०५ नन्दवसुदेवसङ्गमः

[पञ्चमोऽध्यायः]

भागसूचना

गोकुलमें भगवान‍्का जन्ममहोत्सव

श्लोक-१

मूलम् (वचनम्)

श्रीशुक उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताह्लादो महामनाः।
आहूय विप्रान् वेदज्ञान् स्नातः शुचिरलङ्कृतः॥

मूलम्

नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताह्लादो महामनाः।
आहूय विप्रान् वेदज्ञान् स्नातः शुचिरलङ्कृतः॥

श्लोक-२

विश्वास-प्रस्तुतिः

वाचयित्वा स्वस्त्ययनं जातकर्मात्मजस्य वै।
कारयामास विधिवत् पितृदेवार्चनं तथा॥

मूलम्

वाचयित्वा स्वस्त्ययनं जातकर्मात्मजस्य वै।
कारयामास विधिवत् पितृदेवार्चनं तथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! नन्दबाबा बड़े मनस्वी और उदार थे। पुत्रका जन्म होनेपर तो उनका हृदय विलक्षण आनन्दसे भर गया। उन्होंने स्नान किया और पवित्र होकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किये। फिर वेदज्ञ ब्राह्मणोंको बुलवाकर स्वस्तिवाचन और अपने पुत्रका जातकर्म-संस्कार करवाया। साथ ही देवता और पितरोंकी विधिपूर्वक पूजा भी करवायी॥ १-२॥

श्लोक-३

विश्वास-प्रस्तुतिः

धेनूनां नियुते प्रादाद् विप्रेभ्यः समलङ्कृते।
तिलाद्रीन् सप्त रत्नौघशातकौम्भाम्बरावृतान्॥

मूलम्

धेनूनां नियुते प्रादाद् विप्रेभ्यः समलङ्कृते।
तिलाद्रीन् सप्त रत्नौघशातकौम्भाम्बरावृतान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने ब्राह्मणोंको वस्त्र और आभूषणोंसे सुसज्जित दो लाख गौएँ दान कीं। रत्नों और सुनहले वस्त्रोंसे ढके हुए तिलके सात पहाड़ दान किये॥ ३॥

श्लोक-४

विश्वास-प्रस्तुतिः

कालेन स्नानशौचाभ्यां संस्कारैस्तपसेज्यया।
शुध्यन्ति दानैः सन्तुष्ट्या द्रव्याण्यात्माऽऽत्मविद्यया॥

मूलम्

कालेन स्नानशौचाभ्यां संस्कारैस्तपसेज्यया।
शुध्यन्ति दानैः सन्तुष्ट्या द्रव्याण्यात्माऽऽत्मविद्यया॥

अनुवाद (हिन्दी)

(संस्कारोंसे ही गर्भशुद्धि होती है—यह प्रदर्शित करनेके लिये अनेक दृष्टान्तोंका उल्लेख करते हैं—) समयसे (नूतनजल, अशुद्धभूमि आदि), स्नानसे (शरीर आदि), प्रक्षालनसे (वस्त्रादि), संस्कारोंसे (गर्भादि), तपस्यासे (इन्द्रियादि), यज्ञसे (ब्राह्मणादि), दानसे (धन-धान्यादि) और संतोषसे (मन आदि) द्रव्य शुद्ध होते हैं। परन्तु आत्माकी शुद्धि तो आत्मज्ञानसे ही होती है॥ ४॥

श्लोक-५

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौमङ्गल्यगिरो विप्राः सूतमागधवन्दिनः।
गायकाश्च जगुर्नेदुर्भेर्यो दुन्दुभयो मुहुः॥

मूलम्

सौमङ्गल्यगिरो विप्राः सूतमागधवन्दिनः।
गायकाश्च जगुर्नेदुर्भेर्यो दुन्दुभयो मुहुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय ब्राह्मण, सूत,१ मागध२ और वंदीजन३ मंगलमय आशीर्वाद देने तथा स्तुति करने लगे। गायक गाने लगे। भेरी और दुन्दुभियाँ बार-बार बजने लगीं॥ ५॥

