పోతన భాగవత సంగ్రహము

पोतन भागवत सङ्ग्रहमु (व्यावहरिक वचनमु) अध्यक्षुलु श्रीपावनि सेवासमिति हैदराबादु 2021 प्रकाशकुलु चल्ला साम्बिरॆड्डि B.A;LLB रचन डा. अद्दङ्कि श्रीनिवास् ii पोतन भागवतमु पोतन भागवत सङ्ग्रहमु (व्यावहरिक वचनमु) रचन : डा. अद्दङ्कि श्रीनिवास् इमॆयिल् : draddanki@gmail.com प्रथम मुद्रण : 2018 द्वितीय मुद्रण : 2019 तृतीय मुद्रण : 2019 प्रतुलु : 1000 हक्कुलु : प्रकाशकुलवि प्रकाशकुलु चल्ला साम्बिरॆड्डि श्रीपावनि सेवा समिति इं.नॆं. : 3-6-499ऎ, रोड् नॆं.7, हिमायत्नगर् हैदराबादु - 500 029. sripavanisevasamithi@gmail.com मुद्रण वै.वि. रॆड्डि प्रिण्टर्स् & बैण्डर्स्, दिल्सुख्नगर्, हैदराबाद् - 500 036. सॆल् : 9391015317 yvr.postpresssolutions@gmail.com वॆल : अमूल्यं iii श्रीरामसाक्षात्कारं सी. मॆऱु"गु चॆङ्गटनुन्न मेघम्बु कैवडि नुविद चॆङ्गटनुण्ड नॊप्पुवा"डु चन्द्रमण्डल सुधासारम्बु पोलिक मुखमुन" जिऱुनव्वु मॊलचुवा"डु वल्लीयुत तमाल वसुमतीजमु भङ्गि बलुविल्लु मू"पुन" बर"गुवा"डु नीलनगाग्रसन्निहितभानुनि भङ्गि घनकिरीटमु दल" गलुगुवा"डु आ.वॆ. पुण्डरीकयुगमु" बोलु कन्नुलवा"डु वॆड"द युरमु वा"डु विपुल भद्र मूर्तिवा"डु राजमुख्यु" डॊक्करु"डु ना कन्नु"गवकु नॆदुर" गान"बडियॊ (1-16) iv पोतन भागवतमु परहितमु सेयु नॆव्व"डु परमहितुं डगुनु भूतपञ्चकमुनकुं बरहितमॆ परमधर्ममु परहितुनकु नॆदुरु लेदु पर्वेन्दुमुखी! (श्रीमद्भागवतं स्कं-8; 235) तनकै ए लाभं कोरकुण्डा इतरुलकु मेलु चेसेवाडु सकल जीवुलकी आत्मीयुडु अवुताडु. इतरुलकु मेलु चेयटानिकि मिञ्चिन धर्मं मरॊकटि लेदु. ई विधङ्गा परोपकारं चेसेवाडिकि ऎदुरु लेदु. एतावत् जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु । प्राणैरर्थैः धिया वाचा श्रेय एवाचरेत् सदा ॥ (श्रीमद्भागवतम् 10-22-35) मानवुडन्नवाडु तन प्राणालनु गूडा लॆक्कचेयकुण्डा, तनकु गल सम्पदलनु, तॆलिविनि, वाक्चातुर्यान्नी इतरुल श्रेयस्सु कोसं ऎन्त विनियोगिस्ते अन्तवरके अतनि जन्म चरितार्थं अवुतुन्दि. भागवतसारं v ना माट भारतदेशं वेदालकु पुट्टिनिल्लु. ऋग्वेदं, यजुर्वेदं, सामवेदं, अथर्ववेदं अनि ई वेदालु नालुगु. ऒक्कटिगा उन्न वेदान्नि कृष्णद्वैपायन महर्षि नालुगु वेदालुगा विभजिञ्चाडु. अन्दुके आ महर्षिकि ‘वेदव्यासुडु’ अनि पेरु वच्चिन्दि. ई महर्षे अष्टादश पुराणाल्नि कूडा रचिञ्चाडु. ई 18 पुराणाललो ‘पुराण तिलकं’ अनि पेरुपॊन्दिन्दि भागवतं. ऎन्नो रचनलु चेसिनप्पटिकी लभिञ्चनि मनश्शान्ति वेदव्यास महर्षिकि भागवतान्नि रचिञ्चिन तरुवाते लभिञ्चिन्दि. अन्त महिमगल ग्रन्थं भागवतं. ई पुराणान्नि व्यास महर्षि तन कुमारुडैन शुक महर्षिकि चॆप्पाडु. शुकमहर्षि परीक्षित्तु अने ऒक राजुगारिकि चॆप्पाडु. आ तरुवात ऎन्दरो महनुभावुलु ऎन्दरिको ई पुराणान्नि चॆप्तू वस्तुन्नारु. चॆप्पिनवारिकी, विन्नवारिकी ऎन्तो मेलुनु चेकूरुस्तुन्दि पवित्रमैन ई भागवत पुराणं. संस्कृतंलो उन्न ई भागवतान्नि मधुरङ्गा तॆलुगुलोनिकि अनुवदिञ्चाडु ‘बम्मॆर पोतन’ महकवि. भक्तिमाधुर्यान्नि कवित्वंलो रङ्गरिञ्चि भागवतं अने रसायनान्नि लोकानिकि अन्दिञ्चिन महनीयुडु ई बम्मॆर पोतन. आ रसायनं प्रति इण्ट्लोनू उण्टे ए रकमैन अनारोग्यालु दरिचेरवनि गट्टिगा नम्मिन व्यक्तुललो अग्रगण्युलु श्रीमान् चल्ला साम्बिरॆड्डिगारु. वीरु श्रीपावनि सेवासमिति अने ऒक धार्मिकरथान्नि श्रेयोमार्गंलो नडुपुतुन्न महनुभावुलु. वीरि सङ्कल्पबलमे नन्नु मळ्ळी ई भागवतन्तो मी मुन्दुकु वच्चेला चेसिन्दि. अन्दुकु वारिकी, आदरिस्तुन्न मीकू नमस्करिस्तू स्वागतं पलुकुतुन्नानु. मी अद्दङ्कि श्रीनिवास् vi पोतन भागवतमु साधुवादं विद्यावतां भागवते परीक्षा- अन्नारु. इदि संस्कृत भागवतं माट. अदॊक पनसपण्डु. जटिलमैन वेदान्त विषयाल मध्य तॊनलनु वॆदिकि पट्टुकोवालि. विडदीसुकोवालि. आस्वादिञ्चालि. श्रमैकसाध्यं. ई पनसपण्डुनु मन पोतन महकवि भक्ति अने मन्त्र जल सम्प्रोक्षणतो मामिडिपण्डुगा, आरमुग्गिन आम्रफलङ्गा मार्चिवेशाडु. दानितो रामायण भारतालनु मिञ्चिन प्राचुर्यं पोतनगारि भागवतानिकि दक्किन्दि. दानिनि इप्पुडु डा. अद्दङ्कि श्रीनिवास् गारु कण्डगलिगिन सुलभ सुन्दरमैन वाडुक तॆलुगुलोने वचनीकरिञ्चि लोकानिकि अन्दिस्तुन्नारु. मध्य मध्य मधुराति मधुरमैन पोतन पद्यालनु वाचविगा अन्दिस्तू दीनि रुचिनि द्विगुणं त्रिगुणं चेशारु. अन्तेकादु मूडु स्थायिल वारि कोसं अन्नट्टुगा मूडु ग्रन्थालुगा रूपॊन्दिञ्चारु. पिल्लल कोसं तक्कुव पुटलतो द्राक्षाफलङ्गा मॊदटिदि. युवत कोसं रॆट्टिम्पु पुटलतो कदळीफलङ्गा रॆण्डवदि. प्रौढुलकोसं मरिन्नि पुटलतो नारिकेळफलङ्गा मूडवदि. श्रीरामायणान्नि कूडा वीरु इलागे अन्दिञ्चबोतुन्नारु. इदि चाला गॊप्प कृषि. समाजंलो अधिक सङ्ख्याकुल्नि पट्टिञ्चुकुन्न अनुवक्तगा डा. अद्दङ्कि श्रीनिवास् गारु निलिचिपोतारु. पुटल हॆच्चु तग्गुल माट ऎला उन्ना मूडिण्टा कथ मात्रं समग्रङ्गा अन्दडं चॆप्पुकोदग्ग विशेषं. ई विषयंलो वीरु तीसुकुन्न जाग्रत्त, वेसुकुन्न प्रणाळिक अत्यद्भुतं. बहुधा प्रशंसनीयं. बिन्दुवुकी सिन्धुवुकी परिमाणंलोने तेडा. परमार्थंलो रॆण्डू ऒकटे. दीन्नि वचनीकरणंलो चूपिञ्चारु श्रीनिवास् गारु. vii मरो चमत्कारं एमिटण्टे - पिल्लल भागवतं चदिविनवारु युवभागवतं अन्दुकुण्टारु. अदि मुगिञ्चिनवारु पॆद्दल भागवतं पट्टुकुण्टारु. अला चदिविञ्चे ऒक अन्तर्गत प्रणाळिकतो ई ग्रन्थत्रय प्रस्थानं जरिगिन्दि. नेनु चॆप्पडं ऎन्दुकु, मीरे चूस्तारुगा! रण्डि !! वॆण्टबडि वीरितो इन्नि ग्रन्थालु व्रायिस्तुन्न पट्टुवदलनि विक्रमार्कुडु श्री चल्ला साम्बिरॆड्डि गारिनी, प्रचुरिस्तुन्न श्री पावनि सेवा समितिनी अभिनन्दिस्तू पाठकुलकु स्वागतं पलुकुतुन्नानु. सॆलवु भवदीयुडु बेतवोलु रामब्रह्मं 9848169769 हैदराबाद् तेदि. 10.03.2018 साधुवादं viii पोतन भागवतमु क्र.सं. विषयं पुट प्रथम स्कन्धं

  1. अवतारिक 1
  2. कथा प्रारम्भं 2
  3. सूत महर्षि राक 2
  4. श्रीहरि अवतारालु 4
  5. अहॆू! शुकमहर्षी! 6
  6. नारद महर्षि 7
  7. नारद महर्षि पूर्वजन्म वृत्तान्तं 7
  8. अश्वत्थाम अवमानं 9
  9. द्रौपदि क्षमागुणं 9
  10. भीष्माचार्युनि हितबोध 11
  11. श्रीकृष्णुडि द्वारकाप्रयाणं 13
  12. द्वारका प्रवेशं 13
  13. उत्तरा गर्भ संरक्षण 14
  14. विदुरुडि हितवु 15
  15. परीक्षित्तु पट्टाभिषेकं 17
  16. प्रायोपवेशं 19 द्वितीय स्कन्धं
  17. खट्वाङ्गुडि कथ 20
  18. भक्तिमार्गं 21
  19. श्रीहरि लीलावतारालु 23
  20. ब्रह्मतपस्सु 26 तृतीय स्कन्धं
  21. विदुरुडि तीर्थयात्र 28
  22. उद्धवुडि दुःखं 29
  23. मैत्रेय महर्षि 30 विषयसूचिक क्र.सं. विषयं पुट
  24. कालस्वरूपं 31
  25. वराहवतार कथ 32
  26. जयविजयुल शाप वृत्तान्तं 33
  27. हिरण्याक्ष वध 34
  28. सृष्टिक्रमं 35
  29. कपिलावतार कथ 36
  30. आत्मस्वरूपं 38
  31. भक्तियोगं 38
  32. सदाचारालु 39
  33. ब्रह्म मॊक्कटे 39 चतुर्थ स्कन्धं
  34. दक्षयागं 41
  35. भक्त ध्रुवुडु 44
  36. नारदुडि उपदेशं 45
  37. ध्रुवुडि तपस्सु 46
  38. घनस्वागतं 47
  39. वेनुडि वध 48
  40. पृथुचक्रवर्ति चरित्र 49
  41. प्राचीनबर्हि 52
  42. पुरञ्जनोपाख्यानं 53 पञ्चम स्कन्धं
  43. प्रियव्रतुडि कथ 56
  44. ऋषभावतार कथ 57
  45. भरतुडि चरित्र 58
  46. मोक्षमार्गं 60 ix क्र.सं. विषयं पुट षष्ठ स्कन्धं
  47. अजामिळुडि कथ 62
  48. यमुडि शासनं 65
  49. सृष्टि विस्तरण 65
  50. देवेन्द्रुडि गर्वं 67
  51. विश्वरूपुडु - नारायणकवचं 67
  52. वृत्रासुरुडि कथ 68
  53. नहुषुडि शापवृत्तान्तं 70
  54. वृत्रासुरुडि पूर्व जन्म वृत्तान्तं 70
  55. दिति - पुंसवनव्रतं 72 सप्तम स्कन्धं
  56. धर्मसन्देहं 74
  57. प्रह्लद चरित्र 75
  58. हिरण्यकशिपुडि ओदार्पु 76
  59. हिरण्यकशिपुडि वरालु 77
  60. प्रह्लदुडि व्यक्तित्वं 77
  61. प्रह्लदुडि भक्ति 80
  62. नवविध भक्ति मार्गालु 81
  63. प्रह्लदुडि विवेकं 83
  64. चित्रहिंसलु 84
  65. श्रीहरि-अन्तर्यामित्वं 86
  66. नरसिंहवतारं 87
  67. उग्र नरसिंहुडु 88
  68. त्रिपुरासुर संहरं 89
  69. श्रेष्ठमैन धर्मालु 90
  70. अजगरोपाख्यानं 91
  71. वेदमार्गं 93 क्र.सं. विषयं पुट अष्टम स्कन्धं
  72. गजेन्द्रुडि मोक्षं 94
  73. एनुगुल स्वैरविहरं 95
  74. शरणागति 96
  75. श्रीहरि आगमनं 97
  76. क्षीरसागर मथनं 103
  77. वामनावतारं 108
  78. तृप्तिलोने सुखं 111
  79. शुक्राचार्युडि हितवु 111
  80. सत्यव्रतं 112
  81. भळी! बली! 114
  82. त्रिविक्रम स्वरूपं 114
  83. मत्स्यावतार कथ 117 नवम स्कन्धं
  84. वैवस्वतमनुवु वंशं 119
  85. अम्बरीषुडि कथ 121
  86. एकादशीव्रतं 122
  87. दुर्वासुडि कोपं 122
  88. इक्ष्वाकु वंश क्रमं 125
  89. मान्धातृ चक्रवर्ति 126
  90. सगर पुत्रुलु 127
  91. कल्माषपादुडु 127
  92. श्रीराम चरित्र 129
  93. चन्द्रवंशं 136
  94. परशुरामुडि कथ 136
  95. विश्वामित्रुडु 138
  96. ययाति चरित्र 139
  97. रन्तिदेवुडि चरित्र 141 विषयसूचिक x पोतन भागवतमु क्र.सं. विषयं पुट दशम स्कन्धं
  98. श्रीकृष्णावतारं 145
  99. कंसुडि हिंस 146
  100. वसुदेवुडि वेडुकोलु 147
  101. नारदुडि राक 149
  102. बलभद्रुडि जननं 150
  103. श्रीकृष्णावतार घट्टं 151
  104. सन्दडे सन्दडि 154
  105. नन्दुडू वसुदेवुडू 155
  106. पूतन वध 156
  107. आनन्दं… आश्चर्यं 157
  108. तृणावर्तुडि संहरं 158
  109. गर्ग महर्षि 159
  110. श्रीकृष्ण बलरामुल बाल्यक्रीडलु 160
  111. गोपिकल मॊर 161
  112. विश्वरूप सन्दर्शनं 163
  113. श्रीकृष्णुडि अल्लरि 164
  114. उलूखल बन्धनं 165
  115. मद्दिचॆट्लकु मोक्षं 167
  116. बृन्दावन वासं 168
  117. वत्सासुर संहरं 169
  118. बकासुर वध 169
  119. चल्दुल आरगिम्पु 170
  120. अघासुर वध 170
  121. ब्रह्मदेवुडि माय 171
  122. धेनुकासुर संहरं 175
  123. काळिय मर्दनं 176
  124. नागस्र्तील प्रार्थन 177 क्र.सं. विषयं पुट
  125. प्रलम्बासुर वध 179
  126. गोपिका वस्र्तापहरणं 180
  127. मुनि भार्यल विन्दु 181
  128. इन्द्रयागं - गोवर्धन पर्वत पूज 183
  129. गोपिकल आगमनं 184
  130. गोपिका गीतलु 186
  131. रासक्रीड 187
  132. सुदर्शनुडि शापविमोचनं187
  133. शङ्खचूड संहरं 188
  134. वृषभासुर वध 188
  135. कंसुडि आह्वनं 188
  136. केशि वध 189
  137. व्योमासुर वध 189
  138. अक्रूरुडि राक 190
  139. यमुनलो बलरामकृष्णुलु 190
  140. मथुरानगर प्रवेशं 191
  141. कुवलयापीडं 193
  142. कंस वध 194
  143. उग्रसेन महराजुकु पट्टाभिषेकं 194
  144. सान्दीपनि महर्षि 195
  145. उद्धवुडि सन्देशं 195
  146. कृष्ण जरासन्धुल युद्धं 197
  147. कालयवनुडु 198
  148. द्वारकानगरं 198
  149. मुचुकुन्दुडु 199
  150. प्रवर्षण पर्वतं 200 xi क्र.सं. विषयं पुट
  151. रुक्मिणी कल्याणं 201
  152. अग्निद्योतनुडि रायबारं 202
  153. श्रीकृष्णुडि राक 204
  154. रुक्मिणि आन्दोळन 205
  155. श्रीकृष्णुडि विजयं 207
  156. प्रद्युम्न कुमार चरित्र 208
  157. शमन्तकमणि 209
  158. इन्द्रप्रस्थ प्रयाणं 213
  159. अष्टमहिषी कल्याणं 213
  160. नरकासुरुडु 214
  161. वीरनारि - सत्यभाम 215
  162. पारिजातापहरणं 217
  163. बलरामुडि विजृम्भण 218
  164. बाणासुरुडि तपस्सु 219
  165. शिव - केशव युद्धं 221
  166. नृग महराजु 222
  167. पौण्ड्रक वध 223
  168. द्विविदुडि वध 225
  169. बलरामुडि प्रतापं 225
  170. श्रीकृष्णुडि महिम 226
  171. जरासन्धुडि वध 227
  172. श्रीकृष्ण स्तुति 229
  173. शिशुपाल वध 229
  174. साल्वुडि दण्डयात्र 231
  175. दन्तवक्र्तुडि वध 232
  176. बलरामुडि तीर्थयात्रलु 233
  177. कुचेलोपाख्यानं 234
  178. आत्मीयुल कलयिक 238 क्र.सं. विषयं पुट
  179. वसुदेवुडि यागं 240
  180. सुभद्रा परिणयं 241
  181. मिथिलानगर सन्दर्शनं 242
  182. श्रुतिगीतलु 242
  183. विष्णु सेवा प्राशस्त्यं 243
  184. वृकासुर संहरं 243
  185. भृगु परीक्ष 244
  186. ब्राह्मण पुत्रुलु 245 एकादश स्कन्धं
  187. महर्षुल आगमनं 248
  188. मुसलं पुट्टिन्दि 249
  189. विदेहर्षभ संवादं 249
  190. वैकुण्ठानिकि आह्वनं 254
  191. श्रीकृष्णुडि उपदेशं 254
  192. अवधूत - यदु संवादं 256
  193. अवतार परिसमाप्ति 260 द्वादश स्कन्धं
  194. कल्कि अवतारं 262
  195. धर्मस्वरूपं 264
  196. सर्पयागं 265
  197. वेदपुराणाल व्याप्ति 266
  198. मार्कण्डेयोपाख्यानं 267
  199. द्वादशादित्युलु 270
  200. भागवत पुराण प्राशस्त्यं 271
  201. अन्ता हरिमयमे 272 उपयुक्त पद्यानुक्रमणिक 273-276 विषयसूचिक 1 अवतारिक शा. श्रीकैवल्य पदम्बु" जेरुटकुनै चिन्तिञ्चॆदन् लोक र क्षैकारम्भकु भक्तपालन कळासंरम्भकुन् दानवो द्रेकस्तम्भकु" गेळिलोल विलसत्दृग्जाल सम्भूत ना नाकञ्जात भवाण्डकुम्भकु महनन्दाङ्गनाडिम्भकुन्. (1-1) ‘भक्तुल्नि आदुकॊनेवाडू, सृष्टिकर्ता अयिन बालकृष्णुडिनि मोक्षङ्कोसं नेनु प्रार्थिस्तुन्नानु’ अण्टू इष्टदेवतल्नि स्तुतिञ्चि भागवतान्नि प्रारम्भिञ्चाडु पोतन. ते.गी. चेतुलारङ्ग शिवुनि" बूजिम्पडेनि नोरु नॊव्वङ्ग हरिकीर्ति नुडुव"डेनि दययु सत्यम्बु लोनुगा" दल"प"डेनि गलुग नेटिकि" दल्लुल कडुपु चेटु (1-14) चेतुलारा शिवुण्णि पूजिञ्चनिवाडू, नोरारा हरिनि कीर्तिञ्चनिवाडू, दय, सत्यंलाण्टि गुणालनु पाटिञ्चनिवाडू जन्मिञ्चटं ऎन्दुकु? अटुवण्टि वाडि पुट्टुक तल्लुल कडुपुकु चेटु. अन्ते! अन्दुके श्रीहरिनि कीर्तिञ्चे भागवतान्नि रचिञ्चालनि सङ्कल्पिञ्चाडु ई महकवि. साक्षात्तू श्रीरामचन्द्रुडे कललो कनिपिञ्चि भागवतान्नि रचिञ्चमनि अनुज्ञ इच्चाडट! अप्पुडु पोतन- कं. पलिकॆडिदि भागवतम"ट! पलिकिञ्चु विभुण्डु रामभद्रुण्ड"ट! ने" बलिकिन भवहरमगुन"ट! पलिकॆद वेऱॊण्डुगाथ" बलुक"ग नेला? (1-17) प्रथम स्कन्धं 2 पोतन भागवतमु ‘पलिकेदि भागवतमट! पलिकिञ्चेवाडु श्रीरामुडेनट! नेनु पलिकिते नाकु मोक्षं लभिस्तुन्दट! अलाण्टप्पुडु वेरे कथ नाकॆन्दुकु? कल्पवृक्षंलाण्टि ई भागवतान्नि रचिञ्चि ना जीवितान्नि चरितार्थं चेसुकॊण्टानु’ अनि प्रारम्भिञ्चाडु. कथाप्रारम्भं अदुगो! नैमिशारण्यं. ऎन्तो गॊप्पदि आ अरण्यं! अक्कड अन्नी विन्तले! ऎक्कड चूसिना चॆट्लु, पच्चगा कळकळलाडुतू उण्टायि. फलपुष्पादुलतो कळकळलाडुतू उण्डे आ अरण्यं महर्षुलकु निवासमै अलरारुतू उण्टुन्दि. ज्ञानंलेनि जन्तुवुलु कूडा जातिविरोधान्नि विडिचिपॆट्टि ईश्वरध्यानं चेस्तुन्नट्लु कन्पिस्तायि. अन्दुके अक्कड ए क्रूरजन्तुमा साधु जन्तुवुनि हिंसिञ्चदट! महर्षुलु अक्कड ऎप्पुडू तपस्सु चेस्तू, भगवन्तुडि कथल्नि चॆप्तू विण्टू कालं गडुपुतू उण्टारट! ऒकसारि शौनकुडु मॊदलैन महर्षुलन्ता कलसि अक्कड ऒक यागं तलपॆट्टारु. आ यागं पेरु दीर्घसत्रं. इदि वॆय्यि संवत्सरालु जरुगुतुन्दि. दानिनि चूडटानिकि राजुलु, पण्डितुलु, मुनुलु, सामान्य प्रजलु इला ऒकरेमिटि? ऎन्दरो तण्डोपतण्डालुगा वस्तुन्नारु. अतिथि मर्यादलकु ए लोटू लेदु. अदी विशेषं! सूत महर्षि राक अला वच्चिनवारिलो ‘सूतुडु’ कूडा उन्नाडु. इतडु ऒक महर्षि. निजानिकि इतडि पेरु उग्रश्रवसुडु. इतडि तण्ड्रि रोमहर्षणुडु. कानी इतडिनि अन्दरू ‘सूतुडु’ अनि पिलुस्तारु. सूत महर्षि गॊप्प वक्त. वेदपुराणालु बागा चदुवुकुन्नाडु. ऎन्तो विनयं. ऎप्पुडू श्रीहरिनि कीर्तिस्तूने उण्टाडु. शौनकादि महर्षुलु सूतमहर्षिकि ऎन्तो गौरवं चेशारु. चेतुलु जोडिञ्चि इला अडुगुतुन्नारु- ‘‘सूतमहर्षी! नुव्वे मा वद्दकु रावटं मा अदृष्टं सुमा! नुव्वु चाला गॊप्पवाडिवि. गॊप्पगॊप्पवाळ्ल दग्गर नुञ्चि ऎन्नो विन्नावु. इप्पटिवाडिवा? 3 ऎन्नि ग्रन्थालु चदिवावो! ऎन्नि शास्र्तालु आपोशन पट्टावो! नीलाण्टि महनुभावुडु अन्दुबाटुलो उन्नप्पुडे सन्देहलु तीर्चुकोवालि. अन्दुके मादो सन्देहं. कलियुगंलो मानवुलु सोमरिपोतुलु, मन्दमतुलु. दीर्घकालं जीविञ्चलेरु. भयङ्करमैन रोगालु पट्टिपीडिस्तायि. ऒक्कटण्टे ऒक्कटैना मञ्चि पनि चेयरु. ऎवरिकी मनश्शान्ति उण्डदु. इलाण्टि कलिकालंलोनि प्रजलकु आत्मशान्ति कलगालण्टे, मृत्युभयं दरिचेरकुण्डा उण्डालण्टे श्रीहरिकथल्नि विनडं तप्प वेरे दारिलेदु. कं. भूषणमुलु वाणिकि नघ पेषणमुलु मृत्युचित्त भीषणमुलु हृ त्तोषणमुलु कल्याणवि शेषणमुलु हरिगुणोपचितभाषणमुल् (1-46) श्रीहरि गुरिञ्चिन माटले सरस्वतीदेविकि अलङ्कारं. अवे सकल पापालकू गॊड्डलिपॆट्टुलाण्टिवि. मृत्युवु मनसुकु भयं कलिगिञ्चेवि. भक्तुल हृदयालकु आनन्दं कलिगिस्तायि. कळ्याणकरालैन आ गोविन्दुडि कथल्नि विनालनि मा चॆवुलु तहतहलाडुतुन्नायि. समुद्रान्नि दाटालनुकॊनेवारिकि मञ्चि नाविकुडु दॊरिकिनट्लु माकु नुव्वु दॊरिकावु. काबट्टि माकु आ गोविन्दुडि कथामृतान्नि प्रसादिञ्चु.’’ सूत महर्षि शान्तङ्गा विन्नाडु. अलागेनण्टू - ‘‘महर्षुलारा! मी आन्दोळन नाकु अर्थमयिन्दि. कलियुगंलो अन्दरू तरिञ्चे मार्गान्नि मीकु चॆप्तानु’’ अण्टू मुन्दुगा महयोगि अयिन शुक महर्षिकि नमस्करिञ्चि - ‘आ महनुभावुडु सर्वसङ्ग परित्यागि. सामान्युडु कादु. वेदानिकि सारमैन भागवतं अने दीपान्नि लोकानिकि चूपिञ्चिन दयामयुडु, व्यास भगवानुडि कुमारुडु. आ शुकयोगि चॆप्पिन भागवतान्ने नेनु मीकु विनिपिस्तानु. मुनीन्द्रुलारा! हरिभक्ति ऒक्कटे मानवुलु आचरिञ्चदगिन गॊप्प धर्मं. अदे परमात्मकु मनल्नि चेरुव चेस्तुन्दि. हरिनि कीर्तिञ्चिना, हरिकथल्नि विन्ना प्रथम स्कन्धं 4 पोतन भागवतमु कर्मलु नशिस्तायि. मोक्षं लभिस्तुन्दि’ अण्टू प्रारम्भिञ्चाडु. श्रीहरि अवतारालु भगवन्तुडैन श्रीमन्नारायणुडु लोकाल्नि रक्षिञ्चडं कोसं अनेक अवताराल्नि धरिञ्चाडु. मॊट्टमॊदट श्रीहरि धरिञ्चिन अवतारं कौमारावतारं (अण्टे सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमारुलने पेर्लु कल बालकुल रूपं). रॆण्डो अवतारं वराहवतारं. ई अवतारंलोने रसातलंलो मुनिगिपोयिन भूमिनि पैकि ऎत्ताडु. मूडो अवतारंलो नारदमहर्षिगा जन्मिञ्चाडु. नालुगो अवतारं नरनारायणुल अवतारं. ऐदो अवतारंलो कपिलमहर्षिगा जन्मिञ्चि ‘साङ्ख्यं’ अने शास्र्तान्नि बोधिञ्चाडु. आरो अवतारं दत्तात्रेयुडि अवतारं. अत्रि अनसूयलकु पुत्रुडिगा जन्मिञ्चिन अवतारं. एडो अवतारंलो ‘यज्ञुडु’ अने पेरुतो जन्मिञ्चि, स्वायम्भुव मन्वन्तरान्नि रक्षिञ्चाडु. ऎनिमिदो अवतारंलो मेरुदेविकी, नाभि अने राजुकी ‘उरुक्रमुडु’ अने पेरुतो जन्मिञ्चाडु. तॊम्मिदो अवतारंलो पृथुचक्रवर्तियै पृथिविनि धेनुवुगा जेसि समस्त ओषधुल्नी पितिकाडु. पदो अवतारं मत्स्यावतारं. ई अवतारंलोने वैवस्वतमनुवुनू, सृष्टिकि कावलसिन पदार्थालनू ऒक नावलो उञ्चि रक्षिञ्चाडु. पदकॊण्डो अवतारं कूर्मावतारं. पालकडलिनि देवतलू राक्षसुलू मथिस्तू उण्टे ताबेलु रूपंलो वॆळ्ळि मन्दर पर्वतं मुनिगिपोकुण्डा तन वीपुपै भरिञ्चाडु. 5 आ समुद्रंलो नुञ्चि पुट्टिन ‘धन्वन्तरि’ पन्नॆण्डो अवतारं. धन्वन्तरि चेतिलोनि अमृतं कोसं देवतलू राक्षसुलू गॊडवपड्डारु. अप्पुडु श्रीहरि मोहिनि अवतारं धरिञ्चि अमृतान्नि तॆलिविगा देवतलकु पञ्चाडु. इदि पदमूडो अवतारं. हिरण्यकशिपुण्णि चम्पि, प्रह्लदुण्णि रक्षिञ्चिन नारसिंहुडु पद्नालुगो अवतारं. बलिचक्रवर्तिनि रसातलानिकि पम्पिन वामनमूर्ति पदिहेनो अवतारं. पदहरो अवतारंलो परशुरामुडिगा जन्मिञ्चाडु, दुष्टक्षत्रियुल्नि संहरिञ्चाडु. पदिहेडो अवतारं वेदव्यासुडु. पद्दॆनिमिदो अवतारं श्रीरामावतारं. पन्तॊम्मिदो अवतारं बलरामुडु. इरवय्यो अवतारंलो श्रीकृष्णुडिगा जन्मिञ्चाडु. इरवय्यॊकटो अवतारङ्गा मध्यगया प्रान्तंलो बुद्धुडिगा अवतरिस्ताडु. अलागे अधर्मं मितिमीरिनप्पुडु ‘विष्णुयशुडु’ अने ब्राह्मणुडिकि ‘कल्कि’ अने पेरुतो जन्मिस्ताडु. निजानिकि आ देवदेवुडिकि असलु पुट्टुक अन्नदे उण्डदु. ए कर्मलू आ स्वामिनि अण्टुकोवु. तन विलासं कोसमे ई लोकाल्नि सृष्टिस्ताडु. परिपालिस्ताडु. लयं चेस्ताडु. अन्दुके श्रीहरि लीललु ऒक्कपट्टान अन्तुचिक्कवु. भागवतं अण्टे ई भगवानुडि लीलले. लोककल्याणं कोसं व्यासुडु दीनिनि रचिञ्चि तन कुमारुडैन शुकयोगिचेत चदिविञ्चाडु. शुकयोगि परीक्षित्तुकु विनिपिञ्चाडु. ‘श्रीकृष्णुडु तन अवतारान्नि चालिञ्चडन्तो कलियुगंलो धर्मं क्षीणिञ्चिन्दि. कलि प्रवेशिञ्चिन्दि. कलि दोषं अने चिम्मचीकट्लु कम्मुकॊनि दारि तॆलियक प्रथम स्कन्धं 6 पोतन भागवतमु अलमटिञ्चे जनुलकु भागवतं सूर्युडि लाण्टिदि’ अन्नाडु सूत महर्षि. वॆण्टने शौनकुडु- अहॆू! शुकमहर्षी! ‘‘मुनीन्द्रा! शुकमहर्षि सर्वसङ्गपरित्यागि अनि इन्तकुमुन्दे चॆप्पावु. अतडि दृष्टिकि अन्नी ऒकेला कनिपिस्तायट कदा! बङ्गारमू मट्टी, स्र्ती-पुरुषुलू इला ए तेडालू अतडिकि तॆलियने तॆलियवट! अन्निण्टिलोनू परमात्मने दर्शिस्ताडट!’’ ऒकसारि शुक महर्षिनि वॆतुक्कॊण्टू अतडि तण्ड्रि वेदव्यासुडु अडवुल्लोञ्चि वॆळ्तुन्नाडट! अक्कड ऒक सरस्सुलो कॊन्दरु देवतास्र्तीलु बट्टलु लेकुण्डा स्नानं चेस्तुन्नारट! मुन्दु शुक महर्षि अटुवैपु वच्चाडट! वाळ्ळु अतडिनि असलु पट्टिञ्चुकोनेलेदु. तरुवात व्यासुडु वच्चाडट! व्यासुडिनि चूसि वाळ्ळु कङ्गारु पडि बट्टलु कट्टुकुन्नारट! दानिकि आश्चर्यपोयिन व्यासुडु ‘नेनु मुसलिवाण्णि. ना कॊडुकु नवयौवनंलो उन्नाडु. अतण्णि चूसि अस्सलु पट्टिञ्चुकोनि मीरु नन्नु चूसि इला कङ्गारु पडुतुन्नारु. ऎन्दुकु?’ अनि अडिगाडट! दानिकि वाळ्ळु ‘मुनीन्द्रा! नी कॊडुक्कि स्र्ती-पुरुष भेदं तॆलियदु. नीकु तॆलुसु’ अन्नारट! अदे शुक महर्षि गॊप्पतनं. पॆद्दलु चॆप्पगा मेमु विन्नां! शुकुडु ऎक्कडा स्थिरङ्गा उण्डडु. आवु पॊदुगु नुण्डि ऒकसारि पालु पितकडानिकि ऎन्त समयं पडुतुन्दो अन्त समयमे अतडु गृहस्थुल दग्गर उण्टाडु. अडगनिदे एदी चॆप्पडु. अडिगिते चॆप्पकुण्डा वॆळ्ळडु. अतडु निलिचिन प्रान्तं पुण्यतीर्थं अवुतुन्दनि अण्टारु. अलाण्टि शुक महर्षिनि गुरिञ्चि तॆलुसुकोवालनि उन्दि’ अनि अडिगाडु. सूत महर्षि आनन्दङ्गा चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. महर्षुलारा! अदि ई महयुगंलो मूडवदि अयिन द्वापरयुगं मुगिसे समयं. अप्पुडु उपरिचर वसुवुकु सत्यवति जन्मिञ्चिन्दि. ईमॆके ‘वासवि’ अनि मरो पेरु. ईमॆकू, पराशरुडु अने महर्षिकी ऒक पुत्रुडु जन्मिञ्चाडु. अतडे वेदव्यासुडु (पैन चॆप्पिन विष्णुवु पदिहेडो अवतारमैन वेदव्यासुडे इतडु). 7 नारद महर्षि वेदव्यासुडु कलियुगंलोनि मानवुल्नि उद्धरिञ्चडानिकि एं चेयाला? अनि आलोचिञ्चि अखण्डङ्गा उन्न वेदान्नि नालुगु भागालुगा चेशाडु. इतिहसाल्नी, पुराणाल्नी पञ्चम वेदङ्गा सृष्टिञ्चाडु. वीटिनि आयन शिष्युलु प्रचारं चेशारु. इन्त चेसिना व्यासुडिकि एदो चॆप्पलेनि वॆलिति. दानिकि कारणं श्रीहरि कथल्नि कीर्तिञ्चे भागवतान्नि रचिञ्चकपोवटमेननि अतडिकि तोचिन्दि. अदे समयंलो नारद महर्षि वच्चाडु. आयन कूडा अदे माट चॆप्पाडु. म. हरिनामस्तुतिसेयु काव्यमु सुवर्णाम्भोजहंसावळी सुरुचिभ्राजितमैन मानस सरः स्फूर्तिन् वॆलुङ्गॊन्दु श्री हरिनामस्तुति लेनि काव्यमु विचित्रार्थान्वितम्बय्यु श्री करमैयुण्ड दयोग्यदुर्मदनदत्काकोलगर्ताकृतिन् (1-96) हरिनामान्नि स्तुतिञ्चे काव्यमे गॊप्प काव्यमनी अदि मानस सरोवरं लाण्टिदनी अला स्तुतिञ्चनि काव्यं ऎन्तटि विचित्रार्थालु कलदैना बुरदगुण्ट लाण्टिदनी पोलुस्तू हरिनि सेविञ्चे जन्ममे उत्तम जन्म अनि चॆप्पाडु. अन्तेकादु भागवतान्नि रचिञ्चमनि व्यासुडिनि प्रोत्सहिञ्चाडु नारदुडु. हरिभक्ति ऎन्त गॊप्पदो व्यासुडिकि तॆलिय चॆप्पालनि तन पूर्वजन्म गुरिञ्चि चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. नारद महर्षि पूर्वजन्म वृत्तान्तं व्यासमहर्षी! नेनु पूर्वं ऒक दासीपुत्रुण्णि. मा यजमानुलु नन्नु ऋषुलकु सेवकुडिगा नियमिञ्चारु. वाळ्ळवल्ल नाकु हरिभक्ति अलवडिन्दि. कॊन्नाळ्ळकु वाळ्ळु दीक्ष मुगिञ्चारु. वॆळ्तू वॆळ्तू नाकु ‘नारायणमन्त्रं’ उपदेशिञ्चि मरी वॆळ्ळारु. आ तरुवात ना तल्लि पामु करिचि चनिपोयिन्दि. अयिना नाकु बाध कलगलेदु. हरिनामान्नि स्मरिस्तू देशालु पट्टि तिरिगानु. ऒक अडविलो ऒक राविचॆट्टु क्रिन्द श्रीहरिनि ध्यानिस्तू कूर्चुन्नानु. मनस्सुलो आ स्वामि रूपं. कळ्ळु आनन्दन्तो वर्षिञ्चायि. मनस्सु उप्पॊङ्गिपोयिन्दि. प्रथम स्कन्धं 8 पोतन भागवतमु कळ्ळु तॆरिचि चूशानु. आ रूपं कनिपिञ्चलेदु. अन्ता वॆतिकानु. ऎक्कडा कनिपिञ्चलेदु. इन्तलो ऒक दिव्यवाणि. ‘नारदा! ऎन्दुकु नीकी वृथा प्रयास. ई जन्मलो कादु. नन्नु वच्चे जन्मलो चूडगलवु. अप्पुडु नुव्वु ना प्रियभक्तुडिवि अवुतावु’ अन्दि आ वाणि. ‘ना आनन्दं अन्ता इन्ता कादु. अप्पटि नुण्डी श्रीहरिने स्मरिस्तू शरीरान्नि विडिचिपॆट्टानु. अन्तलो प्रळयं वच्चिन्दि. समुद्रं मध्यलो श्रीहरि शयनिञ्चि उन्नाडु. आ श्रीहरि नाभिकमलंलो उन्न ब्रह्मदेवुडु निद्रलो उन्नाडु. अतडि ऊपिरि द्वारा लोपलिकि प्रवेशिञ्चानु. अला कॊन्नि वेल युगालु गडिचिपोयायि. ब्रह्मदेवुडु मेल्कॊनि सृष्टि प्रारम्भिञ्चाडु. मरीचिनी, नन्नू इङ्का कॊन्दरु महर्षुल्नी सृष्टिञ्चाडु. अप्पटिनुण्डी नेनु श्रीहरिने स्मरिस्तू मुल्लोकालू तिरुगुतू उन्नानु. इदुगो! ना वीण. दीनि पेरु महति. दीनिनि मीटुतू श्रीहरिने गानं चेस्तुण्टानु. यागालू जपालू ऎन्नि चेसिना लभिञ्चनि मनश्शान्ति श्रीहरिनि स्मरिस्ते लभिस्तुन्दि. इदि ना अनुभवंलोञ्चि वच्चिन माट! ले! भागवतान्नि रचिञ्चु. नी मनसु कुदुटपडुतुन्दि’ अनि चॆप्पि नारद महर्षि वॆळ्लिपोयाडु. वेदव्यासुडु बदरी वनंलो उन्न ‘शम्याप्रासं’ अने आश्रमंलो कूर्चॊनि भक्तितो भागवतान्नि रचिञ्चाडु. मॊदट शुक महर्षि दानिनि पठिञ्चाडु. तरुवात कॊन्तकालानिकि प्रायोपवेशं चेयालनुकुन्न परीक्षित्तु महराजुकु तने स्वयङ्गा ई भागवतान्नि विनिपिञ्चाडु. ऎन्दुको तॆलुसा!! कं. निगममुलु वेयु" जदिविन सुगमम्बुलु गावु मुक्तिसुभगत्वम्बुल् सुगमम्बु भागवत मनु निगमम्बु पठिम्प मुक्ति निवसनमु बुधा! (1-140) वॆय्यि वेदाल्नि चदिविना लभिञ्चनि मोक्षं ऒक्क भागवतान्नि चदिविते सुलभङ्गा लभिस्तुन्दि. अन्दुके आ भागवतान्नि मीकु विनिपिस्तुन्नानु. श्रद्धगा विनण्डि. अण्टू सूत महर्षि चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. 9 अश्वत्थाम अवमानं अदि कुरुक्षेत्र सङ्ग्रामं. भीमुडि धाटिकि दुर्योधनुडु तॊडलु विरिगि नेलपै कूलिपोयाडु. अश्वत्थाम दुर्योधनुडिकि ऎलागैना आनन्दं कलिगिञ्चा लनुकॊन्नाडु. पाण्डव शिबिरंलो दूरि, रात्रिकि रात्रि निद्रलो उन्न उपपाण्डवुल तललु नरिकि तीसुकुवच्चाडु. अदि तॆलिसि पाण्डवुलु भग्गुमन्नारु. द्रौपदि विलविललाडिपोयिन्दि. अर्जुनुडु शपथं पट्टि मरी कदिलाडु. अश्वत्थामनु बन्धिञ्चि तॆच्चि द्रौपदि काळ्ळदग्गर पडवेशाडु. श्रीकृष्णुडितो सह अन्दरू अश्वत्थामनु संहरिञ्चडमे तगिन शिक्ष अन्नारु. अन्दुकु कारणं अश्वत्थाम अधर्मानिकि पाल्पड्डाडु. भयपड्डवाण्णि, मति लेनिवाण्णि, निद्रलो उन्नवाण्णि, मद्यपानं चेसिनवाण्णि, पारिपोतुन्नवाण्णि, शरणु वेडिनवाण्णि, स्र्तीलनू चम्पटं अधर्मं. अश्वत्थाम सिग्गुतो तल दिञ्चुकॊनि उन्नाडु. द्रौपदि अतण्णि चूसि- द्रौपदि क्षमागुणं ‘‘गुरुपुत्रा! ऎन्त पनि चेशावय्या! अभं शुभं तॆलियनि ना पुत्रुल्नि पॊट्टनपॆट्टुकुन्नावे! इदेना नी वीरत्वं? निद्रपोतुन्न अमायकुल्नि चम्पुतावा? वाळ्ळु नीकें अपकारं चेशारु? नाकु इन्त कडुपु कोतनु मिगिल्चावे!’’ अन्दि. अण्टूने कृष्णार्जुनुल्नि चूसि - ‘अर्जुनुडु इतण्णि बन्धिञ्चि तीसुकुवच्चाडनि तॆलिसि अक्कड इतडि तल्लि ऎन्तगा तल्लडिल्लिपोतुन्दो! नेनु अर्थञ्चेसुकोगलनु. ऒक तल्लि कडुपुकोत इङ्को तल्लिके तॆलुस्तुन्दि. वद्दु! इतण्णि चम्पिते मनकु ब्रह्महत्यापातकं चुट्टुकुण्टुन्दि’ अन्दि. आमॆ माटल्लो ऒकवैपु बाध, मरोवैपु जालि. द्रौपदि माटलु सबबुगाने तोचायि धर्मराजुकि. भीमुडिकैते असलु नच्चलेदु. ऒक्क गुद्दुतो चम्पेस्तानण्टू वीरावेशङ्गा अश्वत्थाम मीदिकि वच्चाडु भीमुडु. द्रौपदि अड्डुपडिन्दि. श्रीकृष्णुडु कलुगजेसुकॊनि अन्दरि कसी तीरेला प्रथम स्कन्धं 10 पोतन भागवतमु शिरोमुण्डनं चेयिञ्चि अवमानिञ्चि पम्पमन्नाडु. अर्जुनुडु अलागे चेसि अतडि तललो मॆरुस्तुन्न चूडामणिनि लाक्कॊनि तरिमिकॊट्टाडु. पाण्डवुलु युद्धंलो मरणिञ्चिनवारन्दरिकी दहन संस्कारालु चेशारु. श्रीकृष्णुडु गान्धारी धृतराष्र्टुलनू, कुन्तीदेविनी, द्रौपदिनी इला अन्दरिनी ऊरडिञ्चाडु, धैर्यं चॆप्पाडु. धर्मराजु तानु राजु अयिन तरुवात मूडु अश्वमेध यागालु कूडा चेशाडु. अप्पटिदाका श्रीकृष्णुडु अक्कडे उण्डि तरुवात द्वारककु बयलुदेराडु. इन्तलो उत्तर तत्तरपडुतू वच्चि श्रीकृष्णुडि काळ्ळपै पडिन्दि. आमॆ अभिमन्युडि भार्य. अश्वत्थाम अवमानन्तो रगिलिपोयाडु. अभिमन्युडिवल्ल उत्तर गर्भंलो पॆरुगुतुन्न पाण्डव वंशान्नि तिरिगि मॊलकॆत्तकुण्डा चेयालनि आ पिण्डम्पै ब्रह्मस्र्तान्नि प्रयोगिञ्चाडु. अदि आ शिशुवुनु दहिञ्चालनि चूस्तोन्दि. अन्दुके उत्तर वच्चि रक्षिञ्चमनि श्रीकृष्णुण्णि वेडुकुन्दि. श्रीकृष्णुडु आ शिशुवुनु रक्षिञ्चाडु. अप्पुडु कुन्ति तन पुत्रुल्नी द्रौपदिनी तीसुकॊनिवच्चि श्रीकृष्णुण्णि कॊनियाडिन्दि. शा. श्रीकृष्णा! यदुभूषणा! नरसखा! शृङ्गाररत्नाकरा! लोकद्रोहि नरेन्द्र वंशदहना! लोकेश्वरा! देवता नीक ब्राह्मणगोगणार्ति हरणा! निर्वाण सन्धायका! नीकुन् म्रॊक्कॆद" द्रुम्पवे! भवलतल् नित्यानुकम्पानिधी! (1-200) श्रीकृष्णा! यदुवंशानिकि अलङ्कारमैनवाडा! नरुडिकि स्नेहितुडा! शृङ्गार समुद्रुडा! लोकद्रोहुलैन राजुल वंशाल्नि संहरिञ्चिनवाडा! लोकेश्वरा! अन्दरि आर्तिनी पोगॊट्टेवाडा! मोक्षान्नि प्रसादिञ्चेवाडा! दयानिधी! नीकु नमस्करिस्तानु. ना ई संसारं अने तीगल्नि त्रुञ्चवय्या! अनि पदे पदे वेडुकॊन्दि. श्रीकृष्णुडु आनन्दिञ्चि, कुन्तीदेवि कोरिकपै इङ्का कॊन्नाळ्ळु हस्तिना पुरंलोने उण्डिपोयाडु. 11 भीष्माचार्युनि हितबोध धर्मराजुकु युद्धंलो गॆलिचामन्न आनन्दं ए कोशाना लेदु. राज्यं कोसं अयिनवाळ्ळन्दरिनी संहरिञ्चामे अन्न बाध वॆण्टाडुतोन्दि. ऎवरु ऎन्नि रकालुगा ओदार्चिना अतडि बाध तीरेला लेदु. ‘ना पापानिकि निष्कृति लेदु’ अनि तल्लडिल्लिपोतुन्नाडु. नोटिकि मुद्द सहिञ्चडंलेदु. कण्टिमीद कुनुकु लेदु. एं चेयालो तोचक अम्पशय्य मीद उन्न भीष्मुडि दग्गरकु वॆळ्ळाडु. अतडि वॆण्ट श्रीकृष्णुडू, तक्किन पाण्डवुलू, कॊन्दरु महर्षुलू कूडा उन्नारु. भीष्मुडु तानु लेवलेनि स्थितिलो उण्डि कूडा ऎवरिनि ऎला गौरविञ्चालो अला गौरविञ्चाडु. अर्चिञ्चाडु कूडा. पाण्डवुल्नि चूसि- ‘नायनलारा! मीरु मञ्चिवाळ्ळै उण्डि कूडा ऎन्नि इब्बन्दुलु पड्डारो! पापं! मी तल्लि कुन्तीदेवि पड्ड अगचाट्लु वर्णनातीतं. इदे नायना! काल महिम. महवीरुलैन मीरु, श्रीकृष्णुडि अण्डदण्डलु उण्डि कूडा नाना यातनलू पड्डारु. इदन्ता विष्णुमाय. आ परमात्म ऎप्पुडु एं चेस्ताडो ऎवरिकि ऎरुक? साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे तन तेजस्सुनु बयटपॆट्टकुण्डा सामान्युडिला मी वॆण्ट तिरुगुतुन्नाडु. अतण्णि मीरु ओ मेनत्त कॊडुकुगाने चूस्तुन्नारु. ऎन्नि रकालुगा उपयोगिञ्चुकोवालो अन्नि रकालुगानू उपयोगिञ्चु कॊण्टुन्नारु. अयिना अतडि गॊप्पदनानिकि ए लोटू रादु. आत्मीयुलैन भक्तुलकु अन्दुबाटुलो उण्डटं आ स्वामिकि अलवाटु. इप्पुडु चूडण्डि. आ देवदेवुडे स्वयङ्गा ना चिवरि घडियल्लो ना दग्गरिकि कोरि मरी वच्चाडु. इन्तकण्टे नाकें कावालि चॆप्पण्डि? नेनु पूर्वजन्मलो ऎन्त पुण्यं चेशानो एमो!’ अन्नाडु. पाण्डवुलकु ऎन्नो नीतुलु, धर्मालू विवरङ्गा चॆप्पाडु. इन्तलो उत्तरायण पुण्यकालं समीपिस्तोन्दि. भीष्मुडिकि तानु कोरिनप्पुडे मरणिञ्चे वरं उन्दि. अन्दुके गोपालुडि मुखान्ने चूस्तू अतडिपैने दृष्टिनि निलिपि, श्रीकृष्णपरमात्मनु स्तुतिस्तुन्नाडु. प्रथम स्कन्धं 12 पोतन भागवतमु सी. कुप्पिञ्चि यॊगसिन" गुन्तलम्बुल कान्ति गगनभागम्बॆल्ल गप्पिकॊन"ग नुऱिकिन नोर्वक युदरम्बुलो नुन्न जगमुल व्रे"गुन जगति गदल" जक्रम्बु" जेपट्टि चनुदॆञ्चु रयमुन" बैनुन्न पच्चनि पटमु जाऱ नम्मिति नालावु नगुबाटु सेयक मन्निम्पुमनि क्रीडि मरल" दिगुव ते.गी. गरिकि लङ्घिञ्चु सिंहम्बु करणि मॆऱसि ने"डु भीष्मुनि जम्पुदु निन्नु" गातु विडुवु मर्जुन! यनुचु मद्विशिखवृष्टि" दॆरलि चनुदॆञ्चु देवुण्डु दिक्कु नाकु (1-221) कुरुक्षेत्रयुद्धंलो नेनु बाणालु वेस्तुण्टे श्रीकृष्णुडिकि कोपं वच्चिन्दि. रथम्पैनुण्डि नापैकि दूकाडु. अप्पु डायन मुङ्गुरुल कान्ति आकाशमन्ता व्यापिञ्चिन्दि. अला उरिकेसरिकि पॊट्टलो उन्न लोकाल बरुवुकु भूमि कम्पिञ्चिन्दि. चक्रान्नि धरिञ्चि वेगङ्गा वस्तुण्टे पैन उन्न उत्तरीयमू जारिपोतोन्दि. ‘निन्ने नम्मुकुन्नानु. नन्नु नव्वुलपालु चॆय्यकु’ अनि अर्जुनुडु वॆनक्कि लागुतुण्डगा नन्नु चम्पुतानण्टू नावैपु वस्तुन्न आ श्रीकृष्णुडे नाकु दिक्कु. म. ऒक सूर्युण्डु समस्तजीवुलकु" दानॊक्कॊक्क"डै तो"चुपो लिक ने देवु"डु सर्वकालमु महलीलन् निजोत्पन्नज न्यकदम्बम्बुल हृत्सरोरुहमुलन् नानाविधानूनरू पकु"डै यॊप्पुचुनुण्डु नट्टि हरि ने" ब्रार्थिन्तु शुद्धुण्डनै (1-226) ऒके सूर्युडु समस्त जीवुलकू ऒक्कॊक्कडै कनिपिस्ताडु. अलागे भगवन्तुडू तानु सृष्टिञ्चिन प्राणुल हृदयाललो सर्वकालमू अनेकरूपाललो नित्यमू उण्टाडु. आ हरिनि नेनु शुद्धुडिनै प्रार्थिस्तानु अण्टू भीष्मुडु त्रिकरणशुद्धिगा श्रीकृष्णुडिने ध्यानिस्तू वासुदेवुडिलो ऐक्यमैपोयाडु. 13 धर्मराजु भीष्मुडिकि अन्त्यक्रियलु निर्वहिञ्चि हस्तिनापुरानिकि तिरिगि वच्चाडु. श्रीकृष्णुडि अनुग्रहं वल्ल अतडु अन्दिञ्चे अण्डदण्डलवल्ल धर्मराजु धर्मबद्धङ्गा राज्यपालन चेस्तुन्नाडु. श्रीकृष्णुडि द्वारका प्रयाणं पनुलन्नी पूर्तय्यायि. इक द्वारका नगरानिकि बयलुदेराडु श्रीकृष्ण परमात्म. अन्दरिनी पेरुपेरुना पलकरिञ्चि मनस्फूर्तिगा शुभाकाङ्क्षलु चॆप्पि बयलुदेराडु. रथं हस्तिनापुरं वीथुल्लोञ्चि सागिपोतुन्दि. ऊरु ऊरन्ता कदलिवच्चिन्दि. ऎक्कड चूसिना जनमे! जयजय ध्वानालु, वाद्यघोषलु, पुष्पवर्षालु. इला श्रीकृष्णुडिकि घनङ्गा वीड्कोलु पलुकुतोन्दि हस्तिनापुरं. अन्तःपुरकान्तलु मिद्दॆलपै निलबडि श्रीकृष्णुण्णि चूस्तू परवशिञ्चिपोतुन्नारु. अन्दरिनी प्रेमगा चूस्तू, अन्दरिपै चिरुनव्वुल्नि मोहपु जल्लुला कुरिपिस्तू सागिपोयाडु नन्दगोपालुडु. द्वारका प्रवेशं अदिगो द्वारक! श्रीकृष्णुडि राक कोसं अन्दङ्गा मुस्ताबयिन्दि. पौरुलू तहतहलाडिपोतुन्नारु. अन्दरू ऎदुरु चूस्तुन्न नल्लनय्य राने वच्चाडु. वच्चि अन्दरिकी अमितमैन आनन्दान्नि कलिगिञ्चाडु. नगरं नगरमे श्रीकृष्णुडि पादाल दग्गर मोकरिल्लिन्दि. इन्नाळ्ळू एमैपोयावय्या! अनि कण्टतडि पॆट्टुकुन्दि. श्रीकृष्णुडि दर्शनं, अतडि माटलु, चूपुलु, चेष्टलु द्वारका पौरुल्नि मन्त्रमुग्धुल्नि चेशायि. घनङ्गा स्वागतं पलिकारु श्रीकृष्ण परमात्मकु. नगर कान्तलु मेडलपै निलबडि चूस्तू गोपालुडि लीलल्नि कॊनियाडुतुन्नारु. स्तोत्रालू मङ्गळवाद्यालू, वेदाशीर्वचनालू, स्र्तील गानालू कॊनसागुतू उण्टे श्रीकृष्णुडु द्वारका नगर वीथुल्लो उल्लासङ्गा पर्यटिञ्चि नेरुगा तन अन्तःपुरानिकि चेरुकुन्नाडु. अक्कड देवकीदेविकि नमस्करिञ्चाडु. तक्किन आरुगुरु तल्लुलकू नमस्करिञ्चाडु. अप्पुडु आ तल्लुल कळ्ळलो आनन्द बाष्पालु. प्रथम स्कन्धं 14 पोतन भागवतमु अक्कण्णुञ्चि ऒकेसारि अनेक रूपालतो तन अन्तःपुर कान्तलन्दरि दग्गरिकी वॆळ्ळि वाळ्ळनू आनन्दिम्पजेशाडु. ऎवरिनि ऎला तृप्तिपरचालो श्रीकृष्णुडिकि बागा तॆलुसु. अन्तमन्दितो कलिसि उन्ना वाळ्ळ गुणालेवी इतडिकि सोकवु. अदी परमात्म लक्षणं. वाळ्ळु मात्रं इतण्णि सामान्युडिलागे भाविस्तारु. अडविलो गालि एं चेस्तुन्दि? चॆट्टू चॆट्टू ऒरुसुकॊनेला चेसि निप्पु पुट्टिस्तुन्दि. आ निप्पु अडवि मॊत्तान्नी काल्चि बूडिद चेस्तुन्दि. श्रीकृष्णुडू अन्ते. राजुलन्दरिकी परस्परं वैरं कल्पिञ्चाडु. तानु आयुधं चेतपट्टकुण्डाने अन्दरू नाशनमय्येला चेशाडु. अन्त चेसिनवाडु इप्पुडु ऎन्तो शान्तङ्गा एमी तॆलियनट्लु इक्कड ई कान्तल मध्य वच्चि कूर्चुन्नाडु. अन्दुके महमह तपस्वुलकु सैतं ई परन्धामुडि लीललु अर्थङ्कावु’ अण्टू सूत महर्षि श्रीकृष्णुडि गॊप्पतनं चॆप्तुन्नाडु. अप्पुडु शौनक महर्षि श्रीकृष्णुडु परीक्षित्तुनु कापाडिन वृत्तान्तान्नि विवरङ्गा चॆप्पमनि अडिगाडु. सूत महर्षि आ कथ चॆप्पटं मॊदलुपॆट्टाडु. उत्तरा गर्भ संरक्षण महर्षुलारा! अश्वत्थाम उत्तरादेवि गर्भंलोनि शिशुवुपै ब्रह्मस्त्रं प्रयोगिञ्चाडनि चॆप्पानु कदा! आ अस्त्रं अग्निज्वाललनु चिम्मुतू शिशुवुनु दहिञ्चिवेस्तोन्दि. आ वेडिकि ताळलेक कडुपुलोनि शिशुवु इला आक्रोशिस्तुन्नाडु- ‘ओरि भगवन्तुडा! एडवडानिकि कूडा शक्ति चालटंलेदु. असले गर्भ गोळंलो उन्नानु. एड्चिना ऎवरिकी विनिपिञ्चदु. नाकु दिक्कु ऎवरु? नन्नु आदुकॊने नाथुडु एडि? पुट्टकमुन्दे पुट्टिन ई आपदनु ऎवरिकि चॆप्पुकोनु? ना मरणन्तो मा अम्मकु कूडा तीरनि कडुपु कोत. मा अम्म ऎप्पुडू अण्टू उण्डेदि, ‘श्रीहरि ऒक्कडे रक्षकुडु’ अनि. अदि निजमेना? आ देवुडु इक्कडिकि वस्ताडा? नन्नु रक्षिस्ताडा?’ श्रीमन्नारायणुडु आ शिशुवु मॊर विन्नाडु. बॊटनवेलन्त परिमाणंलो साक्षात्करिञ्चाडु. सकल आभरणालू धरिञ्चाडु. चेतिलो ऒक गद उन्दि. शिशुवु चुट्टू गिरगिरा तिप्पेस्तू सॆगलु कक्कुतुन्न ब्रह्मस्र्तान्नि अणचिवेसि आ 15 पसिकन्दुनु रक्षिञ्चाडु. आ महनुभावुडु ऎवरा? अनि ई पसिगुड्डु कळ्ळु तॆरिचि चूसेलोपे कनिपिञ्चकुण्डापोयाडु. कॊन्नाळ्ळकु ऒक मञ्चि मुहूर्तंलो आ शिशुवु लोकंलोनिकि वच्चाडु. धर्मराजु तन मनुमडिकि जातकर्मलु जरिपिञ्चि ‘विष्णुरातुडु’ अनि पेरुपॆट्टाडु. तल्लि गर्भंलो तनु चूसिन देवुडु ई लोकमन्ता व्यापिञ्चि उन्नाडनि परीक्षगा चूस्तुन्नाडट आ बालुडु. अन्दुके अतडिकि परीक्षित्तु अनि पेरु वच्चिन्दि. बालुडु पॆरिगि पॆद्दवाडै अलरारुतुन्नाडु. धर्मराजु सोदरुलतो कलसि साम्राज्यान्नि विस्तरिम्पजेसि अनेक यागालु चेसि राज्यान्नि चक्कगा परिपालिस्तुन्नाडु. कॊन्नाळ्ळकु तीर्थयात्रलकु वॆळ्ळिन विदुरुडु तिरिगि वच्चि, आ विशेषाल्नि धृतराष्र्टुडु मॊदलैनवाळ्ळकु चॆप्पाडु. अप्पटिके यादवुलु नशिञ्चारु. कानी आ विषयं चॆप्पि धर्मराजुनु बाधपॆट्टदलचुकोलेदु विदुरुडु. विदुरुडि हितवु ऒकरोजु रात्रि विदुरुडु धृतराष्र्टुडि वद्दकु वच्चि कर्तव्यान्नि इला उपदेशिञ्चाडु. ‘राजा! कालं चाला गॊप्पदि. ऎन्तटिवारिनैना लयं चेस्तुन्दि. नी परिस्थिते चूडु. नी वैभवमन्ता पोयिन्दि. नुव्वु ऎवरिकि हनि चेशावो आ पाण्डवुल दग्गरे इप्पुडु दिक्कुलेक कुक्किन पेनुला उण्डवलसि वच्चिन्दि नीकु. इला ऎन्तकालं? इप्पटिकैना मोहन्नि विडिचिपॆट्टु. शरीरं अशाश्वतमनि तॆलुसुको’ अन्नाडु. धृतराष्र्टुडु विदुरुडि माटल्लोनि सत्यान्नि ग्रहिञ्चाडु. तन भार्य गान्धारिनि तीसुकॊनि विदुरुडितो कलसि हिमालयालकु वॆळ्ळिपोयाडु. तॆल्लवारिन्दि. धृतराष्र्टुडिकि रोजूलागे नमस्करिञ्चडानिकि वच्चिन धर्मराजुकु अक्कड ऎवरू कनिपिञ्चलेदु. विदुरुडू लेडु. कङ्गारु पडिपोयाडु. सञ्जयुडु कनिपिञ्चाडु. अतण्णि अडिगाडु. अतडू तॆलियदन्नाडु. सरिग्गा अप्पुडे अक्कडिकि नारद तुम्बुरुलु वच्चारु. ‘धर्मराजा! ई विश्वं मॊत्तं ईश्वरुडि अधीनंलो उण्टुन्दि. आ परात्परुडे अनेक रूपाललो उण्टाडु. ऒक जन्तुवुकु मरो जन्तुवु आहरं. तिनेदी प्रथम स्कन्धं 16 पोतन भागवतमु परमात्मे. तिनबडेदी परमात्मे. अतडु चेसे प्रति पनिकी ऒक अर्थं, परमार्थं उण्टुन्दि. नी तल्लिदण्ड्रुल गुरिञ्चि बाधपडकु. वाळ्ळु हिमालयाललो उन्नारु. श्रीहरिनि ध्यानिस्तुन्नारु. सरिग्गा नेटिकि ऐदोरोजुन वाळ्ळु परमात्मलो ऐक्यं अवुतारु. विदुरुडु तीर्थयात्रलकु वॆळ्ळिपोताडु’ अनि चॆप्पि वॆळ्ळिपोयारु. तरुवात धर्मराजुकु कॊन्नि अपशकुनालु कनिपिञ्चायि. श्रीकृष्णुडु ऎला उन्नाडो तॆलुसुकॊनि रम्मनि अर्जुनुण्णि द्वारककु पम्पिञ्चाडु. अतडु इङ्का रालेदु. अदॊक आन्दोळन. श्रीकृष्णुडु ऎला उन्नाडोननि मरो आदुर्दा. अर्जुनुडु वॆळ्ळि वच्चाडु. अतडि मुखंलो नॆत्तुरु चुक्क लेदु. कळ्ळु धाराळङ्गा वर्षिस्तुन्नायि. एमैन्दो धर्मराजुकु अर्थं कालेदु. भीमुडू अक्कडे उन्नाडु. आन्दोळनगा चूस्तू- ‘अर्जुना! ऎन्दुकला उन्नावु? एमय्यिन्दि? कं. ओडितिवो शत्रुवुलकु? नाडितिवो साधुदूषणालापमुलन्? गूडितिवो परसतुलनु? वीडितिवो मानधनमु वीरुल नडुमन्? (1-352) कं. तप्पितिवो यिच्चॆदननि? चॆप्पितिवो कपट साक्षि? चेसिन मेलुं दॆप्पितिवो? शरणार्थुल रॊप्पितिवो द्विजुल" बसुल रोगुल सतुलन्? (1-353) कं. अडिचितिवो भूसुरुलनु? गुडिचितिवो बालवृद्ध गुरुवुल वॆलिगा? विडिचितिवो याश्रितुलनु? मुडिचितिवो परुल वित्तमुल लोभमुनन् ? (1-354) शत्रुवुल चेतिलो ओडिपोयावा? मञ्चिवाळ्ळनु दूषिञ्चावा? परस्र्तीलनु कलिशावा? अभिमानं पोगॊट्टुकुन्नावा? माट तप्पावा? दॊङ्ग साक्ष्यं इच्चावा? चेसिन मेलुनु दॆप्पिपॊडिचावा? शरणुवेडिन वाळ्लनुगानी, ब्राह्मणुलनुगानी, नोरुलेनि मूगजीवाल्निगानी, रोगुल्निगानी, स्र्तीलनुगानी कोपन्तो निन्दिञ्चावा? 17 ब्राह्मणुल्नि कॊट्टावा? बालवृद्धगुरुवुलकु पॆट्टकुण्डा नुव्वे तिन्नावा? नम्मिन वाळ्लनु विडिचिपॆट्टावा? लोभन्तो इतरुल सम्पदलनु अनुभविञ्चावा? अनि कङ्गारुगा एवेवो अडुगुतुन्नाडु धर्मराजु. अर्जुनुडु वॆक्किवॆक्कि एडुस्तू ‘राजा! एमनि चॆप्पनु? ऎला चॆप्पनु? मनल्नि अन्नी तानै नडिपिञ्चिन श्रीकृष्णुडु, प्राणानिकि प्राणमैन गोपालुडु मनल्नि विडिचिपॆट्टि वॆळ्ळिपोयाडु’ अण्टू बावुरुमन्नाडु. धर्मराजु हताशुडैपोयाडु. काळ्ळ क्रिन्द भूमि कम्पिञ्चिनट्लयिन्दि. अर्जुनुडु- श्रीकृष्णुडु चेसिन सहयालन्निण्टिनी एडुस्तूने एकरुवु पॆडुतुन्नाडु. ‘ऎन्नि चेशाडु, ऎन्तगा आदुकॊन्नाडु, ऎन्त दय चूपिञ्चाडु’ अण्टू विलपिस्तुन्नाडु. इन्तलो श्रीकृष्णुडु तनकु बोधिञ्चिन गीतासारं अतडिकि गुर्तुकु वच्चिन्दि. दुःखान्नि दिगमिङ्गुकुन्नाडु. बुद्धिनि वासुदेवुडि पादालपै केन्द्रीकरिञ्चाडु. श्रीकृष्ण मरणवार्त विन्न कुन्तीदेवि कूडा शरीरान्नि विडिचिपॆट्टिन्दि. मुल्लुनु मुल्लुतोने तीयालि. अला तीशाक आ रॆण्डु मुल्लुलनू काल्चि वेसेवाडे विवेकवन्तुडु. नाटकं अयिपोयाक नटुडु पात्रलनु विडिचि तन सॊन्त रूपंलो कनिपिस्ताडु. परमात्म कूडा अन्ते! आयन लोककण्टकुलैन दुष्टुलनु अन्तमॊन्दिञ्चेन्दुकु तानुकूडा देहन्नि धरिञ्चि, दुष्टसंहरा नन्तरं तन देहन्नि कूडा विडिचिपॆट्टाडु. इप्पुडु श्रीकृष्णावतारं समाप्तं अयिन्दि. इदे कलियुगानिकि नान्दि. परीक्षित्तु पट्टाभिषेकं धर्मराजु परीक्षित्तुकु राज्यं अप्पगिञ्चि शरीरान्नि विडिचिपॆट्टाडु. सोदरुलू द्रौपदी क्रमङ्गा अतडिनि अनुसरिञ्चारु. विदुरुडु प्रभास तीर्थंलो शरीरान्नि विडिचिपॆट्टाडु. ‘महर्षुलारा! वीळ्ळन्दरि चरित्रलू ऎन्तो गॊप्पवि. विन्ना चदिविना पुण्यं लभिस्तुन्दि. परीक्षित्तु ‘इरावति’ अने कन्यनु पॆळ्ळाडाडु. चक्कगा राज्यपालन चेस्तुन्नाडु. कॊन्नाळ्ळकु जैत्रयात्रकु बयलुदेराडु. दारिलो ऒक विचित्रमैन परिस्थिति ऎदुरय्यिन्दि अतडिकि. प्रथम स्कन्धं 18 पोतन भागवतमु कलिपुरुषुडु ऒक गोवृषभमुल जण्टनु कालितो तन्नुतुन्नाडु. वाडु राजचिह्नलतो शूद्रुडि वेषंलो उन्नाडु. ऎद्दुरूपंलो उन्नदि धर्मदेवुडु. आवु रूपंलो उन्नदि भूमात. धर्मदेवुडु ऒण्टिकालिपै कुण्टुतू नडुस्तुन्नाडु. मूगप्राणुल्नी अमायिक जीवुल्नी हिंसिञ्चेवाळ्ळनु राजु शिक्षिञ्चालि. अला चेयनि राजुगारि आयुवु, ऐश्वर्यं इवन्नी वृथा. अन्दुके परीक्षित्तु कलिपुरुषुण्णि शिक्षिञ्चाडु. तन राज्यंलो प्रवेशिञ्चडानिकि वीलु लेदनि शासिञ्चाडु. कलि प्राधेयपड्डाडु. ‘नेनु ऎक्कड उण्डालो नुव्वे चॆप्पु’ अनि वेडुकॊन्नाडु. दानिकि परीक्षित्तु- ‘ओयी, कली! नीकु प्राणिहिंस, स्र्तीव्यसनं, जूदं, मद्यपानं अने नालुगु स्थानालिस्तुन्नानु’ अन्नाडु. कलि इङ्का कावालनि कोरगा बङ्गारं (अवसरान्नि मिञ्चिन अधिकसम्पद) कूडबॆट्टडं वल्ल वच्चे असत्यं, मदं, कामं, हिंस, शत्रुत्वं अने स्थानालु कूडा इच्चि, हरिभक्तुल जोलिकि वॆळ्ळकु’ अनि शासिञ्चाडु. अटुपैनि- धर्मदेवुडु कोल्पोयिन तपस्सु, शौचं, दय अने मूडु पादालनू तिरिगि अतडिकि प्रसादिञ्चाडु. महर्षुलु सूत महर्षि चॆप्पिनदन्ता विन्नारु. वाळ्ळ मनस्सुलु आनन्द सागरालय्यायि. कृतज्ञतगा चूस्तू ‘महर्षी! मा चॆवुल्लो विष्णुकथलु अने अमृतान्नि पोसि मम्मल्नि धन्युल्नि चेशावु. विष्णु कथलु पवित्रमैनवि. तापालनु पोगॊट्टि, पापालनु रूपुमापि सकल शुभालनु कलिगिस्तायि सुमा’ अण्टू चेतुलु जोडिञ्चारु. सूत महर्षि मळ्ळी चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. ‘मुनुलारा! ऒकरोजु परीक्षित्तु वेटकु वॆळ्ळाडु. वेटाडि अलसिपोयि दग्गरलो उन्न ऒक आश्रमानिकि चेरुकुन्नाडु. अक्कड ऒक महर्षि कळ्ळु मूसुकॊनि ध्यानंलो कूर्चॊनि उण्डटं कनिपिञ्चिन्दि. अतण्णि चूसि परीक्षित्तु पलकरिञ्चि, तनकु बागा दाहङ्गा उन्दनी कास्त नीळ्ळु इम्मनी वेडुकुन्नाडु. महर्षि उलकलेदु, पलकलेदु. ध्यानंलो उन्नाडु कदा! कानी परीक्षित्तु अला अनुकोलेदु. अदि महर्षि अहङ्कारङ्गानू, तनकु जरिगिन अवमानङ्गानू भाविञ्चाडु. अक्कडे चच्चिपडिउन्न ऒक पामुनु आ महर्षि मॆडलो वेसि वॆळ्ळिपोयाडु. 19 आ महर्षि पेरु शमीकुडु. इतडि कॊडुकु शृङ्गि. शृङ्गि जरिगिनदन्ता तॆलुसुकॊनि वॆण्टने - ‘ना तण्ड्रिनि अवमानिञ्चिनवाडु सरिग्गा वारं रोजुल्लो ‘तक्षकुडु’ अने सर्पंवल्ल मरणिस्ताडु’ अनि शपिञ्चाडु. शमीकुडु शान्तमूर्ति. शृङ्गि शापान्नि समर्थिञ्चलेदु. परीक्षित्तु देशानिकि राजु. अतडु चेसिन चिन्न तप्पुकु अन्त शिक्ष एमिटनि प्रश्निञ्चाडु. सरे! इदि विधि निर्णयं. काबट्टि ई सङ्गतिनि राजुगारिकि तॆलियजेयमनि तन शिष्युल्नि पम्पाडु. परीक्षित्तु पश्चात्तापं चॆन्दाडु. तानॆन्दुकिला चेशाडो अर्थं कालेदतडिकि. निजङ्गा इदि कलि पुरुषुडि प्रभावमे. शाप वृत्तान्तं विनि बाधपडलेदु. शृङ्गि शापमे तनलो विरक्ति कलगडानिकि बीजं अवुतुन्नदनि सन्तोषिञ्चाडु. प्रायोपवेशं अदि गङ्गातीरं. परीक्षित्तु तन पुत्रुडु जनमेजयुडिकि राज्यं अप्पगिञ्चि प्रायोपवेशानिकि सिद्धपड्डाडु. आ वार्त तॆलिसि अन्दरू वस्तुन्नारु. अत्रि, विश्वामित्र, मैत्रेय, भृगु, वसिष्ठ, पराशर, च्यवन, भरद्वाज, परशुराम, देवल, गौतम, कश्यप, कषव, कण्व, कलशसम्भव, व्यास, पर्वत, नारदादि महर्षुलू विच्चेशारु. परीक्षित्तु अन्दरिनी सादरङ्गा आह्वनिञ्चि मर्यादलु चेस्तुन्नाडु. तनकु मुक्तिमार्गं चॆप्पमनि वेडुकॊण्टुन्नाडु. अन्तलो ऒक अवधूत अक्कडिकि विच्चेशाडु. अतडिदि चूडचक्कनि रूपं. मुखंलो दिव्यमैन कान्ति. ऒण्टिमीद ऒक्क नूलुपोगैना लेदु. अतडे शुक महर्षि. ऎवरिनी एदी अडगडु. ऎवरिनी निन्दिञ्चडु. ऎवरितोनू ए सम्बन्धमू पॆट्टुकोडु. सर्वसङ्ग परित्यागि. ज्ञानं ऒक आकारं धरिञ्चि वस्ते ऎला उण्टुन्दो अला उन्नाडु. परीक्षित्तु अतडि पादाल चॆन्त कूर्चॊनि ‘योगिपुङ्गवा! नाकु मुक्तिमार्गं प्रसादिञ्चु’ अनि अभ्यर्थिञ्चाडु अन्नाडु- सूत महर्षि. आ तरुवात एमयिन्दो तॆलुसुकोवालन्न कुतूहलं शौनकादि महर्षुल कळ्ळलो स्पष्टङ्गा कनिपिञ्चिन्दि. प्रथम स्कन्धं b 20 पोतन भागवतमु सूत महर्षि चॆबुतुन्नाडु. ‘‘महर्षुलारा! शुक महर्षि चुट्टू चूशाडु. ऒक चिरुनव्वु नव्वि ‘महराजा! मञ्चि प्रश्न वेशावय्या! आत्मतत्त्वान्नि तॆलिपे प्रश्न. संसारंलो मुनिगि उन्नवाळ्ळन्दरिनी दरिजेर्चे प्रश्न. नुव्वु गॊप्प भागवतुडिवि. श्रीहरि भक्तुडिवि. मुक्तिनि कलिगिञ्चे साधनं ऒकटि उन्दि. अदे भागवतं. नेनु दीनिनि नीकु विनिपिस्तानु. मोक्षं कावालनुकॊने वाळ्ळु तप्पक विनवलसिन ग्रन्थं इदि तॆलुसा!’ अण्टू चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु शुक महर्षि. खट्वाङ्गुडि कथ महराजा! पूर्वं ‘खट्वाङ्गुडु’ अने राजु उण्डेवाडु. अतडु ऎन्तटि वीरुडो चॆप्पलें! राक्षसुल बारि नुण्डि कापाडमनि देवेन्द्रुडे इतडि सहयं कोराडु. अतडि कोरिकपै राक्षसुल्नि संहरिञ्चाडु खट्वाङ्गुडु. देवतलु आनन्दिञ्चारु. एदैना वरं कोरुकोमन्नारु. अप्पुडु खट्वाङ्गुडु इङ्का तनकु ऎन्त आयुवु उन्दो चॆप्पमन्नाडु. अन्दुकु देवतलु ‘ऒक्क मुहूर्त कालं मात्रमे’ अन्नारु. खट्वाङ्गुडु मरि आलस्यं चेयलेदु. वॆण्टने राज्यानिकि वच्चि सर्वमू त्यजिञ्चि गोविन्द नामान्नि कीर्तिञ्चि मॊदटि रॆण्डु घडियल्लोने मोक्षान्नि पॊन्दाडु. द्वितीय स्कन्धं 21 ‘राजा! नीकु एडु रोजुल समयं उन्दि. ऎन्त मञ्चि अवकाशं! अवसानदशलो शोकिञ्चकूडदु. भयं अन्तकन्ना पनिकिरादु. दृष्टिनि भगवन्तुडिपै केन्द्रीकरिञ्चि साधन द्वारा विष्णुपदान्नि चेरुकोवालि, अर्थमयिन्दा?’ अन्नाडु. आ साधन ऎला चेयालो विवरङ्गा चॆप्पमनि परीक्षित्तु अडिगाडु. दानिकि समाधानङ्गा विराट् पुरुषुडि स्वरूपान्नि विवरिञ्चटं मॊदलुपॆट्टाडु शुकयोगि. कं. हरिमयमु विश्वमन्तयु; हरि विश्वमयुण्डु; संशयमु पनिले दा हरिमयमुगानि द्रव्यमु परमाणुवु लेदु वंशपावन! विण्टे! (2-17) राजा! विश्वमन्ता हरिमयमे! आ श्रीहरि अन्तटा उन्नाडु. अतडु लेकुण्डा ऒक्क परमाणुवु कूडा लेदु. हरिनि तॆलुसुकॊण्टे एदैना साध्यमे. तॆलुसुकोकपोते अन्ता असाध्यमे. पूर्वं ब्रह्मदेवुडु कूडा सृष्टि चेयालनि कॊन्नि संवत्सरालु नाना यातनलु पड्डाडु. अतडिकि साध्यं कालेदु. श्रीहरिनि ध्यानिञ्चाडु. बुद्धि विकसिञ्चिन्दि. लोकाल्नि सृष्टिञ्चे मॆळकुव तॆलिसिन्दि. भक्तिमार्गं ज्ञानं लेनिवाडु व्यर्थमैन सुखाल कोसं प्राकुलाडुताडु. मायलोने तिरुगुतू उण्टाडु. ज्ञानि अला कादु. संसारं सुखान्नि इव्वदनि तॆलुसुकॊनि विवेकन्तो प्रवर्तिस्ताडु. पडुकोवडानिकि दूदि परुपुले कावाला नेल चालदा? भोजनानिकि दोसिळ्ळु सरिपोमा! वॆण्डि, बङ्गारु पात्रलु कावाला? नारचीरलू, जिङ्क चर्मालू उन्नायि कदा! पट्टुवस्र्ताले कावाला कट्टुकोवटानिकि? एं? गुहल्लो उण्डवच्चु कदा! मेडलू मिद्दॆलू कावाला? चॆट्लु फलाल्नी, नदुलु तिय्यटि जलाल्नी प्रसादिस्तुन्नायि. पुण्यस्र्तीलु ऎलागू भिक्ष वेस्तारु. इन्नि सदुपायाल्नि भगवन्तुडे कल्पिस्तुण्टे वाण्णी वीण्णी याचिञ्चटं देनिकि? द्वितीय स्कन्धं 22 पोतन भागवतमु कं. रक्षकुलु लेनिवारल रक्षिञ्चॆद ननुचु" जक्रि राजैयुण्डन् रक्षिम्पु मनुचु नॊक नरु नक्षमु" ब्रार्थिम्पनेल? यात्मज्ञुलकुन्. (2-22) ए रक्षणा लेनिवाळ्ळनु रक्षिस्तानण्टू परमात्म चॆप्तुण्टे ऎवरॆवर्नो रक्षिञ्च मनि वेडुकोवडं मूर्खत्वं कादू! महराजा! विवेकवन्तुडु इला आलोचिस्ताडु. वासुदेवुडि पादालने कॊलुस्तू आनन्दान्नि पॊन्दुताडु. इदि लेनिवाडु नरक द्वारं वद्द उन्न वैतरणि नदिलो पडिपोताडु. नरकंलो नाना यातनलु पडताडु. काबट्टि अन्नि मार्गाललोकॆल्ला भक्तिमार्गमे उत्तमं. अदि सुलभङ्गा मोक्षान्नि अन्दिस्तुन्दि. विष्णुभक्ति लेनिवाडिकी पशुपक्ष्यादुलकू पॆद्दगा तेडा लेदु नायना! विष्णुवुनि कीर्तननु विननि वाडि चॆवुलु चॆवुलु कावु, कॊण्डगुहलु. श्रीहरि पद्यालु चदवनि नालुक कप्प नालुक. अतण्णि चूडनि कन्नुलु नॆमलि कन्नुलु. अतण्णि पूजिञ्चनि चेतुलु शवं चेतुलु. अतडि पाद तुलसी दळान्नि आस्वादिञ्चनि मुक्कु पन्दिमुक्कु. शुक महर्षि माटलु परीक्षित्तुपै बागा पनिचेस्तुन्नायि. भ्रमलन्नी ऒक्कॊक्कटी तॊलगिपोतुन्नायि. मनस्सु ऎन्तो प्रशान्तङ्गा उन्दि. इङ्का इङ्का विनालनिपिस्तोन्दि. अन्दुके तनकु विज्ञानान्नि प्रसादिञ्चमनि मळ्ळी वेडुकॊन्नाडु. शुक महर्षि चॆप्तुन्नाडु. ‘राजा! पूर्वं साक्षात्तू नारायणुडे ब्रह्मदेवुडिकि अपारमैन विज्ञानान्नि अन्दिञ्चाडु. दानिनि ब्रह्मदेवुडु नारदुडिकि विवरिञ्चाडु. आ विज्ञानान्नि नारदुडु नाकु अनुग्रहिञ्चाडु. दानिनि नीकु नेनु विवरिस्तानु’ अण्टू कं. विश्वात्मु"डु विश्वेशु"डु विश्वमयुं डखिलनेत विष्णु" डजुं डी 23 विश्वमुलो" दानुण्डुनु विश्वमु दनलोन" जाल वॆलु"गुचु नुण्डन् (2-100) विश्वानिकि आत्म, ईश्वरुडू अयिन श्रीहरि विश्वमयुडु. समस्तानिकी नेत. असलु पुट्टुके लेनिवाडु. विश्वंलो तानु उण्टाडु. तनलो प्रकाशिस्तू विश्वं उण्टुन्दि. अटुवण्टि परमात्मवल्लने ई प्रपञ्चं आविर्भविस्तोन्दि अण्टू प्रपञ्चं प्रकारान्नि विवरङ्गा तॆलियजेशाडु. तरुवात श्रीमन्नारायणुडि लीलावतारालनू विवरिञ्चाडु. श्रीहरि लीलावतारालु श्रीहरि लीललु अनन्तमैनवि. लॆक्कपॆट्टटं कूडा साध्यं कादु. अयिना वाटिलो कॊन्नि नीकु विवरिस्तानु. विनु.
  202. वराहवतारं- पूर्वं हिरण्याक्षुडु अने राक्षसुडु भूमिनि चापगा चुट्टि तीसुकुपोयाडु. अप्पुडु हरि आ राक्षसुण्णि ई अवतारंलोने संहरिञ्चाडु.
  203. सुयज्ञावतारं- ‘स्वायम्भुवुडु’ अने ऒक मनुवु उन्नाडु. अतडि कुमार्तॆ पेरु आकृति. ईमॆ भर्त ‘रुचि’ अने ऒक प्रजापति. ई दम्पतुलकु पुत्रुडिगा जन्मिञ्चि सुयज्ञुडिगा पेरुपॊन्दाडु श्रीहरि. ई अवतारंलो इतडि भार्य ‘दक्षिण’. वीरि कुमारुलु ‘सुयमुलु’ अने देवतलु.
  204. कपिलावतारं- कर्दम प्रजापतिकी, देवहूतिकी जन्मिञ्चिन पुत्रुडे कपिलाचार्युडु. इतडिकि तॊम्मिदिमन्दि सोदरीमणुलु. साङ्ख्ययोगं ई अवतारं द्वाराने लोकानिकि अन्दिन्दि.
  205. दत्तात्रेयावतारं- अत्रि अनसूयलकु पुत्रुडिगा जन्मिञ्चिन अवतारं. दत्तात्रेयुडु परमपवित्रुडु. इतडि पादधूळि सोकि हैहय, यादव वंशालकु मोक्षं लभिञ्चिन्दि.
  206. सनकादि अवतारं- ब्रह्मदेवुडु सृष्टि चेसे समयंलो अतडि नोटि नुण्डि ‘सन’ अने ध्वनि पुट्टिन्दि. अप्पुडु पुट्टारु सनकुडू, सनन्दुडू, सनत्कुमारुडू, सनत्सुजातुडु. वीळ्ळे सनकादि ऋषुलु. द्वितीय स्कन्धं 24 पोतन भागवतमु
  207. नरनारायण अवतारं- धर्मुडिकी, दक्षुडि पुत्रिक अयिन मूर्तिकी जन्मिञ्चारु नरनारायणुलु. बदरीवनंलो नित्यं तपस्सु चेसुकॊण्टू उण्डेवाळ्ळु. वाळ्ळ तपस्सुकु भङ्गं कलिगिञ्चालनि इन्द्रुडु अप्सरसलनु पम्पाडु कानी वीळ्ळु चलिञ्चलेदु. वारिपै कोपगिञ्चनूलेदु. नारायणुडु तन गोटितोने तॊडपै गीरुकुन्नाडु. आ तॊड नुण्डि ऊर्वशि पुट्टिन्दि. आमॆ सौन्दर्यान्नि चूसिन अप्सरसलु सिग्गुतो तलदिञ्चुकॊनि तिरुगुमुखं पट्टारु.
  208. ध्रुवावतारं- ध्रुवुडु कॊडुकु सुनीति - उत्तानपादुलकु कॊडुकुगा पुट्टाडु. कनी विनी ऎरुगनि रीतिलो तपस्सु चेसि ध्रुवमण्डलान्नि पॊन्दाडु.
  209. पृथुचक्रवर्ति अवतारं- ‘वेनुडु’ अनि ऒक राजु उण्डेवाडु. अतडु ऎन्तो क्रूरुडु. अन्दुवल्ल ब्राह्मणुल शापानिकि गुरय्याडु. ई वेनुडि पुत्रुडे पृथुचक्रवर्ति. भूमिनि आवुगा चेसि समस्त वस्तुवुलनु दानि पॊदुगु नुण्डि पिदिकिन घनुडु.
  210. वृषभावतारं- नाभि-सुदेवि दम्पतुलकु श्रीहरि ऋषभुडि पेरुतो जन्मिञ्चिन अवतारं.
  211. हयग्रीव अवतारं- वेदालु पुट्टडानिकि कारणमैन अवतारं. बङ्गारु वन्नॆतो कान्तुलीने हयग्रीवुडि मुक्कु पुटाल नुण्डि वेदराशि पुट्टुकॊच्चिन्दि.
  212. मत्स्यावतारं- वैवस्वतमनुवुनू, सृष्टि चेयडानिकि कावलसिन औषधालनू महर्षुलनू ऒक नावलो उञ्चि प्रळय समयंलो रक्षिञ्चिन अवतारं. अलागे राक्षसुल बारिनुण्डि वेदालनु रक्षिञ्चिन अवतारमू इदे!
  213. कूर्मावतारं- देवतलु - राक्षसुलु अमृतं कोसं क्षीरसागरान्नि मथिञ्चारु. मन्दर पर्वतमे दानिकि कव्वं. अदि समुद्रंलो मुनिगिपोते इदुगो! ई अवतारंलोने दानिनि तन वीपुपै धरिञ्चाडु.
  214. नृसिंहवतारं- हिरण्यकशिपुडु अने राक्षसुण्णि चम्पि प्रह्लदुण्णि रक्षिञ्चिन अवतारं. 25
  215. आदिमूलावतारं- मॊसलि बारिन पड्ड एनुगुनु ई अवतारंलोने कापाडाडु.
  216. वामनावतारं- श्रीहरि वामनुडिगा अवतरिञ्चि बलिचक्रवर्तिनि रसातलानिकि अणगद्रॊक्किन अवतारं.
  217. हंसावतारं- नारदुडिकि आत्मतत्त्वं तॆलिपे महभागवत पुराणान्नि चॆप्पिनदि ई अवतारंलोने.
  218. मनुवु अवतारं- चक्रायुधान्नि धरिञ्चि लोकान्नि पालिञ्चटं कोसं तने मनुवुगा अवतरिञ्चाडु श्रीहरि.
  219. धन्वन्तरि अवतारं- तन पेरु स्मरिस्ते चालु भूमिपै जनुलन्दरिकी रोगालु पोगॊडुतू आयुर्वेद शास्र्तान्नि लोकानिकि प्रसादिञ्चाडु श्रीहरि ई अवतारंलोने.
  220. परशुरामावतारं- रेणुकाजमदग्नि दम्पतिकि पुत्रुडिगा अवतरिञ्चि, दुर्मार्गुलैन राजुल्नि संहरिञ्चाडु. चेतिलो गॊड्डलि (परशुवु) उण्डटंवल्ल परशुरामुडय्याडु.
  221. रामावतारं- त्रेतायुगंलो कौसल्या दशरथुलकु श्रीरामुडिगा अवतरिञ्चाडु श्रीमन्नारायणुडु. धर्मं ऎला उण्टुन्दो तानु आचरिञ्चि लोकानिकि चूपिन अवतारं इदि.
  222. कृष्णावतारं- द्वापरंलो दुष्टुल्नि शिक्षिञ्चटं कोसं यदुवंशंलो जन्मिञ्चि ई अवतारंलो भूभारान्नि तग्गिञ्चाडु श्रीमन्नारायणुडु.
  223. व्यासावतारं- पराशर महर्षिकि कुमारुडिगा जन्मिञ्चि वेदालनु विभागं चेसिन अवतारं.
  224. बुद्धावतारं- धर्मान्नि विडिचि कॊन्दरु विच्चलविडिगा सञ्चरिस्तू उन्नप्पुडु ई अवतारंलोने धर्मान्नि प्रबोधिञ्चाडु.
