०१

[प्रथमोऽध्यायः]

भागसूचना

कलियुगके राजवंशोंका वर्णन

श्लोक-१

मूलम् (वचनम्)

राजोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वधामानुगते कृष्णे यदुवंशविभूषणे।
कस्य वंशोऽभवत् पृथ्व्यामेतदाचक्ष्व मे मुने॥

मूलम्

स्वधामानुगते कृष्णे यदुवंशविभूषणे।
कस्य वंशोऽभवत् पृथ्व्यामेतदाचक्ष्व मे मुने॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा परीक्षित् ने पूछा—भगवन्! यदुवंशशिरोमणि भगवान् श्रीकृष्ण जब अपने परमधाम पधार गये, तब पृथ्वीपर किस वंशका राज्य हुआ? तथा अब किसका राज्य होगा? आप कृपा करके मुझे यह बतलाइये॥१॥

श्लोक-२

मूलम् (वचनम्)

श्रीशुक उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

योऽन्त्यः पुरञ्जयो नाम भाव्यो बार्हद्रथो नृप।
तस्यामात्यस्तु शुनको हत्वा स्वामिनमात्मजम्॥

मूलम्

योऽन्त्यः पुरञ्जयो नाम भाव्यो बार्हद्रथो नृप।
तस्यामात्यस्तु शुनको हत्वा स्वामिनमात्मजम्॥

श्लोक-३

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रद्योतसंज्ञं राजानं कर्ता यत् पालकः सुतः।
विशाखयूपस्तत्पुत्रो भविता राजकस्ततः॥

मूलम्

प्रद्योतसंज्ञं राजानं कर्ता यत् पालकः सुतः।
विशाखयूपस्तत्पुत्रो भविता राजकस्ततः॥

श्लोक-४

विश्वास-प्रस्तुतिः

नन्दिवर्धनस्तत्पुत्रः पञ्च प्रद्योतना इमे।
अष्टत्रिंशोत्तरशतं भोक्ष्यन्ति पृथिवीं नृपाः॥

मूलम्

नन्दिवर्धनस्तत्पुत्रः पञ्च प्रद्योतना इमे।
अष्टत्रिंशोत्तरशतं भोक्ष्यन्ति पृथिवीं नृपाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशुकदेवजीने कहा—प्रिय परीक्षित्! मैंने तुम्हें नवें स्कन्धमें यह बात बतलायी थी कि जरासन्धके पिता बृहद्रथके वंशमें अन्तिम राजा होगा पुरंजय अथवा रिपुंजय। उसके मन्त्रीका नाम होगा शुनक। वह अपने स्वामीको मार डालेगा और अपने पुत्र प्रद्योतको राजसिंहासनपर अभिषिक्त करेगा। प्रद्योतका पुत्र होगा पालक, पालकका विशाखयूप, विशाखयूपका राजक और राजकका पुत्र होगा नन्दिवर्द्धन। प्रद्योतवंशमें यही पाँच नरपति होंगे। इनकी संज्ञा होगी ‘प्रद्योतन’। ये एक सौ अड़तीस वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे॥ २—४॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

श्रीमते रामानुजाय नमः

॥ १-३ ॥ अष्टत्रिंशोत्तरं शतमिति कालावधिरुक्तः ॥ ४- १८ ।।

श्लोक-५

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिशुनागस्ततो भाव्यः काकवर्णस्तु तत्सुतः।
क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः॥

मूलम्

शिशुनागस्ततो भाव्यः काकवर्णस्तु तत्सुतः।
क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके पश्चात् शिशुनाग नामका राजा होगा। शिशुनागका काकवर्ण, उसका क्षेमधर्मा और क्षेमधर्माका पुत्र होगा क्षेत्रज्ञ॥ ५॥

