[अठारहवाँ अध्याय]
विषय
अनुवंश
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
अनुवाद (हिन्दी)
ययातेश्चतुर्थपुत्रस्यानोस्सभानलचक्षुःपरमेषुसंज्ञास्त्रयः पुत्राः बभूवुः॥ १॥ सभानलपुत्रः कालानलः॥ २॥ कालानलात्सृञ्जयः॥ ३॥ सृञ्जयात् पुरञ्जयः॥ ४॥ पुरञ्जयाज्जनमेजयः॥ ५॥ तस्मान्महाशालः॥ ६॥ तस्माच्च महामनाः॥ ७॥ तस्मादुशीनरतितिक्षू द्वौ पुत्रावुत्पन्नौ॥ ८॥
श्रीपराशरजी बोले—ययातिके चौथे पुत्र अनुके सभानल, चक्षु और परमेषु नामक तीन पुत्र थे। सभानलका पुत्र कालानल हुआ तथा कालानलके सृंजय, सृंजयके पुरंजय, पुरंजयके जनमेजय, जनमेजयके महाशाल, महाशालके महामना और महामनाके उशीनर तथा तितिक्षु नामक दो पुत्र हुए॥ १—८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उशीनरस्यापि शिबिनृगनरकृमिवर्माख्याः पञ्च पुत्रा बभूवुः॥ ९॥
मूलम्
उशीनरस्यापि शिबिनृगनरकृमिवर्माख्याः पञ्च पुत्रा बभूवुः॥ ९॥
अनुवाद (हिन्दी)
उशीनरके शिबि, नृग, नर, कृमि और वर्म नामक पाँच पुत्र हुए॥ ९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृषदर्भसुवीरकेकयमद्रकाश्चत्वारश्शिबिपुत्राः॥ १०॥
मूलम्
पृषदर्भसुवीरकेकयमद्रकाश्चत्वारश्शिबिपुत्राः॥ १०॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमेंसे शिबिके पृषदर्भ, सुवीर, केकय और मद्रक—ये चार पुत्र थे॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तितिक्षोरपि रुशद्रथः पुत्रोऽभूत्॥ ११॥ तस्यापि हेमो हेमस्यापि सुतपाः सुतपसश्च बलिः॥ १२॥
मूलम्
तितिक्षोरपि रुशद्रथः पुत्रोऽभूत्॥ ११॥ तस्यापि हेमो हेमस्यापि सुतपाः सुतपसश्च बलिः॥ १२॥
अनुवाद (हिन्दी)
तितिक्षुका पुत्र रुशद्रथ हुआ। उसके हेम, हेमके सुतपा तथा सुतपाके बलि नामक पुत्र हुआ॥ ११-१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य क्षेत्रे दीर्घतमसाङ्गवङ्गकलिङ्गसुह्मपौण्ड्राख्यं वालेयं क्षत्रमजन्यत॥ १३॥
मूलम्
यस्य क्षेत्रे दीर्घतमसाङ्गवङ्गकलिङ्गसुह्मपौण्ड्राख्यं वालेयं क्षत्रमजन्यत॥ १३॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस बलिके क्षेत्र (रानी)-में दीर्घतमा नामक मुनिने अंग, वंग, कलिंग, सुह्म और पौण्ड्र नामक पाँच वालेय क्षत्रिय उत्पन्न किये॥ १३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तन्नामसन्ततिसंज्ञाश्च पञ्चविषया बभूवुः॥ १४॥
मूलम्
तन्नामसन्ततिसंज्ञाश्च पञ्चविषया बभूवुः॥ १४॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन बलिपुत्रोंकी सन्ततिके नामानुसार पाँच देशोंके भी ये ही नाम पड़े॥ १४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अङ्गादनपानस्ततो दिविरथस्तस्माद्धर्मरथः॥ १५॥ ततश्चित्ररथो रोमपादसंज्ञः॥ १६॥ यस्य दशरथो मित्रं जज्ञे॥ १७॥ यस्याजपुत्रो दशरथश्शान्तां नाम कन्यामनपत्यस्य दुहितृत्वे युयोज॥ १८॥
मूलम्
