०३

[तीसरा अध्याय]

विषय

ब्रह्मादिकी आयु और कालका स्वरूप

मूलम् (वचनम्)

श्रीमैत्रेय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्गुणस्याप्रमेयस्य शुद्धस्याप्यमलात्मनः।
कथं सर्गादिकर्तृत्वं ब्रह्मणोऽभ्युपगम्यते॥ १॥

मूलम्

निर्गुणस्याप्रमेयस्य शुद्धस्याप्यमलात्मनः।
कथं सर्गादिकर्तृत्वं ब्रह्मणोऽभ्युपगम्यते॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमैत्रेयजी बोले—हे भगवन्! जो ब्रह्म निर्गुण, अप्रमेय, शुद्ध और निर्मलात्मा है उसका सर्गादिका कर्ता होना कैसे सिद्ध हो सकता है?॥ १॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीपराशर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शक्तयः सर्वभावानामचिन्त्यज्ञानगोचराः।
यतोऽतो ब्रह्मणस्तास्तु सर्गाद्या भावशक्तयः।
भवन्ति तपतां श्रेष्ठ पावकस्य यथोष्णता॥ २॥

मूलम्

शक्तयः सर्वभावानामचिन्त्यज्ञानगोचराः।
यतोऽतो ब्रह्मणस्तास्तु सर्गाद्या भावशक्तयः।
भवन्ति तपतां श्रेष्ठ पावकस्य यथोष्णता॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपराशरजी बोले—हे तपस्वियोंमें श्रेष्ठ मैत्रेय! समस्त भाव-पदार्थोंकी शक्तियाँ अचिन्त्य-ज्ञानकी विषय होती हैं; [उनमें कोई युक्ति काम नहीं देती] अतः अग्निकी शक्ति उष्णताके समान ब्रह्मकी भी सर्गादि-रचनारूप शक्तियाँ स्वाभाविक हैं॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तन्निबोध यथा सर्गे भगवान‍्सम्प्रवर्त्तते।
नारायणाख्यो भगवान‍्ब्रह्मा लोकपितामहः॥ ३॥
उत्पन्नः प्रोच्यते विद्वन्नित्यमेवोपचारतः॥ ४॥

मूलम्

तन्निबोध यथा सर्गे भगवान‍्सम्प्रवर्त्तते।
नारायणाख्यो भगवान‍्ब्रह्मा लोकपितामहः॥ ३॥
उत्पन्नः प्रोच्यते विद्वन्नित्यमेवोपचारतः॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब जिस प्रकार नारायण नामक लोक-पितामह भगवान‍् ब्रह्माजी सृष्टिकी रचनामें प्रवृत्त होते हैं सो सुनो। हे विद्वन्! वे सदा उपचारसे ही ‘उत्पन्न हुए’ कहलाते हैं॥ ३-४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निजेन तस्य मानेन आयुर्वर्षशतं स्मृतम्।
तत्पराख्यं तदर्द्धं च परार्द्धमभिधीयते॥ ५॥

मूलम्

निजेन तस्य मानेन आयुर्वर्षशतं स्मृतम्।
तत्पराख्यं तदर्द्धं च परार्द्धमभिधीयते॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके अपने परिमाणसे उनकी आयु सौ वर्षकी कही जाती है। उस (सौवर्ष)-का नाम पर है, उसका आधा परार्द्ध कहलाता है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कालस्वरूपं विष्णोश्च यन्मयोक्तं तवानघ।
तेन तस्य निबोध त्वं परिमाणोपपादनम्॥ ६॥
अन्येषां चैव जन्तूनां चराणामचराश्च ये।
भूभूभृत्सागरादीनामशेषाणां च सत्तम॥ ७॥

मूलम्

कालस्वरूपं विष्णोश्च यन्मयोक्तं तवानघ।
तेन तस्य निबोध त्वं परिमाणोपपादनम्॥ ६॥
अन्येषां चैव जन्तूनां चराणामचराश्च ये।
भूभूभृत्सागरादीनामशेषाणां च सत्तम॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे अनघ! मैंने जो तुमसे विष्णु भगवान‍्का कालस्वरूप कहा था उसीके द्वारा उस ब्रह्माकी तथा और भी जो पृथिवी, पर्वत, समुद्र आदि चराचर जीव हैं उनकी आयुका परिमाण किया जाता है॥ ६-७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काष्ठा पञ्चदशाख्याता निमेषा मुनिसत्तम।
काष्ठा त्रिंशत्कला त्रिंशत्कला मौहूर्तिको विधिः॥ ८॥