  225. कल्कि अवतारं- कलियुगंलो अधर्मं पॆच्चु मीरिनप्पुडु ई अवतारान्नि धरिस्ताडु. चेतिलो खड्गान्नि धरिञ्चि, तॆल्लगुर्रम्पै वच्चि, तिरिगि धर्मान्नि निलबॆडताडु. द्वितीय स्कन्धं 26 पोतन भागवतमु राजा! श्रीहरि अवताराललो इवि कॊन्नि मात्रमे! वीटिलो कॊन्नि इप्पटिके जरिगिपोयायि. कॊन्नि मुन्दु जरुगुतायि. ऒक्कमाट चॆप्तानु. गुर्तुपॆट्टुको! ई भूमिपै उन्न धूळिकणालनैना लॆक्कपॆट्टवच्चुगानी श्रीहरि महिमल्नि लॆक्किञ्चटं ऎवरिवल्ला कादु. अन्नि आलोचनलू कट्टिपॆट्टि तनने नम्मि कॊलिचेवाळ्लनु आ स्वामि कण्टिकि रॆप्पला कापाडुतूने उण्टाडु. ऎन्तटिवारिकैना ऒक्कॊक्कसारि अहङ्कारं तॊङ्गिचूस्तू उण्टुन्दि. ब्रह्मदेवुडिकि कूडा रजोगुणं प्रकोपिस्तू उण्टुन्दि. अप्पुडु आ ब्रह्मदेवुडिकैना परमात्म तत्त्वं बोधपडदु. भगवन्तुण्णि शरणु वेडिते अज्ञानं तॊलगिपोतुन्दि. इतर शास्र्तालपै आधारपडकुण्डा भक्तियोगन्तो मात्रमे आ देवुण्णि आराधिञ्चालि. इदि पुण्यात्मुलु ऎञ्चुकॊन्न मार्गं. ऎन्दुकण्टावा? विनु अन्नि जन्मल्लोनू मानवजन्म दुर्लभं. काबट्टि कालान्नि व्यर्थपरचुकोकुण्डा श्रीहरिनि सेविञ्चटं मञ्चिदि. निर्मलमैन भक्ति उण्डालि. इदि लेकुण्डा ऎन्नि यज्ञालु, व्रतालु, जपालु चेसिना श्रीहरि करुणिञ्चडु. पूर्वं ब्रह्मदेवुडु नारद महर्षिकि उपदेशिञ्चिन भागवतसारं इदे! अदे नेनू नीकु चॆप्पानु. इक ई सृष्टि ऎला मॊदलयिन्दो विवरिस्तानु. विनु. ब्रह्मतपस्सु अदि कल्प प्रारम्भ कालं. ब्रह्मदेवुडु तानु पुट्टिन पद्मंलो कूर्चॊनि सृष्टि चेयालनि प्रयत्निस्तुन्नाडु. इन्तलो ‘तप तप’ अन्न शब्दं (तपस्सु चॆय्यि! तपस्सु चॆय्यि!) विनिपिञ्चिन्दि. चुट्टू चूशाडु. ऎवरू लेरु. तपस्सु प्रारम्भिञ्चाडु. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु प्रत्यक्षमय्याडु. अलागे ब्रह्मदेवुडि कळ्ळमुन्दु वैकुण्ठमू साक्षात्करिञ्चिन्दि. अह! वैकुण्ठं! अक्कड- ‘केशवुडिकण्टे गॊप्प दैवं लेडु’ अनि चिलुकलू 27 ‘ई जगमन्ता विष्णुमयं’ अनि गोरुवङ्कलू अण्टुन्नायि. तक्किन पक्षुलू श्रीहरिने कीर्तिस्तुन्नायि. ऎवरो सेवकुलु. भगवन्तुण्णि कॊलुस्तुन्नारु. निजानिकि वाळ्ळु सेवकुल्ला लेरु. दिव्यमैन आभरणालतो वॆलिगिपोतुन्नारु. वाळ्ळला सेविस्तू उण्टे आ वैकुण्ठनाथुडु पट्टुपीताम्बरं धरिञ्चि सकल आयुधालतो, दिव्यमैन वस्र्तालतो, वक्षःस्थलंलो लक्ष्मीदेवितो अलरारुतुन्नाडु. आ स्वामि पादाल नुण्डि पवित्रमैन गङ्गानदि पुट्टिन्दि. सूर्यचन्द्रुले आयन कन्नुलु. कळ्ळनिण्डा करुण. शेषुडु आयनकु शय्य. गरुडुडु वाहनं. अलाण्टि स्वामि ब्रह्मदेवुडिकि प्रत्यक्षमै वरं कोरुकोमन्नाडु. अप्पुडु ब्रह्मदेवुडु भक्ति निण्डिन हृदयन्तो ‘स्वामी! नाकु ऎन्नडू अहङ्कारं कलगकुण्डा उण्डेला अनुग्रहिञ्चु’ अन्नाडु. ‘तथास्तु’ अनि श्रीहरि वॆळ्ळिपोयाडु. तर्वात ब्रह्म सृष्टि प्रारम्भिञ्चाडु. कॊन्नाळ्ळ तर्वात तपस्सु चेशाडु. आ समयंलो नारद महर्षि वच्चि ब्रह्मदेवुडिकि सेवलु चेशाडु. दानिकि आनन्दिञ्चिन ब्रह्मदेवुडु नारदमहर्षिकि भागवतान्नि अनुग्रहिञ्चाडु. दान्नि नारदुडु व्यास महर्षिकी, आयन नाकू प्रसादिस्ते नेनु नीकु अनुग्रहिस्तुन्नानु’ अन्नाडु. श्रीमन्नारायणुडि विराट् स्वरूपान्नि पूर्तिगा तॆलुसुकोवालन्न जिज्ञास कलिगिन्दि परीक्षित्तुकि. वॆण्टने अडिगाडु. शुक महर्षि ऎन्तो विपुलङ्गा चॆप्पाडु. परीक्षित्तु आनन्दानिकि अवधुल्लेवु. विश्वं पट्टनन्त स्वामिरूपान्नि कळ्ळकु कट्टिनट्लुगा शुक महर्षि विवरिञ्चेसरिकि अतडि हृदयं आनन्दसागरंलो ओललाडसागिन्दि. सूतमहर्षि चॆप्तुण्टे आदमरचि विण्टुन्न शौनकादि महर्षुलू परवशिञ्चिपोयारु. द्वितीय स्कन्धं b 28 पोतन भागवतमु सूत महर्षि तिरिगि भागवतं प्रारम्भिञ्चाडु. ‘महर्षुलारा! शुक महर्षि इला चॆप्तुन्नाडु- ‘राजा! विदुरुडु तीर्थयात्रलु मुगिञ्चुकॊनि धर्मराजु वद्दकु वच्चाडु. अतण्णि चूडगाने धर्मराजु आप्यायङ्गा पलकरिञ्चि, सत्करिञ्चि कुशल प्रश्नलु वेशाडु. तीर्थयात्र विशेषालु चॆप्पमनि प्रार्थिञ्चाडु. विदुरुडि तीर्थयात्र विदुरुडु धर्मस्वरूपुडु. अण्टे साक्षात्तू यमधर्मराजे विदुरुडिगा जन्मिञ्चाडु. अन्दुके मॊदटिनुण्डी कौरवुल तप्पुल्नि खण्डिस्तूने वच्चाडु. अयिते अतडि माटल्नि दुर्योधनुडु विण्टेगा? पॆडचॆविनि पॆट्टाडु. धृतराष्र्टुडु कूडा एमी माट्लाडलेकपोयाडु. श्रीकृष्णुडु रायबारानिकि वच्चिनप्पुडु विदुरुडि इण्ट्लोने बसचेशाडु. विदुरुडि नीतुलु रुचिञ्चनि दुर्योधनुडु अतण्णि राज्यं नुञ्चि वॆळ्ळगॊट्टाडु. अन्दुके विदुरुडु तीर्थयात्रलकु वॆळ्ळिपोयाडु. पुण्यक्षेत्राल्नि सन्दर्शिञ्चाडु. मैत्रेय महर्षिनि कलुसुकॊनि वेदान्त विषयालु नेर्चुकॊन्नाडु. विदुरुडु प्रभास तीर्थंलो उन्नप्पुडु कुरुक्षेत्र युद्धंलो पाण्डवुलु जयिञ्चारन्न वार्त तॆलिसिन्दि. तरुवात यमुना तीरानिकि वॆळ्ळि श्रीकृष्णुडि बाल्यस्नेहितुडैन उद्धवुण्णि कलुसुकुन्नाडु. उद्धवुण्णि चूडगाने विदुरुनि मनस्सु प्रेमतो उप्पॊङ्गि पोयिन्दि. आयन श्रीकृष्ण बलरामुलतो सह अन्दरि योगक्षेमाल गुरिञ्चि अडिगाडु. तृतीय स्कन्धं 29 उद्धवुडि दुःखं पापं! उद्धवुडु! एं चेस्ताडु? ऎला चॆप्ताडु? श्रीकृष्णुडु ई लोकान्नि विडिचिपॆट्टि वॆळ्ळिपोयाडन्न वार्तनु ऎला चॆप्पगलडु? पैगा चिन्नप्पटिनुण्डी अण्टे अयिदेळ्ळ वयस्सु नुञ्ची श्रीकृष्णुडिने आराधिञ्चे परम भक्तुडु उद्धवुडु. श्रीकृष्णुडि भक्तिलो ओललाडुतू आकलिनि कूडा मरिचिपोयेन्तटि गॊप्प भक्तुडु. इप्पुडु विदुरुडु इला अडिगेसरिकि दुःखं इक ऎन्तमात्रं आपुकोलेकपोयाडु. ‘विदुरा! एं चॆप्पमण्टावु? यमुडु अने कालनागु बुसकॊट्टिन्दि. यादवुलु सर्वनाशनं अय्यारु. महर्षुल मुखालु अने पद्मालु मुडुचुकु पोयायि. दुर्मार्गुल कलुवल कळ्ळु विकसिञ्चायि. राक्षसुल गर्वं अने चीकटि अलुमुकुन्दि. ऎन्दुको तॆलुसा? श्रीकृष्णुडु अने सूर्यभगवानुडु अस्तमिञ्चाडु’ अनि बावुरुमन्नाडु. विदुरुडु रायिला उण्डिपोयाडु. मळ्ळी उद्धवुडे इला अण्टुन्नाडु. ‘ऎन्त गॊप्पवाडो कदा! श्रीकृष्णुडु. ताने ई लोकालन्निण्टिकी अधिपति अयिना उग्रसेनुण्णि सिंहसनम्पै कूर्चोपॆट्टि ऒक सेवकुडिला सेविञ्चाडे! तननु चम्पालनि वच्चिन पूतनकू परमपदान्नि इच्चाडु. सामान्युडिला पशुवुलकु कापला उन्नाडु. काळिय सर्पान्नि अणचिवेशाडु. गोवुल्नी गोपालुरनू ऎन्निसार्लु ऎन्नि आपदल नुञ्चि गट्टॆक्किञ्चाडो चॆप्पलेनु. इक बृन्दावनंलो तन वेणुगानंलो लोकाल्नि मोहंलो मुञ्चॆत्तलेदू! प्रभासतीर्थंलो मुनिगिपोयिन गुरुपुत्रुल्नि तॆच्चि गुरुवैन सान्दीपनि महर्षिकि इच्चाडु. अप्पुडु आयन कळ्ळल्लोनि आनन्दं चूडाल्सिन्दे! माटल्लो चॆप्पलें. स्वर्गानिकि वॆळ्ळि पारिजात वृक्षान्नि पॆकलिञ्चि तॆच्चि सत्यभाम इण्टिलो पॆरटिचॆट्टुगा नाटिञ्चाडु. नरकासुरुण्णि चम्पि अतडु बन्धिञ्चिन स्र्तीलकु तने नाथुडय्याडु. ऎन्दरु राक्षसुल्नि संहरिञ्चाडो, भूभारान्नि ऎन्तगा तग्गिञ्चाडो तननु नम्मि कॊल्चिनवारिनि ऎन्निसार्लु आदुकॊन्नाडो आ स्वामिके ऎरुक! तृतीय स्कन्धं 30 पोतन भागवतमु ऒकरोजु एं जरिगिन्दण्टे - कॊन्दरु महर्षुलु श्रीकृष्णुडि दर्शनं कोसं वच्चारु. यादवुलु वाळ्ळतो पराचकालाडि वाळ्ळकु कोपं तॆप्पिञ्चारु. दान्तो महर्षुलु ‘यादवुलारा! मीरन्ता मीलो मीरे कॊट्टुकॊनि चस्तारु’ अनि शपिञ्चारु. अदे जरिगिन्दि. यादवुलन्ता मरणिञ्चाक श्रीकृष्णुडु निश्चलङ्गा कळ्ळु मूसुकॊनि ऒक चॆट्टुक्रिन्द कूर्चुन्नाडु. नन्नु दग्गरकु रम्मनि ‘उद्धवा! नुव्वु बदरीवनानिकि वॆळ्ळु’ अनि आज्ञापिञ्चि, तानू ऎटो वॆळ्ळिपोयाडु. नेनु अन्ता वॆतिकानु. ऎक्कडा कनिपिञ्चलेदु. चिवरिकि ऒक राविचॆट्टु क्रिन्द आ परमात्मनु चूशानु. अप्पुडे मैत्रेय महर्षि अक्कडकु वच्चाडु. आयन विण्टू उण्डगाने श्रीकृष्णुडु नन्नु चूसि ‘उद्धवा! पूर्वजन्मलो वसुब्रह्मलु चेसिन सत्रयागंलो नुम्वा ऒक वसुवुगा उन्नावु. अप्पुडु ना पादभक्ति तप्प मरेमी कोरलेदु नुव्वु. अन्दुके नीकु मळ्ळी जन्मलेदु. नेनु इन्तकु मुन्दु ब्रह्मदेवुडिकि उपदेशिञ्चिन दिव्यज्ञानान्नि नीकू उपदेशिस्तानु’ अनि नाकु उपदेशिञ्चाडु. विदुरुडु अन्ता विन्नाडु. श्रीकृष्णुडु मरणिञ्चाडनि तॆलिसि तट्टुकोलेक पोतुन्नाडु. ऎलागो निबाळिञ्चुकॊनि ‘उद्धवा! आ दिव्यज्ञानान्नि नाकू उपदेशिञ्चवय्या!’ अन्नाडु. उद्धवुडु सरेनण्टू उपदेशिञ्चि ‘विदुरा! नुव्वु मैत्रेय महर्षिनि आश्रयिञ्चु. श्रीहरि तत्त्वान्नि आ महर्षि चक्कगा नीकु विवरिञ्चगलडु’ अनि तानु बदरिकाश्रमंवैपु सागिपोयाडु. राजा, चूशावा! श्रीकृष्ण परमात्म दूरदृष्टि. तनु वॆळ्ळिपोतू कूडा दिव्यज्ञानान्नि लोकानिकि उद्धवुडि द्वारा अन्दिञ्चाडु. मैत्रेय महर्षि तरुवात विदुरुडु दिव्यतीर्थाललो स्नानं आचरिस्तू मैत्रेय महर्षिनि कलुसुकॊन्नाडु. अतडि द्वारा सृष्टि ज्ञानान्नी, परमात्म स्वरूपान्नी तॆलुसुकुन्नाडु. ‘आकाशंलोनि चन्दमाम नीटिलो कनिपिस्तू उण्टुन्दि. नीरु कदिलिते नीटिलोनि चन्दमाम कूडा कदिलिनट्लु उण्टुन्दि. कानी असलु चन्दमाम 31 कदुलुतुन्दा! कदलदु. अलागे कर्मलनेवि जीवुडिके उण्टायि कानी परमात्मकु उण्डवु. आ कर्मलु एर्पडटानिकि कारणं अविद्य. भगवन्तुडिपै भक्ति उण्टे अविद्य तॊलगिपोतुन्दि. बन्धालु वीडिपोतायि. मोक्षं लभिस्तुन्दनि, भगवन्तुडि तत्त्वान्नि विवरिञ्चि चॆप्पाडु मैत्रेयुडु. विदुरुडि ज्ञानतृष्ण चल्लारलेदु. इङ्का तॆलुसुकोवालन्न कुतूहलन्तो मैत्रेयुण्णि अडिगि तॆलुसुकुन्नाडु. मनुचक्रवर्तुल गुरिञ्ची, देवतल गुरिञ्चि, पद्नालुगु लोकाल गुरिञ्ची, त्रिगुणाल गुरिञ्चि, आश्रम धर्माल गुरिञ्चि, वेदाल गुरिञ्चि, कालस्वरूपं गुरिञ्ची, तपोदानाल गुरिञ्ची इला ऎन्नो विशेषालु अतण्णुञ्चि विन्नाडु. राजा! ब्रह्मदेवुडु ऎला आविर्भविञ्चाडो मैत्रेयुडु विदुरुडिकि चॆप्पाडु. सृष्टि तॊम्मिदि विधालुगा उण्टुन्दनि विवरिञ्चाडु. आ तरुवात कालस्वरूपान्नि चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. कालस्वरूपं आकाशंलो सूर्युडि लेत किरणाललो ‘त्रसरेणुवु’ उण्टुन्दि. दीनिलो आरोभागं परमाणुवु. इदे सूक्ष्ममैन कालं. सूर्युडु पन्नॆण्डु राशुललो सञ्चरिञ्चडानिकि ऒक संवत्सरं पडुतुन्दि. इदे महकालं. रॆण्डु परमाणुवुलु ऒक अणुवु. मूडु अणुवुलु ऒक त्रसरेणुवु. मूडु त्रसरेणुवुलु ऒक त्रुटि. नूरु त्रुटुलु ऒक वेध. मूडु वेधलु ऒक लवं. मूडु लवालु ऒक निमेषं. मूडु निमेषालु ऒक क्षणं. अयिदु क्षणालु ऒक काष्ठ. पदि काष्ठलु ऒक लघुवु. पदिहेनु लघुवुलु ऒक नाडि. रॆण्डु नाडुलु ऒक मुहूर्तं. ई नाडुलु आरुगानि एडुगानि कलिस्ते मानवुलकु ऒक प्रहरं अवुतुन्दि. दीनिने यामं अण्टारु. नालुगु यामालु ऒक पगलु. अलागे ऒक रात्रि. रात्री पगळ्ळु कलिस्ते मानवुलकु ऒकरोजु. पदिहेनु रोजुलु ऒक पक्षं. रॆण्डु पक्षालु ऒक तृतीय स्कन्धं 32 पोतन भागवतमु मासं. ई नॆल पितृदेवतलकु ऒकरोजु. रॆण्डु मासालु ऒक ऋतुवु. आरुनॆललु ऒक अयनं. रॆण्डु अयनालु ऒक संवत्सरं. ऒक मानव संवत्सरं देवतलकु ऒक रोजु. मानवुलकु आयुः प्रमाणं नूरु संवत्सरालु अण्टू संवत्सराल गुरिञ्चि, युगाल गुरिञ्ची ऎन्तो विवरिञ्चाडु मैत्रेयुडु. चिवरिगा ऒक्क माट अन्नाडु. ‘विदुरा! कालानिकि आ परमात्मे कर्त. अन्तेकानी कालं आ परमात्मकु कर्त कादु. ई ऒक्कटी तॆलुसुकॊण्टे कालस्वरूपुडे श्रीमन्नारायणुडु अनि अर्थमवुतुन्दि. अटुवण्टि देवदेवुडि आज्ञनु अनुसरिञ्चि ब्रह्मदेवुडु सृष्टिनि प्रारम्भिञ्चाडु. सनकसनन्दनादुल्नी, मनुवुल्नी, रुद्रगणाल्नि, प्रजापतुल्नि सृष्टिञ्चि क्रमङ्गा सृष्टिनि विस्तरिम्पजेशाडु. परमात्मुडि दयवल्ल समस्तान्नी सृष्टिस्ताडु ब्रह्मदेवुडु. मळ्ळी आ परमात्मुडे विष्णुस्वरूपन्तो आ सृष्टिनि परिपालिस्ताडु. शिवुडिगा दान्नि विलयं चेस्ताडु. ब्रह्मदेवुडु मॊदट ‘स्वायम्भुवुडु’ अने मनुवुनु सृष्टिञ्चि प्रजावृद्धि काविञ्चमन्नाडु. भूमिनि चक्कगा पालिञ्चि प्रजलनु संरक्षिञ्चमनि आज्ञापिञ्चाडु. अयिते अप्पटिके भूमि समुद्रंलो मुनिगिपोयिन्दि. दानिनि ऎला बैटकु तेवालो तॆलियलेदु स्वायम्भुवुडिकि. ब्रह्मदेवुडिने अडिगाडु. ब्रह्म आलोचिस्तू उण्डगाने अतडि मुक्कुपुटालनुण्डि ‘यज्ञवराहस्वामि’ आविर्भविञ्चाडु. वराहवतार कथ मॊदट बॊटनवेलन्त उन्न वराहमूर्ति ब्रह्मण्डमन्त पॆरिगिपोयाडु. आ वराहं घुर्घुर्मण्टोन्दि. आ ध्वनिकि लोकं वणिकिपोयिन्दि. दिक्कुलु अल्लल्लाडिपोयायि. ऎगिरि गॆन्तुलु वेस्तोन्दि. मुट्टॆतो दिग्गजाल्नि पॊडुस्तोन्दि. सप्तसमुद्राल्नी कलचिवेस्तोन्दि. आकाशान्नि तोकतो कॊट्टि पगलगॊट्टालनि चूस्तोन्दि. इला भीकरमैन विन्यासालु चेस्तू समुद्रंलोनिकि दूकिन्दि. भूमिनि पैकि ऎत्ति, तन मुट्टिपै उञ्चुकुन्दि. मॆल्लगा समुद्रंलो नुञ्चि बयटकु वच्चिन्दि. 33 आ दिव्य अवतारान्नि चूसि ब्रह्मदिदेवतलु नुतिञ्चारु. ई वराहमे यज्ञस्वरूपं. यज्ञानिकि कावलसिनवन्नी दीनिनुण्डे पुट्टुकॊच्चायि. अन्दुके ‘यज्ञवराहं’ अनि पेरु पॊन्दिन्दि. देवतलु स्तुतिञ्चिन तरुवात यज्ञवराहमूर्ति भूमिनि नीटिपै यथाप्रकारं उञ्चाडु. ई सन्दर्भंलोने ‘हिरण्याक्षुडु’ अने राक्षसुण्णि ई यज्ञवराहमे संहरिञ्चिन्दि. आ कथ चॆप्तानु विनु. ‘विदुरा! हिरण्याक्ष - हिरण्यकशिपुलने इद्दरु राक्षस सोदरुलु दितिकि सन्ध्यासमयंलो जन्मिञ्चारु. वीरि तण्ड्रि कश्यप प्रजापति. वीळ्ळु लोकाल्नि पट्टि पीडिञ्चेवाळ्ळु. दीनिकि महर्षुल शापमे कारणं. अदी चॆबुतानु विनु. जयविजयुल शापवृत्तान्तं ऒकसारि सनकसनन्दनादि महर्षुलु नलुगुरू श्रीहरि दर्शनं कोसं वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळारु. अक्कड श्रीहरि द्वारपालकुलु जयविजयुलु वीळ्ळनु लोपलिकि वॆळ्ळकुण्डा अड्डुकुन्नारु. महर्षुलकु कोपं वच्चिन्दि. ‘अहङ्कारन्तो मम्मल्नि अड्डुकुन्न मीरु भूलोकंलो पुट्टि राक्षसुल्ला प्रवर्तिञ्चण्डि’ अनि शपिञ्चारु. जयविजयुलु निर्घान्तपोयि महर्षुल पादालपै पडि मन्निञ्चमनि वेडुकॊन्नारु. श्रीमन्नारायणुडु कूडा लोपल नुण्डि बयटकु वच्चाडु. महर्षुल्नि उद्देशिञ्चि - ‘मुनिपुङ्गवुलारा! वीळ्ळु ना द्वारपालकुलु. वीळ्ळु तप्पु चेस्ते नेनू चेसिनट्ले. मी शापं नाकू सम्मतमे! अयिते मी शापं प्रकारं वीळ्ळु भूमिपै पुट्टि पापफलान्नि अनुभविञ्चि त्वरगा ना सन्निधिकि चेरुकॊने अवकाशान्नि कल्पिञ्चण्डि’ अनि वेडुकुन्नाडु. अदे परमात्म गॊप्पतनं. आ शापान्नि तप्पिञ्चे शक्ति तनकु उन्दि. महर्षुलू कावालण्टे शापान्नि क्षमिञ्चेद्दामन्नारु. कानी श्रीहरि अला चेयलेदु. ऎवरैना सरे कर्मफलं अनुभविञ्चि तीरवलसिन्दे! तृतीय स्कन्धं 34 पोतन भागवतमु आ शापंवल्ल जयविजयुले हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपुलुगा, रावण कुम्भकर्णुलुगा, शिशुपाल दन्तवक्र्तुलुगा पुट्टि स्वामिनि द्वेषिञ्चारु. स्वामि चेतुल्लोने मरणिञ्चि तिरिगि वैकुण्ठान्नि चेरुकुन्नारु. अदुगो अला जन्मिञ्चिनवाळ्ळे ई हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपुलु. हिरण्यकशिपुडु ब्रह्मनु उद्देशिञ्चि तपस्सु चेसि वरालनु पॊन्दाडु. आ गर्वन्तो मुल्लोकालनू गडगडलाडिञ्चाडु. हिरण्याक्षुडु ऒक भीकरमैन गदनु धरिञ्चि देवगणालपै विरुचुकुपड्डाडु. अष्टदिक्पालकुल पैकि दण्डॆत्ताडु. स्वर्गान्नि अल्लकल्लोलं चेशाडु. समुद्रम्पै पड्डाडु. अक्कड वरुणुडि राजधानि ‘विभावरि’ अने पुरं उन्दि. दान्नि आक्रमिञ्चुकॊन्नाडु. अप्पुडु वरुणुडु अतण्णि मॆल्लगा श्रीहरि मीदिकि उसिगॊल्पि - श्रीहरि वराहरूपंलो भूमिनि उद्धरिञ्चडानिकि पाताळानिकि वॆळ्ळाडनी, अक्कडिकि वॆळ्ळमनी दारि चूपिञ्चाडु. हिरण्याक्ष वध हिरण्याक्षुडु रसातलानिकि वॆळ्ळि अक्कड उन्न यज्ञवराहमूर्तितो तलपड्डाडु. अप्पुडु चूडालि वराहस्वामि प्रतापं. पर्वतालु तलक्रिन्दु लवुतुन्नायि. समुद्रालु कल्लोलालैपोयायि. ऒक्कसारि वराहं तोक तिप्पिन्दि. सूर्यचन्द्रुलु ऎगिरिपड्डारु. ऎक्कड पड्डारो कूडा तॆलियलेदु. कन्नुल्लोञ्चि निप्पुलु कुरिपिस्तू विजृम्भिस्तुन्न वराहमूर्तिनि चूडगाने हिरण्याक्षुडिकि प्राणं पोयिनन्तपनय्यिन्दि. कानी धैर्यं तॆच्चुकॊनि वीरोचितङ्गा पोराडाडु. वराहमूर्ति आ राक्षसुण्णि वॆण्टने चम्पकुण्डा कास्त आट पट्टिञ्चाडु कानी देवतलु श्रीहरिनि आलस्यं चेयवद्दन्नारु. ‘स्वामी! इदि ‘अभिजिन्मुहूर्तं. सन्ध्याकालं वस्ते राक्षसबलं पॆरुगुतुन्दि. वॆण्टने संहरिञ्चु’ अनि वेडुकॊन्नारु. 35 यज्ञवराहमूर्ति मुन्दुगा राक्षस मायनु अन्तञ्चेसि तरुवात हिरण्याक्षुण्णि संहरिञ्चाडु. म. वरयोगीन्द्रुलु योगमार्गमुल नॆव्वानिन् मनोवीथि सु स्थिरतन् लिङ्गशरीरभङ्गमुनकै चिन्तिन्तु रा पङ्कजो दरु पाण्याहति" दन्मुखाम्बुरुहमुन् दर्शिञ्चुचुं जच्चॆ दु र्भरितोत्तंसुनि दैत्यवल्लभुनि सौभाग्यम्बु दानॆट्टिदो. (3-703) ‘हिरण्याक्षुडु ऎन्तटि अदृष्टवन्तुडो कदा! ऎन्दरु योगुलु ऎन्तगा तपस्सु चेसिना ई पुरुषोत्तमुडि दर्शनं दॊरकदे! अलाण्टिदि ई राक्षसुडु स्वामि मुखान्ने चूस्तू मरणिञ्चाडु. इदि नूटिको कोटिकोगानी दॊरकनि अदृष्टं’ अनि ब्रह्मदि देवतलु आश्चर्यपोयारु. राक्षसुडु मरणिञ्चिनन्दुकु आनन्दिञ्चारु. विदुरा! ई राक्षसुलु कूडा ब्रह्मदेवुडि सृष्टिलोनि वारे. नीकु बागा अर्थं कावडानिकि चतुर्मुख ब्रह्म चेसिन सृष्टिक्रमान्नि विवरङ्गा चॆबुतानु विनु. सृष्टिक्रमं भगवन्तुडैन श्रीमन्नारायणुडि सङ्कल्पं वल्ल सत्त्वं, रजस्सु, तमस्सु अने मूडु गुणालु पुट्टायि. वाटिलोनि रजोगुणन्नुण्डि महत्तु, अहङ्कारं उद्भविञ्चायि. अन्दुलोनि अहङ्कारन्नुञ्चि पञ्चतन्मात्रलु, वाटिनुण्डि पञ्चभूतालु पुट्टायि. आ पञ्चभूतालकु लोकसृष्टि साध्यं काकपोवडन्तो अवि - ऒक सुवर्ण अण्डान्नि सृष्टिञ्चायि. आ अण्डं महजलंलो तेलियाडुतू वृद्धिपॊन्दुतू उण्टे - परब्रह्म - नारायणुडु अने पेरुतो वॆय्यि दिव्य संवत्सरालु आ अण्डान्नि अधिष्ठिञ्चि उन्नाडु. आ श्रीमन्नारायणुडि नाभि नुण्डि ऒक पद्मं पुट्टुकुवच्चिन्दि. आ पद्मंलोनुण्डि चतुर्मुखुडैन ब्रह्म आविर्भविञ्चि, जगत्सृष्टिनि प्रारम्भिञ्चाडु. अन्दुलो भागङ्गा मॊदट प्रजापतुलनु सृष्टिञ्चाडु. वारिलो मॊट्टमॊदटिवाडु कर्दम प्रजापति. तृतीय स्कन्धं 36 पोतन भागवतमु आ तरुवात अविद्यनू पुट्टिञ्चाडु. अयिते दीनिवल्ल ब्रह्मदेवुडि शरीरं तमस्सुतो निण्डिपोयिन्दि. आ शरीरान्नि विडिचिपॆट्टाडु. दानिनुण्डे यक्षुलू, राक्षसुलू पुट्टुकॊच्चारु. पुट्टगाने आकलितो तण्ड्रियैन ब्रह्मदेवुण्णे तिनडानिकि मीदपड्डारु. अप्पुडु ब्रह्मदेवुडु ‘मा जक्षत मा रक्षत’ अन्नाडु. ‘मा जक्षत’ अन्न वारिकि यक्षुलनी, ‘मा रक्षत’ अन्नवारिकि राक्षसुलनी प्रसिद्धि कलिगिन्दि. तरुवात ऒक दिव्य शरीरन्तो देवतल्नि सृष्टिञ्चि दान्नी विडिचि पॆट्टाडु. इला ब्रह्मदेवुडु - शरीरालनु धरिस्तू, वाटिनि विडिचिपॆडुतू देवतलु, गन्धर्वुलु, यक्षुलु, सिद्धुलु मॊदलैन देवगणालनु सृष्टिञ्चाडु. अयिना ब्रह्मदेवुडिकि तृप्ति कलगलेदु. अप्पुडु उत्तमुलैन मनुवुल्नि सृष्टिञ्चि, वाळ्ळकु तन पुरुषदेहन्नि प्रसादिञ्चाडु. तरुवात ऋषिगणालनू सृष्टिञ्चि, समाधि, योगं, ऐश्वर्यं मॊदलैन तन अंशल्नि ऒक्कॊक्करिकी प्रसादिञ्चाडु. सकल देवगणालनू समस्त प्राणुलनू सृष्टिञ्चाडु. कपिलावतार कथ कॊन्तकालं तरुवात ब्रह्मदेवुडु तन सृष्टिनि इङ्का विस्तरिम्पजेयालनु कुन्नाडु. अला सङ्कल्पिञ्चि, कर्दममहर्षिनि पिलिचि, प्रजासृष्टि चेयमनि आदेशिञ्चाडु. अप्पुडु कर्दमुडु पदिवेल दिव्यसंवत्सरालु तपस्सु चेसि श्रीहरिनि मॆप्पिञ्चाडु. श्रीहरि प्रसन्नुडै अतनि मुन्दु प्रत्यक्षमय्याडु. अप्पुडु आ स्वामितो कर्दमुडु- तानु गृहस्थाश्रमान्नि स्वीकरिञ्चालनुकुण्टुन्नाननि चॆप्पाडु. अप्पुडु श्रीहरि - ‘कर्दमा! नी कोरिक तप्पक नॆरवेरुतुन्दि. ब्रह्मदेवुडि पुत्रुडू, मॊदटि मनुमा अयिन स्वायम्भुवुडु ब्रह्मवर्तदेशंलो उण्टू भूमण्डलान्नि परिपालिस्तुन्नाडु. अतडि भार्य शतरूप. वीरिको पुत्रिक उन्दि. आमॆ पेरु देवहूति. आमॆ नीकु भार्य अवुतुन्दि’ अनि अनुग्रहिञ्चि अन्तर्धानुडय्याडु. 37 आ तरुवात कॊन्नाळ्लकु स्वायम्भुवमनुवु, शतरूप तम कुमार्तॆ देवहूतिनि वॆण्टपॆट्टुकॊनि वच्चि, आमॆनु कर्दमुडिकि इच्चि विवाहं चेसि वॆळ्लिपोयारु. देवहूति उत्तमुरालैन इल्लालु. भर्तनु दैवंला भाविञ्चि अत्यन्त भक्तिश्रद्धलतो सेवलु चेस्तू उण्डेदि. तन गुरिञ्चि अस्सलु पट्टिञ्चुकॊनेदि कादु. भर्तकु सेवलु चेस्तू चेस्तू आमॆ बक्कचिक्किपोयिन्दि. आमॆ सेवलकु सन्तसिञ्चिन कर्दमुडु आमॆकु दिव्यदृष्टिनी दिव्यभोगालनू ऒक विमानान्नि बहुमानङ्गा इच्चाडु. आमॆतो बिन्दुसरस्सुलो स्नानं चेयिञ्चि आमॆ पूर्व सौन्दर्यान्नि आमॆकु वच्चेला चेशाडु. कॊन्तकालानिकि आमॆ कडुपु पण्डिन्दि. तॊम्मिदिमन्दि कुमार्तॆलु जन्मिञ्चारु. आ तरुवात मळ्ळी गर्भं धरिञ्चिन्दि. साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे ‘कपिलुडु’ अने पेरुतो आमॆकु पुत्रुडिगा जन्मिञ्चाडु. ब्रह्मदेवुडि आदेशं मेरकु कुमार्तॆलन्दरिकी अन्तकु मुन्दे ब्रह्मदेवुडु सृष्टिञ्चिन महर्षुलतो विवाहलु जरिपिञ्चिन कर्दम महर्षि श्रीहरिपैने तन मनसुनु लग्नं चेसि परमपदान्नि पॊन्दाडु. तन कुमारुडु सामान्युडु काडनि, देवहूतिकि तॆलुसु. जीवकोटिकि तत्त्वज्ञानं उपदेशिञ्चटानिकि परमात्मे कपिलुडै तन कुमारुडिगा जन्मिञ्चाडनी ग्रहिञ्चिन्दि. अन्तकुमुन्दे ब्रह्म चॆप्पिन माटलनु गुर्तुकु तॆच्चुकॊनि, तन पतिकि चेसिनट्लु तनकू तत्त्वोपदेशं चॆय्यमनि तनयुण्णि ई विधङ्गा प्रार्थिञ्चिन्दि- उ. भूरि मदीय मोहतममुं बॆड"बाप समर्थुलन्यु लॆ व्वारलु नीव काक? निरवद्य! निरञ्जन! निर्विकार! सं सारलता लवित्र! बुधसत्तम! सर्वशरण्य! धर्मवि स्तारक! सर्वलोकशुभदायक! नित्यविभूतिनायका! (3-869) ‘नायना! पुत्रा! ना मोहं अने तिमिरान्नि तरिमिकॊट्टे समर्थुलु नीकन्ना नाकॆव्व रुण्टारु? नीवे अन्दरिकी रक्षकुडिवि. सर्वलोकशुभदायका! शरणु! शरणु!’ तृतीय स्कन्धं 38 पोतन भागवतमु अप्पुडु आमॆकु कपिल महर्षि इला चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु- आत्मस्वरूपं ‘अम्मा! ई आत्म उन्दि चूशामा! इदि स्वर्गानिकी भूलोकानिकी तिरुगुतू उण्टुन्दि. व्यामोहन्नि विडिचिपॆट्टि नन्ने ध्यानिञ्चिनवारिनि नेने संसारं अने समुद्रान्नि दाटिस्तानु. इदि तॆलिसिनवाळ्ळु नन्नु कॊलुस्तारु. तॆलियनिवाळ्ळु बाधलु पडुतूने उण्टारु. अन्ता भगवन्तुडि इष्टप्रकारमे जरुगुतुन्दनि तॆलुसुकोवटमे आत्म ज्ञानं. आ भगवन्तुडिकि वासुदेव, सङ्कर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध अनि नालुगु म्याहलु उन्नायि. वीटिनि अन्दरू सेविञ्चालि. ऎवरि पनिनि वाळ्ळु चेयालि. पवित्रङ्गा उण्डालि. ना पादालपैने दृष्टि निलपालि. नन्नु सेविञ्चेवारिनी अर्चिञ्चालि. आहरान्नि मितङ्गा तीसुकोवालि. अहिंसनू, सत्यान्नी पाटिञ्चालि. कावलसिनन्तवरके सम्पादिञ्चालि. परुल सॊम्मु कोसं पाकुलाडकूडदु. प्राणायामं चेस्तू इन्द्रियाल्नि अदुपुलो उञ्चुकोवालि. सुखदुःखाल्लो ऒकेला उण्डालि. कर्मफलान्नि अनुभविञ्चे वरके संसारं उण्टुन्दि. पॊगकण्टे अग्नि ऎला वेरुगा उण्टुन्दो आत्म कूडा परमात्मतो अलागे वेरुगा उण्टुन्दि. इदे आत्मस्वरूपं. देवहूतिकि आत्मस्वरूपं तॆलिसिन्दि. तरुवात कपिलाचार्युडु भक्तियोगान्नि आमॆकु विवरिस्तुन्नाडु. भक्तियोगं ‘अम्मा! ई योगं तामसमू, राजसमू, सात्त्विकमू अनि मूडु रकालु. नन्नु द्वेषिस्तू अर्चिञ्चडमे तामसभक्ति. ए कोरिकलू लेकुण्डा प्रति पनिनी नाके अर्पिस्तू अर्चिञ्चटं सात्त्विक भक्ति. ई भक्तिवल्ल सालोक्यं, सामीप्यं, सायुज्यं, सारूप्यं मॊदलैन मोक्षालनु साधिञ्चवच्चु. 39 कदलिक लेनि जीवुलकण्टे कदलिक उन्न जीवुलु श्रेष्ठमैनवि. चैतन्यं उन्न जन्मललो उत्तममैनदि मानवजन्मे. मानवुललो अन्दरिकण्टे उत्तमुलु ऎवरो तॆलुसा? अन्नि धर्माल्नी विडिचिपॆट्टि नन्नु मात्रमे शरणु कोरेवाळ्ळे. अटुवण्टि परम भागवतुलु ऎञ्चुकॊने मार्गमे भक्तियोगं’ अण्टू कपिलाचार्युडु तरुवात आमॆकु पिण्डोत्पत्ति क्रमं गुरिञ्ची, गर्भंलो उन्न जीवुडु पडे वेदन गुरिञ्ची विपुलङ्गा चॆप्पाडु. सदाचारालु तरुवात मानवुलु आचरिञ्चवलसिन आचारालनु इला चॆप्तुन्नाडु- ‘अम्मा! मानवुडु चॆड्डपनुलु चेयटानिकि कारणं अज्ञानं. सत्यं, शौचं, दय, धैर्यं, मौनं, बुद्धि, ओर्पु, सिग्गु, कीर्ति, शान्तं मॊदलैनवि उत्तम गुणालु. इवि चॆडु सावासालवल्ल नशिञ्चिपोतायि. स्र्तीव्यामोहं अन्निण्टिकण्टे पॆद्द दोषं. अन्नि अनर्थालकू इदे कारणं. नन्नु सेविञ्चेवाळ्ळकि ई दुर्गुणं अण्टुकोदु. जीवुडु पूर्वजन्म कर्मल्नि अनुभविस्तू कर्मलपै आसक्तितो मळ्ळीमळ्ळी पुडुतूने उण्टाडु. इदि तॆलुसुकॊनि देहम्पै ममकारान्नि विडिचिपॆट्टालि. गृहस्थुगा उण्टू धर्मार्थकामाल कोसं पाटुपडालि. दीनिवल्ल देवगणालु आनन्दिस्तायि. पितृकर्मलु चेसिन मानवुलु चन्द्रलोकानिकि वॆळ्तारु. पुण्यं नशिञ्चाक मळ्ळी जन्मिस्तारु. अन्निण्टिनी विडिचिपॆट्टिनवाळ्ळु मात्रमे श्रीहरि पदान्नि पॊन्दुतारु. वीळ्ळकु मळ्ळी जन्म उण्डदु. ब्रह्म मॊक्कटे ऒक्क माट चॆप्पना! ‘ब्रह्म’ ऎप्पुडू ऒक्कटे! अदि अनेक रकालुगा कनिपिस्तू उण्टुन्दि. ऎन्नि शास्र्तालु चदिवितेनो ऎन्नि तीर्थाल्लो मुनिगितेनो जपं, तपस्सु, अध्ययनं, योगं, क्रिय, दानं, धर्मंलाण्टिवि आचरिस्तेनो कानि नारायणतत्त्वं बोधपडदु. मुन्दु इन्द्रियाल्नि गॆलवालि. त्यागं द्वारा वैराग्यं पॊन्दालि. अप्पुडे नारायणतत्त्वं बोधपडुतुन्दि. जीवुललो उत्पत्ति नेने. नाशनमू तृतीय स्कन्धं 40 पोतन भागवतमु नेने. आत्मतत्त्वं तॆलुसुकोवडानिकि अविद्य अड्डुतगुलुतुन्दि. इदे अतिरहस्यमैन साङ्ख्ययोगं. दीनिपै श्रद्धकलवारिके दीन्नि चॆप्पालि’ अन्नाडु कपिलाचार्युडु. देवहूति मुखं इप्पुडु ऎन्तो प्रसन्नङ्गा उन्दि. अप्पटिवरकू कम्मुकुन्न मब्बुलन्नी वीडिपोयायि. आनन्दन्तो- ‘परन्धामा! भक्तवत्सला! सृष्टि, स्थिति, लयलकु कारणमैन नुव्वु इप्पुडु ना पुत्रुडिगा जन्मिञ्चटं ना अदृष्टं. नुव्वे दुष्टुल्नि शिक्षिञ्चि, शिष्टुल्नि रक्षिञ्चडानिकि ऎन्नो अवतारालनु धरिस्तावु. ब्रह्मदुलकु सैतं निन्नु वर्णिञ्चटं साध्यङ्कादु. नेनॆन्त? नी नामान्नि नित्यं जपिस्ते दरिद्रुलु सैतं सम्पन्नुलौतारु. यज्ञयागालु चेसेवाळ्ळकण्टे पवित्रुलवुतारु. नी कथल्नि विण्टे समस्त पुण्यतीर्थाल्लो स्नानं चेसिनट्ले’ अण्टू नमस्करिञ्चिन्दि. कपिलाचार्युडु वॆळ्ळिपोयाडु. ‘‘विदुरा! देवहूति अप्पटि नुण्डि तपस्सु प्रारम्भिञ्चिन्दि. मॊदट्लो भर्तमीद, पुत्रुडिमीद व्यामोहलतो अलमटिञ्चिन्दि. कानी चिवरिकि श्रीहरिपैने दृष्टिनि केन्द्रीकरिञ्चिन्दि. सरस्वती बिन्दु सरोवराल्लो त्रिषवणस्नानं चेस्तू तीव्रमैन तपस्सु चेसि मोक्षान्नि पॊन्दिन्दि. आविड मोक्षं पॊन्दिन प्रदेशानिके तरुवात ‘सिद्धपदं’ अनि प्रसिद्धि वच्चिन्दि’’ अन्नाडु. ‘राजा! इदय्या विदुरुडिकि मैत्रेयुडु विवरिञ्चिन भक्तियोगं. ई कथनु चॆप्पिनवाळ्ळकू विन्नवाळ्ळकू मोक्षं लभिस्तुन्दि’ अन्नाडु शुक महर्षि. सूत महर्षि चॆप्पिनदन्ता विन्न शौनकादि महर्षुलु परवशिञ्चिपोयारु. हरिभक्ति वाळ्ळ मनसन्ता निण्डिपोयिन्दि. b 41 सूतुडु तिरिगि प्रारम्भिञ्चाडु. ‘महर्षुलारा! शुक महर्षि परीक्षित्तुनु चूसि ‘राजा! मैत्रेय महर्षि विदुरुडिकि स्वायम्भुव मनुवु वंश क्रमान्नि इला चॆप्तुन्नाडु- स्वायम्भुव मनुवुकु शतरूप द्वारा आकूति, देवहूति, प्रसूति अनि मुग्गुरु कुमार्तॆलु कलिगारु. वीरितोपाटु प्रियव्रतुडु, उत्तानपादुडु अने पेर्लुगल इद्दरु कुमारुलु जन्मिञ्चारु. आकूति भर्त ‘रुचि’ अने पेरुगल प्रजापति. इतडु चाला गॊप्पवाडु. अन्दुके साक्षात्तू आ श्रीमन्नारायणुडे वीळ्ळिद्दरिकी कॊडुकुगा पुट्टाडु. अतडि पेरे यज्ञुडु. ई अवतारंलो जगन्मात अयिन लक्ष्मीदेवि ‘दक्षिण’ अने पेरुतो जन्मिञ्चिन्दि. वीरि सन्तानमे यामुलु. वाळ्ळॆवरो तॆलुसा? तोषुडु, प्रतोषुडु, सन्तोषुडु, भद्रुडु, शान्ति, इडस्पति, इध्मुडु, कवि, विभुडु, वह्नि, सुदेवुडु, रोचनुडु - वीळ्ळे तरुवात तुषितुलु अने देवगणङ्गा प्रसिद्धि पॊन्दारु. प्रियव्रतुडू, उत्तानपादुडू ई वंशान्नि पॆम्पॊन्दिम्पजेशारु. इक कर्दम प्रजापति पुत्रिकलु कूडा ब्रह्मर्षुलनु विवाहं चेसुकॊनि आ वंशान्नि विस्तरिम्पजेशारु. दक्षप्रजापतिकि 16 मन्दि पुत्रिकलु. वीळ्ळु तम सन्तानन्तो सृष्टिनि विस्तरिम्पजेशारु. दक्षयागं इक्कडो पुण्यप्रदमैन कथ उन्दि. चॆबुतानु विनु. दक्षप्रजापति 16 मन्दि पुत्रिकललो सतीदेवि अनि ऒक साध्वीमणि उन्दि. आमॆ ऎवरो कादु, परमेश्वरुडि भार्य. नवब्रह्मलु ऒकसारि सत्रयागं चेसिनप्पुडु अक्कडिकि चतुर्थ स्कन्धं 42 पोतन भागवतमु दक्षप्रजापति वच्चाडु. अन्दरू लेचि निलबडि आयननु गौरविञ्चारु. कानी शिवुडु लेवलेदु. दानिवल्ल दक्षुडिकि कोपं वच्चिन्दि. ‘नाकु अल्लुडै उण्डि कूडा शिवुडु नन्नु गौरविञ्चलेदु’ अनि उक्रोषन्तो शिवुण्णि निन्दिञ्चाडु. अप्पटि नुण्डि वीळ्ळिद्दरि मध्य पच्चगड्डि वेस्ते भग्गुमण्टुन्दि. इदिला उण्टे कॊन्नाळ्ळ तर्वात दक्षुडु ऒक यागान्नि तलपॆट्टाडु. अन्दरिनी आह्वनिञ्चाडु. कानी शिवुण्णि पिलवलेदु. पुट्टिण्टिपै आश वल्ला अक्काचॆल्लॆळ्ळनु कलवालन्न ममकारन्तोनु सतीदेवि दक्षुडि इण्टिकि वॆळ्ळालनुकुन्दि. पिलवनि पेरण्टानिकि वॆळ्ळटं देनिकि? अनि शिवुडु अण्टाडेमोननि सतीदेवि मुन्दुगाने ऊहिञ्चि आयनतो - कं. अनघा! विनु लोकम्बुन जनकुनि गेहमुन" गलुगु सकलसुखम्बुल् दनयलु जनि सम्प्रीतिन् गनु"गॊन केरीति निल्चु" गायमु लभवा! (4-67) पुण्यात्मुडा! पुट्टिण्ट्लो कलिगे सुखाल्नि कूतुळ्ळु चूडकुण्डा उण्डगलरा? कं. अनयमु" बिलुवकयुण्डं जन ननुचित मण्टिवेनि जनक गुरु सुहृ ज्जननायक गेहमुलकु" जनुचुन्दुरु पिलुवकुन्न सज्जनु लभवा! (4-68) ‘स्वामी! तण्ड्रि, गुरुवु, मित्रुडु, राजु मॊदलैनवाळ्ळ इळ्ळकु पिलुवक पोयिना वॆळ्ळवच्चनि पॆद्दलु चॆबुतारु. नुव्वु नाकु नी शरीरंलो सगभागं इच्चि गौरविञ्चावु. इप्पुडु ना माटनु कूडा गौरविञ्चु’ अन्दि. शिवुडु चिरुनव्वु चिन्दिञ्चि, ‘सतीदेवी! अवुनु. नुव्वु अन्नदि निजमे! पिलवकपोयिना वॆळ्ळवच्चु. ऎप्पुडु? वाळ्ळु मञ्चिवाळ्ळु अयितेने सुमा! विद्य, तपस्सु, धनं, वयस्सु, रूपं, कुलं, सज्जनुलकु उण्टे अवि गुणा लवुतायि. अवे दुर्जनुलकु उण्टे अवि दोषालु अवुतायि. वाळ्ळ विवेकान्नि नाशनं चेस्तायि. अलाण्टिवाळ्ळु बन्धुवुले अयिना वाळ्ळ इण्टिकि वॆळ्ळकूडदु. वॆळ्ते अवमानं तप्पदु. 43 नेनु नमस्कारं चेयलेदनि दक्षुडिकि कोपं. सर्वान्तर्यामि अयिन परमात्मके नमस्कारं चेयालिकानी शरीरम्पै ममकारं, अहङ्कारं उन्न वाळ्ळकु कादु. अन्दुके नेनु दक्षुडिकि नमस्करिञ्चलेदु’ अनि मौनं वहिञ्चाडु शिवुडु. सतीदेवि दक्षयागानिकि वॆळ्ळिन्दि. तल्ली, अक्का-चॆल्लॆळ्ळु आदरिञ्चारु कानी दक्षुडु आदरिञ्चलेदु. दान्तो आ अवमानान्नि सतीदेवि भरिञ्चलेकपोयिन्दि. तण्ड्रिपै आमॆकु पट्टरानन्त कोपं वच्चिन्दि. एदैना तेडा वस्ते आ यागान्नि सर्वनाशनं चेयडानिकि रुद्रगणं कूडा आमॆतो वच्चिन्दि. अयिना सतीदेवि शान्तङ्गाने तण्ड्रितो इला अन्दि- ‘अय्या! परमशिवुण्णि लोकमन्ता कॊलुस्तोन्दि, ऒक्क नुव्वु तप्प. नीलाण्टि अधमुलकु मञ्चिवाळ्ळ सुगुणालु ऎला कनिपिस्तायिले! पच्चकामॆर्ल वाडिकि लोकमन्ता पच्चगाने उण्टुन्दि. दुर्मार्गुडि कळ्ळकु मञ्चि लक्षणालु कूडा चॆड्ड लक्षणालुगाने तोस्तायि. मध्यमुलु इतरुल्लो उन्न चॆड्डगुणाल्नि गुर्तिस्तारु कानी बयटकु चॆप्परु. इक उत्तमुलु - इतरुललो उन्न चॆड्ड गुणालनु सैतं मञ्चि गुणालुगाने स्वीकरिस्तारु. शिवुडु अलाण्टि उत्तमुललो उत्तमुडु. शिव अने रॆण्डु अक्षराले पापालनु रूपुमापुतायि. सर्वशुभाल्नी कलुगजेस्तायि. नेनु नी कुमार्तॆ नैनन्दुकु सिग्गुपडुतुन्नानु’ अण्टू सतीदेवि योगाग्निनि पुट्टिञ्चुकॊनि आ अग्निलोनिकि दूकि प्राणत्यागं चेसिन्दि. आ हठात्परिणामानिकि रुद्रगणंलो तीव्र सञ्चलनं रेगिन्दि. वॆण्टने विजृम्भिञ्चि आ यागान्नि ध्वंसं चेयालनि चॆलरेगिपोयिन्दि. अप्पुडु भृगुवु मॊदलैन महर्षुलु अड्डुपड्डारु. नारदुडि द्वारा ई सङ्गति विन्न शिवुडु तन जटाजूटान्नि लागि, अन्दुलोनि ऒक जडनु विसिरि नेलपै कॊट्टाडु. दानि नुण्डि वीरभद्रुडु आविर्भविञ्चाडु. शिवुडि आज्ञतो वीरभद्रुडु दक्षयागंलो वीरविध्वंसं सृष्टिञ्चाडु. अन्दरिनी हिंसिञ्चाडु. चिवरिकि दक्षुडि तलनु खण्डिञ्चि होमगुण्डंलो विसिरि वेशाडु. चतुर्थ स्कन्धं 44 पोतन भागवतमु जरिगिन अनर्थान्नि देवतलु ब्रह्मदेवुडिकि चॆप्पारु. शिवुण्णि पिलुवकुण्डा यागं चेयटं तप्पनी, वॆण्टने वॆळ्ळि शिवुण्णि प्रार्थिञ्चमनी हितवु पलिकाडु ब्रह्मदेवुडु. वाळ्ळतोपाटु तानू वॆळ्ळि दक्षिणामूर्ति स्वरूपुडैन परमेश्वरुण्णि अनेक विधालुगा स्तुतिञ्चाडु. शिवुडु कनिकरिञ्चाडु. दक्षुडितोसह यागंलो मरणिञ्चिनवाळ्ळन्दरिनी ब्रतिकिञ्चाडु. इप्पुडु दक्षुडिलो मुनुपटि अहङ्कारं लेदु. शिवुण्णि स्तुतिञ्चि, यागान्नि पूर्तिचेशाडु. वीरभद्रुडिवल्ल यागानिकि कलिगिन दोषानिकि परिहरङ्गा ‘विष्णुयागं’ चेशाडु. दानिकि श्रीहरि प्रसन्नुडै अक्कड प्रत्यक्षमय्याडु. अन्दरू श्रीहरिनि स्तुतिञ्चारु. दक्षुडि पुत्रिक सतीदेवि मळ्ळी हिमवन्तुडिकी मेनककू जन्मिञ्चि शिवुण्णे विवाहं आडिन्दि. सनकादि महर्षुलु, नारदुडु, हंसुडु, अरुणि, ऋभुडु, यति अने ब्रह्मदेवुडि पुत्रुलु गृहस्थाश्रमं स्वीकरिञ्चलेदु. अन्दुवल्ल वाळ्ळ द्वारा वंशाभिवृद्धि जरगलेदु. ‘विदुरा! दीन्नन्ता प्रतिसर्ग अण्टारु. इक पुण्यात्मुडैन ध्रुवुडि कथनु नीकु विनिपिस्तानु, विनु’ अण्टू चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. भक्त ध्रुवुडु स्वायम्भुव मनुवुकु प्रियव्रतुडु, उत्तानपादुडु अनि इद्दरु पुत्रुलनि इन्तकु मुन्दे चॆप्पानु कदा! वारिलो उत्तानपादुडिकि इद्दरु भार्यलु. पॆद्द भार्य सुनीति. चिन्न भार्य सुरुचि. उत्तानपादुडिकि चिन्न भार्यण्टेने ऎक्कुव इष्टं. सुनीति कॊडुकु ध्रुवुडु. सुरुचि कॊडुकु उत्तमुडु. ऒकरोजु उत्तमुडु तण्ड्रि ऒळ्ळो कूर्चॊनि उन्नाडु. अदि चूशाडु ध्रुवुडु. तनू तण्ड्रि ऒळ्ळो कूर्चोवालनि उबलाटपड्डाडु. दग्गरकु वॆळ्ळाडु. अप्पुडु अतडि सवति तल्लि सुरुचि वच्चि ‘ना कडुपुन पुट्टिनवाडिके ई अवकाशं. नीकु लेदु. नीकू इदि दक्कालण्टे वॆळ्ळु. वॆळ्ळि आ विष्णुमूर्तिनि ध्यानिञ्चु पो!’ अनि कसिरिन्दि. उत्तानपादुडु एमी माट्लाडलेदु. ध्रुवुण्णि दग्गरकु तीसुकोलेदु. 45 आ माटलू, तण्ड्रि चेष्टलू पसिवाडैन ध्रुवुडि मनसुनु तीव्रङ्गा कलिचिवेशायि. एडुस्तू तल्लि सुनीति दग्गरकु वच्चि जरिगिनदन्ता चॆप्पाडु. चॆलिकत्तॆल द्वारा अप्पटिके आ विषयं आमॆकु तॆलिसिन्दि. ध्रुवुण्णि बुज्जगिस्तू- ‘नायना! तॆलिसि चॆप्पिन्दो तॆलियक चॆप्पिन्दो तॆलियदुगानी सुरुचि निजमे चॆप्पिन्दि. मनकिङ्क दिक्कु आ वासुदेवुडे. वॆळ्ळु, आ श्रीमन्नारायणुण्णि ध्यानिञ्चु. पूर्वं ब्रह्मदेवुडु, मी तातगारू इङ्का ऎन्दरो योगुलु आ परन्धामुडि पादालनु आश्रयिञ्चि मोक्षान्नि पॊन्दारु. नारदुडि उपदेशं ध्रुवुडु तल्लि माटलु विन्नाडु. इल्लु विडिचि बयलुदेराडु. दारिलो अतडि मुन्दु नारद महर्षि प्रत्यक्षमय्याडु. ध्रुवुडि द्वारा जरिगिनदन्ता विनि बुज्जगिस्तुन्नट्लुगा - ‘नायना! इवन्नी चाला चिन्न विषयालु. पन्तालकु पोवटं मञ्चिदि कादु. नुव्वा! मुक्कुपच्चलारनि पसिबालुडिवि. नी तल्लि नीकु चूपिञ्चिन मार्गं ऎन्तो कष्टमैनदि. महमह योगुले ई मार्गंलो वॆळ्ळटानिकि अष्टकष्टालू पडुतुण्टारु. नुव्वॆन्त? वॆनक्कि तिरिगि वॆळ्ळु. सुखानिकी दुःखानिकी रॆण्डिण्टिकी कारकुडु आ भगवन्तुडे. ई विषयं तॆलिसिनवाडे ज्ञानि. गुणवन्तुण्णि चूसि सन्तोषिञ्चालि. गुणहीनुण्णि चूसि जालिपडालि. तनतो समानमैनवाडितोने स्नेहं चेयालि. नीकु ई मार्गं तगदु’ अन्नाडु. कानी ध्रुवुडु मनसु मार्चुकोलेदु. श्रीहरि अनुग्रहन्नि पॊन्दे मार्गं चॆप्पमनि पदेपदे वेडुकॊन्नाडु. नारदुडु चिरुनव्वु चिन्दिस्तू- कं. पुरुषु"डु दविलि चतुर्विध पुरुषार्थ श्रेय मात्म" बॊन्दॆद ननिनन् धर" दत्र्पाप्तिकि हेतुवु हरिपदयुगळम्बु दक्क नन्यमु गलदे? (4-244) चतुर्थ स्कन्धं 46 पोतन भागवतमु ‘नायना! पुरुषार्थाल्नि साधिञ्चालनुकॊनेवाडिकि दिक्कु आ श्रीहरि पादपद्माले! निन्नु चूस्तुण्टे मुच्चटेस्तुन्दि. पट्टिन पट्टु विडिचिपॆट्टेला लेवु. सरे! इक्कडिकि दग्गरलो यमुनानदि उन्दि. आ नदीतीरंलो ऒक अद्भुतमैन वनं उन्दि. दानि पेरु मधुवनं. अक्कडिकि वॆळ्ळि तपस्सु प्रारम्भिञ्चु. अदि श्रीहरिकि नॆलवु. नीकु आ श्रीहरि रूपं गुरिञ्ची, गुणाल गुरिञ्ची चॆप्तानु. वाटिने तलचुकॊण्टू ध्यानं चेयि. नी कोरिक नॆरवेरुतुन्दि’ अण्टू ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ अन्न द्वादशाक्षरी मन्त्रान्नि उपदेशिञ्चि तनु वॆळ्ळिपोयाडु. ध्रुवुडि तपस्सु ध्रुवुडु बालुडे अयिना परमयोगुलु कूडा चेयलेनि तीव्रमैन तपस्सु प्रारम्भिञ्चाडु. अष्टदिक्कुलू वणकिपोयायि. दिक्पालकुलकु गुण्डॆदड मॊदलैन्दि. देवतलन्ता परुगुतीसि विष्णुमूर्तिनि शरणुजॊच्चारु. चं. हरि! परमात्म! केशव! चराचरभूतशरीरधारिवै पर"गुदु वीवु निट्टुलुग" ब्राणनिरोधमॆऱुङ्ग मॆन्दु मुं दिरवुग देवदेव! जगदीश्वर! सर्वशरण्य! नी पदां बुरुहमु लर्थिमै शरणु" बॊन्दॆद मार्ति हरिञ्चि काववे! (4-276) हरी! परमात्मा! केशवा! नुव्वु चराचरभूताल शरीराल्नि धरिञ्चि उण्टावु. ई विधङ्गा प्राणनिरोधं माकु ऎप्पुडू कलगलेदु. नी पादालु शरणुवेडुतुन्नां. मम्मल्नि रक्षिञ्चुदेवा! अनि वेडुकॊन्नाडु. विष्णुमूर्ति भक्तप्रियुडु काबट्टि वॆण्टने गरुड वाहनम्पै मधुवनानिकि विच्चेशाडु. ध्रुवुडु तपस्सु चेस्तुन्नाडु. ऎदुरुगा वासुदेवुडु. ध्रुवुडु तन मनसुलो आ वासुदेवुण्णे चूस्तुन्नाडु. अन्दुके बयट उन्न वासुदेवुण्णि दर्शिञ्चलेकपोयाडु. अन्तलो लोपलि देवुडु मायमय्याडु. ध्रुवुडु कळ्ळु तॆरिचाडु. ऎदुरुगा कमलाक्षुडु. तनु इन्तकालं हृदयंलो दर्शिञ्चिन श्रीमन्नारायणुडु ऎदुरुगा साक्षात्करिञ्चेसरिकि आनन्दन्तो उब्बितब्बिब्बै 47 पोयाडु. कळ्ळवॆम्बडि आनन्दबाष्पालु धारलु कडुतुण्टे स्वामिकि साष्टाङ्ग नमस्कारं चेशाडु. नोरारा कीर्तिञ्चालनि उन्दि. माटलु रावटंलेदु. अप्पुडु श्रीहरि तन पाञ्चजन्यन्तो ध्रुवुडि चॆक्किलिपै राशाडु. ध्रुवुडिकि तत्त्वं बोधपडिन्दि. नोटिवॆण्ट स्तुतिवाक्यालु वरदकट्टायि. तनिवितीरा परमात्मनु स्तुतिञ्चाडु. ध्रुवुडिपै अनुराग वर्षान्नि कुरिपिस्तू श्रीहरि ‘नायना! ध्रुवकुमारा! नी दीक्ष अमोघं. नीकु ध्रुवमण्डलान्नि प्रसादिस्तुन्नानु. 26 वेल संवत्सराल तर्वात अदि नीकु लभिस्तुन्दि. अन्नि ग्रहलु ई मण्डलं चुट्टू तिरुगुतू उण्टायि. अन्निण्टिकण्टे ऎत्तुलो उण्डे ई मण्डलं प्रळयकालंलो कूडा अलागे उण्टुन्दि’ अनि आशीर्वदिञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. घनस्वागतं ध्रुवुडु ऎन्तो भाग्यवन्तुडु. श्रीहरि साक्षात्कारं अतडिकि लभिञ्चिन्दि. अन्दुके अतडिकि घनस्वागतं पलिकिन्दि नगरं. तण्ड्रि तन तप्पु तॆलुसुकुन्नाडु. कुमारुडि गॊप्पतनानिकि उप्पॊङ्गिपोयाडु. एनुगुपै ऊरेगिस्तू नगरमन्ता तिप्पारु. राजा! श्रीहरिनि आश्रयिञ्चिनवाळ्ळ वैभवानिकि कॊरत एमुण्टुन्दि? तरुवात ध्रुवुडु पॆरिगि पॆद्दवाडै ‘भ्रमि’ अने कन्यनु पॆळ्ळिचेसुकॊनि राज्यान्नि चक्कगा परिपालिस्तुन्नाडु. अतडिकि इद्दरु कॊडुकुलु पुट्टारु. वाळ्ळु कल्पुडु, वत्सरुडु. ध्रुवुडि तम्मुडु उत्तमुडु वेटकु वॆळ्ळि ऒक यक्षुडि चेतिलो मरणिञ्चाडु. कॊडुकुनु वॆतुक्कुण्टू वॆळ्ळि सुरुचि कूडा दावानलंलो चिक्कि मरणिञ्चिन्दि. अप्पटिके तण्ड्रि उत्तानपादुडु तपस्सु कोसं अडवुलकु वॆळ्ळिपोयाडु. तन सोदरुण्णि मट्टुपॆट्टिन यक्षुल पैकि ध्रुवुडु दण्डयात्र सागिञ्चाडु. कुबेरुडि अनुचरुलैन गुह्यकुलतो युद्धञ्चेसि नारायणास्र्तान्नि प्रयोगिञ्चि अन्दरिनी संहरिञ्चाडु. अयिना अतडि कोपं चल्लारलेदु. अप्पुडु अतडि तात स्वायम्भुवमनुवु अक्कडकु वच्चि इला हितवु पलिकाडु - चतुर्थ स्कन्धं 48 पोतन भागवतमु ‘नायना! ध्रुवा! नी तम्मुडु ऒक्कडिनि चम्पारन्न कोपन्तो इन्तमन्दिनि चम्पडं न्यायङ्कादु. नुव्वु पुण्यात्मुडिवि. नीकु इन्तटि क्रोधं ऎन्दुकय्या! विडिचिपॆट्टु. श्रीहरि भक्तुलु जीवहिंस चेयरु. मनकण्टे गॊप्पवाडिपट्ल सहनं, समानमैनवाडिपट्ल स्नेहं, तक्कुववारिपट्ल दय, इतर प्राणुलपट्ल समभावं उण्डालि. अटुवण्टिवाडिने भगवन्तुडु अनुग्रहिस्ताडु. अन्नि कर्मलू आ स्वामि अधीनंलोने उण्टायि. नी तम्मुण्णि चम्पडानिकि यक्षुलॆवरु? चावडानिकि वाडॆवडु? चम्पडमू, चावडमू ऎवरि चेतुल्लोनू लेदु’ अनि चॆप्तुन्नाडु. अन्तलो यक्षराजैन कुबेरुडे अक्कडिकि विच्चेशाडु. तातगारि आज्ञ मेरकु ध्रुवुडु विरोधान्नि विडिचिपॆट्टि कुबेरुडिकि नमस्करिञ्चाडु. कुबेरुडू आनन्दिञ्चि श्रीहरि ध्यानं अतडि मनसुलो स्थिरङ्गा उण्डेला वरान्नि प्रसादिञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. ध्रुवुडु आ तरुवात 26 वेल संवत्सरालु राज्यपालन चेसि, राज्यान्नि कुमारुलकु अप्पगिञ्चि बदरीवनंलो तपस्सु चेसुकॊण्टू कालं गडिपाडु. कॊन्तकालं तर्वात श्रीमन्नारायणुडु ऒक दिव्यविमानान्नि पम्पाडु. दानिलो हिरण्मय रूपान्नि धरिञ्चि तन तल्लि सुनीतितो सह विष्णुपदान्नि चेरुकुन्नाडु ध्रुवुडु. ‘विदुरा! विन्नावुगा ध्रुव चरित्र. ई चरित्रनु नारद महर्षि स्वयङ्गा प्रचेतसुलु चेसिन सत्रयागंलो अन्दरिकी गानं चेस्तू विनिपिञ्चाडु. ई कथनु विन्ना, पठिञ्चिना, स्मरिञ्चिना उत्तम गतुलु कलुगुतायि. इदे वंशंलो कॊन्नि तराल तर्वात ‘वेनुडु’ अने लोककण्टकुडु जन्मिञ्चाडु. अतडि गुरिञ्ची चॆप्तानु विनु. वेनुडि वध वेनुडि तण्ड्रि अङ्गराजु. तल्लि सुनीथ. सन्तानं कोसं अङ्गराजु पुत्रकामेष्टि चेशाडु. अन्दुलो नुण्डि यज्ञपुरुषुडु वच्चि ऒक पायस पात्रनु इच्चाडु. दानिनि स्वीकरिञ्चिन्दि सुनीथ. कॊन्नाळ्ळकु ई वेनुडु जन्मिञ्चाडु. 49 वेनुडु परम दुर्मार्गुडु. अतडिकि दय, ए कोशाना लेदु. अन्दरिनी हिंसिञ्चटमे अतनि ध्येयं. वाडि दुण्डगालनु भरिञ्चलेक अङ्गराजु इल्लु विडिचि वॆळ्ळिपोयाडु. इङ्केमुन्दि? तप्पनिसरि परिस्थितुल्लो वेनुडे राजु अय्याडु. वाडि अघायित्यालकु अदुपे लेकुण्डा पोयिन्दि. चूशारु चूशारु महर्षुलु. सहनं चच्चिपोयिन्दि. ऒक्कसारि हुङ्करिञ्चारु. अन्ते! वेनुडि प्राणालु आ हुङ्कारानिकि गालिलो कलसिपोयायि. पुत्रुडि मरणानिकि तल्लडिल्लिपोयिन्दि सुनीथ. कॊडुकुपै ममकारं चावक अतडि शरीरान्नि भद्रपरिचिन्दि. राजुलेनि राज्यं चोरुलकू जारुलकू निलयमैपोतुन्दि. अन्दुके मुनुलु आ वेनुडि कळेबरंलोनि तॊडनु मधिञ्चारु. अन्दुलो नुञ्चि नल्लगा भीकरङ्गा उन्न ऒक वेटगाडु वच्चाडु. वाडु पुट्टी पुट्टगाने ‘नेनु एं चेयालि?’ अनि अडिगाडु. महर्षुलु कूर्चो (निषीद) अन्नारु. अप्पटिनुण्डी वाडु निषादुडु अय्याडु. ईसारि महर्षुलु वेनुडि हस्ताल्नि मथिञ्चारु. अन्दुलो नुण्डि ऒक अवतार पुरुषुल जण्ट आविर्भविञ्चिन्दि. आ जण्टे पृथुचक्रवर्ति, अर्चि. लोककळ्याणं कोसमे ई जण्ट आविर्भविञ्चिन्दि. देवगणाल्लो आनन्दं वॆल्लिविरिसिन्दि. पृथुचक्रवर्ति चेतिलो चक्रालु, पादाललो शुभरेखलू उन्नायि. अवि चूसि अन्दरू आश्चर्यपोयारु. पृथुचक्रवर्ति चरित्र तरुवात पृथुवु चक्रवर्ति अय्याडु. वन्दिमागधुलु अतण्णि स्तुतिस्तुण्टे वारितो इला अन्नाडु- ‘नन्नॆन्दुकु स्तुतिस्तुन्नारु? नालो ए महिमा लेदु. इदन्ता श्रीहरि अनुग्रहमे! मीरु कीर्तिञ्चवलसिनदि आ श्रीमन्नारायणुण्णे. नन्नु कादु. महत्मुललो गॊप्प गुणालु उण्टायि. वाळ्ळनु स्तुतिञ्चवच्चु. कानी नालाण्टि सामान्युण्णि कादु. तानु तपस्सु द्वारा मञ्चि लक्षणालनु सम्पादिस्ताननि चतुर्थ स्कन्धं 50 पोतन भागवतमु ऎवरैना चॆप्पवच्चु. कानी अला अन्नवाण्णि चूसि अन्दरू नव्वुतारु! गॊप्पवाळ्ळु आत्मस्तुतिनी परनिन्दनू असह्यिञ्चुकुण्टारु सुमा!’ अन्नाडु. अदी पृथुचक्रवर्ति संस्कारं. पृथुचक्रवर्ति राज्यपालन चेस्तुण्टे ऒकसारि अतडि राज्यंलो तीव्रमैन करुवु ताण्डविञ्चिन्दि. प्रजलु तिण्डिलेक नाना अगचाट्लु पडुतुन्नारु. दानिकि कारणमैन भूदेविनि दण्डिञ्चालनि पृथुवु बयलुदेराडु. अदि तॆलिसि भूमि आवु रूपान्नि धरिञ्चि पारिपोयिन्दि. राजु वॆण्टपड्डाडु. अप्पुडु ‘राजा! नन्नु रक्षिञ्चवलसिनवाडिवि नुव्वे. नुव्वे नन्नु शिक्षिस्ते नेनु ऎवरिकि चॆप्पुकोनु? असलु विषयं चॆप्तानु विनु. पुव्वु वाडिपोयेलोपे तेनॆटीग तेनॆनु चाकचक्यङ्गा आस्वादिस्तुन्दि. विद्वांसुडू अन्ते. देनिकैना ऒक पद्धति उण्टुन्दि. ऎन्त विद्वांसुडैना पॆद्दलु चूपिन पद्धतुल्नि तप्पि इष्टं वच्चिनट्लु प्रवर्तिस्ते फलितं पॊन्दलेडु. पूर्वं ब्रह्मदेवुडु नालो उञ्चिन ओषधुलनु दुर्जनुलु पील्चि पिप्पि चेशारु. ऒकवैपु यज्ञयागादुलु लेवु. नाकु आदरणे करुवयिन्दि. मिगिलिन कॊद्दो गॊप्पो ओषधुल्नि नेनु मिङ्गिवेशानु. अवि नालो जीर्णिञ्चुकुपोयायि. वाटिनि नुव्वु तिरिगि पॊन्दालण्टे ‘दोहनक्रिय’ चेपट्टालि. अप्पुडु ना पॊदुगु नुण्डि वाटिनि पॊन्दवच्चु’ अनि चॆप्पिन्दि. पृथुवु आमॆ चॆप्पिनट्लुगा मनुवुनु दूडगा चेशाडु. ताने पालु पितिके वाडि अवतारं ऎत्ति पितिकाडु. ओषधुलु लभिञ्चायि. जनुलन्ता सन्तोषिञ्चारु. आ तर्वात महर्षुलू देवगणालू ऎवरिकि कावलसिनवाटिनि वाळ्ळु भूमि नुण्डि पिण्डुकुन्नारु. पृथुवु पालनलो सुखशान्तुलु वॆल्लिविरिशायि. नूरु अश्वमेधयागालु चेयालनि सङ्कल्पिञ्चाडु पृथुवु. 99 पूर्ति चेशाडु. नूरो यागं कोसं विडिचिन यागाश्वान्नि इन्द्रुडु रॆण्डुसार्लु अपहरिञ्चाडु. पृथुवु कुमारुडु रॆण्डुसार्लु इन्द्रुण्णि ओडिञ्चि आ अश्वान्नि तीसुकु वच्चाडु. अन्दुवल्ल इतडिकि ‘जिताश्वुडु’ अने पेरु वच्चिन्दि. इन्द्रुण्णि 51 शिक्षिद्दामनि बयलुदेराडु. कानी ब्रह्मदेवुडि माटपै इन्द्रुण्णि क्षमिञ्चाडु पृथुचक्रवर्ति. 99 यागालु चेसिन फलं मात्रमे अतडिकि लभिञ्चिन्दि. यज्ञभोक्त श्रीमन्नारायणुडे इन्द्रुण्णि वॆण्टबॆट्टुकॊनि वच्चाडु. इन्द्रुण्णि क्षमिञ्चमनि हितवु पलिकाडु. ‘सज्जनुलकु शरीरम्पै अभिमानं उण्डदु. अन्दुके वाळ्ळु ऎवरिकी द्रोहं तलपॆट्टरु. नुव्वु तॊन्दरपडि इन्द्रुण्णि शिक्षिस्ते इप्पटिवरकू नुव्वु सम्पादिञ्चु कॊन्न पुण्यमन्ता पोतुन्दि. शरीरं, आत्म ऒकटि कादु. इदि तॆलिस्ते शरीर गुणालु आत्मकु अण्टुकोवु. स्वधर्मान्नि आचरिस्तू ए कोरिका लेकुण्डा नित्यं नन्ने सेविञ्चेवाडि मनसॆप्पुडू प्रशान्तङ्गा उण्टुन्दि. काबट्टि सुखदुःखालनु ऒकेला चूडु. जितेन्द्रियुडिवै ई लोकान्नि परिपालिञ्चु. राजुकु प्रजारक्षण प्रथम कर्तव्यं. प्रजलु चेसिन पुण्यंलो आरोवन्तु राजुकु दक्कुतुन्दि. परिपालन सरिग्गा चेयनि राजुकु प्रजलु चेसिन पापालु चुट्टुकुण्टायि. धर्मान्नि पाटिस्तू राज्यपालन चॆय्यि. नेनु यागालु, तपस्सुलू चेसिना लॊङ्गनु. समचित्तुलैन सज्जनुलकु वशमौतानु’ अनि वॆळ्ळिपोयाडु. पृथुवु तिरिगि राज्यानिकि वच्चि धर्ममार्गंलो परिपालन चेस्तुन्नाडु. ऒकरोजु तन सभासदुल्नि उद्देशिञ्चि इला हितवु पलिकाडु. ‘महनुभावुलारा! प्रजलु चेसे मञ्चि पनुले राजुकु रक्ष. धनं मीद व्यामोहन्तो राजु पन्नु वसूलु चेयकूडदु. अला चेस्ते प्रजलु चेसिन पापालु राजुके सङ्क्रमिस्तायि. मीरू मञ्चि पनुले चेयण्डि. अन्नि कर्मल्नी वासुदेवुडिके अर्पिञ्चण्डि. अदे मीरु नाकु चेसे मेलु’ अन्नाडु. ‘राजा! दुर्मार्गुडैन नी तण्ड्रि कूडा नीवल्ल चरितार्थुडय्याडु सुमा!’ अनि अन्दरू पृथुचक्रवर्तिनि कॊनियाडारु. सरिग्गा अदेसमयानिकि सनकादि महर्षुलु अक्कडिकि विच्चेशारु. अन्तटि चक्रवर्ति कूडा ऎन्तो विनयङ्गा वाळ्ळकु अतिथि मर्यादलु चेशाडु. भक्ति चतुर्थ स्कन्धं 52 पोतन भागवतमु पूर्वकङ्गा चेतुलु जोडिञ्चि ई संसारान्नि दाटगलिगे उपायान्नि चॆप्पमनि वाळ्ळनु अर्थिञ्चाडु. महर्षुलु अतडि विनय सम्पदकु सन्तोषिञ्चि मुक्तिमार्गान्नि उपदेशिञ्चारु. आ मार्गंलो साधन चेसि पृथुचक्रवर्ति मुक्तिनि पॊन्दाडु. अतडि भार्य कूडा अतण्णे अनुसरिञ्चिन्दि. ई पृथुचक्रवर्ति चरित्र परम पवित्रमैनदि. चदिविनवारिकि, विन्नवारिकी ऎन्नो पुण्यालनु कलिगिस्तुन्दि. पृथुवु तर्वात विजिताश्वुडु राजु अय्याडु. इतडि भार्य शिखण्डिनि. वीरिकि पावकुडु, पवमानुडु, शुचि अने पेर्लतो त्रेताग्नुले पुत्रुलै जन्मिञ्चारु. प्राचीनबर्हि इला वृद्धिचॆन्दिन ई वंशक्रमंलो ‘बर्हिष्मदुडु’ अने राजु गॊप्पवाडु. ई भूमण्डलान्नि यज्ञवाटिकलतो मुञ्चॆत्ताडु. तूर्पुदिक्कुन कॊनलु कलिगिन दर्भल्नि भूमण्डलमन्ता परिचि ‘प्राचीनबर्हि’गा पेरुपॊन्दाडु. इतडि भार्य शतधृति. वीरिकि ‘प्रचेतसुलु’ अनि पदिमन्दि पुत्रुलु. तण्ड्रि आज्ञपै प्रचेतसुलु प्रजासृष्टि कोसं तपस्सुकु बयलुदेरारु. दारिलो ‘रुद्रुडु’ कन्पिञ्चि नारायण स्तोत्रान्नि उपदेशिञ्चाडु. ई स्तोत्रान्नि पूर्वं ब्रह्मदेवुडु सनकसनन्दनादि महर्षुलकु चॆप्पाडट! आ स्तोत्रानिके योगादेश स्तोत्रमनी पेरु. प्रचेतसुलु पदिवेल संवत्सरालु आ स्तोत्रान्नि पठिस्तू नीटि मध्यलो उण्डि तपस्सु चेशारु. आ तपस्सु लोकाल्नि कम्पिम्प जेसिन्दि. साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे स्वयङ्गा विच्चेसि वारिकि ऎन्नो वरालनु प्रसादिञ्चाडु. राबोये कालंलो वाळ्ळु एमेमि चेयालो कूडा वारिकि आज्ञापिञ्चि अन्तर्धानमय्याडु. प्रचेतसुलु तपस्सु चालिञ्चि नीटिलो नुञ्चि बयटकु वच्चारु. चुट्टू चूशारु. ऎक्कड चूसिना चॆट्ले. कालु मोपे वीलु लेदु. कोपं वच्चिन्दि 53 वाळ्ळकु. तम मुखं नुण्डि अग्नितो कूडिन गालुल्नि सृष्टिञ्चारु. आ वेडिकि चॆट्लु मलमल माडिपोतुन्नायि. अप्पुडु ब्रह्मदेवुडे कदलिवच्चि वाळ्ळनु शान्तिम्पजेशाडु. चॆट्लन्नी वच्चि तम पुत्रिक अयिन मारिषनु वीरिकि समर्पिञ्चायि. ब्रह्मदेवुडि आज्ञतो वाळ्ळु मारिषनु विवाहं चेसुकुन्नारु. पूर्वं शिवुण्णि निन्दिञ्चिन दक्षुडुन्नाडे! अतडे वीरिकि पुत्रुडुगा जन्मिञ्चाडु. अक्कड प्राचीनबर्हिकि ज्ञानमार्गं चूपालनि नारदुडे स्वयङ्गा विच्चेसि अतडिकि ऒक चक्कनि कथ चॆप्तुन्नाडु. पुरञ्जनोपाख्यानं ‘राजा! पूर्वं ‘पुरञ्जनुडु’ अने ऒक राजु उण्डेवाडु. अतडिको मित्रुडु. पेरु अविज्ञातुडु. पुरञ्जनुडु ऒक पुरं कोसं वॆतुकुतुन्नाडु. हिमालय पर्वताल दक्षिण सानुवुल्लो ऒक पुरान्नि चूशाडु. अदि अतडिकि बागा नच्चिन्दि. आ पुरंलो ऒक वनं. अन्दुलो ओ अन्दमैन युवति. वॆनुक पदिमन्दि अनुचरुलु. आ पदिमन्दी ऒक्कॊक्कडू नूरुगुरिकि नायकुडु. आमॆकु रक्षणगा अयिदु तलल पामु मुन्दु नडुस्तोन्दि. राजू आ युवति परस्परं इष्टपडि विवाहं चेसुकुन्नारु. आमे सर्वस्वङ्गा राजु कालं गडुपुतुन्नाडु. ऒकरोजु अडविकि वॆळ्ळि वेटाडि इण्टिकि तिरिगि वच्चाडु. इण्ट्लो भार्य कनिपिञ्चलेदु. कं. पॊगडॊन्दु जननिगानी तगवुन वर्तिञ्चुनट्टि दयितयकानी तगनुण्डनि गृहमुन नुं टगु" जक्रविहीन रथमुनन्दुं टरयन् (4-780) ‘स्तुतिञ्चदगिन तल्लिगानी, इल्लालुगानी लेनि इण्ट्लो उण्डटं अण्टे चक्रालु लेनि रथम्पै कूर्चोवटमे.’ अन्दुके आमॆ ऎक्कड उन्दा! अनि वॆतिकि वॆतिकि चिवरिकि अन्तःपुरंलो अलकलो उन्दनि तॆलुसुकुन्नाडु. आमॆ अलक तीर्चाडु. चतुर्थ स्कन्धं 54 पोतन भागवतमु मळ्ळी यथाप्रकारङ्गा भार्ये लोकङ्गा बतुकुतुन्नाडु. तक्किनवेमी पट्टिञ्चुकोडु. रात्री पगलू तेडा लेदु. आमॆपै व्यामोहं पोवटंलेदु. अप्पटिके अतडि सन्तानं वन्दल्लोकि चेरुकुन्दि. आ पिल्ललकि पिल्ललु कूडा पुट्टारु. वंशं तामरतम्परगा पॆरिगिन्दि. अयिना भार्यपै उन्न व्यामोहं पोलेदु. मुसलितनं वच्चिन्दि. इतडि वारसुलु इण्टि सॊम्मुने दॊङ्गिलिञ्चे चोरुलुगा मारारु. ऒकवैपु गन्धर्वुलु राज्यान्नि आक्रमिस्तुन्नारु. वाळ्ळतो युद्धं चेस्तूने उन्नाडु. इदिला उण्टे कालुडि पुत्रिक ‘दुर्भग’ ‘प्रज्वारुडु’ अनेवाडिनि पॆळ्ळाडिन्दि. वीडु ‘भयुडु’ अनेवाडि तम्मुडु. ई प्रज्वारुडु, कालकन्य भयुडि सेनलतो पुरञ्जनुडि पुरान्नि मुट्टडिञ्चारु. अन्नि द्वाराल नुण्डी सैन्यं लोपलिकि प्रवेशिञ्चिन्दि. पुरञ्जनुडिकि ममकारं चावलेदु. आ पुरान्नि विडिचिपॆट्टि वॆळ्ळलेक पोतुन्नाडु. प्रज्वारुडु आ नगरान्नि दहिञ्चिवेशाडु. पुरञ्जनुण्णि भयुडु पशु वुला ईड्चुकुपोतुन्नाडु. अप्पटिकी पुरञ्जयुडिकि संसार व्यामोहं वीडिपोलेदु. मरणिञ्चाडु. नरकंलो अनेक बाधलु अनुभविञ्चाडु. निरन्तरं भार्यने तलुस्तू उण्डटंवल्ल तरुवात जन्मलो स्र्तीगा विदर्भ राजकुमार्तॆगा जन्मिञ्चाडु. ईमॆनु पाण्ड्यराजु ‘मलयकेतनुडु’ विवाहमाडाडु. वीळ्ळकु अर्बुद सङ्ख्यलो पुत्रुलु कलिगारु. तरुवात राजु नूरु दिव्यसंवत्सरालु तपस्सु चेसि परम पदान्नि पॊन्दाडु. भार्य कूडा सहगमनानिकि पूनुकुन्दि. अप्पुडु ऒक विज्ञानियैन ब्राह्मणुडु आमॆवद्दकु वच्चाडु. ‘मित्रमा! गुर्तुन्नाना! नेनु नी मित्रुण्णि. पूर्वजन्मलो मनं हंसलं. मानस सरोवरंलो विहरिञ्चेवाळ्ळं. तरुवात नुव्वु ऒक पुरान्नि चूसि अन्दुलोनिकि प्रवेशिञ्चावु. अला प्रवेशिञ्चिन पुरञ्जनुडिवि नुव्वे! अण्टू आ कथनु गुर्तुचेसि आ पुरमे शरीरमनि विपुलङ्गा चॆप्पाडु आ ब्राह्मणुडु. 55 इदन्ता ना माये. मनमिद्दरं हंसलं. नुव्वु जीवात्मवि. नेनु परमात्मनि. जीवुडु तॊम्मिदि द्वाराललो रॆण्डु चेतुलु, रॆण्डु पादालु उण्डे शरीरंलोनिकि प्रवेशिञ्चालनुकॊण्टाडु. आ देहमे पुरं. पुरञ्जनुडिगा नुव्वु प्रवेशिञ्चिन पुरं अदे. नुव्वु पुरञ्जनुडिगा उन्नप्पुडु नी मित्रुडु विज्ञातुडु उन्नाडे. अदि नेने. परमात्मनु. जीवुडु बुद्धिनि आश्रयिञ्चि इन्द्रियालतो सुखालनु पॊन्दुताडु. नुव्वु चेपट्टिन्दि बुद्धि अने स्र्तीनि. अयिदु इन्द्रियालु बुद्धिकि स्नेहितुलु. अन्दुके अयिदुगुरु आमॆतो उन्नारु. अयिदु तलल पामु अयिदु रूपाललो उण्डे प्राणं. आ पुरं चुट्टू उण्डे तॊम्मिदि द्वाराले नवरन्ध्रालु अण्टू शरीरानिकी पुरानिकी पोलिकलु चॆप्तू विवरिञ्चाडु. काबट्टि जीवुडिकि ई संसारं तॊलगिपोवालण्टे वासुदेवुडि पादाले दिक्कु. अन्दुकु एं चेयालण्टे भागवतुल्नि सेविञ्चालि. भगवन्तुडि कथल्नि विनालि. श्रीहरिने नम्मुकोवालि. एकाग्रततो ध्यानिञ्चालि’ अण्टू नारदुडु उपदेशिञ्चाडु. ‘प्राचीनबर्हि’ आ मार्गंलोने साधन चेसि विमुक्तिनि पॊन्दाडु. इतडि कुमारुलु प्रचेतसुलु कूडा तिरिगि तपस्सु प्रारम्भिञ्चारु. वीळ्ळ दग्गरिकी नारद महर्षि विच्चेशाडु. ‘महत्मुलारा! गोविन्दुण्णि सेविञ्चे जन्मे जन्म. आ पुरुषोत्तमुडि कीर्तन लेकुण्डा ऎन्नि कर्मलु चेसिना अवन्नी बूडिदलो पोसिन पन्नीरे. काबट्टि आ श्रीमन्नारायणुडिने निरन्तरं ध्यानिञ्चण्डि’ अनि हितवु पलिकाडु. मैत्रेयुडि माटलु विन्न विदुरुडू, शुक महर्षि बोधनल द्वारा परीक्षिन्महराजू, सूत महर्षि व्याख्यानं वल्ल शौनकादि महर्षुलू श्रीहरि तत्त्वं तॆलुसुकॊनि भक्तितो श्रीमन्नारायणुडिनि ध्यानिञ्चारु. चतुर्थ स्कन्धं b 56 पोतन भागवतमु ‘शौनकादि महर्षुलारा! परीक्षिन्महराजु प्रियव्रतुडि वृत्तान्तान्नि चॆप्पमनि वेडुकॊन्नाडु. शुक महर्षि चॆबुतुन्नाडु. प्रियव्रतुडि कथ ‘राजा! पूर्वं प्रियव्रतुडु’ ‘अध्यात्म सत्रयागं’ अने ऒक यागान्नि तलपॆट्टाडु. तण्ड्रि इतण्णि राज्यपालन चेयमन्नाडु. इतडु विनलेदु. चिवरिकि ब्रह्मदेवुडे वच्चि ‘इदि नारायणुडि आज्ञ. लोकंलो ऎवरिकी स्वातन्त्र्यं लेदु. आ परन्धामुडि इष्टं प्रकारं नडुचुकोवलसिन्दे!’ अनि हितवु पलिकाडु. प्रियव्रतुडु ऒप्पुकॊन्नाडु. पट्टाभिषेकं जरिगिन्दि. प्रियव्रतुडु राजै विश्वकर्म कुमार्तॆ अयिन बर्हिष्मतिनि पॆळ्ळाडाडु. वीळ्ळकु पदिमन्दि पुत्रुलु, ऒक कुमार्तॆ कलिगारु. वीळ्ळलो मुग्गुरु ब्रह्मचर्यं चेपट्टि तपस्सु चेसुकॊण्टू मुक्तिनि पॊन्दारु. अप्पुडु प्रियव्रतुडु मरो भार्य द्वारा मुग्गुरु कुमारुल्नि पॊन्दाडु. वाळ्ळु उत्तमुडु, तामसुडु, रैवतुडु. तरुवात प्रियव्रतुडु पदकॊण्डु अर्बुद संवत्सरालु राज्यान्नि पालिञ्चाडु. ऒकसारि इतडु सूर्युडिकि अवतल उण्डे चीकटिनि रूपुमापालनि रथम्पै बयलुदेराडु. आ रथचक्राल रापिडिकि गाडिपडि सप्तसमुद्रालु एर्पड्डायि. वाटि मध्य भागंलोनि भूमुले सप्तद्वीपालय्यायि. अवे जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौञ्च, शाक, पुष्कर द्वीपालु. वाटिलो जम्बूद्वीपं लक्ष योजनाल विस्तीर्णं कलदि. ई द्वीपालु ऒकदानिकण्टे ऒकटि रॆट्टिम्पु वैशाल्यंलो उण्टायि. ई द्वीपाल मध्यलो उप्पु, चॆरकु, मद्यं, नॆय्यि, पालु, पॆरुगु, मञ्चिनीटि पञ्चम स्कन्धं 57 समुद्रालु उन्नायि. ऒक द्वीपन्तो इङ्को द्वीपं कलसिपोकुण्डा उण्डेन्दुके ई समुद्रालु एर्पड्डायि. इदि ऒक अद्भुतं. प्रियव्रतुडु तन मॊदटि एडुगुरु कुमारुलकू ऒक्कॊक्क द्वीपान्नि इच्चाडु. कुमार्तॆनु भार्गवुडिकि इच्चि विवाहं चेशाडु. चिवरिकि अन्नी विडिचि मुक्तिनि पॊन्दाडु. इतडि वंशं क्रमङ्गा वृद्धि चॆन्दिन्दि. इतडि वंशंलोने ‘नाभि’ अने चक्रवर्ति उन्नाडु. अतडि भार्य मेरुदेवि. वीरिकि श्रीमन्नारायणुडे पुत्रुडिगा अवतरिञ्चाडु, पेरु ऋषभुडु. ऋषभावतार कथ सन्तानं कोसं नाभि मेरुदेवितो कलसि वासुदेवुण्णि पूजिञ्चाडु. आ पुण्यं वल्ल श्रीहरि ताने आ पुण्यदम्पतुलकु ‘ऋषभुडु’ अने पेरुतो अवतरिञ्चाडु. ऋषभुडु पॆरिगि पॆद्दवाडैन तरुवात नाभि अतडिकि राज्यान्नि अप्पगिञ्चि तानु बदरिकाश्रमानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. ऋषभुडि भार्य इन्द्रुडि कुमार्तॆ जयन्ति. वीरिकि भरतुडु मॊदलैन वन्दमन्दि पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. ई भरतुडि पेरुमीदने अप्पटिवरकु अजनाभं अने पेरु कलिगिन वर्षं भरतवर्षङ्गा प्रसिद्धिकॆक्किन्दि. भरतुडु तन सोदरुललो तॊम्मिदिमन्दिनि तॊम्मिदि प्रान्तालकु प्रधानुलुगा नियमिञ्चाडु. आ प्रान्तालकू वारिवारि पेर्लमीदने प्रसिद्धि लभिञ्चिन्दि. तक्किन सोदरुलू अन्नगारि माटनु जवदाटनि उत्तमुलु. ऋषभुडु कॊन्तकालं राज्यपालन चेसि, तरुवात राज्यान्नि कॊडुकुलकु अप्पगिञ्चालनुकॊन्नाडु. ऒकरोजु अन्दर्नी रम्मनि पिलिचि इला अन्नाडु- ‘नायनलारा! कामानिकि लॊङ्गिते कुक्कपाट्लु पडालि. तपस्सु वल्लने सुखमू, आनन्दमू लभिस्तायि. कोरिकलकु दूरङ्गा उण्डण्डि. तपस्सुकु दग्गरव्वण्डि. दीनुल्नि, वृद्धुल्नि रक्षिञ्चण्डि. स्र्तीव्यामोहं संसारान्नि नरकं चेस्तुन्दि. सज्जन साङ्गत्यं मोक्षानिकि बाटलु वेस्तुन्दि. शरीरं अशाश्वतं! पञ्चम स्कन्धं 58 पोतन भागवतमु दानिकोसं पापालु चेयकण्डि. नामीदे दृष्टि निलपण्डि. मीकु नापै भक्ति कुदरनन्तवरकू तिप्पलु तप्पवु. ऎन्तटि विद्यावन्तुलैना शरीर सुखं कोसं अर्रुलु चास्ते पतनं तप्पदु. नेनु, नादि अन्न व्यामोहमे संसारिनि अष्टकष्टाल पालु चेस्तुन्दि. मीकु मोक्षान्नि पॊन्दे मार्गालु चॆप्तानु विनण्डि. निश्चलमैन भक्ति, इन्द्रिय निग्रहं, कोरिकलु लेकपोवटं, सहनं, सहनुभूति, ज्ञानं, तपस्सु, सत्कथाश्रवणं, भगवन्तुडि गुणालनु कीर्तिञ्चडं, समबुद्धि, निरहङ्कारं, योगं, कर्तव्यनिष्ठ, श्रद्ध, ब्रह्मचर्यं, अन्निण्टिलो नन्ने चूडटं मॊदलैनवि मुक्तिमार्गालु. इवि अन्दरिकी तॆलियवु. तॆलिसिनवाडु चॆप्पालि. अन्दुके नेनु मीकु चॆप्तुन्नानु. वीटिनि मीरु आचरिञ्चण्डि. मी अन्न भरतुडु चॆप्पिनट्लु नडुचुकोण्डि’ अण्टू इङ्का ऎन्नो धर्मालु, सृष्टिरहस्यालू पुत्रुलकु उपदेशिञ्चाडु ऋषभुडु. तरुवात राज्यान्नि भरतुडिकि अप्पगिञ्चि जडुडिला, चॆविटिवाडिला, मूगवाडिला, पिच्चिवाडिला तिरुगुतू कालं गडिपाडु. तननु ऎवरू गुर्तुपट्टकूडदनि कॊन्नाळ्ळु कॊण्डचिलुवला पडि उन्नाडु. चिवरिकि परब्रह्मंलो ऐक्यमैपोयाडु. भरतुडि चरित्र भरतुडु राज्यान्नि चेपट्टि विश्वरूपुडि पुत्रिक अयिन ‘पञ्चजनि’नि विवाहमाडाडु. वीळ्ळकु ऐदुगुरु पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. भरतुडु वेदोक्तङ्गा कर्मल्नि आचरिस्तू याभैलक्षल संवत्सरालु राज्य पालन चेसि चिवरिकि पुत्रुलकु राज्यान्नि अप्पगिञ्चि पुलहश्रमानिकि वॆळ्ळाडु. अक्कड तपस्सु चेसुकोवटं प्रारम्भिञ्चाडु. ऒकरोजु नीटिलो निलबडि सन्ध्या वन्दनं चेस्तुन्नाडु. निण्डु चूलालुगा उन्न ऒक जिङ्क वच्चि आ नदिलोने नीळ्ळु तागुतोन्दि. अन्तलो सिंहगर्जन विनि भयन्तो ऒक्क गॆन्तु गॆन्तिन्दि आ जिङ्क. अन्ते! दानि गर्भंलो नुण्डि पिल्ल जारि नीटिलो पडिन्दि. जिङ्क मरणिञ्चिन्दि. तल्लिलेनि पिल्लनु चूचि भरतुडु जालितो दान्नि रक्षिञ्चाडु. तन आश्रमानिकि तीसुकुवॆळ्ळाडु. अप्पटिनुण्डी दानि आलना पालना चूडटन्तोने सरिपोयेदि भरतुडिकि. क्रमङ्गा तपस्सु, अनुष्ठानं अन्नी अटकॆक्केशायि. ऒकसारि आ जिङ्कपिल्ल 59 कनिपिञ्चकुण्डा पोयिन्दि. तल्लडिल्लिपोयाडु भरतुडु. चिवरिकि तिरिगि वच्चिन्दि. अप्पटिकिगानी भरतुडि मनस्सु कुदुटपडलेदु. ई विधङ्गा आ जिङ्कने तलुचु कुण्टू चिवरिकि मरणिञ्चाडु. अला मरणिञ्चटंवल्ल तरुवात जन्मलो जिङ्कगा पुट्टाडु. अयिते हरिभक्ति कारणङ्गा अतडिकि पूर्वजन्मज्ञानं वच्चिन्दि. तानु इला ऎन्दुकय्याडो कूडा तॆलिसिवच्चिन्दि. जिङ्कला सञ्चरिस्तू मळ्ळी पुलहश्रमानिकि चेरुकुन्नाडु. अक्कड आ जिङ्क शरीरान्नि विडिचिपॆट्टाडु. तरुवात जन्मलो ऒक ब्राह्मणुडिकि जन्मिञ्चाडु. ई जन्मलोनू अतडिकि पुट्टुक नुञ्ची हरिभक्ति अलवडिन्दि. नित्यं श्रीहरिने ध्यानिस्तू उण्टे अतडिनि चूसि अन्दरू पिच्चिवाडेमोननुकुन्नारु. कॊन्तकालानिकि तण्ड्रि मरणिञ्चाडु. सवति सोदरुल दग्गरे इतडु उण्डेवाडु. वाळ्ळु मूर्खुलु. इतण्णि नाना माटलू अनेवाळ्ळु. अड्डमैन पनुलू चेयिञ्चेवाळ्ळु. वाळ्ळु अन्तला राचिरम्पान पॆट्टिना भरतुडिकि ऎन्तमात्रं बाध कलिगेदि कादु. सोदरुलु इतण्णि पॊलानिकि कापलापॆट्टारु. वीळ्ळु उण्टुन्न राज्यानिकि राजु वृषलुडु. इतडिकि सन्तानं लेदु. ऎवरिनैना भद्रकाळिकि बलि इस्ते सन्तानं कलुगुतुन्दनि ऎवरो चॆप्पारु. ऎवरिनैना तीसुकुरम्मनि भटुल्नि पम्पाडु. आ भटुलु ई भरतुण्णि पट्टुकॊनि तीसुकुवच्चारु. बलिपीठम्पै ऎक्किञ्चि बलि इव्वबोयारु. अन्तलो काळिकादेवि प्रत्यक्षमय्यिन्दि. भरतुडि मुखंलोनि ब्रह्मतेजस्सु चूसि ‘भद्रकाळि’ वणिकिपोयिन्दि. राजु पैना अतडि परिवारम्पैना विरुचुकुपडिन्दि. ऎक्कडिवाळ्ळु अक्कड पारिपोयारु. भरतुडु इण्टिकि तिरिगिवच्चि यथाप्रकारं पॊलानिकि कापला उण्टुन्नाडु. कॊन्तकालं तर्वात सिन्धुदेशपु राजु ‘रहूगणुडु’ कपिल महर्षिनि कलिसि अतडि नुण्डि तत्त्वज्ञानं पॊन्दालनि पल्लकिपै अटुवैपु वॆळ्तुन्नाडु. आ पल्लकि बोयीलु ई भरतुडिचेत पल्लकि मोयिञ्चारु. पल्लकि मोयटं अलवाटुलेदु भरतुडिकि. ऎलाबडिते अला नडुस्तुन्नाडु. दानिवल्ल राजुकु असौकर्यङ्गा उन्दि. कारणं तॆलुसुकॊनि राजु भरतुण्णि निन्दिञ्चाडु. आ माटलकु भरतुडु बाधपडलेदु. चिरुनव्वु चिन्दिस्तू पञ्चम स्कन्धं 60 पोतन भागवतमु ‘राजा! नी माटलु नन्नु बाधपॆट्टलेवु. एमी पट्टनि जडुडिला उन्न नन्नु एमन्ना प्रयोजनं लेदु. राजुनन्न अहङ्कारन्तो नुव्वु नन्नु निन्दिस्तुन्नावु’ अन्ते! अन्नाडु. राजु निर्घान्तपोयाडु. अतडॆवरो महनुभावुडनुकॊनि पल्लकि दिगि काळ्ळपैपड्डाडु. ‘महनुभावा! नन्नु अनुग्रहिञ्चडानिकि मारुवेषंलो वच्चिन कपिल महर्षिवा? ऎन्दुकिला सञ्चरिस्तुन्नावु?’ अनि अडिगाडु. भरतुडु इला समाधानं इच्चाडु - मोक्षमार्गं राजा! पॊय्यिमीद पॆट्टिन कुण्ड वेडॆक्कुतुन्दि. आ वेडिवल्ल अन्नं उडुकुतुन्दि. अलागे जीवुडु शरीरान्नि आश्रयिञ्चि संसारंलो शिक्षनु अनुभविस्ताडु. श्रीहरिनि सेविस्ते दानिनुण्डि विमुक्ति लभिस्तुन्दि. ई प्रपञ्चं मिथ्य. गुणालु उन्नन्तकालं धर्माधर्मालु पुडुतूने उण्टायि. गुणालु नशिस्तेने मुक्ति. अन्दुके मुन्दु मनस्सुनु बन्धिञ्चालि. दानिकि आयुधं हरिभक्ति. फलानिकि मूलं कर्म. दानिकि कारणं संसारं. संसारंलो मनस्सु चिक्कुकॊनि तिरुगुतुन्नन्तसेपू तत्त्वं बोधपडदु. नीकु अहङ्कारं उन्दि. शरीरम्पै ममकारमू कावलसिनन्त. अन्दुके ई गर्वं. जनुल्नि बॆदिरिस्तुन्नावु. काबट्टि नीकु पूजार्हत लेदु. अविद्य, मनस्सुलचे कल्पितमैन मायवल्ल ई जगत्तु पुट्टिन्दि. ब्रह्म ऒक्कटे सत्यं. अदे भगवन्तुडु. जगत्तु मिथ्य. तपस्सु द्वारा कूडा लभिञ्चनि ब्रह्मज्ञानं भागवतुल्नि सेविस्ते लभिस्तुन्दनि पॆद्दलु चॆबुतारु. अदे मोक्षमार्गं. नेनु पूर्वं भरतुडु अने पेरुगल चक्रवर्तिनि. इप्पुडु अन्नी विडिचिपॆट्टिन वाण्णि. पॆद्दलनु सेविञ्चिनवाडु संसारमोहंलो पडडु. मोक्षान्नि पॊन्दुताडु. मायकु लोबड्डवाडु देशालुपट्टि एदो कावालनि तिरुगुतू उण्टाडु. 