[दसवाँ अध्याय]
विषय
भृगु, अग्नि और अग्निष्वात्तादि पितरोंकी सन्तानका वर्णन
मूलम् (वचनम्)
श्रीमैत्रेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथितं मे त्वया सर्वं यत्पृष्टोऽसि मया मुने।
भृगुसर्गात्प्रभृत्येष सर्गो मे कथ्यतां पुनः॥ १॥
मूलम्
कथितं मे त्वया सर्वं यत्पृष्टोऽसि मया मुने।
भृगुसर्गात्प्रभृत्येष सर्गो मे कथ्यतां पुनः॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमैत्रेयजी बोले—हे मुने! मैंने आपसे जो कुछ पूछा था वह सब आपने वर्णन किया; अब भृगुजीकी सन्तानसे लेकर सम्पूर्ण सृष्टिका आप मुझसे फिर वर्णन कीजिये॥ १॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्ना लक्ष्मीर्विष्णुपरिग्रहः।
तथा धातृविधातारौ ख्यात्यां जातौ सुतौ भृगोः॥ २॥
मूलम्
भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्ना लक्ष्मीर्विष्णुपरिग्रहः।
तथा धातृविधातारौ ख्यात्यां जातौ सुतौ भृगोः॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—भृगुजीके द्वारा ख्यातिसे विष्णुपत्नी लक्ष्मीजी और धाता, विधाता नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आयतिर्नियतिश्चैव मेरोः कन्ये महात्मनः।
भार्ये धातृविधात्रोस्ते तयोर्जातौ सुतावुभौ॥ ३॥
प्राणश्चैव मृकण्डुश्च मार्कण्डेयो मृकण्डुतः।
ततो वेदशिरा जज्ञे प्राणस्यापि सुतं शृणु॥ ४॥
मूलम्
आयतिर्नियतिश्चैव मेरोः कन्ये महात्मनः।
भार्ये धातृविधात्रोस्ते तयोर्जातौ सुतावुभौ॥ ३॥
प्राणश्चैव मृकण्डुश्च मार्कण्डेयो मृकण्डुतः।
ततो वेदशिरा जज्ञे प्राणस्यापि सुतं शृणु॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
महात्मा मेरुकी आयति और नियति-नाम्नी कन्याएँ धाता और विधाताकी स्त्रियाँ थीं; उनसे उनके प्राण और मृकण्डु नामक दो पुत्र हुए। मृकण्डुसे माकर्ण्डेय और उनसे वेदशिराका जन्म हुआ। अब प्राणकी सन्तानका वर्णन सुनो॥ ३-४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राणस्य द्युतिमान्पुत्रो राजवांश्च ततोऽभवत्।
ततो वंशो महाभाग विस्तरं भार्गवो गतः॥ ५॥
मूलम्
प्राणस्य द्युतिमान्पुत्रो राजवांश्च ततोऽभवत्।
ततो वंशो महाभाग विस्तरं भार्गवो गतः॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्राणका पुत्र द्युतिमान् और उसका पुत्र राजवान् हुआ। हे महाभाग! उस राजवान् से फिर भृगुवंशका बड़ा विस्तार हुआ॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पत्नी मरीचेः सम्भूतिः पौर्णमासमसूयत।
विरजाः पर्वतश्चैव तस्य पुत्रौ महात्मनः॥ ६॥
मूलम्
पत्नी मरीचेः सम्भूतिः पौर्णमासमसूयत।
विरजाः पर्वतश्चैव तस्य पुत्रौ महात्मनः॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
मरीचिकी पत्नी सम्भूतिने पौर्णमासको उत्पन्न किया। उस महात्माके विरजा और पर्वत दो पुत्र थे॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वंशसंकीर्तने पुत्रान्वदिष्येऽहं ततो द्विज।
स्मृतिश्चाङ्गिरसः पत्नी प्रसूता कन्यकास्तथा।
