[द्वाविंशोऽध्यायः]
भागसूचना
पांचाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओंके वंशका वर्णन
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मित्रेयुश्च दिवोदासाच्च्यवनस्तत्सुतो नृप।
सुदासः सहदेवोऽथ सोमको जन्तुजन्मकृत्॥
मूलम्
मित्रेयुश्च दिवोदासाच्च्यवनस्तत्सुतो नृप।
सुदासः सहदेवोऽथ सोमको जन्तुजन्मकृत्॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य पुत्रशतं तेषां यवीयान् पृषतः सुतः।
द्रुपदो द्रौपदी तस्य धृष्टद्युम्नादयः सुताः॥
मूलम्
तस्य पुत्रशतं तेषां यवीयान् पृषतः सुतः।
द्रुपदो द्रौपदी तस्य धृष्टद्युम्नादयः सुताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! दिवोदासका पुत्र था मित्रेयु। मित्रेयुके चार पुत्र हुए—च्यवन, सुदास, सहदेव और सोमक। सोमकके सौ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा जन्तु और सबसे छोटा पृषत था। पृषतके पुत्र द्रुपद थे, द्रुपदके द्रौपदी नामकी पुत्री और धृष्टद्युम्न आदि पुत्र हुए॥ १-२॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नाद् धृष्टकेतुर्भार्म्याः पञ्चालका इमे।
योऽजमीढसुतो ह्यन्य ऋक्षः संवरणस्ततः॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नाद् धृष्टकेतुर्भार्म्याः पञ्चालका इमे।
योऽजमीढसुतो ह्यन्य ऋक्षः संवरणस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्नका पुत्र था धृष्टकेतु। भर्म्याश्वके वंशमें उत्पन्न हुए ये नरपति ‘पांचाल’ कहलाये। अजमीढका दूसरा पुत्र था ऋक्ष। उनके पुत्र हुए संवरण॥ ३॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
तपत्यां सूर्यकन्यायां कुरुक्षेत्रपतिः कुरुः।
परीक्षित् सुधनुर्जह्नुर्निषधाश्वः कुरोः सुताः॥
मूलम्
तपत्यां सूर्यकन्यायां कुरुक्षेत्रपतिः कुरुः।
परीक्षित् सुधनुर्जह्नुर्निषधाश्वः कुरोः सुताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
संवरणका विवाह सूर्यकी कन्या तपतीसे हुआ। उन्हींके गर्भसे कुरुक्षेत्रके स्वामी कुरुका जन्म हुआ। कुरुके चार पुत्र हुए—परीक्षित्, सुधन्वा, जह्नु और निषधाश्व॥ ४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुहोत्रोऽभूत् सुधनुषश्च्यवनोऽथ ततः कृती।
वसुस्तस्योपरिचरो बृहद्रथमुखास्ततः॥
मूलम्
सुहोत्रोऽभूत् सुधनुषश्च्यवनोऽथ ततः कृती।
वसुस्तस्योपरिचरो बृहद्रथमुखास्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुधन्वासे सुहोत्र, सुहोत्रसे च्यवन, च्यवनसे कृती, कृतीसे उपरिचरवसु और उपरिचरवसुसे बृहद्रथ आदि कई पुत्र उत्पन्न हुए॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुशाम्बमत्स्यप्रत्यग्रचेदिपाद्याश्च चेदिपाः।
बृहद्रथात् कुशाग्रोऽभूदृषभस्तस्य तत्सुतः॥
मूलम्
कुशाम्बमत्स्यप्रत्यग्रचेदिपाद्याश्च चेदिपाः।
बृहद्रथात् कुशाग्रोऽभूदृषभस्तस्य तत्सुतः॥
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
जज्ञे सत्यहितोऽपत्यं पुष्पवांस्तत्सुतो जहुः।
अन्यस्यां चापि भार्यायां शकले द्वे बृहद्रथात्॥
मूलम्
जज्ञे सत्यहितोऽपत्यं पुष्पवांस्तत्सुतो जहुः।
