[चौबीसवाँ अध्याय]
विषय
कलियुगी राजाओं और कलिधर्मोंका वर्णन तथा राजवंश-वर्णनका उपसंहार
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
अनुवाद (हिन्दी)
योऽयं रिपुञ्जयो नाम बार्हद्रथोऽन्त्यस्तस्यामात्यो सुनिको नाम भविष्यति॥ १॥ स चैनं स्वामिनं हत्वा स्वपुत्रं प्रद्योतनामानमभिषेक्ष्यति॥ २॥ तस्यापि बलाकनामा पुत्रो भविता॥ ३॥ ततश्च विशाखयूपः॥ ४॥ तत्पुत्रो जनकः॥ ५॥ तस्य च नन्दिवर्द्धनः॥ ६॥ ततो नन्दी॥ ७॥ इत्येतेऽष्टत्रिंशदुत्तरमब्दशतं पञ्च प्रद्योताः पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ ८॥
श्रीपराशरजी बोले—बृहद्रथवंशका रिपुंजय नामक जो अन्तिम राजा होगा उसका सुनिक नामक एक मन्त्री होगा। वह अपने स्वामी रिपुंजयको मारकर अपने पुत्र प्रद्योतका राज्याभिषेक करेगा। उसका पुत्र बलाक होगा, बलाकका विशाखयूप, विशाखयूपका जनक, जनकका नन्दिवर्द्धन तथा नन्दिवर्द्धनका पुत्र नन्दी होगा। ये पाँच प्रद्योतवंशीय नृपतिगण एक सौ अड़तीस वर्ष पृथिवीका पालन करेंगे॥ १—८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च शिशुनाभः॥ ९॥ तत्पुत्रः काकवर्णो भविता॥ १०॥ तस्य च पुत्रः क्षेमधर्मा॥ ११॥ तस्यापि क्षतौजाः॥ १२॥ तत्पुत्रो विधिसारः॥ १३॥ ततश्चाजातशत्रुः॥ १४॥ तस्मादर्भकः॥ १५॥ तस्माच्चोदयनः॥ १६॥ तस्मादपि नन्दिवर्द्धनः॥ १७॥ ततो महानन्दी॥ १८॥ इत्येते शैशुनाभा भूपालास्त्रीणि वर्षशतानि द्विषष्ट्यधिकानि भविष्यन्ति॥ १९॥
मूलम्
ततश्च शिशुनाभः॥ ९॥ तत्पुत्रः काकवर्णो भविता॥ १०॥ तस्य च पुत्रः क्षेमधर्मा॥ ११॥ तस्यापि क्षतौजाः॥ १२॥ तत्पुत्रो विधिसारः॥ १३॥ ततश्चाजातशत्रुः॥ १४॥ तस्मादर्भकः॥ १५॥ तस्माच्चोदयनः॥ १६॥ तस्मादपि नन्दिवर्द्धनः॥ १७॥ ततो महानन्दी॥ १८॥ इत्येते शैशुनाभा भूपालास्त्रीणि वर्षशतानि द्विषष्ट्यधिकानि भविष्यन्ति॥ १९॥
अनुवाद (हिन्दी)
नन्दीका पुत्र शिशुनाभ होगा, शिशुनाभका काकवर्ण, काकवर्णका क्षेमधर्मा, क्षेमधर्माका क्षतौजा, क्षतौजाका विधिसार, विधिसारका अजातशत्रु, अजातशत्रुका अर्भक, अर्भकका उदयन, उदयनका नन्दिवर्द्धन और नन्दिवर्द्धनका पुत्र महानन्दी होगा। ये शिशुनाभवंशीय नृपतिगण तीन सौ बासठ वर्ष पृथिवीका शासन करेंगे॥ ९—१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महानन्दिनस्ततश्शूद्रागर्भोद्भवोऽतिलुब्धोऽतिबलो महापद्मनामा नन्दः परशुराम इवापरोऽखिलक्षत्रान्तकारी भविष्यति॥ २०॥ ततः प्रभृति शूद्रा भूपाला भविष्यन्ति॥ २१॥ स चैकच्छत्रामनुल्लङ्घितशासनो महापद्मः पृथिवीं भोक्ष्यते॥ २२॥ तस्याप्यष्टौ सुतास्सुमाल्याद्या भवितारः॥ २३॥ तस्य महापद्मस्यानु पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ २४॥
मूलम्
महानन्दिनस्ततश्शूद्रागर्भोद्भवोऽतिलुब्धोऽतिबलो महापद्मनामा नन्दः परशुराम इवापरोऽखिलक्षत्रान्तकारी भविष्यति॥ २०॥ ततः प्रभृति शूद्रा भूपाला भविष्यन्ति॥ २१॥ स चैकच्छत्रामनुल्लङ्घितशासनो महापद्मः पृथिवीं भोक्ष्यते॥ २२॥ तस्याप्यष्टौ सुतास्सुमाल्याद्या भवितारः॥ २३॥ तस्य महापद्मस्यानु पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ २४॥
अनुवाद (हिन्दी)
महानन्दीके शूद्राके गर्भसे उत्पन्न महापद्म नामक नन्द दूसरे परशुरामके समान सम्पूर्ण क्षत्रियोंका नाश करनेवाला होगा। तबसे शूद्रजातीय राजा राज्य करेंगे। राजा महापद्म सम्पूर्ण पृथिवीका एकच्छत्र और अनुल्लंघित राज्य-शासन करेगा। उसके सुमाली आदि आठ पुत्र होंगे जो महापद्मके पीछे पृथिवीका राज्य भोगेंगे॥ २०—२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महापद्मपुत्राश्चैकं वर्षशतमवनीपतयो भविष्यन्ति॥ २५॥ ततश्च नव चैतान्नन्दान् कौटिल्यो ब्राह्मणस्समुद्धरिष्यति॥ २६॥ तेषामभावे मौर्याः पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ २७॥ कौटिल्य एव चन्द्रगुप्तमुत्पन्नं राज्येऽभिषेक्ष्यति॥ २८॥
मूलम्
महापद्मपुत्राश्चैकं वर्षशतमवनीपतयो भविष्यन्ति॥ २५॥ ततश्च नव चैतान्नन्दान् कौटिल्यो ब्राह्मणस्समुद्धरिष्यति॥ २६॥ तेषामभावे मौर्याः पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ २७॥ कौटिल्य एव चन्द्रगुप्तमुत्पन्नं राज्येऽभिषेक्ष्यति॥ २८॥
अनुवाद (हिन्दी)
महापद्म और उसके पुत्र सौ वर्षतक पृथिवीका शासन करेंगे। तदनन्तर इन नवों नन्दोंको कौटिल्य नामक एक ब्राह्मण नष्ट करेगा, उनका अन्त होनेपर मौर्य नृपतिगण पृथिवीको भोगेंगे। कौटिल्य ही [मुरा नामकी दासीसे नन्दद्वारा] उत्पन्न हुए चन्द्रगुप्तको राज्याभिषिक्त करेगा।॥ २५—२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यापि पुत्रो बिन्दुसारो भविष्यति॥ २९॥ तस्याप्यशोकवर्द्धनस्ततस्सुयशास्ततश्च दशरथ- स्ततश्च संयुतस्ततश्शालिशूकस्तस्मात्सोमशर्मा तस्यापि सोमशर्मणश्शतधन्वा॥ ३०॥ तस्यापि बृहद्रथनामा भविता॥ ३१॥ एवमेते मौर्य्या दश भूपतयोभविष्यन्ति अब्दशतं सप्तत्रिंशदुत्तरम्॥ ३२॥
मूलम्
तस्यापि पुत्रो बिन्दुसारो भविष्यति॥ २९॥ तस्याप्यशोकवर्द्धनस्ततस्सुयशास्ततश्च दशरथ- स्ततश्च संयुतस्ततश्शालिशूकस्तस्मात्सोमशर्मा तस्यापि सोमशर्मणश्शतधन्वा॥ ३०॥ तस्यापि बृहद्रथनामा भविता॥ ३१॥ एवमेते मौर्य्या दश भूपतयोभविष्यन्ति अब्दशतं सप्तत्रिंशदुत्तरम्॥ ३२॥
अनुवाद (हिन्दी)
चन्द्रगुप्तका पुत्र बिन्दुसार, बिन्दुसारका अशोकवर्द्धन, अशोकवर्द्धनका सुयशा, सुयशाका दशरथ, दशरथका संयुत, संयुतका शालिशूक, शालिशूकका सोमशर्मा, सोमशर्माका शतधन्वा तथा शतधन्वाका पुत्र बृहद्रथ होगा। इस प्रकार एक सौ तिहत्तर वर्षतक ये दस मौर्यवंशी राजा राज्य करेंगे॥ २९—३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामन्ते पृथिवीं दश शुङ्गा भोक्ष्यन्ति॥ ३३॥
मूलम्
तेषामन्ते पृथिवीं दश शुङ्गा भोक्ष्यन्ति॥ ३३॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनके अनन्तर पृथिवीमें दस शुंगवंशीय राजागण होंगे॥ ३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुष्यमित्रस्सेनापतिस्स्वामिनं हत्वा राज्यं करिष्यति तस्यात्मजोऽग्निमित्रः॥ ३४॥
मूलम्
पुष्यमित्रस्सेनापतिस्स्वामिनं हत्वा राज्यं करिष्यति तस्यात्मजोऽग्निमित्रः॥ ३४॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमें पहला पुष्यमित्र नामक सेनापति अपने स्वामीको मारकर स्वयं राज्य करेगा, उसका पुत्र अग्निमित्र होगा॥ ३४॥
तस्मात्सुज्येष्ठस्ततो वसुमित्रस्तस्मादप्युदंकस्ततः पुलिन्दकस्ततो घोषवसुस्तस्मादपि वज्रमित्रस्ततो अग्निमित्रका पुत्र सुज्येष्ठ, सुज्येष्ठका वसुमित्र, वसुमित्रका उदंक, उदंकका पुलिन्दक, पुलिन्दकका घोषवसु, घोषवसुका वज्रमित्र, वज्रमित्रका भागवतः॥ ३५॥ तस्माद्देवभूतिः॥ ३६॥
