०३ परकाल-यति-प्रस्तावना

श्री ब्रह्मतन्त्र स्वतन्त्र परकाल मठ, मैसूरु श्री लक्ष्मीहयवदन लक्ष्मीनारायणास्या नमः

श्रीमते रामानुजाय नम-

श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः

श्री ब्रह्मतन्त्र स्वतन्त्र परकाल गुरुपरम्परानमः

श्रीमद्वेदमार्ग प्रतिष्ठापनाचार, परमहंस परिव्राजकाचार सर्वतन्त्र स्वतन्त्रो भयवेदान्ताचार् श्रीमविकथ कण्ठीरव चरणनळिनयुगळ विन्यस्त समस्तात्मभर श्री भगवद्रामानुज सिद्धान्त निर्धारण सार्वभौम श्री लक्ष्मीहयग्रीव दिव्य पादुका सेवक श्री श्रीमद् अनभिनव रामानुज ब्रह्म तन्त्र परकाल स्वामिभिरनुगृहीता

प्रस्तावना

इवु

श्रीमद्विशिष्टाद्वैत सिद्धान्तदल्लि रहस्य ग्रन्थगळु उन्नतवाद स्थानवन्नु गळिसिवॆ. गळु उपदेशपरम्परॆयल्लि बन्द रहस्ययगळु ऎन्दु हॊगळल्पडुव, अष्टाक्षर, द्वय मत्तु चरमश्लोकगळल्लि अडगिरुव गूढार्धगळन्नु ऎत्ति तोरिसुत्तवॆ. श्री भाष्यादि ग्रन्थगळल्लि विस्तार

  • वागि पूर्वपक्ष सिद्धान्त रूपवागि निरूपिसिरुव तत्वहित पुरुषार्थगळिगू ई रहस्य ग्रन्थगळल्लि निरूपिसिरुव अर्थविशेषगळिगू याव व्यत्यासवू इल्ल “इव्वर्थङ्गळॆल्ला सम्प्रदायडे श्री भाष्यं चिरकालं परिचयम्पण्णिन महानळुक्कु निलवाहुम्” ऎन्दु श्रीमन्निगमान्त महा देशिकरु, रहस्यतयसारदल्लि निरूपितवाद अर्थगळु बेरॆये, इवु भाष्यसवल्लवे ऎम्ब संशय वन्नु निराकरिसि ऎरडू ऒन्दे, श्री भाष्यवन्नु चिरकाल परिचय माडिद महापुरुषरिगेनॆ ई आर्थगळु स्पुटवागि तिळियुत्तवॆ, ऎन्दु निगमिसिरुत्तारॆ नमगॆ सम्प्रदायवु भगवान्, महा लक्ष्मि विषक्केनरु, व्यासरु, बोधायनरु, नम्माळ्वार्, नाथमुनिगळु, उय्यक्कॊण्डार्, मणक्काल् नम्बि, अळवन्दार्, पॆरियनम्बि, श्री भाष्यकाररॆन्दु प्रसिद्धराद भगवद्रामानुजरु अवर शिष्य प्रशिष्यरुगळु, श्रीमन्निगमान्त महादेशिकरु, अवर शिष्य प्रशिष्यरुगळु, हीगॆ अनु सूतवागि बन्दिदॆ. इदे गुरु परम्परॆ ऎनिसिकॊळ्ळुत्तदॆ सम्प्रदाय परिशुद्धियल्लि श्री मन्निग मान्त महादेशिकरु “व्यासबोधायनादिहळाले यथाधिकारम् प्रवर्तितमान सम्प्रदायर्कु, इन्द कलियुगले, ब्रह्मनन्द्यादिहळुक्कु प्पिन्नु नन्ना वार् प्रवर्तकरा नार्” ऎन्दु अनुग्रहिसिरुव प्रकार, व्यासबोधायनादिगळु ब्रह्मसूत्र, वृत्तिग्रन्थगळन्नु अनु ग्रहिसिदरु ब्रह्मनन्दिगळु वाक्य ग्रन्धवन्नु अनुग्रहिसिदरु. इवु गळु, विशिष्टाद्वत सिद्धान्तक्कॆ मूलग्रन्थगळॆन्दु निर्विवादवागि हेळबहुदु. ई ग्रन्थगळ सारवन्नु नम्माळ्वारवरु विश्वक्केनरिन्द

वेदान्त

با و قدر مایه

1

11

उपदेश हॊन्दिदरु. इवरु श्रीमन्नाथ मुनिगळिगॆ योगदशॆयल्लि साक्षात्करिसि, वेदान्तोष देशवन्नू तिरुवाय्‌ मॊदलाद दिव्य प्रबन्धगळन्नू उपदेशिसिदरु हीगॆ सम्प्रदाया गतवाद समीचीन शास्त्रार्थगळे गुरुपरम्परा मूलक नवरिगॆ उपलब्धगळागिवॆ.

d

ऎल्ला उपनिषत्तुगळू भगवन्तन स्वरूप स्वभावगळन्नू (तत्व) भक्ति प्रवरूप उवाय स्वरूपगळन्नू (हित), प्रकृतिमण्डलक्कॆ मेलाद परमपददल्लि भगवन्तन सायुज्यवन्नु पडॆदु आवन गुणानुभव वरिवाहवाद कैङ्करगळन्नु माडुवुदॆम्ब परमपुरुषार्थवन्नू उपदेशिसुत्तवॆ. ई उपनिषत्तुगळन्नु विषय वाक्यगळन्नागिट्टुकॊण्डु वेदव्यासरु ब्रह्म सूत्रगळन्नु रचिसिदरु ई उपनिषत्तुगळ अर्थगळन्नु उपबृंहणगळॆन्दु करॆयल्पडुव इतिहासपुराणगळिन्द तिळियबेकु.

“इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुप बृह्मत् ।

बिजेत्यल्पतुत्तादो मामयं वतरिष्यति ॥”

ऎन्दु वेदगळु अल्पज्ञानिगळु अवार्धगळन्नु माडुत्तारॆन्दु हॆदरुत्तवॆ आद्दरिन्द महर्षि प्रणीतगळाद इतिहास पुराणगळिन्द वेदार्थगळ विशदीकरणवन्नु माडबेकु.

ई उपबृंहणगळल्लि आळ्वारुगळ दिव्यप्रबन्धगळु अत्युन्नत स्थानवन्नु वडॆदिवॆ. “युत् कृत्यं मुनीनां श्रुतिगण विहितैः सेतिहासैः पुरातत्रा, सौसत्वसीम्म शर मथनमन- संहिता सार्वभौमि” ऎन्दु प्रमिडोवनिषत्तात्‌ररत्नावळियल्लि श्रीमन्निग मान्तॆ महादेशिकरु, शरमथन मुनिगळ - अन्दरॆ नम्माळ्वारवर - मिडवेद, प्रामिडसंहितॆ, इत्यादियागि व्यवहरिसल्पडुव प्रबन्धगळन्नु उपबृंहणगळल्लि श्रेष्ठतमवॆन्दु अनुग्रहिसिरुत्तारॆ श्रीमन्माद मुनिप्रकृतिगळू ई दिव्यप्रबन्धगळन्नु बहळवागि आदरिसिरुत्तारॆ आद्दरिन्दले विशिष्टाद्वत सिद्धांवु उभय वेद वरिकर्मितवार, अप्प कम्प्य सिद्धान्त

वेद शास्त्र मूलवाद सम्प्रदायागतवाद सिद्धान्तवू इदे.

