[एकादशोऽध्यायः]
भागसूचना
गोकुलसे वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुरका उद्धार
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोपा नन्दादयः श्रुत्वा द्रुमयोः पततो रवम्।
तत्राजग्मुः कुरुश्रेष्ठ निर्घातभयशङ्किताः॥
मूलम्
गोपा नन्दादयः श्रुत्वा द्रुमयोः पततो रवम्।
तत्राजग्मुः कुरुश्रेष्ठ निर्घातभयशङ्किताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! वृक्षोंके गिरनेसे जो भयंकर शब्द हुआ था, उसे नन्दबाबा आदि गोपोंने भी सुना। उनके मनमें यह शंका हुई कि कहीं बिजली तो नहीं गिरी! सब-के-सब भयभीत होकर वृक्षोंके पास आ गये॥ १॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
निर्घातो मेघध्वनिः ॥ १ ॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
भूम्यां निपतितौ तत्र ददृशुर्यमलार्जुनौ।
बभ्रमुस्तदविज्ञाय लक्ष्यं पतनकारणम्॥
मूलम्
भूम्यां निपतितौ तत्र ददृशुर्यमलार्जुनौ।
बभ्रमुस्तदविज्ञाय लक्ष्यं पतनकारणम्॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
लक्ष्यं निरूपकैर्ज्ञातुं योग्यम् ॥ २ ॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्ना बद्धं च बालकम्।
कस्येदं कुत आश्चर्यमुत्पात इति कातराः॥
मूलम्
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्ना बद्धं च बालकम्।
कस्येदं कुत आश्चर्यमुत्पात इति कातराः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ पहुँचनेपर उन लोगोंने देखा कि दोनों अर्जुनके वृक्ष गिरे हुए हैं। यद्यपि वृक्ष गिरनेका कारण स्पष्ट था—वहीं उनके सामने ही रस्सीमें बँधा हुआ बालक ऊखल खींच रहा था, परन्तु वे समझ न सके। ‘यह किसका काम है, ऐसी आश्चर्यजनक दुर्घटना कैसे घट गयी?’—यह सोचकर वे कातर हो गये, उनकी बुद्धि भ्रमित हो गयी॥ २-३॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
कस्येति कस्य चेष्टितमिदमाचर्यमित्यर्थः । कस्येति कर्तृसन्देहः कुत इति निमित्तसन्देहः उत्पातः अनिश्चयः ॥ ३-५ ॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाला ऊचुरनेनेति तिर्यग्गतमुलूखलम्।
विकर्षता मध्यगेन पुरुषावप्यचक्ष्महि॥
मूलम्
बाला ऊचुरनेनेति तिर्यग्गतमुलूखलम्।
विकर्षता मध्यगेन पुरुषावप्यचक्ष्महि॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ कुछ बालक खेल रहे थे। उन्होंने कहा—‘अरे, इसी कन्हैयाका तो काम है। यह दोनों वृक्षोंके बीचमेंसे होकर निकल रहा था। ऊखल तिरछा हो जानेपर दूसरी ओरसे इसने उसे खींचा और वृक्ष गिर पड़े। हमने तो इनमेंसे निकलते हुए दो पुरुष भी देखे हैं॥ ४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
न ते तदुक्तं जगृहुर्न घटेतेति तस्य तत्।
बालस्योत्पाटनं तर्वोः केचित् सन्दिग्धचेतसः॥
मूलम्
न ते तदुक्तं जगृहुर्न घटेतेति तस्य तत्।
बालस्योत्पाटनं तर्वोः केचित् सन्दिग्धचेतसः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परन्तु गोपोंने बालकोंकी बात नहीं मानी। वे कहने लगे—‘एक नन्हा-सा बच्चा इतने बड़े वृक्षोंको उखाड़ डाले, यह कभी सम्भव नहीं है।’ किसी-किसीके चित्तमें श्रीकृष्णकी पहलेकी लीलाओंका स्मरण करके सन्देह भी हो आया॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्नाबद्धं स्वमात्मजम्।
विलोक्य नन्दः प्रहसद्वदनो विमुमोच ह॥
मूलम्
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्नाबद्धं स्वमात्मजम्।
विलोक्य नन्दः प्रहसद्वदनो विमुमोच ह॥
अनुवाद (हिन्दी)
नन्दबाबाने देखा, उनका प्राणोंसे प्यारा बच्चा रस्सीसे बँधा हुआ ऊखल घसीटता जा रहा है। वे हँसने लगे और जल्दीसे जाकर उन्होंने रस्सीकी गाँठ खोल दी*॥ ६॥
पादटिप्पनी
- नन्दबाबा इसलिये हँसे कि कन्हैया कहीं यह सोचकर डर न जाय कि जब माँने बाँध दिया, तब पिता कहीं आकर पीटने न लगें।
माताने बाँधा और पिताने छोड़ा। भगवान् श्रीकृष्णकी लीलासे यह बात सिद्ध हुई कि उनके स्वरूपमें बन्धन और मुक्तकी कल्पना करनेवाले दूसरे ही हैं। वे स्वयं न बद्ध हैं, न मुक्त हैं।
श्रीसुदर्शनसूरिः
विमुमोच दामबन्धादमोचयत् ॥ ६ ॥
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोपीभिः स्तोभितोऽनृत्यद् भगवान् बालवत् क्वचित्।
उद्गायति क्वचिन्मुग्धस्तद्वशो दारुयन्त्रवत्॥
मूलम्
गोपीभिः स्तोभितोऽनृत्यद् भगवान् बालवत् क्वचित्।
उद्गायति क्वचिन्मुग्धस्तद्वशो दारुयन्त्रवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