पादटिप्पनी

१. पौराणिक। २. वंशका वर्णन करनेवाले। ३. समयानुसार उक्तियोंसे स्तुति करनेवाले भाट। जैसा कि कहा है—
‘सूताः पौराणिकाःप्रोक्ता मागधा वंशशंसकाः।
वन्दिनस्त्वमलप्रज्ञाः प्रस्तावसदृशोक्तयः॥’

श्लोक-६

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्रजः सम्मृष्टसंसिक्तद्वाराजिरगृहान्तरः।
चित्रध्वजपताकास्रक्चैलपल्लवतोरणैः॥

मूलम्

व्रजः सम्मृष्टसंसिक्तद्वाराजिरगृहान्तरः।
चित्रध्वजपताकास्रक्चैलपल्लवतोरणैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

व्रजमण्डलके सभी घरोंके द्वार, आँगन और भीतरी भाग झाड़-बुहार दिये गये; उनमें सुगन्धित जलका छिड़काव किया गया; उन्हें चित्र-विचित्र, ध्वजा-पताका, पुष्पोंकी मालाओं, रंग-बिरंगे वस्त्र और पल्लवोंकी बन्दनवारोंसे सजाया गया॥ ६॥

श्लोक-७

विश्वास-प्रस्तुतिः

गावो वृषा वत्सतरा हरिद्रातैलरूषिताः।
विचित्रधातुबर्हस्रग्वस्त्रकाञ्चनमालिनः॥

मूलम्

गावो वृषा वत्सतरा हरिद्रातैलरूषिताः।
विचित्रधातुबर्हस्रग्वस्त्रकाञ्चनमालिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

गाय, बैल और बछड़ोंके अंगोंमें हल्दी-तेलका लेप कर दिया गया और उन्हें गेरू आदि रंगीन धातुएँ, मोरपंख, फूलोंके हार, तरह-तरहके सुन्दर वस्त्र और सोनेकी जंजीरोंसे सजा दिया गया॥ ७॥

श्लोक-८

विश्वास-प्रस्तुतिः

महार्हवस्त्राभरणकञ्चुकोष्णीषभूषिताः।
गोपाः समाययू राजन् नानोपायनपाणयः॥

मूलम्

महार्हवस्त्राभरणकञ्चुकोष्णीषभूषिताः।
गोपाः समाययू राजन् नानोपायनपाणयः॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! सभी ग्वाल बहुमूल्य वस्त्र, गहने, अँगरखे और पगड़ियोंसे सुसज्जित होकर और अपने हाथोंमें भेंटकी बहुत-सी सामग्रियाँ ले-लेकर नन्दबाबाके घर आये॥ ८॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

॥ १-३ ॥ प्रसङ्गात् द्रव्यशुद्धिहेतूनाह- कालेनेति कालचोदितकालः ॥ ४-८ ॥

श्लोक-९

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोप्यश्चाकर्ण्य मुदिता यशोदायाः सुतोद‍्भवम्।
आत्मानं भूषयाञ्चक्रुर्वस्त्राकल्पाञ्जनादिभिः॥

मूलम्

गोप्यश्चाकर्ण्य मुदिता यशोदायाः सुतोद‍्भवम्।
आत्मानं भूषयाञ्चक्रुर्वस्त्राकल्पाञ्जनादिभिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

यशोदाजीके पुत्र हुआ है, यह सुनकर गोपियोंको भी बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, आभूषण और अंजन आदिसे अपना शृंगार किया॥ ९॥

श्लोक-१०

विश्वास-प्रस्तुतिः

नवकुङ्कुमकिञ्जल्कमुखपङ्कजभूतयः।
बलिभिस्त्वरितं जग्मुः पृथुश्रोण्यश्चलत्कुचाः॥

मूलम्

नवकुङ्कुमकिञ्जल्कमुखपङ्कजभूतयः।
बलिभिस्त्वरितं जग्मुः पृथुश्रोण्यश्चलत्कुचाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

