विश्वास-प्रस्तुतिः
११. तानि प्रमाणानि प्रत्यक्षानुमान-शब्दाख्यानि त्रीणि ।
शिवप्रसादः (हिं)
अनुवाद - वे प्रमाण प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द तीन ही हैं ।
शिवप्रसादः (हिं) - टिप्पनी
भा० प्र० - दार्शनिकों में प्रमाण-संख्या-विषयक मतभेद – श्रीनिवासाचार्य ने पदार्थों का दो भेद किया— प्रमाण एवं प्रमेय । उन प्रमाणों की संख्या का निर्देश करते हुए वे कहते हैं कि प्रत्यक्ष, अनुमान तथा शब्द ये तीन ही प्रमाण हैं । एव शब्द के द्वारा यह सूचित किया गया है कि इन तीन प्रमाणों से अधिक अथवा कम प्रमाणों की संख्या नहीं स्वीकारी जा सकती है । प्रमाणों की संख्या के विषय में विचारकों का निम्न प्रकार का मतभेद है— चार्वाक केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं बौद्ध एवं वैशेषिक प्रत्यक्ष एवं अनुमान, इन दो प्रमाणों को ही मानते हैं । सांख्य एवं विशिष्टाद्वैती प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द, इन तीन प्रमाणों को मानते हैं । नैयायिक प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द, इन चार प्रमाणों को मानते हैं । प्राभाकर मीमांसक पाँच प्रमाणों को मानते हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द और अर्था- पत्ति । भाट्ट मीमांसक तथा अद्वैती विद्वान् छह प्रमाणों को मानते हैं - प्रत्यक्ष, अनु- मान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति तथा अनुपलब्धि । पौराणिक आठ प्रमाणों को मानते हैं - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अनुपलब्धि, संभव एवं ऐतिह्य । इस प्रमाण-विषयक मतभेद को वेदान्तकारिका में इस प्रकार कहा गया है-
‘प्रत्यक्षमेकं चार्वाकाः कणादसुगतौ
पुनः ।
अनुमानश्च तवापि सांख्याः शब्दश्च ते उभे ॥
न्यायैकदेशिनोऽप्येवमुपमानव
केवलम् ।
अर्थापत्त्या सहैतानि चत्वार्याहुः प्रभाकराः ॥
अभाव षष्ठान्येतानि भाट्टा वेदान्तिनस्तथा ।
सम्भवैतिह्ययुक्तानि इति पौराणिका जगुः ॥’
यतीन्द्रमतदीपिकाकार का अभिप्राय है कि वस्तुतः स्वतंत्र रूप से तीन ही प्रमाण हैं । तद्व्यतिरिक्त प्रमाणों का उन तीन प्रमाणों में ही अन्तर्भाव हो जाता है। प्रमाणान्तरों का इन तीन प्रमाणों में अन्तर्भाव का प्रकार ग्रन्थकार स्वयम् आगे प्रति-
पादित करेंगे ।
आदिदेवानन्दः (En)
- These pramānas are three– pratyaksa (per- ception), anumāna ( inference), and śabda (verbal testi- mony).
मूलम्
११. तानि प्रमाणानि प्रत्यक्षानुमानशब्दाख्यानि त्रीणि [[त्रीण्येव ।]] ।