०२

[दूसरा अध्याय]

विषय

सावर्णिमनुकी उत्पत्ति तथा आगामी सात मन्वन्तरोंके मनु, मनुपुत्र, देवता, इन्द्र और सप्तर्षियोंका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

श्रीमैत्रेय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रोक्तान्येतानि भवता सप्तमन्वन्तराणि वै।
भविष्याण्यपि विप्रर्षे ममाख्यातुं त्वमर्हसि॥ १॥

मूलम्

प्रोक्तान्येतानि भवता सप्तमन्वन्तराणि वै।
भविष्याण्यपि विप्रर्षे ममाख्यातुं त्वमर्हसि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमैत्रेयजी बोले—हे विप्रर्षे! आपने यह सात अतीत मन्वन्तरोंकी कथा कही, अब आप मुझसे आगामी मन्वन्तरोंका भी वर्णन कीजिये॥ १॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूर्यस्य पत्नी संज्ञाभूत्तनया विश्वकर्मणः।
मनुर्यमो यमी चैव तदपत्यानि वै मुने॥ २॥

मूलम्

सूर्यस्य पत्नी संज्ञाभूत्तनया विश्वकर्मणः।
मनुर्यमो यमी चैव तदपत्यानि वै मुने॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—हे मुने! विश्वकर्माकी पुत्री संज्ञा सूर्यकी भार्या थी। उससे उनके मनु, यम और यमी—तीन सन्तानें हुईं॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असहन्ती तु सा भर्तुस्तेजश्छायां युयोज वै।
भर्त्तृशुश्रूषणेऽरण्यं स्वयं च तपसे ययौ॥ ३॥

मूलम्

असहन्ती तु सा भर्तुस्तेजश्छायां युयोज वै।
भर्त्तृशुश्रूषणेऽरण्यं स्वयं च तपसे ययौ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कालान्तरमें पतिका तेज सहन न कर सकनेके कारण संज्ञा छायाको पतिकी सेवामें नियुक्त कर स्वयं तपस्याके लिये वनको चली गयी॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संज्ञेयमित्यथार्कश्च छायायामात्मजत्रयम्।
शनैश्चरं मनुं चान्यं तपतीं चाप्यजीजनत्॥ ४॥

मूलम्

संज्ञेयमित्यथार्कश्च छायायामात्मजत्रयम्।
शनैश्चरं मनुं चान्यं तपतीं चाप्यजीजनत्॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूर्यदेवने यह समझकर कि यह संज्ञा ही है, छायासे शनैश्चर, एक और मनु तथा तपती—ये तीन सन्तानें उत्पन्न कीं॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छायासंज्ञा ददौ शापं यमाय कुपिता यदा।
तदान्येयमसौ बुद्धिरित्यासीद्यमसूर्ययोः॥ ५॥

मूलम्

छायासंज्ञा ददौ शापं यमाय कुपिता यदा।
तदान्येयमसौ बुद्धिरित्यासीद्यमसूर्ययोः॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक दिन जब छायारूपिणी संज्ञाने क्रोधित होकर [अपने पुत्रके पक्षपातसे] यमको शाप दिया, तब सूर्य और यमको विदित हुआ कि यह तो कोई और है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो विवस्वानाख्याते तयैवारण्यसंस्थिताम्।
समाधिदृष्ट्या ददृशे तामश्वां तपसि स्थिताम्॥ ६॥

मूलम्

ततो विवस्वानाख्याते तयैवारण्यसंस्थिताम्।
समाधिदृष्ट्या ददृशे तामश्वां तपसि स्थिताम्॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब छायाके द्वारा ही सारा रहस्य खुल जानेपर सूर्यदेवने समाधिमें स्थित होकर देखा कि संज्ञा घोड़ीका रूप धारण कर वनमें तपस्या कर रही है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वाजिरूपधरः सोऽथ तस्यां देवावथाश्विनौ।
जनयामास रेवन्तं रेतसोऽन्ते च भास्करः॥ ७॥

मूलम्

वाजिरूपधरः सोऽथ तस्यां देवावथाश्विनौ।
जनयामास रेवन्तं रेतसोऽन्ते च भास्करः॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

अतः उन्होंने भी अश्वरूप होकर उससे दो अश्विनीकुमार और रेतःस्रावके अनन्तर ही रेवन्तको उत्पन्न किया॥ ७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आनिन्ये च पुनः संज्ञां स्वस्थानं भगवान‍‍्रविः।
तेजसश्शमनं चास्य विश्वकर्मा चकार ह॥ ८॥