गोपियोंके मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे। उनपर लगी हुई कुंकुम ऐसी लगती मानो कमलकी केशर हो। उनके नितम्ब बड़े-बड़े थे। वे भेंटकी सामग्री ले-लेकर जल्दी-जल्दी यशोदाजीके पास चलीं। उस समय उनके पयोधर हिल रहे थे॥ १०॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

आकल्पो भूषणम् ॥ ९-१०

श्लोक-११

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोप्यः सुमृष्टमणिकुण्डलनिष्ककण्ठ्य-
श्चित्राम्बराः पथि शिखाच्युतमाल्यवर्षाः।
नन्दालयं सवलया व्रजतीर्विरेजु-
र्व्यालोलकुण्डलपयोधरहारशोभाः॥

मूलम्

गोप्यः सुमृष्टमणिकुण्डलनिष्ककण्ठ्य-
श्चित्राम्बराः पथि शिखाच्युतमाल्यवर्षाः।
नन्दालयं सवलया व्रजतीर्विरेजु-
र्व्यालोलकुण्डलपयोधरहारशोभाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

गोपियोंके कानोंमें चमकती हुई मणियोंके कुण्डल झिलमिला रहे थे। गलेमें सोनेके हार (हैकल या हुमेल) जगमगा रहे थे। वे बड़े सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए थीं। मार्गमें उनकी चोटियोंमें गुँथे हुए फूल बरसते जा रहे थे। हाथोंमें जड़ाऊ कंगन अलग ही चमक रहे थे। उनके कानोंके कुण्डल, पयोधर और हार हिलते जाते थे। इस प्रकार नन्दबाबाके घर जाते समय उनकी शोभा बड़ी अनूठी जान पड़ती थी॥ ११॥

श्लोक-१२

विश्वास-प्रस्तुतिः

ता आशिषः प्रयुञ्जानाश्चिरं पाहीति बालके।
हरिद्राचूर्णतैलाद‍्भिः सिञ्चन्त्योऽजनमुज्जगुः॥

मूलम्

ता आशिषः प्रयुञ्जानाश्चिरं पाहीति बालके।
हरिद्राचूर्णतैलाद‍्भिः सिञ्चन्त्योऽजनमुज्जगुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

नन्दबाबाके घर जाकर वे नवजात शिशुको आशीर्वाद देतीं ‘यह चिरजीवी हो, भगवन्! इसकी रक्षा करो।’ और लोगोंपर हल्दी-तेलसे मिला हुआ पानी छिड़क देतीं तथा ऊँचे स्वरसे मंगलगान करती थीं॥ १२॥

श्लोक-१३

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवाद्यन्त विचित्राणि वादित्राणि महोत्सवे।
कृष्णे विश्वेश्वरेऽनन्ते नन्दस्य व्रजमागते॥

मूलम्

अवाद्यन्त विचित्राणि वादित्राणि महोत्सवे।
कृष्णे विश्वेश्वरेऽनन्ते नन्दस्य व्रजमागते॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीकृष्ण समस्त जगत‍्के एकमात्र स्वामी हैं। उनके ऐश्वर्य, माधुर्य, वात्सल्य—सभी अनन्त हैं। वे जब नन्दबाबाके व्रजमें प्रकट हुए, उस समय उनके जन्मका महान् उत्सव मनाया गया। उसमें बड़े-बड़े विचित्र और मंगलमय बाजे बजाये जाने लगे॥ १३॥

श्लोक-१४

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोपाः परस्परं हृष्टा दधिक्षीरघृताम्बुभिः।
आसिञ्चन्तो विलिम्पन्तो नवनीतैश्च चिक्षिपुः॥

मूलम्

गोपाः परस्परं हृष्टा दधिक्षीरघृताम्बुभिः।
आसिञ्चन्तो विलिम्पन्तो नवनीतैश्च चिक्षिपुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

