०६ नारायणाचार्य

श्रीमते रामानुजाय नमः ॥

!! श्रीमन्निगमान्य महादेशिकाय नमः ।

!! श्रीमते श्रीवण्शरकोप श्रीवेदान देशिकायतीन्द्र महादेशकाय नमः ॥

ग्रन्थावलोकन

श्रीमद्वेशानदेशिकरॆन्दे जगद्विख्यातराद श्रीवेङ्कटनाधाचार्य गुरुगळ श्रीमद्रहस्यतय सारवु श्री वैष्णव प्रस्थान ग्रन्धगळल्लि अग्रमान्यतॆ पडॆद ग्रन्थरत्नवागिद्दु, मुमुक्षुवु अवश्यवागि अनुसन्धिसि अर्थवरियबेकाद नाल्कु दिव्यग्रन्थगळल्लि ऒन्दागिदॆ. गुरुमुखेन इदन्नु कालक्षेप क्रमदल्लि केळि, तत्त्व, हित, पुरुषार्थगळन्नरितु, प्रवन्ननु तन्न जीवनवन्नु भगवद्भागवत कैङ्करदल्लि सवॆसबेकाद अवश्यकतॆय सम्प्रदायदल्लि बन्दिदॆ श्री मद्रामानु जाचाररु ब्रह्मसगळिगॆ बोधायन नृत्यनुसारियागियू टङ्कविडादि पूवाचार्या भिप्रायानु गुणवागियू श्री भाष्यवन्नु अनुग्रहिसि उपकरिसिदन्तॆ, श्री वेदानदेशिकरू, परम्परॆयल्लि किवियिन्द किविगॆ मात्र होगुत्ता, बरवणिगॆयल्लि बारदे उळिदिद्द मूलमन्त्र, द्वयमन्त्र, चरम श्लोकगळॆम्ब मूरु “रहस्यगळ दिव्यार्थ सागरवन्नॆल्ला क्रोडीकरिसि, वेद, शास्त्र, पाञ्चरा, इतिहास, पुराण,

इतिहास, पुराण, धर्मशास्त्रादि सकल प्रमाण पूर्वकवागि यार्धगळन्नु निर्धरिसि, संशय विपरियादिगळिगॆ अवकाशविल्लदन्तॆ, ई प्रवु शास्त्रवन्नु

ई रूपदल्लि अनुग्रहिसिरुवरु प्रवत्तिय स्वरूप, अदर अङ्गगळ स्वरूप, वरस्पर सम्बन्ध, प्रवत्तिगॆ अधिकारियागुववन योग्यतॆ, प्रव - भक्तिगळ अन्तर, प्रपन्ननिगिरबेकाद ज्ञात स्वरूप, प्रपन्नन अनुष्ठान प्रकार, कैङ्कर्य स्वरूप, मूरु रहस्य मन्त्रगळल्लि अडगिरुव दिव्य ज्ञान, दिव्य क्रियादिगळ स्वरूप, हीगॆ अनेक विषयगळन्नू ऒट्टिनल्लि श्रीभाष्य काररु गद्यगळल्लि श्री भाष्यादि ग्रन्धगळल्लू विशदीकरिसिरुव अर्थगळन्नू अल्लल्लि कॆ वल सूचनॆ गळल्लि मात्र उळिसिट्ट अर्धगळनु ऒन्दॆडॆ सेरिसि, बॆळॆसि, समन्वयिसि, विशिष्टाद्वि - सिद्धान्तक्कू, श्री वैष्णव धर्मक्कू महोवकार माडि रामानुज दर्शनक्कॆ भकोटॆ यॊन्दन्ने निर्मिसिद्दारॆ

श्री मद्रहस्ययसारवु श्री देशिकरु

देशिकरु हीगॆ अनुग्रहिसिद रहस्य ग्रन्थगळल्लि मुख्यवू, अलिपिवू, अति गम्भीरवू, समग्रवू आद कृति इदर भाषॆ संस्कृत मिश्रवाद (भूयिष्ठवाद) तमिळु.

विद्वद्योष्ठिगळल्लि विचार विनिमयवु सामान्यवागि इन्दू नडॆयुत्तिरुव ऒन्दु सुलभ भाषॆ, इदन्नु मणि प्रवाळवॆन्नुवरु. इदन्नु बरवणिगॆयल्लि मॊदलु आरम्भिसिदवरु, श्री रामानुज मातुलराद श्री पॆरिय तिरुमलैनम्बिगळ कुमाररू, श्री रामानुज सच्छिष्याग्रेसर आद श्री तिरुक्कुरुगै स्पिर्रा पिर्ळ्ळा नम्माळ्वारर

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तिरुवार्यगॆ प्रथम व्याख्यानवाद श्री आरायिरप्पडियु

  • आरायिरप्पडियु ई आचारर कैयल्लि अवतरिसिदुदे ई भोग्य भाषॆयल्लि.

