१६ सप्त-द्वीपवत्याः पृथिव्या वर्णनम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

६७. एवं नव-वर्ष-युक्तं जम्बू-द्वीपं
लक्ष-योजन-विस्तीर्णं स-परिमाणेन लवण-सिन्धुना ऽऽवृतम् ।

स सिन्धुर् द्वि-गुणेन सप्त-वर्षात्मकेन प्लक्ष-द्वीपेन वेष्टितः ।
सोऽपि इक्षु-समुद्रेण।

सोऽब्धिः शाल्मली-द्वीपेन ।
स पुनः सुरा-समुद्रेण ।

कुश-द्वीपेन ।
स सर्पिः-समुद्रेण ।

सोऽपि क्रौञ्च-द्वीपेन ।
स दध्य्-अर्णवेन ।

सोऽपि शाक-द्वीपेन वेष्टितः ।
स क्षीरार्णवेन ।

स वर्ष-द्वय–विभाजक-वलयाकार-मानसोत्तर-पर्वत-सहितेन पुष्कर-द्वीपेन ।
स शुद्ध-जलार्णवेन।

एवं द्वीपानाम् +++(क्षेत्रमानेन)+++ उत्तरोतर-द्वै-गुण्यं द्रष्टव्यम् ।

शिवप्रसादः (हिं)

अनुवाद — इस प्रकार नव वर्षों से युक्त जम्बूद्वीप एक लाख योजन में फैला हुआ है । जम्बूद्वीप अपने सदृश परिमाण वाले खारे जल के समुद्र से घिरा है । वह समुद्र अपने दुगुने परिमाण वाले प्लक्षद्वीप से घिरा है। इस प्लक्षद्वीप में सात वर्ष हैं । वह प्लक्षद्वीप भी इक्षुरस के सदृश मीठे जल वाले समुद्र से घिरा है । वह इक्षुसमुद्र शाल्मलिद्वीप से घिरा है । वह शाल्मलिद्वीप सुरा ( मदिरा के ) समुद्र से विरा है । वह सुरा-समुद्र कुशद्वीप से घिरा है । वह कुशद्वीप घृत- समुद्र से वेष्टित है । वह घृत- समुद्र भी क्रौञ्चद्वीप से घिरा है । वह क्रौञ्चद्वीप दधि- समुद्र से घिरा है । वह दधि- समुद्र शाकद्वीप से वेष्टित है । शाकद्वीप क्षीरसमुद्र से आवेष्टित है । वह क्षीरसागर भी दो वर्षों को विभाजित करने वाले वलय के सदृश मानसोत्तर पर्वत के साथ पुष्करद्वीप से आवेष्टित है । पुष्करद्वीप भी शुद्ध जल के समुद्र से आवृत है । इस प्रकार उत्तरोत्तर सभी द्वीप पूर्व-पूर्व द्वीप की अपेक्षा दुगुने विस्तृत आकार वाले हैं ।

मूलम्

६७. एवं नववर्षयुक्तं जम्बूद्वीपं लक्षयोजनविस्तीर्णं सपरिमाणेन लवणसिन्धु-नावृतम् । स सिन्धुर्द्विगुणेन सप्तवर्षात्मकेन प्लक्षद्वीपेन वेष्टितः । सोऽपि इक्षुसमुद्रेण। सोऽब्धिः शाल्मलीद्वीपेन । स पुनः सुरासमुद्रेण । स कुशद्वीपेन । स सर्पिःसमुद्रेण । सोऽपि क्रौञ्चद्वीपेन । स दध्यर्णवेन । सोऽपि शाकद्वीपेन वेष्टितः । स क्षीरार्णवेन । स वर्षद्वयविभाजकवलयाकारमानसोत्तरपर्वतसहितेन पुष्करद्वीपेन । स शुद्धजलार्णवेन। एवं द्वीपानामुत्तरोतरद्वैगुण्यं द्रष्टव्यम् ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

६८. प्लक्ष-द्वीपादयश् च सप्त-वर्षात्मकाः ।

सप्त-द्वीपात्मकोऽयं द्वि-गुणया काञ्चन-भूम्या ऽऽवृतः।
काञ्चन-भूमिस् तु लोकालोक-पर्वतेन।
पर्वतस् त्व् अन्ध-तमसा ।
तद् अन्ध-तमो गर्भोदकेन ।
तद् अण्ड-कटाहेन ।

शिवप्रसादः (हिं)

जम्बूद्वीप को छोड़कर प्लक्ष आदि सभी द्वीपों में सात-सात वर्ष हैं ।

सप्तद्वीपात्मक यह ब्रह्माण्ड
अपने दो गुना विस्तृत आकार वाले स्वर्णिम भूमि से आवृत है ।
उस काञ्चन भूमि की चारों ओर लोकालोक पर्वत है ।
वह पर्वत अन्धकार से आवृत है ।
वह अन्धकार गर्तोदक से घिरा है ।
उसके बाद अण्डकटाह है ।

मूलम्

६८. प्लक्षद्वीपादयश्च सप्तवर्षात्मकाः । सप्तद्वीपात्मकोऽयं द्विगुणया काञ्चन-भूम्यावृतः। काञ्चनभूमिस्तु लोकालोकपर्वतेन।
पर्वतस्त्वन्धतमसा । तदन्धतमो गर्भोदकेन । तदण्डकटाहेन ।
(स पर्वतस्तमसा तमो गर्तोदकेन, ततोऽण्डकटाहः ।)