आनन्दसे मतवाले होकर गोपगण एक-दूसरेपर दही, दूध, घी और पानी उड़ेलने लगे। एक-दूसरेके मुँहपर मक्खन मलने लगे और मक्खन फेंक-फेंककर आनन्दोत्सव मनाने लगे॥ १४॥

श्लोक-१५

विश्वास-प्रस्तुतिः

नन्दो महामनास्तेभ्यो वासोऽलङ्कारगोधनम्।
सूतमागधवन्दिभ्यो येऽन्ये विद्योपजीविनः॥

मूलम्

नन्दो महामनास्तेभ्यो वासोऽलङ्कारगोधनम्।
सूतमागधवन्दिभ्यो येऽन्ये विद्योपजीविनः॥

श्लोक-१६

विश्वास-प्रस्तुतिः

तैस्तैः कामैरदीनात्मा यथोचितमपूजयत्।
विष्णोराराधनार्थाय स्वपुत्रस्योदयाय च॥

मूलम्

तैस्तैः कामैरदीनात्मा यथोचितमपूजयत्।
विष्णोराराधनार्थाय स्वपुत्रस्योदयाय च॥

अनुवाद (हिन्दी)

नन्दबाबा स्वभावसे ही परम उदार और मनस्वी थे। उन्होंने गोपोंको बहुत-से वस्त्र, आभूषण और गौएँ दीं। सूत-मागध-वंदीजनों, नृत्य, वाद्य आदि विद्याओंसे अपना जीवन-निर्वाह करनेवालों तथा दूसरे गुणीजनोंको भी नन्दबाबाने प्रसन्नतापूर्वक उनकी मुँहमाँगी वस्तुएँ देकर उनका यथोचित सत्कार किया। यह सब करनेमें उनका उद्देश्य यही था कि इन कर्मोंसे भगवान् विष्णु प्रसन्न हों और मेरे इस नवजात शिशुका मंगल हो॥ १५-१६॥

श्लोक-१७

विश्वास-प्रस्तुतिः

रोहिणी च महाभागा नन्दगोपाभिनन्दिता।
व्यचरद् दिव्यवासःस्रक्‍कण्ठाभरणभूषिता॥

मूलम्

रोहिणी च महाभागा नन्दगोपाभिनन्दिता।
व्यचरद् दिव्यवासःस्रक्‍कण्ठाभरणभूषिता॥

अनुवाद (हिन्दी)

नन्दबाबाके अभिनन्दन करनेपर परम सौभाग्यवती रोहिणीजी दिव्य वस्त्र, माला और गलेके भाँति-भाँतिके गहनोंसे सुसज्जित होकर गृहस्वामिनीकी भाँति आने-जानेवाली स्त्रियोंका सत्कार करती हुई विचर रही थीं॥ १७॥

श्लोक-१८

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत आरभ्य नन्दस्य व्रजः सर्वसमृद्धिमान्।
हरेर्निवासात्मगुणै रमाक्रीडमभून्नृप॥

मूलम्

तत आरभ्य नन्दस्य व्रजः सर्वसमृद्धिमान्।
हरेर्निवासात्मगुणै रमाक्रीडमभून्नृप॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! उसी दिनसे नन्दबाबाके व्रजमें सब प्रकारकी ऋद्धि-सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगीं और भगवान् श्रीकृष्णके निवास तथा अपने स्वाभाविक गुणोंके कारण वह लक्ष्मीजीका क्रीडास्थल बन गया॥ १८॥

श्लोक-१९

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोपान् गोकुलरक्षायां निरूप्य मथुरां गतः।
नन्दः कंसस्य वार्षिक्यं करं दातुं कुरूद्वह॥

मूलम्

गोपान् गोकुलरक्षायां निरूप्य मथुरां गतः।
नन्दः कंसस्य वार्षिक्यं करं दातुं कुरूद्वह॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! कुछ दिनोंके बाद नन्दबाबाने गोकुलकी रक्षाका भार तो दूसरे गोपोंको सौंप दिया और वे स्वयं कंसका वार्षिक कर चुकानेके लिये मथुरा चले गये॥ १९॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

