[द्वितीयोऽध्यायः]
भागसूचना
पृषध्र आदि मनुके पाँच पुत्रोंका वंश
श्लोक-१
मूलम् (वचनम्)
श्रीशुक उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं गतेऽथ सुद्युम्ने मनुर्वैवस्वतः सुते।
पुत्रकामस्तपस्तेपे यमुनायां शतं समाः॥
मूलम्
एवं गतेऽथ सुद्युम्ने मनुर्वैवस्वतः सुते।
पुत्रकामस्तपस्तेपे यमुनायां शतं समाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! इस प्रकार जब सुद्युम्न तपस्या करनेके लिये वनमें चले गये, तब वैवस्वत मनुने पुत्रकी कामनासे यमुनाके तटपर सौ वर्षतक तपस्या की॥ १॥
श्लोक-२
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽयजन्मनुर्देवमपत्यार्थं हरिं प्रभुम्।
इक्ष्वाकुपूर्वजान् पुत्राँल्लेभे स्वसदृशान् दश॥
मूलम्
ततोऽयजन्मनुर्देवमपत्यार्थं हरिं प्रभुम्।
इक्ष्वाकुपूर्वजान् पुत्राँल्लेभे स्वसदृशान् दश॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उन्होंने सन्तानके लिये सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरिकी आराधना की और अपने ही समान दस पुत्र प्राप्त किये, जिनमें सबसे बड़े इक्ष्वाकु थे॥ २॥
श्लोक-३
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृषध्रस्तु मनोः पुत्रो गोपालो गुरुणा कृतः।
पालयामास गा यत्तो रात्र्यां वीरासनव्रतः॥
मूलम्
पृषध्रस्तु मनोः पुत्रो गोपालो गुरुणा कृतः।
पालयामास गा यत्तो रात्र्यां वीरासनव्रतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन मनुपुत्रोंमेंसे एकका नाम था पृषध्र। गुरु वसिष्ठजीने उसे गायोंकी रक्षामें नियुक्त कर रखा था, अतः वह रात्रिके समय बड़ी सावधानीसे वीरासनसे बैठा रहता और गायोंकी रक्षा करता॥ ३॥
श्लोक-४
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकदा प्राविशद् गोष्ठं शार्दूलो निशि वर्षति।
शयाना गाव उत्थाय भीतास्ता बभ्रमुर्व्रजे॥
मूलम्
एकदा प्राविशद् गोष्ठं शार्दूलो निशि वर्षति।
शयाना गाव उत्थाय भीतास्ता बभ्रमुर्व्रजे॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक दिन रातमें वर्षा हो रही थी। उस समय गायोंके झुंडमें एक बाघ घुस आया। उससे डरकर सोयी हुई गौएँ उठ खड़ी हुईं। वे गोशालामें ही इधर-उधर भागने लगीं॥ ४॥
श्लोक-५
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकां जग्राह बलवान् सा चुक्रोश भयातुरा।
तस्यास्तत् क्रन्दितं श्रुत्वा पृषध्रोऽभिससार ह॥
मूलम्
एकां जग्राह बलवान् सा चुक्रोश भयातुरा।
तस्यास्तत् क्रन्दितं श्रुत्वा पृषध्रोऽभिससार ह॥
अनुवाद (हिन्दी)
बलवान् बाघने एक गायको पकड़ लिया। वह अत्यन्त भयभीत होकर चिल्लाने लगी। उसका वह क्रन्दन सुनकर पृषध्र गायके पास दौड़ आया॥ ५॥
श्लोक-६
विश्वास-प्रस्तुतिः
खड्गमादाय तरसा प्रलीनोडुगणे निशि।
अजानन्नहनद् बभ्रोः शिरः शार्दूलशङ्कया॥
मूलम्
खड्गमादाय तरसा प्रलीनोडुगणे निशि।
अजानन्नहनद् बभ्रोः शिरः शार्दूलशङ्कया॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक तो रातका समय और दूसरे घनघोर घटाओंसे आच्छादित होनेके कारण तारे भी नहीं दीखते थे। उसने हाथ में तलवार उठाकर अनजानमें ही बड़े वेगसे गायका सिर काट दिया। वह समझ रहा था कि बाघ है।
