[आठवाँ अध्याय]
विषय
रौद्र-सृष्टि और भगवान् तथा लक्ष्मीजीकी सर्वव्यापकताका वर्णन
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथितस्तामसः सर्गो ब्रह्मणस्ते महामुने ।
रुद्रसर्गं प्रवक्ष्यामि तन्मे निगदतः शृणु॥ १॥
मूलम्
कथितस्तामसः सर्गो ब्रह्मणस्ते महामुने ।
रुद्रसर्गं प्रवक्ष्यामि तन्मे निगदतः शृणु॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—हे महामुने! मैंने तुमसे ब्रह्माजीके तामस-सर्गका वर्णन किया, अब मैं रुद्र-सर्गका वर्णन करता हूँ, सो सुनो॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कल्पादावात्मनस्तुल्यं सुतं प्रध्यायतस्ततः ।
प्रादुरासीत्प्रभोरङ्के कुमारो नीललोहितः॥ २॥
मूलम्
कल्पादावात्मनस्तुल्यं सुतं प्रध्यायतस्ततः ।
प्रादुरासीत्प्रभोरङ्के कुमारो नीललोहितः॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
कल्पके आदिमें अपने समान पुत्र उत्पन्न होनेके लिये चिन्तन करते हुए ब्रह्माजीकी गोदमें नीललोहित वर्णके एक कुमारका प्रादुर्भाव हुआ॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रुरोद सुस्वरं सोऽथ प्राद्रवद्द्विजसत्तम ।
किं त्वं रोदिषि तं ब्रह्मा रुदन्तं प्रत्युवाच ह॥ ३॥
मूलम्
रुरोद सुस्वरं सोऽथ प्राद्रवद्द्विजसत्तम ।
किं त्वं रोदिषि तं ब्रह्मा रुदन्तं प्रत्युवाच ह॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजोत्तम! जन्मके अनन्तर ही वह जोर-जोरसे रोने और इधर-उधर दौड़ने लगा । उसे रोता देख ब्रह्माजीने उससे पूछा—‘‘तू क्यों रोता है?’’॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाम देहीति तं सोऽथ प्रत्युवाच प्रजापतिः ।
रुद्रस्त्वं देव नाम्नासि मा रोदीर्धैर्यमावह ।
एवमुक्तः पुनः सोऽथ सप्तकृत्वो रुरोद वै॥ ४॥
मूलम्
नाम देहीति तं सोऽथ प्रत्युवाच प्रजापतिः ।
रुद्रस्त्वं देव नाम्नासि मा रोदीर्धैर्यमावह ।
एवमुक्तः पुनः सोऽथ सप्तकृत्वो रुरोद वै॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने कहा—‘‘मेरा नाम रखो ।’’ तब ब्रह्माजी बोले—‘हे देव! तेरा नाम रुद्र है, अब तू मत रो, धैर्य धारण कर ।’ ऐसा कहनेपर भी वह सात बार और रोया॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽन्यानि ददौ तस्मै सप्त नामानि वै प्रभुः ।
स्थानानि चैषामष्टानां पत्नीः पुत्रांश्च स प्रभुः॥ ५॥
मूलम्
ततोऽन्यानि ददौ तस्मै सप्त नामानि वै प्रभुः ।
स्थानानि चैषामष्टानां पत्नीः पुत्रांश्च स प्रभुः॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भगवान् ब्रह्माजीने उसके सात नाम और रखे; तथा उन आठोंके स्थान, स्त्री और पुत्र भी निश्चित किये॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवं शर्वमथेशानं तथा पशुपतिं द्विज ।
भीममुग्रं महादेवमुवाच स पितामहः॥ ६॥
मूलम्
भवं शर्वमथेशानं तथा पशुपतिं द्विज ।
भीममुग्रं महादेवमुवाच स पितामहः॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विज! प्रजापतिने उसे भव, शर्व, ईशान, पशुपति, भीम, उग्र और महादेव कहकर सम्बोधन किया॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्रे नामान्यथैतानि स्थानान्येषां चकार सः ।
सूर्यो जलं मही वायुर्वह्निराकाशमेव च ।
दीक्षितो ब्राह्मणः सोम इत्येतास्तनवः क्रमात्॥ ७॥
