विश्वास-प्रस्तुतिः
अयम् अर्थो नारायणानुवाके प्रपञ्चितः ।
“सहस्रशीर्षं देवम्” इत्यारभ्य
स ब्रह्म स शिवः सेन्द्रः
सो ऽक्षरः परमः स्वराड्
इति सर्व-शाखासु पर-तत्त्व-प्रतिपादन-परान् अक्षर-शिव-शंभु-
-पर-ब्रह्म–पर-ज्योतिः–पर-तत्त्व–
परायण-परमात्मादि–सर्व-शब्दांस्
तत्-तद्-गुण-योगेन नारायण एव प्रयुज्य
नीलमेघः
किंच, नारायणानुवाक में उपर्युक्त अर्थ विस्तार से कहा गया है ।
“सहस्रशीर्षं देवम्” से नारायणानुवाक का प्रारम्भ होता है ।
वेदशाखाओं में परतत्त्व का प्रतिपादन करने के लिये
“अक्षर " “शिव” “शम्भु” “परब्रह्म” “परज्योतिः” “परतत्त्व” “परायण” “परमात्मा” इत्यादि शब्द प्रयुक्त हुये हैं ।
इस नारायणानुवाक में
उन सभी शब्दों को नारायण के विषय में प्रयुक्त करके
यह दिखाया गया है कि
विभिन्न वेदशाखाओं में
इन शब्दों से नारायण ही अभिहित होते हैं
क्योंकि इन शब्दों के द्वारा प्रतिपादित होने वाले प्रत्येक गुण
नारायण में ही पूर्णमात्रा में रहते हैं।
किंच, विभिन्न उपनिषदों में उपर्युक्त शब्दों से
उपास्यतत्त्व का निर्देश किया गया है ।
इस नारायणानुवाक में उन शब्दों से
नारायण का निर्देश करके
यह दिखाया गया है कि सभी परब्रह्म विद्याओं में
उपास्य परतत्त्व नारायण ही है ।
नारायण ही उन विद्याओं में
विभिन्न शब्दों से वर्णित है ।
मूलम्
अयमर्थो नारायणानुवाके प्रपञ्चितः ।
“सहस्रशीर्षं देवम्” इत्यारभ्य
स ब्रह्म स शिवः सेन्द्रः
सोऽक्षरः परमः स्वराड्
इति सर्वशाखासु परतत्त्वप्रतिपादनपरानक्षरशिवशंभु
परब्रह्मपरज्योतिःपरतत्त्व
परायणपरमात्मादिसर्वशब्दांस्तत्तद्गुणयोगेन नारायण एव प्रयुज्य
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद्-व्यतिरिक्तस्य समस्तस्य तद्-आधारतां तन्-नियाम्यतां तच्-छेषताम् तद्-आत्मकतां च प्रतिपाद्य
नीलमेघः
इस अर्थ का प्रतिपादन करके
नारायणानुवाक आगे यह सिद्ध करता है कि
श्री नारायण को छोड़कर
इस जगत् में जितने चेतनाचेतन पदार्थ हैं,
वे सब नारायण के आधीन हैं,
नारायण इनमें अन्दर बाहर व्याप्त होकर रहते हैं,
ये नारायण के द्वारा व्याप्य हैं,
नारायण इनका आधार हैं,
ये नारायण पर आधारित हैं,
नारायण इनके नियामक हैं ये नारायण के नियाम्य हैं,
नारायण इनके स्वामी हैं ये नारायण के शेष हैं,
ये नारायणात्मक हैं क्योंकि नारायण
इनके आत्मा हैं
ये नारायण के शरीर हैं
मूलम्
तद्व्यतिरिक्तस्य समस्तस्य तदाधारतां तन्नियाम्यतां तच्छेषताम्तदात्मकतां च प्रतिपाद्य
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रह्म-शिवयोर् अपीन्द्रादि-समानाकारतया
तद्-विभूतित्वं च प्रतिपादितम् ।
नीलमेघः
[[२१०]]
इन विशेषताओं का वर्णन करके आगे नारायणानुवाक
“स ब्रह्मा स शिवः सेन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट्” कहकर
यह सिद्ध करता है कि
ब्रह्मा शिव और इन्द्र इत्यादि शब्दों से
ब्रह्मादियों का अन्तर्यामी नारायण ही अभिहित होते हैं ।
ब्रह्मा और शिव भी इन्द्र की तरह
नारायण की विभूति हैं,
नारायण के आधीन रहने वाले हैं ।
मूलम्
ब्रह्मशिवयोर् अपीन्द्रादिसमानाकारतया तद्विभूतित्वं च प्रतिपादितम् ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
इदं च वाक्यं
केवल-पर-तत्त्व–प्रतिपादनैक-परम्,
अन्यत् किंचिद् अप्य् अत्र न विधीयते ।
नीलमेघः
यह अनुवाक इस प्रकार वर्णन करके
नारायण को सर्व श्रेष्ठ परतत्त्व सिद्ध करता है ।
परतत्त्व का निर्धारण करने के लिये ही यह अनुवाक प्रवृत्त है ।
परतत्त्व निर्धारण के सिवाय
दूसरे किसी अपूर्व अर्थ का
इस अनुवाक में वर्णन नहीं है ।
मूलम्
इदं च वाक्यं केवलपरतत्त्वप्रतिपादनैकपरम् अन्यत् किंचिद् अप्य् अत्र न विधीयते ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्मिन् वाक्ये प्रतिपादितस्य
सर्वस्मात् परत्वेनावस्थितस्य ब्रह्मणो
वाक्यान्तरेषु