श्लोक-७
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्याघ्रोऽपि वृक्णश्रवणो निस्त्रिंशाग्राहतस्ततः।
निश्चक्राम भृशं भीतो रक्तं पथि समुत्सृजन्॥
मूलम्
व्याघ्रोऽपि वृक्णश्रवणो निस्त्रिंशाग्राहतस्ततः।
निश्चक्राम भृशं भीतो रक्तं पथि समुत्सृजन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तलवारकी नोकसे बाघका भी कान कट गया, वह अत्यन्त भयभीत होकर रास्तेमें खून गिराता हुआ वहाँसे निकल भागा॥ ७॥
श्लोक-८
विश्वास-प्रस्तुतिः
मन्यमानो हतं व्याघ्रं पृषध्रः परवीरहा।
अद्राक्षीत् स्वहतां बभ्रुं व्युष्टायां निशि दुःखितः॥
मूलम्
मन्यमानो हतं व्याघ्रं पृषध्रः परवीरहा।
अद्राक्षीत् स्वहतां बभ्रुं व्युष्टायां निशि दुःखितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुदमन पृषध्रने यह समझा कि बाघ मर गया। परंतु रात बीतनेपर उसने देखा कि मैंने तो गायको ही मार डाला है, इससे उसे बड़ा दुःख हुआ॥ ८॥
श्लोक-९
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं शशाप कुलाचार्यः कृतागसमकामतः।
न क्षत्रबन्धुः शूद्रस्त्वं कर्मणा भवितामुना॥
मूलम्
तं शशाप कुलाचार्यः कृतागसमकामतः।
न क्षत्रबन्धुः शूद्रस्त्वं कर्मणा भवितामुना॥
अनुवाद (हिन्दी)
यद्यपि पृषध्रने जान-बूझकर अपराध नहीं किया था, फिर भी कुलपुरोहित वसिष्ठजीने उसे शाप दिया कि ‘तुम इस कर्मसे क्षत्रिय नहीं रहोगे; जाओ, शूद्र हो जाओ’॥ ९॥
श्लोक-१०
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं शप्तस्तु गुरुणा प्रत्यगृह्णात् कृताञ्जलिः।
अधारयद् व्रतं वीर ऊर्ध्वरेता मुनिप्रियम्॥
मूलम्
एवं शप्तस्तु गुरुणा प्रत्यगृह्णात् कृताञ्जलिः।
अधारयद् व्रतं वीर ऊर्ध्वरेता मुनिप्रियम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृषध्रने अपने गुरुदेवका यह शाप अंजलि बाँधकर स्वीकार किया और इसके बाद सदाके लिये मुनियोंको प्रिय लगनेवाले नैष्ठिक ब्रह्मचर्य-व्रतको धारण किया॥ १०॥
श्लोक-११
विश्वास-प्रस्तुतिः
वासुदेवे भगवति सर्वात्मनि परेऽमले।
एकान्तित्वं गतो भक्त्या सर्वभूतसुहृत् समः॥
मूलम्
वासुदेवे भगवति सर्वात्मनि परेऽमले।
एकान्तित्वं गतो भक्त्या सर्वभूतसुहृत् समः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह समस्त प्राणियोंका अहैतुक हितैषी एवं सबके प्रति समान भावसे युक्त होकर भक्तिके द्वारा परम विशुद्ध सर्वात्मा भगवान् वासुदेवका अनन्य प्रेमी हो गया॥ ११॥
श्लोक-१२
विश्वास-प्रस्तुतिः
विमुक्तसङ्गः शान्तात्मा संयताक्षोऽपरिग्रहः।
यदृच्छयोपपन्नेन कल्पयन् वृत्तिमात्मनः॥
मूलम्
विमुक्तसङ्गः शान्तात्मा संयताक्षोऽपरिग्रहः।
यदृच्छयोपपन्नेन कल्पयन् वृत्तिमात्मनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसकी सारी आसक्तियाँ मिट गयीं। वृत्तियाँ शान्त हो गयीं। इन्द्रियाँ वशमें हो गयीं। वह कभी किसी प्रकारका संग्रह-परिग्रह नहीं रखता था। जो कुछ दैववश प्राप्त हो जाता, उसीसे अपना जीवन-निर्वाह कर लेता॥ १२॥
