मूलम्
श्री:
श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः
सीरार् तूप्पुल् तिरुवेङ्गडमुडैयाऩ् तिरुवडिगळे सरणम्
॥ निगमनाधिकारश्चतुर्विंशः ॥
(इरुबत्ति नालावदु निगमऩादिगारम्)
(लोगायादिग मद निरसऩ सङ्गिरहम् - मात्यमिग मद निरसऩ सङ्ग्र हम् - योगासार मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - सौत्रान्दिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - वैबाषिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - प्रच्चऩ्ऩ पौत्त मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - जैन मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - पास्कर मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - वैयागरण मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - वैसेषिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - नैयायिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - निरीच्वामीमांसग मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - साङ्ग्य पक्ष निरसऩ सङ्ग्रहम् - योगसित्तान्द निरसऩ सङ्ग्रहम् - पासुबद मद निरसऩ सङ्ग्रहम् - पाञ्जरात्र प्रामाण्य निरूबण सङ्ग्रहम् - इऩि उण्डागक् कूडिय मद निरसऩ अङ्गीगार क्रम निरूबणम् )
माऩङ्गळिऩ्ऱि वगुत्तुरैक्किऩ्ऱ मदङ्गळॆल्लाम् *
ताऩङ्गळऩ्ऱु तरुमनॆऱिक्कॆऩ्ऱु साऱ्ऱियबिऩ्
वाऩङ्गवर्न्दु मऱैमुडि सूडिय मादवत्तोर् *
ञाऩङ्गळॊऩ्ऱ नडक्किऩ्ऱ नल्वऴि नाडुवमे। ५०
टीका
- (प-रै) माऩङ्गळ् - प्रमाणङ्गळ्, इऩ्ऱि - इल्लामल्, वगुत्तु- तङ्गळ् इष्ट प्रगारम् कट्टि, उरैक्किऩ्ऱ- सॊल्लुगिऩ्ऱ, मदङ्गळ् ऎल्लाम् - ऎल्ला मदङ्गळुम्, तरुम नॆऱिक्कु- तर्म मार्क्कत्तिऱ्कु, ताऩङ्गळ् अऩ्ऱु - इडमल्ल ऎऩ्ऱु, साऱ्ऱियबिऩ् - कूऱिय पिऱगु, वाऩम् - श्री वैगुण्डत्तै। कवर्न्दु - आसैप्पट्टु, मऱैमुडि - वेदान्दत्तै, सूडिय - सिरसा तरित्त, मादवत्तोर् - पॆरिय तवत्तैयुडैयवर्गळ् अदावदु प्रबत्तियै अऩुष्टित्तवर्गळ्, ञाऩङ्गळ् ऒऩ्ऱ - सास्तिरङ्गळुक्कुळ् माऱुबाडिल्लामल् ऒरे विदमायिरुक्कुम्बडि, नडक्किऩ्ऱ, नल्वऴि - नल्ल मार्क्कत्तै नाडुवम्। ५०
मूलम्
(लोगायदिग मद निरसऩ सङ्गिरहम्)
१ ‘ तमोनिष्टाहि ते स्मृता:’
( तमो निष्टाहि ते स्म्रुदा )
ऎऩ्ऱु मनु सॊऩ्ऩ बाह्यकुदृष्टि रूप परमतङ्गळिल् प्रत्यक्षमे प्रमाण मॆऩ्गिऱ लोकायतमतम् प्रत्यक्षम् पोले अनुमान आगमङ्गळुम् प्रतीतियै जनिपिक्कक् काण्गैयालुम् इवऱ्ऱिऱ्कु बाधकम् काणामैयालुम् चार्वाकऩ् ताऩुम् अनुमानङ्गळैयुम् आप्त वाक्यङ्गळैयुम् कॊण्डु निश्शङ्क प्रवृत्तिकळ् पण्णक् काण्गैयालुम् नित्यमाऩ वेदागमत्तिल् कारण तोषम् सॊल्ल विरगिल्लामैयालुम् अतीन्द्रियार्थङ्गळिल् प्रत्यक्ष बाधं सॊल्लवॊण्णामैयालुम् निरस्तमाय्त्तु।
(मात्यमिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
चतुर्विधमाऩ बौद्ध सिद्धान्तत्तिल् सर्व शून्यत्वम् सॊल्लुगिऱ माध्यमिक पक्षम् स्वपक्षस्थापक प्रमाण पारमार्थ्यम् कॊळ्ळामैयालुम् उपपादित्त अर्थंतऩ्ऩैयुम् ताऩे शून्यमॆऩ्गैयालुम् इदुदऩ्ऩाले परपक्षम् प्रतिष्टितमागैयालुम् प्रतिक्षिप्तमायिऱ्ऱु।
(योगासार मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
ज्ञानम् ऒऩ्ऱुमेयुळ्ळदु ज्ञातृ ज्ञेयङ्गळ् ज्ञानत्तिले कल्पिताकारङ्गळॆऩ्गिऱ योगाचार पक्षम् इदमहं जानामि ऎऩ्ऱु एक ज्ञानत्ताले प्रकाशिक्किऱ वस्तु त्रयत्तिल् कुतर्क मात्रत्तैक् कॊण्डु इरण्डैक् कऴिक्कप्पार्त्ताल् माध्यमिक तर्कत्ताले ज्ञानत्तैयुम् अपह्नविक्कप् प्रसङ्गिक्कैयालुम् उपलम्भ बलत्ताले ज्ञानत्तै इसैयिल् अप्पडिये ज्ञातृ ज्ञेयङ्गळैयुम् कॊळ्ळवेण्डुगैयालुम् निराकृतमाय्त्तु ।
मूलम्
(सौत्रान्दिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
ज्ञातावैक् कऴित्तु ज्ञान ज्ञेयङ्गळिरण्डैयुम् कॊण्डु ज्ञेयत्तै ज्ञानाकारत्ताले अनुमेयमॆऩ्गिऱ सौत्रान्तिक पक्षम् ज्ञानाकारव्यतिरिक्तमाग नीलपीताद्यर्थाकारं सर्व लोकोपलंभ सिद्धमागैयाले इत्तै उपपत्ति विशेषङ्गळाले ज्ञानाकारम् ऎऩ्ऱु पार्त्ताल् इत्तैक्कॊण्डु अर्थाकारम् अनुमिक्क वॊण्णामैयालुम् नील ज्ञान सन्तानत्तिल् पीतज्ञानोदयम् अर्थ विशेष निरपेक्षमाग स्वप्नादि न्यायत्ताले योगाचारऩ् सॊल्लुगिऱबडिये अनादि वासना वशत्ताले इवऩुक्कु निर्वहिक्क प्राप्तमागैयालुम् निश्शेषित मायिऱ्ऱु।
(वैबाषिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
इवऩैप्पोले ज्ञान ज्ञेयङ्गळ् इरण्डैयुम् कॊण्डु ज्ञेयत्तै प्रत्यक्षमॆऩ्गिऱ वैभाषिक पक्षमुम् सविगल्बमॆल्लाम् प्रमाणमऩ्ऱु ऎऩ्गैयालुम् विकल्पसिद्ध स्थूलतद्धर्मङ्गळै मिथ्याभूतकळॆऩ्गैयालुम् इवऱ्ऱैक्कॊण्डु परमाण्वनुमानमे पण्णिक्कॊळ्ळ विर किल्लामैयालुम् मुडिविल् योगाचारऩ् सॊल्लुगिऱबडिये अर्थापलापमे प्रसङ्गिक्कैयालुम् इम् मूऩ्ऱु बौद्धर्गळुम् स्वाभ्युपगत वस्तुक्कळुक्कॆल्लाम् क्षणिकत्वम् कॊळ्ळुगैयाले जगत्तिल् ऒरु स्मृति प्रत्यभिज्ञैकळुमिऩ्ऱिक्के यॊऴिय प्रसङ्गिक्कैयालुम् अन्य सुकतादिफलङ्गळुक्कुम् अनन्यऩ् भोक्तावाय् मुडिगैयालुम् अवधूतमायिऱ्ऱु।
(प्रच्चऩ्ऩ पौत्त मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
बौद्धर्कळिल् योगाचारऩैप्पोले ज्ञानव्यतिरिक्तमॆल्लाम् मिथ्या भूतमॆऩ्ऱु कॊण्डु ज्ञानत्तुक्कु एकत्व नित्यत्वङ्गळैक् कॊण्ड प्रच्छन्न बौद्धन् पक्षमुम् योगाचारऩ् सॊऩ्ऩ बहुत्व क्षणिकत्वङ्गळैप्पोले इवऩ् ताऩ् सॊल्लुगिऱ एकत्व नित्यत्व धर्मङ्गळुम् मिथ्या भूतङ्गळॆऩ्गैयालुम् बौद्धागमादिकळैप्पोले
मूलम्
ताऩ् प्रमाणमाग उदाहरिक्किऱ वेदं ताऩुम् भ्रान्ति सिद्ध प्रमाणमॆऩ्गैयालुम् भेदनिराकरणम् पण्णुगैयाले स्वपक्ष परपक्ष विभागम् सॊल्ल विर किल्लामैयालुम् नित्य निर्विशेष स्वप्रकार ब्रह्मत्तुक्कु अनिर्वचनीय अविद्यातिरोधानादिकळ् सॊल्लुगै अनुपपन्नमागैयालुम् निर्विशेष सद्भावत्तुक्कुम् प्रपञ्च मिथ्यात्वादिकळुक्कुम् प्रमाणोपपत्तिकळिल्लामैयालुम् बाधक प्रमाणोपपत्तिकळुण्डागैयालुम् निर्मूलमायिऱ्ऱु।
(जैन मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
इप् प्रच्छन्न प्रकट बौद्धर्गळैप्पोले वेद प्रामाण्यत्तैयिसैयादे सर्वज्ञऩाग ऒरुवऩै भ्रमित्तु अवऩ् वाक्यत्तैप् प्रमाणमागक् कॊण्ड जैऩ सिद्धान्तमुम् सौगत सर्वज्ञ प्रतिबन्दियै निस्तरिक्क वॊण्णामैयालुम् प्रत्यक्षादि विरुद्धमाग सप्तभंग्यादिकळैच् चॊल्लुगैयालुम् वेद विरुद्धाचारादि परिग्रहम् पण्णुगैयालुम् बहिष्कृतमायिऱ्ऱु।
(पास्कर मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
अनेकान्तवादिकळाऩ जैनरैप्पोले गुण गुणि जाति व्यत्तयादिकळुक्कु भेदाभेदम् कॊळ्ळुगिऱ भास्करादि पक्षङ्गळुम् परस्पर विरुद्धार्थ प्रलापबहुलम् आगैयालुम् नित्य निर्दोष निरव्यव ब्रह्म तत्त्वत्तुक्कु औपाधिकांशङ्गळिलेयादल् स्वाभाविकांशङ्गळिलेयादल् अनन्य दोषङ्गळै अङ्गीगरिक्कैयालुम् अर्ध जैन पक्षङ्गळॆऩ्ऱु अनादृतङ्गळाय्त्तु ।
(वैयागरण मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
बौद्ध गंधि वेदान्तिकळ् बौद्धमात्र विवर्त प्रपञ्च ऎऩ्ऱु सॊल्लुमाप्पोलवुम् जैनगन्धि वेदान्तिकळ् परब्रह्म परिणामम् प्रपञ्चमॆऩ्ऱु सॊल्लुमाप्पोलवुम् शब्द ब्रह्म विवर्त परिणामङ्गळैक् कॊळ्ळुवार् पक्षमुम् पूर्वोक्त क्रमत्ताले दूषितमागैयालुम् स्फोटमॆऩ्ऱु ऒरु तत्वम् कट्टिऩदु प्रमाण उपपत्ति शून्यमागैयालुम् वर्णसंघात विशेषमाऩ
मूलम्
पदत्तिलुम् पद संघात विशेषमाऩ वाक्यत्तिलुम् सॊऩ्ऩ बोधकत्वानुपपत्ति स्फोट पक्षम् तऩ्ऩिलुम् वरुगैयालुम् स्पुटीकृतदोषमायिऱ्ऱु।
(वैसेषिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