श्री

श्री पिळ्ळॆलोकाचारर पत्यन्त रहस्ययगळाद, श्री अष्टाक्षर मन्त्र, द्वयमन्त्र, चरव श्लोकगळ अर्थगळु ग्रन्धस्थवागलिल्ल गुरुमुखेन केळिदवर पालिगॆ मात्र दॊरॆयुत्तिद्दवु अष्टॆ. पुनः अर्थानु सन्धानक्कॆ प्रपन्ननु नॆनपन्ने मात्र अवलम्बिसुत्तिद्द काल अदु

इवरु अनुग्र हिसिद हदिनॆण्टु रहस्यग्रन्धगळु, आ हॊत्तिगागले श्री भाष्यकारर शिष्य प्रतिष्ठादि परम्परॆगळल्लि हरिदु बन्दु किवियल्लि अल्लल्लि मेधावि अचार हृदयगळल्लि उळिद अर्थराशिगळ पैकि अर्थ ग्रहिकॆय प्रकारगळल्लि भिन्नतॆयु एर्पट्टद्दु ई आचारर किरिय समकालीनरागिद्द श्री देशिकरु ई अर्थभिन्नतॆगळ सामञ्जस्य समन्वय निरूपणॆय महाकारक्कॆ कै हाकुव अवश्यवायितु, याव आचाररन्नू गौरविसिये, यार मनस्सन्नू नोयिसदॆये, परम सात्त्विकवागिये, “अभियुक्तर” अर्थराशियन्नु एक प्रकारवन्नागिसिरुव श्री देशिकर कार स्तुत्यवू, अपूर्ववू, विस्मयकारकवू, अद्भुतवू आगिदॆयॆन्नबेकु “श्री भाष्यकारर शिष्य सम्प्रदायगळल्लि ऎल्ल, अर्थभेदविल्ल. वाक्ययोजनाभेद मात्रवे इदॆ, ऎन्दु (सम्प्रदाय परशुद्धियल्लि) अनु ग्रहिसिद आचार्र हृदय वैशाल्यवू नम्म इन्दिनवर मनस्सिगॆ बरबेकागिदॆ.

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अतिरेकद,

वैभववादगळ, अर्ध वैषम्यगळु, प्रस्थानगळ स्थानमानगळ वैपरीत्य

ग्रहिकॆगळ एरुपेरुगळल्लि कडिवाण हाकि, उभय वेदान सामरस्यवन्नू, मनोज्ञवागुवन्तॆ, समतोलद भाषॆयल्लि स्थापिसि, श्री वैष्णवरिगॆ पूज्यवू ग्राह्यवू आद बहु ग्रन्थगळ सारतम भागगळन्नु अर्थ विशेषगळन्नू ऒग्गूडिसि “परिमित गम्भीर भाषि” ऎन्दॆनिसुवन्तॆ रचिसिकॊट्टु उपकरिसिद श्री देशि रन्थह इन्नॊब्ब आचाररु इल्लवॆन्दे ऎन्नबेकु. ब्राह्मणरु, वर्णबाहिररु ऎम्ब भेदविल्लदन्तॆ, पण्डितरु-पामररु अन्तरविल्लदन्तॆ सात्त्विकरू प्रपन्नरू आद ऎल्लरिगू अर्थगळु दॊरॆयुवन्तॆ ई ग्रन्धवन्ननुग्रहिसिद हृदय वैशाल्यवू (Catholicity) नम्म मनस्सिगॆ बरबेकागिदॆ. श्री भाष्यवन्नु बिट्टरॆ इदे श्री वैष्णवर ऎरडनॆय महानिधियॆन्दू, श्री भाष्यार्थगळन्नु ऒळगॊण्डिरुवुदरिन्द अदक्किन्तलू हॆच्चु प्रियवू, भोग्यवू, सुलभवू, प्रसन्न हृदय समासवू ऎन्दू हिरियरु श्री मद्रहस्यत्‌यसारवन्नु गौरविसुवुदु इदरिन्दले

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इन्थ अपूर्व ग्रन्धक्कॆ प्राचीनवाद वञ्चनाख्यानगळुण्टु अवु सारदीपिकॆ, सारास्वादि सार प्राकाशिकॆ, सारविवरिणी, सार सङ्ग्रहगळम्बवु ई ऐदल्लदॆ, श्री इञ्जिमेडु अगियशिङ्गरॆन्दु प्रसिद्धराद श्रीवणॆ शरकोप श्रीरङ्गशरको यतीन्द्र महादेशिकरु (श्री अहोबिल मरद ४२नॆय आस्थान पतिगळु अनुग्रहिसिद सारधिनियू, ईचॆगॆ श्री उभवे उत्तमूरु वीरराघवाचाररु अनुग्रहिसिद सारविस्तारवू सेरि सप्त व्याख्यान गळु प्रसिद्धविद्दरू इन्दु कॊनॆयदॊन्दन्नु (तमिळु लिपियल्लि) बिट्टरॆ उळिदवावुवू दॊरकु वुदिल्ल. प्राचीन मुद्रणद ई कोशगळु दैव कृपॆयिन्द दॊरॆतरू, कालक्षेप क्रमदल्लि केळि बारदवरिगॆ अवु प्रयोजकवू आगुवन्तिल्ल.

