विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥ १॥*
मूलम्
ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥ १॥*
पादटिप्पनी
- सर्वान्तर्यामी परमात्मा इस समस्त ब्रह्माण्डकी भूमिको सब ओरसे व्याप्त करके स्थित हैं और इससे दस अंगुल ऊपर भी हैं। अर्थात् ब्रह्माण्डमें व्यापक होते हुए वे इससे परे भी हैं। उन परमात्माके मस्तक, नेत्र आदि ज्ञानेन्द्रियाँ और चरण आदि कर्मेन्द्रियाँ हजारों हैं—असंख्य हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आवाहयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आवाहयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे भगवान्के नामस्वरूप भागवतको नमस्कार करके आवाहन करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥ २॥*
मूलम्
ॐ पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥ २॥*
पादटिप्पनी
- यह जो कुछ इस समय वर्तमान है, सब परमात्माका ही स्वरूप है, भूत और भविष्य जगत् भी परमात्मा ही है। इतना ही नहीं, वह परमात्मा मुक्तिका स्वामी है, तथापि ये जो अन्नसे उत्पन्न होनेवाले जीव हैं, उन सबका भी शासन—सबको नियमके अंदर रखनेवाला वह परमात्मा ही है।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आसनं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आसनं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे आसन समर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥ ३॥*
मूलम्
ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥ ३॥*
पादटिप्पनी
- भूत, भविष्य और वर्तमान कालसे सम्बन्ध रखनेवाला जितना भी जगत् है—यह सब इस पुरुषकी महिमा है, इस परमात्माका विभूति-विस्तार है। उसका पारमार्थिक स्वरूप इतना ही नहीं है, वह पुरुष इस ब्रह्माण्डमय विराट्स्वरूपसे भी बहुत बड़ा है। यह सारा विश्व (ये तीनों लोक) तो उसके एक पादमें है, उसकी एक चौथाईमें समाप्त हो जाते हैं। अभी उसके तीन पाद और शेष हैं। यह त्रिपादस्वरूप अमृत है—अविनाशी है और परम प्रकाशमय द्युलोक अर्थात् अपने स्वरूपमें ही स्थित है।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। पाद्यं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। पाद्यं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे पैर पखारनेके लिये गंगाजल समर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ त्रिपादूर्ध्व उदैत् पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि॥ ४॥*
मूलम्
ॐ त्रिपादूर्ध्व उदैत् पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि॥ ४॥*
पादटिप्पनी
- यह त्रिपाद पुरुष ऊपर उठा हुआ है अर्थात् वह परमात्मा अज्ञानके कार्यभूत इस संसारसे पृथक् तथा यहाँके गुण-दोषोंसे अछूता रहकर ऊँची स्थितिमें विराजमान है। उसका एक अंशमात्र मायाके सम्पर्कमें आकर यहाँ जगत्के रूपमें उत्पन्न हुआ, फिर वह मायावश जड-चेतनमयी नाना प्रकारकी सृष्टिके रूपमें स्वयं ही फैलकर सब ओर व्याप्त हो गया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। अर्घ्यं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। अर्घ्यं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे अर्घ्य (गन्ध-पुष्पादिसहित गंगाजल) निवेदित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः॥ ५॥*
मूलम्
ॐ ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः॥ ५॥*
पादटिप्पनी
- उस आदिपुरुष परमात्मासे विराट्की उत्पत्ति हुई—यह ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ। इस ब्रह्माण्डके ऊपर इसका अभिमानी एक पुरुष प्रकट हुआ। तात्पर्य यह कि परमात्माने अपनी मायासे विराट् ब्रह्माण्डकी रचना कर स्वयं ही उसमें जीवरूपसे प्रवेश किया। वे ही जीव ब्रह्माण्डका अभिमानी देवता (हिरण्यगर्भ) हुआ। इस प्रकार उत्पन्न होकर वह विराट् पुरुष पुनः देवता, तिर्यक् और मनुष्य आदि अनेकों रूपोंमें प्रकट हुआ। इसके बाद उसने भूमिको उत्पन्न किया, फिर जीवोंके शरीरोंकी रचना की।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आचमनं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। आचमनं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे आचमनके लिये गंगाजल अर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम्।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान् ग्राम्याश्च ये॥ ६॥*
मूलम्
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम्।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान् ग्राम्याश्च ये॥ ६॥*
पादटिप्पनी