अन्यस्यां चापि भार्यायां शकले द्वे बृहद्रथात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमें बृहद्रथ, कुशाम्ब, मत्स्य, प्रत्यग्र और चेदिप आदि चेदिदेशके राजा हुए। बृहद्रथका पुत्र था कुशाग्र, कुशाग्रका ऋषभ, ऋषभका सत्यहित, सत्यहितका पुष्पवान् और पुष्पवान् के जहु नामक पुत्र हुआ। बृहद्रथकी दूसरी पत्नीके गर्भसे एक शरीरके दो टुकड़े उत्पन्न हुए॥ ६-७॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते मात्रा बहिरुत्सृष्टे जरया चाभिसन्धिते।
जीव जीवेति क्रीडन्त्या जरासन्धोऽभवत् सुतः॥
मूलम्
ते मात्रा बहिरुत्सृष्टे जरया चाभिसन्धिते।
जीव जीवेति क्रीडन्त्या जरासन्धोऽभवत् सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हें माताने बाहर फेंकवा दिया। तब ‘जरा’ नामकी राक्षसीने ‘जियो, जियो’ इस प्रकार कहकर खेल-खेलमें उन दोनों टुकड़ोंको जोड़ दिया। उसी जोड़े हुए बालकका नाम हुआ जरासन्ध॥ ८॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च सहदेवोऽभूत् सोमापिर्यच्छ्रुतश्रवाः।
परीक्षिदनपत्योऽभूत् सुरथो नाम जाह्नवः॥
मूलम्
ततश्च सहदेवोऽभूत् सोमापिर्यच्छ्रुतश्रवाः।
परीक्षिदनपत्योऽभूत् सुरथो नाम जाह्नवः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जरासन्धका सहदेव, सहदेवका सोमापि और सोमापिका पुत्र हुआ श्रुतश्रवा। कुरुके ज्येष्ठ पुत्र परीक्षित् के कोई सन्तान न हुई। जह्नुका पुत्र था सुरथ॥ ९॥
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो विदूरथस्तस्मात् सार्वभौमस्ततोऽभवत्।
जयसेनस्तत्तनयो राधिकोऽतोऽयुतो ह्यभूत्॥
मूलम्
ततो विदूरथस्तस्मात् सार्वभौमस्ततोऽभवत्।
जयसेनस्तत्तनयो राधिकोऽतोऽयुतो ह्यभूत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुरथका विदूरथ, विदूरथका सार्वभौम, सार्वभौमका जयसेन, जयसेनका राधिक और राधिकका पुत्र हुआ अयुत॥ १०॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च क्रोधनस्तस्माद् देवातिथिरमुष्य च।
ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत् प्रतीपस्तस्य चात्मजः॥
मूलम्
ततश्च क्रोधनस्तस्माद् देवातिथिरमुष्य च।
ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत् प्रतीपस्तस्य चात्मजः॥
अनुवाद (हिन्दी)
अयुतका क्रोधन, क्रोधनका देवातिथि, देवातिथिका ऋष्य, ऋष्यका दिलीप और दिलीपका पुत्र प्रतीप हुआ॥ ११॥
श्लोक-१२
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवापिः शन्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः।
पितृराज्यं परित्यज्य देवापिस्तु वनं गतः॥
मूलम्
देवापिः शन्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः।
पितृराज्यं परित्यज्य देवापिस्तु वनं गतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रतीपके तीन पुत्र थे—देवापि, शन्तनु और बाह्लीक। देवापि अपना पैतृक राज्य छोड़कर वनमें चला गया॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभवच्छन्तनू राजा प्राङ्महाभिषसंज्ञितः।
यं यं कराभ्यां स्पृशति जीर्णं यौवनमेति सः॥
मूलम्
अभवच्छन्तनू राजा प्राङ्महाभिषसंज्ञितः।
