विश्वास-प्रस्तुतिः
४०. बकुलाभरणादि-सूरि-सूक्तयः कार्त्स्न्येन प्रमाणतराः ।
शिवप्रसादः (हिं)
अनुवाद - श्रीशठकोपसूरि आदि दिव्य सूरियों द्वारा ग्रथित श्रीसूक्तियाँ पूर्णरूप से प्रामाणिक हैं ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
सहस्रगीति तथा श्रीभाष्य की प्रामाणिकता
भा० प्र० - विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रवर्तकों के मूल में
दिव्य सूरियों का नाम आता है ।
दिव्य सूरियों की संख्या दस मानी जाती हैं ।
वे हैं- भूतयोगी, सरोयोगी, महायोगी, भट्टनाथसूरि, श्रीभक्तिसारसूरि कुलशेखरसूरि, योगिवाहन ( पाण ) सूरि, भक्तान्ध्रिरेणुसूरि, परकालसूरि तथा श्रीशठकोपसूरि । इन दिव्य सूरियों ने जिन-जिन सहस्रगीति आदि द्राविडवेदान्त के ग्रन्थों का प्रणयन किया है, उन सभी का पूर्णरूप से प्रामाण्य सिद्धान्त में स्वीकार किया जाता है ।
मूलम्
४०. बकुलाभरणादिसूरिसूक्तयः कार्त्स्न्येन प्रमाणतराः ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
४१. श्रीमद्रामानुजाचार्य-प्रभृतिभिः प्रणीताः
श्रीभाष्यादि-प्रबन्धाः प्रमाणतमाः ।
शिवप्रसादः (हिं)
श्रीमद्रामानुजाचार्य आदि द्वारा प्रणीत श्रीभाष्य आदि ग्रन्थ तो प्रमाणतम हैं ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
द्राविडवेदान्त एवं संस्कृतवेदान्त दोनों के रहस्यों को पूर्णरूप से प्रकट करने के कारण
भगवद्रामानुजाचार्य आदि आचार्यों द्वारा प्रणीत श्रीभाष्य ग्रन्थों को सिद्धान्त में प्रामाणिकतम माना जाता है ।
मूलम्
४१. श्रीमद्रामानुजाचार्यप्रभृतिभिः प्रणीताः श्रीभाष्यादिप्रबन्धाः प्रमाणतमाः ।