मूलम्

काष्ठा पञ्चदशाख्याता निमेषा मुनिसत्तम।
काष्ठा त्रिंशत्कला त्रिंशत्कला मौहूर्तिको विधिः॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनिश्रेष्ठ! पन्द्रह निमेषको काष्ठा कहते हैं, तीस काष्ठाकी एक कला तथा तीस कलाका एक मुहूर्त्त होता है॥ ८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावत्संख्यैरहोरात्रं मुहूर्त्तैर्मानुषं स्मृतम्।
अहोरात्राणि तावन्ति मासः पक्षद्वयात्मकः॥ ९॥

मूलम्

तावत्संख्यैरहोरात्रं मुहूर्त्तैर्मानुषं स्मृतम्।
अहोरात्राणि तावन्ति मासः पक्षद्वयात्मकः॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

तीस मुहूर्त्तका मनुष्यका एक दिन-रात कहा जाता है और उतने ही दिन-रातका दो पक्षयुक्त एक मास होता है॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तैः षड‍‍्भिरयनं वर्षं द्वेऽयने दक्षिणोत्तरे।
अयनं दक्षिणं रात्रिर्देवानामुत्तरं दिनम्॥ १०॥

मूलम्

तैः षड‍‍्भिरयनं वर्षं द्वेऽयने दक्षिणोत्तरे।
अयनं दक्षिणं रात्रिर्देवानामुत्तरं दिनम्॥ १०॥

अनुवाद (हिन्दी)

छः महीनोंका एक अयन और दक्षिणायन तथा उत्तरायण दो अयन मिलकर एक वर्ष होता है। दक्षिणायन देवताओंकी रात्रि है और उत्तरायण दिन॥ १०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम्।
चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे॥ ११॥

मूलम्

दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम्।
चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे॥ ११॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंके बारह हजार वर्षोंके सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग नामक चार युग होते हैं। उनका अलग-अलग परिमाण मैं तुम्हें सुनाता हूँ॥ ११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चत्वारि त्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम्।
दिव्याब्दानां सहस्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः॥ १२॥

मूलम्

चत्वारि त्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम्।
दिव्याब्दानां सहस्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरातत्त्वके जाननेवाले सतयुग आदिका परिमाण क्रमशः चार, तीन, दो और एक हजार दिव्य वर्ष बतलाते हैं॥ १२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्प्रमाणैः शतैः सन्ध्या पूर्वा तत्राभिधीयते।
सन्ध्यांशश्चैव तत्तुल्यो युगस्यानन्तरो हि सः॥ १३॥

मूलम्

तत्प्रमाणैः शतैः सन्ध्या पूर्वा तत्राभिधीयते।
सन्ध्यांशश्चैव तत्तुल्यो युगस्यानन्तरो हि सः॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रत्येक युगके पूर्व उतने ही सौ वर्षकी सन्ध्या बतायी जाती है और युगके पीछे उतने ही परिमाणवाले सन्ध्यांश होते हैं [अर्थात् सतयुग आदिके पूर्व क्रमशः चार, तीन, दो और एक सौ दिव्य वर्षकी सन्ध्याएँ और इतने ही वर्षके सन्ध्यांश होते हैं]॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सन्ध्यासन्ध्यांशयोरन्तर्यः कालो मुनिसत्तम।
युगाख्यः स तु विज्ञेयः कृतत्रेतादिसंज्ञितः॥ १४॥

मूलम्

सन्ध्यासन्ध्यांशयोरन्तर्यः कालो मुनिसत्तम।
युगाख्यः स तु विज्ञेयः कृतत्रेतादिसंज्ञितः॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनिश्रेष्ठ! इन सन्ध्या और सन्ध्यांशोंके बीचका जितना काल होता है, उसे ही सतयुग आदि नामवाले युग जानना चाहिये॥ १४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिश्चैव चतुर्युगम्।
प्रोच्यते तत्सहस्रं च ब्रह्मणो दिवसं मुने॥ १५॥

