(श्री-वैष्णव-मताब्ज-भास्कर-प्रस्तावात्)
卐 संक्षिप्त श्रीमन्त्रराज जपविधि 卐
शौचादि से निवृत्त होकर पूर्व अथवा उत्तर के तरफ मुख कर पवित्र आसन पर बैठकर ‘ॐ रामाय नमः ॐ रामभद्राय नमः ॐ रामचन्द्राय नमः’ इन मन्त्रों को बोलकर तीन बार आचमन कर ‘ॐ रघुनन्दनाय नमः’ इस मन्त्र को बोलकर हाथ धोवे तब ‘ॐ नमो भगवते रघुनन्दनाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्नवदनाय अमिततेजसे बलाय रामाय विष्णवे नमः क्लीं तेजसे रां तारक ब्रह्म स्वाहा’ इस मन्त्र से जल अभिमन्त्रित कर षडक्षर महामन्त्र को पढकर शिर पर उस जल को छिट के पुनः हाथ में जल लेकर नीचे लिखा विनियोग पढकर शिर पर जल छोड़ दे—‘ॐ अस्य श्रीराम षडक्षर महामन्त्रस्य श्रीसीता ऋषिः गायत्री छन्दः श्रीरामो देवता रां बीजं नमः शक्ति रामाय कीलकं श्रीसीताराम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः’। तब न्यास करे—
ऋषिन्यास—ॐ श्रीसीता ऋषये नमः शिरसि। ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे। ॐ श्रीरामो देवतायै नमः हृदि। ॐ रां बीजाय नमः पादयोः। ॐ रामाय कीलकाय नमः सर्वाङ्गे। करन्यास—ॐ रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ रूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ रैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। अङ्गन्यास—ॐ रां हृदयाय नमः। ॐ रीं शिरसे स्वाहा। ॐ रूं शिखायै वषट्। ॐ रैं कवचाय हूम् ॐ रौं नेत्राभ्यां वौषट्। ॐ रः अस्त्राय फट्। मन्त्राङ्गन्यास—ॐ रां नमः मूर्ध्नि। ॐ रामाय नमः नाभौ ॐ नमो नमः पादयोः। ॐ रां बीजाय नमः दक्षिणस्तने। ॐ नमः शक्तये नमः वामस्तने। ॐ रामाय कीलकाय नमः हृदि। तब यथा शक्ति प्राणायाम कर इस श्लोक को बोलते हुये सर्वेश्वर श्रीरामजी का ध्यान करें—
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम् ।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥
इसके बाद ‘ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्’ इस श्रीराम गायत्री मन्त्र का बारह बार जप करे अनन्तर श्रीमन्त्रराज—
卐 रां रामाय नमः 卐
का कम से कम तीन माला जपकर श्रीराम गायत्री का १२ बार जप करे। पुनः यथा शक्ति प्राणायाम कर १-श्रीरामः शरणं मम २-ॐ श्रीमद्रामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये’ श्रीमते रामचन्द्राय नमः तथा ३-ॐ सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्व्रतं मम ॥
इन तीन मन्त्रों को यथा शक्ति जप करते हुये सर्वेश श्रीरामचन्द्रजी को साष्टाङ्ग दण्डवत् कर-
श्रीरामं जनकात्मजामनिलजं वेधोवशिष्ठावृषी योगीशं च पराशरं श्रुतिविदं व्यासंजिताक्षं शुकम् ।
श्रीमन्तं पुरुषोत्तमं गुणनिधिं गङ्गाधराद्यान् यतीन् श्रीमद्राघवदेशिकञ्चवरदं स्वाचार्यवर्यं श्रये ॥ सीतारामसमारम्भां रामानन्दार्यमध्यमाम् । अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ॥
इन गुरु परम्परा मन्त्रों को बोलते हुये अपने आचार्य पर्यन्त समस्त पूर्वाचार्यों का स्मरणपूर्वक श्रीगुरुदेवजी को साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करें।
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