श्लोक-१३
विश्वास-प्रस्तुतिः
आत्मन्यात्मानमाधाय ज्ञानतृप्तः समाहितः।
विचचार महीमेतां जडान्धबधिराकृतिः॥
मूलम्
आत्मन्यात्मानमाधाय ज्ञानतृप्तः समाहितः।
विचचार महीमेतां जडान्धबधिराकृतिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह आत्मज्ञानसे सन्तुष्ट एवं अपने चित्तको परमात्मामें स्थित करके प्रायः समाधिस्थ रहता। कभी-कभी जड, अंधे और बहरेके समान पृथ्वीपर विचरण करता॥ १३॥
श्लोक-१४
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवंवृत्तो वनं गत्वा दृष्ट्वा दावाग्निमुत्थितम्।
तेनोपयुक्तकरणो ब्रह्म प्राप परं मुनिः॥
मूलम्
एवंवृत्तो वनं गत्वा दृष्ट्वा दावाग्निमुत्थितम्।
तेनोपयुक्तकरणो ब्रह्म प्राप परं मुनिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकारका जीवन व्यतीत करता हुआ वह एक दिन वनमें गया। वहाँ उसने देखा कि दावानल धधक रहा है। मननशील पृषध्र अपनी इन्द्रियोंको उसी अग्निमें भस्म करके परब्रह्म परमात्माको प्राप्त हो गया॥ १४॥
श्लोक-१५
विश्वास-प्रस्तुतिः
कविः कनीयान् विषयेषु निःस्पृहो
विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम्।
निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं
विवेश कैशोरवयाः परं गतः॥
मूलम्
कविः कनीयान् विषयेषु निःस्पृहो
विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम्।
निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं
विवेश कैशोरवयाः परं गतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुका सबसे छोटा पुत्र था कवि। विषयोंसे वह अत्यन्त निःस्पृह था। वह राज्य छोड़कर अपने बन्धुओंके साथ वनमें चला गया और अपने हृदयमें स्वयंप्रकाश परमात्माको विराजमान कर किशोर अवस्थामें ही परम पदको प्राप्त हो गया॥ १५॥
श्लोक-१६
विश्वास-प्रस्तुतिः
करूषान्मानवादासन् कारूषाः क्षत्रजातयः।
उत्तरापथगोप्तारो ब्रह्मण्या धर्मवत्सलाः॥
मूलम्
करूषान्मानवादासन् कारूषाः क्षत्रजातयः।
उत्तरापथगोप्तारो ब्रह्मण्या धर्मवत्सलाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुपुत्र करूषसे कारूष नामक क्षत्रिय उत्पन्न हुए। वे बड़े ही ब्राह्मणभक्त, धर्मप्रेमी एवं उत्तरापथके रक्षक थे॥ १६॥
श्लोक-१७
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टाद् धार्ष्टमभूत् क्षत्रं ब्रह्मभूयं गतं क्षितौ।
नृगस्य वंशः सुमतिर्भूतज्योतिस्ततो वसुः॥
मूलम्
धृष्टाद् धार्ष्टमभूत् क्षत्रं ब्रह्मभूयं गतं क्षितौ।
नृगस्य वंशः सुमतिर्भूतज्योतिस्ततो वसुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टके धार्ष्ट नामक क्षत्रिय हुए। अन्तमें वे इस शरीरसे ही ब्राह्मण बन गये। नृगका पुत्र हुआ सुमति, उसका पुत्र भूतज्योति और भूतज्योतिका पुत्र वसु था॥ १७॥
श्लोक-१८
विश्वास-प्रस्तुतिः
वसोः प्रतीकस्तत्पुत्र ओघवानोघवत्पिता।
कन्या चौघवती नाम सुदर्शन उवाह ताम्॥
मूलम्
