विश्वास-प्रस्तुतिः
१९. एवं द्रमिड-भाष्य – न्याय-तत्त्व –
सिद्धि-त्रय – श्री-भाष्य – दीप - सार - वेदार्थ-सङ्ग्रह –
भाष्य-विवरण – सङ्गति-माला – षड्-अर्थ-सङ्क्षेप –
श्रुत-प्रकाशिका – तत्त्वरत्नाकर – प्रज्ञा-परित्राण –
प्रमेय-सङ्ग्रह – न्याय-कुलिश – न्याय–सु-दर्शन –
मान-याथात्म्य-निर्णय – न्याय-सार – तत्त्व-दीप – तत्त्व-निर्णय – तत्त्व-मुक्ताकलाप – सर्वार्थ-सिद्धि – न्याय-परिशुद्धि – न्याय-सिद्धाञ्जन –
परमत-भङ्ग – तत्त्व-त्रय-चुलुक – तत्त्व-त्रय-निरूपण – तत्त्व-त्रय-चण्ड-मारुत -
वेदान्त-विजय – पाराशर्य-विजयादि–पूर्वाचार्य-प्रबन्धानुसारेण
ज्ञातव्यार्थान् सङ्गृह्य
बाल-बोधार्थं यतीन्द्र-मत-दीपिकाख्य-शारीरक-परिभाषायाम् अस्याम्
एते ऽर्थाः प्रतिपादिताः ।
अण्णङ्गराचार्यः
॥ उपसंहारभागव्याख्या ॥
प्रबन्धोपसंहार **‘एव’**मित्यादिना । नैध्रुवकाश्यपगोत्रजद्रविडाचार्यप्रणीतं छान्दोग्यव्याख्यानब्रह्मनन्दिटङ्काचार्यकृतवाक्यव्याख्यारूपं द्रविडभाष्यम्, श्रीमन्नायमुनिप्रणीतं न्यायतत्त्वशास्त्रम्, तत्पौत्रं श्रीमद्यामुनिमुनिप्रणीतं सिद्धित्रयम्, श्रीभाष्यादिग्रन्थचतुष्टयं श्रीभगवद्रामानुजमुनिविरचितम्, श्रीविष्णुचित्तार्यविरचिते भाष्यविवरणसङ्गतिमाले, श्रीराममिश्रप्रणीतं षडर्थसङ्क्षेपः, श्रीभाष्यव्याख्या श्रुतप्रकाशिका श्रीवेदव्यासापरनामधेयश्रीसुदर्शनभट्टाचार्यसूरिविरचिता, तत्त्वरत्नाकर-श्रीकूरेशसूरितनय-श्रीपराशरभट्टाचार्यप्रणीतः, प्रज्ञापरित्राणवरदनारायणभट्टारकप्रणीतः न्यायसुदर्शनः च प्रमेयसङ्ग्रहः श्रीविष्णुचित्तप्रणीतः, वात्स्यवरदगुरुप्रणीतोऽपि एकः प्रमेयसङ्ग्रहोऽस्ति, न्यायकुलिशवादिहसाम्बुवाहापरनामधेयात्रेयरामानुजाचार्यप्रणीतम्, वरदविष्णुमिश्रकृतो मानयाथात्म्यनिर्णयः, न्यायसारः (तत्वसारः) वात्स्यवरदगुरुप्रणीतः, तत्वदीपवादिकेसरिरम्यजामातृयतिकृतः, तत्त्वनिर्णयो वात्स्यवरदाचार्यकृतः, सर्वार्थसिद्ध्यादिचतुष्टयश्रीमद्वेदान्तदेशिकप्रणीतम्, तत्वत्रयचुलुकः श्रीमद्वेदान्तगुरुकुमारः श्रीवरदगुरुप्रणीतः, तत्वत्रयनिरूपणं श्रीकृष्णपादसूरिविरचितम् अन्यैरप्याचार्यैः कृतं वर्तते, तत्त्वत्रयं श्रीमल्लोकाचार्यकृतम्, तद्भाष्यं च श्रीमद्वरवरमुनिवरप्रणीतम्, चण्डमारुतादित्रयमेतद्ग्रन्थकारगुरुवरश्रीमन्महाचार्यप्रणीतम् । एतान् ग्रन्थानभ्यस्य सम्यग्विचार्य च निर्णीयार्थतत्त्व ज्ञातव्याः सर्वेऽप्यर्थाः समासतस्सारतश्चात्रग्रन्थे मया प्रतिपादिता इत्यर्थः । अनेनैतद्ग्रन्थप्रतिपादितास्सर्वेऽप्यर्थाः पूर्वाचार्यप्रबन्धेषु तत्र तत्र वर्णिता एव, अत एवं विश्वसनीया समादरणीयाश्च भवन्तीत्युक्तं भवति । तेषां तेषां दार्शनिकानां गुरुवर्याणां स्वत्वविवक्षानुसारेण तत्त्वविभजनं बहुधा संवृत्तम् ।