मूलम्
चक्रे नामान्यथैतानि स्थानान्येषां चकार सः ।
सूर्यो जलं मही वायुर्वह्निराकाशमेव च ।
दीक्षितो ब्राह्मणः सोम इत्येतास्तनवः क्रमात्॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
यही उसके नाम रखे और इनके स्थान भी निश्चित किये । सूर्य, जल, पृथिवी, वायु, अग्नि, आकाश, [यज्ञमें] दीक्षित ब्राह्मण और चन्द्रमा—ये क्रमशः उनकी मूर्तियाँ हैं॥ ७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुवर्चला तथैवोषा विकेशी चापरा शिवा ।
स्वाहा दिशस्तथा दीक्षा रोहिणी च यथाक्रमम्॥ ८॥
सूर्यादीनां द्विजश्रेष्ठ रुद्राद्यैर्नामभिः सह ।
पत्न्यः स्मृता महाभाग तदपत्यानि मे शृणु॥ ९॥
एषां सूतिप्रसूतिभ्यामिदमापूरितं जगत्॥ १०॥
मूलम्
सुवर्चला तथैवोषा विकेशी चापरा शिवा ।
स्वाहा दिशस्तथा दीक्षा रोहिणी च यथाक्रमम्॥ ८॥
सूर्यादीनां द्विजश्रेष्ठ रुद्राद्यैर्नामभिः सह ।
पत्न्यः स्मृता महाभाग तदपत्यानि मे शृणु॥ ९॥
एषां सूतिप्रसूतिभ्यामिदमापूरितं जगत्॥ १०॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजश्रेष्ठ! रुद्र आदि नामोंके साथ उन सूर्य आदि मूर्तियोंकी क्रमशः सुवर्चला, ऊषा, विकेशी, अपरा, शिवा, स्वाहा, दिशा, दीक्षा और रोहिणी नामकी पत्नियाँ हैं । हे महाभाग! अब उनके पुत्रोंके नाम सुनो; उन्हींके पुत्र-पौत्रादिकोंसे यह सम्पूर्ण जगत् परिपूर्ण है॥ ८—१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शनैश्चरस्तथा शुक्रो लोहिताङ्गो मनोजवः ।
स्कन्दः सर्गोऽथ सन्तानो बुधश्चानुक्रमात्सुताः॥ ११॥
मूलम्
शनैश्चरस्तथा शुक्रो लोहिताङ्गो मनोजवः ।
स्कन्दः सर्गोऽथ सन्तानो बुधश्चानुक्रमात्सुताः॥ ११॥
अनुवाद (हिन्दी)
शनैश्चर, शुक्र, लोहितांग, मनोजव, स्कन्द, सर्ग, सन्तान और बुध—ये क्रमशः उनके पुत्र हैं॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवंप्रकारो रुद्रोऽसौ सतीं भार्यामनिन्दिताम् ।
उपयेमे दुहितरं दक्षस्यैव प्रजापतेः॥ १२॥
मूलम्
एवंप्रकारो रुद्रोऽसौ सतीं भार्यामनिन्दिताम् ।
उपयेमे दुहितरं दक्षस्यैव प्रजापतेः॥ १२॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसे भगवान्रुद्रने प्रजापति दक्षकी अनिन्दिता पुत्री सतीको अपनी भार्यारूपसे ग्रहण किया॥ १२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दक्षकोपाच्च तत्याज सा सती स्वकलेवरम् ।
हिमवद्दुहिता साऽभून्मेनायां द्विजसत्तम॥ १३॥
उपयेमे पुनश्चोमामनन्यां भगवान्हरः॥ १४॥
मूलम्
दक्षकोपाच्च तत्याज सा सती स्वकलेवरम् ।
हिमवद्दुहिता साऽभून्मेनायां द्विजसत्तम॥ १३॥
उपयेमे पुनश्चोमामनन्यां भगवान्हरः॥ १४॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजसत्तम! उस सतीने दक्षपर कुपित होनेके कारण अपना शरीर त्याग दिया था । फिर वह मेनाके गर्भसे हिमाचलकी पुत्री (उमा) हुई । भगवान् शंकरने उस अनन्यपरायणा उमासे फिर भी विवाह किया॥ १३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवौ धातृविधातारौ भृगोः ख्यातिरसूयत ।
श्रियं च देवदेवस्य पत्नी नारायणस्य या॥ १५॥
मूलम्
देवौ धातृविधातारौ भृगोः ख्यातिरसूयत ।
श्रियं च देवदेवस्य पत्नी नारायणस्य या॥ १५॥
अनुवाद (हिन्दी)