सर्वशक्तिमान् भगवान् कभी-कभी गोपियोंके फुसलानेसे साधारण बालकोंके समान नाचने लगते। कभी भोले-भाले अनजान बालककी तरह गाने लगते। वे उनके हाथकी कठपुतली—उनके सर्वथा अधीन हो गये॥ ७॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
स्तोभित उपच्छन्देन उद्योगं प्रापितः दारुयन्त्रवत् तद्वश इत्यन्वयः ॥ ७ ॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिभर्ति क्वचिदाज्ञप्तः पीठकोन्मानपादुकम्।
बाहुक्षेपं च कुरुते स्वानां च प्रीतिमावहन्॥
मूलम्
बिभर्ति क्वचिदाज्ञप्तः पीठकोन्मानपादुकम्।
बाहुक्षेपं च कुरुते स्वानां च प्रीतिमावहन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे कभी उनकी आज्ञासे पीढ़ा ले आते, तो कभी दुसेरी आदि तौलनेके बटखरे उठा लाते। कभी खड़ाऊँ ले आते, तो कभी अपने प्रेमी भक्तोंको आनन्दित करनेके लिये पहलवानोंकी भाँति ताल ठोंकने लगते॥ ८॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
उन्मानं प्रस्थादि ॥ ८ ॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
दर्शयंस्तद्विदां लोक आत्मनो भृत्यवश्यताम्।
व्रजस्योवाह वै हर्षं भगवान् बालचेष्टितैः॥
मूलम्
दर्शयंस्तद्विदां लोक आत्मनो भृत्यवश्यताम्।
व्रजस्योवाह वै हर्षं भगवान् बालचेष्टितैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार सर्वशक्तिमान् भगवान् अपनी बाल-लीलाओंसे व्रजवासियोंको आनन्दित करते और संसारमें जो लोग उनके रहस्यको जानने-वाले हैं, उनको यह दिखलाते कि मैं अपने सेवकोंके वशमें हूँ॥ ९॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
उवाह आवहत् ॥ ९ ॥
(क-झ) मातृमृष्टान् “मृजूष् शुद्धौ” मातृभिः स्नापितान् ( अ ) उद्यमभ्युदयं मङ्गलमकरोदित्यर्थः ( ट )
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्रीणीहि भोः फलानीति श्रुत्वा सत्वरमच्युतः।
फलार्थी धान्यमादाय ययौ सर्वफलप्रदः॥
मूलम्
क्रीणीहि भोः फलानीति श्रुत्वा सत्वरमच्युतः।
फलार्थी धान्यमादाय ययौ सर्वफलप्रदः॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक दिन कोई फल बेचनेवाली आकर पुकार उठी—‘फल लो फल! यह सुनते ही समस्त कर्म और उपासनाओंके फल देनेवाले भगवान् अच्युत फल खरीदनेके लिये अपनी छोटी-सी अँजुलीमें अनाज लेकर दौड़ पड़े॥ १०॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
पक्षिणां पदं स्थानं विपद्रूपं वियदिति वा ॥ १०-१४ ॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
फलविक्रयिणी तस्य च्युतधान्यं करद्वयम्।
फलैरपूरयद् रत्नैः फलभाण्डमपूरि च॥
मूलम्
फलविक्रयिणी तस्य च्युतधान्यं करद्वयम्।
फलैरपूरयद् रत्नैः फलभाण्डमपूरि च॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी अँजुलिमेंसे अनाज तो रास्तेमें ही बिखर गया, पर फल बेचनेवालीने उनके दोनों हाथ फलसे भर दिये। इधर भगवान्ने भी उसकी फल रखनेवाली टोकरी रत्नोंसे भर दी॥ ११॥
श्लोक-१२
विश्वास-प्रस्तुतिः
सरित्तीरगतं कृष्णं भग्नार्जुनमथाह्वयत्।
रामं च रोहिणी देवी क्रीडन्तं बालकैर्भृशम्॥
मूलम्
सरित्तीरगतं कृष्णं भग्नार्जुनमथाह्वयत्।
रामं च रोहिणी देवी क्रीडन्तं बालकैर्भृशम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर एक दिन यमलार्जुन वृक्षको तोड़नेवाले श्रीकृष्ण और बलराम बालकोंके साथ खेलते-खेलते यमुनातटपर चले गये और खेलमें ही रम गये, तब रोहिणीदेवीने उन्हें पुकारा ‘ओ कृष्ण! ओ बलराम! जल्दी आओ’॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
नोपेयातां यदाऽऽहूतौ क्रीडासङ्गेन पुत्रकौ।
यशोदां प्रेषयामास रोहिणी पुत्रवत्सलाम्॥
मूलम्
नोपेयातां यदाऽऽहूतौ क्रीडासङ्गेन पुत्रकौ।
यशोदां प्रेषयामास रोहिणी पुत्रवत्सलाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
परन्तु रोहिणीके पुकारनेपर भी वे आये नहीं; क्योंकि उनका मन खेलमें लग गया था। जब बुलानेपर भी वे दोनों बालक नहीं आये, तब रोहिणीजीने वात्सल्यस्नेहमयी यशोदाजीको भेजा॥ १३॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्रीडन्तं सा सुतं बालैरतिवेलं सहाग्रजम्।
यशोदाजोहवीत् कृष्णं पुत्रस्नेहस्नुतस्तनी॥
मूलम्
क्रीडन्तं सा सुतं बालैरतिवेलं सहाग्रजम्।
यशोदाजोहवीत् कृष्णं पुत्रस्नेहस्नुतस्तनी॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्ण और बलराम ग्वालबालकोंके साथ बहुत देरसे खेल रहे थे, यशोदाजीने जाकर उन्हें पुकारा। उस समय पुत्रके प्रति वात्सल्यस्नेहके कारण उनके स्तनोंमेंसे दूध चुचुआ रहा था॥ १४॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृष्ण कृष्णारविन्दाक्ष तात एहि स्तनं पिब।
अलं विहारैः क्षुत्क्षान्तः क्रीडाश्रान्तोऽसि पुत्रक॥
