एर्पट्ट अर्थक्कॆ युक्तियिन्द विरोधवन्नु हेळुवुदु सरियल्ल, इङ्गनक्के हीगिल्लदॆ, उपचाराले लक्षणॆयिन्द निर्वहिसबेकॆन्दु तोरिदरॆ, अत्मस्वरूपदल्लियू ज्ञानादि शब्दगळन्नु लक्षणॆयिन्द, ज्ञाताऎन्दे मॊदलाद रीतियल्लि अन्यार्थगळन्नु तिळिसुवन्तॆ निर्वहिस बहुदु. आत्म विषयदल्लि ज्ञानशब्दक्कॆ मुख्यार्थवन्नु बिट्टरू, तात्परानुपपत्तिगळिल्लवॆन्दरॆ, शुद्ध सत्व विषयदल्लू अदु तु, आद्दरिन्द प्रमाण सम्प्रतिपन्नवाद आर्थक्कॆ युक्तियिन्द विरोधवन्नु हेळलु दारियिल्ल,

140

श्रीमद्र हस्यत्रयसार्

धर्म

स्वयम्प्रकाशत्तुकु रूपरसादि गुणळुमयडियाक वन्न पृथिव्यादि विभागवुव, परिणामादिहन कूडु वॆन् हिरचोद्यमुव भूत ज्ञानत्तुक्कुम् धरिज्ञानत्तुक्कु मुण्डान वैषम्य प्रतिबन्दियाहक्कॊण्डु प्रमाण बलत्ताले परिहृतम्.

इप्पडि स्वयम्प्रकाशमान शुद्ध सत्वद्रव्यक्कॆ ज्ञातृत्वविल्लामैयालॆ त्रिविधा चेतनळॆन्नु शेरक्कॊत्तदु. इव्वचेतनङ्गळ् मनुक्कुम् प्रवृत्तियावुदु ? ईश्वरसानुरूपळान विचित्र परिणामादिहळ

स्वयं प्रकाशत्तुकु-हीगॆ धर्मज्ञानवु स्वयम्प्रकाशवागियू, धर्म ज्ञानवु स्वाश्रयक्कॆ स्वयं प्रकाशवागियू इरुवुदन्नु दृष्टान्तवागि तोरिसि शुद्ध सत्व द्रवु स्वसम्बन्धिगळ गे स्वयं प्रकाशवागबह दु ऎन्दु नियत विषयत्ववन्नु अङ्गीकरिसिदरॆ धर्मधर्मिज्ञानगळिगॆ इल्लद रूपरसादि गुणगळू अदर मल्य उण्टाद " मॊदलाद विभागगळू सएकधाभवति, इत्यादि श्रुतिसिद्दवाद, मुक्तरुगळ देहेन्द्रियादि परिणामगळू, मण्टव गोपुरादि अवस्थॆगॆ भू स्वय प्रकाशवाद शुद्ध सत्वद्रव्यक्कॆ उन्दागबहुदे ऎम्ब चोद्यवन्नु अनुवादमाडि स्वयं प्रकाशत्तुक्कु, ऎन्दारम्भिसि परिहरिस तारॆ. स्वयम्प्रकारवाद शुद्ध सत्व द्रव्यक्कॆ रूपरसादिगुणग ई स्पधिवि मॊदलाद विभागगळू, मण्टपगोपुंादि परिणाव गळू उण्टागुवुदरल्लि एनू बाधकविल्ल, हेगॆन्दरॆ धर्मभूतज्ञानक्कॆ विषयिवू, परावू परभासमानत्ववू,) धवि ९ ज्ञानक्कॆ प्रत्यक्षवू बेरॆ बेरॆयागिवॆ. हागॆये धर्मभूत ज्ञानक्कॆ सङ्कोच विकासगळू, इच्चा द्वेष प्रयत्ना व्यवस्थॆगळू इवॆ आर्विज्ञानक्कॆ अवु इल्ल, ई रीतियागि स्वयम्प्रकाशवाद धर्म धर्मिज्ञानगळि गॆ प्रमाणानुसार भेदगळन्नु ऒप्पुवन्तॆ, स्वयम्प्रकाशवाद शुद्ध सत्व द्रव्यक्कू रूपर सादिगुणगळन्नू सृधिव्यादि विभागगळन्नू, मण्टप प्ररा व्यवस्थॆगळन्नू अङ्गीकरिसि, इन्थह वैषम्यवन्नु हेळुवुदु प्रमाणद नारवागिदॆ ऎन्दु प्रतिबन्धियागि चोद्यवन्नु परिहरिसुत्तारॆ.

इप्पडि, इत्यादि, हीगॆ स्वयम्प्रकाशवाद शुद्ध सत्वद्रव्यक्कॆ ज्ञातृत्वविल्लदॆयिरुवुदरिन्द स्वाधीन त्रिविध चेतना चेतन स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेदु ऎन्दु त्रिविध चेतनगळॊडनॆ सेरिसि परिगणिसिरु त्तारॆ.

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प्रकृति, काल, शुद्ध सत्ववॆम्ब ई मूरु आचेतन द्रव्यगळिगू प्रवृत्तियावुदॆन्दरॆ, ईश्वरन * (लक्ष्मीविशिष्टनारायणन) सङ्कल्पक्कॆ अनुरूपवाद विचित्रवाद परिणामादिगळु आदिपददिन्द अप क्षय, विनाशगळन्नु ग्रहिसबेकु. ई विचित्रवाद अवान्तर परिणामगळे प्रकृतितत्वक्कॆ, चतुर्दश भुवनात्मकवाद अण्ड, अण्डान्तर्वतियाद अतन पदार्थजात"रूपवाद प्रवृत्ति विभुवाद कालक्कॆ, कलॆ मुहूर्त, काष्ठा, अहोरत्रादि भेदगळु, - कल्ला मुहूर्ताः काष्ठाश्चा होरात्राश्च सर्वशः, क७०- स्वपच तत्र नकालिस्त्रत्रवै, प्रभुः” ऎम्ब प्रमाणिसिद्धगळु, शुद्ध सत्वक्कॆ श्री पैकारदल्लिरुव पृष्टि, जल मॊदलाद विभागगळमण्टप गोपुरादि’ परिणाव गळॊ प्रवृत्ति.

तत्रयाधिकार

त्रिगुणद्रव्यस्य स्वरूपभेद कनम्,

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इवल् त्रिगुणद्रव्यत्तु क्यु स्वरूपभेदं गुणत्रयाश्रयत्वम्, सततपरिणाम शीलमान इद्दव्यत्तुक्कु सत्वरजस्तमस्सुक्कळन्यं समयानपोदु महाप्रळयवन् विषममानपोदु सृष्टि स्थितिहळ, गुणवैषम्य मुळ्ळ प्रदेशले महदादि विकार, इल् विकृतवल्लाद प्रदेशु, विकृतमान प्रदेशु, कूड प्रकृति महदहङ्कार तन्मात्र भूतेन्द्रियण्णन्नु इरुपत्तुनालु तत्वङ्गळाक शास्त्र ज्वळवहुत्तु जॊल्लुम्.

A

शिलविवक्षा विशेषङ्गळाले ओरोरु विडळि तत्वकैयेरवु शुरवुम् शल्लानिरुम्, इत्वळिल् अवानरवहुप्पु कुळुव अवल् अभिमान देवक्कॆ हळु मध्यॆ वुशासनाधिकारिगळु करिय वेणु, आत्मक्कळुक्कु आवत्तिल् कट्टिल् व्यावृत्तियरिक्कॆ इ नमक्कु प्रधानव

त्रिगुणद्रव्य निरूपणॆ - इवट्रल् इत्यादि. इवुगळल्लि त्रिगुण द्रव्यक्कॆ (प्रकृतिगॆ) स्वरूपभेदवु सत्वरजस्तमस्सॆम्ब मूरु गुणगळिगॆ आश्रयवागिरुवुदु, सतत यावागलू परिणामवन्न हॊन्दुव स्वभाववाद ई प्रकृति द्रव्यक्कॆ सत्व रजस्तमो गुणगळु अन्नोन्य समवागिरुवाग महाप्रळय. वैषम्यदिन्द कूडिदाग सृष्टि स्थिति काव्यगळुण्टागुत्तवॆ. इदु स्थितिभेद गुण वैष म्यदिन्द कूडिद, प्रकृतिय एकभागदल्लि महर्त, अहङ्कार, इत्यादि विभागगळु. इवुगळल्लि (विकृत मल्लाद प्रदेश) विकारवन्नु हॊन्ददॆ इरुव प्रदेश भागवन्नू, विकारवन्नु हॊन्दिरुव भागवन्नू सेरिसि, प्रकृति, मह, अहङ्कार, तन्मात्र, पञ्चभूतगळु, इन्द्रियग इन्दु इप्पत्तुनाल्कु तत्वगळागि शास्त्रगळु विभाग माडि हेळुत्तवॆ

विकृतवल्लाद प्रदेशव प्रकृतियल्लि गुणसाम्यविरुव प्रदेश, विकृतमान प्रदेशव प्रकृतियल्लि गुण वैषम्य (व्यत्यासवागिरुव) भाग, परिणामविल्लद गुणगळिगॆ परिणामवन्नु हेळुवुदु हेगॆन्दरॆ मधुर रसदिन्द कूडिद पदार्थवन्नु, मधुरत्व, मधुरतरत्व, मधुरतमत्व वॆन्दु विभाग हेळुवन्तॆ, सत्वरजन्म मोगुणगळल्लि, साम्य, ईषत्व, (स्वल्प), अतिशयत्व, अत्यन्ता तिशयत्व, इत्यादियागि तारतम्यवण्टु. अदागि ई षतृत्ववु, अतिशयितरजस्सु, अत्यन्तशयित तमस्सु, सीरिरुवागलू, हीगॆये आतिशयितनत्ववू, अत्यान्ताशयि तरजन्नू, ईषत्तवन्नू, सेरि रुवागलू ईषद्र जक्कू, अतिशय ततवन्नु अत्यन्ततिशतसत्ववू सेरिरुवागलू गुणवैषम्य वुण्टु, प्रकृतिय एकदेशदल्लि गुणवैषम्यवुण्टागुवाग आ भागवन्नु महत्तत्ववन्नुत्तारॆ. हागॆ ये आ महत्वद एकभागवु विचित्रवाद विकारहॊन्दि गुण वैषम्यदिन्द अहङ्कारतत्ववॆनिसुत्तदॆ हीगये इप्पत्तुनाल्कु तत्वगळिगू एकदेशदल्लि स्थितिय एकदेशदल्लि परिणामवू एर्पट्टु, इप्पत्तु नाल्कु ततगळॆन्दु ऎणिकॆयुण्टु. ई तत्वगळिगॆ परिणामवु एकशरीरदल्लियू, एककालद ल्लिय उण्टागबहुदु, ई तत्वगळु प्रकृति,

महत् अहङ्कार,

पञ्चतन्मात्र, पञ्चभूत • पञ्चज्ञानेन्द्रिय, पञ्चकर्मेन्द्रिय, मनस्सु ऎन्दु इप्पत्तुनाल्कु तन्मात्रगळु, शब्द तन्मात्र, स्पर्शतन्मात्र, रूपतस्मात्, रतन्मात्र, गन्धतन्मात्रवॆन्दु ऐदुविध. शब्द तन्मात्रवॆन्दरॆ आकाशद सूक्ष्मा वस्थॆ अदरिन्द आकाशवु उण्टागुत्तदॆ, स्पर्श तन्मात्र वॆन्दरॆ वायुविन सूक्ष्मावस्थॆ, आदरिन्द वायुवु उण्टागुत्तदॆ रूपतन्मात्रवॆन्दरॆ अग्निय

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श्रीमद्र हस्यतयसारे

इन्नॆ यॆल्ला सर्वॆश्वरनुक्कु अस्वभूषणादि रूपल्गळाय निरु निलॆ,

पुरुर्डमणिवरमाह, प्रॊन्यामल ।

पिरकिरुति मरुवाद, र्मा ताह ।

तरुण् मरु वाण् मरै वाह, वाङ्कारळु । शां शङ्गाह, मनं, तिहिरियाह ।

इरुडी हण्ण रैनु शरङ्गळाह ।

विरुपूतमात्रॆ वनमालॆ माह ।

करुड गुरुनामरॆर्यि पॊरुळां कर्ण्ण ।

करिगिरि मेल् निन्ननैतुङ्कानाने ॥

सूक्ष्मावस्थॆ

अदरिन्द अग्नि य उण्टागुत्तदॆ. रसतस्मा यॆन्दरॆ, रसद सक्षा व गन्धतन्ना त्रॆयॆन्दरॆ पृथिविय सूक्षावक्कॆ अदरिन्द सृवियु उण्टागुत्तदॆ पञ्चभूतग लिगॆ, कण्णु, ळु पृथिवि, जल, अग्नि, वायु, आश. पञ्चज्ञानेन्द्रियगळु मूगु, किवि, त्वक् (चर्म), पञ्च कर्मेन्द्रियगळु, वा, पाणि, पाद, पायु, मल विसर्ग माडु वुदु), उपस्थॆ (आनन्देन्द्रिय-जल विसर्ग माडुवुदु) मनस्सु सेरि, हन्नॊन्दु इन्द्रियगळु, कॆलविवक्षा विशेषङ्गळाले इत्यादि प्रकृति, अव्यक्त, अक्षर, तमस्सु ऎन्दु सुबालोपनिषत्तिनल्लि हेळिरुवुदु मुत्तत्वद हागॆ परस्पर अधिक व्यत्यासविल्लद कारण प्रकृति ऎम्ब तत्वदल्लिये परिगणिसल्पट्टिरुत्तवॆ, क्षीरवु मॊसरागि परिणमिसुवाग, आरम्भदल्लि स्वल्प घनीभाव, नन्तर मध्यस्थ घनीभाव, नन्तर अत्यन्त घनीभाववन्नु हॊन्दु तन्तॆ प्रकृति, अव्यक्त, अक्षर, तम स्टुगळु वरस्पर अधिक व्यत्यासविल्लदॆ इरुत्तवॆ. हागॆये महत्वदल्लियू सात्त्विक, राजस, ताम सवॆन्दु मूरु बेदगळू, अहङ्कार तत्वदल्लियू सात्त्विक, राजस, तामसवॆम्ब मूरु भेदग ळू इवॆ, इवुगळन्नु व नस्सिनल्लिट्टु कॊण्डु, शिलविवक्ष विशेषङ्गळाले” ऎन्दारम्भिसि कॆलवु विव क्षा विशेषगळिन्द ओरॆरुविडङ्गळिले उपनिषत्तुगळल्लि ऒन्दॊन्दु स्थळदल्लि, तत्वगळन्नु, एरवुं शुरुङ्गवु, हॆच्चु कडिमॆयागि हेळिरुत्तदॆ ई तत्वगळल्लि आवान्तर भेदगळू, अवुगळ अभि मानि देवतॆगळू आयाया प्रकृत्यादि अचेतन तत्वगळन्नु उपासनॆ माड ववरिगॆ तिळियबेकु ई तपासनॆगळु अल्पफलगळन्नु कॊडतक्कवु. एकान्तिगळिगॆ तिळियबेकिल्ल आत्माव्व कालिम् इत्यादि-नमगॆ जीवात्म आबेतन तत्वगळिन्द व्यावृत्ति-बेरुवट्टद्दु ऎन्दु तिळियुवुदु प्रधान, देहा तभ्रान्तियु अचेतनक्किन्त अता बेरॆ ऎम्बुदरिन्द निवृत्तवागुत्तॆ

J

मेलू ई तत्वगळॆल्ला सर्वेश्वरनिगॆ अस्त्रभूषण रूपगळागि इरुव निलॆयन्नु पुरषन्‌ मणिवर माह ऎम्ब पाशुरदल्लि तिळिसिरुव रीतियल्लि तिळियुवुदु उचित

विष्णु पुराणदल्लि प्रथमांशद कॊनॆ अध्यायवाद अस्त्रभूषणाध्यायदल्लि ई विषयवन्नु निरू पिसिदॆ. “निवृत्ते रोगायत्रं चक्षुः” ऎन्दु हेळिरुवन्तॆ, गरुडन्-गरुडन, उरुवां-शरीर वागिरुव मरैयिन् वेदगळिगॆ पॊरुळा०, कण्णन्-प्रधानप्रतिपाद्यनाद कृष्णनु, करिगिरि मेल्-स्तगिरियल्लि पुरुडन् मणिवरवाद इत्यादि निन्नु इद्दुकॊण्डु, अनैत्तुङ्काक्कॆ “नाने, सर्वलोकवन्नु रक्षिसुत्तानॆन्दु अन्वय…

तत्वत्रधियाकारः

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ऎन्‌हिर कट्टळॆयिले यरियुचितं. इरुपत्तिनालु तत्वक्कु मनॆं स्वरूपभेद मवो लक्षण०गळाले सिद्दम्, इवल् कारमान निरपत्तु मूनु तत्वब्बळुक्कु इवत्ता लारबळानवत्तुक्कुव स्थितियिल्व रुम् एत्त चुरक्कळ् पुराणळिले प्रसिद्ध मानपडिये कण्णु कॊळ्ळदु.

හුය

पुरुडनमणिरमाह-जीवात्मरु कौस्तुभवॆम्बरत्नवागि अदागि कौस्तुभरत्नवु जीवरिगॆ अधि व देवरॆयागि, जीववर्गवु कौस्तुभरदिन्द अधिय‌ागि, हागॆये पॊन्ना नारविल्लद मूलप्रकृति-मलप्रकृतिय, मरुवाह-वत्सवागि श्रीवत्सवु मूलकृतिगॆ अधिष्ठान देवतॆ मूलप्रकृतियु, श्रीवत्सदिन्द अधियवागिदॆ हीगॆये मेलू तिळिदुकॊळ्ळुवुदु. मान् तण्डाह महत् तव्वन, कौमोदकि ऎम्ब गदॆयागि, तॆरु वरु, वाळ् मरवाह ज्ञान, अज्ञानगळु, कन्दकवॆम्ब खड्गवू, अदर कवचवू आगि, अङ्गारङ्गळ्, सात्त्विकहङ्कारवू तामसाहङ्कारवू शार्ङ्गंशङ्गार-यथाक्रम शाङ्ग Fवॆम्ब धनुस्सागियू, पाञ्चजन्यवॆम्ब शङ्खवागियू, इल्लि सारदीपका व्याख्यानदल्लि तामसाहङ्कारवु नाण्ण

शार्ङ्गवागिय सात्त्विकाकारवु शङ्खवागियू ऎन्दु व्यत्यासवागि अच्चिडल्पट्टिदॆ. इदु अच्चिन दोषविद बहुदु, नोडशायुध स्तोत्रदल्लि यंसात्त्विकमहङ्कारं आन नङ्ग्यक्षसायकं अव्याद्यक्षरू पस्यतनु श्यार्ङ्गधन्वनः! ऎनु श्री मन्निगन्त महादेशिकन् रवरे स्पष्टवागि सात्त्विकाहङ्का रवु र्शावॆम्ब धनुस्सागिदॆयॆन्दु अनुग्रहिसिरुत्तारॆ मनन्तिहिरियाह मनस्सु चक्रायुध वागियू, इरुडीकङ्गळ ईनुन्तरङ्गळाह हत्तु इन्द्रियगळू, बाणगळागियू बूतमा वनमालै वाह - ऎरडु भागवाद अन्दरॆ शब्दादि पञ्चतन्मात्रगळु, पञ्चभूतगळ पगळु, वैजयन्ति ऎम्ब मालॆयागियू, सिद्धान्तदल्लि तन्मात्रद्रव्यगळु पञ्च भूतगळ सूक्ष्मावस्थॆयॆन्दु, “तन्मात्राभूतभेदः कललदधिनयात् कल्पितस्तत्वविद्दि?”

” ऎन्दु श्री देशिकरु तत्व मुक्ता कलापदल्लि तिळिसिरुत्तारॆ हालिगॆ हॆप्पु हाकिद तरुणदल्लिरुव अवस्थॆ कलल अदे 1-2 यावुद नन्तर घट्टियागि आगुत्तदॆ. अदु दरि ऎम्ब हॆसरिनिन्द करॆयल्पडुत्तदॆ. आ रीतियल्लि पञ्चभूतगळ परिणामावस्थॆगॆ मॊदलु, अवु सूक्ष्मवागिरुत्तवॆ अवन्नु शब्द तन्मा तॆ, स्पर्श तन्मातॆ, रूपतन्मात्र, रसतन्मात्रॆ, गन्धतन्मात्रॆयॆन्दु करॆयुत्तेवॆ. हीगॆ इप्पत्तनाल्कु तत्वगळु, भगवन्तनिगॆ अस्त्रभूषण रूप देवताधिगळागि, प्रकाशिसुत्तवॆ इवुगळन्नु अस्त्र भूषणगळागि धरिसि भगवन्तनु हस्तगिरियल्लि नित्य सान्निध्यवन्नु माडिकॊण्डु, सर्वलोकगळ न्नु कापाडिबरुत्तानॆ. ऎरकट्टळॆयिले-इत्यादि ऎम्ब रीतियल्लि तिळियुवुदु. इरुपत्तु नालुतत्वङ्गळुक्कुं इत्यादि, इप्पत्तु नाल्कु तत्वगळिगू अन्यून्य स्वरूपभेदगळु आयाया लक्षणगळिन्द सिद्ध. “समत्रॆगुण्या मूल प्रकृतिः, अव्यक्ताहङ्कारावस्थाव्यवहित उत्तरसर्वाव स्था विशिष्ट त्रिगुणं महान्,” इत्यादि लक्षणगळिन्द तिळियतक्कद्दु. इवुगळल्लि कारवाद इप्प तु मूरु तत्वगळिगू, इवुगळिन्द आरब्द वाद अण्डगळिगू, अवुगळल्लि अन्तर्गतवाद हदिनाल्कु लोकगळिगू, स्थितियल्लि उण्टागुव बिट्टच्चु रुक्कङ्गळ-उत्तर कालानुवृत्तिय न्यूनाधिक

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श्रीमद्रहस्ययसारे

शुद्ध सत्त्व प्रकृ भिन्नत्वम्-प्रकृतेराननम्

(1) “स्वसत्ता भासकं सत्वं गुणसाद्विलक्षणम्”, (2) तमसः परमो धाता (3) “आप्राकृतं सुश्वन्द्यं, इत्यादिहळाले तमस्सुक्कु मेलान देशविशेषं सिद्धियाले, (4) “आनस्य नतस्यान शृङ्ख्यानं वापिविद्यते”, (5) “तदनम सङ्ख्यात प्रमाणं चापियतः” इत्यादिहळिल् नित्यविभूतियाले अवच्छिन्न मल्लाद प्रदेशत्ताले मूलप्रकृतिज्ञान कॊल्लुहिन.