चार्वाक बौद्ध आर्हतर्गळैप्पोले वेदङ्गळैप् पौरुषेयङ्गळाक्कि आगमम् तऩ्ऩैयुम् अनुमान पक्षत्तिले अनुप्रवेशिप्पित्त वैशेषिक वादमुम् निपुण निरूपणत्तिल् स्वाभिमत वेद प्रामाण्य विरुद्धमागैयालुम् वेदोक्त प्रकृति महदादि तत्वङ्गळैक् कऴिक्कैयालुम् प्रमाण विरुद्ध अवयव्यादिकळै अङ्गीगरिक्कैयालुम् अनुमाऩ आभासङ्गळैक् कॊण्डु कट्टुम् अर्थङ्गळॆल्लाम् आपातमात्र रमणीयमाग निऱ्कैयालुम् अर्घ वैनाशिक पक्षमॆऩ्ऱु अधिक्षिप्तमायिऱ्ऱु।
(नैयायिग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
इन्द वैशेषिकर् सॊल्लुमर्त्तङ्गळैच् चुरुक्क मॊऴिय स्वीकरित्त नैयायिक दर्शनमुम् वैशेषिक निराकरणम् तऩ्ऩाले दत्तोत्तरमागैयालुम् वेदपरिकरङ्गळाऩ धर्म विद्यास्थानङ्गळ् पत्तिल् ऒऩ्ऱाऩ न्याय विस्तर शास्त्रत्तै वेदानुगुणमाग ऎङ्गुम् योजियामैयालुम् निराकार्यपक्षत्तिले निक्षिप्तमायिऱ्ऱु।
(निरीच्वर मीमांसग मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
वेद परिकरमाऩ न्याय शास्त्रत्तिले वेद विरुद्ध अर्थङ्गळै निवेशिप्पित्त वैशेषिक भक्तर्गळैप्पोले विंशतिलक्षण मीमांसा शास्त्रत्तिल् कर्म भाज मात्रत्तैप्पऱ्ऱिऩ कबन्ध मीमांसाकरिल् कौमारिलर् जैनोक्त भेदाभेदादिकळै स्वीकरिक्कैयालुम् प्राभाकरर् वैशेषिकोक्त पाषाण कल्प मोक्षादिकळैप् परिग्रहिक्कैयालुम् इवरुम् अवयविवादादिकळै अङ्गीकरिक्कैयालुम् अप्रामाणिक अपूर्व तद्वाच्यत्वादिकळैक् कल्बित्तु आगम सिद्ध देवता विग्रहादि निराकरणं पण्णुगैयालुम् इवर्गळ् पक्षम् अर्धलोकायतम् ऎऩ्ऱु अवधीरितमायिऱ्ऱु।
मूलम्
(साङ्ग्य पक्ष निरसऩ सङ्ग्रहम्)
इन् निरीश्वर मीमांसकरैप् पोले नित्य वेद प्रामाण्यत्तै इसैन्दु वेदोक्तऩाऩ ईच्वरऩै अपह्नविक्किऱ सांख्य पक्षमुम् प्रकृतियै गुणत्रय समुदायमॆऩ्गैयालुम् गुणङ्गळ् तऩ्ऩै द्रव्यङ्गळॆऩ्गैयालुम् प्रत्यक्षादि विरुद्ध अभिव्यक्तिवादम् पण्णुगैयालुम् आत्मावुक्कुत् ताङ्गळ् सॊऩ्ऩ ज्ञातृत्व कर्तृत्व बन्धमोक्षङ्गळैक् कऴित्तुत् ताङ्गळे प्रकृतिक्कु इवऱ्ऱैच् चॊल्लुगैयालुम्, मऱ्ऱुम् परस्पर विरुद्ध अनेकार्थ प्रलापत्तालुम् ईश्वरापह्नव रूपप्रधानतमदोषत्तालुम् विषमिश्रान्नंपोले उपजीव्यसद्भावंउण्डायिरुक्क उबेक्षिदमायिऱ्ऱु।
(योगसित्तान्द निरसऩ सङ्ग्रहम्)
सांख्यर् सॊल्लुम् तत्व प्रक्रियैयिले निऩ्ऱु ईश्वरऩ् ऎऩ्ऱॊरु पुरुष विशेषत्तैयुम् कट्टिऩ योग सिद्धान्तमुम् ईच्वरऩै निमित्तमात्र मॆऩ्गैयालुम् इवऩुडैय ऐश्वर्यत्तै प्रतिफलनकल्पम् ऎऩ्गैयालुम् यमनियमादिकळै यथाक्रमं वगुत्तुच् चॊल्लच् चॆय्दे अपवर्ग तत्साधन स्वरूपङ्गळै अन्यथावाग निर्वहिक्कैयालुम् लक्ष्य वेधानर्ह धानुष्क वल्गितम्बोले अपहसितमायिऱ्ऱु
(पासुबद मद निरसऩ सङ्ग्रहम्)
इन्द योग सिद्धान्तम् पोले प्रकृति पुरुष ईश्वरर्गळैप् पऱ्ऱि वगुत्त पाशुपत मतमुम् ईश्वरऩुडैय उपादान क्रमत्तैयऱियादे राजराष्ट्र मात्र न्यायत्तैक् कॊळ्ळुगैयालुम् परावर तत्व व्यत्ययम् पण्णुगैयालुम् अनपेक्षित तत्त्वान्तरङ्गळैक्कट्टि षट् त्रिंशत् तत्वङ्गळॆऩ्ऱु संग्रहिक्कैयालुम् वेद विरुद्धाचार भूयिष्टमागैयालुम्
१ ’ शैवान् पाशुपतान् स्पृष्टवा ’
(सैवान् पासुबदान् स्प्रुष्ट्वा )
टीका
१। सैवर्गळैयुम् पासुबदर्गळैयुम् तॊट्टाल्,
मूलम्
इत्यादिकळिऱ्पडिये तन्निष्टरै स्पर्शित्ताल् सचेलस्नानम् पण्ण वेण्डुम्बडि दूरपरित्यक्तमायिऱ्ऱु।
(पाञ्जरात्रप्रामाण्य निरूबण सङ्ग्रगम्)
इस् साङ्ग्य योग पासुबदङ्गळोडु ऒरु कोर्वैयाग ऎण्णिऩ श्री पाञ्जरात्रत्तै इवै पोले विरुद्ध व्यामिश्रमॆऩ्ऱु सिलर् सॊल्लुमदुम् मतान्तर समभिव्याहार मात्रत्तैक्कॊण्डु श्ङ्किक्किल् वेदान्दम् तऩ्ऩिलुम् आतिशङ्कै पण्ण प्रसंगिक्कैयालुम् इच्चास्त्रत्तिल् वेदनिन्दै पण्णित्ताग प्रतिभातिक्कुमिडम् अनुदित होम निन्दादि न्यायत्ताले अन्य परमागैयालुम् इदिल् जीवोत्पत्त्यादि वादं जीवाद्यभिमानि सङ्कर्षणादि व्यूह विषयमागैयालुम् अनुष्टान विशेषङ्गळुम् कल्पसूत्र गुणधर्मभेद न्यायत्ताले निर्व्यूढमागैयालुम् इदु महा भारतादि परिगृहीत प्रामाण्यातिशयत्तैयु मुडैत्तागैयालुम् औपनिषद परमपुरुष तदुपासन तत्प्राप्तयादिकळै इच् चास्तिरत्तिल् प्रधानमाग प्रतिपादिक्कैयालुम् इदऱ्कु विरुद्ध व्यमिश्रत्वारोपमात्रमे ऎऩ्ऱु व्यङ्जितमायिऱ्ऱु।
[ इऩि उण्डागक् कूडिय मद निरसऩ / अङ्गीगार क्रम निरूबणम् )
इप्पडि लोगायदिग माध्यमिक योगासार सौत्रान्दिग वैबाषिग मायावादि जैऩ भास्करीय यादव प्रकाशीय वैयागरण वैसेषिग नैयायिग कॆळमारिल प्राभाकर काबिल हैरण्य कर्ब पासुबदरूब परिदृश्यमान परमद (परमत) ङ्गळै प्रदिक्षेबित्तालुम् तेस कालान्दरङ्गळिले अस्मदविदित सिद्धान्तङ्गळ् उण्डागक्कूडुमॆऩ्ऩुम् अतिशङ्कैक्कुप् परिहारम् ऎऩ्ऩ? ऎऩ्ऩिल्, अवऱ्ऱिलुम् निरस्त तुल्यमाऩ भागं दत्तोत्तरम्।
सिद्धान्त तुल्यमाऩ भागं दूषिक्क वेण्डुवदिल्लैयागैयाले प्रमाण तर्काभास मूलङ्गळाऩ भूत भवत् भाविपरमतङ्गळॆल्लाम् पतनपर्यन्तङ्गळामॆऩ्ऱु परामर्शित्तु भेदश्रुतिकळाले चित् अचित् ईच्वर तत्वङ्गळै विवेगित्तु घटक श्रुति सिद्ध संबन्ध विशेषत्ताले अभेद श्रुतिकळै विशिष्टैक्य विषयत्तिले मुख्यवृत्तिकळाक्कि
मूलम्
निलै निऱुत्ति त्याज्योपादेय विशेषनिष्कर्षत्ताले मुमुक्ष वाऩवऩुक्कु संयक् न्याय अनुगृहीत सोप बृहमण वेदन विशेष विधि वाक्यसिद्ध माय् वैदिकाग्रेसर मनुपराशर पाराशर्य शुक शौनक नाथ यामुन श्रीमद्रामानुजादि मुनिवर सार्धसञ्चार समीकृत सन्मार्गमे परिग्राह्यम्।
१ ’ तर्कोऽप्रतिष्ट:’
( तर्गो प्रदिष्टिद:)
ऎऩ्गिऱ श्लोकत्तिलुम् केवल तर्कङ्गळ् अर्थ निर्णय कारणमल्लामैयालुम् अल्प श्रुतर्क्कु सर्वाविरुद्ध सम्यगर्थ निर्धारण सामर्थ्यमिल्लामैयालुम् सकल दुरित रोग भेषज स्वाक्य मन्वादि महत्तरजन महापथत्ताले गन्तव्यमॆऩ्ऱु निगमितमायिऱ्ऱु।
तऩ्ऩडिक्कीऴुल केऴैयुम् वैत्त तऩित्तिरुमाल्
पॊऩ्ऩडिक् केऱ्किऩ्ऱ पुण्णियर् केण्मिऩ्
पुगलऱिवार् मुऩ्ऩडिबार्त्तु मुयलुदलालवर् सायैयॆऩप्*
पिऩ्ऩडिबार्त्तु नडन्दु पॆरुम्बदमेऱुवमे। ५१
टीका
- [प। रै] तऩ्ऩडिक् कीऴ् - तऩ्ऩुडैय तिरुवडियिऩ् कीऴे, उलगेऴैयुम् वैत्त - एऴु लोगत्तैयुम् वैत्त अदावदु अवैगळै आळुमवऩाऩ, तऩि - अत्विदीयमाऩ, तिरुमाल् - च्रिय:पदियाऩ पगवाऩ्, पॊऩ्ऩडिक्कु - सप्रुहणीयमाऩ तिरुवडिगळै अऩुबविक्क, एऱ्किऩ्ऱ - उरिमैयुळ्ळ, पुण्णियर् - पुण्णियसालिगळे!, केण्मिऩ् - केळुङ्गळ्। पुगल् - उबायत्तिऩ् स्वरूबत्तै, अऱिवार् - अऱिन्द नम् पूर्वासार्यर्गळ्, मुऩ् अडि पार्त्तु - (अवर्गळ्) पॆरियोर्गळ् नडन्द वऴियैप् पिऩ्बऱ्ऱि, मुयलुदलाल् - अदऩ्बडिये नडक्किऱ पडियिऩाल्, अवर् - अवरुडैय, पिऩ् सायै - निऴल्, ऎऩ - ऎऩ्ऩुम्बडि, अडि पार्त्तु - नडन्द वऴियैप् पार्त्तु, नडन्दु, पॆरुम्बदम् - उयर्न्द पदमाऩ परमबदत्तै, एऱुवम् - अडैवोम्। ५१ १। ८८ आम् पक्कम् पार्क्क
मूलम्
- वैयमॆल्लामिरुळ् नीक्कुम् मणिविळक्काय्
मऩ्ऩिय नाऩ्मऱै मॆळलिमदिये कॊण्डु*
मॆय्यलदु विळम्बाद वियासऩ् काट्टुम्
विलक्किल्ला नल्वऴिये विरैन्दु सॆल्वीर्*
ऐयमऱ अऱुसमयक्कुऱुम्बऱुत्तोम्
अणियरङ्गर् अडियवर्क्के अडिमैसॆय्दोम् *
मैयगडल् वट्टत्तुळ् मऱ्ऱुम् तोऱ्ऱुम्
वादियर् तम् वाय्प्पगट्टै माऱ्ऱिऩोमे। ५२
टीका
*(प-रै) ऐयम् - सन्देहम्, अऱ - इल्लामल्, अऱुसमय- आऱु मदङ्गळिऩ्, कुऱुम्बु - वलिमैयै, अऱुत्तोम् - पोक्कडित्तोम्, अणियरङ्गर् - श्री रङ्ग नादऩुडैय, अडियवर्क्के - तास पूदर्क्के, अडिमै सॆय्दोम् - कैङ्गर्यम् सॆय्दोम्, मैय कडल् वट्टत्तुळ् - मैबोऩ्ऱ करु वर्णमुडैय समुत्तिरत्ताल् सूऴप्पट्ट पूमियिल्, मऱ्ऱुम्, तोऱ्ऱुम् काणप्पडुम्, मऱ्ऱ वादियर् तम् - परमदस्तर्गळिऩ्, वाय्प् पगट्टै - वीण् आडम्बर वार्त्तैयै, माऱ्ऱिऩोमे - अडक्कि विट्टोम्, वैयम् ऎल्लाम् - ऎल्ला लोगङ्गळिलुम्, इरुळ् - इरुट्टै (अज्ञाऩत्तै) नीक्कुम् - पोक्कुम्, मणिविळक्काय् - रत्ऩ तीबमाय्, मऩ्ऩिय, पॊरुन्दिय, नाऩ् मऱै मॆळलि - वेदङ्गळिऩ् सिरोबाग माऩ उबनिषत्तिऩ्, मदिये - ज्ञाऩत्तैये, कॊण्डु - आदारमागक् कॊण्डु, मॆय् - उण्मै , अलदु - इल्लाददै, विळम्बाद - कूऱाद, वियासऩ् - व्यास महर्षि, काट्टुम् - प्रम्म सूत्तिरङ्गळिऩ् मूलमाय् तॆरिविक्किऱ, विलक्कु इल्ला - विरोदम् इल्लाद, नल्वऴिये - नल्ल मार्क्कत्तिल्, विरैन्दु सॆल्वीर् । वेगमाय्च् चॆल्लुङ्गळ्, इदैप् पिऩ् पऱ्ऱिच् चॆल्लुङ्गळ्। ५२
