[पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः]
भागसूचना
प्रद्युम्नका जन्म और शम्बरासुरका वध
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कामस्तु वासुदेवांशो दग्धः प्राग् रुद्रमन्युना।
देहोपपत्तये भूयस्तमेव प्रत्यपद्यत॥
मूलम्
कामस्तु वासुदेवांशो दग्धः प्राग् रुद्रमन्युना।
देहोपपत्तये भूयस्तमेव प्रत्यपद्यत॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! कामदेव भगवान् वासुदेवके ही अंश हैं। वे पहले रुद्रभगवान्की क्रोधाग्निसे भस्म हो गये थे। अब फिर शरीर-प्राप्तिके लिये उन्होंने अपने अंशी भगवान् वासुदेवका ही आश्रय लिया॥ १॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
कामस्तु वासुदेवांश इति विशेषणं भाविजन्मप्रभृतिसम्बन्धादिनोक्तमतः चतुर्व्यूहेषु तृतीयव्यूहत्वमुच्यते कामसाम्यञ्च तद्विभूतित्व निबन्धनम् ॥ १-२ ॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
स एव जातो वैदर्भ्यां कृष्णवीर्यसमुद्भवः।
प्रद्युम्न इति विख्यातः सर्वतोऽनवमः पितुः॥
मूलम्
स एव जातो वैदर्भ्यां कृष्णवीर्यसमुद्भवः।
प्रद्युम्न इति विख्यातः सर्वतोऽनवमः पितुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे ही काम अबकी बार भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा रुक्मिणीजीके गर्भसे उत्पन्न हुए और प्रद्युम्न नामसे जगत्में प्रसिद्ध हुए। सौन्दर्य, वीर्य, सौशील्य आदि सद्गुणोंमें भगवान् श्रीकृष्णसे वे किसी प्रकार कम न थे॥ २॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं शम्बरः कामरूपी हृत्वा तोकमनिर्दशम्।
स विदित्वाऽऽत्मनः शत्रुं प्रास्योदन्वत्यगाद् गृहम्॥
मूलम्
तं शम्बरः कामरूपी हृत्वा तोकमनिर्दशम्।
स विदित्वाऽऽत्मनः शत्रुं प्रास्योदन्वत्यगाद् गृहम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
बालक प्रद्युम्न अभी दस दिनके भी न हुए थे कि कामरूपी शम्बरासुर वेष बदलकर सूतिकागृहसे उन्हें हर ले गया और समुद्रमें फेंककर अपने घर लौट गया। उसे मालूम हो गया था कि यह मेरा भावी शत्रु है॥ ३॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
अनिर्दशम् । दशाहानतोतम् ॥ ३-३९ ॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं निर्जगार बलवान् मीनः सोऽप्यपरैः सह।
वृतो जालेन महता गृहीतो मत्स्यजीविभिः॥
मूलम्
तं निर्जगार बलवान् मीनः सोऽप्यपरैः सह।
वृतो जालेन महता गृहीतो मत्स्यजीविभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
समुद्रमें बालक प्रद्युम्नको एक बड़ा भारी मच्छ निगल गया। तदनन्तर मछुओंने अपने बहुत बड़े जालमें फँसाकर दूसरी मछलियोंके साथ उस मच्छको भी पकड़ लिया॥ ४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं शम्बराय कैवर्ता उपाजह्रुरुपायनम्।
सूदा महानसं नीत्वावद्यन् स्वधितिनाद्भुतम्॥
मूलम्
तं शम्बराय कैवर्ता उपाजह्रुरुपायनम्।