भागवत और भागवतकापुत्र देवभूति होगा॥ ३५-३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येते शुङ्गा द्वादशोत्तरं वर्षशतं पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ ३७॥
मूलम्
इत्येते शुङ्गा द्वादशोत्तरं वर्षशतं पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ ३७॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये शुंगनरेश एक सौ बारह वर्ष पृथिवीका भोग करेंगे॥ ३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कण्वानेषा भूर्यास्यति॥ ३८॥
मूलम्
ततः कण्वानेषा भूर्यास्यति॥ ३८॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके अनन्तर यह पृथिवी कण्व भूपालोंके अधिकारमें चली जायगी॥ ३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवभूतिं तु शुङ्गराजानं व्यसनिनं तस्यैवामात्यः काण्वो वसुदेवनामा तं निहत्य स्वयमवनीं भोक्ष्यति॥ ३९॥
मूलम्
देवभूतिं तु शुङ्गराजानं व्यसनिनं तस्यैवामात्यः काण्वो वसुदेवनामा तं निहत्य स्वयमवनीं भोक्ष्यति॥ ३९॥
अनुवाद (हिन्दी)
शुंगवंशीय अति व्यसनशील राजा देवभूतिको कण्ववंशीय वसुदेव नामक उसका मन्त्री मारकर स्वयं राज्य भोगेगा॥ ३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य पुत्रो भूमित्रस्तस्यापि नारायणः॥ ४०॥ नारायणात्मजस्सुशर्मा॥ ४१॥
मूलम्
तस्य पुत्रो भूमित्रस्तस्यापि नारायणः॥ ४०॥ नारायणात्मजस्सुशर्मा॥ ४१॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसका पुत्र भूमित्र, भूमित्रका नारायण तथा नारायणका पुत्र सुशर्मा होगा॥ ४०-४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते काण्वायनाश्चत्वारः पञ्चचत्वारिंशद्वर्षाणि भूपतयो भविष्यन्ति॥ ४२॥
मूलम्
एते काण्वायनाश्चत्वारः पञ्चचत्वारिंशद्वर्षाणि भूपतयो भविष्यन्ति॥ ४२॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये चार काण्व भूपतिगण पैंतालीस वर्ष पृथिवीके अधिपति रहेंगे॥ ४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुशर्माणं तु काण्वं तद्भृत्योबलिपुच्छकनामा हत्वान्ध्रजातीयो वसुधां भोक्ष्यति॥ ४३॥
मूलम्
सुशर्माणं तु काण्वं तद्भृत्योबलिपुच्छकनामा हत्वान्ध्रजातीयो वसुधां भोक्ष्यति॥ ४३॥
अनुवाद (हिन्दी)
कण्ववंशीय सुशर्माको उसका बलिपुच्छक नामवाला आन्ध्रजातीय सेवक मारकर स्वयं पृथिवीका भोग करेगा॥ ४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च कृष्णनामा तद्भ्राता पृथिवीपतिर्भविष्यति॥ ४४॥
मूलम्
ततश्च कृष्णनामा तद्भ्राता पृथिवीपतिर्भविष्यति॥ ४४॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके पीछे उसका भाई कृष्ण पृथिवीका स्वामी होगा॥ ४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यापि पुत्रः शान्तकर्णिस्तस्यापि पूर्णोत्सङ्गस्तत्पुत्रश्शातकर्णिस्तस्माच्चलम्बोदरस्तस्माच्च पिलकस्ततो मेघस्वातिस्ततः पटुमान्॥ ४५॥ ततश्चारिष्टकर्मा ततो हालाहलः॥ ४६॥ हालाहलात्पललकस्ततः पुलिन्दसेनस्ततः सुन्दरस्ततश्शातकर्णिस्ततश्शिवस्वातिस्ततश्च गोमतिपुत्रस्तत्पुत्रोऽलिमान्॥ ४७॥ तस्यापि शान्तकर्णिस्ततः शिवश्रितस्ततश्च शिवस्कन्धस्तस्मादपि यज्ञश्रीस्ततो द्वियज्ञस्तस्माच्चन्द्रश्रीः॥ ४८॥ तस्मात्पुलोमाचिः॥ ४९॥
मूलम्
तस्यापि पुत्रः शान्तकर्णिस्तस्यापि पूर्णोत्सङ्गस्तत्पुत्रश्शातकर्णिस्तस्माच्चलम्बोदरस्तस्माच्च पिलकस्ततो मेघस्वातिस्ततः पटुमान्॥ ४५॥ ततश्चारिष्टकर्मा ततो हालाहलः॥ ४६॥ हालाहलात्पललकस्ततः पुलिन्दसेनस्ततः सुन्दरस्ततश्शातकर्णिस्ततश्शिवस्वातिस्ततश्च गोमतिपुत्रस्तत्पुत्रोऽलिमान्॥ ४७॥ तस्यापि शान्तकर्णिस्ततः शिवश्रितस्ततश्च शिवस्कन्धस्तस्मादपि यज्ञश्रीस्ततो द्वियज्ञस्तस्माच्चन्द्रश्रीः॥ ४८॥ तस्मात्पुलोमाचिः॥ ४९॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसका पुत्र शान्तकर्णि होगा। शान्तकर्णिका पुत्र पूर्णोत्संग, पूर्णोत्संगका शातकर्णि, शातकर्णिका लम्बोदर, लम्बोदरका पिलक, पिलकका मेघस्वाति, मेघस्वातिका पटुमान्, पटुमान्का अरिष्टकर्मा, अरिष्टकर्माका हालाहल, हालाहलका पललक, पललकका पुलिन्दसेन, पुलिन्दसेनका सुन्दर, सुन्दरका शातकर्णि, [दूसरा] शातकर्णिका शिवस्वाति, शिवस्वातिका गोमतिपुत्र, गोमतिपुत्रका अलिमान्, अलिमान्का शान्तकर्णि [दूसरा], शान्तकर्णिका शिवश्रित, शिवश्रितका शिवस्कन्ध, शिवस्कन्धका यज्ञश्री, यज्ञश्रीका द्वियज्ञ, द्वियज्ञका चन्द्रश्री तथा चन्द्रश्रीका पुत्र पुलोमाचि होगा॥ ४५—४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमेते त्रिंशच्चत्वार्यब्दशतानि षट्पञ्चाशदधिकानि पृथिवीं भोक्ष्यन्ति आन्ध्रभृत्याः॥ ५०॥
मूलम्
एवमेते त्रिंशच्चत्वार्यब्दशतानि षट्पञ्चाशदधिकानि पृथिवीं भोक्ष्यन्ति आन्ध्रभृत्याः॥ ५०॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार ये तीस आन्ध्रभृत्य राजागण चार सौ छप्पन वर्ष पृथिवीको भोगेंगे॥ ५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सप्ताभीरप्रभृतयो दश गर्दभिलाश्च भूभुजो भविष्यन्ति॥ ५१॥
मूलम्
सप्ताभीरप्रभृतयो दश गर्दभिलाश्च भूभुजो भविष्यन्ति॥ ५१॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनके पीछे सात आभीर और दस गर्दभिल राजा होंगे॥ ५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततष्षोडश शका भूपतयो भवितारः॥ ५२॥
मूलम्
ततष्षोडश शका भूपतयो भवितारः॥ ५२॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर सोलह शक राजा होंगे॥ ५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्चाष्टौ यवनाश्चतुर्दश तुरुष्कारा मुण्डाश्च त्रयोदश एकादश मौना एते वै पृथिवीपतयः पृथिवीं दशवर्षशतानि नवत्यधिकानि भोक्ष्यन्ति॥ ५३॥
मूलम्
ततश्चाष्टौ यवनाश्चतुर्दश तुरुष्कारा मुण्डाश्च त्रयोदश एकादश मौना एते वै पृथिवीपतयः पृथिवीं दशवर्षशतानि नवत्यधिकानि भोक्ष्यन्ति॥ ५३॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके पीछे आठ यवन, चौदह तुर्क, तेरह मुण्ड (गुरुण्ड) और ग्यारह मौनजातीय राजालोग एक हजार नब्बे वर्ष पृथिवीका शासन करेंगे॥ ५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च एकादश भूपतयोऽब्दशतानि त्रीणि पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ ५४॥
मूलम्
ततश्च एकादश भूपतयोऽब्दशतानि त्रीणि पृथिवीं भोक्ष्यन्ति॥ ५४॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनमेंसे भी ग्यारह मौन राजा पृथिवीको तीनसौ वर्षतक भोगेंगे॥ ५४॥
तेषूत्सन्नेषु कैङ्किला यवना भूपतयो भविष्यन्त्यमूर्द्धाभिषिक्ताः॥ ५५॥