आगगळू पुराणगळल्लि प्रसिद्धवाद रीतियल्लि तिळिदुकॊळ्ळुवुदु, प्रतियॊन्दु पुराणवू सृष्टि स्थिति संहारगळन्नु निरूपिसिरुत्तदॆयल्लवॆ.

शुद्ध सत्ववू प्रकृतिय बेरॆ बेरॆतत्वगळु प्रकृतियु अनन्त

&

  1. स्वसाभासं “) तमसःपरमोधाता 3) अप्राकृतं सुरैर्व०द्यव इत्यादि प्रमाणगळिन्द, तमोद्रव्यवाद प्रकृतितत्वक्कॆ मेलॆ इरुव श्री वैकुण्ठवॆम्ब देशविशेषवु सिद्धिसुत्तदॆ, आद्दरिन्द प्रकृतियु बेरॆ शुद्ध सत्वद्रव्यवु बेरॆ शुद्ध सत्ववु! प्रकृतिय ऒन्दु भाग इत्यादि हेळुवुदु सरियल्लवॆम्बुदु आचाररहृदय. हागादरॆ, अनन्तस्यनतस्यान्तं, इत्यादि प्रकृतियु अन्तविल्लद्दु, सङ्ख्यानविल्लद्दु ऎन्दु हेळुव वचनगळिगॆ तात्परवेनॆन्दरॆ, “अनन्तस्यनतस्यान्तं” इदिवचनगळु, नित्यविभूतियिन्द अपच्छिन्न मल्लाद व्यापरिसिल्लद प्रदेशदल्लि मूलप्रकृतिगॆ आनन्त्यवन्नु हेळुत्तवॆ, अदागि अनन्तन्य शास्त्रगळल्लि अनन्तवॆन्दु हेळिरुव, तस्य मूलकृतिगॆ, अनन्तं काल परिच्छेदविल्ल सङ्ख्यानं वासि (न) …इष्टु योजनॆयुळ्ळद्दु ऎम्ब परिमितिय सह इल्ल ‘तत्’ अनन्तं असङ्ख्यात प्रमाणं इत्यादि. आ प्रकृतियु, अनन्तं नाशरहितवादद्दु, असङ्ख्यात प्रमाणञ्चापि सङ्ख्या तीतवाद प्रमाणवुळ्ळद्दु कूड, ऎन्दु यत- शास्त्रगळल्लि हेळल्पडुत्तदॆ याद्दरिन्द अदक्कॆ परिवि त काल, परिच्छेदविल्लवॆन्दर्ध) “हेतु भूतमशेष प्रकृतिस्सापॆ रामुने” ऎम्बुदु उत्तरार्ध ऎलै मुनिय) त्रेयरे) आ प्रकृतियु, अण्डादि लोकगळॆल्लक्कू कारण भूतवादद्दु.(वि. पु. 2-7, 2526), हीगॆ मूलप्रकृतिगॆ देशकाल परिच्छेदविल्लवॆन्दु हेळुव वचनगळिगॆ बाधकवागि, शुद्द सत्वद्रव्यदिन्द व्यापरिसिरुव श्री वैक०र लोकक्कॆ कॆळभागदल्लि अनन्तायाम विस्तीर्णवा दद्दु प्रकृति ऎन्दु हेळुवुदु सरिये ऎन्दरॆ, सरियॆन्दु तात्पर. एकॆन्दरॆ, स्वसा भासकं

  1. सर्वेष्टसि भवान्त स्थं तत्राधारात्मना वि भो !

स्वसभासकं सत्वं गुण सत्वा द्वि लक्षणम् ।

(o. 25-43)

स्वयम्प्रकाशवाद शुद्ध सत्व द्रव्यवु सत्व रजस्तमो रूप त्रिगुणात्मकवाद प्रकृति तत्वक्किन्त बेरॆयादद्दु

  1. तमसः परमो धाता शङ्खचक्र गदाधरः ।

श्रीवत्स व नित्यश्री अय्यशाश्वतो ध्रुवः ।

शङ्ख चक्र गदाधारियाद धाता-परमात्मनु तमश्यब्दवाच्यवाद प्रकृतिगॆ, ववनु तमसः परिभ्रात्, ‘ऎम्ब श्रुतिवाक्यक्कॆ ऐकांरवाड वचनविदु

परमः - मेलाद देशदल्लिरु

पति नो

तत्वयाधिकार

त्रिगुण द्रव्यस्य प्रवृत्ति भेद

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त्रिगुणद्रव्यत्तुक्कु प्रवृत्ति भेदन, बद्द चेतनरुडैय भोगापवर्गळुकम्, ईश्वरनुडैय लीलारसत्तु कुमाह सममामहवु विषमवाहवु, परिणाम सन्नतियुडैत्ताय, देहेनियादिरूसत्ताले अन्नो व्यापारङ्गळ्ळॆयुव पण है. इदु रजस्तमस्सुकॊळ्ळियिट्टु बद्धरु तत्वङ्गळिलु मरैत्तु विपरीतज्ञान युक्कु हिरदु भोगार्थवाह. इदुताने सर्वार्थवाह सत्व निवृद्धियाले तत्वय थाव काशिप्पिक्किरदु. इनैयॆल्ल विताश्वरनुन्नु लीलारसावहवायिरुक्कु, इत्यादि वचनगळन्नु अपलपिसलु आग वुदिल्ल, अरधानयनमाडलू आगदु. आद्दरिन्द ई वचन गळिगॆ बाधकविल्लदॆ, “अनन्तस्यनतस्यान्त” ऎम्ब वचनगळिगॆ, शुद्द सत्वद्रव्यात्मकवाद श्री वैकुण्ठक्कॆ कॆळभागदल्लि प्रकृतिगॆ आनन्त्यवन्नु हेळि अन्यधानयन माडलु साध्य ऎम्बुदु तात्पय्य रजस्तमो गुणविल्लद प्रकृतिय केवल सत्त्वगुणभागवे शुद्ध सत्ववॆन्दु हेळि, शुद्ध सत्ववन्नु प्रकृतिय एकदेशवॆन्दु हेळिदरेनु ऎम्ब चोद्यक्कू समाधानवेनॆन्दरॆ, श्री वैकुण्ठवु नित्य, अर न सूरिगळू नित्यरु, शुद्ध सत्ववु व ण्टप गोपुरादि रूपदल्लिय भगवन्तन शरि र रूपदल्लि यू, परिणामवन्नु हॊन्दि नित्यवागिदॆ. अवुगळिगॆ सतत वरिणामविल्ल प्रकृतियु सतत परिणामशालि सततवाद विकारवन्नु हॊन्दतक्कद्दु. “नित्या सतत विक्रिया,” ऎम्बुदु प्रमाणवचन, आद्दरिन्द सतत विकारशालियाद प्रकृतिय, एकदेशवे सततविकारविल्लद शुद्ध सत्ववॆन्दु हेळुवुदु सरियल्ल आद्द रिन्द श्री वैकुंरलोकवु प्राकृत लोकक्किन्त बेरॆ प्राकृत लोकगळिगॆल्ला मेलॆ नित्यवागिरुव लोकवॆम्ब दु अपलपिसलागद सिदन्त

त्रिगुण द्रव्यक्कॆ प्रवृत्तिभेद

आनन्तर त्रिगुण द्रव्यक्कॆ प्रकृतिभदवन्नु त्रिगुणद्रव्यत्तुक्कु ऎन्दारम्भिसि तिळियपडिस तारॆ अदागि त्रिगुणात्मकवाद प्रकृति द्रव्यक्कॆ प्रवृत्ति भदवेनन्दर बद्ध जीविगळ सांसारिक भोग मत्तु संसार निवृत्ति पूर्वकमोक्ष (अपवर्ग)वन्नु पडॆ रुवुदक्कॆ साधकवागि, हागॆये ईश्वरनुडैय इत्यादि भगवन्तनिगॆ लीलारसवन्नुण्टु माडलु व हाप्रळयदल्लि सत्वरज मस्सुगळु समवागिरुव प्रकृत्य वस्थॆयि०द कूडियू,

विषमवागिरुव अनन्तर सृष्टि कालदल्लि सत्वरजस्तमोगुणगळु प्रकृवस्थॆयिन्द कूडिय, परिणाम परम्परॆयन्नु हॊन्दि, देहेन्द्रियादि रूपवन्नु पडॆदु अदक्कनुगुणवाद व्यापारगळन्नु माडुवुदु. ऒन्दे प्रकृति तत्ववु भोगापवर्गसाधकवागलु

  1. अप्राकृतं सुरै र्वन्द मुतार्क समप्रभव ।

प्रकृष्ट सत्यराशिं तं कदाद्रक्षामि चक्षुष !!

{

(25-30 33 2-21)

सुर्वन्द्रं - नित्यसूरिगळिन्द पूजिसल्पडुवुदु, आयुतार्क नमप्प भं - कोटि सूर समवाद कान्तियिन्द कूडिरुवुदू, अज्ञाकृतं - प्राकृतवाद लोकक्किन्तलू बेरॆयादद्दू, प्रकृष्ट सत्वराशिन्तं - उत्कट, सत्वगुण पूरितवाद शुद्ध सत्वमयवाद आ श्री वैकुंरलोकवन्नु यावाग कण्णिन्द नोडुत्तेनॆ

  1. महान्तञ्च समावृत्य प्रधानंसम पतन ।

अनन्तनतस्कान्तु सङ्ख्यनन्दापि विद्यते ।

  1. तदनन्त सङ्ख्यात प्रमं चापि

हेळुभूत दुशेवस्य प्रतिस्थाप

दैय तु ।

दुन ।

(02-7, 25 27)

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श्रीमहस्ययसारे

शुद्द सत्वन् स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति ह

शुद्ध सत्वत्तुक्कु स्वरूपभॆ दम् रजस्तमस्सु कडु कलशाद सत्वगुणाश्रय मायिरुक्कॆ, इर्दि स्थिति भेदव नित्यमान मण्टपगोपुरादिहळिलुव, ईश्वरनुडै यवु नित्यरुडैयवुम् विग्रह विशेष : लुन्, नित्य मायिरुक्कु म, नित्य रुडैयवु, मुक्तरुडैयवु, ईश्वरनुडैयवुम्, अनित्यच्छॆयाले नन्न विग्रहादिहळिल् अनित्यवायिरुक्कु, इर्दि प्रवृत्ति भेदम्-इवरळुडैय इच्छॆ क्रीडाह परिणामादिहळाले शेषिक्कु भोगोपकरण मायुव, शेषभूतनुक्कु कैपकरण मायुव निरॆ

साध्यवे ऎम्बुदन्नु, इदु रजस्तमस्सुकॊळ्ळियिट्टु *तादियागि विवरिसु तार, ई प्रकृतियु बद्ध जीविगळिगॆ रजॆ गण तमोगुणगळ उद्रेकदिन्द तत्वगळ निजस्वरू पवन्नु व रसि देहात्मभ्रम मत्तु स्वतन्त्रात्मभ्रव रूप विपरीत ज्ञानवन्नुण्टुमाडि प्राकृत सुखगळल्लि सङ्गवन्नुण्ट माडि आ प्राकृत सखगळन्नु भोगार्थक्कागि अनुभविसलु अनु गुणवाद प्रवृत्तियन्नुण्टु माडुत्तदॆ. इदे प्रकृतियु सत्त्वगुणवन्नु हॆच्चिसि, “सात सञ्जायते ज्ञानं” ऎम्ब रीतियल्लि तत्वगळ याथात्म (निजवाद) ज्ञानवन्नुण्टु माडि, मोक्ष वन्नु पडॆयलु साधकवागुत्तदॆ. हीगॆ जीवन भोगार्थक्कागियू, मोक्षार्धक्कागियू, प्र कृति परिणामात्मकवाद सर्ववस्तुगळू ईश्वरनिगॆ (जगद्वापरासक्तनाद लक्ष्मीपतिगॆ) लीलारस वन्नुण्टु माडुवुवुगळागिरुत्तवॆ

शुद्ध सत्वद्रव्यद स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेद.

शुद्ध सत्वद्रव्यक्कॆ स्वरूपभेदवु रजोगण तम गुणगळिन्द कूडिल्लद केवल सत्वगुणक्कॆ आश्रयवागिरुवुदु

इदर स्थितिभेदवु, श्री वैकुंरलोकदल्लिरुव, नित्यवाद मण्टप गोपुरादि गळल्लियू, ईश्वर नुडैयवु-लक्ष्मि विशिष्टनाद भगवन्तन मत्तु नित्यसूरिगळ विग्रह विशेष गळल्लिय नित्यवागिरुवुदु आवागि भगवन्तनु बिजय माडिसिरुव दिव्यश्री मणि मण्टपवू (तिरु मामणि मण्टप) गोपुरगळू नित्यगळु आदिशेषन मडियल्लि, “सव्यं पादं प्रसार ऎम्बुव रीतियल्लिरुव परवासुदेवन विग्रहवू “नित्यालिङ्गा स्वभाव संसिद्धि’ ऎम्बन्तॆ निवागियू, अनन्तगरुड विष्यक्केन द्वारपालकर विग्रहगळू नित्यवागियू इरुत्तवॆ. इवॆल्ला शुद्ध सत्वद्रव्यद अवस्थाभेध (स्थितिभेदगळु नित्यर, मुक्तर मत्तु ईश्वरन, अनित्येच्छॆयिन्द सिद्धवाद विग्रहादिग ळल्लि, ई शुद्ध सत्व द्रव्यवु अनित्यवागिरुत्तदॆ इवुगळ प्रवृत्तिभेदवु, ईश्वर मत्तु नित्यमुक्तर इच्छॆ गनुगुणवागि परिणामवन्नु हॊन्दि शेषियाद भगवन्तनिगॆ भोगोपकरणवागियू शेषभूत राद नित्यमुक्तरुगळिगॆ कैङ्कय्य माडलु उपकरणगळागियू, इरुवुदे अन्दरॆ शेषभूतनु तामरॆ, मल्लिगॆ, जाजि मॊदलाद हूवुगळिन्द भगवन्तनन्नु पूजिसलु इच्चिसिदरॆ पनस, आम्र, कदळी फलगळन्नु समर्पिसलु इच्छिसिदरॆ, हागॆये चन्दन कर्पूरादिगळन्नु समर्पिसलु इचि सिदरॆ, अवन इच्चानुगुणवागि शुद्ध सत्वद्रव्यवु परिणामवन्नु हॊन्दुवुदे प्रवृत्तिभेद.तत्वक्षयाधिकार

काल निरूपणवम्

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कालत्तुकु स्वरूप भेदव जडना विभुवायिरु इर्दि स्थिति, कालाव च्छेद विल्लामैयाले नियायिरुक्कु, इर्दि प्रवृत्ति भेद कलाकाष्ठादि विभागत्ताले सृष्टादिहळुक्कु उवकरण मायिरुक्किर पडियिले कण्णु कॊळ्ळदु.

द्रव्य नित्यत्व निरूपणव

इद्दळॆल्ला स्वरूपेण, नित्यळायिरुक्कु, नामास्तर भजनारावा विशेष विशिष्ट तट्टॆयिट्टु शिलव अनित्यलॆन् हिरदु. अन्द दोडु सजातीयळान

अन्नदोडु अवस्थानर मेलुव मुक्कवरुयाले प्रवाहनित्यण्णनन्नु कॊल्लुहिरदु.

लक्कॆ स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेदगळु

विभुवागिरुवुदु

  • कालत्तुक्कु इत्यादि-इलक्कॆ स्वरूवभेदवु जडवागि

जडत्व मात्र हेळिदर त्रिग ण द्रव्यक्कॆ अति व्याप्ति विभुत्व मात्र हेळिदरॆ ईश्वरनल्लि अतिव्याप्ति, आद्दरिन्द जड वागि विभवागिरुव द्रव्य, कलवॆन्दु निरूपिसल्पट्टितु. ई काल द्रव्यद स्थितियु, कालक्कॆ अव भेदविल्लदिर वुदरिन्द नित्यवागिरुवुदे प्रवृत्ति भेद- ई काल द्रव्यवु कलाकाष्ठादि विभा गदिन्द सृष्टादिगळिगॆ उपकरणवागिरुव रीतियन्नु पुराणादिगळिन्द तिळिदुकॊळ्ळुवुदु नित्य नैमि तळ प्राकृत सृष्टिगळल्लि कालक्कॆ उपकरणत्ववु पुराणादिगळल्लि हेळिदॆ सकल कारगळ कालु धि नवागियॆम्बुदु तात्पय्य, कॆलवु क्षापरिनियु, क्षणगळिन्द” (सॆकॆण्ड्, मिनिट्) गुणिस ल्पट्टु, परादिकाल परन्तवाद अधिककालगळिगॆ व्यवहारवु उण्टागुत्तदॆ. क्षणादि विभागवु औपा धिकवॆन्दु हेळुवुदु आचाररिगॆ अभिमतवल्लवॆम्बुदु न्यायसिद्धाञ्जनादि ग्रन्थगळिन्द सुव्यक्त द्रव्य नित्यत्व निरूपणॆ

इद्रव्यङ्गळॆल्लां, इत्यादि- ई द्रव्यगळॆल्ला स्वरूपदिन्द नित्यवागिरुत्तवॆ हागादरॆ ऒन्दु पदार्थवु नातवन्नु हॊन्दिद्दु, आ पदार्थवु अनित्यवु. ऎन्दु हेळुव मातिगॆ एनर्धवॆन्दरॆ, नामन्तरभजनार्हावस्थॆ” ऎन्दारम्भिसि आचाररु निरूपिसुत्तारॆ नावन्तर भजनार्हावस्थॆ बेरॆ हॆसरन्नु पडॆयलु योग्यवाद अव-अागि मडकॆयु ऒडॆदुहोदरॆ, कपाल (होळु) ऎम्बु हॆसरन्नु पडॆयुत्तदॆ मडकॆयु नष्टवायितु होळु जनिसितु मडकॆ द्रव्यवु हेळ द्रव्यवाद आ र दशयन्न हॊन्दितु अविनह द्रव्यक्कॆ नाशविल्ल आद्दरिन्द बेरॆ हॆसरन्नु पडॆयुव अवस्था विशेषदिन्द कूडिरुवुदन्नु इट्टुकॊण्डु कॆलवु पदार्थगळन्नु अनित्यवादुवु अ०ददॊडु ऎन्दु हेळुत्तेव. आ आवस्था विशेषगळु सजातीय मत्तु विजातीय इत्यादि नष्टवाद वार्रक्कॆ सजातीय वाद अवस्थान्तरगळु मुन्दॆयू पूण वागि बरुवु दादर, अदन्नु प्रवाह नित्यवॆन्दु करॆयुत्तेवॆ नष्टवाद पदार्थक्कॆ विजातीयवाद अवस्थॆ यु मेलॆ हेळदन्त “नामन्तर भजनार्हावस्थॆ”. इदु पूर्वावस्थयिन्द कूडिद वदार्धक्कॆ अनि व्यवहारक्कॆ हेत वाग त्तद

दीप ज्वालॆयु प्रतिक्षणवू उत्पन्नवागि नष्टवागुत्तदॆ ऒडनॆये तत्सजातीयवाद बेर दीप ज्वालॆयु उण्टागुत्तदॆ. कारण ऎण्णॆ मत्तु बत्तिगळु मुगिदु

हगुवुदरिन्द बेर

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स्वाधीन शर्ट् हणम

इप्पदार्थ ळॆल्ला न नुडैयवु स्वाधीनङ्गळायिरुक्कॆ यावुदु ? ईश्वर

स्वरवस्थिति प्रवृत्ति भेद ईश्वरनुक्कु सत्तॆयु ईश्व रेच्छॆयु मॊय विवक्कु सत्तादिहळ् कूडा है, अहैयाल् सृमस्त वस्तुगळुक्कुव स्वभाव सिद्दानुकूल्यं ईश्वरेच्छायत्तम्.

सर्ववस्तनां अनुक लैक स्वभावत्वम्

इत्ताले ईश्वरनुळ्ळु, नित्यरुक्कु, मुक्तरुक्कु, सत्वमुव अनुकूल मायिरुक्कु. बद्धरुक्कुक्कासुरूववाह पुरुषभेदालुम्, कालभेदत्तालुव, इवल् प्रातिकॊल्कळु, अल्पानुकूल्यळु, नडवानिरुव,

है

इब्बद्धर्‌ळुक्कुव स्वात्मस्वरूपं सर्व पअनुकूलवाद ईश्वरेच्छासिद्धव, इप्पडि यनुकूलमान आत्मस्वरूपडे एकत्व भ्रमत्तालुवर् कर्मवशत्तालु मिरे हेय मान शरीरं ज्ञानहीनरु अनुकूलवाय तोळुहिरदु. इवत्तुक्कु र्क पाधिकमान प्रतिकूलरूपाले मुमुक्षुवैप्पत्त त्याज्यत्वन; स्वाभाविकमान अनुकूल स्वरूपाले मुक्तप्प ननैतमक्क उवादॆयत्व, अहार मत्तु कार युक्तनायकॊण्डु तनन्नु स्वीकरक्कुमयॆल्लाव प्रतिकूलङ्गनाम. स्वरूप ज्ञानम् पिरन्नु स्वमिशेषनन्नु काणप्पुट्बाल् यॆल्ला अनुकूलम्म्.