प्रकृत श्रीमन्नि गमान्त महादेशिक प्रणीतवाद श्रीमद्रहस्यत्रयसार ग्रन्थवु श्री भाष्यादि सकलवेदान्त ग्रन्धगळ सारवु रहस्य मन्त्रगळल्लि अष्टाक्षरवु प्रधान “सर्वमष्टाक्षरान्तस्थ” ऎन्दु अष्टाक्षरवु सकल वेदान्तार्थ गर्भितवु इदर व्याख्यानवे इतर रहस्य मन्त्रगळु, श्रीमदहस्यत्यसार ग्रन्थवु 32 अधिकारगळिन्द कूडि, अर्थानु शासन भाग, स्थिरीकरण भाग, पदवाक्ययोजना भाग मत्तु सम्प्रदाय प्रक्रियाभागवॆन्दु नाल्कु भागगळागि विङ्गडिसल्पट्टिदॆ. मॊदलनॆयदाद अर्धानुशासन भागदल्लि चेतन, अचेतन, ईश्वरनॆम्ब तत्वप्रियगळ स्वरूप, चेतनाचेतनगळु ईश्वरनिगॆ शरीर, अवुगळिगू ईश्वरनिगू इरुव शरीरात्मभाव सम्बन्ध, भक्ति, प्रपत्तिगळ स्वरूप, पुरुषार्थस्वरूव, ऎम्बि विषय गळन्नु कूलङ्कषवागि विचारिसि सम्प्रदायार्थगळन्नु प्रमाणोप्रपत्तिगळ मूलक आचाररु निरूपिसिरुत्तारॆ स्थिरीकरण भागदल्लि सिद्योपाय, साद्योपायगळ शोधनॆ, मत्तु उपाय प्रभावगळन्नु आक्षेप समाधान पूर्वक निरूपणॆमाडिरुत्तारॆ.

पदवाक्य योजनाभागदल्लि रहस्य मन्त्रगळाद अष्टाक्षर, द्वय मत्तु चरमकगळ पदगळल्लियू अध्याहृत क्रिया पदगळिन्द उण्टाद वाक्यगळल्लियू मेलॆ हेळिद अर्धगळु

rt

111

हेगॆ निरूपितवागिवॆ ऎम्बुदन्नु विचारिसि, वरम रहस्यवाद लक्ष्मी विशिष्ट नारायणनॆम्ब पर तत्वद उपायोपेयात्मकवाद स्वरूपवन्नू, शरणागति स्वरूपवन्नू, गीताचरम श्लोकद अर्थवन्नू विस्तारवागि निरूपिसिरुत्तारॆ इवुगळल्लि सर्वधर्मान् परित्यज्य ऎन्दारम्भिसुव गीता चरमश्लोकद अन्त्यदल्लिरुव माशुचः - ऎम्ब शब्दगळिगॆ अर्धवन्नु पूर्वाचाररु तम्म अन्तिम दशॆयल्लि सष्यरिगॆ उपदेशिसुत्तिद्दरॆन्दु हेळि, आ परमरहस्यार्धगळु ऎल्लि नष्टवागि होगुत्तवॆनो ऎन्दु हॆदरि परमकृपॆयिन्द अवुगळन्नु नमगागि आचारवररु ग्रन्थस्थवागि उपदेशिसिरुत्तारॆ इदु परमोपादेय नाल्कनॆयदाद सम्प्रदाय प्रक्रिया भागदल्लि आचार मत्तु शिष्यर कृत्यगळन्नु निरूपिसि, परमरहस्यगळाद ई अर्थगळन्नु सच्छिष्यरिगॆ उपदेशिसुवुदल्लदॆ, अयोग्यरिगॆ उपदेशिस कूडदॆन्दु निगमिसिरुत्तारॆ. हीगॆ ई रहस्य ग्रन्धवु अत्यन्त उपादेय मत्तु श्रेष्ठतमवादद्दु

प्रस्थानत्रय

वेदगळु (उपनिषत्तुगळु), ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीतॆ मॊदलादवुगळन्नु प्रमाणवागि अङ्गी करिसि प्रस्थानत्रयगळॆन्दु अवैत, विशिष्टात मत्तु दैतमतगळु हॊरटिवॆ.

అ त मत

अदैत मतवु “ब्रह्मसत्यं जगन्मथा” ऎन्दु ब्रह्मवॊन्दे सत्य, चेतनाचेतनात्मकवाद ई प्रपञ्चवु अपारमार्थिक ऎन्दु हेळि “सदेवसोमेदमग्र आसीत् एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म” इत्यादि श्रुतिगळिगॆ मुख्य प्रामाण्यवन्नु कॊट्टु, ज्ञा, ज्ञ द्वावजावीशनीश्‌, नित्य नित्यानां चेतन तनानां एकोबहनां विदधातिकामान्’, इत्यादि भेद श्रुतिगळन्नु व्यावहारिक गळन्नागि आश्रयिसि, ब्रह्मवु सजातीय, विजातीय, स्वगत नानाभेद रहितवु ऎन्दु हेळि, निर्वि शेष ब्रह्मवे तत्ववॆन्दु निरूपिसिदॆ. “आहम्ब्रह्मास्त्रि, तत्वमसि, अयमाता ब्रह्म, सर्वङ्खल्विदं ब्रह्म, इत्यादि अभेदबोधक वाक्यार्थगळ, श्रवण मनन, निदिध्यासना नन्तर, “आहं ब्रह्मास्मि “ऎम्ब वाक्य जन्य ज्ञानवे मुक्तिसाधनवॆन्दु हेळि जीव ब्रह्म क्यवे मोक्षवॆन्दु सिद्धान्तीकरिसिदॆ. हीगॆ अभेद श्रुतिगळे मुख्य, भेद श्रुतिगळु औपचारिक, अन्दरॆ व्यवहार दशॆयल्लि सत्य, वरमार्धदतॆयल्लि “अविभागेन दृष्टात्” ऎम्ब सूत्रदल्लि हेळिरुवन्तॆ आभेदवे सत्यवॆम्बुदु ई मतद सार

वैतमत

अदैत मतक्कॆ प्रतियागि, ऐक्यवु परमार्थवल्ल. चेतन, अचेतन, ईश्वररॆम्ब तत्वप्रिय गळु सत्य. जीव ब्रह्मरिगॆ अत्यन्त भेदवे सत्य. “तत्वमसि” मॊदलाद महावाक्यगळल्लि जीवनु ब्रह्माधीननाद्दरिन्द अभेदवु अमुख्यवाद व्यवहार सत्यगुण परिपूर्णनाद ब्रह्मनल्लि भक्तियिन्दले

iv

मुक्ति ब्रह्मक्कू, तद्ध गुणगळिगू अभेदवन्नु ऒप्पि “नेहनानास्ति, किञ्चन” इत्यादि भेद निषेध श्रुतिगळिगॆ अर्थवन्नु निर्वहिसि, नन्तर ब्रह्म तद्गुणगळिगॆ भेद व्यवहारवन्नु निराह माडलु, ‘विशेष’ ऎम्ब पदार्थवन्नु स्वीकरिसिरुवुदु दैत मतद वैशिष्ट्य

विशिष्टाद्वत (सविशेषात)

છે

भगवद्रामानुजरु ‘वेदाः प्रमाणं’ ऎन्दु सर्व श्रुतिगळिगू एकरूपवाद अन्दरॆ ऒन्दु मुख्य मत्तॊन्दु गौणवॆन्दल्लदॆ मुख्यवाद प्रामाण्यवन्नु ऒप्पि भेदा भेद श्रुति गळिगॆ ऐककन्द्यवन्नु घटक श्रुतिगळॆन्दु व्यवहरिसल्पडुव शरीरात्मभाव सम्बन्ध बोधक श्रुति गळ मूलक निरूपिसिरुत्तारॆ. “वेदा प्रमाणं” ऎम्बल्लि प्रमाणानि ऎम्ब बहुवचनवन्नु हेळदॆ एकवचनवन्नु हेळिरुवुदरिन्द सकल विधगळाद श्रुतिगळिगू एकविधवाद प्रामाण्यवन्नु स्वीकरिसिरुवुदे कारण

