[त्रयोविंशोऽध्यायः]
भागसूचना
अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनोः सभानरश्चक्षुः परोक्षश्च त्रयः सुताः।
सभानरात् कालनरः सृञ्जयस्तत्सुतस्ततः॥
मूलम्
अनोः सभानरश्चक्षुः परोक्षश्च त्रयः सुताः।
सभानरात् कालनरः सृञ्जयस्तत्सुतस्ततः॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनमेजयस्तस्य पुत्रो महाशीलो महामनाः।
उशीनरस्तितिक्षुश्च महामनस आत्मजौ॥
मूलम्
जनमेजयस्तस्य पुत्रो महाशीलो महामनाः।
उशीनरस्तितिक्षुश्च महामनस आत्मजौ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! ययातिनन्दन अनुके तीन पुत्र हुए—सभानर, चक्षु और परोक्ष। सभानरका कालनर, कालनरका सृंजय, सृंजयका जनमेजय, जनमेजयका महाशील, महाशीलका पुत्र हुआ महामना। महामनाके दो पुत्र हुए—उशीनर एवं तितिक्षु॥ १-२॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिबिर्वनः शमिर्दक्षश्चत्वारोशीनरात्मजाः।
वृषादर्भः सुवीरश्च मद्रः कैकेय आत्मजाः॥
मूलम्
शिबिर्वनः शमिर्दक्षश्चत्वारोशीनरात्मजाः।
वृषादर्भः सुवीरश्च मद्रः कैकेय आत्मजाः॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिबेश्चत्वार एवासंस्तितिक्षोश्च रुशद्रथः।
ततो हेमोऽथ सुतपा बलिः सुतपसोऽभवत्॥
मूलम्
शिबेश्चत्वार एवासंस्तितिक्षोश्च रुशद्रथः।
ततो हेमोऽथ सुतपा बलिः सुतपसोऽभवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उशीनरके चार पुत्र थे—शिबि, वन, शमी और दक्ष। शिबिके चार पुत्र हुए—बृषादर्भ, सुवीर, मद्र और कैकेय। उशीनरके भाई तितिक्षुके रुशद्रथ, रुशद्रथके हेम, हेमके सुतपा और सुतपाके बलि नामक पुत्र हुआ॥ ३-४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
अङ्गवङ्गकलिङ्गाद्याः सुह्मपुण्ड्रान्ध्रसंज्ञिताः।
जज्ञिरे दीर्घतमसो बलेः क्षेत्रे महीक्षितः॥
मूलम्
अङ्गवङ्गकलिङ्गाद्याः सुह्मपुण्ड्रान्ध्रसंज्ञिताः।
जज्ञिरे दीर्घतमसो बलेः क्षेत्रे महीक्षितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा बलिकी पत्नीके गर्भसे दीर्घतमा मुनिने छः पुत्र उत्पन्न किये—अंग, वंग, कलिंग, सुह्म, पुण्ड्र और अन्ध्र॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्रुः स्वनाम्ना विषयान् षडिमान् प्राच्यकांश्च ते।
खनपानोऽङ्गतो जज्ञे तस्माद् दिविरथस्ततः॥
मूलम्
चक्रुः स्वनाम्ना विषयान् षडिमान् प्राच्यकांश्च ते।
खनपानोऽङ्गतो जज्ञे तस्माद् दिविरथस्ततः॥
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुतो धर्मरथो यस्य जज्ञे चित्ररथोऽप्रजाः।
रोमपाद इति ख्यातस्तस्मै दशरथः सखा॥
मूलम्
सुतो धर्मरथो यस्य जज्ञे चित्ररथोऽप्रजाः।
रोमपाद इति ख्यातस्तस्मै दशरथः सखा॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
शान्तां स्वकन्यां प्रायच्छदृष्यशृङ्ग उवाह ताम्।
देवेऽवर्षति यं रामा आनिन्युर्हरिणीसुतम्॥
मूलम्
शान्तां स्वकन्यां प्रायच्छदृष्यशृङ्ग उवाह ताम्।
देवेऽवर्षति यं रामा आनिन्युर्हरिणीसुतम्॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाट्यसङ्गीतवादित्रैर्विभ्रमालिङ्गनार्हणैः।
स तु राज्ञोऽनपत्यस्य निरूप्येष्टिं मरुत्वतः॥
मूलम्
नाट्यसङ्गीतवादित्रैर्विभ्रमालिङ्गनार्हणैः।
स तु राज्ञोऽनपत्यस्य निरूप्येष्टिं मरुत्वतः॥