श्लोक-६

विश्वास-प्रस्तुतिः

विधिसारः सुतस्तस्याजातशत्रुर्भविष्यति।
दर्भकस्तत्सुतो भावी दर्भकस्याजयः स्मृतः॥

मूलम्

विधिसारः सुतस्तस्याजातशत्रुर्भविष्यति।
दर्भकस्तत्सुतो भावी दर्भकस्याजयः स्मृतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्षेत्रज्ञका विधिसार, उसका अजातशत्रु, फिर दर्भक और दर्भकका पुत्र अजय होगा॥ ६॥

श्लोक-७

विश्वास-प्रस्तुतिः

नन्दिवर्धन आजेयो महानन्दिः सुतस्ततः।
शिशुनागा दशैवैते षष्ठ्युत्तरशतत्रयम्॥

मूलम्

नन्दिवर्धन आजेयो महानन्दिः सुतस्ततः।
शिशुनागा दशैवैते षष्ठ्युत्तरशतत्रयम्॥

श्लोक-८

विश्वास-प्रस्तुतिः

समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कुरुश्रेष्ठ कलौ नृपाः।
महानन्दिसुतो राजन् शूद्रीगर्भोद‍्भवो बली॥

मूलम्

समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कुरुश्रेष्ठ कलौ नृपाः।
महानन्दिसुतो राजन् शूद्रीगर्भोद‍्भवो बली॥

श्लोक-९

विश्वास-प्रस्तुतिः

महापद्मपतिः कश्चिन्नन्दः क्षत्रविनाशकृत्।
ततो नृपा भविष्यन्ति शूद्रप्रायास्त्वधार्मिकाः॥

मूलम्

महापद्मपतिः कश्चिन्नन्दः क्षत्रविनाशकृत्।
ततो नृपा भविष्यन्ति शूद्रप्रायास्त्वधार्मिकाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

अजयसे नन्दिवर्द्धन और उससे महानन्दिका जन्म होगा। शिशुनागवंशमें ये दस राजा होंगे। ये सब मिलकर कलियुगमें तीन सौ साठ वर्षतक पृथ्वीपर राज्य करेंगे। प्रिय परीक्षित्! महानन्दिकी शूद्रा पत्नीके गर्भसे नन्द नामका पुत्र होगा। वह बड़ा बलवान् होगा। महानन्दि ‘महापद्म’ नामक निधिका अधिपति होगा। इसीलिये लोग उसे ‘महापद्म’ भी कहेंगे। वह क्षत्रिय राजाओंके विनाशका कारण बनेगा। तभीसे राजालोग प्रायः शूद्र और अधार्मिक हो जायँगे॥ ७—९॥

श्लोक-१०

विश्वास-प्रस्तुतिः

स एकच्छत्रां पृथिवीमनुल्लङ्घितशासनः।
शासिष्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः॥

मूलम्

स एकच्छत्रां पृथिवीमनुल्लङ्घितशासनः।
शासिष्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः॥

अनुवाद (हिन्दी)

महापद्म पृथ्वीका एकच्छत्र शासक होगा। उसके शासनका उल्लंघन कोई भी नहीं कर सकेगा। क्षत्रियोंके विनाशमें हेतु होनेकी दृष्टिसे तो उसे दूसरा परशुराम ही समझना चाहिये॥ १०॥

श्लोक-११

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य चाष्टौ भविष्यन्ति सुमाल्यप्रमुखाः सुताः।
य इमां भोक्ष्यन्ति महीं राजानः स्म शतं समाः॥

मूलम्

तस्य चाष्टौ भविष्यन्ति सुमाल्यप्रमुखाः सुताः।
य इमां भोक्ष्यन्ति महीं राजानः स्म शतं समाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके सुमाल्य आदि आठ पुत्र होंगे। वे सभी राजा होंगे और सौ वर्षतक इस पृथ्वीका उपभोग करेंगे॥ ११॥

श्लोक-१२

विश्वास-प्रस्तुतिः

नव नन्दान् द्विजः कश्चित् प्रपन्नानुद्धरिष्यति।
तेषामभावे जगतीं मौर्या भोक्ष्यन्ति वै कलौ॥