मूलम्

आनिन्ये च पुनः संज्ञां स्वस्थानं भगवान‍‍्रविः।
तेजसश्शमनं चास्य विश्वकर्मा चकार ह॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर भगवान‍् सूर्य संज्ञाको अपने स्थानपर ले आये तथा विश्वकर्माने उनके तेजको शान्त कर दिया॥ ८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भ्रममारोप्य सूर्यं तु तस्य तेजोनिशातनम्।
कृतवानष्टमं भागं स व्यशातयदव्ययम्॥ ९॥

मूलम्

भ्रममारोप्य सूर्यं तु तस्य तेजोनिशातनम्।
कृतवानष्टमं भागं स व्यशातयदव्ययम्॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने सूर्यको भ्रमियन्त्र (सान)-पर चढ़ाकर उनका तेज छाँटा, किन्तु वे उस अक्षुण्ण तेजका केवल अष्टमांश ही क्षीण कर सके॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्तस्माद्वैष्णवं तेजश्शातितं विश्वकर्मणा।
जाज्वल्यमानमपतत्तद्भूमौ मुनिसत्तम॥ १०॥

मूलम्

यत्तस्माद्वैष्णवं तेजश्शातितं विश्वकर्मणा।
जाज्वल्यमानमपतत्तद्भूमौ मुनिसत्तम॥ १०॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनिसत्तम! सूर्यके जिस जाज्वल्यमान वैष्णव-तेजको विश्वकर्माने छाँटा था वह पृथिवीपर गिरा॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वष्टैव तेजसा तेन विष्णोश्चक्रमकल्पयत्।
त्रिशूलं चैव शर्वस्य शिबिकां धनदस्य च॥ ११॥
शक्तिं गुहस्य देवानामन्येषां च यदायुधम्।
तत्सर्वं तेजसा तेन विश्वकर्मा व्यवर्धयत्॥ १२॥

मूलम्

त्वष्टैव तेजसा तेन विष्णोश्चक्रमकल्पयत्।
त्रिशूलं चैव शर्वस्य शिबिकां धनदस्य च॥ ११॥
शक्तिं गुहस्य देवानामन्येषां च यदायुधम्।
तत्सर्वं तेजसा तेन विश्वकर्मा व्यवर्धयत्॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस पृथिवीपर गिरे हुए सूर्य-तेजसे ही विश्वकर्माने विष्णु भगवान‍्का चक्र, शंकरका त्रिशूल, कुबेरका विमान, कार्तिकेयकी शक्ति बनायी तथा अन्य देवताओंके भी जो-जो शस्त्रथे उन्हें उससे पुष्ट किया॥ ११-१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छायासंज्ञासुतो योऽसौ द्वितीयः कथितो मनुः।
पूर्वजस्य सवर्णोऽसौ सावर्णिस्तेन कथ्यते॥ १३॥

मूलम्

छायासंज्ञासुतो योऽसौ द्वितीयः कथितो मनुः।
पूर्वजस्य सवर्णोऽसौ सावर्णिस्तेन कथ्यते॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस छायासंज्ञाके पुत्र दूसरे मनुका ऊपर वर्णन कर चुके हैं वह अपने अग्रज मनुका सवर्ण होनेसे सावर्णि कहलाया॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य मन्वन्तरं ह्येतत्सावर्णिकमथाष्टमम्।
तच्छृणुष्व महाभाग भविष्यत्कथयामि ते॥ १४॥

मूलम्

तस्य मन्वन्तरं ह्येतत्सावर्णिकमथाष्टमम्।
तच्छृणुष्व महाभाग भविष्यत्कथयामि ते॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे महाभाग! सुनो, अब मैं उनके इस सावर्णिकनाम आठवें मन्वन्तरका, जो आगे होनेवाला है, वर्णन करता हूँ॥ १४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सावर्णिस्तु मनुर्योऽसौ मैत्रेय भविता ततः।
सुतपाश्चामिताभाश्च मुख्याश्चापि तथा सुराः॥ १५॥

मूलम्

सावर्णिस्तु मनुर्योऽसौ मैत्रेय भविता ततः।
सुतपाश्चामिताभाश्च मुख्याश्चापि तथा सुराः॥ १५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! यह सावर्णि ही उस समय मनु होंगे तथा सुतप, अमिताभ और मुख्यगण देवता होंगे॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां गणश्च देवानामेकैको विंशकः स्मृतः।
सप्तर्षीनपि वक्ष्यामि भविष्यान्मुनिसत्तम॥ १६॥

