शुद्धिपत्त्रम् १९९०
[[५६]]
[[३१]]
[[१५०]]
[[२५]]
[[१८९]]
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[[३२५]]
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शुद्धपाठाः
शक्तिमतिक्रम्य
प्राक्तनानि । प्राक्तनैः ।
‘सर्वेभ्यो भगवद्गणाधिपतिभ्यो नमः’ इत्यस्मादनन्तरं ‘सर्वेभ्यो भगवत्पारिषदेभ्यो नमः’ इति पठनीयम् ।
‘अघनं घनताम्’ (आरम्भे तच्छब्दोऽधिकः )
पञ्चोपनिषन्मन्त्रैः
[[४८१]]
[[८]]
[[४८६]]
[[२४]]
सन्तुष्य
[[५३३]]
[[२९]]
ऊहेन
[[५६९]]
[[१९]]
[[६०९]]
[[६]]
क्षुन्निवर्तनार्थो । सम्मार्जनी
[[६१४]]
[[१०]]
अनुलिप्त
[[६१९]]
[[६२८]]
२ ३
पूर्वाह्न
विष्ण्वाख्यादित्ये ।