मूलम्
कृष्ण कृष्णारविन्दाक्ष तात एहि स्तनं पिब।
अलं विहारैः क्षुत्क्षान्तः क्रीडाश्रान्तोऽसि पुत्रक॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे जोर-जोरसे पुकारने लगीं—‘मेरे प्यारे कन्हैया! ओ कृष्ण! कमलनयन! श्यामसुन्दर! बेटा! आओ, अपनी माँका दूध पी लो। खेलते-खेलते थक गये हो बेटा! अब बस करो। देखो तो सही, तुम भूखसे दुबले हो रहे हो॥ १५॥
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
हे रामागच्छ ताताशु सानुजः कुलनन्दन।
प्रातरेव कृताहारस्तद् भवान् भोक्तुमर्हति॥
मूलम्
हे रामागच्छ ताताशु सानुजः कुलनन्दन।
प्रातरेव कृताहारस्तद् भवान् भोक्तुमर्हति॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे प्यारे बेटा राम! तुम तो समूचे कुलको आनन्द देनेवाले हो। अपने छोटे भाईको लेकर जल्दीसे आ जाओ तो! देखो, भाई! आज तुमने बहुत सबेरे कलेऊ किया था। अब तो तुम्हें कुछ खाना चाहिये॥ १६॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतीक्षते त्वां दाशार्ह भोक्ष्यमाणो व्रजाधिपः।
एह्यावयोः प्रियं धेहि स्वगृहान् यात बालकाः॥
मूलम्
प्रतीक्षते त्वां दाशार्ह भोक्ष्यमाणो व्रजाधिपः।
एह्यावयोः प्रियं धेहि स्वगृहान् यात बालकाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
बेटा बलराम! व्रजराज भोजन करनेके लिये बैठ गये हैं; परन्तु अभीतक तुम्हारी बाट देख रहे हैं। आओ, अब हमें आनन्दित करो। बालको! अब तुमलोग भी अपने-अपने घर जाओ॥ १७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
धूलिधूसरिताङ्गस्त्वं पुत्र मज्जनमावह।
जन्मर्क्षमद्य भवतो विप्रेभ्यो देहि गाः शुचिः॥
मूलम्
धूलिधूसरिताङ्गस्त्वं पुत्र मज्जनमावह।
जन्मर्क्षमद्य भवतो विप्रेभ्यो देहि गाः शुचिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
बेटा! देखो तो सही, तुम्हारा एक-एक अंग धूलसे लथपथ हो रहा है। आओ, जल्दीसे स्नान कर लो। आज तुम्हारा जन्म नक्षत्र है। पवित्र होकर ब्राह्मणोंको गोदान करो॥ १८॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
अयुक्त प्रस्थानयोग्यान् कुरुत ।। ११-१८ ॥
श्लोक-१९
विश्वास-प्रस्तुतिः
पश्य पश्य वयस्यांस्ते मातृमृष्टान् स्वलङ्कृतान्।
त्वं च स्नातः कृताहारो विहरस्व स्वलङ्कृतः॥
मूलम्
पश्य पश्य वयस्यांस्ते मातृमृष्टान् स्वलङ्कृतान्।
त्वं च स्नातः कृताहारो विहरस्व स्वलङ्कृतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
देखो-देखो! तुम्हारे साथियोंको उनकी माताओंने नहला-धुलाकर, मींज-पोंछकर कैसे सुन्दर-सुन्दर गहने पहना दिये हैं। अब तुम भी नहा-धोकर, खा-पीकर, पहन-ओढ़कर तब खेलना’॥ १९॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
परिच्छदः क्रीडोपकरणम् ॥ १९ ॥
श्लोक-२०
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्थं यशोदा तमशेषशेखरं
मत्वा सुतं स्नेहनिबद्धधीर्नृप।
हस्ते गृहीत्वा सहराममच्युतं
नीत्वा स्ववाटं कृतवत्यथोदयम्॥
मूलम्
इत्थं यशोदा तमशेषशेखरं
मत्वा सुतं स्नेहनिबद्धधीर्नृप।
हस्ते गृहीत्वा सहराममच्युतं
नीत्वा स्ववाटं कृतवत्यथोदयम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! माता यशोदाका सम्पूर्ण मन-प्राण प्रेम-बन्धनसे बँधा हुआ था। वे चराचर जगत्के शिरोमणि भगवान्को अपना पुत्र समझतीं और इस प्रकार कहकर एक हाथसे बलराम तथा दूसरे हाथसे श्रीकृष्णको पकड़कर अपने घर ले आयीं। इसके बाद उन्होंने पुत्रके मंगलके लिये जो कुछ करना था, वह बड़े प्रेमसे किया॥ २०॥
श्लोक-२१
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोपवृद्धा महोत्पाताननुभूय बृहद्वने।
नन्दादयः समागम्य व्रजकार्यममन्त्रयन्॥
मूलम्
गोपवृद्धा महोत्पाताननुभूय बृहद्वने।
नन्दादयः समागम्य व्रजकार्यममन्त्रयन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब नन्दबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपोंने देखा कि महावनमें तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, तब वे लोग इकट्ठे होकर ‘अब व्रजवासियोंको क्या करना चाहिये’—इस विषयपर विचार करने लगे॥ २१॥
श्लोक-२२
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्रोपनन्दनामाऽऽह गोपो ज्ञानवयोऽधिकः।
देशकालार्थतत्त्वज्ञः प्रियकृद् रामकृष्णयोः॥
मूलम्
तत्रोपनन्दनामाऽऽह गोपो ज्ञानवयोऽधिकः।
देशकालार्थतत्त्वज्ञः प्रियकृद् रामकृष्णयोः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमेंसे एक गोपका नाम था उपनन्द। वे अवस्थामें तो बड़े थे ही, ज्ञानमें भी बड़े थे। उन्हें इस बातका पता था कि किस समय किस स्थानपर किस वस्तुसे कैसा व्यवहार करना चाहिये। साथ ही वे यह भी चाहते थे कि राम और श्याम सुखी रहें, उनपर कोई विपत्ति न आवे। उन्होंने कहा—॥ २२॥