मूलम्

तेषां गणश्च देवानामेकैको विंशकः स्मृतः।
सप्तर्षीनपि वक्ष्यामि भविष्यान्मुनिसत्तम॥ १६॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन देवताओंका प्रत्येक गण बीस-बीसका समूह कहा जाता है। हे मुनिसत्तम! अब मैं आगे होनेवाले सप्तर्षि भी बतलाता हूँ॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीप्तिमान‍्गालवो रामः कृपो द्रौणिस्तथा परः।
मत्पुत्रश्च तथा व्यास ऋष्यशृङ्गश्च सप्तमः॥ १७॥

मूलम्

दीप्तिमान‍्गालवो रामः कृपो द्रौणिस्तथा परः।
मत्पुत्रश्च तथा व्यास ऋष्यशृङ्गश्च सप्तमः॥ १७॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय दीप्तिमान्, गालव, राम, कृप, द्रोण-पुत्र अश्वत्थामा, मेरे पुत्र व्यास और सातवें ऋष्यशृंग—ये सप्तर्षि होंगे॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विष्णुप्रसादादनघः पातालान्तरगोचरः।
विरोचनसुतस्तेषां बलिरिन्द्रो भविष्यति॥ १८॥
विरजाश्चोर्वरीवांश्च निर्मोकाद्यास्तथापरे।
सावर्णेस्तु मनोः पुत्रा भविष्यन्ति नरेश्वराः॥ १९॥

मूलम्

विष्णुप्रसादादनघः पातालान्तरगोचरः।
विरोचनसुतस्तेषां बलिरिन्द्रो भविष्यति॥ १८॥
विरजाश्चोर्वरीवांश्च निर्मोकाद्यास्तथापरे।
सावर्णेस्तु मनोः पुत्रा भविष्यन्ति नरेश्वराः॥ १९॥

अनुवाद (हिन्दी)

तथा पाताल-लोकवासी विरोचनके पुत्र बलि श्रीविष्णु भगवान‍्की कृपासे तत्कालीन इन्द्र और सावर्णिमनुके पुत्र विरजा, उर्वरीवान‍् एवं निर्मोक आदि तत्कालीन राजा होंगे॥ १८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नवमो दक्षसावर्णिर्भविष्यति मुने मनुः॥ २०॥
पारा मरीचिगर्भाश्च सुधर्माणस्तथा त्रिधा।
भविष्यन्ति तथा देवा ह्येकैको द्वादशो गणः॥ २१॥
तेषामिन्द्रो महावीर्यो भविष्यत्यद्भुतो द्विज॥ २२॥

मूलम्

नवमो दक्षसावर्णिर्भविष्यति मुने मनुः॥ २०॥
पारा मरीचिगर्भाश्च सुधर्माणस्तथा त्रिधा।
भविष्यन्ति तथा देवा ह्येकैको द्वादशो गणः॥ २१॥
तेषामिन्द्रो महावीर्यो भविष्यत्यद्भुतो द्विज॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुने! नवें मनु दक्षसावर्णि होंगे। उनके समय पार, मरीचिगर्भ और सुधर्मा नामक तीन देववर्ग होंगे, जिनमेंसे प्रत्येक वर्गमें बारह-बारह देवता होंगे; तथा हे द्विज! उनका नायक महापराक्रमी अद्भुत नामक इन्द्र होगा॥ २०—२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सवनो द्युतिमान् भव्यो वसुर्मेधातिथिस्तथा।
ज्योतिष्मान् सप्तमः सत्यस्तत्रैते च महर्षयः॥ २३॥
धृतकेतुर्दीप्तिकेतुः पञ्चहस्तनिरामयौ।
पृथुश्रवाद्याश्च तथा दक्षसावर्णिकात्मजाः॥ २४॥

मूलम्

सवनो द्युतिमान् भव्यो वसुर्मेधातिथिस्तथा।
ज्योतिष्मान् सप्तमः सत्यस्तत्रैते च महर्षयः॥ २३॥
धृतकेतुर्दीप्तिकेतुः पञ्चहस्तनिरामयौ।
पृथुश्रवाद्याश्च तथा दक्षसावर्णिकात्मजाः॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सवन, द्युतिमान्, भव्य, वसु, मेधातिथि, ज्योतिष्मान् और सातवें सत्य—ये उस समयके सप्तर्षि होंगे तथा धृतकेतु, दीप्तिकेतु, पंचहस्त, निरामय और पृथुश्रवा आदि दक्षसावर्णिमनुके पुत्र होंगे॥ २३-२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दशमो ब्रह्मसावर्णिर्भविष्यति मुने मनुः।
सुधामानो विशुद्धाश्च शतसंख्यास्तथा सुराः॥ २५॥