यं यं कराभ्यां स्पृशति जीर्णं यौवनमेति सः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये उसके छोटे भाई शन्तनु राजा हुए। पूर्वजन्ममें शन्तनुका नाम महाभिष था। इस जन्ममें भी वे अपने हाथोंसे जिसे छू देते थे, वह बूढ़ेसे जवान हो जाता था॥ १३॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
शान्तिमाप्नोति चैवाग्र्यां कर्मणा तेन शन्तनुः।
समा द्वादश तद्राज्ये न ववर्ष यदा विभुः॥
मूलम्
शान्तिमाप्नोति चैवाग्र्यां कर्मणा तेन शन्तनुः।
समा द्वादश तद्राज्ये न ववर्ष यदा विभुः॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
शन्तनुर्ब्राह्मणैरुक्तः परिवेत्तायमग्रभुक्।
राज्यं देह्यग्रजायाशु पुरराष्ट्रविवृद्धये॥
मूलम्
शन्तनुर्ब्राह्मणैरुक्तः परिवेत्तायमग्रभुक्।
राज्यं देह्यग्रजायाशु पुरराष्ट्रविवृद्धये॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसे परम शान्ति मिल जाती थी। इसी करामातके कारण उनका नाम ‘शन्तनु’ हुआ। एक बार शन्तनुके राज्यमें बारह वर्षतक इन्द्रने वर्षा नहीं की। इसपर ब्राह्मणोंने शन्तनुसे कहा कि ‘तुमने अपने बड़े भाई देवापिसे पहले ही विवाह, अग्निहोत्र और राजपदको स्वीकारकर लिया, अतः तुम परिवेत्ता* हो; इसीसे तुम्हारे राज्यमें वर्षा नहीं होती। अब यदि तुम अपने नगर और राष्ट्रकी उन्नति चाहते हो, तो शीघ्र-से-शीघ्र अपने बड़े भाईको राज्य लौटा दो’॥ १४-१५॥
पादटिप्पनी
- दाराग्निहोत्रसंयोगं कुरुते योऽग्रजे स्थिते।
परिवेत्ता स विज्ञेयः परिवित्तिस्तु पूर्वजः॥
अर्थात् जो पुरुष अपने बड़े भाईके रहते हुए उससे पहले ही विवाह और अग्निहोत्रका संयोग करता है उसे परिवेत्ता जानना चाहिये और उसका बड़ा भाई परिवित्ति कहलाता है।
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तो द्विजैर्ज्येष्ठं छन्दयामास सोऽब्रवीत्।
तन्मन्त्रिप्रहितैर्विप्रैर्वेदाद् विभ्रंशितो गिरा॥
मूलम्
एवमुक्तो द्विजैर्ज्येष्ठं छन्दयामास सोऽब्रवीत्।
तन्मन्त्रिप्रहितैर्विप्रैर्वेदाद् विभ्रंशितो गिरा॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेदवादातिवादान् वै तदा देवो ववर्ष ह।
देवापिर्योगमास्थाय कलापग्राममाश्रितः॥
मूलम्
वेदवादातिवादान् वै तदा देवो ववर्ष ह।
देवापिर्योगमास्थाय कलापग्राममाश्रितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब ब्राह्मणोंने शन्तनुसे इस प्रकार कहा, तब उन्होंने वनमें जाकर अपने बड़े भाई देवापिसे राज्य स्वीकार करनेका अनुरोध किया। परन्तु शन्तनुके मन्त्री अश्मरातने पहलेसे ही उनके पास कुछ ऐसे ब्राह्मण भेज दिये थे, जो वेदको दूषित करनेवाले वचनोंसे देवापिको वेदमार्गसे विचलित कर चुके थे। इसका फल यह हुआ कि देवापि वेदोंके अनुसार गृहस्थाश्रम स्वीकार करनेकी जगह उनकी निन्दा करने लगे। इसलिये वे राज्यके अधिकारसे वंचित हो गये और तब शन्तनुके राज्यमें वर्षा हुई। देवापि इस समय भी योगसाधना कर रहे हैं और योगियोंके प्रसिद्ध निवासस्थान कलापग्राममें रहते हैं॥ १६-१७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोमवंशे कलौ नष्टे कृतादौ स्थापयिष्यति।
बाह्लीकात् सोमदत्तोऽभूद् भूरिर्भूरिश्रवास्ततः॥
मूलम्
सोमवंशे कलौ नष्टे कृतादौ स्थापयिष्यति।
बाह्लीकात् सोमदत्तोऽभूद् भूरिर्भूरिश्रवास्ततः॥
श्लोक-१९
विश्वास-प्रस्तुतिः
शलश्च शन्तनोरासीद् गङ्गायां भीष्म आत्मवान्।