इनके उच्छिन्न होनेपर कैंकिल नामक यवनजातीय अभिषेकरहित राजा होंगे॥ ५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामपत्यं विन्ध्यशक्तिस्ततः पुरञ्जयस्तस्माद्रामचन्द्रस्तस्माद्धर्मवर्मा ततो वङ्गस्ततोऽभून्नन्दनस्ततस्सुनन्दी तद्भ्राता नन्दियशाश्शुक्रः प्रवीर एते वर्षशतं षड्वर्षाणि भूपतयो भविष्यन्ति॥ ५६॥
मूलम्
तेषामपत्यं विन्ध्यशक्तिस्ततः पुरञ्जयस्तस्माद्रामचन्द्रस्तस्माद्धर्मवर्मा ततो वङ्गस्ततोऽभून्नन्दनस्ततस्सुनन्दी तद्भ्राता नन्दियशाश्शुक्रः प्रवीर एते वर्षशतं षड्वर्षाणि भूपतयो भविष्यन्ति॥ ५६॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनका वंशधर विन्ध्यशक्ति होगा। विन्ध्यशक्तिका पुत्र पुरंजय होगा। पुरंजयका रामचन्द्र, रामचन्द्रका धर्मवर्मा, धर्मवर्माका वंग, वंगका नन्दन तथा नन्दनका पुत्र सुनन्दी होगा। सुनन्दीके नन्दियशा, शुक्र और प्रवीर ये तीन भाई होंगे। ये सब एक सौ छः वर्ष राज्य करेंगे॥ ५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तत्पुत्रास्त्रयोदशैते बाह्लिकाश्च त्रयः॥ ५७॥
मूलम्
ततस्तत्पुत्रास्त्रयोदशैते बाह्लिकाश्च त्रयः॥ ५७॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके पीछे तेरह इनके वंशके और तीन बाह्लिक राजा होंगे॥ ५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पुष्पमित्राः पटुमित्रास्त्रयोदशैकलाश्च सप्तान्ध्राः॥ ५८॥
मूलम्
ततः पुष्पमित्राः पटुमित्रास्त्रयोदशैकलाश्च सप्तान्ध्राः॥ ५८॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके बाद तेरह पुष्पमित्र और पटुमित्र आदि तथा सात आन्ध्र माण्डलिक भूपतिगण होंगे॥ ५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च कोशलायां तु नव चैव भूपतयो भविष्यन्ति॥ ५९॥
मूलम्
ततश्च कोशलायां तु नव चैव भूपतयो भविष्यन्ति॥ ५९॥
अनुवाद (हिन्दी)
तथा नौ राजा क्रमशः कोसलदेशमें राज्य करेंगे॥ ५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नैषधास्तु त एव॥ ६०॥
मूलम्
नैषधास्तु त एव॥ ६०॥
अनुवाद (हिन्दी)
निषधदेशके स्वामी भी ये ही होंगे॥ ६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मगधायां तु विश्वस्फटिकसंज्ञोऽन्यान्वर्णान्करिष्यति॥ ६१॥
मूलम्
मगधायां तु विश्वस्फटिकसंज्ञोऽन्यान्वर्णान्करिष्यति॥ ६१॥
अनुवाद (हिन्दी)
मगधदेशमें विश्वस्फटिक नामक राजा अन्य वर्णोंको प्रवृत्त करेगा॥ ६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कैवर्त्तवटुपुलिन्दब्राह्मणान्नृज्ये स्थापयिष्यति॥ ६२॥
मूलम्
कैवर्त्तवटुपुलिन्दब्राह्मणान्नृज्ये स्थापयिष्यति॥ ६२॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह कैवर्त्त, वटु, पुलिन्द और ब्राह्मणोंको राज्यमें नियुक्त करेगा॥ ६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्साद्याखिलक्षत्रजातिं नव नागाः पद्मावत्यां नाम पुर्यामनुगङ्गाप्रयागं गयायाञ्च मागधा गुप्ताश्च भोक्ष्यन्ति॥ ६३॥
मूलम्
उत्साद्याखिलक्षत्रजातिं नव नागाः पद्मावत्यां नाम पुर्यामनुगङ्गाप्रयागं गयायाञ्च मागधा गुप्ताश्च भोक्ष्यन्ति॥ ६३॥
अनुवाद (हिन्दी)
सम्पूर्ण क्षत्रिय-जातिको उच्छिन्न कर पद्मावतीपुरीमें नागगण तथा गंगाके निकटवर्ती प्रयाग और गयामें मागध और गुप्त राजालोग राज्य भोग करेंगे॥ ६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोशलान्ध्रपुण्ड्रताम्रलिप्तसमुद्रतटपुरीं च देवरक्षितो रक्षिता॥ ६४॥
मूलम्
कोशलान्ध्रपुण्ड्रताम्रलिप्तसमुद्रतटपुरीं च देवरक्षितो रक्षिता॥ ६४॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोसल, आन्ध्र, पुण्ड्र, ताम्रलिप्त और समुद्रतटवर्तिनी पुरीकी देवरक्षित नामक एक राजा रक्षा करेगा॥ ६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कलिङ्गमाहिषमहेन्द्रभौमान् गुहा भोक्ष्यन्ति॥ ६५॥
मूलम्
कलिङ्गमाहिषमहेन्द्रभौमान् गुहा भोक्ष्यन्ति॥ ६५॥
अनुवाद (हिन्दी)
कलिंग, माहिष, महेन्द्र और भौम आदि देशोंको गुह नरेश भोगेंगे॥ ६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नैषधनैमिषककालकोशकाञ्जनपदान्मणिधान्यकवंशा भोक्ष्यन्ति॥ ६६॥
मूलम्
नैषधनैमिषककालकोशकाञ्जनपदान्मणिधान्यकवंशा भोक्ष्यन्ति॥ ६६॥
अनुवाद (हिन्दी)
नैषध, नैमिषक और कालकोशक आदि जनपदोंको मणि-धान्यक-वंशीय राजा भोगेंगे॥ ६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रैराज्यमुषिकजनपदान्कनकाह्वयो भोक्ष्यति॥ ६७॥
मूलम्
त्रैराज्यमुषिकजनपदान्कनकाह्वयो भोक्ष्यति॥ ६७॥
अनुवाद (हिन्दी)
त्रैराज्य और मुषिक देशोंपर कनक नामक राजाका राज्य होगा॥ ६७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सौराष्ट्रावन्तिशूद्राभीरान्नर्मदामरुभूविषयांश्च व्रात्यद्विजाभीरशूद्राद्या भोक्ष्यन्ति॥ ६८॥
मूलम्
सौराष्ट्रावन्तिशूद्राभीरान्नर्मदामरुभूविषयांश्च व्रात्यद्विजाभीरशूद्राद्या भोक्ष्यन्ति॥ ६८॥
अनुवाद (हिन्दी)
सौराष्ट्र, अवन्ति, शूद्र, आभीर तथा नर्मदा-तटवर्ती मरुभूमिपर व्रात्य द्विज, आभीर और शूद्र आदिका आधिपत्य होगा॥ ६८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सिन्धुतटदाविकोर्वीचन्द्रभागाकाश्मीरविषयांश्च व्रात्यम्लेच्छशूद्रादयो भोक्ष्यन्ति॥ ६९॥
मूलम्
सिन्धुतटदाविकोर्वीचन्द्रभागाकाश्मीरविषयांश्च व्रात्यम्लेच्छशूद्रादयो भोक्ष्यन्ति॥ ६९॥
अनुवाद (हिन्दी)
समुद्रतट, दाविकोर्वी, चन्द्रभागा और काश्मीर आदि देशोंका व्रात्य, म्लेच्छ और शूद्र आदि राजागण भोग करेंगे॥ ६९॥
एते च तुल्यकालास्सर्वे पृथिव्यां भूभुजो भविष्यन्ति॥ ७०॥
ये सम्पूर्ण राजालोग पृथिवीमें एक ही समयमें होंगे॥ ७०॥
अल्पप्रसादा बृहत्कोपास्सर्वकालमनृताधर्मरुचयः स्त्रीबालगोवधकर्त्तारः परस्वादानरुचयोऽल्पसारास्तमिस्रप्राया उदितास्तमितप्राया अल्पायुषो महेच्छा ह्यल्पधर्मा लुब्धाश्च भविष्यन्ति॥ ७१॥
ये थोड़ी प्रसन्नतावाले, अत्यन्त क्रोधी, सर्वदा अधर्म और मिथ्या भाषणमें रुचि रखनेवाले, स्त्री-बालक और गौओंकी हत्या करनेवाले, पर-धन-हरणमें रुचि रखनेवाले, अल्पशक्ति तमःप्रधान उत्थानके साथ ही पतनशील, अल्पायु, महती कामनावाले, अल्पपुण्य और अत्यन्त लोभी होंगे॥ ७१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तैश्च विमिश्रा जनपदास्तच्छीलानुवर्त्तिनो राजाश्रयशुष्मिणो म्लेच्छाश्चार्याश्च विपर्ययेण वर्त्तमानाः प्रजाः क्षपयिष्यन्ति॥ ७२॥
मूलम्
तैश्च विमिश्रा जनपदास्तच्छीलानुवर्त्तिनो राजाश्रयशुष्मिणो म्लेच्छाश्चार्याश्च विपर्ययेण वर्त्तमानाः प्रजाः क्षपयिष्यन्ति॥ ७२॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये सम्पूर्ण देशोंको परस्पर मिला देंगे तथा उन राजाओंके आश्रयसे ही बलवान् और उन्हींके स्वभावका अनुकरण करनेवाले म्लेच्छ तथा आर्य विपरीत आचरण करते हुए सारी प्रजाको नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे॥ ७२॥
