०७ श्रीनिवासगद्यम्

श्रीवेङ्कटाद्रि निलयः कमलाकामुकः पुमान् ।
अभङ्गुरविभूति र्नस्तरङ्गयतु मङ्गळम् ॥
श्रीमदखिल महीमण्डल मण्डन धरणिधर मण्डलाखण्डलस्य,
निखिल सुरासुर वन्दित वराहक्षेत्र विभूषणस्य, शेषाचल, गरुडाचल,
वृषभाचल, नारायणाचलाञ्जनाचलादि शिखरिमालाकुलस्य, नाथमुख
बोधनिधि वीथिगुणसाभरण सत्त्वनिधि तत्त्वनिधि भक्तिगुणपूर्ण श्रीशैलपूर्ण
गुणवशंवद परमपुरुष कृपापूर विभ्रमदतुङ्गशृङ्ग गलद्गगन
गङ्गासमालिङ्गितस्य, सीमातिगगुण रामानुजमुनि नामाङ्कित
बहुभूमाश्रय सुरधामालय वनरामायत वनसीमापरिवृत
विशङ्कटतट निरन्तर विजृम्भित भक्तिरस निर्झरानन्तार्याहार्य
प्रस्रवणधारापूर विभ्रमद सलिलभरभरित महातटाक मण्डितस्य,
कलिकर्दम कलितोद्यम विलसद्यम नियमादिम मुनिगणनिषेव्यमाण
प्रत्यक्षीभवन्निजसलिल समज्जन समज्जन निखिलपापनाशन पापनाशन
तीर्थाध्यासितस्य, मुरारिसेवक जराधिपीडित निरार्तिजीवन निराशभूसुर
वरातिसुन्दर सुराङ्गनारति कराङ्गसौष्ठन कुमारताकृति कुमारतारक
समापनोदय दमानपातक महापदामय विहापनोदित
सकलभुवनविदित कुमारधाराभिधान तीर्थाधिष्ठितस्य, धरणितलगत सकलहत
कलिल शुभ सलिलगत बहुळ विविधमलहति चतुर रुचिरतर
विलोकनमात्र विदळित विविध महापातक स्वामिपुष्करणी समेतस्य,
बहुसङ्कट नरकावट पतदुत्कट कलिकङ्कट कलुषोद्भट जनपातक
विनिपातक रुचिनाटक करहाटक कलशाहृत कमलारत शुभमज्जन
जलसज्जन भरित निजदुरित हतिनिरत जनसतत निरर्गळपेपीयमान सलिल
सम्भृत विशङ्कट कटाहतीर्थ विभूषितस्य, एवमादिम भूरिमञ्जिम
श्रीनिवासगद्यं
सर्वसातक गर्वहापक सिन्धुडम्बर हारिशम्बर विविधविपुल पुण्यतीर्थनिवह
निवासस्य, श्रीमतो वेङ्कटाचलस्य, शिखरशेकरमहाकल्पशाखी, खर्वीभवदतिगर्वीकृत
गुरुमेर्वीशगिरि मुखोर्वी धर कुलदर्वी करदयितोर्वी धर शिखरोर्वी सतत
सदूर्वी कृति चरणनवघन गर्वचर्वण निपुण तनु किरणमसृणित
गिरिशिखर शेखरतरुनिकर तिमिरः, वाणीपतिशर्वाणी दयितेन्द्राणीश्वरमुख
नाणीयोरसवेणी निभशुभवाणी नुतमहिमणी यस्तर कोणी भवदखिल
भुवनभवनोदरः, वैमानिकगुरु भूमाधिक गुणरामानुजकृत धामाकर
कर धामारि दर ललामाच्छकनक दामायित निजरामालय,
नवकिसलयमय तोरणमालायित वनमालाधरः, कालाम्बुद
मालानिभ नीलालक जालावृत बालाज्ञ सलीलामल फालाङ्क समूलामृत
धारद्वयावधीरण, धीरललिततर विशदतर घन घनसार मयोर्ध्वपुण्ड्र
रेखाद्वयरुचिरः, सुविकस्वर दळभास्वर कमलोदर गतमेदुर नवकेसर
