+१९ नित्य-रूप-पत्नी-सूरि-लोकादि

नीलमेघः

आगे श्रीरामानुजस्वामी जी
श्रीभगवान की उस नित्यविभूति का समर्थन करते हैं
जिसे किसी वेदान्ती ने भी नहीं माना है ।