ततश्चानुदिनमल्पाल्पह्रासव्यवच्छेदाद्धर्मार्थयोर्जगतस्संङ्क्षयो भविष्यति॥ ७३॥
तब दिन-दिन धर्म और अर्थका थोड़ा-थोड़ा ह्रास तथा क्षय होनेके कारण संसारका क्षय हो जायगा॥ ७३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्चार्थ एवाभिजनहेतुः॥ ७४॥ बलमेवाशेषधर्महेतुः॥ ७५॥ अभिरुचिरेव दाम्पत्यसम्बन्धहेतुः॥ ७६॥ स्त्रीत्वमेवोपभोगहेतुः॥ ७७॥ अनृतमेव व्यवहारजयहेतुः॥ ७८॥ उन्नताम्बुतैव पृथिवीहेतुः॥ ७९॥ ब्रह्मसूत्रमेव विप्रत्वहेतुः॥ ८०॥ रत्नधातुतैव श्लाघ्यताहेतुः॥ ८१॥ लिङ्गधारणमेवाश्रमहेतुः॥ ८२॥ अन्याय एव वृत्तिहेतुः॥ ८३॥ दौर्बल्यमेवावृत्तिहेतुः॥ ८४॥ अभयप्रगल्भोच्चारणमेव पाण्डित्यहेतुः॥ ८५॥ अनाढ्यतैव साधुत्वहेतुः॥ ८६॥ स्नानमेव प्रसाधनहेतुः॥ ८७॥ दानमेव धर्महेतुः॥ ८८॥ स्वीकरणमेव विवाहहेतुः॥ ८९॥ सद्वेषधार्येव पात्रम्॥ ९०॥ दूरायतनोदकमेव तीर्थहेतुः॥ ९१॥ कपटवेषधारणमेव महत्त्वहेतुः॥ ९२॥
मूलम्
ततश्चार्थ एवाभिजनहेतुः॥ ७४॥ बलमेवाशेषधर्महेतुः॥ ७५॥ अभिरुचिरेव दाम्पत्यसम्बन्धहेतुः॥ ७६॥ स्त्रीत्वमेवोपभोगहेतुः॥ ७७॥ अनृतमेव व्यवहारजयहेतुः॥ ७८॥ उन्नताम्बुतैव पृथिवीहेतुः॥ ७९॥ ब्रह्मसूत्रमेव विप्रत्वहेतुः॥ ८०॥ रत्नधातुतैव श्लाघ्यताहेतुः॥ ८१॥ लिङ्गधारणमेवाश्रमहेतुः॥ ८२॥ अन्याय एव वृत्तिहेतुः॥ ८३॥ दौर्बल्यमेवावृत्तिहेतुः॥ ८४॥ अभयप्रगल्भोच्चारणमेव पाण्डित्यहेतुः॥ ८५॥ अनाढ्यतैव साधुत्वहेतुः॥ ८६॥ स्नानमेव प्रसाधनहेतुः॥ ८७॥ दानमेव धर्महेतुः॥ ८८॥ स्वीकरणमेव विवाहहेतुः॥ ८९॥ सद्वेषधार्येव पात्रम्॥ ९०॥ दूरायतनोदकमेव तीर्थहेतुः॥ ९१॥ कपटवेषधारणमेव महत्त्वहेतुः॥ ९२॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अर्थ ही कुलीनताका हेतु होगा; बल ही सम्पूर्ण धर्मका हेतु होगा; पारस्परिक रुचि ही दाम्पत्य-सम्बन्धकी हेतु होगी, स्त्रीत्व ही उपभोगका हेतु होगा [अर्थात् स्त्रीकी जाति-कुल आदिका विचार न होगा]; मिथ्या भाषण ही व्यवहारमें सफलता प्राप्त करनेका हेतु होगा; जलकी सुलभता और सुगमता ही पृथिवीकी स्वीकृतिका हेतु होगा [अर्थात् पुण्यक्षेत्रादिका कोई विचार न होगा। जहाँकी जलवायु उत्तम होगी वही भूमि उत्तम मानी जायगी]; यज्ञोपवीत ही ब्राह्मणत्वका हेतु होगा; रत्नादि धारण करना ही प्रशंसाका हेतु होगा; बाह्य चिह्न ही आश्रमोंके हेतु होंगे; अन्याय ही आजीविकाका हेतु होगा; दुर्बलता ही बेकारीका हेतु होगा; निर्भयतापूर्वक धृष्टताके साथ बोलना ही पाण्डित्यका हेतु होगा, निर्धनता ही साधुत्वका हेतु होगी; स्नान ही साधनका हेतु होगा; दान ही धर्मका हेतु होगा; स्वीकार कर लेना ही विवाहका हेतु होगा [अर्थात् संस्कार आदिकी अपेक्षा न कर पारस्परिक स्नेहबन्धनसे ही दाम्पत्य-सम्बन्ध स्थापित हो जायगा]; भली प्रकार बन-ठनकर रहनेवाला ही सुपात्र समझा जायगा; दूरदेशका जल ही तीर्थोदकत्वका हेतु होगा तथा छद्मवेश धारण ही गौरवका कारण होगा॥ ७४—९२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येवमनेकदोषोत्तरे तु भूमण्डले सर्ववर्णेष्वेव यो यो बलवान्स स भूपतिर्भविष्यति॥ ९३॥
मूलम्
इत्येवमनेकदोषोत्तरे तु भूमण्डले सर्ववर्णेष्वेव यो यो बलवान्स स भूपतिर्भविष्यति॥ ९३॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार पृथिवीमण्डलमें विविध दोषोंके फैल जानेसे सभी वर्णोंमें जो-जो बलवान् होगा वही-वही राजा बन बैठेगा॥ ९३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं चातिलुब्धकराजासहाश्शैलानामन्तरद्रोणीः प्रजास्संश्रयिष्यन्ति॥ ९४॥ मधुशाकमूलफलपत्रपुष्पाद्याहाराश्च भविष्यन्ति॥ ९५॥
मूलम्
एवं चातिलुब्धकराजासहाश्शैलानामन्तरद्रोणीः प्रजास्संश्रयिष्यन्ति॥ ९४॥ मधुशाकमूलफलपत्रपुष्पाद्याहाराश्च भविष्यन्ति॥ ९५॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार अतिलोलुप राजाओंके कर-भारको सहन न कर सकनेके कारण प्रजा पर्वत-कन्दराओंका आश्रय लेगी तथा मधु, शाक, मूल, फल, पत्र और पुष्प आदि खाकर दिन काटेगी॥ ९४-९५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तरुवल्कलपर्णचीरप्रावरणाश्चातिबहुप्रजाश्शीतवातातपवर्षसहाश्च भविष्यन्ति॥ ९६॥
मूलम्
तरुवल्कलपर्णचीरप्रावरणाश्चातिबहुप्रजाश्शीतवातातपवर्षसहाश्च भविष्यन्ति॥ ९६॥
अनुवाद (हिन्दी)
वृक्षोंके पत्र और वल्कल ही उनके पहनने तथा ओढ़नेके कपड़े होंगे। अधिक सन्तानें होंगी। सब लोग शीत, वायु, घाम और वर्षा आदिके कष्ट सहेंगे॥ ९६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न च कश्चित्त्रयोविंशतिवर्षाणि जीविष्यति अनवरतं चात्र कलियुगे क्षयमायात्यखिल एवैष जनः॥ ९७॥
मूलम्
न च कश्चित्त्रयोविंशतिवर्षाणि जीविष्यति अनवरतं चात्र कलियुगे क्षयमायात्यखिल एवैष जनः॥ ९७॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई भी तेईस वर्षतक जीवित न रह सकेगा। इस प्रकार कलियुगमें यह सम्पूर्ण जनसमुदाय निरन्तर क्षीण होता रहेगा॥ ९७॥
श्रौते स्मार्त्ते च धर्मे विप्लवमत्यन्तमुपगते क्षीणप्राये च कलावशेषजगत्स्रष्टुश्चराचरगुरोरादिमध्यान्तरहितस्य ब्रह्ममयस्यात्मरूपिणो भगवतो वासुदेवस्यांशश्शम्बलग्रामप्रधानब्राह्मणस्य विष्णुयशसो गृहेऽष्टगुणर्द्धिसमन्वितः कल्किरूपी जगत्यत्रावतीर्य सकलम्लेच्छदस्युदुष्टाचरणचेतसामशेषाणामपरिच्छिन्नशक्तिमाहात्म्यः क्षयं करिष्यति स्वधर्मेषु चाखिलमेव संस्थापयिष्यति॥ ९८॥
इस प्रकार श्रौत और स्मार्तधर्मका अत्यन्त ह्रास हो जाने तथा कलियुगके प्रायः बीत जानेपर शम्बल (सम्भल) ग्रामनिवासी ब्राह्मणश्रेष्ठ विष्णुयशाके घर सम्पूर्ण संसारके रचयिता, चराचर गुरु, आदिमध्यान्तशून्य, ब्रह्ममय, आत्मस्वरूप भगवान् वासुदेव अपने अंशसे अष्टैश्वर्ययुक्त कल्किरूपसे संसारमें अवतार लेकर असीम शक्ति और माहात्म्यसे सम्पन्न हो सकल म्लेच्छ, दस्यु, दुष्टाचारी तथा दुष्ट चित्तोंका क्षय करेंगे और समस्त प्रजाको अपने-अपने धर्ममें नियुक्त करेंगे॥ ९८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनन्तरं चाशेषकलेरवसाने निशावसाने विबुद्धानामिव तेषामेव जनपदानाममलस्फटिकविशुद्धा मतयो भविष्यन्ति॥ ९९॥
मूलम्
अनन्तरं चाशेषकलेरवसाने निशावसाने विबुद्धानामिव तेषामेव जनपदानाममलस्फटिकविशुद्धा मतयो भविष्यन्ति॥ ९९॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके पश्चात् समस्त कलियुगके समाप्त हो जानेपर रात्रिके अन्तमें जागे हुओंके समान तत्कालीन लोगोंकी बुद्धि स्वच्छ, स्फटिकमणिके समान निर्मल हो जायगी॥ ९९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां च बीजभूतानामशेषमनुष्याणां परिणतानामपि तत्कालकृतापत्यप्रसूतिर्भविष्यति॥ १००॥
मूलम्