  • परिपूर्ण ब्रह्मानुभवव कॊल्लुमिडत्तले पर बॊक्कडवो,

बेरॆ ज्वालॆगळन्नु ऒप्पबेकु. ज्वालैक्यदिन्द दीपज्वालॆय प्रवाानि क्यवॆन्दु व्यवहरिसल्पडुत्तदॆ. नदियल्लि प्रवाहवु बन्दु नीरु हरिदु होगुत्तिरुत्तदॆ. तत्त्वजातीयवाद प्रवाह-निरु बरु तिरुत्तदॆ इ प्रवाह निन्द करॆयल्पडुत्तदॆ

विवि पातिगळाद नावु भावान्तभाववादिगळु ऒन्दु वस्तुविन अन्दरॆ घटद अभाववु इल्लदिरुवुदु,) भावान्तर-कपाल, होळु ऎम्ब बेरॆ वस्तुवागिरुवुदॆम्ब दे सिद्धान्त इदु पूर्व वस्तुविन नाश अनन्तर वस्तुविन उत्पत्ति आद्दरिन्द स्वरूपेण नित्यङ्गळ ऎम्ब सूक्तिगॆ त्रिगुणा त्मक प्रकृतित्व, बालत्व, ज्ञान रूवदिन्द, प्रकृति, काल शुद्ध सत्वगळु नित्यवन्दर्ध स्वाधीन शब्दार्थ-सर्ववस्तुगळ स्वरूप स्थिति प्रवृत्तिगळु ईश्वरेच्छा * न

“स्वाधीन त्रिविध चेतनाजे न स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेदं” ऎम्ब चूर्णिकॆयल्लि, “त्रिविध चेतना चेतन”,इत्यादि निरूपणॆयन्न माडियायितु. इन्नु मुन्दॆ स्वाधीन शबार्थवन्नु इप्पदार्थङ्गळॆल्लावटि नुडैयवु ऎन्दारम्भिसि विवरिसुत्तारॆ अदागि ई ऎल्ला पदार्थगळ - चेतना चेतनगळ) स्वरूप (इरुविकॆ) स्थिति (शाला०तरानुवृत्ति) प्रवृत्ति (व्यापार) भेदगळु ईश्वरनिगॆ (लक्ष्मीविशिष्ट नारायणनिगॆ) स्वाधीनवागिरुत्तवॆ. स्वाधीन ईश्वरन नाधीन मत्तु सङ्कल्पाधीन वॆन्दर्थ अदागि ईश्वरन स-इरुविकॆय, ईरन इच्छॆयू इल्लदॆ इवु गळिगॆ सत्तास्थिति प्रवृत्तिगळु उण्टागलारवु ईश्वरन सत्तॆ मत्तु सङ्कल्पगळॆरडू इवुगळ सत्ता स्थिति प्रतिगळिगॆ कारणवादुवु ऎन्दु तात्पर

तत्वत्रर्य कार

ईश्वरत निरूपणम्

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इप्पडि स्वाधीन सत्व सत्तादिहळ्ळियुडैवनायिरुक्किर ईश्वरनुडैय स्वरूपं सत्य त्यादिगळाहिर स्वरूपनिरूपक धरळाले सत्यवाय, ज्ञानवाय्, अनन्यमान्, अनन्दमाम्, अम मायिरुक्कुव, इष्टक्कॆ (१) “नाविळक्के यळरिया” ऎन्नुव, (२ “उणर् मुनलं” ऎन्नुम्, (३) “शू न दनिरिय शुडर् ज्ञानवि नमे” यॆन्नुव, (४, “अमलन्” ऎन्नुनित्यादिहळाले आवा‌हळनुसत्तार् हळ्, सर्ववस्तुगळिगू अनुकूल्यवे स्वभाव

आहैयाल् इत्यादि आदकारण समस्त वस्तुगळिगू स्वभावसिद्धवाद अनुकूल्यवु ईश्वरन इच्छाधीन भगवन्तनिगॆ अधीनवाद सर्व वस्तुगळिगू स्वभावसिद्धवाद अनुकूलत्ववे अवन सङ्क ल्प धीन, भगवन्तनु तनगॆ प्रतिकूलवागि ऒन्दु वस्तुवन्नू इरबेकॆन्दु इच्छिसुवुदिल्ल आद्दरिन्द सर्ववस्त्रगळू सदाकालदल्लियू ईश्वरनिगू नित्यमुक्तरिगू अनुकूलवागिरुत्तवॆ इदु स्वाभा एक, बद्धरुक्कु इत्यादि बद्द जीविगळिगॆ कर्मानरूपवागि पुरुष भेददिन्दलू काल भेददिन्दलू ई पदार्थगळल्लि प्रातिकूल्यगळू ानुकूलगळू तोरुत्तवॆ. पुरुषभेद प्रतियॊन्दु पुरुष निगू बेरॆ बेरॆयाद अनुभव कालभेददिन्द ऒब्बनिगे बेरॆ बेरॆ कालगळल्लि बेरॆ बेरॆयाद आनुभव. ई बद्ध बेतनरिगू स्वात्मस्वरूपवु सर्वदा अनुकूलवागिरुवुदु, ईरन (इचा) सङ्कल्प सिद्ध. हागादरॆ देहवू अनुकूलवागि तोचुवुदरिन्द अदक्कू ईश्वरन सङ्कल्पविरु वन्त कल्पिसबहुदे ऎन्दरॆ इप्पडि अनुकूलमान, ऎन्दारम्भिसि परिहरिसुत्तारॆ अदागि हीगॆ अनुकूलवागि तोचुव आत्मस्वरूपदॊडनॆ एकाभ्रमदिन्दलू (कायिसिद कब्बिणवन्नु अग्नि ऎन्दु भ्रमिसुवन्तॆ देहवे आत्मा ऎम्ब भ्रमॆ कर्म परवतॆयिन्दलू, मांस, रक्त पूय, वि६ मूत्रगळिन्द कूडिद हेयवाद शरीरवु विवेचना रूपज्ञानविल्लदवरिगॆ अनुकूलवागि तोरुत्तदॆ. मोक्षदल्लि आसॆयुळ्ळवरिगॆ कर्म निमित्तवाद प्रतिकूल वेषदिन्द कूडिद ई शरीरवु त्याज्य मुक्तनिगॆ सर्ववू स्वाभाविकवागि अनकूलवागिरुवुदरिन्द, आ शरीरगळिगे उपादेय इवु अहङ्कार ममकारदिन्द कूडि, तनगॆन्दु स्वीकरिसुवुवॆल्ला प्रतिकूलगळु, स्वरूपज्ञान वुण्टागि स्वामि (भगवत् ) शेषवॆन्दु नोडलु उपक्रमिसिदरॆ ऎल्लवू अनुकूलगळु ई आर्थवन्नु मुन्दॆ परिपूर्णब्रह्मानुभवाधिकारदल्लि आचाररु विस्तरिसि हेळुत्तारॆ.

ईश्वरतत्व निरूपणॆ - स्वरूप निरूपक धर्मगळु

हीगॆ तनगॆ अधीनवाद सत्तास्थिति प्रवृत्तिगळन्नुळ्ळवनाद ईश्वरन (लक्ष्मीविशिष्टन) स्वरूपवु सत्यत्व ज्ञान, अनन्तत्व, आनन्द ऎम्ब स्वरूप निरूपक धव गळिन्द कूडि सत्यवागि अन्दरॆ (सत्य पदवाच्यवागि) स्वरूपस्वभाव विकारविल्लद - ज्ञान स्वरूपवागि, अनन्त स्वरूपदिन्द कूडि आनन्द रूपियागि अव ल स्वभाववागिरुत्तदॆ ईश्वर शब्दवु लक्ष्मीनारायणरिब्बरू सेरिद विथुनदल्लि अन्वयिस वुदरिन्द, सत्वत्व ज्ञानत्वादि स्वरूप निरूपक धर्मगळु इब्बरल्लियू आन्वयिसुत्तदॆ. इदरिन्द लक्ष्मिगू अनन्तत्ववॆम्ब स्वरूप निरूपक धर्मदिन्द, विभुत्ववु प्रति पादिसल्पडुत्तदॆ ऎम्ब दु गमनार्ह

(0) (9) (2) (*)

पु … नो

!

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श्रीव द्रवस्यतय

ईश्वर निरूपित स्वरूप विशेष नि

मळ्ळ गुणळुव दिव्यमच्चळ विग्रहादिहळु मॆल्ला

ईश्वरनुक्कु निरूपित स्वरूप वि शेषणळायिरुक्कु, इग्गुणळिल् ज्ञान बिलैश्वर्य वीर्य शक्ति तेजस्सुक्कन्नु आरु गुण परत्योपयुक्तळ यिरुक्कु सौशील्य वात्सल्यादि

म् हल् सौलभ्यवयुक्तळायिरुक्कु, इष्टुणल्लाम् सर्वकालत्तिलुव स्वरूपाश्रितळायिरुक्कु,

इदु सम्प्रदाय सिद्दध९०ब दन इव्वर्थ ऎन्दारम्भिसि आचारर रस तरॆ

रू.न मेलॆ हेळिद सत्यत्व दिन्वरन निरूपक नन्न, !नन्दाविळक्कॆ अळत्त र्करियाद नन्दा नाशविल्लद विकारविल्लद इदु सत्य कब्बार्ध, वि ज्योतिस्वरूपवे-ज्ञानशब्दार्ध अळत्तक्करियाय्-अळविसलु अतावे देवत, कलतः, वतः, अळवुपडिसलु साध्यविल्लदवन इदु अनन्त शब्दार्ध, ऎन्दू } ण‌नु नलं, मुर, मल्लनलु ऎन्दु म ழு शब्बवन्नु का काक्षि न्याय दिन्द ऎरदुकडॆगू अन्वयिसबेकु. आग मुg ण -ऎम्ब शब्द

उण दिन्द परिपूर्ण स्वरूपनु, वनम परिपूर्णवाद आनन्द स्वरूपनु 3)

शून दनि पॆरिय कुड‌ नविस्टम् नर्ववनगळल्लि व्यापरिसि अदक्किन्तलू (व का ता) नॆरिय -दॊड्डदाद, र डर्- भव९भूतज्ञन, ज्ञान- धर्मिज्ञन, इन्नम आनन्द स्वरूपनु ऎन्दू, 4) अमलन् व प्रतिभटनु, इत्यादियागि अल्वार गळु अनुसन्धान माडि रुत्तार,

ईश्वरन निरूपित स्वरूप विशेषण धर्मगळु

हीगॆ ईश्वरन स्वरूववन्नु तिळिदुकॊळ्ळलु बेकाद सत्यत्व, ज्ञान, अनन्तत्व, आनन्द अमलत्ववॆम्ब स्वरूप निरूपक धर्मगळन्नु हेळि, अवुगळिन्द तिळिसल्पट्ट स्वरूपक्कॆ विश्लेषण गळाद ज्ञन बश्वरादि गुणगळु निरूपित स्वरूव विशेषण गुणगळॆन्दु मट्टुळ्ळगुणङ्गळु नित्यादि निरूपिसुत्तारॆ अदागि ईश्वरन बाकि गुणगळू दिव्य मङ्गळ विग्रहगळू, (आदि शब्द दिन्द विभूतियु ग्रहिसल्पडुत्तदॆ) विभूतिगळॆल्लवू अवनिगॆ निरूपित स्वरूप विशेषणगळागिवॆ गुणगळल्लि ज्ञान बलॆश्वर वीरशक्ति तेजस्सगळॆम्ब आरु गुणगळु परत्वक्कॆ उवयुक्तवादवु ज्ञान-नर्ववन्नु साक्षात्करिसुवुदु, बल, उभय विभूति धारण सामर्थ्य, ऐश्वर नियमि सवुदु, वीर-जगत्तिगॆ उपादान कारणवागिद्दरू विकारविल्लदिर.वुदु, शक्ति-अघटित घटना साव र्ध्व, तेजः त्रगळन्नु तिरस्करिसलर्हवाद सामर्ध्य, सौल्यवात्सल्यादि गुणगळु सौलभ्य कै (सुलभवागि भगवन्तनन्नु पडॆय लु) उपयुक्तगळागिरुवुवु ई गुणगळल्ला सर्वकालदल्लि

य भगवन्तन स्वरूपन्नु आश्रयिसिरुवुवु

  1. नन्दाविळक्कॆ अळर्क्करियाय ः (सॆ. तिरु 3-8-1) 2) उणर्‌मुनलम् (ति. मॊ, 1-1-2) 3) शून्य हत्रा स्टुयर्‌न्न मुडिविल् परं पाp यो

शू स्पदनल् पॆरिय परन मलर् शो यो । हू 1 * दनिल् पॆरिय शुडर्‌ ज्ञान विश्ववॆय शू न दनिल् पॆरिय बॆन्नवादर च न्याय । 4) (अमलनादि पिरान्

CA

1 - दोषविल्लद जगत्कारणनाद उपकारकनु.

(3 10-10-10)

पु. ति. न

तत्राधि रः

परव्यूहादि पञ्चनिद भगवद्रूप निरूपणम्

151

परवूहादि विभागळिल् गुण नियमन् शोल्लुहिरदॆल्ला अवोरूपण्ण यिट्टु अनुसन्दिप्पारु सश्वर्र आविष्करिक्कु गुणविशेषङ्गळ कॊल्लुहै क्याडवत्तनॆ औपनिषद विद्याविशेषण्ण तोरु अनुसनेयगुण विशेषळ नियत नाले भगवच्चाक्तमान रूपविशेषानुसन्मानत्तुक्कु गुणविशेष नियतज्ञ.

परव्यूहरूपक्

अडल् पररूपल् ज्ञानादि गुणङ्गनारु वेद्य व्यूह ४ नालॆन्नुव, मनु, शास्त्र कॊल्लुव, नालुहनायिरुक्क, व्यूह वासुदेव रूपत्तुळ्ळु पररूपरा अनुसय गुणभेदविल्लायाले

परव्यूह विभव हार्दार्चारूप विशेषगळु

हागादरॆ परव्यूहादि रूपगळल्लि कॆलवु ग णगळन्नु मात्र हेळिरुवुदेकॆन्दरॆ परव्यूह विभागगळिल् ऎन्दु आचाररु विवरिस तारॆ अदागि परहाद्यवस्थॆगळल्लि गुण नियव वन्नु हेळुवुदल्ला आया रूपगळन्नु अनुसन्धान माडुववरिगॆ सर्वेश्वरनु (अविष्करिकुम) योगदशॆयल्लि अवरिगॆ साक्षात्कार विषयवागुवन्तॆ-योगचक्षुस्सिगॆ प्रकाशिसुवन्तॆ माडुव विशेष गुणगळन्नु हेळुवुदक्कॆ मात्र. इतर गुणगळन्नु निषेधिसुवुदक्कल्ल

धृष्टान्तवन्नु

प्रत्यक्ष

हीगॆ ऎल्ला गुणगळू भगवन्तन स्वरूपातवागिरुवाग कलवु गुणगळन्नु मात्र व्यूह

रूपगळॊडनॆ आ गुणगळु अवरि आ रूपगळल्लि उपासिसबेकन्दू य गदरॆयल्लि आ वाग इवॆयॆन्दू निष्कषि-सबददे ऎन्दरॆ अदक्कॆ

आचाररु औपनिषद विद्या हेळिरुव दहर, शां ल विशेषङ्गळ ऎन्दु आरम्भिसि तिळिस तारॆ अदागि उपनिषत्तुगळल्लि हेळिरुव दहर, वैश्वानरागि विद्यॆगळल्लि, अनुसन्धेयवाद अपहतपात्म, ननोमयादि गुणगळु, आयाया विद्यॆगळिगॆ नियतगळागिरुव हागॆ, (ई विद्यॆयल्लि ई गुणगळन्ने उपासनॆ माडबेकु ऎन्दु निर्बन्ध) भगवच्छास्त्रवाद पञ्चरात्रागमगळल्लि हेळल्पट्ट, वास देव, सङ्कर्षण, प्रद्युम्न, अनि रुद्ध, रॆम्बव्यूह रूपगळ उपासनॆगळल्लिय मुन्द हेळल्पडुव गुण विशेषगळु नियतगळु आ सन्दर्भदल्लि, परवास देवरूपदल्लि ज्ञानशक्ति, बश्वर, वि ई तेजस्सॆम्ब आरुगुणगळू उपा सिसल्पदतक्कवु (वेद्यङ्गळ्).

व्यूहरूपगळु नाल्कु ऎन्दू, मूरु ऎन्दू शास्त्रगळु हेळुत्तवॆ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युन्नु असिर द्धरॆम्ब नाल्कु व्यूह रूपगळु इरुवाग, मूरु व्यूह रूपगळॆन्दु हेळुवु दक्कॆ कारणवेनॆन्दरॆ, परवासुदेव रूपक्कू, व्यूहवासुदेव ‘रूपक्कू अनुसन्धेयवाद गणगळल्लि भेदविल्लदिरुवुदरिन्द व्यूह वार्नु व रूपवन्नु पररूपदॊडनॆ सेरिसि, बाकि मरु

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त्रिव्यूहन् हिरदु. इवृक्ष

रुद्रहस्यव्रयारे

“गु : प्रधमतर मूर्तिस्तव बभ् ततस्तिप्रषां युग युगर्हि त्रिभिरभः .” ऎनहिर श्लोकत्तिले सहित्तार् हळ, इष्टरव्यूहळि

इन्सरहळिल् गुणक्रिया विभागण्ण नाडु न्याासुदेवः परइति स भर्वा मुक्तभोगो, बलाड्या बोधात्सङ्कर्षणस्य ं हरसि विनुदे शास्त्र मैश्वय्य वीरात् प्रद्यन्नु स्परधर्म नयसिच भगर्वा, शक्ति तेजोनिरुद्यो बिभ्राणः पासि तत्वं गमयसिद तथाव्यूह रङ्गाधिराज ॥ ऎन्.हिर श्लोकलेस हिक्कप्पट्टिन

છે

व्यूह झापग त मात्र हेळिर वुदु ई पक्षवन्नु 1 गुप्पतैः प्रथमतर मरिस्तव बभौ ततस्ति प्रषां त्रियुग युगळ्ळिर्हिसिभिरभुः”, ऎम्ब श्लोकदल्लि सङ्ग्रहिसिरुत्तार, इदु त्रिव्यूह अक्षक्कॆ प्राण प्रथव तर व रि ऎम्ब दु व्यूह वानुदेवनन्नु निर्देशिसु इदॆ, ऎन्दू ई वु आचारर गळु आ प्राय, पड तारॆ आगॆ चात व्यूह पक्षक्कॆ प्रमाणवा गुत्तदॆ ई परवानदॆ व, व्यूह वास देव, सङ्कर्षण, प्रदर, अनिरुद्ध रूपगळल्लि, ग ण मत्तु अवुगळ कारगळु पाडुन्याद्यासुदेवः (श्रीरङ्ग -स्तव 2,32) ऎम्ब श्लोकदल्लि सङ्ग्र हिसल्पट्टवु. अदागि षड्डु क्यात् आ गुणगळिन्द कूडिदवनु परवासुदेवनु ऎन्दु (भवान्) सीनु, मुक्त भोग्य-मर गळि०द अनु भविसल्पडुत्तीया, तथा हागॆ व्यूह्य-ह,वतार माडि, बलाड्या बो(धा-बलदिन्द कूडिद ज्ञानदिन्द, सङ्कर्षणत्वं नीनु सङ्कर्षण रूववन्नु ताळि हरसि वितनुष् शास्त्र संह र माडुत्तिया हागॆये शास्त्रवन्नु प्रचार माडुत्तिया, प्रद्युम्न सर्गधर्वनयसिच भगवन्-प्रद्यु रूपियागि सृष्टिकारवन्नु माडि, धर्म प्रवर्तनवन्नु माडुत्तीया, शक्ति तेजोनिर बिभ्राणः पासितत्वङ्गन यसिच-शक्ति तेजस्सगळिन्द कूडिदवनागि, अनिरुद्ध रूपवन्नु ताळि, जगद्रक्षणॆ माडुत्तीया, तत्रोपदेशवन्नु माडुत्तीया ई श्लोकदल्लि वानुदेवपरः ऎन्दु परवानदेवनन्नु हेळि, व्यूह ऎन्दारम्भिसि, मूरु व्यूह रूपगळन्नु हेळिरुवुदरिन्द ई श्लोकवु त्रिव्यूह पक्षक्कॆ प्रमाणवागिदॆ ऎन्दु हेळ्कॊबहुदु,

  1. गुप्प : प्रधदुत

तत प्रक्षेषां त्रियुग युग जै व्यवस्थाय चैवा ननु वरद 7

व बभ श्रीरभु ! विस्कृतिवशात्

भवान् सर्वव गणित महा मगळ गुण

J

दॊ

(वजस्तव 16 श्लोक)