वसोः प्रतीकस्तत्पुत्र ओघवानोघवत्पिता।
कन्या चौघवती नाम सुदर्शन उवाह ताम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वसुका पुत्र प्रतीक और प्रतीकका पुत्र ओघवान्। ओघवान् के पुत्रका नाम भी ओघवान् ही था। उनके एक ओघवती नामकी कन्या भी थी,जिसका विवाह सुदर्शनसे हुआ॥ १८॥
श्लोक-१९
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रसेनो नरिष्यन्तादृक्षस्तस्य सुतोऽभवत्।
तस्य मीढ्वांस्ततः कूर्च इन्द्रसेनस्तु तत्सुतः॥
मूलम्
चित्रसेनो नरिष्यन्तादृक्षस्तस्य सुतोऽभवत्।
तस्य मीढ्वांस्ततः कूर्च इन्द्रसेनस्तु तत्सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुपुत्र नरिष्यन्तसे चित्रसेन, उससे ऋक्ष, ऋक्षसे मीढ्वान्, मीढ्वान् से कूर्च और उससे इन्द्रसेनकी उत्पत्ति हुई॥ १९॥
श्लोक-२०
विश्वास-प्रस्तुतिः
वीतिहोत्रस्त्विन्द्रसेनात् तस्य सत्यश्रवा अभूत्।
उरुश्रवाः सुतस्तस्य देवदत्तस्ततोऽभवत्॥
मूलम्
वीतिहोत्रस्त्विन्द्रसेनात् तस्य सत्यश्रवा अभूत्।
उरुश्रवाः सुतस्तस्य देवदत्तस्ततोऽभवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन्द्रसेनसे वीतिहोत्र, उससे सत्यश्रवा, सत्यश्रवासे उरुश्रवा और उससे देवदत्तकी उत्पत्ति हुई॥ २०॥
श्लोक-२१
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽग्निवेश्यो भगवानग्निः स्वयमभूत् सुतः।
कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महानृषिः॥
मूलम्
ततोऽग्निवेश्यो भगवानग्निः स्वयमभूत् सुतः।
कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महानृषिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवदत्तके अग्निवेश्य नामक पुत्र हुए, जो स्वयं अग्निदेव ही थे। आगे चलकर वे ही कानीन एवं महर्षि जातूकर्ण्यके नामसे विख्यात हुए॥ २१॥
श्लोक-२२
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो ब्रह्मकुलं जातमाग्निवेश्यायनं नृप।
नरिष्यन्तान्वयः प्रोक्तो दिष्टवंशमतः शृणु॥
मूलम्
ततो ब्रह्मकुलं जातमाग्निवेश्यायनं नृप।
नरिष्यन्तान्वयः प्रोक्तो दिष्टवंशमतः शृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
परीक्षित्! ब्राह्मणोंका ‘आग्निवेश्यायन’ गोत्र उन्हींसे चला है। इस प्रकार नरिष्यन्तके वंशका मैंने वर्णन किया, अब दिष्टका वंश सुनो॥ २२॥
श्लोक-२३
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाभागो दिष्टपुत्रोऽन्यः कर्मणा वैश्यतां गतः।
भलन्दनः सुतस्तस्य वत्सप्रीतिर्भलन्दनात्॥
मूलम्
नाभागो दिष्टपुत्रोऽन्यः कर्मणा वैश्यतां गतः।
भलन्दनः सुतस्तस्य वत्सप्रीतिर्भलन्दनात्॥
अनुवाद (हिन्दी)
दिष्टके पुत्रका नाम था नाभाग। यह उस नाभागसे अलग है, जिसका मैं आगे वर्णन करूँगा। वह अपने कर्मके कारण वैश्य हो गया। उसका पुत्र हुआ भलन्दन और उसका वत्सप्रीति॥ २३॥
श्लोक-२४
विश्वास-प्रस्तुतिः
वत्सप्रीतेः सुतः प्रांशुस्तत्सुतं प्रमतिं विदुः।
खनित्रः प्रमतेस्तस्माच्चाक्षुषोऽथ विविंशतिः॥
मूलम्
वत्सप्रीतेः सुतः प्रांशुस्तत्सुतं प्रमतिं विदुः।
