गद्यत्रय

गद्यत्रय भगवान् रामानुजाचार्य की वाणी का अमर प्रसाद है । आचार्यसार्वभौम श्री वेदान्तदेशिक ने ‘सारस्वतं शाश्वतम्’ कहकर इसे आचार्यश्री की सरस्वती का शाश्वत अमृत प्रवाह बताया है और ‘प्राधान्येन प्रणीतम्’ कहकर इसकी प्रधानता का निर्देश किया है। आचार्य परमहंस थे, यह उनका ‘हंसगीत’ है । वे शरणागति विद्या के मन्त्रद्रष्टा थे, गद्यत्रय शरणागति-उपनिषद् है ।

कहा जाता है कि फाल्गुन ( मीन) मास के उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होने वाले ब्रह्मोत्सव के अवसर पर श्रीरङ्गधाम में आचार्य श्रीरामानुजाचार्य ने इसकी रचना की । लक्ष्मी काव्य का श्लोक है–

ततः कदाचित् स हि रङ्गनायिका श्रीरङ्गनाथावपि फल्गुनोत्तरे ।
मुदाभिषिक्तौ च तदा प्रपद्य तौ गद्यत्रयं चाप्यवदद् यतीश्वरः ॥

आशय यह है कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में श्रीरङ्गनायिका समेत श्रीरङ्गनाथ भगवान् का सप्रेम अभिषेक होने के पश्चात् यतीश्वर श्रीरामानुजाचार्य ने उनकी शरण ग्रहरण कर गद्यत्रय का गान किया ।

अपनी तीर्थमूर्ति के रूप में भगवान् श्रीरङ्गनाथ अवभृथ स्नान के पश्चात् जब मन्दिर में वापिस पधारते हैं तो यजुर्वेद ( ख )

के तैत्तिरीयोपनिषद् का पाठ किया जाता है । इस पाठ की समाप्ति तब होती है जब मन्दिर के महामण्डप में श्रीरङ्गनाथ भगवान् श्री रङ्गलक्ष्मी के साथ विराजमान होते हैं । तैत्तिरीयोपनिषद् का अन्तिम सूक्त न्यासविद्या ( शरणागति ) का निर्देश करता है । इसी निर्देश की पूर्ति में आचार्य श्री रामानुजाचार्य ने इस अवसर पर गद्यत्रय का गान किया ।

उत्सव के इस अवसर पर आजकल जब प्रबन्धपाठी भगवान् के सामने गद्यत्रय का पाठ करते करते श्री वैकुण्ठगद्य के छठे वाक्य तक पहुँचते हैं तो भगवान् को नैवेद्य अर्पित किया जाता है । इस अर्पण का भाव है आत्महवि का समर्पण । इसके पश्चात् श्री वैकुण्ठगद्य के अन्तिम वाक्य को बोलकर उपसंहार किया जाता है।

गद्यत्रय की रूपरेखा

गद्यत्रय के अन्तर्गत तीन गद्य गिने जाते हैं (१) शरणागतिगद्य, (२) श्रीरङ्गगद्य और (३) श्रीवैकुण्ठगद्य । शरणागति गद्य को बृहद्गद्य ( पृथु गद्य ) श्रीरङ्गगद्य को लघुगद्य तथा श्री वैकुण्ठगद्य को मितगद्य भी कहते हैं । शरणागति गद्य में संवाद है, श्री रङ्गगद्य में प्रार्थना है और श्रीवैकुण्ठगद्य में उपदेश । तीनों गद्यों में मिलाकर ३६ वाक्य हैं जिनमें ३२ गद्य में हैं। गद्यवाक्यों की यह बत्तीस की संख्या बत्तीस ब्रह्मविद्याओं के शरणागति विद्या में पर्यवसान का संकेत करती है । ( ग )

शरणागति गद्य में कुल पच्चीस वाक्य हैं । वाक्य संख्या ७, ८, ९, १० तथा २५ पद्य में हैं । ७ व ८ पाञ्चरात्र आगम के श्लोक हैं ६ व १० गीता के श्लोक हैं । अन्तिम पद्य मिलता तो सभी पुस्तकों में है किन्तु प्राचीन व्याख्याकारों की इस पर टीका नहीं मिलती । वाक्यसंख्या १४ तथा १५ में गीता के तीन तीन उद्धरण हैं तथा वाक्य संख्या २३ में श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण से ३ तथा गीता से एक उद्धरण है ।

