०३ श्रीमदभागवत-माहात्म्य

विश्वास-प्रस्तुतिः

(स्वयं श्रीभगवान‍्के श्रीमुखसे ब्रह्माजीके प्रति कथित)
श्रीमद‍्भागवतं नाम पुराणं लोकविश्रुतम्।
शृणुयाच्छ्रद्धया युक्तो मम सन्तोषकारणम्॥ १॥

मूलम्

(स्वयं श्रीभगवान‍्के श्रीमुखसे ब्रह्माजीके प्रति कथित)
श्रीमद‍्भागवतं नाम पुराणं लोकविश्रुतम्।
शृणुयाच्छ्रद्धया युक्तो मम सन्तोषकारणम्॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोकविख्यात श्रीमद‍्भागवत नामक पुराणका प्रतिदिन श्रद्धायुक्त होकर श्रवण करना चाहिये। यही मेरे संतोषका कारण है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्यं भागवतं यस्तु पुराणं पठते नरः।
प्रत्यक्षरं भवेत्तस्य कपिलादानजं फलम्॥ २॥

मूलम्

नित्यं भागवतं यस्तु पुराणं पठते नरः।
प्रत्यक्षरं भवेत्तस्य कपिलादानजं फलम्॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य प्रतिदिन भागवतपुराणका पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षरके उच्चारणके साथ कपिला गौ दान देनेका पुण्य होता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्लोकार्धं श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोद‍्भवम्।
पठते शृणुयाद् यस्तु गोसहस्रफलं लभेत्॥ ३॥

मूलम्

श्लोकार्धं श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोद‍्भवम्।
पठते शृणुयाद् यस्तु गोसहस्रफलं लभेत्॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन भागवतके आधे श्लोक या चौथाई श्लोकका पाठ अथवा श्रवण करता है, उसे एक हजार गोदानका फल मिलता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यः पठेत् प्रयतो नित्यं श्लोकं भागवतं सुत।
अष्टादशपुराणानां फलमाप्नोति मानवः॥ ४॥

मूलम्

यः पठेत् प्रयतो नित्यं श्लोकं भागवतं सुत।
अष्टादशपुराणानां फलमाप्नोति मानवः॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्र! जो प्रतिदिन पवित्रचित्त होकर भागवतके एक श्लोकका पाठ करता है, वह मनुष्य अठारह पुराणोंके पाठका फल पा लेता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवाः।
कलिबाह्या नरास्ते वै येऽर्चयन्ति सदा मम॥ ५॥

मूलम्

नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवाः।
कलिबाह्या नरास्ते वै येऽर्चयन्ति सदा मम॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ नित्य मेरी कथा होती है, वहाँ विष्णुपार्षद प्रह्लाद आदि विद्यमान रहते हैं। जो मनुष्य सदा मेरे भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं, वे कलिके अधिकारसे अलग हैं, उनपर कलिका वश नहीं चलता।

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैष्णवानां तु शास्त्राणि येऽर्चयन्ति गृहे नराः।
सर्वपापविनिर्मुक्ता भवन्ति सुरवन्दिताः॥ ६॥

मूलम्

वैष्णवानां तु शास्त्राणि येऽर्चयन्ति गृहे नराः।
सर्वपापविनिर्मुक्ता भवन्ति सुरवन्दिताः॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मानव अपने घरमें वैष्णवशास्त्रोंकी पूजा करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त होकर देवताओंद्वारा वन्दित होते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

येऽर्चयन्ति गृहे नित्यं शास्त्रं भागवतं कलौ।
आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम्॥ ७॥

मूलम्

येऽर्चयन्ति गृहे नित्यं शास्त्रं भागवतं कलौ।
आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम्॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग कलियुगमें अपने घरके भीतर प्रतिदिन भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं, वे [कलिसे निडर होकर] ताल ठोंकते और उछलते-कूदते हैं, मैं उनपर बहुत प्रसन्न रहता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यावद्दिनानि हे पुत्र शास्त्रं भागवतं गृहे।
तावत् पिबन्ति पितरः क्षीरं सर्पिर्मधूदकम्॥ ८॥