चेतन, अचेतन, ईश्वरनॆम्ब मूरु तत्वगळू सत्य चेतनाचेतनगळु ईश्वरनिगॆ शरीर, अन्दरॆ अपृथक् सिद्ध विशेषणगळु ईश्वरनु आत्मा-शरीरि, अन्तः प्रविष्टश्यास्ता, जनानां सर्वात्मा” ऎम्ब श्रुतियु ईश्वरनु सर्वजनरल्लियू अन्तः प्रवेशिसि नियमिसुत्तानॆन्दु तिळिसिरुत्तॆ. इल्लि ‘सर्वात्मा” ऎन्दु हेळिरुवुदु गमनिसतक्कद्दु, ईश्वरनु आत्मावादरॆ इदक्कॆ प्रति सम्बन्धियु शरीरवे आगिरबेकल्लवे, पति पत्नि भाव, स्वस्वामि भाव सम्बन्धगळन्तॆ ई शरीरात्मभाव सम्बन्धवू विशेषवादद्दु, लोकदल्लि अस्य इयम्भारा” ऎन्दु ऒब्बळन्नु हेळिदरू, इदक्कॆ प्रतिसम्बन्धि याद “इदं पदार्थवु पुरुष-पतिये आगबेकल्लवे, हागॆ सस्य आत्मा” ऎन्दु ईश्वरनन्नु चेतनाचेतनरूपवाद जगत्तिगॆ आत्मनन्नागॆ हेळिरुवुदरिन्द, प्रतिसम्बन्धिगळाद चेतना चेतनगळु इवनिगॆ शरीरवॆम्बुदु स्वतः सिद्ध. इदरिन्द चेतनाचेतनगळिगू ईश्वरनिगू शरीरात्मभाव सम्बं धवु सिद्धवायितु. बृहदारण्यकदल्लि स्पष्टवागि, यस्य पृथिवी शरीर, यस्माता शरीरं इत्यादि रीत्या शाखाभेददिन्द 22 सल ई शरीरात्मभाव सम्बन्धवु हेळल्पट्टिदॆ. नम्म शरीरदन्तॆ चेतना चेतनगळु ईश्वरनिगॆ प्राणाधीन धारणवागि भोगायतन रूपवादद्दु ऎन्दु भाविसकूडदु. इदु लौकिक शरीर लक्षण, श्रुत्यलक्षणवु लौकिक वैदिक प्रयोगगळिगॆल्ला साधारणवादद्दु अन्दरॆ लोकदल्लि कण्डु बरुव प्रतिजीव शरीरगळिगू, जगत्तिगू ईश्वरनिगू इरुव शरीरात्म भावगळिगू ई लक्षणवु अन्दरॆ यस्यचेतनस्य यद्रव्यं स्वार्थ नियन्तुं धारयितुञ्च शक्यं तच्छेष तैक स्वभावं तस्य शरीर अन्यत् शरीरी”, ऎम्बुदु सामान्यवॆन्दु श्री भाष्यकाररु श्रुत्य नुसारवागि व्यवस्थॆगॊळिसिद्दारॆ “यस्य चेतनयत् अपृथक् सिद्धं द्रव्यं तत्र्य शरीर” ऎन्दु श्री मन्निगमान्त महादेशिकरु ई शरीरात्म भावलक्षणवन्नु सङ्ग्रहवागि निरूपिसिद्दारॆ. इदरिन्दागि चेतना चेतनगळु परब्रह्मक्कॆ नियत विशेषणगळु ऎन्दु सिद्धवायितु. इदरिन्दले सूत्रकाररू “अंशोनाना व्यपदेशात् अन्यदाच दाशकितवादित्वमधीयत एके”(ब्रह्मसूत्र 2-3-7) ऎम्बु अंशाधिकरणदल्लि जीवनु ब्रह्मन अंश-विशिष्टस्य एकवस्तुनः विशेषणं अंश एव (भाष्य) ऎन्दु निरूपिसिरुत्तारॆ “नात्माश्रुते”, ऎम्ब हिन्दिन सूत्रदिन्द अत्म शब्दवु अनुवर्तिसल्पट्टु परस्य ब्रह्मणः आत्मा जीवः आंशः, नानाव्यपदेशात्-भेदव्यपदेशात्, अन्यधाच-अभेदव्यपदेशाच्च

अदु सूत्रार्थ अंशवॆन्दरॆ एकवकदेशित्ववॆम्ब अर्थदल्लि जीवन, ब्रह्मनू ऒन्दे रिन्द जीवगत दुःखादिगळु ब्रह्मक्कू उण्टागुत्तदॆये ऎम्ब भ्रमवन्नु निराकरिसि, ‘प्रका रत्तु नैवम्परः” (ब्रह्मसूत्र 2-3-45) ऎन्दु अग्नि सूर ‘मॊदलाद तेजोद्रव्यगळ, प्रका आ द्रव्यगळिगॆ विशेषणवागिरुवन्तॆ, जीव ब्रह्मरिगॆ विशेषण विशेष्य भाववन्नु निरूपिसि, ऎरडु गळू बेरॆ बेरॆ, विशेषण विशिष्टवादद्दरिन्द ऒन्दु ऎम्ब व्यवहारवॆन्दु निरूपिसि जीवगळ `दिगळु ब्रह्मक्कॆ उण्टागुवुदिल्ल, विशेषण विशेष्यगळिगॆ स्वभाव वैलक्षण्यवु सिद्धवॆन्दु निरापि इरॆ. हागॆये अहिकुण्डलाधिकरणदल्लि (3-2-6) अचेतनक्कू ब्रह्मक्कू अंशाशिभाववु हेळ दॆ. ई रीतियल्लि चेतनाचेतनगळिगू ईश्वरनिगू परस्पर भेदवू सत्य शरीरात्मभाव अभेदवू सत्य इदरिन्दागि भेदाभेद श्रुतिगळॆरडू घटक श्रुतिगळ बलदिन्द सुरक्षितॆगळु

श्रीमन्याय सिद्धाञ्जनदल्लि आरम्भदल्लिये, “अशेष चिदचित्रकार ब्रह्म एकमेव त्वं प्रकार प्रकारिणो प्रकाराणाञ्च मिथः अत्यन्त भेदेsपि, विशिष्ट कादि विवक्षया एकत्व केशः, तदितरनिषेध, अन्यधा समस्त प्रमाण सङ्क्षेभ प्रसङ्गा”, ऎन्दु निगमां देशिकरु ब्रह्मसूत्र - भाष्यगळ आधारद मेलॆ प्रमेयवन्नु निष्कर्षिसिरुत्तारॆ

ई अर्थगळन्ने श्रीमद्रहस्यत्रयसारद प्रधान प्रतितन्त्र, तत्वत्रयाधिकारगळल्लि आचाररु ण पुरस्सरवागि निरूपिसिरुत्तारॆ नम्माळ्वारवर तिरुवामॊ उय‌वर उ‌

मुडैयवन् - *11),

( 1-1-1); अनन्त गुण विशिष्टन्नु, उळनॆनिल् उळन्-सूक्ष सचेतन विशिष्टन्नु मत्तु सल चेतनाचेतन विशिष्टरु - चेतनाचेतन ‘प्रकारक ब्रह्म श्’ मिशैयिन

तन्दॆगुं परङ्गळन्” शरीरदल्लि आता इरुवन्तॆ, सर्वव्यापि - अन्दरॆ चेतनगळिगू ईश्वरनिगू शरीरात्मभाव सम्बन्थविदॆ, इत्यादियागि निरूपिसिरुत्तारॆ. ई सुगळे मेलॆ हेळिद निर्वाहगळिगू मूलवाद उपदेशगळु,

इदरिन्दागि विशिष्टादैत सिद्धवु लोकानुसारवाद मत : लोकदल्लि राज वन प्रजॆ प्रजारक्षणवु राजन धर्म, इत्यादि व्यवस्थॆगळिरुवन्तॆ, भगवन्त,’ : आवनिगॆ अधीनराद किरु, ‘रु, अवरुगळ रक्षणवु भगवन्तनिगॆ सेरिद्दुदु इत्यादिगळु लोक नीतियन्नु अनुसरिसिवॆ.

