[चौथा अध्याय]
विषय
वसुदेव-देवकीका कारागारसे मोक्ष
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कंसस्तदोद्विग्नमनाः प्राह सर्वान्महासुरान्।
प्रलम्बकेशिप्रमुखानाहूयासुरपुंगवान्॥ १॥
मूलम्
कंसस्तदोद्विग्नमनाः प्राह सर्वान्महासुरान्।
प्रलम्बकेशिप्रमुखानाहूयासुरपुंगवान्॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—तब कंसने खिन्नचित्तसे प्रलम्ब और केशी आदि समस्त मुख्य-मुख्य असुरोंको बुलाकर कहा॥ १॥
मूलम् (वचनम्)
कंस उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हे प्रलम्ब महाबाहो केशिन् धेनुक पूतने।
अरिष्टाद्यास्तथैवान्ये श्रूयतां वचनं मम॥ २॥
मूलम्
हे प्रलम्ब महाबाहो केशिन् धेनुक पूतने।
अरिष्टाद्यास्तथैवान्ये श्रूयतां वचनं मम॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
कंस बोला—हे प्रलम्ब! हे महाबाहो केशिन्! हे धेनुक! हे पूतने! तथा हे अरिष्ट आदि अन्य असुरगण! मेरा वचन सुनो—॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मां हन्तुममरैर्यत्नः कृतः किल दुरात्मभिः।
मद्वीर्यतापितान्वीरो न त्वेतान्गणयाम्यहम्॥ ३॥
मूलम्
मां हन्तुममरैर्यत्नः कृतः किल दुरात्मभिः।
मद्वीर्यतापितान्वीरो न त्वेतान्गणयाम्यहम्॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह बात प्रसिद्ध हो रही है कि दुरात्मा देवताओंने मेरे मारनेके लिये कोई यत्न किया है; किन्तु मैं वीर पुरुष अपने वीर्यसे सताये हुए इन लोगोंको कुछ भी नहीं गिनता हूँ॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमिन्द्रेणाल्पवीर्येण किं हरेणैकचारिणा।
हरिणा वापि किं साध्यं छिद्रेष्वसुरघातिना॥ ४॥
मूलम्
किमिन्द्रेणाल्पवीर्येण किं हरेणैकचारिणा।
हरिणा वापि किं साध्यं छिद्रेष्वसुरघातिना॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
अल्पवीर्य इन्द्र, अकेले घूमनेवाले महादेव अथवा छिद्र (असावधानीका समय) ढूँढ़कर दैत्योंका वध करनेवाले विष्णुसे उनका क्या कार्य सिद्ध हो सकता है?॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमादित्यैः किं वसुभिरल्पवीर्यैः किमग्निभिः।
किं वान्यैरमरैः सर्वैर्मद्बाहुबलनिर्जितैः॥ ५॥
मूलम्
किमादित्यैः किं वसुभिरल्पवीर्यैः किमग्निभिः।
किं वान्यैरमरैः सर्वैर्मद्बाहुबलनिर्जितैः॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे बाहुबलसे दलित आदित्यों, अल्पवीर्य वसुगणों, अग्नियों अथवा अन्य समस्त देवताओंसे भी मेरा क्या अनिष्ट हो सकता है?॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं न दृष्टोऽमरपतिर्मया संयुगमेत्य सः।
पृष्ठेनैव वहन्बाणानपागच्छन्न वक्षसा॥ ६॥
मूलम्
किं न दृष्टोऽमरपतिर्मया संयुगमेत्य सः।
पृष्ठेनैव वहन्बाणानपागच्छन्न वक्षसा॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपलोगोंने क्या देखा नहीं था कि मेरे साथ युद्धभूमिमें आकर देवराज इन्द्र, वक्षःस्थलमें नहीं, अपनी पीठपर बाणोंकी बौछार सहता हुआ भाग गया था॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मद्राष्ट्रे वारिता वृष्टिर्यदा शक्रेण किं तदा।
मद्बाणभिन्नैर्जलदैर्नापो मुक्ता यथेप्सिताः॥ ७॥
मूलम्
मद्राष्ट्रे वारिता वृष्टिर्यदा शक्रेण किं तदा।
मद्बाणभिन्नैर्जलदैर्नापो मुक्ता यथेप्सिताः॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस समय इन्द्रने मेरे राज्यमें वर्षाका होना बन्द कर दिया था उस समय क्या मेघोंने मेरे बाणोंसे विंधकर ही यथेष्ट जल नहीं बरसाया?॥ ७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमुर्व्यामवनीपाला मद्बाहुबलभीरवः।
न सर्वे सन्नतिं याता जरासन्धमृते गुरुम्॥ ८॥
मूलम्
किमुर्व्यामवनीपाला मद्बाहुबलभीरवः।
न सर्वे सन्नतिं याता जरासन्धमृते गुरुम्॥ ८॥
अनुवाद (हिन्दी)
हमारे गुरु (श्वशुर) जरासन्धको छोड़कर क्या पृथिवीके और सभी नृपतिगण मेरे बाहुबलसे भयभीत होकर मेरे सामने सिर नहीं झुकाते?॥ ८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमरेषु ममावज्ञा जायते दैत्यपुंगवाः।
हास्यं मे जायते वीरास्तेषु यत्नपरेष्वपि॥ ९॥