कुण्डलं कर्णभूषणं निष्कं कण्ठाभरणं सवलयः सोपहाराः ।। ११-१९ ॥

श्लोक-२०

विश्वास-प्रस्तुतिः

वसुदेव उपश्रुत्य भ्रातरं नन्दमागतम्।
ज्ञात्वा दत्तकरं राज्ञे ययौ तदवमोचनम्॥

मूलम्

वसुदेव उपश्रुत्य भ्रातरं नन्दमागतम्।
ज्ञात्वा दत्तकरं राज्ञे ययौ तदवमोचनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब वसुदेवजीको यह मालूम हुआ कि हमारे भाई नन्दजी मथुरामें आये हैं और राजा कंसको उसका कर भी दे चुके हैं, तब वे जहाँ नन्दबाबा ठहरे हुए थे, वहाँ गये॥ २०॥

श्लोक-२१

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं दृष्ट्वा सहसोत्थाय देहः प्राणमिवागतम्।
प्रीतः प्रियतमं दोर्भ्यां सस्वजे प्रेमविह्वलः॥

मूलम्

तं दृष्ट्वा सहसोत्थाय देहः प्राणमिवागतम्।
प्रीतः प्रियतमं दोर्भ्यां सस्वजे प्रेमविह्वलः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वसुदेवजीको देखते ही नन्दजी सहसा उठकर खड़े होगये मानो मृतक शरीरमें प्राण आ गया हो। उन्होंने बड़े प्रेमसे अपने प्रियतम वसुदेवजीको दोनों हाथोंसे पकड़कर हृदयसे लगा लिया। नन्दबाबा उस समय प्रेमसे विह्वल हो रहे थे॥ २१॥

श्लोक-२२

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूजितः सुखमासीनः पृष्ट्वानामयमादृतः।
प्रसक्तधीः स्वात्मजयोरिदमाह विशाम्पते॥

मूलम्

पूजितः सुखमासीनः पृष्ट्वानामयमादृतः।
प्रसक्तधीः स्वात्मजयोरिदमाह विशाम्पते॥

अनुवाद (हिन्दी)

परीक्षित्! नन्दबाबाने वसुदेवजीका बड़ा स्वागत-सत्कार किया। वे आदरपूर्वक आरामसे बैठ गये। उस समय उनका चित्त अपने पुत्रोंमें लग रहा था। वे नन्दबाबासे कुशलमंगल पूछकर कहने लगे॥ २२॥

श्लोक-२३

मूलम् (वचनम्)

वसुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिष्ट्या भ्रातः प्रवयस इदानीमप्रजस्य ते।
प्रजाशाया निवृत्तस्य प्रजा यत् समपद्यत॥

मूलम्

दिष्ट्या भ्रातः प्रवयस इदानीमप्रजस्य ते।
प्रजाशाया निवृत्तस्य प्रजा यत् समपद्यत॥

अनुवाद (हिन्दी)

वसुदेवजीने कहा— ‘भाई! तुम्हारी अवस्था ढल चली थी और अबतक तुम्हें कोई सन्तान नहीं हुई थी। यहाँतक कि अब तुम्हें सन्तानकी कोई आशा भी न थी। यह बड़े सौभाग्यकी बात है कि अब तुम्हें सन्तान प्राप्त हो गयी॥ २३॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

तदवमोचनं यत्र समवहारा मुच्यते तदवमोचनं प्रयाणे निवासस्थानम् ॥ २०-२३ ॥

श्लोक-२४

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिष्ट्या संसारचक्रेऽस्मिन् वर्तमानः पुनर्भवः।
उपलब्धो भवानद्य दुर्लभं प्रियदर्शनम्॥