मूलम्

दशमो ब्रह्मसावर्णिर्भविष्यति मुने मनुः।
सुधामानो विशुद्धाश्च शतसंख्यास्तथा सुराः॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुने! दसवें मनु ब्रह्मसावर्णि होंगे। उनके समय सुधामा और विशुद्ध नामक सौ-सौ देवताओंके दो गण होंगे॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषामिन्द्रश्च भविता शान्तिर्नाम महाबलः।
सप्तर्षयो भविष्यन्ति ये तथा ताञ्छृणुष्व ह॥ २६॥

मूलम्

तेषामिन्द्रश्च भविता शान्तिर्नाम महाबलः।
सप्तर्षयो भविष्यन्ति ये तथा ताञ्छृणुष्व ह॥ २६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबलवान‍् शान्ति उनका इन्द्र होगा तथा उस समय जो सप्तर्षिगण होंगे उनके नाम सुनो—॥ २६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हविष्मान‍्सुकृतस्सत्यस्तपोमूर्तिस्तथापरः।
नाभागोऽप्रतिमौजाश्च सत्यकेतुस्तथैव च॥ २७॥

मूलम्

हविष्मान‍्सुकृतस्सत्यस्तपोमूर्तिस्तथापरः।
नाभागोऽप्रतिमौजाश्च सत्यकेतुस्तथैव च॥ २७॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके नाम हविष्मान्, सुकृत, सत्य, तपोमूर्ति, नाभाग, अप्रतिमौजा और सत्यकेतु हैं॥ २७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुक्षेत्रश्चोत्तमौजाश्च भूरिषेणादयो दश।
ब्रह्मसावर्णिपुत्रास्तु रक्षिष्यन्ति वसुन्धराम्॥ २८॥

मूलम्

सुक्षेत्रश्चोत्तमौजाश्च भूरिषेणादयो दश।
ब्रह्मसावर्णिपुत्रास्तु रक्षिष्यन्ति वसुन्धराम्॥ २८॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय ब्रह्मसावर्णिमनुके सुक्षेत्र, उत्तमौजा और भूरिषेण आदि दस पुत्र पृथिवीकी रक्षा करेंगे॥ २८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकादशश्च भविता धर्मसावर्णिको मनुः॥ २९॥
विहङ्गमाः कामगमा निर्वाणरतयस्तथा।
गणास्त्वेते तदा मुख्या देवानां च भविष्यताम्।
एकैकस्त्रिंशकस्तेषां गणश्चेन्द्रश्च वै वृषः॥ ३०॥

मूलम्

एकादशश्च भविता धर्मसावर्णिको मनुः॥ २९॥
विहङ्गमाः कामगमा निर्वाणरतयस्तथा।
गणास्त्वेते तदा मुख्या देवानां च भविष्यताम्।
एकैकस्त्रिंशकस्तेषां गणश्चेन्द्रश्च वै वृषः॥ ३०॥

अनुवाद (हिन्दी)

ग्यारहवाँ मनु धर्मसावर्णि होगा। उस समय होनेवाले देवताओंके विहंगम, कामगम और निर्वाणरति नामक मुख्य गण होंगे—इनमेंसे प्रत्येकमें तीस-तीस देवता रहेंगे और वृष नामक इन्द्र होगा॥ २९-३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निःस्वरश्चाग्नितेजाश्च वपुष्मान्घृणिरारुणिः।
हविष्माननघश्चैव भाव्याः सप्तर्षयस्तथा॥ ३१॥
सर्वत्रगस्सुधर्मा च देवानीकादयस्तथा।
भविष्यन्ति मनोस्तस्य तनयाः पृथिवीश्वराः॥ ३२॥

मूलम्

निःस्वरश्चाग्नितेजाश्च वपुष्मान्घृणिरारुणिः।
हविष्माननघश्चैव भाव्याः सप्तर्षयस्तथा॥ ३१॥
सर्वत्रगस्सुधर्मा च देवानीकादयस्तथा।
भविष्यन्ति मनोस्तस्य तनयाः पृथिवीश्वराः॥ ३२॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय होनेवाले सप्तर्षियोंके नाम निःस्वर, अग्नितेजा, वपुष्मान्, घृणि, आरुणि, हविष्मान् और अनघ हैं। तथा धर्मसावर्णि मनुके सर्वत्रग, सुधर्मा और देवानीक आदि पुत्र उस समयके राज्याधिकारी पृथिवीपति होंगे॥ ३१-३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुद्रपुत्रस्तु सावर्णिर्भविता द्वादशो मनुः।
ऋतुधामा च तत्रेन्द्रो भविता शृणु मे सुरान्॥ ३३॥

