विश्वास-प्रस्तुतिः
२६. राजसाहङ्कार-सहकृतात् भूतादि-सञ्ज्ञक-तामसाहङ्कारात्
शब्दादि-पञ्च-तन्मात्राणि आकाशादि-पञ्च-महाभूतनि च उत्पद्यन्ते ।
शिवप्रसादः (हिं)
अनुवाद - राजसाहङ्कार से सहकृत भूतादि नामक तामसाहङ्कार से शब्दादि ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध) पाञ्च तन्मात्राएँ, तथा आकाशादि (आकाश, वायु, तेज, जल और पृथिवी ) पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
भा० प्र० – अहङ्कार के तीन भेद बतलाए गये हैं, उनमे राजसाहङ्कार से सहकृत तामसाहङ्कार से तन्मात्राओं की उत्पत्ति होती है । पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच महाभूत हैं ।
मूलम्
२६. राजसाहङ्कारसहकृतात् भूतादिसञ्ज्ञकतामसाहङ्कारात् शब्दादिपञ्चतन्मात्राणि आकाशादिपञ्चमहाभूतनि च उत्पद्यन्ते ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
२७. भूतानाम् +++(उत्पत्तेः प्राक्)+++ अव्यवहित-सूक्ष्मावस्था-विशिष्टं द्रव्यं
तन्मात्रम् भूतोपादानम् ।
अण्णङ्गराचार्यः
**‘द्रव्यं तन्मात्र’**मिति । एतेन शब्दादीनां गुणानामेव तन्मात्रत्वमिति मतं निरस्तम् । ‘तस्मिंस्तस्मिंस्तु तन्मात्रं तेन तन्मात्रता स्मृता’ (वि० पु०) इति सूक्ष्मशब्दादिविशिष्टानां भूतसूक्ष्माणा तत्त्वानामेव तन्मात्रत्वस्योक्तत्वात् ।
शिवप्रसादः (हिं)
भूतों की उत्पत्ति होने के अव्य- वहितपूर्वेक्षण में इन भूतों के रूप में परिणत होने वाले द्रव्यों में एक सूक्ष्मावस्था होती है । उस अवस्था से युक्त वह द्रव्य ही तन्मात्रा कहलाता है ।
यह तन्मात्रा ही भूतों का उपादानकारण है ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
इनकी उत्पत्ति से अव्यवहितपूर्वक्षण में इन भूतों के रूप में परिणत होने वाले द्रव्यों में एक सूक्ष्म अवस्था होती है; उस अवस्था से विशिष्ट द्रव्य ही तन्मात्रा कहलाता है । अतएव शब्दादि को ही तन्मात्रा मानने वालों का मत उचित नहीं है ।
किञ्च – सूक्ष्मशब्दादि से विशिष्ट सूक्ष्मभूतों को ही तन्मात्रा कहा जाता है ।
तन्मात्राओं में गुणों के शान्तत्व, घोरत्व एवं मूढत्व अनुद्भूत रहते हैं,
किन्तु पञ्चभूतों में उनके गुण शान्त, घोर एवं मूढ हो जाते हैं ।
सांख्य-दर्शन में बतलाया गया है कि
जिस प्रकार दुग्ध का दधि के रूप में परिणाम होने के बीच में
जो कलिलावस्था रूप परिणाम होता है,
उसी प्रकार तामसाहंकार का भूतों के रूप में होने वाले परिणाम के बीच में होने वाला परिणाम तन्मात्रावस्था है ।
तन्मात्राओं में निर्विशेष शब्दादि गुण रहते हैं ।
वे सूक्ष्म गुण देवभोग्य हैं ।
मूलम्
२७. भूतानामव्यवहितसूक्ष्मावस्थाविशिष्टं द्रव्यं तन्मात्रम् (तदेव) भूतोपादानम् ।
वासुदेवः
भूतानाम् इति । दधि-रूपेण परिणममानस्य पयसो मध्यमावस्थावद् भूत-रूपेण परिणममानस्य द्रव्यस्य ततः पूर्वा या काचिद् अवस्था तद्-विशिष्टं द्रव्यं तन्मात्र-शब्देनोच्यत इत्य् अर्थः ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
२८. विशिष्ट-शब्दादि-विषयाधिकरणं भूतम् ।
अण्णङ्गराचार्यः
**‘विशिष्टे’**ति । शान्तत्वघोरत्वमूढत्वरूपविशिष्टशब्दादिविषयाधिकरणं भूतमित्यर्थः । तन्मात्रेषु तु शब्दादिगुणमात्रं वर्तते शान्तत्वादिविशेषरहितम् । तञ्च सूक्ष्मं सुखैकहेतुर्देवोपभोग्यमिति साङ्ख्यदर्शने वर्णितम् । अन्तरालपरिणामवत् – क्षीरत्वदधित्वमध्यवर्तिकलिलावस्थारूपः परिणाम इव ।
शिवप्रसादः (हिं)
तन्मात्रावस्था में शब्दादि गुण, शान्त, घोर और मूढ, इन विशेषताओं से रहित होते हैं । भूतत्वावस्था के प्राप्त होने पर ही शब्दादि गुण उन विशेषताओं को प्राप्त करते हैं । उन विशेषताओं से विशिष्ट शब्दादि विषयों का जो आश्रय होता है, उसे भूत कहते हैं ।
मूलम्
२८. विशिष्टशब्दादिविषयाधिकरणं भूतम् ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
२९. तन्-मात्राणि - शब्द-तन्मात्रम्, स्पर्श-तन्मात्रम्, रूप-तन्मात्रम्, रस-तन्मात्रम्, गन्ध-तन्मात्रमिति पञ्च ।
शिवप्रसादः (हिं)
तन्मात्राएँ पाँच हैं - शब्दतन्मात्रा, स्पर्शतन्मात्रा, रूपतन्मात्रा, रसतन्मात्रा और गन्धतन्मात्रा ।
मूलम्
२९. तन्मात्राणि शब्दतन्मात्रम्, स्पर्शतन्मात्रम्, रूपतन्मात्रम्, रसतन्मात्रम्, गन्ध- तन्मात्रमिति पञ्च ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
३०. भूतानि च तथा – आकाश-वायु-तेजोप्-पृथिवी–भेदात् ।
शिवप्रसादः (हिं)
भूत भी पांच हैं-आकाश, वायु, तेज, जल और पृथिवी ।
मूलम्
३०. भूतानि च तथा – आकाशवायुतेजोप्पृथिवीभेदात् ।