मूलम्
*कोदवमॊऩ्ऱिल्लाद तगवे कॊण्ड
कॊण्डलॆऩ वन्दु लगिल् ऐवर्क्कऩ्ऱु
ओर् तूदुवऩाय् ऒरुगोडि मऱैगळॆल्लाम्
तॊडर्न्दोडत् तऩियोडित्तु यरन्दीर्त्त
मादवऩार् * वड कॊ(क)ङ्गिल् वाऩियाऱ्ऱिऩ्
वण्णिगै नऩ्ऩडङ् गण्डु मगिऴ्न्दु वाऴुम्
पोदु * इवै नाम् पॊऩ्ऩयिन्दै नगरिल मुऩ्ऩाळ्
पुण रादबरमदप्पोर् पूरित्तोमे, ५३
टीका
**[प। रै) कोदु - असारम्, अवम् - तोषम्, ऒऩ्ऱु इल्लाद - ऒऩ्ऱुम् इल्लाद, तगवे - क्रुबैयैये, कॊण्ड - स्वीगरित्तदाऩ, कॊण्डल् ऎऩ - कार्मेगम् पोले, उलगिल् - इन्दप् पूलोगत्तिल्, वन्दु - अवदरित्तु, ऐवर्क्कु - पञ्ज पाण्डवर्क्कु अऩ्ऱु - अन्द पारदयुत्तम् आरम्बिप्पदऱ्कु मुऩ्बु, ओर् ऒप्पऱ्ऱ, तूदुवऩाय् - तूदऩाय्, ऒरु कोडि - ऎण्णिलाद, मऱैगळॆल्लाम्- वेदङ्गळॆल्लाम्, तॊडर्न्दु ओड - पिऩ्ऩाल् ओडि वर, तऩि - वेऱॊरु उदवियिऩ्ऱि, ओडि - विरैवाग नडन्दु सॆऩ्ऱु। तुयरम् - तुक्कत्तै, तीर्त्त - पोक्कडित्तवराऩ, मादवऩार् - श्रीय:पदियाऩ पगवाऩ्, पॊऩ् - स्प्रुहणीयमाऩ, अयिन्दै नगरिल् - तिरुवहीन्दिर पुरत्तिल्, वड कॊङ्गिल् - उत्तर पार्च्चवत्तिल्, वाऩि - प्रवहिक्किऱ, आऱ्ऱिऩ् - नदियिऩुडैय, (करुड नदियिऩुडैय)। वण्णिगै - वरुणिक्कत् तगुन्द, नऩ्ऩडम् - नल्ल नडऩत्तै, अदावदु नल्ल नाट्टियम् पोले एऱिक्कुदित्तुप् प्रवहिप्पदै कण्डु - पार्त्तु, मगिऴ्न्दु - सन्दोषत्तुडऩ्, वाऴुम्बोदु वसिक्कुम्बोदु, नाम् - पगवदऩुबवत्तिल् आऴङ्गाल्बट्ट नाम् अऩ्ऱिक्के प्रदिवादिगळै निरसिक्क वेण्डिय ञाऩ सक्तियादिगळैयुडैय नाम्, मुऩ् नाळ् - इदऱ्कु मुऩ्बु, पुणराद - सॆय्यप्पडाददाऩ, इवै - इन्द, परमदप्पोर् - प्रदिवादि निरसऩमागिऱ युत्तङ्गळै, पूरित्तोम् - पूर्त्ति सॆय्दोम्। ५३ “इङ्गु कोदु अवम् ऎऩ्ऱदु तऩ्ऩुडैय प्रयोजऩत्तै ऎदिर् पार्प्पदु कोदु, अवमावदु अङ्गीगरित्त पिऱगु, तोषङ्गळैक् कण्डु, विट्टुविडुदल्। ओर् तूदुवऩाय् - पगवाऩ् अवदरित्तु सादु परित्राणत्तिऱ्काग सॆय्द कारियङ्गळ् पल। अवऱ्ऱिऱ्कॆल्लाम् सिगरमाय् निऱ्पदु इरण्डु कार्यङ्गळ् अवै तूदऩाय्च् चॆऩ्ऱदुम्, तेर् ओट्टियदुम् आगुम्। इवै इरण्डिलुम् तूदऩाय्च् चॆऩ्ऱदे सिऱन्ददु ऎऩ्बदु स्वामियिऩ् तिरुवुळ्ळम्। सन्दमिगु तमिऴ् मऱैयिलुम् ‘इऩ्ऩार् तूदऩ् ऎऩ निऩ्ऱाऩ् ऎव्वुळ् किडन्दाऩे’ ऎऩ्ऱु ओदप्पट्टदु। स्वामि तामुम् “सॆञ्जॊलऩ्बर् सिन्दै कॊण्डु तीदिलाद तूदऩाय्” ऎऩ्ऱु अडियवर्क्कु मॆय्यऩ् विषयमाग नवमणि मालैयिल् अरुळिच् चॆय्दार्, श्री तेवनायग पञ्जासत्तिलुम् तिरुवडियै अऩुबविक्कुम् प्रगरणत्तिल् ‘दूत्ये’ ऎऩ्ऱु तूद क्रुत्यत्तैये मुदलिल् अरुळिच् चॆय्दिरुक्किऱार्। ‘‘अडियवर् मॆय्यर्मलर्प् पदङ्गळे’’ ऎऩ्ऱुम्, “विडलरिय पॆरिय पॆरुमाळ् मॆय्प् पदङ्गळे’’ ऎऩ्ऱुम् पगवाऩुडैय तिरुवडिगळिऩ् पल् वेऱु
क्रुत्यङ्गळै निरूबिक्कुम् इडत्तिल् ’ तरुमऩ् विडु तूदुक्कुगन्दऩ’ ’ तरुमऩ् इरन्ददु इसैन्दु सॆऩ्ऱऩ’ ऎऩ्ऱु इत् दूत क्रुत्यम् पेसप्पट्टिरुक्किऱदु। उवर्गळुम् इन्दप् पॆरुमैयै ‘पञ्जवर्क्कुत् तूदु नडन्दाऩै ’ ऎऩ्ऱु सिलप्पदिगारत्तिल् कूऱिऩार्गळ्। ऒरु कोडि मऱैगळ् पिऩ् तॊडर ऎम् पॆरुमाऩ् सॆल्लुम् इडङ्गळिल् ऎल्लाम् वेदङ्गळ् अवऩ् पॆरुमैयै उत्कोषित्तुक् कॊण्डु सॆल्ला निऱ्कुम् ऎऩ्बदु ओर् मरबु ’ मऱैयुम् उरलुम् पिऩ् तॊडर् ' ऎऩ्ऱार् विल्लिबुत्तूरार्। ’ वेदत्तिऩ् मुऩ् सॆल्ग ' ऎऩ्ऱाऩ् कम्बऩुम् ’ पडर्न्दु आरण मुऴङ्ग ' ऎऩ्ऱु इळङ्गोवडिगळालुम् कूऱप्पट्टिरुक्किऱदु। " “सर्वेस्वरऩ् पक्कलिले सर्वार्त्तक्रहणम् पण्णिऩ कलियऩुम् अऱिवु तरुम् पॆरिय तिरुमॊऴियिल् ’ नाऩ् मऱैगळ् तेडियोडुम् सॆल्वऩ् ’ ऎऩ्ऱुम् ‘नाऩ् मऱैगळ् तेडियोडि ऎऩ्ऱुम् काणमाट्टाच् चॆल्वऩ्’ ऎऩ्ऱुम् उत्कोषित्तु इरुक्किऱार्, श्री क्रुष्णऩुडैय पाल सेष्टि तङ्गळै वर्णिक्कुम् श्रीगोबाल विंसदियिलुम्, ‘ निगमान्तै रधुनापि मृग्यमाणं’
ऎऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्यप्पट्टिरुक्किऱदु। आऩाल् पारद युत्त समयत्तिल् तूदऩाय् सॆऩ्ऱ क्रुष्णऩैप् पिऩ्बऱ्ऱि वेदङ्गळ् सॆऩ्ऱऩ ऎऩ्बदु ऎप्पडिप् पॊरुन्दुमॆऩ सिलरुक्कु सन्देहम् उदिक्कलाम्। क्रुष्णऩ् तूदऩाय् ऎऴुन्दरुळप् पोगिऱाऩ् ऎऩ्ऱु केळ्विप्पट्टदुम् हस्तिऩाबुरत्तिलुळ्ळ पागवदोत्तमर्गळ् क्रुष्णऩै ऎदिर् कॊण्डु अऴैक्कच् चॆऩ्ऱु अवऩुडैय पॆरुमैयै, ’ सर्वात्मनान्ध: ' ( ऎल्ला विदत्तिलुम् कुरुडऩ् ऎऩ्ऱु ] श्री पाष्यगारराल् कीदा पाष्यत्तिल् निर्देसिक्कप्पट्ट तिरुदराष्ट्रऩुक्कुम् अवऩुडैय कुमारर्गळाऩ तुर्योदऩादिगळाऩ नूऱ्ऱुवर्क्कुम् ऒरु पुत्तिमदि कूऱुवदऱ्काग पगवाऩ् नडन्दु सॆऩ्ऱ समयत्तिलुम् अवऩ् पिऩ् वेद पारायणम् सॆय्दु कॊण्डु पोऩार्गळ् ऎऩ्बदु सुसिप्पिक्कप् पट्टदागिऱदु। ऒरु कोडि ऎऩ्ऱदु ऎण्णिऱन्दवैगळ् ऎऩ्ऱबडि। वेद पुरुषऩ् ताऩुम् पगवाऩुडैय कुणङ्गळै कणक्किडुगिऱेऩ् ऎऩ्ऱु मुदलिल् कम्बीरमाग प्रदिज्ञै सॆय्दु ऒरु कुणत्तैये मुऱ्ऱिलुम् वरुणिक्क मुडियामल् तिरुम्बि विट्टाऩ्, ‘यदेगैग कुणप् प्रान्दे च्रान्दा निगमवन्दिन: ' ऎऩ्ऩप्पट्टदिऱे। त्रमिडोबनिषत्तिलुम् वेदङ्गळ् पगवाऩै अऱिन्ददागक् कॊळ्वोम् ऎऩ्बदु, ’ अऱिन्दऩ वेद अरुम्बॊरुळ् नूल्गळ् अऱिन्दऩगॊळ्ग ' ऎऩ्ऱु उत्कोषिक्कप् पट्टिरुक्किऱदु। मादवऩार् ऎऩ्ऱदिऩाल् नमक्कु उबाय तसैयिलुम् प्राप्य तसैयिलुम् श्रीय:पदियाऩ ऎम्बॆरुमाऩे उत्तेच्यम् ऎऩ्ऱु काट्टप्पट्टदु। अबियुक्तर्गळुम्, परप्रम्हम् यार् ऎऩ्ऱु निर्णयिप्पदऱ्कु ऎवऩुडैय तिरुमार्बिल् सन्दऩक्कुऴम्बाल् पिराट्टियिऩ् तिरुवडिगळ् अडैयाळ मागक् काणप्पडुगिऱदो अवऩ् ताऩ् परदत्वम् ऎऩ्ऱु निर्णयिप्पदऱ्कु प्रमाणमागक् काट्टिऩार्गळ्। इन्द श्रीय: पदित्व एऱ्ऱत्तै स्वामि” “तेसिगऩैप् पोले वेऱु ऒरुवरुम् तम्मुडैय क्रन्दङ्गळिल् पलवऱ्ऱिल् ऎडुत्तुक्काट्टविल्लै। त्रमिडोबनिषत्तिल् प्रदिबादिक्कप् पट्टिरुक्कुम् अर्त्त विसेषत्तै निरूबिक्कुम् पिरगरणत्तिल् तेव: श्रीमाऩ् स्वसित्ते; करणम्’ ऎऩ्ऱुम् श्री हंस सन्देसत्तिल्, ’ तेव: श्रीमाऩ् जऩग तऩयाऩ्वेषणे जागरूग: ‘ ऎऩ्ऱुम् तसावदार स्तोत्तिरत्तिल्, ’ तेवस् सहैव स्रियाया ' ऎऩ्ऱुम्, श्रीदेहळीस स्तुदियिल् प्रम्मसारि वेषत्तोडु यासगम् सॆय्यच् चॆऩ्ऱ पोदुम्, ‘कृष्णार्जिनं यवतिकां कृतवान् प्रियया: ' ऎऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्दु इरुक्किऱबडिये तिरुमार्बिल् इरुक्कुम् पिराट्टियै विट्टुप् पिरिय मुडियामैयिऩाल् अवळै मऱैप्पदऱ्काग यक्ञोबवीदत्तिल् किरुष्णाजिऩत्तिऩाल् मऱैत्तुक् कॊण्डु सॆऩ्ऱाऩ् ऎऩ्ऱार्। नियायसित्ताञ्जऩत्तिल् मुदलिल् नारायणऩ् परदेवदै ऎऩ्ऱु कूऱि अत्ताल् तिरुप्तिबॆऱामल् अदिलेये मेले श्रीय: पदियाऩ नारायणऩ् परदेवदै ऎऩ्ऱार्। त्रुच्य काव्यम् ऎऩ्ऩप्पडुम् नाडगमाऩ श्रीसङ्गल्ब सूर्योदयत्तिलुम् तेव श्रीमाऩ् निरवदिदयासिन्दु: ‘ऎऩ्ऱुम् ‘श्रीमाऩ् अस्तु मे’ ऎऩ्ऱुम् इप्पडिये मऱ्ऱुम् श्रीदत्व मुक्तागलाबम्, कीदाबाष्य तात्पर्य सन्दिरिगै मुदलियवैगळिलुम् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टिरुक्किऱदु। श्री कीदार्त्त सङ्गिरहप् पाट्टिलुम् ’ तीदऱ्ऱ नऱ्कुणप् पाऱ्कडल् तामरैच् चॆम्मलर्मेल् मादुऱ्ऱमायऩ् मरुव ' ऎऩ्ऱुम्, पिरदि तिऩम् अऩुसन्दिक्क वेण्डुम् ऎऩ्ऱु स्वामिदाऩे अरुळिच्चॆय्द श्रीबिरबन्द सारत्तिल् ‘सेममदाम् तिरुमाल् तऩ् करुणै याले’ ऎऩ्ऱुम् कूऱियुळ्ळार्। परदेवदा पारमार्त्यादिगारत्तिल् " “(श्रीमत् रहस्यत्रयसारत्तिल्) इन्द श्रीय: पदित्व एऱ्ऱम् नऩ्गु निरू पिक्कप्पट्टिरुक्किऱदु। मऱ्ऱबूर्वासार्यर्गळिऩ् क्रन्दङ्गळिल् सिऱ्सिल इडङ्गळिल् तविर इन्द अंसम् स्पष्टमाग निरूबिक्कप्पडविल्लै। अत्ताल्दाऩ् ‘ऎम्बॆरुमाऩै सॊऩ्ऩ इडमॆल्लाम् पिराट्टियैयुम् सॊल्लिऱ्ऱाम् ऎऩ्ऱु अर्त्तम् सॊल्लिक्कॊळ्ळ वेणुम् ऎऩ्ऱु अरुळिच्चॆय्यप्पट्टदु। आगैयिऩाल्दाऩ् नम् पूर्वासार्यर्गळिऩ् किरन्दङ्गळै विबजिक्कप्पुक्काल् उक्तिगळ्, सूक्तिगळ्, श्रीसूक्तिगळ् ऎऩ्ऱु पिरिप्पार्गळ्। अदिल् श्रीय: पदित्वत्तै पिरदिबादिक्कुम् सूक्तिगळे श्रीसूक्तिगळागुम्।