मूलम्

यावद्दिनानि हे पुत्र शास्त्रं भागवतं गृहे।
तावत् पिबन्ति पितरः क्षीरं सर्पिर्मधूदकम्॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्र! मनुष्य जितने दिनोंतक अपने घरमें भागवतशास्त्र रखता है, उतने समयतक उसके पितर दूध, घी, मधु और मीठा जल पीते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यच्छन्ति वैष्णवे भक्त्या शास्त्रं भागवतं हि ये।
कल्पकोटिसहस्राणि मम लोके वसन्ति ते॥ ९॥

मूलम्

यच्छन्ति वैष्णवे भक्त्या शास्त्रं भागवतं हि ये।
कल्पकोटिसहस्राणि मम लोके वसन्ति ते॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग विष्णुभक्त पुरुषको भक्तिपूर्वक भागवतशास्त्र समर्पण करते हैं, वे हजारों करोड़ कल्पोंतक (अनन्तकालतक) मेरे वैकुण्ठधाममें वास करते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

येऽर्चयन्ति सदा गेहे शास्त्रं भागवतं नराः।
प्रीणितास्तैश्च विबुधा यावदाभूतसंप्लवम्॥ १०॥

मूलम्

येऽर्चयन्ति सदा गेहे शास्त्रं भागवतं नराः।
प्रीणितास्तैश्च विबुधा यावदाभूतसंप्लवम्॥ १०॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग सदा अपने घरमें भागवतशास्त्रका पूजन करते हैं, वे मानो एक कल्पतकके लिये सम्पूर्ण देवताओंको तृप्त कर देते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्लोकार्धं श्लोकपादं वा वरं भागवतं गृहे।
शतशोऽथ सहस्रैश्च किमन्यैः शास्त्रसंग्रहैः॥ ११॥

मूलम्

श्लोकार्धं श्लोकपादं वा वरं भागवतं गृहे।
शतशोऽथ सहस्रैश्च किमन्यैः शास्त्रसंग्रहैः॥ ११॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि अपने घरपर भागवतका आधा श्लोक या चौथाई श्लोक भी रहे, तो यह बहुत उत्तम बात है, उसे छोड़कर सैकड़ों और हजारों तरहके अन्य ग्रन्थोंके संग्रहसे भी क्या लाभ है?

विश्वास-प्रस्तुतिः

न यस्य तिष्ठते शास्त्रं गृहे भागवतं कलौ।
न तस्य पुनरावृत्तिर्याम्यपाशात् कदाचन॥ १२॥

मूलम्

न यस्य तिष्ठते शास्त्रं गृहे भागवतं कलौ।
न तस्य पुनरावृत्तिर्याम्यपाशात् कदाचन॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें जिस मनुष्यके घरमें भागवतशास्त्र मौजूद नहीं है, उसको यमराजके पाशसे कभी छुटकारा नहीं मिलता।

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं स वैष्णवो ज्ञेयः शास्त्रं भागवतं कलौ।
गृहे न तिष्ठते यस्य श्वपचादधिको हि सः॥ १३॥

मूलम्

कथं स वैष्णवो ज्ञेयः शास्त्रं भागवतं कलौ।
गृहे न तिष्ठते यस्य श्वपचादधिको हि सः॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस कलियुगमें जिसके घर भागवतशास्त्र मौजूद नहीं है, उसे कैसे वैष्णव समझा जाय? वह तो चाण्डालसे भी बढ़कर नीच है!

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वस्वेनापि लोकेश कर्तव्यः शास्त्रसंग्रहः।
वैष्णवस्तु सदा भक्त्या तुष्ट्यर्थं मम पुत्रक॥ १४॥

मूलम्

सर्वस्वेनापि लोकेश कर्तव्यः शास्त्रसंग्रहः।
वैष्णवस्तु सदा भक्त्या तुष्ट्यर्थं मम पुत्रक॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोकेश ब्रह्मा! पुत्र! मनुष्यको सदा मुझे भक्तिपूर्वक संतुष्ट करनेके लिये अपना सर्वस्व देकर भी वैष्णवशास्त्रोंका संग्रह करना चाहिये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ।
तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशैः सह॥ १५॥

मूलम्

यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ।
तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशैः सह॥ १५॥

अनुवाद (हिन्दी)