तेषां च बीजभूतानामशेषमनुष्याणां परिणतानामपि तत्कालकृतापत्यप्रसूतिर्भविष्यति॥ १००॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन बीजभूत समस्त मनुष्योंसे उनकी अधिक अवस्था होनेपर भी उस समय सन्तान उत्पन्न हो सकेगी॥ १००॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तानि च तदपत्यानि कृतयुगानुसारीण्येव भविष्यन्ति॥ १०१॥
मूलम्
तानि च तदपत्यानि कृतयुगानुसारीण्येव भविष्यन्ति॥ १०१॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी वे सन्तानें सत्ययुगके ही धर्मोंका अनुसरण करनेवाली होंगी॥ १०१॥
मूलम् (वचनम्)
अत्रोच्यते
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यो बृहस्पतिः।
एकराशौ समेष्यन्ति तदा भवति वै कृतम्॥ १०२॥
मूलम्
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यो बृहस्पतिः।
एकराशौ समेष्यन्ति तदा भवति वै कृतम्॥ १०२॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस विषयमें ऐसा कहा जाता है कि—जिस समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति पुष्य नक्षत्रमें स्थित होकर एक राशिपर एक साथ आवेंगे उसी समय सत्ययुगका आरम्भ हो जायगा*॥ १०२॥
पादटिप्पनी
- यद्यपि प्रति बारहवें वर्ष जब बृहस्पति कर्कराशि पर जाते हैं तो अमावास्या तिथिको पुष्य नक्षत्रपर इन तीनों ग्रहोंका योग होता है, तथापि ‘समेष्यन्ति’ पदसे एक साथ आनेपर सत्ययुगका आरम्भ कहा है; इसलिये उक्त समयपर अतिव्याप्तिदोष नहीं है।
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतीता वर्त्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये।
एते वंशेषु भूपालाः कथिता मुनिसत्तम॥ १०३॥
मूलम्
अतीता वर्त्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये।
एते वंशेषु भूपालाः कथिता मुनिसत्तम॥ १०३॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे मुनिश्रेष्ठ! तुमसे मैंने यह समस्तवंशोंके भूत, भविष्यत् और वर्तमान सम्पूर्ण राजाओंका वर्णन कर दिया॥ १०३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावत्परीक्षितो जन्म यावन्नन्दाभिषेचनम्।
एतद्वर्षसहस्रं तु ज्ञेयं पाञ्चशदुत्तरम्॥ १०४॥
मूलम्
यावत्परीक्षितो जन्म यावन्नन्दाभिषेचनम्।
एतद्वर्षसहस्रं तु ज्ञेयं पाञ्चशदुत्तरम्॥ १०४॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित् के जन्मसे नन्दके अभिषेकतक एक हजार पचास वर्षका समय जानना चाहिये॥ १०४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सप्तर्षीणां तु यौ पूर्वौ दृश्येते ह्युदितौ दिवि।
तयोस्तु मध्ये नक्षत्रं दृश्येते यत्समं निशि॥ १०५॥
तेन सप्तर्षयो युक्तास्तिष्ठन्त्यब्दशतं नृणाम्।
ते तु पारीक्षिते काले मघास्वासन्द्विजोत्तम॥ १०६॥
तदा प्रवृत्तश्च कलिर्द्वादशाब्दशतात्मकः॥ १०७॥
मूलम्
सप्तर्षीणां तु यौ पूर्वौ दृश्येते ह्युदितौ दिवि।
तयोस्तु मध्ये नक्षत्रं दृश्येते यत्समं निशि॥ १०५॥
तेन सप्तर्षयो युक्तास्तिष्ठन्त्यब्दशतं नृणाम्।
ते तु पारीक्षिते काले मघास्वासन्द्विजोत्तम॥ १०६॥
तदा प्रवृत्तश्च कलिर्द्वादशाब्दशतात्मकः॥ १०७॥
अनुवाद (हिन्दी)
सप्तर्षियोंमेंसे जो [पुलस्त्य और क्रतु] दो नक्षत्र आकाशमें पहले दिखायी देते हैं, उनके बीचमें रात्रिके समय जो [दक्षिणोत्तर रेखापर] समदेशमें स्थित [अश्विनी आदि] नक्षत्र हैं, उनमेंसे प्रत्येक नक्षत्रपर सप्तर्षिगण एक-एक सौ वर्ष रहते हैं। हे द्विजोत्तम! परीक्षित् के समयमें वे सप्तर्षिगण मघा नक्षत्रपर थे। उसी समय बारह सौ वर्ष प्रमाणवाला कलियुग आरम्भ हुआ था॥ १०५—१०७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदैव भगवान् विष्णोरंशो यातो दिवं द्विज।
वसुदेवकुलोद्भूतस्तदैवात्रागतः कलिः॥ १०८॥
मूलम्
यदैव भगवान् विष्णोरंशो यातो दिवं द्विज।
वसुदेवकुलोद्भूतस्तदैवात्रागतः कलिः॥ १०८॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! जिस समय भगवान् विष्णुके अंशावतार भगवान् वासुदेव निजधामको पधारे थे उसी समय पृथिवीपर कलियुगका आगमन हुआ था॥ १०८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावत्स पादपद्माभ्यां पस्पर्शेमां वसुन्धराम्।
तावत्पृथ्वीपरिष्वङ्गे समर्थो नाभवत्कलिः॥ १०९॥
मूलम्
यावत्स पादपद्माभ्यां पस्पर्शेमां वसुन्धराम्।
तावत्पृथ्वीपरिष्वङ्गे समर्थो नाभवत्कलिः॥ १०९॥
अनुवाद (हिन्दी)
जबतक भगवान् अपने चरण-कमलोंसे इस पृथिवीका स्पर्श करते रहे, तबतक पृथिवीसे संसर्ग करनेकी कलियुगकी हिम्मत न पड़ी॥ १०९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गते सनातनस्यांशे विष्णोस्तत्र भुवो दिवम्।
तत्याज सानुजो राज्यं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः॥ ११०॥
मूलम्
गते सनातनस्यांशे विष्णोस्तत्र भुवो दिवम्।
तत्याज सानुजो राज्यं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः॥ ११०॥
अनुवाद (हिन्दी)
सनातन पुरुष भगवान् विष्णुके अंशावतार श्रीकृष्णचन्द्रके स्वर्गलोक पधारनेपर भाइयोंके सहित धर्मपुत्र महाराज युधिष्ठिरने अपने राज्यको छोड़ दिया॥ ११०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विपरीतानि दृष्ट्वा च निमित्तानि हि पाण्डवः।
याते कृष्णे चकाराथ सोऽभिषेकं परीक्षितः॥ १११॥
मूलम्
विपरीतानि दृष्ट्वा च निमित्तानि हि पाण्डवः।
याते कृष्णे चकाराथ सोऽभिषेकं परीक्षितः॥ १११॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृष्णचन्द्रके अन्तर्धान हो जानेपर विपरीत लक्षणोंको देखकर पाण्डवोंने परीक्षित् को राज्यपदपर अभिषिक्त कर दिया॥ १११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रयास्यन्ति यदा चैते पूर्वाषाढां महर्षयः।
तदा नन्दात्प्रभृत्येष गतिवृद्धिं गमिष्यति॥ ११२॥
मूलम्
प्रयास्यन्ति यदा चैते पूर्वाषाढां महर्षयः।
तदा नन्दात्प्रभृत्येष गतिवृद्धिं गमिष्यति॥ ११२॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस समय ये सप्तर्षिगण पूर्वाषाढानक्षत्रपर जायँगे उसी समय राजा नन्दके समयसे कलियुगका प्रभाव बढ़ेगा॥ ११२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्मिन्कृष्णोदिवं यातस्तस्मिन्नेव तदाहनि।
प्रतिपन्नं कलियुगं तस्य संख्यां निबोध मे॥ ११३॥
मूलम्
यस्मिन्कृष्णोदिवं यातस्तस्मिन्नेव तदाहनि।
प्रतिपन्नं कलियुगं तस्य संख्यां निबोध मे॥ ११३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस दिन भगवान् कृष्णचन्द्र परमधामको गये थे उसी दिन कलियुग उपस्थित हो गया था। अब तुम कलियुगकी वर्ष-संख्या सुनो—॥ ११३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रीणि लक्षाणि वर्षाणां द्विजमानुष्यसंख्यया।
षष्टिश्चैव सहस्राणि भविष्यत्येष वै कलिः॥ ११४॥
मूलम्