वडगॊङ्गु वाऩियाऱ्ऱिल् ऎऩ्ऱदु वडक्कु मुगमाग पिरवहिक्कुम् आऱ्ऱिल् अदावदु करुडनदियिल् ऎऩ्ऱु पूर्वर्गळिऩ् निर्वाहम्। उत्तर वाहिऩियाऩ नदिगळुक्कु ओर् एऱ्ऱम् उण्डु। करुडनदियाऩदु अयिन्दै पिरवेसिक्कुंवरैयिल् किऴक्कु मुगमाग ओडिवन्दु अयिन्दै अडैन्द पॊऴुदु वडक्कु मुगमागत् तिरुम्बि पिरवहित्तु अव्वूर् ऎल्लै ताण्डियदुम् मऱुबडियुम् किऴक्कु मुगमागत् तिरुम्बि ओडि समुत्तिरत्तै अडैगिऱदु। वडक्कु ऎऩ्बदिल् ‘क्’ ऎऩ्बदु तॊक्कि वडगु ऎऩ्ऱु इङ्गु इरुक्किऱदु। ओङ्गि ऎऩ्ऱदु पिरवहिक्किऱदु ऎऩ्ऱुम् ‘वाऩि’ ऎऩ्ऱदु करुडनदि ऎऩ्ऱुम् अर्त्तम् कॊळ्ळलाम्। वाऩिल् वसिप्पवर्गळ् वाऩि ऎऩ्ऩप्पडुवर्गळ्। अवर्गळिल् सिरेष्टऩाऩ करुडऩ् इङ्गु अप्पदत्ताल् सॊल्लप्पडुगिऱाऩ्। वाऩि ऎऩ्ऩुम्बदम् पवाऩियाऱ्ऱैच् चॊल्लुम् ऎऩ्ऱु सॆऩ्ऩै सर्व कलासालैप् पदिप्पाऩ तमिऴ् अगरादियिल् कूऱप्पट्टुळ्ळदु। अदऱ्कु ऒरु पिरयोगमुम् ऎडुत्तुक् काट्टप्पट्टुळ्ळदु। अदऱ्कुमेल् मऱ्ऱॊरु पिरमाणमाग इप्पाट्टु ऎडुक्कप्पट्टुळ्ळदु। वड कॊङ्गु ऎऩ्ऱाल् कॊङ्गुदेसम् ऎऩ्ऱु सॊल्लि अङ्गु प्रवहिक्किऱ पवाऩि आऱु ऎऩ्ऱु सिलर् सॊल्लुगिऱार्गळ्। इप्पाट्टिल् पॊऩ्ऩयिन्दै नगरिल् ऎऩ्ऱु स्पष्टमाग तिरुवहीन्दिरबुरम् कूऱप्पट्टिरुप्पदिऩाल् वडगॊङ्गु तेसत्तिऱ्को, पवाऩि आऱ्ऱुक्को प्रसक्तिये इल्लै।
वाऴुम्बोदु ऎऩ्बदै मादवऩार् ऎऩ्बदुडऩ् अन्वयित्तु अर्त्तम् कूऱप्पट्टदु। वाऴुम्बोदु ऎऩ्ऩुम् पदत्तै आगर्षित्तु नाम् ऎऩ्बदुडऩ् अन्वयित्तु कूऱिऩालुम् ऒक्कुम्। अप्पॊऴुदु स्वामि यिऩुडैय सरित्तिर सङ्गिरहमाऩ आसार्य सम्बुविल् न्यवसत् अदि सुगम् पणीन्दिरबुर्याम् निगमगीरीड विसार नीदगाल: ऎऩ्ऩप्पट्टदु अऩुसन्देयमागुम्। " मुऩ्ऩाळ् पुणराद परमदप्पोर् पूरित्तोमे – मुऩ्ऩाळ् कीऴे निरूबित्त पडिये सूत्रगारर् श्रीमन्नाद श्रीमत्यामुऩ श्रीमत् रामानु जमुनिगळ् परमद निरसऩम् सॆय्दिरुन्द पोदिलुम् अवर्गळैप् पिऩ्बऱ्ऱिये इन्द किरन्दम् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टिरुन्दबोदिलुम् अवर्गळ् इन्द किरन्दत्तिल् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टिरुक्किऱ पडिये पर मदप्पोर् पूरित्तार्गळल्लर्। अवर्गळ् किरन्दत्तिले मट्टुम् इन्द निर सऩत्तैच् चॆय्दार्गळ्। स्वामियुम् मुदलाविरुत्ति श्रीरङ्गम् ऎऴुन्दरुळि अत्वैदिगळै वादत्तिल् जयित्तार्। मऱ्ऱ मदस्तर्गळ् अङ्गु निरसिक्कप्पडविल्लै। श्रीरङ्गत्तिल् सिलगालम् वासञ्जॆय्दु ऎम् पॆरुमाऩालुम् पिराट्टियालुम् पोऱ्ऱप्पट्टु सम्बिरदाय पिरवसऩम् सॆय्दरुळि मऱुबडियुम् मुन्दै मऱैमॊय्यवऴि मॊऴि नी ऎऩ्ऱु अरुळ् तन्द मुगुन्दऩुम् वैराक्य सिरोमणियाऩ स्वामि तम्मैयुम् तम्मुडैय अत्यासर्यमाऩ प्रत्यङ्ग पूर्ण सुषुमाविऩाले मोहिप्पित्तु तऩ्ऩैप् पर्त्तावागक् कामुऱुम्बडि सॆय्दरुळियवऩुम् अडियवर्क्कु मॆय्यऩुमाऩ तेवनादऩै सेविप्पदऱ्काग मीण्डुम् अयिन्दै ऎऴुन्दरुळि अङ्गे कीऴ्गूऱियबडिये वेदान्दविसारत्तैच् चॆय्दु कॊण्डुम् श्री अच्युदसदगम् श्रीहयगिरीव स्तोत्रम्, महावीर वैबवम्, करुड तण्डगम्, करुडबञ्जासत् मुदलिय क्रन्दङ्गळै अरुळिच्चॆय्दुम् तम्गालत्तै कऴित्तुक् कॊण्डिरुन्दार्। अप्पॊऴुदु मुऩ्बु तिरुवरङ्गत्तिल् तोऱ्ऱ अत्वैदिगळ् नाम् ऒरुवराय्च् चॆऩ्ऱु अवरिडम् तोऱ्ऱोम्। मऱ्ऱ मदस्तर्गळैयुम् कूट्टिक् कॊण्डु पलराय्च् चॆऩ्ऱाल् ऎल्लोरैयुम् अवर् निरसिक्क मुडियादु। नाम् अवरै जयित्तु विडलाम् ऎऩ्ऱु मऩोरदित्तुक् कॊण्डु परमदस् तर्गळ् ऎल्लोरैयुम् कूट्टिक् कॊण्डु अयिन्दैयै अडैन्दु स्वामियै वादत्तिऱ्कु अऴैत्तार्गळ्। अप्पॊऴुदुम् स्वामि सऱ्ऱुम् तयङ्गामलुम्, पिऩ् वाङ्गामलुम् अवर्गळै निरसिक्क मुऩ्वन्दु अवर्गळै नीङ्गळ् ऒव्वॊरुवराग वन्दु उङ्गळ् मदक् कॊळ्गैगळै उङ्गळिष्टप्पडि सॊल्लुङ्गळ्। अवऱ्ऱै नाम् प्रमाण उबबत्तिगळुडऩुम् सूत्रगाररिऩ् अबिप्रायत्तिऱ्कु अनुगुणमागवुम् निरागरिप्पोम् ऎऩ्ऱु एऱ्पाडु सॆय्दु कॊण्डु अवर्गळ् ऎल्लोर् मदङ्गळिलुमुळ्ळ वेद विरोदम् मुदलाऩ पॊदुवाऩ तोषङ्गळै ऒरु अदिगारत्तिल् ऎडुत्तुक्काट्टि अदऱ्कु पिरदिवादिगळ् सॊल्लुम् आक्षेबङ्गळैक् कण्डित्तु मुदलिल् कूऱप्पट्ट समुदाय तोषत्तै निलै निऱुत्ति मेले किरममाग अन्दन्द मदस्तर्गळुडऩ् वादञ् जॆय्दु अवर्गळै निरसित्तरुळिऩारायिऱ्ऱु। इन्दक्रमम् इन्द क्रन्दत्तिल् “सङ्गिरहिक्कप् पट्टिरुक्किऱदु। इप्पडिये श्री सङ्गल्ब सूरियोदयत् तिलुम् प्रदिवादिगळै ऒव्वॊरुवराग वन्दु वादिक्कुम्बडि सेऩाबदियै राजा उत्तरविट्टदाग अरुळिच् चॆय्यप् पट्टिरुक्किऱदु। सूत्रगाररुडैय अबिप्रायमाग ऎम्बॆरुमाऩाराल् निरूबिक्कप्पट्ट अन्दन्द मदनिरसऩ पिरगरणत्तिल् कूऱप्पट्ट अंसङ्गळैयुम् आदारमागक् कॊण्डु अवर् कण्डरवेण कूऱामल् तिरुवुळ्ळत्तिल् वैत्तिरुन्द अर्त्त विसेषङ्गळैयुम् इदिल् स्वामि निरूबित्तिरुप्पदिऩाल् ’ ’ मुऩ्ऩाळ् पुणराद परमदप्पोर् पुरिन्दोमे ’’ ऎऩ्ऱार्। उदारणमाग योग प्रत्युक्त्ति अदिगरणत्तिल् ऎम्बॆरुमाऩाराल् सॊल्लप्पट्ट पिरम्मावुक्कु कुऱैवाऩ क्षेत्तिरिबावम्, प्रमादि सम्बवम् मुदलिय कारणङ्गळै अदिगरण सारावळि च्लोगत्तिल् ऎडुत्तुक्काट्टि अदऱ्कुमेल् अवऩ् सरस्वदी वल्लबऩ् आयिऩुम् पगवाऩुडैय तिरुवुन्दि तामरैप्पूविल् अवदरित्तवऩाय् इरुन्दबोदिलुम् वेदङ्गळै सदा उच्चरित्तुक्कॊण्डिरुन्दबोदिलुम् वेदत्तिऱ्कु पुऱम्बागच् चॊऩ्ऩाल् कीऴिल् पोल योगमदत् तिऱ्कुम् सॊल्लुवोम् ऎऩ्ऱु कूऱियुळ्ळार्। इप् परमदबङ्गत्तिल् नाविऱ् पिरिविऩ्ऱि नामङ्गै वाऴिऩुम्, तन्दैयुन्दिप् पूविल् पिऱक्किऩुम् ऎऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदे अदऱ्कु आदारमागक् कॊळ्ळप्पट्टदु।
पूर्ववन् निर्वहाम: ऎऩ्ऱु सङ्गिरहमाग कूऱिऩार्। इन्द अंसम् इक् किरन्दत्तिल् नाऩ्मऱैयिल् पावित्तदऩ्ऱि उरैप्पदु पाऱुम् पदर्त्तिरळे’ ऎऩ्ऱु कूऱप्पट्टदु। इप्पडि मेले पल उदारणङ्गळै ऎडुत्तुक् काट्टि ऒरु तऩिप् पुत्तगमाग वॆळियिडप् पडुगिऱदु।
‘पूरित्तोम्’ ऎऩ्ऱदऱ्कु पूर्णम् सॆय्दोम् ऎऩ्ऱु पॊरुळ् आदलिऩाल् मुऩ्ऩाळ् नम् पूर्वासार्यर्गळिऩाल् तुवक्कप्पट्ट परमद पङ्गमाऩदु च्रोदव्य सेषमिल्लामल् प्रमाण उबबत्ति पूर्वगमाग मिगवुम् विरिवाग इदऱ्कु मेल् ऒरुवरुम् पुदु कोडिगळ् सॊल्ल मुडियादबडि मदङ्गळै निरसित्तु अवर्गळदु तिरुवुळ्ळक्करुत्तै निऱैवेऱ्ऱिऩोम् ऎऩ्ऱदायिऱ्ऱु।
इप्पडि इप्पाट्टिऱ्कु अर्त्तम् कूऱुवदुदाऩ् उसिदम् ऎऩ्ऱु श्री तेसिग पित्तर् ऎऩ्ऱु अवरुडैय तेसिग पक्तियै पुगऴ्न्दु पलर् सॊल्लुम्बडि निऩ्ऱ तिरुवहीन्दिरबुरम् महामहोबात्तियाय सेट्टलूर् स्वामि ओर् उरुविल् निर्वहिक्कुम्बडि इरुन्ददु। " “आगैयाल् इदु ताऩ् तेसिग पक्तर्गळुक्कु उगन्ददायिरुक्कुम् ऎऩ्बदिल् सन्देहमिल्लै।
इप्पडि कीऴे निरूबित्तदु तत्वार्त्तमाग इरुक्क पिऱ्पट्ट सिलर् इदु विषयमाग वेऱु विदमाग अर्त्तङ्गळैक् कूऱियुम् इप्पाट्टुक्कु कीऴ् निरूबिक्कप्पट्ट अर्त्तङ्गळिल् सिल कुऱैगळ् इरुप्पदाग पिरमित्तु अवऱ्ऱिऱ्कु ऒरुविद समादाऩमुम् कूऱामल् विट्टुविट्टिरुक्किऱबडियिऩाल् अवै सामाऩ्यर्गळाऩ तेसिग पक्तर्गळिऩ् मऩदैक्कलक्कुम्बडियाय् इरुक्किऱदु। आगैयिऩाल् इव्विषयत्तिल् कूऱप्पट्टिरुक्कुम् अंसङ्गळै अवर्गळिऩ् वार्त्तैगळैक् कॊण्डे ऎडुत्तुक्काट्टि अवैगळ् अविसारिदरमणीयङ्गळेयऩ्ऱि विमर्सऩत्तै पॊऱुक्कादु ऎऩ्ऱु निरूबिक्क वेण्डिय कडमै एऱ्पट्टु विट्टदु।