कलियुगमें जहाँ-जहाँ पवित्र भागवतशास्त्र रहता है, वहाँ-वहाँ सदा ही मैं देवताओंके साथ उपस्थित रहता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र सर्वाणि तीर्थानि नदीनदसरांसि च।
यज्ञाः सप्तपुरी नित्यं पुण्याः सर्वे शिलोच्चयाः॥ १६॥

मूलम्

तत्र सर्वाणि तीर्थानि नदीनदसरांसि च।
यज्ञाः सप्तपुरी नित्यं पुण्याः सर्वे शिलोच्चयाः॥ १६॥

अनुवाद (हिन्दी)

यही नहीं—वहाँ नदी, नद और सरोवररूपमें प्रसिद्ध सभी तीर्थ वास करते हैं; सम्पूर्ण यज्ञ, सात पुरियाँ और सभी पावन पर्वत वहाँ नित्य निवास करते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रोतव्यं मम शास्त्रं हि यशोधर्मजयार्थिना।
पापक्षयार्थं लोकेश मोक्षार्थं धर्मबुद्धिना॥ १७॥

मूलम्

श्रोतव्यं मम शास्त्रं हि यशोधर्मजयार्थिना।
पापक्षयार्थं लोकेश मोक्षार्थं धर्मबुद्धिना॥ १७॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोकेश! यश, धर्म और विजयके लिये तथा पापक्षय एवं मोक्षकी प्राप्तिके लिये धर्मात्मा मनुष्यको सदा ही मेरे भागवतशास्त्रका श्रवण करना चाहिये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रीमद‍्भागवतं पुण्यमायुरारोग्यपुष्टिदम्।
पठनाच्छ्रवणाद् वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ १८॥

मूलम्

श्रीमद‍्भागवतं पुण्यमायुरारोग्यपुष्टिदम्।
पठनाच्छ्रवणाद् वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ १८॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह पावन पुराण श्रीमद‍्भागवत आयु, आरोग्य और पुष्टिको देनेवाला है; इसका पाठ अथवा श्रवण करनेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

न शृण्वन्ति न हृष्यन्ति श्रीमद‍्भागवतं परम्।
सत्यं सत्यं हि लोकेश तेषां स्वामी सदा यमः॥ १९॥

मूलम्

न शृण्वन्ति न हृष्यन्ति श्रीमद‍्भागवतं परम्।
सत्यं सत्यं हि लोकेश तेषां स्वामी सदा यमः॥ १९॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोकेश! जो इस परम उत्तम भागवतको न तो सुनते हैं और न सुनकर प्रसन्न ही होते हैं, उनके स्वामी सदा यमराज ही हैं—वे सदा यमराजके ही वशमें रहते हैं—यह मैं सत्य-सत्य कह रहा हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

न गच्छति यदा मर्त्यः श्रोतुं भागवतं सुत।
एकादश्यां विशेषेण नास्ति पापरतस्ततः॥ २०॥

मूलम्

न गच्छति यदा मर्त्यः श्रोतुं भागवतं सुत।
एकादश्यां विशेषेण नास्ति पापरतस्ततः॥ २०॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्र! जो मनुष्य सदा ही—विशेषतः एकादशीको भागवत सुनने नहीं जाता, उससे बढ़कर पापी कोई नहीं है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्लोकं भागवतं चापि श्लोकार्धं पादमेव वा।
लिखितं तिष्ठते यस्य गृहे तस्य वसाम्यहम्॥ २१॥

मूलम्

श्लोकं भागवतं चापि श्लोकार्धं पादमेव वा।
लिखितं तिष्ठते यस्य गृहे तस्य वसाम्यहम्॥ २१॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसके घरमें एक श्लोक, आधा श्लोक अथवा श्लोकका एक ही चरण लिखा रहता है, उसके घरमें मैं निवास करता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वाश्रमाभिगमनं सर्वतीर्थावगाहनम्।
न तथा पावनं नॄॄृणां श्रीमद‍्भागवतं यथा॥ २२॥

मूलम्

सर्वाश्रमाभिगमनं सर्वतीर्थावगाहनम्।
न तथा पावनं नॄॄृणां श्रीमद‍्भागवतं यथा॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्यके लिये सम्पूर्ण पुण्य-आश्रमोंकी यात्रा या सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करना भी वैसा पवित्रकारक नहीं है, जैसा श्रीमद‍्भागवत है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्रीमद‍्भागवतं भवेत्।
गच्छामि तत्र तत्राहं गौर्यथा सुतवत्सला॥ २३॥