मूलम्

नव नन्दान् द्विजः कश्चित् प्रपन्नानुद्धरिष्यति।
तेषामभावे जगतीं मौर्या भोक्ष्यन्ति वै कलौ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौटिल्य, वात्स्यायन तथा चाणक्यके नामसे प्रसिद्ध एक ब्राह्मण विश्वविख्यात नन्द और उनके सुमाल्य आदि आठ पुत्रोंका नाश कर डालेगा। उनका नाश हो जानेपर कलियुगमें मौर्यवंशी नरपति पृथ्वीका राज्य करेंगे॥ १२॥

श्लोक-१३

विश्वास-प्रस्तुतिः

स एव चन्द्रगुप्तं वै द्विजो राज्येऽभिषेक्ष्यति।
तत्सुतो वारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धनः॥

मूलम्

स एव चन्द्रगुप्तं वै द्विजो राज्येऽभिषेक्ष्यति।
तत्सुतो वारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वही ब्राह्मण पहले-पहल चन्द्रगुप्त मौर्यको राजाके पदपर अभिषिक्त करेगा। चन्द्रगुप्तका पुत्र होगा वारिसार और वारिसारका अशोकवर्द्धन॥ १३॥

श्लोक-१४

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुयशा भविता तस्य सङ्गतः सुयशः सुतः।
शालिशूकस्ततस्तस्य सोमशर्मा भविष्यति॥

मूलम्

सुयशा भविता तस्य सङ्गतः सुयशः सुतः।
शालिशूकस्ततस्तस्य सोमशर्मा भविष्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

अशोकवर्द्धनका पुत्र होगा सुयश। सुयशका संगत, संगतका शालिशूक और शालिशूकका सोमशर्मा॥ १४॥

श्लोक-१५

विश्वास-प्रस्तुतिः

शतधन्वा ततस्तस्य भविता तद् बृहद्रथः।
मौर्या ह्येते दश नृपाः सप्तत्रिंशच्छतोत्तरम्।
समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कलौ कुरुकुलोद्वह॥

मूलम्

शतधन्वा ततस्तस्य भविता तद् बृहद्रथः।
मौर्या ह्येते दश नृपाः सप्तत्रिंशच्छतोत्तरम्।
समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कलौ कुरुकुलोद्वह॥

श्लोक-१६

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा बृहद्रथं मौर्यं तस्य सेनापतिः कलौ।
पुष्पमित्रस्तु शुङ्गाह्वः स्वयं राज्यं करिष्यति।
अग्निमित्रस्ततस्तस्मात् सुज्येष्ठोऽथ भविष्यति॥

मूलम्

हत्वा बृहद्रथं मौर्यं तस्य सेनापतिः कलौ।
पुष्पमित्रस्तु शुङ्गाह्वः स्वयं राज्यं करिष्यति।
अग्निमित्रस्ततस्तस्मात् सुज्येष्ठोऽथ भविष्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

सोमशर्माका शतधन्वा और शतधन्वाका पुत्र बृहद्रथ होगा। कुरुवंशविभूषण परीक्षित्! मौर्यवंशके ये दस* नरपति कलियुगमें एक सौ सैंतीस वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे। बृहद्रथका सेनापति होगा पुष्यमित्र शुंग। वह अपने स्वामीको मारकर स्वयं राजा बन बैठेगा। पुष्यमित्रका अग्निमित्र और अग्निमित्रका सुज्येष्ठ होगा॥ १५-१६॥

पादटिप्पनी
  • मौर्योंकी संख्या चन्द्रगुप्तको मिलाकर नौ ही होती है। विष्णुपुराणादिमें चन्द्रगुप्तसे पाँचवें दशरथ नामके एक और मौर्यवंशी राजाका उल्लेख मिलता है। उसीको लेकर यहाँ दस संख्या समझनी चाहिये।

श्लोक-१७

विश्वास-प्रस्तुतिः

वसुमित्रो भद्रकश्च पुलिन्दो भविता ततः।
ततो घोषः सुतस्तस्माद् वज्रमित्रो भविष्यति॥