तत-विशिष्टात प्रभेदगळिगॆ निजान कारण

ब्रह्म सूत्रगळु चीननिगू ब्रह्मक्कू भेदवन्नु आनेक कडॆगळल्लि सारुत्तवॆ. ज्ञा

जा ईशनीश्, ज्ञानि, अज्ञानि-इब्बरु जरु-नित्यरु, ऒु ईश मत्तॊब्ब अनीश निषे रां चेतन श्वेतनानां,

अमेकां लोहित शुकृ कृष्णां आजोहेको जुषमानु जहानां भुक्तभोगामजोsन्यः, भेदव्यसदेकात्, आ कन्तु भेद निर्देशात् प्रविष्टानात्मान्’ हि तद्दर्शनात्, इत्यादि श्रुति सूत्रगळु सरसम्मत कूगिद्दरू मत कारणवेनॆन्दरॆ-अद्वितिगळु, पदात्मकोशर्ट ऎम्बल्लि आत्म शब्दवु स्वरूपवाचि, प्रतिरू

vi

पोघट ऎन्दु अर्थ हेळि हीगॆये ऐतदात्म मिदंसर्वं तत्सत्यं,स आत्मा तत्वमसि ऎम्ब कडॆय ल्लिय आत्म शब्दवु स्वरूपवाचि, आद्दरिन्द जीवनिगू ब्रह्म स्वरूपैक्यवे श्रुतिगॆ मुख्य शात्पर, हीगॆ आदैतदल्ले श्रुतिगॆ मुख्यगुरिः मेलॆ हेळिद भेदवु व्यवहार दशॆयल्लि मात्र अङ्गीकरिसल्पडुत्तदॆ, श्रवण-मनन-निधिद्यासना नन्तर तत्वमसीत्यादि वाक्यदिन्द उण्टागुव अप शोक्ष ज्ञानदिन्दले मुक्ति, अन्दरॆ ब्रह्मक्य, ऎन्दु हेळिद्दारॆ. हीगॆ आत्म शब्दक्कॆ स्वरूप परवागि अर्थमाडिरुवुदे मूल,

दैतिगळु इदक्कॆ प्रतिकोटियागि भेदवे सत्य. मुक्ति कालदल्लू जीव ब्रह्मरु अत्यन्त भिन्नरु. जीवनु दासभूतनु, ऐक्यवन्नु हेळुव श्रुतिगळु औडचारिक, याधीनायस्य सत्ता तत्वदि व भण्यते ऎम्ब न्यायदिन्द ताद धीन निबन्धनवागि ऐक्य व्यवहारवु उपपन्न. आत्म शब्दवु ‘स्वामि’ ऎम्बर्थदल्लि स्वरसवॆन्दु स्वीकरिसि ऐक्यतॆयन्नु निराकरिसिद्दारॆ

विशिष्टा दैत मतरल्लि भगवद्रामानुजाचाररु “वेदाः प्रमाणं ऎन्दु हेळिदन्तॆ सर्वश्रुतिगळिगू मुख्यार्थवन्ने हेळि निराहवन्नु तोरिसिद्दारॆ आत्म शब्दक्कॆ अन्तरामि’ परवागि अर्थमाडिशरीरात्म भाव सम्बन्धवन्नु आधारवागिट्टुकॊण्डु भेदाभेद श्रुतिगळिगॆ मुख्या र्थवन्ने कल्पिसिरुत्तारॆ. परमात्मनियामत्व, तदेकाधारकत्यादिगळु लौकिक प्रमाणागोचरवाद रिन्द भेदवन्नु हेळुवुदरल्लि ई विधवाद आपूर्वार्थ बोधकत्ववु उपपन्न अभेद वॆन्दरॆ जीवब्रह्मरिगॆ

स्ववल्ल. निलोघट देवोह, मनुष्य हळ्ळि, ऎम्ब प्रयोग गळल्लि नीलगुणक्कू घटक्कू, हागॆये देव मनुष्यादि शरीरक्कू, आहम्पदार्थक्कू ऐक्य नन्नु यारू ऒप्पिल्ल. आदरॆ नीलाभिन्न घटः, देवाभिन्न अहं, मनुष्याभिन्न अहं, ऎन्दु निलोघट देवोहं इत्यादि ऐक्य व्यवहारक्कॆ एनु तात्परवॆन्दरॆ - नील पदवु नीलगुण विशिष्ट वाचि, हागॆये देव मनुष्य पदगळू, देवशरीर, मनुष्य शरीर विशिष्ट पाचिगळु ई रीति अभेदवु सङ्गतवागुत्तॆ - घटस्यनैल्य, ममेदं शरीरं, इत्यादि अत्यन्त भेदवे सरि. ऐक्यवु गुण - गुणिगळिगल्ल, शरीरात्मगळिगॆ अल्ल. नील गुणविशिष्टवू घटजाति विशिष्टवू ऒन्दे.

हागॆये देव, मनुष्य शरीर विशिष्टनू, अहन्त्व विशिष्टनू ऒब्बने आद्दरिन्द विशिष्ट वेषदिन्द ऐक्यवु, उपपन्नवॆम्बुदु शास्त्रकाररु ऒप्पिरुव मातु श्री भाष्यकाररू सह “आहम्ब्रह्मास्मि” इत्यादिगळल्लि अहं - चेतननु ब्रह्म शरीर भूत नाद्दरिन्द, हन्त, प्रकार ब्रह्मवु, बृहत्व विशिष्टवु ऎन्दु ऐक्यवु सुसङ्गतवॆन्दु निरूपिसिरुत्तारॆ. इदरिन्द जीव स्वरूपवु मुक्ति कालदल्लियू परमात्म परतन्त्रनॆम्बुरु सिद्धवागुत्तदॆ. ई रीतियल्लि विशिष्ट निष्कवाद अद्वितवु - आभेदवु - सविशेषातवु रिन्द विशिष्टाध्ववॆन्दु व्यवहरिसल्पडुत्तदॆ. अन्दरॆ अहं ब्रह्म, इत्यादि सामानाधिकरण्यदिन्द स्वरूपक्यवल्ल, नाना विशेषणगळिन्द कूडिद विशेष्यवु ऒन्दे अहन्त्व प्रकारक्कॆ, बृहत्व प्रकारक ब्रह्मवॊन्दे ऎन्दु तात्पय्य

हीगॆयेई

vii

ई विशिष्टा दैत मतदल्लि आत्मशब्दवु मेलॆ हेळिदन्तॆ स्वरूप, स्वामि ऎम्ब अर्थगळन्नु बोधिसिदरू, लोक प्रसिद्धि प्राचुरदिन्दलू, श्रुति प्रसिद्धियिन्दलू, शरीर प्रति सम्बन्धि चेत ननन्ने झटति बोधिसुत्तदॆ गो शब्दक्कॆ अनेकार्थगळिद्दरू, प्रसिद्धि प्राचुरदिन्द हसुवन्ने तिळिसुत्तदॆयल्लवे

हीगॆ चेतनाचेतन, समस्त कल्याण गुण गण, विभूतिद्वय विशिष्टनाद “श्री मन्नाराय णनु” ऒन्दे तत्व ऎम्ब तारदिन्दलू “विशिष्टा दैत” ऎम्ब व्यवहारवु प्रसिद्धवागिदॆ. सजा तीय जीव, विजातीय-अचॆ न स्वगत गुण विग्रहादि शून्यवाद निर्विशेष ब्रह्म ऒन्दे सत्य अन्यत् सर्वमिथ्या, ऎम्ब मतक्कॆ प्रतियागि ई विधवाद मूरु वस्तुगळू ब्रह्मक्कॆ अपृथक

विशेषणगळागिरुवुदरिन्द, इवुगळिन्द कूडिद अन्दरॆ विशिष्टवाद ब्रह्म ऒन्दे सत्य, ई विशिष्ट क्किन्त भिन्नवादद्दु बेरॆ यावुदू इल्ल ऎम्बुदु सिद्धान्त. हागॆये ब्रह्मक्कू अदर गुणगळिगू भेदवे सिद्धान्त ऐक्यविल्ला, अभेदवन्नु ऒप्पिदरॆ एकांशदल्लि स्वगत भेद शून्य ऎम्बुदरल्लि अदैत पक्षवन्नु ऒप्पिदन्तागुत्तदॆ. अदन्नु ऒप्पदॆ समस्त कल्याण गण परिपूर्णवाद ब्रह्मतत्ववन्नु भगवद्रामानुजरु साधिसिद्दारॆ,