श्लोक-२३
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्थातव्यमितोऽस्माभिर्गोकुलस्य हितैषिभिः।
आयान्त्यत्र महोत्पाता बालानां नाशहेतवः॥
मूलम्
उत्थातव्यमितोऽस्माभिर्गोकुलस्य हितैषिभिः।
आयान्त्यत्र महोत्पाता बालानां नाशहेतवः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भाइयो! अब यहाँ ऐसे बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, जो बच्चोंके लिये तो बहुत ही अनिष्टकारी हैं। इसलिये यदि हमलोग गोकुल और गोकुलवासियोंका भला चाहते हैं, तो हमें यहाँसे अपना डेरा-डंडा उठाकर कूच कर देना चाहिये॥ २३॥
श्लोक-२४
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुक्तः कथञ्चिद् राक्षस्या बालघ्न्या बालको ह्यसौ।
हरेरनुग्रहान्नूनमनश्चोपरि नापतत्॥
मूलम्
मुक्तः कथञ्चिद् राक्षस्या बालघ्न्या बालको ह्यसौ।
हरेरनुग्रहान्नूनमनश्चोपरि नापतत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
देखो, यह सामने बैठा हुआ नन्दरायका लाड़ला सबसे पहले तो बच्चोंके लिये कालस्वरूपिणी हत्यारी पूतनाके चंगुलसे किसी प्रकार छूटा। इसके बाद भगवान्की दूसरी कृपा यह हुई कि इसके ऊपर उतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा॥ २४॥
श्लोक-२५
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्रवातेन नीतोऽयं दैत्येन विपदं वियत्।
शिलायां पतितस्तत्र परित्रातः सुरेश्वरैः॥
मूलम्
चक्रवातेन नीतोऽयं दैत्येन विपदं वियत्।
शिलायां पतितस्तत्र परित्रातः सुरेश्वरैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
बवंडररूपधारी दैत्यने तो इसे आकाशमें ले जाकर बड़ी भारी विपत्ति (मृत्युके मुख) में ही डाल दिया था, परन्तु वहाँसे जब वह चट्टानपर गिरा, तब भी हमारे कुलके देवेश्वरोंने ही इस बालककी रक्षा की॥ २५॥
श्लोक-२६
विश्वास-प्रस्तुतिः
यन्न म्रियेत द्रुमयोरन्तरं प्राप्य बालकः।
असावन्यतमो वापि तदप्यच्युतरक्षणम्॥
मूलम्
यन्न म्रियेत द्रुमयोरन्तरं प्राप्य बालकः।
असावन्यतमो वापि तदप्यच्युतरक्षणम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
यमलार्जुन वृक्षोंके गिरनेके समय उनके बीचमें आकर भी यह या और कोई बालक न मरा। इससे भी यही समझना चाहिये कि भगवान्ने हमारी रक्षा की॥ २६॥
श्लोक-२७
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावदौत्पातिकोऽरिष्टो व्रजं नाभिभवेदितः।
तावद् बालानुपादाय यास्यामोऽन्यत्र सानुगाः॥
मूलम्
यावदौत्पातिकोऽरिष्टो व्रजं नाभिभवेदितः।
तावद् बालानुपादाय यास्यामोऽन्यत्र सानुगाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये जबतक कोई बहुत बड़ा अनिष्टकारी अरिष्ट हमें और हमारे व्रजको नष्ट न कर दे, तबतक ही हमलोग अपने बच्चोंको लेकर अनुचरोंके साथ यहाँसे अन्यत्र चले चलें॥ २७॥
श्लोक-२८
विश्वास-प्रस्तुतिः
वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम्।
गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृणवीरुधम्॥
मूलम्
वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम्।
गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृणवीरुधम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘वृन्दावन’ नामका एक वन है। उसमें छोटे-छोटे और भी बहुत-से नये-नये हरे-भरे वन हैं। वहाँ बड़ा ही पवित्र पर्वत, घास और हरी-भरी लता-वनस्पतियाँ हैं। हमारे पशुओंके लिये तो वह बहुत ही हितकारी है। गोप, गोपी और गायोंके लिये वह केवल सुविधाका ही नहीं, सेवन करनेयोग्य स्थान है॥ २८॥
श्लोक-२९
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्तत्राद्यैव यास्यामः शकटान् युङ्क्त माँ चिरम्।
गोधनान्यग्रतो यान्तु भवतां यदि रोचते॥
मूलम्
तत्तत्राद्यैव यास्यामः शकटान् युङ्क्त माँ चिरम्।
गोधनान्यग्रतो यान्तु भवतां यदि रोचते॥
अनुवाद (हिन्दी)
सो यदि तुम सब लोगोंको यह बात जँचती हो तो आज ही हमलोग वहाँके लिये कूच कर दें। देर न करें, गाड़ी-छकड़े जोतें और पहले गायोंको, जो हमारी एकमात्र सम्पत्ति हैं, वहाँ भेज दें’॥ २९॥
श्लोक-३०
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वैकधियो गोपाः साधु साध्विति वादिनः।
व्रजान् स्वान् स्वान् समायुज्य ययू रूढपरिच्छदाः॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वैकधियो गोपाः साधु साध्विति वादिनः।