सर्वधर्मविदां श्रेष्ठो महाभागवतः कविः॥
मूलम्
शलश्च शन्तनोरासीद् गङ्गायां भीष्म आत्मवान्।
सर्वधर्मविदां श्रेष्ठो महाभागवतः कविः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब कलियुगमें चन्द्रवंशका नाश हो जायगा, तब सत्ययुगके प्रारम्भमें वे फिर उसकी स्थापना करेंगे। शन्तनुके छोटे भाई बाह्लीकका पुत्र हुआ सोमदत्त। सोमदत्तके तीन पुत्र हुए—भूरि, भूरिश्रवा और शल। शन्तनुके द्वारा गंगाजीके गर्भसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी भीष्मका जन्म हुआ। वे समस्त धर्मज्ञोंके सिरमौर, भगवान्के परम प्रेमी भक्त और परम ज्ञानी थे॥ १८-१९॥
श्लोक-२०
विश्वास-प्रस्तुतिः
वीरयूथाग्रणीर्येन रामोऽपि युधि तोषितः।
शन्तनोर्दाशकन्यायां जज्ञे चित्राङ्गदः सुतः॥
मूलम्
वीरयूथाग्रणीर्येन रामोऽपि युधि तोषितः।
शन्तनोर्दाशकन्यायां जज्ञे चित्राङ्गदः सुतः॥
श्लोक-२१
विश्वास-प्रस्तुतिः
विचित्रवीर्यश्चावरजो नाम्ना चित्राङ्गदो हतः।
यस्यां पराशरात् साक्षादवतीर्णो हरेः कला॥
मूलम्
विचित्रवीर्यश्चावरजो नाम्ना चित्राङ्गदो हतः।
यस्यां पराशरात् साक्षादवतीर्णो हरेः कला॥
श्लोक-२२
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेदगुप्तो मुनिः कृष्णो यतोऽहमिदमध्यगाम्।
हित्वा स्वशिष्यान् पैलादीन् भगवान् बादरायणः॥
मूलम्
वेदगुप्तो मुनिः कृष्णो यतोऽहमिदमध्यगाम्।
हित्वा स्वशिष्यान् पैलादीन् भगवान् बादरायणः॥
श्लोक-२३
विश्वास-प्रस्तुतिः
मह्यं पुत्राय शान्ताय परं गुह्यमिदं जगौ।
विचित्रवीर्योऽथोवाह काशिराजसुते बलात्॥
मूलम्
मह्यं पुत्राय शान्ताय परं गुह्यमिदं जगौ।
विचित्रवीर्योऽथोवाह काशिराजसुते बलात्॥
श्लोक-२४
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वयंवरादुपानीते अम्बिकाम्बालिके उभे।
तयोरासक्तहृदयो गृहीतो यक्ष्मणा मृतः॥
मूलम्
स्वयंवरादुपानीते अम्बिकाम्बालिके उभे।
तयोरासक्तहृदयो गृहीतो यक्ष्मणा मृतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे संसारके समस्त वीरोंके अग्रगण्य नेता थे। औरोंकी तो बात ही क्या, उन्होंने अपने गुरु भगवान् परशुरामको भी युद्धमें सन्तुष्ट कर दिया था। शन्तनुके द्वारा दाशराजकी कन्या* के गर्भसे दो पुत्र हुए—चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगदको चित्रांगद नामक गन्धर्वने मार डाला। इसी दाशराजकी कन्या सत्यवतीसे पराशरजीके द्वारा मेरे पिता, भगवान्के कलावतार स्वयं भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने वेदोंकी रक्षा की। परीक्षित्! मैंने उन्हींसे इस श्रीमद्भागवतपुराणका अध्ययन किया था। यह पुराण परम गोपनीय—अत्यन्त रहस्यमय है। इसीसे मेरे पिता भगवान् व्यासजीने अपने पैल आदि शिष्योंको इसका अध्ययन नहीं कराया, मुझे ही इसके योग्य अधिकारी समझा! एक तो मैं उनका पुत्र था और दूसरे शान्ति आदि गुण भी मुझमें विशेषरूपसे थे। शन्तनुके दूसरे पुत्र विचित्रवीर्यने काशिराजकी कन्या अम्बिका और अम्बालिकासे विवाह किया। उन दोनोंको भीष्मजी स्वयंवरसे बलपूर्वक ले आये थे। विचित्रवीर्य अपनी दोनों पत्नियोंमें इतना आसक्त हो गया कि उसे राजयक्ष्मा रोग हो गया और उसकी मृत्यु हो गयी॥ २०—२४॥
