- श्रीः श्रीबालमुकुन्दग्रन्थमाला - ११
श्रीभगवद् रामानुज विरचित
वेदार्थ-संग्रह
हिन्दी व्याख्या समेत
हिन्दी व्याख्याकार
श्रीभार्थ्यासहासनाधिपति
स्वामी श्री नीलमेघाचार्य जी काशी
सं० २०१८
{ सन् १६६१ २०१८ }
- श्रीः *
श्रीभगवद् रामानुज विरचित जीका
वेदार्थ-संग्रह
हिन्दी व्याख्या समेत
हिन्दी व्याख्याकार
श्री उभायसिंहासनाधिपति
स्वामी श्री नीलमेघाचार्य जी काशी
卐
निवेदन
वेदार्थसंग्रह भगवान् रामानुजाचार्य की अमर रचना है । इसका उदय श्रीवेंकटेश भगवान् के सान्निध्य में एक भाषण के रूप में हुआ था । इस ग्रन्थ में विशिष्टाद्वैत वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों का सरल एवं स्पष्ट विवेचन है । श्री भाष्यसिंहासनाधिपति स्वामी श्री नीलमेघाचार्य जी महाराज ने इस ग्रन्थ की हिन्दी में व्याख्या की है । वैकुण्ठवासी सेठ श्री मगनीराम जी बांगड की पुण्यस्मृति में उनके आचार्य अनन्त श्रीसमलंकृत जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री उत्तराहोबिल झालरिया मठाधीश्वर स्वामी श्री बालमुकुन्दाचार्य महाराज के नाम से अलंकृत श्री बालमुकुन्द - प्रन्थमाला का आरम्भ किया गया है । इस ग्रन्थमाला के ग्यारहवें पुष्प के में इस व्याख्या समेत वेदार्थसंग्रह को प्रकाशित किया जाता है । पाठकगण इसे अपनाकर अनुगृहीत करेंगे ऐसा विश्वास है ।
रूप-सम्पादक
सम्पादक-राघवाचार्य
प्रकाशक - प्राचार्यपीठ बरेली
मुद्रक - प्राचार्य प्रेस, बरेली ।
विषयावली
विषयानुक्रमणिका
क्रम संख्या विषय
१ प्रथम मंगलाचरण
२ द्वितीय मंगलाचरण
स्वपक्ष का संक्षिप्त वणन
वैदिक परम पुरुषार्थ का साधन
साधन प्रतिपादक उपनिषद्वचन
जीवात्मा का स्वरूप
परमात्मा का स्वरूप
परमात्मा के वैभव के प्रतिपादन में श्रुतियों का तात्पर्य
श्री शङ्कराचार्य मत का संक्षिप्त वर्णन
श्री भास्कराचार्य मत का संक्षिप्त वर्णन १० श्रीयादवप्रकाशाचार्य मत का संक्षिप्त वर्णन
श्रीशंकराचार्य मत का निराकरण - उसमें अति विरोध का प्रतिपादन
उभयलिङ्ग प्रतिपादक श्रुति वचनों से विरोध -
सद्विद्या का सविशेष ब्रह्म के प्रतिपादन में तात्पर्य २६
१२ अद्वैतियों द्वारा ब्रह्म के निर्विशेषत्व का समर्थन
सर्वविज्ञान प्रतिज्ञा का तात्पर्य
उद्दालक प्रश्न का तात्पर्य
१५ श्वेतकेतु का प्रश्न और उद्दालक का उत्तर ३३
श्वेतकेतु की प्रार्थना और उद्दालक के द्वारा जगत्कारण तत्त्व का उपदेश ३६ सद्ब्रह्म का उभयविध कारणत्व ३८
१८ नामरूप व्याकरण का वर्णन ४१
१६ नामरूप व्याकरण श्रुति के भावार्थ का स्पष्टीकरण
२० “तत् त्वमसि” इस श्रुति वाक्य का अर्थ ४४
२२ शरीरात्मभाव को लेकर प्रपञ्च का ब्रह्मात्मकत्व
" तत् त्वमसि " श्रत्यर्थ का समर्थन ४५
२३ सभी पदार्थों का ब्रह्मात्मकत्व तथा सभी शब्दों का ब्रह्मवाचकत्व ४८
२४ लोकव्युत्पति बाध शंका का समाधा ५०
२६ वैदिक एवं लौकिक शब्दों में ऐक्य
सद्विद्या संबन्धी विचार का उपसंहार २७
शोधक वाक्यों से भी ब्रह्म की सविशेषता की सिद्धि
३१ अद्वैतियों द्वारा वर्णित आर्थगुण निषेध का निराकरण
अद्वैतियों द्वारा वर्णित " तत्त्वमसि" वाक्यार्थ का निराकरण