ई रीतियागि भेदवु चेतन, अचेतन मत्तु ब्रह्मक्कू, अभेदवु चेतनाचेतन विशिष्ट बृहत्व विशिष्ट वस्तुविगू अङ्गीकरिसल्पट्टिदॆ. इदन्नु तिळिदुकॊळ्ळदॆ कॆलवु पण्डित मन्यरु, जैनमतदल्लि गुण गुणिगळिगॆ भेदाभेदवन्नु ऒप्पिरुवन्तॆ रामानुज मतदल्लियू जीव ब्रह्मगळिगॆ भेदा भेदगळन्नु ऒप्पिद्दारॆन्दु हेळुत्तारॆ. इदु अज्ञानमूल, “अंशोनानाव्यपदेशात् अन्यथाच’ ऎम्ब सूत्रदल्लि अंशांशिगळिगॆ गुण गुणिगळिगॆ परस्पर भेदवन्नु हेळि, गुणविशिष्ट गुणियु ऒन्दे ऎम्बन्तॆ जीवनिगू (विशेषण), ब्रह्मक्कू (विशेष्य) परस्पर भेध, जीव विशिष्ट ब्रह्मक्कॆ अन्दरॆ विशिष्ट वेषदल्लि अभेदवॆम्बुरन्नु निरूपिसिरुत्तारॆ. अदे अधिकरणदल्लि “प्रकाशादिवत्तु नैवम्परः” ऎन्दु सूरनिगू अवन प्रज्ञॆगू परस्पर भेदविद्दरू प्रभाविशिष्टवाद वस्तुवु ऒन्दे ऎम्ब दृष्टान्तवन्नु कॊट्टिरुवुदू इल्लि गमनार्ह, आद्दरिन्द विशिष्टातवु अप्रकम्प्यवाद सिद्धान्त

उपाय स्वरूप

अनन्तर मोक्षपाय स्वरूपवन्नु निरूपिसुववरागि आ उपायवु, अविधेय-विधिस ल्पडदॆ, केवलवाक्य जन्यज्ञानात्मकवॆन्दु हेळुव अदैतमतवन्नु प्रामाणिकवल्लवॆन्दु निरूपिसि, विधेयज्ञानात्मक विशेषवादद्दु ऎन्दु निरूपिसिरुत्तारॆ. इदन्नॆ अनुष्ठानदिन्द साधिसल्पडतक्करु - साद्योपाय ऎन्दु व्यवहरिसुत्तेवॆ. ई साद्योपायदिन्द ‘वशीकृतनागि मोक्षवन्नु कॊडुव भगवन्तनु सिद्धपाय, श्री भाष्यमङ्गळ श्लोक व्याख्यानदल्लि, “रक्षॆक दीक्ष”, “परस्मिन्” ऎम्ब सत्यन्त पदगळिन्द उपेयवाद (प्राच्यनाद) सिपायवु हेळल्पट्टिदॆ. “भक्तिरूपा शेमुषि”, ऎन्दु साद्योपायवु तिळिसल्पट्टिदॆ. “विशेषेणनता

Vill

विनता” ऎन्दु न्यासपासनात्मक ‘अशेष विद्या विशेष निष्माः विवक्षिताः’ ऎम्बुदु श्रुत प्रकाशिक अन्दरॆ “न्यास प्रप, उपासनॆ - भक्ति, इवॆरडू साद्योपायगळु. इवुगळन्नु अनसुववरॆल्लरू “विनत’ ऎम्ब ‘पददल्लि विवक्षितरु. अवरुगळन्नु रक्षिसुवुदे सिद्धोपायनाद भगवन्तनिगॆ दीक्षॆ - सङ्कल्प भक्तियोगदल्लि सामर्थ्यविल्लदवनिगॆ प्रसयु विधिसल्पट्टिदॆयष्टे निदिध्यासितव्य, मामुपास्य, मामेकं शरणंव्रज, मुमुक्षुर्नै शरणमहम्प्रत, इत्यादि ‘गळु उपायविधायक वाक्यगळु, भक्तियु असधावृतवाद अन्दरॆ नित्यवू, उपासनारूप इतिर पापक्षवाद ज्ञानविशेष प्रसक्तिय प्रीतिरूपापन्नवादनविशेषवु.

सकृत् ऒण्डे सल अनुष्ठिसल्पडतक्कद्दु. आद्दरिन्द ज्ञानानॊक्ष” ऎम्ब उक्तिगॆ विरोध इल्ल. आ ज्ञानवु केवल वाक्य जन्यवाद शास्त्रार्थ ज्ञानविल्ल. अदक्किन्त बेरॆयाद विधेयात्मक उपासन रूप ज्ञानविशेषवु ज्ञान “स्वरूपवु प्रमाण तन्त्रवाद्दरिन्द निधेयवल्ल. आवृत्ति - विशिष्टवादद्दु पुरुषतन्त्रवाद्दरिन्द विधेयवे, भक्तियोगवु-आवृत्ति विशिष्टवाद, ज्ञानात्मकवु भक्तियोगवन्नु माडलु अशक्तनिगॆ प्रतियु विधिसल्पट्टिदॆ. “नहिवचन विरोधे न्यायः

प्रभव*

می میرد

आदरॆ

श्री भाष्यकाररु साधनाध्यायदल्लि ‘नानाशब्दादि भेदात्” ऎम्ब सूत्र (3-3-56)व्याख्या नरल्लि ई साधनगळु अनेकवादवु, ऎन्दु सूत्रदल्लिरुव “शब्द भेदात्” ऎम्ब पदस्वारस्यदिन्द भक्ति प्रशस्तिगळॆरडन्नू एक्षिसि व्याख्यान माडिरुत्तारॆ ‘धान उपासनॆ इत्यादि सत्याय शब्दगळु विकार्थ बोधकगळु आद्दरिन्द न्यास विद्यॆयन्नू विवक्षिसिदरेने शब्द भेदवु एर्पडुत्तदॆ. ई अंशवु सूत्रकार विवक्षितवॆम्बुदु अक्षर आ विद्यादिका इत आचॆ कट्टिन न्याको एरक्षितः मत्तेsपि शब्दादि भेद सद्भावात्” ऎम्ब श्रुति प्रकाशिका व्याख्यानदिन्द स्पष्ट अङ्ग प्रशस्ति परवागि गीता कक्कॆ श्री भाष्यकाररु व्याख्यान माडि, शरणागति गद्यरल्लि स्वतन्त्र प्रपत्ति पर वागि व्याख्यान माडिरुवुदरिन्द अकिञ्चनर विषयदल्लि प्रगतियु सर्वफलवन्नू साधिसि कॊड ऒल्लदॆन्दु निरूपिसिदन्तायितु

2

प्रपत्र स्वरूप विषयदल्लू इदर अनुष्ठान विषयदल्लियू भगवद्रामानुजर अर्वा चीनरल्लि विप्रतिपत्तिगळु तलॆदोरिवॆ अदागि सिद्योपायनाद भगवन्तने मोक्षपदनु. सम्बन्ध ज्ञानविद्दरॆ साकु, नावु अत्यन्त परतन्त्रराद्दरिन्द सिद्योवाय निष्ठरु याव उपायवन्नू अनुष्ठिसकूडदु, “पपश्च” (ब्रह्म सूत्र -2-34) ऎम्ब सूत्रभाष्यदल्लि अननोपायत्व शणात्” ऎन्दु भगवद्भाष्यकाररे हेळिरुवन्तॆ भगवन्तने आ पाय, बेरॆ उपायगळु बेकिल्ल निर्देक कृपॆयिन्दले मोक्षवु लभ्य इदरिन्द नावु यावुदन्नू अनुष्ठिसदॆ