सूदा महानसं नीत्वावद्यन् स्वधितिनाद्भुतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
और उन्होंने उसे ले जाकर शम्बरासुरको भेंटके रूपमें दे दिया। शम्बरासुरके रसोइये उस अद्भुत मच्छको उठाकर रसोईघरमें ले आये और कुल्हाड़ियोंसे उसे काटने लगे॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा तदुदरे बालं मायावत्यै न्यवेदयन्।
नारदोऽकथयत् सर्वं तस्याः शङ्कितचेतसः।
बालस्य तत्त्वमुत्पत्तिं मत्स्योदरनिवेशनम्॥
मूलम्
दृष्ट्वा तदुदरे बालं मायावत्यै न्यवेदयन्।
नारदोऽकथयत् सर्वं तस्याः शङ्कितचेतसः।
बालस्य तत्त्वमुत्पत्तिं मत्स्योदरनिवेशनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
रसोइयोंने मत्स्यके पेटमें बालक देखकर उसे शम्बरासुरकी दासी मायावतीको समर्पित किया। उसके मनमें बड़ी शंका हुई। तब नारदजीने आकर बालकका कामदेव होना, श्रीकृष्णकी पत्नी रुक्मिणीके गर्भसे जन्म लेना, मच्छके पेटमें जाना सब कुछ कह सुनाया॥ ६॥
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा च कामस्य वै पत्नी रतिर्नाम यशस्विनी।
पत्युर्निर्दग्धदेहस्य देहोत्पत्तिं प्रतीक्षती॥
मूलम्
सा च कामस्य वै पत्नी रतिर्नाम यशस्विनी।
पत्युर्निर्दग्धदेहस्य देहोत्पत्तिं प्रतीक्षती॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! वह मायावती कामदेवकी यशस्विनी पत्नी रति ही थी। जिस दिन शंकरजीके क्रोधसे कामदेवका शरीर भस्म हो गया था, उसी दिनसे वह उसकी देहके पुनः उत्पन्न होनेकी प्रतीक्षा कर रही थी॥ ७॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
निरूपिता शम्बरेण सा सूपौदनसाधने।
कामदेवं शिशुं बुद्ध्वा चक्रे स्नेहं तदार्भके॥
मूलम्
निरूपिता शम्बरेण सा सूपौदनसाधने।
कामदेवं शिशुं बुद्ध्वा चक्रे स्नेहं तदार्भके॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसी रतिको शम्बरासुरने अपने यहाँ दाल-भात बनानेके काममें नियुक्त कर रखा था। जब उसे मालूम हुआ कि इस शिशुके रूपमें मेरे पति कामदेव ही हैं, तब वह उसके प्रति बहुत प्रेम करने लगी॥ ८॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
नातिदीर्घेण कालेन स कार्ष्णी रूढयौवनः।
जनयामास नारीणां वीक्षन्तीनां च विभ्रमम्॥
मूलम्
नातिदीर्घेण कालेन स कार्ष्णी रूढयौवनः।
जनयामास नारीणां वीक्षन्तीनां च विभ्रमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्णकुमार भगवान् प्रद्युम्न बहुत थोड़े दिनोंमें जवान हो गये। उनका रूप-लावण्य इतना अद्भुत था कि जो स्त्रियाँ उनकी ओर देखतीं, उनके मनमें शृंगार–रसका उद्दीपन हो जाता॥ ९॥
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा तं पतिं पद्मदलायतेक्षणं
प्रलम्बबाहुं नरलोकसुन्दरम्।
सव्रीडहासोत्तभितभ्रुवेक्षती
प्रीत्योपतस्थे रतिरङ्ग सौरतैः॥
मूलम्
सा तं पतिं पद्मदलायतेक्षणं
प्रलम्बबाहुं नरलोकसुन्दरम्।
सव्रीडहासोत्तभितभ्रुवेक्षती
