[सप्तदशोऽध्यायः]
भागसूचना
क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओंके वंशका वर्णन
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यः पुरूरवसः पुत्र आयुस्तस्याभवन् सुताः।
नहुषः क्षत्रवृद्धश्च रजी रम्भश्च वीर्यवान्॥
मूलम्
यः पुरूरवसः पुत्र आयुस्तस्याभवन् सुताः।
नहुषः क्षत्रवृद्धश्च रजी रम्भश्च वीर्यवान्॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनेना इति राजेन्द्र शृणु क्षत्रवृधोऽन्वयम्।
क्षत्रवृद्ध सुतस्यासन् सुहोत्रस्यात्मजास्त्रयः॥
मूलम्
अनेना इति राजेन्द्र शृणु क्षत्रवृधोऽन्वयम्।
क्षत्रवृद्ध सुतस्यासन् सुहोत्रस्यात्मजास्त्रयः॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
काश्यः कुशो गृत्समद इति गृत्समदादभूत्।
शुनकः शौनको यस्य बह्वृचप्रवरो मुनिः॥
मूलम्
काश्यः कुशो गृत्समद इति गृत्समदादभूत्।
शुनकः शौनको यस्य बह्वृचप्रवरो मुनिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! राजेन्द्र पुरूरवाका एक पुत्र था आयु। उसके पाँच लड़के हुए—नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजि, शक्तिशाली रम्भ और अनेना। अब क्षत्रवृद्धका वंश सुनो। क्षत्रवृद्धके पुत्र थे सुहोत्र। सुहोत्रके तीन पुत्र हुए—काश्य, कुश और गृत्समद। गृत्समदका पुत्र हुआ शुनक। इसी शुनकके पुत्र ऋग्वेदियोंमें श्रेष्ठ मुनिवर शौनकजी हुए॥ १—३॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
काश्यस्य काशिस्तत्पुत्रो राष्ट्रो दीर्घतमः पिता।
धन्वन्तरिर्दैर्घतम आयुर्वेदप्रवर्तकः॥
मूलम्
काश्यस्य काशिस्तत्पुत्रो राष्ट्रो दीर्घतमः पिता।
धन्वन्तरिर्दैर्घतम आयुर्वेदप्रवर्तकः॥
अनुवाद (हिन्दी)
काश्यका पुत्र काशि, काशिका राष्ट्र, राष्ट्रका दीर्घतमा और दीर्घतमाके धन्वन्तरि। यही आयुर्वेदके प्रवर्तक हैं॥ ४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
यज्ञभुग् वासुदेवांशः स्मृतमात्रार्तिनाशनः।
तत्पुत्रः केतुमानस्य जज्ञे भीमरथस्ततः॥
मूलम्
यज्ञभुग् वासुदेवांशः स्मृतमात्रार्तिनाशनः।
तत्पुत्रः केतुमानस्य जज्ञे भीमरथस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये यज्ञभागके भोक्ता और भगवान् वासुदेवके अंश हैं। इनके स्मरणमात्रसे ही सब प्रकारके रोग दूर हो जाते हैं। धन्वन्तरिका पुत्र हुआ केतुमान् और केतुमान् का भीमरथ॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
दिवोदासो द्युमांस्तस्मात् प्रतर्दन इति स्मृतः।
स एव शत्रुजिद् वत्स ऋतध्वज इतीरितः।
तथा कुवलयाश्वेति प्रोक्तोऽलर्कादयस्ततः॥
मूलम्
दिवोदासो द्युमांस्तस्मात् प्रतर्दन इति स्मृतः।
स एव शत्रुजिद् वत्स ऋतध्वज इतीरितः।
तथा कुवलयाश्वेति प्रोक्तोऽलर्कादयस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमरथका दिवोदास और दिवोदासका द्युमान्—जिसका एक नाम प्रतर्दन भी है। यही द्युमान् शत्रुजित्, वत्स, ऋतध्वज और कुवलयाश्वके नामसे भी प्रसिद्ध है। द्युमान् के ही पुत्र अलर्क आदि हुए॥ ६॥