व्रजान् स्वान् स्वान् समायुज्य ययू रूढपरिच्छदाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उपनन्दकी बात सुनकर सभी गोपोंने एक स्वरसे कहा—‘बहुत ठीक, बहुत ठीक।’ इस विषयमें किसीका भी मतभेद न था। सब लोगोंने अपनी झुंड-की-झुंड गायें इकट्ठी कीं और छकड़ोंपर घरकी सब सामग्री लादकर वृन्दावनकी यात्रा की॥ ३०॥
श्लोक-३१
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृद्धान् बालान् स्त्रियो राजन् सर्वोपकरणानि च।
अनस्स्वारोप्य गोपाला यत्ता आत्तशरासनाः॥
मूलम्
वृद्धान् बालान् स्त्रियो राजन् सर्वोपकरणानि च।
अनस्स्वारोप्य गोपाला यत्ता आत्तशरासनाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! ग्वालोंने बूढ़ों, बच्चों, स्त्रियों और सब सामग्रियोंको छकड़ोंपर चढ़ा दिया और स्वयं उनके पीछे-पीछे धनुष-बाण लेकर बड़ी सावधानीसे चलने लगे॥ ३१॥
श्लोक-३२
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोधनानि पुरस्कृत्य शृङ्गाण्यापूर्य सर्वतः।
तूर्यघोषेण महता ययुः सहपुरोहिताः॥
मूलम्
गोधनानि पुरस्कृत्य शृङ्गाण्यापूर्य सर्वतः।
तूर्यघोषेण महता ययुः सहपुरोहिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने गौ और बछड़ोंको तो सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे-पीछे सिंगी और तुरही जोर-जोरसे बजाते हुए चले। उनके साथ ही-साथ पुरोहित लोग भी चल रहे थे॥ ३२॥
श्लोक-३३
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोप्यो रूढरथा नूत्नकुचकुङ्कुमकान्तयः।
कृष्णलीला जगुः प्रीता निष्ककण्ठ्यः सुवाससः॥
मूलम्
गोप्यो रूढरथा नूत्नकुचकुङ्कुमकान्तयः।
कृष्णलीला जगुः प्रीता निष्ककण्ठ्यः सुवाससः॥
अनुवाद (हिन्दी)
गोपियाँ अपने-अपने वक्षःस्थलपर नयी केसर लगाकर, सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनकर, गलेमें सोनेके हार धारण किये हुए रथोंपर सवार थीं और बड़े आनन्दसे भगवान् श्रीकृष्णकी लीलाओंके गीत गाती जाती थीं॥ ३३॥
श्लोक-३४
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा यशोदारोहिण्यावेकं शकटमास्थिते।
रेजतुः कृष्णरामाभ्यां तत्कथाश्रवणोत्सुके॥
मूलम्
तथा यशोदारोहिण्यावेकं शकटमास्थिते।
रेजतुः कृष्णरामाभ्यां तत्कथाश्रवणोत्सुके॥
अनुवाद (हिन्दी)
यशोदारानी और रोहिणीजी भी वैसे ही सज-धजकर अपने-अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण तथा बलरामके साथ एक छकड़ेपर शोभायमान हो रही थीं। वे अपने दोनों बालकोंकी तोतली बोली सुन-सुनकर भी अघाती न थीं, और-और सुनना चाहती थीं॥ ३४॥
श्लोक-३५
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृन्दावनं संप्रविश्य सर्वकालसुखावहम्।
तत्र चक्रुर्व्रजावासं शकटैरर्धचन्द्रवत्॥
मूलम्
वृन्दावनं संप्रविश्य सर्वकालसुखावहम्।
तत्र चक्रुर्व्रजावासं शकटैरर्धचन्द्रवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन है। चाहे कोई भी ऋतु हो, वहाँ सुख-ही-सुख है। उसमें प्रवेश करके ग्वालोंने अपने छकड़ोंको अर्द्धचन्द्राकार मण्डल बाँधकर खड़ा कर दिया और अपने गोधनके रहनेयोग्य स्थान बना लिया॥ ३५॥
श्लोक-३६
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृन्दावनं गोवर्धनं यमुनापुलिनानि च।
वीक्ष्यासीदुत्तमा प्रीती राममाधवयोर्नृप॥
मूलम्
वृन्दावनं गोवर्धनं यमुनापुलिनानि च।
वीक्ष्यासीदुत्तमा प्रीती राममाधवयोर्नृप॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! वृन्दावनका हरा-भरा वन, अत्यन्त मनोहर गोवर्धन पर्वत और यमुना नदीके सुन्दर-सुन्दर पुलिनोंको देखकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजीके हृदयमें उत्तम प्रीतिका उदय हुआ॥ ३६॥
श्लोक-३७
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं व्रजौकसां प्रीतिं यच्छन्तौ बालचेष्टितैः।
कलवाक्यैः स्वकालेन वत्सपालौ बभूवतुः॥
मूलम्
एवं व्रजौकसां प्रीतिं यच्छन्तौ बालचेष्टितैः।
कलवाक्यैः स्वकालेन वत्सपालौ बभूवतुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
राम और श्याम दोनों ही अपनी तोतली बोली और अत्यन्त मधुर बालोचित लीलाओंसे गोकुलकी ही तरह वृन्दावनमें भी व्रजवासियोंको आनन्द देते रहे। थोड़े ही दिनोंमें समय आनेपर वे बछड़े चराने लगे॥ ३७॥
श्लोक-३८
विश्वास-प्रस्तुतिः
अविदूरे व्रजभुवः सह गोपालदारकैः।
चारयामासतुर्वत्सान् नानाक्रीडापरिच्छदौ॥
मूलम्
अविदूरे व्रजभुवः सह गोपालदारकैः।
चारयामासतुर्वत्सान् नानाक्रीडापरिच्छदौ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरे ग्वालबालोंके साथ खेलनेके लिये बहुत-सी सामग्री लेकर वे घरसे निकल पड़ते और गोष्ठ (गायोंके रहनेके स्थान) के पास ही अपने बछड़ोंको चराते॥ ३८॥