सिनीवाली कुहूश्चैव राका चानुमतिस्तथा॥ ७॥
मूलम्
वंशसंकीर्तने पुत्रान्वदिष्येऽहं ततो द्विज।
स्मृतिश्चाङ्गिरसः पत्नी प्रसूता कन्यकास्तथा।
सिनीवाली कुहूश्चैव राका चानुमतिस्तथा॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! उनके वंशका वर्णन करते समय मैं उन दोनोंकी सन्तानका वर्णन करूँगा। अंगिराकी पत्नी स्मृति थी, उसके सिनीवाली, कुहू, राका और अनुमति नामकी कन्याएँ हुईं॥ ७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनसूया तथैवात्रेर्जज्ञे निष्कल्मषान्सुतान्।
सोमं दुर्वाससं चैव दत्तात्रेयं च योगिनम्॥ ८॥
मूलम्
अनसूया तथैवात्रेर्जज्ञे निष्कल्मषान्सुतान्।
सोमं दुर्वाससं चैव दत्तात्रेयं च योगिनम्॥ ८॥
अनुवाद (हिन्दी)
अत्रिकी भार्या अनसूयाने चन्द्रमा, दुर्वासा और योगी दत्तात्रेय—इन निष्पाप पुत्रोंको जन्म दिया॥ ८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रीत्यां पुलस्त्यभार्यायां दत्तोलिस्तत्सुतोऽभवत्।
पूर्वजन्मनि योऽगस्त्यः स्मृतः स्वायम्भुवेऽन्तरे॥ ९॥
मूलम्
प्रीत्यां पुलस्त्यभार्यायां दत्तोलिस्तत्सुतोऽभवत्।
पूर्वजन्मनि योऽगस्त्यः स्मृतः स्वायम्भुवेऽन्तरे॥ ९॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुलस्त्यकी स्त्री प्रीतिसे दत्तोलिका जन्म हुआ जो अपने पूर्व जन्ममें स्वायम्भुव मन्वन्तरमें अगस्त्य कहा जाता था॥ ९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कर्दमश्चोर्वरीयांश्च सहिष्णुश्च सुतास्त्रयः।
क्षमा तु सुषुवे भार्या पुलहस्य प्रजापतेः॥ १०॥
मूलम्
कर्दमश्चोर्वरीयांश्च सहिष्णुश्च सुतास्त्रयः।
क्षमा तु सुषुवे भार्या पुलहस्य प्रजापतेः॥ १०॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजापति पुलहकी पत्नी क्षमासे कर्दम, उर्वरीयान् और सहिष्णु ये तीन पुत्र हुए॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्रतोश्च सन्ततिर्भार्या वालखिल्यानसूयत।
षष्टिपुत्रसहस्राणि मुनीनामूर्ध्वरेतसाम्।
अङ्गुष्ठपर्वमात्राणां ज्वलद्भास्करतेजसाम्॥ ११॥
मूलम्
क्रतोश्च सन्ततिर्भार्या वालखिल्यानसूयत।
षष्टिपुत्रसहस्राणि मुनीनामूर्ध्वरेतसाम्।
अङ्गुष्ठपर्वमात्राणां ज्वलद्भास्करतेजसाम्॥ ११॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रतुकी सन्तति नामक भार्याने अँगूठेके पोरुओंके समान शरीरवाले तथा प्रखर सूर्यके समान तेजस्वी वालखिल्यादि साठ हजार ऊर्ध्वरेता मुनियोंको जन्म दिया॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऊर्जायां तु वसिष्ठस्य सप्ताजायन्त वै सुताः॥ १२॥
रजो गोत्रोर्द्ध्वबाहुश्च सवनश्चानघस्तथा।
सुतपाः शुक्र इत्येते सर्वे सप्तर्षयोऽमलाः॥ १३॥
मूलम्
ऊर्जायां तु वसिष्ठस्य सप्ताजायन्त वै सुताः॥ १२॥
रजो गोत्रोर्द्ध्वबाहुश्च सवनश्चानघस्तथा।
सुतपाः शुक्र इत्येते सर्वे सप्तर्षयोऽमलाः॥ १३॥
अनुवाद (हिन्दी)