मूलम्

कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिश्चैव चतुर्युगम्।
प्रोच्यते तत्सहस्रं च ब्रह्मणो दिवसं मुने॥ १५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुने! सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलि ये मिलकर चतुर्युग कहलाते हैं; ऐसे हजार चतुर्युगका ब्रह्माका एक दिन होता है॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन‍्मनवस्तु चतुर्दश।
भवन्ति परिमाणं च तेषां कालकृतं शृणु॥ १६॥

मूलम्

ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन‍्मनवस्तु चतुर्दश।
भवन्ति परिमाणं च तेषां कालकृतं शृणु॥ १६॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे ब्रह्मन्! ब्रह्माके एक दिनमें चौदह मनु होते हैं। उनका कालकृत परिमाण सुनो॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सप्तर्षयः सुराः शक्रो मनुस्तत्सूनवो नृपाः।
एककाले हि सृज्यन्ते संह्रियन्ते च पूर्ववत्॥ १७॥

मूलम्

सप्तर्षयः सुराः शक्रो मनुस्तत्सूनवो नृपाः।
एककाले हि सृज्यन्ते संह्रियन्ते च पूर्ववत्॥ १७॥

अनुवाद (हिन्दी)

सप्तर्षि, देवगण, इन्द्र, मनु और मनुके पुत्र राजालोग [पूर्वकल्पानुसार] एक ही कालमें रचे जाते हैं और एक ही कालमें उनका संहार किया जाता है॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्युगाणां संख्याता साधिका ह्येकसप्ततिः।
मन्वन्तरं मनोः कालः सुरादीनां च सत्तम॥ १८

मूलम्

चतुर्युगाणां संख्याता साधिका ह्येकसप्ततिः।
मन्वन्तरं मनोः कालः सुरादीनां च सत्तम॥ १८

अनुवाद (हिन्दी)

हे सत्तम! इकहत्तर चतुर्युगसे कुछ अधिक* कालका एक मन्वन्तर होता है। यही मनु और देवता आदिका काल है॥ १८॥

पादटिप्पनी
  • इकहत्तर चतुर्युगके हिसाबसे चौदह मन्वन्तरोंमें ९९४ चतुर्युग होते हैं और ब्रह्माके एक दिनमें एक हजार चतुर्युग होते हैं, अतः छः चतुर्युग और बचे। छः चतुर्युगका चौदहवाँ भाग कुछ कम पाँच हजार एक सौ तीन दिव्य वर्ष होता है, इस प्रकार एक मन्वन्तरमें इकहत्तर चतुर्युगके अतिरिक्त इतने दिव्य वर्ष और अधिक होते हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः

अष्टौ शत सहस्राणि दिव्यया संख्यया स्मृतम्।
द्विपञ्चाशत्तथान्यानि सहस्राण्यधिकानि तु॥ १९

मूलम्

अष्टौ शत सहस्राणि दिव्यया संख्यया स्मृतम्।
द्विपञ्चाशत्तथान्यानि सहस्राण्यधिकानि तु॥ १९

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार दिव्य वर्ष-गणनासे एक मन्वन्तरमें आठ लाख बावन हजार वर्ष बताये जाते हैं॥ १९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रिंशत्कोट्यस्तु सम्पूर्णाः संख्याताः संख्यया द्विज।
सप्तषष्टिस्तथान्यानि नियुतानि महामुने॥ २०
विंशतिस्तु सहस्राणि कालोऽयमधिकं विना।
मन्वन्तरस्य सङ्ख्येयं मानुषैर्वत्सरैर्द्विज॥ २१

मूलम्

त्रिंशत्कोट्यस्तु सम्पूर्णाः संख्याताः संख्यया द्विज।
सप्तषष्टिस्तथान्यानि नियुतानि महामुने॥ २०
विंशतिस्तु सहस्राणि कालोऽयमधिकं विना।
मन्वन्तरस्य सङ्ख्येयं मानुषैर्वत्सरैर्द्विज॥ २१

अनुवाद (हिन्दी)

तथा हे महामुने! मानवी वर्ष-गणनाके अनुसार मन्वन्तरका परिमाण पूरे तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्ष है, इससे अधिक नहीं॥ २०-२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्दशगुणो ह्येष कालो ब्राह्ममहः स्मृतम्।
ब्राह्मो नैमित्तिको नाम तस्यान्ते प्रतिसञ्चरः॥ २२॥