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रजामदाद् दशरथो येन लेभेऽप्रजाः प्रजाः।
चतुरङ्गो रोमपादात् पृथुलाक्षस्तु तत्सुतः॥
मूलम्
प्रजामदाद् दशरथो येन लेभेऽप्रजाः प्रजाः।
चतुरङ्गो रोमपादात् पृथुलाक्षस्तु तत्सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन लोगोंने अपने-अपने नामसे पूर्व दिशामें छः देश बसाये। अंगका पुत्र हुआ खनपान, खनपानका दिविरथ, दिविरथका धर्मरथ और धर्मरथका चित्ररथ। यह चित्ररथ ही रोमपादके नामसे प्रसिद्ध था। इसके मित्र थे अयोध्याधिपति महाराज दशरथ। रोमपादको कोई सन्तान न थी। इसलिये दशरथने उन्हें अपनी शान्ता नामकी कन्या गोद दे दी। शान्ताका विवाह ऋष्यश्रृंग मुनिसे हुआ। ऋष्यश्रृंग विभाण्डक ऋषिके द्वारा हरिणीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा रोमपादके राज्यमें बहुत दिनोंतक वर्षा नहीं हुई। तब गणिकाएँ अपने नृत्य, संगीत, वाद्य, हाव-भाव, आलिंगन और विविध उपहारोंसे मोहित करके ऋष्यश्रृंगको वहाँ ले आयीं। उनके आते ही वर्षा हो गयी। उन्होंने ही इन्द्र देवताका यज्ञ कराया, तब सन्तानहीन राजा रोमपादको भी पुत्र हुआ और पुत्रहीन दशरथने भी उन्हींके प्रयत्नसे चार पुत्र प्राप्त किये। रोमपादका पुत्र हुआ चतुरंग और चतुरंगका पृथुलाक्ष॥ ६—१०॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
बृहद्रथो बृहत्कर्मा बृहद्भानुश्च तत्सुताः।
आद्याद् बृहन्मनास्तस्माज्जयद्रथ उदाहृतः॥
मूलम्
बृहद्रथो बृहत्कर्मा बृहद्भानुश्च तत्सुताः।
आद्याद् बृहन्मनास्तस्माज्जयद्रथ उदाहृतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथुलाक्षके बृहद्रथ, बृहत्कर्मा और बृहद्भानु—तीन पुत्र हुए। बृहद्रथका पुत्र हुआ बृहन्मना और बृहन्मनाका जयद्रथ॥ ११॥
श्लोक-१२
विश्वास-प्रस्तुतिः
विजयस्तस्य सम्भूत्यां ततो धृतिरजायत।
ततो धृतव्रतस्तस्य सत्कर्माधिरथस्ततः॥
मूलम्
विजयस्तस्य सम्भूत्यां ततो धृतिरजायत।
ततो धृतव्रतस्तस्य सत्कर्माधिरथस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जयद्रथकी पत्नीका नाम था सम्भूति। उसके गर्भसे विजयका जन्म हुआ। विजयका धृति, धृतिका धृतव्रत, धृतव्रतका सत्कर्मा और सत्कर्माका पुत्र था अधिरथ॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
योऽसौ गङ्गातटे क्रीडन्मञ्जूषान्तर्गतं शिशुम्।
कुन्त्यापविद्धं कानीनमनपत्योऽकरोत् सुतम्॥
मूलम्
योऽसौ गङ्गातटे क्रीडन्मञ्जूषान्तर्गतं शिशुम्।
कुन्त्यापविद्धं कानीनमनपत्योऽकरोत् सुतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
अधिरथको कोई सन्तान न थी। किसी दिन वह गंगातटपर क्रीडा कर रहा था कि देखा एक पिटारीमें नन्हा-सा शिशु बहा चला जा रहा है। वह बालक कर्ण था, जिसे कुन्तीने कन्यावस्थामें उत्पन्न होनेके कारण उस प्रकार बहा दिया था। अधिरथने उसीको अपना पुत्र बना लिया॥ १३॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृषसेनः सुतस्तस्य कर्णस्य जगतीपतेः।
द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुस्तस्यात्मजस्ततः॥
मूलम्
वृषसेनः सुतस्तस्य कर्णस्य जगतीपतेः।
द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुस्तस्यात्मजस्ततः॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरब्धस्तस्य गान्धारस्तस्य धर्मस्ततो धृतः।
