विश्वास-प्रस्तुतिः
वन्दे श्रीकृष्णदेवं मुरनरकभिदं
वेदवेदान्तवेद्यं
लोके भक्तिप्रसिद्धं यदुकुलजलधौ
प्रादुरासीदपारे।
यस्यासीद् रूपमेवं त्रिभुवनतरणे
भक्तिवच्च स्वतन्त्रं
शास्त्रं रूपं च लोके प्रकटयति मुदा
यः स नो भूतिहेतुः॥
मूलम्
वन्दे श्रीकृष्णदेवं मुरनरकभिदं
वेदवेदान्तवेद्यं
लोके भक्तिप्रसिद्धं यदुकुलजलधौ
प्रादुरासीदपारे।
यस्यासीद् रूपमेवं त्रिभुवनतरणे
भक्तिवच्च स्वतन्त्रं
शास्त्रं रूपं च लोके प्रकटयति मुदा
यः स नो भूतिहेतुः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो इस जगत्में भक्तिसे ही प्राप्त होते हैं, जिनका तत्त्व वेद और वेदान्तके द्वारा ही जाननेयोग्य है, जो अपार यादवरूपी समुद्रमें प्रकट हुए थे, मुर और नरकासुरको मारनेवाले उन भगवान् श्रीकृष्णको मैं सादर सप्रेम प्रणाम करता हूँ। जो इस संसारमें अपने स्वरूप तथा शास्त्रको प्रसन्नतापूर्वक प्रकट किया करते हैं तथा सचमुच ही जिनका स्वरूप इस त्रिभुवनको तारनेके लिये भक्तिके समान स्वतन्त्र नौकारूप है, वे भगवान् श्रीकृष्ण हमलोगोंका कल्याण करें।
विश्वास-प्रस्तुतिः
नमः कृष्णपदाब्जाय भक्ताभीष्टप्रदायिने।
आरक्तं रोचयेच्छश्वन्मामके हृदयाम्बुजे॥
मूलम्
नमः कृष्णपदाब्जाय भक्ताभीष्टप्रदायिने।
आरक्तं रोचयेच्छश्वन्मामके हृदयाम्बुजे॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ-कुछ लालिमा लिये हुए श्रीकृष्णका जो चरणकमल मेरे हृदयकमलमें सदा दिव्य प्रकाश फैलाता रहता है और भक्तजनोंकी मनोवांछित कामनाएँ पूर्ण किया करता है, उसे मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभागवतरूपं तत् पूजयेद् भक्तिपूर्वकम्।
अर्चकायाखिलान् कामान् प्रयच्छति न संशयः॥
मूलम्
श्रीभागवतरूपं तत् पूजयेद् भक्तिपूर्वकम्।
अर्चकायाखिलान् कामान् प्रयच्छति न संशयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमद्भागवत भगवान्का स्वरूप है, इसका भक्तिपूर्वक पूजन करना चाहिये। यह पूजन करनेवालेकी सारी कामनाएँ पूर्ण करता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।