मूलम्

रुद्रपुत्रस्तु सावर्णिर्भविता द्वादशो मनुः।
ऋतुधामा च तत्रेन्द्रो भविता शृणु मे सुरान्॥ ३३॥

अनुवाद (हिन्दी)

रुद्रपुत्र सावर्णि बारहवाँ मनु होगा। उसके समय ऋतुधामा नामक इन्द्र होगा तथा तत्कालीन देवताओंके नाम ये हैं सुनो—॥ ३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हरिता रोहिता देवास्तथा सुमनसो द्विज।
सुकर्माणः सुरापाश्च दशकाः पञ्च वै गणाः॥ ३४॥

मूलम्

हरिता रोहिता देवास्तथा सुमनसो द्विज।
सुकर्माणः सुरापाश्च दशकाः पञ्च वै गणाः॥ ३४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विज! उस समय दस-दस देवताओंके हरित, रोहित, सुमना, सुकर्मा और सुराप नामक पाँच गण होंगे॥ ३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तपस्वी सुतपाश्चैव तपोमूर्तिस्तपोरतिः।
तपोधृतिर्द्युतिश्चान्यः सप्तमस्तु तपोधनः।
सप्तर्षयस्त्विमे तस्य पुत्रानपि निबोध मे॥ ३५॥

मूलम्

तपस्वी सुतपाश्चैव तपोमूर्तिस्तपोरतिः।
तपोधृतिर्द्युतिश्चान्यः सप्तमस्तु तपोधनः।
सप्तर्षयस्त्विमे तस्य पुत्रानपि निबोध मे॥ ३५॥

अनुवाद (हिन्दी)

तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोरति, तपोधृति, तपोद्युति तथा तपोधन—ये सात सप्तर्षि होंगे। अब मनुपुत्रोंके नाम सुनो—॥ ३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देववानुपदेवश्च देवश्रेष्ठादयस्तथा।
मनोस्तस्य महावीर्या भविष्यन्ति महानृपाः॥ ३६॥

मूलम्

देववानुपदेवश्च देवश्रेष्ठादयस्तथा।
मनोस्तस्य महावीर्या भविष्यन्ति महानृपाः॥ ३६॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उस मनुके देववान‍्, उपदेव और देवश्रेष्ठ आदि महावीर्यशाली पुत्र तत्कालीन सम्राट् होंगे॥ ३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रयोदशो रुचिर्नामा भविष्यति मुने मनुः॥ ३७॥
सुत्रामाणः सुकर्माणः सुधर्माणस्तथामराः।
त्रयस्त्रिंशद्विभेदास्ते देवानां यत्र वै गणाः॥ ३८॥
दिवस्पतिर्महावीर्यस्तेषामिन्द्रो भविष्यति॥ ३९॥

मूलम्

त्रयोदशो रुचिर्नामा भविष्यति मुने मनुः॥ ३७॥
सुत्रामाणः सुकर्माणः सुधर्माणस्तथामराः।
त्रयस्त्रिंशद्विभेदास्ते देवानां यत्र वै गणाः॥ ३८॥
दिवस्पतिर्महावीर्यस्तेषामिन्द्रो भविष्यति॥ ३९॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुने! तेरहवाँ रुचि नामक मनु होगा। इस मन्वन्तरमें सुत्रामा, सुकर्मा और सुधर्मा नामक देवगण होंगे इनमेंसे प्रत्येकमें तैंतीस-तैंतीस देवता रहेंगे; तथा महाबलवान‍् दिवस्पति उनका इन्द्र होगा॥ ३७—३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्मोहस्तत्त्वदर्शी च निष्प्रकम्प्यो निरुत्सुकः।
धृतिमानव्ययश्चान्यस्सप्तमस्सुतपा मुनिः।
सप्तर्षयस्त्वमी तस्य पुत्रानपि निबोध मे॥ ४०॥

मूलम्

निर्मोहस्तत्त्वदर्शी च निष्प्रकम्प्यो निरुत्सुकः।
धृतिमानव्ययश्चान्यस्सप्तमस्सुतपा मुनिः।
सप्तर्षयस्त्वमी तस्य पुत्रानपि निबोध मे॥ ४०॥

अनुवाद (हिन्दी)

निर्मोह, तत्त्वदर्शी, निष्प्रकम्प, निरुत्सुक, धृतिमान्, अव्यय और सुतपा—ये तत्कालीन सप्तर्षि होंगे। अब मनुपुत्रोंके नाम भी सुनो॥ ४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रसेनविचित्राद्या भविष्यन्ति महीक्षितः॥ ४१॥