पादटिप्पनी
- यह कन्या वास्तवमें उपरिचरवसुके वीर्यसे मछलीके गर्भसे उत्पन्न हुई थी किन्तु दाशों (केवटों)-के द्वारा पालित होनेसे वह केवटोंकी कन्या कहलायी।
श्लोक-२५
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षेत्रेऽप्रजस्य वै भ्रातुर्मात्रोक्तो बादरायणः।
धृतराष्ट्रं च पाण्डुं च विदुरं चाप्यजीजनत्॥
मूलम्
क्षेत्रेऽप्रजस्य वै भ्रातुर्मात्रोक्तो बादरायणः।
धृतराष्ट्रं च पाण्डुं च विदुरं चाप्यजीजनत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
माता सत्यवतीके कहनेसे भगवान् व्यासजीने अपने सन्तानहीन भाईकी स्त्रियोंसे धृतराष्ट्र और पाण्डु दो पुत्र उत्पन्न किये। उनकी दासीसे तीसरे पुत्र विदुरजी हुए॥ २५॥
श्लोक-२६
विश्वास-प्रस्तुतिः
गान्धार्यां धृतराष्ट्रस्य जज्ञे पुत्रशतं नृप।
तत्र दुर्योधनो ज्येष्ठो दुःशला चापि कन्यका॥
मूलम्
गान्धार्यां धृतराष्ट्रस्य जज्ञे पुत्रशतं नृप।
तत्र दुर्योधनो ज्येष्ठो दुःशला चापि कन्यका॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! धृतराष्ट्रकी पत्नी थी गान्धारी। उसके गर्भसे सौ पुत्र हुए, उनमें सबसे बड़ा था दुर्योधन। कन्याका नाम था दुःशला॥ २६॥
श्लोक-२७
विश्वास-प्रस्तुतिः
शापान्मैथुनरुद्धस्य पाण्डोः कुन्त्यां महारथाः।
जाता धर्मानिलेन्द्रेभ्यो युधिष्ठिरमुखास्त्रयः॥
मूलम्
शापान्मैथुनरुद्धस्य पाण्डोः कुन्त्यां महारथाः।
जाता धर्मानिलेन्द्रेभ्यो युधिष्ठिरमुखास्त्रयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुकी पत्नी थी कुन्ती। शापवश पाण्डु स्त्री-सहवास नहीं कर सकते थे। इसलिये उनकी पत्नी कुन्तीके गर्भसे धर्म, वायु और इन्द्रके द्वारा क्रमशः युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन नामके तीन पुत्र उत्पन्न हुए। ये तीनों-के-तीनों महारथी थे॥ २७॥
श्लोक-२८
विश्वास-प्रस्तुतिः
नकुलः सहदेवश्च माद्र्यां नासत्यदस्रयोः।
द्रौपद्यां पञ्च पञ्चभ्यः पुत्रास्ते पितरोऽभवन्॥
मूलम्
नकुलः सहदेवश्च माद्र्यां नासत्यदस्रयोः।
द्रौपद्यां पञ्च पञ्चभ्यः पुत्रास्ते पितरोऽभवन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुकी दूसरी पत्नीका नाम था माद्री। दोनों अश्विनीकुमारोंके द्वारा उसके गर्भसे नकुल और सहदेवका जन्म हुआ। परीक्षित्! इन पाँच पाण्डवोंके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे तुम्हारे पाँच चाचा उत्पन्न हुए॥ २८॥
श्लोक-२९
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरात् प्रतिविन्ध्यः श्रुतसेनो वृकोदरात्।
अर्जुनाच्छ्रुतकीर्तिस्तु शतानीकस्तु नाकुलिः॥
मूलम्
युधिष्ठिरात् प्रतिविन्ध्यः श्रुतसेनो वृकोदरात्।
अर्जुनाच्छ्रुतकीर्तिस्तु शतानीकस्तु नाकुलिः॥
श्लोक-३०
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहदेवसुतो राजञ्छ्रुतकर्मा तथापरे।
युधिष्ठिरात् तु पौरव्यां देवकोऽथ घटोत्कचः॥
मूलम्
सहदेवसुतो राजञ्छ्रुतकर्मा तथापरे।
युधिष्ठिरात् तु पौरव्यां देवकोऽथ घटोत्कचः॥
श्लोक-३१
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनाद्धिडिम्बायां काल्यां सर्वगतस्ततः।
सहदेवात् सुहोत्रं तु विजयासूत पार्वती॥
मूलम्