अङ्गादनपानस्ततो दिविरथस्तस्माद्धर्मरथः॥ १५॥ ततश्चित्ररथो रोमपादसंज्ञः॥ १६॥ यस्य दशरथो मित्रं जज्ञे॥ १७॥ यस्याजपुत्रो दशरथश्शान्तां नाम कन्यामनपत्यस्य दुहितृत्वे युयोज॥ १८॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनमेंसे अंगसे अनपान, अनपानसे दिविरथ, दिविरथसे धर्मरथ और धर्मरथसे चित्ररथका जन्म हुआ जिसका दूसरा नाम रोमपाद था। इस रोमपादके मित्र दशरथजी थे, अजके पुत्र दशरथजीने रोमपादको सन्तानहीन देखकर उन्हें पुत्रीरूपसे अपनी शान्ता नामकी कन्या गोद दे दी थी॥ १५—१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रोमपादाच्चतुरङ्गस्तस्मात्पृथुलाक्षः॥ १९॥ ततश्चम्पो यश्चम्पां निवेशयामास॥ २०॥
मूलम्
रोमपादाच्चतुरङ्गस्तस्मात्पृथुलाक्षः॥ १९॥ ततश्चम्पो यश्चम्पां निवेशयामास॥ २०॥
अनुवाद (हिन्दी)
रोमपादका पुत्र चतुरंग था। चतुरंगके पृथुलाक्ष तथा पृथुलाक्षके चम्प नामक पुत्र हुआ जिसने चम्पा नामकी पुरी बसायी थी॥ १९-२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चम्पस्य हर्यङ्गो नामात्मजोऽभूत्॥ २१॥ हर्यङ्गाद्भद्ररथो भद्ररथाद्बृहद्रथो बृहद्रथाद्बृहत्कर्मा बृहत्कर्मणश्च बृहद्भानुस्तस्माच्च बृहन्मना बृहन्मनसो जयद्रथः॥ २२॥
मूलम्
चम्पस्य हर्यङ्गो नामात्मजोऽभूत्॥ २१॥ हर्यङ्गाद्भद्ररथो भद्ररथाद्बृहद्रथो बृहद्रथाद्बृहत्कर्मा बृहत्कर्मणश्च बृहद्भानुस्तस्माच्च बृहन्मना बृहन्मनसो जयद्रथः॥ २२॥
अनुवाद (हिन्दी)
चम्पके हर्यंगनामक पुत्र हुआ, हर्यंगसे भद्ररथ, भद्ररथसे बृहद्रथ, बृहद्रथसे बृहत्कर्मा, बृहत्कर्मासे बृहद्भानु, बृहद्भानुसे बृहन्मना, बृहन्मनासे जयद्रथका जन्म हुआ॥ २१-२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जयद्रथो ब्रह्मक्षत्रान्तरालसम्भूत्यां पत्न्यां विजयं नामपुत्रमजीजनत्॥ २३॥
मूलम्
जयद्रथो ब्रह्मक्षत्रान्तरालसम्भूत्यां पत्न्यां विजयं नामपुत्रमजीजनत्॥ २३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जयद्रथकी ब्राह्मण और क्षत्रियके संसर्गसे उत्पन्न हुई पत्नीके गर्भसे विजय नामक पुत्रका जन्म हुआ॥ २३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विजयश्च धृतिं पुत्रमवाप॥ २४॥ तस्यापि धृतव्रतः पुत्रोऽभूत्॥ २५॥ धृतव्रतात्सत्यकर्मा॥ २६॥ सत्यकर्मणस्त्वतिरथः॥ २७॥ यो गङ्गाङ्गतो मञ्जूषागतं पृथापविद्धं कर्णं पुत्रमवाप॥ २८॥ कर्णाद्वृषसेनः इत्येतदन्ता अङ्गवंश्याः॥ २९॥
मूलम्
विजयश्च धृतिं पुत्रमवाप॥ २४॥ तस्यापि धृतव्रतः पुत्रोऽभूत्॥ २५॥ धृतव्रतात्सत्यकर्मा॥ २६॥ सत्यकर्मणस्त्वतिरथः॥ २७॥ यो गङ्गाङ्गतो मञ्जूषागतं पृथापविद्धं कर्णं पुत्रमवाप॥ २८॥ कर्णाद्वृषसेनः इत्येतदन्ता अङ्गवंश्याः॥ २९॥
अनुवाद (हिन्दी)
विजयके धृति नामक पुत्र हुआ, धृतिके धृतव्रत, धृतव्रतके सत्यकर्मा और सत्यकर्माके अतिरथका जन्म हुआ जिसने कि [स्नानके लिये] गंगाजीमें जानेपर पिटारीमें रखकर पृथाद्वारा बहाये हुए कर्णको पुत्ररूपसे पाया था। इस कर्णका पुत्र वृषसेन था। बस, अंगवंश इतना ही है॥ २४—२९॥
अतश्च पुरुवंशं श्रोतुमर्हसि॥ ३०॥
इसके आगे पुरुवंशका वर्णन सुनो॥ ३०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीविष्णुपुराणे चतुर्थेंऽशे अष्टादशोऽध्यायः॥ १८॥