इदिल् मुऱ्पड कॊङ्गुमण्डल सदगत्तिल् ७१ आम् पाट्टिल् काञ्जियिल् इरुन्दुवन्द वेदान्द तेसिगऩ् सत्यागाल (सत्तिय मङ्गल)त्तिल् परमदबङ्गम् ऎऩ्ऩुम् क्रन्दत्तै अरुळिच् चॆय्ददाग कूऱप्पट्टु इरुक्किऱदु। इन्द क्रन्दम् सॆय्दवर् ऒरु जैऩर् आगैयिऩाल् विषयङ्गळै नऩ्ऱाग तॆरिन्दु कॊळ्ळामल् तवऱाग ऎऴुदि इरुक्किऱार् ऎऩ्ऱु एऱ्पडुगिऱदु। एऩॆऩिल् इदिलिरुन्दु इवर् इन्द क्रन्दत्तैप् पार्त्तदाग एऱ्पडविल्लै। पार्त्तिरुन्दाल् अदिल् मुदल् स्लोगत्तिल् ‘अहीन्दिर नगरे ’ ऎऩ्ऱुम् इप्पाट्टिल् ‘पॊऩ्ऩयिन्दै नगरिल्’ ऎऩ्ऱुम् अरुळिच् चॆय्दिरुप्पदै उबेक्षित्तिरुक्क मुडियादु। इक् किरन्दत्तै सिष्यर्गळुक्कु स्वामि तेसिगऩ् अङ्गु सत्य मङ्गलत्तिल् कॊञ्ज कालम् ऎऴुन्दरुळियिरुन्दबोदु कालक्षेबम् सादित्तिरुक्कलाम् । अदैक् कॊण्डु इदु अन्द ऊरिल् सॆय्यप्पट्टदु ऎऩ्ऱु सॊल्लि इरुक्क वेण्डुम्। अदैक् कर्ण परम्बरैयागक् केट्ट इवर् इप्पडिच् चॊल्लियिरुक्क वेण्डुम्। आगैयिऩाल्, " “अप्पडिये स्वामि सत्यमङ्गलम् ऎऴुन्दरुळियदु काञ्जीबुरत्तिलिरुन्दु अल्ल, श्रीरङ्गत्तिल् तुलुक्कर्गळिऩाल् उण्डाऩ कलाबत्तिऩाल् अरङ्गत्तै विट्टुच्चॆऩ्ऱ स्वामि सत्तियागालम् सॆऩ्ऱु अङ्गु स्वल्बगालम् ऎऴुन्दरुळियिरुन्दु अरङ्गत्तिलिरुन्दु तप्पिवन्द तम्मुडैय सिष्यर्गळै सेर्त्तुक् कॊण्डु तिरुनारायणबुरम् सॆऩ्ऱु अङ्गेये सिरगालम् ऎऴुन्दरुळि इरुन्दु सम्ब्रदाय प्रवसऩम् सॆय्दु वन्दार् ऎऩ्ऱुम् कलाबम् निविरुत्तियागि श्रीरङ्गत्तिल् तिरुप्रदिष्टै सॆय्दबोदु स्वामि अङ्गु ऎऴुन्दरुळिऩार् ऎऩ्ऱुम् प्रमाणङ्गळ् कूऱुगिऩ्ऱऩ।
इव्विषयत्तिल् तेसिग प्रबन्द उरैयिट्टवर् ऎऴुदि यिरुप्पदु—
इप्पासुरत्तिऩ् पिऱ्पगुदिक्कुप् पॊरुळ् कॊळ्वदिल् सिल इडर्गळ् उळ। कॊङ्गु ऎऩ्ऩुञ् जॊल् पक्कम् ऎऩ्ऱ पॊरुळैत् तरुवदागक् तमिऴ् निगण्डुगळिलो इलक्किय नूल्गळिलो, काणप्पडविल्लै, मेलुम् ‘वाऩि’ ऎऩ्ऩुञ् जॊल् पवाऩि नदियैयो अमरावदि नदियैयो कूऱुमेयऩ्ऱिप् ‘पॆरुगुगिऱ’ ऎऩ्ऩुम् पॊरुळैत् तरुमावॆऩ्बर् तमिऴर्। ‘वण्णिगै’ ऎऩ्ऩुञ् जॊल् ‘वर्णिक्कत्तगुन्द” ऎऩ्ऱ पॊरुळैक् कॊडुप्पदुम् आराय वेण्डियदागुम्। इङ्ङऩम् इडर्गळ् उळवादलिऩ् पिऱ्पगुदिक्कुप् पिऩ्वरुमाऱु पॊरुळ् कॊळ्ळुदल् सिऱक्कुमॆऩ्बर् पलर् ऎऩ्ऱु।
इन्द आक्षेबङ्गळै ऎऴुप्पिय इन्द आसारियरिऩ् करुत्तु ऎऩ्ऩवॆऩ्ऱु पुलप्पडविल्लै। इन्द आक्षेबङ्गळ् सरि यॆऩ्ऱु करुदुगिऱारा अल्लदु उसिदमल्ल ऎऩ्ऱु करुदुगिऱारा? इदऩ् इऱुदियिल् पुदियदाग ऒरु अर्त्तम् ऎऴुदियिरुप्पदिऩाल् कीऴ् तम्माल् ऎऴुप्पप्पट्ट सन्देहङ्गळ् अव्वळवु सरियिल्लै, अवैगळिलुम् कुऱैगळ् इरुक्किऩ्ऱऩ ऎऩ्ऱु करुदियिरुक्किऱार्। अप्पडियिरुक्क इन्द आक्षेबङ्गळै एऩ् ऎऴुप्पिऩार् ऎऩ्बदु " “पुलप्पडविल्लै। इव्विषयत्तिल् श्री तेसिग पक्तर्गळ् कलङ्गामल् इरुप्पदऱ्काग अन्द आक्षेबङ्गळ् ऒव्वॊऩ्ऱैयुम् ऎडुत्तु अवऱ्ऱिल् ऒऩ्ऱुगूड विमर्सऩत्तैप् पॊऱुक्कादु ऎऩ्ऱु मेले निरूबिक्कप्पडुगिऱदु।
‘कॊङ्गु’ ऎऩ्ऩुम् पदम् पक्कम् ऎऩ्ऩुम् पॊरुळैत् तरुवदाग तमिऴ् निगण्डुगळिल् काणप्पडविल्लै ऎऩ्ऱु कूऱियिरुप्पदै विसारिप्पोम्। तेसिग प्रबन्द पाट्टुक्कळुक्कु व्याक्याऩम् ऎऴुद मुऩ्वन्द श्रीवगुळाबरण स्वामिक्कु तमिऴिल् नल्ल ज्ञाऩम् इल्लै ऎऩ्ऱु सॊल्ल ऒरुवरालुम् मुडियादु। अवर् कालत्तिल् अप्पदत्तिऱ्कु अप्पॊरुळ् सॊल्लप्पट्टिरुक्क वेण्डुम्। तमिऴिल् मुऩ् पऴक्कत्तिलिरुन्द पल पदङ्गळ् माऱ्ऱप्पट्टु इरुक्किऩ्ऱऩ। उदारणमाग ‘आगलिऩ्’ ऎऩ्ऩुम् पदम् इप्पोदु आदलिऩ् ऎऩ्ऱु माऱ्ऱप्पट्टिरुक्किऱदु अप्पडिये ‘ऎऩ्ऩप्पट्टदिऱे’ ‘ऎऩ्ऱिऱे’ इत्यादि प्रयोङ्गळ् इप् पॊऴुदु काणप्पडविल्लै। आगैयिऩाल् इक्कालत्तिय निगण्डुगळिल् इल्लैयॆऩ्बदिऩाल् अप्पदङ्गळ् सुष्टु अल्ल ऎऩ्ऩ मुडियादु अऩ्ऱिक्के वडगॊङ्गिल् ऎऩ्बदऱ्कु पदिलाग ‘वडगङ्गिल्’ ऎऩ्ऱु पाडम् इरुन्दिरुक्कलाम् ‘कङ्गु’ ऎऩ्ऱाल् करै। कीऴ् निरूबिक्कप् पट्टिरुक्किऱबडिये वेऱु अर्त्तङ्गळुम् उण्डु। ‘वाऩि’ ऎऩ्ऩुम् पदम् प्रवहिक्किऱ ऎऩ्गिऱ अर्त्तत्तैक् कूऱादु ऎऩ्गिऱ आक्षेबमुम् उसिदमल्ल। वाहिऩि ऎऩ्ऩुम् संस्क्रुद पदम् प्रवहिक्किऱ ऎऩ्गिऱ अर्त्तत्तैक् कूऱुगिऱदु ऎऩ्बदै ऒरुवरुम् आक्षेबिक्कमुडियादु। संस्क्रुदत्तिलुळ्ळ पल पदङ्गळ् ‘वेदम्, एगम्, अवदारम्, पगवऩ्’ मुदलिय पदङ्गळ् तमिऴिलुम् इरुक्किऩ्ऱऩ। पिऱ्पट्ट निगण्डुगारर्गळ् अप्पदङ्गळै नीक्किविड मुयलुगिऱार्गळ्। ‘कैत्तु’ ऎऩ्ऩुम् पदम् तमिऴ् अगरादिगळिल् काणप्पडविल्लै। आगैयिऩाल् तमिऴ् अगरादि सरियागप् पदिप्पिक्कप्पडविल्लै ऎऩ्ऱु एऱ्पडुगिऱदु। आगैयिऩाल् अदै पूर्णप्पिरमाणमाग अङ्गीगरिक्क मुडियादु। सन्दमिगु तमिऴ् मऱैयुम् तेसिग प्रबन्दमुम् तमिऴ् इलक्किय क्रन्दङ्गळ्। आगैयिऩाल् अवऱ्ऱिल् " “प्रयोगिक्कप्पट्टिरुक्कुम् पदङ्गळै अङ्गीगरिक्क वेण्डुमे यऩ्ऱि निगण्डुविल् इल्लै ऎऩ्ऱ कारणत्तिऩाल् अवऱ्ऱैत् तळ्ळ मुडियादु। कीऴ् कूऱिय इरण्डु क्रन्दङ्गळुम् कालक्षेब क्रन्दङ्गळाग वैक्कप्पट्टिरुन्दमैयाल् अवऱ्ऱै केवलम् तमिऴर्गळ् परिसयम् सॆय्य अवगासम् एऱ्पडविल्लै।
’ यामे ऒरु नीदियै वगुक्कवुमाम्’
ऎऩ्ऱु स्वामि तेसिगऩ् अरुळिच् चॆय्दिरुक्कुम् नियायत्तैप् पिऩ्बऱ्ऱि नामे ऒरु तमिऴ् निगण्डुवगुप्पदे रुजुवाऩ मार्क्कमागुम्। ‘वाऩि’ ऎऩ्ऩुञ्जॊल् पवाऩि नदियैयो अमरावदि नदियैयो सॊल्लुम् ऎऩ्ऱु तमिऴर् कूऱुवदिल् नमक्कु ऒरुविद आक्षेबमुम् इल्लै। आऩाल् अप्पदम् ‘पॆरुगुम्’ ऎऩ्ऱ अर्त्तत्तैच् चॊल्लादु ऎऩ्ऱु ऒरु तमिऴऩुम् सॊल्ल मुडियादु। अप्पडि वन्दाल् अवऩ् तमिऴ् मॊऴियै अऱिन्दवऩ् अल्ल ऎऩ्ऱु सॊल्ल वेण्डि वरुम्। स्वामि तामुम् ‘स्तेम’ मुदलिय सिल वड सॊऱ्कळ् सुष्टु, अदावदु व्यागरणत्तै अऩुसरित्तदु अल्ल ऎऩ्गिऱ आक्षेबत्तिऱ्कु ताम् ‘अवर्गळै साप्तिगर्गळागक् करुदविल्लै’ ऎऩ्ऱु अरुळिच्चॆय्दिरुप्पदु इङ्गु कैक्कॊळ्ळप्पडुगिऱदु। मेलुम् ऎन्दत् तमिऴऩ् इप्पडि आक्षेबित्तिरुक्किऱाऩ् ऎऩ्बदु इन्द उरैयिलिरुन्दु एऱ्पडविल्लै। तमिऴर् ऎऩ्ऩुम् पदम् आऴ्वारैयो श्री तेसिगऩैयोदाऩ् प्रदाऩमागक् कुऱिक्कुम्। आऴ्वार् तामे ‘पालेय् तमिऴर्-परवुम्’ ऎऩ् किऱबडिये तिरुवाय् मॊऴि सिऱन्द इलक्किय क्रन्द मागैयिऩाल् तमिऴराल् अदु परवप्पट्टु निऱ्किऱदु ऎऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्दु इरुक्किऱार्। अप्पडिये स्वामियुम् ‘सन्दमिगु तमिऴ् मऱैयोऩ्’ ऎऩ्ऱु तम्मै त्रमिड सागात्यायी ऎऩ्ऱु निरूबित्तुक्कॊण्डु इरुक्किऱार्। संस्क्रुद पाषैयिल् वेदान्दासार्यरायुम् कविदार्क्किग सिम्हमायुम् विळङ्गिऩाप्पोले तमिऴ् पाषैयिलुम् स्वामियिऩ् ञाऩम् अन्यात्रुसमाऩदु। आगैयिऩाल् " “स्वामियिऩ् पदप्रयोगङ्गळुक्कु प्रगरणाऩु कुणमाग अर्त्तङ्गळै निगण्डुगळिल् सेर्त्तुक्कॊळ्ळ वेण्डुम्।
वाहिऩि (पॆरुगुगिऱ) ऎऩ्ऩुम् संस्क्रुद पदम् इङ्गु कुऱुगि वाऩि ऎऩ्ऱु अदे अर्त्तत्तैच् चॊल्लुवदाग श्रीवगुळाबरणस्वामियिऩाल् व्याक्याऩम् सॆय्यप्पट्टिरुक्किऱदु। आगैयिऩाल् अदै कुऱै कूऱुवदु उसिदमागादु। वण्णिगै ऎऩ्ऩुम् पदम् वरुणिक्कत् तगुन्द ऎऩ्ऱ पॊरुळैक् कॊडुप्पदुम् आरायवेण्डियदागुम् ऎऩ्ऱु ऎऴुदि इरुप्पदुम् उसिदमल्ल। तमिऴ् निगण्डुविल् वण्णिगऩ्- ऎऴुदुबवऩ् वण्णिगै- वर्णिक्कै ऎऩ्ऱु कूऱप्पट्टिरुक्किऱदु। आगैयिऩाल् अप्पदत्तिऱ्कु पिरासीऩ वियाक्कियाऩत्तिल् कूऱप्पट्ट अर्त्तत्तिऱ्कु आक्षेबम् ऒरुवरालुम् सॊल्ल मुडियादु। सॆऩ्ऩै सर्व कला सालैयाराल् पदिप्पिक्कप्पट्ट तमिऴ् निगण्डु पदिप्पाळरुम् इव्वुरैयासिरियरुम् इप् पाट्टिल् पॊऩ्ऩयिनदै नगरिल् ऎऩ्ऱु स्पष्टमाग इक्किरन्दम् तिरुवयिन्दिरबुरत्तिल् अरुळिच्चॆय्यप्पट्टदु ऎऩ्ऱु निरूबित्तिरुप्पदुडऩ् मुरण्बडुम्बडि वडगॊङ्गु ऎऩ्बदऱ्कु ‘कॊङ्गु तेसत्तिल्’ ऎऩ्ऱु अर्त्तम् कॊण्डदु तवऱे अऩ्ऱि वगुळा परणम् स्वामि अरुळिच्चॆय्द ‘वडक्कुप्पक्कत्तिल्’ ऎऩ्ऱु अर्त्तम् कूऱियिरुप्पदु तवऱु अल्ल, अदु प्रमाणत्तै अऩुसरित्ते इरुक्किऱदु ऎऩ्बदु स्पष्टमाग निरूबिक्कप्पट्टदागिऱदु। सॆऩ्ऩै