६—जिसमें सब कुछ हवन किया गया, उस पुरुषरूप यज्ञसे दही-घी आदि सामग्री उत्पन्न हुई। पुरुषने वनमें उत्पन्न होनेवाले हिरन आदि और गाँवोंमें होनेवाले गाय, घोड़े आदि, वायु-देवता-सम्बन्धी प्रसिद्ध पशुओंको भी उत्पन्न किया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। स्नानं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। स्नानं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे स्नानके लिये गंगाजल अथवा शुद्ध जल अर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तमादजायत॥ ७॥*
मूलम्
ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तमादजायत॥ ७॥*
पादटिप्पनी
- जिसमें सब कुछ हवन किया गया है उस यज्ञपुरुषसे ऋग्वेद और सामवेद प्रकट हुए , उसीसे गायत्री आदि छन्दोंकी उत्पत्ति हुई तथा उसीसे यजुर्वेदका भी प्रादुर्भाव हुआ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। वस्त्रं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। वस्त्रं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे वस्त्र समर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः॥ ८॥*
मूलम्
ॐ तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः॥ ८॥*
पादटिप्पनी
- उस यज्ञपुरुषसे घोड़े उत्पन्न हुए , इनके अतिरिक्त भी जो नीचे-ऊपर दोनों ओर दाँत रखनेवाले खच्चर, गदहे आदि प्राणी हैं, ये भी उत्पन्न हुए। उसीसे गौएँ उत्पन्न हुईं और उसीसे भेड़ों तथा बकरोंकी उत्पत्ति हुई।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे यज्ञोपवीत अर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥ ९॥*
मूलम्
ॐ तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥ ९॥*
पादटिप्पनी
- सबसे पहले उत्पन्न हुआ वह पुरुष ही उस समय यज्ञका साधन था, देवताओंने उसे संकल्पद्वारा यूपमें बँधा हुआ पशु माना और उस मानसिक यज्ञमें उस संकल्पित पशुका भावनाद्वारा ही प्रोक्षण आदि संस्कार भी किया। इस प्रकार संस्कार किये हुए उस पुरुषरूपी पशुके द्वारा देवताओं, साध्यों और ऋषियोंने उस मानसिक यज्ञको पूर्ण किया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। गन्धं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। गन्धं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे गन्ध-चन्दनादि चढ़ाये।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्यासीत् किम्बाहू किमूरू पादा उच्येते॥ १०॥*
मूलम्
ॐ यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्यासीत् किम्बाहू किमूरू पादा उच्येते॥ १०॥*
पादटिप्पनी
- जब प्राणमय देवताओंने उस यज्ञपुरुष (प्रजापति)-को प्रकट किया, उस समय उसके अवयवोंके रूपमें कितने विभाग किये। इस पुरुषका मुख क्या था, दोनों बाहें क्या थीं। दोनों जाँघें और दोनों पैर कौन थे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। तुलसीदलं च पुष्पाणि समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। तुलसीदलं च पुष्पाणि समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे तुलसीदल एवं पुष्प चढ़ावे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥ ११॥*
मूलम्
ॐ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥ ११॥*
पादटिप्पनी
- ब्राह्मण इसका मुख था अर्थात् मुखसे ब्राह्मणकी उत्पत्ति हुई। दोनों भुजाएँ क्षत्रिय जाति बनीं, अर्थात् उनसे क्षत्रियोंका प्राकट्य हुआ। इस पुरुषकी दोनों जंघाएँ वैश्य हुईं—जंघाओंसे वैश्य जातिकी उत्पत्ति हुई और दोनों पैरोंसे शूद्र जाति प्रकट हुई।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। धूपमाघ्रापयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। धूपमाघ्रापयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे धूप सुँघाये।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥ १२॥*
मूलम्
ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥ १२॥*
पादटिप्पनी
- इसके मनसे चन्द्रमा उत्पन्न हुए , नेत्रोंसे सूर्यकी उत्पत्ति हुई। श्रोत्र (कान)-से वायु और प्राणकी उत्पत्ति हुई और मुखसे अग्निका प्रादुर्भाव हुआ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। दीपं दर्शयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। दीपं दर्शयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे घीका दीप जलाकर दिखाये। (उसके बाद हाथ धो ले।)
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्षॸ शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्॥ १३॥*
मूलम्
ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्षॸ शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्॥ १३॥*
पादटिप्पनी
