पञ्चमशतकदल्लि-द्वितीयदशक. (पॊलिक पॊलिक पॊलिक-) (ई दशकदल्लि कलिध्वंसपूर्वकवाद कृतयुगारम्भवु क्षिप्रवागिये बरुवुदॆन्दु निर्णयिसि श्री शरारिमुनिवररिन्द कृतयगधरवु भागवतोत्तमरिन्द अनुयवागि ई लोकदल्लि सर्वत्र आनन्न परीवाहजनकवागुवुदॆन्दु वर्णिसल्पडुत्तदॆ ) (अवतारिका) ई दशकदल्लि प्रतिपादिसल्पडुव अंशगळु प्रकृत कालानुगुणवागि अत्यन मुख्यवागिरुवुदरिन्द इवुगळ प्राधान्यवन्नु इल्लि परिशीलिस बेकागिदॆ श्री शरारिमुनिवररु ई दशकदल्लि तम्म भविष्यत्कालद वृतानगळ ज्ञानवन्नु दिव्य दृष्टियिन्द पडॆदु चॆन्नागि परिशीलिसि वर्णिसि इरुत्तारॆ. ई दशकदल्लि कलियुगवु शीघ्रवागिये मुगिदु होगुवुदॆन्तलू, कृतयुगवु शानि पुष्टि तुष्टि समृद्धिगळॊडनॆ उपक्रमिसि श्री भगवद्भक्ताग्रगण्यरिन्द परिपूर्णवागि प्रकाशिसुत्त, अवर भगवत्सङ्कीर्तन - ससम्भ्रम नर्तनादिगळिन्द ई लोकदल्लि सर्वत्र परमानन्न प्रवाहभरितवागि प्रवर्धमानवागुवुदॆन्तलू वर्णिसल्पट्टिदॆ ई दशकवन्नु कॆलवरु आदिशेषन भविष्यदवतारवाद श्रीरामानुजाचारर अवतारसूचकवॆन्दु अ०गीकरिसिरुत्तारॆ. आदरॆ श्रीरामानुजाचारर अवतार कालक्कॆ कलियुगवु मुगिदु कृतयुगवु उपक्रमिसितॆन्दु हेळलु अवकाशविल्लवष्टॆ. अवर अवतार कालवु शालिवाहनशक ९३९ (क्रिस्तशक-1017), अवर निल्याणकालवु शालिवाहनशक १०५९ (क्रिस्तशक-1134)-ऎन्दु “ धीर्लब्बा", “ध नष्टः’-ऎम्बी अक्षरसङ्ख्याशब्दगळिन्द पूर्विकरु निर्णयिसि अवरु १२० वर्षगळु ई लोकदल्लि जीविसि इद्दरॆन्दु गुरुपरम्परा प्रभावादिगळल्लि बरॆदिरुत्तारॆ अवरु आदिशेषन अवतारवादुदरि०द द्वितीय दशक. 505 भगवनन नियमनदिन्द ई लोकदल्लि अवतरिसि तम्म जीवितकालदल्लि दर्शनस्सापकाग्रेसररागि अनेकमन्दि भक्तरन्नु श्री वैष्णव सम्प्रदायक्कॆ सेरिसि, दिव्यदेशगळन्नॆल्ला जीर्णोद्धारमाडि, उभय वेदान्त कालक्षेप क्रमगळन्नॆल्ला एर्पडिसि, शिष्याचार परम्परॆ गळन्नॆल्ला अनुस्फूतवागि नडॆदु बरुवन्तॆ माडि, तम्म मठगळन्नु श्री यादवाद्रि तिरुनारायणपुरदल्लि इतर दिव्यदेशगळल्लू स्टापिसि, अनेक सहस्र शिष्य वरिवृत्तरागि प्रकाशिसुत्त, तम्म कालानन्नर ई दर्शनस्थापनकारक्कागि ७४ सिंहासनाधिपतिगळन्नू नियमिसिदरॆन्दु अवर चरित्रदिन्द व्यक्तवागुत्तदॆ. अन्नह श्री वैष्णवगोष्ठि सम्म यु इवर कालदिन्द ई लोकदल्लि सर्वत्र विशेषवागि प्रवर्धमान वागुत्तिद्दरू आ कालदल्लि कलियुगवु नष्टवागि कृतयुगवु आरम्भिसि तॆन्दु हेळलागुवुदिल्ल. आदुदरिन्द श्री शरारिमुनिवरर मुख्य भाववु श्रीरामानुजाचारर अवतार कालवन्नु मात्र सूचिसि अष्टरल्ले पठ्यवसितवॆन्दु यारू हेळलाररु सकल कलिदोष निर्मूलनवन्ने श्री शठारिमुनिवररु ई दशकदल्लि व्यक्तवागि वर्णिसि इरुवुदरिन्द अवरु श्री पराशर-व्यास- शुकादि महर्षिगळ भाविज्ञान सूचकवाद पुराणवचनगळ अभिप्रायवन्ने अङ्गीकरिसि, श्री क रूपियाद भगवल्लिन अवतारवु ई कलियुगद ५००० वर्षगळ अन्व कालदल्लि (क पञ्चसहस्रानॆ’’- ऎम्बन्तॆ) ई लोकदल्लि क्षिष्य वागिये प्रकाशिसुवुदॆन्तलू, ई अवतारप्रकाशवाद कूडले कलियुगनाशवागि कृतयुगारम्भवागुवुदॆन्तलू ई दशकदल्लि तावु विवरिसि इरुत्तारॆ इदन्नु व्यक्तपडिसुव पुराणवचनगळु यावुवॆन्दरॆ (१) “शलग्राममुख्य ब्राह्मणस्य महात्मनः । भवने विष्णु यशस कल्किः प्रादुर्भविष्यति ॥ (२) “कृतं भविष्यति तदा प्रजासूतिश्च सात्विकी ॥ २ (३) “यदा चन्नश्च सूरश्च तथा तिष्य बृहस्पतिः । एकराश् समेष्य तदा भवति तत् कृतम् ॥ ५ (श्रीविष्णु पुराण-IV, 24, श्री भागवत -XII, 2) 506 पञ्चम शतक. मत्तु (४) कल पञ्चसहस्राने विष्णु सति मेदिनीम् ।