०१

[पहला अध्याय]

विषय

कलिधर्मनिरूपण

मूलम् (वचनम्)

श्रीमैत्रेय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्याख्याता भवता सर्गवंशमन्वन्तरस्थितिः।
वंशानुचरितं चैव विस्तरेण महामुने॥ १॥

मूलम्

व्याख्याता भवता सर्गवंशमन्वन्तरस्थितिः।
वंशानुचरितं चैव विस्तरेण महामुने॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमैत्रेयजी बोले—हे महामुने! आपने सृष्टिरचना, वंश-परम्परा और मन्वन्तरोंकी स्थितिका तथा वंशोंके चरित्रोंका विस्तारसे वर्णन किया॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रोतुमिच्छाम्यहं त्वत्तो यथावदुपसंहृतिम्।
महाप्रलयसंज्ञां च कल्पान्ते च महामुने॥ २॥

मूलम्

श्रोतुमिच्छाम्यहं त्वत्तो यथावदुपसंहृतिम्।
महाप्रलयसंज्ञां च कल्पान्ते च महामुने॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब मैं आपसे कल्पान्तमें होनेवाले महाप्रलय नामक संसारके उपसंहारका यथावत् वर्णन सुनना चाहता हूँ॥ २॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

मैत्रेय श्रूयतां मत्तो यथावदुपसंहृतिः।
कल्पान्ते प्राकृते चैव प्रलये जायते यथा॥ ३॥

मूलम्

मैत्रेय श्रूयतां मत्तो यथावदुपसंहृतिः।
कल्पान्ते प्राकृते चैव प्रलये जायते यथा॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—हे मैत्रेय! कल्पान्तके समय प्राकृत प्रलयमें जिस प्रकार जीवोंका उपसंहार होता है, वह सुनो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहोरात्रं पितॄणां तु मासोऽब्दस्त्रिदिवौकसाम्।
चतुर्युगसहस्रे तु ब्रह्मणो वै द्विजोत्तम॥ ४॥

मूलम्

अहोरात्रं पितॄणां तु मासोऽब्दस्त्रिदिवौकसाम्।
चतुर्युगसहस्रे तु ब्रह्मणो वै द्विजोत्तम॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विजोत्तम! मनुष्योंका एक मास पितृगणका, एक वर्ष देवगणका और दो सहस्र चतुर्युग ब्रह्माका एक दिन-रात होता है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चेति चतुर्युगम्।
दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु तद‍‍्द्वादशभिरुच्यते॥ ५॥

मूलम्

कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चेति चतुर्युगम्।
दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु तद‍‍्द्वादशभिरुच्यते॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलि—ये चार युग हैं, इन सबका काल मिलाकर बारह हजार दिव्य वर्ष कहा जाता है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्युगाण्यशेषाणि सदृशानि स्वरूपतः।
आद्यं कृतयुगं मुक्त्वा मैत्रेयान्त्यं तथा कलिम्॥ ६॥

मूलम्

चतुर्युगाण्यशेषाणि सदृशानि स्वरूपतः।
आद्यं कृतयुगं मुक्त्वा मैत्रेयान्त्यं तथा कलिम्॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! [प्रत्येक मन्वन्तरके] आदि कृतयुग और अन्तिम कलियुगको छोड़कर शेष सब चतुर्युग स्वरूपसे एक समान हैं॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आद्ये कृतयुगे सर्गो ब्रह्मणा क्रियते यथा।
क्रियते चोपसंहारस्तथान्ते च कलौ युगे॥ ७॥

मूलम्

आद्ये कृतयुगे सर्गो ब्रह्मणा क्रियते यथा।
क्रियते चोपसंहारस्तथान्ते च कलौ युगे॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस प्रकार आद्य (प्रथम) सत्ययुगमें ब्रह्माजी जगत‍्की रचना करते हैं उसी प्रकार अन्तिम कलियुगमें वे उसका उपसंहार करते हैं॥ ७॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमैत्रेय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलेस्स्वरूपं भगवन‍‍्विस्तराद्वक्तुमर्हसि।
धर्मश्चतुष्पाद्भगवान‍्यस्मिन्विप्लवमृच्छति॥ ८॥

मूलम्

कलेस्स्वरूपं भगवन‍‍्विस्तराद्वक्तुमर्हसि।
धर्मश्चतुष्पाद्भगवान‍्यस्मिन्विप्लवमृच्छति॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमैत्रेयजी बोले—हे भगवन्! कलिके स्वरूपका विस्तारसे वर्णन कीजिये, जिसमें चार चरणोंवाले भगवान् धर्मका प्रायः लोप हो जाता है॥ ८॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलेस्स्वरूपं मैत्रेय यद्भवाञ्छ्रोतुमिच्छति।
तन्निबोध समासेन वर्तते यन्महामुने॥ ९॥