सर्वगलासालैयिऩराल् पदिप्पिक्कप्पट्ट तमिऴ् अगरादियिल् पलदवऱुगळ् इरुक्किऱबडियिऩाल् अदै प्रमाणमागक् कॊण्डु मऱ्ऱवर् पेरिल् कुऱै सॊल्लुवदै प्रामाणिगर्गळ् अङ्गीगरिक्क माट्टार्गळ्। कीऴे ऎडुत्तुक्काट्टियबडि ‘कैत्तु। वण्णिगर्, वण्णिगै, कॊङ्गु’ मुदलिय पदङ्गळ् अदिल् काणप्पडविल्लै। इदैप् पऱ्ऱि सर्वगलासालैयारुडऩ् कडिदप् पोक्कुवरत्तु नडैबॆऱ्ऱुक् कॊण्डिरुक्किऱदु। कूडिय सीक्किरत्तिल् पिऴैत्तिरुत्तम् वॆळियिडप्पडुम् ऎऩ्ऱु ऎदिर् पार्क्कप्पडुगिऱदु। " “मेलुम् परमद पङ्गम् तिरुवयिन्दिरबुत्तिलेये आरम्बिक्कप्पट्टिरुन्दुम् नडुविल् कलाबम् मुदलिय इडैयूऱुगळाल् पूर्त्ति सॆय्यप् पॆऱामलिरुन्दु श्रीदेसिगऩ् कॊङ्गु नाट्टिल् ऎऴुन्दरुळि इरुक्क नेरिट्टु अप्पॊऴुदु पूर्त्ति सॆय्यप्पट्टिरुक्कुम् ऎऩ्ऱुम् सिलर् करुत्तु उरैप्पर् ऎऩ्ऱदुम् अनुबबन्नम्। कलाब उबत्तिरवम् तिरुवरङ्गत्तिल् एऱ्पट्टदेयऩ्ऱि तिरुवयिन्दिरबुरत्तिल् एऱ्पट्टदु ऎऩ्बदऱ्कु ईषत्तुम् पिरमाणम् किडैयादु अप्पडिक् कूऱुम् इवर् यार्? ऎङ्गु अव्वाऱु कूऱि यिरुक्किऱार्गळ् ऎऩ्बदुम् विळक्कप् पडविल्लै। वैबवप् पिरगासिगादि क्रन्दङ्गळिल् परमदबङ्गम् तिरुवयिन्दिरबुरत्तिल् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदु ऎऩ्ऱे कूऱप्पट्टिरुक्किऱदु। आगैयिऩाल् पिरामणमिल्लाद ऒरु अर्त्तत्तैक् कूऱ मुऩ्वन्ददु युक्तमागादु।
इव्वुरैयासिरियर् तामे सत्तियमङ्गलत्तिल् इन्द क्रन्दम् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदु ऎऩ्ऱु एऱ्पडविल्लै ऎऩ्बदै ऒप्पुक् कॊण्डिरुक्किऱार्। कॊङ्गु ऎऩ्ऩुम् पदम् पार्सवत्तैच् चॊल्लादु ऎऩ्ऱु कॊण्ड इवर् प्रगरणत्तुक्कु अदु कुणमाग कङ्गु ऎऩ्ऱु पाडबेदम् कूऱियिरुक्कवेण्डुमेयऩ्ऱि स्वामि श्री सूक्तिक्कु विरोदमाग कॊङ्गु तेसत्तिल् पवाऩि आऱ्ऱङ्गरैयिल् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदु ऎऩ्गिऱ अर्त्तत्तै अप्युगमम् सॆय्दिरुप्पदु पॆरिय तवऱागुम्।
नऩ्ऩडङ्गण्डु मगिऴ्न्दु वाऴुम्बोदु ऎऩ्गिऱ इडत्तिल् नऩ्ऩडङ्गण्डु ऎऩ्ऱदु ऎम्बॆरुमाऩ् तऩ् पक्तर्गळै अऩुक्रहिप् पदऱ्काग तिरुवीदियै अलङ्गरिक्कुम्बोदु करुड नदियै कडाक्षित्तुक् कॊण्डु पिऱगु तिरुवीदि सॆल्लुम् क्रमम् अऩुसन्दिक्कप्पट्टदायिऱ्ऱु। पगवाऩ् किऴक्कु मुगमाय् इत् तिव्य तेसत्तिल् सेवै सादिक्किऱबडियिऩाल् सन्नदिक्कु मेऱ्कु पक्कत्तिल् प्रवहिक्कुम् नदियैक् कण्डु मगिऴ मुडियादल्लवा? ऎम्बॆरुमाऩुडैय ताह सान्दिक्कॆऩ्ऱु पॆरिय तिरुवडियाल् कॊण्डु वरप्पट्ट इन्द करुड नदियाऩदु कीऴ् कूऱिय कालङ्गळिल् पगवाऩुडैय तिव्य कडाक्षत्तै पॆऱ्ऱ समयङ्गळिल् तऩ् प्रवाहत्तिऩाल् नऩ् नडऩम् सॆय्दु काट्टिऱ्ऱु ऎऩ्ऱ पडि, इङ्गु पॊऩ् " “अयिन्दै नगरिल् ऎऩ्ऩुम् पदत्तै वडगॊङ्गिल् इत्यादिक्कु विसेष णमाक्कि इप्पाट्टुक्कु व्याक्याऩमिट्ट वगुळाबरण स्वामि निरूबित्तिरुक्किऱार्।
इन्द योजऩैक्कु तूरान्वयम् ऎऩ्गिऱ कुऱैगूऱक्कूडुमागिलुम् वर्त्तमाऩ स्तिदियै कुऱिक्किऱबडियिऩाल् उसिदमायिऱ्ऱु। पदक् क्रमत्तिले अन्वयित्ताल् इन्द तिरुवयिन्दिरबुरत्तिल् परमदप्पोर् पूरित्तोम् ऎऩ्ऱबडियागुम्।
उरैयासिरियर् तामे तम्माल् ऎऴुप्पप्पट्ट सन्देहङ्गळै निलै निऱुत्त मुडियादु ऎऩ्ऱु मेले तामे ऎऴुदियुळ्ळार्। अप्पडि इरुक्क इन्द आक्षेबङ्गळ् ऎदऱ्काग ऎऴुप्पप्पट्टऩ ऎऩ्ऱु पुरियविल्लै।
इव्वाक्षेबङ्गळै यॆल्लाम् ऒरुवाऱु निवर्त्ति सॆय्दु विडलाम् ऎऩ्ऱु ऒरु पुदु अर्त्तम् कल्बित्तु इरुक्किऱार्। अदिल् इवर् कीऴे कॊङ्गु ऎऩ्बदु ’ पार्च्वत्तै ऎऩ्ऩुम् अर्त्तत्तैच् चॊल्लादु ऎऩ्गिऱ आक्षेबत्तैत् तामेमीऱि वड कॊङ्गु ऎऩ्बदऱ्कु वडक्कुप् पक्कम् ऎऩ्ऱु अर्त्तम् सॊल्लि यिरुक्किऱार्। किरुष्णावदार सेष्टिदङ्गळै अडियवर्क्कु मॆय्यऩ् इवर्क्कुक् काट्टियरुळिऩार् ऎऩ्गिऱ अर्त्तत्तिल् ऒरु आक्षेबणैयिल्लैये। आगिलुम् ऎन्द सन्दर्प्पत्तिल् ऎदऱ्काग अवर् किरुष्णावदार सेष्टिदङ्गळै अयिन्दैयिल् सॆय्दु काट्टिऩार् ऎऩ्बदै निरूबिक्कविल्लै। अदुवुम् वाऩियाऱ्ऱिऩ् नऩ्ऩडङ्गण्डु ऎऩ्ऱिरुप्पदुडऩ् सेरादु। एऩॆऩ्ऱाल् इवर् कूऱुम् उरैयिल् किरुष्णऩुडैय नडऩङ्गळ् अबिप्रायत्तिल् कॊळ्ळप् पट्टिरुक्किऩ्ऱऩ। मूलप् पाट्टिलो ‘आऱ्ऱिऩ् नऩ्ऩडम् कण्डु’ ऎऩ्ऱिरुक्किऱबडियिऩाल्, इप्पडि पिरगरणत्तिऱ्कु अनुगुणमाऩ अर्त्तङ्गळै ऎडुत्तुक् काट्टामल् पुदिदागच् चिल अर्त्तङ्गळै कल् पित्तु इक्कालत्तिय पण्डिदर्गळ् निरूबिक्किऱार्गळ्। इदुवुम् उसिदमल्ल। उदारणमाग स्वामि ’ तोराद तऩिवीरऩ्’ ऎऩ्ऱुम् ’ तोरा विसयऩुक्कु’ ऎऩ्ऱुम् अरुळिच् चॆय्दिरुप्पदु उसिदमल्ल ऎऩ्ऱु कॊण्डु ‘तोलाद’ ऎऩ्ऱु इरुक्कवेण्डुम् ऎऩ्ऱु कूऱि " “यिरुक्किऱार्गळ्, ‘रलयोर पेद: ’ ऎऩ्गिऱ नियायत्तिऩाल् तोलाद ऎऩ् किऱ अर्त्तत्तै ’ तोराद’ ऎऩ्ऩुम् पदम् सॊल्लुम् ऎऩ्ऱु उणर्न्दु निगण्डुविल् , तोरा, ऎऩ्ऩुम् पदम् ’ तोला ’ ऎऩ्ऩुम् पदत्तिऩ् अर्त्तत्तैच् चॊल्लुम् ऎऩ्ऱु सेर्त्तुक् कॊळ्ळ वेण्डुमेयऩ्ऱि पाडत्तै माऱ्ऱ मुऩ् वरुवदु पण्डिद किरुत्यमल्ल। । । इप्पडिये नवमणि मालैयिल् स्वामि तेसिगऩ् “पणिय इसैविल् तिसै मुगऩ् तऩ् मुडिगळ् पत्तु अऱुत्तऩै ’’ ऎऩ्ऱु अऩुसन्दित्तु इरुप्पदिलुळ्ळ स्वारस्यमाऩ अर्त्तङ्गळै अऱिन्दु कॊळ्ळामल् तिसैमुगऩ् ऎऩ्ऩुम् पाडम् तवऱु, तसमुगऩ् ऎऩ्ऱे इरुक्कवेण्डुम् ऎऩ्ऱु तिरुत्तिविट्टार्गळ्। इप्पडि तिरुत्तिऩाल् ऒरे वरियिल् ऒरे पदमे इरण्डु मुऱै प्रयोगिक्कप्पट्टिरुक्किऱदु ऎऩ्गिऱ तोषम् वरुम्। तिसै मुगऩ् ऎऩ्गिऱ पदम् रावणऩैक् कुऱिक्कुमा कुऱिक्कादा ऎऩ्बदे इङ्गु विसारिक्कप्पड वेण्डिय विषयम् ’’ तिसैगळ् पत्ताय ' ऎऩ्ऱिऱे पालेय् तमिऴर् परवुम् तिरुवाय्मॊऴियिल् कूऱप्पट्टिरुक् किऱदु। इदैप् पिऩ् पऱ्ऱि स्वामि तेसिगऩुम् " दिशासु दशसु ’ ऎऩ्ऱु प्रयोगित्तु इरुक्किऱार्। नाऩ्गु तिसैगळ्दाऩ् प्रयोग प्रासुर्यत्तिल् काणप्पडुगिऱदु ऎऩ्बदैक् कॊण्डु तिसैगळ् पत्तु ऎऩ्बदु तवऱु ऎऩ्ऱु सॊल्लमुडियुमा? स्वामि उबयबाषा कवियागैयिऩाल् तसरदऩ् ऎऩगिऱविडत्तिल् ‘तस’ ऎऩ्बदु तिक्कुगळुक्कु उबलक्षणम्। इङ्गु स्वामि ‘तिसै’ (तिक्कु) ऎऩ्ऱु कूऱि इत्ताल् पत्तु उबलक्षिक्कप्पडुगिऱदु ऎऩ्ऱु तिरुवुळ्ळम्बऱ्ऱि इरुक्किऱार्। आगैयिऩाल् तिसैमुगऩ् ऎऩ्ऩुम् पदम् इरावणऩैक् कुऱिक्कुम् ऎऩ्ऱु कूऱियदु तवऱु ऎऩ्बदे तवऱु। तिसै मुगऩ् ऎऩ्ऩुम् पदत्तै इङ्गु प्रयोगित्तिरुप्पदऱ्कु " “इरण्डु प्रयोजऩम् उण्डु। मुदलावदु पणिय इसैविल् तिसैमुगऩ् ऎऩ्ऱु प्रास अऩुप्रासम् कूऱप्पट्टदु। इरण्डावदु ताऩ् प्रदाऩ प्रयोजऩम् अदावदु रावणणुडैय पत्तु मुगङ्गळुम् पत्तुत् तिक्कुगळैयुम् पार्त्तुक्कॊण्डिरुन्दऩ ऎऩ्गिऱ विसेषार्त्तत्तै इप्पडि वॆळियिट्टु अरुळिऩार्। आगैयिऩाल् इप्पॊऴुदु नाडगादिगळिल् काट्टप्पडुगिऱ रावणऩुडैय पत्तु मुगङ्गळुम् ऒरे तिसैयै पार्क्कुम्बडि काट्टिक्कॊण्डु वरुवदु उसिदमिल्लै ऎऩ्ऱु एऱ्पडुगिऱदु। इङ्गु तिसै मुगऩ् ऎऩ्ऩुम् पदम् प्रयोगिक्कप्पट्टिरुप्पदिऩाल्, त्रिमुग, सदुर्मुग , षण्मुगर्गळुक्कु, मूऩ्ऱु, नाऩ्गु, आऱुदिक्कुगळैयुम् नोक्किक् कॊण्डे मुगङ्गळ् इरुक्किऩ्ऱऩ ऒरे तिक्कै नोक्कि इल्लै, इदुवे रावणऩिऩ् विषयत्तिलुम् ऎऩ्ऱु स्वामि वॆळियिट्टारायिऱ्ऱु।
इदऱ्कु मुऩ्बु प्रयोगम् इल्लामैयिऩाल् तिसै मुगऩ् ऎऩ्गिऱ पदम् रावणऩैक् कुऱिक्कादु ऎऩ्ऱु ऒरु आक्षेबम् सॊल्लप्पडुगिऱदु। प्रयोगम् ऎऩ्ऱाल् ऎदु ऎऩ्बदैत् तॆरिन्दु कॊळ्ळामल् इन्द आक्षेबम् ऎऴुप्पप्पडुगिऱदु। वाल्मीगि उबयोगित्तिरुक्कुम् पदङ्गळुक्कु मुऱ्पट्ट प्रयोगम् ऎदु ? सरस्वदियिऩ् कडाक्षत्ताल् पॆऱ्ऱ पॆरुमैयिऩाल् वाल्मीगिक्कु आदि कवि ऎऩ्ऱु पॆयर् उण्डा यिऱ्ऱु। अवरैप् पोय् स्वामियुडऩ् ऎप्पडिच् चीर् तूक्किप् पार्क्क मुडियुम्? इवर् वित्या तेवदैयिऩुडैय अऩुक्रहत्तिऩाल् पॆऱ्ऱ ज्ञाऩत्तैयुडैयवरागैयिऩाल् इवरुडैय प्रयोगङ्गळुक्कु मुऩ्बु प्रयोगम् ऎप्पडि इरुक्क मुडियुम् ? सिल विसेष पदङ्गळै स्वामि प्रयोगित्तिरुक्किऱार् अदैप् पोल् तिसैमुगऩ् ऎऩ्ऩुम् पदमुम् स्वामियिऩाल् पुदिदागक् कूऱप्पट्टिरुन्दालुम् अदु सुष्रुवाऩ पदमे। अदै आक्षेबित्तल् मुऱ्ऱिलुम् तवऱु। नम्मुडैय स्वल्ब ज्ञाऩत्तैक् कॊण्डु सर्व ज्ञराऩ स्वामियिऩ् प्रयोगत्तै आक्षेबिप्पदैविड पॆरिय अबसारम् ऒऩ्ऱुम् इरुक्क मुडियादु। "