शिवप्रसादः (हिं)
अनुवाद – इस प्रकार द्रमिडभाष्य, न्यायतत्त्व, सिद्धित्रय, श्रीभाष्य, वेदान्तदीप, वेदान्तसार, वेदार्थसंग्रह, भाष्यविवरण, संगतिमाला, षडर्थसंक्षेप, श्रुतप्रकाशिका, तत्त्व- रत्नाकर, प्रज्ञापरित्राण, प्रमेयसंग्रह, (२), न्यायकुलिश, न्यायसुदर्शन, मानयाथा- त्म्य निर्णय, न्यायसार ( तत्त्वसार), तत्त्वदीप, तत्त्वनिर्णय, सर्वार्थसिद्धि, न्यायपरिशुद्धि, न्यायसिद्धाञ्जन, परमतभङ्ग, तत्त्वत्रयचुलुक, तत्त्वत्रयनिरूपण, तत्त्वत्रयम्, तत्त्वत्रय- व्याख्या, चण्डमारुत, वेदान्त विजय, पाराशर्यविजय आदि पूर्वाचार्यों के प्रबन्ध के अनुसार ज्ञातव्य अर्थों का संग्रह करके बालकों को ज्ञान कराने के लिए यतीन्द्रमतदीपिका नामक इस शारीरक - परिभाषा में इन अर्थों का प्रतिपादन किया गया है ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
यतीन्द्रमतदीपिका के बत्तीस उपजीव्य ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय
भा० प्र० - इस ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए यतीन्द्रमतदीपिकाकार ने इस ग्रन्थ के उपजीव्य ग्रन्थों के रूप में अपने पूर्वाचार्यों के द्वारा प्रणीत बत्तीस ग्रन्थों को उद्धत किया है । जिस प्रकार मोक्षार्थ की प्रतिपादिका उपनिषदों में बत्तीस ब्रह्मविद्याएँ बतलायी गयी हैं, उसी प्रकार इस यतीन्द्र मतदीपिका के उपजीव्यभूत ग्रन्थ भी बत्तीस हैं, जिससे वेदान्तार्थो का अर्थ - याथात्म्य निरूपित किया गया है । यतीन्द्रमतदीपिका के उपजीव्य ग्रन्थों का संक्षिप्ततम परिचय निम्नलिखित है-
- (१) मिडभाष्य - यह नैध्रुव काश्यपगोत्रोत्पन्न द्रविडाचार्य प्रणीत ग्रन्थ है तथा छान्दोग्यव्याख्यानभूत ब्रह्मानन्दिटङ्काचार्य-प्रणीत वाक्यग्रन्थ की व्याख्या है।
- ( २ ) न्यायतत्त्व - इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीमन्नाथमुनि है । यह ग्रन्थ कई अधि- करणों में निबद्ध है तथा श्रीमद्वेदान्तदेशिक ने प्रमाणरूप से इस ग्रन्थ के वाक्यों को स्थान-स्थान पर उद्धृत किया है । [[२८६]]
- ( ३ ) सिद्धित्रय - इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीमन्नाथमुनि के पौत्र तथा श्रीमद्रामानु- जाचार्य के परमगुरु श्रीमद्यामुनाचार्य है। इस प्रकरण-ग्रन्थ के तीन प्रकरण हैंः आत्मसिद्धि, ईश्वरसिद्धि तथा संविसिद्धि ।