मूलम्

दिष्ट्या संसारचक्रेऽस्मिन् वर्तमानः पुनर्भवः।
उपलब्धो भवानद्य दुर्लभं प्रियदर्शनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह भी बड़े आनन्दका विषय है कि आज हमलोगोंका मिलना हो गया। अपने प्रेमियोंका मिलना भी बड़ा दुर्लभ है। इस संसारका चक्र ही ऐसा है। इसे तो एक प्रकारका पुनर्जन्म ही समझना चाहिये॥ २४॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

पुनर्भवः पुत्ररूपेणोत्पत्तिः दक्षिणा भवति ॥ २४ ॥

श्लोक-२५

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैकत्र प्रियसंवासः सुहृदां चित्रकर्मणाम्।
ओघेन व्यूह्यमानानां प्लवानां स्रोतसो यथा॥

मूलम्

नैकत्र प्रियसंवासः सुहृदां चित्रकर्मणाम्।
ओघेन व्यूह्यमानानां प्लवानां स्रोतसो यथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे नदीके प्रबल प्रवाहमें बहते हुए बेड़े और तिनके सदा एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही सगे-सम्बन्धी और प्रेमियोंका भी एक स्थानपर रहना सम्भव नहीं है—यद्यपि वह सबको प्रिय लगता है। क्योंकि सबके प्रारब्धकर्म अलग-अलग होते हैं॥ २५॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

चित्रकर्मणां विविधकर्मणा प्लवशब्दः काष्ठपरः ॥ २५ ॥

श्लोक-२६

विश्वास-प्रस्तुतिः

कच्चित् पशव्यं निरुजं भूर्यम्बुतृणवीरुधम्।
बृहद्वनं तदधुना यत्रास्से त्वं सुहृद्‍‍वृतः॥

मूलम्

कच्चित् पशव्यं निरुजं भूर्यम्बुतृणवीरुधम्।
बृहद्वनं तदधुना यत्रास्से त्वं सुहृद्‍‍वृतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

आजकल तुम जिस महावनमें अपने भाई-बन्धु और स्वजनोंके साथ रहते हो, उसमें जल, घास और लता-पत्रादि तो भरे-पूरे हैं न? वह वन पशुओंके लिये अनुकूल और सब प्रकारके रोगोंसे तो बचा है?॥ २६॥

श्लोक-२७

विश्वास-प्रस्तुतिः

भ्रातर्मम सुतः कच्चिन्मात्रा सह भवद्‍व्रजे।
तातं भवन्तं मन्वानो भवद‍्भ्यामुपलालितः॥

मूलम्

भ्रातर्मम सुतः कच्चिन्मात्रा सह भवद्‍व्रजे।
तातं भवन्तं मन्वानो भवद‍्भ्यामुपलालितः॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाई! मेरा लड़का अपनी माँ (रोहिणी) के साथ तुम्हारे व्रजमें रहता है। उसका लालन-पालन तुम और यशोदा करते हो, इसलिये वह तो तुम्हींको अपने पिता-माता मानता होगा। वह अच्छी तरह है न?॥ २७॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

पशव्यं पशुहितं निरुजमरोगम् आस्से वससि ॥ २६-२७ ॥

श्लोक-२८

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुंसस्त्रिवर्गो विहितः सुहृदो ह्यनुभावितः।
न तेषु क्लिश्यमानेषु त्रिवर्गोऽर्थाय कल्पते॥

मूलम्

पुंसस्त्रिवर्गो विहितः सुहृदो ह्यनुभावितः।
न तेषु क्लिश्यमानेषु त्रिवर्गोऽर्थाय कल्पते॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्यके लिये वे ही धर्म, अर्थ और काम शास्त्रविहित हैं, जिनसे उसके स्वजनोंको सुख मिले। जिनसे केवल अपनेको ही सुख मिलता है; किन्तु अपने स्वजनोंको दुःख मिलता है, वे धर्म, अर्थ और काम हितकारी नहीं हैं’॥ २८॥

श्लोक-२९

मूलम् (वचनम्)

नन्द उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहो ते देवकीपुत्राः कंसेन बहवो हताः।
एकावशिष्टावरजा कन्या सापि दिवं गता॥