भीमसेनाद्धिडिम्बायां काल्यां सर्वगतस्ततः।
सहदेवात् सुहोत्रं तु विजयासूत पार्वती॥
श्लोक-३२
विश्वास-प्रस्तुतिः
करेणुमत्यां नकुलो निरमित्रं तथार्जुनः।
इरावन्तमुलूप्यां वै सुतायां बभ्रुवाहनम्।
मणिपूरपतेः सोऽपि तत्पुत्रः पुत्रिकासुतः॥
मूलम्
करेणुमत्यां नकुलो निरमित्रं तथार्जुनः।
इरावन्तमुलूप्यां वै सुतायां बभ्रुवाहनम्।
मणिपूरपतेः सोऽपि तत्पुत्रः पुत्रिकासुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनमेंसे युधिष्ठिरके पुत्रका नाम था प्रतिविन्ध्य, भीमसेनका पुत्र था श्रुतसेन, अर्जुनका श्रुतकीर्ति, नकुलका शतानीक और सहदेवका श्रुतकर्मा। इनके सिवा युधिष्ठिरके पौरवी नामकी पत्नीसे देवक और भीमसेनके हिडिम्बासे घटोत्कच और कालीसे सर्वगत नामके पुत्र हुए। सहदेवके पर्वतकुमारी विजयासे सुहोत्र और नकुलके करेणुमतीसे निरमित्र हुआ। अर्जुनद्वारा नागकन्या उलूपीके गर्भसे इरावान् और मणिपूर नरेशकी कन्यासे बभ्रुवाहनका जन्म हुआ। बभ्रुवाहन अपने नानाका ही पुत्र माना गया। क्योंकि पहलेसे ही यह बात तय हो चुकी थी॥ २९—३२॥
श्लोक-३३
विश्वास-प्रस्तुतिः
तव तातः सुभद्रायामभिमन्युरजायत।
सर्वातिरथजिद् वीर उत्तरायां ततो भवान्॥
मूलम्
तव तातः सुभद्रायामभिमन्युरजायत।
सर्वातिरथजिद् वीर उत्तरायां ततो भवान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनकी सुभद्रा नामकी पत्नीसे तुम्हारे पिता अभिमन्युका जन्म हुआ। वीर अभिमन्युने सभी अतिरथियोंको जीत लिया था। अभिमन्युके द्वारा उत्तराके गर्भसे तुम्हारा जन्म हुआ॥ ३३॥
श्लोक-३४
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिक्षीणेषु कुरुषु द्रौणेर्ब्रह्मास्त्रतेजसा।
त्वं च कृष्णानुभावेन सजीवो मोचितोऽन्तकात्॥
मूलम्
परिक्षीणेषु कुरुषु द्रौणेर्ब्रह्मास्त्रतेजसा।
त्वं च कृष्णानुभावेन सजीवो मोचितोऽन्तकात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! उस समय कुरुवंशका नाश हो चुका था। अश्वत्थामाके ब्रह्मास्त्रसे तुम भी जल ही चुके थे, परन्तु भगवान् श्रीकृष्णने अपने प्रभावसे तुम्हें उस मृत्युसे जीता-जागता बचा लिया॥ ३४॥
श्लोक-३५
विश्वास-प्रस्तुतिः
तवेमे तनयास्तात जनमेजयपूर्वकाः।
श्रुतसेनो भीमसेन उग्रसेनश्च वीर्यवान्॥
मूलम्
तवेमे तनयास्तात जनमेजयपूर्वकाः।
श्रुतसेनो भीमसेन उग्रसेनश्च वीर्यवान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे हुए हैं—इनके नाम हैं—जनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और उग्रसेन। ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं॥ ३५॥
श्लोक-३६
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनमेजयस्त्वां विदित्वा तक्षकान्निधनं गतम्।
सर्पान् वै सर्पयागाग्नौ स होष्यति रुषान्वितः॥
मूलम्
जनमेजयस्त्वां विदित्वा तक्षकान्निधनं गतम्।
सर्पान् वै सर्पयागाग्नौ स होष्यति रुषान्वितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब तक्षकके काटनेसे तुम्हारी मृत्यु हो जायगी, तब इस बातको जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा और यह सर्पयज्ञकी आगमें सर्पोंका हवन करेगा॥ ३६॥
श्लोक-३७
विश्वास-प्रस्तुतिः
कावषेयं पुरोधाय तुरं तुरगमेधयाट्।