परवासु

ई, ज्ञान, ऒल, ऐश्वर, वीर, शक्ति’ तेजस्सॆम्ब आरगुणगळिन्द, तव निन्न प्रथमतर मरि देव रूप मरियु बट् - प्रकाशिसितु आनन्तर तेषान्ति अवुगळल्लि मूरु रूवगळु, सङ्कर्षण, प्रद्यु अनिरुद्धनॆम्ब, पेत्रियग - पाडु परिपूर्ण, (युगा - ज्ञानबलादि द्वन्दानियस्कस ) भि - मङ्ग लैर्हि विरडॆरडु गुणगळिन्द कूडिद, मूरु द्वङ्ग्यगळॆन्दरॆ - ज्ञानबल, ऐश्वर वीर, शक्तितेजसैम्ब गुणगळिन्द क्रमवागि अभु - प्रकाशिसुत्तिद्दुवु ई व्यवस्थॆयु आययागुगळन्नू आयायारूपगळन्नू दान माडुववरिगॆ आविष्करिसुत्तीया ऎम्बुदरिन्द मात्र एर्पट्टिदॆ ऎळ्ळवरदनॆ वस्तुस्थितियल्लि नीनु ऎल्लॆल्लियू ऎल्ला गुणगळिन्द

कूडिदवनु

तत्वत्रयाधिकारः

जाग्रदादि पद भेदब्बळि लुळ्ळ विशेष विल्ला

“जाग्रतृ स्नात्यलस तुरीय प्रायरा क्रमवदुपास्यः । स्वामि सत्तद्दुण परिबर्हातुरू हं वहसि चतुर्धा ॥

153

ऎन्नु सण्णहीतज्ञळायि केशवादिहळान परणु रूपळु व्यूहान्तरल्

ל

अनन्तर चत व्यूह पक्षक्कॆ प्रमाणवाद श्लोकवन्नु उ वाहरिस तारॆ जाग्रदादि भेदं गळिलुळ्ळ ऎन्दारम्भिसि जि ग्रतप्राया- - ऎच्चरदिन्द कूडिदवर हागॆ, स्वप्न प्राया- स्वप्न दशग सदृशवागिरुववरु, अत्यलसप्रायाशि- सुषुप्तन हागॆ, तुरीयप्राया- मूर्चॆ हॊन्दिदवरिगॆ सदृशरादवरु ऎन्दु ध्यात्म क्रमव ध्यान माडुववर क्रमदन्तॆ, उपान्य नगि स्वामिन्, तरुण परिब ह९-६यया गुणगळन्नु (बिळिपु, कॆम्पु मॊदलाद बण्णगळु) परिबर्ह आय धगळन्नु उळ्ळवनागि चातुर्व्यूहं नाल्कु व्यूहगळन्नु चतुर्धा नाल्क प्रकार वागि वहसि-वहिसिरुत्तीया हीगॆ जि ग्रदादिभेदगळल्लि न, विशेषगळु “ज रत्न” ऎन्दारम्भि स व श्लोकदल्लि सङ्ग्रहिसल्पट्टिवॆ

गीतॆयल्लि परमात्मनु यतमान सञ्ज्ञ, व्यतिरेक सञ्ज्ञा रसञ्ज्ञु ऎन्दु “प्रजहाति यदा कामान्”, ऎन्दारम्भिस व नाल्कु तिप्रज्ञनाद योगिय नाल्कु अवस्थॆगळन्नु विवरिसिद्दानॆ. अदे य नाल्कु अवस्थॆगळु हेळिल्पट्टिवॆ

hi

एकेन्द्रिय सञ्ज्ञ, नकु

श्लोकगळल्लि व्यत्यमेण, न्यायवन्नु अनुसरिसि इल्लि

विशाखयस अदागि परव पददल्लि शुद्ध सत्वद्रव्यद परिणाम रूपवागि कै कालुगळिल्लदॆ सूलाकारवागि बहळ अगलवागियू ऎत्तरवागियू विशालयपवॆम्ब स्तम्भविदॆ. इदर कॆळगॆ सत्त नाल्कु कडॆगळल्लियू जाग्रत् – जागरणदिन्द कूडिद वासुदेव, सङ्कर्षण, प्रद्यु न्नु, अनिरुद्ध रूपगळिवॆ. अदक्कॆ स्वल्प मेलुगडॆ, नाल्कु कडॆगळल्लियू स्वप्नावस्थॆयिन्द कूडिद वसुदेवादि नाल्कु व्यूह रूपगळिवॆ. अदक्कू स्वल्प मेलॆ, नाल्कु कडॆगळल्लियू अत्तलन सुषुप्ति अवस्थॆयिन्द कूडिद वासुदेवादि नाल्कव्यूह रूपगळिवॆ हागॆये इन्नु स्वल्प मेलॆ अग्रभागदल्लि मूर्चितप्रायवाद अवस्थॆयिन्द कूडिद वास देवादि

यिन्द कूडिद वास देवादि नाल्कु रूपगळु प्रागादि क्रमदल्लि नाल्कु कडॆगळल्लियू इवॆ

जागृदवस्थॆयिन्द कूडिद वास देवादि नाल्कव्यूह रूपगळु विशाख रूवक्कॆ कॊम्बॆगळ गॆ नाल्कु दिक्कुगळल्लियू इद्दु सृष्टि स्थिति संहाररू पवाद व्यापारगळिन्दलू, अत्युत्कृष्टवाद बिळिपु, कॆम्पु मॊदलाद बण्णगळिन्दलू ऎल्ला आयुधगळिन्दलू कूडिइवॆ स्वप्न स्थानदल्लि, स्वप्न सञ्ज्ञकवाद व्यूह वासुदेव रूप चतुष्टयगळु, हिन्दिन हागॆये विशाखयूपक्क मेलुगडॆ नाल्कु दिक्कुगळल्लियू इवॆ. अवुगळिगॆ सृष्टित्यादि इच्चामात्र व्यापारविल्ल सुमप्ति स्थानदल्लि सुषुप्ति सञ्ज्ञकवाद हिन्दिन हागॆये इन्नु स्वल्प मेलॆ विशाखयूपद गळल्लियू इवॆ इवुगळिगॆ सृषादि इच्चॆय इल्ल.

स्वानन्दानुभव मात्र अदक्कॆ मेलॆ इरुव तरीय स्थानदल्लि तुळु सञ्ज्ञकवाद व्यूह चतुष्टयक्कॆ कै, कालु गळिन्द कूडिद शरिरल्ल, सुत्त श्री वासुदेवनिगॆ समना रूपद नाल्कु दिक्कुगळल्लियू

દરે

नाल्कु कडॆ

मॊदलादवु

154

भद्र्र स्यत्र सावे

विभवावतार रूप कथनव

मत

विभवङ्गळावन? पद्मनाभादिहळान मुप्पत्तुनान) रूपळ्, इव ल् कूरादिहळान अवतार ऒरुप्रयोजन वशालॆ विशेषित्तु चॊल्लपट्टन. इद्विभवळि इभवळि ईश्वरनवो कार्यविशेषट्गळु क्रीडाह तावेण्णिन गुण

वेण्णिन पोदु मरॆत्तु मम्, वेण्णिनपोदु प्रकाशिप्पित्तु नडत्तु. इवं लवान्यर भेदङ्गळ “कृष्ण रूपा सङ्ख्यानि” इत्यारि दिहळि पडिय यनळ्

डिये विभवारण्यळुव कण्णु कॊळ्ळदु. शिलजीव‌हळ्ळि विग्रह विशेषत्ता लुव, शक्ति विशेषालुम्, अधिष्टित्तु अतिशयितकार्य नडत्तुहिरदुम्

विभवभेदव.

नाल्कु कॊम्बॆगळ हागॆ शरीर चेतन - मरगळल्ल, इदर विस्तारवन्नु लक्ष्मीतन्त्र, मत्तु सकृत संहितॆयु तिळिय बहुदु आचाररु त वरदराज पञ्चाश स्तोत्रदल्लि ई कळगॆ कण्ड श्लोकदल्लि ई विशाख स्तम्भवन्नु निरूपिसिरुत्तारॆ

रढस्य चिन्मय ता हृदय करीश

सम्भानकारि परिणणव, विशेष भाज स्टानेषु जाग्रति चतुपि सत्ववन्तः

शाखाविभाग चत रे त चतरात्म!! (वरदराज पञ्चा त -19) हेकरीर हत्तिगिरियल्लिरुव स्वावि ये, सत्ववन्तः-सात्त्विकराद महापुरुषरु, हृदये - हृदयदल्लि चिन्मयतया-ज्ञान पदिन्द, रूढस्य इरुव सन्दान कारि, कॊरॆयल्लिन हागॆ, परिणाम विशेष भुजः - करि णाम विशेषवन्नु हॊन्दिरुव, तव निन्न चतुर्षुस्टानेषु अपि-नाल्कु स्थानगळल्लिय शाखा विभाग चतरे-कॊम्बॆगळ विभागदिन्द प्रकाशिसुव चातुरात्म नाल्कु मरिगळन्नु जाग्रति उपासनॆ माडुत्तारॆ. अदागि श्री वैकुण्ठदल्लि विशाखयूपवॆम्ब ऒन्दु दॊड्ड स्तम्भविदॆ. अदरल्लि कॆळगडॆ अदक्कॆ स्वल्प मेलुगडॆ अदक्कू स्वल्प मेलुगडॆ,

अनन्तर तुदियल्लि नाल्कु

दिक्कुगळल्लि नाल्कु कॊम्बॆगळ हागॆ भगवन्तन विग्रहगळिवॆ. अवुगळ वैकि वासुदेव सङ्कर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्दरॆम्ब नाल्कु रूपगळु बाहेन्द्रिय व्यापारगळुळ्ळवुगळागि जाग्रदवयिन्द कूडिवॆ. अदक्कॆ स्वल्प मेलॆ नाल्कु दिक्कु गळल्लि यू इरुव नाल्कु व रिगळु बाह्यन्द्रिय व्यपारविल्लदॆ केवल मानस व्यापारदिन्द स्वप्नद स्थितिय हागॆ इवॆ अदक्कॆ मेलॆ इरुव नाल्कु मरिगळु मनो व्यापारवू इल्लदॆ सुषुप्ति दशॆयल्लिवॆ अदक्कॆ मेलॆ इरुव नाल्कु मरिगळु मूर्छादतॆयन्तिवॆ. इदॆ तुरीयावस्थॆ, रीतिय नाल्कु अवस्थॆगळल्लिरुव नाल्कु विध मरिगळन्नु योगियु य तमान, व्यतिरेक, एकेन्द्रिय, वशीकार सञ्ज्ञरीतियल्लि ध्यान माडतक्कवनु. (केशवादिहळान) केशव, नारायण, माधव इत्यादियाद हन्नॆरडु रूपगळू व्यूहान्तरगळु,

विभवावतार

विभवङ्गळावन विभ रूपगळु पद्मनाभ, ध्रुव, अनन्त, शक्ति, मधुसूदनः इत्यादियाद मूवत्तु क्कू मेलाद रूपगळु, विश्वक्सॆन संहितॆयल्लि मूवत्तारु रूपगळॆन्दू अहिर्बुध्य संहितॆ

तत्वत्रयाधिकारः

हेळिर वुदन्नु व नस्सिनल्लिट्टु

S

155

कॊण्डवरागि मूवति

यल्लि मूवत्तॊम्बत्तु ऎन्दू गिन्त जास्ति नलवत्तर ऒळगॆ ऎम्ब अर्थदल्लि मूवत्तु चैल्वान ऎन्दु हेळिद्दारॆ हागिद्दर दशवतारवॆन्दु हत्तु अवतारगळन्नु मात्र हेळुवुदक्कॆ कारणवेनॆन्दरॆ (इवट्रल् मत्तॆ कू र्मादिहळान) ऎन्दु आरम्भिसि विवरिसुत्तारॆ अदागि मत्स कूर्मादि अवतारगळु ऒन्दॊन्दु प्रयो जनरन्नु उद्देशिसि विशेषवागि हेळल्पट्टिवॆ अदागि वेदाहरण क्षीरसमुद्र मथन इत्यादि प्रयोजनगळु-हागादरॆ रामकृष्णा “वतारगळल्लि भगवन्तनु कर्मवश्यर हागॆ कष्ट गळन्नु अन भविस वुदु सरिये ऎन्दरॆ,

सरिय

इदु “मायाविडम्बन मवेहि यथान ओ” ऎन्दु भागवतदल्लि हेळिरुवन्तॆ, नटनु अनेक वेषगळन्नु हाकिकॊण्डु रङ्गस्थळदल्लि नटिसु वन्त भगवन्तन नटस इनॆम्बुदन्नु हृदयदल्लिट्टुकॊण्डु, आचाररु इद्विभवङ्गळिल्ल’ ऎन्दा रम्भिसि अनुग्रहिसुत्तारॆ

ई विभवावतारगळल्लि ईश्वरनु
आयाया कार्यविशेवगळिगॆ अनुगणवागि
तनगॆ बेकादाग बेकाद गुणगळन्नु मरॆसि, बेकादाग प्रकाशपडिसि नडॆसुत्तानॆ. अन्दरॆ अवॊकार् विशेषङ्गळुक्कीडाह अनुर प्रकृतिगळन्नु मोहगॊळिसुवुदक्कू आश्रितरन्न स०तॊस गॊळिसुवुदक्कू इन्नू अनेक विधवाद विचित्र काव्यगळन्नु माडुवुदक्कोस्करवू तान् वेण्डिन गुणङ्गळ्ळि वेण्डिनपोदु मरॆतु म् नेण्डिन पोदु प्रकशिप्पित्तु-दमावतार दल्लि पर सूचकवाद गुणगळन्नु प्राण मुच्चिट्टनु आदरू

आदरू जटायु मोक्ष प्र तन समद्रदल्लि सेतुबन्धन, विभीषण शरणागति, तन्न अवतार समावन कालदल्लि, अयोध्य यल्लिद्द चराचर प्राणिगळन्नु मोक्षक्कॆ करॆदॊय्दद्दु, ऎम्ब प्रकरणगळल्लि तन्न परत्ववन्नु प्रक पडिसिदनु. हागॆये कृष्णावतारदल्लि जरानन्धादि युद्धगळल्लि तन्न परत्ववन्नु मरॆसि, अर्जुन युद्ध प्रोत्साहनार्थवागि गीतॆयन्नु उपदेशिसियू, विश्वरूप दर्शनगळन्नु माडियू गोवर्धनोद्धरणागि दशॆगळल्लि आश्रित संरक्षणादिगळन्नु माडियू, तन्न परत्ववन्नु प्रकटनॆ माडि दनल्लवे अवुगळु इल्लि विवक्षित.

काश

व्यूहावतारगळ हागॆ ई विधवावतारगळल्लियू अवान्तर भेदगळु- इवट्रल् अवान्तर भेदङ्ग ऎन्दारम्भिसि उण्टॆन्नुत्तारॆ. अदागि ई विधवावतारगळल्लि अवान्तर भेदगळु (ऒळगॆ इरुव भेदगळु) कृष्ण रूपाण्य सङ्ख्यानि कृष्णन रूपगळु अनन्तगळु, ऎम्ब वचन गळ प्रकार बहुवागिवॆ मदनगोपालकृष्ण, वेणुगोवाल, चतुर्भुजगोपाल, लक्ष्मीनर सिंह, योगानन्दनृसिंह, चतुर्भुज, अष्ट भुजनरसिंह इत्यादि

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इप्पडिये इत्यादि हीगॆये विभवाअवतारगळल्लि असङ्ख्यातवाद अवतारगळन्नु सात्र तादि संहितॆगळिन्द तिळियतक्कद्दु. अनन्तर आवेशावतार भेदगळन्नु तिळिसत्तारॆ.

शिलजीवर् हळ्ळि इत्यादि, कॆलवु जीवरुगळन्नु (हिरण्यगर्भरुद्रादिगळन्नु) विग्रह विशेषदिन्दलू, शक्तिविशेषदिन्दलू, अधिष्ठिसि (अ०तः प्रवेशिसि) अतिशयवाद कॆलसगळन्नु नडॆसिकॊळ्ळुवुदु विभवभेद,

सृष्टिन् तत करिष्यामि
त्वामाविश्य प्रजापते,

ऎन्दु चतुर्मुखन शरीरदल्लि विग्रहरूपियागि प्रवेशिसि
आ जीवद्वारा सृष्टि कारवन्नु नडॆसुवुदु,

156

श्रीमद्रहस्कृत्रयसारे

अण्णावतार स्वरूपकथनव

परव्यूहादि रूपङ्गळ् ताने आश्रिताह अवर् हळ् अपेक्षित्तपडियिले “बिम्बा कृत्यात्मना बिम्बे समागतावतिष्यते” ऎन् हिर पडिये निश्चिर निद्रॆ आरावतार.

हागॆये रुद्र अरीरदल्लि विग्रहारा प्रवेतिसि संहार कारवन्नू नडॆसुवुदु.

इल्लि ‘शिलजीव‌ हळ्ळि’ ऎन्दारम्भिसि तिळिसुवुदरिन्द,
ई अवतारगळु मुमुक्षुगळिगॆ उपास्यवल्लव् ऎन्दु तिळिसुवुदे भाव.
बलरामनु अनन्तनॆम्ब नित्यसूरियाद जीवनल्लि अधिष्ठान माडिद अवतारवाद्दरिन्द मुमुक्षगळिगॆ अनुपास्यनु,
प्रणामादि आचारगळिगॆ भाधकविल्ल.
भार्गवराम, भगवद्-द्वैपायन(व्यास)रल्लि विग्रह द्वारा अधिष्ठानवु,
आयाया अधिकारिगळिगॆ प्रतिष्ठार्चनानुमतियन्नु कॊडवुदकोस्कर
अवरुगळु मुमुक्षुगळिगॆ उपास्यरल्ल.
पञ्चरात्रागमगळल्लि यारिगॆ प्रतिष्ठार्चनादिगळन्नु माडलु अनुमति नीडिल्लवो, अवरल्लि शक्त्यावेश मात्र.

अर्चावतार

છે

परव्यूहादि रूपङ्गळ्-ताने इत्यादि-

पररूप, व्यूहरूप, विभवरूपगळु, आश्रितरिगोस्कर अवर अपेक्षयन्तॆ (1) “बिम्बाकृत्यात्मने बिन्दे समागत्यावतिष्ठॆ ते” ऎन्दु हेळुव प्रकार, अर्चावतार. अन्दरॆ श्री रङ्गाधिक्षेत्रगळल्लि स्थिरव्रतिष्ठितवागिरुव स्वभावदिन्द कूडिरुवुदु भक्तनु तन्न प्रीतियिन्द याव विग्रह रूवदल्लि भगवन्तनन्नु आराधिसबेकॆन्नुत्तानो आ प्राकृतवाद विग्रह रूपदल्लि, पर, व्यूह, विभवगळल्लि निन्दाद, अन्दरॆ वैकुण्ठनाद, व्यूह वासुदेव, व्यूहसङ्कर्षण रामकृष्णादि रूपगळल्लि ऒन्दाद, अप्राकृतरूपवन्नु आ विग्रहक्कॆ सरियागि, अदरल्लि हालिनल्लि नीरुबॆरॆतन्तॆ प्रवेशिसिसि, आ भक्तनु माडुव पूजादिगळन्नु स्वीकरिसुत्तानॆ.

सुरूपाम्प्रतिमां विष्णः प्रसन्नवदनेक्षणाम् ।

कृतात्मनः प्रीतिकरीं सुवर्णरजतादिभिः ॥

तामर्चयॆ. तम्प्रणवेत् तांयजेत् तांविचिन्तयेत् ।

विशत्य वास्त्र दोषस्तु तामेव ब्रह्मरूपिणि ॥

ऎम्बन्तॆ आ विग्रहदल्लि सान्निध्यवन्नु माडिकॊण्डिरुव परब्रह्मनन्नु अर्चिसि, नमस्करिसि, ध्यान माडि, कॊनॆगॆ सकलपाप विनिर्मुक्तनागि आ भगवन्तनन्नु पडॆयुत्तानॆ. हीगॆ प्राक्ट विग्रहदल्लि अप्राकृतरूपवन्नु बॆरॆसिकॊण्डु सान्निध्य माडिकॊण्डिरुवुदु अर्चावतार,

  1. “बिम्बा कृत्यात्मना बिन्दे समागत्यावतिष्ठते” ।

करोत्य मूर्तमखिलां भोगदक्किन्तु चात्मसात् #

आश्रितरु, शिला, दारु, लोहरूपदल्लि याव विग्रहवन्नु माडिरुत्तारो मेरॆ, अदक्कॆ सदृशवाद अप्राकृत शुद्ध सत्वरूपवन्नु तुळि, अवरु माडुव आ वाहनादि प्रतिव्यादिगळिन्द आ विग्रहगळल्लि नीरक्षीर विभागवल्लद हागॆ प्रवेशिसि, पालिसलु अवरप्पते - मांसचक्षुस्सिगॆ गोचरवागि साध्य माडिकॊण्डिरुत्तानॆ,

(3 06-22) आ विग्रहदल्लि अवरवर अपेक्षॆय संहिता बोधितवाद शास्त्रीय अवरवर इष्टार्थगळन्नु दय

(Ang Hold 2-7-8)तत्वयाधिका

हार अथवा आन्नरामिरूप

157

सरुडैयवु हृदयले सूक्ष्म मायिरुप्पदूरु रूव विशेषण्णु निरनि अराम्यव

अरामवतारव इदु सत्यारामियान दिव्यात्मस्वरवळ्ळियन्नु सक्कॆ इवारुत्तुयाह “अष्टा योग सिद्दानांहृद्याग निरतात्मनां । योगि नामधिकार स्टा दे

दे र्क हृदयेशये” इत्यादिहळिले कॊल्लुच्छयाले अरामि रूपवन्नु कॊल्लप्पट्टदु.