धृतस्य दुर्मनास्तस्मात् प्रचेताः प्राचेतसं शतम्॥
मूलम्
आरब्धस्तस्य गान्धारस्तस्य धर्मस्ततो धृतः।
धृतस्य दुर्मनास्तस्मात् प्रचेताः प्राचेतसं शतम्॥
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
म्लेच्छाधिपतयोऽभूवन्नुदीचीं दिशमाश्रिताः।
तुर्वसोश्च सुतो वह्निर्वह्नेर्भर्गोऽथ भानुमान्॥
मूलम्
म्लेच्छाधिपतयोऽभूवन्नुदीचीं दिशमाश्रिताः।
तुर्वसोश्च सुतो वह्निर्वह्नेर्भर्गोऽथ भानुमान्॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिभानुस्तत्सुतोऽस्यापि करन्धम उदारधीः।
मरुतस्तत्सुतोऽपुत्रः पुत्रं पौरवमन्वभूत्॥
मूलम्
त्रिभानुस्तत्सुतोऽस्यापि करन्धम उदारधीः।
मरुतस्तत्सुतोऽपुत्रः पुत्रं पौरवमन्वभूत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! राजा कर्णके पुत्रका नाम था बृषसेन। ययातिके पुत्र द्रुह्युसे बभ्रुका जन्म हुआ। बभ्रुका सेतु, सेतुका आरब्ध, आरब्धका गान्धार, गान्धारका धर्म, धर्मका धृत, धृतका दुर्मना और दुर्मनाका पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेताके सौ पुत्र हुए, ये उत्तरदिशामें म्लेच्छोंके राजा हुए। ययातिके पुत्र तुर्वसुका वह्नि, वह्निका भर्ग, भर्गका भानुमान्, भानुमान्का त्रिभानु, त्रिभानुका उदारबुद्धि करन्धम और करन्धमका पुत्र हुआ मरुत। मरुत सन्तानहीन था। इसलिये उसने पूरुवंशी दुष्यन्तको अपना पुत्र बनाकर रखा था॥ १४—१७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुष्यन्तः स पुनर्भेजे स्वं वंशं राज्यकामुकः।
ययातेर्ज्येष्ठपुत्रस्य यदोर्वंशं नरर्षभ॥
मूलम्
दुष्यन्तः स पुनर्भेजे स्वं वंशं राज्यकामुकः।
ययातेर्ज्येष्ठपुत्रस्य यदोर्वंशं नरर्षभ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परन्तु दुष्यन्त राज्यकी कामनासे अपने ही वंशमें लौट गये। परीक्षित्! अब मैं राजा ययातिके बड़े पुत्र यदुके वंशका वर्णन करता हूँ॥ १८॥
श्लोक-१९
विश्वास-प्रस्तुतिः
वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणाम्।
यदोर्वंशं नरः श्रुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
मूलम्
वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणाम्।
यदोर्वंशं नरः श्रुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! महाराज यदुका वंश परम पवित्र और मनुष्योंके समस्त पापोंको नष्ट करनेवाला है। जो मनुष्य इसका श्रवण करेगा, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जायगा॥ १९॥
श्लोक-२०
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत्रावतीर्णो भगवान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोः सहस्रजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः॥
मूलम्
यत्रावतीर्णो भगवान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोः सहस्रजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः॥
श्लोक-२१
विश्वास-प्रस्तुतिः
चत्वारः सूनवस्तत्र शतजित् प्रथमात्मजः।
महाहयो वेणुहयो हैहयश्चेति तत्सुताः॥
मूलम्
चत्वारः सूनवस्तत्र शतजित् प्रथमात्मजः।