भृगुके द्वारा ख्यातिने धाता और विधातानामक दो देवताओंको तथा लक्ष्मीजीको जन्म दिया जो भगवान् विष्णुकी पत्नी हुईं॥ १५॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमैत्रेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षीराब्धौ श्रीः समुत्पन्ना श्रूयतेऽमृतमन्थने ।
भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्नेत्येतदाह कथं भवान्॥ १६॥
मूलम्
क्षीराब्धौ श्रीः समुत्पन्ना श्रूयतेऽमृतमन्थने ।
भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्नेत्येतदाह कथं भवान्॥ १६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमैत्रेयजी बोले—भगवन्! सुना जाता है कि लक्ष्मीजी तो अमृत-मन्थनके समय क्षीर-सागरसे उत्पन्न हुई थीं, फिर आप ऐसा कैसे कहते हैं कि वे भृगुके द्वारा ख्यातिसे उत्पन्न हुईं॥ १६॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीपराशर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नित्यैवैषा जगन्माता विष्णोः श्रीरनपायिनी ।
यथा सर्वगतो विष्णुस्तथैवेयं द्विजोत्तम॥ १७॥
मूलम्
नित्यैवैषा जगन्माता विष्णोः श्रीरनपायिनी ।
यथा सर्वगतो विष्णुस्तथैवेयं द्विजोत्तम॥ १७॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपराशरजी बोले—हे द्विजोत्तम! भगवान्का कभी संग न छोड़नेवाली जगज्जननी लक्ष्मीजी तो नित्य ही हैं और जिस प्रकार श्रीविष्णु भगवान् सर्वव्यापक हैं वैसे ही ये भी हैं॥ १७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्थो विष्णुरियं वाणी नीतिरेषा नयो हरिः ।
बोधो विष्णुरियं बुद्धिर्धर्मोऽसौ सत्क्रिया त्वियम्॥ १८॥
मूलम्
अर्थो विष्णुरियं वाणी नीतिरेषा नयो हरिः ।
बोधो विष्णुरियं बुद्धिर्धर्मोऽसौ सत्क्रिया त्वियम्॥ १८॥
अनुवाद (हिन्दी)
विष्णु अर्थ हैं और ये वाणी हैं, हरि नियम हैं और ये नीति हैं, भगवान् विष्णु बोध हैं और ये बुद्धि हैं तथा वे धर्म हैं और ये सत्क्रिया हैं॥ १८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्रष्टा विष्णुरियं सृष्टिः श्रीर्भूमिर्भूधरो हरिः ।
सन्तोषो भगवाल्ँलक्ष्मीस्तुष्टिर्मैत्रेय शाश्वती॥ १९॥
मूलम्
स्रष्टा विष्णुरियं सृष्टिः श्रीर्भूमिर्भूधरो हरिः ।
सन्तोषो भगवाल्ँलक्ष्मीस्तुष्टिर्मैत्रेय शाश्वती॥ १९॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे मैत्रेय! भगवान् जगत्के स्रष्टा हैं और लक्ष्मीजी सृष्टि हैं, श्रीहरि भूधर (पर्वत अथवा राजा) हैं और लक्ष्मीजी भूमि हैं तथा भगवान् सन्तोष हैं और लक्ष्मीजी नित्य-तुष्टि हैं॥ १९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इच्छा श्रीर्भगवान्कामो यज्ञोऽसौ दक्षिणा त्वियम् ।
आज्याहुतिरसौ देवी पुरोडाशो जनार्दनः॥ २०॥
मूलम्
इच्छा श्रीर्भगवान्कामो यज्ञोऽसौ दक्षिणा त्वियम् ।
आज्याहुतिरसौ देवी पुरोडाशो जनार्दनः॥ २०॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् काम हैं और लक्ष्मीजी इच्छा हैं, वे यज्ञ हैं और ये दक्षिणा हैं, श्रीजनार्दन पुरोडाश हैं और देवी लक्ष्मीजी आज्याहुति (घृतकी आहुति) हैं॥ २०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पत्नीशाला मुने लक्ष्मीः प्राग्वंशो मधुसूदनः ।
चितिर्लक्ष्मीर्हरिर्यूप इध्मा श्रीर्भगवान्कुशः॥ २१॥
मूलम्
पत्नीशाला मुने लक्ष्मीः प्राग्वंशो मधुसूदनः ।