शब्द प्रमाण से निर्विशेषवस्तु की अप्रतिपादकता
निर्विशेष ब्रह्म के स्वयं प्रकाशवाद का निराकरण
निर्विकल्पक प्रत्यक्ष द्वारा निर्विशेषवस्तु ग्राहकत्व का निराकरण ७०
अद्वैतियों द्वारा वर्णित “सदेव” इत्यादि वाक्य व्याख्या का निराकरण
अभिन्न निमित्तोपादानत्व की प्रतिपादक श्रुतियों की व्याख्या “सदेव” इत्यादि श्रुतिवाक्य से सविशेष ब्रह्म की सिद्धि
३३ जाति और व्यक्ति में भेदाभेदवाद का निराकरण
३४
३५
अद्वैतियों द्वारा वर्णित “वाचारम्भण” श्रुति व्याख्या का निराकरण अद्वैतमत में श्रुति वर्णित मृत्पिण्डादि दृष्टान्त की अनुपपत्ति
४३ वैशेषिक दार्शनिकोक्त असत्कार्यवाद के निराकरण में श्रुति का तात्पर्य अद्वैतियों द्वारा वर्णित शून्यवाद निराकरणपरक व्याख्या का खण्डन शोधक वाक्यों से भी सविशेष ब्रह्म की ही सिद्धि होती है
“नेति नेति” इस श्रुति वाक्य से भी प्रपञ्च निषेध की असिद्धि का प्रतिपादन
“नेह नानास्ति” इत्याति श्रुति वाक्य से प्रतिपादित प्रपञ्च निषेध का खण्डन अद्वैत सिद्धान्त के निराकरणार्थ न्याय विरुद्धत्व का प्रतिपादन
४४ विद्या से ब्रह्म के तिरोधान की अनुपपत्ति
४५ अद्वैतियों द्वारा विशिष्टाद्वैत मत में जीवात्मतिरोधानानुपपत्ति का वर्णन
४७ उपर्युक्त दोष समाधानार्थं अद्वैत से विशिष्टाद्वैत में विद्यमान वैशिष्ट्य का वर्णन विशिष्टाद्वैत सैद्धान्तिकार्थ स्थापक प्रमाण वचन
४८ अद्वैत में ब्रह्म तिरोधान के असंभव और विशिष्टाद्वैत में जीवात्म तिरोधान के संभव का प्रतिपादन ।
४६ जीवात्मा के धर्मभूत ज्ञान के संकोच एवं विकास में प्रमाण
५१ अद्वैत मत में अविद्या के स्वरूप की अनुपपत्ति का वर्णन
अद्वैतियों द्वारा वर्णित एक जीववाद का निराकरणं १०१
( ग )
५५ निवर्तकानुपपत्ति एवं निवृत्त्यनुपपत्ति का वर्णन
ज्ञात्रनुपपत्ति का वर्णन
निवर्तकज्ञानोत्पादक सामग्री की अनुपपत्ति का वर्णन
ब्रह्म के अबाधित सत्यत्ववाद का निराकरण १०४
५६ अद्वैतियों का बाद में अनधिकार वर्णन ११२
५७
प्रत्यक्ष का प्राबल्य निरूपण एवं अद्वैत निराकरण का उपसंहार श्री भास्कराचार्य संगत द्वैताद्वैतवाद का निराकरण
११३
११५
५८
इस मत में जीवब्रह्मैक्य मानने से ब्रह्म की निर्दोषता की सिद्धि
११५
५६
द्वैताद्वैतवादियों द्वारा वर्णित श्रोत्रेन्द्रिय दृष्टान्त का वैशेषिक मत के अनुसार खण्डन
११८
६०
उपर्युक्त दृष्टान्त का औपनिषद मत के अनुसार खण्डन
१२१
६१
द्वैताद्वैत मत में आपादित ब्रह्मसदोषत्व दूषण का प्रकारान्तर से समर्थन
१२३
श्रीयादव प्रकाशाचार्य संगत स्वाभाविक द्वैताद्वैत वाद का निराकरण
१२४
६२
श्रीयादवप्रकाशाचार्य मत में ईश्वर में निर्दोषता की असिद्धि
१२४
m m m m m
६३
उपर्युक्त दोष का स्पष्टीकरण तथा स्वमत में ब्रह्मनिर्दोषता का प्रतिपादन सार्वत्रिक भेदाभेदवाद का निराकरण
१२६
१२६
भेदाभेदवादियों द्वारा वर्णित चार हेतुओं का निराकरण
१३१
आकृति ही जाति है
असाधारण धर्म ही भेद है
१३२
विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त का विस्तृत प्रतिपादन
६७
६८
६६
७०
७१