मूलम्

वसुमित्रो भद्रकश्च पुलिन्दो भविता ततः।
ततो घोषः सुतस्तस्माद् वज्रमित्रो भविष्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुज्येष्ठका वसुमित्र, वसुमित्रका भद्रक और भद्रकका पुलिन्द, पुलिन्दका घोष और घोषका पुत्र होगा वज्रमित्र॥ १७॥

श्लोक-१८

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भागवतस्तस्माद् देवभूतिरिति श्रुतः।
शुङ्गा दशैते भोक्ष्यन्ति भूमिं वर्षशताधिकम्॥

मूलम्

ततो भागवतस्तस्माद् देवभूतिरिति श्रुतः।
शुङ्गा दशैते भोक्ष्यन्ति भूमिं वर्षशताधिकम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वज्रमित्रका भागवत और भागवतका पुत्र होगा देवभूति। शुंगवंशके ये दस नरपति एक सौ बारह वर्षतक पृथ्वीका पालन करेंगे॥ १८॥

श्लोक-१९

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कण्वानियं भूमिर्यास्यत्यल्पगुणान् नृप।
शुङ्गं हत्वा देवभूतिं कण्वोऽमात्यस्तु कामिनम्॥

मूलम्

ततः कण्वानियं भूमिर्यास्यत्यल्पगुणान् नृप।
शुङ्गं हत्वा देवभूतिं कण्वोऽमात्यस्तु कामिनम्॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

कण्वानिति बहुवचनं तत्सन्तानस्यापि विवक्षानिबन्धनम् ॥ १९ ॥

श्लोक-२०

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वयं करिष्यते राज्यं वसुदेवो महामतिः।
तस्य पुत्रस्तु भूमित्रस्तस्य नारायणः सुतः।
नारायणस्य भविता सुशर्मा नाम विश्रुतः॥

मूलम्

स्वयं करिष्यते राज्यं वसुदेवो महामतिः।
तस्य पुत्रस्तु भूमित्रस्तस्य नारायणः सुतः।
नारायणस्य भविता सुशर्मा नाम विश्रुतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! शुंगवंशी नरपतियोंका राज्यकाल समाप्त होनेपर यह पृथ्वी कण्ववंशी नरपतियोंके हाथमें चली जायगी। कण्ववंशी नरपति अपने पूर्ववर्ती राजाओंकी अपेक्षा कम गुणवाले होंगे। शुंगवंशका अन्तिम नरपति देवभूति बड़ा ही लम्पट होगा। उसे उसका मन्त्री कण्ववंशी वसुदेव मार डालेगा और अपने बुद्धिबलसे स्वयं राज्य करेगा। वसुदेवका पुत्र होगा भूमित्र, भूमित्रका नारायण और नारायणका सुशर्मा। सुशर्मा बड़ा यशस्वी होगा॥ १९-२०॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

तस्य कण्वस्य ॥ २० - २७ ॥

श्लोक-२१

विश्वास-प्रस्तुतिः

काण्वायना इमे भूमिं चत्वारिंशच्च पञ्च च।
शतानि त्रीणि भोक्ष्यन्ति वर्षाणां च कलौ युगे॥

मूलम्

काण्वायना इमे भूमिं चत्वारिंशच्च पञ्च च।
शतानि त्रीणि भोक्ष्यन्ति वर्षाणां च कलौ युगे॥

अनुवाद (हिन्दी)

कण्ववंशके ये चार नरपति काण्वायन कहलायेंगे और कलियुगमें तीन सौ पैंतालीस वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे॥ २१॥

श्लोक-२२

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा काण्वं सुशर्माणं तद‍्भृत्यो वृषलो बली।
गां भोक्ष्यत्यन्ध्रजातीयः कञ्चित् कालमसत्तमः॥

