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[सोलहवाँ अध्याय]

विषय

तुर्वसुके वंशका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येष समासतस्ते यदोर्वंशः कथितः॥ १॥

मूलम्

इत्येष समासतस्ते यदोर्वंशः कथितः॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—इस प्रकार मैंने तुमसे संक्षेपसे यदुके वंशका वर्णन किया॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ तुर्वसोर्वंशमवधारय॥ २॥

मूलम्

अथ तुर्वसोर्वंशमवधारय॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब तुर्वसुके वंशका वर्णन सुनो॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुर्वसोर्वह्निरात्मजः, वह्नेर्भार्गो भार्गाद्भानुस्ततश्च त्रयीसानुस्तस्माच्च करन्दमस्तस्यापि मरुत्तः॥ ३॥

मूलम्

तुर्वसोर्वह्निरात्मजः, वह्नेर्भार्गो भार्गाद्भानुस्ततश्च त्रयीसानुस्तस्माच्च करन्दमस्तस्यापि मरुत्तः॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुर्वसुका पुत्र वह्नि था, वह्निका भार्ग, भार्गका भानु, भानुका त्रयीसानु, त्रयीसानुका करन्दम और करन्दमका पुत्र मरुत्त था॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽनपत्योऽभवत्॥ ४॥

मूलम्

सोऽनपत्योऽभवत्॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

मरुत्त निस्सन्तान था॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततश्च पौरवं दुष्यन्तं पुत्रमकल्पयत्॥ ५॥

मूलम्

ततश्च पौरवं दुष्यन्तं पुत्रमकल्पयत्॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसलिये उसने पुरुवंशीय दुष्यन्तको पुत्ररूपसे स्वीकार कर लिया॥ ५॥
एवं ययातिशापात्तद्वंशः पौरवमेव वंशं समाश्रितवान‍्॥ ६॥
इस प्रकार ययातिके शापसे तुर्वसुके वंशने पुरुवंशका ही आश्रय लिया॥ ६॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीविष्णुपुराणे चतुर्थेंऽशे षोडशोऽध्यायः॥ १६॥