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
षष्टिवर्षसहस्राणि षष्टिवर्षशतानि च।
नालर्कादपरो राजन् मेदिनीं बुभुजे युवा॥
मूलम्
षष्टिवर्षसहस्राणि षष्टिवर्षशतानि च।
नालर्कादपरो राजन् मेदिनीं बुभुजे युवा॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! अलर्कके सिवा और किसी राजाने छाछठ हजार (६६,०००) वर्षतक युवा रहकर पृथ्वीका राज्य नहीं भोगा॥ ७॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलर्कात् सन्ततिस्तस्मात् सुनीथोऽथ सुकेतनः।
धर्मकेतुः सुतस्तस्मात् सत्यकेतुरजायत॥
मूलम्
अलर्कात् सन्ततिस्तस्मात् सुनीथोऽथ सुकेतनः।
धर्मकेतुः सुतस्तस्मात् सत्यकेतुरजायत॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्कका पुत्र हुआ सन्तति, सन्ततिका सुनीथ, सुनीथका सुकेतन, सुकेतनका धर्मकेतु और धर्मकेतुका सत्यकेतु॥ ८॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टकेतुः सुतस्तस्मात् सुकुमारः क्षितीश्वरः।
वीतिहोत्रस्य भर्गोऽतो भार्गभूमिरभून्नृपः॥
मूलम्
धृष्टकेतुः सुतस्तस्मात् सुकुमारः क्षितीश्वरः।
वीतिहोत्रस्य भर्गोऽतो भार्गभूमिरभून्नृपः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्यकेतुसे धृष्टकेतु, धृष्टकेतुसे राजा सुकुमार, सुकुमारसे वीतिहोत्र, वीतिहोत्रसे भर्ग और भर्गसे राजा भार्गभूमिका जन्म हुआ॥ ९॥
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
इतीमे काशयो भूपाः क्षत्रवृद्धान्वयायिनः।
रम्भस्य रभसः पुत्रो गम्भीरश्चाक्रियस्ततः॥
मूलम्
इतीमे काशयो भूपाः क्षत्रवृद्धान्वयायिनः।
रम्भस्य रभसः पुत्रो गम्भीरश्चाक्रियस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये सब-के-सब क्षत्रवृद्धके वंशमें काशिसे उत्पन्न नरपति हुए। रम्भके पुत्रका नाम था रभस, उससे गम्भीर और गम्भीरसे अक्रियका जन्म हुआ॥ १०॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य क्षेत्रे ब्रह्म जज्ञे शृणु वंशमनेनसः।
शुद्धस्ततः शुचिस्तस्मात् त्रिककुद् धर्मसारथिः॥
मूलम्
तस्य क्षेत्रे ब्रह्म जज्ञे शृणु वंशमनेनसः।
शुद्धस्ततः शुचिस्तस्मात् त्रिककुद् धर्मसारथिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
अक्रियकी पत्नीसे ब्राह्मणवंश चला। अब अनेनाका वंश सुनो। अनेनाका पुत्र था शुद्ध, शुद्धका शुचि, शुचिका त्रिककुद् और त्रिककुद्का धर्मसारथि॥ ११॥
श्लोक-१२
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शान्तरयो जज्ञे कृतकृत्यः स आत्मवान्।
रजेः पञ्चशतान्यासन् पुत्राणाममितौजसाम्॥
मूलम्
ततः शान्तरयो जज्ञे कृतकृत्यः स आत्मवान्।
रजेः पञ्चशतान्यासन् पुत्राणाममितौजसाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
धर्मसारथिके पुत्र थे शान्तरय। शान्तरय आत्मज्ञानी होनेके कारण कृतकृत्य थे, उन्हें सन्तानकी आवश्यकता न थी। परीक्षित्! आयुके पुत्र रजिके अत्यन्त तेजस्वी पाँच सौ पुत्र थे॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवैरभ्यर्थितो दैत्यान् हत्वेन्द्रायाददाद् दिवम्।