ततिभासुर, परिपिञ्जर कनकाम्बर कलितादर ललितोदर तदालम्ब जम्भरिपु
मणिस्तम्भ गम्भीरि मदम्भस्तम्भन समुज्जृम्भमाण पीवरोरुयुगळ
तदालम्ब पृथुल कदळी मुकुळ मदहरण जङ्घाल जङ्घायुगळः,
नव्यदळ भव्यकल पीतमल शोणिमल सन्मृदुल सत्किसलयाश्रुजलकारि
बल शोणतल पदकमल निजाश्रय बलबन्दीकृत शरदिन्दु मण्डली
विभ्रमदादभ्र शुभ्र पुनर्भवाधिष्ठिताङ्गुळीगाढ निपीडित पद्मासनः
जानुतलावधि लम्बि विडम्बित वारण शुण्डादण्ड विजृम्भित
नीलमणिमय कल्पकशाखा विभ्रमदायि मृणाळलतायित समुज्ज्वलतर
कनकवलय वेल्लितैकतर बाहुदण्डयुगळः, युगपदुदित कोटि खरकर
हिमकर मण्डल जाज्वल्यमान सुदर्शन पाञ्चजन्य समुत्तुङ्गित
शृङ्गापर बाहु युगळः, अभिनवशाण समुत्तेजित महामहा नीलखण्ड
मदखण्डन निपुण नवीन परितप्त कार्तस्वर कवचित महनीय पृथुल
सालग्राम परम्परा गुम्फित नाभिमण्डल पर्यन्त लम्बमान
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प्रालम्बदीप्ति समालम्बित विशाल वक्षःस्थलः, गङ्गाझर तुङ्गाकृति
भङ्गावळि भङ्गावह सौधावळि बाधावह धारानिभ हारावळि दूराहत
गेहान्तर मोहावह महिम मसृणित महातिमिरः, पिङ्गाकृति भृङ्गारु
निभाङ्गार दळाङ्गामल निष्कासित दुष्कार्यघ निष्कावळि दीपप्रभ नीपच्छवि
तापप्रद कनकमालिका पिशङ्गित सर्वाङ्गः, नवदळित दळवलित मृदुललित
कमलतति मदविहति चतुरतर पृथुलतर सरसतर कनकसरमय
रुचिरकण्ठिका कमनीयकण्ठः, वाताशनाधिपतिशयन कमन परिचरण
रतिसमेताखिल फणधरतति मतिकर कनकमय नागाभरण
परिवीताखिलाङ्गावगमित शयन भूताहिराज जातातिशयः, रविकोटी
परिपाटी धरकोटी रवराटी कितवाटी रसधाटी धरमणिगण किरण विसरण
सततविधुत तिमिरमोह गर्भगेहः, अपरिमित विविधभुवन भरिताखण्ड
ब्रह्माण्डमण्डल पिचण्डिलः आर्यधुर्यानन्तार्य पवित्र खनित्रपात
पात्रीकृत निजचुबुक गतव्रणकिण विभूषणवहनसूचित
श्रितजनवत्सलतातिशयः, मड्डुडिण्डिम डमरु जर्झर काहळी पटहावळी
मृदुमर्दलालि मृदङ्ग दुन्दुभि ढक्किकामुख हृद्यवाद्यक
मधुरमङ्गळ नादमेदुर विसृमर सरस गानरस रुचिर सन्तत
सन्तन्यमान नित्योत्सव पक्षोत्सव मासोत्सव संवत्सरोत्सवादि
विविधोत्सव कृतानन्दः, श्रीमदानन्दनिलय विमानवासः, सतत
पद्मालया पदपद्मरेणु सञ्चित वक्षःस्थल पटवासः, श्रीश्रीनिवासः, सुप्रसन्नो
विजयताम् ॥
श्रीरङ्गसूरिणेदं, श्रीशैलानन्तसूरिवंश्येन ।
भक्त्या रचितं हृद्यं, गद्यं गृह्णातु वेङ्कटेशानः ॥
श्रीनिवास गद्यं सम्पूर्णम्