चितिर्लक्ष्मीर्हरिर्यूप इध्मा श्रीर्भगवान्कुशः॥ २१॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे मुने! मधुसूदन यजमानगृह हैं और लक्ष्मीजी पत्नीशाला हैं, श्रीहरि यूप हैं और लक्ष्मीजी चिति हैं तथा भगवान् कुशा हैं और लक्ष्मीजी इध्मा हैं॥ २१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सामस्वरूपी भगवानुद्गीतिः कमलालया ।
स्वाहा लक्ष्मीर्जगन्नाथो वासुदेवो हुताशनः॥ २२॥
मूलम्
सामस्वरूपी भगवानुद्गीतिः कमलालया ।
स्वाहा लक्ष्मीर्जगन्नाथो वासुदेवो हुताशनः॥ २२॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् सामस्वरूप हैं और श्रीकमलादेवी उद्गीति हैं, जगत्पति भगवान् वासुदेव हुताशन हैं और लक्ष्मीजी स्वाहा हैं॥ २२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शङ्करो भगवाञ्छौरिर्गौरी लक्ष्मीर्द्विजोत्तम ।
मैत्रेय केशवः सूर्यस्तत्प्रभा कमलालया॥ २३॥
मूलम्
शङ्करो भगवाञ्छौरिर्गौरी लक्ष्मीर्द्विजोत्तम ।
मैत्रेय केशवः सूर्यस्तत्प्रभा कमलालया॥ २३॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजोत्तम! भगवान् विष्णु शंकर हैं और श्रीलक्ष्मीजी गौरी हैं तथा हे मैत्रेय! श्रीकेशव सूर्य हैं और कमलवासिनी श्रीलक्ष्मीजी उनकी प्रभा हैं॥ २३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विष्णुः पितृगणः पद्मा स्वधा शाश्वतपुष्टिदा ।
द्यौः श्रीः सर्वात्मको विष्णुरवकाशोऽतिविस्तरः॥ २४॥
मूलम्
विष्णुः पितृगणः पद्मा स्वधा शाश्वतपुष्टिदा ।
द्यौः श्रीः सर्वात्मको विष्णुरवकाशोऽतिविस्तरः॥ २४॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीविष्णु पितृगण हैं और श्रीकमला नित्य पुष्टिदायिनी स्वधा हैं, विष्णु अति विस्तीर्ण सर्वात्मक अवकाश हैं और लक्ष्मीजी स्वर्गलोक हैं॥ २४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शशाङ्कः श्रीधरः कान्तिः श्रीस्तथैवानपायिनी ।
धृतिर्लक्ष्मीर्जगच्चेष्टा वायुः सर्वत्रगो हरिः॥ २५॥
मूलम्
शशाङ्कः श्रीधरः कान्तिः श्रीस्तथैवानपायिनी ।
धृतिर्लक्ष्मीर्जगच्चेष्टा वायुः सर्वत्रगो हरिः॥ २५॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् श्रीधर चन्द्रमा हैं और श्रीलक्ष्मीजी उनकी अक्षय कान्ति हैं, हरि सर्वगामी वायु हैं और लक्ष्मीजी जगच्चेष्टा (जगत् की गति) और धृति (आधार) हैं॥ २५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जलधिर्द्विज गोविन्दस्तद्वेला श्रीर्महामुने ।
लक्ष्मीस्वरूपमिन्द्राणी देवेन्द्रो मधुसूदनः॥ २६॥
मूलम्
जलधिर्द्विज गोविन्दस्तद्वेला श्रीर्महामुने ।
लक्ष्मीस्वरूपमिन्द्राणी देवेन्द्रो मधुसूदनः॥ २६॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे महामुने! श्रीगोविन्द समुद्र हैं और हे द्विज! लक्ष्मीजी उसकी तरंग हैं, भगवान् मधुसूदन देवराज इन्द्र हैं और लक्ष्मीजी इन्द्राणी हैं॥ २६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यमश्चक्रधरः साक्षाद्धूमोर्णा कमलालया ।
ऋद्धिः श्रीः श्रीधरो देवः स्वयमेव धनेश्वरः॥ २७॥
गौरी लक्ष्मीर्महाभागा केशवो वरुणः स्वयम् ।
श्रीर्देवसेना विप्रेन्द्र देवसेनापतिर्हरिः॥ २८॥
मूलम्
यमश्चक्रधरः साक्षाद्धूमोर्णा कमलालया ।
ऋद्धिः श्रीः श्रीधरो देवः स्वयमेव धनेश्वरः॥ २७॥
गौरी लक्ष्मीर्महाभागा केशवो वरुणः स्वयम् ।