मूलम्

चित्रसेनविचित्राद्या भविष्यन्ति महीक्षितः॥ ४१॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस मन्वन्तरमें चित्रसेन और विचित्र आदि मनुपुत्र राजा होंगे॥ ४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भौमश्चतुर्दशश्चात्र मैत्रेय भविता मनुः।
शुचिरिन्द्रः सुरगणास्तत्र पञ्च शृणुष्व तान्॥ ४२॥
चाक्षुषाश्च पवित्राश्च कनिष्ठा भ्राजिकास्तथा।
वाचावृद्धाश्च वै देवास्सप्तर्षीनपि मे शृणु॥ ४३॥

मूलम्

भौमश्चतुर्दशश्चात्र मैत्रेय भविता मनुः।
शुचिरिन्द्रः सुरगणास्तत्र पञ्च शृणुष्व तान्॥ ४२॥
चाक्षुषाश्च पवित्राश्च कनिष्ठा भ्राजिकास्तथा।
वाचावृद्धाश्च वै देवास्सप्तर्षीनपि मे शृणु॥ ४३॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! चौदहवाँ मनु भौम होगा। उस समय शुचि नामक इन्द्र और पाँच देवगण होंगे; उनके नाम सुनो—वे चाक्षुष, पवित्र, कनिष्ठ, भ्राजिक और वाचावृद्ध नामक देवता हैं। अब तत्कालीन सप्तर्षियोंके नाम भी सुनो॥ ४२-४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्निबाहुः शुचिः शुक्रो मागधोऽग्निध्र एव च।
युक्तस्तथा जितश्चान्यो मनुपुत्रानतः शृणु॥ ४४॥

मूलम्

अग्निबाहुः शुचिः शुक्रो मागधोऽग्निध्र एव च।
युक्तस्तथा जितश्चान्यो मनुपुत्रानतः शृणु॥ ४४॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय अग्निबाहु, शुचि, शुक्र, मागध, अग्निध्र, युक्त और जित—ये सप्तर्षि होंगे। अब मनुपुत्रोंके विषयमें सुनो॥ ४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऊरुगम्भीरबुद्ध्याद्या मनोस्तस्य सुता नृपाः।
कथिता मुनिशार्दूल पालयिष्यन्ति ये महीम्॥ ४५॥

मूलम्

ऊरुगम्भीरबुद्ध्याद्या मनोस्तस्य सुता नृपाः।
कथिता मुनिशार्दूल पालयिष्यन्ति ये महीम्॥ ४५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनिशार्दूल! कहते हैं, उस मनुके ऊरु और गम्भीरबुद्धि आदि पुत्र होंगे जो राज्याधिकारी होकर पृथिवीका पालन करेंगे॥ ४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्युगान्ते वेदानां जायते किल विप्लवः।
प्रवर्तयन्ति तानेत्य भुवं सप्तर्षयो दिवः॥ ४६॥

मूलम्

चतुर्युगान्ते वेदानां जायते किल विप्लवः।
प्रवर्तयन्ति तानेत्य भुवं सप्तर्षयो दिवः॥ ४६॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रत्येक चतुर्युगके अन्तमें वेदोंका लोप हो जाता है, उस समय सप्तर्षिगण ही स्वर्गलोकसे पृथिवीमें अवतीर्ण होकर उनका प्रचार करते हैं॥ ४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृते कृते स्मृतेर्विप्र प्रणेता जायते मनुः।
देवा यज्ञभुजस्ते तु यावन्मन्वन्तरं तु तत्॥ ४७॥
भवन्ति ये मनोः पुत्रा यावन्मन्वन्तरं तु तैः।
तदन्वयोद्भवैश्चैव तावद्भूः परिपाल्यते॥ ४८॥

मूलम्

कृते कृते स्मृतेर्विप्र प्रणेता जायते मनुः।
देवा यज्ञभुजस्ते तु यावन्मन्वन्तरं तु तत्॥ ४७॥
भवन्ति ये मनोः पुत्रा यावन्मन्वन्तरं तु तैः।
तदन्वयोद्भवैश्चैव तावद्भूः परिपाल्यते॥ ४८॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रत्येक सत्ययुगके आदिमें [ मनुष्योंकी धर्म-मर्यादा स्थापित करनेके लिये] स्मृति-शास्त्रके रचयिता मनुका प्रादुर्भाव होता है; और उस मन्वन्तरके अन्त-पर्यन्त तत्कालीन देवगण यज्ञ-भागोंको भोगते हैं तथा मनुके पुत्र और उनके वंशधर मन्वन्तरके अन्ततक पृथिवीका पालन करते रहते हैं॥ ४७-४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मनुस्सप्तर्षयो देवा भूपालाश्च मनोः सुताः।
मन्वन्तरे भवन्त्येते शक्रश्चैवाधिकारिणः॥ ४९॥