मूलम्

हत्वा काण्वं सुशर्माणं तद‍्भृत्यो वृषलो बली।
गां भोक्ष्यत्यन्ध्रजातीयः कञ्चित् कालमसत्तमः॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिय परीक्षित्! कण्ववंशी सुशर्माका एक शूद्र सेवक होगा—बली। वह अन्ध्रजातिका एवं बड़ा दुष्ट होगा। वह सुशर्माको मारकर कुछ समयतक स्वयं पृथ्वीका राज्य करेगा॥ २२॥

श्लोक-२३

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृष्णनामाथ तद् भ्राता भविता पृथिवीपतिः।
श्रीशान्तकर्णस्तत्पुत्रः पौर्णमासस्तु तत्सुतः॥

मूलम्

कृष्णनामाथ तद् भ्राता भविता पृथिवीपतिः।
श्रीशान्तकर्णस्तत्पुत्रः पौर्णमासस्तु तत्सुतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद उसका भाई कृष्ण राजा होगा। कृष्णका पुत्र श्रीशान्तकर्ण और उसका पौर्णमास होगा॥ २३॥

श्लोक-२४

विश्वास-प्रस्तुतिः

लम्बोदरस्तु तत्पुत्रस्तस्माच्चिबिलको नृपः।
मेघस्वातिश्चिबिलकादटमानस्तु तस्य च॥

मूलम्

लम्बोदरस्तु तत्पुत्रस्तस्माच्चिबिलको नृपः।
मेघस्वातिश्चिबिलकादटमानस्तु तस्य च॥

श्लोक-२५

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनिष्टकर्मा हालेयस्तलकस्तस्य चात्मजः।
पुरीषभीरुस्तत्पुत्रस्ततो राजा सुनन्दनः॥

मूलम्

अनिष्टकर्मा हालेयस्तलकस्तस्य चात्मजः।
पुरीषभीरुस्तत्पुत्रस्ततो राजा सुनन्दनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पौर्णमासका लम्बोदर और लम्बोदरका पुत्र चिबिलक होगा। चिबिलकका मेघस्वाति, मेघस्वातिका अटमान, अटमानका अनिष्टकर्मा, अनिष्टकर्माका हालेय, हालेयका तलक, तलकका पुरीषभीरु और पुरीषभीरुका पुत्र होगा राजा सुनन्दन॥ २४-२५॥

श्लोक-२६

विश्वास-प्रस्तुतिः

चकोरो बहवो यत्र शिवस्वातिररिन्दमः।
तस्यापि गोमतीपुत्रः पुरीमान् भविता ततः॥

मूलम्

चकोरो बहवो यत्र शिवस्वातिररिन्दमः।
तस्यापि गोमतीपुत्रः पुरीमान् भविता ततः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! सुनन्दनका पुत्र होगा चकोर; चकोरके आठ पुत्र होंगे, जो सभी ‘बहु’ कहलायेंगे। इनमें सबसे छोटेका नाम होगा शिवस्वाति। वह बड़ा वीर होगा और शत्रुओंका दमन करेगा। शिवस्वातिका गोमतीपुत्र और उसका पुत्र होगा पुरीमान्॥ २६॥

श्लोक-२७

विश्वास-प्रस्तुतिः

मेदः शिराः शिवस्कन्दो यज्ञश्रीस्तत्सुतस्ततः।
विजयस्तत्सुतो भाव्यश्चन्द्रविज्ञः सलोमधिः॥

मूलम्

मेदः शिराः शिवस्कन्दो यज्ञश्रीस्तत्सुतस्ततः।
विजयस्तत्सुतो भाव्यश्चन्द्रविज्ञः सलोमधिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरीमान‍्का मेदःशिरा, मेदःशिराका शिवस्कन्द, शिवस्कन्दका यज्ञश्री, यज्ञश्रीका विजय और विजयके दो पुत्र होंगे—चन्द्रविज्ञ और लोमधि॥ २७॥

श्लोक-२८

विश्वास-प्रस्तुतिः

एते त्रिंशन्नृपतयश्चत्वार्यब्दशतानि च।
षट्पञ्चाशच्च पृथिवीं भोक्ष्यन्ति कुरुनन्दन॥

