०५ अनन्तरङ्गाचार्य

25-2-1990

VEDANIA VIDWAN

Dr N S Anantharangachar, Ph.D,

Principal, Maharaja’s Sanskrir College, Mysore (Retd) Member, Academy of Sanskrit Research, Melkote Hon Registrar Bharatiya Vidya Bhawan, Bangalore

SRINIKETAN

780 V Main Road Hosahally BANGALORE-40

श्रीमते रामानुजाय नमः

ग्रन्थ परिचय - आशासनॆ

कवितार्किक सिंहरु”, “सर्वतन्त्र स्वतन्त्ररु,

वेदान्तदेशिकरु” ऎम्ब श्रीनामगळिगॆ

अन्वर्थपात्रराद श्रीमङ्कटनादरु अनुग्रहिसिद शताधिक ग्रन्ध रत्नगळल्लि श्रीमद्रहस त्रयसारक्कॆ विशिष्टवाद स्थानविदॆ इदु इवर परिणतवत्सरद फलवागि श्री वैष्णव सिद्धान्तद सारसर्वस्ववन्नू ऒळगॊण्डिदॆ. मुमुक्षुवादवनॊब्बनु अवश्यवागि अरियबेकाद तत्त्व-हित पुरुषार्थ स्वरूपवन्नॆल्ला ललितवाद मत्तु मञ्जुळवाद शैलियल्लि तिळियवडिसुव कृतियागिदॆ इदु इदर वैशिष्ट्य हीगिदॆ -

१) प्रपत्तियु स्वतन्त्रवू समर्थवू आद मोकोपायवॆम्बुदन्नु

सिद्धान्तिसुत्तदॆ.

मेरु

२) मूलमन्त्र, यमन्त्र मत्तु चरमश्लोकगळु ई नव सिद्धान्तवन्नु

प्रकाशपडिसुव रहस्यगळॆन्दु चॆन्नागि तोरिसि कॊडलागिदॆ.

३) जनसामान्यरिगॆ अर्थवागुवन्तॆ संस्कृत मत्तु तमिळिन हितमित वाद मिश्रणवन्नु

हॊन्दिरुव ‘मणि प्रवाळ शैलि’यल्लि इदु रचितवागिदॆ.

४) इल्लि प्रतिवादिसिरुव सिद्धान्तगळिगॆ स्मृति हास

पुराणगळ प्रमाणगळन्नू

आळ्वाररुगळ श्री सूक्तिगळ प्रमाणगळन्नू अनेकशः उल्लेखिसिदॆ उभय वेदान्तगळ आधारविरुवुदन्नु प्रमाणीकरिसलागिदॆ.

५) प्रस्थानत्रय भाष्यगळन्तॆ अल्लदॆ इदन्नु अधिकरिसुवुदरल्लि सर्वरिगू अधिकारविदॆxvii

६) व्रप स्वरूप, प्रपत्तिय प्रकारगळु, प्रपत्तिय परिकरगळु प्रपत्त नुष्ठान क्रम, प्रपन्नन लक्षणगळु, प्रपन्नन उत्तरकृत्य स्वरूप - इवुगळन्नॆल्ला कुरितु निष्कृष्ट वाद निरूवणॆ इल्लिदॆ

७) प्रपत्नि सिद्धान्तद बगॆगॆ भगवद्रामानुजर कालदिन्द तम्म कालदवरॆगॆ बॆळॆदिद्द बहु मुख्यवाद अभिप्रायगळन्नॆल्ला परिशीलिसि ‘इदमित्थं ऎन्दु शास्त्रमर्यादॆ मत्तु सम्प्रदायगळिगनुसारवागियू प्रमाण पूर्वकवागियू निष्कर्षिसि प्रति पादिसिरुवुदु इदर महत्ववागिदॆ आचार्यरु ई कृतियन्नु रचिसदॆ होगिद्दरॆ, प्रपत्तियन्नु कुरितन्तॆ अनेक विचारगळु सन्दिग्धवागिये उळिदु होगुत्तिद्दवु