अन्तराम्यवतार

सर्वरुडैयवु इत्यादि ऎल्लाव नष्यर हृदयगळल्लि सूक्ष्मवागिरुव रूप विशेष नन्न ताळि सन्निध्य माडिकॊण्डिरुवुदु अन्तरावत र, सूक्ष्मवाय्, रूपविशेष

तर, कॊण्डु ऎम्ब पदगळिन्द ई अन्तरानि) रूपरु, विभावद स्वरूपवल्ल नीलतोयद मध्यस्थाविद्युल्ले जीव भास्वरा ॥ नीवारकवत्त सीताभाष्यात्मपमा । तस्याखायामद्वेपरमात्माव्यवस्थितः ॥ ऎम्ब श्रुतियु हेळुवन्त, हृदय परिमितवागि नी मेघ मळवाद अप्रावद विग्रह युक्तवागि मीञ्चिन हागॆ प्रकाशदिन्द कूडि, नीवारधान्यद कड्डिय हागॆ, सूक्ष्मवागि, (हळदि बण्ण) स्वर्णाभॆयाद लक्ष्मी विग्रह विशिष्टवागि चारराग्निय सूक्ष्मवाद ज्वालॆय मध्यॆ, परमात्मरूपवु विराजवागिद

इदु अन्तरामि स्वरूप. “नर्वनृडॆयवव” ऎन्दु हेळदॆ “सर्वरुडैयवु” ऎन्दु आचाररु हेळिरुवुद रिन्द, योगवन्नु माडलु अधि ारविल्लदॆ इरुव मृगादि शरीरगळल्लि ई अन्तरामि रूपविल्ल ऎम्बुदु भाव केवल मनुष्य शरीरगळल्लि मात्र ई अ०तरामि रूवविदॆ

हीगॆ, “यः पृधिव्यान्तिष्यन्, यु नितिन आत्मानमन्तरोयमयति”, ऎन्दु श्रुतिगळु दिव्यात्मस्वरूपवन्नु, सर्व०तरामियागि निर्णयिसिरुवाग, मनुष्यन हृदय प्रदेश दल्लि सूक्ष्मविग्रह रूपदिन्द कूडिदवनन्नु, अ०तामि ऎन्दु हेळुवुदु हेगॆ ऎम्ब आकाङ्क्ष य न्नु अचाररु, “इदु सर्वान्तरामियान” ऎन्दारम्भिसि वरिहरिसुत्तारॆ अदागि ई हृदयवर्ति दिव्यवङ्गळ विग्रह विशिष्टवाद रूपवु सर्वान्तरवियाद दिव्यात्म स्वरूपवन्नु अनुसन्धान माडलु तॊडगुववरिगॆ, (तुरै) द्वारवागि, (1) “अष्टाङ्गयोग सिद्धानां हृद्या निरतात्मनावत् । योगिनामधिकार स देकस्मिन् हृदयेश्ये !! 2) इत्यादिगळल्लि हेळुवुदरिन्द अन्तरामि रूववॆन्दु हेळल्पट्टिदॆ अदागि सर्वन्तरामियाद दिव्यात्म स्वरवचिन्तनॆगॆ दिव्य

विग्रह विशिष्ट हार्दध्यानवु (तुरै -द्वारवॆन्दु

(तुरै)-द्वारवॆन्दु हेळल्पट्टिदॆ

म०गळ

अळवाद

तटाकदल्लि नेरवागि इळियलागुवुदल्ल अदक्कागि, सोपानगळल्लिळिदु स्नानादिगळन्नु माडुव हङ्गॆ निराकारवाद भगवरूप चिन्तनॆयन्नु माडलु, मॊदलु विग्रहविशिष्ट रूपवन्नु ध्यानमाडि साक्षात्करिसि नन्तर स्वरूपोपासनॆयन्नु माडबेकु ई विषयवन्नु श्रीमन्निग मान्त महादेशिकरु शरणागति दीपिकॆयल्लि (3) “पद्माभिरमवदनेक्षण, (4) मानातिलं सुखबोध” ऎम्ब ऎरडु श्लोकगळल्लि विवरिसिद्दारॆ.

1), 2), 3), 4),

… … न

}

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F

158

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

भगवद्विग्रहस्य शुद्ध सत्व द्रव्य -भगवदवतार रहस्य म इप्पडियव तरिक्किर रूपळॆल्ल व हल्लाव शुद्ध सत्व द्रव्यमयळाय् करतल नोडु तुवक्कर वरुयाले, शुद्ध सृष्टिऎन्नु, पेर् पॆरुम्, इव्ववतारल्ला “र्, सत्यज्ञळॆन्नुव, इवगिल् ईश्वरनुक्कु ज्ञानादिस चवि यॆन्नुव, इद्विग्रहज्जि आ शुद्द सत्वमयनु, इव : रु ईश्वरेच्छा मात्रन कारणमॆनु, धररक्षणम्पण्ण नेण्णु म कालन कालमॆन्नु, स धुपरित्राणादिहळे प्रयोजन ळॆन्नुव, इव्वरङ्गळिनु अनुसपार स्वाधिकारा नुगुण सहितोपायपूयाले, जन्मानर मनुभवियादे मुक्तराहलाव ऎन्नुम् “बहूनिवे व्यतीतानि” ऎन्नु तुडज अलु तॊकत्ताले गीताचार्र अरुळिचॆर्या

शुद्ध सृष्टि भगवन्तन विग्रहवु शुद्ध सत्व द्रव्यमय

हीगॆ भगवन्तनु ऎत्तिकॊळ्ळुव विग्रहगळु प्राकृररूपगळन्तॆ, हेयत्व, ज्ञानसङ्कोचत्व, कर्ममूल, सुखदुःखान भ हेतुत्वगळिन्द कूडिदॆये ऎम्ब संशयवन्नु “इप्पडि अवतरिक्किर रूपङ्गळिल्” ऎन्दु आरम्भिसि आचाररु परिहरिसुत्तार. हीगॆ अवतार माडव रूपगळल्लि (वहळ)-प्रबेधगळॆल्ला, शुद्ध सत्व-द्रव्यमयगळु पुण्य पाप रूप कर्म, अदर फल, इवुगळ सम्बन्धविल्लदुदु. प्राकृत शरीरवु सप्तधातुमयत्ववागि हेय गुणास्पदवागिदॆ शुद्ध सत्वद्रव्यक्कॆ अदिल्ल पुण्यवापरूप कर्म सम्बन्धविल्लदिरुवुदरिन्द सुखदुःखानुभवक्कॆ प्रसक्तियिल्ल. आद्दरिन्द ई अवतारगळु शुद्ध सृष्टि ऎम्ब हॆसरन्नु पडॆदिवॆ. शुद्ध सृष्टि, विश्र ऎरडु विध. भगवन्तन अंशावतारगळाद रामकृष्णावतारगळु सृष्टि ऎन्दु आवतारवु शुद्ध सृष्टि. इवुगळु मुमुक्षपास्यगळु, चतुर्मुख ब्रह्म, रुद्र इवरुगळल्लि विग्रह रूपवाद अनुप्रवेशावतारवु मिश्र सृष्टि. इवुगळु मुमुक्षपास्यगळॆल्लवॆम्बुदु इल्लिय तात्पय्य.

  1. अष्टाङ्ग योग सिद्दानां - दयादृष्टाङ्ग योगदिन्द सिद्दि हॊन्दिद हृद्यागनि,तात्मनां - मानस पूजादिगळल्लि सर्वदा सरद, योगिनां-एकस्मिन् हृदमेशय - योगिगळिगॆ नार्दनाद हृदय कमलदल्लि शयनिसिरुव ई अन्तरामियल्लि, अधिकार, - उपासनॆ मूडलु अधिकारवु, स्पात् .. उण्टागुत्तदॆ 2) अधिशब्दकन्द, मन्त्र समाधि विषय नाना भूमि चळु च ।

निराकारो निरङ्ग स्मर्त ब्रह्म क्षणः ।

ताप प्रध याग होव “ष !

साकारं संस्मरेत्, ऎन्दु डाकार ब्रह्म स्वरूप) प्र

वाद विषयदल्लि साकार

आदागि नित्यमङ्गळविग्रह विशिष्ट पार्दन्मगणवु द्वारवॆन्दु स्पष्टिकरिसिदॆ

  1. पद्माभिरुदुव क्षणपाणिपादं दिव्यायुधाभरण माल्यविले नं त्वाम् ।

योगेन नाथ शुभाश्रय मात्मदन्तः सालम्बनेन परिचिन्त्यन यान्ति तृप्तिम् ।

कॆम्पु तावरॆयहागॆ सॊगसाद, बायि, कण्णु, कै, पादगळिन्द कूडिद शरीरदिन्द कूडिदवनु भगवन्त दिव्यवाद आभरण, मालॆ, चन्दनादिगळन्नु तन्न शरीरदल्लि धरिसिरुवरु, इन्धन शुबाशय दिव्य मङ्गळविग्रहविशिष्ट रूपवन्नु योगिगळु, योगाभ्यासकालदल्लि ध्यानमाडि साक्षात्करिसि तृप्तियन्नु हॊन्दुवुदिल्ल, दिव्य मङ्गळविग्रह विशिष्टवाद भगवन्तन ध्यानविदु इदक्कॆ सालम्बन योगवॆन्दु हॆसरु

शरणागति दीपिकॆ 22ने श्लोक)

प ३, नो

अवताररहस्य

तत्वधियाकारः

159

भग ०तन अवतारगळिगॆ कारणवेनु? इवु कर्म रूपवो? यावाग? एनु फल? इत्यादि विचारगळन्नु गीतॆयल्लि हेळिरुवन्तॆ इव्ववतारङ्गळॆल्लारॆ, ऎन्दारम्भिसि तिळिसुत्तारॆ ई भगवन्तन ई अवतारगळु इन्द्रजालविद्यॆय हाग सुळ्ळे ऎन्दरॆ अल्ल सत्यवादवु, इवुगळल्लि ईश्वरनिगॆ ज्ञानादि सङ्कोचविल्ल ई अवतार विग्रहगळु शुद्ध सत्वद्रव्यमयवादुवु. प्राकृतवल्लवॆन्दर्ध. ईरन इच्छॆये इवुगळिगॆ कारण. यावाग ई लोकदल्लि अवतरिसबेकॆन्दु सङ्किल्पिसुत्तानो अवाग अवतरिसुत्तानॆन्दर्थ धर्मरक्षणवन्नु माडबेकॆम्बकालवे काल साधुगळन्नु परित्राण तन्न दिव्य मङ्गळ रूपवन्नु तोरिसि अवर मनस्सिगॆ अप्यायवन्नुण्टु माडि आनुषङ्गिकवागि दुष्ट संहारवन्नु माडुवुदे प्रयोजन. ई अवताररहस्यवन्नु तिळिदु अनुसन्धान माडुववनिगॆ एक जन्मदल्लिये, तन्न अधिकारानुगुणवाद समीहित उपाय पूर्तियि न्द अन्दरॆ सकिञ्चनाधिकारिगॆ भक्तियोगानुष्ठानदिन्दलू, अकिञ्चनाधिकारिगॆ प्रप योगानुष्ठानदिन्दलू जन्मान्तरवन्नु हॊन्दद अदेजन्मदल्लि मोक्षवु लभिसुत्तदॆ. ई अर्थगळन्नु (a) बहूनिव्यतीतानि ऎन्दारम्भिसि ऐदु श्लोकगळिन्द गीताचारनु अनुग्रहिसिद्दानॆ सकिञ्च नाधिकारियाद भक्तियोग निष्ठनिगॆ, प्रारब्ध कर्मावसानदल्लि मोक्षवॆन्दु ब्रह्मसूत्रभाष्यगळल्लि

(*. De 23)

  1. मानातिलङ्घि सुखबोध महाम्बुराश् मा सीमरहिते भवतः स्वरूपे ।

तापत्रयणविहतिं न भजन्ति (भूयः) सन्तः संसार घर्मजनितन समाधिमन्तः । निरतिशयसुख निरतिशयज्ञान रूपनाद महा समुद्रदन्तॆ सुव भगदन्तन देशकाल वस्तु परिच्छेद रहितवाद अनन्त स्वरूप ध्यानदल्लि मग्नरादवरु, समाधि दशॆयल्लि अवन साक्षात्करवन्नु पडॆदु संसारवॆम्ब बिसिलिन तापदिन्द बळलि तापत्रय पीडॆयन्नु पडॆयुवुदिल्ल. अन्दरॆ भगवरूप साक्षात्करवन्नु पडॆदु निरति शय आनन्ददल्लि मुळुगिरुत्तारॆन्दु अर्ध इदु निरा०बन योग स्वरूपनिरूपक धर्म विशिष्टनाद भगवरूप साक्षात्कार वॆन्दर्थ गुणवल्लद, निर्गुण ब्रह्म साक्षात्कारवल्ल गुण, दिव्य मङ्गळ विग्रहविशिष्टवाद भगवत् साक्षात्कारवु सालम्बन योग आ विग्रहदल्लि नॆलॆसिरुव भगवरूप साक्षात्कार, निरालम्बन योग

(a) बमव्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।

तान्यहं वेद सर्वाणि नंवे परन्तप 1 1 1

अजोsपि सन्न व्ययात्मा भू ताना विश्वरूपिसन् । प्रकृतिं स्वामधिप्राय सम्भवामात्ममायय 121 यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मा नं सृ जागृहम् ॥ 31 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्म संापनार्थाय सम्भावामि युगे युगे #4 # जन्म कर्म चम्रदिं एवं वे तत्वतः ।

देहं पुनर्जन्म नैतिमा मेति सॊर्जुन 15

ऎलै अर्जुनने निन्न जन्मदन्तॆये नन्न जन्मवू सत्य

कळॆदवु. नीनु ऎष्टु जन्म ताळिद्दीयो ऎम्बुदन्नु नीनु तिळिय

निन्न हागॆये ननगू आनेक जन्मगळु, अवतारगळु

ननगॆ गॊत्तु, कर्म सम्बन्धवाद जन्म निन्नदु.

ननगॆ कर्म सम्बन्धविल्ल (अः), नन्न ज्ञानक्कॆ सङ्कोच विकासगळिल्ल (अव्यय), मेलू सर्वनियन्ता (ईश्वरः)

160

श्रीमहस्य त्रयसारे

इदु स्वतः प्रसनिष्टनुक्कु शरण्य गुण विशेषज्ञानमुखत्ताले उपायानु स्नान क्षणत्तिले महाविश्वासादिहळ्ळि स्थिरीकरित्तु उपकारकमान

n(30

हेळिरुवुदु अवतार रहस्य चिन्तन माडद अधिकारि विषय अवतार रहस्य चिन्तनॆयन्नु माडुव भक्तियोग निष्ठनिगॆ “देहं पुनर्जन्म नैतिमामेति सोर्जुन” ऎम्ब वाक्यदिन्द अदॆ; जन्मदल्लि प्रारब्ब कर्मवॆल्ला निश्लेषवागि कळॆदु मोक्षवु प्राप्तवागुत्तदॆ

हीगॆ अजनागिये अव्ययनागिये ईश्वरनागिये, (प्रकृतिं स्वामधिषाय ) तन्न ईश्वर स्वभावगळुवुदन्नू बिडदेये (अपि ऎम्ब अव्ययक्कॆ एव ऎन्दर्ध) आत्म सङ्कल्पदिन्द (मायया) सम्भवामि अवतरिसुत्तेनॆ. अधर्मवु हॆच्चि लोकदल्लि धर्मक्कॆ ग्लानि बन्दाग नन्न अवतार (आत्मानंस्कृजामि) साधुगळ परित्राणवे प्रधान फल आ धर्मशीलरु नन्नन्नु नोडबेकन्दु हम्बलिसुत्तारॆ अवरिगॆ आराध्यनाद नन्न शरीरद सॊबगन्नु तोरिसि अवर मनस्सिगॆ शान्तियन्नुण्टु माडि अवरिगॆ नन्न विरहवेदनॆयन्नु होगलाडिसुवुदे साधु परित्राण दुष्यत्तुगळन्नु नाशगॊळिसुवुदु आनुषङ्गिकवागि नन्न अवतार फल. धर्मसंस्थापनार्थाय आराध्यनाद नन्नन्नु तोरिसि भक्तरिगॆ भक्ति वृद्धि माडुवुदे प्रयोजन अदक्कागि प्रतियुग दल्लि अवतरिसुत्तेनॆ नन्न जन्म-अवतारवु कर्म-व्यापारगळु प्राकृतगळू, पुण्यवास फलरूपवादवुगळू अल्ल दिव्यगळु-जन्मवु अप्राकृत शुद्द समय विग्रह विशिष्टवादवु. कर्मवू व्यावारवू पुण्य पाप रूपकर्म निबन्धनवल्ल. दिव्यवादुवु हीगॆ तिळिद भक्ति योग, प्रपत्ति योगनिष्ठरु एक जन्मदल्लि ई प्राकृत शरीरवन्नु बिट्टु मोक्ष हॊन्दुत्तारॆ.

ई अवतार रहस्यवन्नु, कळॆगॆ कण्ड कारिकॆयल्लि आचाररु सङ्ग्रहिसिद्दारॆ अवतारस्य सत्वं, अजहस्वभावता ।

शुद्ध सत्वमयत्वञ्च, स्टेच्चा मात्र निदानता ॥

धर ग्लान् समुदय साधु संरक्षणार्ध ता। इति जन्मरहस्यं यो वे नास्य पुनर्भव !!

भगवन्तन अवतारवु सत्य, इन्द्रजाल विद्यॆयन्तॆ सुळ्ळल्ल भगवन्तनु तन्न ईश्वरत्व स्वभाव गळन्नु बिडदेनॆ अवतरिसुत्तानॆ अवन विग्रहवु शुद्ध सत्वमयवाददु. प्राकृतवादुदल्ल तन्न इच्छॆये अवतारक्कॆ काल (बद्ध जीविय हागॆ), प्रण्यपाप रूप कर्मगळिल्ल धर्मक्कॆ ग्लानियु एर्पट्टाग अवतार. साधुगळ संरक्षणवे प्रयोजन ई रीतियल्लि भगवन्तन अवतार रहस्यवन्नु तिळिदवनिगॆ पुनर्जन्मविल्ल अदे जन्मदल्ले स्वाधिकारानुगुणवाद उपाय पूर्तियिन्द मोक्ष भक्तियोगवन्नु अनुष्ठिसुववनिगॆ कर्मावसानदल्लि मोक्षवॆन्दु “अनार कारै एवतु पूर्वेतदवधः” ऎम्ब ब्रह्मसूत्रदिन्द व्यवस्थितवागिरुवाग, अवरार रहस्यज्ञानदिन्द, अदे जन्मदल्लि मोक्ष, बेरॆ जन्मविल्लवॆन्दु, “पुनर्जन्मनैति, मामेति” ऎन्दु गीतॆयल्लि हेळिरुवुदु सरिये ऎम्ब सन्देहवु उण्टागबहुदु इदन्नु परिहरिसि, “जन्मान्तर मनुभवियादे” ऎन्दु आचाररु अदे जन्म दल्लि मोक्षवु निश्चयवॆन्नुत्तारॆ. अन्दर अवतार रहस्यज्ञानवु पुष्कलवाद भक्तियन्नुण्टुमाडि, जन्मान्तरारम्भक पापांशवन्नु प्रशमनमाडि अदेजन्मदल्लि भगवत्पाप्तियन्नुण्टु माडुत्तदॆ.

तत्वत्रयाधिकार 8

अरावताररस्य मोक्ष प्रदत्व वर्णन

इप्पडिये अर्कावतारनुम् निरुक्कर मोक्षतॆत्तरुवॆनुमिड

“सुरवां प्रतिमां विष्णः प्रसन्न वदनेक्षणां । कृतात्मनः प्रीतिकरीं सुवर्ण रजतादिभिः ॥

છે

!

तामचर्णये तं प्रणवे त्वां यजेत्तां विचिनयेत् । विशत्यपास्त्र दोषस्तु तामेव ब्रह्मरूपिणीम् !!

ऎन्नु, श्री पौन कभगवानरुळिदान्,

161

आ ‌हळुविव्ववत र रहस्यु, आर्चावतार वैलक्षण्ययुम्, प्रचुरवाहवनुसस्थित्तु इदर्कु प्रेरणियाह स्परत्वक्कण्णु पोस्टार् हळ्.

प्रपत्ति योगनिष्ठनिगॆ, “तावदार्ति स्तधवाञ्चातावन्नॊहासुखवन्। याव याति शरणं तम शेषाघनाशनं ॥” ऎम्ब श्लोकदल्लि तावत्, तावत्, (अल्लियवरिगॆ) ऎन्दू अशेषाघ नाशनं, ऎन्दू हेळिरुवुदरिन्द “ नक्किष्ट मावोद मुक्तनक्कवेनॆ” ऎम्बन्तॆ प्रवत्तिये प्रारब्ध पाप वन्नू नाश माडि इवनु अपेक्षिसुव कालदल्लि मोक्षवन्नु कॊडुत्तदॆ. अवतार रहस्य चिन्तनवु उप योगविल्लवॆम्बङ्कॆगॆ समाधानवागि “इदु स्वतन्त्र प्रपत्तिनिष्ठनुक्कु” ऎन्दरम्भिसि तिळिसुत्तारॆ. आदागि स्वतन्त्र प्रवत्तिनिष्टनिगॆ ई अवतार रहस्यज्ञानवु तानु अपेक्षिसुव कालदल्लिये भगवन्तनु फल प्रधान माडुत्तानॆम्ब महत्तरवाद विश्वासवन्नुण्टुमाडि, शरण्यनगुण विशेष ज्ञानदिन्द, उपाया नुष्ठान क्षणदल्लि आ महाविश्वासादिगळन्नु करिसि ई पकारकवागुत्तदॆ

रीकरिसि

“स्वतन्त्र प्रप निष्कनुक्कु,”

” ऎम्बुदु उपलक्षण. अङ्गप्रपत्तिनिष्ठनिगू इदे रीतियाद महत्तर विश्वानवन्नुण्टु माडि भक्ति निष्पत्तिगॆ विरोधियाद पापगळन्नु होगलाडिसुत्तदॆ.