प्रीत्योपतस्थे रतिरङ्ग सौरतैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
कमलदलके समान कोमल एवं विशाल नेत्र, घुटनोंतक लंबी-लंबी बाँहें और मनुष्यलोकमें सबसे सुन्दर शरीर! रति सलज्ज हास्यके साथ भौंह मटकाकर उनकी ओर देखती और प्रेमसे भरकर स्त्री-पुरुषसम्बन्धी भाव व्यक्त करती हुई उनकी सेवा-शुश्रूषामें लगी रहती॥ १०॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामाह भगवान् कार्ष्णिर्मातस्ते मतिरन्यथा।
मातृभावमतिक्रम्य वर्तसे कामिनी यथा॥
मूलम्
तामाह भगवान् कार्ष्णिर्मातस्ते मतिरन्यथा।
मातृभावमतिक्रम्य वर्तसे कामिनी यथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्णनन्दन भगवान् प्रद्युम्नने उसके भावोंमें परिवर्तन देखकर कहा—‘देवि! तुम तो मेरी माँके समान हो। तुम्हारी बुद्धि उलटी कैसे हो गयी? मैं देखता हूँ कि तुम माताका भाव छोड़कर कामिनीके समान हाव-भाव दिखा रही हो’॥ ११॥
श्लोक-१२
मूलम् (वचनम्)
रतिरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवान् नारायणसुतः शम्बरेणाहृतो गृहात्।
अहं तेऽधिकृता पत्नी रतिः कामो भवान् प्रभो॥
मूलम्
भवान् नारायणसुतः शम्बरेणाहृतो गृहात्।
अहं तेऽधिकृता पत्नी रतिः कामो भवान् प्रभो॥
अनुवाद (हिन्दी)
रतिने कहा—‘प्रभो! आप स्वयं भगवान् नारायणके पुत्र हैं। शम्बरासुर आपको सूतिकागृहसे चुरा लाया था। आप मेरे पति स्वयं कामदेव हैं और मैं आपकी सदाकी धर्मपत्नी रति हूँ॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष त्वानिर्दशं सिन्धावक्षिपच्छम्बरोऽसुरः।
मत्स्योऽग्रसीत्तदुदरादिह प्राप्तो भवान् प्रभो॥
मूलम्
एष त्वानिर्दशं सिन्धावक्षिपच्छम्बरोऽसुरः।
मत्स्योऽग्रसीत्तदुदरादिह प्राप्तो भवान् प्रभो॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे स्वामी! जब आप दस दिनके भी न थे, तब इस शम्बरासुरने आपको हरकर समुद्रमें डाल दिया था। वहाँ एक मच्छ आपको निगल गया और उसीके पेटसे आप यहाँ मुझे प्राप्त हुए हैं॥ १३॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमिमं जहि दुर्धर्षं दुर्जयं शत्रुमात्मनः।
मायाशतविदं त्वं च मायाभिर्मोहनादिभिः॥
मूलम्
तमिमं जहि दुर्धर्षं दुर्जयं शत्रुमात्मनः।
मायाशतविदं त्वं च मायाभिर्मोहनादिभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह शम्बरासुर सैकड़ों प्रकारकी माया जानता है। इसको अपने वशमें कर लेना या जीत लेना बहुत ही कठिन है। आप अपने इस शत्रुको मोहन आदि मायाओंके द्वारा नष्ट कर डालिये॥ १४॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिशोचति ते माता कुररीव गतप्रजा।
पुत्रस्नेहाकुला दीना विवत्सा गौरिवातुरा॥
मूलम्
परिशोचति ते माता कुररीव गतप्रजा।
पुत्रस्नेहाकुला दीना विवत्सा गौरिवातुरा॥
अनुवाद (हिन्दी)
स्वामिन्! अपनी सन्तान आपके खो जानेसे आपकी माता पुत्रस्नेहसे व्याकुल हो रही हैं, वे आतुर होकर अत्यन्त दीनतासे रात-दिन चिन्ता करती रहती हैं। उनकी ठीक वैसी ही दशा हो रही है, जैसी बच्चा खो जानेपर कुररी पक्षीकी अथवा बछड़ा खो जानेपर बेचारी गायकी होती है’॥ १५॥