मूलम्
तिगिरिमऴुवुयर् कुन्दन्दण्डङ्गुसम्बॊऱि
सिदऱु सदमुग वङ्गि वाळ् वेलमर्न्ददुम्
तॆळि पणिल सिलैगण्णि सीरङ्ग सॆव्विडि
सॆऴिय कदै मुसलम् तिरिसूलम् तिगऴ्न्ददुम्*
अगिल वुलगुगळ् कण्डैयाय् ओरलङ्गलिल्
अडैय अडैविल् इलङ्ग वासिऩ्ऱि निऩ्ऱदुम्*
अडियुम् अरुगणैयुमरवामॆऩ्ऩ निऩ्ऱु अडि
यडैयुम् अडियरै यऩ्बिऩालञ्ज लॆऩ्बदुम्*
मगिऴुम् अमरर् कणङ्गळ् वाऩङ्गवर्न्दिड,
मलियुमसुरर् कॊणर्न्दमायम् तुऱन्ददुम्*
वळरणिगळ् मणिमिऩ्ऩ वाऩन्दिगॊण्डिड
मऱैमुऱै मुऱैवणङ्ग माऱिऩ्ऱिवॆऩ्ऱदुम्*
सिगियिरवि मदियुमिऴु तेसुन्द वॆण्डिसैत्
तिणिमरुळ् सॆगवुगन्दु सेमङ्गळ् सॆय्ददुम्*
तिगऴ् अरवणै यरङ्गर् तेसॆऩ्ऩ मऩ्ऩिय
तिरिसुदरिसऩम् सॆय्य ईरॆण्बुयङ्गळे ५४
टीका
*(प-रै) तिगऴ् - विळङ्गुगिऱ, अरवणै - आदिसेषऩागिय पडुक्कैयै युडैय, अरङ्गर् - श्री रङ्गनादऩुडैय, तेसु ऎऩ्ऩ - तेजस्सु ऎऩ् ऱु सॊल्लुम्बडियाग, मऩ्ऩिय - पॊरुन्दिय, तिरि सुदर्सऩर् - श्रीसुदर्सऩाऴ्वारुडैय, सॆय्य - सिवन्दवैगळाऩ, अऩ्ऱिक्के - रुजूक्कळाऩ, ईर् ऎण् - पदिऩाऱुगळाऩ, पुयङ्गळे - पुजङ्गळे, तिगिरि - सक्करम्, मऴु - परसु, उयर् - उयर्न्ददाऩ, कुन्दम् - कुन्दम्, तण्डु - तण्डम्, अङ्गुसम् - अङ्गुसम्, पॊऱि- पॊऱिगळ्, सिदऱु - वॆळिक् किळम्बुगिऱ, सदमुगम् - नूऱु मुगमुडैय, अङ्गि-। अक्नि, वाळ् - कत्ति, वेल् - वेलायुदम्, अमर्न्ददुम् । इवैगळै अमरुम्बडि तरित्तदुम्, तॆळि - निर्मलमाऩ, पणिल- सङ्गम्, सिलै- । तनुस्सु, कण्णि - पासम्, सीर् अङ्गम् – कलप्पै, सॆव्विडि - सिवन्द इडि, सॆऴिय - पिरगासिक्किऱ, कदै - कदै, मुसलम् - मुसलम्, तिरिसूलम् - तिरिसूलम्, तिगऴ्न्ददुम् - पिर कासित्तदुम्, अगिल - ऎल्ला, उलगुगळ् - लोगङ्गळुम्, ओर् अलङ्गलिल् - ऒरु मालैयिल्, कण्डैयाय् - मणिगळाय्, अडैय - मुऴुवदुम्, अडैविल् - वरिसैयाग, इलङ्ग - विळङ्गुम्बडि, आसु इऩ्ऱि - कुऱ्ऱमिल्लामल्, निऩ्ऱदुम् - निऩ्ऱ इडमुम्, अडियुम् - तिरुवडि निलैगळायुम्, पादुगैगळागवुम्, अरुगणैयुम्- तलैयणैयागवुम्, आम् - आगिऩ्ऱ। अरवु ऎऩ निऩ्ऱु - श्री आदिसेषऩ् पोल अदावदु आदिसेषऩैप्पोल कैङ्गर्यत्तिल् ईडुबट्टवर् ऎऩ्ऩुम् पडि, अडि अडैयुम् - तिरुवडिगळै आस्रयित्त, अडियवर् - तास पूदर्गळै, अऩ्बिऩाल् - प्रीदियाल्, अञ्जल् ऎऩ्बदुम् - पयप्पडादे ऎऩ्ऱु अबयम् कॊडुप्पदुम्, मगिऴ् - मगिऴ्गिऱ। अमरर् कणङ्गळ् तेवर्गळिऩ् कूट्टङ्गळ्, वाऩम् - सुवर्क्कत्तै, कवर्न्दिड - अडैवदऱ्काग, मलियुम् - कूट्टमाग निऱ्कुम्, असुरर् - असुरर्गळाले, कॊणर्न्द - उण्डाक्किऩ, मायम् तुऱन्ददुम् - मायैच् चॆय्गैगळैप् पोक्किऩदुम्, वळर् - वळर्न्दु कॊण्डिरुक्किऱ अदावदु निऱैन्दिरुक्किऱ, अणि - तिरुवाबरणङ्गळुडैय, मणि मिऩ्ऩ - इरत्तिऩङ्गळ् पिरगासिक्क, (अत्ताल्) वाऩ् - आगासमाऩदु, अन्दि - सन्दिया कालत्तै, कॊण्डिड - (अदावदु सन्दिया कालम् पोल् ज्वलिक्क), मऱै - वेदङ्गळ्, मुऱै मुऱै वणङ्ग - मुऱै मुऱैयाग सेविक्क, माऱिऩ्ऱि वॆऩ्ऱदुम् । तिरुम्बादबडि, (इवर्गळ्) उमिऴ् - उमिऴ्गिऱ अदावदु वॆळियिडुगिऱ, तेसु - तेजस्सुक्कळै, उन्द - वीसुगिऱ, तिणि - त्रुडमाऩ ; मरुळ् - अञ्ञानम्, सॆग - नसिक्कुम् पुडि , उगन्दु - प्रीदियुडऩ्, सेमङ्गळ् - क्षेमङ्गळै, सॆय्ददुम् - पण्णिऩदुम्, इन्द क्रिया पदङ्गळुक्कु ईरॆण् पुयङ्गळे ऎऩ्बदुडऩ् अन्वयम्। अदावदु इन्दक् कार्यङ्गळैच् चॆय्ददु पदिऩाऱु आयुदङ्गळै तरित्तिरुक्किऱ तिरुक्कैगळ् ऎऩ्ऱबडि।
मूलम्
इति यतिवर संप्रदायविद्भयः श्रुतमवधार्य विमृश्य वेङ्कटेशः।
प्रमितिपरिषदा समेतमेतं परमतभङ्गमभङ्गुरं व्यधत्त ॥
इदि यदिवर सम्ब्रदाय वित्प्य:
च्रुदम् अवदार्य विम्रुच्य वेङ्गडेस: |
प्रमिदिबरिषदा समेदमेदम्
परमदबङ्गम् अबङ्गुरम् व्यदत्त |
टीका
इप्पिरबन्दत्तिऩ् आरम्बत्तिल् ‘ऎण्डा अम्बुयत्तुळ् ‘ऎऩ्ऱारम्बिक्कुम् पाट्टिल् श्री सुदर्सऩाऴ्वाऩ् ऎट्टु आयुदङ्गळैत् तरित्तुक् कॊण्डिरुक्किऱार् ऎऩ्ऱु कूऱप्पट्टदु। इप्पाट्टिल् अवरे पदिऩाऱु आयुदङ्गळ् तरित्तु सेवै सादिक्किऱार् ऎऩ्ऱु अवरुक्कु इरण्डु रूबम् उण्डॆऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदायिऱ्ऱु। पगवाऩ् तऩ्ऩुडैय पिरदिवादिगळै निरसिप्पदु सक्करायुदत्तिऩालल्लवा? अदैप्पोल अवऩ् कुरुवरराय् अवदरित्त कालत्तिल् अच्चुदर्सऩाऴ्वाऩैक् कॊण्डे वादत्तिऱ्कु वन्द पिरदिवादिगळै निरसित्तारायिऱ्ऱु। इङ्गु तिगिरि ऎऩ्ऱु आरम्बिक्कुम् पाट्टिल् कूऱप्पट्ट पदिऩाऱु आयुदङ्गळैयुम् षोडसायुद स्तोत्तिरम् ऎऩ्ऩुम् स्तोत्तिरत्तिल् ऒव्वॊरु आयुदत्तिऱ्कुम् ऒरु स्लोगमाग स्तोत्तिरम् सॆय्दिरुक्किऱार्। षोडसायुद स्तोत्तिरत्तिल् अऩुसन् दिक्कप्पट्टिरुक्कुम् पदिऩाऱु आयुदङ्गळ् सक्करम्, मऴु, कुन्दम्’ तण्डम्, अङ्गुसम्, अक्ऩि, वाळ्, वेल्, पाञ्जजऩ्यम्, सार्ङ्गम्, पासम्, कलप्पै। वज्रम्, कदै, उलक्कै, तिरिसूलम् ऎऩ्बवै। इवैगळे इप्पाट्टिलुम् अदे क्रमत्तिल् कूऱप्पट्टिरुक्किऩ्ऱऩ। इप्प्रबन्दत्तिल् सारीरगार्त्त क्रमत्तैप् पिऩ्बऱ्ऱि कारणत्वम्, अबात्यत्वम्, उबायत्वम्, उबेयदा ऎऩ्गिऱ नालु अर्त्तङ्गळ् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदागुम्, अदावदु नालदिगारङ्गॊण्ड मुदल् पागत्तिल् पगवाऩुडैय कारणत्वम् निरूबिक्कप्पट्टदु। अदै ऒरुवरालुम् मऱुक्कमुडियादु ऎऩ्बदै मेल् १७ अदिगारङ्गळिल् अदै अबलाबम् सॆय्युम् परमदस्तर्गळै निर सित्तारायिऱ्ऱु। मेल् इरुबत्तिरण्डावदु अदिगारत्तिल् अवऩुडैय उबायत्वमुम्, इरुबत्तु मूऩ्ऱावदु अदिगारत्तिल् अवऩे उबेयम् ऎऩ्ऱुम् अदावदु अवऩे अडैयुम्बयऩ् ऎऩ्ऱुम् निरूबिक्कप्पट्टदु। २४-वदु अदिगारत्तिल् क्रन्द निगमऩम् सॆय्यप् पट्टि रुक्किऱदु।
- [प।रै) इदि- । इप्पडि, यदिवर सम्ब्रदाय वित्प्य : - यदिगळिल् सिरेष्टराऩ श्री पाष्यगाररुडैय सम्ब्रदायत्तै तॆरिन्दवर्गळिडम् इरुन्दु, च्रुदम् -। केट्टदै, अवदार्य - मऩदिल् नऩ्ऱाग तरित्तुक् कॊण्डु, विम्रुच्य। नऩ्ऱाग विसारित्तु, वेङ्गडेस: - श्री वेङ्गडेसऩ् ऎऩ्ऩुम् तिरुनामम् उडैयवर्, प्रमिदि परिषदा समेदम् - तत्व ज्ञानम् निरम्बिय महाऩ्गळिऩ् परिषत्तुक्कु अङ्गीगरिक्कत्तक्कदाऩ एदम्- इन्द, परमद पङ्गम् ऎऩ्ऩुम् क्रन्दत्तै अबङ्गुरम् ऒरुवारलुम् सलिप्पिक्कवॊण्णादबडि, व्यदत्त- अरुळिच् चॆय्दार्, इन्द च्लोगत्तिल् इप्पडि तम्माल् इन्द क्रन्दत्तिल् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टदु ऎल्लाम् ऎम्बॆरुमाऩारुडैय सम्ब्रदायत्तै मुऱ्ऱिलुम् पिऩ्बऱ्ऱियिरुक्कुमॆऩ्ऱु इन्द क्रन्दत्तिऩ् उबादेयत्वत्तै वॆळियिडुगिऱार्। सम्ब्रदायवित्प्य: ऎऩ्गिऱ पहु वसऩत्तिऩाल् श्री पाष्यगारर् तमक्कुप् पिऱगु इन्द सम्ब्रदायत्तै प्रवसऩम् सॆय्वदऱ्काग नियमित्त " “श्रीबाष्यम् श्री कीदा पाष्यम् श्री पगवत् विषयम् आगिय उबय वेदान्द सिम्हासऩाबदि श्रीबाष्यम् श्री कीदा पाष्यम् सिम्हासऩाबदि श्रीबाष्यम् श्री कीदा पाष्यम् रहस्यम् सिम्हासऩाबदि तिरुक्कुरुगैप् पिराऩ् पिळ्ळाऩ् नडादूर् आऴ्वाऩ् परम्बरैयाग नडादूर् अम्माळ् किडाम्बि आच्चाऩ् ऎङ्गळाऴ्वाऩ् (विष्णु सित्तर्) किडाम्बि रामाऩुजर् नडादूर् अम्माळ् किडाम्बि रङ्गराजर् किडाम्बि रामाऩुसप् पिळ्ळाऩ् ऎऩ्ऩप्पट्ट परम्बरैयाग किडैत्त अर्त्तङ्गळै उबदेसिक्कप्पॆऱ्ऱ ऎऩ्ऱबडि इङ्गु , ‘‘श्रीमत्प्याम् स्यादसावित्यनुबदि वरदासार्य रामाऩुजाप्याम् सम्यक् त्रुष्टेऩ’’ ‘‘यदीस्वर महानस सम्ब्रदायम् ’’ ‘‘वेदान्दोदयन सम्ब्रदाय सदाम्”
मूलम्
*यतीश्वर सरस्वती सुरभिताशयानां सतां
वहामि चरणाम्बुजं प्रणतिशालिना मौळिना।
तदन्यमत दुर्मद ज्वलित चेतसां वादिनां