प्रलय एवं सृष्टि के काल में ब्रह्म चेतनाचेतन विशिष्ट होकर ही रहता है द्रव्य के विशेषणत्व का समर्थन
७२
शरीरात्मक द्रव्यवाचक शब्दों में आत्मपर्यन्त की बोधकता का समर्थन
७३
७४
७५
१३३
१३४
इस सिद्धान्त में भेदाभेद घटक श्रुतियों के अर्थों का समन्वय
इतर मत वादियों द्वारा वर्णित अभेद श्रुत्यर्थ में संभावित दोषों का वर्णन
१३४
१४०
१४१
१४२
१४३
७७
अपृथसिद्ध विशेषणवाचक पदों की विशेष्यपर्यन्त बोधकता का समर्थन सभी शब्दों की ईश्वरवाचकता का प्रतिपादन
विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त में सर्वविज्ञान प्रतिज्ञा का समन्वय
७६ जगत के ब्रह्मात्मकत्व में शरीरात्म भाव संबन्ध का हेतुत्व प्रतिपादन
ईश्वर के निर्विकारत्व एवं उपादान कारणत्व का समर्थन
१४५
१४७
१४७
१४८
१४८
क्रम संख्या
७८
( घ )
विषय
ईश्वर के मुख्य रीति से कारणत्व एवं कार्यत्व का समर्थन
पृष्ठ संख्या
१५३
७६
शरीर एवं आत्मा के लक्षण का वर्णन
१५५
50
ब्रह्म के सर्वशब्दवाच्यत्व में प्रमाणवचन का समर्थन
१५७
८१
जीव के संसार का कारण, संसार का स्वरूप एवं संसार से छूटने का साधन
१६०
८२
शास्त्रानुसार उपर्युक्त अर्थों का स्पष्टीकरण
१६३
८३
जीवों के ज्ञानानन्द स्वरूप के विषय में प्रमाणवचन
१६४
८४
जीवों के परस्पर समता में प्रमाणवचन
१६५
८५
जीवात्मा का भगवच्छेषत्वसमर्थन
१६७
८६
मोक्षोपाय के विषय में प्रमाण वचन
१६७
८७
श्रीभगवान के विचित्र ऐश्वर्य के विषय में प्रमाण वचन
१६६
८८
“एकत्वे सति नानात्वम्” इस श्लोक की व्याख्या
१७१
विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त में विविध श्रुतिवाक्यों का समन्वय
१७४
६०
अद्वैत आदियों का रूपान्तर से वेदवेद्यत्व
१८०
६१
ऐक्य ज्ञान एवं भेद ज्ञान को मोक्षोपाय बतलाने वाले वचनों की विषयव्यवस्था
१८१
६२
“भोक्ता भोग्यम्” इत्यादि श्रुतिवाक्य का अर्थ
१८३
६३
सद्विद्या का सगुणविद्यात्व एवं सभी ब्रह्म विद्याओं में विकल्प का प्रतिपादन
१८४
६४
ईश्वर के प्रेरकत्व को लेकर उठने वाली शंका का समाधान
१८६
६५
मोक्षापाय सामग्री का विशद वर्णन
१६०
६६
63
उपर्युक्त अर्थों का प्रमाण वचनों द्वारा समर्थन
बाह्य कुदृष्टि मत एवं राजस तामस पुराणों के विरुद्धार्थों की अनादरणीयता अथर्वशिखा एव श्वेताश्वतर उपनिपत को लेकर श्री शिवजी के परत्व की शंका जगत्कारणप्रतिपादक सभी वचनों का समन्वय करने पर नारायण ही परतत्त्व
सिद्ध होते हैं ।
१६२
१६६
हद
Σε
589
२०४
१००
नारायण परतत्त्व होने में तैत्तिरीय नारायणोपनिषत् भी प्रमाण हैं
२०७
१०१
१०२
नारायणानुबाक से नारायण का परत्व अन्यान्य देवताओं का विभूतित्व सिद्ध होता है नारायणपरत्व में ही अथर्व शिखोपनिषत् का तात्पर्य
२०६
२११
१०३
नारायणपरत्व में ही श्वेताश्वतर उपनिषत् का तात्पर्य
२१४
१०४
१०५
“शिव एव केवलः” “यः परः स महेश्वरः इत्यादि वचनों का नारायणपरत्व में ही तात्पर्य है २१६ व्योमातीत शिवतत्त्ववाद का निराकरण
२२०
२०१
क्रम संख्या
(ङ)
विषय
१०६ विष्णूत्पत्ति प्रतिपादक श्रुतिवचन का निर्वाह
पृष्ठ संख्या
२२२
१०७
अथर्वशिर उपनिषत का नारायणपरत्व में ही तात्पर्य
२२४
१०८
ब्रह्मा एवं शिवजी का अन्तरात्मा नारायण हैं