मूलम्

कलेस्स्वरूपं मैत्रेय यद्भवाञ्छ्रोतुमिच्छति।
तन्निबोध समासेन वर्तते यन्महामुने॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—हे मैत्रेय! आप जो कलियुगका स्वरूप सुनना चाहते हैं सो उस समय जो कुछ होता है वह संक्षेपसे सुनिये॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वर्णाश्रमाचारवती प्रवृत्तिर्न कलौ नृणाम्।
न सामऋग्यजुर्धर्मविनिष्पादनहैतुकी॥ १०॥

मूलम्

वर्णाश्रमाचारवती प्रवृत्तिर्न कलौ नृणाम्।
न सामऋग्यजुर्धर्मविनिष्पादनहैतुकी॥ १०॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें मनुष्योंकी प्रवृत्ति वर्णाश्रम-धर्मानुकूल नहीं रहती और न वह ऋक्-साम-यजुरूप त्रयी-धर्मका सम्पादन करनेवाली ही होती है॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विवाहा न कलौ धर्म्या न शिष्यगुरुसंस्थितिः।
न दाम्पत्यक्रमो नैव वह्निदेवात्मकः क्रमः॥ ११॥

मूलम्

विवाहा न कलौ धर्म्या न शिष्यगुरुसंस्थितिः।
न दाम्पत्यक्रमो नैव वह्निदेवात्मकः क्रमः॥ ११॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय धर्मविवाह, गुरु-शिष्य-सम्बन्धकी स्थिति, दाम्पत्यक्रम और अग्निमें देवयज्ञक्रियाका क्रम (अनुष्ठान) भी नहीं रहता॥ ११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्र कुत्र कुले जातो बली सर्वेश्वरः कलौ।
सर्वेभ्य एव वर्णेभ्यो योग्यः कन्यावरोधने॥ १२॥

मूलम्

यत्र कुत्र कुले जातो बली सर्वेश्वरः कलौ।
सर्वेभ्य एव वर्णेभ्यो योग्यः कन्यावरोधने॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें जो बलवान् होगा वही सबका स्वामी होगा चाहे किसी भी कुलमें क्यों न उत्पन्न हुआ हो, वह सभी वर्णोंसे कन्या ग्रहण करनेमें समर्थ होगा॥ १२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येन केन च योगेन द्विजातिर्दीक्षितः कलौ।
यैव सैव च मैत्रेय प्रायश्चित्तं कलौ क्रिया॥ १३॥

मूलम्

येन केन च योगेन द्विजातिर्दीक्षितः कलौ।
यैव सैव च मैत्रेय प्रायश्चित्तं कलौ क्रिया॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय द्विजातिगण जिस-किसी उपायसे [अर्थात् निषिद्ध द्रव्य आदिसे] भी ‘दीक्षित’ हो जायँगे और जैसी-तैसी क्रियाएँ ही प्रायश्चित्त मान ली जायँगी॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वमेव कलौ शास्त्रं यस्य यद्वचनं द्विज।
देवता च कलौ सर्वा सर्वस्सर्वस्य चाश्रमः॥ १४॥

मूलम्

सर्वमेव कलौ शास्त्रं यस्य यद्वचनं द्विज।
देवता च कलौ सर्वा सर्वस्सर्वस्य चाश्रमः॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विज! कलियुगमें जिसके मुखसे जो कुछ निकल जायगा वही शास्त्र समझा जायगा; उस समय सभी (भूत-प्रेत-मशान आदि) देवता होंगे और सभीके सब आश्रम होंगे॥ १४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपवासस्तथायासो वित्तोत्सर्गस्तपः कलौ।
धर्मो यथाभिरुचितैरनुष्ठानैरनुष्ठितः॥ १५॥

मूलम्

उपवासस्तथायासो वित्तोत्सर्गस्तपः कलौ।
धर्मो यथाभिरुचितैरनुष्ठानैरनुष्ठितः॥ १५॥

अनुवाद (हिन्दी)

उपवास, तीर्थाटनादि कायक्लेश, धन-दान तथा तप आदि अपनी रुचिके अनुसार अनुष्ठान किये हुए ही धर्म समझे जायँगे॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वित्तेन भविता पुंसां स्वल्पेनाढ्यमदः कलौ।
स्त्रीणां रूपमदश्चैवं केशैरेव भविष्यति॥ १६॥