शिरस्सु निहितं मया पदमदक्षिणं लक्ष्यताम् ॥
यदीस्वर सरस्वदी सुरबिदासयानाम् सदाम्
वहामि सरणाम्बुजम् प्रणदिसालिना मौळिना ।
तदन्यमद तुर्मद ज्वलिद सेदसाम् वादिनाम्
सिरस्सु निहिदम् मया पदमदक्षिणम् लष्यदाम् ॥
टीका
’ इत्तम् सत्सम्ब्रदायक्रम समदिगदासेष वर्णार्हवेद स्रत्ता सुत्तालयानाम् ’’ ’’ कीदा विष्णुबदी यदीस्वरवसस् तीर्त्तैरवागाह्यद” " यदि पदि ह्रुदया रूड———- वादि हंसाम्बु वाहै: ’’ ऎऩ्ऱु स्वामि तम्मालेये अरुळिच्चॆय्यप्पट्टिरुप्पदु अऩुसन्देयङ्गळागुम्। इप्पडि इन्दक्रन्दम् ऎम्बॆरुमाऩारुडैय सम्ब्रदायार्त्तङ्गळै नऩ्गु अऱिन्द आसार्यर्गळिऩाल् उबदेसिक्कप्पट्ट अर्त्तङ्गळिऩ् सङ्ग्रहम्। आगैयिऩाल् इदऩ् उबादेयदमत्वम् निरूबिक्कप्पट्टदायिऱ्ऱु।
- (प-रै) यदीच्वर - श्रीबाष्यगाररुडैय, सरस्वदी - श्रीसूक्तिगळिऩाल्, सुरबिद-परिमळित्त आसयानाम् - मऩदैयुडैय, सदाम् - सत्तुक्कळुडैय, सरणाम्बुजम् - तिरुवडित्तामरैगळै, प्रणदिसालिना - वणक्कमुडैय, सिरसा-सिरस्सिऩाल् (तलैयिऩाल्) वहामि- तरित्तुक् कॊळ्ळुगिऱेऩ्, तदन्य । अदैविड वेऱुबट्ट, मद - मदङ्गळिल्, तुर्मद - कर्वत्तिऩाल्, ज्वलिद - पऱ्ऱियॆऱिगिऱ, सेदसाम् - मऩमुडैय, वादिऩाम् - वादिगळुडैय, सिरस्सु – तलैगळिऩ् मेल्, मया - ऎऩ्ऩाल्, अदक्षिणम् पदम् - इडदुगाल्, निहिदम् - वैक्कप्पट्टदु, लक्षयदाम् - पार्क्कप्पडट्टुम्।
इन्द च्लोगमुम् मेल् च्लोगमुम् श्री यदिराज सप्तदियिलुम् श्री सङ्गल्ब सूर्योदयत्तिलुम् उसिद प्रगरणत्तिल् स्वामि तम् मालेये सेर्क्कप्पट्टिरुक्किऱदु, इदिल् इरण्डु अर्त्तङ्गळ् नमक्कु उबदेसिक्कप्पडुगिऩ्ऱऩ । श्रीवैष्णव सम्ब्रदायत्तिऱ्कु असादारणमाऩ तिरुवॆट्टॆऴुत्तिऩ् अर्त्तत्तै अदऩ् प्रदिबात्य तेवदैयाऩ सर्वेस्वरऩ् पक्कलिले क्रहित्तरुळिय कलियऩ् अदऩ् अर्त्तमाग इन्द स्लोगत्तिल् उबबादिक्कप्पट्ट इरण्डु अंसङ्गळैयुम् " मऱ्ऱुमोर् तॆय्वम् उळदॆऩ्ऱु, इरुप्पारोडु उऱ्ऱिलेऩ्* उऱ्ऱदुम् उऩ्ऩडियार्क्कडिमै* मऱ्ऱॆल्लाम् पेसिलुम् निऩ् तिरुवॆट्टॆऴुत्तुम् कऱ्ऱु नाऩ् * कण्णप्पुरत्तुऱैयम्माऩे ’’ ऎऩ्ऱु नमक्कु उबदेसित्तु अरुळिऩार्। अदुवे इङ्गु श्री स्वामियाल् अरुळिच् चॆय्यप्पट्टिरुक्किऱदु। श्रीमत् रहस्यत्रय सारत्तिल् पुरुषार्त्तगाष्टादिगारत्तिल् पागवद तास्यत्तिऩ् परागाष्टैयिल् निऩ्ऱिरुन्द स्वामि अन्द पुरुषार्त्तत्तै ऎम्बॆरुमाऩिडमुम् यासिक्कमाट्टोम् पागवदर्गळे अदै तमक्कु अरुळ्बुरियवेण्डुम् ऎऩ्ऱु ’’ नाथे न: ’’ ऎऩ्गिऱ स्लोगत्तिल् अरुळिच्चॆय्दु इरुक्किऱार्। तदऩ्यमद इत्यादि मेल् पादि स्लोगत्तिऩ् अर्त्तमाग इन्द क्रन्दत्तिल् नालावदु अदिगारत्तिऩ् इऱुदियिल् ‘‘त्रय्यन्दत् त्राण मेदत् ’’ ऎऩ्गिऱ च्लोग विवरणत्तिल् विवरित्तु कूऱप्पट्टिरुप्पदै सेर्त्तु पडित्तुक् कॊळ्ळवुम्। “यदीस्वर सरस्वदी सुरबिदासयानाम् सदाम्’’ ऎऩ्ऱदु श्री कुरु परम्बरासारत्तिल् स्वामि तम्मालेये अरुळिच् चॆय्यप्पट्ट श्रीबाष्यम्, सारम्, तीबम्, वेदार्त्त सङ्ग्रहम्, श्री कीदाबाष्यम् पॆरिय कत्यम्, सिऱिय कत्यम्, श्री वैगुण्ड कत्यम्, नित्यम् ऎऩ्गिऱ ऒऩ्बदु श्री सूक्तिगळागुम्। इवऱ्ऱिल् मुदल् नाऩ्गुम् संस्क्रुद वेदङ्गळिऩ् अर्त्तङ्गळै विळक्किक् कूऱा निऱ्कुम्। वेदङ्गळैप् पोलवे पगवाऩुडैय तिरुवाक्किलिरुन्दु किळम्बिय उबनिषत्तागिऱ कीदैयिऩ् अर्त्तत्तै विळक्कुम् श्री कीदाबाष्यम्। आग इन्द ऐन्दु क्रन्दङ्गळुम् उबय वेदान्दङ्गळिल् ऒरु पागमाऩ संस्क्रुद च्रुदिगळिऩ् अर्त्तत्तैक् कूऱा निऱ्कुम्। कत्यङ्गळ् मूऩ्ऱुम् त्रमिडच्रुदिगळिऩ् अर्त्तत्तै प्रदिबादिक्कुम्। प्रबन्नऩुक्कु उबायानुष्टाऩत्तिऱ्कुप् पिऱगु वेऱॊऩ्ऱुम् सॆय्यवेण्डियदु इल्लैयेयागिलुम् इस् संसारत्तिल् इरुक्कुम् वरैयिल् सास्त्रङ्गळिल् विदिक्कप्पट्ट नित्यगर्मानुष्टाऩङ्गळै प्रबन्नऩुम् सात्विगत्याग पूर्वगमाग पगवदारादऩम् ऎऩ्ऱु कॊण्डु सॆय्यवेण्डुम् ऎऩ्बदै नियमिक्किऱदु नित्य मॆऩ्ऩुम् क्रन्दम्। इव्वर्त्तत्तै स्वामि तामे उत्तर क्रुत्यादिगारत्तिल् ’ सन्दोषार्त्तम् विम्रुसदि मुहु; सत्पि: अत्यात्म वित्याम् नित्यम् प्रूदे निसमयदि स स्वादु सव्याह्रुदानि अङ्गीगुर्वन् अनगलळिदाम् व्रुत्तिम् आदेह पादात् त्रुष्टात्रुष्ट स्वबरविगमे तत्त त्रुष्टि: प्रबन्न; ऎऩ्ऱु अरुळिच् चॆय्दिरुक्किऱार्। आग इन्द च्लोगत्ताल् पगवदारादऩ रूबमाग नित्यगर्माऩुष्टाऩङ्गळै सॆय्दु कॊण्डुम् उबय वेदान्द क्रन्दङ्गळै प्रवसऩम् सॆय्दु कॊण्डुम् तङ्गळ् कालङ्गळैक् कऴिक्कुम् पागवदोत्तमर्गळे नम्माल् सेविक्कत्तक्कवर्गळ्। अदऱ्कुप् पुऱम्बाऩ मऱ्ऱवर्गळ् ऎल्लोरुम् तूर तळ्ळप्पडवेण्डियवर्गळ् ऎऩ्ऱु उबदेसिक्कप् पट्टदायिऱ्ऱु। इप्पडि ओर् उरुविल् अस्मत् स्वामि कुरुबरम्बरासारत्तिऩ् वाक्कियत्तिऱ्कु विवरणम् अरुळिच् चॆय्युम्बडियाय् इरुन्ददु। मऱ्ऱोर् उरुविल् माऱऩ् मऱैयुम् इरामाऩुसऩ् पाष्यमुम् तेऱुम्बडि उरैक्कुम् सीरुडैय स्वामि तेसिगऩ् तिरुवुळ्ळप्पडि श्री पाष्यगारर् श्रीसूक्तिगळॆल्लाम् माऱऩ् मऱैयैप् पिऩ्बऱ्ऱियदाय् इरुक्कुम्। आगैयाल् इङ्गु
मूलम्
*इदं प्रथमसंभवत्कुमतिजालकूलङ्कषा।
मृषामत विषानल ज्वलित जीव जीवातवः ॥
क्षरन्त्यमृतमक्षरं यतिपुरन्दरस्योक्तयः |
चिरन्तन सरस्वती चिकुरबन्धसैरन्ध्रिकाः ॥
इदम् प्रदमसम्बवत्कुमदि जालगू लङ्गषा
म्रुषामद विषा नल ज्वलिद जीव जीवादव: ।
क्षरन्द् यम्रुदमक्षरम् यदि पुरन्दरस्योक्तय:
सिरन्दऩ सरस्वदी सिगुरबन्द सैरन्द्रिगा : ॥
इति श्री कवितार्किक सिंहस्य सर्वतन्त्र स्वतन्त्रस्य
श्रीमद्वेङ्कटनाथस्य श्रीमद्वेदान्ताचार्यस्य
कृतिषु श्री परमतभङ्गे निगमनाधिकारश्चतुर्विशः
इरुबत्तिनालावदु निगमऩादिगारम्
इति उपेय निरूपणः चतुर्थो भागः
श्री परमत भङ्गः संपूर्णः
कवितार्किक सिंहाय कल्याण गुणशालिने ॥
श्रीमते वेङ्कटेशाय वेदान्त गुरवे नमः ॥
वादिद्विप शिरोभङ्ग पञ्चाननपराक्रमः ।
श्रीमान्वेङ्कटनाथार्यः चिरं विजयतां भुवि ।
॥ श्रीमते निगमान्त महादेशिकाय नमः ॥
टीका
** यदीच्वर सरस्वदी सरबिदास यानाम् ’’ ऎऩ्ऱदु पिऩ्ऩरुळाल् पॆरुम् पूदूर्वन्द वळ्ळल् पॆरिय नम्बि आळ वन्दार् मणक्काल् नम्बि नऩ्ऩॆऱियै अवर्क्कुरैत्त उय्यक् कॊण्डार् नाद मुऩि सडगोबऩ् ऎऩ्ऩप्पट्ट श्रीमत्यामुन, श्रीमन्नाद, श्री सडगोबाक्य आसार्यर्गळुडैय श्री सूक्तिगळैयुम् उबलक्षिक्किऱदु ऎऩ्ऱु निर्वहिक्कुम् पडियाय् इरुन्ददु। यदिबदि, यदीस्वर मुदलिय पदङ्गळ् प्रादान्येऩ ऎम् पॆरुमाऩारुडैय श्री सूक्तिगळै कुऱिक्कुमेयागिलुम् अवैगळ् यौगिग व्युत्पत्तियिऩाल् मऩऩ सीलर्गळाऩ श्रीसडगोब श्रीमन्नाद’ श्रीमत्यामुऩर्गळैयुम् कुऱिक्किऱदु। अत्ताल् अवर्गळ् श्री सूक्तिगळुम् इङ्गु विवसिदम् आगिऩ्ऱऩ। *[प।रै] इदम्- इन्द, प्रदम सम्बवत्- पुदिदु पुदिदागक् किळम्बुगिऱ कुमदि - कुमदिगळुडैय, जाल - कूट्टङ्गळै, कूलङ्गषा: - पोक्कडिक्किऱदुम्, म्रुषामद - मायामदमागिऱ (अत्वैदमागिऱ) विषानल - विषम् पोऩ्ऱ नॆरुप्पिऩाले, ज्वलिद - ज्वलिक्किऱ, जीव - जीवर्गळुक्कु, जीवादव: - जीवित्तिरुप्पदऱ्कु मरुन्दायिरुप्पदुम्, सिरन्दऩ सरस्वदी - वेदवाणियिऩुडैय, सिगुरबन्द- केसबासत्तैप्परिष्करिक्किऱ, सैरन्द्रिगा: - तादिगळाग इरुक्किऱदुमाऩ, यदिबुरन्दरस्य - यदिगळुळ् सिरेष्टराऩ श्री पाष्यगाररुडैय, उक्तय:- श्री सूक्तिगळ्, अक्षरम् - नासमिल्लाददाऩ, अम्रुदम् - अमिर्दत्तै, अदावदु मोक्षत्तै, क्षरन्दि - पॆरुक्कुगिऩ्ऱऩ। कीऴ् च्लोगत्तिल् ऎम्बॆरुमाऩारुडैय श्री सक्तिगळुक्कु उण्डाऩ पॆरुमैयै इरण्डु विदमाग ऎडुत्तुक् कूऱिऩार्। अदावदु पागवद पक्तियै उण्डाक्कुवदुम् प्रदिवादिगळै विरट्टियडिप्पदुम् आगुम्। इन्द च्लोगत्तिल् अन्द श्री सूक्तिगळ् संसारत्तिल् अऴुन्दिक्कॊण्डिरुक्कुम् जीवात्माक्कळुक्कु नित्यमाऩ अम्रुदमाग निऩ्ऱु मोक्षत्तैक् कॊडुक्कुम् ऎऩ्गिऱ मऱ्ऱॊरु आगारम् निरूबिक्कप्पडुगिऱदु। परमदबङ्गम् मुऱ्ऱुम्।