61 ई संसारं ऒक पॆद्द अडवि. कामं क्रोधं मॊदलैनवि दॊङ्गलु. इन्द्रियालकु वशमैन मानवुल्नि ई दॊङ्गलु पट्टि पीडिस्तारु. दाचुकुन्न पुण्यं अने धनान्नि दोचुकुण्टारु. भार्यापुत्रुलु तोडेळ्ळलाण्टिवाळ्ळु. अडविलो कॊरिवि दॆय्यान्नि चूसि निप्पु अनि भ्रमपडिनट्लु धनं कोसं मानवुडु अन्दरि चुट्टू तिरुगुताडु. तापत्रयालु, कक्षलु, कार्पण्यालु मुळ्ळै गुच्चु कुण्टायि. काबट्टि राजा! ज्ञानं अने खड्गन्तो ई मुळ्ळदारिनि सरिचेसुकोवालि. ऎल्लप्पुडू श्रीहरिने मनसुलो निलुपुकोवालि’ अण्टू हितबोध चेशाडु. राजुकु ज्ञानोदयं अयिन्दि. भरतुडि तरुवात अतडि कॊडुकुलु राजुलै राज्यपालन चेशारु. इतडि वंशमू पुत्रपौत्राभिवृद्धिगा विस्तरिञ्चिन्दि. ई वंशंलोने ‘गयुडु’ अने ऒक सद्गुण सम्पन्नुडु विष्णुभक्तुडिगा उत्तमुडिगा पेरुतॆच्चुकुन्नाडु. सत्कर्मलनु आचरिस्तू विष्णुभक्तुलनु सेविस्तू चक्कगा परिपालन सागिञ्चाडु. प्रियव्रतुडि वंशंलो चिवरिवाडु विरजुडु. इतडू उत्तमुडनि पेरुतॆच्चुकुन्नाडु. ‘राजा! इदय्या प्रियव्रतुडि वंश चरित्र’ अण्टू शुक महर्षि इङ्का भूगोळं गुरिञ्ची, भगोळं (नक्षत्रगोळं) गुरिञ्ची विपुलङ्गा चॆप्पाडु. आ तर्वात नरक लोकं गुरिञ्ची पूसगुच्चिनट्लु विवरिञ्चाडु. मुनुलारा! अन्ता विन्न परीक्षित्तु ऎन्तो आनन्दिञ्चाडु. हरिभक्ति गॊप्पतनान्नि तॆलुसुकॊनि तन्मयत्वन्तो श्रीहरिकि नमस्करिञ्चाडु.’ अन्नाडु सूतमहर्षि. आ सूत महर्षि माटलु विन्न शौनकादि महर्षुलु तामु अमितमैन ज्ञानान्नि पॊन्दामनि आनन्दन्तो कृतज्ञतगा सूतमहर्षिकि नमस्करिञ्चारु. पञ्चम स्कन्धं b 62 पोतन भागवतमु भागवतं ऒक महमन्त्रं. नैमिशारण्यंलो आ मन्त्रान्ने जपिस्तुन्नारु सूतमहर्षी, शौनकादि महमुनुलू, गङ्गानदी तीरंलो शुक महर्षी, परीक्षित्तू. सूत महर्षि इला अन्नाडु - ‘मुनुलारा! परीक्षित्तु कोरिकपै शुक महर्षि इला चॆप्तुन्नाडु. ‘राजा! देनिकैना त्रिकरणशुद्धि उण्डालि. अदि लेकपोते नरकयातनलु पडक तप्पदु. तॆलिवैन वैद्युडु रोगानिकि कल मूलकारणान्नि कनिपॆडताडु. दान्नि तॊलगिस्ते चालु रोगं तग्गिपोतुन्दि. अलागे मानवुडु पापालकु एदि कारणमो दान्नि अन्तं चेसुकोवालि’ अन्नाडु. परीक्षित्तु दीर्घङ्गा आलोचिस्तू- महर्षी! ‘पापमे नरकहेतुवु’ अनि अन्दरिकी तॆलुसु. कानी ऎवडैना पापं चेयकुण्डा उण्टुन्नाडा? लेदे. पापं चेयटं, अय्यो अनुकोवटं, मळ्ळी पापं चेयटं इदे अलवाटैपोयिन्दि. तॆलिसिकूडा पापं चेसे इलाण्टि मूढुडिकि पापपरिहरं उण्टुन्दा? अनि अडिगाडु. दानिकि समाधानङ्गा ऒक चिरुनव्वु नव्वि, शुक महर्षि इला प्रारम्भिञ्चाडु. अजामिळुडि कथ राजा! पूर्वं ‘अजामिळुडु’ अने पेरुगल ऒक ब्राह्मणुडु कन्याकुब्जं अने नगरंलो उण्डेवाडु. इतडिकि लेनि चॆड्ड गुणं लेदु. कटिक दरिद्रुडु. पदिमन्दि कॊडुकुलु. चेयकूडनिवन्नी चेशाडु. चिवरिकि मुसलितनंलो काटिकि कालुचाचि चावडानिकि सिद्धङ्गा उन्नाडु. अयिते अतडि कॊडुकुललो चिट्टचिवरिवाडि षष्ठ स्कन्धं 63 पेरु नारायणुडु. वाडण्टे अजामिळुडिकि ऎन्तो इष्टं. आ चिवरि घडियल्लो कॊडुकुपै व्यामोहन्तो ‘नारायणा! नारायणा! अनि अरुस्तुन्नाडु. अजामिळुडि प्राणालु तीसुकुवॆळ्ळटानिकि यमकिङ्करुलु वच्चारु. वाळ्ळनु चूसिन अजामिळुडु वणिकिपोयाडु. ऒकप्रक्क कॊडुकुपै ममकारन्तो, नारायण! नारायण! अण्टूने उन्नाडु. यमकिङ्करुलु पाशं वेसि अतडि प्राणालु गुञ्जुतुन्नारु. इन्तलो ‘आगण्डि, एमिटि मीरु चेस्तुन्न पनि?’ अन्न माटलु विनिपिञ्चायि. अटुवैपु चूशारु यमकिङ्करुलु. ऎवरो दिव्यपुरुषुलु, धगधगा वॆलिगिपोतुन्नारु. अप्पुडु यमकिङ्करुलु ‘अय्या! मीरॆवरु? इदि यमधर्मराजु आज्ञ’ अन्नारु. ओहो! मीरु यमकिङ्करुला! सरे! में विष्णुदूतलं. इतडु एं पापं चेशाडनि मीरु इला शिक्षिस्तुन्नारु? असलु पापं अण्टे एमिटि? चॆप्पण्डि! अनि गद्दिञ्चारु. यमकिङ्करुलु विनयङ्गा कं. वेदप्रणिहितमे यनु मोदम्बुग धर्ममय्यॊ मुन्नु तदन्यं बेदियगु नदि यधर्मं बादियु हरिरूपु वेदमन विनु कतनन् (6-84) ‘अय्या! वेदाललो चॆप्पिन विधङ्गा अन्दरू आचरिञ्चेदे धर्मं. वेदाल्लो चॆप्पनिदि एदैना अधर्ममे. आ धर्मं नारायण स्वरूपं. समस्त प्राणुलकू वाटिवाटि कर्मलनुबट्टि शिक्षलु उण्टायि. इप्पुडु मीरु ई क्रमानिकि अड्डु तगिलारु. लोकंलो जनुलु मूडु रकालुगा उण्टारु. कॊन्दरु शान्तमूर्तुलु. वीरिदि धर्ममार्गं. मरिकॊन्दरु घोरमैन स्वभावं कलवाळ्ळु. वीळ्ळदि अधर्म मार्गं. इङ्कॊन्दरु मूर्खुलु. वीळ्ळु अटू इटू काकुण्डा उण्टारु. यमधर्मराजु धर्मस्वरूपुडु. एदि धर्ममो एदि अधर्ममो आयने निर्णयिस्ताडु. ई अजामिळुडु पूर्वजन्मलो कॊन्नि मञ्चि पनुलु चेशाडु. षष्ठ स्कन्धं 64 पोतन भागवतमु अन्दुके ई जन्मलो उत्तमुडिगा पुट्टाडु. कानी एं लाभं? मॊदट मञ्चिवाडे. तरुवात कामानिकि वशुडैपोयाडु. स्र्तीकि दासुडैपोयाडु. चेयकूडनि पनुलन्नी चेसिन पापात्मुडु वीडु. अन्दुके नरकानिकि तीसुकुपोतुन्नां’ अन्नारु. अप्पुडु विष्णुदूतलु नव्वुतू ‘ओहो! इदेना? मी विवेकं. इलाण्टि पुण्यात्मुण्णि नरकानिकि तीसुकुवॆळ्तारा? आ.वॆ. ऎऱुक गलुगु नात" डेदि यॊनर्चिन नदिय चेतु रितरुलैन वार लत"डु सत्यमिट्टि दनॆनेनि लोकम्बु तत्र्पवर्तनमुन" दगिलियुण्डु. (6-113) ‘ज्ञानं कलवाडु एदि चेस्ते दान्ने लोकं अनुसरिस्तुन्दि. अतडु निर्णयिञ्चिनदे सत्यं. अजामिळुडु ऎन्नो पापालु चेशाडु. निजमे! कानी चिवरि दशलो श्रीहरि नामान्नि पलिकि, पुण्यात्मुडु अय्याडु. कं. डॆन्दम्बु पुत्रुवलनन् जॆन्दिनदनि तल"पवलदु श्रीपति पेरे चन्दमुन नैन" बलिकिन नन्दकधरु" डन्दॆ कल"डु नाथुं डगुचुन् (6-121) इतडु कॊडुकुपै प्रेमतो नारायणा! अनि पिलिचाडु गानी भक्तितो कादु कदा! अन्न सन्देहं वद्दु. ए रूपङ्गा पिलिचिना अन्दुलो श्रीमन्नारायणुडु उण्टाडु. ब्रह्म मॊदलैनवारिकि कूडा अन्दनि मोक्षं हरिनामस्मरण वल्ल कलुगुतुन्दि. ए रकङ्गा चेसिना फलितं वच्चि तीरुतुन्दि’ अन्नारु. यमकिङ्करुलकु कनुविप्पु कलिगिन्दि. अजामिळुडि बन्धनालु तॊलगिञ्चि विष्णुदूतलकु नमस्करिञ्चि वॆळ्ळिपोयारु. अजामिळुडु ऊपिरि पील्चुकॊन्नाडु. विष्णुदूतलकु नमस्करिञ्चाडु. वाळ्ळु वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळिपोयारु. तरुवात अजामिळुडु बुद्धि तॆच्चुकुनि श्रीहरिने ध्यानिस्तू मुक्तिनि पॊन्दाडु. 65 कं. हरिभक्तुलतो माटलु धर नॆन्न"डु" जॆडनि पुण्यधनमुल मूटल् वरमुक्तिकान्त तोटलु नरिषड्वर्गम्बु चॊरनि यरुदगु कोटल् (6-153) हरिभक्तुल माटलु नाशनं लेनि पुण्याल मूटलु. मुक्ति अने कान्त विहरिञ्चे तोटलु. अरिषड्वर्गं चॊरबडनि अरुदैन कोटलु. यमुडि शासनं यमकिङ्करुलु वॆळ्ळि जरिगिनदन्ता यमधर्मराजुकु चॆप्पारु. अप्पुडु यमुडु तन सेवकुलतो ‘हरिनाम सङ्कीर्तन गॊप्पतनं इप्पटिकैना अर्थ मय्यिन्दा? इकनुण्डि हरिभक्तुल जोलिकि वॆळ्ळकण्डि. हरिभक्तुलु कानिवाळ्ळनु मात्रं रॆक्कलु विरिचिमरी इक्कडिकि तीसुकुरण्डि’ अनि आज्ञापिञ्चाडु. राजा! यथालापङ्गा हरिनि स्मरिञ्चिनन्दुके अजामिळुडु मोक्षान्नि पॊन्दाडे! मरि इष्टङ्गा आ श्रीहरिनि ध्यानिस्ते ऎन्त फलितं वस्तुन्दो वेरे चॆप्पाला? अण्टू तन प्रवचनान्नि कॊनसागिञ्चाडु. सृष्टि विस्तरण ‘राजा! प्रचेतसुलकू, मारिष अने कन्यकू दक्षुडे तिरिगि जन्मिञ्चाडनि चॆप्पानु कदा! आ दक्षुडु सृष्टिनि विस्तरिम्पजेयडानिकि पूनुकुन्नाडु. सुर-गरुड- उरग-यक्ष-किन्नर-किम्पुरुषादि गणालनु, पर्वतालनु, नदुलनु, वृक्षालनु सृष्टिञ्चाडु. अयिना तृप्ति कलगलेदु. तपस्सु चेशाडु. श्रीमन्नारायणुडु प्रत्यक्षमय्याडु. अप्पुडु दक्षुडु ‘हंसगुह्यस्तवराजं’ अने स्तोत्रन्तो श्रीहरिनि स्तुतिञ्चाडु. तरुवात श्रीहरि आज्ञमेरकु पञ्चजन प्रजापति कुमार्तॆ ‘असिक्नि’नि विवाहं चेसुकॊनि प्रजासृष्टिकि नान्दिपलिकाडु. वीळ्ळकु हर्यश्वुलु अने पेरु कलिगिन पदिवेलमन्दि पुत्रुलु कलिगारु. वीळ्ळु संसारंवद्दु. मोक्षङ्कोसं प्रयत्निस्तामन्नारु. वीळ्ळकि ई आलोचन कलिगिञ्चिनदि नारदमहर्षि. षष्ठ स्कन्धं 66 पोतन भागवतमु नारदुडि हितबोधलो वाळ्ळन्दरू निवृत्तिमार्गं वॆतुक्कुण्टू वॆळ्ळि पोयारु. ईसारि दक्षुडु ‘शबळाश्वुलु’ अने वेयिमन्दि पुत्रुल्नि पॊन्दाडु. वाळ्ळनू नारदुडु अदे बाट पट्टिञ्चाडु. इला चेसिनन्दुकु दक्षुडिकि नारदुडिपै कोपं वच्चिन्दि. ‘नुव्वु लोक सञ्चारं चेस्तू उण्टावु’ अनि नारदुण्णि शपिञ्चाडु. तननु शपिञ्चिना नारदुडु अतण्णि एमी अनलेदु. तानु बाधपडनूलेदु. अन्तटि शान्तमूर्ति नारद महर्षि. दक्ष प्रजापति ईसारि 60 मन्दि पुत्रिकल्नि पॊन्दाडु. वाळ्ळन्दरिनी पॆञ्चि पॆद्दचेसि विवाहलु जरिपिञ्चाडु. वीळ्ळ द्वाराने समस्त गणालू पुट्टायि. कश्यपुडि भार्यललो विनत, कद्रुव, पतङ्गि, यामिनि मॊदलैन वाळ्ळुन्नारु. विनतकु अनूरुडु, गरुत्मन्तुडू जन्मिञ्चारु. अनूरुडु सूर्युडिकि सारथि अय्याडु. गरुत्मन्तुडु श्रीमहविष्णुवुकु वाहनं अय्याडु. कद्रुवकु नागुलु, पतङ्गिकि पक्षुलु, यामिनिकि मिडतलु सन्तानं. दनुवुकु दानवुलू तिमिकि जलचरालू, अरिष्टकु गन्धर्वुलू सन्तानं. दनुवु सन्तानंलो वृषपर्वुडु अने दानवुडिकि 18 मन्दि पुत्रुलु. वारिलो स्वर्भानुवु ऒकडु. इतडिकि सुप्रभ अने कुमार्तॆ उन्दि. ईमॆनु ‘नमुचि’ पॆळ्ळि चेसुकुन्नाडु. वृषपर्वुडिकि शर्मिष्ठ अने मरो कुमार्तॆ उन्दि. आमॆनु ययाति महराजु पॆळ्ळिचेसुकुन्नाडु. पुराणपुरुषुडैन श्रीमन्नारायणुडे अदितिकि पुत्रुडै जन्मिञ्चाडु. इङ्का अदितिकि कलिगिन 12 मन्दि पुत्रुललो वामनुडु ऒकडु. द्वादश आदित्युललो ऒकडैन विवस्वन्तुडिकि (सूर्युडिकि) सञ्ज्ञादेवियन्दु मनुवु, यमुडु, यमुन, अश्विनीदेवतलू, छायादेवियन्दु शनैश्चरुडु, सावर्णि अने पुत्रुलू, तपति अने कुमार्तॆ कलिगारु. तपति संवरणुण्णि विवाहमाडिन्दि. अदिति पुत्रुडैन अर्यमुडिकी, अतडि भार्य मातृककू चर्षणुलु पुट्टारु. वीरि द्वारा मनुष्यजाति विस्तरिञ्चिन्दि. 67 देवेन्द्रुडि गर्वं देवेन्द्रुडु अधिकारगर्वन्तो ऒकसारि बृहस्पतिनि सरिगा गौरविञ्चलेदु. बृहस्पतिकि कोपं वच्चिन्दि. देवेन्द्रुडु तन तप्पु तॆलुसुकॊनि बृहस्पति इण्टिकि वॆळ्ळाडु कानी बृहस्पति ऎक्कडा कनिपिञ्चलेदु. इदे तगिन समयमनि दानवुलु देवतलपै दण्डॆत्तारु. ‘गुरुवुनु गौरविञ्चकपोवडमे ई अनर्थानिकि कारणं. प्रजापतियैन त्वष्ट कुमारुडु विश्वरूपुण्णि गुरुवुगा उण्डमनि अभ्यर्थिञ्चण्डि’ अनि ब्रह्मदेवुडु देवतलकु सलह इच्चाडु. विश्वरूपुडु - नारायणकवचं देवतलु वॆळ्ळि विश्वरूपुण्णि प्रार्थिञ्चारु. दानिकि विश्वरूपुडु ‘नेनु मीकु आचार्युडिगा उण्टे ना तेजस्सु तग्गिपोतुन्दि. अयिना अङ्गीकरिस्तुन्नानु. गुरुवु प्रत्येकङ्गा धनान्नि कूडबॆट्टवलसिन अवसरं लेदु. शिष्युले गुरुवुकु तरगनि धनं.’ अण्टू वारिनि अनुग्रहिञ्चाडु. शुक्राचार्युडु तन विद्यचेत दोचि मरी दनुजुल किच्चिन स्वर्गसम्पदकु रॆट्टिम्पु ऐश्वर्यं देवतलकु वच्चेला चेशाडु. इन्द्रुडिकि नारायण कवचान्नि इला उपदेशिञ्चाडु. ‘सकल आयुधालनु धरिञ्चि गरुड वाहनम्पै सञ्चरिञ्चे श्रीमन्नारायणुडु विविध अवताराल द्वारा माकु रक्षण कल्पिञ्चुगाक!’ इदे आ नारायण कवच सारांशं. ई स्तोत्रान्नि निष्ठगा पठिञ्चालि. पूर्वं ई स्तोत्रान्नि पठिञ्चि ‘कौशिकुडु’ अने ब्राह्मणुडु शरीरान्नि त्यजिञ्चाडु. अतडि अस्थिपञ्जरं उन्न प्रान्तंलो पैनुण्डि विमानंलो चित्ररथुडु अने गन्धर्वुडु वॆळ्तुन्नाडु. अकस्मात्तुगा अतडि विमानं आगिपोयिन्दि. नेलकु ऒरिगिपोयिन्दि कूडा. अप्पुडु ‘वालखिल्युडु’ अने मुनि वच्चि ‘विष्णुभक्तुल अस्थिकलनु सैतं ऎवरू दाटि वॆळ्ळलेरु. इविगो! कौशिकुडि अस्थिकलु. वीटिनि तीसुकुवॆळ्ळि सरस्वती नदिलो निमज्जनं चॆय्यि’ अनि चॆप्पाडु. चित्ररथुडु अलागे चेसि तन लोकानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. विश्वरूपुडिकि मूडु तललु. अवि सुर, सोम, अन्नालनु स्वीकरिस्तायि. विश्वरूपुडिकि राक्षसुल कन्नतल्लि दिति अण्टे इष्टं. अन्दुके यज्ञभागंलो षष्ठ स्कन्धं 68 पोतन भागवतमु कॊन्त दितिकि इच्चेवाडु. अदि तॆलिसि इन्द्रुडु अतडि तलल्नि खण्डिञ्चाडु. दानिवल्ल अतडिकि ब्रह्महत्या पातकं चुट्टुकुन्दि. ऒक एडादिकालं दानिनि इन्द्रुडु अनुभविञ्चि, आ पापान्नि भूमिकी, नीटिकी, चॆट्लकू, स्र्तीलकू इच्चि अन्दुकु प्रतिगा कॊन्नि वरालनु प्रसादिञ्चाडु. ई वरप्रभावं वल्लने भूमिलो पातिपॆट्टिनदल्ला मट्टिलो कलिसि पोतुन्दि. ऎन्नि कल्मषाल्नि कडिगिना नीरु पवित्रङ्गाने उण्टुन्दि. मॊदलण्टा नरिकिना चॆट्लु तिरिगि चिगुरिस्तायि. स्र्तीलकु ऎल्लप्पुडू काम सुखं कलुगुतुन्दि. वृत्रासुरुडि कथ विश्वरूपुडि तण्ड्रि त्वष्ट तन कॊडुकुनु चम्पिन इन्द्रुडिपै पगबट्टि ऒक मारणहोमं चेशाडु. अन्दुलो नुञ्चि ऒक भीकरुडु पुट्टुकॊच्चाडु. अतडे वृत्रासुरुडु. वृत्रासुरुडु देवतलनु हिंसिञ्चटं मॊदलुपॆट्टाडु. वृत्रासुरुण्णि संहरिञ्चालण्टे ऒक आयुधं कावालि. अन्दुकोसं दधीचि महर्षिनि प्रार्थिञ्च मनि श्रीमहविष्णुवु चॆप्पटन्तो देवतलु वॆळ्ळि दधीचिनि इला प्रार्थिञ्चारु- ‘महर्षी! मेमु नी दग्गरकु याचकुलुगा वच्चां. ऎव्वरू कोरनि कोरिक कोरुतुन्नां. याचकुलकु दय उण्डदु. अन्दुके मेमु नी शरीरान्नि याचिस्तुन्नां. प्रसादिञ्चु’ अन्नारु. वाळ्ळु कोरिनदि लोकविरुद्धमे अयिना अतडु महदात काबट्टि वॆण्टने प्राणं विडिचिपॆट्टाडु. अप्पुडु आ महर्षि ऎमुकलतो विश्वकर्म वज्रायुधान्नि तयारुचेशाडु. आ आयुधं धरिञ्चि इन्द्रुडु वृत्रासुरुडितो तलपड्डाडु. नर्मदा नदीतीरं. युद्धं भयङ्करङ्गा सागुतोन्दि. ऎक्कड चूसिना मृतकळेबराले. आ युद्धभूमिलो, भूतालु मॆळ्ळो प्रेवुलु वेळ्ळाडेसुकॊनि स्वैरविहरं चेस्तुन्नायि. कृतयुगंलो प्रारम्भमयिन ई युद्धं त्रेतायुगं दाका सागिन्दि. देवतल धाटिकि तट्टुकोलेक दानवुलु पारिपोवडानिकि सिद्धपडुतुन्नारु. अप्पुडु वृत्रासुरुडु- 69 शा. चावु ध्रुवमैन प्राणिकि" जावुलु रॆण्डरसिकॊनु"डु समरमुनन्दुन् भाविम्प योगमन्दुनु जावङ्गा लेनि चॆडुगु चावुं जावे? (6-382) ‘दानववीरुलारा! पुट्टिन प्रति जीवी गिट्टक तप्पदु. अयिते युद्धंलो कानी, योगसाधन चेस्तूगानी मरणिञ्चटमे मञ्चिदि. इलाकाक वेरेविधङ्गा मरणिस्ते आ मरणं नीचमैनदि’ अण्टू वाळ्ळकु धैर्यान्नि नूरिपोशाडु. तानु वीरोचितङ्गा पोराडुतू - ‘इन्द्रा! ना सोदरुडैन विश्वरूपुण्णि संहरिञ्चावु. मेलु चेसिन गुरुवुने पॊट्टनपॆट्टुकुन्न नीकण्टे पापात्मुडु ऎवरुण्टारु? नीलाण्टि कृतघ्नुडि मांसान्नि काकुलू, गद्दलू, नक्कलू कूडा मुट्टुकोवु. इङ्का आलोचिस्ता वॆन्दुकु? रा! आ वज्रायुधान्नि नापै प्रयोगिञ्चु. विष्णुवु तेजस्सु अन्दुलो उन्दि. अदि नन्नु संहरिस्तुन्दि. विष्णुदेवुडु ऎक्कड उण्टे अक्कडे विजयं’ अण्टू श्रीहरिने ध्यानिस्तू इन्द्रुडिपैकि वच्चाडु. इन्द्रुडु वज्रायुधन्तो वृत्रासुरुडि चेयि नरिकिपारेशाडु. अयिना ऒण्टिचेत्तो ऒक पॆद्द गुदियनु तीसुकॊनि वृत्रासुरुडु इन्द्रुण्णि ऒक्कटि वेशाडु. दॆब्बकु इन्द्रुडु मूर्छपोयाडु. वज्रायुधं चेतिलोञ्चि जारिपोयिन्दि. इन्द्रुडु तेरुकुन्नाक वृत्रासुरुडु - ‘इन्द्रा! रा, आयुधं तीसुको! चेतिलो आयुधं लेनिवाण्णि नेनु संहरिञ्चनु’. इदन्ता विष्णुमाय. गॆलुपु आ स्वामिदे. अदि तॆलियक गॆलुपुकु कारणं मेमेननि लोकुलु विर्रवीगुतू उण्टारु. नन्ने चूडु. ऒक चॆय्यि विरिगिना निन्नु चम्पालनि चूस्तुन्नानु. अयिते चम्पेदी चच्चेदी आ आदिनारायणुडे’ अन्नाडु. अतनि माटलु विन्न इन्द्रुडिकि तल गिर्रुन तिरिगिपोयिन्दि. आ राक्षसुडि ज्ञानानिकि आश्चर्यपोतूने अतडि मरो चॆय्यि नरिकाडु. अयिना वृत्रासुरुडु गर्जिस्तू इन्द्रुण्णि मिङ्गेशाडु. षष्ठ स्कन्धं 70 पोतन भागवतमु नारायण कवचं रक्षणलो उन्नन्दुवल्ल इन्द्रुडु क्षेमङ्गा अतडि पॊट्टलो नुञ्चि बयटपड्डाडु. वाडि तलनु वज्रायुधन्तो नरिकाडु. वृत्रासुरुडु कुप्पकूलिपोयाडु. देवदुन्दुभुलु मार्र्मोगायि. अन्तटा आनन्दं वॆल्लिविरिसिन्दि. वृत्रासुरुण्णि चम्पटंवल्ल इन्द्रुडिकि मळ्ळी ब्रह्महत्यापातकं चुट्टुकुन्दि. अदि ईसारि भीकरमैन रूपंलो इन्द्रुडि वॆण्ट पडिन्दि. इन्द्रुडु ईशान्य दिक्कुन उन्न मानस सरोवरंलोनि ऒक तामर तूडुलो दाक्कुन्नाडु. अदि शिवुडि राज्यं. अन्दुके आ पातकं अक्कडिकि वॆळ्ळलेकपोयिन्दि. नहुषुडि शापवृत्तान्तं इन्द्रुडु लेनि ई समयंलो नहुषुडु इन्द्र पदविनि पॊन्दाडु. अयिते अतडु शचीदेविपै कन्नेशाडु. तनकु भार्यगा उण्डमनि आज्ञापिञ्चाडु. अप्पुडु आमॆ अतडि पीड वदिलिञ्चुकोवालनुकुन्दि. बृहस्पति ऒक उपायं चॆप्पाडु. दानि प्रकारं आमॆ नहुषुडितो ‘नुव्वु सप्तर्षुले बोयीलै मोस्तुन्न पल्लकिलो कूर्चॊनि वच्चि नन्नु चेपट्टु’ अनि चॆप्पिन्दि. अधिकार मदं, स्र्ती व्यामोहं कल नहुषुडु सप्तर्षुल्नि बोयीलुगा चेसुकुन्नाडु. दानिकि आ महर्षुलु आग्रहिञ्चि अतण्णि कॊण्डचिलुवगा मारिपॊम्मनि शपिञ्चारु. कॊन्तकालं तरुवात देवेन्द्रुडु तिरिगि वच्चाडु. इन्नाळ्ळू श्रीहरिने कॊलुस्तू उण्डटंवल्ल अतडि पापं पोयिन्दि. वच्चि अश्वमेध यागं चेसि वासुदेवुण्णि प्रसन्नं चेसुकॊन्नाडु. वृत्रासुरुडि पूर्व जन्म वृत्तान्तं राजा! वृत्रासुरुडु ऎन्तटि विवेकवन्तुडो विन्नावुकदा! निजानिकि इतडु पूर्वजन्मलो ‘चित्रकेतुवु’ अने राजु. सन्तानं कोसं पुत्रकामेष्टि चेसि तन भार्य ‘कृतद्युति’ द्वारा ऒक पुत्रुण्णि पॊन्दाडु. अयिते कृतद्युति सवतुलु असूयतो आ बालुडिकि विषम्पॆट्टि चम्पेशारु. ई चित्रकेतुमा कृतद्युति कन्नीरु मुन्नीरुगा विलपिस्तुण्टे अक्कडिकि अङ्गिरस महर्षि वच्चि इला अन्नाडु- 71 ‘राजा! ई लोकंलो एदी शाश्वतं कादु नायना! अन्नी दुःखानिकि हेतुवुले. श्रीहरि भक्ति ऒक्कटे शाश्वतमैन सुखान्नि प्रसादिस्तुन्दि. नीकू ई कुमारुडिकी ए सम्बन्धमू लेदु. कावालण्टे चूडु!’ अनि शवङ्गा उन्न आ बालुडिनि उद्देशिञ्चि- ‘नायना! नीकोसं नी तल्लिदण्ड्रुलु विलपिस्तुन्नारु. रा! ई शरीरंलो प्रवेशिञ्चु. राज्यान्नि चेपट्टि परिपालिञ्चु. नी तल्लिदण्ड्रुल दुःखान्नि तॊलगिञ्चु’ अन्नाडु. दानिका बालुडु - ‘मुनीन्द्रा! इप्पुडु नेनु वीळ्ळ दुःखान्नि तॊलगिस्ते मरि ना पूर्वजन्मललो उन्न तल्लिदण्ड्रुल दुःखान्नि ऎवरु तॊलगिस्तारु? जीवुडिकि ए बन्धमू अण्टुकोदु’ अन्नाडु. चित्रकेतुडिकि ज्ञानोदयं अयिन्दि. अङ्गिरस महर्षि द्वारा नारायण मन्त्रान्नि उपदेशङ्गा पॊन्दि, आ स्वामिने आराधिञ्चि विद्याधर चक्रवर्तित्वान्नी, ऒक दिव्य विमानान्नी पॊन्दाडु. कॊन्नाळ्ळ तर्वात आ विमानम्पै विहरिस्तू चित्रकेतुडु ऒकसारि कैलासानिकि वॆळ्ळि शिवपार्वतुलनु दर्शिञ्चाडु. निण्डु कॊलुवुलो शिवुडु पार्वतीदेविनि कौगिलिञ्चुकॊनि कनिपिञ्चाडु. अदिचूसि चित्रकेतुडु आक्षेपिञ्चाडु. अवहेळन चेशाडु. पार्वती देवि आग्रहिञ्चि इतण्णि राक्षसुडिवै पुट्टमनि शपिञ्चिन्दि. आमॆ शपिञ्चिना कॊञ्चॆं कूडा बाधपडलेदु चित्रकेतुडु. अयिते तानु ऎन्दुकला आक्षेपिञ्चाना? अनि पश्चात्तापं चॆन्दाडु. नमस्करिञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. अप्पुडु शिवुडु पार्वतीदेवितो ‘देवी! चूशावा! इतडु निजमैन विष्णुभक्तुडु. अन्दुके अन्त निर्लिप्तङ्गा उन्नाडु. विष्णुभक्तुलु अन्तटा श्रीहरिने दर्शिस्तारु. अन्दुवल्ल वारिकि सुखदुःखालु, हॆच्चुतग्गुलू उण्डवु’ अनि प्रशंसिञ्चाडु. आ चित्रकेतुडे ई वृत्रासुरुडु. अन्दुके अतडिकि अन्त ज्ञानं. षष्ठ स्कन्धं 72 पोतन भागवतमु राजा! अदिति सन्तानमैन 12 मन्दि द्वारा वाळ्ळ वंशं शाखोप शाखलुगा विस्तरिञ्चिन्दि. इक दिति गुरिञ्चि चॆप्तानु विनु. दितिकि हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपुलु पुत्रुलु. वीळ्ळ द्वारा दैत्यवंशं वृद्धि चॆन्दिन्दि. प्रह्लदुडु, बलिचक्रवर्ति, बाणासुरुडु इला ऎन्दरो दैत्यवीरुलु ई वंशंलोनिवाळ्ळे. अलागे दितिपुत्रुलु ‘मरुत्तुलु’ अनी उन्नारु. वीळ्ळ वृत्तान्तं चॆबुतानु विनु. दिति - पुंसवनव्रतं ऒकसारि दिति इन्द्रुण्णि संहरिञ्चगल पुत्रुण्णि प्रसादिञ्चमनि कश्यप प्रजापतिनि वेडुकुन्दि. कश्यपुडु आलोचिञ्चि आमॆनु ‘पुंसवन व्रतं’ चेयमनि आदेशिञ्चाडु. ‘निर्मलमैन मनस्सुतो शुचिगा नियमालनु अतिक्रमिञ्चकुण्डा ई व्रतान्नि ऒक एडादिपाटु चेयालि. चेस्ते नी कोरिक नॆरवेरुतुन्दि’ अण्टू व्रत नियमालु विवरङ्गा चॆप्पाडु. व्रतभङ्गं काकुण्डा चूसुकोमनी आमॆनु हॆच्चरिञ्चाडु. दिति व्रतान्नि प्रारम्भिञ्चिन्दि. कॊन्नाळ्ळकि गर्भान्नि धरिञ्चिन्दि. ई सङ्गति तॆलिसि इन्द्रुडु दितिकि सेवचेसे नॆपन्तो आमॆ दग्गर चेराडु. ऎप्पुडु अवकाशं वस्तुन्दा? अनि ऎदुरु चूस्तुन्नाडु. आ अवकाशं राने वच्चिन्दि. ऒकरोजु ‘दिति’ व्रतं चेसि अलसिपोयिन्दि. अदि सन्ध्यासमयं. भोजनं चेसि, काळ्ळू चेतुलू कडुक्कोकुण्डा निद्रपोयिन्दि. दान्तो व्रतभङ्गं अयिन्दि. इदे अदनुगा इन्द्रुडु आमॆ गर्भंलोनिकि प्रवेशिञ्चि लोपलि शिशुवुनु वज्रायुधन्तो एडु मुक्कलुगा नरिकाडु. आ मुक्कलु एडुपु मॊदलुपॆट्टायि. ‘मा रुद, मा रुद’ अण्टू मळ्ळी ऒक्को मुक्कनु एडु मुक्कलुगा नरिकाडु. मॊत्तं 49 मुक्कलु 49 मन्दि बालुरुगा मारिपोयारु. सूर्यसमानमैन कान्तितो दिव्यपुरुषुल्ला वॆलिगिपोतुन्नारु वाळ्ळन्ता. इन्द्रुडु वाळ्ळनु तीसुकॊनि गर्भं नुण्डि बयटकु वच्चाडु. जरिगिन घोरं 73 तॆलुसुकॊनि दिति तल्लडिल्लिपोयिन्दि. इन्द्रुडिपै आग्रहिञ्चिन्दि. इन्द्रुडु आमॆ पादालपै पड्डाडु. ‘तल्ली! नन्नु क्षमिञ्चु. पापात्मुण्णि. नी व्रतं भङ्गं कावडन्तो दान्नि आसरागा तीसुकॊनि इन्तटि अकृत्यानिकि ऒडिगट्टानु. नी व्रत प्रभावं चाला गॊप्पदि. अन्दुके मुक्कलुगा नरिकिना नी पुत्रुलु दिव्यपुरुषुलै प्रकाशिस्तुन्नारु. आ परन्धामुण्णि अर्चिस्ते ए कीडू रादु. वीळ्ळु इकनुण्डि मरुद्गणालुगा वर्धिल्लुतारु. नेनु वीळ्ळनु नातोपाटु स्वर्गानिकि तीसुकुवॆळ्तानु. अनुमतिञ्चु’ अन्नाडु. दिति शान्तिञ्चिन्दि. इन्द्रुडु वाळ्ळनु तीसुकॊनि स्वर्गानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. ‘राजा! ई कथ अत्यन्त पवित्रमैनदि. दीनिनि विन्ना, पठिञ्चिना सत्वरं पुण्यं सिद्धिस्तुन्दि’ अन्नाडु शुक महर्षि. सूतुडि माटलु विन्न शौनकादि मुनीन्द्रुलु आनन्दङ्गा श्रीहरिनि नोरारा कीर्तिञ्चारु. b षष्ठ स्कन्धं 74 पोतन भागवतमु धर्मसन्देहं ‘परीक्षित्तु महराजुकु ऒक सन्देहं कलिगिन्दि. विष्णुमूर्ति दृष्टिलो अन्दरू समानमे कदा! देवतलकु मेलु चॆय्यडं कोसं अतडु राक्षसुल्नि ऎन्दुकु वॆतिकि वॆतिकि मरी चम्पुतुन्नाडु? दानिवल्ल आयनकु ऒरिगिन्देमिटि? ई सन्देहन्नि दाचुकोकुण्डा शुक महर्षि मुन्दु उञ्चाडु’ अन्नाडु सूत महर्षि. शौनकादि ऋषुलु आसक्तिगा विण्टुन्नारु. सूतुडु चॆप्तुन्नाडु. ‘अप्पुडु शुकयोगीन्द्रुडिला अन्नाडु- ‘राजा! विष्णुदेवुडि कथलु चित्रमैनवे कादु पवित्रमैनवि सुमा! वाटिवल्ल मुल्लोकालू पावनमवुतायि. संसारं अने तीगलु तॆगिपोतायि. नीकु वच्चिन सन्देहंलाण्टिदे ऒकसारि मी तात धर्मराजुकू वच्चिन्दि. धर्मराजु राजसूय यागं चेसि आ यागंलो श्रीकृष्णुडिकि अर्घ्यं इच्चि सत्करिञ्चाडु. अदि सहिञ्चलेनि शिशुपालुडु श्रीकृष्णुण्णि नाना माटलू अन्नाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु चक्रन्तो अतडि तलनु खण्डिञ्चाडु. इदन्ता नीकु तॆलुसुकदा! अयिते अक्कडो विचित्रं जरिगिन्दि. अन्दरू चूस्तुण्डगा शिशुपालुडि शरीरं नुण्डि ऒक ज्योति बयटकु वच्चि श्रीकृष्ण परमात्मलो ऐक्यमैपोयिन्दि. अदि चूसिन धर्मराजु अक्कडे उन्न नारद महर्षिनि इला अडिगाडु- ‘मुनीन्द्रा! ई शिशुपालुडु दुर्मार्गुडु. चिन्नप्पटि नुण्डी श्रीकृष्णुण्णि निन्दिस्तूने उन्नाडु. में चूस्तूने उन्नां. अलाण्टिदि इतडि आत्म श्रीकृष्णुडिलो ऐक्यमैपोवटमेमिटि? विचित्रङ्गा उन्दे!’ दानिकि नारदुडु इला चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु- सप्तम स्कन्धं 75 वास्तवानिकि परमात्मकु देवतलपै पक्षपातं लेदु. आयन दृष्टिलो देवतलू, राक्षसुलू कूडा समानुले. अयिते वारिलो सज्जनुलु ए जातिवारैना आयन वारिनि रक्षिञ्चाडु (उदा. प्रह्लदुडु). दुष्टुलु देवतल्लो उन्ना वारि दोषानिकि तगिन शिक्ष लभिञ्चेट्लु चेशाडु. (उदा. देवेन्द्रुडु) शा. कामोत्कण्ठत गोपिकल्, भयमुनन् गंसुण्डु, वैरक्रिया सामग्रिन् शिशुपालमुख्य नृपतुल्, सम्बन्धुलै वृष्णुलुन्, ब्रेमन् मीरलु, भक्ति नेमु निदॆ चक्रिङ्गण्टि मॆट्लैन नु द्दामध्यानगरिष्ठु"डैन हरि" जॆन्दन् वच्चु धात्रीश्वरा! (7-18) धर्मराजा! कामन्तो गोपिकलु, भयन्तो कंसुडु, वैरन्तो शिशुपालादि राजुलु, सम्बन्धन्तो वृष्णिवंशीयुलु, प्रेमतो मीरु, भक्तितो मेमु ई विष्णुमूर्तिनि कॊलुस्तुन्नां. ऎवरैना सरे! ए मार्गंलो ध्यानं चेसिना श्रीहरिनि पॊन्दवच्चु. ई शिशुपालुडू, इतडि सोदरुडैन दन्तवक्र्तुडु ऎवरो कादु. श्रीहरि द्वारपालकुलैन जयविजयुले. सनकसनन्दनादि ऋषुल शापानिकि गुरै इला जन्मिञ्चारु. पूर्वं हरिनि द्वेषिञ्चि हरि चेतिलो मरणिञ्चिन हिरण्याक्ष, हिरण्य कशिपुलू, रावण कुम्भकर्णुलु कूडा जयविजयुले अण्टू जय विजयुलु ऎला शापानिकि गुरय्यारो विवरङ्गा चॆप्पाडु. इदि वीळ्ळकु मूडो जन्म. ई जन्म तरुवात वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळालि. अन्दुके शिशु पालुडि आत्म श्रीकृष्णुडिलो ऐक्यमयिन्दि’ अन्नाडु. प्रह्लद चरित्र आ तरुवात धर्मराजु तनकु प्रह्लदुडि चरित्रनु चॆप्पमनि नारदुण्णि अडिगाडु. नारदुडु इला चॆप्तुन्नाडु. ‘राजा! हिरण्याक्षुण्णि श्रीहरि वराहरूपं धरिञ्चि संहरिञ्चाडु. अप्पटि नुण्डी हिरण्याक्षुडि सोदरुडैन हिरण्यकशिपुडु श्रीहरिपै कक्ष गट्टाडु. देवगणाल्नि हिंसिञ्चटं मॊदलुपॆट्टाडु. अतडि तल्लि पुत्रशोकन्तो अलमटिञ्चिन्दि. आमॆनु हिरण्यकशिपुडु इला ओदार्चाडु- सप्तम स्कन्धं 76 पोतन भागवतमु हिरण्यकशिपुडि ओदार्पु ‘अम्मा! ई संसारंलो ऎवरू ऎक्कुव कालं उण्डरु. चलिवेन्द्रंलोनिकि वच्चि दाहं तीर्चुकॊनि वॆळ्ळिपोये बाटसारुल्ला वस्तू पोतू उण्टारु. नी कुमारुडु वीरुडु. अन्दुके वीरस्वर्गान्नि अलङ्करिञ्चाडु. ई लोकंलो अन्ता ईश्वराधीनमे! तन मायतो आ भगवन्तुडे इवन्नी कल्पिस्तू उण्टाडु. नीको कथ चॆप्तानु विनु. पूर्वं ‘सुयज्ञुडु’ अने ऒक राजु उण्डेवाडु. अतडु युद्धंलो मरणिञ्चाडु. अतडि शवं चुट्टू चेरि अन्दरू एडुस्तुण्टे यमधर्मराजु ऒक बालुडि रूपंलो वच्चि इला हितवु पलिकाडु- ‘ओ अज्ञानुलारा! कालं चॆल्लिनवाडि कोसं इन्तगा बाधपडुतुन्ना रॆन्दुकु? पुट्टिन प्रति जीवी गिट्टक तप्पदु. परमेश्वरुडि दय उण्टे ऎलाण्टि आपदलैना तॊलगिपोतायि. मानव शरीरं ऒक इल्लु. अन्दुलोनिकि प्रवेशिञ्चिन आत्म, कर्मल्नि अनुभविञ्चि अवि तीरिपोगाने खाळी चेसि वॆळ्ळिपोतुन्दि. शरीरं शाश्वतं कादु. आत्म शाश्वतं. वॆनकटिकि ऒक वेटगाडि चेतिलो चिक्किन्दॊक पक्षि. अदि आडदि. दानि जण्टपक्षि चॆट्टुमीदे उन्दि. अदि ऎन्तगानो विलपिञ्चिन्दि. ब्रह्मदेवुडु तनकु अन्यायं चेशाडनी, पिल्ललकु इङ्का रॆक्कलु रालेदनी तलचुकॊनि तलचुकॊनि कुमिलिपोयिन्दि. इन्तलो ऒक बाणं रिव्वुन दूसुकुवच्चि आ मगपिच्चुक गुण्डॆल्लो दिगबडिन्दि. आड पक्षिकण्टे मुन्दे ई मग पक्षि मरणिञ्चिन्दि. काबट्टि प्राणं पोकड इलागे उण्टुन्दि. आयुष्षु तीरिपोते ऎन्तटिवाळ्ळैना मरणिञ्चाल्सिन्दे!’ आ माटलु विन्न आ राजु बन्धुवुलकु कर्तव्यं बोधपडिन्दि. अम्मा! ऎवरिकि ऎवरु शत्रुवुलु? आलोचिस्ते अन्ता ऒकटे! ई ज्ञानं लेकपोवटंवल्लने ई तर तम भेदालु, अनि हितबोध चेशाडु हिरण्य कशिपुडु. दिति कॊन्त तॆप्परिल्लिन्दि. 77 हिरण्यकशिपुडि वरालु तर्वात हिरण्य कशिपुडु ब्रह्मदेवुण्णि उद्देशिञ्चि घोरमैन तपस्सु चेशाडु. अतडि चुट्टू चीमलु पुट्टलु पॆट्टायि. अयिना आयन चलिञ्चलेदु. चिवरिकि ब्रह्मदेवुडु प्रत्यक्षमै अतनि तीव्र तपस्सुकु सन्तोषिञ्चाडु. नीकिष्टमैन कोरिकलु कोरुकोमन्नाडु. अप्पुडु हिरण्यकशिपुडु शा. गालिं गुम्भिनि नग्नि नम्बुवुल नाकाशस्थलिन् दिक्कुलन् रेलन् घस्रमुलं दमःप्रभल भूरिग्राह रक्षोमृग व्याळादित्यनरादि जन्तुकलहव्याप्तिन् समस्तास्र्त श स्र्ताळिन् मृत्युवुलेनि जीवनमु लोकाधीश! यिप्पिम्पवे! (7-90) लोकेश्वरा! गालि, नेल, अग्नि, नीळ्ळु, आकाशं, दिक्कुलु, रात्रिवेळ, पगलु, चीकटि, वॆलुगु, जलचरालु, राक्षसुलु, मृगालु, सर्पालु, आदित्युलु, नरुलु, अस्र्तालु, शस्र्तालु इला ऎक्कडा, ऎवरिचेता, वेटिवल्ला मरणं राकुण्डा वरान्नि पॊन्दाडु. वरगर्वन्तो विजृम्भिञ्चाडु. त्वरलोने अतण्णि संहरिस्ताननि श्रीहरि देवतलकु अभयमिच्चाडु. प्रह्लदुडि व्यक्तित्वं राजा! हिरण्यकशिपुडिकि नलुगुरु कॊडुकुलु. वारिलो प्रह्लदुडु ऒकडु. अतडु चाला गॊप्पवाडु. सी. तनयन्दु नखिलभूतमुलयन्दु नॊकभङ्गि समहितत्वम्बुन बरगुवाडु पॆद्दल" बॊडगन्न भृत्युनि कैवडि" जेरि नमस्कृतुल् सेयुवा"डु कन्नुदोयिकि नन्यकान्त लड्डम्बैन मातृभावन सेसि मरलुवा"डु तल्लिदण्ड्रुलभङ्गि धर्मवत्सलतनु दीनुल" गाव" जिन्तिञ्चुवा"डु सप्तम स्कन्धं 78 पोतन भागवतमु ते.गी. सखुलयॊड सोदरस्थिति जरुपुवा"डु दैवतमुलञ्चु गुरुवुल" दल"चुवा"डु लीललन्दुनु बॊङ्कुलु लेनिवा"डु ललित मर्यादु"डैन प्रह्लदु"डधिप! (7-115) अन्नि प्राणुलनू तनलागे चूसेवाडू, पॆद्दलनु सेविञ्चेवाडू, कळ्ळ मुन्दु परस्र्तीलु ऎदुरुपडिना तल्लिला भाविञ्चेवाडु, दीनुलपट्ल तल्लिदण्ड्रुल प्रेमनु चूपेवाडू, स्नेहितुल्नि तोबुट्टुवुल्ला आदरिञ्चेवाडु, गुरुवुल्नि दैवङ्गा भाविञ्चेवाडु, सरदाकि कूडा अबद्धं आडनिवाडु - इन्नि मञ्चि गुणालकु नॆलवैन प्रह्लदुडु मञ्चिकी मर्यादकू चिरुनामा! रूपं, विद्य, ऐश्वर्यं इला अन्नी उन्ना अहङ्कारं अतडिकि लेनेलेदु. सम्पदलपै आशलेदु. असलु ए कोरिका लेदु. निरन्तरं हरिने स्मरिस्तू उण्टाडु. देवतलु कूडा अतण्णि कीर्तिस्तारु. शा. पानीयम्बुलु द्रावुचुं गुडुचुचुन् भाषिञ्चुचुन् हसली लानिद्रादुलु सेयुचुं दिरुगुचुन् लक्षिञ्चुचुन् सन्तत श्रीनारायण पादपद्मयुगळी चिन्तामृतास्वाद सं धानुण्डै मऱचॆन् सुरारिसुतु" डेतद्विश्वमुन् भूवरा! (7-123) राजा! आ प्रह्लदुडु नीळ्ळु तागुतुन्ना, अन्नं तिण्टुन्ना, माट्लाडुतुन्ना, नव्वुतुन्ना, आटलाडुतुन्ना इला ए पनिचेस्तुन्ना श्रीहरि पादालने ध्यानिस्तू उण्टाडु. आ ध्यासलो पडि ई लोकान्ने मर्चिपोताडु. अन्तटि उत्तमुण्णि पापात्मुडैन हिरण्यकशिपुडु चम्पडानिकि कूडा वॆनुकाडलेदु. प्रह्लदुडि प्रवर्तन विन्तगा अनिपिञ्चिन्दि तण्ड्रिकि. ‘राक्षसुल बुद्धुलु ऒक्कटि कूडा रालेदु वीडिकि. पोनी, चदुवु चॆप्पिस्ते दारिलोनिकि वस्ताडेमो!’ अनुकॊनि तन कुमारुण्णि पिलिचि, नायना! कं. चदुवनिवा" डज्ञुण्डगु" जदिविन सदसद्विवेक चतुरत गलुगुं जदुव"गवलयुनु जनुलकु" जदिविञ्चॆद नार्युलॊद्द" जदुवुमु तण्ड्री! (7-130) 79 चदुवु लेनिवाडु अज्ञानि. चदुवुकॊण्टे मञ्ची चॆडू तॆलुसुकॊने नैपुण्यं. काबट्टि निन्नु पॆद्दल दग्गर पॆट्टि चदिविस्तानु. चदुवुको!, अण्टू तम कुल गुरुवुलैन शुक्राचार्युडि पुत्रुलु चण्डुडिनी, अमर्कुडिनी पिलिपिञ्चि प्रह्लदुण्णि अप्पगिञ्चाडु. कॊन्नि रोजुलु गडिचायि. कुमारुडि विद्याभ्यासं ऎला सागुतुन्दो तॆलुसुकोवालनि तन दग्गरकु पिलिपिञ्चुकॊन्नाडु. प्रह्लदुडु वच्चाडु. कॊडुकुनु चूडगाने हिरण्यकशिपुडिकि पुत्र वात्सल्यं पॊङ्गुकु वच्चिन्दि. दग्गरकु तीसुकॊनि गुण्डॆलकि हत्तुकॊन्नाडु. मुद्दु चेस्तू लालनगा - ‘नायना! ऎला उन्नावुरा? नी चदुवु ऎन्तवरकू वच्चिन्दि? एमेमि नेर्चुकॊन्नावु? एदी नुव्वु चदिविन वाटिलोञ्चि एवैना नीकु इष्टमैनवि चॆप्पु? अनि अडिगाडु प्रेमगा. प्रह्लदुडु विनयङ्गा - उ. ऎल्ल शरीरधारुलकु निल्लनु ची"कटि नूति लोपलं द्रॆळ्ळक वीरु नेमनु मतिभ्रमणम्बुन खिन्नुलै प्रव र्तिल्लक सर्वमुन्नतनि दिव्यकळामयमञ्चु विष्णुनं दुल्लमु"जेर्चि ता रडवि नुण्डुट मेलु निशाचराग्रणी! (7-142) ‘नान्नगारू! ‘इल्लु’ अनेदि ऒक चीकटि नुय्यि. अन्दुलो पडि अन्दरू नशिस्तू उण्टारु. अलाकाक ई सृष्टि मॊत्तं देवदेवुडि कळामयमेनन्न सत्यान्नि ग्रहिञ्चि अडवुललो तपस्सु चेसुकॊण्टू उण्डटमे मञ्चिदि’ अन्नाडु. हिरण्यकशिपुडिकि नोट् माट रालेदु. वीडेमिटि? ई माटलेमिटि? पिल्ललकेमि तॆलुसु? पॆद्दलु एं चॆबिते अदे चॆप्तारु. ऎवरो कानिमाटलु नूरिपोसिनट्टुन्नारु. अनि मनसुलो अनुकॊनि ‘प्रह्लदा! एमिटी माटलु? ऎवरु नेर्पिञ्चारु? आ श्रीहरि मनकु शत्रुवु. अतण्णि नुव्वु कीर्तिस्तुन्नावु?’ अन्नाडु कॊञ्चॆं कर्कशङ्गा. सप्तम स्कन्धं 80 पोतन भागवतमु प्रह्लदुडि भक्ति अप्पुडु प्रह्लदुडु गुरुवुलनु चूसि ‘ज्ञानुलैनवाळ्ळु श्रीहरिनि तप्प इतरुल्नि ऊहिञ्चुकोलेरु. नेनू अन्ते! इनुमु अयस्कान्तानिकि ऎला हत्तुकुण्टुन्दो ना मनस्सू श्रीहरिपै अलागे लग्नमयिन्दि. सी. मन्दार मकरन्द माधुर्यमुन" देलु मधुपम्बु वोवुने मदनमुलकु? निर्मल मन्दाकिनी वीचिकल" दू"गु रायञ्च सनुनॆ तरङ्गिणुलकु? ललित रसाल पल्लव खादियै चॊक्कु कोयिल सेरुने कुटजमुलकु"? बूर्णेन्दुचन्द्रिकास्फुरित चकोरकं बरुगुने सान्द्र नीहरमुलकु? ते.गी. नम्बुजोदर दिव्यपादारविन्द चिन्तनामृतपान विशेष मत्त चित्त मेरीति नितरम्बु" जेर नेर्चु? विनुतगुणशील! माटलु वेयुनेल? (7-150) आचार्या! मन्दार पुष्पाललोनि तेनॆनु आस्वादिञ्चे तुम्मॆद उम्मॆत्त पुव्वुल दग्गरिकि वॆळ्तुन्दा? आकाश गङ्गलो विहरिञ्चे राजहंस चिन्नचिन्न वागुलवैपु वॆळुतुन्दा? लेत मामिडिचिवुळ्ळनु तिण्टू परवशिञ्चे कोकिल कॊण्ड मल्लॆपुव्वुल वद्दकु वॆळ्तुन्दा? आ श्रीहरि पादालनु चिन्तिञ्चटं अने अमृतान्नि त्रागि मत्तॆक्किन मनस्सु वेरे वाटिवैपु वॆळ्तुन्दा? वॆळ्ळदु काक वॆळ्ळदु’ अन्नाडु. आ माटलु हिरण्यकशिपुडिके कादु गुरुवुलकु कूडा कोपान्नि तॆप्पिञ्चायि. ‘डिम्भका! एमिटा माटलु? शत्रुवुनु कीर्तिस्तावा? में चॆप्पिनदि चॆप्पकुण्डा कुतर्कालु चेस्तावा? दैत्युलु अने चन्दनवनंलो पुट्टिन मुळ्ळचॆट्टुला उन्नावे! नालुगु तगिलिस्तेगानी दारिलोकि रावु’ अण्टू हिरण्यकशिपुडि वैपु तिरिगि ‘राजा! मम्मल्नि मन्निञ्चु. मेमु चॆप्पिनदॊक्कटि. वीडु चॆप्तुन्नदॊकटि. 81 माकु मरो अवकाशं इव्वु. ईसारि इङ्का जाग्रत्तगा पाठालु चॆप्पि प्रह्लदुण्णि तीर्चिदिद्दुतां’ अन्नारु. हिरण्यकशिपुडि अनुमतितो प्रह्लदुण्णि तिरिगि तीसुकुवॆळ्ळारु. श्रद्धगा गुरुवुलु विविध शास्र्तालनु बोधिस्तुन्नारु. रोजुलु गडुस्तुन्नायि. कॊन्नाळ्ळ तर्वात मळ्ळी गुरुवुलु हिरण्यकशिपुडि वद्दकु तीसुकुवच्चारु. मुन्दुगाने हॆच्चरिञ्चारु. मा परुवु तिय्यवद्दनी, में चॆप्पिन वेटिनी तिप्पि चॆप्पवद्दनी बतिमिलाडुकुन्नारु. एं चॆप्पि एं लाभं? हरिभक्तिकि ऒक पुरुष रूपं इस्ते प्रह्लदुडु अवुताडु. अन्तटि भक्तुडु, निरन्तरं श्रीहरिने ध्यानिस्तू तननि तानु मरचि पोये पुण्यात्मुडू, सकल सुगुणाल राशि अयिन प्रह्लदुडु तन सहजमैन धोरणिनि मार्चुकुण्टाडा? लेदु. तण्ड्रिकि नमस्करिञ्चाडु प्रह्लदुडु. हिरण्यकशिपुडु आप्यायङ्गा कॊडुकुनु मुद्दाडाडु. ‘एदी नुव्वु चदिविन शास्र्ताललोञ्चि ऒक्क पद्यं चदिवि अर्थं चॆप्पु नायना’ अनि अडिगाडु. प्रह्लदुडु वॆण्टने विनयङ्गा- कं. चदिविञ्चिरि ननु गुरुवुलु चदिविति धर्मार्थ मुख्य शास्त्रम्बुलु ने" जदिविनवि गलवु पॆक्कुलु चदुवुललो मर्ममॆल्ल" जदिविति" दण्ड्री ! (7-166) तण्ड्री! नन्नु गुरुवुलु चदिविञ्चारु. नेनू ऎन्नो शास्र्तालु चदिवानु. अयिते आ चदुवुललोनि मर्मं तॆलुसुकुन्नानु. चॆबुतानु विनु. नवविध भक्ति मार्गालु म. तनुहृद्भाषल सख्यमुन् श्रवणमुन् दासत्वमुन् वन्दना र्चनमुल् सेवयु नात्मलो नॆऱुकयुन् सङ्कीर्तनल्, चिन्तनं बनु नी तॊम्मिदि भक्तिमार्गमुल सर्वात्मुन् हरिन्नम्मि स ज्जनु"डै युण्डुट भद्रमञ्चु" दल"तुन् सत्यम्बु दैत्योत्तमा! (7-167) सप्तम स्कन्धं 82 पोतन भागवतमु राजा! शरीरमू, हृदयमू, माटलू अने त्रिकरणालतो सख्यत, श्रवणं, दास्यं, वन्दनं, अर्चन, सेव, आत्मनिवेदन, सङ्कीर्तन, चिन्तन अने तॊम्मिदि भक्तिमार्गाल द्वारा आ श्रीहरिनि नम्मि कॊलुस्तू सज्जनुडिला कालं गडपटमे मञ्चिदनि निजङ्गा भाविस्तानु. हरिभक्ति लेनि वारि संसारं गुड्डिवाडिकि चन्द्रोदयं चूपिञ्चिनट्लु, चॆविटिवाडि मुन्दु शङ्खं ऊदिनट्लु व्यर्थमैनदि. सी. कमलाक्षु नर्चिञ्चु करमुलु करमुलु श्रीनाथु वर्णिञ्चु जिह्व जिह्व सुररक्षकुनि" जूचु चूड्कुलु चूड्कुलु शेषशायिकि म्रॊक्कु शिरमु शिरमु विष्णु नाकर्णिञ्चु वीनुलु वीनुलु मधुवैरि" दविलिन मनमु मनमु भगवन्तु वलगॊनु पदमुलु पदमुलु पुरुषोत्तमुनि मी"दि बुद्धि बुद्धि ते.गी. देवदेवुनि जिन्तिञ्चु दिनमु दिनमु चक्रहस्तुनि" ब्रकटिञ्चु चदुवु चदुवु कुम्भिनीधवु" जॆप्पॆडि गुरु"डु गुरु"डु तण्ड्रि" हरि" जेरु मनियॊडि तण्ड्रि तण्ड्रि! (7-169) आ विष्णुमूर्तिनि अर्चिञ्चे चेतुले चेतुलु. वर्णिञ्चे नालुके नालुक. चूसे चूपुले चूपुलु. नमस्करिञ्चे शिरस्से शिरस्सु. विने चॆवुले चॆवुलु. ध्यानिञ्चे मनस्से मनस्सु. प्रदक्षिणं चेसे पादाले पादालु. स्मरिञ्चे बुद्धे बुद्धि. चिन्तिञ्चे रोजे रोजु. चदिवे चदुवे चदुवु. बोधिञ्चे गुरुवे गुरुडु. तण्ड्री! आ श्रीहरिनि चेरमनि चॆप्पे तण्ड्रे तण्ड्रि! आ परमात्मुडि सेवकु उपयोगपडनि शरीरमू ऒक शरीरमेना? गालितो निम्पिन तोलु तित्तिगानि. अतण्णि पॊगडनि नोरू ऒक नोरेना? ढमढमलाडे ढक्क गानि. हरिपूज चेयनि चेयी ऒक चेयेना? चॆट्टु कॊम्मतो चेसिन तॆड्डु गानि. अतण्णि चूडनि कन्नुलू कन्नुलेना? शरीरं अने गोडकु पॆट्टिन रन्ध्रालुगानि. विष्णु भक्ति लेनि पण्डितुडू ऒक पण्डितुडेना? रॆण्डु काळ्ळ पशुवुगाक! 83 अयिना हरिदास्यं अने पॆनुगालि लेकुण्डा ई संसारं अने मेघालु विडिपोताया? विष्णुसेव अने वर्षं लेकुण्डा तापत्रयालु अने अग्नुलु आरिपोताया? हरिपै कोरिक अने बडबाग्नि लेकुण्डा पापाल समुद्रालु इङ्कुताया? श्रीहरिस्तुति अने सूर्यकान्ति लेकुण्डा आपदलु अने चीकट्लु नशिस्ताया? श्रीहरि चिन्तन अने अञ्जनं लेकुण्डा मुक्ति अने निधि कनिपिस्तुन्दा? प्रह्लदुडु धाटिगा चॆप्तुन्नाडु. आ माटलु हिरण्यकशिपुडि हृदयान्नि कलिचिवेशायि. कोपं तारास्थायिकि चेरुकुन्दि. चॆक्किळ्ळु अदिरिपडुतुन्नायि. पळ्ळु पटपटा कॊरुकुतू आचार्युलनु चूसि - ‘नम्मि पिल्लवाण्णि अप्पगिस्ते इदा मीरु चेसे निर्वाकं? ई पापं ऊरिके पोदु. चॆड्ड पनुलु चेसेवाळ्ळनु रोगालु पीक्कुतिन्नट्लु मिम्मल्नी ई पापं पीडिस्तुन्दि’ अन्नाडु तीव्रमैन कण्ठन्तो. ‘दानवनाथा! इन्दुलो मा तप्पेमी लेदु. मेमु चॆप्पिनवि काविवि. अयिना शत्रुवुल गुरिञ्चि चॆप्पडानिकि मेमेमैना मी शत्रुवुलमा?’ अन्नारु गुरुवुलु दीनङ्गा. ईसारि हिरण्यकशिपुडु प्रह्लदुण्णे निलदीशाडु. प्रह्लदा! चॆप्पु. ऎवरु चॆप्पारु नीकिवन्नी? ई बुद्धि नीकु ऎला पुट्टिन्दि’ अनि गद्दिञ्चाडु. दानिकि प्रह्लदुडु - प्रह्लदुडि विवेकं ‘तण्ड्री! संसारंलो पडि अलमटिञ्चेवाळ्ळकु हरिभक्ति ऒकपट्टान कलुगुतुन्दा? कर्मबद्धुलैनवाळ्ळु श्रीहरिनि दर्शिञ्चगलरा? विष्णुभक्तुल पाद धूळिनि शिरस्सुन धरिञ्चे पुण्यात्मुलु मात्रमे श्रीहरिनि दर्शिञ्चगलरु. सरे! इन्नि माटलु देनिकि? अन्नि शास्र्तालू शोधिञ्चि शोधिञ्चि नेनु ऒक विषयं तॆलुसुकुन्नानु. ‘ई संसारं ऒक समुद्रं. भार्यापुत्रुलु तिमिङ्गलालु. मदमू, क्रोधमू अनेवि कॆरटालु. ई समुद्रान्नि दाटालि अण्टे ऒक नाव कावालि. आ नाव श्रीहरिपै लग्नमैन बुद्धि. दीनितो तप्प सॊन्त तॆलिवितो ई समुद्रान्नि दाटटं असम्भवं’ अन्नाडु. सप्तम स्कन्धं 84 पोतन भागवतमु हिरण्यकशिपुडु उलिक्किपड्डाडु. अप्पटिदाका ए मूलो उन्न पुत्रवात्सल्यं पूर्तिगा आविरैपोयिन्दि. ऒक्क उदुटुन तन तॊडमीदनुण्डि प्रह्लदुण्णि किन्दिकि त्रोशाडु. उरुमुरिमि चूशाडु. मन्त्रुल्नि इला आदेशिञ्चाडु - चित्रहिंसलु ‘वीडु ना कडुपुन पुट्टिन शत्रुवु. वेलॆडन्त लेडु. नाके नीतुलु चॆप्तुन्नाडु. कुलद्रोहि. वीण्णि संहरिञ्चि वंशान्नि कापाडतानु. शरीरंलो एदैना ऒक अवयवं पाडैपोते वैद्युडु दान्नि तॊलगिञ्चि मिगिलिन शरीरान्नि रक्षिस्ताडु. नेनू अदे चेस्तानु. वॆळ्लण्डि. वीण्णि तीसुकुवॆळ्ळि वधिञ्चण्डि. ऎन्तमात्रं कनिकरं चूपकण्डि इदि ना आज्ञ’ अन्नाडु भीकरङ्गा अरुस्तू. राक्षसुलु सत्वरं बालुण्णि तीसुकुवॆळ्ळिपोयारु. कनी विनी ऎरुगनि रीतिलो हिंसिञ्चटं मॊदलुपॆट्टारु. राजा! विचित्रमेमिटण्टे वाळ्ळु ऎन्त हिंसिस्तुन्ना प्रह्लदुडु- उ. तन्नु निशाचरुल् पॊडुव दैत्यकुमारु"डु माटिमाटि ‘को पन्नगशायि! यो दनुजभञ्जन! यो जगदीश! यो मह पन्नशरण्य! यो निखिलपावन!’ यञ्चु नुतिञ्चुगानि ता" गन्नुल नीरु दे"डु भयकम्पसमेतु"डु गा"डु भूवरा! (7-193) राक्षसुलु ऒक पक्क तननु आयुधालतो पॊडुस्तू उन्ना माटिमाटिकी ई प्रह्लदुडु ओ पन्नगशायी! दनुज भञ्जना! अण्टू श्रीमन्नारायणुण्णि नुतिस्ताडे गानी कण्टतडि पॆट्टडु. पोनी भयन्तो वणिकिपोवटमू लेदु. तण्ड्रिनि कनीसं पल्लॆत्तु माटैना अनडु. ऎवरिकी चॆप्पडु. ऎवरिनी शरणु कोरडु. दीनिकन्तटिकी कारणं अतडि मनस्सु पूर्तिगा परमात्मपै लग्नं कावटमे. अन्दुके हिरण्यकशिपुडु चेसिन प्रयत्नालन्नी विफलमय्यायि. तन कॊडुकुनु इङ्का क्रूरङ्गा घोरङ्गा हिंसिञ्चमन्नाडु. हिरण्यकशिपुडु एनुगुलतो तॊक्किञ्चमन्नाडु. विषसर्पालतो करिपिञ्चमन्नाडु. अग्निलोनिकि तोसॆय्यमन्नाडु. समुद्रंलोकि विसिरॆय्यमन्नाडु. कॊण्डलमीद नुण्डि तॊय्यमन्नाडु. कानी ए प्रयत्नमू फलिञ्चलेदु. 85 हिरण्यकशिपुडिकि अन्ता अयोमयङ्गा उन्दि. एमी अर्थङ्कावटं लेदु. एं चेयालो पालुपोवटंलेदु. इन्तलो आचार्युलु मळ्ळी वच्चि मरोसारि चदुवु चॆप्पि प्रह्लदुण्णि मार्चे प्रयत्नं चेस्तामनि तीसुकुवॆळ्ळारु. ईसारि आचार्युलु प्रह्लदुडिकि विवाहं अयिनवारिकि चॆप्पे शास्र्तालु चॆप्तुन्नारु. अवेमी तनकु मेलु चेयवनि अतडिकि तॆलुसु. इला लाभंलेदनि गुरुवुलु लेनप्पुडु राक्षसबालु रन्दरिनी पोगुचेसि वाळ्ळकी हरिभक्तिनि रुचि चूपिञ्चाडु प्रह्लदुडु. इदि तॆलिसिन गुरुवुलु लबोदिबोमण्टू वच्चि हिरण्यकशिपुडि दग्गर मॊरपॆट्टुकुन्नारु. हिरण्यकशिपुडि सहनं पूर्तिगा नशिञ्चिन्दि. ‘दुर्मार्गुडा! नन्नु चूसि मुल्लोकालू गडगडलाडिपोतायि. नुव्वॆन्त? नी श्रीहरि ऎन्त? नी पिच्चि मुदिरि पाकान पडिन्दि. इलागे वदिलिवेस्ते राक्षस वंशान्ने नाशनं चेसेट्टुन्नावु. निन्नु चम्पि, ना वंशान्नि निष्कळङ्कं चेस्तानु. इप्पुडु चॆप्पु? निन्नु चम्पिते ऎवड्रा नीकु दिक्कु? आ माटकॊस्ते नीकु दिक्के लेदु. अन्नि दिक्कुलू नावे? ऎवरि बलं चूसुकॊनि विर्रवीगुतुन्नावु? चॆप्पु’ अरिचाडु रोषङ्गा हिरण्यकशिपुडु. दानिकि प्रह्लदुडु- कं. बलयुतुलकु दुर्बलुलकु बलमॆव्व"डु नीकु नाकु ब्रह्मदुलकुन् बलमॆव्व"डु प्राणुलकुनु बलमॆव्वं डट्टि विभु"डु बल मसुरेन्द्रा! (7-264) ‘राजा! बलवन्तुलकु, बलहीनुलकु, नीकु, नाकु, ब्रह्मदुलकु इला अन्नि प्राणुलकू ऎवडु बलमो नाकू अतडे बलं. आ बलं श्रीहरि. आ दिक्कु श्रीमन्नारायणुडु. अतडे अन्तटा उन्नाडु. शा. लोकमु लन्नियुन् गडियलोन जयिञ्चिनवा"ड विन्द्रिया नीकमु" जित्तमुन् गॆलुवनेरवु! निन्नु निबद्धु" जेयु नी भीकर शत्रु लार्वुर" ब्रभिन्नुल" जेसिन" ब्राणिकोटिलो नीकु विरोधि ले"डॊक"डु नेर्पुन" जूडुमु दानवेश्वरा! (7-267) सप्तम स्कन्धं 86 पोतन भागवतमु अयिना तण्ड्री! नुव्वु लोकालन्नी चिटिकॆलो जयिञ्चावु. कानी नीलोने उन्न आ आरुगुरु- इन्द्रियसमूहमने शत्रुवुल्नि जयिञ्चलेकपोतुन्नावु. निन्नु बन्धिस्तू उन्न ई भयङ्करुलैन आरुगुरु शत्रुवुल्नी जयिञ्चावण्टे ई लोकंलो नीकु शत्रुवु अण्टू ऎवडू उण्डडु. दीन्नि नेर्पुतो गुर्तिञ्चु’ अन्नाडु. आ माटलु विन्न हिरण्यकशिपुडि कोपं- अग्निकि आज्यं पोसिनट्लु रॆट्टिम्पयिन्दि. श्रीहरि - अन्तर्यामित्वं ‘नातोने वादिस्तावा? नातो समानमैनवाडु ई लोकंलोने लेडु. ना सोदरुण्णि चम्पिन श्रीहरि कोसं नेनु अन्ता वॆतिकानु. वाडु ऎक्कडा लेडु. नीकु तॆलिस्ते चॆप्पु. अतडु ऎक्कड उन्नाडु? ऎला उण्टाडु? एं चेस्तुण्टाडु? इप्पुडे नी सङ्गती आ विष्णुमूर्ति सङ्गती तेल्चेस्तानु चॆप्परा’ अन्नाडु. दानिकि प्रह्लदुडु- म. कल"डम्भोधि" गलण्डु गालि" गल" डाकाशम्बुनं गुम्भिनिं गल" डग्निन् दिशलं बगळ्ळ निशलन् खद्योत चन्द्रात्मलं गल" डोङ्कारमुनं द्रिमूर्तुल" द्रिलिङ्गव्यक्तुलं दन्तटं गल" डीशुण्डु गलण्डु तण्ड्रि! वॆदकङ्गा नेल नी या यॊडन् (7-274) तण्ड्री! समुद्रंलो, गालिलो, आकाशंलो, भूमिपै, अग्निलो, दिक्कुल्लो, पगळ्ळलो, रात्रुललो, सूर्यचन्द्रुल्लो, ॐकारंलो, त्रिमूर्तुललो, त्रिलिङ्ग व्यक्तुललो (स्र्तीललो, पुरुषुल्लो, ई उभयुलू कानि वारिलोनू) इला अन्तटा आ ईश्वरुडु तानै उण्टे इक्कडा अक्कडा वॆदकटं ऎन्दुकु? कं. इन्दु" गल" डन्दु ले"डनि सन्देहमु वलदु चक्रि सर्वोपगतुं डॆन्दॆन्दु वॆदकि चूचिन नन्दन्दे कल"डु दानवाग्रणि! विण्टे! (7-275) 87 ‘राजा! इन्दुलो उन्नाडनी, अन्दुलो लेडनी सन्देहं वद्दु. श्रीहरि अन्तटा उन्नाडु. ऎक्कड वॆदिकिते अक्कडे उण्टाडु. विन्नावा’ अन्नाडु प्रह्लदुडु गट्टिगा. लेडु! लेडु! लेडु! गट्टिगा अरिचाडु हिरण्यकशिपुडु. ‘नरसिंहुडि रूपंलो अन्नि प्राणुललोनु उन्नाडु’ अनि कच्चितङ्गा चॆप्पाडु प्रह्लदुडु. नारसिंहवतारं ‘ओरी! डिम्भका! अयिते नी चक्रिनी गिक्रिनी ई स्तम्भंलो चूपिञ्चु’ अण्टू तन अरचेत्तो आ स्तम्भान्नि कॊट्टाडु हुङ्करिस्तू. अन्ते! वॆण्टने बीटलुवारि दानि नुण्डि ऒक दिव्य तेजस्सु बयटकु दूकिन्दि. अदे नारसिंहवतारं. सगं मनिषि, सगं सिंहं. आ रूपान्नि चूसिन हिरण्यकशिपुडिकि नोट् माट रालेदु. भयपडिपोयाडु. गत्यन्तरं लेक ऎलागो धैर्यं कूड गट्टुकॊनि नरसिंहस्वामितो तलपड्डाडु. नरसिंहस्वामि सिंहमैते हिरण्यकशिपुडु एनुगु. नरसिंहुडु गरुत्मन्तुडैते हिरण्यकशिपुडु ऒक बुरद पामु. अमान्तङ्गा आ राक्षसुण्णि ऒडिसिपट्टुकॊनि तन तॊडपै पॆट्टुकॊनि वाडि रॊम्मुनु चील्चि प्रेवुलु मॆळ्ळो वेसुकुन्नाडु नरसिंहस्वामि. हिरण्यकशिपुडु मरणिञ्चाडु. चम्पिन्दि पूर्तिगा पुरुषुडू, मृगमू कानि रूपं. समयं रात्री कादु पगलू कादु. सन्ध्यवेळ. प्रदेशं लोपला कादु बयटा कादु. गुम्मं पैन. आकाशंलो कादू भूमी मीदा कादु. तॊडलमीद. आयुधालु प्राणं उन्नवी कावु लेनिवी कावु. गोळ्ळु. तक्किन राक्षसुलन्दरिनी सुदर्शन चक्रं मट्टुपॆट्टिन्दि. सप्तम स्कन्धं 88 पोतन भागवतमु उग्र नरसिंहुडु नरसिंहस्वामि उग्रस्वरूपुडै उण्टे ब्रह्मदि देवतलु वच्चि स्तुतिञ्चारु. अयिना नरसिंहुडु शान्तिञ्चलेदु. अक्कडे उन्न सिंहसनम्पै कूर्चॊनि उन्नाडु. ऎवरू दग्गरकु वॆळ्ळे साहसं चेयलेकपोयारु. ब्रह्मदेवुडि प्रार्थनतो लक्ष्मीदेवि स्वामि दग्गरकु वॆळ्ळालनि वच्चिन्दि. कानी कनी विनी ऎरुगनि आ उग्रस्वरूपान्नि चूसि भयपडिन्दि. अप्पुडु ब्रह्मदेवुडु ‘प्रह्लदा! श्रीहरि नी कोसमे अवतरिञ्चाडु. नी विन्नपान्ने अतडु मन्निस्ताडु. वॆळ्ळु, स्वामिनि स्तुतिञ्चि शान्तिम्पचेयि’ अन्नाडु. प्रह्लदुडु निर्भयङ्गा वॆळ्ळाडु. वात्सल्य स्वरूपुडैन नारसिंहुडु प्रह्लदुण्णि चूसि दग्गरकु रम्मनि आप्यायङ्गा तन हस्तन्तो तल निमिराडु. श्रीहरि करस्पर्शतो प्रह्लदुडु पुलकिञ्चिपोयि तन्मयुडै इला स्तुतिञ्चाडु - ‘देवा! ब्रह्मदि देवतलु सैतं निन्नु स्तुतिञ्चलेरु. नेना बालुण्णि. पैगा राक्षस कुमारुण्णि. नेनु निन्नु वर्णिञ्चगलना? मा वद्द ऎन्नि उपायालु, नैपुण्यालू उन्ना निन्नु सन्तोषपॆट्टटं साध्यमेना? निन्नु मॆप्पिञ्चे साधनं भक्ति ऒक्कटे. आ भक्तिके नुव्वु वशमौतावु. स्वामी! नी भीकर रूपान्नि चूसि नेनु ऎन्तमात्रं भयपडटंलेदु. कानी संसारं अने दावाग्निनि चूसि वणकिपोतुन्नानु. नन्नु करुणिञ्चि नी पादसेवनु नाकु अनुग्रहिञ्चु. ऒक बालुण्णि तलिदण्ड्रुलु ऎला रक्षिस्तारो, रोगिनि औषधं ऎला कोलुकॊनेला चेस्तुन्दो, समुद्रंलो मुनिगिपोतुन्न वारिनि नाव ऎला ऒड्डुकु चेरुस्तुन्दो नुम्वा भक्तुल्नि अलागे रक्षिस्तावु. लोकंलो धर्मान्नि निलबॆट्टटं कोसमे नुव्वु अनेक अवतारालनु धरिस्तावु. निन्नु सेविञ्चनिवाडिकि मुक्ति ऎला लभिस्तुन्दि?’ अण्टू पलुविधालुगा कीर्तिञ्चाडु प्रह्लदुडु. उग्रनारसिंहुडि मुखंलो चिरुनव्वु तळुक्कुन मॆरिसिन्दि. 89 ‘प्रह्लदा! नी स्तुतिकि मॆच्चानु. नीलाण्टि ज्ञानुलकु ए कोरिका उण्डदु. नुव्वु दानव चक्रवर्तियै ऒक मन्वन्तरकालम्पाटु सकलभोगालु अनुभविञ्चि नन्नु चेरुकुण्टावु. नुव्वु ना भक्तुडिवि कावटंवल्लने नी तण्ड्रि कूडा तन मुन्दु एडु तरालतो सह उत्तमगतुल्नि पॊन्दुताडु’ अनि नारसिंहस्वामि अन्तर्धानमय्याडु. ‘राजा! परम पवित्रमैन प्रह्लद चरित्रनु विन्नवारिकी चदिविनवारिकी पुण्यलोकालु लभिस्तायि. नुव्वु ऎन्तो अदृष्टवन्तुडिवय्या! लोकालन्निण्टिकी अधिपति अयिन श्रीमन्नारायणुडे श्रीकृष्णुडिगा अवतरिञ्चि मीकु चॆलिकाडै सञ्चरिञ्चाडु. आ परमात्म तन भक्तुलपै ईगनु कूडा वालनिव्वडु. नीकु त्रिपुरासुर संहरं गुरिञ्चि चॆबुतानु विनु. त्रिपुरासुर संहरं पूर्वं राक्षसुलु देवतल्नि जयिञ्चटं कोसं मयुण्णि आश्रयिञ्चारु. मयुडु वाळ्ळकु इनुमु, वॆण्डि, बङ्गारालतो चेसिन मूडु पुरालनु निर्मिञ्चि इच्चाडु. ई पुरालु दुर्भेद्यमैनवि. अवि ऒकचोट नुण्डि मरोचोटिकि प्रयाणिञ्चगलवु. आ पुरालपै सञ्चरिस्तू दानवुलु देवतल्नि हिंसिञ्चटं मॊदलुपॆट्टारु. देवतलन्ता वॆळ्ळि परम शिवुण्णि आश्रयिञ्चारु. शिवुडु धनुवु चेतपट्टि ऒक दिव्यमैन बाणान्नि सन्धिञ्चाडु. आ बाणाग्नि ज्वालललो पडि राक्षसुलु मरणिस्तुन्नारु. अयिते मयुडु तन योगबलंलो ऒक सिद्धरसकूपान्नि तयारु चेशाडु. आ कूपंलो वेस्ते चच्चिन राक्षसुलु सैतं बतिकि बयटकु वच्चि रॆट्टिम्पु बलन्तो देवतलपै विरुचुकुपडुतुन्नारु. तन बाणं व्यर्थं कावटन्तो परम शिवुडु मनस्तापं चॆन्दाडु. अदि तन भक्तुडैन शिवुडिकि जरिगिन अवमानङ्गा भाविञ्चाडु श्रीमहविष्णुवु. दान्नि पोगॊट्टालनि तने ऒक अन्दमैन आवु रूपान्नि धरिञ्चाडु. ब्रह्मदेवुडु दूडगा मारि वच्चाडु. ई आमा दूडा वॆळ्ळि सिद्धकूपंलो उन्न रसान्नि त्रागिवेशायि. दान्तो राक्षसुलु लबोदिबोमनि मळ्ळी मयुडि वद्दकु वच्चारु. मयुडु इदि दैवसङ्कल्पमनि भाविञ्चाडु. तरुवात विष्णुमूर्ति तन शक्तुलन्निण्टिनी उपयोगिञ्चि शिवुडिकि युद्धपरिकरालन्नी तयारु चेशाडु. अप्पुडु सप्तम स्कन्धं 90 पोतन भागवतमु शिवुडु युद्धानिकि वॆळ्ळि आ त्रिपुरासुरुल्नि संहरिञ्चाडु. इला आ श्रीहरि तन भक्तुल्नि कण्टिकि रॆप्पगा कापाडुतू उण्टाडु’ अन्नाडु. धर्मराजु ऎन्तगानो आनन्दिञ्चाडु. इङ्का नारद महर्षि द्वारा मरिन्नि मञ्चि विषयालनु विनालनि अतनिकि उन्दि. अन्दुके ‘महर्षी! ई लोकंलो अन्दरू आचरिञ्चवलसिन धर्माल गुरिञ्चि विवरिञ्चण्डि’ अनि वेडुकॊन्नाडु. नारद महर्षि प्रारम्भिञ्चाडु. श्रेष्ठमैन धर्मालु ‘धर्मराजा! सत्यं, समदृष्टि, विचक्षण, शौचं, क्षम, दय, दानं, इन्द्रिय निग्रहं, सेव, ब्रह्मचर्यं, अहिंस, श्रीहरिसेव मॊदलैन सद्गुणालनु अन्नि वर्गाल वारू तप्पनि सरिगा पाटिञ्चालि. ब्राह्मणुलु कुलाचाराल्नि पाटिस्तू जपहोम दानादुलतो पवित्रङ्गा जीविञ्चालि. दानं इव्वटं, पुच्चुकोवटं रॆण्डू ब्राह्मणुलकु विधुले. ब्राह्मण विधुल्लो दानं तीसुकोवटं तप्प तक्किनवाटिनि अन्निण्टिनी क्षत्रियुलु पाटिञ्चालि. धर्मबद्धङ्गा राज्यपालन चेयालि. व्यवसायं, वाणिज्यं, पशुपालन, ब्राह्मण कुलान्नि अनुसरिञ्चटं वैश्युल धर्यालु. चौर्यं लेकुण्डा उण्डटं, शुचिगा उण्डटं, स्तुतिञ्चटं, यजमानुल्नि निष्कपटङ्गा सेविञ्चटं, मन्त्रं चॆप्पकुण्डा पञ्चयज्ञालनु निर्वहिञ्चटं, पण्डितुल्नि गौरविञ्चटं, गोरक्षण, न्यायङ्गा जीविञ्चटं चतुर्थ वर्णानिकि चॆन्दिनवाळ्ळु पाटिञ्चवलसिन धर्मालु. गृहिणि चक्कगा इण्टिनि चक्कदिद्दालि. ऎप्पुडू कळकळलाडुतू प्रियङ्गा माट्लाडुतू, सत्यान्नि पाटिस्तू भर्त मनसुनु आकर्षिञ्चालि. भर्तनु दैवङ्गा भाविस्तू सेविञ्चे भार्यामणिकि वेरे व्रतालू, तपस्सुलू अवसरंलेदु. इवन्नी वर्णालवारीगा आचरिञ्चदगिन विधुलु. अयिना जातिमात्रञ्चेत तॆगनु निर्णयिञ्चकूडदु. गुणञ्चेतने निर्णयिञ्चालि. 91 धर्मराजा! इप्पुडु आश्रम धर्मालु चॆप्तानु विनु. ब्रह्मचारि मुञ्ज मॊलत्राडु, गोचि, यज्ञोपवीतं, जिङ्कचर्मं, पलाश दण्डं, कमण्डलं धरिञ्चालि. केशसंस्कारं चेसुकोकूडदु. गायत्रीजपं चेस्तू, गुरुवुलनु सेविस्तू, कॊन्नि गृहल नुञ्चि मात्रमे नियमङ्गा भिक्ष स्वीकरिस्तू, स्र्तीलकु दूरङ्गा उण्टू पवित्रङ्गा जीविञ्चालि. गृहस्थु- शुचिनी शुभ्रतनू पाटिस्तू, पॆद्दलनु, गुरुवुलनु, अतिथुलनु सेविस्तू, वेदाल्नि अध्ययनं चेस्तू पवित्रङ्गा जीविञ्चालि. वानप्रस्थाश्रमं स्वीकरिञ्चिनवारु महर्षुल्लागा अडवुल्लो जीविञ्चालि. मुनि नियमालनु पाटिञ्चि श्रीहरिनि ध्यानिञ्चिनवाडे मोक्षान्नि पॊन्दुताडु. ई आश्रमंलो धर्माल्नि पाटिस्तू कोर्कॆल्नि त्यजिञ्चि सन्यासाश्रमं स्वीकरिञ्चालि. सन्यास आश्रमंलो उन्नवाळ्ळु नित्यं समाधि निष्ठलो उण्टू सन्यासि धर्मालनु विधिगा पाटिस्तू आत्मज्ञानान्नि पॊन्दालि. अप्पुडे मोक्षं लभिस्तुन्दि’ अण्टू नारदुडु धर्मराजुकु अजगरोपाख्यानं चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. अजगरोपाख्यानं महभक्तुडैन प्रह्लदुडु चक्रवर्तियै राज्यपालन चेस्तू ऒकसारि लोक सञ्चारानिकि बयलुदेराडु. अला वॆळ्ळिवॆळ्ळि सह्यपर्वत सानुवुल्लो अजगर महर्षिनि दर्शिञ्चाडु. आ महर्षि ऒक कॊण्डचिलुवला नेलपै दॊर्लुतू उन्नाडु. ऒळ्ळन्ता दुम्मुकॊट्टुकुपोयि उन्ना मुखंलो दिव्यतेजस्सु प्रस्फुटङ्गा कनिपिस्तोन्दि. वॆण्टने आ महर्षि दग्गरकु वॆळ्ळि चेतुलु जोडिञ्चि- ‘स्वामी! तमरु ऎवरु? ऎन्दुकिला उन्नारु? अनि अडिगाडु. दानिका महर्षि इला चॆप्पटं मॊदलुपॆट्टाडु- ‘प्रह्लदा! नेनू इन्तकु मुन्दु अन्दरिलागे संसारंलो तलमुनकलै उन्नवाडिने. अयिते ऎन्त अनुभविञ्चिना तृप्ति कलगलेदु. आ असन्तृप्तितो ऎन्नो जन्मलु ऎत्तानु. चिवरिकि ई मानव जन्मनु पॊन्दानु. कर्मबन्धाल नुण्डि विमुक्ति पॊन्दालनि इला पडि उन्नानु. सप्तम स्कन्धं 92 पोतन भागवतमु तेनॆटीगलु कूडबॆट्टिन तेनॆ परुलपालु अवुतुन्दि. लोभुल धनमू अन्ते. दॊरिकिनदान्ने तिण्टू पॆद्द पामु कूडा कदलकुण्डा पडि उण्डि चिरकालं जीविस्तुन्दि. तेनॆटीग, कॊण्डचिलुव नाकु गुरुवुलु. नाकु एदि दॊरिकिते अदे तिण्टानु. एदि लभिस्ते अदे कट्टुकुण्टानु. लेकपोते दिगम्बरङ्गाने उण्डिपोतानु. ऎक्कडैना पडुकुण्टानु. ऒकरिनि एदी अडगनु. दॊरकलेदनि बाधपडनु. प्रेम-द्वेषं, सुखं-दुःखं इलाण्टिवेवी नाकु लेवु. ऎवरिनी निन्दिञ्चनु. ऎवरिनी स्तुतिञ्चनु. ऎप्पुडू निश्चिन्तगा, तृप्तिगा उण्डडानिकि प्रयत्निस्तानु. कॊन्नाळ्ळु दिगम्बर पिशाचंला उन्नानु. इप्पुडु चाला कालं नुण्डी इला कॊण्डचिलुवला उण्टुन्नानु. नुव्वु भागवतोत्तमुडिवि काबट्टि नीकु इदन्ता चॆप्पानु’ अन्नाडु महर्षि. अन्ता विन्न प्रह्लदुडु आ महर्षिकि भक्तितो नमस्करिञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. धर्मराजा! गृहस्थुगा उण्टू कूडा मोक्षान्नि पॊन्दवच्चु. प्रति पनिनी भगवन्तुडिके अर्पिस्तू, नित्यं भगवन्तुण्णे स्मरिस्तू, व्यामोहलु विडिचिपॆट्टि इतरुलकु सहयं चेस्तू, अतिथुल्नि आदरिस्तू धर्ममार्गंलो जीविञ्चि परम पदान्नि चेरुकोवच्चु. कं. हरियन्दु जगमु लुण्डुनु हरिरूपमु साधुपात्रमं दुण्डु शिवं करमगु पात्रमु गलिगिन नरय"ग नदिपुण्य देश मनघचरित्रा! (7-450) श्रीहरि उदरंलोने समस्त लोकालू उण्टायि. अलाण्टि श्रीहरि सज्जनुललो उण्टाडु. आ सज्जनुल्नि सेविस्ते पुण्यक्षेत्रालनु दर्शिञ्चिन फलं लभिस्तुन्दि. ब्रह्मण्डं अने वृक्षानिकि मूलं आ श्रीमहविष्णुवे. काबट्टि श्रीमन्नारायणुडिकि सन्तर्पण चेस्ते समस्त प्राणुलकू चेसिनट्ले. आ परन्धामुडि महिमनु तॆलियजेसे गुरुवु सामान्युडु काडु. शरीरमे रथं. बुद्धि दानिकि सारथि. इन्द्रियालु गुर्रालु. मनस्सु पग्गं. प्राणालु पदी इरुसुलु. धर्माधर्मालु रथचक्रालु. चित्तं बन्धं. शब्द, 93 b रस, रूप, स्पर्श, गन्धालने तन्मात्रलु ई रथं सञ्चरिञ्चे प्रदेशालु. अहङ्कारि अयिन जीवुडे रथिकुडु. ॐकारं धनुवु. शुद्धजीवमे बाणं. ब्रह्ममे परम लक्ष्यं. अरिषड्वर्गमे बद्धशत्रुवु. काबट्टि ई शरीरं अने रथान्नि मानवुडु अदुपुलो उञ्चुकोवालि. भक्तुल पादसेव अने खड्गन्तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्यालु अने आरु शत्रुवुलनु नाशनं चेयालि. वेदमार्गं वेदालु मनकु रॆण्डु मार्गालनु चूपिस्तुन्नायि. 1. प्रवृत्ति मार्गं