महाहयो वेणुहयो हैहयश्चेति तत्सुताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस वंशमें स्वयं भगवान् परब्रह्म श्रीकृष्णने मनुष्यके-से रूपमें अवतार लिया था। यदुके चार पुत्र थे—सहस्रजित्, क्रोष्टा, नल और रिपु। सहस्रजित् से शतजित् का जन्म हुआ। शतजित् के तीन पुत्र थे—महाहय, वेणुहय और हैहय॥ २०-२१॥
श्लोक-२२
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्मस्तु हैहयसुतो नेत्रः कुन्तेः पिता ततः।
सोहञ्जिरभवत् कुन्तेर्महिष्मान् भद्रसेनकः॥
मूलम्
धर्मस्तु हैहयसुतो नेत्रः कुन्तेः पिता ततः।
सोहञ्जिरभवत् कुन्तेर्महिष्मान् भद्रसेनकः॥
अनुवाद (हिन्दी)
हैहयका धर्म, धर्मका नेत्र, नेत्रका कुन्ति, कुन्तिका सोहंजि, सोहंजिका महिष्मान् और महिष्मान् का पुत्र भद्रसेन हुआ॥ २२॥
श्लोक-२३
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्मदो भद्रसेनस्य धनकः कृतवीर्यसूः।
कृताग्निः कृतवर्मा च कृतौजा धनकात्मजाः॥
मूलम्
दुर्मदो भद्रसेनस्य धनकः कृतवीर्यसूः।
कृताग्निः कृतवर्मा च कृतौजा धनकात्मजाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
भद्रसेनके दो पुत्र थे—दुर्मद और धनक। धनकके चार पुत्र हुए—कृतवीर्य, कृताग्नि, कृतवर्मा और कृतौजा॥ २३॥
श्लोक-२४
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनः कृतवीर्यस्य सप्तद्वीपेश्वरोऽभवत्।
दत्तात्रेयाद्धरेरंशात् प्राप्तयोगमहागुणः॥
मूलम्
अर्जुनः कृतवीर्यस्य सप्तद्वीपेश्वरोऽभवत्।
दत्तात्रेयाद्धरेरंशात् प्राप्तयोगमहागुणः॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृतवीर्यका पुत्र अर्जुन था। वह सातों द्वीपका एकछत्र सम्राट् था। उसने भगवान्के अंशावतार श्रीदत्तात्रेयजीसे योगविद्या और अणिमा-लघिमा आदि बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं॥ २४॥
श्लोक-२५
विश्वास-प्रस्तुतिः
न नूनं कार्तवीर्यस्य गतिं यास्यन्ति पार्थिवाः।
यज्ञदानतपोयोगश्रुतवीर्यजयादिभिः॥
मूलम्
न नूनं कार्तवीर्यस्य गतिं यास्यन्ति पार्थिवाः।
यज्ञदानतपोयोगश्रुतवीर्यजयादिभिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसमें सन्देह नहीं कि संसारका कोई भी सम्राट् यज्ञ, दान, तपस्या, योग, शास्त्रज्ञान, पराक्रम और विजय आदि गुणोंमें कार्तवीर्य अर्जुनकी बराबरी नहीं कर सकेगा॥ २५॥
श्लोक-२६
विश्वास-प्रस्तुतिः
पञ्चाशीतिसहस्राणि ह्यव्याहतबलः समाः।
अनष्टवित्तस्मरणो बुभुजेऽक्षय्यषड्वसु॥
मूलम्
पञ्चाशीतिसहस्राणि ह्यव्याहतबलः समाः।
अनष्टवित्तस्मरणो बुभुजेऽक्षय्यषड्वसु॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहस्रबाहु अर्जुन पचासी हजार वर्षतक छहों इन्द्रियोंसे अक्षय विषयोंका भोग करता रहा। इस बीचमें न तो उसके शरीरका बल ही क्षीण हुआ और न तो कभी उसने यही स्मरण किया कि मेरे धनका नाश हो जायगा। उसके धनके नाशकी तो बात ही क्या है, उसका ऐसा प्रभाव था कि उसके स्मरणसे दूसरोंका खोया हुआ धन भी मिल जाता था॥ २६॥
श्लोक-२७
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य पुत्रसहस्रेषु पञ्चैवोर्वरिता मृधे।
जयध्वजः शूरसेनो वृषभो मधुरूर्जितः॥
मूलम्
तस्य पुत्रसहस्रेषु पञ्चैवोर्वरिता मृधे।
जयध्वजः शूरसेनो वृषभो मधुरूर्जितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके हजारों पुत्रोंमेंसे केवल पाँच ही जीवित रहे। शेष सब परशुरामजीकी क्रोधाग्निमें भस्म हो गये। बचे हुए पुत्रोंके नाम थे—जयध्वज, शूरसेन, वृषभ, मधु और ऊर्जित॥ २७॥
