श्री वैकुण्ठोत्सव का उद्देश
श्री रामानुज संप्रदाय में ही
जीव के परमपद गमन को
उत्सव के रूप में
श्री वैकुण्ठोत्सव नाम से अलंकृत कर
आयोजित किया जाता है।
कुछ लोगों के मन में
यह मिथ्या भ्रम है कि
वैकुण्ठोत्सव के बाद ही
यह जीवात्मा मुक्त होता है
जबकि शास्त्रों, पुराणों एवम् पूर्वाचार्यों के उद्घोष के द्वारा
यह निर्णय सुनिश्चित किया गया है कि
शंख, चक्रांकित जीव का
पुनः जन्म नहीं होता
तथा इस पंचभौतिक शरीर छोड़ने के तुरन्त बाद ही
वह श्री वैकुण्ठ धाम में
श्री युगल सरकार श्रीमन्नारायण भगवान की
अति दिव्याति दिव्य नित्य सेवा को
प्राप्त करता है।
श्री वैकुण्ठ मार्ग में पडने वाले
सभी लोकों के निवासी
तीव्र आतुरता तथा उत्कट अभिलाषा मन में
संजोये पूर्ण श्रद्धा एवं तन्मयता के साथ
उन दिव्य महात्मा का पूजन, आरती जय-जयकार के साथ
अत्यंत आदर सत्कार प्रदान कर
अपने को कृत-कृत्य अनुभव करते हैं।
तदनुरूप ही उन्हीं श्रद्धास्पद क्रियाओं की अभिव्यक्ति हेतु
यह दिव्य श्री वैकुण्ठोत्सव
इस लीलाविभूति पर
श्रीवैष्णवों द्वारा उत्सव के रूप में
भगवत भागवत आचार्य मुखोल्लासार्थ आयोजित किया जाता है।
वेदान्त का सिद्धान्त है शरणागती करि मरै पर
जा अर्चिरादिक मार्ग से बिरजा नदी के तरै पर ।
मन मुजब हरिजू मिलहिंगे सब सिद्ध होगी कामना
इहँ मिलै बिन अस मिलनिपै जमती नहीं है भावना ॥