श्रीर्देवसेना विप्रेन्द्र देवसेनापतिर्हरिः॥ २८॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकेशव स्वयं वरुण हैं और महाभागा लक्ष्मीजी गौरी हैं, हे द्विजराज! श्रीहरि देवसेनापति स्वामिकार्तिकेय हैं और श्रीलक्ष्मीजी देवसेना हैं॥ २८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवष्टम्भो गदापाणिः शक्तिर्लक्ष्मीर्द्विजोत्तम ।
काष्ठा लक्ष्मीर्निमेषोऽसौ मुहूर्त्तोऽसौ कला त्वियम्॥ २९॥
मूलम्
अवष्टम्भो गदापाणिः शक्तिर्लक्ष्मीर्द्विजोत्तम ।
काष्ठा लक्ष्मीर्निमेषोऽसौ मुहूर्त्तोऽसौ कला त्वियम्॥ २९॥
अनुवाद (हिन्दी)
हे द्विजोत्तम! भगवान् गदाधर आश्रय हैं और लक्ष्मीजी शक्ति हैं, भगवान् निमेष हैं और लक्ष्मीजी काष्ठा हैं, वे मुहूर्त हैं और ये कला हैं॥ २९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्योत्स्ना लक्ष्मीः प्रदीपोऽसौ सर्वः सर्वेश्वरो हरिः ।
लताभूता जगन्माता श्रीविष्णुर्द्रुमसंज्ञितः॥ ३०॥
मूलम्
ज्योत्स्ना लक्ष्मीः प्रदीपोऽसौ सर्वः सर्वेश्वरो हरिः ।
लताभूता जगन्माता श्रीविष्णुर्द्रुमसंज्ञितः॥ ३०॥
अनुवाद (हिन्दी)
सर्वेश्वर सर्वरूप श्रीहरि दीपक हैं और श्रीलक्ष्मीजी ज्योति हैं, श्रीविष्णु वृक्षरूप हैं और जगन्माता श्रीलक्ष्मीजी लता हैं॥ ३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विभावरी श्रीर्दिवसो देवश्चक्रगदाधरः ।
वरप्रदो वरो विष्णुर्वधूः पद्मवनालया॥ ३१॥
मूलम्
विभावरी श्रीर्दिवसो देवश्चक्रगदाधरः ।
वरप्रदो वरो विष्णुर्वधूः पद्मवनालया॥ ३१॥
अनुवाद (हिन्दी)
चक्रगदाधरदेव श्रीविष्णु दिन हैं और लक्ष्मीजी रात्रि हैं, वरदायक श्रीहरि वर हैं और पद्मनिवासिनी श्रीलक्ष्मीजी वधू हैं॥ ३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नदस्वरूपी भगवाञ्छ्रीर्नदीरूपसंस्थिता ।
ध्वजश्च पुण्डरीकाक्षः पताका कमलालया॥ ३२॥
मूलम्
नदस्वरूपी भगवाञ्छ्रीर्नदीरूपसंस्थिता ।
ध्वजश्च पुण्डरीकाक्षः पताका कमलालया॥ ३२॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् नद हैं और श्रीजी नदी हैं, कमलनयन भगवान् ध्वजा हैं और कमलालया लक्ष्मीजी पताका हैं॥ ३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तृष्णा लक्ष्मीर्जगन्नाथो लोभो नारायणः परः ।
रती रागश्च मैत्रेय लक्ष्मीर्गोविन्द एव च॥ ३३॥
मूलम्
तृष्णा लक्ष्मीर्जगन्नाथो लोभो नारायणः परः ।
रती रागश्च मैत्रेय लक्ष्मीर्गोविन्द एव च॥ ३३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ हैं और लक्ष्मीजी तृष्णा हैं तथा हे मैत्रेय! रति और राग भी साक्षात् श्रीलक्ष्मी और गोविन्दरूप ही हैं॥ ३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं चातिबहुनोक्तेन सङ्क्षेपेणेदमुच्यते॥ ३४॥
देवतिर्यङ्मनुष्यादौ पुन्नामा भगवान्हरिः ।
स्त्रीनाम्नी श्रीश्च विज्ञेया नानयोर्विद्यते परम्॥ ३५॥
मूलम्
किं चातिबहुनोक्तेन सङ्क्षेपेणेदमुच्यते॥ ३४॥
देवतिर्यङ्मनुष्यादौ पुन्नामा भगवान्हरिः ।
स्त्रीनाम्नी श्रीश्च विज्ञेया नानयोर्विद्यते परम्॥ ३५॥
अनुवाद (हिन्दी)
अधिक क्या कहा जाय? संक्षेपमें, यह कहना चाहिये कि देव, तिर्यक् और मनुष्य आदिमें पुरुषवाची भगवान् हरि हैं और स्त्रीवाची श्रीलक्ष्मीजी, इनके परे और कोई नहीं है॥ ३४-३५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे अष्टमोऽध्यायः॥ ८॥