ई कॊरतॆयन्नु कन्नड नाडिन मट्टिगादरू नीगलु श्री उवे स. मा. कृष्णमाचार

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मुगीयन्नू

स्वामिगळु मुन्दॆ बन्दु ई ऎल्ल प्रकटतॆ प्राचीन व्याख्यानगळन्नू सङ्ग्रहिसि, ईवरॆगॆ प्रकट वागद श्री करूरु स्वामिगळ सारा तात्पर्य

सेरिसि, अति सङ्ग्रहवू अति विस्त ईग ई सारचन्द्रिकॆयॆम्ब

रवू अल्लद भोग्य शैलियल्लि अर्थगळन्नु नातिरेकविल्लदन्तॆ, व्याख्यानवन्नु रचिसि प्रकटिसिरुवुदु कन्नड नाडिन श्रीवैष्णवर भाग्यवॆन्दु हेळबेकागिदॆ.

श्री कृष्णमाचार् स्वामिगळ परिचयविल्लद श्री वैष्णवरु अतिविरळ, आचार कृपाकटाक्षक्कॆ पूर्णपात्रराद ई महनीयरु ईगागले श्री वैष्णव समाजक्कू आस्तिक वर्गक्कू माडिद सेवॆगळु अविस्मरणीय, बॆङ्गळूरिनल्लि श्री मूलोलनृसिंह मन्दिर स्थापनॆ, नित्योत्सवादिगळ व्यवस्थॆ, सरगूरॆम्ब तम्म श्री ग्रामदल्लि देवालय जीर्णोद्धार, सनातन धर्मसभॆय स्थापनॆ, पूर्वापर प्रयोगगळ मुद्रण, हीगॆ आनेक रीतिगळल्लि प्राचीन सम्प्रादायरक्षॆगॆ ई महनी यरु हगलिरुळू दुडिदवरु, दक्षरू, प्रामाणिकरू, विद्वांसरू, विद्वत्यरू, सज्जनरू, आचरभक्ति, निष्ठरू, विनयातरूपवाद समर्थरू, अपूर्व शैलियल्लि ग्रन्थनिर्माण निपुणरू, वाक्यगळू आद ई महापुरुषरु ई दिव्य ग्रन्थ प्रकाशक्कॆ अवश्यवाद द्रव्य सङ्ग्रहवन्नू नाना मुखेन माडिकॊन्दु, समर्थ सम्पादक मण्डळियन्नु रचिसि, अवर सलहॆगळन्नु उप योगिसि, तावे ई अद्भुत व्याख्यानवन्नु माडि, अविरतवाद तम्म कार्यबाहुळ्ळ मध्यदल्लि ऒन्दु पवाडवन्ने माडि तोरिसिद्दारॆ. कैङ्कत्यासक्तरिगॆ देवरु ऒदगि बरुवनॆम्बुदक्कॆ इदॊन्दु निदर्शन.

ई महनीयर कृपाकटाक्षक्कॆ बिद्दवनु ई लेखकदास, श्री कृष्ण माचाररु हिडिद कॆलसवन्नु ऎन्दू बिडदवरॆम्बुदन्नु कण्णिन्द कण्डवनु. दासनु नडॆसिद अल्प ग्रन्थ कैङ्करवन्नु कण्डु, केळि, दूरदल्लिद्दवनन्नू हत्तिर सॆळॆदुकॊण्डु, " गुणैक पक्षपातिगळागि, दासनिगॆ ई लेखनवन्नु बरॆयुवन्तॆ नियमिसिदवरु. शिष्टाग्रेसररू, बुधाग्रेसररू, शिष्टाचार-विचार संरक्षकरू, आगिरुव ई महनीयर आज्ञॆयन्नु लङ्घिसलारदॆ नाल्कु मातुगळन्नु ग्रन्थाव लोकन रीतियल्लि बरॆयुव भाग्यवॊदगिदुदु ऒन्दु प्रसादवे,

प्रकृत सारचन्द्रिका व्याख्यानदल्लि, अदरॊडनॆ मूल ग्रन्थवू सेरिद्दु वाचकरिगॆ मूलवन्नु अनुसन्धिसुत्ता अर्थवन्नु अनुभविसुव योगवागुवन्तॆ ग्रन्थवन्नु मुद्रिसलागिदॆ. शैलिय भोग्यतॆयन्नु ओदिये तिळियबेकु.

श्रीमद्रहस्यत्रॆयसारद अर्थानुशासन भाग ऎन्दु परिगणितवाद मॊदलु २२ अधिकारगळू प्रकृतॆ ग्रन्थदल्लि व्याख्यातवागिवॆ. इन्नुळिद हत्तु अधिकारगळू बेग व्याख्यानदल्लि हॊर

xxi

बरुवन्तॆ श्री मालोल नृसिंहन पूर्वाचाररू अनुग्रहिसबेकॆन्दु कॊरुत्ता, श्री कृष्ण माचारर ई साहसक्कॆ मङ्गळा शासन माडुव

o 1-2-1990

1

श्रीवैष्णव वादरेणु कन्दाडॆ श्री नारायणाचार्य

  • मुख्यस्थरु, आङ्ग्ल साहित्य विभाग,

कर्नाटक आट्स् कालेजु

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धारवाड