मूलम्

चतुर्दशगुणो ह्येष कालो ब्राह्ममहः स्मृतम्।
ब्राह्मो नैमित्तिको नाम तस्यान्ते प्रतिसञ्चरः॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस कालका चौदह गुना ब्रह्माका दिन होता है, इसके अनन्तर नैमित्तिक नामवाला ब्राह्म-प्रलय होता है॥ २२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदा हि दह्यते सर्वं त्रैलोक्यं भूर्भुवादिकम्।
जनं प्रयान्ति तापार्ता महर्लोकनिवासिनः॥ २३॥

मूलम्

तदा हि दह्यते सर्वं त्रैलोक्यं भूर्भुवादिकम्।
जनं प्रयान्ति तापार्ता महर्लोकनिवासिनः॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भूर्लोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक तीनों जलने लगते हैं और महर्लोकमें रहनेवाले सिद्धगण अति सन्तप्त होकर जनलोकको चले जाते हैं॥ २३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकार्णवे तु त्रैलोक्ये ब्रह्मा नारायणात्मकः।
भोगिशय्यां गतः शेते त्रैलोक्यग्रासबृंहितः॥ २४॥
जनस्थैर्योगिभिर्देवश्चिन्त्यमानोऽब्जसम्भवः।
तत्प्रमाणां हि तां रात्रिं तदन्ते सृजते पुनः॥ २५॥

मूलम्

एकार्णवे तु त्रैलोक्ये ब्रह्मा नारायणात्मकः।
भोगिशय्यां गतः शेते त्रैलोक्यग्रासबृंहितः॥ २४॥
जनस्थैर्योगिभिर्देवश्चिन्त्यमानोऽब्जसम्भवः।
तत्प्रमाणां हि तां रात्रिं तदन्ते सृजते पुनः॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार त्रिलोकीके जलमय हो जानेपर जनलोकवासी योगियोंद्वारा ध्यान किये जाते हुए नारायणरूप कमलयोनि ब्रह्माजी त्रिलोकीके ग्राससे तृप्त होकर दिनके बराबर ही परिमाणवाली उस रात्रिमें शेषशय्यापर शयन करते हैं और उसके बीत जानेपर पुनः संसारकी सृष्टि करते हैं॥ २४-२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं तु ब्रह्मणो वर्षमेवं वर्षशतं च यत्।
शतं हि तस्य वर्षाणां परमायुर्महात्मनः॥ २६॥

मूलम्

एवं तु ब्रह्मणो वर्षमेवं वर्षशतं च यत्।
शतं हि तस्य वर्षाणां परमायुर्महात्मनः॥ २६॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार (पक्ष, मास आदि) गणनासे ब्रह्माका एक वर्ष और फिर सौ वर्ष होते हैं। ब्रह्माके सौ वर्ष ही उस महात्मा (ब्रह्मा) की परमायु हैं॥ २६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकमस्य व्यतीतं तु परार्द्धं ब्रह्मणोऽनघ।
तस्यान्तेऽभून्महाकल्पः पाद्म इत्यभिविश्रुतः॥ २७॥

मूलम्

एकमस्य व्यतीतं तु परार्द्धं ब्रह्मणोऽनघ।
तस्यान्तेऽभून्महाकल्पः पाद्म इत्यभिविश्रुतः॥ २७॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे अनघ! उन ब्रह्माजीका एक परार्द्ध बीत चुका है। उसके अन्तमें पाद्म नामसे विख्यात महाकल्प हुआ था॥ २७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्वितीयस्य परार्द्धस्य वर्तमानस्य वै द्विज।
वाराह इति कल्पोऽयं प्रथमः परिकीर्तितः॥ २८॥

मूलम्

द्वितीयस्य परार्द्धस्य वर्तमानस्य वै द्विज।
वाराह इति कल्पोऽयं प्रथमः परिकीर्तितः॥ २८॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे द्विज! इस समय वर्तमान उनके दूसरे परार्द्धका यह वाराह नामक पहला कल्प कहा गया है॥ २८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे तृतीयोऽध्यायः॥३॥