त्रीणि लक्षाणि वर्षाणां द्विजमानुष्यसंख्यया।
षष्टिश्चैव सहस्राणि भविष्यत्येष वै कलिः॥ ११४॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! मानवी वर्षगणनाके अनुसार कलियुग तीन लाख साठ हजार वर्ष रहेगा॥ ११४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शतानि तानि दिव्यानां सप्त पञ्च च संख्यया।
निश्शेषेण गते तस्मिन्भविष्यति पुनः कृतम्॥ ११५॥
मूलम्
शतानि तानि दिव्यानां सप्त पञ्च च संख्यया।
निश्शेषेण गते तस्मिन्भविष्यति पुनः कृतम्॥ ११५॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके पश्चात् बारह सौ दिव्य वर्षपर्यन्त कृतयुग रहेगा॥ ११५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याश्शूद्राश्च द्विजसत्तम।
युगे युगे महात्मानः समतीतास्सहस्रशः॥ ११६॥
मूलम्
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याश्शूद्राश्च द्विजसत्तम।
युगे युगे महात्मानः समतीतास्सहस्रशः॥ ११६॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजश्रेष्ठ! प्रत्येक युगमें हजारों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र महात्मागण हो गये हैं॥ ११६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बहुत्वान्नामधेयानां परिसंख्या कुले कुले।
पौनरुक्त्याद्धि साम्याच्च न मया परिकीर्त्तिता॥ ११७॥
मूलम्
बहुत्वान्नामधेयानां परिसंख्या कुले कुले।
पौनरुक्त्याद्धि साम्याच्च न मया परिकीर्त्तिता॥ ११७॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके बहुत अधिक संख्यामें होनेसे तथा समानता होनेके कारण कुलोंमें पुनरुक्ति हो जानेके भयसे मैंने उन सबके नाम नहीं बतलाये हैं॥ ११७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवापिः पौरवो राजा पुरुश्चेक्ष्वाकुवंशजः।
महायोगबलोपेतौ कलापग्रामसंश्रितौ॥ ११८॥
मूलम्
देवापिः पौरवो राजा पुरुश्चेक्ष्वाकुवंशजः।
महायोगबलोपेतौ कलापग्रामसंश्रितौ॥ ११८॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुवंशीय राजा देवापि तथा इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न राजा पुरु—ये दोनों अत्यन्त योगबलसम्पन्न हैं और कलापग्राममें रहते हैं॥ ११८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृते युगे त्विहागम्य क्षत्रप्रवर्त्तकौ हि तौ।
भविष्यतो मनोर्वंशबीजभूतौ व्यवस्थितौ॥ ११९॥
मूलम्
कृते युगे त्विहागम्य क्षत्रप्रवर्त्तकौ हि तौ।
भविष्यतो मनोर्वंशबीजभूतौ व्यवस्थितौ॥ ११९॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्ययुगका आरम्भ होनेपर ये पुनः मर्त्यलोकमें आकर क्षत्रिय-कुलके प्रवर्त्तक होंगे। वे आगामी मनुवंशके बीजरूप हैं॥ ११९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतेन क्रमयोगेन मनुपुत्रैर्वसुन्धरा।
कृतत्रेताद्वापराणि युगानि त्रीणि भुज्यते॥ १२०॥
मूलम्
एतेन क्रमयोगेन मनुपुत्रैर्वसुन्धरा।
कृतत्रेताद्वापराणि युगानि त्रीणि भुज्यते॥ १२०॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्ययुग, त्रेता और द्वापर इन तीनों युगोंमें इसी क्रमसे मनुपुत्र पृथिवीका भोग करते हैं॥ १२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कलौ ते बीजभूता वै केचित्तिष्ठन्ति वै मुने।
यथैव देवापिपुरू साम्प्रतं समधिष्ठितौ॥ १२१॥
मूलम्
कलौ ते बीजभूता वै केचित्तिष्ठन्ति वै मुने।
यथैव देवापिपुरू साम्प्रतं समधिष्ठितौ॥ १२१॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर कलियुगमें उन्हींमेंसे कोई-कोई आगामी मनुसन्तानके बीजरूपसे स्थित रहते हैं जिस प्रकार कि आजकल देवापि और पुरु हैं॥ १२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष तूद्देशतो वंशस्तवोक्तो भूभुजां मया।
निखिलो गदितुं शक्यो नैष वर्षशतैरपि॥ १२२॥
मूलम्
एष तूद्देशतो वंशस्तवोक्तो भूभुजां मया।
निखिलो गदितुं शक्यो नैष वर्षशतैरपि॥ १२२॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार मैंने तुमसे सम्पूर्ण राजवंशोंका यह संक्षिप्त वर्णन कर दिया है, इनका पूर्णतया वर्णन तो सौ वर्षमें भी नहीं किया जा सकता॥ १२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते चान्ये च भूपाला यैरत्र क्षितिमण्डले।
कृतं ममत्वं मोहान्धैर्नित्यं हेयकलेवरे॥ १२३॥
मूलम्
एते चान्ये च भूपाला यैरत्र क्षितिमण्डले।
कृतं ममत्वं मोहान्धैर्नित्यं हेयकलेवरे॥ १२३॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस हेय शरीरके मोहसे अन्धे हुए ये तथा और भी ऐसे अनेक भूपतिगण हो गये हैं जिन्होंने इस पृथिवीमण्डलको अपना-अपना माना है॥ १२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथं ममेयमचला मत्पुत्रस्य कथं मही।
मद्वंशस्येति चिन्तार्त्ता जग्मुरन्तमिमे नृपाः॥ १२४॥
मूलम्
कथं ममेयमचला मत्पुत्रस्य कथं मही।
मद्वंशस्येति चिन्तार्त्ता जग्मुरन्तमिमे नृपाः॥ १२४॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह पृथिवी किस प्रकार अचलभावसे मेरी, मेरे पुत्रकी अथवा मेरे वंशकी होगी?’ इसी चिन्तामें व्याकुल हुए इन सभी राजाओंका अन्त हो गया॥ १२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेभ्यः पूर्वतराश्चान्ये तेभ्यस्तेभ्यस्तथा परे।
भविष्याश्चैव यास्यन्ति तेषामन्ये च येऽप्यनु॥ १२५॥
मूलम्
तेभ्यः पूर्वतराश्चान्ये तेभ्यस्तेभ्यस्तथा परे।
भविष्याश्चैव यास्यन्ति तेषामन्ये च येऽप्यनु॥ १२५॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी चिन्तामें डूबे रहकर इन सम्पूर्ण राजाओंके पूर्व-पूर्वतरवर्ती राजालोग चले गये और इसीमें मग्न रहकर आगामी भूपतिगण भी मृत्यु-मुखमें चले जायँगे॥ १२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विलोक्यात्मजयोद्योगं यात्राव्यग्रान्नराधिपान्।
पुष्पप्रहासैश्शरदि हसन्तीव वसुन्धरा॥ १२६॥
मूलम्
विलोक्यात्मजयोद्योगं यात्राव्यग्रान्नराधिपान्।
पुष्पप्रहासैश्शरदि हसन्तीव वसुन्धरा॥ १२६॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार अपनेको जीतनेके लिये राजाओंको अथक उद्योग करते देखकर वसुन्धरा शरत्कालीन पुष्पोंके रूपमें मानो हँस रही है॥ १२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मैत्रेय पृथिवीगीताञ्छ्लोकांश्चात्र निबोध मे।
यानाह धर्मध्वजिने जनकायासितो मुनिः॥ १२७॥
मूलम्
मैत्रेय पृथिवीगीताञ्छ्लोकांश्चात्र निबोध मे।
यानाह धर्मध्वजिने जनकायासितो मुनिः॥ १२७॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे मैत्रेय! अब तुम पृथिवीके कहे हुए कुछ श्लोकोंको सुनो। पूर्वकालमें इन्हें असित मुनिने धर्मध्वजी राजा जनकको सुनाया था॥ १२७॥
मूलम् (वचनम्)