आर्चावतारवु मोक्षप्रद

*दागि हीगॆये आर्चावता

अवतार रहस्यज्ञानवु जन्मान्तरविल्लदॆ अदे जन्मदल्लि मोक्ष सहकारियागुवन्तॆ अर्चावतार पू, तन्न ध्यानदिन्दलू, अर्चन प्रणामादिगळिन्दलू परहाद्यपेक्षॆयिल्लदॆ मोक्ष प्रदवॆम्बु दन्नु “इप्पडिये आर्चावतारमु” ऎन्दारम्भिसि विवरिसुत्तारॆ रवू खर कर आयासविल्लदॆ मोक्षवन्नु कॊडुत्तदॆ, ऎन्दु, भगवान् परम पूज्यराद श्री शौनकरु, 1) सुरूप प्रतिमां ऎन्दारम्भिसि तिळिसिद्दारॆ, अवारवरुगळू ई अवतार रहस्य वन्नू, आर्चावतार वैलक्षण्यवन्नू प्रचुरवाह-बहळवागि अनुसन्धानमाडि इदक्कॆ पेरणि यान मूलबलवाद, परत्तॆ पररूपवन्नु “आयर्‌परममर‌ हळधिपतियवन अवन् नित्यसूरिनिर्वाहकनु यारो अवनु ऎम्बुदागि साक्षु स्मरिसिदरु

  1. ऎष्टु धर्मम 106-16) प्रसन्नवाद, बायि, कण्णुगळिन्द कूडि सॊगसाद रूपदिन्द कूडिद एष विन प्रतिमॆयन्नु तनगॆ प्रियवाद रीतियल्लि आन्दरॆ, रामनागियो, हयग्रीवनागियो, कृष्णनागियो, नृसिंहनागियो, सुवर्ण बॆळ्ळि मॊदलाद लोहगळिन्द माडि, आ विग्रहवन्नु शास्रोक्तवाद प्रतिष्ठॆगळिन्द पवित्रीकरिसिदरॆ, नीरल्लि क्षीरवन्नु बॆरॆसुव रीतियल्लि आ विग्रहदल्लि भगवन्तनु अप्राकृत विग्रह रूपदिन्द सान्निध्य माडुत्तानॆ

आ विग्रह रूपियाद भगवन्तनन्नु अर्चिसि, नमस्करिसि, पूजादिगळन्नू माडि, तन्न पापगळन्नॆल्ला कळॆदु कॊळ्ळुत्तानॆ अनन्तर आ विग्रह रूपियाद परब्रह्मनन्नु पडॆयुत्तानॆ.

162

श्रीमद्र हत्रयसारे

ईश्वरस्य प्रवृत्तय

इप्पडियिरुक्किर वीश्वर्र तन्नानन्दत्तुक्कु प्पवाहवाह पृण व्यापरळ जगतृ ष्टिस्थिति संहारमोक्ष प्रदादिहळ्

ईश्वरन् सर्वावस्थॆ हळॆलु लक्ष्मि विशिष्टन्

नि

इश्वरः (1) “नित्य वैषा जगन्माता विष रनवायिनी” इत्यादिहळि पडिये सावस्थॆयिलु सपकनाय कॊण्णॆयिरुक्कु मॆनु निडि (1) तत्व नयः” (3) “मातापिता” ऎन्र श्लोकळिले उपकार विशेषत्ताले सादरवाह विशेषित्तु चॊल्लप्पट्ट पराशर पराजु त प्रबस्थले तॆळिन्नु कॊळ्ळदु.

ईश्वरन प्रवृत्ति भेदगळु

हीगॆ स्वाधीनवाद त्रिविध चेतना चेतननागि, पर व्यूह विभव हार्दान्तरामि रूप पञ्चप्रकार विग्रहविष्टनाद ईश्वरन स्वरूपवन्नु सत्यत्वादि स्वरूप निरूपक धर्मविशिष्टवागि निरूपिसि, नित्यनाद अवनिगॆ स्थितिभेदवन्नु सामान्यवागि तिळिसि, अनन्तर अवन प्रवृत्ति भेदवन्नु इप्पडियिरुक्किर ऎन्दारम्भिसि, आचाररु निरूपिसुत्तारॆ. आदागि हीगॆ अवाप्तसवस्तकावनागि, आनन्द स्वरूपनाद ईश्वरनिगॆ ऒन्दु व्यापारवु अवश्यकवे ऎन्दरॆ, अवश्यवॆन्दु तन् आनन्दत्तुकु परिवाहमाडप्प – अन्दरॆ तन्न आनन्दक्कॆ परीवाहवागि माडुव व्यापारगळु सकल जगत्तिन सृष्टि, स्थिति, संहार, मोक्ष प्रदत्यादिगळु आदिशब्दवु चेतनान्तः प्रविश्य नियमन माडुवुदन्नु तिळिसुत्तदॆ. इदरिन्द अवास्तसमस्तकामनागि, आनन्द स्वरूपनागि इद्दरू “लोकवत्तु लीला कैवल्यं” ऎम्ब रीतियल्लि सार्वभौमनाद राजनु चॆण्डु मॊदलाद साधनगळन्नु इट्टु कॊण्डु केवल सन्तोषक्कागि आटवाडुवन्तॆ, ईश्वरनू (लक्ष्मीविशिष्टनू) तन्न परिपूर्णानन्द परीवाहवाद जगत्कृष्टा ओदि लीलाव्यापारवन्नु माडुत्तानॆम्बुदु तात्पय्य

ईश्वरनु सर्वदा लक्ष्मी विशिष्टनु

ई ईश्वर तत्ववु ऎल्ला अवस्थॆगळल्लियू, अन्दरॆ जग सृष्टि, स्थिति, संहार, मोक्ष प्रदत्व, अन्तःप्रविश्य नियमानावस्थॆगळल्लि यावागलू लक्ष्मीविशिष्टवु ऎन्दु, इत्तीश्वरन् ऎन्दु आरम्भिसि, यथाप्रमाणं तॆळियप्तम्, ऎम्बुव पठ्यन्त, निरूपिसुत्तारॆ श्रीभाष्यादिगळल्लि, कण्ठ कवागि हेळदॆ, परमरहस्यवागि, केवल उपदेश परम्परॆयल्लि बन्द अर्थविशेषवन्नु, इल्लि रहस तयसारोपदेश सन्दर्भदल्लि आचाररु कण्ठोक्तवागि शिष्यजनानुग्रह बुद्दियिन्द तिळियपडिसुत्तारॆ. चतुकिभाष्यदल्लि “पञ्चतेषुपक्षेषु कदेकः प्रमाणवान्” ऎम्ब तम्मकारिकॆयल्लि ऐदु पक्षगळल्लि ऒन्दु पक्षमात्र प्रमाणवादद्दु ऎन्दु हेळि आ पक्षवन्नु निरॊपिसदॆ अल्लि बिट्टदक्कू, इदु परमरहस्य, गॊपनीयवादद्दु ऎम्बुदे तात्सर अदन्नु इल्लि परमरहस्कोपदेश प्रसङ्गदल्लि आचाररु विवरिसुत्तारॆ. आद्दरिन्द इदन्नु परमरहस्यवागिये इडबेकॆम्बुदू अवर हृदय,

1), 2, 3,

पु, ति, नो

तत्वत्रयाधिकार-

163

इश्वरन् - स्वाधीन त्रिविध चेतना चेतनस्वरूप स्थितिप्रवृत्ति ऎन्दारम्भिसि, व्यापारङ्गळ सकल जगतृष्टि स्थिति संहारमोक्ष प्रवादिगळ, ऎन्दु विस्तारवागि निरूपिसिद ईश्वरनु अवनु अशेषचिदचिद्दस्तु स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेदगळन्नु निर्वहिसलु बेकाद, निरङ्कुश सर्व स्वातन्त्र्यदिन्द कूडिदवनु आयाया काव्यगळिगॆ अनुरूपवाद परव करुणॆयिन्द ऎत्तिद व्यूह, विभ, अर्चा रूपादि अवतारगळेनु, तन्मूलकवागि प्रवर्तिसिद सृष्टादि व्यापारगळेनु, तनगॆ असाधारणवाद सत्यत्व, ज्ञान, अनन्तत्व, आनन्द, अमृत्वरूप स्वरूपनिरूपक धर्मगळेनु निरूपित स्वरूप विशेषण धर्मगळेनु, विग्रह, विभूति व्यापारगळ नु, इवुगळिन्द कूडिदवनु, ऎम्ब दु इद्दीश्वरन् ऎम्बल्लिय, इन्द” पददिन्द तिळिसल्पडुत्तदॆ इन्द + ईश्वरन् - इद्दीश्वरन् ऎम्बुदु समास. ईश्वरन स्वरूपस्थिति प्रवृत्ति भेदगळन्नॆल्ला वर्णिसि, अनन्तर “इष्टेश्वर ” ई ईश्वरनु, ऎन्दु निर्देविसिद, “इन्द – ई पदवु यथोक्तसर्व प्रकार ईश्वरनन्नु तिळिसुत्तदॆ

ऎम्बदु गमनार्ह,

ई”

1

ई ईश्वरनु, 1निवेष,जगन्मात, इत्यादि प्रमाणगळिगॆ अनुसारवागि, सर्वावस्थॆयल्लू अन्दरॆ सृष्टि, स्थिति, संहार, ज्ञान प्रदान, शरणवरण (मोक्ष प्रदान सङ्कल्प - उपाय), प्रात्य (कैङ्कर प्रतिसम्बन्धि) अवस्थॆगळल्लि, सपकनागिये इर तानॆम्ब दन्नू, ‘तनय, माता पिता, ऎम्ब श्लोकगळल्लि उपकारविशेषदिन्द सादर पूर्वक विशेषवागि हॊगळल्पट्ट, पराशर पराङ्कुश, प्रबन्धगळल्लि तिळिदुकॊळ्ळतक्कद्दु “निवेष” ऎम्ब विष्णु पुराण श्लोकदल्लि वसिष्ठ पुलस्त्रवर

  1. निवेषाजगन्माता वि रनपायिनी ।

यधासर्वगतो विष्णुः तथैवेयं द्विजोत्तम

(1-8-17)

ई लक्ष्मियु जगन्मातु, स्वरूप नित्यत्ववु सर्वात्म साधारणवाद्दरिन्द, इल्लि “नित्य” शब्बवु, विष्णु वक्ष स्थलदल्लिरुव नित्यवाद विग्रहवन्नु तिळियपडिसुत्तदॆ. ऎष्टो श्री ऎन्दु भगवन्तनिगू “तवप्रिया” ऎम्बन्तॆ, लक्ष्मियु सम्पत्तु ‘अनपायिनी अवनन्नु यावागलू अगलदॆ इरुववळु विष्णुवु सर्वव्यापि, सर्वचेतनगळन्नू अन्तः प्रदेशिसि नियमिसुववनु. विष्णु शब्दवु “विशप्रवेशवे’, विषल्‌व्याप्ति, इष्टु इच्छायां, वशकान्त् इत्यादि अन्त प्रवेश, सर्वव्याप्ति मॊदलाद अनेकार्थगळिन्द कूडिदुदु. हागॆये श्री शब्दवू श्रीयुते, श्रयते, शृणाति, श्रीणाति शृणोति, श्राव यति, ऎन्दु आश्रितरिन्द आश्रयिसल्पडुववळु भगवन्तनन्नु आश्रयि सुववळु, भक्तर आर्तनाददन्नु केळि, भगवन्तनल्लि तिळिसुववळु (पुरुषकारत्व, शृणाति भक्तर उपाय विरोधि, प्राप्तिविरोधि पापगळन्नॆल्ला होगलाडिसुववळु श्रीणाति-तन्न गुणगळिन्द जनरन्नॆल्ला रक्षिसुववळु श्रीयते श्रयते ऎम्ब धातुगळिन्द अन्तर्व्याप्ति, हिम हेळडुत्तदॆ. इदरिन्द इवळू विनु स्वरूप,

  1. तनय दजदीश्वर तत्व भाव

भोगापवर तदुकाय गतीरुदारः । सन्दर्शयरममित पुराणरत्नं 1 तस्मिनमॊ मुनिवराय पराशराय ।

(आळ, स्तोत्र 4)

यः- याव पराशररु तनयधावस्थितवागि, चित्, अचित्, ईश्वर, इवरुगळ स्वभाव, भोग प्राकृतवाद सुख, अपवर्ग-मोक्ष, इवुगळन्नु हॊन्दलु उपाय, गतिः - स्वर्ग नरकगळिगू, हागॆये मोक्षक्कॆ होगुव मार्गगळन्नु उदार भावदिन्द तोरिसिकॊट्टु, विष्णु पुराणवॆम्ब पुराण रत्नवन्नु निर्मिसिदरो, तस्मिआ मनिश्रेष्टराद पराशररिगॆ नमस्कार

पु ति, सो

927

164

3

श्रीमद्रह त्रय सारे

प्रसाददिन्द पडॆद परदेवता परमार्थ ज्ञानवुळ्ळ, पराशरब्रह्मर्षियु, ई जगन्मातॆयाद लक्ष्मियु महाविष्णुविनॊडनॆ नित्य सम्बन्धवुळ्ळवळु, नित्यानायिनी यावागलू अगलदॆ इरुववळु, (नित्यशब्दवन्नु इल्लियू सेरिसिकॊळ्ळबेकु) ऎन्दु तिळिसिद्दारॆ ई “नित्यवेष”, ऎम्ब प्रमाणवु आ प्रकरणदल्लि हेळिद लक्ष्मीपारम्यवन्नु तिळिसुव इतर प्रमाण वचनगळिगू उपलक्षणवादद्दु. आ इतर प्रमाणगळु याववॆन्दरॆ, 1 यथा सर्वगतो विष्णः तथैवेयन्द्विजोत्तम् । 2 नान यो विद्यते परव ”, 3 त्व तद्विष्टु नाचाम्ब जगद्याप्तं चराचरम्, ऎम्बुवु 1 विष्णुवु हेगॆ विभुस्वरूपनागिद्दु सत्वव्यापियो, हागॆये इवळू सह विभुस्वरूपि सर्वव्यापिनी ऎन्दर्थ, यधा, तथा ऎम्बल्लि “प्रकार वचनेधाल्” ऎम्ब प्रत्ययदिन्द विष्णुवु याव प्रकारदिन्द कूडिदवनो, लक्ष्मिय अदे प्रकारदिन्द कूडिदवळु, ऎम्ब अर्धवु हेळल्पडु तदॆ. विष्णुवु विभु स्वरूपनु, लक्ष्मियू विष्णु स्वरूवॆ, विष्णुविगॆ स्वरूप विभुत्व हेळि लक्ष्मिगॆ धर्मभूतज्ञनदिन्द विभुत्ववन्नु हेळुवुदु ई प्रमाण वचनक्कॆ विरुद्ध सरियिल्ल 2 अन यो परं नवितॆ - इवरिब्बरन्नु बिट्टरॆ, बेरॆ यावुदू परतत्ववल्ल 3 निन्दलू विष्णुविनिन्दलू चर चरात्मकवाद प्रपञ्चवु व्यापरिसल्पट्टिदॆ. हागादरॆ इब्बरु लोकनायकरु आदरॆ दैराज्य दोष प्रसङ्गवु बरुवुदिल्लवे ऎन्दु केळबहुदु अदक्कॆ समाधान “सपक नाय्कॊण्डे” ऎम्बुदु परस्पर पतिपत्नि भावदिन्द उण्टाद ऐकरस्यभावदिन्द कूडिदवरु. प्रमाणवचनगळु लक्ष्मी यन्नु विशेषणवागियू, विष्णुवन्नु विशेष्यवागि हेळिरुवुदरिन्द पत्नियिन्द कूडिदवनन्नु, एकः ईश्वरः ऎन्दु पुरुष प्राधान्य विवक्षॆयिन्द हेळबहुदु आद्दरिन्द सर्वावस्थॆयल्लियू, ईश्वरनु स पकनागिये इद्दरू ईश्वरद्वित्ववु उण्टागलारदु. द्वराज्य दोषवूउण्टागलारदु. इदु ई वचनगळिगॆ भाव. हीगॆये नम्माळ्वारवरू, “ऒण्डोडियॊळ् तिरुमहळुं नीयुव निलानि” उज्वलवाद हस्ताभरणदिन्द कूडिद लक्ष्मिय नीनू (महाविष्णु वु) कूडि इरुव ई वैभववन्नु, “कण्ड शदि कण्डॊन्देन्, अड्कदेन् उन्तिरुवडिये?- कण्डु प्राकृत विषयगळल्लि आसॆयन्नु तॊरॆदु, लक्ष्मीविशिष्टनाद निन्न पादगळन्नु हॊन्दिदॆनु इदु प्राप्यदशॆयल्लि इब्बरू उद्देशवॆम्बुदक्कॆ प्रमाण हागॆये अहलहिल्लॆन् इच्छॆयुवॆलर्‌ मेल् मङ्गैयुरै मार्बा अडिक्कि श्री अमर्‌न्नु पुहुन्देने” ऎम्बुदु

ऎम्बुदु उपाय दशॆयल्लि (शरणागति माडुवाग) इब्बरू उद्देशवॆम्बुदक्कॆ प्रमाण

«

मेलू, नित्यवेषा जगन्माता ऎम्ब श्लोकदल्लि नित्यशब्दवु भगवन्तन वक्षस्थलदल्लि नित्य वागिरुव रूपवन्नु तिळिसि, भगवद्दिव्य विग्रह विशिष्ट वेषेण इवळु निद्दॆ ऎम्बुदन्नू तिळिसुत्तदॆ. स्वरूप नित्यत्ववु सर्वात्म साधारणवागिरुवुदरिन्द भगवद्दिव्य विग्रहगळल्लि इवळु नित्य सङ्क्लिष्टळागि इदरिन्द कारणन्तुधेयः’ ऎन्दु हेळल्पडुव

द्दाळॆन्दु हेळुवुदु प्रकरणानुगुण

  1. मातम्पितायुवायः तनया विभूतिः

सर्वयदेव नियमन मदन्वयानाम् ।

आद्यनः कुलपतेर्वकुळाभिरामं

श्रीमत्तदम्फ्युगळं प्रणमामि मूर्धा

तायि, तन्दॆ, युवतिगळु, मगळु, विभूति-ऐश्वर मॊदलाद ऎल्लवू अन्दरॆ इवरुगळ हागॆ उपकारभूतराद आळ्वा रवरु नम्म ज्ञानकुलक्कॆ पतियागियू, वकुळपुप्पदिन्द अभिरामरागियू इरुववरु आ आळ्वारवर पादपद्मगळन्नु तलॆयन्नु बागिसि नमस्करिसुत्तेनॆ.

जगत्कारण वस्तुवु लक्ष्मीविशिष्टवु. विष्णुविन हागॆ इवळू अवन जतॆयल्ले अवतारगळन्नॆत्तुववळु. बृगुविगॆ

मगळागि ख्यातियल्लि ’ अविर्भविसिदवळु, अनन्तर आमृतमथनदल्लि भगवन्तनु देवतॆगळिगॆ सहायवागि अमृतमधन माडलु, अवतारवन्नु ऎत्तिदाग, तानू अवतार वन्नॆत्ति “पश्यतांसर्वदेवानां र्य वक्षस्थलंहरेः” ऎम्ब वचनदन्तॆ अवन ऎदॆयल्लि ऒन्दु रूप वन्नु तळि सेरिकॊण्डळु. पररूपविशिष्टनाद भगवन्तने जगत्कारणनॆम्बुदु श्रुति तन्त्परवॆन्दु मुन्दिन अधिकारदल्लि आचाररु तिळिय पडिसुत्तरॆ, लक्ष्मिय पररूपवु, “धशोभा हरिमतके तावकी म इर्तिराद्या” ऎम्ब श्रीस्तुति (श्लोक 11) वचनदन्तॆ आद्यामूर्ति, ऎन्दु श्री वैकुण्ठ दल्लिरुव भगवन्तन पररूपदल्लि अवन ऎदॆयल्लिरुव रूपवु ऎन्दु हेळल्पट्टिदॆ. “यस्याङ्गच्छन्त्यु दय विल * नित्यमानन्द सिन्धू, इच्छावेगॊल्लसित लहरि विभ्रम व्यक्तिय” (श्रीस्तुति-11) ऎन्दु हेळिरुवन्तॆ लक्ष्मिय ऎल्ला अवतारगळिगू पररूपियाद भगवन्तन ऎदॆयल्लिरुव लक्ष्मिय रूपवु, मूलकन्द - अन्दरॆ उपादान कारण. हागादरॆ “तयासहासीन मनन्तभोगिनि” ऎन्दु श्री वैकुण्ठदल्लि परवासु देवन पक्कदल्लि अदिशेषनमडियल्लि कुळितिरुव लक्ष्मिय नित्य रूपवु मत्तॊन्दिदॆयल्ला आ रूपक्कॆ एनु प्रयोजनवॆन्दु केळबहुदु. सार्वभौमन महिषिय हागॆ सर्वलोकसार्वभौमन दिव्य व हिषियागि लक्ष्मियु पक्कदल्लि कुळितुकॊण्डु, जगद्विहार रसवन्नु भगवन्तनॊडनॆ अनुभविसुत्ता, वारुणी, कान्ति, रुद्रा, सुकीर्ति, सूत्रवत्यादि परिचारिकॆयरन्तॆ भगवन्तन पादसंवाहनादि सर्वविध कैङ्कय्यगळन्नू भगवन्तन विशेष प्रवृत्तिगळिगॆ उचितवाद पुरुष कर कृत्यगळन्नू माडुत्तिरुवुदे प्रयोजन

}

1एषा, भगोख्यात्यां समुत्पन्ना श्री पूर्वमद भेः पुनः” (2 पु 1-8-16) ऎम्बन्तॆ, दिव्य अवतार रहस्य तत्व यातंर्थ्यवति, ‘जगन्मातु - गृहक्षेत्रारामादिगळल्लिय प्रजॆगळल्लियू स्वामित्ववु हेगॆ लौकिक दम्पतिगळिगॆ सेरिदॆयो (व्यासज्य त्व) हागॆ दिव्य दम्पतिगळिब्बरिगू, सर्वजगत्तिन स्वामित्ववु व्यासज्य वृत्तिकवागिदॆ श्रीशब्ददिन्द, स व

चिदचिद्दस्तुगळिन्द आश्रयिसल्पट्टिद्दाळॆ (श्रीयते, धारकत्व), सर्ववन्नू तानु आश्रयिसिद्दाळॆ (श्रय-व्यापकत्व) ऎम्बवु वृत्तिगळिन्दलू, तृणाति निखिलान् दोषान्, श्रीणाति च गुर्जगति, ऎम्ब निर्वचनदिन्द

च पापगळन्नु होगलाडिसि जगत्तन्नु (चेतनरन्नु) कापाडुत्ताळॆ ऎम्बवु वृत्तिगळिन्दलू, धारकत्व; (जगत्तन्नु धरिसिरुवुदु) - बहिर्व्याप्ति व्यापकत्व जगत्तन्नु व्यापिसिरुवुदु - अन्तर्व्याप्ति, अदरिन्द एर्पट्ट, सर्वशरीरत्व, अन्दरॆ सर्ववन्नू धरिसि नियमिसि व्यापिसिरुवुदु, आदरकारणवागि निखिल

जगत्तिगू अभिन्न निमित्तॊ पादानत्ववु, ताने निमित्त, ताने उपादानकारणवॆम्बुदु, पर पयुक्त उपायत्व, उपेयत्वगळू तदाक्षिप्तवागि परत्व सौलभ्य परमकारुणिकत्वादि गुणगळू जगन्माता’ ऎम्ब पदगळिन्द सङ्ग्रहिसल्पडुत्तवॆ नारायण’ शब्द दहागॆ श्रीशब्दवू, परत्व सौलभ्य गळिगॆ उपयोगवाद सर्व कल्याणगुण सङ्ग्राहकवु.