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभाष्यैवं ददौ विद्यां प्रद्युम्नाय महात्मने।
मायावती महामायां सर्वमायाविनाशिनीम्॥
मूलम्
प्रभाष्यैवं ददौ विद्यां प्रद्युम्नाय महात्मने।
मायावती महामायां सर्वमायाविनाशिनीम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मायावती रतिने इस प्रकार कहकर परमशक्तिशाली प्रद्युम्नको महामाया नामकी विद्या सिखायी। यह विद्या ऐसी है, जो सब प्रकारकी मायाओंका नाश कर देती है॥ १६॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
स च शम्बरमभ्येत्य संयुगाय समाह्वयत्।
अविषह्यैस्तमाक्षेपैः क्षिपन् सञ्जनयन् कलिम्॥
मूलम्
स च शम्बरमभ्येत्य संयुगाय समाह्वयत्।
अविषह्यैस्तमाक्षेपैः क्षिपन् सञ्जनयन् कलिम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
अब प्रद्युम्नजी शम्बरासुरके पास जाकर उसपर बड़े कटु-कटु आक्षेप करने लगे। वे चाहते थे कि यह किसी प्रकार झगड़ा कर बैठे। इतना ही नहीं, उन्होंने युद्धके लिये उसे स्पष्टरूपसे ललकारा॥ १७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽधिक्षिप्तो दुर्वचोभिः पादाहत इवोरगः।
निश्चक्राम गदापाणिरमर्षात्ताम्रलोचनः॥
मूलम्
सोऽधिक्षिप्तो दुर्वचोभिः पादाहत इवोरगः।
निश्चक्राम गदापाणिरमर्षात्ताम्रलोचनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रद्युम्नजीके कटुवचनोंकी चोटसे शम्बरासुर तिलमिला उठा। मानो किसीने विषैले साँपको पैरसे ठोकर मार दी हो। उसकी आँखें क्रोधसे लाल हो गयीं। वह हाथमें गदा लेकर बाहर निकल आया॥ १८॥
श्लोक-१९
विश्वास-प्रस्तुतिः
गदामाविध्य तरसा प्रद्युम्नाय महात्मने।
प्रक्षिप्य व्यनदन्नादं वज्रनिष्पेषनिष्ठुरम्॥
मूलम्
गदामाविध्य तरसा प्रद्युम्नाय महात्मने।
प्रक्षिप्य व्यनदन्नादं वज्रनिष्पेषनिष्ठुरम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने अपनी गदा बड़े जोरसे आकाशमें घुमायी और इसके बाद प्रद्युम्नजीपर चला दी। गदा चलाते समय उसने इतना कर्कश सिंहनाद किया, मानो बिजली कड़क रही हो॥ १९॥
श्लोक-२०
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामापतन्तीं भगवान् प्रद्युम्नो गदया गदाम्।
अपास्य शत्रवे क्रुद्धः प्राहिणोत् स्वगदां नृप॥
मूलम्
तामापतन्तीं भगवान् प्रद्युम्नो गदया गदाम्।
अपास्य शत्रवे क्रुद्धः प्राहिणोत् स्वगदां नृप॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! भगवान् प्रद्युम्नने देखा कि उसकी गदा बड़े वेगसे मेरी ओर आ रही है। तब उन्होंने अपनी गदाके प्रहारसे उसकी गदा गिरा दी और क्रोधमें भरकर अपनी गदा उसपर चलायी॥ २०॥
श्लोक-२१
विश्वास-प्रस्तुतिः
स च मायां समाश्रित्य दैतेयीं मयदर्शिताम्।
मुमुचेऽस्त्रमयं वर्षं कार्ष्णौ वैहायसोऽसुरः॥
मूलम्