पृथिव्युवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथमेष नरेन्द्राणां मोहो बुद्धिमतामपि।
येन फेनसधर्माणोऽप्यतिविश्वस्तचेतसः॥ १२८॥
मूलम्
कथमेष नरेन्द्राणां मोहो बुद्धिमतामपि।
येन फेनसधर्माणोऽप्यतिविश्वस्तचेतसः॥ १२८॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथिवी कहती है—अहो! बुद्धिमान् होते हुए भी इन राजाओंको यह कैसा मोह हो रहा है जिसके कारण ये बुलबुलेके समान क्षणस्थायी होते हुए भी अपनी स्थिरतामें इतना विश्वास रखते हैं॥ १२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पूर्वमात्मजयं कृत्वा जेतुमिच्छन्ति मन्त्रिणः।
ततो भृत्यांश्च पौरांश्च जिगीषन्ते तथा रिपून्॥ १२९॥
मूलम्
पूर्वमात्मजयं कृत्वा जेतुमिच्छन्ति मन्त्रिणः।
ततो भृत्यांश्च पौरांश्च जिगीषन्ते तथा रिपून्॥ १२९॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये लोग प्रथम अपनेको जीतते हैं और फिर अपने मन्त्रियोंको तथा इसके अनन्तर ये क्रमशः अपने भृत्य, पुरवासी एवं शत्रुओंको जीतना चाहते हैं॥ १२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्रमेणानेन जेष्यामो वयं पृथ्वीं ससागराम्।
इत्यासक्तधियो मृत्युं न पश्यन्त्यविदूरगम्॥ १३०॥
मूलम्
क्रमेणानेन जेष्यामो वयं पृथ्वीं ससागराम्।
इत्यासक्तधियो मृत्युं न पश्यन्त्यविदूरगम्॥ १३०॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘इसी क्रमसे हम समुद्रपर्यन्त इस सम्पूर्ण पृथिवीको जीत लेंगे’ ऐसी बुद्धिसे मोहित हुए ये लोग अपनी निकटवर्तिनी मृत्युको नहीं देखते॥ १३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुद्रावरणं याति भूमण्डलमथो वशम्।
कियदात्मजयस्यैतन्मुक्तिरात्मजये फलम्॥ १३१॥
मूलम्
समुद्रावरणं याति भूमण्डलमथो वशम्।
कियदात्मजयस्यैतन्मुक्तिरात्मजये फलम्॥ १३१॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि समुद्रसे घिरा हुआ यह सम्पूर्ण भूमण्डल अपने वशमें हो ही जाय तो भी मनोजयकी अपेक्षा इसका मूल्य ही क्या है? क्योंकि मोक्ष तो मनोजयसे ही प्राप्त होता है॥ १३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्सृज्य पूर्वजा याता यां नादाय गतः पिता।
तां मामतीवमूढत्वाज्जेतुमिच्छन्ति पार्थिवाः॥ १३२॥
मूलम्
उत्सृज्य पूर्वजा याता यां नादाय गतः पिता।
तां मामतीवमूढत्वाज्जेतुमिच्छन्ति पार्थिवाः॥ १३२॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसे छोड़कर इनके पूर्वज चले गये तथा जिसे अपने साथ लेकर इनके पिता भी नहीं गये उसी मुझको अत्यन्त मूर्खताके कारण ये राजालोग जीतना चाहते हैं॥ १३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मत्कृते पितृपुत्राणां भ्रातॄणां चापि विग्रहः।
जायतेऽत्यन्तमोहेन ममत्वादृतचेतसाम्॥ १३३॥
मूलम्
मत्कृते पितृपुत्राणां भ्रातॄणां चापि विग्रहः।
जायतेऽत्यन्तमोहेन ममत्वादृतचेतसाम्॥ १३३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिनका चित्त ममतामय है उन पिता-पुत्र और भाइयोंमें अत्यन्त मोहके कारण मेरे ही लिये परस्पर कलह होता है॥ १३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृथ्वी ममेयं सकला ममैषा
मदन्वयस्यापि च शाश्वतीयम्।
यो यो मृतो ह्यत्र बभूव राजा
कुबुद्धिरासीदिति तस्य तस्य॥ १३४॥
मूलम्
पृथ्वी ममेयं सकला ममैषा
मदन्वयस्यापि च शाश्वतीयम्।
यो यो मृतो ह्यत्र बभूव राजा
कुबुद्धिरासीदिति तस्य तस्य॥ १३४॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो-जो राजालोग यहाँ हो चुके हैं उन सभीकी ऐसी कुबुद्धि रही है कि यह सम्पूर्ण पृथिवी मेरी ही है और मेरे पीछे यह सदा मेरी सन्तानकी ही रहेगी॥ १३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा ममत्वादृतचित्तमेकं
विहाय मां मृत्युवशं व्रजन्तम्।
तस्यानु यस्तस्य कथं ममत्वं
हृद्यास्पदं मत्प्रभवं करोति॥ १३५॥
मूलम्
दृष्ट्वा ममत्वादृतचित्तमेकं
विहाय मां मृत्युवशं व्रजन्तम्।
तस्यानु यस्तस्य कथं ममत्वं
हृद्यास्पदं मत्प्रभवं करोति॥ १३५॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार मेरेमें ममता करनेवाले एक राजाको, मुझे छोड़कर मृत्युके मुखमें जाते हुए देखकर भी न जाने कैसे उसका उत्तराधिकारी अपने हृदयमें मेरे लिये ममताको स्थान देता है?॥ १३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृथ्वी ममैषाशु परित्यजैनां
वदन्ति ये दूतमुखैस्स्वशत्रून्।
नराधिपास्तेषु ममातिहासः
पुनश्च मूढेषु दयाभ्युपैति॥ १३६॥
मूलम्
पृथ्वी ममैषाशु परित्यजैनां
वदन्ति ये दूतमुखैस्स्वशत्रून्।
नराधिपास्तेषु ममातिहासः
पुनश्च मूढेषु दयाभ्युपैति॥ १३६॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो राजालोग दूतोंके द्वारा अपने शत्रुओंसे इस प्रकार कहलाते हैं कि ‘यह पृथिवी मेरी है, तुमलोग इसे तुरन्त छोड़कर चले जाओ’ उनपर मुझे बड़ी हँसी आती है और फिर उन मूढ़ोंपर मुझे दया भी आ जाती है॥ १३६॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येते धरणीगीताश्श्लोका मैत्रेय यैश्श्रुताः।
ममत्वं विलयं याति तपत्यर्के यथा हिमम्॥ १३७॥
मूलम्
इत्येते धरणीगीताश्श्लोका मैत्रेय यैश्श्रुताः।
ममत्वं विलयं याति तपत्यर्के यथा हिमम्॥ १३७॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—हे मैत्रेय! पृथिवीके कहे हुए इन श्लोकोंको जो पुरुष सुनेगा उसकी ममता इसी प्रकार लीन हो जायगी जैसे सूर्यके तपते समय बर्फ पिघल जाता है॥ १३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येष कथितः सम्यङ्मनोर्वंशो मया तव।
यत्र स्थितिप्रवृत्तस्य विष्णोरंशांशका नृपाः॥ १३८॥
मूलम्
इत्येष कथितः सम्यङ्मनोर्वंशो मया तव।
यत्र स्थितिप्रवृत्तस्य विष्णोरंशांशका नृपाः॥ १३८॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार मैंने तुमसे भली प्रकार मनुके वंशका वर्णन कर दिया। जिसवंशके राजागण स्थितिकारक भगवान् विष्णुके अंशके अंश थे॥ १३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणोति य इमं भक्त्या मनोर्वंशमनुक्रमात्।
तस्य पापमशेषं वै प्रणश्यत्यमलात्मनः॥ १३९॥
मूलम्
शृणोति य इमं भक्त्या मनोर्वंशमनुक्रमात्।
तस्य पापमशेषं वै प्रणश्यत्यमलात्मनः॥ १३९॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष इस मनुवंशका क्रमशःश्रवण करता है उस शुद्धात्माके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं॥ १३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धनधान्यर्द्धिमतुलां प्राप्नोत्यव्याहतेन्द्रियः।
श्रुत्वैवमखिलं वंशं प्रशस्तं शशिसूर्ययोः॥ १४०॥
मूलम्
धनधान्यर्द्धिमतुलां प्राप्नोत्यव्याहतेन्द्रियः।