  226. निवृत्ति मार्गं. मॊदटिदि पुनर्जन्मनु कलिगिस्ते रॆण्डोदि मोक्षान्नि अन्दिस्तुन्दि. वीटिनि अर्थं चेसुकुन्नवाडु मोहलकु लॊङ्गिपोडु. अन्तॆन्दुकु? नेनू पूर्वजन्मलो स्र्तीलोलुडिने. ऒकसारि प्रजापतुलु चेसिन सत्रयागंलो विष्णुकथल्नि गानं चेस्तू मध्यलो स्र्तीव्यामोहंलो मैमरचि पोयानु. अन्दुकु प्रजापतुलु आग्रहिञ्चि, नन्नु शूद्रस्र्तीकि जन्मिञ्चमनि शपिञ्चारु. आ शापंवल्ल ऒक शूद्रस्र्तीकि पुत्रुडिगा जन्मिञ्चानु. अयिते अदृष्टङ्कॊद्दी ब्रह्मवेत्तलकु सेवचेशानु. दानिवल्ल ब्रह्ममानस पुत्रुडिगा जन्मिञ्चानु. काबट्टि संसारंलो उण्टू कूडा निश्चलमैन भक्तितो श्रीहरिनिगानी, श्रीहरिभक्तुल्निगानी सेविस्ते विमुक्ति लभिस्तुन्दि. मीरॆन्तो अदृष्टवन्तुलु. समस्त लोकालकू अधिनायकुडैन आ श्रीहरि श्रीकृष्णुडुगा अवतरिञ्चि मीलो ऒकडिगा मीतो कलसिमॆलसि तिरिगाडु. इन्तटि भाग्यानिकि नोचुकुन्न नी महिमनु ऎन्तनि चॆप्पनु? अन्नाडु नारदुडु. अन्ता विन्न धर्मराजु तन यागमण्डपंलो चिद्विलासङ्गा प्रकाशिस्तुन्न श्रीकृष्णुण्णि भक्तितो सेविञ्चाडु. ‘महर्षुलारा! ई विधङ्गा नारदुडु धर्मराजुकु विवरिञ्चिन विषया लन्निण्टिनी शुक महर्षि विपुलङ्गा परीक्षित्तुकु विनिपिञ्चाडु’ अन्नाडु सूत महर्षि. सप्तम स्कन्धं 94 पोतन भागवतमु सूत महर्षि इला अन्नाडु- ‘महर्षुलारा! परीक्षित्तु कोरिकपै शुकमहर्षि यज्ञुडि कथ चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. राजा! स्वायम्भुव मनुवु तन भार्य शतरूपतो कलसि अडवुलकु वॆळ्ळिपोयाडु. अक्कड तीव्रमैन तपस्सु सागिञ्चाडु. अतडिनि श्रीमन्नारायणुडे राक्षसुल बारिनुण्डि रक्षिञ्चाडु. ई स्वायम्भुवुडु परिपालिञ्चिन मन्वन्तरमे मॊट्टमॊदटिदि. रॆण्डो मनुवु स्वारोचिषुडु. इतडि कालंलोने विष्णुमूर्ति ‘विभुडु’ अने पेरुतो अवतरिञ्चाडु. उत्तमुडु मूडो मनुवु. इतडि कालंलो ‘सत्यसेनुडु’ अने पेरुतो श्रीहरि अवतरिञ्चि दुष्टशिक्षण गाविञ्चाडु. नालुगो मनुवैन तामसुडि कालंलोने श्रीहरि गजेन्द्रुण्णि रक्षिञ्चाडु अन्नाडु शुकमहर्षि. दानिकि परीक्षित्तु वॆण्टने अन्दुकॊनि ‘महर्षी! आ वृत्तान्तान्नि विनालनि आसक्तिगा उन्दि. विवरिञ्चण्डि’ अन्नाडु. शुकमहर्षि प्रारम्भिञ्चाडु. गजेन्द्रुडि मोक्षं राजा! क्षीरसागरं मध्यलो ऒक अन्दमैन पर्वतं उन्दि. दानि पेरु त्रिकूटं. दानिकि मूडे शिखरालु. वाटिलो ऒकटि बङ्गारं. रॆण्डु वॆण्डि. मूडोदि इनुमु. आ सुन्दर पर्वतम्पै देवतलु विहरिस्तू उण्टारु. अक्कड जन्तुवुलन्नी ऒक ऎत्तु. एनुगुलु मात्रं ऒक ऎत्तु. महमह क्रूरमृगालु सैतं अक्कडि एनुगुल्नि चूसि तोक मुडववलसिन्दे. ऒक्को एनुगू दिग्गजाल्नि तलदन्नेला उण्टुन्दि. अष्टम स्कन्धं 95 ऎन्तो दर्पन्तो मदिञ्चि उण्डे आ एनुगुलु ऒकसारि अडविलो विहरानिकि बयलुदेरायि. अन्नि एनुगुलु गुम्पुलुगा वच्चेसरिकि तक्किन जन्तुवुलन्नी ऎक्कडिकक्कड सर्दुकुन्नायि. अडविनि अतलाकुतलं चेस्तू अटू इटू तिरुगुतू, चॆट्लनु पॆकलिस्तू, कावलसिनवि तिण्टू तिरुगुतुन्नायि आ एनुगुलु. एनुगुल स्वैरविहरं आ एनुगुल समूहंलो ऒक गजराजु तन प्रियुराळ्लतो कलसि मन्द नुण्डि विडिपोयाडु. दारि तप्पाडु. ऎटो वॆळ्ळिपोयाडु. ई गजराजुकू अतडि चुट्टू उन्न तक्किन एनुगुलकी ऒकटे दाहङ्गा उन्दि. नीळ्ळ कोसं वॆतुकुतुन्न समयंलो अक्कडिकि दग्गर्लोने ऒक अन्दमैन सरस्सु कनिपिञ्चिन्दि. वॆण्टने गजराजु तन एनुगुलतो सह अन्दुलोनिकि चॊरबड्डाडु. कडुपु निण्डा नीळ्ळु तागि, ऒकदानिपै ऒकटि नीळ्ळु चिम्मुकॊण्टू सेद तीरुतुन्नायि एनुगुलन्नी. इन्तलो ऒक मॊसलि चटुक्कुन ई गजराजु कालु पट्टुकुन्दि. गजेन्द्रुडु आ पट्टु तप्पिञ्चुकॊनि तॊण्डन्तो ऒक्कटि वेशाडु दान्नि. दॆब्बकि आ मॊसलि चच्चिन पामुला नीळ्ललो पडिन्दि. कानी वॆण्टने तेरुकॊनि गजेन्द्रुडि मुन्दरिकाळ्ळु पट्टुकुन्दि. ईसारि दन्तन्तो पॊडिचाडु गजेन्द्रुडु. मॊसलि कोपन्तो गजेन्द्रुडि तोकनु करिचिन्दि. कं. करि"दिगुचु मकरि सरसिकि" गरि दरिकिनि मकरि"दिगुचु" गरकरि बॆरयन् गरिकि मकरि मकरिकि" गरि भरमनुचुनु नतलकुतल भटु लदुरुपडन् (8-54) मकरि = मॊसलि, करिनि = एनुगुनु सरस्सुलोनिकि ईडुस्तुण्टे करि मकरिनि गट्टुमीदिकि लागुतोन्दि. इला उन्न वाटिनि चूसि करि गॊप्पदण्टे अष्टम स्कन्धं 96 पोतन भागवतमु मकरि गॊप्पदनि अतलंलोनू कुतलंलोनू उन्न भटुलु आश्चर्यपोतुन्नारु. आड एनुगुलु पक्कने उन्नायिगानी एमी चेयलेक गजेन्द्रुण्णि विडिचि रालेक निस्सहयङ्गा चूस्तू उण्डिपोयायि. मॊसलिकि नीरे स्थानबलं. काबट्टि अन्तकन्तकू दानि बलं पॆरुगुतोन्दि. गजेन्द्रुडि बलं तग्गिपोतोन्दि. इक आ मॊसलि इङ्का रॆच्चिपोयिन्दि. नानारकालुगा हिंसिञ्चिन्दि. रॆण्डु पादालनू नेलपै अदिमिपट्टिन्दि. गालिनि बन्धिञ्चिन्दि. ऒक योगीन्द्रुडिला स्थिरङ्गा पट्टुविडुवकुण्डा एकाग्रततो एनुगु पादाल्नि गट्टिगा पट्टुकुन्दि. संसारंलो चिक्कुकॊने मानवुडि परिस्थितिलागे उन्दि गजेन्द्रुडि स्थिति. युद्धं जरुगुतूने उन्दि. शक्तिनन्ता कूडदीसुकॊनि मरी गजेन्द्रुडु पोराडुतुन्नाडु. अला आ युद्धं वॆय्यि संवत्सरालपाटु सागिन्दि. इङ्का सागुतूने उन्दि. शरणागति गजेन्द्रुडु आलोचनलो पड्डाडु. ‘दीन्नि ऎला गॆलवटं? ऎवरि सहयं तीसुकोवालि? नाकु दिक्कु ऎवरु? नन्नु आदुकॊनेवाळ्ळे लेरा? इन्नाळ्ळू ऎन्त वैभवङ्गा जीवितान्नि गडिपानु. बुद्धि गड्डितिनि इला वच्चानु. इप्पुडु अनुभविस्तुन्नानु. भगवन्तुडा! इप्पुडॆला स्वामी! ना कष्टं तीरेदॆला? उ. ऎव्वनिचे जनिञ्चु जग मॆव्वनि लोपलनुण्डु लीनमै यॊव्वनियन्दु डिन्दु" बरमेश्वरु" डॆव्व"डु मूलकारणं बॆव्व" डनादिमध्यलयु" डॆव्व"डु सर्वमु" दान यैनवा" डॆव्व"डु वानि नात्मभवु नीश्वरु ने शरणम्बु वे"डॆदन्. (8-73) ई जगमु ऎवरिवल्ल पुडुतोन्दि? ऎवरिलो उण्टोन्दि? ऎवरिलो कलुस्तोन्दि? परमेश्वरुडु ऎवडु? मूलकारणं ऎवडु? मॊदलू नडुमा तुदी लेनिवाडु ऎवडु? अन्ता ताने अयिनवाडु ऎवडु? अलाण्टिवाडू, तनन्तट ताने पुट्टिनवाडू, ईश्वरुडू अयिनवाडिने नेनु शरणु वेडुतानु. 97 कं. लोकम्बुलु लोकेशुलु लोकस्थुलु" दॆगिन" दुदि नलोकम्बगु पॆं जी"कटि कव्वल नॆव्वं डेकाकृति वॆलु"गु नतनि ने सेविन्तुन् (8-75) लोकालू, लोकाधिपतुलू, लोकंलोनि प्रजलू इला अन्दरू नशिञ्चिन तरुवात चूडशक्यङ्कानि पॆद्द चीकटि आवहिस्तुन्दि. आ चीकटिकि अवतल ऒके ऒक ज्योतिस्वरूपं वॆलुगुतू उण्टुन्दि. अला ऎवरु वॆलुगुतारो अतण्णे नेनु सेविस्तानु. कं. नर्तकुनि भङ्गि" बॆक्कगु मूर्तुलतो नॆव्व"डाडु? मुनुलु दिविजुलुं गीर्तिम्पनेर रॆव्वनि वर्तन मॊरु लॆऱु"ग रट्टिवानि नुतिन्तुन् (8-76) अनेकरूपालतो नर्तकुडिला ऎवडु नाट्यं चेस्ताडो, मुनुलू देवतलू कूडा ऎवरिनि कीर्तिञ्चलेरो, इतरुलकु ऎवरि प्रवर्तन अर्थं कादो अटुवण्टि वाडिने नेनु नुतिस्तानु. अण्टू परमात्म तत्त्वान्नि अनेक विधालुगा ऊहिञ्चाडु. भगवन्तुडि गुणालनू लक्षणालनू कमनीयङ्गा विनुतिञ्चाडु. श्रीहरि आगमनं अनेक गुणालकु नॆलवैन मनस्सु कलवाडु, कर्मबन्धालनु पोगॊट्टेवाडु, ए दिक्कू लेनि नालाण्टि पशुवुल पापान्नि अणगद्रॊक्केवाडु, अन्दरिलोनू अन्तर्यामियै वॆलिगेवाडु, नाशनंलेनिवाडु, भगवन्तुडु अयिन वाडिकि नेनु वन्दन माचरिस्तानु. प्रशान्तुडु, मोक्षसुखं ऎरिगिनवाडु, उत्तम वरालनु प्रसादिञ्चेवाडु, परिपूर्णुडु, महत्मुडु, ब्रह्म स्वरूपुडु, श्रेष्ठुडु, इन्द्रियातीतुडु, परम दयाळुवु, स्वयं प्रकाशकुडु, स्थूलसूक्ष्मस्वरूपुडु अयिन महत्मुण्णि नेनु सेविस्तानु. अष्टम स्कन्धं 98 पोतन भागवतमु कं. कल" डन्दुरु दीनुल यॊड" गल"डन्दुरु परमयोगिगणमुलपालं गल"डन्दु रन्नि दिशलनु गल"डु कलं डनॆडुवा"डु गल"डो ले"डो! (8-86) आ भगवन्तुडु दीनुलपट्ल उन्नाडनि अन्दरू अण्टुण्टारे! अलागे श्रेष्ठुलैन महमुनुल दग्गरा उन्नाडण्टारे! अन्नि दिक्कुल्लोनू उन्नाडनी अण्टारे! इला उन्नाडु उन्नाडु अनेवाडु असलु उन्नाडा? लेडा? सी. कलुग"डे ना पालि कलिमि सन्देहिम्प" गलिमि लेमुलु लेक कलुगुवा"डु ना कड्डपडरा"डॆ नलि नसाधुवुलचे" बडिन साधुल कड्डपडॆडुवा"डु चूड"डे ना पाटु" जूपुल" जूडक चूचुवारल" गृप" जूचुवा"डु लीलतो ना मॊऱालिम्प"डे मॊऱ"गुल मॊऱ लॆऱुङ्गुचु" दन्नु मॊऱ"गुवा"डु ते.गी. अखिल रूपमुल् दनरूपमैनवा"डु नादिमध्यान्तमुलु लेक यडरुवा"डु भक्तजनमुल दीनुल पालिवा"डु विन"डॆ! चूड"डॆ! तलप"डॆ! वेग रा"डॆ?! (8-87) अतडु नापट्ल उन्नाडो लेडो अनि नेनु ऒकपक्क सन्देहिस्तू उण्टे तानु कलिमिलेमुलकु अतीतङ्गा वर्तिल्लेवाडै उण्डिकूडा ना दग्गरकु राडेमिटि? मञ्चिवाळ्लकोसं उन्नपळङ्गा अड्डुपडताडे? मरि नाकु अड्डुपडडे? कळ्ळतो चूडकुण्डाने चूडगलवाडू, तननु दर्शिञ्चेवारिनि दयतो चूसेवाडू ना तिप्पल्नि इप्पुडु ऎन्दुकु चूडडु? वञ्चकुल मॊरलैते तॆलुसुकॊण्टाडे! मरि तनकु तानुगा दागि उण्टाडे! लीलतो ना मॊर विनडॆन्दुकु? अन्नि रूपालू तन रूपमे अयिनवाडू, आदिमध्यान्तालु लेकुण्डा प्रकाशिञ्चेवाडू, भक्त जनुल पक्षाना, दीनुल पक्षाना निलिचेवाडू इप्पुडु ना मॊर विनडॆन्दुकु? 99 नन्नु चूडडॆन्दुकु? कनीसं ना गुरिञ्चि आलोचिञ्चडॆन्दुकु? ना कोसं वेगङ्गा राडॆन्दुकु? विश्वानिकि सृष्टिकर्त, विश्वानिकि दूरङ्गा उण्डेवाडू, विश्वानिकि अन्तरात्म विश्वं द्वारा तॆलियबडेवाडू, (विश्वानिकि तॆलुसुकोदगिनवाडू), विश्वमे तानैना विश्वातीतुडू, विश्वङ्कण्टे भिन्नमैनवाडू, शाश्वतुडू, पुट्टुकलेनिवाडू, ब्रह्मकु प्रभुवु, लोकालनु नडिपेवाडू अयिन परमपुरुषुण्णे नेनु भजिस्तानु’ अनि मनस्सुलो आ भगवन्तुण्णि निलुपुकॊनि गजेन्द्रुडु इला प्रार्थिस्तुन्नाडु. शा. लावॊक्किन्तयु लेदु धैर्यमु विलोलम्बय्यॊ" ब्राणम्बुलुन् ठावुल् दप्पॆनु मूर्छ वच्चॆ" दनुवुन् डस्सॆन् श्रमम्बय्यॊडिन् नीवे तप्प नितःपरं बॆऱु"ग मन्निम्पं दगुन् दीनुनिन् रावे! ईश्वर! काववे! वरद! संरक्षिम्पु भद्रात्मका! (8-90) शक्ति मॊत्तं क्षीणिञ्चिपोतोन्दि. धैर्यमा? अदी सडलि पोयिन्दि. प्राणालेमो गतुलु तप्पि, पोवडानिकि सिद्धङ्गा उन्नायि. मूर्छ वच्चेसिन्दि. शरीरं बागा अलसिपोयिन्दि. श्रमगा उन्दि. नावल्ल कावडं लेदु. नुव्वु तप्प नाकु वेरे दिक्कु लेदु. ई दीनुण्णि मन्निञ्चु. ओ ईश्वरा! रा! वरदुडा! कापाडु! भद्रात्मकुडा! रक्षिञ्चु. कं. विनुद"ट जीवुल माटलु चनुद"ट चनरानि चोट्ल शरणार्थुल को यनुद"ट पिलिचिन सर्वमु" गनुद"ट सन्देह मय्यॊ" गरुणावार्धी! (8-91) दयासमुद्रुडा! ऎवरु एमन्ना नुव्वु विण्टावटगा! वॆळ्ळरानि चोट्लकू वॆळ्तावट! शरणार्थुलु पिलिस्ते ‘ओ’ अण्टावट! पिलिस्ते चालु अन्ता नुव्वे चूसु कुण्टावट! मरि नाकॆन्दुको सन्देहङ्गा उन्दि. निजमेना? उ. ओ कमलाप्त! यो वरद! यो प्रतिपक्ष विपक्ष दूर! कु य्यो! कवियोगिवन्द्य! सुगुणोत्तम! यो शरणागतामरा नोकह! यो मुनीश्वरमनोहर! यो विमलप्रभाव! रा वे! करुणिम्पवे! तल"पवे! शरणार्थिनि नन्नु" गाववे! (8-92) अष्टम स्कन्धं 100 पोतन भागवतमु लक्ष्मीदेविकि आप्तुडा! वरदुडा! नीकु साटियैन शत्रुवुले लेनिवाडा! कवुल चेता योगुलचेता नमस्करिञ्चबडेवाडा! सुगुणोत्तम (सुगुणुललो उत्तमुडा!) शरणागत कल्पवृक्षमा! मुनि मनोहरा! विमलमैन प्रभावं कलवाडा! रावे! करुणिञ्चवे! ना गुरिञ्चि आलोचिञ्चवे! शरणार्थिनि नन्नु रक्षिञ्चवे! अनि प्रार्थिञ्चाडु. रक्षणलेनिवाळ्ळनु रक्षिञ्चे भगवन्तुडे आपदलो उन्न नन्नू आदुकॊण्टाडु अनि गजराजुकु नम्मकं कलिगिन्दि. निङ्गिवैपु चूस्तू आकाशानिकि चॆवुलप्पगिञ्चि ऎवरैना वच्चे अलिकिडि उन्दा अनि विण्टू प्रार्थिस्तुन्नाडु. आ समयंलो - आ.वॆ. विश्वमयत लेमि विनियु नूरक युण्डि रम्बुजासनादु लड्ड पडक विश्वमयु"डु विभु"डु विष्णुण्डु जिष्णुण्डु भक्तियुतुन कड्डपड" दलञ्चॆ. (8-94) अतडि आर्तनादं तक्किन देवतलकू विनिपिञ्चिन्दि. कानी वाळ्ळॆवरिकी अन्तटा व्यापिञ्चि उण्डे गुणं लेदु. अन्दुके वाळ्ळु गजेन्द्रुण्णि कापाडटानिकि सिद्धपडलेकपोतुन्नारु. अन्तटा व्यापिञ्चिनवाडू, आपद्बान्धवुडू अयिन विष्णुदेवुडु ई गजेन्द्रुण्णि कापाडालि’ अनुकॊन्नाडु. म. अल वैकुण्ठपुरम्बुलो नगरिलो ना मूलसौधम्बु दा पल मन्दारवनान्तरामृत सरः प्रान्तेन्दुकान्तोपलो त्पल पर्यङ्क रमाविनोदियगु नापन्नप्रसन्नुण्डु वि ह्वलनागेन्द्रमु ‘पाहि पाहि’ यन" गुय्यालिञ्चि संरम्भियै. (8-95) वैकुण्ठपुरंलो ऒक अन्तःपुरं उन्दि. दानि लोपलि ऒक प्रधान भवनं. दानि लोपल मन्दारवनं. अन्दुलो अमृत सरस्सु. आ प्रक्कने चन्द्रकान्त शिलावेदिक. दानिपै उन्दि ऒक कलुवपूल पानुपु. दानिपै कूर्चॊनि लक्ष्मीदेवितो सरदागा कबुर्लु चॆप्तुन्नाडु स्वामि. अप्पुडु आ लक्ष्मीदेवि चीर कॊङ्गु आयन चेतिलो उन्दि. दानिनि (विडिचिवेयटं कूडा मरचि) अलागे पट्टुकॊनि गजेन्द्रुडि आर्तनादं विनगाने उन्नपळङ्गा बयलुदेराडु. 101 म. सिरिकिं जॆप्प"डु शङ्खचक्रयुगमुं जेदोयि सन्धिम्प" डे परिवारम्बुनु जीर" डभ्रगपतिं बन्निम्प" डाकर्णिकां तरधम्मिल्लमु" जक्कनॊत्त"डु विवादप्रोत्थित श्रीभुजो परिचेलाञ्चलमैन वीड"डु गजप्राणावनोत्साहियै. (8-96) लक्ष्मीदेविकि चॆप्पलेदु. शङ्खचक्राल्नि धरिञ्चलेदु. ऎवरिनी पिलवलेदु. गरुड वाहनान्नि ऎक्कलेदु. कनीसं लक्ष्मीदेवि चीर कॊङ्गुनैना विडिचिपॆट्टलेदु. परुगुपरुगुन बयलुदेराडु हरि. हरि वॆनुक सिरि. आमॆ वॆनुक परिवारं. वारि तरुवात गरुडुडु, वॆनुक पञ्चायुधालु, नारदुडु, विष्वक्सेनुडु इला वैकुण्ठंलो उन्न आबाल गोपालमू कदिलिन्दि. म. तन वेञ्चेयु पदम्बु" बेर्कॊन" डनाथस्र्ती जनालापमुल् विनॆनो! म्रुच्चुलु म्रुच्चलिञ्चिरॊ खलुल् वेद प्रपञ्चम्बुलन्, दनुजानीकमु देवतानगरिपै दण्डॆत्तॆनो! भक्तुलं गनि चक्रायुधु"डेडि चूपु"डनि धिक्कारिञ्चिरो! दुर्जनुल् (8-100) ऎक्कडिकि वॆळ्तुन्नाडो चॆप्पडु, अनाथस्र्तील आर्तनादालु विन्नाडा? वेदाल्नि ऎवरैना अपहरिञ्चारा? राक्षसुलु देवतलनगरम्पैकि दण्डॆत्तिवच्चारा? भक्तुल्नि पट्टुकॊनि श्रीहरि ऎक्कड? चॆप्पण्डि अण्टू दुर्मार्गुलु कॊडुतुन्नारा? अनि लक्ष्मीदेविकि मनसुलो आन्दोळन. एं जरिगिन्दोननि. अडुगुदामनि मुन्दुकु वॆळ्तोन्दि. कानी मळ्ळी भयं. वॆनक्कि वस्तोन्दि. अला वॆळ्तुन्न वीळ्ळन्दरिनी आकाशंलो देवतलु ’अडुगो श्रीहरि! अदिगो लक्ष्मीदेवि!’ अण्टू सम्बरङ्गा चूस्तुन्नारु. भक्तितो चेतुलॆत्ति मॊक्कुतुन्नारु. विष्णुमूर्ति गजराजुनु कापाडालने तॊन्दरलोने उन्नाडु. अन्दुवल्ल देवतल नमस्कारालनु पॆद्दगा पट्टिञ्चुकोलेदु. आ सरस्सु चेरि तन सुदर्शन चक्रान्नि वॆण्टने आ मॊसलिपै प्रयोगिञ्चाडु. ऎन्तो वेगङ्गा वॆळ्ळि आ चक्रं मॊसलि तलनु खण्डिञ्चिवेसिन्दि. चिक्कि शल्यमैन गजेन्द्रुडु ‘बतुकु जीवुडा!’ अण्टू बयटपड्डाडु. मॊसलि नोट्लो नुञ्चि विडिपड्ड तन कालुनु हयिगा अटू इटू आडिञ्चाडु. अष्टम स्कन्धं 102 पोतन भागवतमु आड एनुगुल आनन्दानिकि अवधुल्लेवु. प्रेमगा दग्गरिकि वच्चायि. गजेन्द्रुडिपै नीळ्ळु चिलकरिञ्चि अभिषेकं चेशायि. शा. पूरिञ्चॆन् हरि पाञ्चजन्यमु" गृपाम्भोराशि सौजन्यमुन् भूरिध्वान चलाचलीकृत महभूत प्रचैतन्यमुन् सारोदारसित प्रभाचकित पर्जन्यादि राजन्यमुन् दूरीभूत विपन्नदैन्यमुनु निर्धूतद्विषत्सैन्यमुन् (8-116) कृपविषयंलो समुद्रमन्तटि सौजन्यं कलदी, तन गॊप्प ध्वनिवल्ल स्थावर जङ्गमाल चैतन्यान्नि तारुमारु चेसेदी, तन तॆल्लनिकान्तुलवल्ल चकितुलैपोयिन इन्द्रादि दिक्पालकुलु कलदी, दूरं चेसिन विपन्नुल दैन्यं कलदी, ऎगुरगॊट्टबडिन शत्रुसैन्यं कलदी अयिन पाञ्चजन्यान्नि पूरिञ्चाडु श्रीहरि. दिक्कुलु पिक्कटिल्लि पोयायि. आ परन्धामुडि भक्तवत्सलतनु चूसिन देवतलु पुलकिञ्चिपोयारु. देव दुन्दुभुलु म्रोगायि. पूलवानलु कुरिशायि. श्रीमन्नारायणुडे गजेन्द्रुण्णि प्रेमगा निमिरि सरस्सु नुञ्चि बयटकु तीसुकुवच्चाडु. श्रीहरि स्पर्शतो आ गजेन्द्रुडिकि वॆय्यि एनुगुल बलं वच्चिनट्लयिन्दि. ऒळ्ळन्ता पुलकिञ्चिन्दि. राजा! निजानिकि ई मॊसलि ‘हूहू’ अने गन्धर्वुडु. ई गजेन्द्रुडु ‘इन्द्रद्युम्नुडु’ अने चक्रवर्ति. हूहू - देवलुडु अने महर्षि शापंवल्ल इदुगो इला मॊसलिगा उन्नाडु. इप्पटिकिगानी अतडिकि विमुक्ति लभिञ्चलेदु. इन्द्रद्युम्नुडु अगस्त्य महर्षिनि गौरविञ्चकपोवटंवल्ल अतडि शापानिकि गुरै एनुगुगा पुट्टाडु. अतडि परिवारमू एनुगुलुगा पुट्टायि. चिवरिकि गजेन्द्रुडु तन परिवारन्तो सह विष्णुभक्ति वल्लने तरिञ्चाडु. राजा! आ तरुवात श्रीहरि लक्ष्मीदेविनि तमाषागा ऒक प्रश्न वेशाडु. ‘लक्ष्मी! नेनु अला नीकु चॆप्पा पॆट्टकुण्डा वॆळ्तुण्टे नीकेमनिपिञ्चिन्दि? अयिना ना सङ्गति नीकु तॆलुसु कदा! 103 कं. ऎऱु"गुदु तॆऱवा! यॊप्पुडु मऱवनु सकलम्बु नन्नु मऱिचिनयॊडलन् मऱतुननि यॊऱि"गि मॊऱ"गक मऱवक मॊऱयिडिरयेनि मऱिनन्यमुलन्. (8-130) नन्नु नम्मुकुन्नवाळ्ळु एदैना कष्टंलो उण्टे वाळ्ळनु वॆण्टने रक्षिस्तानु. नन्नु गुर्तुञ्चुकुन्नवाळ्ळनु नेनु गुर्तुञ्चुकुण्टानु. नन्नु मर्चिपोयिन वाळ्ळनि नेनू मर्चिपोतानु, इदि तॆलिसि, कष्टाल्लो इतरुल्नि आश्रयिञ्चक, नातो मॊरपॆट्टुकुन्न वारिनि ऎन्नटिकी विडुवनु’ अन्नाडु. अप्पुडु लक्ष्मीदेवि ‘स्वामी! नाकु मी पादालनु ध्यानिञ्चटं तप्प वेरे आलोचन उण्टुन्दा? दीनुल आर्तिनि विनटं, वाळ्ळनु रक्षिञ्चटं मीके चॆल्लिन्दि. मीरु दीनुलकु अधीनुलै उण्टारु कदा!’ अनि कॊनियाडिन्दि. राजा! अन्दुके ई कथ पुण्यप्रदमैनदि. ऎवरु ई कथनु भक्तिश्रद्धलतो विण्टारो, चदुवुतारो वारिकि ऎल्लप्पुडू शुभमे जरुगुतुन्दि. ई वृत्तान्तं नालुगो मनुवु कालंलो जरिगिन्दि. तरुवात रैवतुडु अने चक्रवर्ति ऐदो मनुवै भूमिनि पालिञ्चाडु. ई कालंलोने श्रीहरि - शुभ्रुडिकि, विकुण्ठ द्वारा ‘वैकुण्ठुडु’ अने पेरुतो अवतरिञ्चाडु. वैकुण्ठ लोकान्नि सृष्टिञ्चाडु. आरो मनुवु चाक्षुषुडु. इतडि कालंलोने क्षीरसागर मथनं जरिगिन्दि. आ कथ चॆप्तानु विनु. क्षीरसागरमथनं देवतलु - राक्षसुल दारुणालनु भरिञ्चलेक श्रीहरिनि शरणु वेडारु. दुर्वास महर्षि शापं वल्ल देवतल ऐश्वर्यं गङ्गपालैपोयिन्दि. दिक्कुलेनि स्थितिलो ‘श्रीमन्नारायणा! नुव्वे दिक्कु’ - अण्टू मॊरपॆट्टुकुन्नारु. आ परन्धामुडु वीळ्ळ मॊरनु आलकिञ्चाडु. ‘देवतलारा! कॊन्नाळ्ळु राक्षसुलनु मच्चिक चेसुकॊनि, वाळ्ळनु क्षीरसागर मथनानिकि ऒप्पिञ्चण्डि. अमृतान्नि साधिञ्चण्डि. नेनु मीकु अण्डगा उण्टानु’ अनि अभयमिच्चाडु. अष्टम स्कन्धं 104 पोतन भागवतमु देवतलु ऎगिरि गन्तेशारु. वॆनक्कि वॆळ्ळि राक्षसुलतो चॆलिमि चेशारु. देवेन्द्रुडु बलिचक्रवर्तिनि सेविस्तू क्षीरसागर मथनानिकि वाळ्ळनु ऒप्पिञ्चाडु. देवतलू राक्षसुलू कदिलारु. मन्दर पर्वतान्नि पॆकलिञ्चारु. कानी दान्नि ऎत्तलेक चतिकिलपड्डारु. कॊन्तमन्दि दानि किन्द पडि प्राणालु कोल्पोयारु. कॊन्दरु चिक्कुकॊनिपोयि विलविललाडारु. ऒकानॊक समयंलो ‘असलॆन्दुकिदन्ता?’ अन्न निराश आवहिञ्चिन्दि देवतल्नि. अप्पुडे अच्युतुडु अक्कडिकि वच्चाडु. ऒक बन्तिनि चेतितो कदिल्चिनट्लुगा मन्दरपर्वतान्नि कदिपाडु. कॊन्दरु बतिकि बयटपड्डारु. श्रीहरि गरुडुडिनि पिलिचाडु. मन्दर पर्वतान्नि, श्रीहरिनि तन मूपुपै उञ्चुकॊनि रिव्वुन गालिलोकि कदिलाडु गरुत्मन्तुडु. दान्नि क्षीरसागरंलो उञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. देवदानवुलु वासुकिनि प्रार्थिञ्चारु. इप्पुडु मन्दर पर्वतं कव्वं अयिते वासुकि कव्वपु ताडु अय्याडु. वासुकिनि राक्षसुलु तोकवैपु देवतलु तलवैपु पट्टुकुन्नारु. अदि अवमानङ्गा भाविञ्चि तामु तलवैपे उण्टामन्नारु राक्षसुलु. श्रीहरि सरेनन्नाडु. मथनं प्रारम्भमयिन्दि. अला मॊदलय्यिन्दो लेदो मन्दरं बुडबुड मनि मुनिगिपोयिन्दि. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडे कूर्मरूपान्नि धरिञ्चि समुद्रं अडुक्कि वॆळ्ळि पर्वतान्नि वीपुपै उञ्चुकॊनि पैकि ऎत्ताडु. पर्वतं लेचिन्दि. जै श्रीमन्नारायण! जै श्रीमन्नारायण! अन्न निनादालु मिन्नुमुट्टायि. अन्ता ताने अयि ई कार्यक्रमं नडिपिस्तुन्नाडु परमात्म. पर्वतं समुद्रंलो गुबगुबलाडुतू तिरुगुतोन्दि. अटु राक्षसुलू इटु देवतलू उत्साहङ्गा चिलुकुतुन्नारु. अट्टहसालु, केकलु, हॆच्चरिकलु. वीटितो दिक्कुलु पिक्कटिल्लिपोतुन्नायि. वाळ्ल वेगानिकि समुद्रं अल्लकल्लोलमैपोयिन्दि. अन्दरू चूस्तुण्डगाने समुद्रंलोञ्चि हलाहलं पुट्टुकॊच्चिन्दि. ऒक्क क्षणंलोने भुगभुगमने ज्वाललतो समुद्रान्ने कादु ब्रह्मण्डमन्ता विस्तरिञ्चिन्दि. 105 देवदानवुलु हडलिपोयारु. ब्रह्मदेवुण्णि तीसुकॊनि वॆळ्ळि ईश्वरुण्णि शरणु वेडारु. शिवुडु परम दयामयुडु. कष्टंलो उन्नवाळ्ल कष्टान्नि तीर्चटं प्रभुवुल विधि. कं. परहितमु सेयु नॆव्व"डु परमहितुं डगुनु भूतपञ्चकमुनकुन् बरहितमॆ परमधर्ममु परहितुनकु नॆदुरु लेदु पर्वेन्दुमुखी! (8-235) ‘परहितं चेसेवाडे पञ्चभूतालकू हितुडु. परहितमे श्रेष्ठमैन धर्मं. परहितं कोसं पाटुपडेवाडिकि ऎदुरे लेदु. एमण्टावु पार्वती!, अन्नाडु. पार्वतीदेवि सरेनन्दि. आ तल्लि कूडा ऎन्तटि दयामयुरालो! कं. म्रिङ्गॆडु वाडु विभुण्डनि म्रिङ्गॆडिदियु गरळमनियु मेलनि प्रजकुन् म्रिङ्गुमनॆ सर्वमङ्गळ मङ्गळसूत्रम्बु नॆन्त मदि नम्मिनदो. (8-241) मिङ्गेवाडु तन भर्त अनी, मिङ्गबोयेदि हलाहलविषमनी, मिङ्गिते लोकानिकि मञ्चि जरुगुतुन्दनी तॆलुसु. तॆलिसी आ सर्वमङ्गळ ताने स्वयङ्गा अङ्गीकरिञ्चिन्दण्टे आ तल्लिकि तन मङ्गळसूत्रं गट्टिदन्न नम्मकं ऎन्त उन्नदो कदा! शिवुडु इङ्क आलस्यं चेयलेदु. आ गरळान्नि चिन्न फलरसंला म्रिङ्गि कण्ठंलोने उञ्चाडु. ऎन्दुकण्टे आयन पॊट्टलो सकल लोकालू उन्नायि काबट्टि. अयिना इन्त साहसं ऒक्क शिवुडिकि तप्प मरॊकरिकि साध्यमय्येदेना? आटङ्कं तॊलगिपोवटन्तो देवदानवुलु मळ्ळी मथनान्नि प्रारम्भिञ्चारु. ईसारि वरुसगा सागरंलोञ्चि कामधेनुवु, उच्चैश्र्शवं, ऐरावतं, कल्पवृक्षं, अप्सरसलु, चन्द्रुडु, लक्ष्मीदेवि आविर्भविञ्चटन्तो वाळ्ळु इङ्का उत्साहङ्गा मथिस्तुन्नारु. अष्टम स्कन्धं 106 पोतन भागवतमु लक्ष्मीदेवि विष्णुवुनु वरिञ्चिन्दि. तरुवात ‘वारुणि’ पुट्टिन्दि. दानिनि राक्षसुलु तीसुकुन्नारु. आ तरुवात धन्वन्तरि, चेतिलो अमृतभाण्डन्तो दिव्यकान्तुलु वॆदजल्लुतू आविर्भविञ्चाडु. दानिकोसं देवदानवुल्लो युद्धं मॊदलय्यिन्दि. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु ‘मोहिनि’ अवतारं धरिञ्चाडु. मोहिनि अतिलोक सौन्दर्यन्तो राक्षसुल्नि मोहंलो मुञ्चॆत्तिन्दि. देवतल्नी राक्षसुल्नी विडिगा रॆण्डु वरुसल्लो कूर्चोबॆट्टिन्दि. राक्षसुलकु ऒय्याराल्नि ऒलकबोस्तू, देवतलकु अमृतान्नि धारबोसिन्दि. अदि गमनिञ्चाडु राहुवु. देवतल वरुसलो कूर्चॊनि अमृतान्नि त्रागडं मॊदलुपॆट्टाडु. सूर्यचन्द्रुलु अदि पसिगट्टि मोहिनिकि सैग चेशारु. अन्ते! मोहिनि आदेशं, सुदर्शनुडि आगमनं वॆण्टवॆण्टने जरिगायि. राहुवु तल तॆगि क्रिन्द पडिन्दि. कानी अमृतं त्रागिन कारणङ्गा अदि मरणिञ्चलेदु. मॊण्डॆं मात्रं नेलकूलिन्दि. जरिगिन मोसान्नि अप्पटिकिगानी तॆलुसुकोलेकपोयारु राक्षसुलु. तॆलिसे सरिकि अमृतान्नि पूर्तिगा देवतलके पञ्चटं पूर्तिचेसिन्दि मोहिनि. अवतारान्नि चालिञ्चिन श्रीमन्नारायणुडु गरुड वाहनम्पै वॆळ्ळिपोयाडु. राक्षसुलु पट्टरानि कोपन्तो देवतलपै विरुचुकु पड्डारु. बाणालु, गण्ड्रगॊड्डळ्ळु, चक्रालु, कॊरडालु, गदलु, कत्तुलु, ईटॆलु, गुदियलु आकाशंलो ऎगुरुतुन्नायि. देवेन्द्रुडु वीरविजृम्भण चेस्तुन्नाडु. अप्पुडु बलिचक्रवर्ति राक्षसमाय सृष्टिञ्चाडु. देवतलु आ मायकु ताळलेक श्रीहरिनि प्रार्थिञ्चारु. श्रीहरि वच्चाडु. अतडि राकतो राक्षसमाय मटुमायमैपोयिन्दि. तन पैकि वच्चिन कालनेमि, सुमालि, माल्यवन्तुडु अने राक्षसुल्नि श्रीहरि वधिञ्चाडु. 107 विष्णुवु रङ्गप्रवेशन्तो इन्द्रुडु मळ्ळी विजृम्भिञ्चाडु. बलिचक्रवर्ति पैकि दूकाडु. वीळ्ळिद्दरिकी युद्धं सागुतोन्दि. मध्यलो अड्डुवच्चिन बलासुरुण्णी, पाकासुरुण्णी, नमुचिनी इन्द्रुडु वधिञ्चाडु. इन्तलो नारद महर्षि वच्चि इरुपक्षालकु सर्दिचॆप्पि युद्धान्नि विरमिञ्चेला चेशाडु. राक्षसुलु बलिचक्रवर्तितो कलिसि पडमटि कॊण्डवैपुकु चेरुकुन्नारु. शुक्राचार्युडु मृतसञ्जीविनि विद्य द्वारा राक्षसुल्नि तिरिगि बतिकिञ्चाडु. राजा! इदिला उण्डगा शिवुडिकि मोहिनी अवतारं चूडालनिपिञ्चिन्दि. वॆळ्ळि श्रीहरिनि अडिगाडु. वॆण्टने श्रीहरि अदृश्यमैपोयाडु. अक्कडे शिवुडि मुन्दु ऒक अन्दमैन उद्यानवनं कनिपिञ्चिन्दि. अन्दुलो ऒक सौन्दर्यवति. आमॆ अन्दं अन्ता इन्ता कादु. मुल्लोकाल्लोनू ऎक्कडा लेनन्त अन्दं. शिवुडि मनसु चलिञ्चिपोयिन्दि. सुन्दरी! अण्टू आमॆ वॆण्टपड्डाडु. अला शिवुण्णि कूडा मोहंलो मुञ्चॆत्तेला चेसिन आ सौन्दर्यवति ऎवरो कादु साक्षात्तू मोहिनी अवतारान्नि दाल्चिन विष्णुमूर्तिये. आमॆ शिवुण्णि प्रपञ्चं मॊत्तं तिप्पिञ्चिन्दि. तिरिगि तिरिगि इदि विष्णुमाय अनि ग्रहिञ्चाडु शिवुडु. अन्दरिला मोहिनी मायलो पडकुण्डा तत्त्वं तॆलुसुकुन्नाडु. अन्दुके शिवुण्णि विष्णुमूर्ति मॆच्चुकुन्नाडु. ‘परीक्षिन्महराजा! ई क्षीर सागर मथनं, मोहिनी अवतार गाथ ऎन्तो पवित्रमैनवि. विण्टे चालु सकल शुभालनू कलिगिस्तायि’ अण्टू राजु कोरिकपै तिरिगि इला चॆप्तुन्नाडु शुकमहर्षि. ‘राजा! इप्पुडु एडो मनुवु वैवस्वतुडि कालं. ऎनिमिदो मनुवु सावर्णि. अतडि तरुवात दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, देवसावर्णि, इन्द्रसावर्णि वरुसगा मनुवुलवुतारु. ऎन्तटि चक्रवर्तुलयिना श्रीमन्नारायणुडि आज्ञकु कट्टुबडि उण्ड वलसिन्दे. दीनिकि नीकु वामनावतार गाथ चॆप्तानु विनु. अष्टम स्कन्धं 108 पोतन भागवतमु वामनावतारं बलिचक्रवर्ति शुक्राचार्युडि दयवल्ल ‘विश्वजित्’ यागं चेसि सर्वविधाला सम्पन्नुडय्याडु. शक्तिमन्तमैन आयुधालनु सम्पादिञ्चि देवतल्नि जयिञ्चाडु. इन्द्रनगरि अमरावतिनि आक्रमिञ्चाडु. देवतलु चेसेदेमी लेक पारिपोयारु. मुल्लोकाललोनू तिरुगुलेनि आधिपत्यन्तो उन्नाडु बलि चक्रवर्ति. देवतलनु आदुकोवटं तप्पनिसरि अयिन्दि. कश्यपप्रजापति, अदिति दम्पतुलकु श्रीमन्नारायणुडु ताने पुत्रुडिगा जन्मिञ्चालनि सङ्कल्पिञ्चाडु. अदिति - कश्यपुडि आदेशन्तो ‘पयोभक्षणं’ अने व्रतं आचरिञ्चिन्दि. आ व्रतफलङ्गा श्रीहरि प्रसन्नुडै आ दम्पतुलकु ऒक शुभ मुहूर्तंलो चतुर्भुजालतो, पञ्चायुधालतो अवतरिञ्चाडु. अदिति परमानन्दभरितुरालयिन्दि. लोकमन्तटा आनन्दं वॆल्लिविरिसिन्दि. तरुवात स्वामि आ रूपान्नि विडिचि वामनुडि रूपान्नि धरिञ्चाडु. सरिग्गा उपनयनं चेसे वयस्सु. अन्दुके कश्यप प्रजापति आ उत्सवान्नि निर्वहिञ्चाडु. साक्षात्तु सूर्युडे वामनुडिकि सावित्री मन्त्रान्नि उपदेशिञ्चाडु. बृहस्पति यज्ञोपवीतान्नी, कश्यपुडु मुञ्जिनी, अदिति कौपीनान्नी, भूमि जिङ्क चर्मान्नी, चन्द्रुडु दण्डान्नी, आकाशं गॊडुगुनू, ब्रह्म कमण्डलान्नी, सरस्वति जपमालनू, सप्तर्षुलु दर्भल्नी इच्चारु. कुबेरुडु भिक्षापात्रनु इस्ते पार्वतीदेवि पूर्णभिक्षनु पॆट्टिन्दि. अन्दरू मनसारा दीविञ्चारु. अक्कडिकि वच्चिन पॆद्दल द्वारा बलिचक्रवर्ति गुरिञ्चि विनि अतडु महदात अनि तॆलुसुकॊनि आयनवद्दकु बयलुदेराडु वामनमूर्ति. कं. हरिहरि! सिरि युरमुन" गल हरि हरिहयुकॊऱकु दनुजु नडुगं जनियॊं बरहितरतिमतियुतुलगु दॊरलकु नडुगुटयु नॊडलि तॊडवगु"बुडमिन् (8-526) 109 साक्षात्तू लक्ष्मीदेविनि तन वक्षःस्थलंलो निलुपुकुन्न श्रीमन्तुडैन श्रीहरि इप्पुडु इन्द्रुडि ऐश्वर्यं कोसं बलिचक्रवर्तिनि याचिञ्चडानिकि वॆळ्तुन्नाडु. लोकहितं कोसं बिच्चमॆत्तिते - दॊरलकु अदि कूडा अलङ्कारमे कदू! नर्मदा नदिनि दाटाडु. बलि अक्कड यागं चेस्तुन्नाडु. दूरङ्गा आ यागशाल कनिपिञ्चिन्दि. अटुवैपु बुडिबुडि अडुगुलु वेशाडु वामनुडु. मुद्दुलॊलिके आ चिन्नारिनि चूस्तुन्न वाळ्ळन्ता अलागे चूस्तू उण्डि पोयारु. ऎन्त चूसिना तनिवितीरटं लेदु वाळ्ळकु. दारिलो कॊन्दरिनि पलकरिस्तू, कॊन्दरितो कलिसि वेदं चदुवुतू, कॊन्दरितो चर्चिस्तू, बित्तर चूपुलु चूस्तू, नव्वुतू, नव्विस्तू सागिपोतुन्नाडु. कं. वॆडवॆड नडकलु नडचुचु नॆडनॆड नडुगिड"ग नडरि यिल" दिग"बड"गा बुडिबुडि नॊडुवुलु नॊडुवुचु" जिडिमुडि तड"बड"ग वडुगु सेरॆन् राजुन्. (8-541) अडुगुलो अडुगु वेस्तू वामनुडु नडुस्तुण्टे भूमि क्रुङ्गिपोतोन्दि. मध्यलो चिट्टिपॊट्टि माटलु, कॊञ्चॆं गाबरा नटिस्तुन्नाडु. अला रकरकालुगा प्रवर्तिस्तू बलिचक्रवर्तिनि चेरुकुन्नाडु. बलिचक्रवर्तिनि चूडगाने आशीर्वदिञ्चाडु. आ वामनुण्णि अतडि तेजस्सुनू चूसिन बलिचक्रवर्तिकि नोट माट रालेदु. सादरङ्गा आह्वनिञ्चाडु. अन्नि मर्यादलू चेसि, ‘ओ पॊट्टि वडुगा! ऎन्त मुद्दु वस्तुन्नावो! असलु नुव्वु ऎवरु? ऎक्कड उण्टावु? इक्कडिकि ए पनिमीद वच्चावु? नी राकवल्ल नेनू, ना जन्म, ना वंशं धन्यमय्यायि. चूडु. ई होमाग्नुलु कूडा बागा ज्वलिस्तुन्नायि. इदि शुभसूचकं. अष्टम स्कन्धं 110 पोतन भागवतमु चॆप्पु. नीकें कावालि? मञ्चिमञ्चि वस्र्ताला? माडला? फलाला? उद्यानवनाला? आवुला? गुर्राला? रत्नाला? रथाला? विन्दुला? भवनाला? कन्यला? एनुगुला? पोनी बङ्गारमा? राज्यं कावाला? इङ्केमैनाना? चॆप्पु. एमी सङ्कोचिञ्चकु. प्रेमगा अडिगाडु बलिचक्रवर्ति. आ माटलकु वामनमूर्ति समाधानङ्गा- ‘राजा! नेनु अन्तटा उण्टानु. तिरुगुतू उण्टानु. ना अन्तट नेने वर्तिस्तू उण्टानु. नाकु रानिदि लेदु. नाकॆव्वरू लेरु. नेनु अन्दरिवाण्णि. पैगा ऒण्टरिनि. इन्तकुमुन्दु ऐश्वर्यं उण्डेदि. इप्पुडु लेदु. मञ्चिवाळ्ळु ऎक्कड उण्टे नेनू अक्कडे! नुव्वु सामान्युडिवि कावु. गॊप्प दातवु. नी वंशमू ऎन्तो गॊप्पदि. काबट्टि नेनु निन्नु ऒकटि अडगालनि वच्चानु. अदेमिटो चॆप्तानु विनु. आ.वॆ. ऒण्टिवा"ड नाकु नॊकटि रॆण्डडुगुलु मेर यिम्मु; सॊम्मु मेर यॊल्ल" गोर्कि दीर ब्रह्मकू"कटि मुट्टॆद दानकुतुकसान्द्र! दानवेन्द्र! (8-566) ‘दानवराजा! नेनु ऒण्टरिनि. नाकु ऒकटि रॆण्डडुगुलु (= मूडडुगुलु) नेल चालु. दानिनि दानङ्गा इव्वु. इप्पुडु नुव्वु अडिगिनवेवी नाकु अवसरं लेदु. ई कोर्कॆ तीर्चु. अदे नाकु ब्रह्मनन्दं’ अन्नाडु. बलिचक्रवर्ति आश्चर्यपोयाडु. नच्चचॆप्पालनि चूशाडु. इङ्केमैना विलुवैन वाटिनि कोरुकोमन्नाडु. अतडु ऎन्त प्रयत्निञ्चिना वामनुडु मरेमी कोरलेदु. पैगा इला अन्नाडु - ‘राजा! नेना ब्रह्मचारिनि. नाकु गॊडुगो, जन्ध्यमो, कमण्डलमो, मुञ्जियो, दण्डमो कावालिगानी इवन्नी नाकॆन्दुकु? वडुगुनैन नेनॆक्कड? एनुगुलु, गुर्रालु, स्र्तीलु मॊदलैनवन्नी ऎक्कड? पैगा अवन्नी ना नित्यकृत्यालकु आटङ्कालु. नेनु अडिगिन मूडडुगुल नेलनु कादनकुण्डा इव्ववय्या! अदे नाकु ब्रह्मण्डन्तो समानं. 111 तृप्तिलोने सुखं कं. व्याप्तिं बॊन्दक वगवक प्राप्तम्बगु लेशमैन" बदिवे लनुचुं दृप्तिं जॆन्दनि मनुजु"डु सप्तद्वीपमुल नयिन" जक्कम्बडुने? (8-574) पेरासकु पोकुण्डा, ऐश्वर्यं लेदे अनि चिन्तिञ्चकुण्डा तनकु तानुगा लभिञ्चिन्दि कॊञ्चॆमे अयिना दान्ने पदिवे लनुकॊनि तृप्तिपडनिवाडु सप्तद्वीपालु लभिञ्चिना ऎक्कडैना तृप्ति पडगलडा नुव्वे चॆप्पु? शा. आशापाशमु दा" गडु न्निडुपु लेदन्तम्बु राजेन्द्र! वा राशिप्रावृत मेदिनीवलय साम्राज्यम्बु सेकूडियुं गासिं बॊन्दिरि गाक वैन्यगयभूकान्तादुलु न्नर्थका माशं बाय"ग नेर्चिरे! मुनु निजाशान्तम्बुलं जूचिरे! (8-575) राजा! ई आश अनेदि उन्दि चूशामा? अदि चाला पॊडवु. दानिकि अन्तं लेदु. महमह चक्रवर्तुलु सैतं आशकु दासुलैपोयारु. ए लोकंलो नैना परम पूज्युडु ऎवरो तॆलुसा? तृप्तिनि पॊन्दिनवाडे! अतडिकि ऎप्पुडू सुखमे. तृप्ति लेकपोवटमे संसारानिकि हेतुवु. तृप्ति उण्टे तेजस्सू पॆरुगुतुन्दि. नुव्वु राजुवु काबट्टि नी दग्गर उन्नवन्नी अडगटं भाव्यं कादु. नाकु तगिनदे नेनु अडुगुतुन्नानु. अदि इव्वु चालु’ अन्नाडु. इला वीळ्ळ सम्भाषण कॊनसागुतोन्दि. शुक्राचार्युडि हितवु अप्पुडक्कडिकि शुक्राचार्युडु वच्चाडु. इतडु राक्षसुल गुरुवु. वच्चि ‘राक्षसराजा! इतडु ऎवरनुकॊण्टुन्नावु? साक्षात्तु श्रीमन्नारायणुडु. निन्नू नी वंशान्नि नाशनं चेयडानिके इला कपटवेषंलो वच्चाडु. अतडु कोरिन्दि इच्चावो! नी गति अधोगते. जाग्रत्त! अष्टम स्कन्धं 112 पोतन भागवतमु तनकु मालिन दानं पनिकि रादु. इस्ताननि माट इच्चानु कदा! दान्नि तप्पटं ऎला? असत्यदोषं अण्टुकोदू अण्टावेमो! विनु. आ.वॆ. वारिजाक्षुलन्दु वैवाहिकमुलन्दु" ब्राणवित्तमानभङ्गमन्दु जकित गोकुलाग्रजन्म रक्षणमन्दु बॊङ्कवच्चु नघमु वॊन्द दधिप! (8-585) स्र्तील विषयंलो, विवाहं सन्दर्भंलो, प्राणानिकिगानी, धनानिकिगानी, गौरवानिकिगानी भङ्गं कलिगे परिस्थितुल्लो अलागे गोब्राह्मणुलनु रक्षिञ्चे सन्दर्भंलो असत्यं आडवच्चु. दानिवल्ल पापं कलुगदनि शास्त्रं चॆबुतोन्दि. नुव्वु गॊप्प दातवे! कादननु. ई दानं इच्चि नी वंश नाशनान्नि नुव्वे कोरि तॆच्चुकोवद्दु. ना माट विनु. ई पॊट्टिवाडु मूडडुगुल नेलनु तीसुकॊनि त्रिविक्रमुडै ब्रह्मण्डान्नि आक्रमिस्ताडु’ अनि हितवु पलिकाडु. सत्यव्रतं अन्ता विन्नाडु बलिचक्रवर्ति. विनि ‘गुरुवर्या! एमण्टुन्नारु? आडिन माटनु तप्पमण्टुन्नारा? अन्तकण्टे पापं मरॊकटि उन्दा? भूमात ऎवर्नैना भरिस्तुन्दिगानी माट तप्पिनवाण्णि मात्रं भरिञ्चनुगाक भरिञ्चनु अनि चॆप्पलेदू! रैतुकु मञ्चि पॊलमु, वित्तनालु दॊरकटं ऎन्त कष्टमो दातकु तगिन धनमू, पात्रुडैन याचकुडू दॊरकटं अन्ते कष्टं. ना अदृष्टं. इप्पुडु नाकु आ अवकाशं वच्चिन्दि. शा. कारे राजुलु? राज्यमुल् गलुगवे? गर्वोन्नतिं बॊन्दरे? वारेरी? सिरि मूटगट्टुकॊनि पोवं जालिरे? भूमिपै" बेरैनङ्गलदे? शिबिप्रमुखुलुं ब्रीतिन् यशःकामुलै यीरे कोर्कुलु? वारलन् मऱचिरे यिक्कालमुन्? भार्गवा! (8-590) 113 भार्गवा! ऎन्दरो गॊप्प गॊप्प चक्रवर्तुलु. वाळ्ळन्ता राजुलु कारू, वाळ्ळकु राज्यालु लेमा! गर्वन्तो विर्रवीगलेदा? वाळ्ळन्दरू इप्पुडु ऎक्कड? वॆळ्ळेटप्पुडु सिरिनेमैना मूटगट्टुकुपोगलिगारा? कनीसं वाळ्ळ पेरैना निलबडिन्दा? ऎवरो कॊन्दरु शिबिचक्रवर्तिलाण्टि वाळ्ळ पेर्लु मात्रमे निलिचि उन्नायि. ऎन्दुकु? कीर्तिनि कोरुकॊण्टू अडिगिनवाळ्ळकु लेदनकुण्डा इच्चारु काबट्टि. वाळ्ळनु लोकं ऎप्पटिकी मरिचिपोदु. ऎन्नि यागालु चेस्ते श्रीहरि दर्शनं लभिस्तुन्दि? अन्तटि श्रीमन्नारायणुडु नालाण्टि सामान्युडि दग्गर चेयि चाचाडण्टे अन्तकण्टे भाग्यं वेरे उण्टुन्दा? लक्ष्मीदेवि कॊप्पुमीदा, शरीरं मीदा, भुजाल मीदा नडयाडिन आ श्रीहरि दिव्यहस्तं इप्पुडु किन्द उण्डटं, ना चॆय्यि पैन उण्डटं नाकु मेलुकादा? राज्यं गीज्यं शाश्वतमा? ई शरीरं एमैना अपायं लेनिदा? म. निरयम्बैन निबद्धमैन धरणीनिर्मूलनम्बैन दु र्मरणम्बैन" गुलान्तमैन निजमुन् रानिम्मु कानिम्मु पो हरु" डैनन् हरियैन नीरजभवुं डभ्यागतुण्डैन नौ" दिरुगन्नेरदु नादु जिह्व विनुमा! धीवर्य, वेयेटिकिन्? (8-593) गुरुवर्या! रानी, रानी! नरकं, बन्धनं, नाशनं एदैना रानी! एमैना सरे! ऎव्वरु वच्चिना सरे! ना नालुक अबद्धं आडदु. शुक्राचार्युडिकि सहनं नशिञ्चिन्दि. ऎन्त चॆप्तुन्ना पट्टिञ्चुकोनि बलिचक्रवर्तिपै कोपं कट्टलु तॆञ्चुकुन्दि. ‘नुव्वु त्वरलोने पदवी भ्रष्टुडिवि अवुतावु’ अनि शपिञ्चाडु. अयिना बलिचक्रवर्ति चलिञ्चलेदु. परीक्षिन्महराजा! ऎन्दुको तॆलुसा! आ.वॆ. ब्रदुकवच्चु"गाक बहुबन्धनमुलैन वच्चु"गाक लेमि वच्चु" गाक जीवधनमुलैन जॆडु"गाक पडु"गाक माट" दिरुगलेरु मानधनुलु (8-598) प्राणं पोयिना सरे! मानधनुलु आडिन माटनु तप्परु तॆलुसा? बलिचक्रवर्ति मानधनुडु. अन्दुके माटकु कट्टुबड्डाडु. अष्टम स्कन्धं 114 पोतन भागवतमु इन्तलो बलिचक्रवर्ति भार्य विन्ध्यावळि वच्चिन्दि. कलशन्तो नीळ्ळु तॆच्चिन्दि. आमॆतो कलिसि वामनुडिकि नमस्करिञ्चि अतडि पादालु कडिगि आ नीळ्ळु तलपै जल्लुकॊनि दानं इस्तुन्नाडु बलिचक्रवर्ति. मन्त्रपूर्वकङ्गा जलधार वदुलुतू मूडडुगुल नेलनु धारपोस्तुन्नाडु. शुक्राचार्युडु कमण्डलंलो दूराडु. नीटि धारकु अड्डुपड्डाडु. अदि गमनिञ्चिन वामनुडु ऒक दर्भतो आ कमण्डलं रन्ध्रंलो पॊडिचाडु. अदि शुक्राचार्युडि कण्ट्लो गुच्चुकॊनि अतडि ऒक कन्नु पोयिन्दि. नाटिनुञ्चि शुक्रुडु एकाक्षिगा प्रसिद्धुडय्याडु. भळी! बली! परीक्षिन्महराजा! चूशावा? बलिचक्रवर्ति. वच्चिनवाडु श्रीहरि अनी, दानं इस्ते तनकु नाशनं तप्पदनी तॆलिसी दानं इच्चाडु. अन्तटि दात इङ्कॊकडु ऎक्कडैना उण्टाडा? दानं स्वीकरिञ्चिन वामनुडु प्रीतुडै - ‘बलिचक्रवर्ती! नुव्वु इच्चिन ई मूडडुगुलतो मुल्लोकालनू इच्चिनट्ले सुमा!’ अन्नाडु नव्वुतू. बलिचक्रवर्तिकि अर्थं कालेदु. आश्चर्यपोयाडु. ‘एमिटी पॊट्टिवडुगु माटलु? इलाण्टि बुद्धुलु इतडु पुडुतू नेर्चुकुन्नाडा? पुट्टकमुन्दे नेर्चुकुन्नाडा? अम्मो! इतडि पॊट्टलो इङ्कॆन्नि मायलुन्नायो!’ अनुकुन्नाडु. बलि इच्चिन दानानिकि लोकमे हर्षिञ्चिन्दि. पुष्पवर्षं कुरिसिन्दि. वामनुडु दानं पुच्चुकॊन्नाडो लेदो क्रमङ्गा पॆरिगिपोतुन्नाडु. त्रिविक्रम स्वरूपं शा. इन्तिन्तै वटु" डिन्तयै मऱियु" दानिन्तै नभोवीथिपै नन्तै तोयदमण्डलाग्रमुन कल्लन्तै प्रभाराशिपै नन्तै चन्द्रुनि कन्तयै ध्रुवुनि पैनन्तै महर्वाटि पै नन्तै सत्यपदोन्नतुं डगुचु ब्रह्मण्डान्त संवर्धियै (8-622) 115 वटुडु इन्तिन्तै पॆरुगुतू क्रमङ्गा आकाशान्नी, मेघ मण्डलान्नी, पालपुन्तनु, चन्द्रुण्णी, ध्रुवुण्णी दाटि, महर्लोक, सत्यलोकालनु मिञ्चिपोयि चिवरिकि ब्रह्मण्डमन्त पॆरिगिपोयाडु. अला वामनुडु पॆरिगिपोतुण्टे आकाशंलो उन्न सूर्युडु मॊदट वामनुडिकि गॊडुगुला कनिपिञ्चाडु. आ तरुवात शिरोरत्नंला, तरुवात चॆवि पोगुला, अनन्तरं कण्ठाभरणंला, पिम्मट भुजकीर्तिला, चेति कङ्कणंला कनिपिञ्चाडु. वामनुडु इङ्का पॆरिगाडु. अप्पुडु सूर्युडु वामनुडि नडुमुकु व्रेळ्ळाडे मॊलत्राडु गण्टला कनिपिञ्चाडु. तरुवात कालि अन्दॆला, आ तरुवात पादपीठंला प्रकाशिञ्चाडु. अला पॆरिगिन वामनुडु ऒक अडुगुतो पैलोकाल्नी, मरो अडुगुतो किन्दि लोकाल्नी आक्रमिञ्चाडु. ब्रह्मण्डं पटपटलाडिन्दि. त्रिविक्रमुडु मळ्ळी वामनमूर्तिगा मारिपोयि बलिचक्रवर्ति मुन्दु निलिचि - ‘राजा! मूडो अडुगुकु चोटु ऎक्कड? चूपिस्तावा? असत्य दोषानिकि नरकानिकि पोतावा?’ अन्नाडु. अप्पुडु बलिचक्रवर्ति धैर्यङ्गा तन शिरस्सुनु चूपिस्तू - म. चॆलिये मृत्युवु? चुट्टमे यमुडु? संसेवार्थुले किङ्करुल्? शिललं जेसॆनॆ ब्रह्म दन्नु? धृढमे जीवम्बु? नो चॆल्लरे! चलितम्बौट यॊऱुङ्ग की कपटसंसारम्बु निक्कम्बुगा" दल"चुन् मूढु"डु सत्यदानकरुणा धर्मादिनिर्मूढु"डै (8-647) ‘महनुभावा! मृत्युवेमैना नाकु नेस्तमा? यमुडु चुट्टमा? ई सेवकुलु निजमैनवाळ्ळेना? ब्रह्मदेवुडु नन्नेमन्ना महशिललतो चेशाडा? ई बॊन्दिलो प्राणं शाश्वतमा? चॆक्कुचॆदरनिदा? कादु. अन्दरू ऎप्पुडो ऒकप्पुडु मरणिञ्च वलसिन्दे. तुच्छमैन ई शरीरं कोसं सत्यं, दानं, दय, धर्मं मॊदलैन वाटिनि विडिचिपॆट्टटं अविवेकं. अष्टम स्कन्धं 116 पोतन भागवतमु सी. चुट्टालु दॊङ्गलु सुतुलु ऋणस्थुलु कान्तलु संसार कारणमुलु धनमु लस्थिरमुलु दनु वतिचञ्चल गार्यार्थु लन्युलु गडचु"गाल मायुवु सत्वर मैश्वर्य मतिशीघ्र मनि कादॆ तम तण्ड्रि नतकरिञ्चि मा तात साधुसम्मतु"डु प्रह्लदुण्डु नी पादकमलम्बु नियति" जेसॆ गी. भद्रु" डतनिकि मृतिलेनि ब्रदुकु गलिगॆ वैरुलै कानि तॊल्लि मावारु गान रर्थिवै वच्चि नीवु नन्नडुगु टॆल्ल" बद्मलोचन! मा पुण्य फलमु गादॆ! (8-648) ई चुट्टा लन्दरू दॊङ्गलु. कॊडुकुलु ऋणं उन्नवाळ्ळु. स्र्तीलु संसारानिकि कारकुराळ्ळु. धनं शाश्वतं कादु. शरीरं चञ्चलं. मिगिलिन वाळ्ळन्दरू एदो ऒक अवसरं कोसं वच्चेवाळ्ळे. आयुवु क्षणक्षणानिकी क्षीणिञ्चिपोतू उण्टुन्दि. ऐश्यर्यं चेजारिपोतुन्दि. अन्दुके मा तात प्रह्लदुडु निन्नु सेविञ्चि धन्युडय्याडु. नी अन्तट नुव्वे ना दग्गरकु याचकुडिगा रावटं ना पुण्यङ्काक मरेमिटि? अन्नाडु. अन्तलो प्रह्लदुडु अक्कडिकि वच्चाडु. स्वामिनि दर्शिञ्चि पुलकिञ्चि पोयाडु. बलिचक्रवर्ति भार्य वरुणपाशाललो बन्दीगा उन्न तन भर्तनु चूसि कन्नीरु मुन्नीरैपोयिन्दि. ‘स्वामी! नुव्वु कोरिनदल्ला इच्चाडु कदा? अयिना एमिटिदि?’ अनि अडिगिन्दि. अप्पुडु स्वामि इला सॆलविच्चाडु- ‘नेनु ऎवरिनि अनुग्रहिस्तानो वाळ्ळ ऐश्वर्यान्नि मुन्दु हरिस्तानु. ए गर्वानिकी, इन्द्रियालकू लॊङ्गनिवाण्णे नेनु रक्षिस्तानु. नी भर्त पुण्यात्मुडु. अन्दुके अतण्णि अनुग्रहिञ्चानु. इतडिकि इङ्क ए दुःखमू अण्टदु. सुतल 117 लोकंलो हयिगा उण्टाडु. नेने स्वयङ्गा रक्षिस्तानु’ अण्टू बलिचक्रवर्तिनि सुतलानिकि वॆळ्ळमनि आज्ञापिञ्चाडु. बलिचक्रवर्ति कळ्ळलो आनन्द बाष्पालु स्रविञ्चसागायि. ‘स्वामी! ई दीनुडिपै इन्तटि दयनु चूपिञ्चावा? निन्नु नम्मिनवारिकि ए कष्टमू उण्डदु. अण्टू स्वामिनि स्तुतिस्तू प्रह्लदुडितो कलिसि तन राक्षस परिवारान्नि तीसुकॊनि बलिचक्रवर्ति सुतलानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. राजा! तरवात विष्णुमूर्ति आज्ञप्रकारं शुक्राचार्युडु, आ यागान्नि पूर्तिचेशाडु. विष्णुवु देवेन्द्रुडिकि तम्मुडिगा पुट्टि उपेन्द्रुडै अन्नगारि ऐश्वर्यान्नि तिरिगि प्रसादिञ्चाडु. इलाण्टि सोदरुडु उण्टे ऎलाण्टि अन्नगारिकैना तीरनि कोर्कॆलण्टू उण्टाया? ई वामनावतार चरित्र ऎन्तो पुण्यप्रदमैनदि, सकल शुभालनू कलुगजेस्तुन्दि. मत्स्यावतार कथ राजा! इवन्नी श्रीहरि लीललु नायना! पूर्वकल्पान्तंलो ‘सत्यव्रतुडु’ द्रविड देशानिकि राजुगा उण्डेवाडु. अतडु ऒकरोजु नदिलोनिकि दिगि तर्पणं वदलटं कोसमनि दोसिट्लोकि नीळ्ळु तीसुकुन्नाडु. आ नीळ्ळतोपाटु ऒक चेप अतडि चेतिलोनिकि वच्चिन्दि. दानिनि मळ्ळी नीळ्ळलो विडिचिपॆट्टाडु राजु. अप्पुडा चेप ‘राजा! ई नदिलो उण्टे नाकु मरणं तप्पदु. नाकन्ना पॆद्द चेपलु नन्नु तिनेस्तायि. लेकपोते ए वेटगाडो वलवेसि मरी चम्पेस्ताडु. अन्दुके प्राणभयन्तो नी चेतुल्लोकि वच्चानु. नुव्वेमो रक्षिञ्चकुण्डा- नम्मि वच्चिन नन्नु मळ्ळी नट्टेट्लो मुञ्चेशावु. इदि नीकु भाव्यमा? अनि निलदीसिन्दि. राजु चलिञ्चिपोयाडु. दयतो दानिनि तीसि तन कमण्डलंलो वेसि इण्टिकि वॆळ्ळाडु. मरुनाडु चूसेसरिकि आ चेप कमण्डलं पट्टनन्तगा पॆरिगिपोयिन्दि. दान्नि तीसि ऒक तॊट्टॆलो उञ्चाडु. कास्सेपटिके आ तॊट्टॆ कूडा इरुकैपोयिन्दि. पॆद्ददैपोयिन्दि चेप. ईसारि दान्नि ऒक मडुगुलो उञ्चाडु. अदी सरिपोलेदु दानिकि. आ तरुवात सरस्सुलो उञ्चाडु. अदी पट्टलेदु. अष्टम स्कन्धं 118 पोतन भागवतमु इक चिवरिकि आ चेपनु समुद्रंलो वदिलाडु. अप्पुडा चेप - ‘एमय्या! राजा! इन्तकालं नन्नु कापाडिनवाडिवि इप्पुडु समुद्रंलो वदिलेस्तावा? इक्कड नन्नु ए मॊसलो तिनिवेस्ते एङ्कानु?’ अनि निलदीसिन्दि. आ राजुकु अर्थमैपोयिन्दि. ‘इदि सामान्यमैन चेप कादु. साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे इला वच्चाडु. इदन्ता विष्णुमाय’ अनुकॊनि - ‘स्वामी! एमिटि ई रूपं? इन्दुलोनि परमार्थं एमिटि? अनि अडिगाडु चेतुलु जोडिस्तू. अप्पुडा देवदेवुडु- ‘राजा! इदि कल्पान्तं. प्रळयं राबोतोन्दि. नेटिकि सरिग्गा एडो रोजुन समुद्रंलो ऒक नाव नी दग्गरकु वस्तुन्दि. अप्पुडु नुव्वु ओषधुल्नि तीसुकॊनि आ नावनु अधिरोहिञ्चु. नेनु मत्स्यरूपंलो आ नावनु रक्षिस्तानु’ अनि अदृश्यमैपोयाडु. प्रळयं राने वच्चिन्दि. ब्रह्मदेवुडु निद्रलोनिकि जारुकुन्नाडु. अप्पुडु अतडि मुखाल नुण्डि वेदालु वॆलुवड्डायि. वाटिनि तीसुकॊनि ‘हयग्रीवुडु’ अने राक्षसुडु पारिपोयाडु. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु आ राक्षसुण्णि चम्पि वेदालनु तॆच्चि ब्रह्मदेवुडिकि इच्चाडु. अलागे सत्यव्रतुडिकि चॆप्पिनट्लुगा आ नावनू संरक्षिञ्चाडु. ई सत्यव्रतुडे विवस्वन्तुडिकि (सूर्युडिकि) वैवस्वतुडु अने पेरुतो पुट्टि विष्णुवु दयवल्ल ई कल्पंलो एडव मनुवु अय्याडु. राजा! चूशावुगा! विष्णुमूर्तिनि अर्चिस्ते ऎन्त गॊप्प पदवि अयिना, ऎन्तटि ऐश्वर्यमैना लभिञ्चि तीरवलसिन्दे. पुण्यप्रदमैन ई मत्स्यावतार वृत्तान्तान्नि विन्ना, चदिविना कोरिकलन्नी सिद्धिस्तायि. मोक्ष पदं कूडा लभिस्तुन्दि अन्नाडु शुकयोगीन्द्रुडु. परीक्षित्तु आनन्द पारवश्यंलो ओललाडुतू तल ऊपाडु. b 119 सूतमहर्षि इला विवरिस्तुन्नारु- महर्षुलारा! शुकमहर्षि ईसारि वैवस्वतमनुवु वंश क्रमान्नि चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. वैवस्वतमनुवु वंशं ‘राजा! दक्षुडि कुमार्तॆ अदितिकी, कश्यप प्रजापतिकि ‘आदित्युडु’ अने कुमारुडु जन्मिञ्चाडु. अतडे सूर्यभगवानुडु. इतडिकि सञ्ज्ञ (ईमॆ विश्वकर्म कूतुरु) अने भार्य द्वारा श्राद्धदेवुडु (वैवस्वतुडु) अने पुत्रुडु जन्मिञ्चाडु. इतडु पूर्वजन्मलो, मत्स्यावतारंलो विष्णुवु अनुग्रहिञ्चिन सत्यव्रतुडु अने द्रविडराजु. श्राद्धदेवुडु श्रीहरि अनुग्रहं वल्ल मनुवु अय्याडु. इतडिकि श्रद्ध अने भार्य उन्दि. ईमॆ द्वारा इतडिकि इक्ष्वाकुडु मॊदलैन पदिमन्दि पुत्रुलु कलिगारु. वीरिलो पृषध्रुडु अने ऒक पुत्रुडिकि ऒक विन्त परिस्थिति ऎदुरय्यिन्दि. चॆप्तानु, विनु. पृषध्रुडु तण्ड्रि आज्ञपै कॊन्नि आवुलनु अडविकि तीसुकुवॆळ्ळि मेपुकॊनि वस्तुण्डेवाडु. ऒकरोजु तिरिगि वस्तू उण्टे दारिलो पॆद्द गालिवान वच्चिन्दि. प्रयाणं कष्टमय्यिन्दि. आ रात्रिकि अक्कडे उण्डवलसि वच्चिन्दि. अप्पुडु ऒक पॆद्दपुलि आवुलपै पडिन्दि. दान्नि चम्पि आवुल्नि कापाडालनु कॊन्नाडु पृषध्रुडु. कत्ति दूशाडु. पॊरपाटुन अदि पुलिकि काक ऒक आवुकु तगिलिन्दि. आवु तल तॆगि किन्द पडिपोयिन्दि. आ सङ्गति तॆलिसि वसिष्ठ महर्षि इतण्णि ‘शूद्रुडिवि कम्मनि’ शपिञ्चाडु. नवम स्कन्धं 120 पोतन भागवतमु शापविमोचनं चॆप्पमनि प्राधेयपड्डाडु पृषध्रुडु. दानिकि वसिष्ठुडु ‘नुव्वु ऎवरिनी एमी याचिञ्चकुण्डा दॊरिकिनदानितोने सन्तृप्तिनि पॊन्दि, इन्द्रियाल्नि जयिञ्चि श्रीहरिनि ध्यानं चॆय्यि. नीकु विमुक्ति कलुगुतुन्दि’ अनि अनुग्रहिञ्चाडु. पृषध्रुडु अलागे जीविस्तू ऒक जडुडिला, अडवुल्लोने तिरुगुतू ऒक कारुचिच्चुलो पडि मरणिञ्चि मोक्षान्नि पॊन्दाडु. राजा! वैवस्वत मनुवुकु मरो कुमारुडु शर्याति. इतडि कुमार्तॆ सुकन्य. ईमॆ च्यवन महर्षि आश्रम प्रान्तंलो सञ्चरिस्तू ऒक पुट्ट दग्गरकु वॆळ्ळिन्दि. आ पुट्टलो रॆण्डु ज्योतुलु प्रकाशिस्तू कनिपिञ्चायि. वाटिनि मिणुगुरु पुरुगु लनुकॊनि ऒक कर्रतो पॊडिचिन्दि. कानी अवि च्यवन महर्षि कळ्ळु. आ पुट्टलो उन्नदि आ महर्षे. अतडि कळ्ळ नुण्डि रक्तं कारिन्दि. अला चेसिनन्दु वल्ल शर्याति वॆण्ट उन्न अन्तरङ्गिक भटुल मल मूत्रालु बन्धिञ्चिनट्लु अयिपोयायि. तन कुमार्तॆ तॆलियक चेसिन अपराधं गुरिञ्ची महर्षि इच्चिन शापं गुरिञ्ची तॆलुसुकुन्न शर्याति हुटाहुटिन च्यवन महर्षि वद्दकु वच्चि क्षमिञ्च मनि वेडुकॊन्नाडु. अप्पुडु महर्षि सुकन्यनु तनकु इच्चि विवाहं चेस्ते क्षमिस्तानन्नाडु. शर्याति अलागेनण्टू सुकन्यनु अतडिकिच्चि विवाहं जरिपिञ्चि वॆळ्ळि पोयाडु. कॊन्तकालं तर्वात शर्याति च्यवन महर्षि आश्रमानिकि वच्चाडु. अक्कड तन कुमार्तॆनु, आमॆ प्रक्कने उन्न मरो अन्दमैन युवकुण्णी चूशाडु. अयिते अतडिकि असलु विषयं तॆलियदु. च्यवन महर्षि अश्विनी देवतल अनुग्रहन्तो तन मुसलितनान्नि पोगॊट्टुकॊनि युवकुडैपोयाडु. शर्याति चूसिन युवकुडु च्यवन महर्षे. अदि तॆलियकपोवटंवल्ल तन कुमार्तॆनु अपार्थं चेसुकॊन्नाडु. तॊन्दरपडि निन्दिञ्चाडु. 121 अप्पुडु सुकन्य नव्वुतू असलु विषयं चॆप्पिन्दि. तरुवात च्यवनुडु शर्यातिचेत यागं चेयिञ्चाडु. आ यागंलो अश्विनी देवतलकु सोमपानं चेसे अधिकारान्नि प्रसादिञ्चाडु. शर्यातिकि मुग्गुरु पुत्रुलु. वारिलो ‘आवर्तुडु’ अनेवाडिकि रैवतुडु अने ऒक कुमारुडु कलिगाडु. इतडिकि ककुद्मि मॊदलैन नूरुगुरु पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. रैवतुडिकि रेवति अने ऒक कुमार्तॆ कूडा उन्दि. ब्रह्मदेवुडि आदेशन्तो रेवतिनि बलरामुडिकि इच्चि विवाहं जरिपिञ्चाडु रैवतुडु. राजा! वैवस्वत मनुवु पुत्रुललो ‘नाभागुडु’ अने पुत्रुडु चाला गॊप्पवाडु. इतडि कुमारुडे अम्बरीषुडु. इतडु महभक्तुडु. अम्बरीषुडि कथ अम्बरीषुडु समस्त भूमण्डलानिकी चक्रवर्ति. गॊप्प ऐश्वर्यवन्तुडु. अयिना ए अवलक्षणमू अतडिकि लेदु. ऎप्पुडू श्रीहरिने ध्यानिस्तू, विष्णुभक्तुल्नि सेविस्तू कालं गडुपुतू उण्डेवाडु. अम्बरीषुडि मनस्सु ऎप्पुडू श्रीहरि पादाल मीदे लग्नमै उण्डेदि. विष्णुवुने आराधिस्तू विष्णुभक्तुल्नि कॊलुस्तू, चेसे प्रति पनिनी श्रीहरिके समर्पिस्तू ऎन्तो पवित्रङ्गा जीवनं सागिस्तुन्नाडु. अतडॆन्नि यागालु चेशाडो, ऎन्नि दानालु चेशाडो लॆक्कलेदु. अतडि दृष्टिलो मट्टि, बङ्गारं रॆण्डू ऒकटे. ऒकवैपु राज्यपालन, मरोवैपु श्रीहरि ध्यानं चेस्तू निजमैन राजर्षिला अतडु ऒप्पुतुन्नाडु. अन्तेना? कं. हरियनि सम्भाविञ्चुनु हरियनि दर्शिञ्चु नण्टु नाघ्राणिञ्चुन् हरियनि रुचिगॊन" दलचुनु हरिहरि घनु नम्बरीषु नलवियॊ पॊगडन्. (9-86) राजा! आ अम्बरीषुडु हरि अण्टू माट्लाडताडु. हरि अण्टू दर्शिस्ताडु. नवम स्कन्धं 122 पोतन भागवतमु हरि अण्टू स्पृशिस्ताडु. आघ्राणिस्ताडु. रुचि चूस्ताडु. हरिनाम स्मरण लेकुण्डा एदी चॆय्यडु. अलाण्टि महभक्तुडु काबट्टे श्रीमन्नारायणुडु तन सुदर्शन चक्रान्नि अम्बरीषुडिकि रक्षणगा उण्डमनि पम्पिञ्चाडु. अन्तटि पुण्यात्मुडु ई अम्बरीषुडु. एकादशीव्रतं ऒकसारि अम्बरीषुडु एकादशी व्रतान्नि चेसुकॊण्टुन्नाडु. ऒक संवत्सर कालं चेयालि आ व्रतं. चेशाडु. व्रतं पूर्तिकावस्तोन्दि. अदि कार्तिकमासं. आ मासंलो मूडु रात्रुलु उपवासं उन्नाडु. यमुनानदिलो स्नानं चेसि मधुवनंलो उन्न श्रीहरिकि अभिषेकं चेशाडु. अनेक दानालु चेशाडु. अतिथुलन्दरिकी गॊप्प विन्दुनु एर्पाटु चेसि वाळ्ळन्दरू भोजनालु चेशाक तानु कूडा पारण चेयडानिकि सिद्धपड्डाडु. सरिग्गा अप्पुडु दुर्वास महर्षि अक्कडिकि विच्चेशाडु. अन्त गॊप्प महर्षि तनन्तट तानुगा अतिथिगा रावटन्तो अम्बरीषुडिकि चॆप्पलेनि आनन्दं कलिगिन्दि. महर्षिनी भोजनानिकि आह्वनिञ्चाडु. दुर्वासुडु स्नानं चेसि वस्ताननि काळिन्दी नदिकि बयलुदेरि वॆळ्ळाडु. वॆळ्ळिन महर्षि वस्तेना? अवतल द्वादशि घडियलु मिञ्चिपोतुन्नायि. आलोपे पारण चेयालि. लेकपोते व्रतफलं दक्कदु. अप्पुडु पॆद्दल सूचनमेरकु अम्बरीषुडु तीर्थान्नि मात्रं स्वीकरिञ्चाडु. नीटिनि पुच्चुकुण्टे दोषं उण्डदट. फलितं दक्कुतुन्दि. दुर्वासुडिकोपं तननु पिलिचि तनु राकुण्डा तीर्थान्नि पुच्चुकुन्न अम्बरीषुडिपै पट्टरानि कोपं वच्चिन्दि दुर्वास महर्षिकि. वॆण्टने चकचका वच्चाडु. चुरचुरा चूशाडु. पॆटपॆटमनि पळ्ळु कॊरुकुतू कळ्ळल्लो फॆळफॆळमनि निप्पुलु कुरिपिस्तू ‘चूशारा! ई अम्बरीषुडिकि ऎन्त कण्डकावरं? नन्नु भोजनानिकि पिलिचि नेनु राकुण्डाने तानु पारण चेसि नन्नु अवमानिञ्चाडु’ अनि हुङ्करिञ्चि तन जडल्लो ऒकदान्नि पॆरिकि नेलपै कॊट्टाडु. 123 दानिनुण्डि कृत्य अने राक्षसि पुट्टुकुवच्चि अम्बरीषुडिपैकि लङ्घिञ्चिन्दि. अप्पुडु अम्बरीषुडिकि रक्षणगा उन्न सुदर्शन चक्रं अड्डुपडि, आ कृत्यनु ऒक्क क्षणंलोने नामरूपालु लेकुण्डा चेसि दुर्वासुडि वॆण्टपडिन्दि. अनुकोनि ई परिणामानिकि दुर्वास महर्षि हताशुडैपोयाडु. भयन्तो गजगज वणिकिपोयि, परुगुलु पॆट्टाडु. सुदर्शनं अतडि वॆण्टबडिन्दि. दुर्वासुडु ऎक्कडिकि वॆळ्ते अक्कडिकि वस्तोन्दि आ सुदर्शन चक्रं. एं चेयालो पालुपोक दुर्वासुडु ब्रह्मदेवुण्णि आश्रयिञ्चाडु. ब्रह्मदेवुडु ना वल्ल कादन्नाडु. शिवुडि काळ्ळु पट्टुकुन्नाडु. शिवुडू सहकरिञ्चलेनन्नाडु. चिवरिकि श्री महविष्णुवुने शरणु वेडाडु. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु दुर्वास महर्षितो ‘महर्षी! नेनु भक्तुलकु अधीनुण्णि. बुद्धिमन्तुलैन ना भक्तुलु ना मनसुनु कॊल्लगॊट्टिपोतुण्टारु. बलमैन तीगलतो ऒक मत्तगजान्नि बन्धिञ्चिनट्लु नन्नु भक्ति अने लतलतो बन्धिस्तुण्टारु. नेनु आ बन्धनाल्लो चिक्कुकॊनि ऎटू वॆळ्ळलेनु. नाकु वाळ्ळण्टे अन्त प्रेम! आ.वॆ. नाकु मेलु"गोरु ना भक्तु"डगुवा"डु भक्तजनुल केन परमगतियु भक्तु" डॆन्दु" जनिन" बऱतॆन्तु वॆनुवॆण्ट गोवुवॆण्ट" दगुलु कोडॆभङ्गि. (9-119) नाकू, ना भक्तुलकू सम्बन्धं विडदीयरानिदि. निजमैन ना भक्तुडु ना मेलुने कोरताडु. ना भक्तुलकु दिक्कु नेने! काबट्टि ना भक्तुडु ऎक्कडकु वॆळ्ते नेनू अक्कडिके वॆळ्तानु. ऎलागो तॆलुसा? आवु वॆनक परिगॆत्ते कोडॆलागा. आ.वॆ. तनुवु मनुवु विडिचि तनयुल" जुट्टाल नालि विडिचि सम्पदाळि विडिचि नन्नॆ कानि यन्य मॆन्नडु नॆऱु"गनि वारि विडुव नॆट्टिवारिनैन (9-121) नवम स्कन्धं 124 पोतन भागवतमु अन्निण्टिनी विडिचिपॆट्टि नेनु तप्प वेरे इङ्केमी तॆलियनि वाळ्ळनु - वाळ्ळु ऎलाण्टिवाळ्ळैना नेनु विडिचिपॆट्टनु. कं. साधुल हृदयमु नायदि साधुल हृदयम्बु नेनु, जगमुलनॆल्लन् साधुल नेन यॊऱुङ्गुदु साधु लॆऱुङ्गुदुरु नादु चरितमु विप्रा! (9-123) मञ्चिवारि हृदयं नादे! नेने वाळ्ळ हृदयं. नेनेण्टो वाळ्ळकु तॆलुसु. वाळ्ळेण्टो नाकु तॆलुसु. तपस्सु, विद्य, सद्र्बाह्मणुलकु मुक्तिनि कलिगिस्तायि. अवे चॆड्डवारिकि कीडुनु कलिगिस्तायि. साधुजनुल्लो ना तेजस्सु उण्टुन्दि. आ तेजस्से साधुवुल्नि बाधिञ्चेवारिनि शिक्षिस्तुन्दि. काबट्टि निन्नु रक्षिञ्चवलसिनवाडु अम्बरीषुडे. वॆळ्ळु. अतण्णे आश्रयिञ्चु’ अन्नाडु. दुर्वास महर्षि गत्यन्तरं लेक वच्चि अम्बरीषुडि काळ्ळपै पड्डाडु. अम्बरीषुडु दयामयुडु. सुदर्शन स्वामिनि शान्तिम्पजेयडं कोसं भक्तितो स्तुतिञ्चाडु. सुदर्शनुडु प्रसन्नुडय्याडु. दुर्वासुण्णि विडिचि अक्कड नुण्डि वॆळ्ळिपोयाडु. दुर्वास महर्षि बतुकु जीवुडा! अनुकॊण्टू अम्बरीषुडितो ‘राजा! नाकु पॆद्द उपकारं चेशावु. ना तप्पु मन्निञ्चावु. नी भक्ति, विनयं, पॆद्दलपट्ल नीकु गल गौरवं साटिलेनिवि सुमा! नी करुण अनन्य सामान्यमैनदि. म. ऒक माटॆव्वनि पेरु कर्णमुललो नॊय्यारमै सोकिनन् सकलाघम्बुलु पल्लटिल्लि तॊल"गुन् सम्भ्रान्तितो नट्टि स त्सुकरुन् मङ्गळतीर्थपादु हरि विष्णुन् देवदेवेशु" दा नकलङ्कस्थिति गॊल्चु भक्तुलकु लेदड्डम्बु राजाग्रणी! (9-142) ओ राजा! ऒक्कसारि ऎवरि पेरु चॆवुलकु सोकगाने समस्त पापालू पटापञ्चलै पोतायो अटुवण्टि भक्त सुकरुडू, मङ्गळकरमैन तीर्थान्नि पादाललो कलिगि उन्नवाडू अयिन विष्णुमूर्तिनि स्वच्छङ्गा कॊलिचे 125 नीलाण्टि विष्णुभक्तुलकु तिरुगुलेदनि निरूपिञ्चावु. नी कीर्ति चिरस्थायिगा निलिचि पोतुन्दि’ अनि आशीर्वदिञ्चि, आतिथ्यं स्वीकरिञ्चि तृप्तिगा वॆळ्ळिपोयाडु दुर्वास महर्षि. कं. हरि" गॊल्चुचुण्डुवारिकि" बरमेष्ठि पदम्बु मॊदलु पद भोगम्बुल् नरकसममुलनु तल"पुन धरणीराज्यम्बुतोडि तगुलमु मानॆन् (9-150) ‘हरिनि सेविञ्चे वारिकि ब्रह्मलोकन्तो सह समस्त लोकालू नरकालतो समानं’ अने भावनतो अम्बरीषुडु राज्यम्पै मोहन्नि त्यजिञ्चि, आ राज्य भारान्नि कॊडुकुलकु अप्पगिञ्चि श्रीहरि कटाक्षं कोसं तपस्सु चेसुकोवडानिकि अडवुलकु वॆळ्ळिपोयाडु. श्रीहरिनी, श्रीहरि भक्तुल्नी सेविस्तू मोक्षान्नि पॊन्दाडु. राजा! ई परम भक्तुडैन अम्बरीषुडि चरित्रनु विन्ना, चदिविना, कीर्तिञ्चिना समस्त दोषालू तॊलगिपोयि पुण्यलोकालु लभिस्तायि. इक इक्ष्वाकु वंशं गुरिञ्चि विवरिस्तानु विनु. इक्ष्वाकु वंश क्रमं ऒकरोजु मनुचक्रवर्तिकि तुम्मु वच्चिन्दि. अतडि मुक्कुपुटाल नुण्डि इक्ष्वाकुवु जन्मिञ्चाडु. इतडे सूर्यवंशानिकि राजु अय्याडु. इतडिकि वन्दमन्दि पुत्रुलु. वारिलो विकुक्षि, निमि, दण्डकुडु प्रमुखुलु. इक्ष्वाकु महराजु अष्टका श्राद्धं चेयालनि सङ्कल्पिञ्चाडु. अन्दुकु कॊन्त मांसं कावालि. दानिनि तीसुकुरावडानिकि विकुक्षि अडविकि वॆळ्ळाडु. अक्कड अतडिकि बागा आकलिवेसिन्दि. ऒक कुन्देलुनु चम्पि दानि मांसान्नि कॊन्त तानु तिनि, मिगिलिनदान्नि यागं कोसं तीसुकुवच्चाडु. ऎङ्गिलिमांसं (उच्छिष्टं) श्राद्धानिकि पनिकिरादन्नाडु वशिष्ठ महर्षि. तण्ड्रिकि कोपं वच्चिन्दि. विकुक्षिनि तन राज्यंलो उण्डवद्दन्नाडु. विकुक्षि देशं विडिचि वॆळ्ळिपोयि, योगमार्गंलो शरीरान्नि त्यजिञ्चाडु. कुन्देलु मांसं तिन्नन्दुवल्ल इतडिकि शशादुडु अनि पेरु वच्चिन्दि. विकुक्षि कुमारुडु पुरञ्जयुडु. राक्षसुल्नि संहरिञ्चडं कोसं श्रीमन्नारायणुडु नवम स्कन्धं 126 पोतन भागवतमु पुरञ्जयुडिलो आवहिञ्चि उन्नाडु. इन्द्रुडु आम्बोतुगा माराडु. आ आ"बोतु ककुत्स्थमु (मूपु) मीद ऎक्कि पुरञ्जयुडु राक्षसुल्नि संहरिञ्चाडु. अन्दुके इतडिकि अमरेन्द्र वाहनुडु, ककुत्स्थुडु अने पेर्लु वच्चायि. पुरञ्जयुडि कुमारुडु अनेनसुडु. इतडि कुमारुडु पृथुवु. कॊन्नि तराल तर्वात ई वंशंलोने कुवलयाश्वुडु जन्मिञ्चाडु. इतडु बृहदश्वुडि कुमारुडु. इतडि 21 वेल मन्दि कुमारुललो मुग्गुरु तप्प अन्दरू दुन्दुडु अने राक्षसुडिवल्ल मरणिञ्चारु, मरणिञ्चगा मिगिलिन वाळ्ळु दृढाश्वुडु, कपिलाश्वुडु, भद्राश्वुडु मात्रमे. मान्धातृ चक्रवर्ति दृढाश्वुडि वंशंवाडैन युवनाश्वुडु तन वन्दमन्दि भार्यलतो यज्ञं चेशाडु. आ यज्ञानिकि फलङ्गा इतडिकि ‘मान्धात’ अने कुमारुडु जन्मिञ्चाडु. मान्धात चाला गॊप्प चक्रवर्ति. अनेक यागालु चेशाडु. श्रीहरिनि मॆप्पिञ्चाडु. अतडि भार्य बिन्दुमति. पुरुकुत्सुडु, अम्बरीषुडु, मुचुकुन्दुडु कुमारुलु. वीळ्ळेकाक 50 मन्दि पुत्रिकलु. सौभरि अने महर्षि ई कन्यलनु विवाहं चेसुकुन्नाडु. अतडि तपस्सु मॊत्तं व्यर्थमयिन्दि. चिवरिकि तप्पु तॆलुसुकॊनि मळ्ळी घोरमैन तपस्सु चेसि मुक्तिनि पॊन्दाडु. अतडि भार्यलू अतडिने अनुसरिञ्चारु. मान्धात रॆण्डो कॊडुकु पुरुकुत्सुडु नागकन्य अयिन नर्मदनु पॆळ्ळि चेसुकुन्नाडु. इतडि वारसुडे सत्यव्रतुडु. सत्यव्रतुडिकि त्रिशङ्कुडु अनि पेरु. विश्वामित्र महर्षि प्रभावन्तो बतिकि उण्डगाने स्वर्गानिकि वॆळ्ळाडु. देवतलु इतण्णि रानिव्वलेदु. विश्वामित्रुडु इतण्णि आकाशंलोने निलिपाडु. इतडि कॊडुके हरिश्चन्द्रुडु. हरिश्चन्द्रुडि चेत असत्यमाडिञ्चालनि विश्वामित्रुडु ऎन्तगानो हिंसिञ्चाडु कानी हरिश्चन्द्रुडु असत्यमाडलेदु. इतडि सत्यनिष्ठकु मॆच्चि विश्वामित्रुडु हरिश्चन्द्रुडिकि दिव्य ज्ञानान्नि बोधिञ्चाडु. 127 राजा! ई वंशंलोने ‘सगरुडु’ अने चक्रवर्ति उण्डेवाडु. इतडि तण्ड्रि बाहुकुडु. इतडु कडुपुलो उण्डगा इतडि सवति तल्लुलु इतडि तल्लिकि विषं पॆट्टारु. आ विषं इतडिनि एमी चेयलेकपोयिन्दि. पैगा गरं (विषं) तो पाटुगा जन्मिञ्चि ‘सगरुडु’ अने प्रसिद्धिनि पॊन्दाडु. इतडिकि सुमति, केशिनि अनि इद्दरु भार्यलु. सगर पुत्रुलु राजा! सगरुडु अश्वमेध यागं चेस्तू यागाश्वान्नि विडिचिपॆट्टाडु. आ अश्वं कोसं वॆळ्ळारु सगर पुत्रुलु 60 वेल मन्दि. आ अश्वं पाताळ लोकंलो कपिल महर्षि पक्कने उन्दि. आ महर्षे ई अश्वान्नि दाचिपॆट्टाडनि अतडिपैकि दूकारु वीळ्ळन्ता. आ महर्षि कोपाग्निकि बलै भस्ममैपोयारु. सगर पुत्रुलु सुमति सन्तानं. केशिनिकि असमञ्जसुडु अने कुमारुडु उन्नाडु. अतडिकि कॊडुकु अंशुमन्तुडु. तन मनुमडैन अंशुमन्तुण्णि यागाश्वं कोसं पम्पिञ्चाडु सगरुडु. अंशुमन्तुडु पाताळानिकि वॆळ्ळि कपिल महर्षिनि मॆप्पिञ्चि अश्वान्नि तीसुकुवच्चाडु. सगरुडु यागं पूर्ति चेशाडु. गङ्गाजलं भस्मम्पै प्रवहिस्ते सगर पुत्रुलकु शापविमोचनं कलुगु तुन्दनि कपिल महर्षि चॆप्पाडु. आंशुमन्तुडु प्रयत्निञ्चाडु कानी अतडि कोरिक तीरकुण्डाने मरणिञ्चाडु. इतडि कुमारुडु दिलीपुडु. दिलीपुनि कुमारुडु भगीरथुडे गङ्गनु पाताळं वरकू प्रवहिम्पजेसि सगर पुत्रुलकु शाप विमोचनं कलिगिञ्चाडु. कल्माषपादुडु राजा! भगीरथुडि तर्वात ई वंशंलो चॆप्पुकोदगिन चक्रवर्ति कल्माषपादुडु. इतडि असलु पेरु सुदासुडु. ऒकरोजु वेटकु वॆळ्ळि अक्कड ऒक राक्षसुण्णि संहरिञ्चि, अतडि तम्मुण्णि विडिचिपॆट्टाडु. वाडु इतडिपै पगबट्टि इतडि दग्गरे मारुरूपंलो वण्टवाडिगा चेराडु. नवम स्कन्धं 128 पोतन भागवतमु ऒकरोजु वसिष्ठ महर्षिकि नरमांसान्नि वण्डि वड्डिञ्चाडु आ वण्टवाडु. दानिकि आग्रहिञ्चिन वशिष्ठुडु राजुनु राक्षसुडिवि कम्मनि शपिञ्चाडु. राजु कूडा तिरिगि वशिष्ठुण्णि शपिञ्चडं कोसं चेतिलोनिकि नीळ्ळु तीसु कुन्नाडु. कानी अतडि भार्य वद्दनि वारिञ्चटन्तो आगिपोयाडु. चेतिलो उन्न मन्त्रिञ्चिन नीळ्ळनु ऎक्कड पोयालो तॆलियक तन पादालपैने चल्लुकॊनि कल्माषपादुडिगा प्रसिद्धि चॆन्दाडु. नल्लनि पादालतो राक्षसुडिगा मारि अडवुल्लो तिरुगुतू उण्डेवाडु. ऒकटे आकलि. ऎदुरुगा ब्राह्मण दम्पतुलु. वारिलो भर्तनु पट्टुकॊनि तिनबोयाडु कल्माषपादुडु. अप्पुडा ब्राह्मण स्र्ती - कं. मानुषदेहमु गलुगुट भूनायक! दुर्लभम्बु पुट्टिन मी"दन् दानमु परोपकारमु भूनुत कीर्तियुनु वलदॆ पुरुषुनकॆन्दुन् (9-243) ‘ओ राजा! मानव देहं लभिञ्चटमे कष्टं. मनिषै पुट्टाक दानगुणमु, परोपकार बुद्धी, गॊप्प कीर्ति उण्डालि कदा! नी वंशं ऎन्त गॊप्पदो नाकु तॆलुसु. ब्राह्मणुलनु दैवङ्गा कॊलिचे सूर्यवंशंलो पुट्टि, इप्पुडी अघायित्यानिकि ऒडिगडतावा? नीकें कावालो चॆप्पु. नेनु वण्डि वड्डिस्तानु. नन्नु नी चॆल्लॆल्नि अनुको-कादण्टावा? रा! मुन्दु नन्नु चम्पुकु तिनु’ अन्दि. इन्त चॆप्पिना अतडि मनस्सु मारितेना? राक्षसुडु कदा! अति जुगुप्सा करङ्गा ब्राह्मणुडिनि अतडि भार्य कळ्ळमुन्दे तिनिवेशाडु कल्माषपादुडु. अन्दुका ब्राह्मण स्र्ती चलिञ्चिपोयिन्दि. कन्नुल्लो निप्पुलु कुरिपिस्तू ‘राजा! कामार्त नैन नाकु ना भर्ते सर्वस्वं. अटुवण्टि ना भर्तनु क्रूरङ्गा चम्पि तिन्नावु काबट्टि नुव्वु स्र्तीलनु कलिशावो वॆण्टने मरणिस्तावु! अनि शपिञ्चि तानू अग्निप्रवेशं चेसिन्दि. राजा! ई सूर्यवंशंलोने खट्वाङ्गुडु, रघुवु, अजुडुलाण्टि ऎन्दरो गॊप्प चक्रवर्तुलु जन्मिञ्चारु. वारिलो अजमहराजु कुमारुडु दशरथुडु. 129 दशरथुडि पुत्रुडे श्रीरामचन्द्रुडु. देवतल कोरिकपै साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे श्रीरामुडिगा अवतरिञ्चि रावणासुरुण्णि संहरिञ्चाडु. आ वृत्तान्तं चॆबुतानु विनु. श्रीराम चरित्र तूर्पुदिक्कुन निण्डु चन्द्रुडु उदयिञ्चिनट्लुगा कौसल्यादेवि गर्भंलो श्रीरामचन्द्रुडु अवतरिञ्चाडु. बाल्यंलोने तण्ड्रि आज्ञनु शिरसावहिस्तू विश्वामित्रुडिवॆण्ट नडिचाडु. ताटकनू, सुबाहुवुनू संहरिञ्चि, मारीचुण्णि तरिमिकॊट्टि, विश्वामित्रुडि यागान्नि संरक्षिञ्चाडु. मिथिलकु वॆळ्ळाडु. शिवधनुवुनु अवलीलगा विरिचाडु. विरिचि - कं. भूतल नाथु"डु रामु"डु प्रीतुण्डै पॆण्ड्लियाडॆ" बृथुगुणमणिसं घातन् भाग्योपेतन् सीतन् मुखकान्तिविजितसितखद्योतन्. (9-263) प्रीतुडै, गॊप्प गुणालकु नॆलवैनदी, मुखकान्तिलो चन्द्रुण्णि जयिञ्चिनदी भाग्यवन्तुरालू अयिन सीतनु पॆळ्ळाडाडु. तिरिगि अयोध्यकु वस्तू दारिलो परशुरामुडि गर्वान्नि अणिचि वेशाडु. तण्ड्रि आज्ञनु तलदाल्चि, सीतालक्ष्मण समेतुडै अडवुलकु वॆळ्ळाडु. दण्डकारण्यंलो निवसिञ्चाडु. रावणुडि चॆल्लॆलु शूर्पणख कामन्तो वच्चि श्रीरामुडिमीद पडिन्दि. अप्पुडु लक्ष्मणुडु आमॆ मुक्कु चॆवुलु कोसि बुद्धि चॆप्पाडु. रगिलिपोयिन्दि शूर्पणख. वॆळ्ळि खरदूषणादि राक्षसुल्नि रॆच्चगॊट्टिन्दि. श्रीरामुडि मीदिकि उसिगॊल्पिन्दि. वाळ्ळन्दरिनी श्रीरामुडु तन बाणाग्नितो भस्मं चेशाडु. शूर्पणख वॆळ्ळि ईसारि तन गोडु रावणुडिकि चॆप्पुकॊन्दि. सीत अन्द चन्दालनु पॊगिडि, अतडु सीतपै मनसु पडेला चेसिन्दि. नवम स्कन्धं 130 पोतन भागवतमु रावणुडु कदिलाडु, मारीचुण्णि बङ्गारु लेडिगा पम्पि, रामलक्ष्मणुलु लेनि समयञ्चूसि सीतादेविनि अपहरिञ्चाडु. श्रीरामुडु मारीचुण्णि चम्पि तिरिगि वच्चाडु. चूस्ते सीत कन्पिञ्चलेदु. सीतकोसं परितपिस्तू अन्वेषण प्रारम्भिञ्चारु श्रीरामलक्ष्मणुलु. सीतादेविनि रावणासुरुडु तीसुकुपोतुण्टे चूसि आकाशमार्गंलो अड्डु तगिलाडु जटायुवु. रावणुडु जटायवु रॆक्कल्नि क्रूरङ्गा कत्तितो खण्डिञ्चाडु. श्रीरामुडु सीतनु वॆदुकुतू जटायुवुनु कलिशाडु. तनकोसं प्राणालु अर्पिञ्चिन आ जटायुवुकु अन्त्यक्रियलु ताने निर्वहिञ्चाडु. तर्वात ऋष्यमूक पर्वतानिकि चेरुकॊनि अक्कड सुग्रीवुण्णि कलिशाडु. अतडिकि अभयमिच्चि ऒके ऒक्क बाणन्तो वालिनि संहरिञ्चाडु. सुग्रीवुडि सहयन्तो सीतान्वेषण कोसं वानरुल्नि पम्पाडु. वारितो हनुमन्तुडु समुद्रान्नि दाटि सीतनु सन्दर्शिञ्चाडु. तिरिगि वस्तू अक्षकुमारादि राक्षसुल्नि संहरिञ्चि, लङ्ककु निप्पण्टिञ्चि मरी वच्चाडु. श्रीरामुडु वानरसैन्यन्तो लङ्कानगरानिकि बयलुदेराडु. समुद्रम्पै सेतुवु निर्मिञ्चि दान्नि दाटाडु. रावणुडि सोदरुडु विभीषणुडु वच्चि श्रीरामुण्णि शरणुवेडाडु. श्रीरामुडु अतडिकि अभयमिच्चाडु. विभीषणुडि सूचनलतो श्रीरामुडु लङ्कानगरंलोनिकि वानरसैन्यन्तो प्रवेशिञ्चाडु. युद्धं भीकरङ्गा सागुतोन्दि. कुम्भ, निकुम्भ, धूम्राक्ष, विरूपाक्ष, सुरान्तक, दुर्मुख, प्रहस्तादि महवीरुलु राक्षससैन्यंलो उन्नारु. इटुपक्क वानरसैन्यंलो सुग्रीव, हनुमत्, पनस, गज, गवय, गन्ध मादन, नील, अङ्गद, कुमुद, जाम्बवदादि अरिवीरभयङ्करुलु उन्नारु. लक्ष्मणुडु अतिकायुण्णि मट्टुपॆट्टाडु. रामचन्द्रुडु कुम्भकर्णुण्णि संहरिञ्चाडु. 131 लक्ष्मणुडु मेघनादुण्णी संहरिञ्चाडु. राक्षसवीरुलन्दरू ऒक्कॊक्करू रालिपोवडन्तो रावणुडे नेरुगा श्रीरामुडितो युद्धानिकि तलपड्डाडु. श्रीरामुडु दिव्यरथान्नि अधिरोहिञ्चि - म. चपलत्वम्बुन डा"गि हेममृगमुन् सम्प्रीति" बुत्तॆञ्चुटो कपट ब्राह्मणमूर्तिवै यबल ना कान्तारमध्यम्बुनं दपलापिञ्चुटयो मदीयशित दिव्यामोघ बाणाग्नि सं तपनं बेगति नोर्चुवा"डवु दुरन्तं बॆन्तयुन् रावणा! (9-300) ओ रावणा! नातो युद्धं अण्टे दॊङ्गलागा दाक्कॊनि बङ्गारु लेडिनि पम्पिञ्चडं अनुकुन्नावा? दॊङ्ग ब्राह्मणवेषन्तो वच्चि ऒक अबलनु मोसं चॆय्यडमनुकुन्नावा? इप्पुडु ना बाणाग्निज्वाललकु ऎला तट्टुकुण्टावो चूस्तानु. नुव्वु चेसिन पापालकु यमुडिदाका ऎन्दुकु? इप्पुडे इक्कडे अन्दरू चूस्तुण्डगाने निन्नु चम्पुतानु’ अनि प्रळयाग्निलाण्टि बाणान्नि प्रयोगिञ्चाडु. आ बाणं रावणुडि हृदयान्नि चील्चुकॊनि वच्चिन्दि. अतडि पञ्च प्राणालू अनन्तवायुवुल्लो कलिसिपोयायि. रावणुडि मरणवार्त विन्न अन्तःपुरं स्र्तीलु लबोदिबोमण्टू युद्ध भूमिकि वच्चारु. वारिलो रावणुडि पट्टपुराणि मण्डोदरि कूडा उन्दि. आमॆ रावणुडि कळेबरान्नि चूसि विलपिस्तू - ‘ह! प्राणनाथा! मह मह देवताश्रेष्ठुल्नि सैतं गॆल्चिन नुव्वु ऒके ऒक्क मन्मथुडिकि ओडिपोयावे! श्रीरामुडि भार्यनु ऎन्दुकु तॆच्चावो! तप्पनि चॆप्पिना विन्नावु कादे! इप्पुडिला कालानिकि वशमै नेलरालिपोयावु. इप्पुडु नेनू अनाथने, लङ्कानगरमू अनाथे’ अण्टू कन्नीरुमुन्नीरय्यिन्दि. विभीषणुडु रावणुडिकि दहनक्रियलु निर्वहिञ्चाडु. श्रीरामुडु सीतनु अग्निप्रवेशं चेयिञ्चि, आमॆलो ए दोषमु लेदनि लोकानिकि प्रकटिञ्चि तन इल्लालिगा स्वीकरिञ्चाडु. नवम स्कन्धं 132 पोतन भागवतमु विभीषणुडिकि लङ्कासाम्राज्य पट्टाभिषेकं चेसि, सीतालक्ष्मणसमेतुडै पुष्पक विमानम्पै नन्दिग्रामानिकि विच्चेशाडु श्रीरामचन्द्रुडु. नन्दिग्रामंलो भरतुडितोपाटू अक्कड उन्न महर्षुलू, ब्राह्मणुलू, प्रजलू अन्दरू श्रीरामुण्णि दर्शिञ्चारु. आनन्दंलो उब्बितब्बिब्ब्य्यारु. सुग्रीवुडु, विभीषणुडु रॆण्डुवैपुला विञ्जामरलु वीस्तुण्टे श्रीरामुडिकि हनुमन्तुडु तॆल्लगॊडुगु पट्टाडु. भरतुडु श्रीरामपादुकल्नि चेत धरिञ्चि वच्चाडु. शत्रुघ्नुडु विल्लु तीसुकुवच्चाडु. लक्ष्मणुडु सेवकुडै दारि चूपु तुन्नाडु. सीत जलपात्रतो वॆण्ट नडिचिन्दि. अङ्गदुडु काञ्चनखड्गान्नि जाम्बवन्तुडु बङ्गारुडालुनू धरिञ्चि श्रीरामुण्णि सेविस्तुन्नारु. अला श्रीरामचन्द्रुडु समस्त ग्रहलचेत सेविञ्च बडुतुन्न पूर्णचन्द्रुडिला अयोध्यानगरानिकि विच्चेशाडु. अयोध्यलोनि प्रजलु श्रीरामुडिकि घनस्वागतं पलिकारु. भर्त राककु करिगिपोये भार्यला आ पुरं एनुगुल मदजलन्तो तडिसिपोयिन्दि. सर्वाङ्ग सुन्दरङ्गा मुस्ताबय्यिन्दि. श्रीरामुडु राजमार्गंलो नडुस्तुन्नाडु. अप्पुडु श्रीरामुण्णि अतडि परिवारान्नि चूस्तू मेडल मीद उन्न स्र्तीलु कळ्ळु इन्तिन्त चेसुकॊनि - म. इत"डे रामनरेन्द्रु" डी यबल का यिन्द्रारि खण्डिञ्चॆ न ल्लत"डे लक्ष्मणु" डात"डे कपिवरुं डा पॊन्तवा"डे मरु त्सुतु" डा चॆङ्गट ना विभीषणु" डटञ्चुं जेतुलं जूपुचुन् सतुलॆल्लन् बरिकिञ्चि चूचिरि पुरीसौधाग्रभागम्बुलन्् (9-325) ‘इतडे! रामचन्द्रुडु! अदुगो सीत! ईमॆकोसमे श्रीरामुडु आ रावणुण्णि संहरिञ्चाडु. अल्लडुगो! अतडे लक्ष्मणुडु, अडुगो सुग्रीवुडु, आ पक्क नुन्नाडे! अतडे हनुमन्तुडु. आ प्रक्कन उन्नाडे अतडे विभीषणुडु.’ अनि चॆप्पुकॊण्टुन्नारु. श्रीरामुडु राजप्रासादंलोनिकि प्रवेशिञ्चाडु. तल्लुलकु नमस्करिञ्चाडु. पण्डितुलकु विनम्रुडय्याडु. स्नेहितुल्नी सोदरुल्नी आदरङ्गा कौगिलिञ्चु 133 कॊन्नाडु. मन्त्रुल्नी, सेवकुल्नी मन्नन चेशाडु. वाळ्ळन्दरिकी पोयिन प्राणालु तिरिगिवच्चिनट्लुय्यिन्दि. तरुवात वसिष्ठुलवारि आदेशानुसारं शास्र्तोक्तङ्गा श्रीरामचन्द्र प्रभुवुकु पट्टाभिषेकं जरिगिन्दि. राजा! श्रीरामुडु प्रजारञ्जकङ्गा परिपालन सागिञ्चाडु. कन्नतण्ड्रिला श्रीरामुडु तमनु रक्षिस्तुण्टे प्रजलु तम सॊन्त तण्ड्रुल्नि सैतं मर्चिपोयारु. सुखशान्तुलतो वर्थिल्लारु. श्रीरामचन्द्रुडु लोकोत्तर गुणसम्पन्नुडु. भगवन्तुडु, मरो विशेषं चॆप्पना? तननु गुरिञ्चि ताने यागालु चेसुकॊन्न महत्मुडु यागं चेसि ब्राह्मणुलकु समस्त राज्यान्नि दानं चेशाडु. अन्तटि गॊप्पदात श्रीरामचन्द्रुडु तिरिगि आ राज्यान्नि वारि प्रार्थन मेरके स्वीकरिञ्चि वारिकि प्रतिनिधिगा परिपालिञ्चाडु. लोकं सुभिक्षङ्गा उन्दि. ऒक रोजु श्रीरामुडु प्रजाभिप्राय सेकरणकोसं मारुवेषंलो नगर सञ्चारं चेस्तुन्नाडु. ऒकचोट ऒक भार्याभर्तल गॊडव जरुगुतोन्दि. अन्दुलो भर्त - ‘परायिवाडि इण्ट्लो उण्डि वच्चिन इल्लालिनि तिरिगि चेपट्टाडानिकि नेनेमैना वॆर्रि रामुण्णनुकुन्नावा? मारुमाट्लाडकुण्डा पो!’ अन्नाडु भार्यतो. आ माटलु विनि रामुडु मारुमाट्लाडकुण्डा अन्तःपुरानिकि वच्चाडु. गूढचारुल्नि पम्पि तॆलुसुकॊनि रम्मन्नाडु. ई विषयान्ने नगरं मॊत्तं कोडै कूस्तोन्दनि तॆलिसिन्दि. सीतकु इदेमी चॆप्पकुण्डा आ रात्रिकि रात्रे आमॆनु वाल्मीकि पर्णशाल दग्गरकु पम्पिञ्चाडु. सीत अप्पटिके गर्भवति, वाल्मीकि आश्रमंलोने इद्दरु पुत्रुलकु जन्मनिच्चिन्दि सीत. वाल्मीकि महर्षि वारिकि कुशुडु, लवुडु अनि नामकरणं चेशाडु. अक्कड लक्ष्मणुडिकि अङ्गदुडु, चन्द्रकेतुडु, भरतुडिकि तक्षुडु, पुष्कलुडु, शत्रुघ्नुडिकि सुबाहुडु, श्रुतसेनुडु अने पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. भरतुडु दिग्विजययात्र चेशाडु. शत्रुघ्नुडु लवणासुरुण्णि संहरिञ्चि मधुवनंलो मधुपुरान्नि निर्मिञ्चाडु. नवम स्कन्धं 134 पोतन भागवतमु कॊन्तकालं गडिचिन्दि. वाल्मीकि महर्षि आश्रमंलो कुशलवुलु पॆरिगि पॆद्दवाळ्ळवुतुन्नारु. वाल्मीकि वद्द सकलविद्यलू अभ्यसिञ्चारु. अनेक सभल्लो रागयुक्तङ्गा श्रीरामकथनु गानं चेस्तुन्नारु. वारि गानानिकि लोकं परवशिञ्चिपोतोन्दि. अला गानं चेस्तू ऒकरोजु श्रीरामुडि यज्ञशालकु वच्चारु कुशलवुलु. अक्कड कूडा तम गानामृतन्तो श्री रामचन्द्रुडितो सह अन्दर्नी मन्त्र मुग्धुल्नि चेशारु. श्रीरामुडु वाळ्ळनु चूसि अमितानन्दन्तो - आ.वॆ. चिन्नयन्नलार! शीतांशुमुखुलार! नळिनदळविशालनयनुलार! मधुरभाषुलार! महिमी"द नॆव्वरु तल्लि दण्ड्रि मीकु धन्युलार! (9-353) ‘पिल्ललारा! चन्द्रुडितो समानमैन मुखालू, पद्मपत्राललाण्टि विशाल नेत्रालू, मधुरमैन वाक्कुलू कल पसिकूनलारा! मिम्मल्नि कन्न तल्लिदण्ड्रुलु ऎन्तो अदृष्टवन्तुलु कदा! आ धन्य जीवुलॆवरो कास्त चॆप्पण्डि’ अनि अडिगारु. कुशलवुलु तामु वाल्मीकि महर्षि शिष्युलमनी, ई यागान्नि चूडालनि वच्चामनी चॆप्पारु. अप्पुडु श्रीरामुडु ‘सरे! रेपु उदयं मी तण्ड्रि ऎवरो मीकु तॆलुस्तुन्दि. रेपटिदाका इक्कडे उण्डण्डि’ अनि वाळ्ळनु सत्करिञ्चाडु. तरुवात रोजु वाल्मीकिमहर्षि सीतादेविनी, कुशलवुल्नि वॆण्टतीसुकॊनि वच्चाडु अनेक विधालुगा श्रीरामुण्णि स्तुतिञ्चि इला अन्नाडु. ‘श्रीरामचन्द्रा! इदुगो! सीत. ईमॆ पवित्रुरालु, पतिव्रत, पुण्यात्मुरालु, इकनैना ईमॆनु स्वीकरिञ्चु’ अन्नाडु. सीतादेवि कुशलवुलनु वाल्मीकि महर्षिकि अप्पगिञ्चिन्दि. तानु श्रीराम चन्द्रुडि पादपद्मालनु ध्यानिस्तू भूगर्भंलोनिकि वॆळ्ळिपोयिन्दि. आ हठात्परिणामानिकि श्रीरामुडु दिग्र्भान्तिचॆन्दाडु. सीता! सीता! अनि पलवरिस्तू अन्तुलेनि दुःखन्तो विलपिञ्चाडु. 