खनित्रः प्रमतेस्तस्माच्चाक्षुषोऽथ विविंशतिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वत्सप्रीतिका प्रांशु और प्रांशुका पुत्र हुआ प्रमति। प्रमतिके खनित्र, खनित्रके चाक्षुष और उनके विविंशति हुए॥ २४॥
श्लोक-२५
विश्वास-प्रस्तुतिः
विविंशतिसुतो रम्भः खनिनेत्रोऽस्य धार्मिकः।
करन्धमो महाराज तस्यासीदात्मजो नृप॥
मूलम्
विविंशतिसुतो रम्भः खनिनेत्रोऽस्य धार्मिकः।
करन्धमो महाराज तस्यासीदात्मजो नृप॥
श्लोक-२६
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यावीक्षित् सुतो यस्य मरुत्तश्चक्रवर्त्यभूत्।
संवर्तोऽयाजयद् यं वै महायोग्यङ्गिरःसुतः॥
मूलम्
तस्यावीक्षित् सुतो यस्य मरुत्तश्चक्रवर्त्यभूत्।
संवर्तोऽयाजयद् यं वै महायोग्यङ्गिरःसुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
विविंशतिके पुत्र रम्भ और रम्भके पुत्र खनिनेत्र—दोनों ही परम धार्मिक हुए। उनके पुत्र करन्धम और करन्धमके अवीक्षित्। महाराज परीक्षित्! अवीक्षित् के पुत्र मरुत्त चक्रवर्ती राजा हुए। उनसे अंगिराके पुत्र महायोगी संवर्त्त ऋषिने यज्ञ कराया था॥ २५-२६॥
श्लोक-२७
विश्वास-प्रस्तुतिः
मरुत्तस्य यथा यज्ञो न तथान्यस्य कश्चन।
सर्वं हिरण्मयं त्वासीद् यत् किञ्चिच्चास्य शोभनम्॥
मूलम्
मरुत्तस्य यथा यज्ञो न तथान्यस्य कश्चन।
सर्वं हिरण्मयं त्वासीद् यत् किञ्चिच्चास्य शोभनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मरुत्तका यज्ञ जैसा हुआ वैसा और किसीका नहीं हुआ। उस यज्ञके समस्त छोटे-बड़े पात्र अत्यन्त सुन्दर एवं सोनेके बने हुए थे॥ २७॥
श्लोक-२८
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमाद्यदिन्द्रः सोमेन दक्षिणाभिर्द्विजातयः।
मरुतः परिवेष्टारो विश्वेदेवाः सभासदः॥
मूलम्
अमाद्यदिन्द्रः सोमेन दक्षिणाभिर्द्विजातयः।
मरुतः परिवेष्टारो विश्वेदेवाः सभासदः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस यज्ञमें इन्द्र सोमपान करके मतवाले हो गये थे और दक्षिणाओंसे ब्राह्मण तृप्त हो गये थे। उसमें परसनेवाले थे मरुद्गण और विश्वेदेव सभासद् थे॥ २८॥
श्लोक-२९
विश्वास-प्रस्तुतिः
मरुत्तस्य दमः पुत्रस्तस्यासीद् राज्यवर्धनः।
सुधृतिस्तत्सुतो जज्ञे सौधृतेयो नरः सुतः॥
मूलम्
मरुत्तस्य दमः पुत्रस्तस्यासीद् राज्यवर्धनः।
सुधृतिस्तत्सुतो जज्ञे सौधृतेयो नरः सुतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मरुत्तके पुत्रका नाम था दम। दमसे राज्यवर्धन, उससे सुधृति और सुधृतिसे नर नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई॥ २९॥
श्लोक-३०
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्सुतः केवलस्तस्माद् बन्धुमान् वेगवांस्ततः।
बन्धुस्तस्याभवद् यस्य तृणबिन्दुर्महीपतिः॥
मूलम्
तत्सुतः केवलस्तस्माद् बन्धुमान् वेगवांस्ततः।
बन्धुस्तस्याभवद् यस्य तृणबिन्दुर्महीपतिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरसे केवल, केवलसे बन्धुमान्, बन्धुमान्से वेगवान्, वेगवान् से बन्धु और बन्धुसे राजा तृणबिन्दुका जन्म हुआ॥ ३०॥