समन्तात् पृथिवीं सर्वां जित्वा यक्ष्यति चाध्वरैः॥
मूलम्
कावषेयं पुरोधाय तुरं तुरगमेधयाट्।
समन्तात् पृथिवीं सर्वां जित्वा यक्ष्यति चाध्वरैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह कावषेय तुरको पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ करेगा और सब ओरसे सारी पृथ्वीपर विजय प्राप्त करके यज्ञोंके द्वारा भगवान्की आराधना करेगा॥ ३७॥
श्लोक-३८
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य पुत्रः शतानीको याज्ञवल्क्यात् त्रयीं पठन्।
अस्त्रज्ञानं क्रियाज्ञानं शौनकात् परमेष्यति॥
मूलम्
तस्य पुत्रः शतानीको याज्ञवल्क्यात् त्रयीं पठन्।
अस्त्रज्ञानं क्रियाज्ञानं शौनकात् परमेष्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजयका पुत्र होगा शतानीक। वह याज्ञवल्क्य ऋषिसे तीनों वेद और कर्मकाण्डकी तथा कृपाचार्यसे अस्त्रविद्याकी शिक्षा प्राप्त करेगा एवं शौनकजीसे आत्मज्ञानका सम्पादन करके परमात्माको प्राप्त होगा॥ ३८॥
श्लोक-३९
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहस्रानीकस्तत्पुत्रस्ततश्चैवाश्वमेधजः।
असीमकृष्णस्तस्यापि नेमिचक्रस्तु तत्सुतः॥
मूलम्
सहस्रानीकस्तत्पुत्रस्ततश्चैवाश्वमेधजः।
असीमकृष्णस्तस्यापि नेमिचक्रस्तु तत्सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
शतानीकका सहस्रानीक, सहस्रानीकका अश्वमेधज, अश्वमेधजका असीमकृष्ण और असीमकृष्णका पुत्र होगा नेमिचक्र॥ ३९॥
श्लोक-४०
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजाह्वये हृते नद्या कौशाम्ब्यां साधु वत्स्यति।
उक्तस्ततश्चित्ररथस्तस्मात् कविरथः सुतः॥
मूलम्
गजाह्वये हृते नद्या कौशाम्ब्यां साधु वत्स्यति।
उक्तस्ततश्चित्ररथस्तस्मात् कविरथः सुतः॥
श्लोक-४१
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माच्च वृष्टिमांस्तस्य सुषेणोऽथ महीपतिः।
सुनीथस्तस्य भविता नृचक्षुर्यत् सुखीनलः॥
मूलम्
तस्माच्च वृष्टिमांस्तस्य सुषेणोऽथ महीपतिः।
सुनीथस्तस्य भविता नृचक्षुर्यत् सुखीनलः॥
श्लोक-४२
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिप्लवः सुतस्तस्मान्मेधावी सुनयात्मजः।
नृपञ्जयस्ततो दूर्वस्तिमिस्तस्माज्जनिष्यति॥
मूलम्
परिप्लवः सुतस्तस्मान्मेधावी सुनयात्मजः।
नृपञ्जयस्ततो दूर्वस्तिमिस्तस्माज्जनिष्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब हस्तिनापुर गंगाजीमें बह जायगा, तब वह कौशाम्बीपुरीमें सुखपूर्वक निवास करेगा। नेमिचक्रका पुत्र होगा चित्ररथ, चित्ररथका कविरथ, कविरथका वृष्टिमान्, वृष्टिमान् का राजा सुषेण, सुषेणका सुनीथ, सुनीथका नृचक्षु, नृचक्षुका सुखीनल, सुखीनलका परिप्लव, परिप्लवका सुनय, सुनयका मेधावी, मेधावीका नृपंजय, नृपंजयका दूर्व और दूर्वका पुत्र तिमि होगा॥ ४०-४२॥
श्लोक-४३
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिमेर्बृहद्रथस्तस्माच्छतानीकः सुदासजः।
शतानीकाद् दुर्दमनस्तस्यापत्यं बहीनरः॥
मूलम्
तिमेर्बृहद्रथस्तस्माच्छतानीकः सुदासजः।
शतानीकाद् दुर्दमनस्तस्यापत्यं बहीनरः॥
श्लोक-४४
विश्वास-प्रस्तुतिः
दण्डपाणिर्निमिस्तस्य क्षेमको भविता नृपः।
ब्रह्मक्षत्रस्य वै प्रोक्तो वंशो देवर्षिसत्कृतः॥