मूलम्

वित्तेन भविता पुंसां स्वल्पेनाढ्यमदः कलौ।
स्त्रीणां रूपमदश्चैवं केशैरेव भविष्यति॥ १६॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें अल्प धनसे ही लोगोंको धनाढ्यताका गर्व हो जायगा और केशोंसे ही स्त्रियोंको सुन्दरताका अभिमान होगा॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुवर्णमणिरत्नादौ वस्त्रे चोपक्षयं गते।
कलौस्त्रियोभविष्यन्तितदाकेशैरलङ्कृताः॥ १७॥

मूलम्

सुवर्णमणिरत्नादौ वस्त्रे चोपक्षयं गते।
कलौस्त्रियोभविष्यन्तितदाकेशैरलङ्कृताः॥ १७॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय सुवर्ण, मणि, रत्न और वस्त्रोंके क्षीण हो जानेसे स्त्रियाँ केश-कलापोंसे ही अपनेको विभूषित करेंगी॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परित्यक्ष्यन्ति भर्त्तारं वित्तहीनं तथा स्त्रियः।
भर्त्ता भविष्यति कलौ वित्तवानेव योषिताम्॥ १८॥

मूलम्

परित्यक्ष्यन्ति भर्त्तारं वित्तहीनं तथा स्त्रियः।
भर्त्ता भविष्यति कलौ वित्तवानेव योषिताम्॥ १८॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो पति धनहीन होगा उसे स्त्रियाँ छोड़ देंगी। कलियुगमें धनवान् पुरुष ही स्त्रियोंका पति होगा॥ १८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यो वै ददाति बहुलं स्वं स स्वामी सदा नृणाम्।
स्वामित्वहेतुस्सम्बन्धो न चाभिजनता तथा॥ १९॥

मूलम्

यो वै ददाति बहुलं स्वं स स्वामी सदा नृणाम्।
स्वामित्वहेतुस्सम्बन्धो न चाभिजनता तथा॥ १९॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य [चाहे वह कितनाहू निन्द्य हो] अधिक धन देगा वही लोगोंका स्वामी होगा; यह धन-दानका सम्बन्ध ही स्वामित्वका कारण होगा, कुलीनता नहीं॥ १९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गृहान्ता द्रव्यसङ्घाता द्रव्यान्ता च तथा मतिः।
अर्थाश्चात्मोपभोग्यान्ता भविष्यन्ति कलौयुगे॥ २०॥

मूलम्

गृहान्ता द्रव्यसङ्घाता द्रव्यान्ता च तथा मतिः।
अर्थाश्चात्मोपभोग्यान्ता भविष्यन्ति कलौयुगे॥ २०॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिमें सारा द्रव्य-संग्रह घर बनानेमें ही समाप्त हो जायगा [दान-पुण्यादिमें नहीं], बुद्धि धन-संचयमें ही लगी रहेगी [आत्मज्ञानमें नहीं], सारी सम्पत्ति अपने उपभोगमें ही नष्ट हो जायगी [उससे अतिथि-सत्कारादि न होगा]॥ २०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्त्रियः कलौ भविष्यन्ति स्वैरिण्यो ललितस्पृहाः।
अन्यायावाप्तवित्तेषु पुरुषाः स्पृहयालवः॥ २१॥

मूलम्

स्त्रियः कलौ भविष्यन्ति स्वैरिण्यो ललितस्पृहाः।
अन्यायावाप्तवित्तेषु पुरुषाः स्पृहयालवः॥ २१॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिकालमें स्त्रियाँ सुन्दर पुरुषकी कामनासे स्वेच्छाचारिणी होंगी तथा पुरुष अन्यायोपार्जित धनके इच्छुक होंगे॥ २१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभ्यर्थितापि सुहृदा स्वार्थहानिं न मानवाः।
पणार्धार्धार्द्धमात्रेऽपि करिष्यन्ति कलौ द्विज॥ २२॥

मूलम्

अभ्यर्थितापि सुहृदा स्वार्थहानिं न मानवाः।
पणार्धार्धार्द्धमात्रेऽपि करिष्यन्ति कलौ द्विज॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विज! कलियुगमें अपने सुहृदोंके प्रार्थना करनेपर भी लोग एक-एक दमड़ीके लिये भी स्वार्थहानि नहीं करेंगे॥ २२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समानपौरुषं चेतो भावि विप्रेषु वै कलौ।
क्षीरप्रदानसम्बन्धि भावि गोषु च गौरवम्॥ २३॥