135 परीक्षिन्महराजा! अला दुःखसागरंलो मुनिगिपोयिन करुणासागरुडु श्रीरामचन्द्रुडु आ तरुवात ब्रह्मचर्यान्नि चेपट्टि पदमूडुवेल संवत्सरालु ऎडतॆरिपिलेकुण्डा अग्निहॆूत्राल्नि निर्वहिञ्चि परमपदं चेरुकुन्नाडु. इदन्ता आ श्रीमन्नारायणुडि, लीललो ऒक भागमे. लेकपोते आदिदेवुडैन आ श्रीरामचन्द्रुडिकि वानरुल सहयं ऎन्दुकु? अन्दरिकी तन लीलल्नि तॆलियजेयडं कोसमे ई अवतारालन्नी. अन्दुके - उ. नल्लनिवा"डु पद्मनयनम्बुलवा"डु महशुगम्बुलन् विल्लुनु दाल्चुवा"डु गडुविप्पगु वक्षमुवा"डु मेलु पै" जल्लॆडुवा"डु निक्किन भुजम्बुलवा"डु यशम्बु दिक्कुलं जल्लॆडुवा"डु नैन रघुसत्तमु" डीवुत मा कभीष्टमुल् (9-361) नल्लनिवाडु, पद्मनेत्रालवाडु, विल्लू बाणालू धरिञ्चिनवाडु, विशालमैन वक्षस्थलं कलवाडु, शुभालनु कलिगिञ्चेवाडु, ऎत्तयिन भुजालवाडु, कीर्ति मन्तुडु, रघुश्रेष्ठुडैन श्रीरामुडे मा कोरिकलनु नॆरवेर्चुगाक! अटुवण्टि श्रीरामुडि साङ्गत्यं लभिञ्चिन वाळ्ळन्दरू मुक्तिनि पॊन्दारु. कं. मन्तनमुलु सद्गतुलकु पॊन्तनमुलु घनमुलैन पुण्यमुल किदा नीन्तन पूर्वमहघ नि कृन्तनमुलु रामनामकृतिचिन्तनमुल्. (9-363) राजा! श्रीरामनामस्मरणलु उत्तमगतुल्नि अन्दिञ्चे मन्तनालु, गॊप्प पुण्यालकु साटियैनवि. प्रस्तुतमू, पूर्वमू चेसिन अन्नि जन्मललोनि पापालन्निण्टिनी नाशनं चेसेवि. राजा! इदन्ता श्रीमन्नारायणुडि लील. तानु लोकनायकुडै उण्डि कूडा धर्मान्नि आचरिञ्चि चूपडानिकी तानु सामान्युडिगा जीविञ्चाडु. अन्दुके श्रीराम चरित्र उत्तम गतुल्नि अन्दिस्तुन्दि. पापालन्निण्टिनी पटापञ्चलु चेस्तुन्दि - अण्टू सूर्यवंशंलो जन्मिञ्चिन तरुवाति चक्रवर्तुल गुरिञ्ची, भविष्यत्तुलो जन्मिञ्चबोये राजुल गुरिञ्चि विपुलङ्गा चॆप्पाडु शुक महर्षि. नवम स्कन्धं 136 पोतन भागवतमु परीक्षिन्महराजु चन्द्रवंशं गुरिञ्चि चॆप्पमनि शुकमहर्षिनि अडिगाडु. शुकमहर्षि प्रारम्भिञ्चाडु. चन्द्रवंशं राजा! ब्रह्मदेवुडि कुमारुडैन अत्रिमहर्षि क्रीगण्टि चूपु नुण्डि चन्द्रुडु उदयिञ्चाडु. इतडि कुमारुडु बुधुडु. बुधुडिकि इलाकन्य द्वारा पुरूरवुडु जन्मिञ्चाडु. मित्रावरुणुल शापंवल्ल भूलोकंलो जन्मिञ्चिन ऊर्वशि ई पुरूरवुण्णि विवाहं चेसुकुन्दि. वीरिकि आयुवु, श्रुतायुवु, सत्यायुवु, रयुडु, जयुडु, विजयुडु अने आरुगुरु कुमारुलु जन्मिञ्चारु. वीरि द्वारा चन्द्रवंशं वृद्धि चॆन्दिन्दि. ई वंशंलोने कॊन्नाळ्ळ तर्वात गाधि अने गॊप्प चक्रवर्ति जन्मिञ्चाडु. गाधि कुमार्तॆ सत्यवति. ‘ऋचिकुडु’ अने महर्षि तॆल्लनि शरीरं, नल्लनि चॆवुलु कल वॆय्यि गुर्रालनु कन्याशुल्कङ्गा इच्चि सत्यवतिनि पॆळ्ळाडाडु. कॊन्तकालं गडिचिन्दि. सत्यवति, आमॆ तल्ली इद्दरू ऒकेसारि पुत्रसन्तानं कोसं ऋचिकुण्णि यागं निर्वहिञ्चमन्नारु. आ यागंलो वीळ्ळिद्दरिकी वेरु वेरुगा चरुवुलनु (यज्ञप्रसादालनु) प्रसादिञ्चाडु ऋचिकुडु. अयिते वाळ्ळु ऒकरि चरुवुनु मरॊकरु स्वीकरिञ्चारु. दानिवल्ल सत्यवतिकि क्रूरुडु, क्षत्रिय धर्मालु कलवाडु अयिन पुत्रुडू, आमॆ तल्लिकि ब्रह्मज्ञानि अयिन पुत्रुडू जन्मिस्तारनि ऋचिकुडु चॆप्पाडु. आ माटलकु सत्यवति भयपडिपोयिन्दि. ऋचिकुण्णि प्रार्थिञ्चिन्दि. अप्पुडु ऋचिकुडु सत्यवती! बाधपडकु, नीकु पुट्टबोये कॊडुकु, शान्त स्वभावं कलवाडिगाने उण्टाडु कानी अतडि कॊडुकु मात्रं क्षत्रियधर्मालतो जन्मिस्ताडु, अनि चॆप्पाडु. आ सत्यवतिकि पुट्टिन वाडे जमदग्निमहर्षि. ई महर्षि कुमारुडे परशुरामुडु. सत्यवति तल्लिकि विश्वामित्रुडु जन्मिञ्चाडु. परशुरामुडि कथ ऒकसारि हैहय वंशानिकि चॆन्दिन ‘कार्तवीर्यार्जुनुडु’ अने चक्रवर्ति जमदग्नि महर्षि आश्रमानिकि वच्चाडु. जमदग्नि वद्द उन्न होमधेनुवुनु 137 चूसि मोजुपडि दान्नि तनतो तीसुकुवॆळ्ळाडु. अप्पुडु परशुरामुडु आश्रमंलो लेडु. आ विषयं तॆलुसुकॊनि परशुरामुडु कालाग्निरुद्रुडै कार्तवीर्यार्जुनुडि राजधानियैन माहिष्मती नगरानिकि वॆळ्ळि तन गण्ड्रगॊड्डलितो कार्तवीर्यार्जुनुडि शिरस्सुनु खण्डिञ्चि होमधेनुवुनु तॆच्चि तन तण्ड्रिकि समर्पिञ्चाडु. परशु रामुडु चेसिन पनिकि जमदग्नि बाधपड्डाडु. तन कॊडुकुकु इला हितबोध चेशाडु. शा. तालिमि मनकुनु धर्ममु तालिमि मूलम्बु धर्मतत्त्वम्बुनकुन् दालिमि गलदनि यीशुं डेलिञ्चुनु ब्रह्मपदमु नॆल्लन् मनलन् (9-462) ‘नायना! सहनन्तो उण्डटमे मन धर्मं. सहनमे अन्नि धर्मालकू मूलं. ई ओर्पु वल्लने परमात्म मनल्नि ब्रह्मस्थानंलो निलबॆट्टाडु. कं. क्षम गलिगिन सिरिगलुगुनु क्षमगलिगिन वाणि गलुगु सौख्यमुलॆल्लन् क्षमगलुग" दोन कलुगुनु क्षम गलिगिन मॆच्चु शौरि सदयु"डु तण्ड्री! (9-463) क्षम उण्टे सम्पदलु, विद्य, समस्त सुखालू लभिस्तायि. दयामयुडैन श्रीहरि कूडा मॆच्चुकॊनेदि क्षमकलवाळ्ळने. ऒक देशानिकि राजुनु संहरिञ्चडं मञ्चिदि कादु. अदि ब्रह्म हत्या पातकं कण्टे घोरमैन पापं. पाप परिहरं कोसं पुण्यतीर्थालनु सेविञ्चु’ अनि आज्ञापिञ्चाडु. परशुरामुडु वॆळ्ळि, पुण्यतीर्थालु सेविञ्चि वच्चाडु. जमदग्नि भार्य रेणुकादेवि. आमॆ नीटिकोसं गङ्गानदिकि वॆळ्ळिन्दि. रावटानिकि आलस्यं अयिन्दि. दानिकि कोपगिञ्चिन जमदग्नि आमॆनु संहरिञ्चमनि तन पुत्रुल्नि आज्ञापिञ्चाडु. ऒक्क परशुरामुडु तप्प तक्किन पुत्रुलु तल्लिनि चम्पडानिकि निराकरिञ्चारु. तन माटनु कादन्न पुत्रुल्नी वधिञ्चमनि परशुरामुण्णि आदेशिञ्चाडु जमदग्नि महर्षि. परशुरामुडु तन तल्लिनी, सोदरुल्नी वधिञ्चि, तण्ड्रि द्वारा वरान्नि पॊन्दि मरणिञ्चिनवाळ्ळन्दरिनी तिरिगि ब्रतिकिञ्चाडु. नवम स्कन्धं 138 पोतन भागवतमु जमदग्निकि मरणिञ्चिन वाळ्ळनु ब्रतिकिञ्चे शक्ति उन्दि. अदि परशुरामुडिकि तॆलुसु. अन्दुके तण्ड्रि चॆप्पिन पनि चेसि, अतण्णि प्रसन्नुण्णि चेसुकॊनि मळ्ळी तनवाळ्ळनु ब्रतिकिञ्चुकॊन्नाडु. राजा! परशुरामुडु चेशाडु कदा अनि मनं मन सोदरुल्नी, तल्लिनी वधिञ्चकूडदु. कॊन्तकालं तर्वात कार्तवीर्यार्जुनुडि पुत्रुलु परशुरामुडु लेनि समयं चूसि जमदग्निनि संहरिञ्चारु. परशुरामुडि तल्लि एडुस्तू 21 सार्लु परशुरामुण्णि पिलिचिन्दि. अन्दुके तरुवात परशुरामुडु 21 सार्लु भूमण्डलान्नि चुट्टिवच्चि दुर्मार्गुलैन क्षत्रियुलन्दरिनी संहरिञ्चाडु. आ राजुल रक्तन्तो ‘शमन्त पञ्चकं’ अने प्रान्तंलो तॊम्मिदि मडुगुलु एर्पड्डायि. कार्तवीर्यार्जुनुडि कुमारुलु तॆञ्चिन तन तण्ड्रि तलनु तॆच्चि, मॊण्डॆन्तो कूर्चि, यागं चेशाडु. अला तन आप्तुडैन कुमारुडि वल्ल शरीरान्नि पॊन्दि ब्रतिकिन जमदग्नि- तन तपोबलन्तो सप्तर्षि मण्डलंलो चेराडु. एडो महर्षियै प्रकाशिञ्चाडु. तरुवात परशुरामुडु शान्तिञ्चि महेन्द्रपर्वतम्पै तपस्सु चेसुकॊण्टू कालं गडिपाडु. इतडे तरुवात मन्वन्तराल्लो सप्तर्षुललो ऒकडौताडु. इदन्ता श्रीहरि लीललो ऒक भागमे. विश्वामित्रुडु इक गाधिकि विश्वामित्रुडु अने पुत्रुडु जन्मिञ्चाडु. अग्नि तेजस्सुकल ई महर्षि राजधर्मान्नि विडिचिपॆट्टि तपस्सु चेसि ब्रह्मर्षि अय्याडु. इतडिकि 101 मन्दि पुत्रुलु. आ समयंलोने भृगु वंशंलो जन्मिञ्चिन ‘अजीगर्तुडु’ अने ब्राह्मणुडि पुत्रुडैन शुनश्शेफुडु हरिश्चन्द्रुडि यागानिकि ‘बलिपशुवु’ अय्याडु. कन्न तल्लिदण्ड्रुले इतण्णि हरिश्चन्द्रुडिकि अम्मिवेशारु. चिवरिकि अतडु देवतलनु स्तोत्रं चेसि, मॆप्पिञ्चि, वारि अनुग्रहं वल्ल ब्रतिकि बयटपड्डाडु. इतडण्टे विश्वामित्रुडिकि चाला इष्टं. 139 शुनश्शेफुण्णि अन्नगा अङ्गीकरिञ्चमनि तन पुत्रुल्नि कोराडु विश्वामित्रुडु. अला अङ्गीकरिञ्चनि वाळ्ळनि म्लेच्छुल्लो पुट्टमनि शपिञ्चाडु कूडा! वारिलो मधुच्छन्दुडु मॊदलैन 50 मन्दि पुत्रुलु तण्ड्रि माटनु मन्निञ्चारु. अप्पटि नुण्डि विश्वामित्रुडि वंशंलो रॆण्डु शाखलु एर्पड्डायि. पुरूरवुडि वंशं दिनदिन प्रवर्धमानमयिन्दि. नहुषुडु पुरूरवुडि मनुमडु. नूरु यागालु चेसि इन्द्र पदविनि पॊन्दाडु. नहुषुडि कुमारुललो ययाति चक्रवर्ति ऒकडु. इतडु शुक्रुडि पुत्रिक अयिन देवयानिनी, वृषपर्वुडि कुमार्तॆ अयिन शर्मिष्ठनू पॆळ्ळाडाडु. ययाति चरित्र वृषपर्वुडु असुरुलकु राजु. अतडि कुमार्तॆ शर्मिष्ठ. शुक्राचार्युडु असुरुलकु गुरुवु. अतडि कुमार्तॆ देवयानि. शर्मिष्ठ, देवयानि ऒकसारि ऒक सरस्सुलो जलक्रीडलाडुतुन्नारु. अदे समयंलो पार्वती परमेश्वरुलु अटुगा रावडं चूसि शर्मिष्ठ कङ्गारुलो देवयानि वस्र्तालु धरिञ्चिन्दि. दानिवल्ल देवयानी शर्मिष्ठलकु गॊडव जरिगिन्दि. देवयानिनि शर्मिष्ठ नूतिलोनिकि तोसि वॆळ्ळिपोयिन्दि. कॊन्तसेपु अय्याक ययाति महराजु अक्कडिकि वच्चाडु. नूतिलो उन्न देवयानिकि तन चेतिनि अन्दिञ्चि पैकि तीशाडु. अप्पुडु देवयानि ‘राजा! नीकू नाकू पाणिग्रहणं जरिगिन्दि. बृहस्पति पुत्रुडैन कचुडु मा नान्नगारिवद्द मृतसञ्जीवनि विद्यनु नेर्चुकॊनेवाडु. नेनु अतण्णि इष्टपड्डानु. अतडु कादन्नाडु. नुव्वु नेर्चुकुन्न विद्य नीकु उपयोगपडदनि नेनु अतण्णि शपिञ्चानु. निन्नु ब्राह्मणुडॆवडू विवाह माडडु अनि अतडु नन्नु शपिञ्चाडु. इदि दैवनिर्णयं काबट्टि नुव्वे ना भर्त’ अन्दि. ययाति अङ्गीकरिञ्चाडु. शुक्राचार्युडु तन कुमार्तॆकु जरिगिन अवमानानिकि बाधतो वृषपर्वुडि राज्यान्नि विडिचि वॆळ्ळिपोवडानिकि सिद्धपड्डाडु. शुक्राचार्युडु लेकपोते तनु देवतल्नि गॆलवटं कष्टं. अन्दुके वॆळ्ळवद्दनि प्राधेयपड्डाडु वृषपर्वुडु. नवम स्कन्धं 140 पोतन भागवतमु शुक्रुडि कोरिक मेरकु तन कुमार्तॆ शर्मिष्ठनु देवयानिकि दासिगा नियमिञ्चाडु. शर्मिष्ठ देवयानिकि दासिगा ययाति महराजु राज्यंलोने उण्डेदि. शर्मिष्ठनु कलवकूडदनि शुक्राचार्युडु ययातिकि षरतु विधिञ्चाडु. अयिना ययाति आमॆनु कलिशाडु. वाळ्ळकु द्रुह्युडु, अनुवु, पूरुडु अने पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. ययाति चेसिन मोसानिकि भग्गुमन्न शुक्राचार्युडु ययातिनि मुसलि वाडिवि कम्मनि शपिञ्चाडु. शापान्नि सडलिञ्चमनि ययाति वेडुकुन्नाडु. ऎवरैना वाळ्ळ यौवनान्नि नीकु इच्चि, नी वृद्धाप्यान्नि वाळ्ळु स्वीकरिस्ते मुसलितनं पोतुन्दनि चॆप्पाडु शुक्राचार्युडु. देवयानि पुत्रुलैन यदुतुर्वसुलु कूडा तम यौवनान्नि तण्ड्रिकि इव्वडानिकि मुन्दुकु रालेदु. शर्मिष्ठ पुत्रुडैन पूरुडु ऒक्कडे अङ्गीकरिञ्चि- कं. पनुपक चेयुदु रधिकुलु पनिचिन मध्यमुलु पॊन्दुपऱतुरु तण्ड्रुल् पनिचॆप्पि कोरि पनिचिन ननिशमु माऱाडु पुत्र्तु लधमुलु तण्ड्री (9-559) ‘नान्नगारू! तण्ड्रि चॆप्पक मुन्दे अवसरान्नि गुर्तिञ्चि पनिचेसिपॆट्टे वाळ्ळु उत्तम पुत्रुलु. चॆप्पिन तर्वात मात्रमे चेसेवाळ्ळु मध्यमुलु. चॆप्पिन पनि चेयकुण्डा ऎदुरु चॆप्पेवाळ्ळु अधमुलु. इन्तमात्रानिके मीरु इन्तगा अडगाला?’ अण्टू तन यौवनान्नि तण्ड्रिकि धारपोसि तण्ड्रि मुसलितनान्नि तानु सन्तोषङ्गा स्वीकरिञ्चाडु. तरुवात ययाति नवयौवनन्तो सकल भोगालु अनुभविञ्चि ऎन्तकी तृप्तिनि पॊन्दक चिवरिकि ज्ञानोदयान्नि पॊन्दि, तपस्सु चेसि मुक्तिनि पॊन्दाडु. तरुवात पूरुडु चक्रवर्ति अय्याडु. इतडि द्वारा वंशं वृद्धि चॆन्दिन्दि. ई वंशंलोने रैभ्युडु अने चक्रवर्तिकि दुष्यन्तुडु जन्मिञ्चाडु. ई दुष्यन्तुडु ऒकसारि वेटकु वॆळ्ळि अडविलो कण्वाश्रमंलो उन्न शकुन्तलनु गान्धर्व पद्धतिलो पॆळ्ळिचेसुकुन्नाडु. शकुन्तल विश्वामित्र महर्षिकि मेनककू जन्मिञ्चिन कुमार्तॆ. 141 दुष्यन्तुडु शकुन्तलनु विडिचि नगरानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. अतडु वॆळ्ळाक शकुन्तल ऒक पुत्रुण्णि कन्नदि. अतडे भरतुडु. कण्वमहर्षि शकुन्तलनू, भरतुण्णी दुष्यन्तुडि वद्दकु पम्पाडु. मॊदट दुष्यन्तुडु वाळ्ळनु आदरिञ्चलेदु कानी अशरीरवाणि चॆप्पटन्तो शकुन्तल तन भार्य अनी, भरतुडु तन पुत्रुडनी अङ्गीकरिञ्चि वीळ्ळनु आदरिञ्चाडु. दुष्यन्तुडि तर्वात भरतुडु चक्रवर्ति अय्याडु. इतडे भरत वंशानिकि वंशकर्त. तरुवाति कालंलो ऋषभुडि कुमारुल्लो ऒकडैन भरतुनि वल्ल अप्पटिवरकु अजनाभं अने पेरु कल भूभागं भरतवर्षङ्गा प्रसिद्धि पॊन्दिन्दि. दुष्यन्तुडि कॊडुकु भरतुनिवल्ल पूरुवंशं भरतवंशङ्गा प्रशस्ति गडिञ्चिन्दि. इतडि पुत्रुडु भरद्वाजुडु. गॊप्प दातगा प्रसिद्धि चॆन्दिन रन्ति देवुडु कूडा ई वंशंलोनिवाडे. अतडि चरित्र चॆबुतानु विनु. रन्तिदेवुडि चरित्र राजा! रन्तिदेवुडु महदात. तन सर्वस्वान्नी दीनुलकु दानञ्चेसि पेदवाडु अय्याडु. कॊन्नि रोजुलु तिनडानिकि एमी दॊरकलेदु. कुटुम्बं मॊत्तं आकलिकि अलमटिञ्चिन्दि. अलाण्टि स्थितिलो ऒकरोजु अतडिकि कॊद्दिगा पायसं, नीळ्ळु, नॆय्यि मॊदलैनवि लभिञ्चायि. वाटिनि तिनि प्राणं निलुपु कोवालनि अतडु सिद्धपडुतुण्टे ऒक ब्राह्मणुडु, शूद्रुडु, कुक्कल गुम्पुतो मरॊकडु वरुसगा ऒकरि तर्वात ऒकरु वच्चारु. वाळ्ळन्दरिकी आ पदार्थालनु दानं चेशाडु. इक मिगिलिन नीळ्ळनैना तागुदामनुकुन्नाडु. इन्तलो ऒक चण्डालुडु वच्चि ‘दाहङ्गा उन्दि. कासिन्नि नीळ्ळु उण्टे दानं चॆय्यण्डि’ अनि अडिगाडु. दानिकि रन्ति देवुडु ऎन्तो प्रेमगा- उ. अन्नमु लेदु कॊन्नि मधुराम्बुवु लुन्नवि, द्रावुमन्न रा वन्न शरीरधारुलकु नापदवच्चिन वारि यापदल् ग्रन्नन मान्चि वारिकि सुखम्बुलु सेयुटकण्टॆ नॊण्डु मे लुन्नदॆ? नाकु दिक्कु पुरुषोत्तमु"डॊक्क"ड सुम्मु पुल्कसा! (9-648) नवम स्कन्धं 142 पोतन भागवतमु ओ अन्ना! पुल्कसा! ना वद्द अन्नं लेदु. कॊन्नि तिय्यटि नीळ्ळु मात्रमे उन्नायि. रा! त्रागु. तोटिवारिकि आपदवस्ते आ आपदनु तीर्चि वॆण्टने सुखं कलिगिञ्चटं कण्टे मेलु इङ्केदैना उण्टुन्दा? इक नाकु दिक्कु आ पुरुषोत्तमुडे! अण्टू उन्न नीळ्ळु कूडा अतडिकि दानं चेशाडु. राजा! ब्रह्मदि देवतले अला मारुवेषाल्लो वच्चि रन्ति देवुण्णि परीक्षिञ्चारु. अन्तटि महदात रन्ति देवुडि चरित्र परम पावनमैनदि. ई वंशंलोने ‘दिवोदासुडु’ अने राजु उण्डेवाडु. इतनिकि अहल्य सोदरि. ईमॆ गौतमुण्णि विवाहं चेसुकुन्दि. वीरिकि शतानन्दुडु जन्मिञ्चाडु. द्रुपदुडु इतडि सन्ततिवाडे. इतनि कॊडुकु धृष्टद्युम्नुडु. कुमार्तॆ द्रौपदि. संवरणुडु अने राजु सूर्यपुत्रिक अयिन तपतिनि विवाहं चेसुकुन्नाडु. वीरिकि पुट्टिनवाडे कुरुचक्रवर्ति. इतडि पेरुमीदे कुरुवंशं वृद्धिलोनिकि वच्चिन्दि. तरुवात इतडि वंशंलोने बृहद्रथुडु अने राजुकु रॆण्डु विडि विडि मुक्कलुगा ऒक कुमारुडु जन्मिञ्चाडु. जर अने राक्षस स्र्ती आ मुक्कल्नि कलपटंवल्ल आ बालुडु प्राणं पोसुकुनि जरासन्धुडु अनि प्रसिद्धिलोनिकि वच्चाडु. इतडि वंशमू दिनदिन प्रवर्धमानमयिन्दि. ई वंशंलोने प्रतीपुडु अने राजुकु देवापि, शन्तनुडु, बाह्लिकुडु अने मुग्गुरु कुमारुलु कलिगारु. ई शन्तनु महराजुकी, गङ्गादेविकि भीष्मुडु उदयिञ्चाडु. शन्तनु महराजुकी दाशकन्य अयिन सत्यवतिकी चित्राङ्गदुडु, विचित्र वीर्युडु अने पेर्लु गल पुत्रुलु जन्मिञ्चारु. चित्राङ्गदुडु गन्धर्वुलतो युद्धं चेसि मरणिञ्चाडु. भीष्मुडु काशीराज कुमार्तॆलैन अम्बिक, अम्बालिकलनु तॆच्चि विचित्र वीर्युडिकि इच्चि विवाहं जरिपिञ्चाडु. कानी सन्तानान्नि पॊन्दकुण्डाने विचित्रवीर्युडु मरणिञ्चाडु. अप्पुडु सत्यवति तनकु पराशर महर्षि द्वारा जन्मिञ्चिन व्यासुडिनि प्रार्थिञ्चिन्दि. अम्बिक, अम्बालिकलकु पुत्र भिक्ष पॆट्टमनि आदेशिञ्चिन्दि. अला जन्मिञ्चिनवाळ्ळे धृतराष्र्टुडु, पाण्डुराजु. व्यासुडिकि दासि वल्ल जन्मिञ्चिनवाडु विदुरुडु. 143 धृतराष्र्टुडि कुमारुलु वन्दमन्दिकी कौरवुलनी, पाण्डुराजु कुमारुलु ऐदुगुरिकि पाण्डवुलनी प्रसिद्धिकलिगिन्दि. पाण्डवुल भार्य द्रौपदि. द्रौपदिकि पाण्डवुल द्वारा ऐदुगुरु कुमारुलु कलिगारु. भीमुडिकि हिडिम्बवल्ल घटोत्कचुडु, अर्जुनुडिकि उलूपि अने नागकन्य वल्ल इरावन्तुडु, चित्राङ्गद वल्ल बभ्रुवाहनुडु, सुभद्रवल्ल नी तण्ड्रि अभिमन्युडु जन्मिञ्चाडु. राजा! नुव्वु तक्षकुडु अने सर्पंवल्ल मरणिस्तावु. नी कुमारुललो ऒकडैन जनमेजयुडु सर्पयागं चेस्ताडु अण्टू परीक्षित्तु वंशंलोनि भविष्यद्राजुल चरित्रलनु, इला मगध चक्रवर्तुल चरित्रनू, यदुवंश राजुल चरित्रनू विपुलङ्गा चॆप्पाडु. आ तरुवात वसुदेवुडि वंशं गुरिञ्चि चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. यदुवंशानिकि चॆन्दिन राजु उग्रसेनुडु. इतडि कॊडुकु कंसुडु. देवकुडु उग्रसेनुडि सोदरुडु. इतडिकि एडुगुरु कुमार्तॆलु. वारिलो देवकि कूडा उन्दि. ई एडुगुरिनी वसुदेवुडे पॆळ्ळि चेसुकुन्नाडु. वसुदेवुडि तण्ड्रि शूरुडु. इतडि कुमार्तॆ पृथ. शूरुडु तन मित्रुडैन कुन्ति भोजुडिकि सन्तानं लेकपोवटंवल्ल तन कुमार्तॆ पृथनु अतडिकि दत्तत इच्चाडु काबट्टि पृथ वसुदेवुडि सोदरि. कुन्ति भोजुडिकि दत्तपुत्रिक काबट्टि ईमॆके कुन्ति अने पेरु एर्पडिन्दि. पाण्डवुल तल्लि. ईमॆ दुर्वास महर्षि वरंवल्ल सूर्युण्णि आह्वनिञ्चि अतडि द्वारा ऒक पुत्रुडिनि पॊन्दिन्दि. आ बालुण्णि पॆट्टॆलो पॆट्टि गङ्गानदिलो विडिचिपॆट्टिन्दि. अतडे कर्णुडु. कुन्ति चॆल्लॆलु श्रुतदेव. ईमॆ भर्त वृद्धशर्म. वीरि कुमारुडे दन्तवक्र्तुडु. पृथकु मरो सोदरि अयिन श्रुतश्रवस, दमघोषुण्णि पॆळ्ळाडिन्दि. वीळ्ळ कुमारुडे शिशुपालुडु. राजा! वसुदेवुडिकि रोहिणि द्वारा बलरामुडु मॊदलैन ऎनिमिदिमन्दि कुमारुलु, पौरवि अने भार्य द्वारा सुभद्रुडु मॊदलैन 12 मन्दि कुमारुलु जन्मिञ्चारु. चिवरिगा देवकि गर्भंलो ऎनिमिदो कुमारुडिगा श्रीकृष्णुडु जन्मिञ्चाडु. तरुवात सुभद्र अने कुमार्तॆ कूडा जन्मिञ्चिन्दि. नवम स्कन्धं 144 पोतन भागवतमु कं. ऎप्पुडु धर्मक्षयमगु नॆप्पुडु पापम्बु पॊडमु नी लोकमुलो नप्पुडु विश्वेशु"डु हरि दप्पक विभु"डय्यु" दन्नु" दा सृजियिञ्चुन्. (9-726) राजा! लोकंलो धर्मं नशिञ्चि, पापं पॆरिगिनप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु तप्पक अवतरिस्ताडु. लोकंलो एदि जरिगिना अदि विष्णुलीला विलासमे! दुष्टशिक्षण कोसं, शिष्ट रक्षण कोसं स्वयङ्गा ताने भूमिपै अवतरिञ्चिन आ परन्धामुडि चरित्र परम पावनमैनदि. कं. मङ्गळहरिकीर्ति मह गङ्गामृत मिञ्चुकैन" गर्णाञ्जलुलन् सङ्गतमु सेसि द्राव" दॊ लङ्गुनु गर्मम्बु लाविलं बगुचु नृपा! (9-731) मङ्गळकरमैन आ श्रीहरि कीर्ति अने गङ्गाजलान्नि कॊन्तैना सेविस्ते समस्त कर्मलू नशिस्तायि. चं. नगुमॊगमुन् सुमध्यमुनु नल्लनिदेहमु लच्चि काट प ट्टगु नुरमुन् महभुजमु लञ्चितकुण्डलकर्णमुल् मदे भगतियु नीलवेणियु" गृपारसदृष्टियु" गल्गु वॆन्नु" डि म्मुग" बॊडसूपु" गात" गनुमूसिन यप्पुडु विच्चुनप्पुडुन्. (9-733) नगुमोमू, चक्कटि नडुमू, नल्लटि देहमु, लक्ष्मीदेविकि आटपट्टु अयिन वक्षःस्थलमु, गॊप्प भुजालु, मञ्चि कुण्डलालु धरिञ्चिन चॆवुलु, मत्तगजान्नि पोलिन नडक, नल्लनि कुरुलू दयनु कुरिपिञ्चे चूपुलू कल आ विष्णुमूर्ति दिव्यसुन्दर विग्रहमे नाकु कळ्ळु मूसिना तॆरिचिना साक्षात्करिञ्चु गाक!’ अण्टू शुकमहर्षि श्रीहरिनि भक्तितो ध्यानिञ्चाडु’ अन्नाडु सूत महर्षि. शौनकादि मुनुलू श्रीहरि पादपद्मालपै दृष्टि निलिपि स्वामिनि स्तुतिञ्चारु. b 145 सूतमहर्षि शौनकादि महर्षुलनु उद्देशिञ्चि इला चॆप्तुन्नाडु- ‘‘मुनिश्रेष्ठुलारा! आ परीक्षिन्महराजु शुकमहर्षिनि ई विधङ्गा अभ्यर्थिस्तुन्नाडु - आ.वॆ. नी मुखाम्बुजात निर्मुक्त हरिकथा मृतमु" द्राव"द्राव मेनु वॊदलॆ वन्तमानॆ नीरुवट्टु ना"कलियुनु दूरमय्यॊ मनमु दॊङ्गलिञ्चॆ (10-1-11) महर्षी! नी मुखपद्मं नुण्डि जालुवारे हरिकथ अने अमृतान्नि त्रागिन कॊद्दी ना शरीरं पुलकिञ्चिपोतोन्दि. इक मरणदुःखं अण्टावा?! अदॆप्पुडो समसिपोयिन्दि. आकलिदप्पुलु मटुमायं अय्यायि. मनसैते आनन्दन्तो परवळ्ळु तॊक्कुतोन्दि. अन्दुके इङ्का इङ्का विनालनि उन्दि. ‘महर्षी! महत्मुडू, मुल्लोकालकू ईश्वरुडू अयिन श्री महविष्णुवु आ यदुवंशंलो ऎन्दुकु पुट्टवलसि वच्चिन्दि? पुट्टि आ वंशंलो ऎला मॆलिगाडु? ऎप्पुडॆप्पुडु एमेमि चेशाडु? ई विवरालन्नी विनालनि उन्दि. दयचेसि चॆप्पमा!’ आ माटलु विन्नाडु शुकयोगीन्द्रुडु. वॆण्टने इला अण्टुन्नाडु- श्रीकृष्णावतारं राजेन्द्रा! अन्ता विवरङ्गा चॆबुतानु. श्रद्धगा विनु. पूर्वं कॊन्दरु दानवुलु तामे राजुलमण्टू विर्रवीगिपोयारु. भूमि ब्रह्मदेवुडि दग्गर कन्नीरु मुन्नीरुगा विलपिञ्चिन्दि. देवतलू मॊरपॆट्टुकुन्नारु. दशम स्कन्धं 146 पोतन भागवतमु ब्रह्मदेवुडु - भूमिनी देवतलनू वॆण्टबॆट्टुकॊनि श्री महविष्णुवु सन्दर्शनानिकि बयलुदेराडु. पुरुष सूक्तं चदिवि, समाधि स्थितिलोनिकि वॆळ्ळाडु. अप्पुडु ब्रह्मदेवुडिकि ऒक दिव्य वाक्कु विनबडिन्दि. अदि विनि महनन्दन्तो- ‘ओ भूदेवी! देवतलारा! नेनु विन्नदि चॆबुतानु. विनण्डि. बयलुदेरण्डि! मीरन्ता मीमी अंशलतो भूमिपै यादव कुलंलो जन्मिञ्चण्डि. श्रीहरि वसुदेवुडिकि पुत्रुडिगा जन्मिञ्चि भूभारं तॊलगिञ्चबोतुन्नाडु. ओ सुरकन्यलारा! हरिनि पूजिञ्चटं कोसं मीरू सुन्दराङ्गुलुगा अवतरिञ्चण्डि. आदिशेषुडू श्रीहरिकि अन्नगा अवतरिस्तुन्नाडु. ई प्रपञ्चान्नि मोहंलो मुञ्चॆत्ते योगमाय कूडा विष्णुमूर्ति आज्ञनु शिरसा वहिञ्चिन्दि. तन कर्तव्यान्नि निर्वहिञ्चटं कोसं भूमिपै जन्मिस्तोन्दि’ अन्नाडु. देवतलन्दरू आमोदिञ्चारु. ब्रह्मदेवुडु तन लोकानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. परीक्षिन्महराजा! अदि मथुरानगरं. पूर्वं भूलोकंलो यादव चक्रवर्तुलन्दरिकी राजधानि. सिरिसम्पदलतो विलसिल्लुतू उण्डे नगरं. साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडु तन दिव्यपादालतो नडयाडिन नगरं. कंसुडि हिंस वसुदेवुडि इल्लालु देवकीदेवि. देवकुडु अने राजुगारि मुद्दुलपट्टि. ई देवकुडिकि ऒक अन्नगारु उन्नाडु. अतडु उग्रसेन महराजु. अतडि कॊडुकु कंसुडु. अप्पुडे देवकी वसुदेवुल पॆळ्ळि वैभवङ्गा जरिगिन्दि. पॆळ्ळि कागाने वसुदेवुडु देवकी देविनि वॆण्टबॆट्टुकॊनि रथम्पै बयलुदेराडु. देवकी देवि अन्नगारैन कंसुडे स्वयङ्गा पग्गालु चेतपट्टि रथं नडुपुतुन्नाडु. इन्तलो अकस्मात्तुगा अशरीरवाणि गुण्डॆ लदिरिपोयेला इला पलिकिन्दि- ‘ओरी, कंसुडा! नी चॆल्लॆलि मॆप्पुकोसं प्रेमतो कोरि मरी रथं नडुपु तुन्नावु गानी एं जरुगबोतोन्दो नीकु तॆलुसा? नी ई मुद्दुल चॆल्लॆलिकि अष्टमगर्भंलो पुट्टबोयेवाडे निन्नु संहरिस्ताडु.’ अनि. 147 आ माटलकु कंसुडु उलिक्किपड्डाडु. भुजालु अदिरिपड्डायि. मरो आलोचन लेदु. वॆण्टने कत्तिदूशाडु. चॆल्लॆलि कॊप्पु पट्टुकॊनि आमॆनु किन्दिकि लागाडु. तोडबुट्टिन्दनि कूडा कनिकरिञ्चलेदु. तॆगिञ्चि आमॆनु चम्पडं कोसं कत्ति पैकि ऎत्ताडु. पक्कने उन्न वसुदेवुडु विस्तुपोयाडु. अयिना वॆण्टने तेरुकॊनि मुन्दुकु वच्चि कंसुडिकि अड्डुपड्डाडु. कंसुडु असले दुर्मार्गुडु! पैगा कोपं. अग्निशिखला रगिलिपोतुन्नाडु. अतण्णि शान्तिम्पजेयालनि वसुदेवुडि तपन. अमृतं धारलु कट्टे तन चल्लटि माटलतो इला अन्नाडु- वसुदेवुडि वेडुकोलु ‘अय्यय्यो! बावा! नुव्वु स्वयाना देवकी देविकि अन्नगारिवे! तोडबुट्टिन दानिकि माडलो चीरलो इव्वालि. मधुरङ्गा माट्लाडालि. आडबडुचुनु मन्नन चेयालि अन्तेगानि इदेमिटय्या! अवेवो आकाशंलो विनिपिञ्चिन चप्पुळ्ळु विनि अवे निजमनुकॊण्टे ऎला? सॊन्त चॆल्लॆल्ने चम्पुकुण्टावा? वद्दय्या! आपवय्या! निन्नु वेडुकॊण्टानय्या! इदि नीकु तगदु. चूडु नी चॆल्लॆलु ऎन्त अमायकुरालो! चिन्न पिल्ल. अभं शुभं ऎरुगनि अबल. पिच्चिदि. ऎप्पुडू नी क्षेमान्ने कोरुतू उण्टुन्दि. ए पापमू ऎरुगदु. ईमॆनु चम्पटं न्यायमेना चॆप्पु? पवित्रमैन भोज वंशंलो पुट्टिन पुण्यमूर्तिवे! अन्दरिकी नायकुडिवे! नीकिदि धर्ममा! इदि नी प्रतिष्ठकु भङ्गं कादू! ऒक्कसारि आलोचिञ्चु. अन्दरू कर्मल्निबट्टि नडुचुकोवालि. अलाण्टप्पुडु इङ्क अन्दरिलो तप्पुलॆन्नडं देनिकय्या! इतरुल्नि हिंसिञ्चटं मञ्चिदि कादु. तन मेलु कोसं ऎदुटिवाळ्ळनु बाधपॆडिते आ पापं ऊरिके पोतुन्दा?! अनुभविञ्चक तप्पदु.’ ‘नीकु चेतुलॆत्ति नमस्करिस्तुन्ना! चूडु नी चॆल्लॆलु इप्पटिके बॆदिरिपोयिन्दि. आमॆनु रक्षिञ्चु. शिक्षिञ्चकु’ अण्टू वसुदेवुडु अनुनयङ्गा चॆप्पिचूशाडु. दशम स्कन्धं 148 पोतन भागवतमु कंसुडु विण्टेना?! अतडिलो जालि ए कोशाना लेदु. पैगा चूपुल्लो क्रोधं. कन्नुल्लो निप्पुलु कुरिपिस्तू देवकी देविनि चम्पबोयाडु. अतडि मूर्खत्वान्नि गमनिञ्चाडु वसुदेवुडु. ऎलागैना कंसुडि आगडान्नि आपालने पट्टुदल अतडिदि. आत्मबलन्तो गट्टिगा निलबड्डाडु. चिवरि क्षणं दाका प्रयत्निञ्चालन्न स्थिर सङ्कल्पन्तो उन्नाडु. कंसुडु चेस्तुन्नदानिकि अतनि गुण्डॆ रगिलिपोतोन्दि. अयिना कोपानिकि इदि समयं कादु. अन्दुके दान्नि अणचिपॆट्टुकॊनि कंसुण्णि स्तुतिञ्चि - ‘बावा! ईमॆकु पुट्टिन कॊडुकुल्नि पुरिट्लोने नीकु अप्पगिस्तानु. वाळ्ळनु चम्पु. अप्पुडु नीकु ए समस्या उण्डदु’ अन्नाडु अनुनयङ्गा. ए बुद्धिन उन्नाडो गानी ई उपायं बागाने उन्दनिपिञ्चिन्दि कंसुडिकि. तल पङ्किञ्चाडु. कत्ति दिञ्चाडु. चेतिलोनि चॆल्लॆलि कॊप्पुनु विडिचिपॆट्टाडु. चरचरा अक्कण्णुञ्चि वॆळ्ळिपोयाडु. परीक्षिन्महराजा! सत्यम्पैने स्थिरमैन मनस्सु कलवाडिकि कष्टमैन पनि अण्टू एदी उण्डदु. कालचक्रं गिर्रुन तिरुगुतोन्दि. देवकीदेविकि एडादिकि ऒकडु चॊप्पुन पुत्रुलु जन्मिस्तुन्नारु. मॊदटि पुत्रुडु पुट्टगाने वसुदेवुडु तीसुकुवॆळ्लि कंसुडिकि अप्पगिञ्चाडु. अला अप्पगिञ्चेटप्पुडु वसुदेवुडु चलिञ्चडं लेदु. बाध इसुमन्तैना लेदु. ऎन्तटि धैर्यं! कन्न कॊडुकुल्नि चम्पेस्ताडनि तॆलिसी शत्रुवुकु इला अप्पगिञ्चगल धीरुडु वसुदेवुडु गाक इङ्कॆवरैना उण्टारा? ई लोकंलो? आ.वॆ. मानवेन्द्र! सत्यमतिकि दुष्करमॆय्य दॆऱुक गलुगुवानि किष्टमॆय्य दीशभक्तिरतुनि कीरानि दॆय्यदि? यॊऱुक लेनिवानि केदिकीडु? (10-1-48) राजा! सत्यम्पैने निलबडिन बुद्धिमन्तुडिकि कष्टमैनदण्टू उण्टुन्दा? ज्ञानिकि इष्टमण्टू उण्टुन्दा? अज्ञानानिकि अपकारं अण्टू वेरे उण्डदु. 149 हरि भक्तुडिकि इतरुलकु इव्वकूडनिदण्टू एदी उण्डदु. देनैन्ना सुलभङ्गा इव्वगलडु. अन्दुके इला अप्पगिञ्चाडु. अप्पुडु कंसुडन्नाडु कदा! ‘वसुदेवा! नाकु वीडितो पनिलेदु. नुव्वे तीसुकुपो! नेनु चम्पनु. अष्टम गर्भंलो पुट्टिनवाडिवल्लने नाकु मृत्युवु कलुगुतुन्दनि आकाशवाणि चॆप्पिन्दि. काबट्टि वाडु पुट्टगाने वधिस्तानु. नारदुडि राक तर्वात कॊन्नाळ्ळकि नारद महर्षि कंसुडि वद्दकु पनिगट्टुकॊनि मरी वच्चाडु. वच्चि एकान्तंलो इला अन्नाडु- ‘कंसराजा! विनु. व्रेपल्लॆलो उन्नारे! नन्दुडू मॊदलैनवाळ्ळु. वाळ्ळन्ता ऎवरनुकॊन्नावु? सामान्य मानवुलु कादु. साक्षात्तु देवतले. भूलोकंलो पुट्टि सञ्चरिस्तुन्नारु. ऎन्दुको तॆलुसा?! श्रीहरि देवकी गर्भंलो पुडुतुन्नाडट! दुष्ट राक्षसुल्नि संहरिञ्चडानिके ई अवतारमट! मरि नुव्वु कूडा राक्षसुडिवेगा! जाग्रत्त नायना!’ अनि ऒक माट वेसि वॆळ्ळिपोयाडु. कंसुडिकि ऒकटे आराटं. मरो प्रक्क पट्टरानि क्रोधं. श्रीकृष्णुडु ऎप्पुडु पुडताडा अनि कंसुडु ऎदुरुचूस्तुन्नाडु. आ श्रीहरितो शत्रुत्वं वल्लने अयिना अन्नी विडिचि, अन्निण्टिनी मरचि अतण्णे ध्यानिस्तुन्नाडु. कं. तिरुगुचु" गुडुचुचु" द्रागुचु नरुगुचु" गूर्चुण्डि लेचु चनवरतम्बुन् हरि" दल"चि तल"चि जग मा हरिमयमनि चूचॆ" गंसु" डाऱनि यलुकन् (10-1-85) ए पनि चेस्तुन्ना श्रीहरिने ध्यानिस्तू, ई लोकमन्ता हरिमयमे ननुकॊण्टुन्नाडु. वॆण्टने देवकीवसुदेवुल्नि पट्टि बन्धिञ्चाडु. अप्पटिदाका पुट्टिन कॊडुकुल्नि इप्पुडु वदलालनिपिञ्चलेदु. वाळ्ळू विष्णुस्वरूपुले काबट्टि पट्टि संहरिञ्चाडु. अन्तटितो आगलेदु. यदु, भोज, अन्धकादि देशालनु पालिस्तुन्न तन तण्ड्रि उग्रसेनुण्णि तॆच्चि चॆरसाललोनिकि तोसिवेशाडु. आ शूरसेन राज्यालनू ताने हस्तगतं चेसुकुन्नाडु. परीक्षिन्महराजा! राज्यकाङ्क्ष अन्तटिदि मरि! दशम स्कन्धं 150 पोतन भागवतमु राज्यं कोसं ऎन्तकैना तॆगिस्तारु. ऎवरिनैना चम्पुतारु. चिवरिकि तल्लिदण्ड्रुल्नि, तोडबुट्टिनवाळ्ळनी, बन्धुमित्रुल्नी मट्टुपॆडतारु, तम जीविताल्नि निलुपुकोवडं कोसं. अला आक्रमिञ्चिन राज्याधिपतुल्लो बाणुडु, भीमुडु, मागधुडु, महशनुडु, केशि, धेनुकुडु, बकुडु, प्रलम्बुडु, तृणावर्तुडु, चाणूरुडु, मुष्टिकुडु, अरिष्टुडु, द्विविदुडु, पूतनादि राक्षसुलु कंसुडि अनुचरुलय्यारु. वारन्दरू यादवुलपै विरुचुकुपड्डारु. बलभद्रुडि जननं देवकीदेवि सप्तमगर्भंलो ‘आदिशेषुडु’ अने विष्णुतेजस्सु पॆरुगुतोन्दि. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु योगमाय द्वारा देवकीदेवि गर्भंलोनि शेषतेजान्नि तीसि रोहिणीदेवि गर्भंलो प्रवेशपॆट्टिञ्चाडु. देवकीदेविकि गर्भस्रावं जरिगिन्दन्न वार्त लोकमन्ता व्यापिञ्चिन्दि. कॊन्नि नॆललकु रोहिणीदेविगर्भंलो उज्ज्वल कान्तितो, ऒक कुमारुडु उद्भविञ्चाडु. आ बालुडु मिक्किलि बलवन्तुडु. अन्दुके बलभद्रुडन्नारु. लोकाल्नि आनन्दिम्पजेसेवाडु काबट्टि रामुडन्नारु. रोहिणिकि गर्भसङ्कर्षणंवल्ल पुट्टाडु काबट्टि सङ्कर्षणु डन्नारु. तरुवात विष्णुतेजं देवकीदेवि गर्भंलो प्रवेशिञ्चिन्दि. दान्तो देवकीदेवि कॊत्त कान्तितो प्रकाशिञ्चिन्दि. ब्रह्मण्ड भाण्डाल्नि तन कडुपुलो उञ्चुकुन्न श्रीहरि देवकीदेवि कडुपुलो ऒदिगिपोयाडु. अप्पुडु देवकीदेविकि गर्भवति लक्षणालु पॊडचूपायि. इङ्का देवकीदेवि कंसुडि चॆरसाललोने उन्दि. अन्तकन्तकू अतिशयिस्तोन्न आमॆ देह कान्तिनि चूसि कंसुडु भयपड्डाडु. चॆल्लॆल्नि इप्पुडैना चम्पेस्ते? ई क्रूरुडु तन प्राणाल कोसं सॊन्त चॆल्लॆल्ने वधिञ्चाडन्न अपख्याति रादू! आ चॆड्डपेरुतो तानु ऎला बतकगलडु? सरे! पुट्टिनवाडु पुट्टिनट्ले पुरिट्लोने आ विष्णुवुनु संहरिस्तानु’ अनुकॊण्टू समयं कोसं ऎदुरु चूडसागाडु. कारणं शत्रुत्वमे अयिना निरन्तरं हरिस्मरणतोने कालं वॆळ्ळबुच्चुतुन्नाडु. 151 इतडिला निरन्तरं हरिध्यासलोने उण्टू उण्डगा ब्रह्मदि देवतलू परमशिवुडू, नारदादि महर्षुलू देवकीदेविदग्गरकु वच्चि ‘आमॆ गर्भंलो उन्न श्रीमन्नारायणुण्णि उद्देशिञ्चि - म. गुरुपाठीनमवै जलग्रहमवै कोलम्बवै श्रीनृके सरिवै भिक्षु"डवै हयाननु"डवै क्ष्मादेवताभर्तवै धरणी नाथु"डवै दयागुण गणोदारुण्डवै लोकमुल् परिरक्षिञ्चिन नीकु म्रॊक्कॆद मिलाभारम्बु वारिम्पवे ! (10-1-100) स्वामी! मत्स्य, कूर्म, वराह, नारसिंह, वामन, हयग्रीव, परशुराम, श्रीरामादि अवतारालतो दयादि गुणालतो अवतरिञ्चि, लोकाल्नि परिरक्षिञ्चिन स्वामी, नीकु नमस्कारं, त्वरगा अवतरिञ्चि भूभारान्नि तग्गिञ्चु स्वामी! अनि वेडुकॊन्नारु. वारु कोरुकुन्न आ शुभतरुणं राबोतोन्दि ! श्रीकृष्णावतार घट्टं लोकालन्नी आनन्दपारवश्यंलो तेलियाडुतुन्नवेळ अर्धरात्रि देवकीदेवि गर्भं नुण्डि आदिनारायणुडु अवतरिञ्चाडु. पदहरु कळलतो प्रकाशिञ्चे पुन्नम चन्द्रुडिनि पोलिन मुखन्तो स्वामि बालुडिगा साक्षात्करिञ्चाडु. चतुर्भुजाललो शङ्खचक्रगदापद्मालनु धरिञ्चि उन्नाडु. तामरपुव्वुल वण्टि नेत्रालतो ऒप्पुतुन्नाडु. कौस्तुभमणितो, श्रीवत्समने पुट्टुमच्चतो, मकर कुण्डलाल कान्तुलतो, वज्रकिरीटन्तो वॆलुगॊन्दुतुन्नाडु. सी. जलधरदेहु नाजानुचतुर्बाहु सरसीरुहक्षु विशालवक्षु जारुगदाशङ्ख चक्रपद्मविलासु" गण्ठकौस्तुभमणिकान्तिभासु" गमनीय कटिसूत्र कङ्कण केयूरु श्रीवत्सलाञ्छनाञ्चित विहरु दशम स्कन्धं 152 पोतन भागवतमु नुरुकुण्डल प्रभायुत कुन्तलललाटु वैदूर्यमणिगण वरकिरीटु ते.गी. बालु" बूर्णेन्दु रुचिजालु भक्तलोक पालु सुगुणालवालु" गृपाविशालु" जूचि तिलकिञ्चि पुलकिञ्चि चोद्यमन्दि युब्बि चॆलरे"गि वसुदेवु" डुत्सहिञ्चॆ (10-1-112) ई रूपान्नि चूसि वसुदेवुडु पुलकिञ्चिपोयाडु. आ दिव्यमङ्गळ स्वरूपान्नि वीक्षिञ्चिन देवकीदेवी आश्चर्यानन्दालतो उप्पॊङ्गिपोयिन्दि. देवकीदेवि आ बालुडिवैपु चूसिन्दि. एमा सौन्दर्यं? ऎन्त सौकुमार्यं! चूसी चूडगाने आमॆ मुखंलो चिरुनव्वु वॆल्लिविरिसिन्दि. इला अन्दि- ‘विश्वेश्वरा! ई विश्वान्नि नुव्वे नी लीललतो नडिपिस्तू उण्टावु. अदि तॆलुसुकॊनि निन्नु आराधिञ्चेवाडे विवेकि. आ विवेकिके शाश्वतसुखं, अमृतत्वं सिद्धिस्तायि. ई भौतिकमैन नेत्रालतो निन्नु चूडलेकपोतुन्नानु. नी ई स्वरूपान्नि उपसंहरिञ्चु. नीकिदे ना नमस्कारं’ अप्पुडु श्री महविष्णुवु देवकीदेवितो इला अन्नाडु- ‘‘अम्मा! पूर्वं नुव्वु ‘पृश्नि’ अने महपतिव्रतवु. अप्पुडु ई वसुदेवुडु ‘सुतपुडु’ अने ऒक प्रजापति. मीरिद्दरू ना गुरिञ्चि घोर तपस्सु चेसि नन्नु प्रसन्नं चेसुकॊन्नारु. नाकु साटिरागल पुत्रुण्णि प्रसादिञ्चमनि कोरारु. अप्पुडु नेनु मीकु ‘पृश्निगर्भुडु’ अने पेरुतो जन्मिञ्चानु. रॆण्डो जन्मलो मीरु अदितिकश्यपुलय्यारु. अप्पुडु वामनुडिगा उद्भविञ्चानु. मूडो जन्मलो इदुगो इप्पुडु इला जन्मिञ्चानु. इदे चिवरि जन्म. मळ्ळी नाकु मी पुत्रुडिगा जन्म लेदु. श्रीहरि सङ्कल्पं वल्ल वसुदेवुडिकि प्रस्तुत कर्तव्यं स्फुरिञ्चिन्दि. आ बिड्डनु तीसुकॊनि चप्पुडु चेयकुण्डा बन्दिखानालोञ्चि बयटपड्डाडु. 153 अक्कड व्रेपल्लॆलो अदे समयानिकि नन्दुडि भार्य यशोदादेवि गर्भंलो योगमाय जन्मिञ्चिन्दि. आ ऊरु ऊरन्ता मैकंलो निद्रपोयिन्दि. वसुदेवुडु पुरिटिण्टिनि दाटि चावडिलोकि वच्चाडु. अन्ता विष्णुमाय. अतडि सङ्कॆळ्ळु तॆगिपोयायि. तलुपुलकु वेसिन ताळालु ऊडिपोयायि. द्वारालु अवे तॆरुचुकुन्नायि. वसुदेवुडु मॆल्लगा द्वारालु दाटुतुण्टे आदिशेषुडु वॆनुक उण्टू द्वारालु मूस्तू वस्तुन्नाडु. पगडलु विप्पार्चि आ बालुडिकि गॊडुगुपट्टाडु. वसुदेवुडु चीकट्लो मुन्दुकु सागिपोतुन्नाडु. मध्यलो यमुनानदि. ऎगिसिपडे कॆरटालतो परवळ्ळु तॊक्कुतोन्दि. अयिना वॆण्टने दारि इच्चिन्दि. वसुदेवुडु व्रेपल्लॆ चेरुकॊनि यशोदादेवि प्रक्कलो ई बालुण्णि पडुकोबॆट्टि अक्कड उन्न बालिकनु तीसुकॊनि वेगङ्गा तिरिगि वच्चि देवकीदेवि प्रक्कलो पडुको बॆट्टाडु. कारागृहंलो चिन्नि पाप केर्केर्मनि एडवटं विन्नारु भटुलु. अप्पटिकि विष्णुमाय तॊलगिपोयिन्दि. ई वार्त विन्न कंसुडु उन्नफळङ्गा वच्चाडु. रोषन्तो विजृम्भिञ्चि आ चिन्नि पाप गॊन्तु कोयडानिकि सिद्धपड्डाडु. देवकीदेवि अड्डुपडिना कंसुडु विनलेदु. तोबुट्टुवुनु नाना माटलू अनि आ बिड्ड काळ्ळु पट्टुकॊनि लागाडु. वॆण्टने आ बिड्ड रिव्वुन आकाशंलोनिकि दूसुकॊनिपोयिन्दि. ऎनिमिदि चेतुलु, वाटिलो ऎनिमिदि दिव्यायुधालु, शरीरं निण्डा दिव्याभरणालू वॆलिगिपोतू उण्टे आमॆ आकाशंलो कनिपिस्तू कर्कशङ्गा इला अन्दि- ‘दुर्मार्गुडा! अन्तुलेनि क्रोधन्तो ई देवकीदेविकि पुट्टिन शिशुवुलन्दरिनी मट्टुपॆट्टावे! चिवरिकि आडपिल्लनु कूडा चम्पडानिकि सिद्धपड्डावा? इदेना नी वीरत्वं? निन्नु संहरिञ्चे महवीरुडु सरिग्गा नेनु पुट्टिन समयानिके पुट्टि वेरेचोट पॆरुगुतुन्नाडु’ अनि बॆदिरिञ्चि अदृश्यमैपोयिन्दि. कंसुडि तल तिरिगिपोयिन्दि. एं चेयालो पालुपोलेदु. चच्चिन पामुला कोपमन्तटिनी चल्लार्चुकॊनि, शान्तङ्गा देवकी वसुदेवुल्नि चूसि - दशम स्कन्धं 154 पोतन भागवतमु ‘शान्तस्वभावुलारा! नन्नु मन्निञ्चण्डि. मी बिड्डल्नि चम्पि मीकु तीरनि गर्भशोकान्नि कलिगिञ्चानु. इदन्ता ना कर्म. अदे नन्नु नडिपिस्तोन्दि. चम्पडानिकिगानी चावडानिकिगानी ऎवरू कर्तलु कारु. इप्पुडु ऒकरि नेरालनु ऒकळ्ळु ऎञ्चुकोवटं अनवसरं. शान्तिञ्चण्डि’ अण्टू वाळ्ळ पादालपै पड्डाडु. इकनुण्डी मीरू नेनू ऒकटे’ अन्नाडु. देवकीवसुदेवुलु शान्तिञ्चारु. तरुवातरोजु कंसुडु मन्त्रुलतो मन्तनालु जरिपाडु. वाळ्ळन्दरू आलोचिञ्चि ‘ऎक्कड ए पसिबिड्ड एडुपु विनिपिञ्चिना पट्टि वधिञ्चाल्सिन्दे’ अनि सलह इच्चारु. अयिते श्रीहरिनि ऎक्कडनि वॆतकटं? म. अमरश्रेणिकि नॆल्ल" जक्रि मुखरुं डाचक्रि ये धर्ममं दमरुन् गोवुलु भूमिदेवुलु दितिक्षाम्नायकारुण्य स त्यमुलुन् याग तपोदमम्बुलुनु श्रद्धाशान्तुलुन् विष्णुदे हमुलिन्निण्टिनि संहरिञ्चिन नतं डन्तम्बुनुं बॊन्दॆडिन् (10-1-168) ‘गोवुलु, ब्राह्मणुलु, वेदालु, सहनं, कारुण्यं, सत्यं, यागं, तपस्सु, दमं, श्रद्ध, शान्ति - इवन्नी विष्णुवु शरीराले. काबट्टि इन्निण्टिनी अन्तं चेस्ते अतडिकि निलुव नीड उण्डदु’ अनि मन्त्रुलु अन्नारु. कंसुडु वाळ्ळ माटलकु तलूपाडु. तर्वात राक्षसुलु विजृम्भिञ्चारु. साधुवुल्नि हिंसिञ्चटं मॊदलु पॆट्टारु. अला हिंसिञ्चि हिंसिञ्चि वाळ्ळ बलं क्रमङ्गा क्षीणिञ्चिन्दि. परीक्षि न्महराजा! अन्ते! पूज्युलैनवारिनि बाधिस्ते कीर्ति, ऐश्वर्यं, धर्मं, आयुवु ऒकटेमिटि समस्तमू नाशनमैपोतायि. इक्कडिला उण्टे अक्कड व्रेपल्लॆलो नन्दुडु तनकु कॊडुकु पुट्टाडनि सम्बरालु चेसुकॊण्टुन्नाडु. दानधर्मालु गॊप्पगा जरिपिञ्चाडु. सन्दडे सन्दडि गोकुलं मॊत्तं नन्दगोपबालुण्णि चूडटानिकि उत्साहङ्गा बयलु देरिन्दि. पालु पॆरुगु नेतुलने वसन्तालुगा जल्लुकॊण्टू छलोक्तुलु विसुरु 155 कॊण्टू सागिपोतुन्नारु. इङ्क गोप वनितलैते - ‘आह! ए नोमुफलमो! वेकुवने वीनुलविन्दुगा ऒक चल्लनि कबुरु चॆवुल्लो पडिन्दम्मा! मन यशोद ऒक चिन्न कॊडुकुनु कन्नदट! चूसिवद्दां! रण्डम्मा!’ अण्टू यशोद इण्टिकि परुगु तीशारु. तम शक्तिकॊलदी तॆच्चिन कानुकलनु इच्चि श्रीकृष्णुडिनि चूसि आनन्दिञ्चारु. अक्कडितो आगलेदु. आ पापडिकि तलकु नूनॆ अण्टि, शरीरानिकि पसुपु पूसि स्नानं चेयिञ्चि ‘हरिरक्ष’ अण्टू नीळ्ळु चुट्टू तिप्पि चल्लि, उय्याललो पडुकोबॆट्टि जोल पाडारु. कं. जो जो कमलदळेक्षण ! जो जो मृगराजमध्य! जो जो कृष्णा! जो जो पल्लवकरपद! जो जो पूर्णेन्दुवदन! जो जो यनुचुन् (10-1-190) आ श्रीकृष्णुडि मायलू लीललू ऒकटा रॆण्डा… पुट्टीपुट्टटन्तोने मायलु मॊदलुपॆट्टाडु आ महनुभावुडु. लोकालन्निण्टिनी जोकॊट्टि निद्रपुच्चि तानु मात्रमे मेल्कॊनि उण्डे मायावि इप्पुडु गोपिकलु जोकॊडुतुण्टे तानू निद्रपोतुन्नट्ले नटिस्तुन्नाडु. जगत्तुलन्निण्टिकी तल्ली दण्ड्री ताने अयिनवाडु इप्पुडु यशोदादेवि चनुब्रालु तागुतुन्नाडु. पॆरगटं, तरगटं तॆलियनि ई परब्रह्म इप्पुडी यशोद ऒडिलो ऒदिगिपोयाडु. क्रमङ्गा पॆरुगुतुन्नाडु. ऎन्नि तपस्सुलु चेसिना पण्डनि बङ्गारु पण्ट इप्पटिकि पण्डिन्दि ई व्रेपल्लॆलो. नन्दुडू वसुदेवुडू परीक्षिन्महराजा! मथुरकु वॆळ्ळि कप्पं चॆल्लिञ्चि वसुदेवुडि इण्टिकि वॆळ्ळाडु नन्दुडु. नन्दुण्णि चूडगाने प्राणं लेचि वच्चिनट्लयिन्दि वसुदेवुडिकि. प्रेमगा कौगिलिञ्चुकॊनि ‘मित्रमा! ऎन्नाळ्ळकु निन्नु चूशानु! ना प्राणं लेचिवच्चिन्दि. नेनु ब्रतिकानय्या! इङ्क ना आपदलन्नी गट्टॆक्किनट्ले. नीलाण्टि स्नेहितुण्णि दशम स्कन्धं 156 पोतन भागवतमु चूडटं अण्टे चच्चिनवाडु मळ्ळी पुट्टटमे कदा! अण्टू क्षेमसमाचारा लडिगि तॆलुसुकुन्नाडु. ‘ना कॊडुकु आनन्दङ्गा उन्नाडा?’ अनी अडिगाडु. दानिकि नन्दुडु वॆण्टने ‘वसुदेवा! ऎन्त घोरं.. नी बिड्डलन्दरिनी चिवरिकि आडपिल्लनि कूडा कंसुडु निर्दाक्षिण्यङ्गा संहरिञ्चाडु. नीकॆन्तटि कष्टं वच्चिन्दय्या! मॊत्तम्मीद नीकु बिड्डले लेकुण्डापोयारु. सरेले! ना कॊडुकुने नी कॊडुकु अनुको! अन्नाडु. इला कॊन्तसेपु इद्दरू आप्यायङ्गा माट्लाडुकुन्नारु. इन्तलो गोकुलंलो एवो उत्पातालु कलिगे सूचनलु कन्पिस्तुन्नायनि चॆप्पि नन्दुण्णि सागनम्पाडु वसुदेवुडु. पूतन वध ईलोगा कंसुडु पूतन अने ऒक राक्षसिनि पम्पाडु. पूतन अन्दमैन ऒक मानव युवति रूपंलो यशोद इण्ट्लोकि प्रवेशिञ्चिन्दि. मञ्चम्पै उन्न श्रीकृष्णुडिनि चूसिन्दि. पूतन राकनु गमनिञ्चिन गोपालबालुडु दॊङ्ग निद्र नटिञ्चाडु. गुरक कूडा पॆडुतुन्नाडु. पूतन मॆल्लगा बालुण्णि ऎत्तुकॊनि तन पालिण्ड्लकु हत्तुकॊन्दि. शिरसु मूर्कॊनि मुद्दुपॆट्टुकुन्दि. यशोदा, रोहिणी वद्दु वद्दु अन्ना विनकुण्डा नेरुगा वच्चि मुद्दुगारे बालुण्णि ऒळ्ळो पडुकोबॆट्टुकॊनि ‘चिन्नितण्ड्री! आकलिवेस्तोन्दा! रा रा! ना पालु त्रागु’ अण्टू चन्नु कुडपटानिकि प्रयत्निस्तोन्दि. बालकृष्णुडु मॆल्लगा पालु त्रागटं मॊदलुपॆट्टाडु. अन्ते गुटुक्कु गुटुक्कुमनि रॆण्डु ग्रुक्कल्लो पालू, आमॆ शरीरंलोनि शक्ती पील्चिवेयटं मॊदलुपॆट्टाडु. पूतन बाधतो तल्लडिल्लिपोयिन्दि. चिवरिकि पालतोपाटे आमॆ प्राणालु कूडा पील्चिवेशाडु बालकृष्णुडु. पूतन शरीरं रॆक्कलु विरिगिपड्ड पॆद्द पर्वतंला नेलपै कूलिपोयिन्दि. चस्तू चस्तू पॆद्द गावुकेक पॆट्टिन्दि. आ ध्वनिकि दिक्कुलु अदिरिपोयायि. भूमि अदिरिपोयिन्दि. लोकालु चलिञ्चिपोयायि. इक गोपालुरैते मूर्छपोयारु. 157 कूलिपोयिन राक्षसि शरीरम्पै चिद्विलासङ्गा आडुकॊण्टुन्नाडु श्रीकृष्णुडु. गोपिकलु वॆण्टने वच्चि पिल्लवाण्णि ऎत्तुकॊनि, वीपुपै मॆल्लगा भयपडकुण्डा चरिचि, आवु तोकतो दिष्टि तीशारु. गोधूळिनी, गोमूत्रान्नी बालुडिपै चल्लारु. पन्नॆण्डु पेर्लतो पन्नॆण्डु अवयवालकू गोमयान्नि पट्टिञ्चारु. रक्षलु कट्टारु. तरुवात यशोद तन चन्नुपालु इच्चिन्दि. पानुपुपै पडुकोबॆट्टि जोलपाट पाडिन्दि. नन्दुडु तिरिगिवच्चि ‘अवुनु! वसुदेवुडु महज्ञानि. अतडु चॆप्पिनट्ले जरिगिन्दि’ अनुकॊनि आ पूतन शरीरान्नि मुक्कलु चेयिञ्चि दहनं चेयिञ्चाडु. परीक्षिन्महराजा! आ पूतन शरीरं कालुतुन्नप्पुडु अगरु परिमळं वच्चिन्दट! ऎन्दुको तॆलुसा? आ श्रीकृष्णुडु पालतो पाटु विषान्नी, शरीर मालिन्यान्नी पील्चिवेशाडट! श्रीकृष्णुडु मीद काळ्ळू चेतुलू वेसि पालु तागाडु कदा! दानिवल्ल अन्त क्रूर राक्षसिकि कूडा परमपदं लभिञ्चिन्दि तॆलुसा?! आनन्दं… आश्चर्यं आ परमात्मकु ऒके ऒक्कसारि अदी विषन्तो निण्डिन पालु इच्चिन आ पूतनके स्वर्गं वच्चिन्दण्टे मरि ऎन्तो प्रेमगा रोजू पालिच्चि पॆञ्चिन आ यशोदकु मोक्षमे कानी मळ्ळी जन्मण्टू उण्टुन्दा?! राजा! कॊन्नाळ्ळकु श्रीकृष्णुडु बोर्लापड्डाडु. अन्दुकनि आ रोजु यशोद पॆद्द वेडुक चेसिन्दि. अन्दुना आ रोजु श्रीकृष्णुडि जन्मनक्षत्रं. पेरण्टं पॆट्टि साटिलेनि दानालु चेसिन्दि. ऎवरु एदि कोरिते अदि समर्पिस्तू अन्दरिनी अलरिम्पजेसिन्दि. बालकृष्णुडिकि पालुपट्टि निद्रपुच्चिन्दि. यशोद ई दानधर्माल हडावुडिलो उन्दि. बालकृष्णुडु निद्रलेचाडु. आ चिन्न पॊट्टलो आकलि चिन्दुलुवेसिन्दि. तल्लि पालिण्ड्ल कोसं तडिमाडु कानी दॊरकलेदु. कोपं वच्चिन्दि. काळ्ळु आडिस्तू आ कोपान्नि प्रदर्शिञ्चाडु. आ पादाललो दिव्यरेखलु प्रकाशिस्तुन्नायि. आ पादालतोने प्रक्कने उन्न ऒक बण्डिनि ऒक्क तन्नु तन्नाडु. अन्ते! आ बण्डि पैकि ऎगिरि किन्दपडि मुक्कलु मुक्कलैपोयिन्दि. दशम स्कन्धं 158 पोतन भागवतमु अदि चूसिनवाळ्ळकु नोट माट रालेदु. आ बण्डिलो उन्न मधुरमैन पदार्थालन्नी नेलपालैपोयायि. अन्दरिलो एदो भयं. ‘अदुगो! श्रीकृष्णुडि कालु तगिलि ई बण्डि इला अयिन्दि’ अनि चॆप्पारु चूसिन पिल्ललु कॊन्दरु. आ माटलु विनि ‘ओहो! ई पिल्लवाडॆक्कड? आ बण्डि ऎक्कड? आकाशंलो ऎगिरिपडेला कालितो तन्नडं ऎक्कड? ऎन्दुकी पिल्ललु अबद्धालाडुतुन्नारु? ऎक्कडैना इलाण्टि नम्मशक्यं कानि माटलॆवरैना चॆप्तारा? इदॆक्कडि विड्डूरं? अयिना इन्दुलो एदो उन्दि’ अनि अन्दरू आश्चर्यंलो मुनिगिपोयारु. ऒकरोजु एमैन्दोगानी तन ऒळ्ळो उन्न बालकृष्णुडु पर्वतमन्त बरुवु पॆरिगिपोयाडु. यशोद मोयलेक आ बालुण्णि नेलपै पडुकोबॆट्टिन्दि. आश्चर्यपोयिन्दि. कॊञ्चॆं भयं. तृणावर्तुडि संहरं अन्दुक्कारणं तृणावर्तुडु अने राक्षसुडु. इतण्णि पम्पिन्दि कंसुडे! वाडु सुडिगालिला रय्यिमनि चॆलरेगिपोयाडु. वच्चि बालुण्णि आकाशंलोनिकि तीसुकॊनिपोयाडु. ऒकटे दुम्मु. ऎवरिकी एमी कनिपिञ्चलेदु. प्रळय प्रभञ्जनंला गालि विसिरिविसिरि कॊडुतोन्दि. ऒक क्षणंलोने लोकालन्नी तल्लडिल्लिपोयायि. पसिवाडु कनिपिञ्चकपोयेसरिकि यशोद कलवरपडिपोयिन्दि. लेग कनिपिञ्चनि आवुला उन्दि आमॆ परिस्थिति. पैन तृणावर्तुडु तीसुकुपोयिन श्रीकृष्णुडु क्रमक्रमङ्गा बरुवु पॆरिगिपोयाडु. आ बरुवु भरिञ्चे शक्ति वाडिकॆक्कडिदि? चिवरिकि कदलडं कूडा कष्टङ्गा उन्दि. इन्तलो श्रीकृष्णुडु तन रॆण्डु चेतुल्नी आ राक्षसुडि मॆडकु तगिलिञ्चाडु. अवि एनुगु तॊण्डाल्ला उन्नायि. आ चेतुलतो वाडि मॆडनु पट्टुकॊनि वेळ्ळाड सागाडु श्रीकृष्णुडु. इक आ राक्षसुडि पनि अयिपोयिन्दि. बालुडि बरुवु 159 मोयलेक पक्षिला गिलगिला कॊट्टुकुण्टुन्नाडु. ऒळ्ळु पट्टुतप्पि बालुडितो सह किन्दपड्डाडु. पडटं पडटमे राळ्ळकुप्पपै पडटन्तो वाडि शरीरं तुक्कुतुक्कु अयिपोयिन्दि. वॆण्टने प्राणालु गाल्लो कलिसिपोयायि. गोपिकल पॆदवुलपै चिरुनव्वु मॊलकॆत्तिन्दि. राक्षसुडि शरीरम्पै विच्चिन पुव्वुलाण्टि मुखन्तो बालकृष्णुडु मुच्चटगा आडुकॊण्टुन्नाडु. पिल्लवाण्णि यशोद चेतिकन्दिञ्चि - मेमन्ता पूर्व जन्मल्लो एये नोमुलु नोचामो! ए यागालू दानालू ध्यानालू चेशामो! ए सत्यं पलिकामो! ए पुण्यतीर्थालु मॆट्टामो! इप्पुडु ई बालकृष्णुण्णि इला दर्शिञ्चगलुगुतुन्नां!’ अन्नारु गोपिकलु. अप्पुडु नन्दुडिकि वसुदेवुडु चॆप्पिन माटले चॆवुल्लो मार्र्मोगुतुन्नायि. लोलोपल भयपडुतूने उन्नाडु. परीक्षिन्महराजा! कं. रक्षणमु लेक साधु"डु रक्षितु"डगु समत" जेसि रायिडुलन्दुन् रक्षणमुलु वॆयि गलिगिन शिक्षितु"डगु खलु"डु पापचित्तुं डगुटन् (10-1-277) समबुद्धिकल सज्जनुडिकि ए रक्षणा लेकपोयिना समयानिकि रक्षण लभिस्तुन्दि. इदि लेनन्दुवल्ल दुर्जनुडिकि ऎन्त कट्टुदिट्टमैन रक्षणा उन्ना शिक्ष पडुतुन्दि. मरोसारि एमैन्दो विनु. ऒकसारि यशोदादेविकि पालु चेपुकुवच्चायि. बालकृष्णुडिकि प्रेमतो पालु कुडिपिन्दि. श्रीकृष्णुडु आवुलिञ्चाडु. अप्पुडु अतडि मुखं ऒक पॆद्द कॊण्डगुहला कनिपिञ्चिन्दि. अन्दुलो समस्त विश्वमू उन्दि. अदि चूसि आमॆ निव्वॆरपोयिन्दि. गर्ग महर्षि मरोसारि गर्गमहर्षि व्रेपल्लॆकु विच्चेशाडु. इतडु यादवुलकु पुरोहितुडु. वसुदेवुडु पम्पगा वच्चाडु. नन्दुडु महर्षिकि उचित सत्कारालु चेसि - दशम स्कन्धं 160 पोतन भागवतमु कं. ऊरकरारु महत्मुलु वा रधमुल इण्ड्लकडकु वच्चुट लॆल्लं गारणमु मङ्गळमुलकु नी राक शुभम्बु माकु निजमु महत्मा! (10-1-284) महत्मा! मीलाण्टि महत्मुलु ऊरिके रारु. मीलाण्टिवाळ्ळु मालाण्टि अधमुल इळ्ल वद्दकु वच्चारण्टे अदि सर्वशुभालकू कारणमवुतुन्दि.’ अण्टू आनन्दिम्पजेशारु. अप्पुडु गर्गमहर्षि रोहिणी देवि कुमारुडिकि रामुडु, सङ्कर्षणुडु, बलुडु अनि नामकरणं चेशाडु. इक यशोद कुमारुडिकि श्रीकृष्णुडु, वासुदेवुडु अनि नामकरणं चेशाडु. अन्तकु मुन्दु अवताराल्लो इतडु तॆलुपु, ऎरुपु, पसुपु रङ्गुललो उन्ना इप्पुडु ई अवतारंलो नल्लगा उन्नाडु काबट्टि श्रीकृष्णुडने पेरु, वसुदेवुडि कुमारुडु काबट्टि वासुदेवुडु अने पेरु पॆट्टाडु. चेयवलसिन संस्कारालु रहस्यङ्गाने जरिपिञ्चि गर्गुडु बयलुदेरि वॆळ्ळिपोयाडु. श्रीकृष्ण बलरामुल बाल्यक्रीडलु श्रीकृष्ण बलरामुल बाल्य क्रीडलु नयन मनोहरं. परीक्षिन्महराजा! ऒकसारि मोकाळ्ळ मीद लेचि निलबडतारु. मुन्दुकु तूलुतू बुडिबुडि अडुगुलु वेस्तू, तल्लि कॊङ्गु पट्टुकॊनि लागुतू आवुदूडल तोकलु मॆलिपॆडुतू, लागुतू, बुरदलो पॊर्लाडुतू इला वाळ्ळु चेसे चेष्टलु मुद्दुलॊलिकिस्तू उण्टे चूसिनवाळ्ळ जन्मलु तरिञ्चिपोमा! वच्ची रानि मुद्दुमाटलु, चिटिपॊटि नृत्यालु, चिन्दुलु, केरिन्तलु आकाशंलो देवतलकु आनन्दान्नि कलिगिस्तुण्टे लोकंलोनि दुर्मार्गुलकु दड पुट्टिस्तुन्नायि. इक बालकृष्णुडु तोटि बालुरकु नायकुडैपोयाडु. अल्लरि पॆरिगि पोयिन्दि. तल्लि वारिस्ते अलिगि दूरङ्गा वॆळ्ळिपोताडु. यशोद मुद्दुगा चेतुलु चाचि ना तण्ड्री! अनि पिलिस्ते परिगॆत्तुकु वच्चि ऎप्पटिलागे पालु त्रागुताडु. 161 अतडला नडयाडुतू उण्टे मॊलताडुकु कट्टिन गण्टलु म्रोगुतू उण्टायि. गोपस्र्तील इळ्ळलोनि वॆन्नल्नि आरगिञ्चि एमी ऎरगनिवाडिला तल्लि कॊङ्गु चाटुन ऒदिगिपोताडु. ‘अम्मा! चनुबुव्व पॆट्टमा’ अण्टू गोमुगा अडुगुताडु. अन्तेना! तक्किन पिल्ललतो कलसि ऎन्नि आटलु आडाडो चॆप्पलें. ‘मीरन्दरू आवुलु. नेनु आम्बोतुनु’ अण्टू रङ्कॆवेसि परुगुतीस्ताडु. ‘नेनु राजुनि, मीरु ना भटुलु’ अण्टू वाळ्ल वस्तुवुलु लाक्कॊनि पारिपोतुण्टाडु. ‘नेनु सूत्रधारिनि, मीरु वेषगाळ्ळु’ अण्टू अन्दरिनी ऒक आट आडिस्ताडु. दागुडुमूत लाडताडु. उय्याल लूगुताडु. इला ऒकटा रॆण्डा आ बालकृष्णुडि लीललु… ऒकसारि एमैन्दो तॆलुसा.. ई बालकृष्णुडि आगडालकु तट्टुकोलेक ओपिक नशिञ्चिन गोपिकलु यशोद दग्गरकि वच्चारु. गोपिकल मॊर ‘अम्मा! यशोदा! ऒकप्रक्क चण्टिपिल्ललकु पालु लेवनि मा इण्ट्लो बालिन्तलु मॊरपॆडुतू उण्टे नी कॊडुकु लेगदूळ्ळकु त्राळ्ळु विप्पि आवुल दग्गरकि वदुलुतुन्नाडम्मा!’ अन्दो गोपिक. वॆण्टने मरो गोपिक अन्दुकॊनि- ‘पडती! नी बिड्डडु मा कडवललो उन्न मञ्चि कागिन पालु तीसुकुवॆळ्ळि आ पडुचुलकु पोसि मिगिलिन कुण्डलनु दॊरिकिन कुण्डनु दॊरिकिनट्लुगा पगलगॊट्टेशाडु.’ इङ्को गोपिक - ‘ओ तल्ली, मी पापडु मा इळ्ळलो दूरि पालकोसं वॆतुकुताडु. दॊरिकिते सरे! दॊरक्कपोते विसुरुगा कोपंलो पसिबिड्डल्नि तॊक्कुकुण्टू तोसुकुण्टू वच्चेस्तुन्नाडम्मा!’ पक्कने उन्न मरो गोपिक - ‘अम्मा, यशोदा! निन्नगाक मॊन्न पुट्टाडो लेदो! इन्त लेडु, नी बिड्डडिकि इन्नि दॊङ्गतनाला? मा इळ्ळलो जॊरबडि उट्टि अन्दकपोते किन्दनुञ्चे कुण्डनु चिल्लुपॆट्टि दोसिळ्ळतो पालू मीगडलू आरगिञ्चेस्तुन्नाडु. एं चॆप्पमण्टावम्मा!’ अण्टोन्दि मॆटिकलु विरुस्तू. ‘मॊन्नटिकि मॊन्न नीकेमो आडुकोवडानिकनि चॆप्पि ओ इण्ट्लो दूरि पॆरुगु त्रागि वॆळ्ळिपोयाडु. वॆळ्ळेवाडु वॆळ्लकुण्डा निद्रपोतुन्न कोडलि मूतिकि कॊद्दिगा दशम स्कन्धं 162 पोतन भागवतमु पॆरुगु रासि मरी पोयाडु. इक चूडु! अत्तगारु वच्चि कोडलिनि चितक्कॊट्टिन्दण्टे नम्मु!’ अन्दि इङ्कॊक गोपिक चिर्रुबुर्रुलाडुतू. ‘नी सुपुत्रुडु इङ्का एं चेशाडो तॆलुसा? ऒकरि इण्ट्लोकि जॊरबडि घुमघुमलाडे नॆय्यि कास्ता त्रागि आ कडवनु तॆच्चि इङ्कॊकरि इण्ट्लो पडेशाडु. इक वाळ्ळिद्दरू तन्नुकुन्नारु चूडू!’ अन्दि मरो गोपिक. ‘चूडम्मा, यशोदा! नी बिड्डडि कन्नु मा इण्ट्लो उन्न देवता चित्राल गोडलपै पडिन्दि. ‘नाकन्ना वीळ्लु गॊप्पवाळ्ळा!’ अण्टू उम्मिवेसि गोडल्नि ऎङ्गिलि चेशाडु. नीकु नव्वॊस्तुन्देमो! इदि विनु’ अन्दो गोपिक. गोपिकलन्दरू ऒक्कॊक्करू इला चॆबुतुन्नारु. ‘मा मगवाळ्ळु बयटकु वॆळ्ळाक रहस्यङ्गा वच्चि मम्मल्नि आडुकुन्दां वस्तारा! अनि पिलुस्ताडु. अलसिपोयि निद्रपोयिन ना कॊडुकु जुट्टुनु लेगदूड तोककु कट्टि दान्नि वीथुल्लोकि तोलाडम्मा! नी गारालपट्टि. ऎन्त दॊड्ड वारि बिड्डलैते मात्रं मरी इन्त अल्लरा!’ ‘इक ना कॊडुकुकैते बलवन्तङ्गा बानॆडु वॆन्न पट्टिञ्चाडम्मा नी कॊडुकु. वाडिकि ऊपिराडिते ऒट्टु. कावालण्टे तॆच्चि चूपिस्तानु’ इला ऒक्कॊक्करू चॆप्पि, चिवरिकि अन्दरू कलिसि- ‘मीरु प्रभुवुले कावच्चु. सम्पदलुण्टे कडुपु निण्डा तिण्टारु. ऒण्टि निण्डा नगलु दिगेसुकुण्टारु. विलुवैन बट्टलु कट्टुकुण्टारु. अन्तेगानि इला बिड्डल्नि पेदवाळ्ल कॊम्पलमीदिकि उसिगॊल्पुतारा ऎवरैना? आलोचिञ्चु. कं. ओ यम्म! नी कुमारु"डु मा यिण्ड्लनु बालु" बॆरुगु मननी"डम्मा! पोयॊद मॆक्कडि कैननु मायन्नल सुरभुलान! मञ्जुलवाणी! (10-1-329) ओ अम्मा! मञ्जुलवाणी! नी पुत्रुडु मा इळ्ललोनि पालू पॆरुगू उण्डनिव्वडु. काबट्टि मेमु ऎक्कडिकैना वॆळ्ळिपोतां. मा अन्नल मीदा, आवुल मीदा ऒट्टु.’ अण्टू अन्दरू मूकुम्मडिगा एकरुवु पॆट्टारु. 163 अप्पुडु यशोद अन्नी विनि, अन्दरिनी उद्देशिञ्चि - ‘एमिटेमिटी! मा कन्नय्य ऎप्पुडू ना ऒडि दिगडु. मा इल्लु तप्प वाडिकि इङ्केदारी तॆलियदु. सरिग्गा कळ्ळु कूडा तॆरवनि पसिगुड्डुपै इन्निन्नि अभाण्डालु वेस्तारा? मीकिदि भाव्यङ्गा उन्दा? तल्लुलारा! गुणवतुलारा! अभं शुभं तॆलियनि ना बिड्डडु तनलो ताने आडुकॊण्टू उण्टाडे! अलाण्टि पसिपिल्लाडिनि आडिपोसुकोकण्डि. मीकु दण्डं पॆडतानु’ अनि चॆप्पि वाळ्ळनु पम्पिवेसिन्दे कानी श्रीकृष्णुडिनि पल्लॆत्तु माटैना अनलेदु. विश्वरूप सन्दर्शनं ऒकरोजु बलरामुडु, इङ्कॊन्दरु गोपालुरु यशोद दग्गरकु वच्चि ‘अम्मा! अम्मा! श्रीकृष्णुडु मट्टि तिण्टुन्नाडु’ अनि चॆप्पारु. वॆण्टने वॆळ्ळि यशोद श्रीकृष्णुडि चेयि पट्टुकुन्दि. कोपङ्गा- ‘नान्ना! ऎन्दुकुरा मट्टि तिण्टावु? ने चॆप्पिन माट ऎन्दुकु विनवु? मी अन्नय्य, स्नेहितुलू चॆप्तुन्ना सरे! नीकु ई मन्नॆन्दुकुरा? तिनडानिकि वेरे इङ्केमी दॊरकलेदा? अन्दि. दानिकि श्रीकृष्णुडु गडसुगा- ‘अम्मा! मन्नु तिनडानिकिनेनेमैना चिन्नपिल्लवाण्णा! आकलितो उन्नाना? लेक वॆर्रिवाण्णा! वीळ्ळ माटलु नम्मकु. नन्नु नीतो कॊट्टिञ्चालने अला चॆप्तुन्नारु. कावालण्टे ना नोरु वासन चूडु. ना माटलु तप्पैते नन्नु दण्डिञ्चु’ अण्टू नोरु तॆरचि चूपिञ्चाडु. अप्पुडा बालकृष्णुडि नोट्लो समस्त विश्वमू गोचरिञ्चिन्दि यशोदकि. अदि चूसि- म. कलयो! वैष्णवमाययो! इतर सङ्कल्पार्थमो! सत्यमो तलपन् नेरक युन्नदाननॊ! यशोदादेविगानो! पर स्थलमो! बालकु"डॆन्त! यीतनि मुखस्थम्बै यजाण्डम्बु प्र ज्वलमैयुण्डुट केमि हेतुवॊ! महश्चर्यम्बु चिन्तिम्प"गन् (10-1-342) दशम स्कन्धं 164 पोतन भागवतमु इदि कला? वैष्णव माया! मरेदैना मिथ्यासङ्कल्पमा! सत्यमा! नाकेमी तॆलियटंलेदे! असलु नेनु यशोदादेविनि कानेमो! इदि वेरे चोटा? ई पिल्लवाडॆन्त? इतडि मुखंलो प्रकाशिस्तू कनिपिञ्चे ब्रह्मण्डमॆन्त? दीनिकि हेतुवु एमिटो! आश्चर्यं. इदि निजमे अयिते ई बालुडु साक्षात्तू श्रीमन्नारायणुडे अनि निश्चयिञ्चुकॊनि भक्तितो स्तोत्रं चेसिन्दि. शरणु वेडिन्दि. अज्ञानान्नि क्षमिञ्चमन्दि. अन्तलोने मळ्ळी विष्णुमाय आवहिञ्चटन्तो आ सत्यज्ञानान्नि मर्चि पोयिन्दि यशोद. तन कॊडुके अनुकॊनि ऒडिलोनिकि तीसुकॊनि प्रेमगा मुद्दुपॆट्टुकुन्दि’ अन्नाडु शुकयोगीन्द्रुडु. अप्पुडु परीक्षित्तु ‘मुनीन्द्रा! लोकान्नि कनि पॆञ्चे परमात्मुडिके तल्लिदण्ड्रुलैन आ यशोदानन्दुलु ऎन्तटि धन्युलो कदा!’ अन्नाडु. दानिकि समाधानङ्गा शुकमहर्षि ‘महराजा! पूर्वं वसुवुललो द्रोणुडु अने ऒक वसुवु उण्डेवाडु. अतडि भार्य धर. ब्रह्मदेवुडु ई दम्पतुल्नि भूमिपै जन्मिञ्चमनि कोराडु. विश्वेश्वरुडैन विष्णुमूर्तिनि सेविञ्चे भाग्यं कलिगिस्ते भूमिपै जन्मिस्तामनि वाळ्ळु कोरारु. ब्रह्मदेवुडु अङ्गीकरिञ्चाडु. अदुगो आ दम्पतुले ई यशोदानन्दुलु.’ श्रीकृष्णुडि अल्लरि ऒकरोजु यशोदादेवि पॆरुगु चिलुकुतोन्दि. अप्पुडे श्रीकृष्णुडु अल्लरि मॊदलुपॆट्टाडु. आमॆ पैट लागुतू ‘पालु कावालि’ अण्टू मारां चेस्तू पनिचेयनिव्वटंलेदु. ऒकवैपु कव्वन्तो चिलुकुतूने मरोवैपु कृष्णुण्णि लालिस्तोन्दि यशोद. अलागे ऒडिलोकि तीसुकॊनि पालु कूडा इच्चिन्दि. ईलोगा अक्कड पॊय्यिमीद पालु पॊङ्गुकु वच्चायि. श्रीकृष्णुण्णि पूर्तिगा पालु तागनिव्वकुण्डाने दिम्पि अक्कडिकि वॆळ्ळिन्दि. दानिकि कोपन्तो श्रीकृष्णुडु ऒक रायि विसिरि पॆरुगु कुण्ड पगुलगॊट्टाडु. पगिलिन कुण्डलोनि वॆन्न तिण्टू दॊङ्ग एडुपु एडुस्तू ऎटो वॆळ्ळिपोयाडु. 165 यशोद तिरिगिवच्चि चूसिन्दि. कुण्ड पगुलुकॊट्टिन श्रीकृष्णुडि अल्लरिकि मुसिमुसि नव्वुलु नव्वुकॊनि चुट्टू चूसिन्दि. एडी! श्रीकृष्णुडु? उण्टेना? पक्कवाळ्ळ इण्ट्लो उट्टिमीद उन्न वॆन्नकुण्डलोञ्चि वॆन्न तीसि कोतिकि तिनिपिस्तुन्नाडु. वॆतुकुतुन्न यशोदकु आ दृश्यं कण्टपडिन्दि. वॆण्टने विसविसा वच्चि श्रीकृष्णुडि चॆय्यि पट्टुकॊनि - ‘एरा! पोनीले कदा अनि ऊरुकॊण्टुण्टे रोजुरोजुकी नी अल्लरि मितिमीरि पोतोन्दि. निन्नु ऎवरू एमी अनरनेगा नी धैर्यं? असलु ना माटण्टे लॆक्क लेदु नीकु. उण्डु नी पनि चॆप्तानु. इवाळ ना चेतुल्लोञ्चि ऎला तप्पिञ्चुकुण्टावो चूस्तानु’ अनि बॆदिरिञ्चिन्दि. अयिते आमॆ मनस्सुलो ऎन्नो सन्देहलु. इतडु पसिवाडनुकोना, इलाण्टि चिन्नॆलु पॆद्दलकू लेवे! पोनी कॊञ्चॆं भयपॆडदामण्टे लेक लेक पुट्टाडाये! बुद्धि चॆबुदामण्टे तनकु तानुगाने बुद्धिगा उण्टाडे! एमी तॆलियकुण्डा इण्ट्लो कूर्चुण्टाडा अण्टे वॆळ्ळि चूडनि चोटण्टू उन्दा ई लोकंलो! तननु ऎवरैना चूस्ते पारिपोवडाल्लाण्टि आलोचनलू लेवे? असलु भयमनेदी ऒकटुन्दनि तॆलिस्तेगा.. कुदुरु लेदु. पैगा ऎकसॆक्कालकें तक्कुवलेदु. वीडिकि तगिन शास्ति चेयटं ऎला? मरी गाराबं चेस्ते पिल्ललु चॆडिपोतारु. अप्पुडप्पुडू नालुगु तगिलिञ्चाल्सिन्दे! मॊक्कै ऒङ्गनिदि मानै ऒङ्गुना? अण्टू बॆत्तं पट्टुकॊनि वॆण्टपडिन्दि. श्रीकृष्णुडु भयपडुतुन्नट्लु मुखम्पॆट्टि रोलुमीदिकि दूकाडु. पारि पोतुन्नाडु. यशोद वॆण्टपडिन्दि. अदि चूसि गोपिकलु नव्वे नव्वु. ‘आगु, आगु’ अण्टू अरुस्तू परिगॆडुतोन्दि यशोद. राजा! महमह योगीन्द्रुलके चिक्कनि ई पुरुषोत्तमुण्णि आ यशोद पट्टुकोवालनि परुगुतीसिन्दय्या! ऎन्त अदृष्टवन्तुरालो कदा! उलूखल बन्धनं श्रीकृष्णुडा दॊरिकेदि? अन्दकुण्डा परुगु तीस्तुन्नाडु. मरो पक्क ‘इङ्कॆप्पुडू दॊङ्गतनं चेयनम्मा! नन्नु क्षमिञ्चु’ अण्टू कॊट्टकमुन्दे एडुस्तुन्नाडु. मॊत्तानिकि यशोद गॆलिचिन्दि. श्रीकृष्णुण्णि चिक्किञ्चुकुन्दि. पट्टुकुन्दि दशम स्कन्धं 166 पोतन भागवतमु कानी चिन्निकृष्णुण्णि कॊट्टडानिकि आमॆकु चेतुलॆला वस्तायि? अन्दुके कॊट्टकुण्डा कट्टेद्दामनुकॊनि इला अन्दि- ऎवरण्डी वीरु! ओहो! श्रीकृष्णुलुगारा? ऎन्नडू वॆन्न अन्नदे चूडलेदट कदा पापं! दॊङ्गतनमण्टे एमिटो कूडा तॆलियदट! असलु इलाण्टि वाळ्ळु ई भूम्मीद उन्नारा? असलु नुव्वु एमनुकॊण्टुन्नावुरा? ऎवरिकी पट्टुबडननी नन्नु पट्टु कोवडं ऎवडिवल्ला कादनी पॆद्द बडायि. पट्टुबडिते निन्नु पट्टुकोवडं एमन्त कष्टमा? नाकु तॆलुसु निन्नु ऎला पट्टुकोवालो! ऎन्नॆन्नि वेषालु? ऎन्नॆन्नि तिरुगुळ्ळु? कुदुरॆक्कण्णिञ्चि तेवालम्मा दॊरगारिकि? अनि चिवरिकि ऒक रोटिकि कट्टिवेसिन्दि आ नवनीतचोरुडैन नन्दकिशोरुण्णि. परीक्षिन्महराजा! चूशावा! ऎन्त आश्चर्यं! यशोद तननला कट्टिवेयडन्तो निजङ्गाने कट्टुवडिपोयाडय्या आ गोपबालुडु. ऎन्तटि भक्तपराधीनुडो चूशावा! इदि ऒक्क यशोदके साध्यमयिन्दि. अयिना अप्पुडा यशोदकु अन्तटि विराट् स्वरूपुडू ऒक मामूलु पिल्लवाडे! लेकपोते इला कट्टगलदा? यशोद श्रीकृष्णुडिनि रोटिकि कट्टडानिकि ऒक ताडु तीसुकुन्दि. मुन्दु बालुडि नडुमु चुट्टू ऒक त्राडु चुट्टिन्दि. तरुवात अदि रॆण्डङ्गुळालु तक्कुवैन्दि. रोलुकु चुट्टिन्दि. मरो ताडु जतचेसिन्दि. मळ्ळी रॆण्डङ्गुळालु तक्कुवयिन्दि. मरो मुक्क जोडिञ्चिन्दि. अप्पुडू अन्ते! एमिटी विड्डूरं… यशोद आश्चर्यपोयिन्दि. तक्किन गोप स्र्तीलु अवाक्कैपोयारु. ऎन्तगा अलसि पोयिन्दो पापं यशोद. अयिना प्रयत्निस्तूने उन्दि. ऎन्नि ताळ्ळु अतुकुलु वेसिना कृष्णुडि नडुमुकु इङ्का रॆण्डङ्गुळालु तग्गुतूने उन्दि. तल्लि पडुतुन्न कष्टान्नि चूसि ताने ताडुकु सरिपडि कट्टुपड्डाडु. राजा! इन्तटि अनुग्रहनिकि लक्ष्मीदेविगानी, परम शिवुडुगानी, ब्रह्मदेवुडु गानी नोचुकोलेदु. ऒक्क यशोदके ई भाग्यं दक्किन्दि. अदि केवलं यशोदकु स्वामिपट्ल उन्न भक्तिवल्लने साध्यमयिन्दि. भक्तुलकु वशमैनट्लुगा आ पुरुषोत्तमुडु ऎन्तटि ज्ञानुलकुगानी, योगुलकुगानी दातलकुगानी पट्टुवडडु सुमा! 167 मद्दि चॆट्लकु मोक्षं सरे! यशोद श्रीकृष्णुडिनि अला रोटिकि कट्टिपडेसि तन पनुल्लो तनु मुनिगिपोयिन्दि. अल्लरि श्रीकृष्णुडु ऊरिके उण्टाडा? अक्कडे उन्न रॆण्डु पॆद्दपॆद्द मद्दि चॆट्लपै पडिन्दि अतगाडि कन्नु. नलकूबरुडु, मणिग्रीवुडु अने इद्दरु यक्षुले नारदुडि शापंवल्ल अला मद्दिचॆट्लुगा पडि उन्नारु. वीळ्ळु कुबेरुडि पुत्रुलु. शिवुडि सेवकुलमनी, धनवन्तुलमनी अहङ्करिञ्चि नारदमहर्षिनि अवमानिञ्चारु. अप्पुडु नारदुडु - शा. सम्पन्नुं डॊरु"गान" ले"डु तनुवुन् संसारमुन् नम्मि हिं सिम्पं जूचु दरिद्रु" डॆत्तुवडि शुष्कीभूतु"डै चिक्कि हिं सिम्पं डन्युल नात्मकुन् समुलुगा" जिन्तिञ्चु नट्टौट" द त्सम्पन्नान्धुन कञ्जनम्बु विनुमी! दारिद्र्य मूहिम्प"गन् (10-1-394) ‘धनवन्तुडु ऎवरिनी लॆक्कचेयडु, ई शरीरं, संसारं निजमनि नम्मि अन्दरिनी हिंसिञ्चालनि चूस्ताडु. कानी दरिद्रुडु तानु अष्टकष्टालु पडुतू कूडा ऎवरिनी हिंसिञ्चालनि अनुकोडु. काबट्टि धनन्तो कळ्ळु मूसुकुपोयिन वारिकि दारिद्र्यमे अञ्जनमै कनुविप्पुकलिगिस्तुन्दि अनि चक्कगा पाटकट्टि पाडि, मीरु नूरु दिव्यसंवत्सरालु मद्दि चॆट्लुगा पडि उण्डण्डि. श्रीकृष्णावतारंलो मीकु शापविमुक्ति कलुगुतुन्दि. अनि चॆप्पाडु. वाळ्ळ शापविमोचनं कोसमे श्रीकृष्णुडु रोलु ईड्चुकॊण्टू मद्दिचॆट्ल वद्दकु वॆळ्ळाडु. वाटि मध्यलोनुञ्चि रोलुनु पोनिच्चि अड्डङ्गा लागडन्तो आ चॆट्लु कूलिपोयि इद्दरु युवकुलु प्रत्यक्षमै ‘श्रीकृष्णा! परन्धामा! पङ्कज पत्र नेत्रा!’ शा. नी पद्यावळु लालकिञ्चु चॆवुलुन् निन्नाडु वाक्यम्बुलुन् नी पेरं बनिसेयु हस्तयुगमुल् नी मूर्तिपै" जूपुलुन् नी पादम्बुल पॊन्त म्रॊक्कु शिरमुल् नी सेवपै" जित्तमुल् नीपै बुद्धुलु माकु निम्मु करुणन् नीरेजपत्रेक्षणा! (10-1-342) दशम स्कन्धं 168 पोतन भागवतमु ‘नी पद्यालनु विने चॆवुलू, निन्ने कीर्तिञ्चे माटलू, नी पेरुन पनिचेसे चेतुलू, निन्ने चूसे चूपुलू, नी पादालकु म्रॊक्के शिरमू नी सेवमीदने मनस्सु, नीपैने बुद्दी माकु प्रसादिञ्चवय्य!’ अनि वेनोळ्ळा कीर्तिञ्चारु. भक्तितो नमस्करिञ्चि उत्तर दिक्कुकु वॆळ्ळिपोयारु. हठात्तुगा मद्दिचॆट्लु विरिगिपड्ड चप्पुडु. उलिक्किपड्डारु गोपकुलु. परुगु परुगुन वच्चि चूशारु. ‘चॆट्लु कूलिपोयायिगानी पक्कने उन्न बालकृष्णुडु एडवलेदु. भयपडनू लेदु’ अनि ऒकरितो ऒकरु चॆप्पुकुण्टुन्नारु. अप्पुडु अक्कडे आडुकॊण्टुन्न मरिकॊन्दरु पिल्ललु जरिगिन्दि चॆप्पारु. आ माटलु ऎवरू नम्मलेदु. गण्डं गडिचिन्दि. नन्दुडु ऊपिरि पील्चुकॊन्नाडु. बृन्दावन वासं ऒकरोजु गोकुलंलो पॆद्दलन्दरू समावेशमय्यारु. वारिलो ऒक वृद्धुडु. अतडि पेरु उपनन्दुडु. इला अन्नाडु- ‘एमिटी विपरीतालु? मन चिन्निकृष्णुडिपै एवेवो कुट्रलु जरुगुतुन्नायि. एदो भगवन्तुडि दयवल्ल गण्डालन्नी गडिचिपोयायि. इकनैना मनं मेलुकोवालि. मनमन्दरं बृन्दावनानिकि वॆळ्ळिपोदां! ना माट विनण्डि. अक्कड ए लोटू उण्डदु.’ सरेनन्नारन्दरू. व्रेपल्लॆलोनि आबालगोपालमू बृन्दावनंवैपु अडुगुलु वेसिन्दि. दारिलो गोपिकलु आनन्दङ्गा मधुरमैन कण्ठालतो माधवुडिपै एललु पाडुतू नडुस्तुन्नारु. वारितो पाटू रोहिणि, यशोद, बलरामकृष्णुलू उन्नारु. बृन्दावनंलो गोपबृन्दं चक्कगा इळ्ळु कट्टुकॊनि निवसिस्तोन्दि. अक्कडे काळिन्दी नदि ऒड्डुन बलरामकृष्णुलु दूडलनु कास्तू आनन्दङ्गा गडुपुतुन्नारु. वारि आटलू आनन्दं एमनि चॆप्पनु महराजा! बलरामकृष्णुलु मनोहरङ्गा वेणुवु लूदुतारु. पॆद्दपॆद्द कम्बळ्ळतो वृषभाल रूपालनु तयारुचेसि अवि शत्रुवुलनि वाटितो युद्धं चेस्तारु. गुड्डलतो बॊम्मलु चेसि वाटिनि कालितो तन्नुतू आडुतुण्टे विनालि वाळ्ळ काळ्ळ गज्जॆल म्रोतलु. ऎन्त 169 विनसॊम्पुगा उण्टायो! पन्दालु वेसिमरी चॆट्टुमीदि पळ्ळनु राळ्ळतो कॊडुतू, अडवि जन्तुवुल कूतलनु रॆट्टिस्तू, कॊलनुल्लो ईतकॊडुतू आ बलरामकृष्णुल बाल्यक्रीडलु चूसिनकॊद्दी चूडालनिपिस्तायि. विन्नकॊद्दी विनालनिपिस्तायि. वत्सासुर संहरं ऒकरोजु यमुना तीरंलो वीळ्ळु दूडलनु मेपुतुण्टे ऒक राक्षसुडु वीळ्ळनि चम्पालनि वच्चाडु. तानू ऒक कोडॆदूडला मारि श्रीकृष्णुडि वॆण्टपड्डाडु. श्रीकृष्णुडिकि तॆलियदा? दान्नि वॆण्टने पसिगट्टि बलरामुडिकि सैगचेशाडु. वॆण्टने बलरामुडु दान्नि काळ्ळू तोका पट्टुकॊनि पैकॆत्ति वॆलगचॆट्टुकेसि कॊट्टि चम्पेशाडु. आ वच्चिन राक्षसुडि पेरु वत्सासुरुडु. बकासुर वध मरोसारि दूडल्नि तोलुकॊनि अडविकि वॆळ्ळारु. तिरिगि वस्तू उण्टे भयङ्करमैन कॊङ्ग ऒकटि तारसपडिन्दि. पर्वतंला भीकरङ्गा अड्डङ्गा निलबडि श्रीकृष्णुडिपैने दृष्टि सारिञ्चिन्दि. आ कॊङ्ग रूपंलो उन्नवाडु बकासुरुडु. आ कॊङ्गनु चूसि तोटि गोपालुरु भयपडिपोयारु. अदि नोरु पॆद्दगा तॆरिचि अमान्तङ्गा श्रीकृष्णुण्णि मिङ्गेसिन्दि. कादु कृष्णुडे कावालनि दान्नि मिङ्गनिच्चाडु. कानी गॊन्तु दग्गरे अड्डुपड्डाडु. ऎन्तकी मिङ्गुडु पडकपोयेसरिकि बयटिकि कक्केसिन्दि आ कॊङ्ग. मुक्कुतो पॊडिचि चम्पालनि चूसिन्दि. कानी आ कॊङ्ग मुक्कुनु रॆण्डु भागालुगा पट्टुकॊनि गड्डिपरकनु चील्चिनट्लु चील्चिपारेशाडु श्रीकृष्णुडु. बलरामुडू, तक्किन गोपबालुरू आनन्दन्तो चिन्दुलु वेशारु. अन्दरू तिरिगि इळ्ळकु चेरुकुन्नारु. अक्कड जरिगिन्दन्ता विन्न पॆद्दलु निव्वॆरपोयारु. बालरामकृष्णुलु चक्कगा आटलाडुतू ‘मनमन्दरं वानरुलं. वारधि कडदामा! मनमिप्पुडु महर्षुलं. तपस्सु चेद्दामा! गन्धर्वुल्लागा पाटलु पाडदामा! आडवेषालु वेसुकॊनि अप्सरसल्ला नाट्यं चेद्दामा? अण्टू रक रकालुगा आनन्दिञ्चसागारु. दशम स्कन्धं 170 पोतन भागवतमु चल्दुल आरगिम्पु इला आनन्दङ्गा कालं गडुस्तोन्दि. ऒकरोजु अन्दरू कलसि वनभोजनालु चेयालनुकुन्नारु. चद्दन्नं काविळ्ळु, पिण्डिवण्टल मूटलू भुजालकु तगिलिञ्चुकॊनि परुगुपरुगुन दूडलतोसह अडविकि चेरुकुन्नारु. कॊम्मुबूरलु पिल्लनग्रोवुलु ऊदुतू तुम्मॆदलतो कलसि झङ्कारालु चेस्तू, नॆमळ्ळ नाट्यंलो पदं कदुपुतू, कोकिलल पाटल्लो गळं कलुपुतू हंसल्ला नडुस्तू, कॊङ्गल्ला ऒण्टिकालिपै निलबडुतू कोतुल्ला चॆट्लु ऎक्कुतू कुप्पिञ्चि दूकुतू आडुकॊण्टुन्नारु. ऒकडि चल्दुल्नि मरॊकडु लाक्कॊण्टू पारिपोतू एडिपिस्तू उडिकिस्तू ऊरिस्तू उरकलेस्तुन्नारु. परीक्षिन्महराजा! महमह योगुलकु सैतं लभ्यं कानि श्रीकृष्णुण्णि कौगिलिञ्चुकॊण्टू अतडितो चॆट्टापट्टालु वेसुकॊण्टू नव्वुतू, हस्यालाडुतू, प्रेमिस्तू, प्रेमिञ्चबडुतू क्रीडिस्तुन्नारण्टे वाळ्ळ भाग्यं एमनि चॆप्पनु? अघासुर वध सरे! कॊन्तकालं तरुवात अघासुरुडु अने मरो राक्षसुडु बयलु देराडु. वीडु बकासुरुडि तम्मुडु, कंसुडि सेवकुडु. तन अन्ननु चम्पिन श्रीकृष्णुडि कोसं कॊण्डचिलुव रूपंलो काचुकॊनि उन्नाडु. कॊन्नि योजनाल पॊडवैन पर्वतमन्त आकारं धरिञ्चि पडुकुन्नाडु. गोपालुरु आ दारिलोने वस्तू अड्डङ्गा उन्न आ कॊण्डचिलुवनु चूशारु. अदेदो गुह अनुकुन्नारु. दानि नोट्लोञ्चि अग्निज्वाललु रेगुतुन्नायि. अयिना भयपडितेना? कृष्णुडु उन्नाडुले अन्न धीमा. अन्दरू धैर्यङ्गा दानि नोट्लोकि प्रवेशिञ्चारु. श्रीकृष्णुडू इङ्क आलस्यं चेयकूडदनुकॊनि तानू वारि वॆनुके दानि नोट्लोकि प्रवेशिञ्चाडु. ऒक्कॊक्करिनी मिङ्गुतोन्दा कॊण्डचिलुव. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु दानि कण्ठबिलं दग्गर चेरि तन शरीरान्नि पॆञ्चाडु. दानिकि ऊपिरि आडलेदु. लोपल गालि लोपले 171 निलिचिपोवडन्तो दानि कडुपु उब्बिपोसागिन्दि. प्राणालु विलविललाडिपोयायि. चिवरिकि लोपलि गालि तलनू प्रक्क भागालनू चील्चुकॊनि बयटिकि वच्चिन्दि. दॆब्बकु चच्चिन्दा राक्षससर्पं. गोपालुरन्ता बयटपड्डारु. आ कॊण्डचिलुवलोञ्चि ऒक दिव्यतेजस्सु वच्चि श्रीकृष्णुडिलो लीनमैपोयिन्दि. दानि चर्मं कॊन्नाळ्लकु ऎण्डि पोयिन्दि. दानि कळेबरं ऒक पॆद्द गुहला आडुकोवडानिकि उपकरिञ्चिन्दि गोपबालुरिकि. श्रीकृष्णुडु तन ऐदो एटने ई अघासुरुण्णि संहरिञ्चाडु. अयिते ई विषयान्नि श्रीकृष्णुडि आरोयेट (पौगण्ड वयस्सुलो) जरिगिन्दनि गोप बालकुलु भाविञ्चारु’ अन्नाडु शुकमहर्षि. वॆण्टने परीक्षित्तु ‘महत्मा! मॊदटि ऐदेळ्ल वयस्सुनु कौमारं अण्टारु कदा! तरुवात ऐदेळ्ळनु ‘पौगण्डं’ अनि अण्टारु. मरि ऐदोएट जरिगिन सङ्घटन आरो एट जरिगिन्दनि वाळ्ळु ऎला अनुकुन्नारु? ‘महराजा! मञ्चि प्रश्ने वेशावु. नेनु चॆप्पेदि जाग्रत्तगा विनु. नीके अर्थमवुतुन्दि. ब्रह्मदेवुडि माय श्रीकृष्णुडु अघासुरुडि नुण्डि तानु रक्षिञ्चिन गोवुलतो, गोपालुरतो कलिसि इण्टि मुखं पट्टाडु. दारिलो ऒक अन्दमैन कॊलनु उन्दि. ओह….. ऎन्त अन्दङ्गा उन्दो आ प्रान्तं. श्रीकृष्णुडु उत्साहङ्गा अन्दरिनी पिलिचि चल्दुलु आरगिद्दां रण्डि अन्नाडु. गोपबालुरन्ता सरेनन्नारु. लेगदूडलू तिय्यटि आ कॊलनु नीटिनि कडुपारा त्रागायि. प्रक्कने उन्न पच्चिक बयळ्ळलो मेतमेस्तुन्नायि. इक गोपबालुरन्ता तमतम चिक्काल नुञ्चि चल्दुल मूटल्नि विप्पारु. राजा! तामरपुव्वुकु मध्यलो ऒक दुद्दु उण्टुन्दि चूशामा! दानि चुट्टू वरुसलुगा रेकुलु उण्टाये. सरिग्गा अलागे श्रीकृष्णुडि चुट्टू गोपालुरु, दशम स्कन्धं 172 पोतन भागवतमु चॆट्ल आकुल्लोनू तामराकुल्लोनू राति पलकल मीद पॆट्टुकॊनि मरी चल्दुलु आरगिस्तुन्नारु. वाळ्ळु ऎन्त कलिविडिगा तिण्टुन्नारो तॆलुसा! ऒकडु चेतिवेळ्ळ मध्यलो ऊरगाय बद्दलु इरिकिञ्चुकॊनि पक्कवाण्णि ऊरिस्ताडु. मरॊकडु पक्कवाडि कञ्चंलोनिदि वाडु चूसेलोगा चट्टुक्कुन मिङ्गेसि ‘एदी एमी लेदे’ अनि नोरु चूपिस्ताडु. मरॊकडु पन्दॆं कट्टि मरी ऐदारुगुरु तिनेन्त चल्दिनि कुक्कुकॊनि लागिस्ताडु. ‘अरे! नी दग्गर इन्नि उन्नाये! स्नेहमण्टे इच्चिपुच्चुकोवटमे’ अण्टू ऒक्कॊक्कटी तीसुकॊण्टू बन्तॆनगुण्ड्लु आडताडु इङ्कॊकडु. ‘ऒरेय्! चूडरा! श्रीकृष्णुडु ऎला नव्वुतुन्नाडो! अनि अटु चूसेला चेसि इटु वाडिवन्नी स्वाह चेसेवाडॊकडु. ऒकडु नव्वुताडु. मरॊकडु नव्विस्ताडु. इङ्कॊकडु मुच्चट्लाडताडु. मरॊकडु मुरिसिपोताडु. इदी वाळ्ल इम्पुगॊलिपे चल्दुलारगिम्पु. श्रीकृष्णुडु लेचाडु. वेणुवुनु नडुमु दट्टीलो दोपाडु. कॊम्मु बूरनू, चेति कर्रनू ऎडम चङ्कलो इरिकिञ्चि पट्टुकॊनि मीगडा, पॆरुगू कलिसि उन्न ऒक चल्दिमुद्दनु ऎडमचेता, ऊरगाय बद्दल्नि कुडिचेति वेळ्ळ मध्या उञ्चुकॊनि, सरिग्गा स्नेहितुल मध्यलो कूर्चॊनि छलोक्तुल्नि विसिरि अन्दर्नी नव्विस्तू आरगिस्तुन्नाडु. ऎन्त चक्कटि दृश्यं अदि! सहस्रकोटि यज्ञाललो यज्ञभोक्तगा फलान्नि भुजिञ्चे स्वामि इला स्वच्छन्दङ्गा बालक्रीडलतो अलरारुतू उण्टे देवतलु निव्वॆरपोयारु. इक्कड वीळ्ळु इला तनिवितीरा चल्दु लारगिञ्चटंलो मुनिगिपोयारु. अक्कड लेगदूडलु पच्चिक मेस्तू ऎटो वॆळ्ळिपोयायि. दारि तप्पि चाला दूरं वॆळ्ळि अडविलो चिक्कुकुन्नायि. 173 श्रीकृष्णुडु वाळ्ळकु धैर्यञ्चॆप्पि लेगदूडल्नि नेनु वॆतिकि तीसुकुवस्ताननि बयलुदेराडु. अरचेतिलो उन्न अन्नं मुद्द अलागे उन्दि. जुलपाल जुट्टु. मॆडलो हरालु. मरो चेतिलो वॆदुरु कर्र. वॆळ्ळाडु. अडवन्ता गालिस्तुन्नाडु. लेगदूडल अडुगुल जाडल्नि पट्टुकॊनि वॆळ्तुन्नाडु. वॆतुकुतूने उन्नाडु. ब्रह्मदेवुडु श्रीकृष्णुडिनि परीक्षिञ्चटं कोसं अक्कड तप्पिपोयिन लेगदूडल्नी इक्कड चल्दुलु आरगिस्तुन्न गोपालुरनू मायं चेशाडु. ऒकचोट दाचि उञ्चाडु. लेगलु कनिपिञ्चकपोवटन्तो अलसि सॊलसिन श्रीकृष्णुडु तिरिगि कॊलनु दग्गरकु वच्चाडु. आश्चर्यं! अक्कड चल्दुलारगिस्तुन्न गोपबालुरू मायमै पोयारु. एदो माय जरिगिन्दनि गुर्तिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. ई विश्वंलो अतडिकि तॆलियकुण्डा एदैना उण्टुन्दा? लेगलू गोपालुरू एमय्यारो तॆलुसु. इदन्ता ब्रह्मदेवुडि माय. ब्रह्म ऎन्दुकी पनि चेशाडो! अदी तॆलुसु. वॆण्टने श्रीकृष्णुडु लेगलू, गोपबालुर रूपालनु धरिञ्चाडु. अटु गोपबालकुल तल्लिदण्ड्रुलकुगानी इटु आवुलकुगानी तम बिड्डलपै प्रेम अन्तकु मुन्दुकन्ना अतिशयिञ्चिन्दि. अन्दरिलो उन्नदि श्रीकृष्णुडेकदा! ए रोजु कारोजु प्रेम पॆरिगिपोतुन्नदेकानी तग्गटं लेदु. इला श्रीकृष्णुडु इन्निन्नि रूपालु धरिञ्चि अन्दरि अनुरागान्नी चूरगॊनि सरिग्गा ऒक्क एडादिपाटु आ प्रेमनु आस्वादिञ्चाडु. ऒकरोजु बलरामुडितो गोपबालुरतो कलिसि अडविकि वॆळ्ळि लेगदूडल्नि मेपुतुन्नाडु श्रीकृष्णुडु. दूरङ्गा ऎक्कडो गोपालुरु मेपुतुण्टे गोवर्धनगिरिपै आवुलु मेस्तुन्नायि. आ आवुलु ई दूडल्नि चूशायि. वात्सल्यं पॊङ्गिन्दि. हुङ्कारं चेसि अम्बा अण्टू मुट्टॆलु साचि काळ्ळु नालुगू रॆण्डैनन्त वेगङ्गा दूडल दग्गरकु परुगुन वच्चायि. दूडल मूतुल्नि आत्रङ्गा नाकुतू कडुपारा चन्नु गुडिपायि. जरिगिन्देमण्टे - गोपालुरु गोवुल्नि कास्तू उण्टे, गोपबालकुलु, बलरामकृष्णुलतो कलिसि लेगल्नि कास्तू उन्नारु. ब्रह्मदेवुडु आ लेगल्ने मायं चेशाडु. दशम स्कन्धं 174 पोतन भागवतमु आ आवुल वॆण्ट पडि परुगुन वच्चारु गोपालकुलु. इक्कड दूडल्नि मेपुतुन्न तम कुमारुलु कनिपिञ्चारु वाळ्ळकु. वाळ्ळू आ आवुल्लागे बिड्डल्नि ऎत्तुकॊनि मुद्दाडि वाळ्ळनु वदिलि वॆळ्ळलेक वॆळ्ळलेक वॆळ्ळिपोयारु. इदन्ता चूस्तुन्नाडु बलरामुडु. एमिटि ई विन्त? इन्त ऎक्कुवगा ई वात्सल्यं ऎक्कण्णुञ्चि पुट्टुकॊच्चिन्दि? अनि ज्ञानदृष्टितो चूशाडु. अन्दरिलोनू श्रीकृष्णुडे कनिपिञ्चाडु. नम्मलेक श्रीकृष्णुण्णे अडिगाडु. श्रीकृष्णुडु असलु रहस्यं चॆप्पाडु. बलरामुडु आश्चर्यपोयाडु. ई विधङ्गा श्रीकृष्णुडु ताने बालुरुगा, लेगलुगा मारि ऒक एडादि गडिचिपोयिन्दि. इदि ब्रह्मदेवुडिकि ऒके ऒक्क त्रुटिकालं. ब्रह्मदेवुडु वच्चि चूशाडु. बालुरू, लेगलू बृन्दावनंलोने उन्नायि. बालुरिलोनू आ लेगल्लो बालकृष्णुडे कनिपिस्तुन्नाडु. ईसारि निव्वॆरपोवडं ब्रह्मदेवुडि वन्तयिन्दि. वॆळ्ळि तानु दाचि उञ्चिन गोवुलनू गोपालुरनू चूशाडु. वाळ्ळू अवी तन मायलो चक्कगा निद्रपोतुन्नायि. मरि इक्कड ई आवुदूडलू गोपालुरू ऎला? अदी नाकु तॆलियकुण्डा. नेने कदा सृष्टिकर्तनु. ए ब्रह्म वीटिनि सृष्टिञ्चाडो! अन्ता अयोमयङ्गा उन्दि ब्रह्मदेवुडिकि. विष्णुमाय ब्रह्मदेवुण्णि कूडा मुञ्चॆत्तिन्दि. मोहभ्रान्तिलो पड्डाडु ब्रह्मदेवुडु. अनेक विधालुगा मनसुलो आलोचिञ्चुकॊण्टू आ गोपबालकुलवैपु चूशाडु. अन्दरू विष्णुस्वरूपुलुगा साक्षात्करिञ्चारु. अदे विष्णुतेजं. आ तेजस्सुनु ब्रह्मदेवुडु सैतं तेरिपारा चूडलेकपोयाडु. निश्चेष्टुडै चित्रंला कदलकुण्डा निलबडिपोयाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु ब्रह्मदेवुडि परिस्थिति चूशाडु. पापं अनिपिञ्चिन्दि. अहङ्कारंवल्ल कलिगिन अज्ञानमे इतण्णि ई स्थितिकि रप्पिञ्चिन्दि. इक विष्णुमाय चालु. अनुकॊनि तन माय चालिञ्चाडु. तनु सृष्टिञ्चिन गोगोपबालुर रूपालन्निण्टिनी मरुगुपडेला चेशाडु. ब्रह्मदेवुडु निद्रलोनुण्डि मेल्कॊन्नट्लु ई लोकंलोनिकि वच्चाडु. चुट्टू चूशाडु. ऎदुरुगा बृन्दावनं. ऎदुरुगा श्रीकृष्णुडु. अन्तकु मुन्दु 175 कनिपिञ्चलेदु. इप्पुडु स्पष्टङ्गा कनिपिस्तुन्नाडु. दूडल्नि वॆतुकुतू, तन स्नेहितुल्नि पिलुस्तू ऎन्तो कलिविडिगा चेतिलो चल्दिमुद्दतो कनिपिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. वॆण्टने ब्रह्मदेवुडु श्रीकृष्णुडि काळ्ळपै पड्डाडु. तन अज्ञानान्नि मन्निञ्चि अनुग्रहिञ्चमनि वेडुकॊन्नाडु. ‘श्रीकृष्णा! नन्नु अनुग्रहिञ्चु. नेनू नी सेवकुडिनै निन्नु सेविञ्चुकॊने भाग्यान्नि प्रसादिञ्चु. ई जन्मलो काकपोते मरो जन्मलोनैना’ अनि श्रीकृष्णुडिकि म्रॊक्कि प्रदक्षिणं चेसि सत्यलोकानिकि वॆळ्ळिपोयाडु ब्रह्मदेवुडु. श्रीकृष्णुडु अतण्णि क्षमिञ्चाडु. मायमैन लेगलनू, गोपालुरनू मळ्ळी अदे इसुकतिन्नॆ पैकि चेर्चाडु. परीक्षिन्महराजा! ई संवत्सरकालमू श्रीकृष्णुडि माय कारणङ्गा ऒक त्रुटि कालङ्गा गडिचिपोयिन्दि. अदी गोपबालुरकु एमी तॆलियकुण्डाने गडिचिपोयिन्दि. श्रीकृष्णुडि कोसमे चल्दुलारगिञ्चकुण्डा ऎदुरु चूस्तुन्नारा बालुरु. श्रीकृष्णुडि राकतो वाळ्ळ मुखालु विकसिञ्चायि. वाळ्ळन्दरितो पाटु कम्मगा चल्दुलारगिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. अला आरगिञ्चाक अन्दरू तिरिगि इळ्ळकु बयलु देरारु. अला ऐदेळ्ल वयसुलोने (कौमारंलोने) कृष्णुडु अघासुर संहरं चेसिना विष्णु माय वल्ल आरेळ्ल वयसुलो (पौगण्डंलो) जरिगिन्दनि गोपबालुरु भ्रमपड्डारु. (1-5 संवत्सराल वरकू कौमारं, 6-10 संवत्सराल वरकू पौगण्डं अनि व्यवहरं). गोप बालकुल जीवितंलो वाळ्ळकु तॆलियकुण्डाने ऒक एडादि गडिचिपोयिन्दि. अन्दुके एदो एट जरिगिनदानिनि निन्ने अण्टे आरो एट जरिगिन्दि अनुकुन्नारु. निजानिकि अप्पुडु वारिकि आरेळ्ळु. आ विषयं वाळ्ळकी तॆलियदु. धेनुकासुर संहरं रोजुलु गडुस्तुन्नायि. ऒकरोजु श्रीकृष्णुडु सूर्योदयानिकि मुन्दे लेचि वेणुगानं चेशाडु. गोपालकुलन्ता मन्दलतो सह अतडि वद्दकु चेरारु. अन्दरू अडविकि बयलुदेरारु. आ अडवि मॊत्तं श्रीकृष्णुडि पाद स्पर्शतो पुलकिञ्चिपोयिन्दि. वाळ्लन्ता आटपाटल्लो मुनिगिपोयि उन्नारु. आ प्रक्कने ओ ताटितोपु उन्दि. अन्दुलो धेनुकासुरुडु अने राक्षसुडु उण्टाडट! वाडु नरमांस दशम स्कन्धं 176 पोतन भागवतमु भक्षकुडट! अयिते आ तोटलोञ्चि ताटिपळ्लवासन मात्रं गुप्पुगुप्पुन वस्तोन्दि. गोपालुरन्ता आ पळ्ळु कावालन्नारु. ऎलागैना तिनिपिञ्चमनि पदेपदे अडिगारु. चिरुनव्वुलु चिन्दिस्तू सरेनन्नारु बलरामकृष्णुलु. अन्दरू वॆळ्ळारु. बलरामुडु आ ताळवृक्षाल्नि पट्टुकॊनि ऒक्क ऊपु ऊपाडु. अन्ते! वॆण्टने रालिपड्डायि बागा पण्डिन ताटिपळ्ळु. एदो चप्पुडु. विन्नाडु आ राक्षसुडु. ऎवरो ना ताटितोपुलोनिकि चॊरपडिनट्लुन्नारे! अण्टू गार्दभाकारंलो वच्चाडु. आडिस्तुन्न चॆवुलू, ऊगुतुन्न तोकतो वाडु भयङ्करङ्गा उन्नाडु. पळ्ळु पटपट कॊरुकुतू वच्चि बलरामुण्णि गुण्डॆलपै वॆनक काळ्ळतो ऒक्क तन्नु तन्नाडु. दान्तो बलरामुडिकि अरिकालि मण्ट नॆत्तिकॆक्किन्दि. ऒक्कसारिगा आ गार्दभासुरुडि नालुगु काळ्ळु ऒकचेत्तो ऒडिसिपट्टुकॊनि गिरगिर तिप्पि चाचि नेलकेसि कॊट्टाडु. अन्ते! वाडि प्राणालु गुटुक्कुमन्नायि. कडुपुनिण्डा ताटिपळ्ळु तिन्नारु पिल्ललन्ता. तरुवात इळ्ळकु तिरिगिवच्चारु. काळिय मर्दनं ऒकनाडु रोजूलागे श्रीकृष्णुडु गोपालकुलतो कलसि गोवुल्नि तोलुकॊनि अडविकि वॆळ्ळाडु. ऒकटे ऎण्ड. अन्दरू दाहं दाहं अण्टू अलमटिञ्चि पोयारु. यमुना नदिलो दिगि आबगा नीळ्ळु त्रागारु. त्रागिन वॆण्टने प्राणालु कोल्पोयारु. आ मडुगुलोनि नीळ्ळलो विषं कलिसिन्दि. अदन्ता गमनिञ्चिन श्रीकृष्णुडु चनिपोयिनवाळ्लन्दरिनी बतिकिञ्चाडु. इप्पुडु श्रीकृष्णुडि दृष्टि आ मडुगुपै पडिन्दि. अन्दुलो काळियुडु अने सर्पं निवसिस्तोन्दि. दानि विषं वल्लने आ नीरु कलुषितं अयिपोयिन्दि. मुन्दु आ मडुगुनु शुद्धि चेयालनुकॊन्नाडु. मडुगुलोनिकि दूकाडु. विषन्तो निण्डिन तरङ्गालु वेगङ्गा पैकि लेस्तुन्नायि. मडुगुलो नूरु धनुवुल मेर कुतकुत उडुकुतू पॆद्द बुडगलु लेस्तुन्नायि. ऎवडो ऒक पिल्लवाडु ना मडुगुनु कल्लोलं चेस्तू अल्लरि चेस्तुन्नाडु. नेनुन्नानन्न भयं ए कोशाना लेदु. नन्नु एमात्रं लॆक्कजेयटंलेदु. 177 नेनण्टे एमिटो चूपिस्तानु. ना विषं रुचि चूपिस्तानु. अण्टू पैकि वच्चि तन सैन्यन्तो समीपिञ्चि काळियुडु श्रीकृष्णुण्णि काटुवेशाडु. श्रीकृष्णुडिकि एमी कालेदु. अर्थं कालेदु काळियफणिकि. वॆण्टने वच्चि तन शरीरन्तो बालुण्णि कट्टिवेसि पडगलॆत्ति काटुवेयटं मॊदलुपॆट्टाडु. श्रीकृष्णुडु कदलकुण्डा कट्टुपडिपोयाडु. अदि चूसिन गोपबालकुलन्ता गॊल्लुमन्नारु. लेगदूडलैते आत्रङ्गा मोरलॆत्ति अरिचायि. आ कोलाहलानिकि अन्दरू परुगुन वच्चि चूद्दुरु कदा! नीळ्ळलो श्रीकृष्णुडु काळियफणिकि बन्दीयै उन्नाडु. कॊन्दरु श्रीकृष्णुण्णि रक्षिञ्चडानिकि मडुगुलोनिकि दूकबोयारु. बलरामुडु चिद्विलासङ्गा चिरुनव्वु चिन्दिस्तू वाळ्ळनु वारिञ्चाडु. तनकोसं तनवाळ्ळु पडुतुन्न दुःखान्नि चूस्ते मुच्चट वेसिन्दि बालकृष्णुडिकि. कॊञ्चॆं वेडुक चेद्दामनिपिञ्चिन्दि. मॆल्लगा शरीरान्नि पॆञ्चटं मॊदलुपॆट्टाडु. पट्टु बिगिस्तुन्न काळियुडिकि तननु ऎवरो सागदीस्तुन्नट्लु अनिपिञ्चिन्दि. ऒत्तिडि पॆरुगुतोन्दि. ऎन्त गट्टिगा नॊक्किते अन्तकण्टे गट्टिगा तानु सागिपोतुन्नाडु. अन्त बलवन्तमैन सर्पमू ऒळ्ळु हूनमै बाधनु तट्टुकोलेकपोयिन्दि. ऒळ्ळन्ता पच्चि पुण्डैपोयिनट्लुन्दि. चिवरिकि चेसेदेमी लेक, बलं चालक श्रीकृष्णुडिनि वदिलेशाडु. अतडला वदिलाडो लेदो गरुत्मन्तुडु सर्पान्नि पट्टिनट्लु काळीयुण्णि पट्टुकॊन्न बालकृष्णुडु अतडि पडगलपैकि ऒक्कसारिगा ऎगिराडु. आ पडगल मीदि कान्तुलु तन पादकान्तुललो कलिसि प्रकाशिस्तुण्टे श्रीकृष्णुडु प्रख्यात नर्तकुडिला आ पडगलपै अत्यन्त नैपुण्यन्तो नाट्यं चेयडं प्रारम्भिञ्चाडु. बालकृष्णुडु चेस्तुन्न ई प्रचण्ड ताण्डवानिकि काळियुडु रक्तं कक्कुकुन्नाडु. मांसं मुद्दलु मुद्दलुगा बयटिकि वस्तोन्दि. पौरुषं चच्चिन्दि. बलं क्षीणिञ्चिन्दि. नीरसिञ्चिपोयाडु. दिक्कुलु चूस्तुन्नाडु. अतडिकि चुक्कलु कनिपिस्तुन्नायि. नागस्र्तील प्रार्थन इन्तलो काळियुडि भार्यलैन नागस्र्तीलु वच्चि ‘हे गोपालकृष्णा! महनुभावा! पाहि! पाहि! अनुग्रहिञ्चु. मा अहङ्कारं अणगिपोयिन्दि. शरणु वेडुतुन्नां. दशम स्कन्धं 178 पोतन भागवतमु ई काळियुण्णि रक्षिञ्चु. आह! ई काळियफणि पूर्वं ए तपस्सु चेशाडो! ए पुण्यकार्यालु आचरिञ्चाडो! ए सव्यव्रतान्नि चेशाडो! इन्तकु मुन्दु ऎन्तटि महनुभावुलकु सैतं चेरुव कानि नुव्वु इप्पुडु इला इन्तटि विनोदङ्गा इतडि तलपै नाट्यं चेस्तुन्नावय्या गोविन्दा! ऎन्तो तपस्सु चेस्तेगानी नी पाद धूळिलो ऒके ऒक्क रेणुवुनु ताके भाग्यान्नि लक्ष्मीदेवि पॊन्दलेकपोयिन्दे! मरि ई काळियुडु ए तपस्सु चेय कुण्डाने इन्तटि नी पादस्पर्शकु नोचुकुन्नाडे! नी पादस्पर्श मुन्दु इन्द्रपदवैना तीसिकट्टु. ब्रह्मपदवी, चक्रवर्ति पदवी अन्नी चिन्नवे. सामान्य जनुलकु नी पादस्पर्श अन्दुतुन्दा? अन्दुना ई काळियुडिलाण्टि क्रूर विष सर्पानिकि लभिञ्चटं नी महिम काक इङ्केमिटि स्वामी! देवा! आदिपुरुषा! अन्तर्यामी! परिपूर्णुडा! अनन्त शक्तिस्वरूपा! ई समस्त विश्वमू नुव्वे. दीन्नि निर्मिञ्चेदी दर्शिञ्चेदी कूडा नुव्वे. ई विश्वानिकि कारकुडमा नुव्वे. एदो पञ्चतन्मात्रलु, पञ्चेन्द्रियालु, मनोबुद्ध्यहङ्कारालू प्राणमू उन्नायनि में भ्रमलो उन्नां कानी इवन्नी नुव्वे कामा! नी गुणालेगा अन्तटा आवरिञ्चि उन्नदि. निर्मलात्मा! नुव्वु कानिदी नीकु तॆलियनिदी ई विश्वंलो एदैना उन्दा? मा भर्त प्राणालनु माकु प्रसादिञ्चु’ अनि काळ्ळा वेळ्ळा पड्डारु. श्रीकृष्णुडु करुणिञ्चाडु. चावु तप्पि कन्नु लॊट्टपोयिनट्लुन्न काळियुडु भक्तितो श्रीकृष्णुडिनि शरणु वेडाडु. अप्पुडु कृष्णुडु - ‘काळिया! नुम्वा नी भार्यलू, नी सन्तानं अन्दरू कलसि तक्षणं समुद्रंलोनिकि वॆळ्ळिपॊण्डि. ई मडुगुनु खाळीचेयण्डि. ई कथ विन्ना, चदिविना ऎवरिकी ए सर्प बाधा उण्डदु. अनुग्रहिस्तुन्नानु. वॆळ्ळु. इन्तकु मुन्दु रमणक द्वीपंलो उन्न नुव्वु गरुत्मन्तुडिकि भयपडि कदा ई मडुगुलो दाक्कुन्नावु. नीकिदे ना अभयं. गरुत्मन्तुडिवल्ल नीकु ए 179 आपदा रादु. नी पडगलपै उन्न ना पादमुद्रल्नि चूसि गरुडुडु निन्नेमी चेयडु.’ अनि सॆलविच्चाडु. काळियुडु बालकृष्णुडिकि नमस्करिञ्चि समुद्रंलोनिकि वॆळ्ळिपोयाडु. काळियुण्णि अक्कण्णुञ्चि पम्पिवेशाक बालकृष्णुडु काळियुडु तनकु भक्तितो समर्पिञ्चिन दिव्यगन्धालनू, दिव्य वस्र्तालनू धरिञ्चि मडुगुलो नुञ्चि बयटकु वच्चाडु. आ गोपबालुण्णि चूडगाने गोपाल बृन्दानिकि पोयिन प्राणालु तिरिगि वच्चिनट्लयिन्दि. अन्दरिकी ऒकटे आनन्दं. परमानन्दं. आ रात्रि अन्दरू यमुनातीरंलोने उण्डिपोयारु. ऎवरिकी अन्नमू लेदु, नीळ्ळु कूडा लेवु. अन्दरू नीरसिञ्चिपोयारु. दानिक्कारणं आ अडविलो अप्पुडे पॆद्द कार्चिच्चु पुट्टुकॊच्चिन्दि. तन शक्तितो आ दावाग्निनि ऒक्कपॆट्टुन ताने त्रागिवेशाडु श्रीकृष्णुडु. आश्चर्यं, चुट्टू कम्मुकॊस्तुन्न मण्टलु ऒक्कसारिगा मायमैपोयायि. अन्दरू जयजय ध्वानालु चेशारु. प्रलम्बासुर वध यथाप्रकारं बलरामकृष्णुलु पशुवुल्नि मेपुतू उण्टे प्रलम्बुडु अने राक्षसुडु ऒक गोपबालुडि वेषंलो वच्चि वीळ्ळलो कलसिपोयाडु. वीळ्ळनु श्रीकृष्णुण्णि चम्पटं कोसं अवकाशं कोसं काचुकॊनि चूस्तुन्नाडु. श्रीकृष्णुडु अदि गमनिञ्चाडु. अयिना मौनङ्गा उण्डिपोयाडु. गोप बालकुलन्दर्नी पिलिचि - ‘मित्रुलारा! इप्पुडु मनमो आट आडदां. मनं रॆण्डु पक्षालुगा एर्पडि राळ्ळनु गुरिचूसि बन्तुल्लागा विसुरुदां! ओडिनवाळ्ळु गॆलिचिनवाळ्ळनु वीपुपै मोयालि. इदी पन्दॆं’ अन्नाडु. आट मॊदलय्यिन्दि. आ आटलो प्रलम्बासुरुडु ओडिपोयि बलरामुण्णि ऎक्किञ्चुकोवलसि वच्चिन्दि. दशम स्कन्धं 180 पोतन भागवतमु प्रलम्बासुरुडु बलरामुण्णि मोस्तू वडिवडिगा अडुगुलु वेस्तुन्नाडु. बलरामुडु क्रमक्रमङ्गा बरुवु पॆरिगिपोतुन्नाडु. आ राक्षसुडु बलरामुण्णि मोयलेक निजस्वरूपन्तो बयटपड्डाडु. अयिना बलरामुण्णि अलागे मोस्तू पोतुन्नाडु. अप्पुडु बलरामुडु विजृम्भिञ्चि पिडिकिळ्लतो गुद्दुतू आ राक्षसुडि तलनु बद्दलु कॊट्टि चम्पेशाडु. ‘भले, भले!’ राक्षसुडु मन बलरामुडि चेतिलो नॆत्तुरु कक्कुकुनि चच्चाडु’ अनि गोपबालकुलु केरिन्तलु कॊट्टारु. बलरामुडिपै पुष्पवृष्टि कुरिसिन्दि. आ तरुवात वर्ष ऋतुवु वच्चिन्दि. उरुमुलु मॆरुपुलतो वरुण देवुडु कुम्भवृष्टिनि कुरिपिञ्चाडु. आ जलधारललो प्रकृति मॊत्तं सेदतीरिन्दि. श्रीकृष्णुडि दयवल्ल समुद्रुडु तनलो ऎन्त नीरु वच्चि चेरिना चॆलियलि कट्ट दाटलेदु. परीक्षिन्महराजा! आ तरुवात शरद्रुतुवु वच्चिन्दि. अरण्यालु दट्टङ्गा पॆरिगि अन्दगिञ्चायि. स्वच्छमैन वॆन्नॆललु अन्तटा परुचुकॊन्नायि. आ चल्लनि वॆन्नॆललो मुरळीकृष्णुडि वेणुगानं लीलाविलासालु, सुन्दररूपं अन्दरिनी मोहपरवशुल्नि चेशायि. आ वेणुगानं गोपिकल गुण्डॆल्लो वलपु पुट्टिञ्चिन्दि. ई हेमन्त कालंलो गोपकन्यलु अन्दरू वेकुवने निद्रलेचि काळिन्दी नदिलो स्नानमाचरिञ्चारु. आ नदि ऒड्डुन गौरीदेवि प्रतिमनु पॆट्टि पूलतो अलङ्करिञ्चि चन्दनं समर्पिञ्चि धूपदीप नैवेद्यालतो अर्चिञ्चारु. गोपिका वस्र्तापहरणं परीक्षिन्महराजा! अला आ गोपकन्यलु प्रतिदिनमू गौरीपूज चेस्तू उण्टे ऒकरोजु एमय्यिन्दो तॆलुसा? रोजूलागे गोपिकलु वेकुवजामुने निद्रलेचि अन्दरिनी पिलिचि यमुनानदी तीरानिकि चेरुकॊन्नारु. अक्कड ऒक एकान्त स्थलंलो तम चीरल्नि विप्पि ऒकचोट उञ्चि स्नानं कोसं नदिलोनिकि दिगारु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु तन गोपबृन्दन्तो वच्चि वाळ्ळ चीरल्नि तीसुकॊनि, ऒक कडिमिचॆट्टु मीद कूर्चुन्नाडु. 181 ‘श्रीकृष्णा! मा चीरलु मुट्टुकोवद्दु. मामा! वाटिनि तीसुकुपोवद्दु. वॆळ्ळवद्दु. मम्मल्नि मन्निञ्चु. मा मानं तिय्यवद्दु. अयिना मा मनस्सुलनु दॊङ्गिलिञ्चटमेमिटय्या! मानुको! श्रीकृष्णा! इदेमन्त घनकार्यं नायना! ऎवरु नीवारो ऎवरु परायिवारो चूसुकोवा? मा वस्र्तालु माकु इव्ववय्या बाबू!’ अनि प्रार्थिञ्चारु. दानिकि श्रीकृष्णुडु ‘कात्यायनी व्रतं चेस्तू इला बट्टल्लेकुण्डा स्नानं चेस्ते अम्बिककु अपराधं चेसिनट्लु कादू! सरे! मीकु व्रतफलं दक्कालण्टे रॆण्डु चेतुलु पैकॆत्ति नाकु नमस्करिञ्चण्डि’ अन्नाडु कृष्णुडु. अन्ते! ए उत्तमश्लोकुण्णि स्मरिस्ते व्रतभङ्गालन्नी तॊलगि पोतायो आ परात्परुडिकि गॊल्लभामलु नमस्करिञ्चारु (अप्पटिकि अतनि वयस्सु आरु संवत्सराले). वॆण्टने श्रीकृष्णुडु वाळ्ळ बट्टल्नि वाळ्ळकु इच्चि व्रतभङ्गं काकुण्डा रक्षिञ्चाडु. मुनि भार्यल विन्दु कालं गडुस्तोन्दि. मळ्ळी वेसविकालं वच्चिन्दि. गोवुलनु मेपुतुन्न गोपालुरु ऎण्डवेडिकि ताळलेकपोतुन्नारु. श्रीकृष्णुडु, बलरामुडु, श्रीदामुडु, देवप्रस्थुडु, विशालुडु, कार्तवीर्यार्जुनुडु इङ्का तक्किन गोपबालकुलू अन्दरू चॆट्लनीडल्लो सेदतीरुतुन्नारु. अप्पुडु कॊन्दरु गोपबालकुलु इला अन्नारु. म. अपकारम्बुलु सेय वॆव्वरिकि नेकान्तम्बुलन्दुण्डु ना तपशीतानिलवर्षवारणमुलै त्वग्गन्ध निर्यास भ स्मपलाशाग्रमरन्दमूल कुसुमच्छाया फलश्रेणिचे नुपकारम्बुलु सेयु नर्थुलकु नी युर्वीजमुल् गण्टिरे! (10-1-850) ‘ई चॆट्लु चूडण्डि! ऎवरिकी कीडु तलपॆट्टवु. ऎवरि जोलिकी पोवु. एकान्तङ्गा उण्टायि. ऎण्ड, गालि, चलि, वानल नुण्डि आश्रितुल्नि कापाडतायि. कोरिनवारिकि बॆरळ्ळु, गन्धं, जिगुरु, बूडिद, चिवुळ्ळु, तेनॆ, वेळ्ळु, पूलु, नीड, पळ्ळु इच्चि उपकारमे चेस्तायि.’ ‘अवुनु! अवुनु!’ अनि अन्दरू मॆच्चुकुन्नारु. दशम स्कन्धं 182 पोतन भागवतमु कॊन्तसेपटिकि गोपबालकुलकु कडुपुल्लो नकनकलु मॊदलय्यायि. ‘श्रीकृष्णा! नुव्वे दिक्कु’ अन्नारु. ‘अक्कडे कॊन्दरु ब्राह्मणुलु आङ्गिरसं अने सत्रयागं चेस्तुन्नारु. अक्कडिकि वॆळ्ते आकलि तीरुतुन्दि. मीरन्ता वॆळ्ळण्डि. ना पेरु चॆप्पण्डि’ अनि वारिनि पम्पाडु श्रीकृष्णुडु. गोपबालकुलु वॆळ्ळि वाळ्ळनु अर्थिञ्चारु. कानी वाळ्ळकु श्रीकृष्णुडु परमात्मु डन्न ज्ञानं उण्टेगा! एदो साधारण गॊल्लपिल्लवाडे ननुकॊन्नारु. ‘अतडु पम्पडं, मेमु आदरिञ्चडं बागाने उन्दि. अन्नं लेदु, गिन्नं लेदु पॊण्डि’ अनि छीत्करिञ्चारु. वाळ्ळु तिरिगि वच्चि जरिगिन्दि श्रीकृष्णुडिकि चॆप्पारु. ईसारि ब्राह्मण पत्नुल दग्गरकु वॆळ्लमनि पम्पिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. वाळ्ळु वॆळ्ळारु. श्रीकृष्णुडु इक्कडे उन्नाडनी मम्मल्नि मी वद्दकु पम्पाडनी गोपालुरु चॆप्पगाने वाळ्ळु उब्बि तब्बिब्बैपोयारु. श्रीकृष्णुण्णि चूडालनि उबलाटपड्डारु. रकरकाल आहरपदार्थालु तीसुकॊनि बयलुदेरारु. वाळ्लनु वाळ्ल भर्तलू पिल्ललू अन्दरू वॆळ्ळवद्दनि अड्डुकुन्नारु. अयिना वाळ्ळ माटलु लॆक्कचेयकुण्डा समुद्रुडि कोसं बिरबिरा परुगुतीसे नदीम तल्लुल्ला जगन्नाथुडैन श्रीकृष्णुडिवद्दकु वच्चारु. ‘मीरु ऎन्तो उल्लासङ्गा वच्चारु. नन्नु चूशारु. चालु. वॆण्टने तिरिगि वॆळ्ळण्डि. यागान्नि सम्पूर्णं चेयण्डि’ अन्नाडु श्रीकृष्णुडु. दानिकि वाळ्ळु विस्मयङ्गा ‘माधवा! नीकिला माट्लाडटं तगुना? वाळ्ळनु कादनि वच्चिन मम्मल्नि तिरिगि रानिस्तारनुकॊण्टुन्नावा? में वॆळ्ळं. नीकु दास्यं चेस्तू नी दग्गरे उण्डिपोतां’ अन्नारु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु ‘मीका चिन्त अक्कर्लेदु. वाळ्ळु मिम्मल्नि एमी अनरु. धैर्यङ्गा वॆळ्ळण्डि’ अनि वाळ्ळु तॆच्चिन पदार्थालन्निण्टिनी मित्रुलतो कलसि आरगिञ्चारु. राजा! श्रीकृष्णार्पणं अण्टू ऎवरिको भिक्षवेस्तेने परमपदं लभिस्तुन्दण्टारे! मरि साक्षात्तू आ परब्रह्म स्वरूपुडे स्वयङ्गा भिक्ष स्वीकरिस्ते दानिवल्ल कलिगे फलं माटल्लो चॆप्पगलमा! 183 दशम स्कन्धं वॆनक्कि तिरिगि वॆळ्ळिन वाळ्ळ भार्यल्नि चूसि आ श्रीकृष्णुडे सर्वेश्वरुडनि तॆलिसि ब्राह्मणुलु तमनु तामु तिट्टुकॊन्नारु. परमेश्वरुण्णि गुर्तिञ्चलेनिवाडु ऎन्नि यज्ञालु चेसिना वृथा अनि पश्चात्तापन्तो अलमटिञ्चारु. श्रीहरिने स्मरिस्तू क्षमापणलु कोरारु. कानी कंसुडिकि भयपडि बलरामकृष्णुल्नि चूडटानिकि वॆळ्ळलेकपोयारु. इन्द्रयागं - गोवर्धन पर्वत पूज कॊन्तकालं तर्वात नन्दगोकुलंलोनि पॆद्दलु इन्द्रयागं चेयालि अनि सङ्कल्पिञ्चारु. ‘वर्षानिकि अधिपति पर्जन्युडु. अतडे इन्द्रुडु. अतडि प्रीतिकोसं यागं चेस्ते सकल शुभालू कलुगुतायि. अन्दुके ई प्रयत्नं’ अन्नाडु नन्दुडु. दानिकि श्रीकृष्णुडु अड्डुतगिलि - अन्निण्टिकी मूलमैनदि कर्म. कर्मवल्लने प्राणुलु पुडुतुन्नायि, पॆरुगुतुन्नायि, नशिस्तुन्नायि. काबट्टि जनुलकु कर्मे देवत. अदे सुख दुःखालकु कारणं. इन्दुलो महेन्द्रुडि प्रमेयं एमुन्दि? अतडिकि भयपडटं देनिकि? अतण्णि ऎन्दुकु पूजिञ्चालि? इन्द्रयागानिकि तॆप्पिञ्चिन वस्तुवुलतो पिण्डिवण्टलु चेयिञ्चण्डि. अन्दरिकी सन्तर्पणलु चेयण्डि. ब्राह्मणुलकु दानालु समर्पिञ्चण्डि. पशुपक्ष्यादुलकु समृद्धिगा आहरान्नि अन्दिञ्चण्डि’ अन्नाडु. अन्दरू अङ्गीकरिञ्चारु. पशुवुलकू, पर्वतानिकी पूजलु चेशारु. इन्द्रुडिकि पट्टरानि कोपं वच्चिन्दि. वॆण्टने संवर्तक मेघाल्नि पम्पि राळ्ळवान कुरिपिञ्चाडु. मिन्नु विरिगि मीद पडिनट्टुन्दि आ वान. गोपालुरन्ता विलपिस्तू आ होरुगालि नुण्डी, जोरुगा कुरुस्तुन्न वान नुण्डी रक्षिञ्चमनि श्रीकृष्णुडिनि वेडुकुन्नारु. परिस्थिति परिकिञ्चिन श्रीकृष्णुडु आलस्यं चेयकुण्डा अक्कडे उन्न गोवर्धन पर्वतान्नि ऎत्ताडु. 184 पोतन भागवतमु अप्पुडॆप्पुडो वराहरूपं दाल्चि भूमिनि ऎत्तिन ई परन्धामुडु ऒक एनुगु तामरमॊग्गनु ऎत्तिनन्त अवलीलगा मुल्लोकालकु शुभाल्नि चेकूर्चे विधङ्गा तन चेत्तो लीलगा आ पर्वतान्नि ऎत्ति गॊडुगुला पट्टुकुन्नाडु. ‘ओ बन्धुवुलारा! वीडु चूस्ते बालुडु. ई कॊण्डेमो इन्त पॆद्दगा उन्दि. दीन्नि वीडु मोयगलडो लेदो अन्न सन्देहं वद्दु. ब्रह्मण्डमे ना चॆय्यिपै पडिना ना चॆय्यि चलिञ्चदु. धैर्यङ्गा दीनि किन्दकि रण्डि.’ अन्न श्रीकृष्णुडि माटलु नम्मिन गोपालकुलन्दरू आ कॊण्ड किन्दिकि चेरारु. परीक्षिन्महराजा! पद्मनेत्रुडि चेतिलो आ पर्वतं ऒक पद्मंला उन्दि. अयिना देवेन्द्रुडु अक्कसुतो एडुरोजुलु ऎडतॆरिपि लेकुण्डा वर्षं कुरिपिञ्चाडु. आ एडु रोजुलु श्रीकृष्णुडु गोपालकुलकु कॊण्डगॊडुगु पडुतूने उन्नाडु. देवेन्द्रुडिकि कनुविप्पु कलिगिन्दि. कामधेनुवुनु तोडुतीसुकॊनि वच्चि आ.वॆ. वासुदेव! कृष्ण! वरद! स्वतन्त्र! वि ज्ञानमय! महत्म! सर्वपुण्य पुरुष! निखिलबीजभूतात्मक ब्रह्म! नीकु वन्दनम्बु निष्कलङ्क! (10-1-941) अनि श्रीकृष्णुण्णि स्तुतिञ्चि, अमरावतिकि वॆळ्ळिपोयाडु. अदि शरत्कालं. पण्डु वॆन्नॆल. नन्दगोपालुडु यमुना तीरंलो बृन्दावनंलो मुरळिपै अन्दमैन रागं आलपिस्तुन्नाडु. गोपिकल आगमनं आ मोहनगीतं गोपिकल चित्ताल्नि तत्तरपडेला चेसिन्दि. ऎक्कडि पनुलु अक्कडे कट्टिपॆट्टि अन्दरिनी मरिचि अन्नी विडिचि श्रीकृष्णुडि वद्दकु परुगु परुगुन वच्चारु. ‘परीक्षिन्महराजा! इन्तकु मुन्दु नीकु चॆप्पानु कदा! आ.वॆ. बान्धवमुननैन" बगनैन वगनैन" ब्रीतिनैन" ब्राणभीतिनैन 185 दशम स्कन्धं भक्तिनैन हरिकि बरतन्त्रुलै युण्डु जनुलु मोक्षमुनकु जनुदु रधिप! (10-1-973) बन्धुत्वमो, पगो, कोरिको, इष्टमो, प्राणभयमो, भक्तो एदैना कानी हरिकि परतन्त्रुलै उन्न वाळ्ळु मोक्षान्नि पॊन्दुतारु. अन्तेकादु आ परम पुरुषुडिनि ताकिते चालु प्राणुले कादु राळ्ळु रप्पलू कॊण्डलू कोनलू चॆट्लू पुट्टलू कूडा मुक्तिनि पॊन्दुतायि. तन कोसं तपिस्तू वच्चिन गोपिकलनु चूसि श्रीकृष्णुडु- ‘ऎला उन्नारु..? अन्ता क्षेममे कदा? अयिना इन्त रात्रि क्रूर मृगालु तिरिगे ई अडविलोकि इला साहसं चेसि रावच्चुना? वच्चिन्दि चालु. इङ्क वॆनक्कि वॆळ्ळिपोण्डि. मीकोसं मीवाळ्ळु ऎन्त कङ्गारु पडतारो तॆलुसा? नन्नु ध्यानिञ्चण्डि. स्तुतिञ्चण्डि. नापै पाटलु पाडण्डि. नापै ध्यास निल्पण्डि. चालु. मी जीवितालु धन्यमवुतायि. इक मी मी इळ्ळकु वॆळ्ळिपोण्डि’ अन्नाडु. आ माटलु विन्न गोपिकलु विरहग्नितो दहिञ्चुकुपोयारु. एं माट्लाडालो तॆलियटंलेदु. दुःखं पॊङ्गुकु वस्तोन्दि. ‘मम्मल्नि अनुग्रहिञ्चु. नुव्वु कादण्टे ई विरहग्निलो कालि बूडिदै नी पादालनु चेरुकुण्टां! अन्ते!’ अण्टू परितपिञ्चारु. मॊत्तानिकि श्रीकृष्णुडु वाळ्ळनु अनुग्रहिञ्चाडु. तन साङ्गत्यान्नि प्रसादिञ्चाडु. गोपाङ्गनलु चुट्टू चेरि तननु कॊलुस्तू उण्टे चुक्कल्लो चन्द्रुडिला वॆलिगिपोयाडु. ऎवरिकी चिक्कनि आ चिद्विलासुडु गोपिकलकु चिक्किनट्ले चिक्कि चटुक्कुन मायमैपोयाडु. अप्पुडु चूडालि आ गोपकान्तल बाध. विलविललाडिपोयारु. चिरुगुटाकुल्ला वणिकिपोयारु. नेने माधवुण्णण्टू गोविन्दुण्णि अनुकरिस्तू अतडिकोसं अन्वेषिस्तू पिच्चिवाळ्ळला तिरुगुतू कनिपिञ्चिन चॆट्टुनू पुट्टनू अडुगुतू तिरुगुतुन्नारु. 186 पोतन भागवतमु उ. नल्लनिवा"डु पद्मनयनम्बुलवा"डु कृपारसम्बु पै" जल्लॆडिवा"डु मौळिपरिसर्पित पिञ्छमुवा"डु नव्वु रा जिल्लॆडु मोमुवा" डॊक"डु चॆल्वल मानधनम्बु" दॆच्चॆ नो मल्लियलार! मी पॊदलमाटुन ले"डु गदम्म चॆप्परे? (10-1-1011) ‘ओ मल्लॆलारा! नल्लनिवाडु, पद्मनेत्रालवाडु, करुण चिलकरिञ्चेवाडु, तलपै पिञ्छं कलवाडु, नव्वुलु चिन्दे मुखं कलवाडु अयिन श्रीकृष्णुडु मा गोपिकल मानधनं कॊल्लगॊट्टि ऎक्कडो दाक्कुन्नाडु. ऒकवेळ मी पॊदल्लो लेडु कदा! उण्टे कास्त चॆप्दुरू!’ अण्टुन्नारु. परीक्षिन्महराजा! इवन्नी आ गोपिकल विन्तचेष्टलु. श्रीकृष्णुडि कोसमे तीव्रङ्गा तपिस्तू वॆतुकुतू यमुनानदी तीरंलो इसुकतिन्नॆल्लो तिरुगुतुन्नारु. गोपिका गीतलु ऎट्टकेलकु कनिपिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. मुल्लोकाल्नी मोहंलो मुञ्चॆत्ते आ सुन्दर रूपान्नि चूडगाने गोपिकल मुखालु पद्माल्ला विकसिञ्चायि. पोतुन्न प्राणालु तिरिगि वच्चायि. गोपिकलु सम्भ्रमाश्चर्यालकु लोनय्यारु. आनन्दङ्गा कूर्चुन्नाडु. अला गोपिकलन्ता चुट्टू चेरि इला अडुगुतुन्नारु- ‘नन्दनन्दना! कॊन्दरु तमनु कॊलिचिनवारिनि मात्रमे अनुग्रहिस्तारु. इङ्कॊन्दरु कॊलिचिना कॊलवकपोयिना अनुग्रहिस्तारु. मरिकॊन्दरुण्टारु- वाळ्ळु कठिनात्मुलु. ऎवरिनी अनुग्रहिञ्चरु. ई व्यत्यासालु एमिटय्या श्रीकृष्णा!’ चिन्नगा नव्वाडु श्रीकृष्णुडु! ‘बावुन्दि मी सन्देहं?’ निजमे. कॊन्दरु एदो ऒकटि आशिञ्चि कॊलुस्तारु. इदि स्वार्थं. निजमैन स्नेहं कादु. कॊन्दरु दयास्वरूपुलु ए फलमू आशिञ्चकुण्डा कॊलुस्तारु. वारिवल्ल ऎवरिकी ऒरिगेदि एमी उण्डदु. ई मूडो कोवकु चॆन्दिनवाडिगा 187 दशम स्कन्धं कठिनात्मुडिगा मीरु नन्नु जमकट्टिनट्लु उन्नारु. ना कोसं मीरु सर्वस्वं वदुलुकॊनि वच्चारु. ना प्रत्यक्षानुभवं कोसं परितपिञ्चारु. कानी अदि धर्मं कादु. ना परोक्षानुभवं मीकु अलवाटु कावालि. अन्दुके नेनु मी मध्य नुञ्चि अदृश्युडनय्यानु. मिम्मल्नि बाधिञ्चालनि कादु सुमा! मीदि अनन्य भक्ति. मीकु एमिच्चिना ऋणं तीरदु. रासक्रीड अप्पुडु श्रीकृष्णुडु ‘रासमु’ अने क्रीड द्वारा आ गोपिकलन्दरिनी तरिम्प चेयालनुकॊन्नाडु. ई क्रीडलो गोपिकलन्दरू वलयाकारंलो नुञ्चुण्टारु. प्रति गोपिक प्रक्कना ऒक श्रीकृष्णुडुण्टाडु. अण्टे प्रति इद्दरि गोपिकल मध्या ऒक श्रीकृष्णुडन्न माट. ए गोपिक कागोपिक श्रीकृष्णुडु ना प्रक्कने उन्नाडनि मुरिसिपोतू उण्टुन्दि. गोपिकलु एए चेष्टल द्वारा श्रीकृष्णुडिनि अलरिञ्चालनुकुन्नारो ताने वाळ्ळन्दरिनी आया चेष्टल द्वारा मुरिपिञ्चाडु, मैमरिपिञ्चाडु. गोपिकल्नि भ्रमलो मुञ्चॆत्ताडु. अप्पटिकि श्रीकृष्णुनि वयस्सु आरु संवत्सराले. इदन्ता श्रीकृष्ण लीलाविलासं. इदे रासक्रीडा रहस्यं. सुदर्शनुडि शापविमोचनं परीक्षिन्महराजा! इदिला उण्टे अक्कड नन्दगोकुलंलो मरो आपद वच्चि पडिन्दि. ऒक पॆद्द पामु ऊरिमीद पडि चिवरिकि नन्दमहराजुने मिङ्गालनि चूसिन्दि. आ सर्पं ऎवरो कादु. सुदर्शनुडु अने ऒक विद्याधरुडु. गॊप्प अन्दगाण्णन्न अहङ्कारन्तो ऒकरोजु विमानमॆक्कि तिरुगुतू कुरूपुलैन अङ्गिरसुडि पुत्रुल्नि अवमानिञ्चि इदुगो इला शापग्रस्तुडय्याडु. श्रीकृष्णुडि पादस्पर्शवल्ल शापविमोचनं कलुगुतुन्दनि वाळ्ळु अनुग्रहिञ्चारु. इप्पुडु आ समयं वच्चिन्दि. श्रीकृष्णुडु वच्चि आ सर्पान्नि कालितो तन्नाडु. विकृतसर्पाकारं पोयि सुदर्शनुडु तिरिगि तन रूपं पॊन्दि देवलोकानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. 188 पोतन भागवतमु इङ्का गोपालुडिपैना गोकुलम्पैना राक्षसुल दाडुलु आगलेदु. शङ्खचूड संहरं शङ्खचूडुडु अनेवाडु ऒक यक्षुडु. वीडु कुबेरुडि अनुचरुडु. वीडु गोकुलं मीद पडि श्रीकृष्णुडि रक्षणलो उन्न गोपकान्तलनु अपहरिञ्चालनि चूशाडु. पुलिवातपड्ड आवुल्ला आक्रोशिञ्चारु गोपस्र्तीलु. बलरामकृष्णुलु ऒकडु यमुडु, मरॊकडु मृत्युवु अन्नट्लुगा वाडिवॆण्ट पड्डारु. वाडु भयपडि गोपिकल्नि वदिलि उत्तर दिक्कुकु परुगु तीशाडु. श्रीकृष्णुडु वॆण्टपडि मरी वाण्णि पट्टुकॊनि चम्पि वाडि तलपै उन्न मणिनि तॆच्चि बलरामुडिकि इच्चाडु. वृषभासुर वध मरोसारि वृषभासुरुडु गोपालुरपै विरुचुकुपड्डाडु. पर्वतशिखरं लाण्टि मूपुरन्तो वाडु भीकरङ्गा उन्नाडु. रङ्कॆलु वेस्तू नेलनु गिट्टलतो कुळ्ळगिञ्चेस्तू आलमन्दपै पड्डाडु. गोकुलं मॊत्तं भयन्तो ककाविकलमैपोयिन्दि. गोपालकृष्णुडु चूशाडु. सिंहंला वाडिपै दूकि वाडि रॆण्डु कॊम्मुलू पट्टुकॊनि पद्दॆनिमिदि अडुगुल दूरानिकि विसिरिकॊट्टाडु. अन्ते! अयिपोयाडा राक्षसुडु. नॆत्तुरु कक्कुकॊनि चच्चाडु. कंसुडि आह्वनं परीक्षिन्महराजा! कॊन्नाळ्ळ तरुवात नारद महर्षि कंसुडि वद्दकु वॆळ्ळाडु. ‘कंसा! देवकीदेवि अष्टमगर्भंलो पुट्टिन्दि आडपिल्ल कादु. मगबिड्ड. निन्नु संहरिञ्चगलवाडु नन्दगोकुलंलो पॆरुगुतुन्नाडु. अतडि पेरु श्रीकृष्णुडु. नुव्वु पम्पिन राक्षसुलन्दरिनी चम्पेदि अतडे’ अण्टू अप्पटिदाका जरिगिनवी कंसुडिकि तॆलियनिवी अन्नी विवरङ्गा चॆप्पाडु. कंसुडु मण्डिपड्डाडु. वसुदेवुडु तननु मोसं चेशाडनि वॆण्टने अतण्णि चम्पुताननी कत्ति दूशाडु. आपकपोते अन्नन्तपनी चेसेट्टुगा उन्नाडे! ऎला इतण्णि आपडं अनुकॊनि ‘कंसा! नुव्वु वसुदेवुण्णि चम्पिते श्रीकृष्णबलरामुलु 189 दशम स्कन्धं अज्ञातंलोकि वॆळ्ळिपोतारु. समयं चूसि नीपै दाडिचेस्तारु. काबट्टि ओपिक पट्टु’ अन्नाडु नारदुडु. निजमेननुकुन्नाडु कंसुडु. वॆण्टने देवकी वसुदेवुल्नि तिरिगि चॆरसाललो बन्धिञ्चाडु. नारदुडु वच्चिन पनिनि पूर्तिचेसुकॊनि वॆळ्ळिपोयाडु. तरुवात कंसुडु अक्रूरुण्णि पिलिचाडु. बलरामकृष्णुल्नि तानु चेस्तुन्न धनुर्यागानिकि ऎलागैना तीसुकुरम्मनि चॆप्पाडु. अक्रूरुडु - ‘राजा! नी आज्ञ. शिरसा वहिस्तानु. लोकंलो नरुलु तम शक्ति एपाटिदो दैवशक्ति ऎन्त गॊप्पदो तॆलुसुकोलेरु. पट्टुदलतो पिच्चिगा प्रवर्तिस्तू उण्टारु. विधि निर्णयं ऎला उण्टे अला जरुगुतुन्दि’ अन्नाडु. केशि वध कंसुडु ईसारि ‘केशि’ अने राक्षसुण्णि पम्पाडु. वाडु नन्दुडि मन्दलो प्रवेशिञ्चि बीभत्सं सृष्टिञ्चाडु. गुर्रं रूपंलो उन्न आ राक्षसुडि काळ्ळु पट्टुकॊनि गिरिगिरा त्रिप्पि नालुगु वन्दल मूरल दूरानिकि विसिरिकॊट्टाडु श्रीकृष्णुडु. अयिना मळ्ळी वेगङ्गा लेचि मीदिकि दूसुकुवस्तोन्दा गुर्रं. दानि नोटिलोनिकि तन बाहुदण्डान्नि दूर्चाडु श्रीकृष्णुडु. क्रमङ्गा कडुपुलोनिकि चॊप्पिञ्चि आ चेतिनि क्रमक्रमङ्गा पॆद्ददि चेशाडु. अन्ते! श्रीकृष्णुडि चॆय्यिपट्टक दानि पॊट्ट दोसपण्डुला रॆण्डुगा चीलिपोयिन्दि. देवतलु पुष्पवृष्टिनि कुरिपिञ्चारु. व्योमासुर वध ईसारि ‘व्योमासुरुडु’ अने मरो राक्षसुडु वच्चाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु गोपबालुरतो कलसि ‘दागुडुमूतलु’ आडुतुन्नाडु. ई राक्षसुडू ऒक गोपालुडि रूपं धरिञ्चि वाळ्ळतो कलसिपोयाडु. आ आटलो पिल्ललन्दरू गॊर्रॆलुगा नटिस्तुन्नारु. पिल्लल्नि मायचेसि ऒक गुहलो दाचेस्तुन्नाडा राक्षसुडु. अदि कनिपॆट्टाडु श्रीकृष्णुडु. तोडेलुपैकि दूके सिंहंला वाण्णि ऒडिसिपट्टि चील्चि चॆण्डाडि संहरिञ्चाडु. 190 पोतन भागवतमु अक्रूरुडि राक ‘अह! नेनॆन्त पुण्यं चेशानो कदा! श्रीकृष्णुण्णि चूडबोतुन्नानु. एं मुखमदि.. मुद्दुगारे मुङ्गुरुलू, कमलाल्लाण्टि कळ्ळू, चिरुनव्वु वॆन्नॆललू चॆविकम्मल कान्तुलू कलिसि मॆरिसे चॆक्किळ्ळू ओह…. पुन्नमि चन्द्रुडिला वॆलिगिपोये अतडि मुखं नेनिप्पुडु दर्शिञ्चबोतुन्नानु.’ अनि अक्रूरुडि मनस्सु उव्विळ्ळूरुतोन्दि. वडिवडिगा बृन्दावनं चेरुकुन्नाडु. बलरामकृष्णुलु सादरङ्गा आह्वनिञ्चि अतिथि मर्यादलु चेशारु. कुशल प्रश्नलु वेशारु. श्रीकृष्णुडैते अक्रूरुण्णि आलिङ्गनं चेसुकॊनि आदरिञ्चाडु. तरुवात सावकाशङ्गा अक्रूरुडु श्रीकृष्णुडु माट्लाडुकॊण्टुन्नारु. तन तलिदण्ड्रुल गुरिञ्चि अडिगाडु श्रीकृष्णुडु. अक्रूरुडु नारदुडु वच्चिनदग्गर्नुञ्ची मॊत्तं श्रीकृष्णुडिकि चॆप्पि तनु वच्चिन पनि कूडा चॆप्पाडु. सरे! वस्तानन्नाडु श्रीकृष्णुडु. यमुनलो बलरामकृष्णुलु अक्रूरुडु रथं नडुपुतुन्नाडु. बलरामकृष्णुलु आ रथम्पै मथुरकु सागिपोतुन्नारु. नन्दगोकुलंलोनि आबालगोपालमू वॆण्ट नडिचिन्दि. रथं रेपिन दुम्मुनु कन्नीटितो अणचिवेसिन्दि. दारिलो काळिन्दीनदि. अक्कड आगिन्दि रथं. अक्रूरुडु आ नदिलो दिगि स्नानं चेस्तुन्नाडु. बलरामकृष्णुलु रथंलोने उन्नारु. अप्पुडु अक्रूरुडु ऒक आश्चर्यकरमैन सन्निवेशं चूचाडु. स्नानं चेस्तुन्न अक्रूरुडिकि, नीळ्ळलो बलरामकृष्णुलु कन्पिञ्चारु. आश्चर्यपोतू मीरॆप्पुडु वच्चारिक्कडिकि? अनि अडिगि, अटु चूशाडु अक्रूरुडु. अक्कड रथंलोने उन्नारु बलरामकृष्णुलु. नम्मलेकपोयाडु. मळ्ळी चूशाडु. इदि निजमा! लेक ना भ्रमा! अनुकॊनि नीळ्ळलो मुनिगाडु. ईसारि नीळ्ळ अडुगुन आदिशेषुडु कनिपिञ्चाडु. आ शेषुडिपै शयनिञ्चि उन्न पुरुषोत्तमुडु कनिपिञ्चाडु. 191 दशम स्कन्धं पट्टुपीताम्बरं, वक्षस्थलंलो लक्ष्मि, नाभिपद्मंलो ब्रह्म, शुभलक्षणालु कल शरीरं, श्रीवत्सं अने पुट्टुमच्च, कौस्तुभमणि, तोमाल, मकर कुण्डलालु, दिव्याभरणालु वीटन्निण्टितो प्रकाशिञ्चे दिव्यमङ्गळ विग्रहन्नि दर्शिञ्चाडु. प्रह्लदादि भक्तुलु कॊलुस्तुन्नारु. लक्ष्मि, पुष्टि, तुष्टि, कीर्ति, कान्ति, इल, ऊर्ज, विद्य, अविद्य, शक्ति, माय अने तेजोमूर्तुलु सेविस्तुन्नारु. अदि चूसिन अक्रूरुडु भक्तिपारवश्यन्तो आवेशङ्गा स्तुतिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु तन स्वरूपान्नि चूपिनट्ले चूपिञ्चि अन्तलोने अन्तर्धानमैपोयाडु. अक्रूरुडु नीळ्ळनुण्डि बयटकु वच्चि रथंलो कूर्चुन्नाडु. अप्पुडु कृष्णुडु - एं अक्रूरा! वॆळ्ळि चालासेपय्यिन्दे! आ नदीजलाल्लो एवैना विन्तलु कनिपिञ्चाया?’ अन्नाडु. अक्रूरुडु नव्वि ‘स्वामी! नीकु तॆलियनि विन्तला? नीलो लेनि विन्तला’ अण्टू रथं पोनिच्चाडु. रथं मथुरानगरं पॊलिमेरलकु चेरुकुन्दि. अप्पटिके नन्दादुलु वच्चि कंसुडु एर्पाटु चेसिन विडिदिलो दिगारु. श्रीकृष्णुडु वॆळ्ळि वाळ्ळनु कलुसु कॊन्नाडु. अक्रूरुण्णि इङ्क वॆळ्ळिपॊम्मन्नाडु. अप्पुडु अक्रूरुडु ‘श्रीकृष्णा! ना इण्टिकि वच्चि नन्नु चरितार्थुण्णि चॆय्यवय्या’ अनि अभ्यर्थिञ्चाडु. ‘अक्रूरा! तिरुगु प्रयाणंलो नी कोरिक तीरुस्तानु, नुव्वु बयलुदेरु’ अन्नाडु. मथुरानगर प्रवेशं ऎन्त अन्दङ्गा उन्दी मथुरानगरं.. अगड्तलु, कोटलु, बुरुजुलु, वीथुलु, भवनालु, उद्यानवनालु- अन्नी अद्भुतमैन शोभतो ऒप्पुतुन्नायि. श्रीकृष्णुडु नगर वीथुल्लो विहरिस्तुन्नाडु. श्रीकृष्णुडिनि चूडालनि अन्दरिकी ऒकटे उबलाटं. दारिलो ब्राह्मणुलु बलरामकृष्णुल्नि अर्चिञ्चारु. अटुवैपु वच्चिन ऒक सालॆवाडु मञ्चिमञ्चि बट्टलु तॆच्चि बलराम कृष्णुलकु इच्चाडु. तरुवात वारु सुदामुडि इण्टिकि वॆळ्ळारु. वाळ्ल राकतो सुदामुडु सन्तोषन्तो उप्पॊङ्गिपोयाडु. पूमाललु समर्पिञ्चाडु. 192 पोतन भागवतमु श्रीकृष्णुडु प्रीतुडै ‘सुदामा! नीकें कावालो कोरुको’ अन्नाडु. सुदामुडु ‘श्रीकृष्णा! तापसमन्दारा! कं. नी पाद कमल सेवयु नी पादार्चकुल तोडि नॆय्यमुनु नितां तापार भूतदययुनु दापसमन्दार नाकु दयसेय"गदे (10-1-1270) ‘नी पादकमलाल्नि सेविञ्चे भाग्यं, नी पादाल्नि अर्चिञ्चेवाळ्ळ स्नेहं, ऎल्लप्पुडू अपारमैन भूतदया नाकु अनुग्रहिञ्चु’ अन्नाडु. अतडु वेडुकॊन्नवन्नी अनुग्रहिञ्चि श्रीकृष्णुडु राजवीथिलोनिकि दारि तीशाडु. दारिलो ऒक गूनि दासि ऎदुरुवच्चिन्दि. आमॆ चेतिलो चन्दनादिमैपूतलु उन्न गिन्नॆलु उन्नायि. श्रीकृष्णुडु आमॆतो - ‘सुन्दरी! ऎवरु नुव्वु? नी चेतिलो आ गिन्नॆलेमिटि? माकिय्यरादा’ अन्नाडु. अतडि माटल्लोनि कॊण्टॆतनं, चमत्कारं आमॆ ग्रहिञ्चिन्दि. ‘नुव्वु भले अन्दगाडिवे. चालु चालु, नी सरसालु, चमत्कारालु. अयिना अन्दरिकी इन्नि अन्दालु ऎक्कडिनुञ्चि वस्तायिगनुक! नेनु कंसुडि दासिनि. अच्चमैन मैपूतलु चेयटमे नेनु नेर्चिन विद्य. मीकू कावाला?’ अण्टू बलरामकृष्णुलुकु कॊन्नि मैपूतलु इच्चिन्दि. अन्दुकॊन्नाडु श्रीकृष्णुडु. कुब्ज वङ्कर्लनु तीसेयालनुकॊन्नाडु. दानि मीगाळ्ळ मीद तन कालितो नॊक्किपॆट्टि रॆण्डु चेतुल बॊटन वेळ्ळनु आमॆ गड्डं क्रिन्द पॆट्टि शरीरान्नि पैकि सागदीशाडु. अन्ते! ऒक्क क्षणंलो आमॆ गूनि मायमैपोयिन्दि. मन्मथुडि बाणमा! अन्नट्लु अन्दमैन स्र्तीगा आमॆ मारिपोयिन्दि. 193 दशम स्कन्धं धनुश्शालकु वॆळ्ळाडु श्रीकृष्णुडु. अक्कडो पॆद्द विल्लु उन्दि. दानि दग्गरकु वॆळ्ळि अल्लॆत्राडु तगिलिञ्चि ऒक मत्तगजं चॆरुकुगडनु विरिचिनट्लुगा विरिचेशाडु. वॆन्नॆल वॆलुगुलो मथुर वॆलिगिपोतोन्दि. आ रात्रि तोटि गोपालुरतो कलसि वॆन्नॆल वॆलुगुलो पालबुव्वलु तिनि आनन्दिञ्चारु बलरामकृष्णुलु. अक्कड कंसुडिकि कण्टिमीद कुनुकु लेदु. बलरामकृष्णुलु रावडं, धनुवुनु विरवडं, तन अनुचरुल्नि वधिञ्चडं अतण्णि तॊलिचेस्तुन्नायि. एवो पीडकललु. इन्तलो तॆल्लवारिन्दि. कंसुडु मल्लयुद्धानिकि रङ्गं सिद्धं चेयिञ्चाडु. वॆण्टने ऒक्कॊक्कडु ऒक्कॊक्क पर्वतमा अन्नट्लुन्न चाणूरुडु, मुष्टिकुडु, शलुडु, तोसलुडु उद्रेकङ्गा रङ्गंलोनिकि दूकारु. ऒकवैपु कंसुडु, मरोवैपु नन्दादुलू कूर्चुन्नारु. मल्लयुद्धं प्रारम्भानिकि सूचनगा भेरीलु गुण्डॆलु पगिलेला म्रोगायि. बलरामकृष्णुलु वाकिलि दग्गरकु चेरुकुन्नारु. अक्कडो मत्तगजं उन्दि. दानि पेरु कुवलयापीडं. दानिनि श्रीकृष्णुडि मीदिकि तोलुकुवस्तुन्नाडु मावटिवाडु. कुवलयापीडं अदि कंसुडि आज्ञ. एनुगुतो तॊक्किञ्चि चम्पॆय्यालन्नदे वाडि आलोचन. श्रीकृष्णुडिकि आ पन्नागं अर्थमयिन्दि. कट्टुकुन्न पट्टुपुट्टान्नि बिगिञ्चि ऒक्क ऎगुरु ऎगिरि दानि तोक पट्टुकुनि अन्तटि एनुगुनी गिरगिरा तिप्पि वन्द मूरल दूरंलो पडेला आश्चर्यकरङ्गा विसिरिकॊट्टाडु. दान्नि यमपुरिकि पम्पिञ्चाडु. इक नेरुगा रङ्गंलोकि दूकारु बलरामकृष्णुलु. अप्पुडु चाणूरुडु श्रीकृष्णुण्णि नानामाटलू अण्टू बागा रॆच्चगॊट्टाडु. श्रीकृष्णुडु चाणूरुडितोनु, बलरामुडु मुष्टिकुडितोनू तलपड्डारु. जब्बलु चरुस्तू, विकटाट्टहसं चेस्तू रॆण्डु एनुगुलू रॆण्डु सिंहलू कॊट्टुकॊण्टुन्नट्लु युद्धं चेस्तुन्नारु. चूसेवाळ्ळन्ता ऊपिरि बिगपट्टि चूस्तुन्नारु. कॊद्दिसेपु वाळ्ळनु ऒक आट आडिञ्चि संहरिञ्चारु बलरामकृष्णुलु. 194 पोतन भागवतमु कंस वध कंसुडिकि ऒकप्रक्क असहनं, कोपं. मरो प्रक्क भयं. एं चेयालो तोचलेदु. तन सैनिकुल्नि पिलिचि ‘अडुगो! नन्दुडु. मुन्दु अतण्णि चम्पि पारॆय्यण्डि. ई कुर्राळ्ळिद्दर्नी तरिमिकॊट्टण्डि. आ तरुवात वसुदेवुण्णी, ना तण्ड्रि उग्रसेनुण्णी मट्टुपॆट्टण्डि’ पिच्चिगा केकलु वेस्तू अरुस्तुन्नाडु. अदि विन्न श्रीकृष्णुडु कॊदमसिंहंला कंसुडिमीदिकि दूकाडु. गरुडुडु सर्पान्नि पट्टुकॊनेट्लु कंसुडि जुट्टु पट्टुकॊनि रङ्गस्थलं मध्यलोनिकि विसिरिवेशाडु. किरीटं ऎगिरि ऒक प्रक्कन पडिन्दि. कंसुडु मरो प्रक्कन पड्डाडु. पौरुलु हहकारालु चेस्तुण्टे श्रीकृष्णुडु पैकि ऎगिरि कंसुडि मीदिकि दूकाडु. तन बॊज्जलो पदुनालुगु भुवन भाण्डालनु दाचुकुन्न श्रीकृष्णुडु मीदिकि दूकिते कंसुडु इङ्का बतिकि उण्टाडा! नॆत्तुरु कक्कुकॊनि मरणिञ्चाडु. परीक्षिन्महराजा! वैरंवल्लनैतेनें कंसुडु श्रीकृष्णुडि चेतिलो मरणिञ्चि, अतडिलोने ऐक्यमैपोयाडु. कंसुडि ऎनिमिदिमन्दि तम्मुळ्ळू श्रीकृष्णुडि चेतिलोने मरणिञ्चारु. उग्रसेन महराजुकु पट्टाभिषेकं तरुवात श्रीकृष्णुडु देवकीवसुदेवुल्नि चॆरसाल नुण्डि विडिपिञ्चाडु. वाळ्ळकु तम बिड्ड सामान्युडु काडनी, भगवन्तुडनी तॆलुसु. वाळ्ळनु चूसि श्रीकृष्णुडु - ‘मीरु माकु जन्मनिच्चारु कानी मम्मल्नि पॆञ्चि पॆद्दचेसे मुद्दूमुच्चटकु मीरु नोचुकोलेदु. माकू आ अदृष्टं लेदु. सामर्थ्यं उण्डी तल्लिदण्ड्रुल्नि सेविञ्चनिवाडिकन्ना दुष्टुडु, दुर्मार्गुडू इङ्कॊकडु उण्टाडा? वाडु चच्चि नरकंलो तन मांसान्नि ताने तिण्टाडु. अन्तेकादु, तल्लिदण्ड्रुल्नि, वृद्धुल्नि, पसिबिड्डल्नि, गुरुवुलनु, ब्राह्मणुलनु, साधुवुलनु, स्र्तीलनु पोषिञ्चगल सामर्थ्यं उण्डि कूडा निर्लक्ष्यं चेसेवाडु बतिकिना चच्चिनवाडितो समानं’ अन्नाडु. देवकीवसुदेवुल कळ्ळु चॆमर्चायि. बिड्डल्नि दग्गरकु तीसुकॊनि लालिञ्चारु. 195 तरुवात उग्रसेन महराजुगारिकि पट्टाभिषेक महोत्सवं प्रारम्भमयिन्दि. यदु, वृष्णि, भोज, कुकुर, अन्धक वीरुलन्दरि समक्षंलो अतडिकि पट्टाभिषेकं जरिपिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. श्रीकृष्णुडु नन्दुडु मॊदलैनवाळ्ळनु बृन्दावनानिकि पम्पिञ्चाडु. वाळ्ळु वॆळ्ळलेक, श्रीकृष्णुण्णि वदल्लेक कन्नीरु मुन्नीरै बयलुदेरारु. श्रीकृष्णबलरामुलु मथुरलोने उन्नारु. सान्दीपनि महर्षि वसुदेवुडु वाळ्ळकु उपनयनं चेयिञ्चि सान्दीपनि वद्दकु विद्याभ्यासानिकि पम्पिञ्चाडु. सान्दीपुडु काशिलो उन्नाडु. बलरामकृष्णुलु अक्कडिकि वॆळ्ळि विनयविधेयलतो आयनकु शुश्रूषलु चेशारु. वेदवेदाङ्गालु, उपनिषत्तुलु, धनुर्विद्य नेर्चुकॊन्नारु. रोजुको कळ चॊप्पुन अरवै नालुगु रोजुल्लो अरवै नालुगु कळल्लोनू आरितेरारु. सान्दीपनि महर्षि कुमारुडु पूर्वं ऎप्पुडो प्रभास तीर्थंलो मुनिगि पोयाडु. अतण्णि तॆच्चि गुरुदक्षिणगा समर्पिञ्चमनि कोराडु सान्दीपुडु. मारु माट्लाडकुण्डा चनिपोयिनवाण्णि ऎला तेवालन्न आलोचन लेकुण्डा बयलुदेरारु बलरामकृष्णुलु. नेरुगा यमपुरमैन संयमिनी नगरानिकि वॆळ्ळारु. पाञ्चजन्यं पूरिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. यमुडु परुगुपरुगुन वच्चि आ बालुण्णि अप्पगिञ्चाडु. अतण्णि तॆच्चि गुरुवु गारिकि समर्पिञ्चि गुरुवु गारि आशीस्सुलु पॊन्दारु. तिरिगि मथुरानगरानिकि चेरुकुन्नारु. उद्धवुडि सन्देशं मथुरानगरंलो उन्न श्रीकृष्णुडिकि गोपिकलु गुर्तुकु वच्चारु. वाळ्ळु ऎला उन्नारो! एं चेस्तुन्नारो, पापं. प्राणालन्नी नामीदे पॆट्टुकॊनि बतिकारु. वाळ्ळ समाचारं तॆलुसुकोवालि! अनुकॊनि वाळ्ळ दग्गरकु उद्धवुण्णि पम्पालनु कॊन्नाडु. दशम स्कन्धं 196 पोतन भागवतमु ‘ई श्रीकृष्णुडॆप्पटिकी मीवाडे! मिम्मल्नि ऎन्नटिकी विडिचिपॆट्टडु. त्वरलोने बृन्दावनानिकि वस्ताडु’ अनि गोपिकलतो चॆप्पमनि श्रीकृष्णुडु उद्धवुडिनि बृन्दावनानिकि पम्पाडु. उद्धवुडु उत्तमुडु, बुद्धिमन्तुडु. श्रीकृष्णुडु चॆप्पिन तिय्यटि माटल्नि वारि चॆवुल्लो वेसि वाळ्ळकु वीनुलविन्दु गाविञ्चाडु. आ माटलु विनडानिकि बागाने उन्ना निजमेना, निजङ्गा मा कोसं मा श्रीकृष्णुडु वस्ताडा! अनि गोपिकलकु सन्देहं. ‘इप्पटिदाका ऎला तट्टुकुन्नामो माके तॆलियदु. इक मा वल्ल कादु. नुव्वु राकपोते अन्ते. मा प्राणालु गाल्लो कलसिपोतायि, श्रीकृष्णा! इक नीदे भारं! इदि मा माटगा चॆप्पु’ अन्नारु श्रीकृष्णुडि पट्ल भक्तितो गोपिकलु. परीक्षिन्महराजा! उद्धवुडु तिरिगि वच्चि अक्कड जरिगिन सङ्घटनलन्नी श्रीकृष्णुडिकि कळ्ळकु कट्टिनट्लु विनिपिञ्चाडु. कंसवध अयिपोयिन्दि. तननु इण्टिकि रम्मनि पिलिचिन कुब्जनु अनुग्रहिञ्चडानिकि श्रीकृष्णुडु आमॆ इण्टिकि वॆळ्ळाडु. अलागे अक्रूरुडि इण्टिकि तने स्वयङ्गा बलरामुण्णि वॆण्टतीसुकॊनि वॆळ्ळाडु. पैगा अतण्णि हस्तिनापुरानिकि पम्पालन्नदि श्रीकृष्णुडि आलोचन. अक्रूरुडु उब्बितब्बिब्बै बलरामकृष्णुलकु अर्घ ्यपाद्यालिच्चाडु. वारि काळ्ळु कडिगि आ पवित्रजलं तन तलपै जल्लुकुन्नाडु. अनेक सत्कारालु चेशाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु- अक्रूरा! नुव्वु माको सायं चेसिपॆट्टालि. हस्तिनापुरानिकि वॆळ्ळि पाण्डवुल क्षेमसमाचारालु तॆलुसुकॊनि रावालि. वाळ्ळु नाकु प्राणन्तो समानुलनि नीकु तॆलुसुकदा! वॆळ्ळिरा’ अन्नाडु. अक्रूरुडु हस्तिनापुरानिकि वॆळ्ळाडु. पॆद्दलन्दरिनी कलिशाडु. अन्दरि क्षेम समाचारालु तॆलुसुकुन्नाडु. मथुरलो अन्ता क्षेममेननि वारितो चॆप्पाडु. कॊन्नाळ्ळु अक्कडे उण्डि अन्दरि मनस्तत्वालू ग्रहिञ्चाडु. मुख्यङ्गा धृतराष्र्टुडु पाण्डवुलपै चूपिञ्चे प्रेम निजं कादनि अतडिकि अर्थमयिन्दि. धृतराष्र्टुडिकि हितबोध चेसि मरी वच्चाडु. 197 श्रीकृष्ण जरासन्धुल युद्धं परीक्षिन्महराजा! कंसुडिकि अस्ति, प्रास्ति अनि इद्दरु पट्टपुराणुलुन्नारु. वीळ्ळिद्दरू ऎवरो तॆलुसा! जरासन्धुडि कुमार्तॆलु. तन अल्लुण्णि चम्पिन श्रीकृष्णुडिपै पगपट्टाडु जरासन्धुडु. तन 23 अक्षौपिणुल सैन्यान्नि तीसुकॊनि मथुरपै दाडिचेशाडु. आकाशंलोञ्चि रॆण्डु दिव्यरथालु मथुरलो दिगायि. वाटि निण्डा दिव्यमैन आयुधालू, कवचालू उन्नायि. आलस्यं चेयलेदु. बलरामकृष्णुलु चॆरो रथं अधिरोहिञ्चारु. सूर्यतेजस्सुतो वॆलिगिपोतुन्न इद्दरु सारथुलु कूडा उन्नारु आ रथालकु. श्रीकृष्णुडि रथसारथि पेरु दारुकुडु. वेगङ्गा जरासन्धुडिवैपु रथान्नि पोनिच्चाडु. ईलोगा कृष्णुडु पाञ्चजन्यान्नि पूरिञ्चाडु. शत्रुसैनिकुल गुण्डॆलु दद्दरिल्लिपोयायि. इन्तलो जरासन्धुडि सैन्यं यादवसैन्यम्पै विरुचुकुपडिन्दि. बलरामुडु तन रोकलिनि धरिस्ते श्रीकृष्णुडु तन विल्लुनु अन्दुकुन्नाडु. इद्दरू शत्रुसैन्यान्नि चील्चि चॆण्डाडारु. अन्त सैन्यमू चूस्तुण्डगाने नामरूपालु लेकुण्डा अयिपोयिन्दि. एदो युद्धं चेस्तुन्नट्लु काक आट आडु तुन्नट्लुगा बलरामकृष्णुलु इन्त पनी चेशारु. जरासन्धुडि रथं विरिगिपोयिन्दि. गर्वं अणगिपोयिन्दि. ऎलागो प्राणालु मात्रं मिगिलायि. बलरामुडु सिंहंला दूकि जरासन्धुण्णि पट्टुकोबोयाडु. कानी श्रीकृष्णुडु - ‘बलरामा!’ इप्पुडे वद्दुले.. इतडिवल्ल इङ्का चालामन्दि दुष्टुल्नि मनं वेटाडालि. कॊन्नाळ्ळु बतकनी अन्नाडु. बलरामुडु अतण्णि विडिचि पॆट्टाडु. मधुरलो यादवुल विजयोत्सवं अम्बरान्नण्टिन्दि. दशम स्कन्धं 198 पोतन भागवतमु कालयवनुडु परीक्षिन्महराजा! कालयवनुडु यादवुल आगर्भशत्रुवु. अयिते यादवुल चेतिलो मरणं लेकुण्डा इतडिकि वरं कूडा उन्दि. अदि अदनपु सौकर्यं. अदे अतडिकि वॆय्येनुगुल बलं कूडा. गोरुचुट्टु मीद रोकलिपोटुला असले क्रूरुडू, वरगर्वितुडू, बलवन्तुडू अयिन कालयवनुडिकि नारदुडु बागा नूरिपोशाडु. जरासन्धुण्णि श्रीकृष्णुडु ओडिञ्चिन सङ्गति चॆप्पि अतण्णि ओडिस्तेने नुव्वु निजमैन वीरुडिवनि रॆच्चगॊट्टाडु. आ माटलु ऊरिके पोताया! सत्वरं तन मूडु कोट्ल म्लेच्छ सैन्यन्तो कालयवनुडु मथुरपै विरुचुकुपडेला चेशाडु. श्रीकृष्णुडु आलोचिस्तुन्नाडु. मॊन्न जरासन्धुडु, ई रोजु ई कालयवनुडु. रेपु इङ्कॊकडु. सरे! इप्पुडु ई कालयवनुण्णि ऎदुर्कॊने समयंलोने पगतो रगलिपोतुन्न जरासन्धुडु वच्चि मथुरपै दाडिचेस्ते, इद्दरिनी ऒकेसारि ऎदुर्कोवडं कष्टं. ईलोगा जरासन्धुडु अमायकुलैन प्रजल्नि हिंसिञ्चि पारेस्ताडु. दीनिकि एदैना उपायं आलोचिञ्चालि. प्रजलु सुरक्षितङ्गा उण्डेला चूडालि अनुकॊनि वॆण्टने विश्वकर्मनु समुद्रंलो ऒक नगरान्नि निर्मिञ्चि इव्वमनि कोराडु. द्वारका नगरं विश्वकर्म देवशिल्पि. समुद्रंलो पन्नॆण्डु योजनाल वैशाल्यंलो ऒक नगरान्नी, दानि चुट्टू ऒक दुर्भेद्यमैन कोटनी अद्भुतङ्गा निर्मिञ्चि इच्चाडु. दिक्पालकुलन्दरू आ नगरानिकि तम तम कानुकलनु पम्पारु. दानितो द्वारक सर्वाङ्गसुन्दरङ्गा सकल सौकर्यालतो विलसिल्लिन्दि. श्रीकृष्णुडु तन योगशक्तितो मथुरापुर प्रजलन्दरिनी द्वारककु तरलिञ्चाडु. इप्पुडु निश्चिन्तगा चेतिलो ए आयुधमू लेकुण्डा वच्चि कालयवनुडि मुन्दु निलबड्डाडु. कालयवनुडु कूडा निरायुधुडिगाने पोराडताननि मुन्दुकु वच्चाडु. कानी श्रीकृष्णुडु अतडिकि दॊरक्कुण्डा परुगु 199 तीशाडु. वाडु वॆण्टपड्डाडु. वाण्णि नानातिप्पलू पॆट्टि चिवरिकि श्रीकृष्णुडु ऒक गुहलोकि वॆळ्ळाडु. वाडू वॆळ्ळाडु. गुह लोपल गाढनिद्रलो उन्न ऒक पुरुषुडु कनिपिञ्चाडु कालयवनुडिकि. अतडु श्रीकृष्णुडे अनुकुन्नाडु कालयवनुडु. आ पुरुषुण्णि कालितो तन्नाडु. अन्ते! निद्र मेल्कॊन्न आ दिव्यपुरुषुडु कन्नु तॆरिचि चूडटं कालयवनुडु भस्ममैपोवटं एककालंलोने जरिगिपोयायि. महराजा! अतडे मुचुकुन्दुडु. मुचुकुन्दुडु इक्ष्वाकु वंशंलो मान्धात अने ऒक गॊप्प चक्रवर्ति उण्डेवाडु. अतडि कॊडुके ई मुचुकुन्दुडु. ई महराजु देवतल्नि राक्षसुल बारि नुण्डि रक्षिञ्चिन महनुभावुडु. अन्दुकु मॆच्चिन देवतलु इतडिनि वरं कोरुकोमण्टे मुचुकुन्दुडु मोक्षान्नि प्रसादिञ्चमनि वेडुकॊन्नाडु. अप्पुडु देवतलु ‘महवीरा! नुव्वु मम्मल्नि रक्षिञ्चडं कोसं राज्यान्नि, भार्यापुत्रुल्नी, बन्धुमित्रुल्नी विडिचि चालाकालं इक्कडे उण्डिपोयावु. इप्पुडु भूमिपै नी वाळ्ळॆवरू लेरु. अन्दरू मरणिञ्चारु. इदेनय्या! कालप्रभावं अण्टे. ऎन्तटिवारैना कालं नुण्डि तप्पिञ्चुकोलेरु. कं. कालमु प्रबलुलकुनु बलि कालात्मुं डीश्वरुं डगण्यु"डु जनुलं गालवशुलुगा" जेयुनु गालमु गडवङ्गलेरु घनु लॆव्वारुन् (10-1-1644) महबलवन्तुलकण्टे कूडा कालं इङ्का बलमैनदि. कालस्वरूपुडु भगवन्तुडे! अतडे अगण्युडु. जनुल्नि कालवशुलुगा चेसे परमात्मुडू आयने. काबट्टि ऎन्तटि घनुलैना कालान्नि अधिगमिञ्चलेरु. नुव्वु कोरिन मोक्षान्नि प्रसादिञ्चगलवाडु भगवन्तुडैन आ श्रीहरि ऒक्कडे. अदिकाक मरेदैना वरं कोरुको अन्नारु. दशम स्कन्धं 200 पोतन भागवतमु अप्पुडु मुचुकुन्दुडु निद्रनु प्रसादिञ्चमन्नाडु. देवतलु अनुग्रहिञ्चारु. अप्पटि नुण्डी इदुगो इला ई गुहलो निद्रलो उण्टुन्नाडु. इप्पुडु कालयवनुडि वल्ल मेल्कॊन्नाडु. कालयवनुडु भस्ममैपोयिन तरुवात मुचुकुन्दुडि मुन्दु मुकुन्दुडु साक्षात्करिञ्चाडु. तन मुन्दु साक्षात्करिञ्चिन श्रीमन्नारायणुडि उज्ज्वलमैन रूपान्नि चूडलेकपोयाडु मुचुकुन्दुडु. ‘स्वामी! नुव्वॆवरु! नीकु सेवचेयालनि उन्दि’ अन्नाडु. अप्पुडु मुकुन्दुडु मेघध्वनिलाण्टि कण्ठन्तो ‘राजेन्द्रा! भूमिपै उण्डे धूळिकणाल्नयिना लॆक्किञ्चवच्चुगानी ना गुणगणाल्नि ऎन्नडं साध्यं कादु. धर्मसंस्थापन कोसं यादव कुलंलो नन्दुडिकि नन्दनुण्णै जन्मिञ्चानु. दुष्टुल्नि वॆतिकि वॆतिकि संहरिस्तुन्नानु. पूर्वं नुव्वु नन्नु आराधिञ्चावु. अन्दुके नी कोसमे नेनु ई गुहकु वच्चानु. नीकें कावालो कोरुको! ना भक्तुलकु ए कष्टमू रानिव्वनु. इदि नाव्रतं’ अन्नाडु. अप्पुडु मुचुकुन्दुडु पुण्डरीकाक्षुडे इतडनि तॆलुसुकॊनि आनन्दाश्चर्यालतो प्रभू! परन्धामा! नाकु नी पाद सेव तप्प एमी अक्कर्लेदु. नन्नु अनुग्रहिञ्चु अनि वेडुकॊन्नाडु. अप्पुडु श्रीहरि ‘राजा! नुव्वु क्षत्रियुडिवि काबट्टि पूर्वं वेटाडि मरी ऎन्तो जीवहिंस चेशावु. काबट्टि तपस्सु चेसि आ पापान्नि बापुको मुन्दु. तरुवात जन्मलो ब्राह्मणुडवै पुट्टि अन्नि प्राणुल्नी प्रेमिञ्चि नन्नु चेरुकुण्टावु’ अनि चॆप्पि वॆळ्ळिपोयाडु. तरुवात मुचुकुन्दुडु नरनायणुलकु नॆलवैन बदरिकाश्रमानिकि वॆळ्ळि अच्युतुडिनि आराधिञ्चसागाडु. प्रवर्षण पर्वतं मथुरकु तिरिगिवच्चिन श्रीकृष्णुडु तरुवात तन नगरान्नि मुट्टडिञ्चिन यवनुल्नी अन्तं चेशाडु. म्लेच्छुलनू नाशनं चेशाडु. इन्तलो जरासन्धुडु मळ्ळी दण्डॆत्ति वच्चाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णबलरामुलु अतडितो युद्धं चेयलेदु. सामान्य मानवुल्लागा भयपडिपोयिन वारिवलॆ 201 अडवुल्लोकि पारिपोयारु. वाळ्ळनु चूसि जरासन्धुडु ऎगताळि चेस्तू वॆम्बडिञ्चाडु. बलरामकृष्णुलु आगलेदु. वॆळ्लि वॆळ्लि ‘प्रवर्षणं’ अनि पेरुगल ऒक पर्वतम्पैकि ऎक्कारु. जरासन्धुडु सैन्यन्तो आ पर्वतान्नि मुट्टडिञ्चाडु. अन्तेना! कॊण्डकु निप्पुपॆट्टिञ्चाडु. ऎटु चूसिना भगभगमनि मण्टलु. आ मण्टल्लो आ पर्वतं कालि, बूडिदैपोतोन्दि. गुहलु, कॊण्डचरियलु, शिखरालु, वाटिपै उन्न चॆट्लु इला ऒकटेमिटि अन्नी अग्निमयं. कॊण्डनु काल्चिवेस्तुन्न आ अग्नि ऒक महवृक्षंला उन्दि. बलरामकृष्णुलु आ मण्टल्लो बूडिदैपोयि उण्टारनि भाविञ्चाडु जरासन्धुडु. कानी बलरामकृष्णुलु चाकचक्यङ्गा शत्रुवुल कळ्ळुगप्पि द्वारका नगरानिकि चेरुकुन्नारु. रुक्मिणीकळ्याणं कं. भूषणमुलु सॆवुलकु बुध तोषणमु लनेक जन्म दुरितौघ विनि श्शोषणमुलु मङ्गळतर घोषणमुलु गरुडगमनु गुणभाषणमुल् (10-1-1685) श्रीहरि गुरिञ्चिन माटलु - चॆवुलकु भूषणालु - अलङ्कारालु. पण्डितुलकु सन्तोषदायकालु. अनेक जन्मल पापालकु शोषणालु - अण्टे इङ्किम्पजेसेवि. अन्तेकादु, मङ्गळवाद्याल्लागा शुभान्नि कलिगिस्तायि. राजा! विनु. विदर्भ देशानिकि राजधानि कुण्डिनपुरं. दानिकि प्रभुवु भीष्मकुडु. अतडु वीरुडु, शूरुडु. अतडिकि ऐदुगुरु कुमारुलु. वारिलो पॆद्दवाडु रुक्मि. ऒके ऒक्क कूतुरु. आमॆ पेरे रुक्मिणि. रुक्मिणि पुट्टिन नाटिनुण्डी राजु इण्ट्लो लक्ष्मीकळ ताण्डविञ्चिन्दि. अदि आमॆतोपाटे पॆरुगुतू वच्चिन्दि. दशम स्कन्धं 202 पोतन भागवतमु श्रीहरि लीलले कादु, लक्ष्मीलीललू विचित्रमैनवे. आ बालामणि पेर्लुपॆट्टि मरी बॊम्मलकु पॆळ्ळिळ्ळु चेस्तुन्दि. पप्पुबिय्यालु गिन्नॆल्लो पोसि गुज्जॆनगूळ्ळु वण्डि वड्डिस्तुन्दि. उद्यानवनाल्नि पॆञ्चि पोषिस्तुन्दि. मणिभवनाललो तूगुटुय्याल लूगुतोन्दि. तन ईडु पिल्लल्तो बन्तुलाट आडुतुन्दि. गोरुवङ्कलकू चिलुकलकू माटलू नेर्पुतुन्दि. नॆमळ्लकु नाट्यालु, हंसलकु नडकलु नेर्पुतुन्दि. अला विलसिल्लुतू उन्न आमॆ मनस्सुलो माधवुण्णि पॆळ्ळाडालन्न कोरिक कॊनलु सागिन्दि. दानिलागे सन्नगा नाजूकु तीगला पॆरुगुतोन्दि रुक्मिणि. क्रमङ्गा आमॆ ऎलजव्वनंलोनिकि प्रवेशिञ्चिन्दि. रुक्मि, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश, रुक्मनेत्रुलने अयिदुगुरिकी ईमॆ ऒक्कते गाराबु चॆल्लि. आमॆ आ नोटा ई नोटा श्रीकृष्णुडि गुरिञ्चि विण्टोन्दि. क्रमङ्गा अतडिपै उन्न वलपु अन्तकन्तकू पॆरुगुतुन्नदे कानी तग्गटं लेदु. श्रीकृष्णुडू अन्ते. रुक्मिणि गुरिञ्चि विन्नाडु. ऎलागैना सरे, आमॆनु तन इल्लालिनि चेसुकोवालनि निश्चयिञ्चुकुन्नाडु. वीळ्ळे कादु, बन्धुवर्गमन्ता वीळ्ळिद्दरिकी पॆळ्ळिचेस्ते बावुण्टुन्दने आलोचनलो उन्नारु. कानी रुक्मि आलोचन वेरेरकङ्गा उन्दि. वाडु दुष्टुलतो स्नेहं चेसि श्रीकृष्णुडिपै विरोधान्नि पॆञ्चुकॊन्नाडु. अन्दुके तन चॆल्लिनि चेदि देशाधिपति अयिन शिशुपालुडिकि इच्चि पॆळ्ळिचेयालनुकुन्नाडु. अग्निद्योतनुडि रायबारं रुक्मिणिकि तन अन्न रुक्मि दुरालोचन अर्थमयिन्दि. दुर्मार्गुडैन तन अन्न माटनु तन तण्ड्रि ऎदिरिञ्चि निलवलेडु. तानु एदो ऒकटि चेयकपोते वाडु अन्नन्त पनी चेस्ताडु. तननु आ शिशुपालुडिकि कट्टबॆडताडु. अन्दुके तने कॊन्त चॊरव तीसुकुन्दि. तनकु अत्यन्त इष्टुडू आन्तरङ्गिकुडू अयिन ‘अग्निद्योतनुडु’ अने ब्राह्मणुण्णि पिलिचिन्दि. श्रीकृष्णुडि वद्दकु अतण्णि पम्पालन्नदि आमॆ आलोचन. 203 दशम स्कन्धं ‘ओ ब्राह्मणोत्तमा! नुव्वु तक्षणं श्रीकृष्णुडि वद्दकु वॆळ्ळु. नाकु इष्टं लेनि पॆळ्ळि चेसि ना अन्न रुक्मि ना गॊन्तु कोयबोतुन्नाडनि चॆप्पु. नेनु आ माधवुण्णि तप्प अन्युल्नि विवाहमाडननि तेल्चि चॆप्पु’ अण्टू मरिकॊन्नि रहस्यालु चॆप्पिन्दि. अन्नी विन्न अग्निद्योतनुडु मॆरुपु वेगन्तो वॆळ्ळि श्रीकृष्णुडि मुन्दु वालाडु. बङ्गारु गद्दॆपै सिङ्गारालतो अन्दङ्गा उन्न श्रीकृष्णुण्णि चूडगाने अग्निद्योतनुडु ‘पॆळ्ळिकॊडुकुवु का’ अनि पुरुषोत्तमुण्णि आशीर्वदिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडि मुखंलो मुसिमुसि नव्वुलु. आ ब्राह्मणुण्णि सादरङ्गा आह्वनिञ्चि अर्चिञ्चाडु. अग्निद्योतनुडु रुक्मिणीदेवि सन्देशान्नि आमॆ माटल्लोने इला विन्नविञ्चाडु- ‘ओ मङ्गळमूर्ती! पुरुष सिंहमा! सिंहनिकि चॆन्दिन सॊत्तुनु नक्क अपहरिञ्चालनि चूसिनट्लुगा मदोन्मत्तुडैन शिशुपालुडु- निन्ने आराधिस्तुन्न नन्नु सॊन्तं चेसुकोवालनुकॊण्टुन्नाडु. आ नीचशिशुपालुडिकि नी अद्भुतमैन प्रतापं तॆलियदु काबोलु. मरोमाट! नेनु पूर्वं निन्ने पतिगा पॊन्दालनि एमैना नोमुलु नोचि उण्टे, देवब्राह्मणुलकु सेवलु चेसि उण्टे, दानधर्मालु चेसि उण्टे नुव्वे ना प्राणनाथुडिवि अवुतावु. शिशुपालुडू मॊदलैनवाळ्ळन्दरू युद्धंलो नीमुन्दु निलवलेक तोकमुडुस्तारु. काबट्टि - उ. अङ्किलि सॆप्पलेदु, चतुरङ्ग बलम्बुलतोड नॆल्लि यो पङ्कजनाभ! नीवु शिशुपालजरासुतुलन् जयिञ्चि ना वङ्ककु वच्चि राक्षस विवाहमुनन् भवदीय शौर्यमे युङ्कुव सेसि कृष्ण! पुरुषोत्तम! चेकॊनि पॊम्मु वच्चॆदन् (10-1-1708) श्रीकृष्णा! पुरुषोत्तमा! नीलाण्टि वीरुडिकि इक्कड ए आटङ्कमू चॆप्पडानि कैना लेदु. रेपे तरलिरा! चतुरङ्ग बलन्तो रा! ओ पङ्कज नाभा! अला वच्चि ई शिशुपालुडु, जरासन्धुडु मॊदलैनवाळ्ळनु गॆलिचि, ना दग्गरकु वच्चि नी शौर्यान्ने कन्याशुल्कङ्गा पॆट्टि राक्षस विवाह पद्धतिलो नन्नु चेपट्टु. 204 पोतन भागवतमु नेनु रावडानिकि सिद्धङ्गा उन्नानु. ई पनि सुलभमय्ये मरो उपायं चॆबुतानु. नेने मङ्गळगौरिनि अर्चिञ्चडानिकि ऊरि वॆलुपल उन्न आलयानिकि वस्तानु. अदे मञ्चि समयं. वच्चि नन्नु निराटङ्कङ्गा तीसुकु वॆळ्ळु. नन्नु अनुग्रहिञ्चु. अनुग्रहिञ्चलेदो नी अनुग्रहनिकि अर्हत साधिञ्चटं कोसं वन्द जन्मलकैना ब्रह्मचर्यव्रतान्नि आचरिस्तानु. नी कोसमे ध्यानं चेस्तू ना प्राणालु नीके अर्पिस्तानु. इदे ना तुदि निर्णयं. प्राणनाथा! नी तीयटि माटलु विननि चॆवुलू, नीकु समर्पिञ्चनि तनुमा, निन्नु चूडनि कळ्ळू, नी अधरामृतान्नि आस्वादिञ्चनि नालुक, नी वनमालिका गन्धान्नि पॊन्दलेनि नासिक, नीकु दास्यं चेयनि जन्म ऎन्दुकु? ऎन्नि जन्मलकैना नाकु नुव्वे कावालि.’ अग्निद्योतनुडु रुक्मिणीदेवि सन्देशान्नि यथातथङ्गा विनिपिञ्चाडु. आमॆ रूप गुण लावण्यालू वर्णिञ्चि ‘प्रभू! इप्पुडु कर्तव्यं देवरवारे आलोचिञ्चालि. चिवरिगा नादो माट. श्रीकृष्णा! आ रुक्मिणिकि नुम्वा नीकु आ रुक्मिणी तगिनवारु. ईडू जोडु. मा गुरुवुल मीद ऒट्टु. मी इद्दरिकी विवाहं जरुगुतुन्दि. इङ्क आलस्यं ऎन्दुकु? नुव्वु नी वाळ्ळतो कलसि बयलुदेरु. ई पद्ममुखिनि वॆण्ट तॆच्चुको! शत्रुवुल्नि नुग्गुनुग्गु चेसि लोकानिकि मेलु चेकूर्चु’ अन्नाडु. श्रीकृष्णुडि राक श्रीकृष्णुडु अग्निद्योतनुडि चेतिनि आदरङ्गा पट्टुकॊनि ‘ब्राह्मणोत्तमा! कं. वच्चॆद विदर्भभूमिकि" जॊच्चॆद भीष्मकुनि पुरमु, सुरुचिरलीलन् दॆच्चॆद बालन् व्रेल्मिडि व्रच्चॆद नड्डम्बु रिपुलु वच्चिन" बोरन््. (10-1717) वस्तानु आ विदर्भ देशानिकि. अलवोकगा कुण्डिनपुरंलोनिकी चॊच्चुकॊनि वस्तानु. रुक्मिणिनि तॆच्चुकॊण्टानु. अड्डं वच्चिन शत्रुवुल्नि रणरङ्गंलो हतमारुस्तानु अनि माट इच्चाडु. 205 परीक्षिन्महराजा! तरुवात श्रीकृष्णुडु अग्निद्योतनुडि द्वाराने विवाह नक्षत्रं तॆलुसुकॊनि बयलुदेराडु. दारुकुडु शैब्यं, सुग्रीवं, मेघपुष्पं, वलाहकं अने गुर्रालनु पून्चिन रथान्नि सिद्धं चेशाडु. आ रथम्पै अग्नि द्योतनुडितो कलिसि विदर्भकु वस्तुन्नाडु श्रीकृष्णुडु. अक्कड रुक्मि दुरालोचनतो रुक्मिणिकि शिशुपालुडितो पॆळ्ळि एर्पाट्लु चेस्तुन्नाडु. तण्ड्रि भीष्मकुडिकि ऒप्पुकोक तप्पलेदु. नगरानिकि पॆळ्ळि कळ उट्टिपडेला अलङ्कारालु चेस्तुन्नारु. शास्त्रप्रकारं पूजलु, दानधर्मालु सागुतुन्नायि. शिशुपालुडु अट्टहसङ्गा बन्धुमित्रुलतो राजपरिवारन्तो कलिसि कुण्डिन नगरानिकि चेरुकुन्नाडु. ऎक्कडॆक्कडि नुञ्चो राजुलू विच्चेशारु. श्रीकृष्णुडु विदर्भदेशानिकि वॆळ्ळाडन्न वार्त बलरामुडिकि तॆलिसिन्दि. तानू वॆनके सैन्यन्तो बयलुदेराडु. रुक्मिणि आन्दोळन ऒक प्रक्क पॆळ्ळि एर्पाट्लु चकचका जरुगुतुण्टे मरोप्रक्क रुक्मिणीदेविकि लोपल आन्दोळन. एं जरुगुतुन्दो! श्रीकृष्णुडु वस्ताडो राडो! राकपोते आ माट तलचुकोवडानिकि कूडा आमॆकु धैर्यं चालडंलेदु. रेपे मुहूर्तं. इङ्का रालेदेमिटी गोविन्दुडु! असलु आ वार्त अतडिकि अन्दिन्दो लेदो! ई अग्निद्योतनु डें चेस्तुन्नाडु! एमैपोयाडु! इन्त आलस्यमा! ना प्रयत्नं फलिस्तुन्दो लेदो! दैवनिर्णयं ऎला उन्दो! असली ब्राह्मणुडु वॆळ्ळाडा! दारिलो अलसिपोयि ऎक्कडैना कुनुकु तीस्तुन्नाडा.. ना सन्देशं विनि श्रीकृष्णुडु तप्पुगा भाविञ्चाडा! ई पाटिके वच्चि उण्टाडा! परमशिवुडु ई पनिकि अनुकूलिस्ताडा? पार्वतीदेवि नन्नु कापाडुतुन्दो लेदो! एमो! ना अदृष्टं ऎला उन्दो अनि आन्दोळनकु गुरय्यिन्दि. इन्तटि दुर्भर स्थितिलो उन्न आमॆकु कॊन्नि शुभ शकुनालु तोचायि. ऎडम कन्नु, ऎडम भुजं अदिरायि. दशम स्कन्धं 206 पोतन भागवतमु ईमॆ पुण्यमे वच्चिन्दा अन्नट्लु अग्निद्योतनुडु वच्चाडु. अतण्णि चूसिन रुक्मिणि चॆङ्गुन दूकि ऎदुरु वॆळ्ळिन्दि. आलस्यं चेयकुण्डा आ ब्राह्मणुडु ‘मॆच्चाडम्मा! निन्नु. तने स्वयङ्गा वच्चाडम्मा!’ अन्न कम्मनि वार्तनु आमॆ चॆविलो वेशाडु. रुक्मिणि आनन्दानिकि अवधुल्लेवु. ‘ब्राह्मणोत्तमा! बतिकिञ्चावय्या! ना प्राणनाथुण्णि तॆच्चि ना प्राणालु निलबॆट्टावु. एमिच्चि नी ऋणं तीर्चुकोनु? नमस्करिञ्चटं ऒक्कटि तप्प’ अनि अञ्जलि घटिञ्चिन्दि. बलरामकृष्णुलु तन कुमार्तॆ स्वयंवरानिकि वच्चारनि विन्न भीष्मक महराजु वाळ्ळनु स्वागतिञ्चि सत्करिञ्चाडु. श्रीकृष्णुण्णि चूसिन वाळ्ळन्ता मुक्तकण्ठन्तो- वीळ्ळिद्दरू ऒकरिकि ऒकरु तगिनवारु. चक्कनि ईडू जोडु. वीळ्ळिद्दरिकी रासि पॆट्टिन ब्रह्म ऎन्त नेर्पुगाडो कदा! आह! ई चक्रि शत्रुवुल्नि चील्चि चॆण्डाडि मा रुक्मिणम्मनु चेपडताडु. इदि मा पुण्यफलं अनि अनुकॊण्टुन्नारु. रुक्मिणि अम्मवारि आलयानिकि बयलुदेरिन्दि. चुट्टू परिवारं. सैन्यं कापलागा वच्चिन्दि. रुक्मिणि अम्मवारिनि सेविञ्चि- उ. नम्मिति ना मनम्बुन सनातनुलैन युमामहेशुलन् मिम्मु" बुराणदम्पतुल मेलु भजिन्तु गदम्म! मेटिपॆ द्दम्म दयाम्बुराशिविगदम्म! हरिम्बतिसेयुमम्म! निन् नम्मिनवारि कॆन्न"डुनु नाशमुलेदु गदम्म! यिश्वरी (10-1-1744) अम्मा! ईश्वरी! परमेश्वरा! सनातनुलैन मिम्मल्ने नम्मुकुन्नानु. मीरु पुराणदम्पतुलु अम्मा! पार्वती! नुव्वु चाला गॊप्पदानिवि. दया समुद्रवु. हरिनि नाकु भर्तनु चॆय्यवम्मा! निन्नु नम्मिनवारिकि ऎप्पटिकी नाशनंलेदु कदू! अनि प्रार्थिञ्चि - ब्राह्मण मुत्तैदुवुलकु ताम्बूलालु इच्चिन्दि. मुकुन्दुडु ऎप्पुडु वस्ताडा! अनि अडुगडुगुकू निरीक्षिस्तू कालिनडकन तिरिगि वस्तोन्दि. 207 दशम स्कन्धं चन्द्रमण्डलंलाण्टि मुखमू, सिंहंलाण्टि नडुमू, पद्मनेत्रालू, अन्दमैन वक्षःस्थलं, मेघंला प्रकाशिञ्चे नल्लनि शरीरं, ऐरावतं तॊण्डंलाण्टि बाहुवुलु, पीताम्बरं, चक्रायुधं, विविध आभरणालु, शङ्खंलाण्टि कण्ठमू कल श्रीकृष्णुण्णि चूसिन्दि. श्रीकृष्णुडि विजयं रुक्मिणि मनसु पुलकिञ्चिन्दि. ऎप्पुडॆप्पुडु श्रीकृष्णुडि रथमॆक्कुताना अनि तहतहलाडिन्दि. आमॆ निरीक्षण फलिञ्चिन्दि. नक्कल मध्यलो उन्न आहरान्नि सिंहं ऎगरेसुकुपोयिनट्लु अन्दरू चूस्तुण्डगा श्रीकृष्णुडु रुक्मिणीदेविनि तन रथम्पै ऎक्किञ्चुकॊन्नाडु. भूम्याकाशालु दद्दरिल्लेला पाञ्चजन्यं पूरिञ्चाडु. शत्रुवुलन्दरू अड्डगिञ्चारु. अदि चूसि रुक्मिणीदेवि बॆदिरि पोयिन्दि. आमॆकु धैर्यं चॆप्पि रथान्नि वेगङ्गा नडिपिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. यादव सैन्यं शत्रुसैन्यन्तो तलबडिन्दि. घोर भीकर युद्धं. यादवुल धाटिकि शत्रुवुलु चॆल्लाचॆदुरैपोयारु. जरासन्धादुलू पलायनं चित्तगिञ्चारु. अदि चूसि शिशुपालुडु बिक्कमॊहं वेशाडु. तक्किन राजुलु अतण्णि ओदार्चारु. ‘शिशुपाला! ऎलागो बतिकि बयटपड्डावु. बतिकुण्टे बलुसाकु तिनि बतकवच्चु. प्राणं उण्टे भार्य दॊरक्कपोदु. पॆळ्ळां माट देवुडॆरुगु. मुन्दु नुव्वु बतिकावु. अदे पदिवेलु. बाधपडवद्दु. अन्नी अनुकुन्नट्ले जरगवु. मनमन्ता ईश्वरुडि चेतिलो कीलुबॊम्मलं. अन्ता दैवसङ्कल्पं. सुखदुःखालु शाश्वतं अनुकोकु.’ जरासन्धुडू ओदार्चाडु. ‘शिशुपाला! नेनॆन्निसार्लु (18 सार्लु) श्रीकृष्णुडि पैकि युद्धानिकि वॆळ्ळानु? कानी गॆलिचिन्दि मात्रं ऒक्कसारे! मन चेतुल्लो एमी लेदु. जयापजयालु दैवाधीनालु. ईरोजु वाळ्ळदि. मनकी ओ रोजु वस्तुन्दि. अप्पटिदाका ओपिक पट्टालि’ अन्नाडु. वीळ्लन्दरू सरे! श्रीकृष्णुडु चेसिन पनिनि रुक्मि जीर्णिञ्चुकोलेकपोयाडु. वॆण्टपडि श्रीकृष्णुण्णि अड्डगिञ्चाडु. कृष्णुडु रुक्मिनि युद्धंलो अवलीलगा ओडिञ्चाडु. चम्पेद्दामनि कत्ति पैकि ऎत्ताडु. रुक्मिणि श्रीकृष्णुडि पादालपै पडिन्दि. तन अन्नकु 208 पोतन भागवतमु प्राणभिक्ष पॆट्टमनि अभ्यर्थिञ्चिन्दि. श्रीकृष्णुडु कनिकरिञ्चाडु. कानी तगिन शास्ति चॆय्यालनुकुन्नाडु. रुक्मिनि रथचक्रानिकि कट्टेसि, जुट्टू, मीसालु, गॆड्डालु गॊरिकि विरूपिनि चेशाडु. इन्तलो बलभद्रुडु यादव सैन्यन्तो अक्कडिकि वच्चि रुक्मि सैन्यान्नि तरिमिकॊट्टाडु. श्रीकृष्णुण्णि ओडिञ्चकपोते ई नगरानिकि राननि बीरालु पलिकाडु रुक्मि. अन्दुके आ माट निलबॆट्टुकोवडं कोसं नगरानिकि वॆळ्ललेदु. तरुवात भोजकटकं अने पेरुतो ऒक नगरान्नि निर्मिञ्चुकॊनि अक्कडे उण्डिपोयाडु. बलरामकृष्णुलु रुक्मिणितो सह द्वारका नगरानिकि चेरुकुन्नारु. महर्षुलारा! परम भागवतोत्तमुडैन परीक्षिन्महराजु कोरिकपै शुक महर्षि भागवत कथलनु वीनुलविन्दुगा इला विनिपिस्तुन्नाडु- प्रद्युम्न कुमार चरित्र परीक्षिन्महराजा! परमेश्वरुडि कण्टिमण्टलकु दग्धं अयिन मन्मथुडे प्रद्युम्नुडु अने पेरुतो रुक्मिणीश्रीकृष्णुलकु विष्णुमूर्ति अपरावतारमेमो अनिपिञ्चे विधङ्गा उद्भविञ्चाडु. शम्बरासुरुडु अने राक्षसुडु ऒकडुन्नाडु. वीडु ई प्रद्युम्नुडु तनकु शत्रुवनि तॆलिसि आ शिशुवुनु अपहरिञ्चि समुद्रंलो विसिरेशाडु. आ शिशुवुनु ऒक पॆद्द चेप मिङ्गिन्दि. जालरिवाळ्ळु वलवेयगा ई चेप वललो चिक्किन्दि. अन्त पॆद्द चेपनु तीसुकुवॆळ्ळि जालरुलु शम्बरासुरुडिके कानुकगा समर्पिञ्चारु. दैवलीललु इलागे उण्टायि. वण्टवाळ्ळु आ चेपनु कोसि दानि पॊट्टलोञ्चि ई बालुण्णि बयटकु तीशारु. वाळ्ललो मायावति अने ऒक चॆलिकत्तॆ उन्दि. आमॆ ऎवरो कादु. रतिदेवि. साक्षात्तू मन्मथुडि भार्य. मन्मथुडु मळ्ळी इला पुडताडनि नारदुडु आमॆकु मुन्दे चॆप्पाडु. अन्दुके इक्कड निरीक्षिस्तोन्दि. वण्टवाळ्ळु तॆच्चि, आ शिशुवुनु मायावतिकि इच्चारु. आमॆ प्रेमगा पॆञ्चि पॆद्द चेसिन्दि. 209 दशम स्कन्धं प्रद्युम्नुडु यौवनंलोनिकि अडुगुपॆट्टाडु. अतण्णि चूसि स्र्तीलु चूपुलु तिप्पुकोलेकपोयेवाळ्ळु. मायावतिदी अदे परिस्थिति. आमॆ वालकं चूसि ऒक रोजु प्रद्युम्नुडु ‘तल्लिवैन नीकु एमिटी विन्त प्रवर्तन’ अनि निलदीशाडु. अप्पुडामॆ असलु विषयं चॆप्पिन्दि. अन्तेकादु, ‘शम्बरासुरुण्णि नुव्वे संहरिञ्चालि. वाडु मायल मराठी. अन्दुक्कावलसिन मायल्नि नेनु नीकु नेर्पुतानु’ अनि अन्नी नेर्पिन्दि. प्रद्युम्नुडु शम्बरासुरुण्णि युद्धानिकि पिलिचाडु. अप्पुडा राक्षसुडु ऎन्नो मायलु पन्नाडु. यक्ष, गान्धर्व, पैशाच, सर्प, राक्षस मायलन्निण्टिनी छेदिञ्चि शम्बरासुरुडि तलनु प्रद्युम्नुडु तॆगनरिकाडु. अप्पुडु मायावति आकाशमार्गंलो प्रद्युम्नुण्णि द्वारककु तीसुकु वॆळ्ळिन्दि. प्रद्युम्नुडु अन्तःपुरंलोनिकि प्रवेशिञ्चगाने अच्चं श्रीकृष्णुडिला उन्न अतण्णि चूसि अन्ता आश्चर्यपोयारु. रुक्मिणि कूडा तन कुमारुडे गनक जीविञ्चि उण्टे अच्चं इलागे उण्डेवाडनि भाविञ्चिन्दि. इन्तलो देवकी वसुदेवुलू श्रीकृष्णुडू अक्कडिकि वच्चारु. अदे समयानिकि नारद महर्षि वच्चि जरिगिन वृत्तान्तमन्ता चॆप्पडन्तो प्रद्युम्नुडु रुक्मिणी श्रीकृष्णुल कॊडुकेनन्न विषयं अन्दरिकी तॆलिसिन्दि. आनन्दं वॆल्लिविरिसिन्दि. शमन्तकमणि परीक्षिन्महराजा! नीकु मरो वृत्तान्तं चॆबुतानु विनु. सत्राजित्तु अने ऒक राजु उण्डेवाडु. इतडु ‘निम्नुडु’ अने यादव चक्रवर्तिकि कुमारुडु. इतडु सूर्यभक्तुडु. सूर्युडु सत्राजित्तुकु ‘शमन्तकं’ अने ऒक मणिनि इच्चाडु. आ मणि महिमान्वितमैनदि. रोजू ऎनिमिदि बारुवुल बङ्गारान्नि प्रसादिस्तुन्दि. आ मणिनि भद्रङ्गा पूजामन्दिरंलो उञ्चि पूजिस्तुन्नाडु सत्राजित्तु. अन्त गॊप्प मणि उग्रसेन महराजुवद्द उण्टे मञ्चिदनी, यादव साम्राज्यं मॊत्तं सुखशान्तुलतो वर्धिल्लुतुन्दनी दानिनि राजुगारिकि इव्वमनी श्रीकृष्णुडु अडिगाडु. सत्राजित्तु इव्वनन्नाडु. 210 पोतन भागवतमु रोजुलु गडुस्तुन्नायि. ऒकरोजु सत्राजित्तु तम्मुडु प्रसेनजित्तु आ मणिनि कण्ठंलो अलङ्करिञ्चुकॊनि अडविकि वेटकु वॆळ्ळाडु. अक्कड ऒक सिंहं अतण्णि चम्पि आ मणिनि तीसुकुपोयिन्दि. आ सिंहन्नि भल्लूकराजैन जाम्बवन्तुडु चूशाडु. दान्नि चम्पि आ मणिनि तीसुकॊनि वॆळ्ळि तन कुमारुडिकि आटवस्तुवुगा इच्चाडु. अडविकि वॆळ्ळिन प्रसेनजित्तु ऎन्तकी तिरिगि रालेदु. श्रीकृष्णुडे आ मणिकोसं तन तम्मुण्णि चम्पि उण्टाडनि प्रचारं चेशाडु सत्राजित्तु. तनमीद पडिन ई अपनिन्दनु तॊलगिञ्चुकोवडं कोसं श्रीकृष्णुडु कॊन्दरु पौरुल्नि साक्षुलुगा तीसुकॊनि अडविकि वॆळ्ळाडु. कॊन्त दूरं वॆळ्ळाक चच्चि पडि उन्न प्रसेनजित्तु कनिपिञ्चाडु. मणि अतडि दग्गर लेदु. अक्कड सिंहं कालि मुद्रलुन्नायि. वाटिनि अनुसरिञ्चि मुन्दुकु वॆळ्ळारु. अक्कड ऒकचोट सिंहं चच्चिपडि उन्दि. अक्कड नुञ्चि ऎलुगुबण्टि कालि मुद्रलु कनिपिञ्चायि. अवि पट्टुकॊनि वॆळ्ते कॊन्त दूरंलो ऒक गुह कनिपिञ्चिन्दि. लोपलिकि प्रवेशिञ्चिन श्रीकृष्णुडु अक्कड शमन्तकमणितो आडुकुण्टुन्न ऒक पिल्लवाण्णि चूशाडु. आ पिल्लवाडु ऎवरो कादु, भल्लूकराजैन जाम्बवन्तुडि कुमारुडु. हठात्तुगा जाम्बवन्तुडु वच्चि श्रीकृष्णुडि मीद पड्डाडु. युद्धं होराहोरीगा सागिन्दि. इरवै ऎनिमिदि रोजुलु अला युद्धं चेस्तूने उन्नारु. ऎवरू तग्गटं लेदु. चिवरिकि जाम्बवन्तुडु अलसिपोयाडु. श्रीकृष्णुडु पैचेयि साधिञ्चाडु. अप्पुडर्थमयिन्दि जाम्बवन्तुडिकि अतडु साक्षात्तू श्रीमहविष्णुवेननि. भक्तितो नमस्करिञ्चि स्तुतिञ्चाडु. युद्धं चेसि ऒळ्ळु हूनं चेसुकॊन्न जाम्बवन्तुण्णि श्रीकृष्णुडु आप्यायङ्गा निमिराडु. अतडिकि पोयिन शक्ति तिरिगि वच्चिन्दि. श्रीकृष्णुडू तनपै वच्चिन अपवादु गुरिञ्चि चॆप्पाडु. वॆण्टने जाम्बवन्तुडु आनन्दङ्गा आ मणिनी, तन पुत्रिकामणि जाम्बवतिनी श्रीकृष्णुडिकि समर्पिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु गुहलोनिकि वॆळ्ळिनप्पुडु पौरुलन्ता गुह बैटे उण्डि अतडु क्षेमङ्गा तिरिगि रावालनि दुर्गादेविनि पूजिञ्चारु. दुर्गादेवि अनुग्रहिञ्चिन्दि. 211 श्रीकृष्णुडु क्षेमङ्गा मणितोनू, कन्यामणितोनू वस्ताडनि चॆप्पिन्दि. अलागे वच्चाडु श्रीकृष्णुडु. पौरुलु आनन्दिञ्चारु. द्वारककु तिरिगि वच्चाडु श्रीकृष्णुडु. जाम्बवतीदेविनि परिग्रहिञ्चि, सत्राजित्तुनु सभकु रप्पिञ्चि आ मणिनि अप्पगिञ्चाडु. सत्राजित्तु अनवसरङ्गा श्रीकृष्णुडिपै अभाण्डालु वेसिनन्दुकु पश्चात्तापपड्डाडु. मणितोपाटु तन पुत्रिकामणिनि कूडा अतडिके इच्चि कॊन्तैना पाप परिहरं चेसुकोवालनुकॊन्नाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु- ई मणिनि सूर्युडु नी कोसं इच्चाडु. माकु मणुलकु ए कॊदव लेदु. नाकु नी कन्यामणि चालु’ अण्टू सत्राजित्तुके मणिनि तिरिगि इच्चेशाडु. इदिला उण्डगा पाण्डवुलु कुन्तीदेवितोसह लक्क इण्ट्लो कालिपोयि मरणिञ्चारन्न वर्तमानं अन्दिन्दि. वॆण्टने श्रीकृष्णुडु बलरामुडितो पाटु हस्तिनकु वॆळ्ळि कृप, विदुर, गान्धारी, भीष्म, द्रोणादुल्नि परामर्शिञ्चाडु. ईलोगा इक्कडो दारुणं जरिगिपोयिन्दि. शतधन्वुडनेवाडु सत्राजित्तुनु चम्पि शमन्तकमणिनि अपहरिञ्चाडु. दीनिको कारणं उन्दि. सत्राजित्तु तन कुमार्तॆ सत्यभामनु श्रीकृष्णुडिकि इच्चि पॆळ्ळिचेयटं कॊन्तमन्दिकि कण्टगिम्पु अयिन्दि. वारिलो अक्रूरुडु, कृतवर्म, शतधन्वुडू उन्नारु. अक्रूरुडू कृतवर्मा शतधन्वुडिनि रॆच्चगॊट्टारु. सत्यभामनु मनकु इस्ताननि सत्राजित्तु मोसं चेशाडनि नूरिपोशारु. अन्दुके कसायिवाडैन शतधन्वुडु इन्तटि अघायित्यानिकि तलपड्डाडु. द्वारककु तिरिगि वच्चिन श्रीकृष्णुडु शतधन्वुण्णि संहरिञ्चालनि निश्चयिञ्चुकॊन्नाडु. शतधन्वुडिकि प्राणभयं पट्टुकॊन्दि. अक्रूरुडिनी ‘कृतवर्मनू एदैना उपायं चॆप्पमनि अडिगाडु. कानी वाळ्ळिद्दरू बलराम कृष्णुलु महनुभावुलनी, वाळ्ळनु ऎदुरिञ्चे साहनं चेयलेमनी, इप्पटिकि नीवल्ल माकु वच्चिन चॆड्डपेरु चालनी तिरस्करिञ्चारु. शतधन्वुडु गुर्रमॆक्कि पारिपोतुण्टे बलरामकृष्णुलु वॆम्बडिञ्चारु. मिथिला नगर प्रान्तंलो श्रीकृष्णुडु अतण्णि चक्रायुधन्तो संहरिञ्चाडु. दशम स्कन्धं 212 पोतन भागवतमु तीरा चूस्ते अतडि दग्गर मणि लेदु. अप्पुडु बलरामुडु ‘श्रीकृष्णा! नुव्वु द्वारककु वॆळ्ळि आ मणिकोसं अन्वेषिञ्चु. नेनु मिथिला नगरंलोनि जनक महराजुनु चूसि वस्तानु अनि वॆळ्ळाडु. आ समयंलोने दुर्योधनुडु मिथिलकु वच्चि, जनक महराजु चेत सत्करिम्पबडि, अक्कडे उन्न बलरामुडि वद्द गदायुद्ध विद्यनु नेर्चुकॊन्नाडु. श्रीकृष्णुडु द्वारका नगरानिकि वॆळ्ळि जरिगिनदन्ता चॆप्पि सत्राजित्तुकु अन्त्यक्रियलु निर्वहिञ्चाडु. अक्रूरुडू, कृतवर्म श्रीकृष्णुडिकि भयपडि पारिपोयारु. अक्रूरुडु द्वारकलो लेकपोवडन्तो अनेक उपद्रवालु कलिगायि. वर्षाल्लेवु. प्रजलु रोगाल बारिनपड्डारु. पूर्वं काशिलो चालाकालं वर्षालु लेवु. अक्रूरुडि तण्ड्रि श्वफल्कुडु काशिलोनिकि रागाने वर्षालु कुरिशायि. अन्दुके काशिराजु तन कुमार्तॆ ‘गान्दिनि’नि श्वफल्कुडिकि इच्चि विवाहं चेसि शाश्वतङ्गा अतण्णि तन राज्यंलोने उण्डेला चेसुकॊन्नाडु. ई अक्रूरुडू तण्ड्रि अन्तटिवाडे. अन्दुके वॆण्टने अक्रूरुण्णि पिलिपिञ्चमन्नारु. श्रीकृष्णुडु मॊत्तानिकि अक्रूरुण्णि वॆतिकि पट्टुकॊनि द्वारककु रप्पिञ्चाडु. मणि कूडा अक्रूरुडि दग्गरे उन्दन्न विषयमू श्रीकृष्णुडिकि तॆलुसु. श्रीकृष्णुडु अतण्णि आदरिञ्चि प्रीतिपूर्वकङ्गा - अक्रूरा! आ मणि नी दग्गरे उन्दि. उण्डनी. कानी ऒक्कसारि दान्नि चूपिञ्चु. मा अन्न बलरामुडू, इङ्का अन्दरू नेने एदो चेशाननि अनुकॊण्टारु. इदि ई मणि विषयंलो नापै पड्ड रॆण्डो अपनिन्द. ऎन्दुकण्टे नुव्वु उन्नट्टुण्डि बङ्गारु वेदिकलपै ऎडतॆरिपि लेकुण्डा यज्ञालु चेस्तुन्नावनि तॆलिसिन्दि. अन्त बङ्गारं नीकु ऎक्कण्णुञ्चि वस्तुन्दि? शतधन्वुडु आ मणिनि नी दग्गर दाचिपॆट्टि उण्टाडु. अवुना?’ अन्नाडु. अक्रूरुडु वॆण्टने तन दुस्तुल्लो दाचिन मणिनि तीसि चूपिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु दान्नि अन्दरिकी चूपिञ्चि अन्दरि समक्षंलो अक्रूरुडिके इच्चिवेशाडु. 213 परीक्षिन्महराजा! ई शमन्तकमणि कथनु विन्ना, चदिविना, तलचिना सर्व पापालू तॊलगिपोतायि. इन्द्रप्रस्थ प्रयाणं राजा! ऒकसारि श्रीकृष्णुडु पाण्डवुल्नि चूसिवद्दामनि सात्यकि मॊदलैन यादवुलतो कलसि इन्द्रप्रस्थ नगरानिकि वॆळ्ळाडु. पाण्डवुलू, द्रौपदि श्रीकृष्णुण्णि भक्तितो सेविञ्चारु. कुन्तीदेवि कूडा आनन्दिञ्चिन्दि. कष्टसुखालु माट्लाडु कुन्नारु. कॊन्तकालं अक्कडे उन्नाडु श्रीकृष्णुडु. ऒकरोजु श्रीकृष्णार्जुनुलु अडविकि वॆळ्ळि जन्तुवुल्नि वेटाडारु. अलसि पोयारु. दाहं वेसिन्दि. यमुनानदिलो दाहं तीर्चुकॊनि अक्कडे विश्रमिञ्चारु. अप्पुडु वाळ्ळकु ऒक सौन्दर्यराशि कनिपिञ्चिन्दि. आमॆ सूर्यपुत्रिक. काळिन्दि आमॆ पेरु. श्रीकृष्णुडु अर्जुनुडि द्वारा आमॆ विवरालु सेकरिञ्चाडु. आमॆ श्रीकृष्णुडिने भर्तगा पॊन्दालनि तपस्सु चेस्तोन्दट. अन्दुके आमॆनु तॆच्चि धर्मराजु वद्द उञ्चाडु. तरुवात पाण्डवुलु कोरडन्तो विश्वकर्म वच्चि इन्द्रप्रस्थान्नि अद्भुतङ्गा अलङ्करिम्पजेशाडु. तरुवात श्रीकृष्णार्जुनुलु खाण्डववनान्नि दहिञ्चारु. अन्दुकु सन्तोषिञ्चिन अग्निदेवुडु अर्जुनुडिकि अक्षय तूणीरालु, कवचं, गाण्डीवं अने धनुस्सू, दिव्यरथमू, तॆल्ल गुर्रालु इच्चाडु. खाण्डववनंलो तानु दहिञ्चुकुपोकुण्डा कापाडिनन्दुकु मयुडु अर्जुनुडिकि ऒक अद्भुतमैन सभनु निर्मिञ्चि बहूकरिञ्चाडु. अष्टमहिषी कल्याणं तरुवात श्रीकृष्णुडु द्वारककु काळिन्दिनि तीसुकॊनिवच्चि पॆळ्ळाडाडु. अवन्ती पालकुलैन विन्दानुविन्दुलु तम चॆल्लॆलु मित्रविन्दकु स्वयंवरान्नि प्रकटिञ्चारु. वीळ्ल तल्लि राजाधिदेवि श्रीकृष्णुडि मेनत्त. कुन्तीदेविकि चॆल्लॆलु. श्रीकृष्णुडु आ स्वयंवरानिकि वॆळ्ळि तन पराक्रमन्तो आमॆनु चेपट्टाडु. राजा! कोसल देशपु राजु नग्नजित्तु. इतडि कुमार्तॆ नाग्नजिति. ई राजुदग्गर एडु पॊगरुबोतु आम्बोतुलु उन्नायि. वाटिनि कट्टडि चेसिनवाडिके दशम स्कन्धं 214 पोतन भागवतमु तन कुमार्तॆनु इच्चि विवाहं चेस्ताननि राजु प्रकटिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु वॆळ्ळि आ वृषभालकु मुक्कुत्राडु वेसि, अदुपुलोकि तॆच्चाडु. नाग्नजितिनि परिग्रहिञ्चाडु. केकय देशानिकि राजु श्रुतकीर्ति. इतडि कुमार्तॆ भद्र. श्रीकृष्णुडिकि मरो मेनत्त कूतुरु. आमॆनू पॆळ्ळाडाडु. मद्र राजकुमार्तॆ लक्षणनू परिग्रहिञ्चि अष्टमहिषी प्राणनाथुडै ऒप्पाराडु श्रीकृष्णस्वामि. अन्तेकादु, नरकासुरुडिनि संहरिञ्चि अतडि चॆरलो उन्न पदहरु वेलमन्दि कन्यकामणुल्नी चेपट्टाडु ई नन्दगोपालुडु’ अन्नाडु शुकमहर्षि. आ माटलु विन्न परीक्षित्तु ‘योगिपुङ्गवा! शुकदेवा! नाकु आ नरकासुर वध कथनु विनालनि उन्दि’ अन्नाडु. शुकमहर्षि प्रारम्भिञ्चाडु. नरकासुरुडु राजा! नरकासुरुडु अने घोरराक्षसुडु अदिति कुण्डलालनू वरुण देवुडि छत्रान्नी, देवतल मणिपर्वतान्नी अपहरिञ्चाडु. देवेन्द्रुडि अभ्यर्थनपै आ राक्षसुण्णि वधिञ्चालनि श्रीकृष्णुडु गरुडवाहनम्पै बयलुदेराडु. अप्पुडु सत्यभाम - ‘नाथा! दयचेसि नन्नु नी वॆण्ट तीसुकुवॆळ्ळमा!’ अनि प्राधेय पडिन्दि. सरे, मॊत्तानिकि श्रीकृष्णुडिकि तप्पिन्दि कादु. गरुड वाहनम्पै प्रक्कने कूर्चोबॆट्टुकॊनि बयलुदेराडु. नरकासुरुडि राजधानि प्राग्ज्योतिषपुरं. वॆळ्तू वॆळ्तूने तन गदतो पर्वत दुर्गाल्नि बद्दलुकॊट्टाडु. शस्त्रदुर्गाल्नि बाणालतो चील्चिवेशाडु. वायु, जल, दुर्गाल्नि चक्रायुधन्तो नाशनं चेसेशाडु. आ पुरानिकि कण्टिकि कनिपिञ्चनि पाशालु रक्षण कवचङ्गा उन्नायि. वाटिनी तन नन्दक खड्गन्तो तुञ्चि पारेशाडु. पाञ्चजन्यान्नि पूरिञ्चि दिक्कुल्नि होरॆत्तिञ्चाडु. आ शब्दानिकि निद्र चालिञ्चाडु मुरासुरुडु. वाडु भयङ्करङ्गा 215 गर्जिस्तू तन शूलान्नि गरुत्मन्तुडिपै विसिराडु. दान्नि श्रीकृष्णुडु मध्यलोने पट्टुकॊनि मूडु मुक्कलु चेसि विसिरिकॊट्टि, वाडियैन बाणालनु वाडिपै कुरिपिञ्चाडु. अन्ते! अयिदु तलल मुरासुरुडु कास्ता मरणिञ्चाडु. नरकासुरुडु कोपोद्रिक्तुडैपोयाडु. तन एडुगुरु कॊडुकुल्नी पम्पिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु वाळ्ळन्दरिनी अवलीलगा संहरिञ्चाडु. इक चिवरगा नरकुडे स्वयङ्गा रङ्गंलोकि दिगाडु. नरकासुरुडु युद्धरङ्गंलोनिकि रागाने सत्यभाम तानु युद्धं चेस्ताननि मुन्दुकु वच्चिन्दि. वीरनारि - सत्यभाम आमॆनु श्रीकृष्णुडु आश्चर्यङ्गा चूस्तू ‘लेमा! सत्यभामा! एमिटी तॊन्दर? ई मात्रं दनुजुल्नि में गॆलवलेमा? नुव्वॆन्दुकु मुन्दुकॊस्तुन्नावु? इला रा! ई प्रयत्नान्नि मानुको! कादनि नुव्वे युद्धं चेस्तावा ! चॆप्पु. रा! इदुगो मा विल्लु. विलासङ्गा अन्दुको! अण्टू विल्लन्दिञ्चाडु सत्य चेतिकि. आ विल्लु अन्दुकॊनि महतेजस्सुतो प्रतापन्तो नारि सारिञ्चिन्दि सत्यभाम. राक्षस स्र्तील मङ्गळसूत्रालु तॆगिपोयेला धनुष्टङ्कारं चेसिन्दि. अप्पुडु चूडालि सत्यभाम वीरशृङ्गारालु. म. परु"जूचुन् वरु" जूचु नॊम्प नलरिम्पन् रोषरागोदया विरतभ्रूकुटि मन्दहसमुलतो वीरम्बु शृङ्गारमुन् जरगन् गन्नुल"गॆम्पु सॊम्पु" बर"गं जण्डास्त्रसन्दोहमुन् सरसालोकसमूहमुन् नॆऱपुचुं जन्द्रास्य हेलागतिन् (10-2-178) चन्द्रमुखि आ सत्यभाम - नरकुण्णि नॊप्पिञ्चटानिकी तन भर्त श्रीकृष्णुण्णि आनन्दिम्प चेयटानिकी चूस्तोन्दि. दशम स्कन्धं 216 पोतन भागवतमु नरकुण्णि चूसेटप्पुडु कनुबॊम्मलु मडिचि रोषङ्गा चूस्तोन्दि. श्रीकृष्णुडि वैपु प्रेमतो चिरुनव्वुतो चूस्तोन्दि. कन्नुल्लो वीरं कनिपिञ्चेट्लुगा ऒकप्रक्क ऎर्रदनमू, मरोप्रक्क शृङ्गारमु कनिपिञ्चेट्लु चक्कदनमू कनिपिस्तुन्नायि. शत्रुवु मीद भीकरमैन अस्र्तालनू, श्रीहरि मीद सरसपु चूपुल्नि गुप्पिस्तोन्दि. ऒक कालु मुन्दुकु वेसि प्रत्यालीढ पादन्तो विजृम्भिञ्चिन्दि. नुदुट चॆमटलु. चॆल्लाचॆदुरैन मुङ्गुरुलु. चॆवुलदाका विण्टिनारिनि लागडन्तो आमॆ चेति गोळ्ळ कान्ति, चॆवि कम्मल कान्ति, बाणं तोक कान्ती कलसि विन्त शोभनु कलिगिस्तुन्नायि. लक्ष्यम्पै उञ्चिन चूपुलतो धनुवुनु गुण्ड्रङ्गा वञ्चुतू बाणवर्षं कुरिपिस्तोन्दि. आमॆ वेसिन पदुनैन बाणालकु राक्षससैन्यं कलत चॆन्दिन्दि. अप्पुडु मळ्ळी श्रीकृष्णुडु- ‘प्रिया! ई राक्षस सैन्यं पारिपोयिन्दिले. इक चाल्ले युद्धं. विजयं नीदे. अन्दुको. नी साहसानिकि मॆच्चानु. नुव्वु कोरिनन्नि आभरणालु इस्तानु तीसुको’ अण्टू मॆल्लगा आमॆ कोमलमैन चेति नुण्डि विल्लु अन्दुकुन्नाडु. नरकासुरुडु मत्तगजम्पै तानू ऒक मत्तगजंला वच्चि श्रीकृष्णुडितो तलपड्डाडु. मरोप्रक्क अतडि सैन्यमू मुट्टडिस्तोन्दि. श्रीकृष्णुडु वॆण्टने तन शर परम्परतो आ सैन्यान्नि ऊचकोत कोशाडु. सारॆकु मूडेसि बाणालतो आ सैन्यंलोनि गुर्राल्नी, एनुगुल्नि, राक्षस वीरुल्नी ककाविकलं चेशाडु. इक गरुत्मन्तुडि प्रतापं चूडालि. मुक्कुतो पॊडुस्तू, कालि गोळ्ळतो रक्कुतू मत्तगजाल्नि सैतं मट्टिकरपिस्तुन्नाडु. नरकुडि दग्गर ऒक अद्भुतमैन शक्ति अने आयुधं उन्दि. दान्नि गरुडुडि मीद प्रयोगिञ्चाडु. दानिकि गरुडुडु किञ्चित्तु कूडा चलिञ्चलेदु. एनुगुनु ओ पूलचॆण्डुतो कॊडिते ऎला उण्टुन्दो अला उन्दि गरुडुडिकि. ईसारि त्रिशूलान्नि अन्दुकॊन्नाडु नरकुडु. दानिकि प्रतिगा तन चक्रान्नि प्रयोगिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. सुदर्शन चक्रं पदुनैन अञ्चुलु भगभगमनि निप्पुलु कुरिपिस्तू आ शूलान्नि मुक्कलु चेसिन्दि. 217 अन्तेकादु, सुदर्शनानिकि तिरुगुलेदु कदा! अदि नरकासुरुडि शिरस्सु खण्डिञ्चिन्दि. धडेलुमनि नेलपै बन्तिला पडिन्दि वाडि तल. राजा! अदॆला उन्दो तॆलुसा! ‘अम्मा! आ श्रीहरिकि वराहवतारंलो नुव्वु इल्लालिवनि पदे पदे चॆप्तुण्टावुकदा! कनीसं नी मुखं चूसैना नी कॊडुकुनैन नन्नु विडिचिपॆट्टलेदु. तलनु निर्दाक्षिण्यङ्गा खण्डिञ्चाडु सुमा!’ अनि आक्षेपिस्तुन्नट्लुगा नेलपै पडि दॊर्लिन्दट! अप्पुडु भूदेवि अक्कडिकि वच्चि नरकुडु अपहरिञ्चिनवन्नी तॆच्चि श्रीकृष्णुडिकि समर्पिञ्चिन्दि. पारिजातापहरणं नरकुडि सौधंलो उन्नारु पदहरुवेलमन्दि सुन्दरीमणुलु. वाळ्ळकु विमुक्ति कलिगिञ्चिन माधवुडे मा ‘धवु’डनि निश्चयिञ्चुकुन्नारु वारु. अतडि कोसं तपिञ्चारु. श्रीकृष्णुडु वारिकि विलुवैन वस्र्तालू, आभरणालू इच्चि अन्दरिनी द्वारककु पम्पाडु. तरवात नेरुगा सत्यासमेतुडै स्वर्गानिकि वॆळ्ळाडु श्रीकृष्णुडु. भूदेवि इच्चिन देवतल वस्तुवुल्नि अदितिकि समर्पिञ्चाडु. दारिलो वस्तू वस्तू नन्दनवनंलोनिकि प्रवेशिञ्चि, अक्कड उन्न कल्पवृक्षान्नि पॆकलिञ्चि गरुत्मन्तुडि मीद पॆट्टाडु. देवतलु अड्डुकॊन्नारु. श्रीकृष्णुडु विनलेदु. इन्द्रुडे युद्धानिकि दिगाडु आ कल्पवृक्षं कोसं. अन्दरिनी ओडिञ्चि चिटिकॆलो भूलोकं चेरुकुन्नाडु. कल्पवृक्षान्नि सत्यभामादेवि पॆरटिचॆट्टुगा उद्यानवनंलो नाटिञ्चाडु. परीक्षिन्महराजा! नरकुडि बाधनु पोगॊट्टमनि काळ्ळा वेळ्ळा पड्ड इन्द्रुडे तन अवसरं तीरिपोयाक श्रीकृष्णुडिपै कत्ति दूशाडु. चूशावा! देवतल अहङ्कारं अला उण्टुन्दि मरि! सरे, श्रीकृष्णुडु तनने भर्तगा भाविस्तुन्न आ पदहरुवेल मन्दिनी परिणयमाडि अन्दरिकी वेर्वेरु भवनालु एर्पाटु चेशाडु. आश्चर्यं ऒके कालंलो अन्दरि दग्गरा उण्डेवाडय्या! श्रीकृष्णुडु. अतडि लीललु ऎवरिकि अर्थमवुतायि? अन्दरिनी ऒकेला आलिञ्चाडु. अन्दरिनी दशम स्कन्धं 218 पोतन भागवतमु ऒके समयंलो पालिञ्चाडु. दिव्यानन्दलोकाल्लो विहरिम्पजेशाडु. वाळ्ळू भक्तिप्रपत्तुलतो आयननु सेविञ्चारु. श्रीकृष्णुडिकि रुक्मिणीदेवि वल्ल प्रद्युम्नुडु, चारुधेष्णुडु, चारुदेवुडु, सुधेष्णुडु, सुचारुवु, चारुगुप्तुडु, भद्रचारुवु, चारुभद्रुडु, विचारुवु, चारुवु अनि पदिमन्दि पुत्रुलु. तक्किन पट्टमहिषुलकु पदहरुवेलमन्दिकी कूडा ऒक्कॊक्करिकि पदेसिमन्दि कुमारुलु कलिगारु. आ पुत्रुलकु पुत्रुलु कलिगारु. ई विधङ्गा श्रीकृष्णुडि वंशं तामरतम्परगा विलसिल्लिन्दि. यदु, वृष्णि, भोज, कुकुर, अन्धक मॊदलैन नूट ऒक्क पेर्लतो वर्धिल्लिन्दि. मूडु कोट्ल ऎनभै वेल ऒक वन्दमन्दि राजगुरुवुले उन्नारण्टे वाळ्ळ सङ्ख्य वैभवं वर्णिञ्चडं ऎवरि तरं? बलरामुडि विजृम्भण रुक्मि तन कूतुरु रुक्मवतिकि स्वयंवरं प्रकटिञ्चाडु. आ स्वयंवरानिकि प्रद्युम्नुडू वच्चाडु. तन पराक्रमन्तो शत्रुवुलु काळ्लकु बुद्धिचॆप्पुकॊनेला चेसि रुक्मवतिनि चेपट्टाडु. कॊन्तकालानिकि वीळ्ळकु ऒक पुत्रुडु जन्मिञ्चाडु. अतडे अनिरुद्धुडु. रुक्मि कॊडुक्कि रुक्मलोचन अने कुमार्तॆ जन्मिञ्चिन्दि. रुक्मिणि सन्तोषिस्तुन्दनि रुक्मलोचननु अनिरुद्धुडिकि इच्चि चेयालनि भाविञ्चाडु रुक्मि. ई विवाहनिकि बलरामकृष्णुलु, साम्बुडु, प्रद्युम्नुडु मॊदलैनवारन्दरू वॆळ्ळारु. विवाहं अत्यन्त वैभवङ्गा जरिगिन्दि. पॆळ्ळि अय्याक रुक्मि, बलरामुडु पाचिकलाटकु कूर्चुन्नारु. बलरामुडु आ आटलो अन्त चॆय्यि तिरिगिनवाडु काडु. अन्दुके अतण्णि ओडिञ्चि अवमानिञ्चालनि कॊन्दरु राजुल ऎत्तु. रुक्मिनि रॆच्चगॊट्टि अतडितो आडेला चेशारु. अन्दुलो मुख्यङ्गा कळिङ्गाधीशुडु रुक्मिनि मरी रॆच्चगॊट्टाडु. ‘नीकु इन्तकु मुन्दु जरिगिन अवमानानिकि प्रतीकारं तीर्चुकॊनेन्दुकु इदे गॊप्प अवकाशं’ अनि चॆविलो जोरीगला पोरुपॆट्टाडु. आट मॊदलैन्दि. आ वेडुकलो ऎवरॆवरो एमेमो माट्लाडुतुन्नारु. आ समयंलो माट्लाडे माटलु अलागे उण्टायिले अनि पॆद्दगा पट्टिञ्चुकोलेदु 219 बलरामुडु. आटमीद पन्दालु कडुतुन्नारु. वन्दलू वेलू दाटि लक्षल बङ्गारु नाणाल दाका पन्दालु ऒड्डुतुन्नारु. रुक्मि पन्देलन्नी गॆलुस्तुन्नाडु. ईसारि ऎलागैना गॆलवालनि पन्तं पट्टि बलरामुडु एकङ्गा पदिकोट्ल बङ्गारु नाणाल पन्दॆं कट्टाडु. आ पन्दॆं बलरामुडे गॆलिचाडु. अयिना तने गॆलिचिनट्लु वादिञ्चाडु रुक्मि. चुट्टू उन्न राजुलन्ता अतडिवैपे माट्लाडतारनि अतडि धीमा. ईलोगा अशरीरवाणि बलरामुडे विजेत अनि प्रकटिञ्चिन्दि. इक रुक्मि ऎदुरु दाडिकि दिगि बलरामुडिपै व्यक्ति दूषण चेयसागाडु. बलरामुडिकि सहनं नशिञ्चिन्दि. असले मुक्कोपि. इन्तवरकू ऎलागो ओपिक पट्टाडु गानी इङ्क अतडिवल्ल कालेदु. अन्दुबाटुलो उन्न ऒक परिघनु चेतिलोनिकि तीसुकॊनि ऒके ऒक्क दॆब्बतो रुक्मिनि पैलोकालकु पम्पिञ्चेशाडु. अदि चूसि तक्किन राजुलु परुगु लङ्घिञ्चुकॊन्नारु. दॊरिकिनवाळ्ळनु दॊरिकिनट्लु चितक्कॊट्टाडु बलरामुडु. इटु चूस्ते सॊन्त अन्न. अटु चूस्ते तन भार्यकु अन्न - ऎटु चॆप्ते ऎवरिकि कोपं वस्तुन्दोननि श्रीकृष्णुडु मौनान्नि आश्रयिञ्चाडु. तरुवात अन्ता सद्दुमणिगिन्दि. ऎक्कडिवाळ्ळु अक्कडिकि वॆळ्ळिपोयारु. बाणासुरुडि तपस्सु परीक्षिन्महराजा! बलिचक्रवर्ति नूर्गुरु कुमारुललो पॆद्दवाडु बाणुडु. अतडु गॊप्प शिवभक्तुडु. शिवुडु ताण्डवं चेस्तुण्टे ई बाणुडु अद्भुतङ्गा वाद्यालु वायिञ्चि शिवुण्णि मॆप्पिञ्चि साक्षात्तु शिवुण्णे तन नगरं शोणितपुरानिकि रक्षकुडिगा उण्डेला वरं पॊन्दाडु. अदनङ्गा वॆय्यि चेतुल्नी शिवुडु इतडिकि प्रसादिञ्चाडु. कॊन्तकालं तर्वात शिवुडि सन्दर्शनानिकि वॆळ्ळाडु बाणासुरुडु. शिवुडिकि नमस्करिञ्चाडु. कानी अतडि माटल्लो अन्तुलेनि अहम्भावं. शिवुडु अतडिकि वॆय्यि चेतुल्नि वरङ्गा इच्चाडु कदा! आ चेतुलतो युद्धं चेयडानिकि सरैन वीरुडे वाडिकि कनबडलेदट. अन्दुकनि शिवुण्णे तनतो युद्धं चेयमन्नाडु. अन्तटि तारास्थायिकि चेरुकुन्दि अतडि अहङ्कारं. दशम स्कन्धं 220 पोतन भागवतमु शिवुडिकि पट्टरानि कोपं वच्चिन्दि. ‘मूर्खुडा! तॊन्दरपडकु. नी रथानिकि उन्न केतनं अकारणङ्गा किन्द पडुतुन्दि. अप्पुडु नातो समानमै वाडितो नुव्वु युद्धं चेस्तावु. नीकु गर्वभङ्गं अवुतुन्दि’ अनि शपिञ्चाडु. युद्धोत्साहंलो उन्न बाणुडु अदि ऎप्पुडु जरुगुतुन्दा? अनि ऎदुरु चूडसागाडु. ई बाणुडिकि ऒक अन्दाल राशियैन कुमार्तॆ उन्दि. आमॆ पेरु उष. आमॆ कललोकि ऒक अन्दमैन युवकुडु वच्चाडु. अदि कल कादनि वास्तवमेनन्न भ्रमलो उन्दि उष. अन्त अनुभूतिनि पॊन्दिन्दन्नमाट! तीरा मेल्कॊनि चूस्ते आ युवकुडु लेडु. अतडि कोसं आक्रोशिञ्चिन्दि. बिग्गरगा पिलिचिन्दि. पक्कने उन्न चॆलिकत्तॆलु आमॆनु तॆल्लबोयि चूशारु. उष सिग्गुलमॊग्ग अयिन्दि. ईमॆ चॆलिकत्तॆललो चित्रलेख अने ऒक चॆलिकत्तॆ उन्दि. आमॆ उषकु इष्टसखि. आमॆ बाणुडि मन्त्रि कुम्भाण्डुडि कूतुरु. आमॆकु तन कल गुरिञ्चि चॆप्पिन्दि उष. ‘नुव्वु मॆच्चिनवाडु ई मुल्लोकाल्लो ऎक्कड उन्ना तीसुकॊच्चे बाध्यत नादि’ अनि चित्रलेख माट इच्चिन्दि. चकचका अन्दमैन युवकुल चित्राल्नि गीसि चूपिञ्चिन्दि. सिद्ध, साध्य, गन्धर्व, यक्ष, विद्याधरादि देवगणाल्लो अन्दमैन युवकुल चित्रालन्नी वेसि चूपिञ्चिन्दि. वाळ्ळलो उषकु कललो कनिपिञ्चिन युवकुडु लेडु. तरुवात मानवुल्लो उन्न सुन्दराङ्गुलनू चित्रिञ्चिन्दि. चिवरिगा अनिरुद्धुण्णी चित्रिञ्चिन्दि. आ चित्रं चूसि उष ‘इतडे! इतडे!’ अनि आनन्दङ्गा चूपिञ्चिन्दि. इक चित्रलेख आलस्यं चेयलेदु. द्वारका नगरानिकि वॆळ्ळि निद्रलो उन्न अनिरुद्धुण्णि तन योगशक्तितो उष दग्गरकु तीसुकुवच्चिन्दि. अनिरुद्धुडु उषादेवि अन्तः पुरंलोने उन्नाडन्न वार्त आमॆ तण्ड्रि बाणुडिकि तॆलिसिन्दि. बाणुडे स्वयङ्गा वच्चाडु. अन्तःपुरंलो उष-अनिरुद्धुलु पाचिकलाटलाडुतुन्नारु. अनिरुद्धुण्णि चूसी चूडटन्तोने बाणुडु बन्धिञ्चमनि भटुल्नि पम्पाडु. 221 वॆण्टने ऒक परिघनु अन्दुकॊनि अनिरुद्धुडु तन मीदिकि वच्चिन भटु लन्दरिनी चितक्कॊट्टाडु. बाणुडु नागपाशं वेसि अनिरुद्धुण्णि बन्धिञ्चाडु. अदि चूसि उष तल्लडिल्लिपोयिन्दि. शिव-केशव युद्धं अक्कड द्वारकलो अन्दरू अनिरुद्धुडु एमय्याडो अनि कङ्गारु पडुतुण्टे नारदुडु वच्चि असलु सङ्गति चॆप्पाडु. वॆण्टने बलरामकृष्णुलु सैन्यन्तो बयलुदेरारु. बाणुडि कोटनु मुट्टडिञ्चारु. परीक्षिन्महराजा! बाणुडि नगरानिकि साक्षात्तू परमशिवुडे रक्षकुडनि इन्तकु मुन्दे चॆप्पानु कदा! अन्दुवल्ल शिवुडु प्रमथगणाल्नि सन्नद्धं चेसि यादवुलपै युद्धं प्रकटिञ्चाडु. इरुसैन्यालकू युद्धं होराहोरीगा जरिगिन्दि. आ युद्धंलो श्रीकृष्णुडिदे पैचेयि अयिन्दि. अदि चूसि बाणुडे स्वयङ्गा तलपड्डाडु. श्रीकृष्णुडु तन शार ङ्गधनुवु ऎक्कुपॆट्टि बाणवर्षं कुरिपिञ्चाडु. बाणुडु धरिञ्चिन अयिदुवन्दल धनुवुल्नी तुत्तुनियलु चेसि बाणुडि सारथिनी गुर्राल्नी संहरिञ्चाडु. बाणुण्णि रक्षिञ्चडानिकि स्वयङ्गा अतडि तल्लि कोटर नग्नङ्गा वच्चिन्दि. आमॆनु अला चूडलेक श्रीकृष्णुडु मुखं तिप्पुकॊन्नाडु. ईलोगा बाणुडु पारिपोयि प्राणालु कापाडुकुन्नाडु. तरुवात शिवुडु ज्वर अने ऒक शक्तिनि प्रयोगिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडू ऒक शक्तिनि प्रयोगिञ्चाडु. आ शक्ति मुन्दु शिवुडि शक्ति निलवलेकपोयिन्दि. ईलोगा बाणुडु मरो रथम्पै अनेक धनुवुलु धरिञ्चि युद्ध रङ्गंलोनिकि वच्चाडु. श्रीकृष्णुडु सत्वरमे तन चक्रायुधान्नि पम्पाडु. अदि बाणुडि वॆय्यि चेतुल्लो नाल्गिण्टिनि वदलि तक्किन चेतुल्नि तॆगनरिकिन्दि. अप्पुडु शङ्करुडु - श्रीकृष्णा! परञ्ज्योति स्वरूपुडिवि नुव्वु. नी तेजस्सु मुन्दु सूर्य चन्द्राग्नुलेवी निलवलेवु. धर्मसंस्थापन कोसमे नुव्वु ई अवतारान्नि धरिञ्चावु. अयिते नादोमाट! ई बाणुडु ना प्रिय भक्तुडु. नेनु इतडिकि अभय दशम स्कन्धं 222 पोतन भागवतमु मिच्चानु. नुम्वा इतण्णि अनुग्रहिञ्चु’ अन्नाडु. श्रीकृष्णुडु शङ्करुडि माटनु मन्निञ्चाडु. ‘शङ्करा! इतडु प्रह्लदुडि वंशंलोनिवाडु. आ वंशंलोनि वाळ्ळनु ऎवरिनी चम्पननि नेनु मुन्दे माट इच्चानु. अन्दुके इतण्णि इप्पुडु विडिचिपॆडुतुन्नानु. अयिते इतडि गर्वं अणचालने इदन्ता चेशानु. इतडिकि इङ्का नालुगु भुजालु मिगिलि उन्नायि. वाटितोने इतडु जीविस्ताडु, अनि अभयमिच्चाडु. बाणुडु श्रीकृष्णुडिकि नमस्करिञ्चि उषनू अनिरुद्धुण्णी आदरिञ्चि अनेक बहुमतुलु समर्पिञ्चाडु. बलरामकृष्णुलु उषा अनिरुद्धुल्नी, यादव वीरुल्नी तीसुकॊनि द्वारककु तिरिगि वच्चारु. परीक्षिन्महराजा! ई विजय गाथनु विन्नवारिकि, पठिञ्चिनवारिकि सकल शुभालू लभिस्तायि अन्नाडु. अप्पुडु परीक्षित्तु कोरिकपै ईसारि नृगमहराजु चरित्रनु प्रारम्भिञ्चाडु शुक महर्षि. नृग महराजु राजा! यादव वीरुलैन साम्बुडु, प्रद्युम्नुडु मॊदलैनवाळ्ळु ऒकसारि ऒक उद्यानवनंलो विहरिञ्चारु. अलसिपोयिन वारिकि दाहं वेसिन्दि. आ अडविलो ऒक बावि कनिपिञ्चिन्दि. तीरा वॆळ्ळि चूस्ते अन्दुलो नीळ्ळु लेवुगानी कॊण्डलागा उन्न ऒक पॆद्द ऊसरवॆल्लि कनिपिञ्चिन्दि. यदुवीरुलु जालितो दान्नि बयटकु तीद्दामनि प्रयत्निञ्चारु कानी वाळ्ल वल्ल कालेदु. वॆळ्ळि श्रीकृष्णुडिकि चॆप्पारु. श्रीकृष्णुडु वच्चि अवलीलगा तन ऎडमचेत्तो दान्नि बयटकु तीशाडु. आ परमात्मुडि करस्पर्शतो आ ऊसरवॆल्लि ऒक दिव्य पुरुषुडिगा मारिपोयिन्दि. अतडु श्रीकृष्णुडिकि नमस्करिञ्चि तन वृत्तान्तं चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. प्रभू! ना पेरु नृगुडु. इक्ष्वाकु वंशंवाडिनि. नेनु लॆक्कलेनन्नि दानालु चेशानु. ऎन्नो प्रजा सङ्क्षेम कार्यक्रमालू चेशानु. नाकु तॆलिसि नेनु ए तप्पु चेयलेदु. कानी नेनु ऒक ब्राह्मणुडिकि दानङ्गा इच्चिन आवु तप्पिञ्चु 223 कॊनि वच्चि ना आवुलमन्दलो कलिसिपोयिन्दि. नाकु तॆलियक दानिनि इङ्को ब्राह्मणुडिकि दानं चेशानु. आ आवुकोसं मुन्दु दानं पुच्चुकॊन्न ब्राह्मणुडु, रॆण्डोसारि दानं पुच्चुकॊन्न ब्राह्मणुडु नादण्टे नादनि वादुलाडुकॊण्टू ना दग्गरकु वच्चारु. नेनु तॆलियक चेसिन तप्पु नाकु तॆलिसिवच्चिन्दि. मन्निञ्चमनि वेडुकॊन्नानु. प्रतिगा चॆरो लक्ष गोवुलु इस्तानन्नानु. अयिना वाळ्ळु ऒप्पुकोलेदु. आ पापं कारणङ्गा मरणिञ्चाक नरकानिकि वच्चानु. यमुडु नाको अवकाशं इच्चाडु. नेनु चेसिन पुण्यान्नि, पापान्नि अनुभविञ्चालिकदा! मुन्दु एदि अनुभविस्तावो तेल्चुकोमन्नाडु. नेनु पापमे अनुभविस्तानन्नानु. अयिते वॆण्टने क्रिन्दपडु अन्नाडु. अला पड्डवाण्णि इदुगो इला ऊसरवॆल्लिगा मारिपोयानु. इप्पुडु नी स्पर्शतो मळ्ळी मामूलुवाण्णि अय्यानु’ अनि तन वृत्तान्तं चॆप्पि श्रीकृष्णुडिकि नमस्करिञ्चि स्वर्गानिकि वॆळ्ळिपोयाडु नृगुडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु अन्दरिनी उद्देशिञ्चि - ‘चूशारु कदा! कालकूट विषानिकि कूडा विरुगुडु उण्टुन्दि. कानी ब्राह्मण द्रव्यहरणं अने विषानिकि विरुगुडु लेदु. ब्राह्मणुडि सॊत्तुनु अपहरिस्ते आ ब्राह्मणुडि कण्टि नुण्डि जारिन कन्नीटि बिन्दुवुलु भूमिपै ऎन्नि दुम्मुकणालनु तडुपुतायो अन्नि संवत्सरालु आ सॊत्तुनु अपहरिञ्चिनवाडु कुम्भीपाकं अने नरकंलो नानायातनलु अनुभविस्ताडु. अर्थमयिन्दा!’ अन्नाडु. तरुवात बलरामुडु व्रेपल्लॆकु वॆळ्ळि कॊन्तकालं अक्कड हयिगा विहरिञ्चाडु. पौण्ड्रक वध राजा! नीकु मरो वृत्तान्तं चॆबुतानु विनु. करूश देशानिकि राजु पौण्ड्रक वासुदेवुडु. मूर्खुडु. अहम्भावि. चुट्टू उण्डेवाळ्ळु मितिमीरि पॊगडटन्तो ताने वासुदेवुण्णनि गर्विञ्चाडा राजु. विष्णुवुलागे शङ्खचक्रादुलु धरिञ्चि विर्रवीगिपोयेवाडु. अतडि पिच्चि मुदिरि पाकान पडिन्दि. दशम स्कन्धं 224 पोतन भागवतमु तनु उण्डगा शङ्खचक्रालु धरिञ्चि तिरुगुतुन्न आ श्रीकृष्णु डॆवडन्नन्तगा अतडि अहङ्कारं पॆरिगिपोयिन्दि. अन्दुके ऒक दूतनु पम्पि ‘ई भूम्मीद वासुदेवुडनेवाडु ऒकडे उण्डालि. नुव्वु नन्नु अनुकरिस्तुन्नावु. अदि चॆल्लदु. तक्षणं पेरु मार्चुको! लेदण्टे युद्धानिकि सिद्धङ्गा उण्डु’ अनि सन्देशं पम्पाडु. आ सन्देशं विनि यादवुलन्दरू नव्वुकुन्नारु. श्रीकृष्णुडु युद्धानिकि बयलुदेराडु. पौण्ड्रकुडु, अतडि मित्रुडु काशिराजु ऐदु अक्षौहिणुल सैन्यन्तो श्रीकृष्णुण्णि ऎदुर्कॊन्नारु. अच्चं तनलागे शङ्खचक्रादुल्नि धरिञ्चि कृत्रिमङ्गा उन्न पौण्ड्रक वासुदेवुण्णि चूशाक नव्वु आगलेदु श्रीकृष्णुडिकि. पगटि वेषगाडिला उन्नाडु अनुकॊनि तनमीदिकि वच्चिन सैन्यान्नि चक्रादि आयुधालु प्रयोगिञ्चि अतलाकुतलं चेशाडु. पौण्ड्रक वासुदेवुण्णि चूसि ‘ओरी मूर्खा! ना आयुधाल्नि वदिलेयमन्नावु कदा! इदुगो काचुको!’ अण्टू चक्रादि आयुधाल्नि प्रयोगिञ्चाडु. पौण्ड्रक वासुदेवुडि रथं ध्वंसं अयिन्दि. चक्रं वॆळ्ळि नेरुगा अतडि शिरस्सुनु खण्डिञ्चिन्दि. तरुवात ऒके ऒक्क बाणन्तो काशि राजु तलनू त्रुञ्चिवेशाडु. अतडि तल वॆळ्ळि काशिराजु राजमन्दिरंलो पडिन्दि. राजा! इक्कडो गम्मत्तु चॆप्पना! आ पौण्ड्रक वासुदेवुडिकि पुण्यलोकालु प्राप्तिञ्चायि. ऎन्दुको तॆलुसा? निरन्तरं वासुदेवुडिला वेषं वेसुकॊनि अतण्णे ध्यानिञ्चडंवल्ल. तरुवात श्रीकृष्णुडु द्वारककु वॆळ्ळिपोयाडु. काशिराजु कॊडुकु सुदक्षिणुडु. श्रीकृष्णुडिपै पग तीर्चुकोवडं कोसं शिवुडि गुरिञ्चि तपस्सु चेशाडु. शिवुडु प्रत्यक्षमै दक्षिणाग्निनि आराधिञ्चि हॆूमं चेयमनि चॆप्पाडु. सुदक्षिणुडु श्रीकृष्णुण्णि लक्ष्यङ्गा चेसुकॊनि अभिचार होमं चेशाडु. आ होमकुण्डं नुञ्चि भीकरमैन ‘कृत्य’ अने राक्षसि (क्षुद्र शक्ति) उद्भविञ्चिन्दि. दानिनि श्रीकृष्णुडिपै प्रयोगिञ्चाडु सुदक्षिणुडु. 225 मरणशिक्ष वेयदगिनवाडि मीद मात्रमे दानिनि प्रयोगिञ्चालि. सुदक्षिणुडु तन तण्ड्रिनि चम्पाडन्न पगतो दानिनि कृष्णुडिपैकि पम्पाडु. वॆण्टने श्रीकृष्णुडु तन सुदर्शन चक्रान्नि विसिराडु. सुदर्शन तेजस्सु मुन्दु कृत्य निलुवलेक वॆनक्कि तिरिगि वॆळ्ळि तननु प्रयोगिञ्चिन सुदक्षिणुण्णि, ऋत्विक्कुल्नी संहरिञ्चिन्दि. चक्रं काशीनगरान्नि काल्चिवेसिन्दि. द्विविदुडि वध राजा! द्विविदुडु अने ऒक वानरुडु नरकासुरुडितो स्नेहं चेशाडु. वीडिकि राक्षस बुद्धुलु सङ्क्रमिञ्चायि. श्रीकृष्णुडु तन मित्रुण्णि चम्पाडनि वीडु पग पॆञ्चुकॊनि श्रीकृष्णुडि राज्यम्पै पडि विध्वंसं सृष्टिञ्चाडु. वीडु चेयनि दुरागतं लेदु. वाडि वॆकिलि चेष्टलकू, घोरकृत्यालकू प्रजलु नाना इब्बन्दुलू पड्डारु. अदि चूसि बलरामुडु सहिञ्चलेकपोयाडु. तन रोकली नागली तीसुकॊनि वाडिमीदिकि वॆळ्ळाडु. आ वानरुण्णि संहरिञ्चि रैवत पर्वतम्पैकि विसिरेशाडु बलरामुडु. वाडि बरुवुकि आ पर्वतमे वणिकिपोयिन्दि. बलरामुडि प्रतापं राजा! दुर्योधनुडि पुत्रिक पेरु लक्षण. श्रीकृष्णुडिकी जाम्बवतिकी पुट्टिन कुमारुडु साम्बुडु. पॆळ्ळि जरुगुतुण्टे ई लक्षणनु साम्बुडु ऎत्तुकॊच्चेशाडु. कौरवुलु वॆम्बडिञ्चि अतडिपै विरुचुकुपड्डारु कानी साम्बुडि धाटिकि निलुवलेकपोयारु. चिवरिकि कौरवुलु अन्ता कूडबलुक्कॊनि मॊत्तं सैन्यान्नि मोहरिञ्चि अधर्मयुद्धं चेसि साम्बुण्णि बन्धिञ्चारु. नारदुडि द्वारा आ सङ्गति विन्न यादवुलु सैन्यन्तो बयलुदेरारु. कानी बलरामुडिकि कौरवुलपट्ल अभिमानं उन्दि. अन्दुवल्ल वाळ्ळनु उण्डमनि ताने हस्तिनकु बयलुदेराडु सपरिवारङ्गा. हस्तिनकु समीपंलो उन्न ऒक उद्यानवनंलो कूर्चॊनि कौरवुल वद्दकु उद्धवुण्णि पम्पाडु. बलरामुडु वच्चाडन्न वार्त विनि दुर्योधनादुलु परुगु परुगुन वच्चि अतडिकि नमस्करिञ्चि सेविञ्चारु. अप्पुडु बलरामुडु दशम स्कन्धं 226 पोतन भागवतमु ‘दुर्योधना! इदि मा राजु उग्रसेनुलवारि आज्ञ. मीरु चेसिन्दि तप्पु. इन्तमन्दि कलिसि ऒक बालुण्णि बन्धिस्तारा? मा राजु मिम्मल्नि क्षमिञ्चाडु. साम्बुण्णि अप्पगिञ्चु’ अन्नाडु. आ माटलु विन्न दुर्योधनुडिकि अरिकालि मण्ट नॆत्तिकॆक्किन्दि. मा चॆप्पु क्रिन्द तेलुला पडि उण्डवलसिन यादवुलु इप्पुडु तॆग पेट्रेगिपोतुन्नारु. इदि कालं महिम. काळ्ळकु तॊडुक्कुने चॆप्पुलु तलमीदिकि ऎक्कायि. साम्बुण्णि विडिचिपॆट्टटं असम्भवं’ अनि तेल्चिचॆप्पाडु. पैगा नाना रकालुगा बलरामुण्णे तूलनाडि निर्लक्ष्यङ्गा हस्तिनकु वॆळ्ळिपोयाडु. अतडि माटलकु बलरामुडिकि आग्रहं कट्टलु तॆञ्चुकुन्दि. ‘पोनीले अनि ऊरुकॊण्टुण्टे चिन्ना पॆद्दा तेडा तॆलीकुण्डा माट्लाडुतुन्नारु. वीळ्ळकु माटलतो चॆप्ते अर्थं कादु’ अण्टू नागलि ऎत्ति हस्तिनापुरं कॊसकु दान्नि तगिलिञ्चि मुन्दुकु तोस्तुन्नाडु. गङ्गलो कलपालनि विजृम्भिञ्चाडु. आ नागलि कुदुपुकि नगरंलोनि गोपुरालु, सौधालू ऒक प्रक्ककि ऒरिगिपोयायि. नगरं कॊञ्चॆं मुन्दुकु जरिगि नीटिलो पडवला तेलुतोन्दि. वॆण्टने भीष्मद्रोणादुलन्दरू परुगु परुगुन वच्चि, अतण्णि स्तुतिञ्चि, शान्तिम्पजेसि, साम्बुण्णी लक्षणनू अप्पगिञ्चारु. वाळ्लन्दरिनी तीसुकॊनि बलरामुडु विजयुडै द्वारककु तिरिगि वच्चाडु. श्रीकृष्णुडि महिम राजा! नारदुडिकि ऒक विन्त कोरिक कलिगिन्दि. अन्तमन्दितो श्रीकृष्णुडु ऎला गृहस्थाश्रमान्नि निर्वहिस्तुन्नाडो चूडालनिपिञ्चिन्दि. अन्दुके स्वयङ्गा विच्चेशाडु. नेरुगा श्रीकृष्णुडि अन्तःपुरंलोनिकि वच्चाडु. अक्कड श्रीकृष्णुडु मञ्चम्पै कूर्चॊनि कनिपिञ्चाडु. रुक्मिणीदेवि विञ्जामरलु वीस्तोन्दि. श्रीकृष्णुडु नारदुण्णि चूडगाने दिग्गुन लेचि सादरङ्गा आह्वनिञ्चाडु. अतिथि मर्यादलु चेसि कुशल प्रश्नलु वेशाडु. ‘नारद महर्षी! एमिटिला विच्चेशारु? अनि विनयङ्गा अडिगाडु. 227 नारदुडिकि एं चॆप्पालो तोचलेदु. ‘प्रभू! नुव्वु सर्वेश्वरुडिवि. सर्व पालकुडिवि. नी पादपद्माले संसार सागरंलो पडि तपिञ्चेवारिनि उद्धरिस्तायि. अटुवण्टि नी दर्शन भाग्यं दॊरकडं ना अदृष्टं’ अनि स्तुतिञ्चि वाळ्ळ दग्गर सॆलवु तीसुकॊनि इङ्को देवि मन्दिरानिकि वॆळ्ळाडु. अक्कडा श्रीकृष्णुडु ऎदुरुवच्चि स्वागतं पलिकाडु. इला ऎन्नि अन्तःपुरालकु वॆळ्ते अन्निण्टिलोनू श्रीकृष्णुडु दर्शनमिस्तूने उन्नाडु. ऒक्कोचोट ऒक्को विधि निर्वहिस्तू नारदुण्णि आश्चर्यानिकि गुरिचेशाडु. श्रीकृष्णुडिमहिम बागा अर्थमय्यिन्दि नारदमहर्षिकि. नारायण नामस्मरण चेस्तू आनन्दङ्गा वॆळ्ळिपोयाडु. जरासन्धुडि वध परीक्षिन्महराजा! तरुवात ऒक शुभमुहूर्तंलो श्रीकृष्णुडु सपरिवारङ्गा इन्द्रप्रस्थं चेरुकुन्नाडु. अतडिकि घनस्वागतं लभिञ्चिन्दि. मयसभ विडिदि. कॊन्नि नॆललु अन्दरू अक्कड आनन्दङ्गा गडिपारु. ऒकरोजु धर्मराजु श्रीकृष्णुडिवद्दकु वच्चि तानु राजसूय यागं प्रारम्भिस्ताननी आ यागंलो पुराण पुरुषुडिवैन निन्नु पूजिस्ताननी, दयतो अङ्गीकरिञ्चमनी वेडुकॊन्नाडु. श्रीकृष्णुडु सम्मतिञ्चि ‘धर्मराजा! अनन्य साध्यमैन यागान्नि नुव्वु सङ्कल्पिञ्चावु. दीनिवल्ल नी कीर्ति शाश्वतङ्गा ई लोकंलो निलचि उण्टुन्दि. इदि लोकानिकि कळ्याणकरं. अन्दुवल्ल प्रारम्भिञ्चु. मुन्दुगा अपार पराक्रम वन्तुलैन नी तम्मुळ्ळनु दिग्विजय यात्रकु पम्पु’ अन्नाडु. धर्मराजु अलागे पम्पाडु. सोदरुलु दिक्कुलन्नी तिरिगि ऒक्क जरासन्धुण्णि तप्प अन्दरिनी जयिञ्चि तिरिगि वच्चारु. अपारमैन धनराशुलु वच्चि वीळ्ल कोशागाराल्लो पड्डायि. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु जरासन्धुण्णि वधिञ्चटानिकि ऒक उपायं चॆप्पाडु. आ प्रकारङ्गा श्रीकृष्णुडु, भीमार्जुनुलु ब्राह्मण वेषालु वेसुकॊनि जरासन्धुडि वद्दकु वॆळ्ळारु. दशम स्कन्धं 228 पोतन भागवतमु ‘राजा! माको कोरिक उन्दि. तीरुस्तावा? नीकु मेलु जरुगुतुन्दि’ अन्नारु. जरासन्धुडु अप्पुडे अनुष्ठानालु पूर्तिचेसुकॊनि वच्चाडु. आ समयंलो ऎवरु एदि अडिगिना अतडु कादनडु. वीळ्ळु चूडडानिकि ब्राह्मणुल्ला लेरु. मुखंलो राचकळ उट्टिपडुतोन्दि. कण्डलुदेरिन शरीरालु, चेतुलु आयुधाल्नि पट्टुकोवडंवल्ल कायलु काशायि. इवन्नी गमनिञ्चाडु. अयिना इव्वडानिके सिद्धपड्डाडु. ‘वच्चिनवाडु तननु चम्पुताडनि तॆलिसी दानं इच्चि बलि चक्रवर्ति कीर्तिमन्तुडय्याडु. ई शरीरं ऎप्पटिकैना नशिञ्चेदे! प्राणं उन्नप्पुडे कासिन्त कीर्ति सम्पादिञ्चुकोवालि’ अनि निश्चयिञ्चुकॊनि सरेनन्नाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु तामॆवरो चॆप्पि ‘मालो ऒकरितो नुव्वु द्वन्द्व युद्धं चेयालि. ऎवरु कावालो नुव्वे ऎञ्चुको’ अन्नाडु. दानिकि जरासन्धुडु नव्वि ‘श्रीकृष्णा! नुव्वु नाकु भयपडि समुद्रंलो दाक्कॊन्न पिरिकिपन्दवि. अर्जुनुडेमो कुर्रकुङ्क. नाकु सरैन जोडी भीमुडे! अनि तॊडकॊट्टाडु. युद्धं प्रारम्भमैन्दि. भीमुडू जरासन्धुडू गदलतो कॊट्टुकॊन्नारु. अवि विरिगिपोयायि. मुष्टियुद्धं चेशारु. ऒकरिनॊकरु पिडिगुद्दुलु गुद्दु कुन्नारु. पडदोसुकुन्नारु. पट्टुमीद पट्टु, दॆब्बमीद दॆब्ब. ऎवरू तग्गटं लेदु. ऎवरू तीसिपोवटंलेदु. युद्धं तॆमलटंलेदु. चुक्कलु रालिपोताया! दिक्कुलु वणिकिपोताया! समुद्रालु अल्लकल्लोलं अयिपोताया, भूमि कम्पिस्तुन्दा अन्नट्लुन्दि वाळ्ळ युद्धं. प्रक्कलू चॆक्किळ्ळू, मॆडलू, मुक्कुलू पगिलेला ग्रुद्दुकुण्टुन्नारु. अन्तलोने विडिपडुतुन्नारु. मरुक्षणमे हुङ्करिस्तू शरीरालतो ढीकॊट्टुकॊण्टुन्नारु. ऎगिरि पडुतुन्नारु, रॊप्पुतुन्नारु. अयिना युद्धं मानडंलेदु. वाळ्ळ पराक्रमं अन्तटिदि मरि. श्रीकृष्णुडिकि जरासन्धुडि पुट्टुपूर्वोत्तरालु तॆलुसु. एञ्चेस्ते वाडु चस्ताडो कूडा तॆलुसु. ऒक चॆट्टुकॊम्मनु तीसुकॊनि रॆण्डुगा चील्चि भीमुडिकि चूपिञ्चि कनुसैग चेशाडु. भीमुडु अलागे ऒक ताटिचॆट्टुनु रॆण्डुगा चील्चिनट्लुगा ऒक 229 कालिनि तन कालितो नॊक्किपट्टि रॆण्डो कालुनु चेत्तो पट्टुकॊनि निलुवुना रॆण्डुगा चील्चि अपसव्यङ्गा विसिरिवेसि जरासन्धुण्णि संहरिञ्चाडु. आ दृश्यान्नि चूसिन पुरजनुलु हहकारालु चेशारु. श्रीकृष्ण स्तुति राजा! तरुवात चॆरसाललो पडि मग्गिपोतुन्न राजुलन्दरिनी श्रीकृष्णुडु मर्चिपोकुण्डा विडिपिञ्चाडु. वाळ्लन्दरू वासुदेवुडि पादालपै पडि ‘माधवा! मानवुलु चिवरिदाका ऐहिक सुखाल कोसं पाकुलाडि व्यर्थमैन कोरिकलतो उण्टारु. चिवरिकि संसार समुद्रान्नि दाटलेक अलागे नशिञ्चिपोतू उण्टारु. मेमु अलाण्टि कष्टालनु अनुभविञ्चलेमु स्वामी! माकु निरन्तरं नी पादकमल सेवनु प्रसादिञ्चु’ अनि वेडुकॊन्नारु. अप्पुडु दामोदरुडु ‘ओ राजुलारा! मीरन्नदि निजं. सज्जनुल्नी अमायक प्रजल्नी हिंसिञ्चडं वल्लने वेनुडु, नहुषुडु, रावणुडु, कार्तवीर्यार्जुनुडु, इडुगो इप्पुडी जरासन्धुडु नाशनमय्यारु. धर्मान्नि पाटिस्तेने कुलं, बलं, आयुवु, कीर्ति, औन्नत्यं वृद्धि पॊन्दुतायि. काबट्टि ई शरीरं शाश्वतं कादनि गुर्तिञ्चण्डि. धर्ममार्गंलो परिपालिञ्चि मोक्षान्नि पॊन्दण्डि.’ अनि वाळ्ळन्दर्नी वाळ्लवाळ्ल राज्यालकु सागनम्पाडु. वाळ्ळु - आ.वॆ. वरद! पद्मनाभ! हरि! कृष्ण! गोविन्द! दासदुःखनाश! वासुदेव! यव्ययाप्रमेय! यनिशम्बु" गाविन्तु मिन्दिरेश! नीकु वन्दनमुलु (10-2-749) अण्टू नमस्करिञ्चि वॆळ्ळिपोयारु. शिशुपाल वध यज्ञं प्रारम्भमयिन्दि. वेदव्यासुडु, कश्यपुडु, भरद्वाजुडु मॊदलैन महर्षुलू, भीष्मद्रोणादि प्रमुखुलू कौरवुलू, इङ्का ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र मुख्युलु, राजुलू अन्दरू वच्चारु. धर्मराजे स्वयङ्गा अतिथि मर्यादलु चूसुकॊण्टुन्नाडु. यज्ञ दीक्ष दशम स्कन्धं 230 पोतन भागवतमु पट्टाडु धर्मराजु. दुर्योधनुण्णि राजुलु समर्पिञ्चे कानुकल्नि तीसुकॊने पनिलो पॆट्टाडु. अलागे तक्किन वाळ्ळकू तला ऒक पनि अप्पगिञ्चाडु. परीक्षिन्महराजा! श्रीमन्नारायणुडि पादपद्मालने नम्मुकोवालिगानी ई विश्वंलो दॊरकनि सौभाग्यमण्टू उण्टुन्दा! मन्त्रालु मार्र्मोगुतुन्नायि. अग्नुलु प्रज्वरिल्लुतुन्नायि. यागंलो ऎवरिको ऒकरिकि अग्रताम्बूलं इव्वालि. पूजिञ्चालि. धर्मराजु श्रीकृष्णुडि काळ्ळु कडिगि आ पवित्र जलान्नि सकुटुम्बङ्गा शिरस्सुपै जल्लुकुन्नाडु. अन्दरू चूसि आनन्दिस्तुण्टे शिशुपालुडु मात्रं अदि सहिञ्चलेकपोयाडु. अन्दरू विनेला- ‘धर्मराजा! इन्तमन्दि पॆद्दलू पूज्युलू सभलो उण्टे नीकी यादवुडु तप्प ऎवरू दॊरकलेदा?’ अण्टू श्रीकृष्णुण्णि तक्कुवजेसि माट्लाडटमेकाक तीव्रङ्गा निन्दिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु वाडि माटलु पट्टिञ्चुकोलेदु. अक्कड उन्न प्रति ऒक्करू ऎन्तगानो बाधपड्डारु. पाण्डवुलकू कोपं वच्चिन्दि. ऊ अण्टे चालु चम्पेद्दामन्नट्लुगा उन्नारु कॊन्दरु क्षत्रिय वीरुलु. श्रीकृष्णुडु अन्दरिनी वारिञ्चाडु. वाण्णि कॊन्तसेपु वागनिच्चाडु. अप्पटिकि पापं पण्डिन्देमो अन्नट्लुगा सुदर्शन चक्रान्नि पम्पाडु. अदि शिशुपालुडि शिरस्सुनु मॊण्डॆं नुञ्चि वेरुचेसिन्दि. अन्दरू चूस्तू उण्डगा शिशुपालुडि शरीरं नुण्डि ऒक दिव्यकान्ति वच्चि श्रीकृष्णुडिलो ऐक्यमयिन्दि. चिवरिगा धर्मराजु अवबृथ स्नानानिकि वॆळ्ळाडु. अन्दरू अतण्णि अनुसरिञ्चारु. ऎन्तो वैभवङ्गा गङ्गानदिकि वॆळ्ळि भार्यासमेतुडै शास्र्तोक्तङ्गा अवभृथ स्नानमाचरिञ्चाडु. तिरिगि नगरानिकि वच्चि भूरिदानालु चेशाडु. अन्दरिनी सत्करिञ्चि पम्पाडु. श्रीकृष्णुडु कॊन्नाळ्ळक्कडे उन्नाडु. परीक्षिन्महराजा! कुरुवंशं नाशनं कोसमे पुट्टाडन्नट्लुगा दुर्योधनुडु पापात्मुडै व्यवहरिस्तुन्नाडु. वाडु ऎवरि माटा विनडु. अन्तमन्दि यागानिकि 231 वच्चारा! अन्दरू ऎन्तो आनन्दिञ्चारा! कानी दुर्योधनुडिकि पाण्डवुल वैभवं कण्टगिम्पुगा मारिन्दि. अतडि कडुपु मण्डिपोयिन्दि. मयुडु पाण्डवुलकु ऒक सभनु निर्मिञ्चि इच्चाडु. भूलोकंलोनि अन्दरि राजुल सम्पदलू, चिवरिकि देवेन्द्रुडि ऐश्वर्यमू आ मयसभलो उन्न सम्पदलकु साटिरादण्टे नम्मु. इदि दुर्योधनुडिकि मरिन्त असूयनु कलिगिञ्चिन्दि. ऒक रोजु धर्मराजु श्रीकृष्णुडितो सोदरुलतो कलसि मयसभलो कॊलुवुतीरि मुच्चट्लाडुतुन्नाडु. अप्पुडु दुर्योधनुडु अक्कडिकि वच्चाडु. सभलोनिकि अडुगु पॆट्टाडु. ऒकचोट नीळ्ळु उन्नट्लुगा कनिपिञ्चिन्दि. बट्टलु पैकि ऎत्ति पट्टुकॊनि नडिचाडु. निजानिकि अक्कड नीरु लेदु. मरोचोट नीळ्ळु उन्नायि. लेवनुकॊनि भ्रमपड्डाडु. अतडि वस्र्तालु तडिसि पोयायि. अतडु अला भ्रमलो पडि नाना तिप्पलु पडडान्नि चूसि भीमसेनुडु नव्वाडु. धर्मराजु वारिस्तूने उन्नाडु. कानी तक्किन राजुलू, स्र्तीलू पॆद्दगा पकपका नव्वारु. दुर्योधनुडु चिन्नबुच्चुकुन्नाडु. श्रीकृष्णुडू अक्कडे उन्नाडु कानी मौनं वहिञ्चाडु. अप्पट्नुञ्ची दुर्योधनुडु आ अवमान भारन्तो मरिन्त रगिलिपोयाडु. तरुवात कॊन्नाळ्ळकु श्रीकृष्णुडु तनवाळ्ळनन्दरिनी तीसुकॊनि द्वारककु वॆळ्ळिपोयाडु. वीळ्ळु वच्चेलोगा द्वारककु ऒक पॆद्द प्रमादं मुञ्चुकॊच्चिन्दि. अदि साल्वुडि रूपंलो. साल्वुडि दण्डयात्र राजा! श्रीकृष्णुडु रुक्मिणीदेविनि ऎत्तुकॊनिवच्चिन सन्दर्भंलो शिशुपालुडितो कलिसि पोराडिन वारिलो साल्वदेशानिकि राजु साल्वुडु कूडा ऒकडु. अतडु यादवुल्नि सर्वनाशनं चेस्ताननि प्रतिज्ञ चेसि अन्दुकोसं ईश्वरुडिनि आराधिञ्चाडु. परमेश्वरुडि अनुग्रहन्तो आकाशंलो सञ्चरिञ्चे वाहनान्नि वरङ्गा पॊन्दाडु. अदे ‘सौभकं’ अने पुरं. शिवुडि आदेशन्तो मयुडु दीनिनि निर्मिञ्चि साल्वुडिकि इच्चाडु. ई पुरं आकाशंलो ऎक्कडिकैना ऎगिरि पोगलदु. इङ्केमुन्दि? दानिपै वच्चि द्वारकनु मुट्टडिञ्चाडु. द्वारका नगरान्नि ध्वंसं चेयसागाडु. प्रजल्नि दारुणङ्गा पीडिञ्चडं मॊदलुपॆट्टाडु. दशम स्कन्धं 232 पोतन भागवतमु अप्पुडु प्रद्युम्नुडु अतण्णि ऎदिरिञ्चि पोराडाडु. सात्यकि, चारुधेष्णुडु, साम्बुडु इला यादववीरुलू चतुरङ्ग सैन्यालतो वॆम्बडिञ्चारु. प्रद्युम्नुडिकि महमायाविद्यलु तॆलुसु. अन्दुके अतडु साल्वुडि मायलन्निण्टिनी अरिकट्ट्गलिगाडु. प्रद्युम्नुडि पराक्रमानिकि साल्वुडू अतडि सैन्यमू तीव्रमैन क्षोभकु गुरयिन्दि. इक सौभक पुरं मीद तिरुगुतू दाडि चेशाडु साल्वुडु. आ पुरं ऒकसारि कनिपिस्तुन्दि. अन्तलोने माय मवुतुन्दि. यादव वीरुल प्रतापानिकि साल्वुडि सैन्यमू, अतडि सौभक नगरमू दॆब्बतिन्नायि. इदन्ता चूस्तू सहिञ्चलेकपोयाडु साल्वुडि मन्त्रि द्युमुडु. अतण्णि कूडा प्रद्युम्नुडु बाणालतो उक्किरिबिक्किरि चेशाडु. इक भरिञ्चलेक आ नगरं नुण्डि किन्दिकि दूकि मॆरुपुला वच्चि प्रद्युम्नुण्णि गदतो गुण्डॆलपै गट्टिगा कॊट्टाडु. प्रद्युम्नुडु मूर्छपोयाडु. सारथि रथान्नि दूरङ्गा नडिपि अतण्णि रक्षिञ्चाडु. कॊन्तसेपटिकि तेरुकॊन्न प्रद्युम्नुडु तिरिगि रणरङ्गानिकि वच्चि द्युमुण्णि संहरिञ्चाडु. तक्किन यादव वीरुलु बाणवर्षं कुरिपिञ्चि शत्रु सैनिकुल तलल्नि ऎगरगॊट्टारु. अवि वॆळ्ळि समुद्रंलो पड्डायि. इन्द्रप्रस्थं नुण्डि द्वारककु वस्तू दारिलोने ई युद्धं जरगडान्नि चूसि बलरामकृष्णुलु रङ्गप्रवेशं चेशारु. श्रीकृष्णुण्णि चूडगाने साल्वुडु शक्ति आयुधान्नि प्रयोगिञ्चाडु. दान्नि बाणालतो खण्डिञ्चि सुदर्शन चक्रन्तो वाडि शिरस्सु खण्डिञ्चाडु श्रीकृष्णुडु. दन्तवक्र्तुडि वध ई साल्वुडिकि मरो मित्रुडु उन्नाडु. वाडे दन्तवक्र्तुडु. श्रीकृष्णुडिपै पगतो रगिलिपोयेवाडु. पळ्ळु पटपटा कॊरुकुतू, कन्नुल नुञ्चि निप्पुलु रालुस्तू भूमि कम्पिञ्चेला नडुस्तू श्रीकृष्णुडि मीदिकि वच्चाडु दन्तवक्र्तुडु. ‘कृष्णा! नुव्वु बन्धुवु रूपंलो उन्न शत्रुव्वि. निन्नु मेनमाम कॊडुकनि कूडा चूडनु. 233 इदुगो ना गदाघातन्तो निन्नु नेरुगा यमपुरिकि पम्पिस्तानु. ना मित्रुल ऋणं तीर्चुकॊण्टानु. अनि गदतो श्रीकृष्णुडि तलपै मोदाडु. अङ्कुशन्तो पॊडिस्ते मत्तगजं ऎला रॆच्चिपोतुन्दो अलागे श्रीकृष्णुडु रॆच्चिपोयि तन गदतो वाडि वक्षःस्थलान्नि पगलगॊट्टाडु. दॆब्बकु वाडु रक्तं कक्कुकुण्टू नेलकॊरिगाडु. अप्पुडु ऒक दिव्य तेजस्सु अतडि शरीरंलो नुण्डि वच्चि श्रीकृष्णुडिलो कलिसिपोयिन्दि. दन्तवक्र्तुडि तम्मुडु कूडा श्रीकृष्णुडि मीदकु वच्चि अतडि चेतुल्लोने मरणिञ्चाडु. विजयोत्साहन्तो श्रीकृष्णुडु द्वारककु विच्चेशाडु. बलरामुडि तीर्थयात्रलु राजा! तरुवात कॊन्नाळ्ळकु बलरामुडु तीर्थयात्रलकु बयलुदेराडु. अन्दुको कारणं उन्दि. कुरुक्षेत्र सङ्ग्रामं प्रारम्भं काबोतोन्दि. पाण्डवुलू कौरवुलू इद्दरिकी तनु कावलसिनवाडु. ऎवरिकि मद्दतु इव्वालो ऎवरिवैपु पोराडालो तेल्चुकोलेक मध्येमार्गङ्गा तीर्थयात्रल्नि ऎञ्चुकुन्नाडु. मॊदट प्रभास तीर्थंलो स्नानमाचरिञ्चाडु. तरुवात नैमिशारण्यानिकि वॆळ्ळाडु. अक्कड सूतुडु तननु चूसि लेवलेदनि कोपिञ्चि, अदि तननु अवमानिञ्चिनट्लुगा भाविञ्चाडु. कोपन्तो ‘ऎन्त चदिविते एं लाभं? सभ्यता संस्कारं उण्डवद्दू? इन्द्रिय निग्रहं लेनिवाडू, गर्वी, विनयं लेनिवाडू, तननु तानु गॊप्प पण्डितुण्णनि अनुकॊने वाडु ऎन्त विद्य नेर्चिना वाडिकि वण्टपट्टदु. अक्करकु रादु. ऎदुटिवाळ्लकि चॆप्पडानिके नीतुलु. आचरिञ्चडानिकि कादनि वीडु निरूपिञ्चाडु’ अनि निन्दिस्तू अतण्णि वधिञ्चाडु. तक्किन ऋषुलन्दरू हहकारालु चेशारु. ‘बलरामा! सूतुडु ब्रह्मज्ञानि. सर्वसङ्ग परित्यागि. इतडिकि ब्रह्मस्थानं इच्चिन्दि मेमे! अतण्णि वधिञ्चि नुव्वु ब्रह्महत्या पापान्नि कॊनितॆच्चुकॊन्नावु. अन्नारु महर्षुलु. बलरामुडु निजमेननि अङ्गीकरिञ्चि प्रायश्चित्तं चॆप्पमन्नाडु. तन योगशक्तितो सूतुण्णि बतिकिस्तानन्नाडु. ‘अन्तेकादु. ई सूतुडे तन भार्यकु दशम स्कन्धं 234 पोतन भागवतमु पुत्रुडिगा पुट्टि उग्रश्रवसुडु अने पेरुतो मीकु सकल पुराणालनू बोधिस्ताडु. अन्दुवल्ल ई सूतुडु (रोमहर्षणुडु) प्रत्यक्षङ्गा जीविञ्चकपोयिना पुत्रुडि रूपंलो मी मध्य उण्टाडु. मीरु चेस्तुन्न सत्रयागंलो चिवरिदाका पुराणालु चॆबुतूने उण्टाडु. मरि नाकु प्रायश्चित्तं सॆलविय्यण्डि.’ अन्नाडु. दानिकि ऋषुलु ‘बलरामा! इक्कड पल्वलुडु अने राक्षसुडु अमावास्य, पौर्णमि रोजुल्लो वच्चि मा यागान्नि आटङ्कपरुस्तुन्नाडु. वाण्णि संहरिञ्चु. तरुवात पुण्यतीर्थाल्लो स्नानं चॆय्यि. नी पापं पोतुन्दि’ अन्नारु. बलरामुडु पल्वलुण्णि तन मुसलानिकि बलि इच्चि तीर्थयात्रलकु वॆळ्ळिपोयाडु. तीर्थाल्नि सेविञ्चुकॊनि चिवरिगा कुरुक्षेत्र युद्धरङ्ग प्रान्तानिकि वच्चाडु. अप्पटिकि युद्धं दादापु पूर्तयिन्दि. कुरुपाण्डव युद्धंलो ऎन्दरो राजुलु मरणिञ्चारनि तॆलुसुकॊनि ‘हम्मय्य! भूभारं तग्गिन्दिले’ अनुकुन्नाडु. चिवरिगा भीमुडु, दुर्योधनुडु गदायुद्धं चेस्तुन्नारनि ब्राह्मणुल द्वारा तॆलुसुकॊनि अक्कडिकि वॆळ्ळाडु. ‘वीळ्ळिद्दरू समानमैन वीरुलु. ऎप्पटिकी विजयं तेलदु. काबट्टि युद्धं विरमिञ्चण्डि.’ अनि सलह इच्चाडु. कानी वाळ्ळु विनलेदु. ‘वाळ्ळ कर्म!’ अनुकॊनि तानु मळ्ळी नैमिशारण्यानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. कुचेलोपाख्यानं ओ महराजा! कुचेलुडु अनि श्रीकृष्णुडि सहध्यायि. ब्राह्मणोत्तमुडु, आत्माभिमानं कलवाडु, ज्ञानि, शान्तमूर्ति, जितेन्द्रियुडु, धर्मात्मुडु. ऒकप्रक्क कटिक दारिद्र्यान्नि अनुभविस्तू कूडा ऎवरिनी नोरु तॆरिचि याचिञ्चिन पापान पोलेदु. अतडि भार्य कूडा अन्ते! भर्तकु तग्ग भार्य. इतण्णि पल्लॆत्तु माट अनि ऎरुगदु. इण्ट्लो पिल्ललु आकलिकि अलमटिस्तुन्नारु. पॆदवुल्नि नालुकलतो तडुपुकॊण्टू आकुलू गिन्नॆलू पट्टुकॊनि अम्मा! अन्नं पॆट्टमा अनि अण्टुण्टे आमॆ ऒकरोजु भर्ततो - 235 ‘स्वामी! चं. वरदु"डु साधुभक्तजनवत्सलु" डार्तशरण्यु" डिन्दिरा वरु"डु दयापयोधि भगवन्तु"डु कृष्णु"डु दा" गुशस्थली पुरमुन यादवप्रकरमुल् भजियिम्पग नुन्नवा"डु नी वरिगिन निन्नु"जूचि विभु"डप्पुड यिच्चु ननूनसम्पदल् (10-2-970) वरप्रदात, सज्जनुलैन भक्तुलपै वात्सल्यं कुरिपिञ्चेवाडु, आर्तुलकु दिक्कैनवाडु, लक्ष्मीपति, दयासागरुडु, भगवन्तुडु अयिन मी मित्रुडु श्रीकृष्णुडु कुशस्थलीपुरंलो यादवुलु कॊलुस्तू उण्टे अत्यन्त वैभवङ्गा उन्नाडु कदा! ऒक्कसारि नुव्वु वॆळ्ते निन्नु चूसि आ विभुडु साटिलेनि सम्पदलनु इस्ताडु कदा! अन्तेकादु, कललो कूडा तननु स्मरिञ्चनि दुर्मार्गुडैना सरे! आपदलो उन्नप्पुडु ऒक्कसारि आ देवुडि पादालनु स्मरिस्ते चालु. कनिकरिञ्चि आदुकॊण्टाडु. अन्तटि महनीयुडु नीलाण्टि भक्तुण्णि आदरिञ्चडा!’ आमॆ माटलु निजमे ननिपिञ्चायि. प्रयाणमय्याडु. एं तीसुकुवॆळ्ळालि? अनि अनुकॊण्टुण्टे आ भार्य कॊन्नि अटुकुल्नि तॆच्चि इतडि चिनुगुल उत्तरीयंलो मुडिवेसि पम्पिन्दि. कुचेलुडि मनसुलो एवेवो आलोचनलु. मॊत्तानिकि श्रीकृष्णुडि अद्भुतमैन मणिसौधानिकि चेरुकॊन्नाडु. लोपलिकि वॆळ्ळाडु. अक्कड ऒकचोट ऒक वधूमणि विञ्जामरलु वीस्तुण्टे हंसतूलिका तल्पम्पै चिद्विलासङ्गा कूर्चॊनि यदुकुल चन्द्रुडु आमॆतो मुच्चटिस्तुन्नाडु. चूशाडु कुचेलुडु. अन्तलो श्रीकृष्णुडि दृष्टि अलवोकगा कुचेलुडिपै पडिन्दि. दिग्गुन लेचि कुचेलुण्णि सादरङ्गा आह्वनिञ्चि, आप्यायङ्गा कौगिलिञ्चु कॊन्नाडु. तन मञ्चम्पै कूर्चोपॆट्टि कुशल प्रश्नलु वेशाडु. बङ्गारु कलशाललोनि नीळ्लतो अतडि पादालु कडिगाडु. आ जलान्नि नॆत्तिन जल्लुकुन्नाडु. मैपूतलु पूशाडु. विञ्जामरलु वीचाडु. हरतुलु पट्टाडु. सिगलो पुव्वुलु मुडिचि, कर्पूर ताम्बूलं इच्चि गोदानं चेसि स्वागतिञ्चाडु. दशम स्कन्धं 236 पोतन भागवतमु कुचेलुडि शरीरं पुलकिञ्चिपोयिन्दि. कन्नुल नुण्डि आनन्दाश्रुवुलु स्रविञ्चायि. श्रीकृष्णुडि पट्टपुराणि रुक्मिणीदेवि करकङ्कणालु घल्लुघल्लुमनेला विञ्जामरलु वीचिन्दि. इदि चूसिन अन्तःपुरवासुलु - उ. एमितपम्बु सेसॆनॊकॊ! यीधरणीदिविजोत्तमुण्डु दॊल् बामुन! योगिविस्फुरदुपास्यकु"डै तनरारु नी जग त्स्वामि रमाधिनाथु निजतल्पमुनन् वसियिञ्चि युन्नवा" डी महनीयमूर्ति कॆनये मुनिपुङ्गवु लॆन्तवारलुन्? (10-2-985) ‘आह! ई ब्राह्मणुडु ऎन्त गॊप्प तपस्सु चेशाडो कदा! योगिवन्द्युडैन श्रीकृष्णुडि पान्पुपै कूर्चॊने भाग्यानिकि नोचुकॊन्नाडु. ऎन्तटि गॊप्प महर्षुलैना इतडिकि साटिवस्तारा? पक्कने उन्न रुक्मिणि एमन्ना अनुकॊण्टुन्देमोननि कूडा लेकुण्डा ऎन्तला अतडिकि सपर्यलु चेस्तुन्नाडु स्वामि!’ अनि आश्चर्यपोयारु. श्रीकृष्णुडु कुचेलुडि चेतिनि तन चेतिलोकि तीसुकॊनि चिन्ननाटि मधुर स्मृतुल्नि नॆमरुवेसुकॊण्टुन्नाडु. ‘ब्राह्मणोत्तमा! नी भार्य ऎला उन्दि? नीकु अनुकूलङ्गाने उन्दा? इन्तकू नीकु संसारम्पै दृष्टि उन्नट्लु लेदु. कॊन्दरु महनुभावुलु इन्ते. लोकशान्ति कोसमे तन कर्मल्नि आचरिस्तारु. कर्तव्य निष्ठतो जीविस्तारु.’ मनं मन गुरुकुलंलो ऎन्त हयिगा कालक्षेपं चेसेवाळ्ळमो गुर्तुन्दा! ते.गी. तिविरि यज्ञानतिमिरप्रदीप मगुचु नव्ययम्बैन ब्रह्मम्बु ननुभविञ्चु भरितसत्त्वुण्डु सत्कर्म निरतु" डतुल भूसुरश्रेष्ठु" डलघुण्डु बुधनुतुण्डु (10-2-994) गुरुवु अज्ञानं अने चीकटिकि दीपं. ब्रह्मनन्दान्नि अनुभविञ्चे सत्त्वगुण सम्पन्नुडु. नित्यं सत्कर्मल्नि आचरिञ्चे सत्पुरुषुडु. साटिलेनि ब्राह्मण श्रेष्ठुडु. गॊप्प वाडु. पण्डितुलु कॊनियाडेवाडु. गुर्तुन्दा! मनं गुरुपत्नि आदेशम्पै अडविकि वॆळ्ळि कट्टॆलु तॆच्चिन सङ्गति. अप्पुडु पॆद्द वर्षं वच्चिन्दि. ऒकटे उरुमुलु मॆरुपुलु. चीकटि 237 पडिन्दि. ऒकटे चलि. मनं दारितप्पि अडविलो ऎक्कडिको वॆळ्ळिपोयां. तॆल्लवारे वरकू अक्कडे उण्डिपोयां. अप्पुडु मन गुरुवु सान्दीपनिमहर्षे मनल्नि वॆतुक्कॊण्टू वच्चि मनकोसं कङ्गारुपडलेदू! मनल्नि निण्डु नूरेळ्ळु ऐश्वर्यन्तो वर्धिल्लमनि दीविञ्चलेदू!’ कुचेलुडु अन्नाडु - ‘मनं ऎन्नि चेयलेदु? अन्नी गुर्तुन्नायि. मुल्लोकालकू नुव्वे गुरुव्वि. नीकु मळ्ळी गुरुवुण्टाडा! अन्ता नी लील! अन्नाडु. श्रीकृष्णुडिकि अतडि माटल्लोनि आन्तर्यं अर्थमयिन्दि. मित्रमा! एं तॆच्चावय्या ना कोसं? अदि ऎन्त लेशमैना नाकु महप्रसादमे. कं. दळमैन" बुष्पमैननु फलमैननु सलिलमैन" बायनिभक्तिं गॊलिचिन जनु लर्पिञ्चिन नॆलमिन् रुचिरान्नमुगनॆ येनु भुजिन्तुन् (10-2-1010) पुष्पं, फलं, पत्रं, जलं एदैना भक्तितो अर्पिस्ते अदि नाकु परमान्नमे! इष्टङ्गा स्वीकरिस्तानु. आ माटलु कुचेलुडिकि अमृतंला तोचायि. इन्तला चॆप्पिना कुचेलुडु तनु तॆच्चिन अटुकुल्नि श्रीकृष्णुडिकि इव्वलेकपोयाडु. मौनं वहिञ्चाडु. श्रीकृष्णुडु कुचेलुडु वच्चिन कारणान्नि तॆलुसुकुन्नाडु. पूर्वं ऐश्वर्यान्नि कोरि तनु नन्नर्चिञ्चलेदु. इप्पुडु कूडा तन भार्य कोरगा वच्चाडु. अन्दुके इन्द्रादुलकु सैतं दुर्लभमयिन सम्पदलु इतडिकि इव्वालि अनुकुन्नाडु. श्रीकृष्णुडे चनुवुगा ‘इदेमिटि कुचेला?’ अनि अटुकुल मुडिनि विप्पि गुप्पॆडु अटुकुलु तीसुकुन्नाडु. ‘नाकु इवि चालवा?’ अण्टू वाटिने आरगिञ्चाडु. मरो पिडिकॆडु अन्दुकुन्नाडु. अप्पुडु रुक्मिणि - ‘स्वामी! इतडिकि सकल सम्पदलू अन्दिञ्चडानिकि इप्पटिकि मीरु तिन्न ई अटुकुलु चालु. इङ्काना? वद्दु’ अनि वारिञ्चिन्दि. दशम स्कन्धं 238 पोतन भागवतमु कुचेलुडिकि आ रोजु गॊप्प आतिथ्यं लभिञ्चिन्दि. मरुनाडु उदयं तन नगरानिकि बयलुदेराडु. अतडि हृदयं आनन्दन्तो तेलिपोतोन्दि. आगर्भ दरिद्रुडयिन नेनॆक्कड? लक्ष्मीनिवासुडैन श्रीकृष्णुडॆक्कड? आह! नन्नु ऎन्त आदरिञ्चाडु! ऎन्त सत्करिञ्चाडु! अरॆ! अतडि पट्टपुराणि रुक्मिणीदेवि कूडा नाकु विञ्जामरलु विसिरिन्दे! ना मित्रुडु ना काळ्ळु पट्टाडु. एमि ना भाग्यं! अनुकॊण्टू तन नगरं चेरुकुन्नाडु. चेरुकॊनि आश्चर्यपोयाडु. ऎक्कड चूसिना चन्द्रकान्त शिलानिर्माणालु, चक्कटि उद्यानवनालु. नानाविध भूषणालु धरिञ्चिन दासदासी जनुलतो ऒक सुन्दर भवनं कनिपिञ्चिन्दि. इदि ए पुण्यात्मुडि भवनमो अनुकॊन्नाडु. कानी अन्तलोने आ भवनंलो नुञ्चि वच्चिन सुन्दरीमणुलु कुचेलुण्णि सादरङ्गा लोपलिकि तीसुकुवॆळ्ळारु. मानवरूपं धरिञ्चिन लक्ष्मीदेविला उन्न ऒक इल्लालु ऎदुरु वच्चि कुचेलुडिकि स्वागतं पलिकिन्दि. कुचेलुडु आमॆनु चूसि आश्चर्यपोयाडु. आमॆ ऎवरोकादु, साक्षात्तू तन भार्ये! अय्यो! नेनु धनं कोसमे श्रीकृष्णुडि वद्दकु वॆळ्ळानु. नेनु अडक्कपोयिना अदि ग्रहिञ्चि नाकु सकल सम्पदलू अनुग्रहिञ्चाडु. अनि भक्तिप्रपत्तुलतो श्रीकृष्णुडिने ध्यानिस्तू भार्यासमेतुडै जीविञ्चाडु. राजा! ई कुचेलोपाख्यानं विन्नवारिकि, चॆप्पिनवारिकि इहलोक सौख्यालु, परलोक सौख्यालू, हरिभक्ती, यशस्सू कलुगुतायि. आत्मीयुल कलयिक कॊन्नाळ्ळु बलरामकृष्णुलु द्वारकलोने सुखङ्गा उन्नारु. ऒकसारि सूर्यग्रहणं वच्चिन्दि. शमन्तपञ्चकं अने पवित्र क्षेत्रानिकि चेरुकॊनि पुण्यस्नानादि विधुल्नि निर्वहिञ्चि, भूरिदानालु इच्चि, भोजनालु चेसि अक्कडे पॊन्नचॆट्ल नीडलो विश्रमिञ्चारु. ऎन्दरो राजुलु आ क्षेत्रानिकि वच्चि श्रीकृष्णुण्णि सन्दर्शिञ्चारु. बलरामकृष्णुलु वाळ्ळन्दरिनी सत्करिञ्चारु. आ राजुलु, अन्दरू विनेला - 239 म. मन शास्त्रम्बुलु वाक्कुलुन् मनमुलुन् माङ्गल्यमुं बॊन्दि पा वनमै यॊप्पॆडि ने रमाविभुनि भास्वत्पादपङ्केज से चनतोयम्बुल, ने महत्मुनि पदाब्जातम्बु लॆन्देनि सो" किन चोटॆल्लनु मुक्तिहेतुवगु नी कृष्णुण्डॆ पो! चूड"गन् (10-2-1047) मन शास्र्तालू, वाक्कुलू, मनस्सुलू ए परन्धामुडि पादपद्मतीर्थं वल्ल पवित्रालौतुन्नायो, ए महत्मुडि पादस्पर्शकु नोचुकुन्न प्रदेशमन्ता मुक्तिकि हेतुववुतुन्दो अटुवण्टि महनुभावुडी श्रीकृष्णुडु. चं. सनक सनन्दनादि मुनिसत्तमु लञ्चित योगदृष्टिचे" बनिवडि यात्मलन् वॆदकि पट्ट नगोचरमैन मूर्ति यि ट्लनवरतम्बु मांस नयनाञ्चल गोचरु" डय्यॊ नट्टॆ! ये मननगु? वीरि पुण्यमुन कादट नॆट्टि तपम्बु सेसिरो! (10-2-1048) सनक सनन्दनादि महर्षुलु गॊप्प योगशक्तितो आत्मललो वॆदिकि पट्टुकोवालनि ऎन्तगा प्रयत्निञ्चिना तपिञ्चिना गोचरं कानि ई मङ्गळस्वरूपुडु मांस निर्मितालैन मी कळ्ळकु इला साक्षात्करिस्तुन्नाडु. वीळ्ळन्ता ऎन्त पुण्यं चेशारो कदा! ऎन्त तपस्सु चेशारो मरि!’’ अण्टू आ राजुलु अन्दरू विनेला यादवुल अदृष्टान्नि कॊनियाडारु. कुन्तीदेवि कूडा वच्चिनवारिलो उन्दि. तन पुट्टिण्टिवारिनि चूडटन्तो आमॆ मनस्सुकु स्वस्थत चेकूरिन्दि. तन अन्न वसुदेवुडितो कष्टं सुखं माट्लाडिन्दि. वच्चिन राजुलन्दरिनी बलरामकृष्णुलु सत्करिञ्चि पम्पारु. वॆळ्तू वॆळ्तू अन्दरू उग्रसेन महराजुनु कीर्तिस्तू वॆळ्ळिपोयारु. ईलोगा यशोदानन्दुलु वच्चारु. वीळ्ळनु चूडगाने श्रीकृष्णुडु आप्यायङ्गा कौगिलिञ्चुकुन्नाडु. पुत्रुडिपै प्रेम आनन्दबाष्पालुगा जालु वारिन्दि. कण्ठं मूगवोयिन्दि. ‘पसिगुड्डुल्नि अप्पगिस्ते वाळ्ळनु पॆञ्चि पॆद्दवाळ्ळनु चेसिन नी ऋणं ऎला तीरुतुन्दि यशोदा!’ अण्टू रोहिणी देवकीदेवुलु यशोदनु कॊनियाडारु. दशम स्कन्धं 240 पोतन भागवतमु पाण्डवुलू वच्चारु. श्रीकृष्णुडू वाळ्ळकु कुशल प्रश्नलु वेशाडु. द्रौपदी श्रीकृष्णुडि भार्यलू ऒकचोट चेरारु. कबुर्लु चॆप्पुकुन्नारु. वसुदेवुडि यागं तरुवात कॊन्तकालानिकि द्वारकलो उन्न बलरामकृष्णुल वद्दकु नारद व्यासकण्वादि महर्षुलु विच्चेशारु. श्रीकृष्णुडिनि सेविञ्चारु. श्रीकृष्णुडू वाळ्ळकु अतिथि सत्कारालु चेसि भक्तितो अर्चिञ्चाडु. ‘महत्मुलारा! मिम्मल्नि सेविस्ते पुण्यतीर्थालनु सेविञ्चिन फलं वस्तुन्दि?’ अन्नाडु. अप्पुडा मुनुलु - ‘श्रीकृष्णा! नुव्वु परमात्मस्वरूपुडिवि. विश्वमन्ता अनेकरूपाललो उन्नदि नुव्वे. ऒके मट्टि, ऎन्नो रूपाल्नि पॊन्दुतुन्दि. अलागे नुम्वानू. अन्नि प्राणुल्लोनि आत्म नीवे! लोकसंरक्षणं कोसमे मानवुडिगा पुट्टि आदर्श जीवनं कोसं नीविला प्रवर्तिस्तुन्नावु. नी दर्शनंवल्ल सकल पापालू बन्धालू तॊलगि पोतायि. मम्मल्नि अनुग्रहिञ्चु’ अन्नारु. अप्पुडु वसुदेवुडु आ महर्षुलतो ‘अय्या! भगवन्तुडि अनुग्रहनिकि प्रतिबन्धकङ्गा निलिचेवि पूर्वकर्मले. वाटिनि रूपुमापुकॊने पुण्यकर्मलु एवो सॆलविय्यण्डि’ अनि अडिगाडु. वसुदेवुडि अज्ञानानिकि नव्वुकुन्नारु महर्षुलु. इतडिङ्का श्रीकृष्णुण्णि तन कॊडुके अनुकॊण्टुन्नाडु. पॆरटिचॆट्टु वैद्यानिकि पनिकिरादु अन्नट्लु, दग्गरलोने उन्न पॆन्निधानान्नि गुर्तिञ्चलेनट्लु इतडु श्रीकृष्णुडिनि गुर्तिञ्चलेदु. निजमे, इदि लोकसहजं. पुण्यतीर्थाल कोसं ऎक्कडॆक्कडिनुण्डो प्रजलु तण्डोपतण्डालुगा वच्चि सेविञ्चुकॊण्टू उण्टारु. नित्यं अक्कडे उण्डेवाडिकि दानि विलुव तॆलियदु’ अनुकॊनि- ‘वसुदेवा! प्रतिव्यक्तिकी देव-ऋषि-पितृ ऋणालु उण्टायि. यज्ञालु चेसि देवऋणान्नी, अध्ययनं द्वारा ऋषिऋणान्नी, मञ्चि सन्तानान्नि पॊन्दडं द्वारा पितृऋणान्नी तीर्चुकोवालि. काबट्टि नुव्वु क्रतुवु चेसि देव ऋणान्नि तीर्चुको!’ अनि सूचिञ्चारु. वसुदेवुडु वॆण्टने यज्ञं प्रारम्भिञ्चि वैभवङ्गा पूर्तिचेशाडु. 241 कालक्रमङ्गा वसुदेवुडिकि श्रीकृष्णुडे परमात्म अने सत्यं बोधपडिन्दि. ‘इन्तकालं ऎन्त अज्ञानंलो बतिकानु! भगवद्भक्तिनि अलवरचुकोलेकपोयानु. इप्पुडु चूस्ते वयस्सु मिञ्चिपोयिन्दि’ अनि बाधपड्डाडु. श्रीकृष्णुडु तण्ड्रितो- ‘नान्ना! नेनू बलरामुडू, मीरू ई द्वारकावासुलू अन्ता ब्रह्म मयमे. ऒके ब्रह्मं - भिन्नरूपालु. अन्ते!’ अन्नाडु. माटल्लो तानु अलनाडु चनिपोयिन गुरुपुत्रुण्णि तीसुकुवच्चिन विषयं प्रस्तावनकु वच्चिन्दि. अक्कडे उन्न देवकी देविकि कंसुडि चेतिलो मरणिञ्चिन तन पुत्रुल्नि चूडालनिपिञ्चि वारिनि सजीवङ्गा तॆच्चियिम्मनि महनुभावुलैन बलरामकृष्णुल्नि प्रार्थिञ्चिन्दि. वॆण्टने श्रीकृष्णुडु बलरामुडितो कलसि सुतलानिकि बयलुदेरारु. सुतलानिकि अधिपति बलिचक्रवर्ति. अतडिनि अडिगि तन अन्नलनु तीसुकुवच्चाडु. वाळ्ळे स्मरुडु, उद्गीरुडु, परिष्वङ्गुडु, पतङ्गुडु, क्षुद्रभुवु, घृणि. वाळ्ळनु चूसि देवकीदेवि सन्तोषिञ्चिन्दि. तरुवात वाळ्ळु तम लोकालकु वॆळ्ळिपोयारु. सुभद्रा परिणयं परीक्षित्तु मळ्ळी अडगडन्तो सुभद्रापरिणय वृत्तान्तान्नि अन्दुकुन्नाडु शुकमहर्षि. राजा! अर्जुनुडु तीर्थयात्रलु चेस्तू प्रभास तीर्थानिकि वॆळ्ळिनप्पुडु अक्कड तन मेनमाम कूतुरु सुभद्र गुरिञ्चि विन्नाडु. अयिते आमॆनु दुर्योधनुडिकि इव्वालनि आमॆ अन्न बलरामुडि आलोचन. यतिवेषंलो द्वारककु वच्चि भिक्षकोसं बलरामुडि मन्दिरानिकि वॆळ्ळाडु. अक्कड सुभद्रनु चूसि चूपुलु तिप्पुकोलेकपोयाडु. सुभद्र कूडा अतण्णि इष्टपडिन्दि. ऒकरोजु अक्कड ‘देवता महॆूत्सवं जरुगुतोन्दि. सुभद्र तन आन्तरङ्गिकुलतो रथम्पै बयटकु वच्चिन्दि. श्रीकृष्णुडि अनुमतितो अर्जुनुडु आमॆनु तीसुकुवॆळ्ळिपोयारु. ई वार्त विन्न बलरामुडु मॊदट कोपगिञ्चिना अन्दरू नच्चचॆप्पटन्तो मॆत्तपड्डाडु. दशम स्कन्धं 242 पोतन भागवतमु साटिलेनि मेटि कानुकल्नि अरणङ्गा इच्चि तन चॆल्लिनि अर्जुनुडितो पम्पाडु बलरामुडु. मिथिलानगर सन्दर्शनं श्रीकृष्णुडु ऒकसारि मिथिलानगरानिकि ऋषुलतो कलिसि वॆळ्ळाडु. अक्कड बहुळाश्वुडु अने जनक महराजु विदेह राज्यान्नि परिपालिस्तुन्नाडु. अदेकालंलो श्रुतदेवुडु अने ऒक महपण्डितुडु अक्कडे उण्डेवाडु. अतडु परमश्रीकृष्णभक्तुडु. निश्चलमैन भक्ति तप्प मरे कोरिका लेनिवाडु. दॊरिकिन दाण्ट्लोने तृप्तिगा जीवितान्नि गडिपेवाडु. अन्दुके श्रीकृष्णुडु अतडिकि दर्शनमिव्वालने मिथिलकु वॆळ्ळाडु. श्रीकृष्णुडिकि बहुळाश्वुडू ऒकटे श्रुतदेवुडू ऒकटे! इद्दरिनी ऒकेला आदरिञ्चाडु. ऒकेला पलकरिञ्चाडु. वाळ्ळ आह्वनम्मेरकु तन माय प्रभावन्तो इद्दरि इळ्ळकू ऒकेसारि ऋषुल्नि तीसुकॊनि वॆळ्लाडु. ते.गी. कृष्ण! परमात्म! यदुकुलक्षीरवार्धि पूर्णचन्द्रम! देवकीपुत्र्त! सुजन विनुत! नारायणाच्युत! वेदवेद्य! भक्तजनपोषपरितोष! परमपुरुष! (10-2-1187) अनि बहुळाश्वुडु स्तुतिञ्चाडु. श्रुतदेवुडू भक्तितो श्रीकृष्णुण्णि अर्चिञ्चाडु. ‘ना भक्तुल्नि पूजिस्ते नन्नु पूजिञ्चिनट्ले! परम भागवतोत्तमुलैन ना भक्तुल्नि निर्लक्ष्यं चेसि नाकु ऎन्नि उपचारालु चेसिना अवि नाकु पट्टवु’ अन्नाडु. कॊन्नाळ्ळु वाळ्ळिद्दरि आतिथ्यमू स्वीकरिञ्चि तर्वात द्वारककु वच्चाडु श्रीकृष्णुडु. श्रुतिगीतलु परीक्षित्तु ईसारि मरो सन्देहन्नि शुकमहर्षि मुन्दु उञ्चाडु. ‘महर्षी! परमात्मनु वेदवेद्युडु अण्टारु. मरि परमात्म निर्गुणुडू कदा! शब्दालु ऎला प्रतिपादिस्तायि?’ अनि अप्पुडु शुकमहर्षि - 243 ‘राजा! पूर्वं नारदुडु इदे प्रश्ननु नारायणमुनिनि अडिगाडु. पूर्वं सनन्दन महर्षि श्वेतद्वीपवासुलकु बोधिञ्चाडु. अदे श्रुतिगीत. भगवन्तुडु समस्त प्राणुलकू ज्ञानप्रदात. अन्दुके वेदालु अतण्णि कीर्तिस्तायि. अलाण्टि श्रुतिस्तोत्रं उपनिषत्तुलतो समानमैनदि’ अण्टू परमाद्भुतमू, परमात्मगुण, रूप, वैभवलीलल्नि आविष्करिञ्चेदी अयिन श्रुतिस्तोत्रान्नि उपदेशिञ्चाडु. आ तरुवात विष्णु सेवा प्राशस्त्यान्नि चॆप्तुन्नाडु. विष्णु सेवा प्राशस्त्यं राजा! शिवुडु सत्त्वरजस्तमोगुणालतो कूडिनवाडु. अन्दुवल्ल अतण्णि सेविञ्चे भक्तुलु ऐश्वर्यवन्तुलौतारु. श्रीहरि गुणातीतुडु. अतण्णि कॊलिचेवारु कूडा रागरहितुले. वाळ्ळु सम्पदलनु कोररु. ऒकप्पुडु श्रीकृष्णुडे इला चॆप्पाडु - ‘नाकु ए उत्तमुडिपै अनुग्रहं कलुगुतुन्दो अतडि समस्त सम्पदलू नेनु हरिस्तानु. धनं लेक अतडु एडुस्ताडु. बन्धुवुलन्ता अतण्णि वदिलिवेस्तारु. इला नाना कष्टालू पडि चिवरिकि ना भक्तुलतो स्नेहं चेस्ताडु. क्रमङ्गा विज्ञानान्नि पॊन्दि मोक्षान्नि पॊन्दुताडु. इदी मुक्तिनि पॊन्दे पद्धति. अला काक कॊन्दरु ऐश्वर्यं कोसं देवतलनु आराधिस्तारु. अक्कडिवरकू बागाने उन्दि. ऐश्वर्यं वच्चाक दान्नि प्रसादिञ्चिन देवतल्नि कूडा मरिचिपोतारु. कृतघ्नुल्ला प्रवर्तिस्तारु. दानिको कथ चॆबुतानु विनु. वृकासुर संहरं - भस्मासुर वृकासुरुडु शकुनि अने राक्षसुडिकि पुत्रुडु, परम दुर्मार्गुडु. ऒकसारि त्रिमूर्तुललो त्वरगा ऎवरु वराल्नि प्रसादिस्तारो चॆप्पमनि नारद महर्षिनि अडिगाडु. अन्दुकु नारदुडु शिवुडि पेरु चॆप्पाडु. वृकासुरुडु केदार तीर्थंलो घोर तपस्सु चेसि, तन शरीरान्नि मुक्कलु चेस्तू आहुतिगा वेस्तुन्नाडु. अयिना शिवुडु प्रत्यक्षं कालेदु. इक तन तलने खण्डिञ्चि अग्निकुण्डंलो वेयडानिकि सिद्धपड्डाडु. इन्तलो शिवुडु प्रत्यक्षमै ‘एं वरं कावालो कोरुको’ अन्नाडु. दशम स्कन्धं 244 पोतन भागवतमु अन्दुका राक्षसुडु - ‘स्वामी! ना हस्तान्नि ऎवरि शिरस्सुपै उञ्चुतानो वाडि शिरस्सु भस्ममैपोवालि’ अन्नाडु. शिवुडु अनुग्रहिञ्चाडु. ‘एदी नी वरं ऎला पनिचेस्तुन्दो चूडनी!’ अण्टू शिवुडि तलपैने चेयि पॆट्टालनि चूशाडु. शिवुडु परुगुतीशाडु. वीडु वॆण्टपड्डाडु. अप्पुडु श्रीहरि ताने स्वयङ्गा ऒक वटुवु वेषंलो ई राक्षसुडि वद्दकु वच्चाडु. विनयङ्गा नमस्करिञ्चि ‘वृकासुरा! एमिटि? चाला अलसिपोयिनट्लुन्नावु’ अन्नाडु. वृकासुरुडु अप्पटिदाका जरिगिनदन्ता चॆप्पाडु. अप्पुडु वटुवु नव्वि ‘पिच्चिवाडा! नुव्वु शिवुडि माटलु नम्मुतुन्नावा? दक्षुडि शापन्तो शिवुडु प्रेतलतो तिरुगुतुन्नाडु. अतडु वरं इव्वडं, नुव्वु नम्मडमूनू. अयिना नुव्वु अशुचिगा शिवुण्णि ताककूडदु. वॆळ्ळु. स्नानं चेसि सन्ध्यवार्चि रा! अप्पुडु चूद्दां आ शिवुडि सङ्गति.’ अन्नाडु. आ माटलु नम्मि वॆळ्ळिन वृकासुरुडु तन नॆत्तिमीद ताने चेयिपॆट्टुकॊनि मरणिञ्चाडु. (इतडिके भस्मासुरुडु अनि प्रसिद्धि.) भृगुवु परीक्ष परीक्षिन्महराजा! ऒकसारि ऒक विचित्र सङ्घटन जरिगिन्दि. सत्रयागं चेस्तुन्नप्पुडु ब्रह्मर्षुलकु त्रिमूर्तुललो ऎवरु गॊप्प अन्न सन्देहं कलिगिन्दि. दान्नि तीर्चे बाध्यत भृगुमहर्षि तीसुकुन्नाडु. नेरुगा ब्रह्मसभकु वॆळ्ळाडु. ब्रह्मकु नमस्करिञ्चाडु. स्तुतिञ्चकुण्डा निलबड्डाडु. ब्रह्मकु कोपं वच्चिन्दि कानी एमी अनलेदु, निग्रहिञ्चुकुन्नाडु. ईसारि शिवुडि दग्गरकु वॆळ्ळाडु. शिवुडु भृगुवुनु आदरिञ्चि कौगिलिञ्चु कोबोयाडु. अयिते भृगुवु अतण्णि निन्दिञ्चडं मॊदलुपॆट्ट्गा शिवुडिकि कोपं वच्चिन्दि. त्रिशूलन्तो अतण्णि चम्पबोयाडु. पार्वतीदेवि वल्ल शान्तिञ्चाडु. तरुवात भृगुवु वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळाडु. अक्कड लक्ष्मीदेवि ऒडिलो तलपॆट्टुकॊनि पडुकुन्नाडु परमात्म. भृगुवु नेरुगा वॆळ्ळि विष्णुवुनु गुण्डॆलपै तन्नाडु. नारायणुडु लेचि महर्षिकि नमस्करिञ्चाडु. अतडि राकनु गुर्तिञ्चनन्दुकु मन्निञ्चमनि वेडुकॊन्नाडु. ‘नी पाद स्पर्शवल्ल ना वक्षःस्थलं परिशुद्धमयिन्दि. इकनुण्डी इदे लक्ष्मीनिवासं’ अन्नाडु विनयङ्गा. 245 भृगुवुकु नोट माट रालेदु. वच्चि ब्रह्मर्षुलकु जरिगिनदन्ता चॆप्पाडु. ऎन्त पॆद्द तप्पुचेसिना ए विकारमू लेकुण्डा क्षमिञ्चडमे गॊप्पतनं अनि तॆलुसुकुन्नारु ब्रह्मर्षुलु. ब्राह्मण पुत्रुलु महराजा! द्वारकानगरंलो ऒक सङ्घटन जरिगिन्दि. ऒक ब्राह्मणुडिकि ऒक पुत्रुडु कलिगाडु. वीडु पुरिट्लोने कन्नुमूशाडु. आ ब्राह्मणुडु आ बालुडि मृत कळेबरान्नि राजद्वारं वद्द उञ्चि रोदिस्तुन्नाडु. ‘ई पापं राजुदे! सत्र्पवर्तन लेनि राजुवल्ले इलाण्टि अनर्थालु जरुगुतायि’ अन्नाडु. इदि इक्कडितो आगलेदु. आ तरुवात कूडा अतडिकि कॊडुकुलु पुडुतुन्नारु. पुरिट्लोने कन्नुमूस्तुन्नारु. प्रतिसारी राजद्वारं वद्द मृतशिशुवुनु उञ्चि राजुनु निन्दिञ्चेवाडु. तॊम्मिदोसारि अर्जुनुडु अतडि तिट्लु विन्नाडु. ‘श्रीकृष्णुडु सत्रयागंलो उन्नाडु. नेनुन्नानु. ईसारि नीकु पुट्टबोये बिड्डनु रक्षिस्तानु’ अन्नाडु. ‘बलरामकृष्णुले ना बिड्डल्नि कापाडलेकपोयारु. नी वल्ल ऎला अवुतुन्दि? अन्नाडु ब्राह्मणुडु. अप्पुडु अर्जुनुडु तन गुरिञ्चि चॆप्पि ‘मृत्युवुनैना जयिञ्चि नी बिड्डनु कापाडता’ ननि प्रतिज्ञ चेशाडु. अला चेयलेकपोते ‘नेनु अग्निलो प्रवेशिस्तानु’ अनी अन्नाडु. अप्पुडा ब्राह्मणुडिकि कॊन्त नम्मकं कलिगिन्दि. कॊन्तकालानिकि ब्राह्मणुडि भार्यकु नॆललु निण्डायि. प्रसविञ्चबोतोन्दि. अप्पुडा ब्राह्मणुडु अर्जुनुण्णि प्रार्थिञ्चाडु. तन गाण्डीवान्नि धरिञ्चि दिव्यास्र्तालनु सन्धिञ्चि पुरिटिण्टि चुट्टू दुर्भेद्यमैन पञ्जरान्नि बाणालतो निर्मिञ्चाडु. ब्राह्मणुडिकि कुमारुडु जन्मिञ्चि केर्केर्मनि एडुस्तू अन्दरू चूस्तुण्ड गाने आकाशंलोनिकि वॆळ्ळि मायमैपोयाडु. ब्राह्मणुडु गुण्डॆलु बादुकॊण्टू मळ्ळी राजप्रासादानिकि वच्चाडु. अक्कड श्रीकृष्णुडितोपाटू अर्जुनुडू उन्नाडु. वच्चि ‘प्रभू! ई अर्जुनुडु दशम स्कन्धं 246 पोतन भागवतमु चेतकानिवाडनि तॆलियक इतडि माटलु नम्मानु. कल्लबॊल्लि कबुर्लु चॆप्पि इतरुलने कादु तननु कूडा मोसं चेसुकॊने ई अर्जुनुडु ऒक व्यर्थुडु. इतडि चेतिलो आ गाण्डीवमॆन्दुकु? अदी व्यर्थमैनदे!’ अण्टू तीव्रङ्गा विरुचुकुपड्डाडु. अर्जुनुडु योगविद्यद्वारा यमपुरिकि वॆळ्ळिचूशाडु. ई बालुडु अक्कडा लेडु. इतर दिक्पालकुल नगरालकी वॆळ्लाडु. आ बालुडु अक्कडा लेडु. माट निलबॆट्टुकोलेकपोयानन्न बाधतो अग्नि प्रवेशानिकि सिद्धपड्डाडु. श्रीकृष्णुडु अतण्णि वारिञ्चि रथम्पै ऎक्किञ्चुकॊनि तीसुकुवॆळ्ळाडु. सप्तद्वीपालु, सप्तसागरालु, लोकालोक पर्वतं, चक्रवाळ पर्वतान्नि कूडा दाटिञ्चि तीसुकुवॆळ्ळाडु. चुट्टू चिम्मचीकटि. कळ्ळु पॊडुचुकुन्ना कनिपिञ्चनन्त चीकटि. अयिना गुर्रालु परुगुतीस्तूने उन्नायि. अन्दुक्कारणं श्रीकृष्णुडु चक्रान्नि प्रयोगिञ्चाडु. दानि नुण्डि देदीप्यमानमैन वॆलुगु. आ वॆलुगुलो रथं सागिपोयि ऒक समुद्रंलोनिकि प्रवेशिञ्चिन्दि. आ समुद्रंलो ऒक दिव्य भवनं. दानिलो वॆय्यि पडगल अनन्तुडु. अतडिपै ऒक दिव्यतेजस्सु प्रकाशिस्तोन्दि. आ ज्योतिस्वरूपुडे श्रीमन्नारायणुडु. पट्टुपीताम्बरं, कौस्तुभमाल, श्रीवत्सं, वनमाल धरिञ्चि प्रसन्नवदनन्तो विराजिल्लुतुन्नाडु आ स्वामि. श्रीकृष्णार्जुनुलिद्दरू आ देवदेवुडिकि नमस्करिञ्चारु. वाळ्ळनु चूसि वैकुण्ठवासुडु गम्भीरङ्गा - ‘मीरु ऎवरिकोसं वॆदुकुतुन्नारो आ ब्राह्मण पुत्रुण्णि नेने कावालनि तीसुकुवच्चानु. आ बालुडि कोसं मीरु वस्तारनि, मिम्मल्नि चूडालनि मुनीश्वरुलु कोरारु. अन्दुके इला रप्पिञ्चानु. मीरिद्दरू ना अंशतो पुट्टिनवाळ्ळे. धर्म संस्थापन कोसमे मीरु अवतरिञ्चारु. नरनारायणुलु अने ऋषुलु मीरु. पूर्णकामुलै लोकानिकि आदर्शवन्तङ्गा मसलुकोण्डि. धर्मान्नि आचरिञ्चि चूपिञ्चण्डि’ अन्नाडु. श्रीकृष्णार्जुनुलु नमस्करिञ्चारु. अप्पुडु श्रीमन्नारायणुडु आ ब्राह्मण पुत्रुलन्दरिनी तॆच्चि अप्पगिञ्चाडु. आ बालुरन्दरू वारि वारि वयसुलकु तग्ग रूपालु कलिगि उन्नारु. 247 श्रीकृष्णुडु वारिनि ब्राह्मणुडिकि अप्पगिञ्चाडु. आ ब्राह्मणुडि आनन्दानिकि अवधुल्लेवु. श्रीकृष्णुण्णि भक्तिप्रपत्तुलतो स्तुतिञ्चाडु. राजा! ई विधङ्गा वेदवेद्युडैन श्रीकृष्णुडु अत्यन्त वैभवङ्गा द्वारका नगरं वेञ्चेसि धर्मसंस्थापन चेस्तू प्रकाशिञ्चाडु. तनवारिनन्दरिनी आनन्द प्रवाहंलो ओललाडिञ्चाडु. ऎन्तटि मूढुलैना ऒकसारि हरिकीर्तन विण्टे चालु, मुक्तिनि पॊन्दुतारट! आ विश्वात्मुण्णि चूस्तू कौगिलिञ्चुकॊण्टू, स्पृशिस्तू, अतडितो कलिसि नव्वुतू माट्लाडुतू उण्टे इङ्क आनन्दपारवश्यंलो मुनिगिपोवडंलो आश्चर्यमे मुण्टुन्दि? राजा! वेदोक्त पद्धतिलो आ श्रीकृष्णुडु गृहस्थाश्रमं स्वीकरिञ्चि उत्तमु लन्दरिकी ताने दिक्कै आदर्शङ्गा निलबडि ऒक संसारिला नटिस्तुन्नाडय्या! रुक्मिणी मॊदलैन अन्तःपुरकान्तलकु प्रद्युम्नादुलुगा पुत्रुलु जन्मिञ्चारु कदा! वाळ्ळु जगत्र्पसिद्धुलय्यारु. त्रिवक्रकु श्रीकृष्णुडिवल्ल उपश्लोकुडु अने पुत्रुडु कलिगाडु. अतडु श्रीकृष्णभक्तुडै नारदुडिकि शिष्युडै ‘वैष्णवस्मृति’ अने ग्रन्थान्नि रचिञ्चाडु. इदि मुक्तिमार्गान्नि चूपॆ अद्भुत ग्रन्थं. श्रीकृष्णुडि वंशं पुत्रपौत्राभिवृद्धिगा सिरुलतो तुलतूगुतू विलसिल्लिन्दि. दशम स्कन्धं b 248 पोतन भागवतमु महर्षुल आगमनं कॊन्नाळ्ल तर्वात विश्वामित्रुडु, वसिष्ठुडु, नारदुडु मॊदलैन महर्षुलु श्रीकृष्णुडि दर्शनानिकि वच्चारु. श्रीकृष्णुण्णि चूसि नमस्करिञ्चारु. श्रीकृष्णुडु वाळ्ळनु सादरङ्गा आह्वनिञ्चि अर्घ्यपाद्यालनु समर्पिञ्चि बङ्गारु सिंहसनालपै कूर्चोबॆट्टाडु. अप्पुडा मुनुलु श्रीकृष्णुण्णि - शा. तरणम्बुलु भवजलधिकि हरणम्बुलु दुरितलतल कागममुल का भरणम्बु लार्तजनुलकु शरणम्बुलु नीदु दिव्यचरणम्बु लिलन् (11-15) ‘श्रीकृष्णा! नी दिव्यमैन पादालु संसारसागरान्नि दाटिस्तायि. पापाल तीगलनु त्रुञ्चिवेस्तायि. आगमालकु आभरणालु अवुतायि. आर्तुलकु शरणवुतायि’ अण्टू स्तुतिञ्चि अक्कण्णुञ्चि ‘पिण्डारकं’ अने पुण्यतीर्थानिकि वॆळ्ळारु. अदेसमयंलो यादव बालकुलु कॊन्दरु पॊगरॆक्कि इष्टं वच्चिनट्लु आडुकुण्टुन्नारु. साम्बुडिकि ऒक अन्दमैन आडवेषं वेसि कट्टू बॊट्टू दिद्दि तयारुचेसि महर्षुल वद्दकु तीसुकॆळ्ळारु. साष्टाङ्गपड्डारु. साम्बुण्णि चूपिस्तू- महर्षुलू! इदुगो! ई अम्मायि कडुपुतो उन्दि. लोपल उन्नदि आडपिल्ला, मगपिल्लवाडा! अनि अडिगारु वॆटकारङ्गा. एकादश स्कन्धं 249 महर्षुलकु कोपं वच्चिन्दि. ‘मम्मल्ने आटपट्टिस्तारा! चूडण्डि. यदु वंशान्नि नाशनं चेसे रोकलि ऒकटि ई बालिककु पुडुतुन्दि पॊण्डि’ अनि शपिञ्चारु. मुसलं पुट्टिन्दि यादवुल मत्तु वदिलिपोयिन्दि. वणिकिपोयारु. साम्बुडिकि कट्टिन चीरनु विप्पुतू उण्टे लोपलि नुण्डि ऒक रोकलि ऊडिपडिन्दि. दान्नि तीसुकुवॆळ्ळि श्रीकृष्णुडिमुन्दु पॆट्टि जरिगिन्दन्ता चॆप्पारु. वासुदेवुडु एमी तॆलियनट्लु विन्नाडु. ‘मीलाण्टि मूर्खुलॆक्कडा उण्डरु. मी पॊगरुबोतुतनं वल्ल भारी मूल्यं चॆल्लिञ्चुकोवलसि वस्तोन्दि. महर्षुल शापानिकि तिरुगुलेदु. समुद्रं ऒड्डुन ऒक पॆद्द कॊण्ड उन्दि. दानि बण्डमीद ई रोकलिनि अरगदीसि समुद्रं नीळ्ळलो कलपण्डि’ अन्नाडु. वाळ्ळु अलागे चेशारु. रोकलि चिवर उण्डे इनुप मुक्कनु मात्रं अरगदीयलेक अलागे समुद्रंलोनिकि विसिरेशारु. दान्नि ऒक चेप मिङ्गिन्दि. आ चेप ऒक बोयवाडि वललो चिक्किन्दि. दानि कडुपुलो उन्न इनुपमुक्कनु तन बाणं चिवर मुलिकिगा तगिलिञ्चुकॊन्नाडु आ बोयवाडु. विदेहर्षभ संवादं राजा! ऒकसारि नारदुडु द्वारककु वच्चि श्रीकृष्णुण्णि सन्दर्शिञ्चडानिकि वॆळ्ळाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु ‘मुनीन्द्रा! मोक्षान्नि पॊन्दे धर्माल्नि उपदेशिञ्चण्डि’ अनि वेडुकॊन्नाडु. नारदुडु चॆप्पटं प्रारम्भिञ्चाडु. स्वायम्भुवुडु अने मनुवुकु प्रियव्रतुडु अने कुमारुडु जन्मिञ्चाडु. अतडि पुत्रुडु आग्नीध्रुडु. लोकप्रसिद्धुडु. इतडि कॊडुकु नाभि. इतडु बलिचक्रवर्ति स्नेहितुडु. शत्रुराज्यालनु आक्रमिञ्चि राज्यान्नि विस्तरिम्पजेशाडु. एकादश स्कन्धं 250 पोतन भागवतमु ई नाभिकुमारुडे ऋषभुडु. इतडु हरिभक्तुडु. इतडिकि नूरुगुरु कुमारुलु. वारिलो भरतुडु पॆद्दवाडु. इतडु गॊप्प तपस्सम्पन्नुडु. श्रीमन्नारायणुडिकि प्रीतिपात्रुडै मुक्तिनि पॊन्दाडु. इतडि पेरु मीदे भूखण्डानिकि भरतवर्षं अने पेरु वच्चिन्दि. तक्किन तॊम्मिदिमन्दी तॊम्मिदि खण्डालकु पालकुलय्यारु. मरो 81 मन्दि ब्राह्मणत्वान्नि स्वीकरिञ्चारु. इक मिगिलिन तॊम्मिदिमन्दि ब्रह्मविद्योपासकुलै देवलोकाल्लो विहरिञ्च सागारु. अला तिरुगुतू वाळ्ळु ‘विदेहुडु’ अने राजु चेस्तुन्न यज्ञवाटिककु वच्चारु. यज्ञं मुगिम्पुकु वच्चिन्दि. विदेहुडु वाळ्ळनु सत्करिञ्चि - ‘महत्मुलारा! तमरु श्रीहरि भक्तुलु. ई लोकंलो अल्पबुद्धुलू, नीरसुलू तरिञ्चे मार्गं एदैना उण्टे सॆलविय्यण्डि. जन्मलन्निण्टिलो मानव जन्म दुर्लभं. आ जन्मनु पॊन्दि अन्दुलो हरिभक्तिनि पॊन्दडं मरी कष्टं. प्रपत्ति मार्गं द्वारा सेविञ्चे भक्तुलकु श्रीहरि सारूप्यं ऎला प्रसादिस्ताडु?’ अनि विनयङ्गा अडिगाडु. अप्पुडु वारिलो कवि अने महनुभावुडु इला चॆप्पटं मॊदलुपॆट्टाडु. ‘राजा! काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्यालनु अरिषड्वर्गं अण्टारु. दारेषण, धनेषण, पुत्रेषण अनेवि एषणत्रयं. वीटिलो चिक्कुकुन्न मानवुडिकि माधवुण्णि सेविञ्चालन्न आलोचन ऎला कलुगुतुन्दि? विश्वमू, आत्मा वेरनुकॊनेवाडु नित्यमू भयपडुतू बतुकुताडु. वाडु परब्रह्मनु चेरुकोलेडु. कं. करणत्रयम्बुचेतनु नरु" डे कर्मम्बु सेयु नयॊ्यैवेळन् हरिकर्पणमनि पलुकुट परुवडि सुज्ञान मण्ड्रु परममुनीन्द्रुल् (11-42) 251 त्रिकरण शुद्धिगा चेसे प्रति कर्मनू ‘कृष्णार्पणं’ अनि चेयडमे असलैन ज्ञानं. इदि महर्षुलमाट. ज्ञानं, अज्ञानं मध्य ऊगिसलाडुतू उण्टे मति भ्रमिस्तुन्दि. काबट्टि गुरुवुने देवुडिगा भाविञ्चि श्रीहरिनि अर्चिञ्चालि. कानी मानवुडु कोरिकलु अने कलललो तेलिपोतुण्टाडु. दानिवल्ल ए प्रयत्नमू निलबडदु. कोरिकलनु नियन्त्रिञ्चुकॊनि हरिनि ध्यानिञ्चेवाडिकि मुक्ति करतलामलकं. सर्व काल सर्वावस्थल्लोनू श्रीकृष्ण सङ्कीर्तन वीनुलविन्दुगा विनालि. हरिनाम स्मरण चेयालि. लोकानिकि अण्टी मुट्टनट्टु उण्टू विश्वमयुण्णि कीर्तिञ्चालि. ई सृष्टि अन्ता विष्णुमयं अनि तॆलुसुकोवालि. भेदबुद्धि ए मात्रमू पनिकिरादु’ अन्नाडु. आ माटलु विन्न विदेहराजु ‘भागवत धर्मं अण्टे एमिटि? भागवतुल्नि गुर्तिञ्चडं ऎला? अनि अडिगाडु. दानिकि ‘हरि’ अने महमुनि इला चॆप्तुन्नाडु- शङ्खचक्रादि आयुधधारियै श्रीमन्नारायणुडु नित्यमू मन आत्मलोने उन्नाडनि विश्वसिञ्चेवाडे भागवतुडु. चतुर्वर्णालु, आश्रमालू, कर्ममू, धर्ममू वीटिलो वेटिलोनू मुनिगिपोकुण्डा भक्तिमार्गान्नि आश्रयिञ्चडं द्वारा श्रीहरिनि ध्यानिञ्चेवाडे परम भागवतोत्तमुडु’ अन्नाडु. तर्वात अन्तरिक्षुडु अने मरो मुनि - ‘राजा! परमपदं, परमेश्वरुडु, श्रीकृष्णुडु इला ऎवरु ए पेरुतो पिलिचिना अतडे श्रीमन्नारायणुडु. विश्वमन्ता निण्डि उन्न परञ्ज्योति स्वरूपुडु अन्नाडु.’ अदि विन्न विदेहराजु मळ्ळी इला अडिगाडु- ‘महर्षुलारा! मरि ई मायनु अन्तमॊन्दिञ्चुकॊनि वैकुण्ठानिकि चेरे मार्गं एमिटो सॆलविय्यण्डि’ अनि. अप्पुडु प्रबुद्धुडु अने मुनि अन्दुकॊनि- ‘राजा! रोजुरोजुकी मानवुडि आयुष्षु तरिगिपोतू उण्टुन्दि. अयिना ममकारं चावदु. भवबन्धाललो चिक्कुकॊनि, दानि नुण्डि विडिवडे दारि तोचदु. विवेकं कलगदु. चीकटिलो उण्टू भूत भविष्यत् वर्तमानालु तॆलियनि गुड्लगूबललागा मानवुलु पुट्टुक, मुसलितनं, रोगालु, आपदलु, मृत्युमा एकादश स्कन्धं 252 पोतन भागवतमु कल शरीरान्ने ऎन्तो मेलैनदिगा भाविस्तारु. इन्द्रिय विषयालपै आसक्ति पॆञ्चुकुण्टारु. तामॆवरो तॆलुसुकोलेरु. विरक्ति मार्गं अन्तकन्ना तॆलियदु. अज्ञानन्तो एवेवो दारुलु तॊक्कुतारु. अटुवण्टि मूढमानवुल्नि दग्गरकु रानिव्वकूडदु. तानू वॆळ्ळकूडदु. सद्गुरुवुनु आश्रयिञ्चि उत्तममैन भागवत धर्मान्नि अनुष्ठिञ्चालि.
  227. सत्त्वगुणन्तो उण्डटं, 2. भूतदय, 3. हरिकथ अने अमृतान्नि आस्वादिञ्चडं, 4. इन्द्रिय निग्रहं, 5. साधुसङ्गमं, 6. सज्जन साङ्गत्यं,
  228. ब्रह्मचर्य व्रतं, 8. विनयसम्पद, 9. शुचिगा उण्डटं, 10. तपस्सु,
  229. क्षम, 12. मौनव्रतं, 13. वेदशास्र्तालनु अध्ययनं चेयडं, 14. अहिंस, 15. सुखदुःखालपट्ल सहनं, 16. ईश्वरुडु अन्तटा उन्नाडनि विश्वसिञ्चडं, 17. मोक्षं पॊन्दालने कोरिक, 18. दुष्टुलकु दूरङ्गा उण्डटं, 19. नारवस्र्तालु धरिञ्चडं, 20. लभिञ्चिनदानितोने सन्तृप्तिनि पॊन्दटं, 21. वेदान्तशास्र्ताल अर्थालनु तॆलुसुकोवालने कुतूहलं, 22. इतर देवतलनु निन्दिञ्चकुण्डा उण्डटं, 23. त्रिकरणशुद्धि, 24. सत्यव्रतं,
  230. शमदमादि गुणालु कलिगि उण्डटं, 26. ऐश्वर्यान्नि परमेश्वरार्पणङ्गा भाविञ्चडं, 27. भक्तुलु कानिवारिनि आश्रयिञ्चकुण्डा उण्डटं. इवि भागवतुलु पाटिञ्चाल्सिन धर्मालु. कं. हरिदासुल मित्रत्वमु मुररिपुकथ लॆन्निकॊनुचु मोदमुतोडन् भरिताश्रु पुलकितुण्डै पुरुषु"डु हरिमाय गॆल्चु भूपवरेण्या! (11-55) हरिभक्तुलतो स्नेहं चेस्तू हरिलीललनु तलचुकॊण्टू कळ्ळलो आनन्दबाष्पालतो ऒळ्ळु पुलकरिस्तू उण्टे अप्पुडु हरिमायनु गॆलुस्ताडु’ अन्नाडु. दानिकि द्रमिळुडु अने महर्षि तन माटल्नि जोडिञ्चि इला चॆप्तुन्नाडु- ‘राजा! आकाशंलोनि चुक्कल्नि लॆक्कपॆट्टवच्चु. भूमिपैगल मट्टिरेणुवुल्नि कूडा लॆक्कबॆट्टवच्चु. ब्रह्मदुलु सैतं नारायण लीलल्नि वर्णिञ्चलेरु’ अन्नाडु. 253 अप्पुडु विदेहराजु ‘मन्दबुद्धुलकु सैतं मोक्षान्नि पॊन्दे मार्गमेदैना उन्दा? उण्टे सॆलविय्यण्डि’ अनि अडिगाडु. दानिकि ‘चमसुडु’ अने महर्षि बदुलिव्वसागाडु- राजा! श्रीहरि शरीरं नुण्डे वर्णालन्नी पुट्टायि तॆलुसुकदा! ब्राह्मणुलु वेदकर्मल्नि आचरिस्तू कूडा गर्वन्तो भक्तुल्नि अवहेळन चेस्तू ‘निरयं’ अने नरकंलो पडतारु. जीवहिंस चेसेवारिकी पापं तप्पदु. स्र्तीलोलुरकू नरक बाधलु चुट्टुकॊण्टायि. प्रापञ्चिक मोहलतो हरिनि मरिचिनवाडु दुर्गतुल पालवुताडु. अलाकाक निरन्तर हरिनामस्मरण चेस्ते ऎन्तटि जडुडैना मुक्तिनि पॊन्दुताडु अन्नाडु. अप्पुडु विदेहराजु - ‘महनुभावुलारा! आ श्रीपति ए रीतिन वर्तिस्ताडो तॆलुसुकोवालनि उन्दि’ अन्नाडु. दानिकि ‘करभाजनुडु’ इला अण्टुन्नाडु. ‘आ स्वामिकि अनन्तरूपालु. अनन्त नामालु. दुष्ट शिक्षण, शिष्ट रक्षण कोसमे आ स्वामि अवतरिस्ताडु. कृतयुगंलो तॆल्लनि देहकान्तितो, नालुगु बाहुवुलतो, जटावल्कलालु धरिञ्चि तपस्विगा वर्धिल्लुताडु. ई स्वरूपान्नि महर्षुलु हंसुडिगा, सुवर्णुडिगा, वैकुण्ठुडिगा कीर्तिस्तारु. त्रेतायुगंलो स्वामि रङ्गु रक्तवर्णं. हिरण्यकेशुडै, वेदस्वरूपुडै विष्णुडु, यज्ञुडु, पृश्निगर्भुडु अने अनेक नामालतो प्रकाशिस्ताडु. द्वापरंलो श्यामल वर्णं ई परन्धामुडिदि. पीताम्बरान्नि धरिस्ताडु. रॆण्डु चेतुलु उण्टायि. दिव्यायुधालु धरिञ्चि कौस्तुभवनमालिकाधारियै जनार्दन वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न अनिरुद्ध नारायण विश्वरूप सर्वभूतात्मकादि नामालतो प्रवर्तिल्लुतू उण्टाडु. कलियुगंलो कृष्णवर्णुडै ‘कृष्ण’ अने पेरुतो भक्तसंरक्षण कोसं आविर्भविञ्चि प्रस्तुतुल्नि पॊन्दुताडु. ‘हरि राम नारायण नृसिंह कंसारि नलिनोदर’ मॊदलैन नामालतो मुनीन्द्रुलु नुतिस्तारु. देवकी वासुदेवुलारा! ई विधङ्गा ऋषभ कुमारुलु आ विदेहराजुकु भगवत् स्वरूपान्नि विवरिञ्चि अन्तर्धानमय्यारु. एकादश स्कन्धं 254 पोतन भागवतमु तरुवात विदेह राजु ज्ञानयोगं द्वारा मुक्तिनि पॊन्दाडु अनि नारदुडु चॆप्पाडनि शुकयोगीन्द्रुडु चॆप्पगाने परीक्षित्तु ‘मुनीन्द्रा! यादवुलु चिवरिकि एमय्यारु? आ वृत्तान्तं चॆप्पण्डि’ अनि कोरडन्तो चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु शुकमहर्षि. वैकुण्ठानिकि आह्वनं ‘ओ परन्धामा! वैकुण्ठवासा! नुव्वु भूमिपै अवतरिञ्चिन सङ्कल्पं नॆरवेरिन्दि स्वामी! तिरिगि नी निजस्थानानिकि वेञ्चेयवय्या!’ अनि ब्रह्मदि देवतलु श्रीहरिनि प्रार्थिञ्चारु. तानु अवतरिञ्चि अप्पटिकि 125 संवत्सरालु अयिन्दि. सरेनन्नाडु सर्वात्मुडु. तानु अवतारं चालिञ्चडानिकि कावलसिन रङ्गान्नि सिद्धं चेसुकुन्नाडु. द्वारकलो दुश्शकुनालु कनिपिस्तुन्नायि. वाटिनि चूसि श्रीकृष्णुडु यादवुलन्दरिनी पिलिचि ‘यादवुलारा! मीरु इङ्क इक्कड उण्डटं मञ्चिदि कादु. वॆण्टने प्रभास तीर्थानिकि वॆळ्ळण्डि’ अनि आज्ञापिञ्चाडु. यादवुलु द्वारकनु विडिचिपॆट्टारु. श्रीकृष्णुडि उपदेशं अप्पुडु उद्धवुडु मॆल्लगा श्रीकृष्णपरमात्मनु समीपिञ्चि- ‘स्वामी! नुव्वु लेनि ई लोकंलो में ऎला बतुकुतामय्या! नीतो गडिपिन आ क्षणालु पदेपदे गुर्तुकुवस्तुन्नायि’ अन्नाडु विचारङ्गा. अप्पुडु परन्धामुडु- ‘उद्धवा! नेटिकि सरिग्गा एडोरोजुन द्वारका नगरं समुद्रंलो मुनिगि पोतुन्दि. यदुवंशं नशिञ्चिपोतुन्दि. तरुवात कलियुगं प्रारम्भमवुतुन्दि. आ युगंलो मानवुलु धर्मविरहितुलै, रोगपीडितुलै, अन्यायपरुलै, मन्दमतुलै अल्पायुवुलै इङ्का अनेक अवलक्षणालतो उण्टारु. नास्तिकुलै ऒकरिनॊकरु मॆच्चुकोरु. काबट्टि नुव्वु वीटिकि अतीतङ्गा नडुचुकोवालि सुमा! 255 अन्दर्नी विडिचि पुण्यतीर्थाल्नि सेविञ्चु. इन्द्रियाल्नि अदुपुलो उञ्चुको! ई वस्तुवुलन्नी अशाश्वतालनि तॆलुसुको! मोहन्नि त्रुञ्चुको! ई विश्वमे नन्नुगा भाविञ्चि प्रवर्तिञ्चु’ अन्नाडु. दानिकि उद्धवुडु सन्तोषन्तो श्रीकृष्णुडिकि नमस्करिञ्चि- ‘महत्मा! सन्यासाश्रमं स्वीकरिञ्चि निन्नु पॊन्दालनुकोवडं पामरुलकु साध्यं कानि पनि. पोनी संसारंलो उण्टू मुक्तिनि पॊन्दालण्टे नी मायलो पडि भवाब्धिनि दाटलेक अक्कडे मळ्ळीमळ्ळी पुडुतू अलमटिस्तू उण्टारु. अयिते नी भक्तुलु मात्रं आ मायनु निरसिस्तारु. यतुलकैना संसारुलकैना नी नामस्मरण मुक्तिनि प्रसादिस्तुन्दि. काबट्टि नेनु नी चरणालने आश्रयिस्तानु. नन्नु अनुग्रहिञ्चु. नापै नी दयनु प्रसरिम्पजेयि’ अनि वेडुकॊन्नाडु. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु ‘उद्धवा! पुरुषुडिकी, आत्मकू गुरुवु आत्मे. ई सत्यं तॆलुसुको! सन्मार्गंलो वर्तिस्तू ना निवासानिकि चेरुको! समस्त जीवजालंलो मानवजन्म श्रेष्ठमैनदि. वारिलो योगीन्द्रुलु श्रेष्ठुलु. वारिलो परम योगीन्द्रुलु कॊन्दरु उण्टारु. वीळ्ळु इङ्का श्रेष्ठुलु. ऎन्दुकण्टे नन्नु सत्त्वगुणस्वरूपुडिगा तॆलुसुकॊनि तम आत्मललो जीवात्म परमात्मलनु ऐक्यं चेसि कॊलुस्तारु. वाळ्ळे परमज्ञानुलु. भूमि नुण्डि ओर्पु, वायुवु नुण्डि परोपकारं, नीटिवल्ल शुचित्वं, अग्निवल्ल निर्मलत्वं इला पञ्चभूताल नुण्डि, प्रकृतिलो नुण्डि जीवराशुल नुण्डि, प्रति वस्तुवु नुण्डि सद्गुणालनु ग्रहिस्तारु. अरिषड्वर्गान्नि जयिञ्चि, शरीर पोषण कोसं मात्रमे आहरं स्वीकरिस्तू इन्द्रियाल्नि जयिञ्चि आत्मनिष्ठतो नालो ऐक्यमौतारु. धनम्पै आशगल मानवुलु ऊहपोहलु तॆलियक शरीरान्नि कष्टपॆट्टु कुण्टारु. भगवन्तुडिपैन मात्रमे मनस्सुनु लग्नं चेस्ते मानवुलु मुक्तिनि पॊन्दुतारु. एकादश स्कन्धं 256 पोतन भागवतमु योगीश्वरुलु विद्यगानी अविद्यगानी ना मायगाने भाविस्तारु. पशु मार्गंलो ऎन्नटिकी प्रवर्तिञ्चरु. अला योगीश्वरुल्ला सुखालपै व्यामोहन्नि त्रुञ्चुकॊनेवाळ्ळु मात्रमे मुक्तिनि पॊन्दुतारु. काबट्टि सर्वमू विष्णुमाय अनि तॆलुसुको! अन्नाडु श्रीकृष्णुडु. अप्पुडु उद्धवुडु ‘परमात्मा! नी रूपान्नि ए विधङ्गा तॆलुसुकोवालो सॆलविय्यि’ अन्नाडु. दानिकि श्रीकृष्णुडु अवधूत यदुसंवादान्नि चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. अवधूत - यदु संवादं ऒकसारि यदुचक्रवर्ति वद्दकु ऒक अवधूत वच्चाडु. अतण्णि चूसि यदु चक्रवर्ति ‘योगीन्द्रा! तमरु ऎक्कड नुण्डि वस्तुन्नारु?’ अनि अडिगाडु. ‘राजा! नेनु 24 मन्दि गुरुवुल द्वारा विज्ञानिनै वच्चानु’ अन्नाडु आ योगि. अदि विन्न राजु तनकु मुक्तिमार्गं बोधिञ्चमनि अतण्णि प्रार्थिञ्चाडु. आ अवधूत इला सॆलविस्तुन्नाडु. ‘राजा! परधन, परदार, परदूषण, परवस्तु चिन्तनलनु मुन्दु विडिचि पॆट्टालि. रोगंवल्लनो मुसलितनंवल्लनो शरीरं कृशिञ्चक मुन्दे श्रीहरि भक्तिनि अलवरचुकोवालि. अप्पुडे कर्मनुञ्चि विमुक्ति. भोगालपै आसक्ति उण्टे दुःखं तप्प सुखं ऎक्कडिदि? आ दुःखंवल्ल नैतिकत नशिस्तुन्दि. नीको कथ चॆबुतानु विनु. ऒक अडविलो ऒक पावुरं तन भार्यतो कलिसि कापुरमुण्टोन्दि. वाटि अन्योन्यतकु प्रतिरूपाल्ला कॊन्नि पिल्ललु पुट्टायि. अवि स्वेच्छगा तिरुगुतू ऒकसारि तल्लितो सह ऒक वललो चिक्कुकुन्नायि. अदि चूचिन मगपावुरं विलविललाडिन्दि. आ दुःखं दानिनि बागा कृङ्गदीसिन्दि. व्यामोहं ऎन्त पनिचेस्तुन्दो चूशावा? निरन्तरं हरिने ध्यानिञ्चे योगुलु अन्नि प्राणुललोनू विष्णुमूर्ते उन्नाडनि तॆलुसुकॊण्टारु. दानिवल्ल 257 व्यामोहं नशिस्तुन्दि. ई कपोत कथ द्वारा व्यामोहं पनिकिरादन्न सन्देशं अन्दुतुन्दि. अलागे भूमिनुण्डि ओर्पु, वायुवुनुण्डि परोपकारं, नीटिवल्ल शुचित्वं, अग्निवल्ल निर्मलत्वं, इला पञ्चभूताल नुण्डि, प्रकृतिलोनुण्डि, जीवराशुल नुण्डि, प्रति वस्तुवुनुण्डि मनं नेर्चुकोवालि. बतकडं कोसमे आहरं स्वीकरिञ्चालि. जनसञ्चारंलेनि पर्वतालपैना, अरण्याललोनू जीविस्तू इन्द्रियाल्नि जयिञ्चि आत्मनिष्ठतो उण्टू नालो ऐक्यमव्वालि. योगुलु इलागे जीविस्तारु. धनम्पै आशगल मानवुलु नानाकष्टालु पडतारु. दीनिकि मिथिलानगरंलो उन्न पिङ्गळ अने वेश्य चक्कटि उदाहरण. ईमॆनु ऒक विटुडु पोषिस्तुन्नाडु. अयिना धनम्पै आश चावक ऎन्दरो विटुलकोसं वॆम्पर्लाडेदि. चिवरिकि अलसिपोयि शरीरं क्षणभङ्गुरमेननि ग्रहिञ्चिन्दि. श्रीहरि पादपद्मालनु आश्रयिञ्चिन्दि. मुक्तिनि पॊन्दिन्दि. नीकु मरो कथ चॆप्तानु विनु. पूर्वं कनकावतीपुरंलो ऒक ब्राह्मणुडु उण्डेवाडु. अतडिकि ऒक पुत्रिक उण्डेदि. आमॆ रत्न कङ्कणाल्नि धरिञ्चेदि. आमॆ ऒड्लु दञ्चेटप्पुडु आ कङ्कणालु म्रोगुतू उण्डेवि. आ म्रोतनु भरिञ्चलेक चेतिकि ऒक्क कङ्कणान्ने उञ्चुकॊनि तक्किन वाटिनि तीसिवेसिन्दि. अलागे भगवन्तुडॊक्कडिपैन मात्रमे मनस्सुनु लग्नं चेस्ते मानवुलु मुक्तिनि पॊन्दुतारु. योगीश्वरुलु विद्यगानी अविद्यगानी ना मायगाने भाविस्तारु. पशु मार्गंलो ऎन्नटिकी प्रवर्तिञ्चरु. अला योगीश्वरुल्ला सुखालपै व्यामोहन्नि त्रुञ्चुकॊनेवाळ्ळु मात्रमे मुक्तिनि पॊन्दुतारु. काबट्टि सर्वमू विष्णुमाय अनि तॆलुसुको!’ अन्नाडु श्रीकृष्णुडु. अप्पुडु उद्धवुडु ‘परमात्मा! नी रूपान्नि ए विधङ्गा तॆलुसुकोवालो सॆलविय्यि’ अन्नाडु. दानिकि श्रीकृष्णुडु चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. उद्धवा! भक्तिभावन्तो, दयाहृदयन्तो, मितभाषियै, सत्यव्रतुडै, ए पनिचेसिना ‘कृष्णार्पणं’ अनुकॊण्टू चेसेवाडु परमभागवतुडु. ना कथल्नि एकादश स्कन्धं 258 पोतन भागवतमु विण्टू, ध्यानिस्तू, स्तुतिस्तू कालं गडुपुतू ना भक्तुलकु आतिथ्यं इस्तू वाळ्ळनु सेविञ्चेवाडु परमभागवतुडु. अटुवण्टि पुण्यात्मुडु बतिकुन्नन्त कालमू नन्ने पॊन्दुताडु. मरणिञ्चाक कूडा ना स्थानान्नि चेरुकॊण्टाडु. सनकसनन्दनादि महर्षुलु, अम्बरीष विभीषण रुक्माङ्गदादि भागवतुलु, मथुरानगरंलो बलरामुडु, गोपिकलु इलागे मुक्तिनि पॊन्दारु.’ अन्नाडु. तरुवात उद्धवुडु ध्यानं गुरिञ्चि चॆप्पमनि वेडुकॊन्नाडु. श्रीकृष्णुडु चॆप्तुन्नाडु. उद्धवा! एकान्तङ्गा कूर्चॊनि तॊडलमीद चेतुल्नि सन्धिञ्चि, मुक्कुकॊन पैने दृष्टिनि निलिपि प्राणायामं चॆय्यालि. आ प्राणायामं द्वारा नन्नु हृदयंलो निलुपुकॊनि, 18 रकाल धारणसिद्धुल्नि तॆलुसुकॊनि, इन्द्रियालनु बन्धिञ्चि, मनस्सुनु आत्मलो चेर्चि, आत्मनु आत्मतो लग्नं चेस्ते ब्रह्मपदान्नि पॊन्दवच्चु. इदे प्रश्ननु इन्तकु मुन्दु अर्जुनुडु कुरुक्षेत्र सङ्ग्रामंलो वेशाडु. अतडिकि चॆप्पिनदे नीकू चॆप्तुन्नानु. ई विश्वं ना स्वरूपमे अनि तॆलुसुको! देवतललो ब्रह्म, वसुवुललो अग्नि, आदित्युललो विष्णुवु, रुद्रुललो नीललोहितुडु, ब्रह्मललो भृगुवु, ऋषुललो नारदुडु, धेनुवुललो कामधेनुवु, सिद्धुललो कपिलुडु, दैत्युललो प्रह्लदुडु, ग्रहललो चन्द्रुडु, एनुगुललो ऐरावतं, गुर्राललो उच्चैश्र्शवं, नागुललो वासुकि, मृगाललो सिंहं इला अन्नी ना विभूतुले. ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज’. अन्नि धर्माल्नि विडिचिपॆट्टि नन्नु मात्रमे शरणु वेडुको! अन्न गीतावाक्यान्नि उपदेशिञ्चि, मरिन्नि मुख्यमैन विषयालनु इला बोधिस्तुन्नाडु- ‘मौनव्रतं, ब्रह्मचर्यं, सहनं, जपं, तपं, अतिथि सत्कारं, परहितं, दॊङ्गबुद्धि लेकपोवडं - इटुवण्टिवि नियमालु. इन्द्रियालनु अदुपुलो उञ्चुकोवडं, शत्रुवुल्नी मित्रुल्नी ऒकेला चूडगलगडं, शमं अण्टारु. 259 मूढुलकु ज्ञानान्नि उपदेशिञ्चडं, कोरिकलनु विडिचिपॆट्टटं, समदर्शनं, वैष्णवभक्ति, प्राणायामं, मनोनैर्मल्यं वीटिनि विद्यलु अण्टारु. शमदमादि गुणालु लेकपोवडं, नापै भक्ति लेकपोवडं, अविद्य. चित्तशुद्धितो ऎप्पुडू सन्तृप्तिगा जीविञ्चडमे दमं. इलाण्टि नियमालु, गुणालु कलिगि, नापै भक्तितो मॆलगडमे सुखं. नन्नु तॆलुसुकोलेक तमोगुणंलो उण्डटमे दुःखं. बन्धुवुलपट्ल, गुरुवुलपट्ल भेदबुद्धितो शरीरान्नि तन इल्लुगा भाविञ्चे वाडु ऐश्वर्यवन्तुडु काडु. कटिक दरिद्रुडु. इन्द्रियालनु जयिञ्चि सम्पूर्ण वैराग्यान्नि पॊन्दिनवाडे ईश्वरुडु. मानवुडु जीवितं तॊलिदशल्लोने नन्नु तॆलुसुकॊण्टे चरितार्थुडवुताडु. ऐश्वर्य गर्वन्तो विर्रवीगेवाडु चीकटि बाविलो पडिपोताडु. वाडु दरिद्रुडौताडु. ना पादालनु सेविञ्चिन ऐश्वर्यवन्तुडु मोक्षान्नि पॊन्दुताडु. काबट्टि शरीरम्पै अभिमान्नि वदिलि ई लोकानिकी परलोकानिकी चॆन्दिन सुखालनु कोरुकोकुण्डा मनस्सुनु निग्रहिञ्चुकॊनि नित्यमू नन्ने स्मरिञ्चालि. अला चेसिनवाडु वैकुण्ठान्नि पॊन्दुताडु. नेनू अतण्णि विडिचिपॆट्टकुण्डा अतडि वॆनुक वॆळ्तुण्टानु. नारदादि मुनुलु भक्तिभावंवल्ल ना सारूप्यान्नि पॊन्दारु. साधारणङ्गा मानवुलकु ध्यानञ्चेयडं चाला कष्टं. मनस्सु ऒक पट्टान माट विनदु. ऒक देवता प्रतिमनु एर्परचुकॊनि, शुचिगा सकल उपचारालतो नैवेद्य समर्पणलतो नन्नु अर्चिञ्चवच्चु. लेदा मानसिक पूजा पद्धतुल द्वारा कूडा नन्नु पूजिञ्चवच्चु. उद्धवा! नुव्वु कूडा बदरिकाश्रमानिकि वॆळ्ळि इप्पुडु नेनु चॆप्पिन साङ्ख्ययोगं द्वारा नन्नु अर्चिञ्चु. कलियुगं चिवरिदाका जीविञ्चि उण्डु’ अनि आज्ञापिञ्चाडु. एकादश स्कन्धं 260 पोतन भागवतमु उद्धवुडु आ आज्ञनु शिरसावहिञ्चि बदरिकाश्रमानिकि दारितीशाडु. शुकयोगि चॆप्पिन ई अद्भुतविषयालु परीक्षित्तुकु महनन्दान्नि कलिगिञ्चायि. तरुवात श्रीकृष्णुडु एञ्चेशाडो ऎक्कड उन्नाडो चिवरिकि ऎला अवतारं चालिञ्चाडो तॆलुसुकोवालनि आसक्ति कलिगिन्दि. अन्दुके चॆप्पमनि अडिगाडु. शुकुडु चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. अवतार परिसमाप्ति महराजा! तर्वात श्रीकृष्णुडु बलरामुडितो सह द्वारकनु विडिचि वॆळ्ळिपोयाडु. नाथुडु लेनि राज्यं ऎला उण्टुन्दि? पतनानिकि पराकाष्ठला मारिपोतुन्दि. यादवुलु मद्यपानमत्तुलै तमलो तामु कॊट्टुकोवडं मॊदलुपॆट्टारु. अदि चिलिकिचिलिकि गालिवानय्यिन्दि. युद्धं दाका दारितीसिन्दि. दीनिकन्तटिकी कारणं मुनुल शापमे. ऒकरिकॊकरु यमधर्मराजुल्ला मारिपोयारु. पॊडुचुकॊनि चच्चारु. इदन्ता चूसि चिरुनव्वु चिन्दिस्तू श्रीकृष्णुडू बलरामुडू कॊन्त दूरं वॆळ्ळिपोयारु. अला वॆळ्ळाक इद्दरू चॆरोदारी पट्टारु. बलरामुडु वॆळ्ळि योगमार्गंलो अनन्तुडिलो कलिसिपोयाडु. श्रीकृष्णुडु मरो मार्गंलो वॆळ्ळि ऒक पॊदचाटुन विश्रमिञ्चालनुकॊनि ऒक कालुमीद इङ्को कालु पॆट्टुकॊनि निद्रपोयाडु. आ कालु इटू अटू कदुपुतुन्नाडु. आ समयंलो अटुवैपे वस्तुन्न ऒक बोयवाडिकि पॊदल माटुन कदुलुतुन्न परमात्मुडि पादं ऒक जिङ्क चॆविला कनिपिञ्चिन्दि. वॆण्टने बाणं गुरिचूसि कॊट्टाडु. अदि नेरुगा वच्चि श्रीकृष्णुडि पादंलो गुच्चुकुन्दि. ‘हह…’ अनि अरिचाडु श्रीकृष्णुडु. बोयवाडु तीरा दग्गरकि वच्चि चूस्ते अक्कड उन्नदि जिङ्क कादु श्रीकृष्णुडु. भयन्तो वणिकिपोयाडु. ‘पॆद्द तप्पे चेशानु. नन्नु मन्निञ्चु दॊरा!’ अण्टू काळ्ळपै पड्डाडु. दानिकि श्रीकृष्णुडु- ‘नुव्वॆन्दुकय्या! बाधपडतावु? इदि ना कर्मफलं. चेसिन कर्म ऊरिके पोतुन्दा? ऎन्तटिवाळ्ळैना अनुभविञ्चि तीरवलसिन्दे! नुव्वु निमित्तमात्रुडिवि, अन्नाडु. 261 b अयिना आ बोयवाडु अपराध भावन्तो तिण्डि तिनटं मानिवेसि प्राणालु वदिलिपॆट्टि, वैकुण्ठानिकि चेरुकॊन्नाडु. आ समयंलो रथसारथि दारुकुडु वच्चाडु. सर्वज्ञुडु, सर्वेश्वरुडू अयिन श्रीकृष्णुडु ऒण्टरिगा उण्डटान्नि चूसि भयन्तो चेतुलु जोडिञ्चि- ते.गी. निन्नु" जूडनि कन्नुलु निष्फलमुलु निन्नु नॊडुवनि जिह्व दा नीरसम्बु निन्नु" गाननि दिनमुलु निन्द्यमुलगु" गन्नुलनु जूचि मम्मुनु गारविम्पु (11-121) ‘स्वामी! निन्नु चूडनि कळ्लु निष्फलं कदा! निन्ने कीर्तिञ्चनि नालुक रस हीनमैनदे प्रभू! निन्नु चूडनि रोजुलु निन्द्यालु कामा! अन्दुके ऒक्कसारि कळ्ळु तॆरिचि चूसि मम्मल्नि गौरविञ्चु देवा!’ समुद्रमन्तटि यादव वंशं नाशनमैपोयिन्दि. तक्किनवाळ्ळु चॆल्लाचॆदरैपोयारु. इप्पुडु नेनु द्वारककु वॆळ्ळि मिगिलिनवाळ्ळ कें चॆप्पालि?’ अनि विलपिस्तुन्नाडु. अन्तलोने श्रीकृष्णुडि दिव्यायुधालु, गुर्रालु मायमैपोयायि. अप्पुडु श्रीकृष्णुडु दारुकुडितो ‘दारुका! इक्कड जरिगिनदन्ता अक्रूरुडितो चॆप्पु. स्र्तीलनु, पिल्लल्नि, पॆद्दवाळ्लनु, मुसलिवाळ्ळनू हस्तिनापुरानिकि तीसुकु वॆळ्ळमनि अर्जुनुडितो चॆप्पु’ अन्नाडु. दारुकुडु हुटाहुटिन वॆळ्ळाडु. अर्जुनुडु श्रीकृष्णुडि आज्ञप्रकारं अन्दरिनी हस्तिनकु चेर्चाडु. तरुवात द्वारक पूर्तिगा नीटिलो मुनिगिपोयिन्दि. तरुवात परन्धामुडु शतकोटि सूर्युल तेजस्सुतो नारदादि मुनुलू, ब्रह्मदि देवतलू जयजय ध्वानालु चेस्तुण्टे वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. एकादश स्कन्धं 262 पोतन भागवतमु द्वादश स्कन्धं राजशेखरा! शुकमहर्षि चॆबुतुन्नाडु- कं. गजतुरगादिश्रीलनु निजमनि नम्मङ्गरादु, नित्यमुनु हरिन् गजिबिजिलेक तलञ्चिन सुजनुलकुनु नतनियन्दु" जॊर"गा वच्चुन् (12-7) अश्वालु, गजालु मॊदलैनवि निजमैन सम्पदलु कावु. अवि शाश्वतालनि नम्मकूडदु. अनुनित्यं श्रीहरिनि गजिबिजि लेकुण्डा प्रशान्त चित्तन्तो स्मरिस्ते चालु. अला स्मरिञ्चिन सुजनुलु अतडिनि चेरुकुण्टारु. अण्टू भविष्यद्राजुल गुरिञ्चि विपुलङ्गा चॆप्पाडु. कल्कि अवतारं कलियुगंलो प्रजलु चॆड्डदारुल्लो विच्चलविडिगा सञ्चरिस्तू उण्टारु. तीव्र सङ्क्षोभं ताण्डविस्तू उण्टुन्दि. वाळ्ळ आयुर्दायमू अन्तन्त मात्रमे. तिनडानिकि तिण्डि, त्रागडानिकि नीळ्ळू लेक गॊप्पगॊप्प राजुलु कूडा दोपिडी दॊङ्गलै कनिपिञ्चिनवाडिनल्ला दोचुकॊण्टू उण्टारु. आश्रम धर्मालु मण्टगलसिपोतायि. वानलु कुरववु. ओषधुलु पण्डवु. ऒकवेळ ए पण्टैना पण्डिना अन्दुलो सारं उण्डदु. ई विधङ्गा लोकंलो धर्मं पूर्तिगा क्षीणिञ्चिपोयि अधर्मं विलयताण्डवं चेस्तुन्न समयंलो श्रीमन्नारायणुडु दुष्टशिक्षण कोसं 263 शिष्टरक्षण कोसं ‘विष्णुयशुडु’ अने ब्राह्मणुडिकि कुमारुडै शम्बल ग्रामंलो जन्मिस्ताडु. अदे कल्कि अवतारं. देवदत्तं अने पेरुगल अश्वान्नि अधिरोहिञ्चि वच्चि दुष्टुलैनवाळ्ळनु तन खड्गन्तो तॆगनरुकुताडु. अप्पुडु भूमण्डलं सज्जनुलतो प्रकाशिस्तुन्दि. अप्पुडे कलियुगं कृतयुग धर्मालतो विलसिल्लिपोतुन्दि. चन्द्रुडु, सूर्युडु, शुक्रुडु, गुरुडु ऒके राशिलो उण्टे अदि कृतयुगं. तरुवात श्रीमन्नारायणुडु दुष्टशिक्षण चेसि वैकुण्ठानिकि चेरुकॊण्टाडु. सप्तर्षि मण्डलंलोनि पूर्व नक्षत्रालु (पूर्वाषाढ, पूर्वभाद्र) रॆण्डिण्टिकी समङ्गा मध्यलो रात्रिपूट ऒक नक्षत्रं कनिपिस्तुण्टुन्दि. अदि कनिपिञ्चाक नूरु संवत्सरालकु श्रीकृष्णुडु अवतारं चालिञ्चाडु. अप्पुडे कलि प्रवेशं जरिगिन्दि. श्रीकृष्णुडु उन्नन्तकालमू कलि भूमिपै कालु मोपलेदु. सप्तर्षुलु मघानक्षत्रंलो प्रवेशिञ्चिन रोजुकु कलि प्रवेशिञ्चि 1200 संवत्सरालु. ई ऋषुलु पूर्वाषाढलो प्रवेशिञ्चिनप्पुडु कलि प्रवर्धमानुडवुताडु. श्रीकृष्णुडु लोकान्नि विडिचि परमपदानिकि चेरुकॊन्नरोजुने कलि प्रवेशिञ्चाडु. ई विधङ्गा वॆय्यि दिव्य संवत्सराल तर्वात अण्टे कलियुगं नालुगोपादंलो कृतयुग धर्मं वर्धिल्लुतुन्दि. राजा! ई काल प्रवाहंलो राजुलू राज्यालू वैभवालू ऐश्वर्यालू अन्नी कॊट्टुकुपोयायि. ऒक्क कीर्तिमात्रमे शाश्वतङ्गा निलिचि उन्दि. शन्तनुडि तम्मुडु देवापि, अलागे इक्ष्वाकु वंशंलो जन्मिञ्चिन मरुत्तु कलाप ग्रामंलो निवसिस्तू योगमार्गं द्वारा मुक्तिनि पॊन्दारु. कलियुगान्तंलो वासुदेवुडि करुण प्रसरिस्तुन्दि. प्रजलन्दरू हरिभक्तुलै मुक्तिनि पॊन्दुतारु. महराजा! चूशावुगा. ई नालुगु युगाललोनू राज्यम्पैना, ऐश्वर्यं पैना, शरीरम्पैना व्यामोहं पॆञ्चुकुन्न ऎन्दरो कालगर्भंलो कलिसिपोयारु. मा पॆद्दलु मात्रं विष्णुभक्तुलै सद्गुणालतो विलसिल्लि कीर्तिमन्तुलय्यारु. द्वादश स्कन्धं 264 पोतन भागवतमु कं. धर्ममु सत्यमु" गीर्तियु निर्मल दय विष्णुभक्ति निरुपम घनस त्कर्म महिंसाव्रतमुनु नर्मिलि गलवारॆ पुण्यु लवनीनाथा! (12-16) ओ महराजा! धर्मं, सत्यं, कीर्ति, दय, विष्णुभक्ति, सत्कर्म, अहिंसाव्रतं कलवाळ्ळे पुण्यात्मुलु. गर्वन्तो मन्नू मिन्नू कानकुण्डा चॆलरेगिपोये राजुल्नि चूसि भूदेवि नव्वुकुण्टुन्दि सुमा! राज्यकाङ्क्ष ऎन्तकैना तॆगिञ्चेला चेस्तुन्दि. चिवरिकि तण्ड्री कॊडुकुलकू, अन्नदम्मुलकू चिच्चुपॆडुतुन्दि. ई राज्यकाङ्क्षा व्यामोहंलो ऐनवाळ्ळे कलहिञ्चुकुण्टारु. मरणिस्तारु. ऎन्दरो राजुलु भूमिनि ‘नादि’ अनुकुन्नारु. नाशनमैपोयारु. काबट्टि इदि यथार्थं कादु. सर्वस्वान्नि विडिचिपॆट्टि ‘जनार्दना! वैकुण्ठ! वासुदेवा! नृसिंह अनि निरन्तरं हरिकथामृतपानं चेस्ते वृद्धाप्यपु विकारालु, व्याधि बाधलू सोककुण्डा वैकुण्ठान्नि चेरुकोवच्चु. राजा! नुव्वु कूडा आ परमेश्वरुडि दिव्यगुणालनु कीर्तिञ्चि, तरिञ्चु, अन्नाडु. वॆण्टने परीक्षित्तु इला अडिगाडु- ‘मुनिवर्या! ई कलियुगं घोरमैन पापालकु आलवालमनि अण्टारु कदा! मरि प्रजलु ई पापालबारिन पडकुण्डा ऎला तप्पिञ्चुकोवडं? असलु कालं ऎला नडुस्तुन्दि? कालस्वरूपुडैन ई परन्धामुडि प्रभावं ऎला तॆलुस्तुन्दि? लोकालन्नी ऎला निलुस्तायि? सॆलविय्यण्डि’ अन्नाडु. शुकमहर्षि चॆबुतुन्नाडु. धर्मस्वरूपं राजा! नालुगु युगाललो धर्मं प्रवर्तिस्तुण्टुन्दि. आ धर्मानिकि सत्यं, दय, तपस्सु, दानं ई नालुगू नालुगु पादालु. मॊदटिदैन कृतयुगंलो 265 शान्ति, दान्ति, आत्मज्ञानं, वर्णाचारालु, आश्रमाचारालु मॊदलैनवाटितो धर्मं नालुगु पादाललो नडुस्तुन्दि. त्रेतायुगंलो शान्ति, दान्ति, कर्माचरणलतो धर्मं मूडु पादालपै नडुस्तुन्दि. द्वापर युगंलो ब्राह्मण पूज, जपतपालु, अहिंसाव्रतं मॊदलैन लक्षणालतो धर्मं रॆण्डु पादालपै नडुस्तुन्दि. इदि कलियुगं. इक्कड जनुलु दुर्गुणालतो उण्टारु. वर्णाश्रम धर्मालनु विडिचिपॆडतारु. दुराचारालु, निर्दय, हिंस, पापशीलत, असत्य भाषणं, अकारणवैरं इला ऒकटि कादु ऎन्नो दुर्गुणालकु नॆलवै उण्टारु. काबट्टि ई कलियुगंलो ऒक्क क्षणमैना एमरिपाटु लेकुण्डा ‘श्रीनृसिंह! वासुदेवा! सङ्कर्षणा!’ अण्टू भक्तितो श्रीहरिनि स्मरिञ्चालि. आ विधङ्गा हरिस्मरण परायणुलैनवारिकि वन्द यज्ञालु चेसिन फलं वस्तुन्दि. काबट्टि ओ राजा! निरन्तरं हरि नाम स्मरण चॆय्यि’ अन्नाडु. ईसारि कल्पप्रळयं गुरिञ्चि विवरिञ्चवलसिन्दिगा कोराडु परीक्षित्तु. शुकमहर्षि आ विशेषालन्नी विवरङ्गा चॆप्पि चिवरिगा- ‘राजा! नुव्वु मृत्युभयं विडिचिपॆट्टु. पुट्टिन प्रति व्यक्तिकी मरणं ऒक शाश्वतधर्मं. काबट्टि श्रीमन्नारायणुडिनि ध्यानिञ्चु. दीनिवल्ल मळ्ळी मानव लोकंलो जन्मिञ्चवु. नीकु तप्पक वैकुण्ठं लभिस्तुन्दि’ अनि बोधिञ्चि शुकमहर्षि यथेच्छगा वॆळ्ळिपोयाडु. सर्पयागं सूतमहर्षि इला चॆबुतुन्नाडु. ‘महर्षुलारा! अप्पुडु परीक्षित्तु दर्भलपै कूर्चॊनि श्रीहरिनि ध्यानिस्तुन्नाडु. शृङ्गि प्रोत्साहंवल्ल तक्षकुडु ऒक ब्राह्मणुडि रूपंलो वस्तुन्नाडु. अतडिकि दारिलो काश्यपुडु अने ऒक ब्राह्मणुडु कलिशाडु. इतडु ऎलाण्टि विषान्नयिना हरिञ्चगल समर्थुडु. परीक्षित्तुनु रक्षिञ्चडानिके अतडु वस्तुन्नाडु. अदि तॆलुसुकुन्न तक्षकुडु अतडिकि अपारधनमिच्चि वॆनक्कि पम्पि वेशाडु. द्वादश स्कन्धं 266 पोतन भागवतमु तरुवात तक्षकुडु नेरुगा परीक्षित्तु अन्तःपुरानिकि चेरुकुन्नाडु. ऒक पण्डुनु राजसेवकुलकु इच्चि परीक्षित्तुकु इव्वमनि पम्पाडु. तक्षकुडु तरुवात ताने ऒक पुरुगुगा मारि आ पण्डुलो दूरि लोपलिकि प्रवेशिञ्चाडु. राजु आ फलान्नि तिनबोतुण्डगा तक्षकुडु महसर्पमै परीक्षित्तुनु काटुवेशाडु. परीक्षित्तु मरणानिकि तीव्रङ्गा कलत चॆन्दिन जनमेजयुडु अने परीक्षित्तुकुमारुडु समस्त सर्पालनू भस्मं चेयडानिकै ऒक सर्पयागान्नि प्रारम्भिञ्चाडु. वेलकॊद्दी सर्पालु वच्चि आ यागाग्निलो पडि भस्ममैपोतुन्नायि. तक्षकुडु मात्रं रालेदु. कारणं अतडु स्वर्गंलो इन्द्रुण्णि आश्रयिञ्चुकॊनि उन्नाडु. अदि तॆलुसुकुन्न ऋत्विक्कुलु ‘सहेन्द्र तक्षकायानुब्रूहि’ अने मन्त्रान्नि चॆप्पारु. अन्ते, इन्द्रुडितो सह तक्षकुडु पडडानिकि वस्तुन्नाडु. अप्पुडु बृहस्पति अक्कडिकि वच्चि राजुनु बहुविधालुगा कीर्तिञ्चि, ‘राजा! जनन मरणालु प्राणिकोटिकि सहजं. शान्तिञ्चु. कोपान्नि विडिचिपॆट्टु. इप्पटिके लॆक्कलेनन्नि पामुलु मण्टगलिसिपोयायि’ अन्नाडु. जनमेजयुडु तन गुरुवैन आङ्गिरसुडि माट मन्निञ्चाडु. तन नगरानिकि वॆळ्ळि मायाविकारालनु विडिचिपॆट्टि श्रीहरि पादालपैने दृष्टि निलिपि कालं गडुपुतुन्नाडु. अतडु तप्पक विष्णुपदान्नि चेरुकुण्टाडु. वेदपुराणाल व्याप्ति ‘महर्षुलारा! पैलुडु, सुमन्तुडु, जैमिनि, वैशम्पायनुडु अने नलुगुरु वेदव्यास महर्षि शिष्युलु. वीळ्ळु नालुगु वेदालनू लोकंलो प्रचारं चेशारु. इक त्रय्यारुणि, कश्यपुडु, सावर्णि, अकृतव्रणुडु, वैशम्पायनुडु, हरीतुडु अने आरुगुरू पुराण प्रवक्तलुगा प्रसिद्धुलय्यायि. वीळ्ळु व्यासुलवारि शिष्युडू मा तण्ड्री अयिन रोमहर्षणुडि वद्दने विद्य नेर्चुकॊन्नारु. 267 पुराणं पञ्चसर्गलतो कूडि उण्टुन्दि. कॊन्दरु पुराणानिकि अयिदु लक्षणालु उण्टायनि चॆप्तारु अन्नाडु सूतुडु. अप्पुडु शौनकादि महमुनुलन्ता विनम्रङ्गा ‘सूतमहर्षी! इप्पटि दाका नुव्वु श्रीमन्नारायण गुणवैभवान्नि माकु विनिपिञ्चावु. अलागे ई परमात्मुडि महिमान्वितालैन कथलनू मनोहरङ्गा चॆप्पावु. मादो विन्नपं. पापात्मुलु सैतं तरिञ्चडानिकि एदैना मार्गं उन्दा? उण्टे चॆप्पि पुण्यं कट्टुको महनुभावा!’ अन्नारु. दानिकि समाधानङ्गा सूतमहर्षि ‘महर्षुलारा! निरन्तरमू चेसे भगवन्नामस्मरणमे अन्दरू तरिञ्चडानिकि ऒके ऒक्क मार्गं. अदि ऎन्तटि पापात्मुलनैना तरिम्पजेस्तुन्दि’ अण्टू मार्कण्डेयुडि वृत्तान्तान्नि चॆप्पडं प्रारम्भिञ्चाडु. मार्कण्डेयोपाख्यानं ‘महर्षुलारा! अदि कृतयुगं. मृकण्डुडु अने पेरुगल ऒक गॊप्प ऋषि ब्रह्मचर्य व्रतान्नि चेपट्टि घोरतपस्सु सागिस्तुन्नाडु. अतडि तपस्सुकु मॆच्चारु शिवकेशवुलु. अतडि मुन्दु प्रत्यक्षमय्यारु. वरं कोरुकोमन्नारु. अप्पुडा महर्षि सुगुण सम्पन्नुडैन ऒक पुत्रुण्णि तनकु प्रसादिञ्चमनि वेडुकॊन्नाडु. वाळ्ळु अनुग्रहिञ्चारु. अला कॊन्तकालानिकि मृकण्डु महर्षिकि ऒक पुत्रुडु जन्मिञ्चाडु. अतडे मार्कण्डेयुडु. ई बालुडु परमनिष्ठागरिष्ठुडु. नित्यमू तपस्सुलो उण्डे मार्कण्डेयुडिनि मृत्युवु कबळिञ्चबोयिन्दि. पाशन्तो कट्टिवेयसागिन्दि. अप्पुडु मार्कण्डेयुडु मृत्युवुतो पोराडाडु. दानिनि गड्डिपोचला तिरस्करिञ्चि मळ्ळी तपस्सुलो मुनिगिपोयाडु. अतडि तपस्सुनु चूसि इन्द्रुडु कलवरपाटु चॆन्दाडु. तपस्सुनु भग्नं चेयडानिकि अप्सरसलनु पम्पाडु. वाळ्ळु वच्चि ऎन्तगानो प्रयत्नं चेसिनप्पटिकी फलितं लेकपोयिन्दि. चिवरिकि वॆनक्कि तिरिगि वॆळ्ळिपोयारु. द्वादश स्कन्धं 268 पोतन भागवतमु मार्कण्डेयुडिनि अनुग्रहिञ्चटानिकि साक्षात्तु विष्णुवे आयन मुन्दु प्रत्यक्षमय्याडु. मार्कण्डेयुडु विष्णुदेवुण्णि चूसि भक्तिप्रपत्तुलतो ‘देवदेवा! नित्यं नी नामस्मरण गाविस्तू ई शरीरन्तोने अनेक युगालु जीविञ्चे भाग्यान्नि नाकु प्रसादिञ्चु’ अनि वेडुकॊन्नाडु. विष्णुवु ‘तथास्तु’ अन्नाडु. मार्कण्डेयुडु श्रीहरि वैभवान्नि नोरारा कीर्तिञ्चि, विष्णुतत्त्वान्नि विशदं चेयमनि अभ्यर्थिञ्चाडु. करुणान्तरङ्गुडैन आ विष्णुदेवुडु तन स्वरूपान्नि अतडिकि तॆलिपि, वैकुण्ठानिकि वॆळ्ळिपोयाडु. तरुवात मार्कण्डेयुडु शिवनामस्मरण चेयडं प्रारम्भिञ्चाडु. हरिनामस्मरणं मर्चिपोयाडु. नूरु संवत्सरालु गडिचायि. ई नूरु संवत्सराल पाटु मेघालु कुण्डपोतगा वर्षिस्तू भूमिनि जलप्रवाहंलो मुञ्चॆत्तायि. चुट्टू चीकटि. कळ्ळु पॊडुचुकुन्ना कानरानि कारुचीकटि. आ समयंलो आ नीटि मध्य ऒक वटपत्रम्पै पद्मरागमणुल कान्तुलतो प्रकाशिञ्चे पादपद्मालु कल ऒक अन्दमैन बालुडु कनिपिञ्चाडु. आ बालुडिनि चूसि नमस्करिञ्चाडु मार्कण्डेयुडु. आ बालुडि शरीरंलोनिकि प्रवेशिञ्चाडु. चालाकालं अतडि उदरंलोने सञ्चरिञ्चाडु. अतडि पादपद्मालने स्मरिञ्चाडु. तर्वात बयटकु वच्चि कौगिलिञ्चुकोबोयाडु. कानी आ बालुडु अन्तर्धान मैपोयाडु. इक मार्कण्डेयुडु यथाप्रकारङ्गा तन आश्रमंलो उण्टू तपस्सु चेसुकुण्टुन्नाडु. ऒकरोजु आकाशमार्गंलो पार्वतीपरमेश्वरुलु विहरिस्तू ई महर्षिनि चूशारु. शरीरं निण्डा विबूदि. मॆडलो रुद्राक्ष माललु. घोरमैन तपस्सु चेस्तुन्न मार्कण्डेय महर्षिनि चूसिन्दि पार्वतीदेवि. वॆण्टने ‘स्वामी! ई महर्षितो नालुगु माटलु मुच्चटिञ्चि वॆळ्दां!’ अनि अडिगिन्दि. शिवुडु सरेनन्नाडु. इद्दरू आकाशं नुण्डि किन्दकु दिगि अतडि मुन्दु निलिचारु. मार्कण्डेयुडु एकाग्रचित्तन्तो उन्नाडु. अप्पुडु शिवुडु योगमहिमतो अतडि हृदयंलोनिकि प्रवेशिञ्चाडु. 269 कळ्ळुतॆरिचाडु मार्कण्डेयुडु. चतुर्बाहुवुलतो, रुद्राक्ष मालिकाधरुडै ऒक चेत्तो त्रिशूलान्नि, मरो चेत्तो डमरुकान्नि धरिञ्चि, पार्वती देवितो कलिसि वृषभ वाहनम्पै कूर्चॊनि परमशिवुडु अतडिकि साक्षात्करिञ्चाडु. मार्कण्डेयुडु आश्चर्यपोयाडु. अनेक विधालुगा शिवुण्णि कीर्तिञ्चाडु. परमेश्वरुडु अतडि तपस्सुकु मॆच्चि वरं कोरुकोमन्नाडु. दानिकि मार्कण्डेयुडु ‘परमेश्वरा! आ श्रीमन्नारायणुडि माया प्रभावं अन्त तेलिकगा लभिञ्चेदि कादु. कानी नी दर्शन भाग्यं वल्ल नाकु आ अदृष्टं दक्किन्दि. इन्त मात्रं चालु. अयिना निन्नु ऒक वरं कोरुकॊण्टानु. निरन्तरमू नारायण पादपद्मालनु ध्यानिञ्चे बुद्धिनी, मरणान्नि जयिञ्चे शक्तिनी नाकु अनुग्रहिञ्चु’ अन्नाडु. ईश्वरुडु दयासागरुडु. वृद्धाप्यङ्गानी रोगालुगानी दरि चेरनि कोटि कल्पाल आयुर्दायान्नि मार्कण्डेयुडिकि प्रसादिञ्चाडु. अलागे नारायणुडि अनुग्रहं कूडा नीकु लभिस्तुन्दनि आशीर्वदिञ्चि अन्तर्धानमैपोयाडु. महर्षुलारा! इन्तटि महिमान्वितमैन ई मार्कण्डेयुडि वृत्तान्तान्नि विन्ना, चदिविना, रचिञ्चिना मरणं दरिदापुलकु रादु. हरिभक्तुडु इतर मन्त्रालनु, इतर देवतलनु, इतर साधनालनु विडिचिपॆट्टालि. दुष्टुलकु दूरङ्गा उण्टू सज्जन साङ्गत्यं चेस्तू ‘नारायण! गोविन्द!’ अण्टू नामस्मरणं चॆय्यालि. इला चेयडंवल्ल पुण्यं लभिस्तुन्दि. आ पुण्यन्तो वैकुण्ठं लभिस्तुन्दि’ अन्नाडु सूतुडु. दानिकि शौनकुडु ‘महर्षी चिवरिगा नादो सन्देहं? सूर्युडु प्रपञ्चानिकि नेत्रंलाण्टिवाडु कदा! आ सूर्य भगवानुडु चैत्रमासं मॊदलुकॊनि एए नॆलल्लो एये पेर्लतो, ऎला सञ्चरिस्ताडो तॆलुसुकोवालनि उन्दि. दयचेसि विवरिञ्चु’ अन्नाडु विनम्रङ्गा. सूतुडु प्रारम्भिञ्चाडु. ‘शौनका! ई विषयान्नि पूर्वं शुकमहर्षि विष्णुरातुडिकि चॆप्पाडु. आ क्रमंलोने नेनू नीकु चॆप्तानु विनु. द्वादश स्कन्धं 270 पोतन भागवतमु द्वादशादित्युलु सूर्युडु श्रीमन्नारायणुडि स्वरूपं. इतडिकि ऒक्कटे रूपं उन्नप्पटिकी महर्षुलु देश काल क्रिया भेदालनुबट्टि अनेक विधालुगा वर्णिस्तुन्नारु. आ विवरालु चॆबुतानु- चैत्रमासंलो सूर्युडि पेरु धात. कृतस्थलि, हेति, वासुकि, रथकृत्तु, पुलस्त्युडु, तुम्बुरुडु इतडि परिजनुलु. वैशाखंलो सूर्युडिकि अर्यमुडु अनि पेरु. पुलहुडु, ओजुडु, प्रहेति, पुञ्जिकस्थलि, नारदुडु, कञ्जनीरुडु अनुचरुलु. ज्येष्ठंलो सूर्यभगवानुडिकि मित्रुडु अने पेरु. अत्रि, पौरुषेयुडु, तक्षकुडु, मेनक, हह, रथस्वनुडु अने परिजनुलतो सञ्चरिस्तू उण्टाडु. आषाढ मासंलो इतडि पेरु वरुणुडु. वसिष्ठुडु, रम्भ, सहजन्युडु, हूहुवु, शुक्रुडु, चित्रस्वनुडु इतडि परिवारं. अलागे श्रावणमासंलो इन्द्रुडु, भाद्रपदंलो विवस्वन्तुडु, आश्वयुजंलो त्वष्ट, कार्तिकंलो विष्णुवु, मार्गशीर्षंलो अर्यमुडु, पुष्यंलो भगुडु, माघंलो पूषुडु, फाल्गुणंलो क्रतुवु अने पेर्लतो परिवार गणालतो सञ्चरिस्तू लोकान्नि परिपालिस्ताडु. इला 12 नॆलललो प्रकाशिञ्चे सूर्युडि वैभवं ‘इन्त’ अनि चॆप्पडानिकि वीलुकानिदि. उभयसन्ध्यललो तननु उपासिञ्चेवाळ्ळ पापालनु रूपुमापुतू उण्टाडु. सूर्युडिकि मुन्दुवैपु वेदमन्त्रालतो, ऋषुलु स्तुतिस्तू उण्टारु. वॆनुकवैपु अप्सरसलु नाट्यं चेस्तू उण्टारु. गन्धर्वुल गानं सागुतू उण्टुन्दि. वालखिल्यमहर्षुलु - 60वेल मन्दि ऎदुरुगा निलिचि स्तोत्रं चेस्तुण्टे अमितवेगमू बलमू कल सर्पराजालु रथान्नि लागुतू उण्टे आदित्यदेवुडु कालान्नि नडिपिस्तू प्रतिकल्पंलोनू तेजरिल्लुतू उण्टाडु. इवन्नी वासुदेवमयालेननि तॆलुसुको, अनि चॆप्तू सूतमहर्षि भागवत पुराण प्राशस्त्यान्नि प्रकटिस्तुन्नाडु. 271 भागवत पुराण प्राशस्त्यं ‘महर्षुलारा! ई भागवतं महपुराणं. पुराणालन्निण्टिलोकॆल्ला श्रेष्ठमैनदि. अन्दुके दीनिनि पुराणतिलकं अन्नारु. भागवतान्नि भक्तितो निष्ठतो चदिवेवाळ्ळु श्रवणं चेसेवाळ्ळू, रासेवाळ्ळु, आयुरारोग्य ऐश्वर्यालतो विष्णुसायुज्यान्नि पॊन्दुतारु. पुष्करतीर्थंलो गानी, द्वारकापट्टणंलो गानी मथुरानगरंलो गानी आदिवारन्नाडु भक्तिश्रद्धललो भागवतान्नि चदिविन भक्तुडु संसार सागरान्नि अवलीलगा दाटगलिगे शक्तिसम्पन्नुडौताडु. लक्ष्मीरमणुडि दिव्यकथलनु विनालने आसक्तिकलवाडू, चक्रवर्ती अयिन परीक्षिन्महराजुकु शुकमहर्षि विपुलङ्गा पन्नॆण्डु स्कन्धाललो भागवत पुराणान्नि विनिपिञ्चाडु. ई पुराणंलो पद्दॆनिमिदि वेल श्लोकालु उन्नायि. अष्टादश पुराणालन्निण्टिलोनू मॊत्तं नालुगु लक्षल श्लोकालु उन्नायि. भागवत पुराणं - नदुललो गङ्ग, देवतललो ब्रह्म, नक्षत्राललो चन्द्रुडु. समुद्राललो क्षीरसमुद्रं, पर्वताललो मेरुवु, ग्रहललो सूर्युडु, राक्षसुललो प्रह्लदुडु, रत्नाललो पद्मरागं, चॆट्ललो हरिचन्दनं, ऋषुललो नारदुडु. गोवुललो कामधेनुवु, सूक्ष्ममैन वाटिलो जीवुडु, अलागे जयिञ्चलेनि वाटिलो मनस्सु, वसुवुललो हव्यवाहनुडु, अदिति सन्तानंलो विष्णुवु, रुद्रुललो नीललोहितुडु, ब्रह्मललो भृगुवु, सिद्धुललो कपिलुडु, गुर्राललो उच्चैश्शवं, सर्पाललो वासुकि, मृगाललो सिंहं, आश्रमाललो गृहस्थाश्रमं, वर्णाललो ॐकारं, शस्र्ताललो धनुवु, यज्ञाललो जपयज्ञं, व्रताललो अहिंस, योगाललो आत्मयोगं, ओषधुललो यवलु, वाक्कुललो सत्यवाक्कु, ऋतुवुललो वसन्तं, मासाललो मार्गशीर्षं, युगाललो कृतयुगं, ऎला श्रेष्ठमैनवो अदे विधङ्गा पुराणाललो भागवतं कूडा श्रेष्ठमैनदि. अन्दुके ई पुराणान्नि चदिविनवारु विष्णुसायुज्यान्नि पॊन्दुतारु. अटुवण्टि भागवत पुराणान्नि प्रवचिञ्चिन महनीयुडु शुक योगीन्द्रुडु. आ महनुभावुडु - द्वादश स्कन्धं 272 पोतन भागवतमु सकल आगमाल अर्थान्नि कडदाका तॆलुसुकॊन्नवाडु, ए कळङ्कमू लेनि गुणालतो ऒप्पुतू उण्टाडु. देवतलु सैतं अतडिकि पादाभिवन्दनं चेस्तारु. अन्तटि शुकयोगि पादपद्मालकु नेनू नमस्करिस्तानु. अन्ता हरिमयमे गुणातीतुडु, सर्वज्ञुडु, सर्वेश्वरुडु, सर्वाधारुडु, आदिदेवुडु, दयामयुडु, देववन्दितुडु, सागरशयनुडु, आश्रितुल पालिटि कल्पवृक्षं, आद्यन्तरहितुडु, वेदवेद्युडु, विश्वमयुडु, श्रीवत्सं, कौस्तुभं वक्षःस्थलम्पै धरिञ्चिनवाडु, शङ्ख, चक्र, गदा खड्गादि आयुधालनु धरिञ्चिनवाडु, मनोहरुडु, रत्नकिरीटधारि, पद्मनेत्रुडु अयिन देवकीनन्दनुण्णि नेनु नित्यं स्मरिस्तू, स्तुतिस्तू उण्टानु. अनि भक्तिपारवश्यन्तो चॆबुतू तन हृदयपीठम्पै कॊलुवुतीरिन वासुदेवुडिकि नमस्करिञ्चाडु सूतमहर्षि. अदे भक्ति पारवश्यन्तो आनन्दसागरंलो ओललाडुतुन्न शौनकादि महर्षुलुसैतं देवदेवुडैन विष्णुदेवुण्णि हृदयंलो निलुपुकॊन्नारु. नोरारा आ स्वामि वैभवान्नि कीर्तिस्तू, उत्साहङ्गा बयलुदेरि तमतम निवास स्थानालकु तरलिपोतुन्नारु. ऎक्कड चूसिना श्रीमन्नारायणुडे कन्पिस्तुन्नाडु. वाळ्ळ आनन्दानिकि अवधुल्लेवु. b 273 क्र.सं. पद्यं स्कन्धं - पद्यसङ्ख्य पुट
  231. श्रीकैवल्य पदम्बु 1 - 1 1
  232. चेतुलारङ्ग शिवुनि 1 - 14 1
  233. पलिकॆडिदि भागवत 1 - 17 1
  234. भूषणमुलु वाणिकि 1 - 46 3
  235. हरिनामस्तुति 1 - 96 7
  236. निगममुलु 1 - 140 8
  237. श्रीकृष्णा! यदु 1 - 200 10
  238. कुप्पिञ्चि यॊगसिन" 1 - 221 12
  239. ऒक सूर्युण्डु 1 - 226 12
  240. ओडितिवो शत्रुवुलकु? 1 - 352 16
  241. तप्पितिवो यिच्चॆदननि 1 - 353 16
  242. अडिचितिवो भूसुरु 1 - 354 16
  243. हरिमयमु विश्व 2 - 17 21
  244. रक्षकुलु लेनि 2 - 22 22
  245. विश्वात्मु"डु 2 - 100 22
  246. वरयोगीन्द्रुलु 3 - 703 35
  247. भूरि मदीय 3 - 869 37
  248. अनघा! विनु लोकमुन 4 - 67 42
  249. अनयमु" बिलुवक 4 - 68 42
  250. पुरुषु"डु दविलि 4 - 244 45
  251. हरि! परमात्म! 4 - 276 46
  252. पॊगडॊन्दु जननि 4 - 780 53
  253. वेदप्रणिहित 6 - 84 63
  254. ऎऱुक गलुगु 6 - 113 64
  255. डॆन्दम्बु पुत्रु 6 - 121 64
  256. हरिभक्तुलतो 6 - 153 65
  257. चावु ध्रुवमैन 6 - 382 69
  258. कामोत्कण्ठत 7 - 18 75
  259. गालिं गुम्भिनि 7 - 90 77
  260. तनयन्दु नखिल 7 - 115 77
  261. पानीयम्बुलु द्रावुचुं 7 - 123 78 उपयुक्त पद्यानुक्रमणिक 274 पोतन भागवतमु क्र.सं. पद्यं स्कन्धं - पद्यसङ्ख्य पुट
  262. चदुवनिवा" डज्ञुण्डगु 7 - 130 78
  263. ऎल्ल शरीरधारुलकु 7 - 142 79
  264. मन्दार मकरन्द 7 - 150 80
  265. चदिविञ्चिरि 7 - 166 81
  266. तनुहृद्भाषल 7 - 167 81
  267. कमलाक्षु 7 - 169 82
  268. तन्नु निशाचरुल् 7 - 193 84
  269. बलयुतुलकु 7 - 264 85
  270. लोकमु लन्नियुन् 7 - 267 85
  271. कल"डम्भोधि 7 - 274 86
  272. इन्दु" गल डन्दु 7 - 275 86
  273. हरियन्दु जगमु 7 -450 92
  274. करि" दिगुचु मकरि 8 - 54 95
  275. ऎव्वनिचे जनिञ्चु 8 - 73 96
  276. लोकम्बुलु लोकेशुलु 8 - 75 97
  277. नर्तकुनि भङ्गि 8 - 76 97
  278. कल" डन्दुरु 8 - 86 98
  279. कलुग"डे नापालि 8 - 87 98
  280. लावॊक्किन्तयु 8 - 90 99
  281. विनुद"ट जीवुल 8 - 91 99
  282. ओ कमलाप्त ! 8 - 92 99
  283. विश्वमयत 8 - 94 100
  284. अल वैकुण्ठ 8 - 95 100
  285. सिरिकिं जॆप्प"डु 8 - 96 101
  286. तन वेञ्चेयु 8 - 100 101
  287. पूरिञ्चॆन् हरि 8 - 116 102
  288. ऎऱु"गुदु तॆऱिना 8 - 130 103
  289. परहितमु सेयु 8 - 235 105
  290. म्रिङ्गॆडु वाडु 8 - 241 105
  291. हरिहरि सिरि 8 - 526 108
  292. वॆडवॆड नडकलु 8 - 541 109
  293. ऒण्टिवा"ड नाकु 8 - 566 110
  294. व्याप्तिं बॊन्दक 8 - 574 111 275 क्र.सं. पद्यं स्कन्धं - पद्यसङ्ख्य पुट
  295. आशापाशमु दा" 8 - 575 111
  296. वारिजाक्षुलन्दु 8 - 585 112
  297. कारे राजुलु? 8 - 590 112
  298. निरयम्बैन 8 - 593 113
  299. ब्रदुकवच्चु"गाक 8 - 598 113
  300. इन्तिन्तै वटुडिन्तयै 8 - 622 114
  301. चॆलिये मृत्युवु? 8 - 647 115
  302. चुट्टालु दॊङ्गलु 8 - 648 116
  303. हरियनि सम्भाविञ्चुनु 9 - 86 121
  304. नाकु मेलु"गोरु 9 - 119 123
  305. तनुवु मनुवु विडिचि 9 - 121 123
  306. साधुल हृदयमु 9 - 123 124
  307. ऒक माटॆव्वनि 9 - 142 124
  308. हरि" गॊल्चुचुण्डु 9 - 150 125
  309. मानुषदेहमु 9 - 243 128
  310. भूतल नाथु"डु रामुडु 9 - 263 129
  311. चपलत्वम्बुन डा"गि 9 - 300 131
  312. इत"डे रामनरेन्द्रु" 9 - 325 132
  313. चिन्नयन्नलार! 9 - 353 134
  314. नल्लनिवा"डु 9 - 361 135
  315. मन्तनमुलु 9 - 363 135
  316. तालिमि मनकुनु 9 - 462 137
  317. क्षम गलिगिन सिरि 9 - 463 137
  318. पनुपक चेयुदु 9 - 559 140
  319. अन्नमु लेदु कॊन्नि 9 - 648 141
  320. ऎप्पुडु धर्मक्षय 9 - 726 144
  321. मङ्गळहरिकीर्ति 9 - 731 144
  322. नगुमॊगमुन् 9 -733 144
  323. नी मुखाम्बुजात 10 - 1 - 11 145
  324. मानवेन्द्र! 10 - 1 - 48 148
  325. तिरुगुचु" गुडुचुचु 10 - 1 - 85 149
  326. गुरुपाठीनमवै 10 - 1 - 100 151
  327. जलधरदेहु 10 - 1 - 112 151 उपयुक्त पद्यानुक्रमणिक 276 पोतन भागवतमु क्र.सं. पद्यं स्कन्धं - पद्यसङ्ख्य पुट
  328. अमरश्रेणिकि नॆल्ल" 10 - 1 - 168 154
  329. जो जो कमलदळेक्षण! 10 - 1 - 190 155
  330. रक्षणमु लेक साधु"डु 10 - 1 - 277 159
  331. ऊरकरारु महत्मुलु 10 - 1 - 284 160
  332. ओ यम्म! नी कुमारु"डु 10 - 1 - 329 162
  333. कलयो! वैष्णव 10 - 1 - 342 163
  334. सम्पन्नुं डॊरु 10 - 1 - 394 167
  335. नी पद्यावळु लालकिञ्चु 10 - 1 - 342 167
  336. अपकारम्बुलु सेय 10 - 1 - 850 181
  337. वासुदेव! कृष्ण! 10 - 1 - 941 184
  338. बान्धवमुननैन" 10 - 1 - 973 184
  339. नल्लनिवा"डु पद्म 10 - 1 - 1011 186
  340. नी पाद कमल 10 - 1 - 1270 192
  341. कालमु प्रबलुलकु 10 - 1 - 1644 199
  342. भूषणमुलु सॆवुलकु 10 - 1 - 1685 201
  343. अङ्किलि सॆप्पलेदु 10 - 1 - 1708 203
  344. वच्चॆद विदर्भ 10 - 1 - 1717 204
  345. नम्मिति ना मनम्बुन 10 - 1 - 1744 206
  346. परु" जूचुन् वरु" 10 - 2 - 178 215
  347. वरद! पद्मनाभ! 10 - 2 - 749 229
  348. वरदु"डु साधु 10 - 2 - 970 235
  349. एमितपम्बु 10 - 2 - 985 236
  350. तिविरि यज्ञान 10 - 2 - 994 236
  351. दळमैन" बुष्प 10 - 2 - 1010 237
  352. मन शास्त्रम्बुलु 10 - 2 - 1047 239
  353. सनक सनन्दनादि 10 - 2 - 1048 239
  354. कृष्ण! परमात्म! 10 - 2 - 1187 242
  355. तरणम्बुलु भवजलधिकि 11 - 15 248
  356. करणत्रयम्बु 11 - 42 250
  357. हरिदासुल मित्रत्वमु 11 - 55 252
  358. निन्नु" जूडनि 11 - 121 261
  359. गजतुरगादिश्रीलनु 12 - 7 262
  360. धर्ममु सत्यमु" गीर्तियु 12 - 16 264 b