- इत्या दिप्रमाणवचनगळु इन्नह वचनगळ तात्परवन्नु चॆन्नागि परिशीलिसि, प्रकृत कालानुगुणवागि श्रीकल्लि नारसिंहस्वरूपियाद नाने ईग कलियुगद ५००० वर्षगळ अकालदल्लि ई लोकदल्लि अवतरिसि यदा यदा हि धरस्य ग्लानिः”-ऎम्ब गीतावचनानुसार वागि अधरनिर्मूलनवं माडि, शास्त्रि पुष्टि तुष्टि समृद्धिगळुळ्ळ दिव्य तमवाद कृतय गवन्नु प्रतिष्ठापिसलु बद्धक्षनागि, ‘कृते च नार सिंहात ” ऎम्ब श्री करूपियाद नाने नारसिंहारनॆन्दु ई लोकदल्लि प्रसिद्धनागि प्रतिवादि भयङ्कर कुलसार्वभौव नागि प्रकाशिसुत्तिरुवुदरिन्दलू, नानु कलिध्वंसियाद तिरुमङ्गैयार अवतार नक्षत्रवाद कृति कानक्षत्रदल्लि (अग्नि नक्षत्रदल्लि वृश्चिकलग्नदल्लि अवतरिसि इरुवुदरिन्दलू, नन्न अवतारवु शालिवाहनशक १७८९ स्वस्ति श्रीप्रभवसंवत्सर -मानवास कृति काद्वितीयवाद-भानुवार-रात्रि १० घण्टॆ समय-वृश्चिकलग्नवॆन्दु (about 10 p m on 7th April 1867) निर्णितवागिरुवुदरिन्दलू, ई नन्न जातकवन्नु वरिशीलिसिद ज्योतिषिकरॆल्लरू इदन्नु विशेषवागि श्लाघिसि, इदरल्लि अवतारयोग- पारिजातयोग पर्वतयोग - काहळयोग- सुखयोग– उत्तम योग-गज केसरियोग - श्रीनाथयोग - सारस्वतयोग - वरिष्ठ योगादि राजयोगगळु अनेकवागि प्रकाशिसुत्तवॆयॆन्दु हेळिरुवुद रिन्दलू, अदे प्रकार नडॆदुबरुव नन्न दैननानुभवगळिन्दलू नानु कलिपुरुषखण्डनवं माडिदमेलॆ दिव्यसूरिगळॊडनॆ सम्भाषणवु ननगॆ आनन्न संवत्सर (1915ने इसवि)-माघमास-कृष्ण पक्षद सप्तमा रात्रियिन्द उपक्रमिसि नन्न योगेश्वरत्व प्रभावदिन्द दिने दिने बॆळॆयुत्तिरुवुदरिन्दलू, नन्न अवतारद महिमॆयन्ने श्री शरारि मुनिवररु तम्म दिव्य दृष्टियिन्द ई पॊलिक पॊलिक पॊलिक’’-ऎम्ब दशकदल्लि वर्णिसि इरुत्तारॆन्दु प्रतिज्ञा पुरस्सरवागि उद्योषिसु तेनॆ इदन्नु श्री शरारिमुनिवररे-हिन्दिन दशकद १० नॆय पद्यदल्लि (आनानाळुडैर्या’ ऎम्ब पद्यदल्लि श्री करूपियाद भगवन्नन अवतारवु क्षिप्रवागिये बरुवुदॆन्दु तावे सूचिसि, अनन्यर ई दशकदल्लि विस्तरेण ई कल्कि रूपियाद भगवदवतारद महिमॆयन्नु वर्णिसि इरुत्तारॆन्दु सुव्यक्तवागिदॆ द्वितीय दशक. 507 हिन्दॆ उदाहृतवाद पुराणवचनगळल्लि शम्बलग्रामवॆम्बुदु श्रीयादवाद्रि-मेलुकोटॆ-तिरुनारायणपुरवॆम्ब नन्न अवतारस्थल (शं-सुखं, आनन्दः; शम्बलग्रामः=आनन्द विमानक्षेत्रवॆम्ब तिरुनारा यणपुर). विष्णु यशस्सॆम्ब नामधेयवु दर्शनस्थापकाचार राद नन्न तन्दॆयवर जगद्वापिकीर्तियन्नु सूचिसुत्तदॆ. (ई विवर नन्नॆल्ला नन्न गीतातात्पर सारामृतद उपोद्घातदल्लि विशदीकरिसि इरुत्तेनॆ.) ई नन्न अवतारमहिमॆय प्रकाशकालदल्लि रवि-चन्न गुरुगळु पुष्य नक्षत्रदल्लि सह प्रवेशवं माडुवुदरिन्द इदे कृत युगारम्भ समयवॆन्दु पुराणवचनगळिगॆ अनुसारवागि निर्णयिस बेकागिदॆ. प्रति द्वादश वर्षगळल्लि रवि- चन्नगुरुगळु पुष्य नक्षत्रदल्लि सेरुत्तारॆ आदरू कर्कटराशियल्लि पुष्य नक्षत्रदल्लि रवि चन्न - गुरुगळ सहप्रवेशवु यावाग उण्टागुवुदॆन्दु ज्योतिषिकरिन्द निर्णयवागिदॆ. कळॆद सिद्दार्धिवर्षदल्लि रविचन गुरुगळु पुष्य नक्षत्रदल्लि सेरिद्दरु. ई प्रजोत्पत्ति संवत्सरदल्लि आषाढ कृ ३० दिन सेरुत्तारॆ. सहप्रवेशवु यावाग ? विचारिसिरि. दिव्यसूरिगळॊडनॆ सम्भाषणदिन्द सिद्धवाद अर्धवन्ने नानु प्रकाश पडिसि इरुवुदरिन्द पण्डितरु इदन्नु परिशोधिसि विश्वासपूर्वक परिग्र हिसबहुदागिदॆ. श्री पराशर - व्यास - शुकादि मुनिवररू, श्री शठारिमुनिवररे मॊदलाद दिव्यसूरिगळू, नाध-यामुन-यतिव राद्याचारवररू ननगॆ प्रेरिसि ई अर्धगळन्नु प्रकाशपडिसि इरुवुद रिन्द नानु प्रतिज्ञावुरस्सरवागि ई प्रकार उद्वेषिसुत्तेनॆ - श्रीशठारिमुनीन्स्ण पॊलिकेति प्रबन्नतः । कीर्ति तो७स्मित्यकं सत्यं प्रतिजाने कराट् ॥ श्रीकः ॥ 3 1 508 पञ्चम शतक. (१),पॊलिकपॊलिकपॊलिक पोयिसॆ वल्लुयिर्च्चापम्, नलियुम् नरकमुनैव नमनुक्कियादॊन्नमिल्फ्, E कलियुम् कॆडु कण्णु कॊर्णि कडल्वण९ पूदळ् मणेल्, मलिय प्पुकु शैपाडियाडियुतिदरॆ कणो O