मूलम्

समानपौरुषं चेतो भावि विप्रेषु वै कलौ।
क्षीरप्रदानसम्बन्धि भावि गोषु च गौरवम्॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिमें ब्राह्मणोंके साथ शूद्र आदि समानताका दावा करेंगे और दूध देनेके कारण ही गौओंका सम्मान होगा॥ २३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनावृष्टिभयप्रायाः प्रजाः क्षुद्भयकातराः।
भविष्यन्ति तदा सर्वे गगनासक्तदृष्टयः॥ २४॥

मूलम्

अनावृष्टिभयप्रायाः प्रजाः क्षुद्भयकातराः।
भविष्यन्ति तदा सर्वे गगनासक्तदृष्टयः॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय सम्पूर्ण प्रजा क्षुधाकी व्यथासे व्याकुल हो प्रायः अनावृष्टिके भयसे सदा आकाशकी ओर दृष्टि लगाये रहेगी॥ २४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कन्दमूलफलाहारास्तापसा इव मानवाः।
आत्मानं घातयिष्यन्ति ह्यनावृष्ट्यादिदुःखिताः॥ २५॥

मूलम्

कन्दमूलफलाहारास्तापसा इव मानवाः।
आत्मानं घातयिष्यन्ति ह्यनावृष्ट्यादिदुःखिताः॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्य [अन्नका अभाव होनेसे] तपस्वियोंके समान केवल कन्द, मूल और फल आदिके सहारे ही रहेंगे तथा अनावृष्टिके कारण दुःखीहोकर आत्मघात करेंगे॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्भिक्षमेव सततं तथा क्लेशमनीश्वराः।
प्राप्स्यन्ति व्याहतसुखप्रमोदा मानवाः कलौ॥ २६॥

मूलम्

दुर्भिक्षमेव सततं तथा क्लेशमनीश्वराः।
प्राप्स्यन्ति व्याहतसुखप्रमोदा मानवाः कलौ॥ २६॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें असमर्थ लोग सुख और आनन्दके नष्ट हो जानेसे प्रायः सर्वदा दुर्भिक्ष तथा क्लेश ही भोगेंगे॥ २६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्नानभोजिनो नाग्निदेवतातिथिपूजनम्।
करिष्यन्ति कलौ प्राप्ते न च पिण्डोदकक्रियाम्॥ २७॥

मूलम्

अस्नानभोजिनो नाग्निदेवतातिथिपूजनम्।
करिष्यन्ति कलौ प्राप्ते न च पिण्डोदकक्रियाम्॥ २७॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिके आनेपर लोग बिना स्नान किये ही भोजन करेंगे, अग्नि, देवता और अतिथिका पूजन न करेंगे और न पिण्डोदक क्रिया ही करेंगे॥ २७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लोलुपा ह्रस्वदेहाश्च बह्वन्नादनतत्पराः।
बहुप्रजाल्पभाग्याश्च भविष्यन्तिकलौ स्त्रियः॥ २८॥

मूलम्

लोलुपा ह्रस्वदेहाश्च बह्वन्नादनतत्पराः।
बहुप्रजाल्पभाग्याश्च भविष्यन्तिकलौ स्त्रियः॥ २८॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समयकी स्त्रियाँ विषयलोलुप, छोटे शरीरवाली, अति भोजन करनेवाली, अधिक सन्तान पैदा करनेवाली और मन्दभाग्या होंगी॥ २८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उभाभ्यामपि पाणिभ्यां शिरःकण्डूयनं स्त्रियः।
कुर्वन्त्यो गुरुभर्तॄणामाज्ञां भेत्स्यन्त्यनादराः॥ २९॥

मूलम्

उभाभ्यामपि पाणिभ्यां शिरःकण्डूयनं स्त्रियः।
कुर्वन्त्यो गुरुभर्तॄणामाज्ञां भेत्स्यन्त्यनादराः॥ २९॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों हाथोंसे सिर खुजलाती हुई अपने गुरुजनों और पतियोंके आदेशका अनादरपूर्वक खण्डन करेंगी॥ २९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वपोषणपराः क्षुद्रा देहसंस्कारवर्जिताः।
परुषानृतभाषिण्यो भविष्यन्ति कलौ स्त्रियः॥ ३०॥

मूलम्

स्वपोषणपराः क्षुद्रा देहसंस्कारवर्जिताः।
परुषानृतभाषिण्यो भविष्यन्ति कलौ स्त्रियः॥ ३०॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगकी स्त्रियाँ अपना ही पेट पालनेमें तत्पर, क्षुद्र चित्तवाली, शारीरिक शौचसे हीन तथा कटु और मिथ्या भाषण करनेवाली होंगी॥ ३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशीला दुष्टशीलेषु कुर्वन्त्यस्सततं स्पृहाम्।
असद‍्वृत्ता भविष्यन्ति पुरुषेषु कुलाङ्गनाः॥ ३१॥