“विष्यः श्रीरनपायिनि’ ऎम्बल्लि, विष्णु शब्दवु, विशल् व्याप्, इष्टु इच्छायां, वशकान्त्, विशप्रवेशने, ऎम्ब धातुगळ मूल विष्णुविगॆ सर्वव्याप्ति, स्वच्छाधीनसङ्कल्प, चराचरगळु अवन अधीन, सर्ववन्नू अन्तः प्रवेशिसि नियमिसुवुदु, ऎम्बुदे मदलाद आकारगळु (धव गळु) इरुवन्तॆ, अवनन्नु अगलदिरुव लक्ष्मिगॆ, नित्यन्तद्धर्मधर्मिणि ऎन्दु

{

166

श्रीमद्रहस्यतयसरे

लक्ष्मीनारायण‌हळ स्टेच्छॆयिनाल् विभाग कॆय्दु कॊण्डिरुक्किर व्यापारङ्गळ्,

इ मै ड ल् दण्ण धरत्व,मुव, पुरुषकारतादिहळु, ऎम्मॆरुमानुक्कम् पिराटक्कु, कराह विभजित व्यापार,

अवन धर्मगळॆल्ला उण्टु, याव आकारदिन्दलू, याव अ०शदल्लियू इवळिगॆ वैकल्यविल्लवॆम्बुदू एप डुत्तदॆ वुरुषोत्तमनिगॆ (नारीणानमा’ ऎन्दु हूगळल्पडुव लक्ष्मिय सर्वाकार सामरस्यवे स्वरूप निरूपक

भगवन्तन लक्ष्मिय स्वच्छॆयिन्द विभाग माडि कॊण्डिरुव व्यापारगळु-आक्षेप

समाधानगळु,

हागादरॆ, लोकदल्लि तन्दॆयु दण्ड धरनागियू अन्दरॆ मक्कळु माडुव तप्पिगॆ शिक्षिसुववनागिद्द, तायियु मक्कळल्लिर व वात्सल्यदिन्द पुरुषकार भूतॆयागियू, अन्दरॆ तन्दॆय कोपवन्नु होगलाडिसि मक्कळ विषयदल्लि आभिमुख्यवन्नुण्टु माडुववळागियू, इरुवुदु सहज, हागिरुवाग, दिव्य दम्पतिगळिगॆ वरस्पर सर्वाकार सामरस्यवन्नु हेळिदरॆ, लक्ष्मिगॆ दण्ड धरत्ववू क्षॆ माडु ववळागियू, भगवन्तनिगॆ पुरुषकार स्ववू लक्ष्मीयन्नु समाधान पडिसुवुदू, इत्यादि व्यापारगळु प्रसक्तवागबहुदल्लवे, ऎन्दरॆ इडल् दण्डधरत्व मुम्” ऎन्दारम्भिसि अनुग्रहिसुत्तार अदागि ई सन्दर्भदल्लि दण्ड धरत्ववू तप्पु माडिदवरन्नु शिक्षिसुवुद, उ

ऎम्बुदरिन्द स्वातन्त्रादिगळू भगवन्तनिगू, पुरुषकारत्ववू (भग वन्तन्नु समाधान पडिसि चेतन विषयदल्लि अभिमुख्यतॆयन्नुण्टु माडुवुदु) “आदि शब्द दिन्द मृदु स्वभाववू पति पारार्धवू(पत्यधीनतॆ)लक्ष्मिगू कूराद बेरॆ बेरॆयागि परस्पर स्टेच्छॆयिन्द विभाग माडिकॊण्ड व्यापारगळु लक्ष्मिगॆ दण्डन सामर्थ्यविद्दरू, नित्यमज्ञात निग्रहां” ऎन्दु हेळल्पडुवन्तॆ तन्न मक्कळाद चेतन राशिगळल्लि वात्सल्यवु हॆच्चागिरुवुदरिन्द हण्डनॆ माडदिरुवुदे गुणवागि परिणमिसुत्तदॆ सामर्थ्यविल्लवॆम्बुदल्ल. असमर्थनु दण्डनॆ माडदिरुवुदु गुणवागुवुदिल्लवल्लवे, कलवु व्यापारगळल्लि, भगवन्तनाद पतिय पुरुषकार वन्नु अपेक्षिसदॆ स्वतः चेतननिगॆ अनुग्रहवन्नु माडदॆ इरुवुदु, परमकारुणिकत्व सर्व शक्तित्वगळिगॆ बाधकवन्नुण्टु माडदिरुवन्तॆ, दण्ड धारणॆ-शिक्षॆ माडदिरुवुदू लक्ष्मिय शक्तिगॆ कुन्दुकवन्नुण्टु माडुवुदिल्ल. “विहरणविरतिः स्वच्छया कोत्र दोष ऎन्दु जगद्वापार वॆम्ब लीलॆयन्नु भगवन्तनु तन्न इच्छॆयिन्द ऒन्दानॊन्दु दिवस पूर्ति निल्लिसिबिट्टरॆ एन तप्पिदॆ आतन शक्तिगॆ भङ्गवुण्टॆ-भङ्गविल्लवल्लवे, हागॆये लक्ष्मिगू स्वच्छॆयिन्द, दण्ड धरत्ववन्नु बिट्टिरुवुदू अवळ ईश्वरत्वक्कॆ कुन्दुकवन्नुण्टु माडलारदु आद्दरिन्द प्रमाणगळन्ननुसरिसि इब्बरल्लियू वासज्य वृत्तिकवागिरुव ईश्वरत्ववन्नु अपलपिसबारदु लोकदल्लि स्वत्तुगळु दम्पतिगळिब्बरिगू समानवागिद्दरू कॆलवु आभरणगळन्नु पत्नियु तन्नदागियू, कॆलवन्नु पतियु तन्नगिदन्नाय विभागमाडिकॊळ्ळुवन्तॆ, उभय विभूतिनायकरू सर्वकार समर्थरू आद दिव्य दम्पतिगळु स्टेच्छॆयिन्द कॆलवु व्यापारगळन्नु विभागिसि कॊण्डिरुवुदु, ईश्वरत्वक्कॆ भङ्गविल्लवल्लवे,

अवर

}तत्रयाधिकार

167

उपदिश्यमान धरधारराल् अतिदिश्यमान धराधारत्तुक्कु विशेषम् स्वतः प्राप्त मॆनु उवररुळिच्चॆय ददुक्कु इप्पडि विभागत्ताल्‌वन्न वैषम्यले तात्सर.

हागादरू, “सर्वॆश्वर गुणोवा नित्यं तद्धर्मिणी”, ऎन्दु भगवन गुणगळन्नु लक्ष्मियल्लि अतिदेश माडिद वुदरिन्द, सर्वेश्वर तत्त्ववदेश प्रसङ्गगळल्लि लक्ष्मिगॆ अन्वयविल्लवॆन्दे र्पदुवुदिल्लवे प्रधम प्रतीतिगॆ अन्दर मॊदलु हेळिरुव अर्धगळिगॆ बाधकविल्लदॆ, प्रमाणान्तर गळिन्द बरतक्क अर्थगळन्नु व्यवस्थापनॆ माडबेकु आद्दरिन्द लक्ष्मिगॆ ईश्वरत्ववुण्टॆन्दु हेळुव वचनगळु स्वाभाविकवल्ल पतियाद भर्गन्तन सम्बन्धदिन्द उम्बादवु. स्वाभविकवाद धर्मगळल्ल. अवळन्नु जीवकोटिगॆ सेरिदवळॆन्दु निरूपिसुत्तवॆ,” ऎम्ब शङ्कॆयन्नु होगलाडिसलु, “उप दिश्यमान धर्माधारल् कट्टिल्” ऎदारम्भिसि, आचाररु अनुग्रहिसुत्तारॆ. अदागि उपदिश्यवन धर्माधारन-कर्म मीमांसॆय पूर्वकाण्डदल्लि प्रथमषट्कदल्लि हेळल्पट्ट प्रकृतियाग अतिदिश्यमान धर्माधारम्-प्रकृति वद्विकृतिःकर्तव्या,” ऎन्दु अति देशमाडिद प्रकृति यागद धर्मगळन्नुळ्ळ विकृतियाग इवुगळल्लि विकृतियागक्कॆ, प्रकृतियागदल्लि उप दिष्टवाद ऎल्ला धर्मगळू अतिदेशदिन्द स्वतः प्राप्तवागि, विकृतियागदल्लि अपूर्ववागि हेळि गुव कॆलवु धर्मगळू स्वतः प्राप्तवागिवॆ. आ रीतियल्लि प्रकृति स्थानीयनाद भगवन्तनिगॆ हेळल्पट्ट ऎल्ला धर्मगळू “सर्वॆश्वर गुणोपेता, नित्यन्तद्ध र्मधर्मिणि” ऎम्ब अतिदेश दिन्द (अवन गुणगळन्नु इवळू उळ्ळवळु ऎम्बुदु) लक्ष्मिगॆ प्राप्तवागि, मेलू विशेषवाद धर्मगळु अवळिगॆ स्वतः प्राप्तगळु, ऎन्दु (उवर्-मध्यस्थरु) मध्यस्थरु हेळिरुवुदक्कू, हीगॆ अवरवर स्टेच्छॆयिन्द माडिकॊण्ड वैषम्य विभागदल्लि तात्पय्य, अयम्भुव– “ दिव्य मिथुनवे सर्वेश्वर तत्त्वपदेश ताक्षरवॆम्बुदु सिद्धवादरू, “(1) प्रायश्चित्त प्रसङ्गेक सर्वपाप समुद्रने । मामेकां देवदेवस्य महिषं शरणं श्रयेत् ॥ इत्यादि प्रमाणगळिन्दलू, ‘श्रावयति’ इत्यादि व्युत्पत्ति बलदिन्दलू, लक्ष्मिगॆ पुरुषकार मात्र ऎर्पडुत्तदॆ फलप्रधान कृत्यवु, पतियाद भगवन्तनिगॆ एर्पडुत्तदॆ. लक्ष्मिगॆ घटक मात्र. पतियल्लि शिफा‌स् माडुववळिगॆ साक्षादुवायत्ववु हेगॆ ? आद्दरिन्द लक्ष्मिगॆ ईश्वरत्वविल्ल” ऎम्बुदु पूर्व पक्षिय अभिप्राय. हीगॆ लक्ष्मिय ईश्वरत्वक्कॆ सङ्कोचवन्नु हेळुववरिगॆ प्रत्युत्तरवागि हेळुवुदेनॆन्दरॆ, हीगॆ सङ्कोच माडलु शक्यविल्ल. पतिय हागॆ अकुण्ठिताखिल विध सर्वॆश्वरवतियाद लक्ष्मियु स्वच्छॆयिन्द नित्य सिद्धवाद पुरुषकार भाव दिन्दलू कूडिरुवुदु विरोधविल्ल शृणाति निखिलान् दोषान्-भक्तर ऎल्ला पापगळन्नू होगलाडिसुत्ताळॆ, ऎम्ब निर्वचनदल्लि निखिल ‘बक्कॆ यावुदू बाकियिल्लदॆ सर्वपाप निवारण नन्ने हेळबेकु. इदु साक्षादुपायत्वववन्नु हेळिदरेनॆ समञ्जसवागुत्तदॆ. आद रिन्द साक्षादुषायत्वदिन्द कूडिद ‘ईश्वर स्वभाववु दिव्यमिथुन साधारणवॆम्ब दन्नु तिळिसलु “नित्य तद्धर्मधर्मिणि” ऎम्ब अतिदेश शास्त्रवु प्रवर्तिसिदॆ हीगॆ अतिदेश शास्त्रवु अन्यथासिद्धवागि रुवुदरिन्द सर्वेश्वर तत्त्वपदेश वचनगळल्लि लक्ष्मिगॆ अन्वयवु उण्टे उण्टु. आद रिन्द ईश्वरत्ववु विशिष्ट तत्व विषय, उपायत्ववु इब्बरिगू उण्टु

  1. सर्वपापक्कॆ प्रायश्चित्त रूपवाद मोक्षर्ध शरणागतियन्नु अनुष्टिसुव प्रसङ्गदल्लि, देवदेवन महिषि याद महालक्ष्मियन्ने पुरुषकार भूतॆयागि मॊदलु शरण हॊन्दबेकु ऎम्बुदु श्लोक तात्पर.

168

श्रीव द्रहस्यतयसारे

इदु 1“युवाद तुपि” ऎन्हिर श्लोकत्तिले निर्णित, “इरै निलै उणय्य रिदु” ऎन्नु आळ्वाररुळिच्छॆ निलत्तिले एदेनुमॊरु वृथा निरद्ध माहादु.

इप्पडि विभागत्तानन्द वैषम्युले तात्वरम्-हीगॆ उपदेशातिदेशवचनगळिगॆ दम्पतिगळु स्टेच्छॆयिन्द माडिकॊण्ड विभाग वैषम्यवु तन्त्प विशेष- वैषम् हीगॆ विभाग माडिकॊण्डिरुवुदक्कॆ सम्प्रदाय वचनवन्नु 1 “इदु यौवा” ऎन्दारम्भिसि तोरिसुत्तारॆ. ई विभागवु, “युव” ऎन्दारम्भिसव श्लोकदल्लि निर्णयिसल्पट्टिदॆ

ईश्वर तत्व ज्ञानवु मन्दमतिगळिगॆ तिळियलशक्य.

(2) इरैनियुणरिदु इत्यादि - हीगॆ उपपत्तियिन्द कूडिद प्रमाण सिद्धार्धदल्लि व्यत्यास बद्धियळ्ळ कृवणरिगॆ अनर्ध प्रसङ्ग उण्टागुत्तदॆ, ऎम्ब अभिप्रायदिन्द, इनि- ईश्वर तत्वद स्थितियु मन्दमतिगळाद नमगॆ दुश्चय वु सुलभवागि तिळियतक्कदल्ल ऎन्दु ऒळ्ळारवरु कृपॆ माडिरुव निलत्तिले-ईश्वरतत्व विषयदल्लि, एदेनुवरु वृथानिर्बन्ध माहादु-यावुदादरू आद ऒन्दु व्यर्धवाद निबन्धवु कूडदु. अदागि ईश्वरिद्वि वन्नु हेळि अदु विशेषण विष्टवाद एकतत्वद हागॆन्दू, युक्तिगळिगॆ विरुद्धवॆन्दू, नम्म पूरा चाररु लक्ष्मियु ईश्वर कोटिगॆ सेरिदवळन्दु हेळलिल्लवॆन्दू, याव सिद्धान्तिगळू हेळलिल्ल वॆन्दू, प्रयोजनविल्लद मातन्नु आडबारदु, ऎम्बुदु तात्पय्य “अशानाजगतः, ईश्वरीं सर्व भूतानां इत्यादि श्रुतिगळू “नित्यं पद्धर्म धमिणि” इत्यादि स्मृतिगळू, लक्ष्मिगॆ ईश्वर वन्नू स्पष्टवागि हेळिवॆ. ईशाना, ईरे ऎम्ब प्रयोगगळु व्याकरणवु त्पत्तियिन्द स्वतः ईश्वरत्ववन्नु लक्ष्मिगॆ बोधिसुत्तवॆ विष्णुविगॆ पत्नि, ऎम्ब आकारदिन्दल्ल इदर विस्तारवन्नु नञ्जीयर् श्री सूक्त भाष्यदल्लि अळॆयुवुदु.

  1. युवातु परवशता शत्तु शमनरस्वादीन्

कृत्याभगवतिगुणान् पंस्कृसलभान् ।

यस्त्रीकान्तन् मदिम पतिपारार्थ करुणा क्षमादीन् वाकु भवति वरात्मनिन्दा ।

(श्री गुण रत्नकोश-14)

ऎ रङ्गनायकि ! यौवन, आदिशब्ददिन्द सौन्दर्य, लावण्य, ज्ञान शादि गणगळ, निनगू रङ्ग साथनिगू समवागिद्दरू, परवशविल्लदिरुवुदु, शत्रुनिरसन, स्थिरत्व-दृढत्व, आदिश्यदिन्द दण्डधरत्व (तप्पु माडुववरन्नु शिक्षिसुवुदु), इदे मॊदलाद पुरुषरिगॆ सुलभवाद गुणगळन्नु भगवन्तनिगॆ विभाग माडिकॊट्टु निन्नल्लि स्त्रीत्वक्कॆ एकान्तवाद, मृदु स्वभाव, पतिगॆ अधीनवागिरुवुदु, करुणॆ, क्षमॆ, आदिशब्ददिन्द पुरुष कारत्व मॊदलादवन्नु विभाग माडिट्टुकॊण्डु, नीवुगळिब्बरू लीलारस भोगवन्नु अनुबविसुत्तिद्दीरि

1

उणर्न्नुणर्निन्दवन्नु उयर्न्नुरुवियिन्द हिन्निल उणर्नुणर्नुणरिलुरि इनि उणवनरिदुयर् हाळ् । उणर्नुणर्नु रैतुकृत्तु, अरि, अयन्, अरनॆन्नुमिवर्,

णर्नुणर्नुरैतुत्तु इरॆञ्जुमिन् मनप्पट्टदॊ

ई स्वामियाद ईश्वर, तत्वद स्थितियु सुभवागि तिळियलु शक्यविल्ल.

तिरुवाणि 1-3-6)

तत्वत्रयाधिकारः

169

3

“कृशानरां स्वतः केळिद कृशां स्तत्र कुश्वते” ऎन्‌र पडिये, तक्क पाणि ताले निन्नॆत्त दॆल्ला साधिक्कला यिरुक्क च्छॆय देयिरे नाम प्रमाण शरणराय स्पोरुहिरदु.

