०६ श्रीमदभागवतकी पूजन-विधि तथा विनियोग

अनुवाद (हिन्दी)

प्रातःकाल स्नानके पश्चात् अपना नित्य-नियम समाप्त करके पहले भगवत्-सम्बन्धी स्तोत्रों एवं पदोंके द्वारा मंगलाचरण और वन्दना करे। इसके बाद आचमन और प्राणायाम करके—

विश्वास-प्रस्तुतिः

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाॸसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥ १॥*

मूलम्

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाॸसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥ १॥*

पादटिप्पनी
  • देवताओ! हमें अपने कानोंसे ऐसे ही वचन सुननेको मिलें, जो परिणाममें कल्याणकारी हों। हम यज्ञकर्ममें समर्थ होकर अपनी इन आँखोंसे सदा शुभ-ही-शुभ देखें—अशुभका कभी दर्शन न हो। हमारा शरीर और उसके अवयव स्थिर हों—पुष्ट हों और उनसे परमात्माकी स्तुति—भगवान‍्की सेवा करते हुए हम ऐसी आयुका उपभोग करें, ऐसा जीवन बितायें जो देवताओंके लिये हितकर हो, जिसका देवकार्यमें उपयोग हो सके।
अनुवाद (हिन्दी)

—इत्यादि मन्त्रोंसे शान्तिपाठ करे। इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण, श्रीव्यासजी, शुकदेवजी तथा श्रीमद‍्भागवत-ग्रन्थकी षोडशोपचारसे पूजा करनी चाहिये। यहाँ श्रीमद‍्भागवत-पुस्तकके षोडशोपचार पूजनकी मन्त्रसहित विधि दी जा रही है, इसीके अनुसार श्रीकृष्ण आदिकी भी पूजा करनी चाहिये। निम्नांकित वाक्य पढ़कर पूजनके लिये संकल्प करना चाहिये। संकल्पके समय दाहिने हाथकी अनामिका अंगुलिमें कुशकी पवित्री पहने और हाथमें जल लिये रहे। संकल्प-वाक्य इस प्रकार है—

विश्वास-प्रस्तुतिः

ॐ तत्सत्। ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओ३मद्यैतस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यस्थाने कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकयोगवारांशकलग्नमुहूर्तकरणान्वितायां शुभपुण्यतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नस्य अमुकशर्मणः (वर्मणः गुप्तस्य वा) मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य श्रीगोवर्धनधरणचरणारविन्दप्रसादात् सर्वसमृद्धिप्राप्त्यर्थं भगवदनुग्रहपूर्वकभगवदीयप्रेमोपलब्धये च श्रीभगवन्नामात्मकभगवत्स्वरूपश्रीभागवतस्य पाठेऽधिकारसिद्‍ध्यर्थं श्रीमद‍्भागवतस्य प्रतिष्ठां पूजनं चाहं करिष्ये।

मूलम्

ॐ तत्सत्। ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओ३मद्यैतस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यस्थाने कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकयोगवारांशकलग्नमुहूर्तकरणान्वितायां शुभपुण्यतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नस्य अमुकशर्मणः (वर्मणः गुप्तस्य वा) मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य श्रीगोवर्धनधरणचरणारविन्दप्रसादात् सर्वसमृद्धिप्राप्त्यर्थं भगवदनुग्रहपूर्वकभगवदीयप्रेमोपलब्धये च श्रीभगवन्नामात्मकभगवत्स्वरूपश्रीभागवतस्य पाठेऽधिकारसिद्‍ध्यर्थं श्रीमद‍्भागवतस्य प्रतिष्ठां पूजनं चाहं करिष्ये।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार संकल्प करके—

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदस्तु मित्रावरुणा तदग्ने
शंय्योऽस्मभ्यमिदमस्तु शस्तम्।
अशीमहि गाधमुत प्रतिष्ठां
नमो दिवे बृहते सादनाय॥ २॥*

मूलम्

तदस्तु मित्रावरुणा तदग्ने
शंय्योऽस्मभ्यमिदमस्तु शस्तम्।
अशीमहि गाधमुत प्रतिष्ठां
नमो दिवे बृहते सादनाय॥ २॥*

पादटिप्पनी
  • परमात्मन्! आप सबके मित्र—हितकारी होनेके कारण मित्र नामसे पुकारे जाते हैं, सबसे वर—श्रेष्ठ होनेसे आप वरुण हैं, सबको ग्रहण करनेवाले होनेके कारण अग्नि हैं। हम आपको इन ‘मित्र’, ‘वरुण’ एवं ‘अग्नि’ नामोंसे सम्बोधित करके प्रार्थना करते हैं कि यह सूक्त (आपके सुयशसे पूर्ण यह श्रीमद‍्भागवतरूप सुन्दर उक्ति) अत्यन्त प्रशस्त हो—सर्वोत्तम होनेके साथ ही इसकी ख्याति एवं प्रसार हो तथा यह सूक्त हमलोगोंके लिये ऐसा सुख, ऐसी शान्ति प्रदान करे, जिसमें दुःख या अशान्तिका मेल न हो, अर्थात् इससे नित्य सुख, नित्य शान्ति प्राप्त हो। हम चाहते हैं अविचल स्थिति, हम चाहते हैं शाश्वत प्रतिष्ठा, इसे इस सूक्तके द्वारा हम प्राप्त कर सकें। देवदेव! यह जो आपका अत्यन्त प्रकाशमान परम महान् समस्त लोकोंका आश्रयभूत ‘सूर्य’ नामक स्वरूप है, इसे हम सदा ही नमस्कार करते हैं।
अनुवाद (हिन्दी)

—यह मन्त्र पढ़कर श्रीमद‍्भागवतकी सिंहासन या अन्य किसी आसनपर स्थापना करे। तत्पश्चात् पुरुषसूक्तके एक-एक मन्त्रद्वारा क्रमशः षोडश-उपचार अर्पण करते हुए पूजन करे।