मूलम्

दुःशीला दुष्टशीलेषु कुर्वन्त्यस्सततं स्पृहाम्।
असद‍्वृत्ता भविष्यन्ति पुरुषेषु कुलाङ्गनाः॥ ३१॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समयकी कुलांगनाएँ निरन्तर दुश्चरित्र पुरुषोंकी इच्छा रखनेवाली एवं दुराचारिणी होंगी तथा पुरुषोंके साथ असद्‍व्यवहार करेंगी॥ ३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेदादानं करिष्यन्ति वटवश्चाकृतव्रताः।
गृहस्थाश्च न होष्यन्ति न दास्यन्त्युचितान्यपि॥ ३२॥

मूलम्

वेदादानं करिष्यन्ति वटवश्चाकृतव्रताः।
गृहस्थाश्च न होष्यन्ति न दास्यन्त्युचितान्यपि॥ ३२॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्रह्मचारिगण वैदिक व्रत आदिसे हीन रहकर ही वेदाध्ययन करेंगे तथा गृहस्थगण न तो हवन करेंगे और न सत्पात्रको उचित दान ही देंगे॥ ३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वानप्रस्था भविष्यन्ति ग्राम्याहारपरिग्रहाः।
भिक्षवश्चापि मित्रादिस्नेहसम्बन्धयन्त्रणाः॥ ३३॥

मूलम्

वानप्रस्था भविष्यन्ति ग्राम्याहारपरिग्रहाः।
भिक्षवश्चापि मित्रादिस्नेहसम्बन्धयन्त्रणाः॥ ३३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वानप्रस्थ [वनके कन्द-मूलादिको छोड़कर] ग्राम्य भोजनको स्वीकार करेंगे और संन्यासी अपने मित्रादिके स्नेह-बन्धनमें ही बँधे रहेंगे॥ ३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अरक्षितारो हर्त्तारश्शुल्कव्याजेन पार्थिवाः।
हारिणो जनवित्तानां सम्प्राप्ते तु कलौ युगे॥ ३४॥

मूलम्

अरक्षितारो हर्त्तारश्शुल्कव्याजेन पार्थिवाः।
हारिणो जनवित्तानां सम्प्राप्ते तु कलौ युगे॥ ३४॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगके आनेपर राजालोग प्रजाकी रक्षा नहीं करेंगे, बल्कि कर लेनेके बहाने प्रजाका ही धन छीनेंगे॥ ३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यो योऽश्वरथनागाढ्यस्स स राजा भविष्यति।
यश्च यश्चाबलस्सर्वस्स स भृत्यः कलौ युगे॥ ३५॥

मूलम्

यो योऽश्वरथनागाढ्यस्स स राजा भविष्यति।
यश्च यश्चाबलस्सर्वस्स स भृत्यः कलौ युगे॥ ३५॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय जिस-जिसके पास बहुत-से हाथी, घोड़े और रथ होंगे वह-वह ही राजा होगा तथा जो-जो शक्तिहीन होगा वह-वह ही सेवक होगा॥ ३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैश्याः कृषिवाणिज्यादि सन्त्यज्य निजकर्मयत्।
शूद्रवृत्त्या प्रवर्त्स्यन्ति कारुकर्मोपजीविनः॥ ३६॥

मूलम्

वैश्याः कृषिवाणिज्यादि सन्त्यज्य निजकर्मयत्।
शूद्रवृत्त्या प्रवर्त्स्यन्ति कारुकर्मोपजीविनः॥ ३६॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैश्यगण कृषि-वाणिज्यादि अपने कर्मोंको छोड़कर शिल्पकारी आदिसे जीवन-निर्वाह करते हुए शूद्रवृत्तियोंमें ही लग जायँगे॥ ३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भैक्षव्रतपराः शूद्राः प्रव्रज्यालिङ्गिनोऽधमाः।
पाषण्डसंश्रयां वृत्तिमाश्रयिष्यन्ति सत्कृताः॥ ३७॥

मूलम्

भैक्षव्रतपराः शूद्राः प्रव्रज्यालिङ्गिनोऽधमाः।
पाषण्डसंश्रयां वृत्तिमाश्रयिष्यन्ति सत्कृताः॥ ३७॥

अनुवाद (हिन्दी)

आश्रमादिके चिह्नसे रहित अधम शूद्रगण संन्यास लेकर भिक्षावृत्तिमें तत्पर रहेंगे और लोगोंसे सम्मानित होकर पाषण्ड-वृत्तिका आश्रय लेंगे॥ ३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्भिक्षकरपीडाभिरतीवोपद्रुता जनाः।
गोधूमान्नयवान्नाढ्यान्देशान्यास्यन्ति दुःखिताः॥ ३८॥