ब्रह्म-विद् आप्नोति परम्
इत्य्-आदिषूपासनादि विधीयते
+++(न तु तद्-विपरीतम् - “उपासनावाक्योक्तं कारणवाक्यय् अवगन्तव्यम्” इति)+++।
नीलमेघः - सर्वान्तरात्मा
किंच उपनिषदों में परब्रह्म सबका अन्तरात्मा कहा गया है।
सुबालोपनिषद् में
“एष सर्वभूतान्तरात्माऽपहतपाप्मा
दिव्यो देव एको नारायणः”
कहकर
एक नारायण देव ही
सर्वप्राणियों का अन्तरात्मा एवं निर्दोष
कहे गये हैं ।
इससे सिद्ध होता है कि
सर्व जीवों का अन्तरात्मा बनने वाले नारायण ही परब्रह्म हैं ।
सारांश यह है कि
नारायण ही परतत्त्व एवं परब्रह्म हैं ।
नीलमेघः - कारण-वाक्यानि
जगत्-कारण-तत्त्व को बतलाने वाले
सत् ब्रह्म आत्मा इत्यादि शब्दों का
छागपशुन्याय से नारायण शब्दोक्त विशेष में पर्यवसान होता है,
इससे यही सिद्ध होता है कि
नारायण ही विभिन्न उपनिषदों में
विभिन्न शब्दों से जगत्कारण कहे गये हैं ।
जगत्-कारण बनने वाले नारायण ही परब्रह्म हैं,
क्योंकि जगत्-कारणत्व ही ब्रह्म का लक्षण है ।
किंच, पुरुष सूक्त -
जो सभी वेदों में पठित है
पुरुष-शब्द-वाच्य नारायण को ही
जगत् का कारण बतला रहा है।
किंच, “ह्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ” कहकर
जगत्कारणतत्त्व को लक्ष्मीपति कहा गया है,
नारायण ही लक्ष्मीपति हैं ।
वे ही जगत्कारण परब्रह्म सिद्ध होते हैं।
किंच, विभिन्न उपनिषदों में
परब्रह्म विद्या के प्रकरण एवं जगत्कारणतत्त्व के वर्णन के प्रकरणों में
उपास्य परतत्त्व का निर्देश करने के लिये प्रयुक्त विविध शब्दों को
नारायणानुवाक ने श्रीमन्नारायण के विषय में प्रयुक्त करके
सिद्ध कर दिया है कि
नारायण ही विभिन्न उपनिषदों में
विभिन्न शब्दों से
जगत्कारण एवं उपास्य कहे गये हैं ।
नीलमेघः - उपासना-वाक्य-विवक्षा
इन सब प्रमाणों से
नारायण ही जगत्कारण परब्रह्म सिद्ध होते हैं,
देवतान्तर वाचक शब्दों का भी
नारायण में प्रयोग करके
नारायणानुवाक ने यह सिद्ध कर दिया है कि
कहीं भी देवतान्तर वाचक शब्दों को देखकर
यह न समझना चाहिये कि
यह प्रकरण देवतान्तर का वर्णन करता है,
किन्तु उन शब्दों को नारायणवाचक मानकर
उन प्रकरणों को नारायण प्रतिपादक मानना चाहिये ।
कारणवाक्य, पुरुषसूक्त और नारायणानुवाक से
नारायण सर्वश्रेष्ठ परतत्त्व परब्रह्म सिद्ध होते हैं,
“ब्रह्मविदाप्नोति परम्” इत्यादि उपनिषद् वाक्य
उपर्युक्त परब्रह्म नारायण का उपासन करने के लिये विधान करते हैं ।
परब्रह्म अमुक देवताविशेष है, अर्थात् श्रीमन्नारायण है,
इस प्रकार तत्त्व परक वाक्यों से सिद्ध होने के बाद ही
उपासना विधायक वाक्य प्रवृत्त होते हैं,
पूर्व नहीं ।+++(5)+++
बाद में उपासना विधायक वाक्य आकर उस देवताविशेष के
अर्थात् नारायण के उपासन का विधान करते हैं,
जिस देवता को परब्रह्म के रूप में
पहले ही निर्णय किया गया है ।
ऐसी स्थिति में
मोक्षार्थ उपासना का विधान करने वाले वचनों में
दूसरे देवता का उल्लेख नहीं हो सकता है,
यदि कहीं पर हो
तो उस शब्द को नारायणवाचक मानकर
नारायण की उपासना का ही वहाँ विधान मानना चाहिये ।
यह निर्णय नारायणानुवाक से प्रमाणित है ।
मूलम्
अस्मिन् वाक्ये प्रतिपादितस्य सर्वस्मात् परत्वेनावस्थितस्य ब्रह्मणो वाक्यान्तरेषु ब्रह्मविद् आप्नोति परम् इत्यादिषूपासनादि विधीयते ।
नीलमेघः
[[२११]]
पूर्वपक्षी के द्वारा
“प्राणं मनसि सह करणैः”
इत्यादि जो वाक्य
इस भाव से प्रस्तुत किये गये हैं कि
ये वाक्य मोक्षार्थ शिव के ध्यान का विधान करते हैं,
इसलिये शिवजी को परतत्त्व एवं परब्रह्म मानना चाहिये,
वे वाक्य भी
नारायण की उपासना का ही विधान करते हैं,
वहाँ “शम्भु" इत्यादि शब्दों से नारायण ही अभिहित होते हैं ।
इस प्रकार का निर्णय
नारायणानुवाक से प्रमाणित होने के कारण आदरणीय है।
आगे पूर्वपक्षी के द्वारा उदाहृत प्रत्येक वाक्य का
नारायण में समन्वय किया जाता है ।