- (४) श्रीभाष्य - विशिष्टाद्वैतदर्शन के भाष्यकार श्रीमद्रामानुजाचार्य-प्रणीत शारीरक-मीमांसा का विस्तृत भाष्य है । यही ग्रन्थ विशिष्टाद्वैती दार्शनिकों का भाष्य माना जाता है । इस ग्रन्थ में श्रीमद्रामानुजाचार्य ने बड़ी सफलतापूर्वक शारीरक- मीमांसा के शाङ्करभाष्य का सप्रमाण प्रत्याख्यान किया है ।
- ( ५ ) वेदान्तदीप - इस ग्रन्थ में श्रीरामानुजाचार्य ने शारीरक-मीमांसा के सूत्रों की नातिविस्तृत नातिसंक्षिप्त व्याख्या की है ।
- (६) वेदान्तसार - यह ग्रन्थ श्रीमद्रामानुजाचार्य प्रणीत शारीरक सूत्रों का संक्षिप्ततम अर्थ के रूप में निबद्ध है ।
- ( ७ ) भाष्यविवरण – श्रीविष्णुचित्ताचार्य-प्रणीत यह ग्रन्थ श्रीभाष्य की व्याख्या रूप है ।
- ( ८ ) संगतिमाला – इस ग्रन्थ में आचार्य विष्णुचित्त ने श्रीभाष्य के विषय- वाक्यों की संगति तथा अन्य प्रकार की संगतियों का उपपादन किया है ।
- ( ९ ) षडर्थसंक्षेप – श्रीराममिश्राचार्य द्वारा प्रणीत इस ग्रन्थ को श्रीमद्वेदान्त- देशिक ने न्यायसिद्धाञ्जन में स्थान-स्थान पर उद्धृत किया है
- (१०) श्रुतप्रकाशिका - श्री सुदर्शन सूरि-प्रणीत श्रीभाष्य की सर्वप्रधान व्याख्या है । इस ग्रन्थ का कलेवर इतना बड़ा है जितना बड़ा छत्तीस हजार अनुष्टुप् श्लोकों का कलेवर हो सकता है । इनका दूसरा नाम वेदव्यास भी है ।
- ( ११ ) तत्त्वरत्नाकर - यह ग्रन्थ श्रीकुरेशसूरि के पुत्र पराशरभट्ट र प्रणीत है ।
- (१२) प्रज्ञापरित्राण - इस ग्रन्थ के प्रणेता वरदनारायण भट्टारक है ।
- (१३) न्यायसुदर्शन – इस ग्रन्थ के भी प्रणेता वरदनारायण भट्टारक है ।
- (१४) प्रमेय संग्रह - इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीविष्णु चित्ताचार्य है ।
- ( १५ ) प्रमेयसंग्रह - वात्स्यवरदाचार्य ने भी एक प्रमेयसंग्रह का प्रणयन किया है।
- (१६) न्यायकुलिश – अनेक वादों के संग्रहरूप तथा शतदूषणी के उपजीव्य- भूत इस ग्रन्थ के प्रणेता वादि हंसाम्बुवाह आत्रेय रामानुजाचार्य है ।
- ( १७ ) मानयाथात्म्य निर्णय - इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीवरदविष्णु मिश्र है ।
- ( १८ ) न्यायसार अथवा तत्त्वसार- के प्रणेता वात्स्यवरदाचार्य है ।
- ( १९ ) तत्त्वदीप - इस ग्रन्थ के प्रणेता वादि केसरी रम्यजामातृमुनि है ।
