१४

[चौदहवाँ अध्याय]

विषय

वृषभासुर-वध

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रदोषाग्रे कदाचित्तु रासासक्ते जनार्दने ।
त्रासयन्समदो गोष्ठमरिष्टस्समुपागमत्॥ १॥

मूलम्

प्रदोषाग्रे कदाचित्तु रासासक्ते जनार्दने ।
त्रासयन्समदो गोष्ठमरिष्टस्समुपागमत्॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—एक दिन सायंकालके समय जब श्रीकृष्णचन्द्र रासक्रीडामें आसक्त थे, अरिष्ट नामक एक मदोन्मत्त असुर [वृषभरूप धारणकर] सबको भयभीत करता व्रजमें आया॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सतोयतोयदच्छायस्तीक्ष्णशृङ्गोऽर्कलोचनः ।
खुराग्रपातैरत्यर्थं दारयन्धरणीतलम्॥ २॥

मूलम्

सतोयतोयदच्छायस्तीक्ष्णशृङ्गोऽर्कलोचनः ।
खुराग्रपातैरत्यर्थं दारयन्धरणीतलम्॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस अरिष्टासुरकी कान्ति सजल जलधरके समान कृष्णवर्ण थी, सींग अत्यन्त तीक्ष्ण थे, नेत्र सूर्यके समान तेजस्वी थे और अपने खुरोंकी चोटसे वह मानो पृथिवीको फाड़े डालता था॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लेलिहानस्सनिष्पेषं जिह्वयोष्ठौ पुनः पुनः ।
संरम्भाविद्धलाङ्गूलः कठिनस्कन्धबन्धनः॥ ३॥

मूलम्

लेलिहानस्सनिष्पेषं जिह्वयोष्ठौ पुनः पुनः ।
संरम्भाविद्धलाङ्गूलः कठिनस्कन्धबन्धनः॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह दाँत पीसता हुआ पुनः-पुनः अपनी जिह्वासे ओठोंको चाट रहा था, उसने क्रोधवश अपनी पूँछ उठा रखी थी तथा उसके स्कन्धबन्धन कठोर थे॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उदग्रककुदाभोगप्रमाणो दुरतिक्रमः ।
विण्मूत्रलिप्तपृष्ठाङ्गो गवामुद्वेगकारकः॥ ४॥

मूलम्

उदग्रककुदाभोगप्रमाणो दुरतिक्रमः ।
विण्मूत्रलिप्तपृष्ठाङ्गो गवामुद्वेगकारकः॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके ककुद (कुहान) और शरीरका प्रमाण अत्यन्त ऊँचा एवं दुर्लङ्‍घ्य था, पृष्ठभाग गोबर और मूत्रसे लिथड़ा हुआ था । तथा वह समस्त गौओंको भयभीत कर रहा था॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रलम्बकण्ठोऽतिमुखस्तरुखाताङ्कताननः ।
पातयन्स गवां गर्भान्दैत्यो वृषभरूपधृक्॥ ५॥
सूदयंस्तापसानुग्रो वनानटति यस्सदा॥ ६॥

मूलम्

प्रलम्बकण्ठोऽतिमुखस्तरुखाताङ्कताननः ।
पातयन्स गवां गर्भान्दैत्यो वृषभरूपधृक्॥ ५॥
सूदयंस्तापसानुग्रो वनानटति यस्सदा॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी ग्रीवा अत्यन्त लम्बी और मुख वृक्षके खोंखलेके समान अति गम्भीर था । वह वृषभरूपधारी दैत्य गौओंके गर्भोंको गिराता हुआ और तपस्वियोंको मारता हुआ सदा वनमें विचरा करता था॥ ५-६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तमतिघोराक्षमवेक्ष्यातिभयातुराः ।
गोपा गोपस्त्रियश्चैव कृष्ण कृष्णेति चुक्रुशुः॥ ७॥

मूलम्

ततस्तमतिघोराक्षमवेक्ष्यातिभयातुराः ।
गोपा गोपस्त्रियश्चैव कृष्ण कृष्णेति चुक्रुशुः॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस अति भयानक नेत्रोंवाले दैत्यको देखकर गोप और गोपांगनाएँ भयभीत होकर ‘कृष्ण, कृष्ण’ पुकारने लगीं॥ ७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिंहनादं ततश्चक्रे तलशब्दं च केशवः ।
तच्छब्दश्रवणाच्चासौ दामोदरमुपाययौ॥ ८॥