स च मायां समाश्रित्य दैतेयीं मयदर्शिताम्।
मुमुचेऽस्त्रमयं वर्षं कार्ष्णौ वैहायसोऽसुरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब वह दैत्य मयासुरकी बतलायी हुई आसुरी मायाका आश्रय लेकर आकाशमें चला गया और वहींसे प्रद्युम्नजीपर अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करने लगा॥ २१॥
श्लोक-२२
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाध्यमानोऽस्त्रवर्षेण रौक्मिणेयो महारथः।
सत्त्वात्मिकां महाविद्यां सर्वमायोपमर्दिनीम्॥
मूलम्
बाध्यमानोऽस्त्रवर्षेण रौक्मिणेयो महारथः।
सत्त्वात्मिकां महाविद्यां सर्वमायोपमर्दिनीम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
महारथी प्रद्युम्नजीपर बहुत-सी अस्त्र-वर्षा करके जब वह उन्हें पीड़ित करने लगा तब उन्होंने समस्त मायाओंको शान्त करनेवाली सत्त्वमयी महाविद्याका प्रयोग किया॥ २२॥
श्लोक-२३
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो गौह्यकगान्धर्वपैशाचोरगराक्षसीः।
प्रायुङ्क्त शतशो दैत्यः कार्ष्णिर्व्यधमयत् स ताः॥
मूलम्
ततो गौह्यकगान्धर्वपैशाचोरगराक्षसीः।
प्रायुङ्क्त शतशो दैत्यः कार्ष्णिर्व्यधमयत् स ताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर शम्बरासुरने यक्ष, गन्धर्व, पिशाच, नाग और राक्षसोंकी सैकड़ों मायाओंका प्रयोग किया; परन्तु श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्नजीने अपनी महाविद्यासे उन सबका नाश कर दिया॥ २३॥
श्लोक-२४
विश्वास-प्रस्तुतिः
निशातमसिमुद्यम्य सकिरीटं सकुण्डलम्।
शम्बरस्य शिरः कायात् ताम्रश्मश्र्वोजसाहरत्॥
मूलम्
निशातमसिमुद्यम्य सकिरीटं सकुण्डलम्।
शम्बरस्य शिरः कायात् ताम्रश्मश्र्वोजसाहरत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उन्होंने एक तीक्ष्ण तलवार उठायी और शम्बरासुरका किरीट एवं कुण्डलसे सुशोभित सिर, जो लाल-लाल दाढ़ी, मूँछोंसे बड़ा भयंकर लग रहा था, काटकर धड़से अलग कर दिया॥ २४॥
श्लोक-२५
विश्वास-प्रस्तुतिः
आकीर्यमाणो दिविजैः स्तुवद्भिः कुसुमोत्करैः।
भार्ययाम्बरचारिण्या पुरं नीतो विहायसा॥
मूलम्
आकीर्यमाणो दिविजैः स्तुवद्भिः कुसुमोत्करैः।
भार्ययाम्बरचारिण्या पुरं नीतो विहायसा॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवतालोग पुष्पोंकी वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे और इसके बाद मायावती रति, जो आकाशमें चलना जानती थी, अपने पति प्रद्युम्नजीको आकाशमार्गसे द्वारकापुरीमें ले गयी॥ २५॥
श्लोक-२६
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्तःपुरवरं राजन् ललनाशतसङ्कुलम्।
विवेश पत्न्या गगनाद् विद्युतेव बलाहकः॥
मूलम्
अन्तःपुरवरं राजन् ललनाशतसङ्कुलम्।
विवेश पत्न्या गगनाद् विद्युतेव बलाहकः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! आकाशमें अपनी गोरी पत्नीके साथ साँवले प्रद्युम्नजीकी ऐसी शोभा हो रही थी, मानो बिजली और मेघका जोड़ा हो। इस प्रकार उन्होंने भगवान्के उस उत्तम अन्तःपुरमें प्रवेश किया जिसमें सैकड़ों श्रेष्ठ रमणियाँ निवास करती थीं॥ २६॥