२२६
१०६
ईश्वर को निमित्त कारणमात्र मानने वाले शैव मत का खण्डन
२२८
११०
इतिहास एवं पुराणों से श्रीमन्नारायण ही परब्रह्म सिद्ध होते हैं
२३०
१११
त्रिमूर्ति साम्य शंका का समाधान
२४०
११२
११३
जगत्कारण परब्रह्म श्रीमन्नारायण से श्रेष्ठ कोई तत्व नहीं यह अर्थ ब्रह्मसूत्रों से सिद्ध होता है २४५ मनुस्मृति से नारायण का परत्व सिद्ध होता है
२४८
११४
श्रीविष्णुपुराण से ब्रह्मा आदि देवगण जीव सिद्ध होते हैं
२४६
पूर्व मीमांसक मत का खण्डन
११५
सभी शब्द कार्यपरक हैं, सिद्धवस्तुपरक नहीं, मीमांसकों के इस पूर्वपक्ष का वर्णन
२५०
११६
सिद्धान्त के अनुसार एक उदाहरण से सिद्धवस्तु में व्युत्पत्ति का प्रतिपादन
२५३
११७
दूसरे उदाहरण से सिद्धवस्तु में व्युत्पत्ति का प्रतिपादन
२५४
११८
" तुष्यतु” न्याय से कार्योपयुक्त होने के कारण ब्रह्मसिद्धि का प्रतिपादन
११६ कार्योपयुक्त होने से मन्त्रार्थवाद प्रतिपादित सिद्ध पदार्थ भी प्रामाणिक है
२५६
२५८
१२०
मीमांसक वर्णित कार्य लक्षण के खण्डन का प्रारम्भ
१२१
प्रेरकत्व ही कृत्युद्देश्यत्व है, इस वाद का खण्डन
१२२
पुरुषानुकूलत्व ही कृत्युद्दे श्यत्व है, इस वाद का खण्डन
१२३
अपूर्वकार्य केवल इष्टसाधन है, सुखरूप नहीं
१२४
पूर्वकार्य की प्रधानता का खण्डन
२६०
२६१
२६२
२६४
२६५
१२७
१२८
१२६
१३०
१३१
प्रमाण वचनों से देवता एवं श्रीभगवान के फलप्रदत्व का समर्थन
१२५ अपूर्वकार्य की अनुकूलता का खण्डन
१२६
कृति के प्रति शेषित्व ही कृत्युद्दे श्यत्व है, इस लक्षण का खण्डन सिद्धान्त के अनुसार शेष और शेषी का लक्षण और उनका समन्वय “स्वर्गकाम” इत्यादि पद नियोज्य विशेष समर्पक हैं, इस वाद का खण्डन मीमांसकोक्त अपूर्व का खण्डन और श्री भगवान के फलप्रदत्व का वर्णन सिद्धान्त के अनुसार लिडर्थ का वर्णन
१३२ नित्यविभूति दिव्यरूप महिषी और परिजन इत्यादि विशेषताओं का श्रुतिवचनों से समर्थन २८४
२६८
२६६
२७०
२७१
२७४
२७८
२७६
१३३
" तद्विष्णोः परमं पदम् " इस मन्त्र में विशिष्ट विधान का समर्थन
२८६
" तद्विष्णोः" यह मन्त्र मुक्त प्रवाह का प्रतिपादक नहीं है
क्रम संख्या
१३४
१३५
१३६
( च )
विषय
स्वकीयार्थों में मन्त्रों के तात्पर्य का प्रतिपादन " तद्विष्णोः” यह मन्त्र मुक्तों का प्रतिपादक नहीं
पृष्ठ संख्या
२६०
२६२
२६२
१३७
परमपद की त्रिविधता तथा नित्यसूरियों के विषय में प्रमाण
२६३
१३८
“सदेव" इत्यादि श्रुतिवाक्य से दिव्यस्थान और नित्यसूरि इत्यादि का अभाव सिद्ध
नहीं होता है ।
२६७
१३६
इतिहास और पुराणों से दिव्यस्थान और नित्यसूरि आदि की सिद्धि
२६६
१४०
ब्रह्मसूत्र से दिव्यरूप की सिद्धि
३०२
१४१
दिव्यरूप के विषय में वाक्यकार एवं द्रमिडभाष्यकार के वचनों का उद्धरण
३०५
१४२ शब्दगतबोधकत्व शक्ति की स्वाभाविकता
३०८
१४३
वेदों का अपौरुषेयत्व नित्यत्व एवं प्रामाण्य
३११
१४४
इस ग्रन्थ में वर्णित सिद्धवस्तु संबन्धी विचारों का उपसंहार
३१३
१४५
ब्रह्म प्राप्त्युपाय संग्रह से उपसंहार
३१७
१४६
भगवत्पारतन्त्र्य और भगवद्दास्य सुखरूप है, इस अर्थ का प्रतिपादन
३२०
१४७
उपसंहार श्लोक
३२६श्रियै नमः