मूलम्

एते त्रिंशन्नृपतयश्चत्वार्यब्दशतानि च।
षट्पञ्चाशच्च पृथिवीं भोक्ष्यन्ति कुरुनन्दन॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! ये तीस राजा चार सौ छप्पन वर्षतक पृथ्वीका राज्य भोगेंगे॥ २८॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

एत इति एतद्वयतिरिक्तनृपतिपरः अनन्तमेव मौनानां पृथक् उक्तत्वात् इति ॥ २८-४३ ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे द्वादशस्कन्धव्याख्याने श्री सुदर्शनसूरिकृतशुकपक्षीये प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥

श्लोक-२९

विश्वास-प्रस्तुतिः

सप्ताभीरा आवभृत्या दश गर्दभिनो नृपाः।
कङ्काः षोडश भूपाला भविष्यन्त्यतिलोलुपाः॥

मूलम्

सप्ताभीरा आवभृत्या दश गर्दभिनो नृपाः।
कङ्काः षोडश भूपाला भविष्यन्त्यतिलोलुपाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! इसके पश्चात् अवभृति-नगरीके सात आभीर, दस गर्दभी और सोलह कंक पृथ्वीका राज्य करेंगे। ये सब-के-सब बड़े लोभी होंगे॥ २९॥

श्लोक-३०

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽष्टौ यवना भाव्याश्चतुर्दश तुरुष्ककाः।
भूयो दश गुरुण्डाश्च मौना एकादशैव तु॥

मूलम्

ततोऽष्टौ यवना भाव्याश्चतुर्दश तुरुष्ककाः।
भूयो दश गुरुण्डाश्च मौना एकादशैव तु॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनके बाद आठ यवन और चौदह तुर्क राज्य करेंगे। इसके बाद दस गुरुण्ड और ग्यारह मौन नरपति होंगे॥ ३०॥

श्लोक-३१

विश्वास-प्रस्तुतिः

एते भोक्ष्यन्ति पृथिवीं दशवर्षशतानि च।
नवाधिकां च नवतिं मौना एकादश क्षितिम्॥

मूलम्

एते भोक्ष्यन्ति पृथिवीं दशवर्षशतानि च।
नवाधिकां च नवतिं मौना एकादश क्षितिम्॥

श्लोक-३२

विश्वास-प्रस्तुतिः

भोक्ष्यन्त्यब्दशतान्यङ्ग त्रीणि तैः संस्थिते ततः।
किलिकिलायां नृपतयो भूतनन्दोऽथ वङ्गिरिः॥

मूलम्

भोक्ष्यन्त्यब्दशतान्यङ्ग त्रीणि तैः संस्थिते ततः।
किलिकिलायां नृपतयो भूतनन्दोऽथ वङ्गिरिः॥

श्लोक-३३

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिशुनन्दिश्च तद‍्भ्राता यशोनन्दिः प्रवीरकः।
इत्येते वै वर्षशतं भविष्यन्त्यधिकानि षट्॥

मूलम्

शिशुनन्दिश्च तद‍्भ्राता यशोनन्दिः प्रवीरकः।
इत्येते वै वर्षशतं भविष्यन्त्यधिकानि षट्॥

अनुवाद (हिन्दी)

मौनोंके अतिरिक्त ये सब एक हजार निन्यानबे वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे। तथा ग्यारह मौन नरपति तीन सौ वर्षतक पृथ्वीका शासन करेंगे। जब उनका राज्यकाल समाप्त हो जायगा, तब किलिकिलानामकी नगरीमें भूतनन्द नामका राजा होगा। भूतनन्दका वंगिरि, वंगिरिका भाई शिशुनन्दि तथा यशोनन्दि और प्रवीरक—ये एक सौ छः वर्षतक राज्य करेंगे॥ ३१—३३॥

श्लोक-३४

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां त्रयोदश सुता भवितारश्च बाह्लिकाः।
पुष्पमित्रोऽथ राजन्यो दुर्मित्रोऽस्य तथैव च॥