श्लोक-२७
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा जलदश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
प्रलम्बबाहुं ताम्राक्षं सुस्मितं रुचिराननम्॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा जलदश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
प्रलम्बबाहुं ताम्राक्षं सुस्मितं रुचिराननम्॥
श्लोक-२८
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वलङ्कृतमुखाम्भोजं नीलवक्रालकालिभिः।
कृष्णं मत्वा स्त्रियो ह्रीता निलिल्युस्तत्र तत्र ह॥
मूलम्
स्वलङ्कृतमुखाम्भोजं नीलवक्रालकालिभिः।
कृष्णं मत्वा स्त्रियो ह्रीता निलिल्युस्तत्र तत्र ह॥
अनुवाद (हिन्दी)
अन्तःपुरकी नारियोंने देखा कि प्रद्युम्नजीका शरीर वर्षाकालीन मेघके समान श्यामवर्ण है। रेशमी पीताम्बर धारण किये हुए हैं। घुटनोंतक लंबी भुजाएँ हैं। रतनारे नेत्र हैं और सुन्दर मुखपर मन्द-मन्द मुसकानकी अनूठी ही छटा है। उनके मुखारविन्दपर घुँघराली और नीली अलकें इस प्रकार शोभायमान हो रही हैं, मानो भौंरें खेल रहे हों। वे सब उन्हें श्रीकृष्ण समझकर सकुचा गयीं और घरोंमें इधर-उधर लुक-छिप गयीं॥ २७-२८॥
श्लोक-२९
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवधार्य शनैरीषद्वैलक्षण्येन योषितः।
उपजग्मुः प्रमुदिताः सस्त्रीरत्नं सुविस्मिताः॥
मूलम्
अवधार्य शनैरीषद्वैलक्षण्येन योषितः।
उपजग्मुः प्रमुदिताः सस्त्रीरत्नं सुविस्मिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर धीरे-धीरे स्त्रियोंको यह मालूम हो गया कि ये श्रीकृष्ण नहीं हैं। क्योंकि उनकी अपेक्षा इनमें कुछ विलक्षणता अवश्य है। अब वे अत्यन्त आनन्द और विस्मयसे भरकर इस श्रेष्ठ दम्पतिके पास आ गयीं॥ २९॥
श्लोक-३०
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ तत्रासितापाङ्गी वैदर्भी वल्गुभाषिणी।
अस्मरत् स्वसुतं नष्टं स्नेहस्नुतपयोधरा॥
मूलम्
अथ तत्रासितापाङ्गी वैदर्भी वल्गुभाषिणी।
अस्मरत् स्वसुतं नष्टं स्नेहस्नुतपयोधरा॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय वहाँ रुक्मिणीजी आ पहुँचीं। परीक्षित्! उनके नेत्र कजरारे और वाणी अत्यन्त मधुर थी। इस नवीन दम्पतिको देखते ही उन्हें अपने खोये हुए पुत्रकी याद हो आयी। वात्सल्यस्नेहकी अधिकतासे उनके स्तनोंसे दूध झरने लगा॥ ३०॥
श्लोक-३१
विश्वास-प्रस्तुतिः
को न्वयं नरवैदूर्यः कस्य वा कमलेक्षणः।
धृतः कया वा जठरे केयं लब्धा त्वनेन वा॥
मूलम्
को न्वयं नरवैदूर्यः कस्य वा कमलेक्षणः।
धृतः कया वा जठरे केयं लब्धा त्वनेन वा॥
अनुवाद (हिन्दी)
रुक्मिणीजी सोचने लगीं—‘यह नररत्न कौन है? यह कमलनयन किसका पुत्र है? किस बड़भागिनीने इसे अपने गर्भमें धारण किया होगा? इसे यह कौन सौभाग्यवती पत्नी-रूपमें प्राप्त हुई है?॥ ३१॥