- नाभिसे अन्तरिक्ष-लोककी उत्पत्ति हुई, मस्तकसे स्वर्गलोक प्रकट हुआ, पैरोंसे पृथिवी हुई और कानसे दिशाएँ प्रकट हुईं। इस प्रकार उन्होंने समस्त लोकोंकी कल्पना की।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। नैवेद्यं निवेदयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। नैवेद्यं निवेदयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे नैवेद्य अर्पित करे। नैवेद्यके बाद ‘‘मध्ये पानीयं समर्पयामि’’ एवम् ‘उत्तरापोशनं समर्पयामि’ कहकर तीन-तीन बार जल छोड़े (प्रसाद)।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥ १४॥*
मूलम्
ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥ १४॥*
पादटिप्पनी
- उस समय देवताओंने यज्ञ करना चाहा, परन्तु यज्ञकी कोई सामग्री उपलब्ध न हुई, तब उन्होंने पुरुषस्वरूपमें ही हविष्यकी भावना की। जब पुरुषरूप हविष्यसे ही देवताओंने यज्ञका विस्तार किया, उस समय उनके संकल्पानुसार वसन्त ऋतु घी हुई, ग्रीष्म ऋतुने समिधाका काम दिया और शरद्-ऋतुसे विशेष प्रकारके चरु-पुरोडाशादि हविष्यकी आवश्यकता पूर्ण हुई।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। एलालवङ्गपूगीफलकर्पूरसहितं ताम्बूलं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। एलालवङ्गपूगीफलकर्पूरसहितं ताम्बूलं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे ताम्बूल समर्पण करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिःसप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अवध्नन् पुरुषं पशुम्॥ १५॥*
मूलम्
ॐ सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिःसप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अवध्नन् पुरुषं पशुम्॥ १५॥*
पादटिप्पनी
- प्रजापतिके प्राणरूपी देवताओंने जब मानसिक यज्ञका अनुष्ठान करते समय संकल्पद्वारा पुरुषरूपी पशुका बन्धन किया था, उस समय सात समुद्र इस यज्ञकी परिधि थे और इक्कीस प्रकारके छन्दोंकी समिधा हुई। (गायत्री आदि ७, श्रुति जगती आदि ७ और कृति आदि ७—ये ही २१ छन्द हैं।)
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। दक्षिणां समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। दक्षिणां समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे दक्षिणा समर्पित करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्
आदित्यवर्णं तमसस्तु पारे।
सर्वाणि भूतानि विचिन्त्य धीरः
नामानि कृत्वाभिवदन् यदास्ते॥ १६॥*
मूलम्
ॐ वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्
आदित्यवर्णं तमसस्तु पारे।
सर्वाणि भूतानि विचिन्त्य धीरः
नामानि कृत्वाभिवदन् यदास्ते॥ १६॥*
पादटिप्पनी
- धीर पुरुष समग्र रूपोंको परमात्माके ही स्वरूप विचारकर, उनके भिन्न-भिन्न नाम रखकर जिस एक तत्त्वका ही उच्चारण और अभिवन्दन करता है, उसको ज्ञानी पुरुष इस प्रकार जानते हैं—अविद्यारूपी अन्धकारसे परे आदित्यके समान स्वप्रकाश इस महान् पुरुषको मैं अपने ‘आत्मा’ रूपसे जानता हूँ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। नमस्कारं समर्पयामि।
ॐ धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार
शक्रः प्रविद्वान् प्ररिशश्चतस्रः।
तमेवं विद्वानमृत इह भवति
नान्यः पन्था अयनाय विद्यते॥ १७॥*
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। नमस्कारं समर्पयामि।
ॐ धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार
शक्रः प्रविद्वान् प्ररिशश्चतस्रः।
तमेवं विद्वानमृत इह भवति
नान्यः पन्था अयनाय विद्यते॥ १७॥*
पादटिप्पनी
- ब्रह्माजीने पूर्वकालमें जिसका स्तवन किया था, इन्द्रने सब दिशा-विदिशाओंमें जिसे व्याप्त जाना था, उस परमात्माको जो इस प्रकार जानता है, वह इस जीवनमें ही अमृत (मुक्त) हो जाता है। मोक्ष अथवा भगवत्प्राप्तिके लिये इसके सिवा दूसरा मार्ग नहीं है।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। प्रदक्षिणां समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। प्रदक्षिणां समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे प्रदक्षिणा समर्पण करे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा-
स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त
यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥ १८॥*
मूलम्
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा-
स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त
यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥ १८॥*
पादटिप्पनी
- देवताओंने पूर्वोक्त मानसिक यज्ञद्वारा यज्ञस्वरूप पुरुष-प्रजापतिकी आराधना की। इस आराधनासे समस्त जगत्को धारण करनेवाले वे पृथ्वी आदि मुख्य भूत प्रकट हुए। इस यज्ञकी उपासना करनेवाले महात्मालोग उस स्वर्गलोकको प्राप्त होते हैं, जहाँ प्राचीन साध्यदेवता निवास करते हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। मन्त्रपुष्पं समर्पयामि।
मूलम्
श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः। मन्त्रपुष्पं समर्पयामि।
अनुवाद (हिन्दी)
—इस मन्त्रसे पुष्पांजलि समर्पित करे।