मूलम्

दुर्भिक्षकरपीडाभिरतीवोपद्रुता जनाः।
गोधूमान्नयवान्नाढ्यान्देशान्यास्यन्ति दुःखिताः॥ ३८॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजाजन दुर्भिक्ष और करकी पीड़ासे अत्यन्त उपद्रवयुक्त और दुःखित होकर ऐसे देशोंमें चले जायँगे जहाँ गेहूँ और जौकी अधिकता होगी॥ ३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेदमार्गेप्रलीने च पाषण्डाढ्ये ततो जने।
अधर्मवृद्ध्या लोकानामल्पमायुर्भविष्यति॥ ३९॥

मूलम्

वेदमार्गेप्रलीने च पाषण्डाढ्ये ततो जने।
अधर्मवृद्ध्या लोकानामल्पमायुर्भविष्यति॥ ३९॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय वेदमार्गका लोप, मनुष्योंमें पाषण्डकी प्रचुरता और अधर्मकी वृद्धि हो जानेसे प्रजाकी आयु अल्प हो जायगी॥ ३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यमानेषु वै तपः।
नरेषु नृपदोषेण बाल्ये मृत्युर्भविष्यति॥ ४०॥

मूलम्

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यमानेषु वै तपः।
नरेषु नृपदोषेण बाल्ये मृत्युर्भविष्यति॥ ४०॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोगोंके शास्त्रविरुद्ध घोर तपस्या करनेसे तथा राजाके दोषसे प्रजाओंकी बाल्यावस्थामें मृत्यु होने लगेगी॥ ४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भविता योषितां सूतिः पञ्चषट्सप्तवार्षिकी।
नवाष्टदशवर्षाणां मनुष्याणां तथा कलौ॥ ४१॥

मूलम्

भविता योषितां सूतिः पञ्चषट्सप्तवार्षिकी।
नवाष्टदशवर्षाणां मनुष्याणां तथा कलौ॥ ४१॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिमें पाँच-छः अथवा सात वर्षकी स्त्री और आठ-नौ या दस वर्षके पुरुषोंके ही सन्तान हो जायगी॥ ४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पलितोद्भवश्च भविता तथा द्वादशवार्षिकः।
नातिजीवति वैकश्चित्कलौ वर्षाणि विंशतिः॥ ४२॥

मूलम्

पलितोद्भवश्च भविता तथा द्वादशवार्षिकः।
नातिजीवति वैकश्चित्कलौ वर्षाणि विंशतिः॥ ४२॥

अनुवाद (हिन्दी)

बारह वर्षकी अवस्थामें ही लोगोंके बाल पकने लगेंगे और कोई भी व्यक्ति बीस वर्षसे अधिक जीवित न रहेगा॥ ४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अल्पप्रज्ञा वृथालिङ्गा दुष्टान्तःकरणाः कलौ।
यतस्ततो विनङ्क्ष्यन्ति कालेनाल्पेन मानवाः॥ ४३॥

मूलम्

अल्पप्रज्ञा वृथालिङ्गा दुष्टान्तःकरणाः कलौ।
यतस्ततो विनङ्क्ष्यन्ति कालेनाल्पेन मानवाः॥ ४३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें लोग मन्द-बुद्धि, व्यर्थ चिह्न धारण करनेवाले और दुष्ट चित्तवाले होंगे, इसलिये वे अल्पकालमें ही नष्ट हो जायँगे॥ ४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा यदा हि मैत्रेय हानिर्धर्मस्य लक्ष्यते।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया विचक्षणैः॥ ४४॥

मूलम्

यदा यदा हि मैत्रेय हानिर्धर्मस्य लक्ष्यते।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया विचक्षणैः॥ ४४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! जब-जब धर्मकी अधिक हानि दिखलायी दे तभी-तभी बुद्धिमान् मनुष्यको कलियुगकी वृद्धिका अनुमान करना चाहिये॥ ४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा यदा हि पाषण्डवृद्धिर्मैत्रेय लक्ष्यते।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया महात्मभिः॥ ४५॥

मूलम्

यदा यदा हि पाषण्डवृद्धिर्मैत्रेय लक्ष्यते।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया महात्मभिः॥ ४५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! जब-जब पाषण्ड बढ़ा हुआ दीखे तभी-तभी महात्माओंको कलियुगकी वृद्धि समझनी चाहिये॥ ४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा यदा सतां हानिर्वेदमार्गानुसारिणाम्।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया विचक्षणैः॥ ४६॥