मूलम्
दण्डपाणिर्निमिस्तस्य क्षेमको भविता नृपः।
ब्रह्मक्षत्रस्य वै प्रोक्तो वंशो देवर्षिसत्कृतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तिमिसे बृहद्रथ, बृहद्रथसे सुदास, सुदाससे शतानीक, शतानीकसे दुर्दमन, दुर्दमनसे वहीनर, वहीनरसे दण्डपाणि, दण्डपाणिसे निमि और निमिसे राजा क्षेमकका जन्म होगा। इस प्रकार मैंने तुम्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनोंके उत्पत्ति स्थान सोमवंशका वर्णन सुनाया। बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंशका सत्कार करते हैं॥ ४३-४४॥
श्लोक-४५
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ।
अथ मागधराजानो भवितारो वदामि ते॥
मूलम्
क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ।
अथ मागधराजानो भवितारो वदामि ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह वंश कलियुगमें राजा क्षेमकके साथ ही समाप्त हो जायगा। अब मैं भविष्यमें होनेवाले मगध देशके राजाओंका वर्णन सुनाता हूँ॥ ४५॥
श्लोक-४६
विश्वास-प्रस्तुतिः
भविता सहदेवस्य मार्जारिर्यच्छ्रुतश्रवाः।
ततोऽयुतायुस्तस्यापि निरमित्रोऽथ तत्सुतः॥
मूलम्
भविता सहदेवस्य मार्जारिर्यच्छ्रुतश्रवाः।
ततोऽयुतायुस्तस्यापि निरमित्रोऽथ तत्सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जरासन्धके पुत्र सहदेवसे मार्जारि, मार्जारिसे श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवासे अयुतायु और अयुतायुसे निरमित्र नामक पुत्र होगा॥ ४६॥
श्लोक-४७
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनक्षत्रः सुनक्षत्राद् बृहत्सेनोऽथ कर्मजित्।
ततः सृतञ्जयाद् विप्रः शुचिस्तस्य भविष्यति॥
मूलम्
सुनक्षत्रः सुनक्षत्राद् बृहत्सेनोऽथ कर्मजित्।
ततः सृतञ्जयाद् विप्रः शुचिस्तस्य भविष्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
निरमित्रके सुनक्षत्र, सुनक्षत्रके बृहत्सेन, बृहत्सेनके कर्मजित्, कर्मजित् के सृतंजय, सृतंजयके विप्र और विप्रके पुत्रका नाम होगा शुचि॥ ४७॥
श्लोक-४८
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षेमोऽथ सुव्रतस्तस्माद् धर्मसूत्रः शमस्ततः।
द्युमत्सेनोऽथ सुमतिः सुबलो जनिता ततः॥
मूलम्
क्षेमोऽथ सुव्रतस्तस्माद् धर्मसूत्रः शमस्ततः।
द्युमत्सेनोऽथ सुमतिः सुबलो जनिता ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
शुचिसे क्षेम, क्षेमसे सुव्रत, सुव्रतसे धर्मसूत्र, धर्मसूत्रसे शम, शमसे द्युमत्सेन, द्युमत्सेनसे सुमति और सुमतिसे सुबलका जन्म होगा॥ ४८॥
श्लोक-४९
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनीथः सत्यजिदथ विश्वजिद् यद् रिपुञ्जयः।
बार्हद्रथाश्च भूपाला भाव्याः साहस्रवत्सरम्॥
मूलम्
सुनीथः सत्यजिदथ विश्वजिद् यद् रिपुञ्जयः।
बार्हद्रथाश्च भूपाला भाव्याः साहस्रवत्सरम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुबलका सुनीथ, सुनीथका सत्यजित्, सत्यजित् का विश्वजित् और विश्वजित् का पुत्र रिपुंजय होगा। ये सब बृहद्रथवंशके राजा होंगे। इनका शासनकाल एक हजार वर्षके भीतर ही होगा॥ ४९॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः॥ २२॥