  • ‘तसु सङ्कुलां कृत्वालङ्कां परचिलार्दनः ।
  • मान्न काकुत्र : तत्रस्य सदृशम्भवेत् ॥ -

` ऎम्ब सीतादेवियन्तॆ रक्षकावष्टम्भदल्लि विश्वासदिन्दिद्दरॆ साकु स्वरक्षणार्थ व्यापारवु बेकिल्ल. ( सम्भोगवे उद्देश, प्रपति ऎम्बुदु उपायान्तरवल्ल- प्रसर्विश्वासः, ऎन्दु भगवन्तनु रक्षि सुत्तानॆम्बुदरल्लि विश्वास मात्र पापानुष्ठानदल्लि अभिसन्धियु इल्लदॆ अन्दरॆ अभिसन्धि, विराम मात्रवु इरुवुदु साकु, प्रशस्तियु अनिवारण मात्र भगनन्तनु रक्षिसुवाग नावु तडॆयदॆ इद्दरॆ साकु, इत्यादि वारगळु हॊरटिवॆ इ

IX

ई अतिवादगळु भगवन्तन स्वातन्त्र, करुणॆ मत्तु सम्बन्ध ज्ञानगळिन्द उण्टादवु. इवुगळन्नु यधार्थवागि स्वीकरिसकूडदु सिद्धपायनाद भगवन्तने मोक्ष प्रदनॆम्बुद निर्विवाद आ भगवन्तनु स्वतन्त्रनू, समर्थनू, सहजकारुण्यशालियू आगिद्दरू अनादि कर्म प्रवाहगळॆम्ब पुण्यपावगळिन्द कूडिद चेतननन्नु, सर्वमुक्ति प्रसङ्गवू, वैषम्य नैर्तृग्यादि अन्दरॆ पक्षपात, कृपॆयिल्लदिरुवुदु ऎम्ब दोषगळुबारदॆ इरलु व्याजिसापेक्षक नागिये रक्षिसुत्तानॆम्बुदु सिद्धान्त, भक्ति प्रपत्तिगळु भगवन्तन निग्रहवन्नु शमिसि अनुग्रह वन्नु उण्टुमाडुत्तवॆ इवु प्रसादजनकवाद व्याजगळु, व्यवहित मोपायगळु. “मोक्षयिष्यामि” ऎन्दु सङ्कल्पिसुव भगवन्तने अव्यवहितवाद मोक्षपायभूतनु आश्रित रन्नु रक्षिसलु सिद्धनागिरुव उपाय. सिद्योपायनु सम्बन्ध ज्ञानादिगळु सहकारि कारणगळु अष्टे, सनन्धय प्रजॆगॆ (मगुविगॆ) तायियु ताने प्रीतियिन्द मॊलॆयन्नु कॊट्टरू सन्यवन्नु निगरण माडुव व्यापारवु मगुविगॆ सेरिदन्तॆ जीवनिगॆ भगवदधीनवाद स्वव्या पारवू सेरिये इदॆ ‘कर्ताशास्त्रार्थवाक् ऎम्ब सूत्रदल्लि जीवनिगॆ कर्तृत्ववु इदु परात् तच्चुतेः” निम्ब सूत्रद प्रकार भगवदधीन कर्तृत्व, करण कळेबर, बुद्धि, स्वातन्त्र्यादि प्रदानगळन्नु सृष्टिकालदल्लि भगवन्तनु ऎल्ला चेतनरिगू समानवागिये निर्हेतुक कृपॆयिन्दले कॊडुत्तानॆ. शरीरादि भेदवु कर्म निबन्धन. आत्म क्षेम संवादनॆयु अवरवर बुद्धधीन

వి

‘शरैस्तु सङ्कुलाङ्कृत्या” इत्यादि सीतॆयु स्वरक्षणार्थ व्यापारदल्लि तनगॆ याव अन्वयवू इल्लदॆ श्रीरामचन्द्रन करुणॆयन्ने ऎदुरु नोडत्तिद्दळॆम्बुदु, “दत्ता प्रजा जनकवत् तवदेशिकेन्द्र सत्याभिनन्दृ भवतारिणीयमानाः” ऎम्ब शरणागतिदीपिका (30) श्री सूक्तिय प्रकार, जनकनु तन्नन्नु श्री रामचन्द्रनिगॆ मदुवॆ माडिकॊट्ट नन्तर पति पारा र्थ्यदिन्द सीतॆयु हेळिद मातु. इल्लि विवाहवे शरणागति स्नानापन्न हागॆये आचाररुगळ मूलक आत्मरक्षा भरवन्नु भगवन्तनल्लि माडिद नन्तर प्रपन्ननु स्वरक्षणार्थदल्लि बेरॆ याव प्रयत्नवन्नू माडबेकिल्लवॆम्बुदु तात्परवे हॊरतु, उपायानुष्ठानवे बेकिल्लवॆन्दु अर्धवल्ल ई रीतियल्लि प्राचीनर श्री सूक्तिगळिगॆ अविरोधवन्नु अचाररे तोरिसिकॊट्ट रुवुदु गमनार्ह.

हीगॆ, “भुङ्केस्वभोग मखिलम्पति भोगशेष” ऎन्दु प्रधान फलित्ववु भगवन्तनि गादरू पतिभोग शेषवाद स्वभोगवु जीवनिगॆ सिद्धिसुत्तदॆ तन्न फलक्कागि ऎन्दु अनुसन्धान माड बारदु आनुषङ्गिकवाद फलवे इल्लवॆन्दरॆ, अचेतनत्ववु प्राप्तवागुत्तदॆ आद्दरिन्द बद्ध जीवनु मोक्षार्धवागि शरणागतियन्नु अनुष्ठिसले बेकु हागॆ शास्त्रवशनाद इवनिगॆ अनुष्ठानवु स्व रूप विरुद्धवल्ल. इवन ईश्वर पारतन्त्रक्कू विरोधवागलारदु. इदन्नु ऒप्पदिद्दरॆ अत्यन्त परतन्त्रनाद ई बद्ध जीवनु भोजनादि व्यापारगळन्नू माडदे इरबेकाद प्रसङ्गवु बरु इदॆ भगवन्तन शासन रूपवाद शास्त्र व्याकुलतॆयु एर्पडुत्तदॆ, वन्नु माडुवुदु दासन कर्तव्यवल्लवे,

शास्त्रविहित व्यापार

X

हागॆये “उपस” ऎम्ब सूत्र भाष्यदल्लि अननवायत्व श्रवणात्’ ऎन्दु हेळिरु वुदु सिद्धपाय विषय, मुन्दॆ “फलमत उपव” (4-2-37)ऎम्ब सूत्रभाष्यदल्लि, “सुवहि यागदान होमादिभिः उपासनेनच आराधितः ऐहिकामुत्मिक भोगजातं स्व स्वरूपाविर्भाव रूपमपवर्गञ्च दातुमीष्टे” ऎन्दु साद्योपाय दिन्द प्रीतनाद भगवन्तने फलप्रदनॆन्दु हेळिरुवुदु गमनार्ह इदु सिद्योपाय प्राधान्यतॆयन्नु पुष्टिकरिसि, साद्योवायद आवश्यकतॆयन्नू स्थिरीकरिसुत्तदॆयल्लवे

हीगॆ सम्प्रदायगळल्लि यथाश्रुतवागि तोरि बरुव अभिप्राय भेदगळन्नॆल्ला विवरिसि तात्पय्य वन्नु निरूपिसि, श्री भाष्यकारर शिष्य परम्परॆगळल्लि ऐकरस्यवन्ने आचाररु प्रतिपादिसिरुत्तारॆ,

इष्टं अर्थाविशेषेsपि योजनाभेद मात्रतः ।

प्राचां विवाद संवृत्त- भाष्यकारैरवारितः ॥ ऎम्ब आचार श्री सूक्तियु इल्लि अनुसन्धेय.