श्लोक-३१
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं भेजेऽलम्बुषा देवी भजनीयगुणालयम्।
वराप्सरा यतः पुत्राः कन्या चेडविडाभवत्॥
मूलम्
तं भेजेऽलम्बुषा देवी भजनीयगुणालयम्।
वराप्सरा यतः पुत्राः कन्या चेडविडाभवत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तृणबिन्दु आदर्श गुणोंके भण्डार थे। अप्सराओंमें श्रेष्ठ अलम्बुषा देवीने उनको वरण किया, जिससे उनके कई पुत्र और इडविडा नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई॥ ३१॥
श्लोक-३२
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यामुत्पादयामास विश्रवा धनदं सुतम्।
प्रादाय विद्यां परमामृषिर्योगेश्वरात् पितुः॥
मूलम्
तस्यामुत्पादयामास विश्रवा धनदं सुतम्।
प्रादाय विद्यां परमामृषिर्योगेश्वरात् पितुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मुनिवर विश्रवाने अपने योगेश्वर पिता पुलस्त्यजीसे उत्तम विद्या प्राप्त करके इडविडाके गर्भसे लोकपाल कुबेरको पुत्ररूपमें उत्पन्न किया॥ ३२॥
श्लोक-३३
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशालः शून्यबन्धुश्च धूम्रकेतुश्च तत्सुताः।
विशालो वंशकृद् राजा वैशालीं निर्ममे पुरीम्॥
मूलम्
विशालः शून्यबन्धुश्च धूम्रकेतुश्च तत्सुताः।
विशालो वंशकृद् राजा वैशालीं निर्ममे पुरीम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज तृणबिन्दुके अपनी धर्मपत्नीसे तीन पुत्र हुए—विशाल, शून्यबन्धु और धूम्रकेतु। उनमेंसे राजा विशाल वंशधर हुए और उन्होंने वैशाली नामकी नगरी बसायी॥ ३३॥
श्लोक-३४
विश्वास-प्रस्तुतिः
हेमचन्द्रः सुतस्तस्य धूम्राक्षस्तस्य चात्मजः।
तत्पुत्रात् संयमादासीत् कृशाश्वः सहदेवजः॥
मूलम्
हेमचन्द्रः सुतस्तस्य धूम्राक्षस्तस्य चात्मजः।
तत्पुत्रात् संयमादासीत् कृशाश्वः सहदेवजः॥
अनुवाद (हिन्दी)
विशालसे हेमचन्द्र, हेमचन्द्रसे धूम्राक्ष, धूम्राक्षसे संयम और संयमसे दो पुत्र हुए—कृशाश्व और देवज॥ ३४॥
श्लोक-३५
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृशाश्वात् सोमदत्तोऽभूद् योऽश्वमेधैरिडस्पतिम्।
इष्ट्वा पुरुषमापाग्र्यां गतिं योगेश्वराश्रितः॥
मूलम्
कृशाश्वात् सोमदत्तोऽभूद् योऽश्वमेधैरिडस्पतिम्।
इष्ट्वा पुरुषमापाग्र्यां गतिं योगेश्वराश्रितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृशाश्वके पुत्रका नाम था सोमदत्त। उसने अश्वमेध यज्ञोंके द्वारा यज्ञपति भगवान्की आराधना की और योगेश्वर संतोंका आश्रय लेकर उत्तम गति प्राप्त की॥ ३५॥
श्लोक-३६
विश्वास-प्रस्तुतिः
सौमदत्तिस्तु सुमतिस्तत्सुतो जनमेजयः।
एते वैशालभूपालास्तृणबिन्दोर्यशोधराः॥
मूलम्
सौमदत्तिस्तु सुमतिस्तत्सुतो जनमेजयः।
एते वैशालभूपालास्तृणबिन्दोर्यशोधराः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सोमदत्तका पुत्र हुआ सुमति और सुमतिसे जनमेजय। ये सब तृणबिन्दुकी कीर्तिको बढ़ानेवाले विशालवंशी राजा हुए॥ ३६॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे द्वितीयोऽध्यायः॥