विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्मद्-आदि-रसनेन्द्रिय-ग्राह्य-विजातीयेतरो रसः ।
शिवप्रसादः (हिं)
अनुवाद - हम लोगों की केवल रसनेन्द्रिय से ग्राह्य जो पदार्थ है, उनसे जो विस- जातीय, उनसे भिन्न जो अद्रव्य है, वह रस है ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
रस का लक्षण
भा० प्र० - रस को लक्षित करते हुए यतीन्द्रमतदीपिकाकार कहते हैं— अस्म- वादिरसनेन्द्रिय इत्यादि - अर्थात् हमलोगों की केवल रसनेन्द्रिय से गृहीत होने वाले जितने पदार्थ हैं, उनसे विसजातीय जो पदार्थ, उनसे जो भिन्न अद्रव्य हैं, वे रस हैं ।
मूलम्
अस्मदादिरसनेन्द्रियग्राह्यविजातीयेतरो रसः ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
स षोढा - मधुराम्ल-लवण-तिक्त-कटु-कषाय-भेदात् ।
तत्र इक्षु-क्षीर-गुडादि-रसा मधुर-भेदाः ।
चूत-चिञ्चामलकादि-रसा आम्लाः ।
सैन्धवोषर-विकारादि-रसा लवण-भेदाः ।
किम्पाक-निम्बादि-रसाः तिक्त-भेदाः ।
शुण्ठी-मरीची-सर्षपादि-रसाः कटु-भेदाः ।
हरीतकी-विभीतक-चूताङ्कुरादि-रसाः कषायभेदाः ।
इति रसः ।
शिवप्रसादः (हिं)
रस छह प्रकार के होते हैं - १. मधुर, २. अम्ल, ३. लवण, ४. तिक्त ५. कटु एवं ६. कषाय । इनमें इख, दुग्ध, गुड़ आदि मधुर रस के अवान्तर भेद हैं । आम, इमली, आंवला आदि के रस - विशेष आम्ल रस के अवान्तर भेद हैं। नमक तथा ऊषर के विकार आदि के रस - विशेष लवण रप के अवान्तर भेद हैं । किम्पाक अर्थात् विषवृक्ष तथा निम्ब आदि के रस तिक्तरस के ‘अवान्तर भेद हैं । सोंठ, मरीच, सरसो आदि के रस कटुरस के अवान्तर भेद हैं । हरे, बिभीतक तथा आम्रमञ्जरी के रस कषायरस के अवान्तर भेद हैं ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
यद्यपि लोक में जितने रस हैं, वे सब हमारी रसनेन्द्रिय से गृहीत नहीं होते हैं, फिर भी उनमें से बहुतों का ग्रहण हम लोगों की रसनेन्द्रिय से होता है । उन गृहीत होने वाले रसों से शब्दादि विसजातीय हैं। उनसे भिन्न जो अद्रव्य हैं, वे सब के सब रस हैं, इस प्रकार लक्षण का समन्वय हो जाता है ।
[[२७२]]
मूलम्
स षोढामधुराम्ललवणतिक्त- कटुकषायभेदात् ।
तत्र इक्षुक्षीरगुडादिरसा मधुरभेदाः ।
चूतचिञ्चामलकादिरसा आम्लाः ।
सैन्धवोषरविकारादिरसा लवणभेदाः ।
किम्पाकनिम्बादिरसाः तिक्तभेदाः ।
शुण्ठीमरीचीसर्षपादिरसाः कटुभेदाः ।
हरीतकीविभीतकचूताङ्कुरादिरसाः कषायभेदाः ।
इति रसः ।