श्लोक-२८
विश्वास-प्रस्तुतिः
जयध्वजात् तालजङ्घस्तस्य पुत्रशतं त्वभूत्।
क्षत्रं यत् तालजङ्घाख्यमौर्वतेजोपसंहृतम्॥
मूलम्
जयध्वजात् तालजङ्घस्तस्य पुत्रशतं त्वभूत्।
क्षत्रं यत् तालजङ्घाख्यमौर्वतेजोपसंहृतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जयध्वजके पुत्रका नाम था तालजंघ। तालजंघके सौ पुत्र हुए। वे ‘तालजंघ’ नामक क्षत्रिय कहलाये। महर्षि और्वकी शक्तिसे राजा सगरने उनका संहार कर डाला॥ २८॥
श्लोक-२९
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां ज्येष्ठो वीतिहोत्रो वृष्णिः पुत्रो मधोः स्मृतः।
तस्य पुत्रशतं त्वासीद् वृष्णिज्येष्ठं यतः कुलम्॥
मूलम्
तेषां ज्येष्ठो वीतिहोत्रो वृष्णिः पुत्रो मधोः स्मृतः।
तस्य पुत्रशतं त्वासीद् वृष्णिज्येष्ठं यतः कुलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सौ पुत्रोंमें सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्रका पुत्र मधु हुआ। मधुके सौ पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि॥ २९॥
श्लोक-३०
विश्वास-प्रस्तुतिः
माधवा वृष्णयो राजन् यादवाश्चेति संज्ञिताः।
यदुपुत्रस्य च क्रोष्टोः पुत्रो वृजिनवांस्ततः॥
मूलम्
माधवा वृष्णयो राजन् यादवाश्चेति संज्ञिताः।
यदुपुत्रस्य च क्रोष्टोः पुत्रो वृजिनवांस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! इन्हीं मधु, वृष्णि और यदुके कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादवके नामसे प्रसिद्ध हुआ। यदुनन्दन क्रोष्टुके पुत्रका नाम था वृजिनवान्॥ ३०॥
श्लोक-३१
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्वाहिस्ततो रुशेकुर्वै तस्य चित्ररथस्ततः।
शशबिन्दुर्महायोगी महाभोजो महानभूत्॥
मूलम्
श्वाहिस्ततो रुशेकुर्वै तस्य चित्ररथस्ततः।
शशबिन्दुर्महायोगी महाभोजो महानभूत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वृजिनवान् का पुत्र श्वाहि, श्वाहिका रुशेकु, रुशेकुका चित्ररथ और चित्ररथके पुत्रका नाम था शशबिन्दु। वह परम योगी, महान् भोगैश्वर्यसम्पन्न और अत्यन्त पराक्रमी था॥ ३१॥
श्लोक-३२
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्दशमहारत्नश्चक्रवर्त्यपराजितः।
तस्य पत्नीसहस्राणां दशानां सुमहायशाः॥
मूलम्
चतुर्दशमहारत्नश्चक्रवर्त्यपराजितः।
तस्य पत्नीसहस्राणां दशानां सुमहायशाः॥
श्लोक-३३
विश्वास-प्रस्तुतिः
दशलक्षसहस्राणि पुत्राणां तास्वजीजनत्।
तेषां तु षट्प्रधानानां पृथुश्रवस आत्मजः॥
मूलम्
दशलक्षसहस्राणि पुत्राणां तास्वजीजनत्।
तेषां तु षट्प्रधानानां पृथुश्रवस आत्मजः॥
श्लोक-३४
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्मो नामोशना तस्य हयमेधशतस्य याट्।
तत्सुतो रुचकस्तस्य पञ्चासन्नात्मजाः शृणु॥
मूलम्
धर्मो नामोशना तस्य हयमेधशतस्य याट्।
तत्सुतो रुचकस्तस्य पञ्चासन्नात्मजाः शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह चौदह रत्नों* का स्वामी, चक्रवर्ती और युद्धमें अजेय था। परम यशस्वी शशबिन्दुके दस हजार पत्नियाँ थीं। उनमेंसे एक-एकके लाख-लाख सन्तान हुई थीं। इस प्रकार उसके सौ करोड़—एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुईं। उनमें पृथुश्रवा आदि छः पुत्र प्रधान थे। पृथुश्रवाके पुत्रका नाम था धर्म। धर्मका पुत्र उशना हुआ। उसने सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। उशनाका पुत्र हुआ रुचक। रुचकके पाँच पुत्र हुए, उनके नाम सुनो॥ ३२—३४॥