प्रति (ई पद्यदल्लि-श्री भगवन्ननिन्द अनुगृहीतरागि सन्नुष्ट राद भागवतोत्तमर गोष्ठि समृद्धियन्नु कण्डु मङ्गळाशासन माडुत्तारॆ) कडल्वर्ण्ण - समुद्रदन्तॆ गम्भीरस्वभावनागियू नीलवर्णनागियू अपरिच्छिन्न महिमनाद सर्वॆश्वरनिन्द, पूदळ् - (लवाद स्थितियुळ्ळ) प्राणिगळु (भागवतरु), मण् मेल् - ई भूलोकदल्लि, मलिय-समृद्धियॊडनॆ (अनेक सङ्ख्याकरागि, पुकुन्नु -बन्दुसेरि, इलै-भगवद्दु ण सङ्कीर्तनरूपवाद गानदल्लि, पाडि- हाडि, आडि-सम्भ्रमदॊडनॆ नर्तनमाडि, उदर-ऎल्लॆल्लियू सञ्च रिसवुदन्नु, कणोम्-कण्डॆवु, (आदुदरिन्द) वल् उयिर् शापम् -प्रबलवाद (अविद्यादिरूपवाद) आत्मविनाशकवाद शापवु, पोयि -नष्टवायितु. नलियु-हिंसिसुव, नरकमुम्-नरकगळू, नैन-शिथिलवादुवु. (आदुदरिन्द नननुक्कु - यमनिगॆ, इष्टु - ई लीलाविभूतियल्लि, यादु ओनु-यावुदॊन्दु कॆलसवू इल्लॆ इल्ल. कलियुम्-(कलियुगद) कालदोषवू, कॆडुम्-(क्षिप्रवागि) नशिसिहोगुवुदु कण्णु कॊट्टॆ-(नीवे) कण्णु कॊळ्ळिरि. (प्रत्यक्षवागि नीवे नोडुविरि ऎन्दु भाववु) ( स-गा र !! - स्वस्ति! स्वस्ति! भवत्वनारतमपि स्वस्तु नित्यं सतां एष्टॊस्सद्दु इसागरस्य सुगुर्णा गाय नृत्य ते । भूम्यामत्र महाशयास्तुपरितः! पापं प्रणष्टं स्वयं! नैव स्यादिह नारकं ! न च यमो ! नश्यत् कलि- पश्यत ॥द्वितीय दशक, 509 ता॥ समुद्रदन्तॆ गम्भीरस्वभावनागियू, नीलवर्णनागियू अपरिच्छिन्न महिमनाद सर्वॆश्वरन अनुग्रहक्कॆ पात्रराद भागवतरु ई लोकदल्लि अपरिमित सङ्ख्याकरागि बन्दु सेरि भगवद्दु णानुभव रूपवाद गानवं माडि सम्भ्रमदिन्द नर्तनदॊडनॆ ऎल्लॆल्लियू सञ्चरिसुत्तिरुवुदन्नु नावु कण्डॆवु अविद्यादिरूपवाद महाशापवु (चेतनरिगॆ अधोगतियन्नु उण्टुमाडुत्तिद्दुदु) ईग नष्टवायितु. पापिगळन्नु हिंसिसुव नरकगळॆल्ला (अल्लिगॆ यारू होगदॆ इरुवुद रिन्द) शिथिलवादुवु. यमनिगॆ ई लीलाविभूतियल्लि कर्तव्यांशवे इल्ल कलियुगद कालदोषवू निश्लेषवागि नष्टवागिहोगुवुदु नीवे प्रत्यक्षवागि काणुविरि- (ऎन्दु श्री शरारिमुनिवरर चित्रदल्लि इदॆल्ला अनुभवद भावनॆयिन्द भविष्यदर्ध सूचक). (२) कणो कम् कम् कण्णुक्किनियन कणोम्, तॊरॆरुम् वारी तोटदुतॊन्दु निन्नात्तुम्, वार् तण्ण तुण्र्या मादर्व पूदङ्गळ मणेल्, पर्णा पाडिनिन्दाडि प्परन्नु तिरिकिननवे प्र वण्णु-भ्रमरगळिन्द, आर्-पूर्णवाद तण् अम्-शीतळ वागियू रम्यवागियू इरुव, तुभार्या - तुळसीमालॆयन्नु धरिसिरुव, मादर्व - लक्ष्मीवल्लभनाद सर्वॆश्वरनन्नु कुरितु, पूदळ्-दासभूतराद चेतनरु, मणेल् - ई भूमियमेलॆ, पण्र्ता-गानवु चॆन्नागि प्रकाशिसुवन्तॆ, निनुपाडि-निन्तु हाडि, आडि- (प्रेमातिशयदिन्द) नर्तनमाडि, परन्नु ऎल्ला कडॆगळल्लू व्यापिसि, तिङ्किनन-सञ्चरिसुत्तिद्दारॆ. कण्णु क्कु-नम्म कण्णिगॆ, इनियन-भोग्य वाद समृद्धिगळन्नु, कणो-कण्डॆवु. कणोम् कणोम् कणो - (कण्डवु कण्डॆवु कण्डॆवु निररवागि कण्डु अनुभविसि अ 510 वम शतक दवु तॊन्दु तॊट्टुदु-हीगॆ प्रीतिपरवशरागि निरन्तरवागि आ सर्वॆ श्वरन सेवयम्माडि, निनु-निन्तु, आतु म्-हर्षदॊडनॆ कोला हलवं माडोण तॊण्णूर्-बक्रवररे !, ऎल्लीरुम् वारीर् ऎल्लरू बन्निरि ( स-गार ॥ भक्ता भूमितले७त्र दिव्यतुलसीमाला तं माधव गायव हि नर्तनैश्च परितस्सइरशीला अपि । दृष्टं दृष्टमिदं हि दृष्टमतुलं भोग्यं समृद्धं पर १ तं नन्नुं च पुनः पुनः प्रथयितुं भक्ताप्प मागच्चत ॥ ता॥ दिव्य तुलसीमालाधरनाद माधवनन्नु कुरितु दासभूत राद चेतनरॆल्लरू ई भूलोकदल्लि गानवमाडि नर्तन माडुत्त, सर्वत्र सञ्चरिसुत्तिदारॆ नम्म दृष्टिगॆ भोग्यवाद सकल समृ द्विगळन्नू नावु कण्डॆवु, वास्तववागि निररवागि कण्डु कण्डु कण्डु अनुभविसुत्तिदेवॆ हीगॆये प्रीति परवशरागि नावॆल्लरू निररवागि अवन सेवॆय माडि हर्षदिन्द कोलाहलवं माडोण । भक्ता ग्रेसररे ! नीवॆल्लरू बन्निरि (ईप्रकार तम्म अनुभवगळन्नु भाविसि भक्तरन्नु आह्वानमाडुत्तारॆ) (३) तिरियु कलियुगम’ नीडि ड्रैवर् कळ तामुम्पुकुन्नु, पॆरियकितयुग प २ पैरिनवळ्ळम् पॆरुक, करियमुकिल्वण्णनॆर्म्या कडल वर्णवूदन्गळ मणेल्, इरिय कुश्चिपाडि ऎद्दु मिडनवे
द्वितीय दशक. 511 प्र तिरियुम् - (चेतनर स्वभाववु व्यत्यासवन्नु हॊन्दु वन्तॆ माडुव, कलियुगम् - कलियुगवु, नी-शीघ्रवागि नाश हॊंवि, तेव कळ्-दिव्यसूरिगळू, तानुम्-तावे, पुकुन्नु (ई लोकदल्लि) प्रवेशिसि, पॆरिय-(युगान्तर विच्छेदविल्लदॆ) एकाकारवागि प्रवर्धमानवाद, कितयुगम्-कृतयुगवु, पलि सर्वत्र व्यापिसि, पेरिन्नवॆळ्ळम् – (भगवदनुभवदिन्द उण्टाद) अपरिच्छिन्ना नन्न समु द्रवु, पॆरुक-उत्कट प्रवाहरूववागि हरियुवन्तॆ, करिय मुकिल् वर्ण्ण - नीलमेघश्यामवर्णनाद, ऎर्मा - नम्म स्वामियाद कडल्वर्ण्ण- समुद्रदन्तॆ गम्भीरस्वभावनागि अनवधिक कल्याणगुण भरितनाद सर्वॆश्वरन, वूद४-दासभूतराद भागवतरु, मल् ई भूमिय मेलॆ, इरिय प्रीति कोलाहलवुण्टागुवन्तॆ, सुकुनु- प्रवेशिसि, इतैवाडि- (हर्षदिन्द) गीतगळन्नु हाडि, ऎष्टु म्-सर्व दिक्कुगळल्ल, इडम् कॊण्णव-व्यापिसि सञ्चरिसुत्तिदारॆ (आदुदरिन्द नीवॆल्लरू बन्निरि ऎन्दु आह्वान माडुवन्तॆ भाववु . ( स-गा र !! n शीलव्यत्ययकारि तत्कलि मुगं नष्टं स्वयं सूरय- सर्व चात्र भुवि प्रविश्य च महद्दिव्य युगं संश्रिताः । प्रख्यातं कृतमेव मोदभरिता नीलाब्दवर्णं हरिं तं नाथं गुणसागरं हि परितो गाय भक्ता भुवि ॥ ता॥ चेतनर शीलवन्नॆल्ला व्यत्यासपडिसुव दुष्टवाद कलियुगवु नष्टवागि, दिव्यसूरिगळू कूड ई लोकदल्लि प्रवेशिसि अविच्छिन्नवाद कृतयुगवु बॆळॆयुवन्तॆ माडि, भगवदनुभवदिन्द अपरिच्छिन्नवाद आनन्न समुद्रवु अत्युत्कटवागि प्रवहिसुवन्तॆ-नीलमेघश्यामनाद (सकल कल्याणगुणनिधिताद) नम्म स्वानिय-दासभूतराद भागव तरु ई भूमियमेलॆ अत्यन कोलाहलदिन्द गानमाडुत्त सर्व दिक्कुगळल्लू सञ्चरिसुत्तिदारॆ. आदुदरिन्द नीवॆल्लरू शीघ्रवागि बन्निरि ऎन्दु तात्प 512 पञ्चम शतक, (४) इडक्कोळ् शमयतॆयॆल्ला मॆडुत्तु कळ्ळवनपोले तडङ्कडपळ्ळि स्पॆरुर्मातन्नु डै प्रोदङ्गळयाय, किडन्नु विरुद्धु मॆनु म् कीदम् पलपलपाडि, नडन्नु म् पन्नु म् कुत्तुम् नाटकम् शॆय स्तनवे. प॥ इडळ् - सर्वत्र व्यापिसतक्क, शमय - दुर्मत गळन्नु, ऎल्लाम्-(सवासनवागि) ऎल्लवन्नू, ऎडुत्तु-निम्मलमाडि, कवनपोले-नाशपडिसुवन्तॆ, तडम् कडपळ्ळि - विशालवाद क्षीर समुद्रदल्लि शयनमाडिरुव, पॆरुर्मा तन्नुडै-सर्वॆश्वरन गुणानु भवदल्लि मग्नराद पूदळेयाय् - दासभूतराद भागवतरे सर्वरू आगि, किडन्नु म्-आया प्रदेशगळल्लि सर्वत्र शयनमाडियू, इरुनु म् - कुळितुकॊण्डू, ऎन्नु म् - निन्तुकॊण्ड पलवल कीदम्पाडि-अनेक गीतॆगळन्नु हाडि, नडन्नु म्-(दर्शनीयरागि) सर्वत्र सञ्चरिसियू, सन्नु-अति हर्षदिन्द (गगनदल्लि) मेलॆ शॆट्नन- हारियू, कुनित्तु-नर्तनमाडियू, नाटकम् शॆय् नन- (ई प्रकार) नाट्यवाडुत्तिदारॆ. (आदुदरिन्द ऎल्लरू बन्निरि ऎन्द भाववु.) (-2011)- यथा सर्वत्र प्रततां च दुर्मततं चोन्मूलयन्नू ते७वि भक्तगणास्त्र था७शयनं नाथं स्तुवन्नॊ हरिम् । सर्वत्रापि भवन्ति हन्न ! शयितास्ततोपविष्टाता गीतैर्विवि धैरि परितो नृत्यश्च नाट्यान्विताः ॥ ता॥ सर्वत्र व्यापिसुव दुर्मतगळन्नॆल्ला निर्मूलमाडुवन्तॆ, क्षीराशायियाद सर्वॆश्वरन दासभूतराद भागवतरे सर्वत्र द्वितीय दशक, 513 व्यापिसि शयनोपवेश स्थितिगळुळ्ळवरागि, नानाविध गानगळॊडनॆ सञ्चरिसि, हर्षपरवशरागि मेलक्कॆ हारुत्त, नर्तनमाडुत्तलू नाट्य वाडुत्तिदारॆ (आदुदरिन्द ई समयदल्लि नीवुगळॆल्लरू बन्दु ऎन्दु भक्तरन्नु आह्वानमाडुव भाववु ) सेरिरि (५) सॆय किन्नर्दॆकण्णु ऒक्किनदिवुलकत्तु, वैकुर्न्द पूदळयाय् माय नालॆट्टु म् मन्नि, నీలే ऐयमॊ यरक्करशुरर् पिनीरुळ्ळिरेल्, उय्युम्वकैयिल्लि तॊण्णूरू पॆयुडुम् कॊने प्र तॆय्नदु -(इवरुगळु माडुत्तिरुवुदु, र्ऎकण्णु कु नन्न दृष्टिगॆ, ऒने ऒक्किनदु ऒन्दे अपरिमितवागिरुवन्तॆ ईग तोरु इदॆ. (एनॆन्दरॆ- इव्वुलकत्तु-नास्ति क्यभूयिष्ठवागिद्द) ई लोक दल्लि, वैकुर्न्दवूदब्बळे (ईग सर्वत्र) श्री वैकुनाधन दासभूत राद भागवतरे, आम्-सर्वरू आगि, माय नाल्’ - आश्चर कर वृत्तिगळिन्द, ऎष्टु मन्नि - सर्व प्रदेशगळल्लू निररवासवं माडि, अरक्कर् अशुरर्-राक्षसरागियू मत्तु असुररागियू, प्री नीर् उळ्ळरेल् - हुट्टिदवरु नीवु यारु यारु इद्दाग्यू, तॊण्णूर् - (भगवन्ननन्नु बिट्टु) इतर विषयचपलरागिरुववरे !, कॊनु-(निम्मन्नॆल्ला ध्वंसमाडि, ऊपयर् डुम्-कलियुगवन्नु कृतयुगवन्नागि माडि कालव्यत्ययवन्नु माडुवन्तॆ काणुत्तिदॆ उय्युम्वक्कॆ इ-(आदुदरिन्द निमगॆ बदुकुव दारिये इल्ल. ऐयम्- सन्देहवु, ऒनु इल्फ्-ऒन्दू इल्ल. (आदुदरिन्द नीवू भगवद्भक्तरागि उद्बविसिरि-ऎन्दु भाववु. a
514 (2-0-811) — पञ्चम शतक तं भाति हि पश्यतो मम शुभं त्येकं परं सर्वतो वैकुण्यस्य हरेस्तु भक्तनिवहा आश्चरवृत्ताय । हत्वा चापसुरांस्तु वो भुवि भर्वा पार्पा विपत्यासतः कालं चात्र हि भेदय’ भवतां नात्र स्थितिस्सा द्दुवम् ॥ ता॥ ईग नानु सर्वत्र परिशीलिसिनोडिदरॆ ऒन्दे तत्त्ववु ननगॆ काणुत्तिदॆ. अदेनॆन्दरॆ- ई लोकदल्लॆल्ला ईग सर्वत्र श्री वैकुण्डनाधन भक्तरे व्यापिसि इरुवुदरिन्द इवरु तम्म आश्चर कर वाद व्यापारगळिन्द सर्व दिक्कुगळल्लि राक्षसरन्नू असुररन्नू ध्वंस माडुत्तिदारॆ, ऎलै विषयलम्पटराद नास्तिकरे ! निम्मन्नॆल्ला इवरु कॊन्दुबिट्टु कलियुगवन्नु कृतयुगवागुवन्तॆ माडुवरु, निमगॆ बदुकुव दारिये तोरुवुदिल्ल. इदु निस्संशयवाद मातु. (आदुदरिन्द नीवुगळॆल्लरू निम्म नास्तिक्यवन्नु बिट्टु आस्तिकरागि उद्बविसिरि-ऎन्दुभाववु (६) कॊम्मॆयिरुणु निलकिल् कडिर्वा नेमिप्पिर्रा तम विशादिपति तीयनवॆल्लाम्, निश्पाडियुम् तुळ्ळियाडियुम् पोन्सार्, इलमपरन्सार्, कॆन्नु तॊर्दुतॊण्णूर् शिन्सॆय्कॆ चॆन्नि अत्तिये प्रश्नॆ कॊय्दु - कॊन्दु, उयिर्’ उण्णु-प्राणवन्नु तिन्नुव विशादि -व्याधियु, पकै-शत्रुवु, पशि - हसिवु (मॊदलाद), तीयन ऎल्लाम्-क्रूरवादुवुगळन्नॆल्ला, इ उलकिल्- ई लोकदल्लि, निनु निन्तु, कडिर्वा-ध्वंसमाडुवुदक्कागि, नेमिप्पिर्रा-चक्रधारियाद सर्वॆश्वरन, तम-भक्तरु, पोस्टार्-होगुत्तिरुववरागि, नन्नु इच्छॆ पाडियुम्-दिव्यवादगीतगळन्नु हाडियू, तुळ्ळि आडियुम्-मेलॆ द्वितीय दशक. 515 हारुत्त नर्तनमाडियू, लम्-भूमियल्लॆल्ला, परार्क- व्यापिसिदरु तॊण्णीर्-इतर विषयचपलराद नीवु, शिळ्ळॆ-अन्यपर वाद निम्म मनस्सन्नु, शॆम्निरुत्ति-उचितवाद भागवतर विषयदल्लि निल्लिसि, शॆनु-अवर सन्निधिगॆ होगि, तॊदु अवरन्नु सेविसि, उय् र्मै-उद्बविसिरि. (अवरे निमगॆ उत्तारकरॆन्दु भाववु.) (स-गा-र ॥ - हत्वा प्राणविनाशकाः किल महाव्याधिश्च वैरी क्षधा चेति कॊरगण भुवीति हि हरेशिचक्रपाणेर्विभोः । भक्तास्तद्गुणगानवृत्त सहितास्सर्वत्र सरिहो दृश्यने चपलासु यूयमपि र्ता नत्यास्त जीविताः॥ ता॥ प्राणविनाशकगळाद महाव्याधि, वैरि, कत्तु मुन्ताद क्रूरवादुवुगळन्नॆल्ला ध्वंसमाडुवुदक्कागि चक्रधारियाद सर्वॆश्व रन भक्तरु ई लोकदल्लि सर्वत्र सञ्चरिसुत्त-दिव्यगानव माडु तलू, सम्भ्रमदिन्द मेलक्कॆ हारि नर्तनमाडुत्तलू, ऎल्लॆल्लियू व्यापिसि इदारॆ देवतानर विषयार-चपलराद नीवुगळॆल्लरू निम्म चपलवाद मनस्सन्नु इन्नह भागवतोत्तमर विषयदल्लि दृढ वागि निल्लिसि, अवर सन्निधिगॆ होगि, अवरन्ने सेविसि उद्बविसिरि (अव रॊडनॆ सेरि नीवू भगवद्भक्तरागि उद्बविसिरि ऎन्दु तात्पर) (२) नियु नुमुळ्ळत्तुकॊळ्ळु दॆयङ्गळुम्मॆ युय्यक्कॊळ, मुत्तुमवनोडे कण्णीर् मार्कनु करिये, कुत्त मनमॊन्नुव वेणा कण्णनल्लाल् दॆय मि इप्पदॆल्ला मर्व मूर्त्तियादवक्कॆ 516 पञ्चम शतक.
प्र! नुम्-निम्म उळ्ळत्तु-मनस्सिनल्लि, निति-दृढवागि निल्लिसि, कॊळ्ळुम्-निम्मन्नु वशीकरिसि तमगॆ बेकाद वस्तुगळन्नु स्वीकरिसुव दॆव्वङ्गळ्-इतर देवतॆगळु उम्म-निम्मन्नु, उय्यक्कॊळ्ळुम्- उद्बविसुवन्तॆ माडुवुदू, अवनोडे मुत्तु-तमगू फलप्र दत्व शक्तियन्नु कॊट्ट सर्वॆश्वरनॊडनॆ होगि सेरियल्लवे (निम्मन्नु उद्बविसुवन्तॆ माडुवुदु. (इदक्कॆ) मार्कनुम्- मार्कं डेयनू, करि-साक्षियागिद्दानॆम्बुदन्नु, कण्णीर् - नीवु कण्डिरि, (आदुदरिन्द) कुत्त-देवतात्मर भजनदिन्द मलिनवाद, मनम्- मनस्सु, ऒनुण्णा - ऒन्दु विधवागियू बेकागिल्ल, (अन्नह मन स्सन्नु बिट्टु बिडिरि), कण्णनल्लाल् दॆय्यमि-श्रीकृष्णनन्नु हॊरतु बेरॆ परदैववे इल्ल. (आदुदरिन्द) इप्पदु ऎल्लाम् - नित्य नैमित्रि कादि करगळन्नॆल्ला, अर्वमूर्ति यायवक्के अवन मूर्ति भूतरादवरिगे (ऎन्दरॆ अवरिगॆल्ला अन्नरामियागिरुव आ कृष्णनिगॆ), इर्मि-समर्पिसिरि. (अनादि देवतॆगळिगॆल्ला आरामियाद श्रीमन्नारायणने सर्वकर समाराध्यनु-ऎन्दु भाववु) ( स- गा-र 11 - युष्माकं हृदयं प्रविश्य सुदृढा या देवतास्ता अपि श्रीशं प्राप्य फलप्रदास्तदिह साक्षा मृ कात्मजः । दृष्ट वं बत! निश्चिते हि मलिन माव चित्रं तु वः! कृष्णान्नव परन्नु दैवमुखिलं तद्विग्रहेष्ट र्पताम् ॥ ता॥ निम्म मनस्सन्नॆल्ला दृढवागि वशीकरिसि (तम्म इष्टार्ध गळन्नॆल्ला पडॆयुव) देवतास्तरगळू कूड निमगॆ फलप्रदवागोणवु सर्वॆश्वरन मूलकवागिये हॊरतु स्वतवागि अल्ल इदक्कॆ साक्षि मार्कण्डेयने ऎन्दु नीवु कण्डिरुत्तीरि (मार्कण्डेयनिगॆ रुद्रनु वरवन्नु कॊट्टु इद्दाग्यू रक्षिसलारॆदॆ श्रीमन्नारायणनन्ने आश्रयिसि रक्षिसलिल्लवॆ? आदुदरिन्द निम्म मनस्सन्नु चञ्चलपडिसदॆ सर्वॆश्वरनाद श्रीमन्नारायणनन्ने भजिसिरि, श्रीकृष्णनल्लदॆ बेरॆ दैववे इल्ल. सर्वदेवतॆगळिगू अत्यामियाद अवने सर्वकर द्वितीय दशक. 517 समाराध्यनादुदरिन्द नीवु माडुव नित्य नैमित्ति कादि सकल कर गळन्नू अवनल्लि समर्पिसि कृतार्थरागिरि. (८) इक्कु मिटैयियुत्तु बॆलकुक्कुम् निमुत्तिर्ना दॆय्यङ्गळाक वत्तॆय्यनायर्कताने, मुत्तिरुवार्वनर्वत्र पूदळ’ कीदळ पाडि वॆुप्पि लत्तु मिक्कार् मेवित्तॊन्दु नीरे ఎఱ प्रति इवुक्कुम् कर्तव्यवाद, इत्य-नित्य नैमित्तिक करगळन्नु, इत्तु-समर्पिसि, उण्ण-उद्बविसुवुदक्कागि, ऎव्वुलकुक्कुम् ऎल्ला लोकगळिगू, र्तमूर्त्ति-तन्न शरीरभेदगळन्ने, दॆय्यब्बाक आया देवतॆगळॆन्दु, निमिुर्ना निल्लिसिदवनु (स्थापिसिदवनु), अत्तॆय्य नायर्क ताने – आ सर्वदेवतानायकनाद श्रीकृष्णने अल्लवे (आदुदरिन्द) म-श्रीवत्स चिक्कवन्नु, तिरुमार्व९ - नक्षलदल्लि धरिसिरुव, अर्वत्र अवन, पूदळ – दासभूतराद भागवतरु, कीदब्बल्पाडि - नानागीतॆगळन्नु हाडि, लत्तु - ई प्रपञ्चद सांसारिकवाद, बॆरुप्पु इन्नि- दुःखवु इल्लदन्तॆ, मिक्कार् - सर्वो कृष्टरागि प्रकाशिसुत्तिदारॆ. नीर् - नीवुगळू, मेवि - अवरन्नु आश्रयिसि, तॊदु उम्मि-अवरन्ने सेविसि उद्बविसिरि. (अवरॊडनॆ सेरि नीवू भगवद्भक्तरागि उद्बविसिरि ऎन्दु भाववु.) ( स-गार ॥ - अ कर्तव्यामपि कृत्य सन्ततिममा जीवा भजन्नु स्वयं चाराध्य जगतीति मूर्ति सरं स्त्रीयां हरिस्टापर्य । देवानामधिदेव एव जयति श्रीवत्सवकाश तं गीतृर्नृत्तयुता भजनि विमलार्सा प्राप्य धन्यास भो ता॥ नित्य मित्तिकादि सकलकर्मगळिगू तन्न शरीरांशभूतराद देवतॆगळन्ने सकललोकगळल्लू आराध्यरागि तोरुवन्तॆ, सर्वदेवाधि देवनाद अवने स्थापिसि इरुत्तानॆ. आदुदरिन्द श्रीवत्सवक्षस्सलनाद 518 पञ्चम शतक. आ सर्वॆश्वरन दासभूतराद भागवतरु अवन विषयदल्लि नानाविद वाद कीर्तनॆगळन्नु हाडि ई लोकद सांसारिक दुःखगनवू इल्ल दन्तॆ सर्वोत्कृष्टरागि प्रकाशिसुत्तिद्दारॆ. नीवुगळू अवरन्ने आश्रयिसि सेविसुत्त, अवरन्तॆये श्री भगवद्भक्तरागि उल्लेविसिरि. (९) मेवि दुम्मिनीळ वेदप्पुनिदरु, नाविल् कॊच्चुर्ततन, नविदि पितृयाम, आनविदि पॊविल् पुकैयु विळक्कु शान मुम् नीरुम् मलिद्दु, मेवि मडियारु पकपरुम् मिक्कदुलके प्रति वेदम्-वेददल्लि, पुनिद पावनतमवाद, इरु- श्री पुरुषसूक्तनारायणानुवाकादि ऋग्विशेषगळन्नु, नाविल् कॊण्णु- नालिगॆयल्लि धरिसुत्त, (पठिसुत्त), नविधि-भक्तिरूपवाद ज्ञानवन्नु पडॆयुव शास्त्रमय्यादॆयु, यामे-तप्पदन्तॆ, पूविल्-(आराध नोपकरणवाद) पुष्पदॊडनॆ, पुकै युम्-धूपवन्नू, विळक्कुम् दीपवन्नू, शान मुम्-चन्ननवन्नू, नीरु- अभिषेकादि तीर्थ वन्नू, मलिनु - पूर्णवागि धरिसिकॊण्डु बन्दु, अच्चुर्तत अच्युतनन्ने, मेवि - अनन्य प्रयोजनरागि आश्रयिसि, तॊ S आराधिसि (सेविसि) कृतार्धराद, अडियारु-शेषभूतराद भागवत रन्नू, पकवरु-अवन गुणानुभवदल्लि मग्नराद मुनिवय्यरन्नू, उलकु मिक्कदु-ई लोकवु ईग अधिकवागि पडॆदिरुत्तदॆ. (आदुद रिन्द मेवि-अवरन्ने आश्रयिसि, तॊळॆदु-सेविसि, नीर्-नीवुगळू, उर्म्मिकळ्-उच्चवितरागिरि,(स-गार 11 - द्वितीय दशक. 519 वेदस्यामसि सूक्ति सन्नतिमा वाचा पठ स्वयं शुद्धां भक्तियुताश्च धूपकुसु र्दीश्च गन्नॊदक्कॆ । आराध्याच्युतमेव दास्यनिरताः केचिच्च योगान्विता दृश्य भुवि र्ता प्रणम्य भवत प्राप्यानिजीविताः ॥ ता॥ वेददल्लि पावनतमवाद सूक्तगळन्नु पठनमाडुत्त, शास्रोकरीत्या पुष्पधूप-दीप-चन्नन-तीर्धादि सकलोपकरण गळॊडनॆ बन्दु अच्युतनन्ने अनन्य प्रयोजनरागि आराधिसुव भागव तोत्तमरू अवन गुणानुभवदल्ले सक्तराद (योगनिष्ठराद) मुनिवररू ईग ई लोकदल्लि सर्वत्र तुम्बि इदारॆ. आदुदरि०द नीवुगळू अवरन्ने आश्रयिसि सेविसुत्त अवरन्तॆये भगवत्पावण्य दिन्द उद्बवितरागिरि (१०) मिक्कवुलकुकळ तोट मेवि कर्ण मिक्क J तिरुमूर्ति, नक्कपिरानॊडयनुमिरनुम् मुदला तॊक्कवमरकुट्टुम् परन्दन तॊण्णूर्, ऒक्कॆ तक्किगॆ Bराकिल् कलियुगदॊन्ममिये Hel उलकुक प्रति नक्कपिरानोडु - नग्ननाद रुद्रनॊडनॆ, अयनु ब्रह्मनू, इद्दिरनुम्-इनू, मुदलाक - मॊदलागि, तॊक्क- गुम्पागि सेरिद अमरर्-देवतॆगळ, कुब्बळ्-समूहगळु, कण्ण- श्रीकृष्णन, तिरुमूर्ति - दिव्यमङ्गळ विग्रहवन्नु, मेवि-आश्रयिसि, भोग्यभोगोपकरणगळिन्द पूर्णवाद, तोम्-लोकगळल्लॆल्ला, ऎट्टुम्-ऎल्लॆल्लियू, परन्नन-व्यापिसि परिपूर्ण समृमृद्धियुळ्ळवरादुवु तॊण्णू चपलरादवरे !, ऒक्क-नीवू अवरॊडनॆ सेरि अव तॊ~ अवनन्ने सेविसुवुदक्कॆ किंराकिल्-शक्तराद देवतानर भजनरूपवाद कलियुग (दोषवु, 520 पञ्चम शतक. ऒन्दू इल्ल. (निमगॆ देवकार भजनदोषवॆल्ला होगि श्रीकृष्ण भक्तिये सर्वसमृमृद्धियन्नू उण्टुमाडुवुदॆन्दु भाववु.) (2-10-811)- रुद्रापि चतुर्मुखतन खा७पि देवां कृष्णं श्रीशमिमं प्रपद्य शरणं लोकेषु सर्वत्र च । प्रास्तास्समृदमुत्तमं किल तथा हे ! चलां हां ययं च प्रणमत चेत्कलियुगं नैवास्ति कुत्रापि व । ता॥ नग्ननाद रुद्रन ब्रह्मन इद्दरू, इतर देवतॆगळू गुम्पु गुम्पागि सेरि श्रीकृष्णन दिव्यमङ्गळ विग्रहवन्ने आश्रयिसि सेविसि, सर्वलोकगळल्लि सकल समृमृद्धियुळ्ळवरागिद्दारॆ. आदुद रिन्द इतरॆ विषयचपलराद नीवुगळॆल्लरू (निम्म चापल्यवन्नु बिट्टु) अवरॊडनॆ सेरि अवनन्ने सेविसलु सन्नद्दरादरॆ निमगॆ कलियुग दोषवु निश्लेषनष्टवागि होगुवुदु, नीवू भगवदनुग्रहदिन्द अवरन्तॆ सर्व समृमृद्धिय ० पडॆ युविरि ऎन्दु तात्पर. (११) कलियुग मिक्के तन्नडियाक्करुळ शॆय्युम्, मलियुमुडरॊळिमूर्ति मायप्पिर्रा कर्ण्णत, कलिवयल्तॆन्न९कुरुकूर् क्यारिमार्जशडकोर्प ऒलिपुकयिरत्तिप्पत्तुळ्ळ माशुक्कुव प्रति र्त- तनगॆ, अडियाक्कु-दासभूतरादवरिगॆ, कलियुगम्- कलियुगवु, ऒनुम् इनिक्के एकदेशवू इल्लदन्तॆ, अरुळशॆयुम्- कृपॆमाडुव (कलियुगदोषवन्नॆल्ला निर्मूलमाडि कृतयुगवन्ने स्थापिसुव), मलियुम् शुड ऒळिमूर्ति-प्रवर्धमानवाद दिव्य तेजःप्रकाशवुळ्ळ मूर्तियाद, मायप्पिर्रा – आश्चर गुणचेष्टित गळुळ्ळ स्वामियाद, कर्ण्णत-श्रीकृष्णनन्नु कुरितु, कलिवयल्- द्वितीय दशक, 521 समृद्ध सस्यक्षेत्रगळुळ्ळ, तॆर्नकुरुकूर्- दक्षिणदिक्किनल्लि श्ला म्यवाद कुरुकापुरिगॆ निर्वाहकराद, कारि मार्त-कारियॆम्ब महात्मर पुत्र नागि मानॆम्ब नामधेयवुळ्ळ, शडकोर्प - शरारिमुनियु (रच सिरुव), ऒलिपुक प्रख्यातकीर्तियुळ्ळ, आयिरत्तु-सहस्रपद्यमालॆ यॊळु, इप्पत्तु-ई दशकवु, उळ्ळ (पठनमाडुववर) हृयदल्लिरुव, माकु अक्कुम्-(देवतान्तर भजनादि दोषरूपवाद) मालिन्य वन्नु छेदिसि नाशपडिसुवुदु. (सकलविध हृदयदोषवू शास्त्रवा गुवुदॆन्दु भाववु ) ( 2-na-8 ॥ )—- भक्तानां न भवेद्यथा कलियुगं ताता तथा श्रीहरिः कृष्ण भाति दयानिधिश्च परमं ज्योतिश्च माया प्रभुः । तुं तं शरजित्सहस्रमवदत्कारीशसूनुर्मु र्माराख्यस्तदिदं च तत्र दशकं दोषद र्हृदि ॥ e ता॥ तन्न दासभूतरिगॆ कलियुगद एकदेशवू इल्लदन्तॆ (सकल दोषगळन्नू निरूलमाडि) दिव्य कृतयुगदरगळन्ने स्थापिसुव प्रव र्धमान दिव्य तेजोमूर्तियाद (श्री कल्कि-नारसिंहमूर्तियागि अवतरिसुव) मायाचेष्टितनाद श्री कृष्णनन्नु कुरितु (दक्षिण कुरुका पुरी निर्वाहकराद कारिमानॆम्ब श्री शरारि मुनिवररु रचिसिद सुप्रख्यात महिमॆयुळ्ळ सहस्र पद्य मालॆयॊळु ई दशकवु (पठन माडबल्ल भक्तर हृदयदल्लि इरुव सर्वविध मालिन्यवन्नू ध्वंसमाडि अवरिगॆ दिव्यज्ञानवन्नुण्टुमाडि सकल सम्पत्समृद्धियन्नू कॊडुवु दॆन्दु तात्पय्य (3-ev-2011)- आतोपदेशविभवैश्यमिताघब्बन मारब्धवैष्णवसमृद्धि समध्यमानम् । आलोकर्य क्षितितलं कलिना७ष्यदृष्य माशास्त्र, मलममुष्य मुनिद्वितीये ॥ 622 पाथोधिप्रौढका पञ्चम शतक (a-en-36 ॥)— सरसतुलसिकालं कृत् दातृभावे वैशुण्य च चकम्प्रहरणवशितादेवतास्थापना । सानामच्यवने७थो ! सकलयमने सत्व करज्यभावे नित्यासक्ति भर्जगदघशमनं प्राह कृष्णं शठसरिः ॥ (ई द्वितीयदशकद सारांश) ई ऎरडनॆय दशकदल्लि श्री शठारिमुनिवररु ई जगत्तिनल्लि सर्वत्र भागवतरु गुम्पुगुम्पागि सेरि भगवत्सङ्कीर्तनवं माडि नर्तनमाड्तिदारॆन्दु भाविसि तम्म भावनॆयु क्षेत्रवागिये सत्यवागि फलिसुवुदरिन्द कलियुगवु नष्टवागि दिव्यवागि अनुस्फूतवाद महा कृतयुगवे बरुवुदॆन्दु श्री भगवधाविर्भाववन्ने सूचिसुत्त (पुरा होक्तवाद श्री कल्किरूपियाद भगवन्तन अवतारवन्नॆ) परमान समृद्धि परीवाहजनकवागुवुदॆन्दु दिव्य दृष्टियिन्द तिळिदु तम्म भविष्य ज्ञानवन्नु प्रकाशपडिसि इरुत्तारॆ [ई दशकवु ई प्रकार भगवन्नन श्री कवतार वैभववन्ने सूचिसुत्तदॆयॆन्दु श्री शठारिप्रकृति दिव्यसूरिगळिन्द प्रेरितनागिरुव श्री कल्किनारसिंहनाद नाने साक्षात्तागि प्रतिज्ञापुरस्सरवागि हेळु वुदरिन्द ऎल्लरू विश्वासवं माडि कृतार्थरागबेकु-श्री कः] तृतीय दशक.