मूलम्

यदा यदा सतां हानिर्वेदमार्गानुसारिणाम्।
तदा तदा कलेर्वृद्धिरनुमेया विचक्षणैः॥ ४६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब-जब वैदिक मार्गका अनुसरण करनेवाले सत्पुरुषोंका अभाव हो तभी-तभी बुद्धिमान् मनुष्य कलिकी वृद्धि हुई जाने॥ ४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रारम्भाश्चावसीदन्ति यदा धर्मभृतां नृणाम्।
तदानुमेयं प्राधान्यं कलेर्मैत्रेय पण्डितैः॥ ४७॥

मूलम्

प्रारम्भाश्चावसीदन्ति यदा धर्मभृतां नृणाम्।
तदानुमेयं प्राधान्यं कलेर्मैत्रेय पण्डितैः॥ ४७॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! जब धर्मात्मा पुरुषोंके आरम्भ किये हुए कार्योंमें असफलता हो तब पण्डितजन कलियुगकी प्रधानता समझें॥ ४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा यदा न यज्ञानामीश्वरः पुरुषोत्तमः।
इज्यते पुरुषैर्यज्ञैस्तदा ज्ञेयं कलेर्बलम्॥ ४८॥

मूलम्

यदा यदा न यज्ञानामीश्वरः पुरुषोत्तमः।
इज्यते पुरुषैर्यज्ञैस्तदा ज्ञेयं कलेर्बलम्॥ ४८॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब-जब यज्ञोंके अधीश्वर भगवान् पुरुषोत्तमका लोग यज्ञोंद्वारा यजन न करें तब-तब कलिका प्रभाव ही समझना चाहिये॥ ४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न प्रीतिर्वेदवादेषु पाषण्डेषु यदा रतिः।
कलेर्वृद्धिस्तदा प्राज्ञैरनुमेया विचक्षणैः॥ ४९॥

मूलम्

न प्रीतिर्वेदवादेषु पाषण्डेषु यदा रतिः।
कलेर्वृद्धिस्तदा प्राज्ञैरनुमेया विचक्षणैः॥ ४९॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब वेद-वादमें प्रीतिका अभाव हो और पाषण्डमें प्रेम हो तब बुद्धिमान् प्राज्ञ पुरुष कलियुगको बढ़ा हुआ जानें॥ ४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलौ जगत्पतिं विष्णुं सर्वस्रष्टारमीश्वरम्।
नार्चयिष्यन्ति मैत्रेय पाषण्डोपहता जनाः॥ ५०॥

मूलम्

कलौ जगत्पतिं विष्णुं सर्वस्रष्टारमीश्वरम्।
नार्चयिष्यन्ति मैत्रेय पाषण्डोपहता जनाः॥ ५०॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! कलियुगमें लोग पाषण्डके वशीभूत हो जानेसे सबके रचयिता और प्रभु जगत्पति भगवान् विष्णुका पूजन नहीं करेंगे॥ ५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं देवैः किं द्विजैर्वेदैः किं शौचेनाम्बुजन्मना।
इत्येवं विप्र वक्ष्यन्ति पाषण्डोपहता जनाः॥ ५१॥

मूलम्

किं देवैः किं द्विजैर्वेदैः किं शौचेनाम्बुजन्मना।
इत्येवं विप्र वक्ष्यन्ति पाषण्डोपहता जनाः॥ ५१॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे विप्र! उस समय लोग पाषण्डके वशीभूत होकर कहेंगे—‘इन देव, द्विज, वेद और जलसे होनेवाले शौचादिमें क्या रखा है?’॥ ५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वल्पाम्बुवृष्टिः पर्जन्यः सस्यं स्वल्पफलं तथा।
फलं तथाल्पसारं च विप्र प्राप्ते कलौ युगे॥ ५२॥

मूलम्

स्वल्पाम्बुवृष्टिः पर्जन्यः सस्यं स्वल्पफलं तथा।
फलं तथाल्पसारं च विप्र प्राप्ते कलौ युगे॥ ५२॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे विप्र! कलिके आनेपर वृष्टि अल्प जलवाली होगी, खेती थोड़ी उपजवाली होगी और फलादि अल्प सारयुक्त होंगे॥ ५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शाणीप्रायाणि वस्त्राणि शमीप्राया महीरुहाः।
शूद्रप्रायास्तथा वर्णा भविष्यन्ति कलौ युगे॥ ५३॥