ले

आयालिश्वर तत्वुव, ईशितव्य तत्वज्ञळ्ळॆयुव यथाप्रमाण नॆळियप्राप्तं, इडल् सर्वज्ञनाहवु वेण्णा, अत्यन्तानुपयुक्तले स्वपयुक्त ळानव लभिसन् पण्ण वु न नॆ ण्णा, अपरिच्छेद्यमान कडलिले पडडुवार् व मुदलाद वेण्णुवन तॆळॆयुमा पॊले इव्वळवु विवेकिक्कॆ अवश्यापेक्षितम्, इदु प्रतिष्ठितमाहैक्काक इवन् विरिवुदळ ऎण्णु

हिरदु,

प्रमाणाधीनत्व

છે

हीगॆ प्रमाणगळिद्दरू युक्तिगॆ विरोधवादरॆ, अदन्नु तर्क पाण्डित्यदिन्द अन्यपरवागि हेळलिक्किल्लवे, ऎन्दरॆ 1 कृशानर्थान्’ इत्यादि अनुग्रहिस त्तारॆ धर्मराजन राजसूय यागदल्लि कॆलवरु चिक्क विषयवन्नु दॊड्डदागि, दॊड्ड विषयवन्नु चिक्कदागियू जल्प वितण्डावदगळन्नवलम्बिसि माडुत्तिद्दरु ऎन्दु हेळुव प्रकरण तर्क पाण्डित्यदिन्द मनस्सिगॆ तोरिद विषयवन्नॆल्ला साधिसलु सामर्थ्यविद्दरू आन्दरॆ इरुवुदन्नु इल्लवॆन्दू, इल्लदुदन्नू इदॆयॆन्दू, ईश्वरनु मात्र उण्टु ईशितव्यगळु इल्लवॆन्दू ईशितव्यगळु मात्र उण्टु ईश्वरनिल्लवॆन्दू, तर्क ज्ञानदिन्द युक्तिगळन्नु हेळि साधिसलु शक्यवादरू ऎन्दर्थ. नाथमुनिगळु, आळवन्दार्, भगवद्रामानुज मुनिगळ ज्ञान परम्परॆयल्लि बन्द नावुगळु प्रमाणक्कॆ कट्टु बिद्दु अदक्कॆ अधीनरागि अर्धमाडुत्तेवॆ. आद्दरिन्द ईश्वर तत्ववन्नू ईशितव्य (अवनिन्द नियमिसि रक्षिसल्पडुव) तत्ववन्नू यधाप्रमाण तिळियलु शक्य, प्रमाणशरणा अर्थसाधनदल्लि प्रमाणवन्ने आ पायवागि अवम्बिसुत्तेवॆ नम्म प्राचीनराद नाथमुनिगळु आळवन्दार्, भगवद्रामानुजरु मत्तु नावू सह, तर्क पाण्डित्यविल्लदॆ इरुवुदरिन्द प्रमाणवन्नु अवलम्बिसिद्देवॆयॆन्दल्ल. तर्क पाण्डित्यवन्नु विरुद्धार्थ साधनक्कॆ उपयोगिसदॆ, ईश्वर तत्ववन्नु ईशितव्यगळाद चित्, अचितत्वगळन्नू यथाप्रमाण आङ्गीकरिसिरुवन्तॆ, महालक्ष्मियन्नू प्रमाणगळु तिळिसुव रीतियल्लि ईश्वरकोटियल्लि सेरिसि लक्ष्मीविशिष्ट नारायणनु ईश्वरनॆन्दु अङ्गीकरिसिद्देवॆये हॊरतु, केवल नारायण नन्नल्ल. इतररु हेळुव युक्तिवाद गळन्नु तिळियदॆ अल्ल, ऎन्दर्थ. आय्कॆयाल् ईश्वर तत्वयु, इत्यादि. आद्दरिन्द ईश्वर तत्ववन्नू ईशितव्य तत्वगळन्नू यथाप्रमाणं प्रमाणवन्नु अनुसरिसि, तिळिय असङ्कीर्णवागि तिळुवागि अरितुकॊळ्ळ बेकाददु प्राप्तवु.

  1. कृशानर्थान् ततःकेचित् अकृशांस्कतकुर्वते ।

अकृशां कृतांश्चरु हेतुभिः शास्त्र निश्चय #

युधिष्टरन राजसूय यागद, सभॆयल्लि, कॆलवरु अल्प वितण्डावादगळिन्द, चिक्क विषयगळन्नु दॊड्ड दागियू, दॊड्ड विषयवन्नु चिक्कदागियू, तर्कशास्त्रद हेतुगळन्नू आधारवागिट्टुकॊडु माडिदरु, जल्प प्रतिपक्षदन्नु सॊलिसबेकॆन्दु तन्न पक्षदल्लि साधनगळू प्रतिपक्षदल्लि दोषगळन ऎत्ति हेळुवुदु. वितण्डवाद तन्न पक्षवन्नु स्थापिसदॆ ऎदुरु पक्षवन्नु खण्डनॆ माडुवुदु वितण्डवाद,

170

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

तत्वविभाग सङ्ख्याभेदाः

इप्पडि मूरु तत्वब्बळाक हुत्तु चित्तार् पोले सर्वविशिष्ट वेषत्ताले ईश्वर नेकतत्वमाह वनुसपार्कुन्, ईशेशितवळ्, आत्मानात्मा, उवा योपेयब्बळ्, ऎन्नार् पोले इरण्ण र्थ ज्ञातव्यमाह हुस्साकु, रक्ष रक्षर्क, हेय मुपादेय मस्सु हळिले अर्थचतुष्टय ज्ञातव्यवाह सङ्ग्रहिप्पारु, मुन्नु तॊन्न पडिये अर्थहळ्ळि कमर् षडर्थल्गळॆन्नु विवेकि प्पारु, रहस्य शास्त्रज्ञळि‌ पडिय सप्तपदार्थ चिनादिहळ् पण्णु नार् कुम्, अम्र ज्ञानानुष्ठान प्रतिष्ठा रूपळान प्रयोजन विशेषण्णळ कण्णु कॊळ्ळदु.

हागादरॆ ईशीति तम्म तत्वगळन्नु सरियागि तिळियबेकादरॆ सर्वज्ञनागिरबेकल्लवे, ऎन्दरॆ अदक्कॆ इडल् सर्वज्ञनाहवु वेण्डा ऎन्दारम्भिसि अधिकारद शेष भागवन्नु अनुग्रहिस त्तारॆ. अदागि ई ईशीति तव तत्वगळन्नु तिळियलु सर्वज्ञनागिरबेकिल्ल सर्व पदार्ध ज्ञान वुळ्ळवनागिरबेकिल्ल अजडवाद आत्मतत्ववु बेरॆ, जडवाद प्रकृतियु बेरॆ, ऎन्दु तिळियुवुदु मुख्य, प्रकृतिगॆ सावयव निजवयवत्व ज्ञानवु अत्यन्त उपयुक्तवल्ल.

हीगॆ अत्यन्त अनुपयुक्तगळ हागॆ, भुवन शादि ज्ञानवु अर्चिराद मार्ग चिन्तनक्कॆ स्वल्पपयुक्तवु- किञ्चिरुप नरकवु इर विषय 7 07. हब्ब परिश्रव पदः इल्ल हडगन्नु सञ्चार माडिसुव नाविकनु, हेगॆ समुद्रद याव याव भागदल्लि आळविदॆ, ऎल्लि आळविल्लदॆ कल्लु बण्डॆगळिवॆ. आ कल्लु बण्डॆगळु तन्न हडगिगॆ तगुलदॆ याव दारियल्लि प्रयाण माडबेकॆम्बुदन्नु तिळिदु कॊण्डु, समुद्र प्रयाण माडि काव्यसिद्धियन्नु नडॆयुवन्तॆ, इव्वळवु विवेकि ई अधिकारदल्लि हेळिरुव प्रकार अवश्यानेक्षितवाद तत्व चिन्तनवे साकु. कार सिद्धिगॆ पराप्तवु ऎन्दर्थ

शास्त्र परिचयद आवश्यकतॆ

समुद्रदल्लि

हाडादर नाधमुनिप्रकृतिगळु न्यायतत्व, सिद्धित्रय, तत्वरत्नु कर मॊदलाद ग्रन्थगळन्नु रचिसिदुदेकॆ, अदरल्लि परिश्रमबेकल्लवे ऎन्दरॆ इदु प्रतिष्ठित माहैक्काह” ऎन्दारम्भिसि आचाररु समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ अन्दरॆ, प्रबलराद वादिगळ कुयुक्तिगळिन्द ई तत्व ६०तनगळल्लि संशय, विवय - व्यत्यासादिगळु उण्टागदन्तॆ, दृढवाद निश्चय ज्ञानवुण्टागि, मोक्षेपाय वन्न नुष्ठिसि काव्यसिद्धियन्नु हॊन्दलु, बुद्धिवन्तरिगॆ ई तत्वगळ विस्तारबोधकवाद आ ग्रन्धगळ परिचयवु अवश्यक

तत्वगळन्नु बेरॆ बेरॆ विङ्गडिसिरुवुदर अभिप्राय

हागादरू तत्वरन्नु करादि ग्रन्थगळल्लि तत्वगळन्नु ऒन्दागियू, ऎरडु मूरु इत्यादियागियू विङ्गडिसिरुवुदर अभिप्रायवॆनॆन्दरॆ, इप्पडिमन्नु तत्वङ्गळाह ऎन्दारम्भिसि समाधानवन्नु हेळुत्तारॆ. हीगॆ मूरु तत्वगळॆन्दु विङ्गडिसि अनुसन्धानमाडिरुवन्तॆ, सर्वविशिष्टवेषत्ताले चेतनाचेतन विशिष्ट रूपदिन्द ईश्वरनु ऒन्दे तत्ववॆन्दु कॆलवरु अनुसन्धान माडुत्तारॆ. कॆलवरु ईशेशितव्यङ्गळ - ईश्वरनु ऒन्दु पङ्गड - ईशितव्यगळु - चेतना चेतनद्वयगळु, ऒन्दु

तत्व त्रयाधिकारः

शास्त्रज्ञानं बहुकोशं बुद्ध शृलन कारणम् । उपदेशा द्दरिं बुद्धा विरमे तृर्व कर्मसु ॥ ऎरदु उपयुक्त तममान सारांश कडुहश्रवण

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पट्टॆ कृषिपण्णादे उण्ण विरहुडैयवन् कृषिचिन्मय निडुवा पॊले निरिवु कक्कीडान शास्त्राभ्यासादि कर्मण्ण, लुपरतनायडुह मोक्ष सायले मळ प्राप्तमपडि,

उपयुक्तपु वैशद्यं त्रिवर निरपेक्षताम् ।

करण तय सारूप्य मिति सौख्य रसायनम् ॥ २ ॥

आदि शब

पङ्गड - हागॆ ऎरडु पङ्गडगळु आत्म जीवेश्वरराद इब्बरु ऒन्दु पङ्गड - अन्नातरुगळु, अचेतन प्रकृति अदर परिणामगळु ऒन्दु पङ्गड, ऎन्दु ऎरडु पङ्गडगळु, उपाय- भक्ति प्रप गळु ऒन्दु, उपेय- प्राव्यवाद ईरनु ऒब्ब, हीगॆ ऎरडु पङ्गडगळागि विभागिसि, ऎरडु अर्थगळु तिळियल्पडबेकॆन्दु विङ्गडिसि हेळुववरिगू रक्ष - जीव, रक्षन् ईश्वर, हेय- हेयवाद प्रकृति सम्बन्ध, उपादेय प्राप्तकर्हवाद मोक्षसाम्राज्य, इत्यादियागि नाल्कु अर्धगळु तिळियल्पडतक्कवु ऎन्दु कॆलवरु सङ्ग्रहिसुत्तारॆ हिन्दॆ हेळिदन्तॆ, अर्धपञ्चक, षडर्थगळु ऎन्दु कॆलवरु विभजिसिद्दा रहस्य शास्त्रगळल्लि, सप्त पदार्थ चिन्तनवन्नु माडिरुत्तारॆ. अदागि, भगवन्त, अविद्यॆ, कर्म, काल, कर्तव्यता, संयवु ऎम्बुदागि एळु पदार्थगळु दिन्द, तत्वगळु, इप्पत्तारु, इप्पत्तेळु ऎन्दु विङ्गडिसिरुत्तारॆ ई विभागगळॆल्ल, तत्वत्रयगळन्नु मुखभेदेन बेरॆबेरॆयागि विङ्गडिसिरुवुदे विनह बेरॆयल्ल. ई विभागगळिगॆ ज्ञानानुष्ठानगळु प्रतिष्ठितवागबेकॆम्बुदु तिळियतक्कद्दु हेगॆन्दरॆ, चेतना चेतन विशिष्टनाद ईश्वरनु ऒब्बनॆम्ब उद्दॆवॆन्दु तत्वचिन्तनॆयिन्द चेतनाचेतनगळिगॆ ईश्वरनॊडनॆ अप्रथ सिद्ध विशेषणवू, प्रत्येक वागिरलु अनर्हगळु ऎ ब ज्ञानवू निश्चयिसल्पडुत्तवॆ ईशीत तत्वगळु - (जीवनू, अचेतनवू स्वातन्त्रविल्लदिरुवुदॆम्ब ज्ञानक्कॆ प्रतिष्ठापकगळु. हीगॆये बेरॆबेरॆ विभागगळिगॆ प्रयोजनवन्नु तिळियतक्कद्दु

शास्त्रज्ञावु केशकर

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हीगॆ बुद्धिवन्तर, शास्त्रज्ञानवन्नु सम्पादिसबेकॆम्ब निर्बन्धवुण्टे शास्त्रज्ञनवु केशकर आद्दरिन्द केवल उपदेशवे साकॆम्ब वचन तात्परनॆन्दरॆ ‘शास्त्र ज्ञानं’ ऎन्दारम्भिसि तिळिसुत्तारॆ. अदागि शास्त्रज्ञानवु बहुकोशसाध्य गहनवाद अनेक युक्तिगळू, अनुमानादिगळू, तिळियबेकाद वागि, बुद्धिय न्नु चलिसुत्तदॆ. अद्दरिन्द सुलभवाद आचारोपदेशदिन्द हरियन्नु तिळिदुकॊण्डु, विस्तारवाद शस्त्राभ्यास काव्यदिन्द विरामवन्नु हॊद वुदे मेलु ऎन्दु हेळुवुदर तात्पर वेनॆन्दरॆ, उपयुक्तवाद सारांशवन्नु, कडुह - स्वल्प कालदल्लिये, आचाररिन्द उपदेश मूल तिळिदु कॊळ्ळबेकॆम्बुदु. श्रमसाध्यवाद कृषि व्यापारवन्नु माडदेनॆ ऊटमाडलु उपायवन्नु तिळिदवनु, कृषि व्यापार चिन्तॆयन्नु बिडुवन्तॆ विस्तारवागि तिळियलु अपेक्षितवाद शास्त्र चिन्तनॆ यन्नु बिट्टु, शीघ्रवागिये मोक्षपायदल्लि प्रवर्तिसुवुदु युक्त, ऎम्ब दु तात्पर

1

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છે

श्रीमद्रहस्यत्रयसारे

तेर वियनर् शित्तु मशित्तु मिरैयु मन नेरु पडुव नियत्तुव मून्नु निन्नॆयुडब्बल् कूरु पडुबिडु मोहवु तानिद्रॆयाब्बुरिप्पुम् मार निन्नॆन्नरुळाल् मुरैनल् तन्नवादियरे ॥१२॥ आवापो द्वापतस्सु कतिकति कविधि चित्रवत्तत्तदर्येषु, आनन्यादस्तिना रनवधि कुहनायुक्ति कान्ताः कृतान्ताः । तत्वा लोकस्तु लोपुं प्रभवति सहसा निस्समस्ताः समस्ता

पुं तन दृष्टे पुनरपि नखलु प्राणितााणुतादिः (धीः) ॥ १५ ॥ इति कवितार सिंहस्य, र्वतन्त्र स्वतन्त्र, श्रीमद्वेङ्कटनाथस्य वेदान्ता चारस कृतियु श्रीमद्रहस्ययसार तत्वयाधिकारःपञ्चम

श्रीमते निगमान्य महादेशिकायनमः

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हीगॆ उपदेशद मूल्क भगवन्तन स्वरूप स्वभावगळन्नु तिळिदुकॊण्डरू, शास्त्र जन्य ज्ञानद हागॆ स्थिर प्रतिष्ठितवागिरुवुदे, ऎन्दरॆ, उपयुक्तषु ऎम्ब क रिकॆयिन्द विवरिसुत्तारॆ. उपयुक्तवाद भागगळल्लि - अन्दरॆ उपदेशदिन्द पडॆद अर्थगळल्लियू संशय विपर्यादिगळु बारदन्तॆ शास्रोपदेशदिन्द विस्तारवागि तिळियुवुदु, त्रिवर्गनिरपेक्षता – धमार्धकामगळल्लि स्पहॆयिल्लदिरुवुदु, करणत्रय सारूप्यं मनस्सु, वाक्कु, शरीरवॆम्ब मूरु करणगळू एक रूपवागि निवृत्ति धर्मगळल्लि प्रवर्तिसुवुदु, इति सौख्य रसायनव- हीगॆ इरुवुदु सुखवागि रलु, रसायन पानमाडुवन्तॆ साधकगळु

देशकालगळु अनन्तवागिरुवुदरिन्दलू अवरवर कर्मफलवागि बुद्धियु विचित्रवागिरुवुद रिन्द, पूर्वपक्षगळु अनन्तवागिरुवुदरिन्दलू, इवुगळन्नु परिहरिसुवुदु हेगॆ ऎन्दु कष्ट पडुव सात्त्विकरिगॆ प्रयोजनवागुवन्तॆ, अधिकारद अर्थवन्नु तमिळु, संस्कृत श्लोकगळिन्द, तेरवियं जनर्, आवापोद्वापतु, ऎन्दारम्भिसि सङ्ग्रहिसुत्तारॆ

मरनल् तदवादियरे - वेदवॆम्ब शास्त्रवन्नु उपदेविसिद नम्म पूर्वाचारर गळु (आदिय र्), अरुळाल्- कृपॆयिन्द, (ख्यातिलाभ पूजा निरपेक्षवागि) विनैयुडम्बिल् - कर्मदिन्द कूडिद ई शरीरदल्लि, कॊरुपडुम् - सेरिबरुव, कॊडुमोहनुम् - नरकावह वाद अज्ञानवू, तानिरैयाम् - ताने स्वामियॆम्ब कुरिप्पु - भावनॆय, देहात्म स्वतन्त्रात्मभ्रमगळु ऎन्दर्ध मारनिन्दु - इवुगळु नमगॆ तॊलगुवन्तॆ, नॆनॆसिकॊण्डु चित्तु. चेतन तत्ववन्नू, अचित्तु. अचेतन तत्ववन्नू, इरॆयुं ईश्वर तत्ववन्नू, ऎन ऎन्दु,वेरुपडु-बेरॆबेरॆयाद, नियतत्तुव मानु-विस्मयनीयवाद मूरु तत्वगळन्नु, - मन्दमतिगळाद नावु संशय विपरियगळिल्लदॆ तिळिदुकॊळ्ळुवन्तॆ, इयम्बिनर् - उपदेशिसि

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तत्रययधिकारः

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न हाज्ञानिगळाद नम्म पूर्वा चररुगळु, नम्म देशवे आत्मा तास्वतन्त्रनु ऎम्ब अहङ्कार ममकारगळु तॊलग वन्तॆ, देहवु अचीतन, आत्मचेळन भगवदधीननु, ईश्वरनु - सर्व नियन्ता, ऎन्दु अवुगळु शिक्षण ज्ञानपूर्वक उपदेशिसिद्दारॆ शिष्यर बुद्धि सौकय्यक्कागि ई अधिकार दल्लि हे ळिद अर्धगळन्नु आवापोद्यापतः ऎन्दारम्भिसि सङ्ग्रहिसुत्तारॆ तत्तदर्थेषु - अयाया पदार्धगळ विषयदल्लि अस्तिनाः - अस्ति इदॆ नास्ति-इल्ल ऎम्ब व्यवहारगळिगॆ आनन्त्यात् - अनन्तत्ववु उण्टागिरुवुदरिन्द, आवाप ‘. अङ्गीकरिसुवुदु, उद्वाप :- बिडुवुदु, इवुगळ दॆसॆ यिन्दागि अदागि नैयायिकनु समवायि कारणवन्नु अङ्गीकरिसिद्दानॆ वेदान्तिगळाद नावु अदन्नु बिट्टिद्देवॆ. वेदान्तिगळु सत्वरजस्तमस्सुगळु गुणवॆन्दु अङ्गीकरिसिद्दारॆ नैयायिकरु अदन्नु त्यजिसिद्दारॆ. हीगॆ अङ्गीकारानङ्गीकारगळिन्द, कविधीचित्रवत् - कविय बुद्ध नुसार माडल्पट्ट चित्रविचित्रवाद काव्यगळहागॆ, कति कति कृतान्ताः – अनेक विधवाद सिद्धान्तगळु, स्युः – उण्टाग तक्कवु अवुगळु, अनवधिकुहना युक्तिकान्ताः – ऎल्लॆ इल्लद वञ्चनारूपद युक्तिगळिन्द रम्म नागिवॆ आपार्त रमणीयगळागिवॆ आदरॆ तत्ववित्तुगळु अदन्नु आदरिसुवुदिल्लवॆन्दु ता लोकिसु ऎन्दु “तु’ शब्ददिन्द अवुगळन्नु व्यवच्छेदिसुत्तारॆ. तत्वालोकः – भोक्ता भोग्य

  • कुरितारं चमत ऎम्ब श्रुतियिन्द उण्टागुव तत्वविषयवाद यथार्थ ज्ञानवु, तान समस्ता * लोपं प्रभवति - आ अपसिद्धान्तगळॆल्लवन्नू होगलाडिसलु समर्थवागुत्तदॆ. पुंस्कृ तनदृष्टे - पुरुषनन्नु साक्षात्करिसिदरॆ, स्थाणुर्वा पुरुषोवा - स्थाणवो - कम्बवो, मनुष्यनो ऎम्ब शङ्कॆयु, स्थाणुताधी कम्बवॆम्ब बुद्धियु स्थाणुतादि ~ ऎम्ब पाठवादरॆ कम्बवू बेरॆयावुदू (शिलॆ इत्यादि) ऎम्बुदु, पुनरपि नाणिता खलु तिरुगि उण्टागुवुदिल्ल वल्लवे नाणिता जीविसुवुदिल्लवॆन्दू अर्थ, पुंस्कृवु - पुरुष शब्दवाच्यनाद श्रीयः पतिय जगत्कारणत्यादि लक्षणगळु यथार्थवागि तिळिदरॆ, स्थाणुतादि परदेवतॆयु रुद्रनो ब्रह्मनो ऎम्ब संशयवु उण्टागुवुदिल्लवॆम्बुदु तात्पय्य. इदु मुन्दिन अधिकारदल्लि माडुव अर्ध निर्णय सूचक, “अङ्कान्तपात्र रङ्कास्य मुत्तराङ्कार्थ सूचकं’ ऎम्बुदु कवि समय.

तत्रयाधिकारक्कॆ सार चन्द्रिकॆयॆम्ब व्याख्यानवु समाप्तवु.

श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः.

श्रीयॆ नमः

श्रीमते निगमान्त महादेतिकाय नमः

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