- ( २० ) तत्त्वनिर्णय - इस ग्रन्थ के प्रणेता वात्स्यवरदाचार्य है ।
- (२१) वेदार्थसंग्रह - यह ग्रन्थ श्रीमद्रामानुजाचार्य-प्रणीत श्रुतियों के अर्थ का निर्णय-स्वरूप है । कहा जाता है कि भगवान् वेङ्कटेश की आज्ञा से रामानुजाचार्य ने वेदार्थों के निर्णय-रूप एक दिन प्रवचन किया था, उसी को वेदार्थसंग्रह के नाम से अभिहित किया जाता है । [[२८७]]
- (२२) सर्वार्थसिद्धि - श्रीमद्वेदान्तदेशिक प्रणीत तत्त्वमुक्ताकलाप नामक ग्रन्थ की व्याख्या है । इसमें श्रीमद्वेदान्त ने सर्वज्ञत्व की प्रतिज्ञा की है ।
- ( २३ ) न्यायपरिशुद्धि - इस ग्रन्थ में वेदान्तदेशिक ने न्यायदर्शन की समा- लोचना करके उसको शारीरक-मीमांसा के अनुसार न्यायदर्शन को व्यवस्थित किया है ।
- (२४) न्यायसिद्धाञ्जन - इस ग्रन्थ में वेदान्तदेशिक ने वैशेषिक दर्शन की समालोचना छह परिच्छेदों में की है ।
- (२५) परमतभंग - मणिप्रवाल भाषा में प्रणीत इस ग्रन्थ में वेदान्तदेशिक ने विशिष्टाद्वैत दर्शन व्यतिरिक्त दर्शन की प्रोढ समालोचना की है ।
- ( २६ ) तत्त्वत्रयचुलुक - इसके प्रणेता श्रीवेदान्तगुरुकुमार श्रीवरदगुरु है ।
- (२७) तत्त्वत्रय - निरूपण - इसके प्रणेता श्रीकृष्णपादसूरि है ।
- ( २८ ) तत्त्वत्रय - इसके व्याख्याता श्रीमल्लोकाचार्य है ।
- ( २९ ) तत्त्वत्रयव्याख्या - श्रीमल्लोकाचार्य - प्रणीत तत्त्वत्रय की व्याख्या- रूप इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीमद्वरवरमुनि है ।
- (३०) चण्डमारुत - वेदान्तदेशिक - प्रणीत शतदूषणी की व्याख्या-रूप इस ग्रन्थ के प्रणेता श्रीमन् भट्टाचार्य है ।
- ( ३१ ) वेदान्तविजय - यह ग्रन्थ भी श्रीमन् भट्टाचार्य-प्रणीत हैं ।
- ( ३२.) पाराशर्यविजय — इस ग्रन्थ के भी प्रणेता श्रीमन् भट्टाचार्य ही है ।
मूलम्
१९. एवं द्रमिडभाष्य – न्यायतत्त्व – सिद्धित्रय – श्रीभाष्य – दीप सार वेदार्थ सङ्ग्रह – भाष्यविवरण – सङ्गतिमाला – षडर्थसंक्षेप – श्रुतप्रकाशिका – तत्त्व रत्नाकर – प्रज्ञापरित्राण – प्रमेयसङ्ग्रह – न्यायकुलिश – न्यायसुदर्शन – मानयाथात्म्यनिर्णय – न्यायसार – तत्त्वदीप – तत्त्वनिर्णय – तत्त्वमुक्ताकलाप – सर्वार्थ सिद्धि – न्यायपरिशुद्धि – न्यायसिद्धाञ्जन – परमतभङ्ग – तत्त्वत्रयचुलुक – तत्त्वत्रयनिरूपण – तत्त्वत्रय – चण्डमारुतवेदान्तविजय –पाराशर्यविजयादिपूर्वाचार्य प्रबन्धानुसारेण ज्ञातव्यार्थान्सङ्गृह्य बालबोधार्थं यतीन्द्रमतदीपिकाख्य शारीरकपरिभाषायामस्यामेतेऽर्थाः प्रतिपादिताः ।