श्लोक-३९
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्वचिद् वादयतो वेणुं क्षेपणैः क्षिपतः क्वचित्।
क्वचित् पादैः किङ्किणीभिः क्वचित् कृत्रिमगोवृषैः॥
मूलम्
क्वचिद् वादयतो वेणुं क्षेपणैः क्षिपतः क्वचित्।
क्वचित् पादैः किङ्किणीभिः क्वचित् कृत्रिमगोवृषैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्याम और राम कहीं बाँसुरी बजा रहे हैं, तो कहीं गुलेल या ढेलवाँससे ढेले या गोलियाँ फेंक रहे हैं। किसी समय अपने पैरोंके घुँघरूपर तान छेड़ रहे हैं तो कहीं बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे हैं॥ ३९॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
।। २० -२७ ।। क्षेपणैः ताडनसाधनैः ।। २८-३८ ॥
श्लोक-४०
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृषायमाणौ नर्दन्तौ युयुधाते परस्परम्।
अनुकृत्य रुतैर्जन्तूंश्चेरतुः प्राकृतौ यथा॥
मूलम्
वृषायमाणौ नर्दन्तौ युयुधाते परस्परम्।
अनुकृत्य रुतैर्जन्तूंश्चेरतुः प्राकृतौ यथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक ओर देखिये तो साँड़ बन-बनकर हँकड़ते हुए आपसमें लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर मोर, कोयल, बंदर आदि पशु-पक्षियोंकी बोलियाँ निकाल रहे हैं। परीक्षित्! इस प्रकार सर्वशक्तिमान् भगवान् साधारण बालकोंके समान खेलते रहते॥ ४०॥
श्लोक-४१
विश्वास-प्रस्तुतिः
कदाचिद् यमुनातीरे वत्सांश्चारयतोः स्वकैः।
वयस्यैः कृष्णबलयोर्जिघांसुर्दैत्य आगमत्॥
मूलम्
कदाचिद् यमुनातीरे वत्सांश्चारयतोः स्वकैः।
वयस्यैः कृष्णबलयोर्जिघांसुर्दैत्य आगमत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक दिनकी बात है, श्याम और बलराम अपने प्रेमी सखा ग्वालबालोंके साथ यमुनातटपर बछड़े चरा रहे थे। उसी समय उन्हें मारनेकी नीयतसे एक दैत्य आया॥ ४१॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
जगद्गुरोः चतुर्मुखस्य अक्षतमिति पदम् ।। ३९-४१ ॥
श्लोक-४२
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं वत्सरूपिणं वीक्ष्य वत्सयूथगतं हरिः।
दर्शयन् बलदेवाय शनैर्मुग्ध इवासदत्॥
मूलम्
तं वत्सरूपिणं वीक्ष्य वत्सयूथगतं हरिः।
दर्शयन् बलदेवाय शनैर्मुग्ध इवासदत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान्ने देखा कि वह बनावटी बछड़ेका रूप धारणकर बछड़ोंके झुंडमें मिल गया है। वे आँखोंके इशारेसे बलरामजीको दिखाते हुए धीरे-धीरे उसके पास पहुँच गये। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो वे दैत्यको तो पहचानते नहीं और उस हट्टे-कट्टे सुन्दर बछड़ेपर मुग्ध हो गये हैं॥ ४२॥
श्लोक-४३
विश्वास-प्रस्तुतिः
गृहीत्वापरपादाभ्यां सहलाङ्गूलमच्युतः।
भ्रामयित्वा कपित्थाग्रे प्राहिणोद् गतजीवितम्।
स कपित्थैर्महाकायः पात्यमानैः पपात ह॥
मूलम्
गृहीत्वापरपादाभ्यां सहलाङ्गूलमच्युतः।
भ्रामयित्वा कपित्थाग्रे प्राहिणोद् गतजीवितम्।
स कपित्थैर्महाकायः पात्यमानैः पपात ह॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् श्रीकृष्णने पूँछके साथ उसके दोनों पिछले पैर पकड़कर आकाशमें घुमाया और मर जानेपर कैथके वृक्षपर पटक दिया। उसका लम्बा-तगड़ा दैत्यशरीर बहुत-से कैथके वृक्षोंको गिराकर स्वयं भी गिर पड़ा॥ ४३॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
इन्द्रियो गणः इन्द्रियाणां गणः ॥ ४२-४३ ॥
श्लोक-४४
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं वीक्ष्य विस्मिता बालाः शशंसुः साधु साध्विति।
देवाश्च परिसन्तुष्टा बभूवुः पुष्पवर्षिणः॥
मूलम्
तं वीक्ष्य विस्मिता बालाः शशंसुः साधु साध्विति।
देवाश्च परिसन्तुष्टा बभूवुः पुष्पवर्षिणः॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देखकर ग्वालबालोंके आश्चर्यकी सीमा न रही। वे ‘वाह-वाह’ करके प्यारे कन्हैयाकी प्रशंसा करने लगे। देवता भी बड़े आनन्दसे फूलोंकी वर्षा करने लगे॥ ४४॥
श्लोक-४५
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ वत्सपालकौ भूत्वा सर्वलोकैकपालकौ।
स प्रातराशौ गोवत्सांश्चारयन्तौ विचेरतुः॥
मूलम्
तौ वत्सपालकौ भूत्वा सर्वलोकैकपालकौ।
स प्रातराशौ गोवत्सांश्चारयन्तौ विचेरतुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! जो सारे लोकोंके एकमात्र रक्षक हैं, वे ही श्याम और बलराम अब वत्सपाल (बछड़ोंके चरवाहे) बने हुए हैं। वे तड़के ही उठकर कलेवेकी सामग्री ले लेते और बछड़ोंको चराते हुए एक वनसे दूसरे वनमें घूमा करते॥ ४५॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