मूलम्

तेषां त्रयोदश सुता भवितारश्च बाह्लिकाः।
पुष्पमित्रोऽथ राजन्यो दुर्मित्रोऽस्य तथैव च॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनके तेरह पुत्र होंगे और वे सब-के-सब बाह्लिक कहलायेंगे। उनके पश्चात् पुष्पमित्र नामक क्षत्रिय और उसके पुत्र दुर्मित्रका राज्य होगा॥ ३४॥

श्लोक-३५

विश्वास-प्रस्तुतिः

एककाला इमे भूपाः सप्तान्ध्राः सप्त कोसलाः।
विदूरपतयो भाव्या निषधास्तत एव हि॥

मूलम्

एककाला इमे भूपाः सप्तान्ध्राः सप्त कोसलाः।
विदूरपतयो भाव्या निषधास्तत एव हि॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! बाह्लिकवंशी नरपति एक साथ ही विभिन्न प्रदेशोंमें राज्य करेंगे। उनमें सात अन्ध्रदेशके तथा सात ही कोसलदेशके अधिपति होंगे, कुछ विदूर-भूमिके शासक और कुछ निषधदेशके स्वामी होंगे॥ ३५॥

श्लोक-३६

विश्वास-प्रस्तुतिः

मागधानां तु भविता विश्वस्फूर्जिः पुरञ्जयः।
करिष्यत्यपरो वर्णान् पुलिन्दयदुमद्रकान्॥

मूलम्

मागधानां तु भविता विश्वस्फूर्जिः पुरञ्जयः।
करिष्यत्यपरो वर्णान् पुलिन्दयदुमद्रकान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनके बाद मगध देशका राजा होगा विश्वस्फूर्जि। यह पूर्वोक्त पुरंजयके अतिरिक्त द्वितीय पुरंजय कहलायेगा। यह ब्राह्मणादि उच्च वर्णोंको पुलिन्द, यदु और मद्र आदि म्लेच्छप्राय जातियोंके रूपमें परिणत कर देगा॥ ३६॥

श्लोक-३७

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रजाश्चाब्रह्मभूयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः।
वीर्यवान् क्षत्रमुत्साद्य पद्मवत्यां स वै पुरि।
अनुगङ्गामाप्रयागं गुप्तां भोक्ष्यति मेदिनीम्॥

मूलम्

प्रजाश्चाब्रह्मभूयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः।
वीर्यवान् क्षत्रमुत्साद्य पद्मवत्यां स वै पुरि।
अनुगङ्गामाप्रयागं गुप्तां भोक्ष्यति मेदिनीम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसकी बुद्धि इतनी दुष्ट होगी कि यह ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्योंका नाश करके शूद्रप्राय जनताकी रक्षा करेगा। यह अपने बल-वीर्यसे क्षत्रियोंको उजाड़ देगा और पद्मवती पुरीको राजधानी बनाकर हरिद्वारसे लेकर प्रयागपर्यन्त सुरक्षित पृथ्वीका राज्य करेगा॥ ३७॥

श्लोक-३८

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौराष्ट्रावन्त्याभीराश्च शूरा अर्बुदमालवाः।
व्रात्या द्विजा भविष्यन्ति शूद्रप्राया जनाधिपाः॥

मूलम्

सौराष्ट्रावन्त्याभीराश्च शूरा अर्बुदमालवाः।
व्रात्या द्विजा भविष्यन्ति शूद्रप्राया जनाधिपाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों सौराष्ट्र अवन्ती, आभीर, शूर, अर्बुद और मालव देशके ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जायँगे तथा राजालोग भी शूद्रतुल्य हो जायँगे॥ ३८॥

श्लोक-३९

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिन्धोस्तटं चन्द्रभागां कौन्तीं काश्मीरमण्डलम्।
भोक्ष्यन्ति शूद्रा व्रात्याद्या म्लेच्छाश्चाब्रह्मवर्चसः॥