मूलम्

शाणीप्रायाणि वस्त्राणि शमीप्राया महीरुहाः।
शूद्रप्रायास्तथा वर्णा भविष्यन्ति कलौ युगे॥ ५३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें प्रायः सनके बने हुए सबके वस्त्र होंगे, अधिकतर शमीके वृक्ष होंगे और चारों वर्ण बहुधा शूद्रवत् हो जायँगे॥ ५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अणुप्रायाणि धान्यानि अजाप्रायं तथा पयः।
भविष्यति कलौ प्राप्ते ह्यौशीरं चानुलेपनम्॥ ५४॥

मूलम्

अणुप्रायाणि धान्यानि अजाप्रायं तथा पयः।
भविष्यति कलौ प्राप्ते ह्यौशीरं चानुलेपनम्॥ ५४॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलिके आनेपर धान्य अत्यन्त अणु होंगे, प्रायः बकरियोंका ही दूध मिलेगा और उशीर (खस) ही एकमात्र अनुलेपन होगा॥ ५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वश्रूश्वशुरभूयिष्ठा गुरवश्च नृणां कलौ।
श्यालाद्या हारिभार्याश्च सुहृदो मुनिसत्तम॥ ५५॥

मूलम्

श्वश्रूश्वशुरभूयिष्ठा गुरवश्च नृणां कलौ।
श्यालाद्या हारिभार्याश्च सुहृदो मुनिसत्तम॥ ५५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनिश्रेष्ठ! कलियुगमें सास और ससुर ही लोगोंके गुरुजन होंगे और हृदयहारिणी भार्या तथा साले ही सुहृद् होंगे॥ ५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्य माता पिता कस्य यथा कर्मानुगः पुमान्।
इति चोदाहरिष्यन्ति श्वशुरानुगता नराः॥ ५६॥

मूलम्

कस्य माता पिता कस्य यथा कर्मानुगः पुमान्।
इति चोदाहरिष्यन्ति श्वशुरानुगता नराः॥ ५६॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोग अपने ससुरके अनुगामी होकर कहेंगे कि ‘कौन किसका पिता है और कौन किसकी माता; सब पुरुष अपने कर्मानुसार जन्मते-मरते रहते हैं’॥ ५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वाङ्मनःकायजैर्दोषैरभिभूताः पुनः पुनः।
नराः पापान्यनुदिनं करिष्यन्त्यल्पमेधसः॥ ५७॥

मूलम्

वाङ्मनःकायजैर्दोषैरभिभूताः पुनः पुनः।
नराः पापान्यनुदिनं करिष्यन्त्यल्पमेधसः॥ ५७॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय अल्पबुद्धि पुरुष बारम्बार वाणी, मन और शरीरादिके दोषोंके वशीभूत होकर प्रतिदिन पुनः-पुनः पापकर्म करेंगे॥ ५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निस्सत्त्वानामशौचानां निर्ह्रीकाणां तथा नृणाम्।
यद्यद्दुःखाय तत्सर्वं कलिकाले भविष्यति॥ ५८॥

मूलम्

निस्सत्त्वानामशौचानां निर्ह्रीकाणां तथा नृणाम्।
यद्यद्दुःखाय तत्सर्वं कलिकाले भविष्यति॥ ५८॥

अनुवाद (हिन्दी)

शक्ति, शौच और लज्जाहीन पुरुषोंको जो-जो दुःख हो सकते हैं कलियुगमें वे सभी दुःख उपस्थित होंगे॥ ५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निस्स्वाध्यायवषट्कारे स्वधास्वाहाविवर्जिते।
तदा प्रविरलो धर्मः क्वचिल्लोके निवत्स्यति॥ ५९॥

मूलम्

निस्स्वाध्यायवषट्कारे स्वधास्वाहाविवर्जिते।
तदा प्रविरलो धर्मः क्वचिल्लोके निवत्स्यति॥ ५९॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय संसारके स्वाध्याय और वषट्कारसे हीन तथा स्वधा और स्वाहासे वर्जित हो जानेसे कहीं-कहीं कुछ-कुछ धर्म रहेगा॥ ५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राल्पेनैव यत्नेन पुण्यस्कन्धमनुत्तमम्।
करोति यं कृतयुगे क्रियते तपसा हि सः॥ ६०॥

मूलम्

तत्राल्पेनैव यत्नेन पुण्यस्कन्धमनुत्तमम्।
करोति यं कृतयुगे क्रियते तपसा हि सः॥ ६०॥

अनुवाद (हिन्दी)

किंतु कलियुगमें मनुष्य थोड़ा-सा प्रयत्न करनेसे ही जो अत्यन्त उत्तम पुण्यराशि प्राप्त करता है वही सत्ययुगमें महान् तपस्यासे प्राप्त किया जा सकता है॥ ६०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीविष्णुपुराणे षष्ठेंऽशे प्रथमोऽध्यायः॥ १॥