कृतं पूर्वं पूर्वजन्मनि किं कृतम् इदानीं भयमुत्पद्यते ॥ ४४-४५ ॥
श्लोक-४६
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वं स्वं वत्सकुलं सर्वे पाययिष्यन्त एकदा।
गत्वा जलाशयाभ्याशं पाययित्वा पपुर्जलम्॥
मूलम्
स्वं स्वं वत्सकुलं सर्वे पाययिष्यन्त एकदा।
गत्वा जलाशयाभ्याशं पाययित्वा पपुर्जलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक दिनकी बात है, सब ग्वालबाल अपने झुंड-के-झुंड बछड़ोंको पानी पिलानेके लिये जलाशयके तटपर ले गये। उन्होंने पहले बछड़ोंको जल पिलाया और फिर स्वयं भी पिया॥ ४६॥
श्लोक-४७
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते तत्र ददृशुर्बाला महासत्त्वमवस्थितम्।
तत्रसुर्वज्रनिर्भिन्नं गिरेः शृङ्गमिव च्युतम्॥
मूलम्
ते तत्र ददृशुर्बाला महासत्त्वमवस्थितम्।
तत्रसुर्वज्रनिर्भिन्नं गिरेः शृङ्गमिव च्युतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ग्वालबालोंने देखा कि वहाँ एक बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ है। वह ऐसा मालूम पड़ता था, मानो इन्द्रके वज्रसे कटकर कोई पहाड़का टुकड़ा गिरा हुआ है॥ ४७॥
श्लोक-४८
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वै बको नाम महानसुरो बकरूपधृक्।
आगत्य सहसा कृष्णं तीक्ष्णतुण्डोऽग्रसद् बली॥
मूलम्
स वै बको नाम महानसुरो बकरूपधृक्।
आगत्य सहसा कृष्णं तीक्ष्णतुण्डोऽग्रसद् बली॥
अनुवाद (हिन्दी)
ग्वालबाल उसे देखकर डर गये। वह ‘बक’ नामका एक बड़ा भारी असुर था, जो बगुलेका रूप धरके वहाँ आया था। उसकी चोंच बड़ी तीखी थी और वह स्वयं बड़ा बलवान् था। उसने झपटकर श्रीकृष्णको निगल लिया॥ ४८॥
श्रीसुदर्शनसूरिः
अन्वाभावि अनुभूयते स्म ॥ ४६-४८ ॥
इति श्रीमद्भागवतव्याख्याने दशमस्कन्धे श्रीसुदर्शनसूरिकृते शुकपक्षीये एकादशोऽयायः ॥ ११ ॥
श्लोक-४९
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृष्णं महाबकग्रस्तं दृष्ट्वा रामादयोऽर्भकाः।
बभूवुरिन्द्रियाणीव विना प्राणं विचेतसः॥
मूलम्
कृष्णं महाबकग्रस्तं दृष्ट्वा रामादयोऽर्भकाः।
बभूवुरिन्द्रियाणीव विना प्राणं विचेतसः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब बलराम आदि बालकोंने देखा कि वह बड़ा भारी बगुला श्रीकृष्णको निगल गया, तब उनकी वही गति हुई जो प्राण निकल जानेपर इन्द्रियोंकी होती है। वे अचेत हो गये॥ ४९॥
श्लोक-५०
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तालुमूलं प्रदहन्तमग्निवद्
गोपालसूनुं पितरं जगद्गुरोः।
चच्छर्द सद्योऽतिरुषाक्षतं बक-
स्तुण्डेन हन्तुं पुनरभ्यपद्यत॥
मूलम्
तं तालुमूलं प्रदहन्तमग्निवद्
गोपालसूनुं पितरं जगद्गुरोः।
चच्छर्द सद्योऽतिरुषाक्षतं बक-
स्तुण्डेन हन्तुं पुनरभ्यपद्यत॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! श्रीकृष्ण लोकपितामह ब्रह्माके भी पिता हैं। वे लीलासे ही गोपाल-बालक बने हुए हैं। जब वे बगुलेके तालुके नीचे पहुँचे, तब वे आगके समान उसका तालु जलाने लगे। अतः उस दैत्यने श्रीकृष्णके शरीरपर बिना किसी प्रकारका घाव किये ही झटपट उन्हें उगल दिया और फिर बड़े क्रोधसे अपनी कठोर चोंचसे उनपर चोट करनेके लिये टूट पड़ा॥ ५०॥
श्लोक-५१
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं स निगृह्य तुण्डयो-
र्दोर्भ्यां बकं कंससखं सतां पतिः।
पश्यत्सु बालेषु ददार लीलया
मुदावहो वीरणवद् दिवौकसाम्॥
मूलम्
तमापतन्तं स निगृह्य तुण्डयो-
र्दोर्भ्यां बकं कंससखं सतां पतिः।
पश्यत्सु बालेषु ददार लीलया
मुदावहो वीरणवद् दिवौकसाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
कंसका सखा बकासुर अभी भक्तवत्सल भगवान् श्रीकृष्णपर झपट ही रहा था कि उन्होंने अपने दोनों हाथोंसे उसके दोनों ठोर पकड़ लिये और ग्वालबालोंके देखते-देखते खेल-ही-खेलमें उसे वैसे ही चीर डाला, जैसे कोई वीरण (गाँड़र, जिसकी जड़का खस होता है) को चीर डाले। इससे देवताओंको बड़ा आनन्द हुआ॥ ५१॥
श्लोक-५२
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदा बकारिं सुरलोकवासिनः
समाकिरन् नन्दनमल्लिकादिभिः।
समीडिरे चानकशङ्खसंस्तवै-
स्तद् वीक्ष्य गोपालसुता विसिस्मिरे॥
मूलम्
तदा बकारिं सुरलोकवासिनः
समाकिरन् नन्दनमल्लिकादिभिः।
समीडिरे चानकशङ्खसंस्तवै-
स्तद् वीक्ष्य गोपालसुता विसिस्मिरे॥
अनुवाद (हिन्दी)