मूलम्

सिंहनादं ततश्चक्रे तलशब्दं च केशवः ।
तच्छब्दश्रवणाच्चासौ दामोदरमुपाययौ॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनका शब्द सुनकर श्रीकेशवने घोर सिंहनाद किया और ताली बजायी । उसे सुनते ही वह श्रीदामोदरकी ओर फिरा॥ ८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्रन्यस्तविषाणाग्रः कृष्णकुक्षिकृतेक्षणः ।
अभ्यधावत दुष्टात्मा कृष्णं वृषभदानवः॥ ९॥

मूलम्

अग्रन्यस्तविषाणाग्रः कृष्णकुक्षिकृतेक्षणः ।
अभ्यधावत दुष्टात्मा कृष्णं वृषभदानवः॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुरात्मा वृषभासुर आगेको सींग करके तथा कृष्णचन्द्रकी कुक्षिमें दृष्टि लगाकर उनकी ओर दौड़ा॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आयान्तं दैत्यवृषभं दृष्ट्वा कृष्णो महाबलः ।
न चचाल तदा स्थानादवज्ञास्मितलीलया॥ १०॥

मूलम्

आयान्तं दैत्यवृषभं दृष्ट्वा कृष्णो महाबलः ।
न चचाल तदा स्थानादवज्ञास्मितलीलया॥ १०॥

अनुवाद (हिन्दी)

किन्तु महाबली कृष्ण वृषभासुरको अपनी ओर आता देख अवहेलनासे लीलापूर्वक मुसकराते हुए उस स्थानसे विचलित न हुए॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आसन्नं चैव जग्राह ग्राहवन्मधुसूदनः ।
जघान जानुना कुक्षौ विषाणग्रहणाचलम्॥ ११॥

मूलम्

आसन्नं चैव जग्राह ग्राहवन्मधुसूदनः ।
जघान जानुना कुक्षौ विषाणग्रहणाचलम्॥ ११॥

अनुवाद (हिन्दी)

निकट आनेपर श्रीमधुसूदनने उसे इस प्रकार पकड़ लिया जैसे ग्राह किसी क्षुद्र जीवको पकड़ लेता है; तथा सींग पकड़नेसे अचल हुए उस दैत्यकी कोखमें घुटनेसे प्रहार किया॥ ११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य दर्पबलं भङ्‍क्त्वा गृहीतस्य विषाणयोः ।
अपीडयदरिष्टस्य कण्ठं क्लिन्नमिवाम्बरम्॥ १२॥

मूलम्

तस्य दर्पबलं भङ्‍क्त्वा गृहीतस्य विषाणयोः ।
अपीडयदरिष्टस्य कण्ठं क्लिन्नमिवाम्बरम्॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार सींग पकड़े हुए उस दैत्यका दर्प भंगकर भगवान् ने अरिष्टासुरकी ग्रीवाको गीले वस्त्रके समान मरोड़ दिया॥ १२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्पाट्य शृङ्गमेकं तु तेनैवाताडयत्ततः ।
ममार स महादैत्यो मुखाच्छोणितमुद्वमन्॥ १३॥

मूलम्

उत्पाट्य शृङ्गमेकं तु तेनैवाताडयत्ततः ।
ममार स महादैत्यो मुखाच्छोणितमुद्वमन्॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर उसका एक सींग उखाड़कर उसीसे उसपर आघात किया, जिससे वह महादैत्य मुखसे रक्त वमन करता हुआ मर गया॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुष्टुवुर्निहते तस्मिन्दैत्ये गोपा जनार्दनम् ।
जम्भे हते सहस्राक्षं पुरा देवगणा यथा॥ १४॥

मूलम्

तुष्टुवुर्निहते तस्मिन्दैत्ये गोपा जनार्दनम् ।
जम्भे हते सहस्राक्षं पुरा देवगणा यथा॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जम्भके मरनेपर जैसे देवताओंने इन्द्रकी स्तुति की थी उसी प्रकार अरिष्टासुरके मरनेपर गोपगण श्रीजनार्दनकी प्रशंसा करने लगे॥ १४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीविष्णुपुराणे पञ्चमेंऽशे चतुर्दशोऽध्यायः॥ १४॥