श्रुत्वैवमखिलं वंशं प्रशस्तं शशिसूर्ययोः॥ १४०॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य जितेन्द्रिय होकर सूर्य और चन्द्रमाके इन प्रशंसनीय वंशोंका सम्पूर्ण वर्णन सुनता है, वह अतुलित धन-धान्य और सम्पत्ति प्राप्त करता है॥ १४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इक्ष्वाकुजह्नुमान्धातृसगराविक्षितान्रघून्।
ययातिनहुषाद्यांश्च ज्ञात्वा निष्ठामुपागतान्॥ १४१॥
महाबलान्महावीर्याननन्तधनसञ्चयान्।
कृतान्कालेन बलिना कथाशेषान्नराधिपान्॥ १४२॥
श्रुत्वा न पुत्रदारादौ गृहक्षेत्रादिके तथा।
द्रव्यादौ वा कृतप्रज्ञो ममत्वं कुरुते नरः॥ १४३॥
मूलम्
इक्ष्वाकुजह्नुमान्धातृसगराविक्षितान्रघून्।
ययातिनहुषाद्यांश्च ज्ञात्वा निष्ठामुपागतान्॥ १४१॥
महाबलान्महावीर्याननन्तधनसञ्चयान्।
कृतान्कालेन बलिना कथाशेषान्नराधिपान्॥ १४२॥
श्रुत्वा न पुत्रदारादौ गृहक्षेत्रादिके तथा।
द्रव्यादौ वा कृतप्रज्ञो ममत्वं कुरुते नरः॥ १४३॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबलवान्, महावीर्यशाली, अनन्त धन संचय करनेवाले तथा परम निष्ठावान् इक्ष्वाकु, जह्नु, मान्धाता, सगर, अविक्षित, रघुवंशीय राजागण तथा नहुष और ययाति आदिके चरित्रोंको सुनकर, जिन्हें कि कालने आज कथामात्र ही शेष रखा है, प्रज्ञावान् मनुष्य पुत्र, स्त्री, गृह, क्षेत्र और धन आदिमें ममता न करेगा॥ १४१—१४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तप्तं तपो यैः पुरुषप्रवीरै-
रुद्बाहुभिर्वर्षगणाननेकान्।
इष्ट्वा सुयज्ञैर्बलिनोऽतिवीर्याः
कृता नु कालेन कथावशेषाः॥ १४४॥
मूलम्
तप्तं तपो यैः पुरुषप्रवीरै-
रुद्बाहुभिर्वर्षगणाननेकान्।
इष्ट्वा सुयज्ञैर्बलिनोऽतिवीर्याः
कृता नु कालेन कथावशेषाः॥ १४४॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिन पुरुषश्रेष्ठोंने ऊर्ध्वबाहु होकर अनेक वर्षपर्यन्त कठिन तपस्या की थी तथा विविध प्रकारके यज्ञोंका अनुष्ठान किया था, आज उन अति बलवान् और वीर्यशाली राजाओंकी कालने केवल कथामात्र ही छोड़ दी है॥ १४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृथुस्समस्तान्विचचारलोका-
नव्याहतो यो विजितारिचक्रः।
स कालवाताभिहतः प्रणष्टः
क्षिप्तं यथा शाल्मलितूलमग्नौ॥ १४५॥
मूलम्
पृथुस्समस्तान्विचचारलोका-
नव्याहतो यो विजितारिचक्रः।
स कालवाताभिहतः प्रणष्टः
क्षिप्तं यथा शाल्मलितूलमग्नौ॥ १४५॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पृथु अपने शत्रुसमूहको जीतकर स्वच्छन्द-गतिसे समस्त लोकोंमें विचरता था आज वही काल-वायुकी प्रेरणासे अग्निमें फेंके हुए सेमरकी रूईके ढेरके समान नष्ट-भ्रष्ट हो गया है॥ १४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यः कार्तवीर्यो बुभुजे समस्ता-
न्द्वीपान्समाक्रम्य हतारिचक्रः।
कथाप्रसङ्गेष्वभिधीयमान-
स्स एव सङ्कल्पविकल्पहेतुः॥ १४६॥
मूलम्
यः कार्तवीर्यो बुभुजे समस्ता-
न्द्वीपान्समाक्रम्य हतारिचक्रः।
कथाप्रसङ्गेष्वभिधीयमान-
स्स एव सङ्कल्पविकल्पहेतुः॥ १४६॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो कार्तवीर्य अपने शत्रु-मण्डलका संहारकर समस्त द्वीपोंको वशीभूतकर उन्हें भोगता था वही आज कथा-प्रसंगसे वर्णन करते समय उलटा संकल्प-विकल्पका हेतु होता है [अर्थात् उसका वर्णन करते समय यह सन्देह होता है कि वास्तवमें वह हुआ था या नहीं।]॥ १४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दशाननाविक्षितराघवाणा-
मैश्वर्यमुद्भासितदिङ्मुखानाम्।
भस्मापि शिष्टं न कथं क्षणेन
भ्रूभङ्गपातेन धिगन्तकस्य॥ १४७॥
मूलम्
दशाननाविक्षितराघवाणा-
मैश्वर्यमुद्भासितदिङ्मुखानाम्।
भस्मापि शिष्टं न कथं क्षणेन
भ्रूभङ्गपातेन धिगन्तकस्य॥ १४७॥
अनुवाद (हिन्दी)
समस्त दिशाओंको देदीप्यमान करनेवाले रावण, अविक्षित और रामचन्द्र आदिके [क्षणभंगुर] ऐश्वर्यको धिक्कार है। अन्यथा कालके क्षणिक कटाक्षपातके कारण आज उसका भस्ममात्र भी क्यों नहीं बच सका?॥ १४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथाशरीरत्वमवाप यद्वै
मान्धातृनामा भुवि चक्रवर्ती।
श्रुत्वापि तत्को हि करोति साधु-
र्ममत्वमात्मन्यपि मन्दचेताः॥ १४८॥
मूलम्
कथाशरीरत्वमवाप यद्वै
मान्धातृनामा भुवि चक्रवर्ती।
श्रुत्वापि तत्को हि करोति साधु-
र्ममत्वमात्मन्यपि मन्दचेताः॥ १४८॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मान्धाता सम्पूर्ण भूमण्डलका चक्रवर्ती सम्राट् था आज उसका केवल कथामें ही पता चलता है। ऐसा कौन मन्दबुद्धि होगा जो यह सुनकर अपने शरीरमें भी ममता करेगा? [फिर पृथिवी आदिमें ममता करनेकी तो बात ही क्या है?]॥ १४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगीरथाद्यास्सगरः ककुत्स्थो
दशाननो राघवलक्ष्मणौ च।
युधिष्ठिराद्याश्च बभूवुरेते
सत्यं न मिथ्या क्वनु ते न विद्मः॥ १४९॥
मूलम्
भगीरथाद्यास्सगरः ककुत्स्थो
दशाननो राघवलक्ष्मणौ च।
युधिष्ठिराद्याश्च बभूवुरेते
सत्यं न मिथ्या क्वनु ते न विद्मः॥ १४९॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगीरथ, सगर, ककुत्स्थ, रावण, रामचन्द्र, लक्ष्मण और युधिष्ठिर आदि पहले हो गये हैं यह बात सर्वथा सत्य है, किसी प्रकार भी मिथ्या नहीं है; किन्तु अब वे कहाँ हैं इसका हमें पता नहीं॥ १४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये साम्प्रतं ये च नृपा भविष्याः
प्रोक्ता मया विप्रवरोग्रवीर्याः।
एते तथान्ये च तथाभिधेयाः
सर्वे भविष्यन्ति यथैव पूर्वे॥ १५०॥
मूलम्
ये साम्प्रतं ये च नृपा भविष्याः
प्रोक्ता मया विप्रवरोग्रवीर्याः।
एते तथान्ये च तथाभिधेयाः
सर्वे भविष्यन्ति यथैव पूर्वे॥ १५०॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे विप्रवर! वर्तमान और भविष्यत्कालीन जिन-जिन महावीर्यशाली राजाओंका मैंने वर्णन किया है ये तथा अन्य लोग भी पूर्वोक्त राजाओंकी भाँति कथामात्र शेष रहेंगे॥ १५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतद्विदित्वा न नरेण कार्यं
ममत्वमात्मन्यपि पण्डितेन।
तिष्ठन्तु तावत्तनयात्मजाद्याः
क्षेत्रादयो ये च शरीरिणोऽन्ये॥ १५१॥
मूलम्
एतद्विदित्वा न नरेण कार्यं
ममत्वमात्मन्यपि पण्डितेन।
तिष्ठन्तु तावत्तनयात्मजाद्याः
क्षेत्रादयो ये च शरीरिणोऽन्ये॥ १५१॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसा जानकर पुत्र, पुत्री और क्षेत्र आदि तथा अन्य प्राणी तो अलग रहें, बुद्धिमान् मनुष्यको अपने शरीरमें भी ममता नहीं करनी चाहिये॥ १५१॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीविष्णुपुराणे चतुर्थेंऽशे चतुर्विंशोऽध्यायः॥ २४॥
इति श्रीपराशरमुनिविरचिते श्रीविष्णुपरत्वनिर्णायके श्रीमति विष्णुमहापुराणे चतुर्थोंऽशः समाप्तः।