मूलम्

अहो ते देवकीपुत्राः कंसेन बहवो हताः।
एकावशिष्टावरजा कन्या सापि दिवं गता॥

अनुवाद (हिन्दी)

नन्दबाबाने कहा—भाई वसुदेव! कंसने देवकीके गर्भसे उत्पन्न तुम्हारे कई पुत्र मार डाले। अन्तमें एक सबसे छोटी कन्या बच रही थी, वह भी स्वर्ग सिधार गयी॥ २९॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

अर्थाय प्रयोजनाय ॥ २८-२९॥

पूजित इति १०.५. २२.

जानन् जगत्पतिरयं खलनाशकच श्रीकान्त इत्यनुभवादपि तत्त्वदृष्ट्या |
आनद यत्तदवनाय स नन्दमस्मात् मन्ये ममत्वसरणिर्भुवि दुर्विलङ्घ्या ॥ १३ ॥

श्लोक-३०

विश्वास-प्रस्तुतिः

नूनं ह्यदृष्टनिष्ठोऽयमदृष्टपरमो जनः।
अदृष्टमात्मनस्तत्त्वं यो वेद न स मुह्यति॥

मूलम्

नूनं ह्यदृष्टनिष्ठोऽयमदृष्टपरमो जनः।
अदृष्टमात्मनस्तत्त्वं यो वेद न स मुह्यति॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसमें सन्देह नहीं कि प्राणियोंका सुख-दुःख भाग्यपर ही अवलम्बित है। भाग्य ही प्राणीका एकमात्र आश्रय है। जो जान लेता है कि जीवनके सुख-दुःखका कारण भाग्य ही है, वह उनके प्राप्त होनेपर मोहित नहीं होता॥ ३०॥

श्लोक-३१

मूलम् (वचनम्)

वसुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

करो वै वार्षिको दत्तो राज्ञे दृष्टा वयं च वः।
नेह स्थेयं बहुतिथं सन्त्युत्पाताश्च गोकुले॥

मूलम्

करो वै वार्षिको दत्तो राज्ञे दृष्टा वयं च वः।
नेह स्थेयं बहुतिथं सन्त्युत्पाताश्च गोकुले॥

अनुवाद (हिन्दी)

वसुदेवजीने कहा—भाई! तुमने राजा कंसको उसका सालाना कर चुका दिया। हम दोनों मिल भी चुके। अब तुम्हें यहाँ अधिक दिन नहीं ठहरना चाहिये; क्योंकि आजकल गोकुलमें बड़े-बड़े उत्पात हो रहे हैं॥ ३१॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

अदृष्टमात्मन इति आत्मनोपेक्षितं दृष्टान्तत्वेन यो वेदेत्यर्थः ।। ३०-३१ ॥

श्लोक-३२

मूलम् (वचनम्)

श्रीशुक उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति नन्दादयो गोपाः प्रोक्तास्ते शौरिणा ययुः।
अनोभिरनडुद्युक्तैस्तमनुज्ञाप्य गोकुलम्॥

मूलम्

इति नन्दादयो गोपाः प्रोक्तास्ते शौरिणा ययुः।
अनोभिरनडुद्युक्तैस्तमनुज्ञाप्य गोकुलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! जब वसुदेवजीने इस प्रकार कहा, तब नन्द आदि गोपोंने उनसे अनुमति ले, बैलोंसे जुते हुए छकड़ोंपर सवार होकर गोकुलकी यात्रा की॥ ३२॥

श्रीसुदर्शनसूरिः

शौरिणा वसुदेवेन अनोभिः शकटैः ॥ ३२ ॥

इति श्रीमद्भागवतव्याख्याने दशमस्कन्धे शुकपक्षीये श्री सुदर्शनसूरिकृते पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥

अनुवाद (समाप्ति)

इति श्रीमद‍्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे नन्दवसुदेवसङ्गमो नाम पञ्चमोऽध्यायः॥ ५॥