ई महतिय अध्ययन मत्तु अर्धानु सन्धान ऎल्ल धार्मिकरिगू अदरल्लियू विशेषवागि श्री वैष्णवरिगॆ अत्यावश्यकवॆन्दु मनगण्ड सन्मान्य श्री सरगूरु माडपूशि कृष्ण मा चार्यरु ‘सारचन्द्रिका’ ऎम्ब कन्नड व्याख्यानदॊडनॆ ई कृतियन्नु प्रकाश पडिसु तिरुवुदु कन्नडिगरॆल्लरिगू परमोपकारकवागिदॆ ई कृतियल्लि श्री मद्रहस्यत्रयसारद मूलपारवन्नु उपयुक्तवाद शीर्षिकॆगळडियल्लि कॊट्टु अदर अनुवादवन्नॊळगॊण्ड विवरणॆ गळन्नु ऎल्लरिगू अर्थवागुव शैलियल्लि कॊट्टिद्दारॆ. मूलदल्लि अचार्यरु उल्लेखिसिरुव प्रमाणगळ आकरवन्नु अडि टिप्पणियल्लि कॊट्टिरुवुदल्लदॆ अवुगळ पूर्णपारवन्नू कॊट्टु अर्थविवरणॆ माडिरुवुदु बहळ उपयुक्तवागिदॆ अनेक उपयुक्तवाद विषयगळन्नु विवरणॆयल्लि विवेचिसिरुवुदु आ बगॆगॆ हॆच्चिन अरिवन्नु उण्टु माडि कॊडुवुदागिवॆ. मान्य लेखकरु ई व्याख्यानवन्नु सिद्धपडिसुवल्लि परमपूज्यराद श्री इञ्जमेडु अळहियशिङ्गर् अवर व्याख्यानवन्नू श्री करूर् स्वामिगळ व्याख्यानवन्नू मुख्यवागि आधारवन्नागिट्टु कॊण्डिद्दारॆ श्रीमद्रहस्यत्रयसारद मेलिन पञ्चव्याख्यानगळन्नु परिशिलिसिद्दारॆ इन्थ ऒन्दु ग्रन्थद प्रकटणॆ बहळ आवश्यकवागित्तु. इदुवरॆगॆ कन्नडदल्लि प्रकटवाद रहस्यत्रय सारवन्नु कुरित कृतिगळु बहळ विस्तारवागि अथवा बहळ सङ्ग्रहवागि अथवा मूलपाठ रहितवागि इरुवुदरिन्द ई कृति अत्यन्त उपयुक्तवागिरुवुदरल्लि संशयविल्ल.

‘सारचन्द्रिका’ व्याख्यानवन्नु रचिसिरुव श्री कृष्णमाचार्यरु गुरु मुखेन उभय वेदान्ता र्थ वेदान्तगळन्नू अधिकरिसि अवुगळल्लि प्रभुत्ववन्नु पडॆदिरुव घनविद्वांसरागिद्दारॆ विचारवन्ने अनवरत माडुववरागिद्दारॆ श्रीवैष्णव सभॆय संस्थापकरागि बहु मुख्यवागि समाज सेवॆयन्नु सल्लिसुत्तिरुवरल्लदॆ श्री लक्ष्मीनृसिंह स्वामिय कैङ्कर्यवन्नु अनवरत माडुव परम भाग्यवन्नु हॊन्दिद्दारॆ अनुष्ठान तत्पररू श्री वैष्णव सम्प्रदाय परमोपकार माडिद्दारॆ. आस्तिकराद कन्नडिगरॆल्लरू अमूल्यवाद ई कृतियन्नु अध्ययन माडि जीवन साफल्यवन्नु पडॆदु कॊळ्ळुवन्तागलॆन्दु नानु आशिसुत्तेनॆ.

भूषणरू आगिरुव मान्यरु सारतमवाद ई कृतियन्नु रचिसि

16-1-1990

ऎ. ऎस्. अनन्तरङ्गाचार्य