११ शोधक-वाक्यानि

विश्वास-प्रस्तुतिः

शोधकेष्व् अपि +++(वाक्येषु)+++

सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म,

“आनन्दो ब्रह्मे"त्य्-आदिषु वाक्येषु
सामान्याधिकरण्य-व्युत्पत्ति-सिद्ध-
अन्-एक-गुण-विशिष्टैकार्थावबोधनम् अविरुद्धम्

इति सर्व-गुण-विशिष्टं ब्रह्माभिधीयत

इति पूर्वम् एवोक्तम् ।

नीलमेघः - सङ्गतिः

“सदेव सोम्येदमग्र आसीत्” यह वाक्य जगत्कारणवस्तु का प्रतिपादक है ।
अतव कारणवाक्य कहलाता है ।
अद्वैतियों ने इस वाक्य का उद्धरण देकर
यह सिद्ध करने के लिये प्रयास किया कि
यह वाक्य निर्विशेष ब्रह्म का प्रतिपादन करता है,
तथा भेदों का निषेध करता है ।
श्रीभाष्यकार स्वामी जी ने यहाँ तक के ग्रन्थ से
अद्वैतियों के उपर्युक्तवाद का निराकरण किया है।

कारणवाक्य के बाद
शोधकवाक्यों की प्रवृत्ति मानी जाती है ।

नीलमेघः

कारणवाक्य के द्वारा
जगत्कारणवस्तु के विषय में
यह शंका होना सहज है कि
जगत्कारणवस्तु भी लोकदृष्टकारणों के समान ही होगी।
लोक में जो २ उपादानकारण हैं,
वे विकारयुक्त, जड एवं परिच्छिन्न है ।
जगत्कारणवस्तु भी इसी प्रकार की होगी ।
ऐसी शंकाओं का निराकरण करके
जगत्कारणवस्तु को सर्वविलक्षण सिद्ध करने के लिये
“सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” इत्यादि शोधकवाक्य प्रवृत्त हैं ।
इस वाक्य से अद्वैतियोँ ने
निर्विशेष ब्रह्म को सिद्ध करना चाहा।
इस पर श्रीरामानुज स्वामी जी ने कहा कि
इस वाक्य का यह अर्थ है कि
ब्रह्म सत्य ज्ञान एवं अनन्त है ।
यह वाक्य समानाधिकरण वाक्य है
अर्थात् सत्य ज्ञान और अनन्त
इन पदों के अर्थों में अभेद को सिद्ध करता है ।
इस वाक्य से
ब्रह्म में सत्यत्व ज्ञानत्व एवं अनन्तत्व गुण
सिद्ध होते हैं
जगत्कारण ब्रह्म निर्विकार है,
इसलिये सत्य कहलाता है,
वह स्वयंप्रकाश एवं ज्ञानवान् होने से
ज्ञान कहलाता है
तथा अपरिच्छिन्न होने से अनन्त कहा जाता है ।
इस प्रकार सत्यत्व ज्ञानत्व एवं अनन्तत्व
इन गुणों से युक्त एक अर्थ
ब्रह्म का वर्णन इस वाक्य में है ।
इससे मानना पड़ता है कि
सर्वगुणविशिष्ट ब्रह्म ही इस वाक्य से अभिहित होता है
यह बात पहले ही एकबार सिद्ध की गई है ।

“सत्यं ज्ञानम्” इत्यादि शोधकवाक्य से
सविशेष ब्रह्म ही सिद्ध होता है, निर्विशेष नहीं ।

मूलम्

शोधकेष्व् अपि सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म, आनन्दो ब्रह्मेत्यादिषु वाक्येषु सामान्याधिकरण्यव्युत्पत्तिसिद्धानेकगुणविशिष्टैकार्थावबोधनम् अविरुद्धम् इति सर्वगुणविशिष्टं ब्रह्माभिधीयत इति पूर्वम् एवोक्तम् ।