श्लोक-३२
विश्वास-प्रस्तुतिः
मम चाप्यात्मजो नष्टो नीतो यः सूतिकागृहात्।
एतत्तुल्यवयोरूपो यदि जीवति कुत्रचित्॥
मूलम्
मम चाप्यात्मजो नष्टो नीतो यः सूतिकागृहात्।
एतत्तुल्यवयोरूपो यदि जीवति कुत्रचित्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरा भी एक नन्हा-सा शिशु खो गया था। न जाने कौन उसे सूतिकागृहसे उठा ले गया! यदि वह कहीं जीता-जागता होगा तो उसकी अवस्था तथा रूप भी इसीके समान हुआ होगा॥ ३२॥
श्लोक-३३
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथं त्वनेन संप्राप्तं सारूप्यं शार्ङ्गधन्वनः।
आकृत्यावयवैर्गत्या स्वरहासावलोकनैः॥
मूलम्
कथं त्वनेन संप्राप्तं सारूप्यं शार्ङ्गधन्वनः।
आकृत्यावयवैर्गत्या स्वरहासावलोकनैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं तो इस बातसे हैरान हूँ कि इसे भगवान् श्यामसुन्दरकी-सी रूप-रेखा, अंगोंकी गठन, चाल-ढाल, मुसकान-चितवन और बोल-चाल कहाँसे प्राप्त हुई?॥ ३३॥
श्लोक-३४
विश्वास-प्रस्तुतिः
स एव वा भवेन्नूनं यो मे गर्भे धृतोऽर्भकः।
अमुष्मिन् प्रीतिरधिका वामः स्फुरति मे भुजः॥
मूलम्
स एव वा भवेन्नूनं यो मे गर्भे धृतोऽर्भकः।
अमुष्मिन् प्रीतिरधिका वामः स्फुरति मे भुजः॥
अनुवाद (हिन्दी)
हो-न-हो यह वही बालक है, जिसे मैंने अपने गर्भमें धारण किया था; क्योंकि स्वभावसे ही मेरा स्नेह इसके प्रति उमड़ रहा है और मेरी बायीं बाँह भी फड़क रही है’॥ ३४॥
श्लोक-३५
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं मीमांसमानायां वैदर्भ्यां देवकीसुतः।
देवक्यानकदुन्दुभ्यामुत्तमश्लोक आगमत्॥
मूलम्
एवं मीमांसमानायां वैदर्भ्यां देवकीसुतः।
देवक्यानकदुन्दुभ्यामुत्तमश्लोक आगमत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस समय रुक्मिणीजी इस प्रकार सोच-विचार कर रही थीं—निश्चय और सन्देहके झूलेमें झूल रही थीं, उसी समय पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीकृष्ण अपने माता-पिता देवकी-वसुदेवजीके साथ वहाँ पधारे॥ ३५॥
श्लोक-३६
विश्वास-प्रस्तुतिः
विज्ञातार्थोऽपि भगवांस्तूष्णीमास जनार्दनः।
नारदोऽकथयत् सर्वं शम्बराहरणादिकम्॥
मूलम्
विज्ञातार्थोऽपि भगवांस्तूष्णीमास जनार्दनः।
नारदोऽकथयत् सर्वं शम्बराहरणादिकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे। परन्तु वे कुछ न बोले, चुपचाप खड़े रहे। इतनेमें ही नारदजी वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने प्रद्युम्नजीको शम्बरासुरका हर ले जाना, समुद्रमें फेंक देना आदि जितनी भी घटनाएँ घटित हुई थीं, वे सब कह सुनायीं॥ ३६॥
श्लोक-३७
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा महदाश्चर्यं कृष्णान्तःपुरयोषितः।
अभ्यनन्दन् बहूनब्दान् नष्टं मृतमिवागतम्॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा महदाश्चर्यं कृष्णान्तःपुरयोषितः।