शरणागतिगद्य के पहिले चार वाक्यों में श्रीरामानुजलक्ष्मी संवाद है । पहिला तथा दूसरा वाक्य आचार्य की वाणी में है। तीसरा तथा चौथा लक्ष्मी की ओर से हैं । इसके पश्चात् २४ वें वाक्य तक यतिपति-लक्ष्मीपति संवाद है । ५ वें से १७ वें वाक्य तक आचार्य की वाणी है । १८ वें से २४ वें तक के वाक्य भगवान् की ओर से हैं । अन्तिम वाक्य आचार्य की वाणी है ।

श्रीरंगगद्य में श्री रङ्गनाथ भगवान् की शरणागति एवं प्रार्थना है । श्री रङ्गनाथ भगवान् अर्चावतार हैं और श्रीरंगगद्य शरणागति का संक्षिप्त संस्करण है । इस गद्य में वाक्यों की संख्या कुल सात है जिनमें चौथा और पाँचवां दो वाक्य पद्य में हैं । ये प्राचीन श्लोक हैं ।

श्री वैकुण्ठगद्य में वैकुण्ठधाम का वर्णन है। वाक्यों की संख्या सात है । पहिला वाक्य पद्य में है। शेष गद्य में हैं । चौथे वाक्य में भगवान् के रूप के वर्णन के प्रसंग में स्तोत्ररत्न के कतिपय श्लोकांश दिये गये हैं । ( घ )

गद्यत्रय की विषयसूची

गद्यत्रय के वाक्यों में विषय का क्रम इस प्रकार है-

शरणागतिगद्य

  • १. श्रीशब्दवाच्या लक्ष्मी की शरणागति
  • २. भगवच्छरणागति की प्राप्ति के लिये लक्ष्मी की प्रार्थना
  • ३-४ लक्ष्मी का आशीर्वाद
  • ५. भगवान् की शरणागति । (छत्तीस सम्बोधनों के द्वारा भगवान् के स्वरूप रूप, गुण वैभव आदि का वर्णन है)
  • ६. द्वयमन्त्र का स्मरण
  • ७. पाञ्चरात्र आगम के दो श्लोक । भगवच्छरणागति से भिन्न समस्त साधनों का त्याग
  • ८. पाञ्चरात्र आगम का एक श्लोक । भगवान् का ही उपाय और उपेय के रूप में ग्रहण ।
  • ९. गीता का एक श्लोक । भगवान् का सर्वविध बन्धुत्व ।
  • १०. गीता का एक श्लोक । भगवान् की प्रसन्नता के लिये शरणागति
  • ११. पापों के लिये क्षमा-याचना
  • १२. काम्यकर्मों के लिये क्षमायाचना
  • १३. माया से उद्धार करने की प्रार्थना
  • १४. ज्ञानी भक्त का भाव प्रदान करने की प्रार्थना
  • १५. परभक्ति प्रदान करने की प्रार्थना
  • १६. परभक्ति परज्ञान और परमभक्ति की याचना
  • १७. निरन्तर अनुभूति से युक्त नित्य कैंकर्य की याचना
  • १८. भगवान् का अभीष्ट दान
  • १९. अभीष्टसिद्धि का आश्वासन
  • २०. उत्तरकृत्य का आदेश
  • २१. नित्य कैंकर्य का आश्वासन
  • २२. संशय का निवारण
  • २३. अपनी प्रतिज्ञाओं का समर्थन
  • २४. अपने आदेश का उपसंहार
  • २५. अन्तिम स्मृति के लिये प्रार्थना

श्रीरङ्गगद्य

  • १. नित्य कैंकर्य की प्रार्थना
  • २. शरणागति
  • ३. नित्य कैंकर्य की प्रार्थना
  • ४. दास्यभाव की याचना
  • ५. अनन्य प्रीति की याचना
  • ६. परमार्थानुभूति के लिये प्रार्थना
  • ७. शरणागति की प्रार्थना

वैकुण्ठगद्य

  • १. भगवदनुभव की प्रतिज्ञा

  • २. भगवान् की शरणागति का उपदेश

  • ३. भगवत्प्राप्ति का चिन्तन

  • ४. भगवत्प्राप्ति की रूपरेखा-वैकुण्ठधाम का वर्णन

  • ५. वैकुण्ठधाम में भगवान् की उपासना ( च )

  • ६. वैकुण्ठधाम में भगवान् का साक्षात्कार

  • ७. वैकुण्ठधाम में भगवान् क अनुभव