मूलम्

सिन्धोस्तटं चन्द्रभागां कौन्तीं काश्मीरमण्डलम्।
भोक्ष्यन्ति शूद्रा व्रात्याद्या म्लेच्छाश्चाब्रह्मवर्चसः॥

अनुवाद (हिन्दी)

सिन्धुतट, चन्द्रभागाका तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुरी और काश्मीरमण्डलपर प्रायः शूद्रोंका, संस्कार एवं ब्रह्मतेजसे हीन नाममात्रके द्विजोंका और म्लेच्छोंका राज्य होगा॥ ३९॥

श्लोक-४०

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुल्यकाला इमे राजन् म्लेच्छप्रायाश्च भूभृतः।
एतेऽधर्मानृतपराः फल्गुदास्तीव्रमन्यवः॥

मूलम्

तुल्यकाला इमे राजन् म्लेच्छप्रायाश्च भूभृतः।
एतेऽधर्मानृतपराः फल्गुदास्तीव्रमन्यवः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! ये सब-के-सब राजा आचार-विचारमें म्लेच्छप्राय होंगे। ये सब एक ही समय भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें राज्य करेंगे। ये सब-के-सब परले सिरेके झूठे, अधार्मिक और स्वल्प दान करनेवाले होंगे। छोटी-छोटी बातोंको लेकर ही ये क्रोधके मारे आगबबूला हो जाया करेंगे॥ ४०॥

श्लोक-४१

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्त्रीबालगोद्विजघ्नाश्च परदारधनादृताः।
उदितास्तमितप्राया अल्पसत्त्वाल्पकायुषः॥

मूलम्

स्त्रीबालगोद्विजघ्नाश्च परदारधनादृताः।
उदितास्तमितप्राया अल्पसत्त्वाल्पकायुषः॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये दुष्ट लोग स्त्री, बच्चों, गौओं, ब्राह्मणोंको मारनेमें भी नहीं हिचकेंगे। दूसरेकी स्त्री और धन हथिया लेनेके लिये ये सर्वदा उत्सुक रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न तो घटते। क्षणमें रुष्ट तो क्षणमें तुष्ट। इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी॥ ४१॥

श्लोक-४२

विश्वास-प्रस्तुतिः

असंस्कृताः क्रियाहीना रजसा तमसाऽऽवृताः।
प्रजास्ते भक्षयिष्यन्ति म्लेच्छा राजन्यरूपिणः॥

मूलम्

असंस्कृताः क्रियाहीना रजसा तमसाऽऽवृताः।
प्रजास्ते भक्षयिष्यन्ति म्लेच्छा राजन्यरूपिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनमें परम्परागत संस्कार नहीं होंगे। ये अपने कर्तव्य-कर्मका पालन नहीं करेंगे। रजोगुण और तमोगुणसे अंधे बने रहेंगे। राजाके वेषमें वे म्लेच्छ ही होंगे। वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजाका खून चूसेंगे॥ ४२॥

श्लोक-४३

विश्वास-प्रस्तुतिः

तन्नाथास्ते जनपदास्तच्छीलाचारवादिनः।
अन्योन्यतो राजभिश्च क्षयं यास्यन्ति पीडिताः॥

मूलम्

तन्नाथास्ते जनपदास्तच्छीलाचारवादिनः।
अन्योन्यतो राजभिश्च क्षयं यास्यन्ति पीडिताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब ऐसे लोगोंका शासन होगा, तो देशकी प्रजामें भी वैसे ही स्वभाव, आचरण और भाषणकी वृद्धि हो जायगी। राजालोग तो उनका शोषण करेंगे ही, वे आपसमें भी एक-दूसरेको उत्पीड़ित करेंगे और अन्ततः सब-के-सब नष्ट हो जायँगे॥ ४३॥

अनुवाद (समाप्ति)

इति श्रीमद‍्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां द्वादशस्कन्धे प्रथमोऽध्यायः॥ १॥