मूलम्
अमरेषु ममावज्ञा जायते दैत्यपुंगवाः।
हास्यं मे जायते वीरास्तेषु यत्नपरेष्वपि॥ ९॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे दैत्यश्रेष्ठगण! देवताओंके प्रति मेरे चित्तमें अवज्ञा होती है और हे वीरगण! उन्हें अपने (मेरे) वधका यत्न करते देखकर तो मुझे हँसी आती है॥ ९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथापि खलु दुष्टानां तेषामप्यधिकं मया।
अपकाराय दैत्येन्द्रा यतनीयं दुरात्मनाम्॥ १०॥
मूलम्
तथापि खलु दुष्टानां तेषामप्यधिकं मया।
अपकाराय दैत्येन्द्रा यतनीयं दुरात्मनाम्॥ १०॥
अनुवाद (हिन्दी)
तथापि हे दैत्येन्द्रो! उन दुष्ट और दुरात्माओंके अपकारके लिये मुझे और भी अधिक प्रयत्न करना चाहिये॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद्ये यशस्विनः केचित्पृथिव्यां ये च याजकाः।
कार्यो देवापकाराय तेषां सर्वात्मना वधः॥ ११॥
मूलम्
तद्ये यशस्विनः केचित्पृथिव्यां ये च याजकाः।
कार्यो देवापकाराय तेषां सर्वात्मना वधः॥ ११॥
अनुवाद (हिन्दी)
अतः पृथिवीमें जो कोई यशस्वी और यज्ञकर्ता हों उनका देवताओंके अपकारके लिये सर्वथा वध कर देना चाहिये॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्पन्नश्चापि मे मृत्युर्भूतपूर्वस्स वै किल।
इत्येतद्दारिका प्राह देवकीगर्भसम्भवा॥ १२॥
मूलम्
उत्पन्नश्चापि मे मृत्युर्भूतपूर्वस्स वै किल।
इत्येतद्दारिका प्राह देवकीगर्भसम्भवा॥ १२॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवकीके गर्भसे उत्पन्न हुई बालिकाने यह भी कहा है कि, वह मेरा भूतपूर्व (प्रथम जन्मका) काल निश्चय ही उत्पन्न हो चुका है॥ १२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माद्बालेषु च परो यत्नः कार्यो महीतले।
यत्रोद्रिक्तं बलं बाले स हन्तव्यः प्रयत्नतः॥ १३॥
मूलम्
तस्माद्बालेषु च परो यत्नः कार्यो महीतले।
यत्रोद्रिक्तं बलं बाले स हन्तव्यः प्रयत्नतः॥ १३॥
अनुवाद (हिन्दी)
अतः आजकल पृथिवीपर उत्पन्न हुए बालकोंके विषयमें विशेष सावधानी रखनी चाहिये और जिस बालकमें विशेष बलका उद्रेक हो उसे यत्नपूर्वक मार डालना चाहिये॥ १३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्याज्ञाप्यासुरान्कंसः प्रविश्याशु गृहं ततः।
मुमोच वसुदेवं च देवकीं च निरोधतः॥ १४॥
मूलम्
इत्याज्ञाप्यासुरान्कंसः प्रविश्याशु गृहं ततः।
मुमोच वसुदेवं च देवकीं च निरोधतः॥ १४॥
अनुवाद (हिन्दी)
असुरोंको इस प्रकार आज्ञा दे कंसने कारागृहमें जाकर तुरन्त ही वसुदेव और देवकीको बन्धनसे मुक्त कर दिया॥ १४॥
मूलम् (वचनम्)
कंस उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
युवयोर्घातिता गर्भा वृथैवैते मयाधुना।
कोऽप्यन्य एव नाशाय बालो मम समुद्गतः॥ १५॥
मूलम्
युवयोर्घातिता गर्भा वृथैवैते मयाधुना।
कोऽप्यन्य एव नाशाय बालो मम समुद्गतः॥ १५॥
अनुवाद (हिन्दी)
कंस बोला—मैंने अबतक आप दोनोंके बालकोंकी तो वृथा ही हत्या की, मेरा नाश करनेके लिये तो कोई और ही बालक उत्पन्न हो गया है॥ १५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदलं परितापेन नूनं तद्भाविनो हि ते।
अर्भका युवयोर्दोषाच्चायुषो यद्वियोजिताः॥ १६॥
मूलम्
तदलं परितापेन नूनं तद्भाविनो हि ते।
अर्भका युवयोर्दोषाच्चायुषो यद्वियोजिताः॥ १६॥
अनुवाद (हिन्दी)
परन्तु आपलोग इसका कुछ दुःख न मानें; क्योंकि उन बालकोंकी होनहार ऐसी ही थी। आपलोगोंके प्रारब्धदोषसे ही उन बालकोंको अपने जीवनसे हाथ धोना पड़ा है॥ १६॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्याश्वास्य विमुक्त्वा च कंसस्तौ परिशंकितः।
अन्तर्गृहं द्विजश्रेष्ठ प्रविवेश ततः स्वकम्॥ १७॥
मूलम्
इत्याश्वास्य विमुक्त्वा च कंसस्तौ परिशंकितः।
अन्तर्गृहं द्विजश्रेष्ठ प्रविवेश ततः स्वकम्॥ १७॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—हे द्विजश्रेष्ठ! उन्हें इस प्रकार ढाँढ़स बँधा और बन्धनसे मुक्तकर कंसने शंकित चित्तसे अपने अन्तःपुरमें प्रवेश किया॥ १७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीविष्णुपुराणे पञ्चमेंऽशे चतुर्थोऽध्यायः॥४॥