मूलम्

मनुस्सप्तर्षयो देवा भूपालाश्च मनोः सुताः।
मन्वन्तरे भवन्त्येते शक्रश्चैवाधिकारिणः॥ ४९॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार मनु सप्तर्षि, देवता, इन्द्र तथा मनु-पुत्र राजागण—ये प्रत्येक मन्वन्तरके अधिकारी होते हैं॥ ४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्दशभिरेतैस्तु गतैर्मन्वन्तरैर्द्विज।
सहस्रयुगपर्यन्तः कल्पो निश्शेष उच्यते॥ ५०॥

मूलम्

चतुर्दशभिरेतैस्तु गतैर्मन्वन्तरैर्द्विज।
सहस्रयुगपर्यन्तः कल्पो निश्शेष उच्यते॥ ५०॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विज! इन चौदह मन्वन्तरोंके बीत जानेपर एक सहस्र युग रहनेवाला कल्प समाप्त हुआ कहा जाता है॥ ५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावत्प्रमाणा च निशा ततो भवति सत्तम।
ब्रह्मरूपधरश्शेते शेषाहावम्बुसम्प्लवे॥ ५१॥

मूलम्

तावत्प्रमाणा च निशा ततो भवति सत्तम।
ब्रह्मरूपधरश्शेते शेषाहावम्बुसम्प्लवे॥ ५१॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे साधुश्रेष्ठ! फिर इतने ही समयकी रात्रि होती है। उस समय ब्रह्मरूपधारी श्रीविष्णु भगवान‍् प्रलयकालीन जलके ऊपर शेष-शय्यापर शयन करते हैं॥ ५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रैलोक्यमखिलं ग्रस्त्वा भगवानादिकृद्विभुः।
स्वमायासंस्थितो विप्र सर्वभूतो जनार्दनः॥ ५२॥

मूलम्

त्रैलोक्यमखिलं ग्रस्त्वा भगवानादिकृद्विभुः।
स्वमायासंस्थितो विप्र सर्वभूतो जनार्दनः॥ ५२॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे विप्र! तब आदिकर्ता सर्वव्यापक सर्वभूत भगवान‍् जनार्दन सम्पूर्ण त्रिलोकीका ग्रास कर अपनी मायामें स्थित रहते हैं॥ ५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रबुद्धो भगवान‍् यथा पूर्वं तथा पुनः।
सृष्टिं करोत्यव्ययात्मा कल्पे कल्पे रजोगुणः॥ ५३॥

मूलम्

ततः प्रबुद्धो भगवान‍् यथा पूर्वं तथा पुनः।
सृष्टिं करोत्यव्ययात्मा कल्पे कल्पे रजोगुणः॥ ५३॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर [प्रलय-रात्रिका अन्त होनेपर] प्रत्येक कल्पके आदिमें अव्ययात्मा भगवान‍् जाग्रत् होकर रजोगुणका आश्रय कर सृष्टिकी रचना करते हैं॥ ५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मनवो भूभुजस्सेन्द्रा देवास्सप्तर्षयस्तथा।
सात्त्विकोंऽशः स्थितिकरो जगतो द्विजसत्तम॥ ५४॥

मूलम्

मनवो भूभुजस्सेन्द्रा देवास्सप्तर्षयस्तथा।
सात्त्विकोंऽशः स्थितिकरो जगतो द्विजसत्तम॥ ५४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विजश्रेष्ठ! मनु, मनु-पुत्र राजागण, इन्द्र देवता तथा सप्तर्षि—ये सब जगत‍्का पालन करनेवाले भगवान‍्के सात्त्विक अंश हैं॥ ५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्युगेऽप्यसौ विष्णुः स्थितिव्यापारलक्षणः।
युगव्यवस्थां कुरुते यथा मैत्रेय तच्छृणु॥ ५५॥

मूलम्

चतुर्युगेऽप्यसौ विष्णुः स्थितिव्यापारलक्षणः।
युगव्यवस्थां कुरुते यथा मैत्रेय तच्छृणु॥ ५५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मैत्रेय! स्थितिकारक भगवान‍् विष्णु चारों युगोंमें जिस प्रकार व्यवस्था करते हैं, सो सुनो—॥ ५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृते युगे परं ज्ञानं कपिलादिस्वरूपधृक्।
ददाति सर्वभूतात्मा सर्वभूतहिते रतः॥ ५६॥