सभी देवता भगवान् श्रीकृष्णपर नन्दनवनके बेला, चमेली आदिके फूल बरसाने लगे तथा नगारे, शंख आदि बजाकर एवं स्तोत्रोंके द्वारा उनको प्रसन्न करने लगे। यह सब देखकर सब-के-सब ग्वालबाल आश्चर्यचकित हो गये॥ ५२॥
श्लोक-५३
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुक्तं बकास्यादुपलभ्य बालका
रामादयः प्राणमिवैन्द्रियो गणः।
स्थानागतं तं परिरभ्य निर्वृताः
प्रणीय वत्सान् व्रजमेत्य तज्जगुः॥
मूलम्
मुक्तं बकास्यादुपलभ्य बालका
रामादयः प्राणमिवैन्द्रियो गणः।
स्थानागतं तं परिरभ्य निर्वृताः
प्रणीय वत्सान् व्रजमेत्य तज्जगुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब बलराम आदि बालकोंने देखा कि श्रीकृष्ण बगुलेके मुँहसे निकलकर हमारे पास आ गये हैं, तब उन्हें ऐसा आनन्द हुआ, मानो प्राणोंके संचारसे इन्द्रियाँ सचेत और आनन्दित हो गयी हों। सबने भगवान्को अलग-अलग गले लगाया। इसके बाद अपने-अपने बछड़े हाँककर सब व्रजमें आये और वहाँ उन्होंने घरके लोगोंसे सारी घटना कह सुनायी॥ ५३॥
श्लोक-५४
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुत्वा तद् विस्मिता गोपा गोप्यश्चातिप्रियादृताः।
प्रेत्यागतमिवौत्सुक्यादैक्षन्त तृषितेक्षणाः॥
मूलम्
श्रुत्वा तद् विस्मिता गोपा गोप्यश्चातिप्रियादृताः।
प्रेत्यागतमिवौत्सुक्यादैक्षन्त तृषितेक्षणाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! बकासुरके वधकी घटना सुनकर सब-के-सब गोपी-गोप आश्चर्यचकित हो गये। उन्हें ऐसा जान पड़ा, जैसे कन्हैया साक्षात् मृत्युके मुखसे ही लौटे हों। वे बड़ी उत्सुकता, प्रेम और आदरसे श्रीकृष्णको निहारने लगे। उनके नेत्रोंकी प्यास बढ़ती ही जाती थी, किसी प्रकार उन्हें तृप्ति न होती थी॥ ५४॥
श्लोक-५५
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहो बतास्य बालस्य बहवो मृत्यवोऽभवन्।
अप्यासीद् विप्रियं तेषां कृतं पूर्वं यतो भयम्॥
मूलम्
अहो बतास्य बालस्य बहवो मृत्यवोऽभवन्।
अप्यासीद् विप्रियं तेषां कृतं पूर्वं यतो भयम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे आपसमें कहने लगे—‘हाय! हाय!! यह कितने आश्चर्यकी बात है। इस बालकको कई बार मृत्युके मुँहमें जाना पड़ा। परन्तु जिन्होंने इसका अनिष्ट करना चाहा, उन्हींका अनिष्ट हुआ। क्योंकि उन्होंने पहलेसे दूसरोंका अनिष्ट किया था॥ ५५॥
श्लोक-५६
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथाप्यभिभवन्त्येनं नैव ते घोरदर्शनाः।
जिघांसयैनमासाद्य नश्यन्त्यग्नौ पतङ्गवत्॥
मूलम्
अथाप्यभिभवन्त्येनं नैव ते घोरदर्शनाः।
जिघांसयैनमासाद्य नश्यन्त्यग्नौ पतङ्गवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सब होनेपर भी वे भयंकर असुर इसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते। आते हैं इसे मार डालनेकी नीयतसे, किन्तु आगपर गिरकर पतिंगोंकी तरह उलटे स्वयं स्वाहा हो जाते हैं॥ ५६॥
श्लोक-५७
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहो ब्रह्मविदां वाचो नासत्याः सन्ति कर्हिचित्।
गर्गो यदाह भगवानन्वभावि तथैव तत्॥
मूलम्
अहो ब्रह्मविदां वाचो नासत्याः सन्ति कर्हिचित्।
गर्गो यदाह भगवानन्वभावि तथैव तत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
सच है, ब्रह्मवेत्ता महात्माओंके वचन कभी झूठे नहीं होते। देखो न, महात्मा गर्गाचार्यने जितनी बातें कही थीं, सब-की-सब सोलहों आने ठीक उतर रही हैं’॥ ५७॥
श्लोक-५८
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति नन्दादयो गोपाः कृष्णरामकथां मुदा।
कुर्वन्तो रममाणाश्च नाविन्दन् भववेदनाम्॥
मूलम्
इति नन्दादयो गोपाः कृष्णरामकथां मुदा।
कुर्वन्तो रममाणाश्च नाविन्दन् भववेदनाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
नन्दबाबा आदि गोपगण इसी प्रकार बड़े आनन्दसे अपने श्याम और रामकी बातें किया करते। वे उनमें इतने तन्मय रहते कि उन्हें संसारके दुःख-संकटोंका कुछ पता ही न चलता॥ ५८॥
श्लोक-५९
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं विहारैः कौमारैः कौमारं जहतुर्व्रजे।
निलायनैः सेतुबन्धैर्मर्कटोत्प्लवनादिभिः॥
मूलम्
एवं विहारैः कौमारैः कौमारं जहतुर्व्रजे।
निलायनैः सेतुबन्धैर्मर्कटोत्प्लवनादिभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार श्याम और बलराम ग्वालबालोंके साथ कभी आँखमिचौनी खेलते, तो कभी पुल बाँधते। कभी बंदरोंकी भाँति उछलते-कूदते, तो कभी और कोई विचित्र खेल करते। इस प्रकारके बालोचित खेलोंसे उन दोनोंने व्रजमें अपनी बाल्यावस्था व्यतीत की॥ ५९॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे वत्सबकवधो नामैकादशोऽध्यायः॥ ११॥