०१ अनुमानलक्षणम् अनुमितिलक्षणञ्च

वासुदेवः

अथ द्वितीयो ऽवतारः ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

१. अथानुमानं निरूप्यते ।
व्याप्यस्य व्याप्यत्वानुसन्धानात्
व्यापक-विशेष-प्रमितिर् अनुमितिः
तत्-करणम् अनुमानम्
व्याप्यस्य धूमस्य अग्नि-व्याप्यत्वानुसन्धानात्
व्यापक-विशेष-प्रमितिर् वह्नि-प्रमितिः ।

अण्णङ्गराचार्यः

**‘व्याप्यस्ये’**ति ।
हेतुर् व्याप्यः । साध्यं व्यापकम् ।
हेतोस् साध्य-निरूपित-व्याप्यत्व-ज्ञानात् (पक्षे)
व्यापक-विशेषस्य पक्ष-वृत्ति-साध्यस्य प्रमितिर्
अनुमितिर् इत्य् अर्थः ।
तत्-करणम् अनुमान-व्याप्तिज्ञानम् ।

लक्ष्ये सङ्गमयति **‘व्याप्यस्ये’**ति । पर्वतो वह्निमान् धूमादित्यत्र ।

शिवप्रसादः (हिं)

अनुवाद — प्रत्यक्ष के निरूपण के पश्चात् अनुमान का निरूपण किया जाता है । व्याप्य के व्याप्यत्वानुसंधान हेतु के द्वारा व्यापकविशेष की प्रमा को अनुमिति ( अनुमान ज्ञान ) कहते हैं । उस अनुमिति का साधकतम अनुमानप्रमाण है । जैसे- व्याप्य धूम की अग्नि के व्याप्यत्वानुसंधान के द्वारा व्यापकविशेष की प्रमिति ( प्रमा) रूप अग्निविशेष की प्रमिति को अनुमिति कहते हैं ।

शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी

भा० प्र० - प्रमाणों में सर्वश्रेष्ठ प्रत्यक्षप्रमाण का निरूपण किया जा चुका है । इस द्वितीय अवतार में अनुमानप्रमाण का निरूपण किया जा रहा है । व्याप्य हेतु को कहते हैं । व्यापक साध्य को कहते हैं । हेतु में साध्यनिरूपित व्याप्यत्व रहता है । हेतु के इस साध्यनिरूपित व्याप्यत्व ज्ञान के द्वारा पक्ष में रहने वाले व्यापक- विशेष की जो प्रमिति ( प्रमा ज्ञान ) होती है, उसी प्रमिति को अनुमिति कहते हैं । उस अनुमिति के करण को अनुमानप्रमाण कहते हैं । जैसे - वह्नि के व्याप्यभूत धूम में व्याप्यत्व का अनुसंधान करके पर्वतादि पक्षों में अग्निविशेष रूपी व्यापकविशेष की प्रमिति ही अनुमिति है ।

मूलम्

१. अथानुमानं निरूप्यते । व्याप्यस्य व्याप्यत्वानुसन्धानात् व्यापकविशेषप्रमितिरनुमितिः । तत्करणमनुमानम् । व्याप्यस्य धूमस्य अग्निव्याप्यत्वानुसन्धानात् व्यापकविशेषप्रमितिर्वह्निप्रमितिः ।