वसिष्ठकी ऊर्जा नामक स्त्रीसे रज, गोत्र, ऊर्ध्वबाहु, सवन, अनघ, सुतपा और शुक्र ये सात पुत्र उत्पन्न हुए। ये निर्मल स्वभाववाले समस्त मुनिगण [तीसरे मन्वन्तरमें] सप्तर्षि हुए॥ १२-१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
योऽसावग्न्यभिमानी स्याद् ब्रह्मणस्तनयोऽग्रजः।
तस्मात्स्वाहा सुताँल्लेभे त्रीनुदारौजसो द्विज॥ १४॥
पावकं पवमानं तु शुचिं चापि जलाशिनम्॥ १५॥
मूलम्
योऽसावग्न्यभिमानी स्याद् ब्रह्मणस्तनयोऽग्रजः।
तस्मात्स्वाहा सुताँल्लेभे त्रीनुदारौजसो द्विज॥ १४॥
पावकं पवमानं तु शुचिं चापि जलाशिनम्॥ १५॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! अग्निका अभिमानी देव, जो ब्रह्माजीका ज्येष्ठ पुत्र है, उसके द्वारा स्वाहा नामक पत्नीसे अति तेजस्वी पावक, पवमान और जलको भक्षण करनेवाला शुचि—ये तीन पुत्र हुए॥ १४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां तु सन्ततावन्ये चत्वारिंशच्च पञ्च च।
कथ्यन्ते वह्नयश्चैते पितापुत्रत्रयं च यत्॥ १६॥
एवमेकोनपञ्चाशद्वह्नयः परिकीर्तिताः॥ १७॥
मूलम्
तेषां तु सन्ततावन्ये चत्वारिंशच्च पञ्च च।
कथ्यन्ते वह्नयश्चैते पितापुत्रत्रयं च यत्॥ १६॥
एवमेकोनपञ्चाशद्वह्नयः परिकीर्तिताः॥ १७॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन तीनोंके [प्रत्येकके पन्द्रह-पन्द्रह पुत्रके क्रमसे] पैंतालीस सन्तानें हुईं। पिता अग्नि और उसके तीन पुत्रोंको मिलाकर ये सब अग्नि ही कहलाते हैं। इस प्रकार कुल उनचास (४९) अग्नि कहे गये हैं॥ १६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितरो ब्रह्मणा सृष्टा व्याख्याता ये मया द्विज।
अग्निष्वात्ता बर्हिषदोऽनग्नयः साग्नयश्च ये॥ १८॥
तेभ्यः स्वधा सुते जज्ञे मेनां वै धारिणीं तथा।
ते उभे ब्रह्मवादिन्यौ योगिन्यावप्युभे द्विज॥ १९॥
उत्तमज्ञानसम्पन्ने सर्वैः समुदितैर्गुणैः॥ २०॥
मूलम्
पितरो ब्रह्मणा सृष्टा व्याख्याता ये मया द्विज।
अग्निष्वात्ता बर्हिषदोऽनग्नयः साग्नयश्च ये॥ १८॥
तेभ्यः स्वधा सुते जज्ञे मेनां वै धारिणीं तथा।
ते उभे ब्रह्मवादिन्यौ योगिन्यावप्युभे द्विज॥ १९॥
उत्तमज्ञानसम्पन्ने सर्वैः समुदितैर्गुणैः॥ २०॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! ब्रह्माजीद्वारा रचे गये जिन अनग्निक अग्निष्वात्ता और साग्निक बर्हिषद् आदि पितरोंके विषयमें तुमसे कहा था। उनके द्वारा स्वधाने मेना और धारिणी नामक दो कन्याएँ उत्पन्न कीं। वे दोनों ही उत्तम ज्ञानसे सम्पन्न और सभी गुणोंसे युक्त ब्रह्मवादिनी तथा योगिनी थीं॥ १८—२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येषा दक्षकन्यानां कथितापत्यसन्ततिः।
श्रद्धावान्संस्मरन्नेतामनपत्यो न जायते॥ २१॥
मूलम्
इत्येषा दक्षकन्यानां कथितापत्यसन्ततिः।
श्रद्धावान्संस्मरन्नेतामनपत्यो न जायते॥ २१॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार यह दक्षकन्याओंकी वंशपरम्पराका वर्णन किया। जो कोई श्रद्धापूर्वक इसका स्मरण करता है वह निःसन्तान नहीं रहता॥ २१॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे दशमोऽध्यायः॥ १०॥