पादटिप्पनी
- चौदह रत्न ये हैं—हाथी, घोड़ा, रथ, स्त्री, बाण, खजाना, माला, वस्त्र, वृक्ष, शक्ति, पाश, मणि, छत्र और विमान।
श्लोक-३५
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरुजिद्रुक्मरुक्मेषुपृथुज्यामघसंज्ञिताः।
ज्यामघस्त्वप्रजोऽप्यन्यां भार्यां शैब्यापतिर्भयात्॥
मूलम्
पुरुजिद्रुक्मरुक्मेषुपृथुज्यामघसंज्ञिताः।
ज्यामघस्त्वप्रजोऽप्यन्यां भार्यां शैब्यापतिर्भयात्॥
श्लोक-३६
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाविन्दच्छत्रुभवनाद् भोज्यां कन्यामहारषीत्।
रथस्थां तां निरीक्ष्याह शैब्या पतिममर्षिता॥
मूलम्
नाविन्दच्छत्रुभवनाद् भोज्यां कन्यामहारषीत्।
रथस्थां तां निरीक्ष्याह शैब्या पतिममर्षिता॥
श्लोक-३७
विश्वास-प्रस्तुतिः
केयं कुहक मत्स्थानं रथमारोपितेति वै।
स्नुषा तवेत्यभिहिते स्मयन्ती पतिमब्रवीत्॥
मूलम्
केयं कुहक मत्स्थानं रथमारोपितेति वै।
स्नुषा तवेत्यभिहिते स्मयन्ती पतिमब्रवीत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुजित्, रुक्म, रुक्मेषु, पृथु और ज्यामघ। ज्यामघकी पत्नीका नाम था शैब्या। ज्यामघके बहुत दिनोंतक कोई सन्तान न हुई। परन्तु उसने अपनी पत्नीके भयसे दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार वह अपने शत्रुके घरसे भोज्या नामकी कन्या हर लाया। जब शैब्याने पतिके रथपर उस कन्याको देखा, तब वह चिढ़कर अपने पतिसे बोली—‘कपटी! मेरे बैठनेकी जगह पर आज किसे बैठाकर लिये आ रहे हो?’ ज्यामघने कहा—‘यह तो तुम्हारी पुत्रवधू है।’ शैब्याने मुसकराकर अपने पतिसे कहा—॥ ३५—३७॥
श्लोक-३८
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहं वन्ध्यासपत्नी च स्नुषा मे युज्यते कथम्।
जनयिष्यसि यं राज्ञि तस्येयमुपयुज्यते॥
मूलम्
अहं वन्ध्यासपत्नी च स्नुषा मे युज्यते कथम्।
जनयिष्यसि यं राज्ञि तस्येयमुपयुज्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं तो जन्मसे ही बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। फिर यह मेरी पुत्रवधू कैसे हो सकती है?’ ज्यामघने कहा—‘रानी! तुमको जो पुत्र होगा, उसकी यह पत्नी बनेगी’॥ ३८॥
श्लोक-३९
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्वमोदन्त तद्विश्वेदेवाः पितर एव च।
शैब्या गर्भमधात् काले कुमारं सुषुवे शुभम्।
स विदर्भ इति प्रोक्त उपयेमे स्नुषां सतीम्॥
मूलम्
अन्वमोदन्त तद्विश्वेदेवाः पितर एव च।
शैब्या गर्भमधात् काले कुमारं सुषुवे शुभम्।
स विदर्भ इति प्रोक्त उपयेमे स्नुषां सतीम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा ज्यामघके इस वचनका विश्वेदेव और पितरोंने अनुमोदन किया। फिर क्या था, समयपर शैब्याको गर्भ रहा और उसने बड़ा ही सुन्दर बालक उत्पन्न किया। उसका नाम हुआ विदर्भ। उसीने शैब्याकी साध्वी पुत्रवधू भोज्यासे विवाह किया॥ ३९॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे यदुवंशानुवर्णने त्रयोविंशोऽध्यायः॥ २३॥