इन्द्रस्तस्मै पुनर्दत्त्वा गृहीत्वा चरणौ रजेः॥
मूलम्
देवैरभ्यर्थितो दैत्यान् हत्वेन्द्रायाददाद् दिवम्।
इन्द्रस्तस्मै पुनर्दत्त्वा गृहीत्वा चरणौ रजेः॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
आत्मानमर्पयामास प्रह्रादाद्यरिशङ्कितः।
पितर्युपरते पुत्रा याचमानाय नो ददुः॥
मूलम्
आत्मानमर्पयामास प्रह्रादाद्यरिशङ्कितः।
पितर्युपरते पुत्रा याचमानाय नो ददुः॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिविष्टपं महेन्द्राय यज्ञभागान् समाददुः।
गुरुणा हूयमानेऽग्नौ बलभित् तनयान् रजेः॥
मूलम्
त्रिविष्टपं महेन्द्राय यज्ञभागान् समाददुः।
गुरुणा हूयमानेऽग्नौ बलभित् तनयान् रजेः॥
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवधीद् भ्रंशितान् मार्गान्न कश्चिदवशेषितः।
कुशात् प्रतिः क्षात्रवृद्धात् सञ्जयस्तत्सुतो जयः॥
मूलम्
अवधीद् भ्रंशितान् मार्गान्न कश्चिदवशेषितः।
कुशात् प्रतिः क्षात्रवृद्धात् सञ्जयस्तत्सुतो जयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवताओंकी प्रार्थनासे रजिने दैत्योंका वध करके इन्द्रको स्वर्गका राज्य दिया। परन्तु वे अपने प्रह्लाद आदि शत्रुओंसे भयभीत रहते थे, इसलिये उन्होंने वह स्वर्ग फिर रजिको लौटा दिया और उनके चरण पकड़कर उन्हींको अपनी रक्षाका भार भी सौंप दिया। जब रजिकी मृत्यु हो गयी, तब इन्द्रके माँगनेपर भी रजिके पुत्रोंने स्वर्ग नहीं लौटाया। वे स्वयं ही यज्ञोंका भाग भी ग्रहण करने लगे। तब गुरु बृहस्पतिजीने इन्द्रकी प्रार्थनासे अभिचारविधिसे हवन किया। इससे वे धर्मके मार्गसे भ्रष्ट हो गये। तब इन्द्रने अनायास ही उन सब रजिके पुत्रोंको मार डाला। उनमेंसे कोई भी न बचा। क्षत्रवृद्धके पौत्र कुशसे प्रति, प्रतिसे संजय और संजयसे जयका जन्म हुआ॥ १३—१६॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कृतः कृतस्यापि जज्ञे हर्यवनो नृपः।
सहदेवस्ततो हीनो जयसेनस्तु तत्सुतः॥
मूलम्
ततः कृतः कृतस्यापि जज्ञे हर्यवनो नृपः।
सहदेवस्ततो हीनो जयसेनस्तु तत्सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जयसे कृत, कृतसे राजा हर्यवन, हर्यवनसे सहदेव, सहदेवसे हीन और हीनसे जयसेन नामक पुत्र हुआ॥ १७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
सङ्कृतिस्तस्य च जयः क्षत्रधर्मा महारथः।
क्षत्रवृद्धान्वया भूपाः शृणु वंशं च नाहुषात्॥
मूलम्
सङ्कृतिस्तस्य च जयः क्षत्रधर्मा महारथः।
क्षत्रवृद्धान्वया भूपाः शृणु वंशं च नाहुषात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जयसेनका संकृति, संकृतिका पुत्र हुआ महारथी वीरशिरोमणि जय। क्षत्रवृद्धकी वंश-परम्परामें इतने ही नरपति हुए। अब नहुषवंशका वर्णन सुनो॥ १८॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे चन्द्रवंशानुवर्णने सप्तदशोऽध्यायः॥ १७॥