श्री भाष्यकाररु वेदार्थ सङ्ग्रहदल्लि “परम पुरुषचरणारविन्दयुगळ व्यस्ताताष्ट्रीयस्य, ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ. “भगवतिन्य, भरत्वमाह” ऎम्बुदु तात्पर दीपिकॆ

“दैवी

षागुणमयि मममाया दुरत्यया ?

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायावतां तरन्तिते !!”

ऎम्ब गीता श्लोकक्कॆ वाख्यानवागि, “तस्कृतस्यात्मनः कर्मकृत विचित्र गुणमय प्रकृति संसर्ग रूपात्मंसाराक्षॆ भगवत्पपश्चिमन्तरेण नोपपद्यते, इत्युक्तम्भवति नान्यः पन्था आय नाय विद्यते, इत्यादि श्रुतिभिश्च” ऎन्दु हेळिरुत्तारॆ वैकुण्ठ गद्यदल्लियू, “ताप्तये ता दा म्बुज द्वय प्रपत्तेरनन्नमेः कल्पकोटि सहणापि साधनमस्ति” ऎन्दू, तस्यचवशी करणं तच्चरणागतिरेव” ऎन्दु अनुमानिकाधिकरण (1-4-1) भाष्यदल्लि श्री भाष्यकाररु अनु

  • ग्रहिसिरुवुदन्नु प्रामाणिकरु अङ्गीकरिसबेकु

नावु प्रपत्तियन्नु ऒप्पुत्तेवॆ आ प्रपत्तियु त्वमेवोपायभूतोमे भवेति प्रार्धनामति-शरणागतिरितुक्ता” ऎन्दु भगवन्तने उपायवॆन्दिरुव बुद्दि मात्रवॆम्बुदु मत्तॊन्दुवाद ई श्लोकक्कॆ आरम्भदल्लि “अहमस्यॆ पराधानामालयोsकिञ्चनोगति” ऎन्दू कॊनॆयल्लि सादेवेस्मिन् प्रयुज्यतां” ऎम्ब विधिय, प्रार्थनामति-प्रार्थना रूपवाद बुद्धि विशेषवॆन्दू हेळिरुवुदन्नु गमनिसबेकु. इदु,

“आनन्य साध्यॆ स्वाभीष्टॆ महा विश्वास पूर्वकं ।

तदेको पायता याञ्चा प्रपत्तिश्चरणागतिः ?

ऎम्ब भरतमुनि प्रणीत शरणागति स्वरूपवन्नु निरूपिसुव वाक्यक्कॆ समानार्थक. अदागि तन्निन्द

XI

रक्षिसिकॊळ्ळलागद वस्तुवन्नु रक्षिसलु समर्थनादवनल्लि रक्षिसिकॊडु ऎन्दु प्रार्थिसि समर्पिसुवदु शरणागति ऎन्दु हेळिदॆयाद्दरिन्द, विधेयात्मकवाद स्वात्मरक्ष भरसमर्पण रूप पुरुष तन्त्र वाद ज्ञानविशेष. हीगॆ ऒप्पदिद्दरॆ, मायावादिगळु हेळुव अविधेय ज्ञानक्कॆ समानवागु

ई विषयगळन्नॆल्ला आचाररु ई ग्रन्थदल्लि विस्तारवागि निरूपिसिरुत्तारॆ

इदॆ

लक्ष्मिविभुत्व

चिदचिद्विशिष्ट ब्रह्मवु जगत्कारणवाद वस्तु. आ ब्रह्मवु, देवतान्तर व्यावृतवाद लक्ष्मि विशिष्ट नारायणनु उवापेयत्वगळु इब्बरिगू उण्टु. अन्दरॆ मोक्षवन्नु कॊडुववरू अवरिब्बरे मोक्षदल्लि प्रात्यभूतरू अवरिब्बरे ऎम्बुदु सिद्धान्त “श्रद्धॆया देवो देवत्वमश्नुते”, अशानाजगतो विष्णु पत्नि” ऎम्बिवे मॊदलाद श्रुतिगळु लक्ष्मि विशिष्ट नारायणनन्नु जगत्कारणनु ऎन्दु सारुत्तवॆ.

हीगिरुवाग लक्ष्मियु विभुवे, अणुवे,

जीकोटिगॆ सेरिदवळे, ईश्वर कोटिगॆ सेरिदवळे, इवळु मोक्ष प्रदळे, उपायभूतळे, अल्लवे इत्यादि विप्रतिपत्तिगळु अर्वाचीनरल्लि तलॆदोरिवॆ महालक्ष्मियु ब्रह्म शब्द वाच्य ऎम्बुदु (1) “युजेवां ब्रह्म पूर्व्य० नमोर्भिवि श्लोक एतु पधैवरे”, ऋक् संहितॆ (10-13-1) (2) इमां ब्रह्म सरस्वति जुषवाजिनीवति (सु. सं. 241-8) (3) मूल प्रकृति रेकासा पूर्ण ब्रह्म स्वरूपिणि (ब्रह्म वै, पु. 1-30-18) मूलप्रकृतिः – मूलप्रकत्यभिमानि देवता इत्यादि प्रमाणगळिन्द सिद्ध इदरिन्द लक्ष्मियु ईश्वर कोटिगॆ सेरिदवळु इवळु नारायणनिगॆ पतिपत्नि भावदिन्द नेच्छॆयिन्द अधीनळु विशेषगळु लक्ष्मीविशिष्टनारायणनु ब्रह्म शब्द वाच्यनु “व्यावकावति संश्लेषादेक तत्वमिवोदि”, ऎन्दु भगवन्तनिगॆ अप्पथक्कूत शेष भूतळु लक्ष्मि, सद्विशिष्टवाद परतत्ववु “ब्रह्मात"वॆन्दु हेळल्पडुत्तदॆ. अन्दरॆ इब्बरू सेरि एकतत्ववॆन्नुवन्तॆ, इरुत्तारॆ. ‘कामवु मृतॆन्दुहाना” ऎन्दू, “विमुक्तिफलदायिनी” ऎम्बुदू लक्ष्मियु मोक्ष प्रदळु ऎम्बुदक्कॆ प्रमाणगळु, दायिनी” ऎम्बल्लि ताणिनि प्रत्यय, दायिनी कॊडुव स्वभावळु ऎन्दु

ऎन्दु अर्थ कॊडिसुववळन्नू कॊडुववळॆन्दु औपचारिकवागि हेळबहुदादरॆ, “दापिनी” ऎन्दिरबेकु

वाचि

“यधा सर्वगतो विष्णुः तथैवेयन्द्विजोत्तम” ऎम्ब विष्णु पुराण वचनवु लक्ष्मियु भगवन्तन हागॆ विभु (सर्वगतॆ) स्वरूप ऎन्दु हेळुत्तदॆ. यथा तथा ऎम्ब शब्दगळु प्रकार विष्णुवु विभुवागि सर्वगतनागिरुवन्तॆ इवळू विभु स्वरूप ऎन्दु हेळिदरेने यथा तथा शब्दगळु स्वरसवागुत्तवॆ. इवळु धर्म भूतज्ञानदिन्द विभुस्वरूपळु. स्वरूपदल्लि अणु, ऎन्दु हेळुवुदक्कॆ मूल प्रमाणविल्ल भगवन्तन हागॆ उपायभूतॆय प्रात्य भूतॆय आद लक्ष्मिगॆ पुरुषकारत्ववु हॆच्चिनदु.