मूलम्

कृते युगे परं ज्ञानं कपिलादिस्वरूपधृक्।
ददाति सर्वभूतात्मा सर्वभूतहिते रतः॥ ५६॥

अनुवाद (हिन्दी)

समस्त प्राणियोंके कल्याणमें तत्पर वे सर्वभूतात्मा सत्ययुगमें कपिल आदिरूप धारणकर परम ज्ञानका उपदेश करते हैं॥ ५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चक्रवर्त्तिस्वरूपेण त्रेतायामपि स प्रभुः।
दुष्टानां निग्रहं कुर्वन्परिपाति जगत्त्रयम्॥ ५७॥

मूलम्

चक्रवर्त्तिस्वरूपेण त्रेतायामपि स प्रभुः।
दुष्टानां निग्रहं कुर्वन्परिपाति जगत्त्रयम्॥ ५७॥

अनुवाद (हिन्दी)

त्रेतायुगमें वे सर्वसमर्थ प्रभु चक्रवर्ती भूपाल होकर दुष्टोंका दमन करके त्रिलोकीकी रक्षा करते हैं॥ ५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेदमेकं चतुर्भेदं कृत्वा शाखाशतैर्विभुः।
करोति बहुलं भूयो वेदव्यासस्वरूपधृक्॥ ५८॥

मूलम्

वेदमेकं चतुर्भेदं कृत्वा शाखाशतैर्विभुः।
करोति बहुलं भूयो वेदव्यासस्वरूपधृक्॥ ५८॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर द्वापरयुगमें वे वेदव्यासरूप धारणकर एक वेदके चार विभाग करते हैं और सैकड़ों शाखाओंमें बाँटकर उसका बहुत विस्तार कर देते हैं॥ ५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेदांस्तु द्वापरे व्यस्य कलेरन्ते पुनर्हरिः।
कल्किस्वरूपी दुर्वृत्तान्मार्गे स्थापयति प्रभुः॥ ५९॥

मूलम्

वेदांस्तु द्वापरे व्यस्य कलेरन्ते पुनर्हरिः।
कल्किस्वरूपी दुर्वृत्तान्मार्गे स्थापयति प्रभुः॥ ५९॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार द्वापरमें वेदोंका विस्तार कर कलियुगके अन्तमें भगवान‍् कल्किरूप धारणकर दुराचारी लोगोंको सन्मार्गमें प्रवृत्त करते हैं॥ ५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेतज्जगत्सर्वं शश्वत्पाति करोति च।
हन्ति चान्तेष्वनन्तात्मा नास्त्यस्माद्‍व्यतिरेकि यत्॥ ६०॥

मूलम्

एवमेतज्जगत्सर्वं शश्वत्पाति करोति च।
हन्ति चान्तेष्वनन्तात्मा नास्त्यस्माद्‍व्यतिरेकि यत्॥ ६०॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार अनन्तात्मा प्रभु निरन्तर इस सम्पूर्ण जगत‍्के उत्पत्ति, पालन और नाश करते रहते हैं। इस संसारमें ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो उनसे भिन्न हो॥ ६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वभूतान्महात्मनः।
तदत्रान्यत्र वा विप्र सद्भावः कथितस्तव॥ ६१॥

मूलम्

भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वभूतान्महात्मनः।
तदत्रान्यत्र वा विप्र सद्भावः कथितस्तव॥ ६१॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे विप्र! इहलोक और परलोकमें भूत, भविष्यत् और वर्तमान जितने भी पदार्थ हैं वे सब महात्मा भगवान‍् विष्णुसे ही उत्पन्न हुए हैं—यह सब मैं तुमसे कह चुका हूँ॥ ६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मन्वन्तराण्यशेषाणि कथितानि मया तव।
मन्वन्तराधिपांश्चैव किमन्यत्कथयामि ते॥ ६२॥

मूलम्

मन्वन्तराण्यशेषाणि कथितानि मया तव।
मन्वन्तराधिपांश्चैव किमन्यत्कथयामि ते॥ ६२॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैंने तुमसे सम्पूर्ण मन्वन्तरों और मन्वन्तराधिकारियोंका वर्णन कर दिया। कहो, अब और क्या सुनाऊँ?॥ ६२॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीविष्णुपुराणे तृतीयेंऽशे द्वितीयोऽध्यायः॥ २॥