अभ्यनन्दन् बहूनब्दान् नष्टं मृतमिवागतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
नारदजीके द्वारा यह महान् आश्चर्यमयी घटना सुनकर भगवान् श्रीकृष्णके अन्तःपुरकी स्त्रियाँ चकित हो गयीं और बहुत वर्षोंतक खोये रहनेके बाद लौटे हुए प्रद्युम्नजीका इस प्रकार अभिनन्दन करने लगीं, मानो कोई मरकर जी उठा हो॥ ३७॥
श्लोक-३८
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवकी वसुदेवश्च कृष्णरामौ तथा स्त्रियः।
दम्पती तौ परिष्वज्य रुक्मिणी च ययुर्मुदम्॥
मूलम्
देवकी वसुदेवश्च कृष्णरामौ तथा स्त्रियः।
दम्पती तौ परिष्वज्य रुक्मिणी च ययुर्मुदम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवकीजी, वसुदेवजी, भगवान् श्रीकृष्ण, बलरामजी, रुक्मिणीजी और स्त्रियाँ—सब उस नवदम्पतिको हृदयसे लगाकर बहुत ही आनन्दित हुए॥ ३८॥
श्लोक-३९
विश्वास-प्रस्तुतिः
नष्टं प्रद्युम्नमायातमाकर्ण्य द्वारकौकसः।
अहो मृत इवायातो बालो दिष्ट्येति हाब्रुवन्॥
मूलम्
नष्टं प्रद्युम्नमायातमाकर्ण्य द्वारकौकसः।
अहो मृत इवायातो बालो दिष्ट्येति हाब्रुवन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब द्वारकावासी नर-नारियोंको यह मालूम हुआ कि खोये हुए प्रद्युम्नजी लौट आये हैं तब वे परस्पर कहने लगे ‘अहो, कैसे सौभाग्यकी बात है कि यह बालक मानो मरकर फिर लौट आया’॥ ३९॥
श्लोक-४०
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं वै मुहुः पितृसरूपनिजेशभावा-
स्तन्मातरो यदभजन् रहरूढभावाः।
चित्रं न तत् खलु रमास्पदबिम्बबिम्बे
कामे स्मरेऽक्षिविषये किमुतान्यनार्यः॥
मूलम्
यं वै मुहुः पितृसरूपनिजेशभावा-
स्तन्मातरो यदभजन् रहरूढभावाः।
चित्रं न तत् खलु रमास्पदबिम्बबिम्बे
कामे स्मरेऽक्षिविषये किमुतान्यनार्यः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! प्रद्युम्नजीका रूप-रंग भगवान् श्रीकृष्णसे इतना मिलता-जुलता था कि उन्हें देखकर उनकी माताएँ भी उन्हें अपना पतिदेव श्रीकृष्ण समझकर मधुरभावमें मग्न हो जाती थीं और उनके सामनेसे हटकर एकान्तमें चली जाती थीं! श्रीनिकेतन भगवान्के प्रतिबिम्बस्वरूप कामावतार भगवान् प्रद्युम्नके दीख जानेपर ऐसा होना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। फिर उन्हें देखकर दूसरी स्त्रियोंकी विचित्र दशा हो जाती थी, इसमें तो कहना ही क्या है॥ ४०॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
पितृस्वरूपनिजेशभावाः पितृसाम्यानिजभतृ बुद्धिसहिताः तन्मातरः कृष्णस्य पत्न्यः मसृणितदृशः कामवशात् दृष्टय अभवन्नित्यर्थः । रमास्पदविम्बविम्बे भगवद्विग्रहसदृशे ॥ ४० ॥
इति श्रीमद्भागवतव्याख्याने दशमस्कन्धे श्रीसुदर्शनसूरिकृतशुकपक्षीये पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५५ ॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां दशमस्कन्धे उत्तरार्धे प्रद्युम्नोत्पत्तिनिरूपणं नाम पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः॥ ५५॥