X11

द्वयमन्त्रद उत्तर खण्डदल्लि ‘श्रीमते ऎन्दु श्री विशिष्टनु उपेयवॆन्दरॆ पूर्व खण्डदल्लि ‘श्रीमत्’ शब्दक्कॆ श्री विशिष्टने उपायवॆन्दु हेळुवुदु स्वरसवल्लवे ई अर्धगळन्नॆल्ला चाररु ई ग्रन्थदल्लि अल्लल्ले निरूपिसिरुत्तारॆ

पुरुषार्थ विचार

परम पददल्लि लक्ष्मि विशिष्ट नारायणनन्नु अर्चिरादि मार्गवागि पडॆदु अवनन्नु अनुभविसि, अनुभवपरिवाहवाद कैङ्करवन्नु माडुवुदे परमपुरुषार्धवॆन्दु आचाररु व्यवस्थॆगॊळिसिद्दारॆ जीव ब्रह्म क्यवे मोक्षवॆम्ब अदैत मतवन्नू जीव ब्रह्मरिगॆ मोक्ष दल्लि आनन्द तारतम्यवन्नु हेळुव दैतपक्षवन्नू निराकरिसि, “भोगमात्र साम्यलिङ्गाच्च”, जगद्वा पारवर्जं’ इत्यादि ब्रह्मसूत्रगळन्नु अनुसरिसि “भजति परमंसाम्यं भोगे निवृत्ति कज्जितम्’, ऎन्दु पुनरावर्तियिल्लदॆ परिपूर्ण ब्रह्मासुभवरूप भोगदल्लि परम साम्यवु, ऎन्दु आचाररु निगमिसिद्दारॆ

निगमन

हीगॆ श्रीमन्निगमान्त महादेशिकरवरु अनुग्रहिसिरुव रहस्यत्रयसारवॆम्ब ग्रन्थ रत्नक्कॆ अनपेक्षितार्थ विस्तारविल्लदॆ, अपेक्षितार्थ सङ्क्षेपवू इल्लदॆ, पूर्वाचाररुगळ व्याख्यानगळ आधा कद मेलॆय, सत्यप्रदायागत समीचीन शास्त्रार्दोपदेशादि आधारद मेलॆयू, श्रीर्मा सरगूरु माडभूषणं कृष्णमाचाररु आस्तिक लोकोपकारक्कागि ‘सार चन्द्रिका’ ऎम्ब वाख्यानवन्नु कन्नड भाषॆयल्लि बरॆदिरुवुदु बहळ श्लाघनीय प्रतीकवागि आचाररु ऎत्ति तोरि सिरुव प्रमाण वचनगळन्नु पूर्णवागि बरॆदु मुद्रिसि, आकरवन्नु कॊट्टु, अर्थवन्नू बरॆ दिरुवुदु ओदुगरिगॆ बहळ उवकारवागिदॆ. प्रति अधिकारदल्लियू विषयगळन्नु विङ्गडिसि, शीर्षिकॆ यन्नु कॊट्टु, सङ्गतिगळन्नु बरॆदिरुवुदू बहळ समर्पकवागिदॆ, इवरु संस्कृत द्राविडात्मक उभय भाषॆगळल्लि चन्नागि परिचय हॊन्दि उभय वेदान्तगळल्लि निष्णातरु. इवरु केन्द्र सत्कारदल्लि उन्नत उद्योगदल्लिद्दु निवृत्तरादवरु. हिन्दॆ प्रख्यातरागि, नम्म आचारवरराद श्रीमदभिनव रङ्गनाथ ब्रह्म तन्त्र स्वतन्त्र परकाल स्वामिगळवर कृपाकटाक्षक्कॆ परिपूर्ण पात्ररादवरु श्री सन्निधियल्लि हत्तारु वर्षगळ काल वेद प्रबन्धगळन्नु अध्ययन माडिरुत्तारॆ. स्वाचाररल्लि साम्प्रदायिक ग्रन्थगळन्नू उपयुक्त भागगळन्नू आधिकरिसि, “बहुदृति शो तव्यं बहुधा तव्यं” ऎम्बन्तॆ श्री श्री स्वामिगळल्लू इन्नू अनेक वेदान्त विद्वांसरुगळ हत्तिरवू आगाग्गॆ वेदान्त विचार माडि संशयगळन्नु निवर्तिसिकॊण्डु, अनवरत परिश्रम पट्टु वेदान्त ज्ञान निष्णातरागि ई ग्रन्थ रत्नवन्नु सवाख्यान प्रकाश पडिसिरुत्तारॆ. ई ग्रन्थ रत्नवु सकल सम्प्रदायार्थगळन्नू ऒळगॊण्डिदॆ. सत्वरिगू उपादेय, आस्तिकरॆल्लरू सङ्केत पिशाचिकॆयन्नु दूरतळ्ळि, आयाया प्रदेशगळल्लिरुव समर्धज्ञानिगळल्लि मूल ग्रन्धवन्नु काल

xin

क्षेप माडि अनन्तर ई वाख्यान ग्रन्थवन्नु ओदि विशदवाद ज्ञानवन्नु हॊन्दि वरम पुरुषार्थ साधनवाद शरणागतियन्नु अनुष्ठिसि, तारा शाश्वतवाद सुखवन्नु पडॆयलि ऎन्दु नावु सर्वज्ञ सर्वशक्त परमकारुणिकनाद श्री लक्ष्मि हयग्रीवनन्नु प्रार्थिसुत्तेवॆ. हागॆये ई ग्रन्थ कर्तरु श्री मन्निगमान्त महादेशिकन्‌रवरु अनुग्रहिसिरुव चिल्लरॆ रहस्य ग्रन्थगळे आदियागि इतॆर सम्प्रदाय ग्रन्थगळन्नू प्रचुरपडिसि नम्म विशिष्टाद्रॆ त सिद्धान्तवन्नु सर्वतोमुख वागि हरडलि ऎन्दु आशिसुत्तेवॆ.

श्री श्री परकाल स्वामिगळ नियमानुसारि व्याकरण वेदान्तॆ विर्द्वा विद्वन्मणि, आस्थान विद्वान् सरगूरु श्रीनिवास वरदाचार-

इति नारायण स्मृतयः

v2

श्री लक्ष्मी हॆयमदन लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः श्रीब्रह्मतन्त्र स्पतन्त्र परकाल मठॆ Camp. बॆङ्गळूरु अनुग्रह श्रीमुख 6-1-1991 प्रकाशनगर बॆङ्गळूरु

21रल्लिरुव त्री नैष्णवसभॆयनरु त्री मन्निगमान्त महाजेशिक स्न ्रैणेत वाद श्रीमद्रहस्यत्रयसारद. द्वितीय भागनन्नु सव्याख्यान अच्चिट्टु त्री हयग्रीनन सन्नि धानदल्लि समर्पिसि शी हयग्रीवन सम्पूर्ण अनुग्रहवन्नु सडिदिद्दारॆन्दु तिळिसलु बहळ सन्तोष पडुत्तेनॆ. आस्तिकरॆल्लरू नञ्जि बन्दु ई श्री कोशवन्नु तॆगॆदुकॊण्डु सदाचार्य सकाशदल्लि कालक्षेस माडि, नम्म पूर्नाचार्यरुगळ मत्तु. श्रीमन्निगमान्त. मुहादेशिकरनर कृपॆगॆ पात्ररागि आत्कोज्मिीीननवन्नु सडॆयलॆन्दु- हाक्ससुत्तेवॆ. ई ग्रन्थक्कॆ व्याख्यानवन्नु बकिदु ग्रन्थवन्नु अच्चिट्टि स. मा. कृष्ण माचार्यरवरिगॆ श्री लक्ष्मी हयग्रीवनु आयुरारोग्य श्वर्यादिगळन्नु कॊट्टु कापाडलि, मेलू इदे रीति यागि. श्री मन्निगमान्त महादेशिकरवर इतर , चिल्लरॆ रहस्य ग्रन्थगळन्नू आच्चिट्टु श्री वैष्णन जन सेनॆयन्नु माडलि, ऎन्दु. श्री हॆयगि सीवनन्नु प्ला र्थिसि अनुग्रहिसिद श्रीमुख. प्रमोजसं श्री लक्ष्मीहयग्रीव प्रसीदतु मार्ग (ई । अभिनवरामनुज ब्रह्मतन्त्रॆ ऐट्रकळङ्गळ्‌ । KX स्वामिगळु » । श्री ब्रह्मॆतन्त्र सरकाल मठ मैसू रु

श्रीमते हयग्रीवायनम नमः । श्रीमते लक्ष्मी नरसिंह सरब्रह्मणे नमः । श्री सराङ्कुश परकाल यतिनरादिभ्योनमः