मूलम्

यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्रीमद‍्भागवतं भवेत्।
गच्छामि तत्र तत्राहं गौर्यथा सुतवत्सला॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

चतुर्मुख! जहाँ-जहाँ भागवतकी कथा होती है, वहाँ-वहाँ मैं उसी प्रकार जाता हूँ, जैसे पुत्रवत्सला गौ अपने बछड़ेके पीछे-पीछे जाती है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

मत्कथावाचकं नित्यं मत्कथाश्रवणे रतम्।
मत्कथाप्रीतमनसं नाहं त्यक्ष्यामि तं नरम्॥ २४॥

मूलम्

मत्कथावाचकं नित्यं मत्कथाश्रवणे रतम्।
मत्कथाप्रीतमनसं नाहं त्यक्ष्यामि तं नरम्॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मेरी कथा कहता है, जो सदा उसे सुननेमें लगा रहता है तथा जो मेरी कथासे मन-ही-मन प्रसन्न होता है, उस मनुष्यका मैं कभी त्याग नहीं करता।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रीमद‍्भागवतं पुण्यं दृष्ट्वा नोत्तिष्ठते हि यः।
सांवत्सरं तस्य पुण्यं विलयं याति पुत्रक॥ २५॥

मूलम्

श्रीमद‍्भागवतं पुण्यं दृष्ट्वा नोत्तिष्ठते हि यः।
सांवत्सरं तस्य पुण्यं विलयं याति पुत्रक॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्र! जो परम पुण्यमय श्रीमद‍्भागवतशास्त्रको देखकर अपने आसनसे उठकर खड़ा नहीं हो जाता, उसका एक वर्षका पुण्य नष्ट हो जाता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रीमद‍्भागवतं दृष्ट्वा प्रत्युथानाभिवादनैः।
सम्मानयेत तं दृष्ट्वा भवेत् प्रीतिर्ममातुला॥ २६॥

मूलम्

श्रीमद‍्भागवतं दृष्ट्वा प्रत्युथानाभिवादनैः।
सम्मानयेत तं दृष्ट्वा भवेत् प्रीतिर्ममातुला॥ २६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रीमद‍्भागवतपुराणको देखकर खड़ा होने और प्रणाम करने आदिके द्वारा उसका सम्मान करता है, उस मनुष्यको देखकर मुझे अनुपम आनन्द मिलता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा भागवतं दूरात् प्रक्रमेत् सम्मुखं हि यः।
पदे पदेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्नोत्यसंशयम्॥ २७॥

मूलम्

दृष्ट्वा भागवतं दूरात् प्रक्रमेत् सम्मुखं हि यः।
पदे पदेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्नोत्यसंशयम्॥ २७॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो श्रीमद‍्भागवतको दूरसे ही देखकर उसके सम्मुख जाता है, वह एक-एक पगपर अश्वमेध यज्ञके पुण्यको प्राप्त करता है—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद‍्भागवतं नरः।
धनपुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम्॥ २८॥

मूलम्

उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद‍्भागवतं नरः।
धनपुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम्॥ २८॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मानव खड़ा होकर श्रीमद‍्भागवतको प्रणाम करता है, उसे मैं धन, स्त्री, पुत्र और अपनी भक्ति प्रदान करता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

महाराजोपचारैस्तु श्रीमद‍्भागवतं सुत।
शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या तेषां वश्यो भवाम्यहम्॥ २९॥

मूलम्

महाराजोपचारैस्तु श्रीमद‍्भागवतं सुत।
शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या तेषां वश्यो भवाम्यहम्॥ २९॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे पुत्र! जो लोग महाराजोचित सामग्रियोंसे युक्त होकर भक्तिपूर्वक श्रीमद‍्भागवतकी कथा सुनते हैं, मैं उनके वशीभूत हो जाता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ममोत्सवेषु सर्वेषु श्रीमद‍्भागवतं परम्।
शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या मम प्रीत्यै च सुव्रत॥ ३०॥
वस्त्रालङ्करणैः पुष्पैर्धूपदीपोपहारकैः।
वशीकृतो ह्यहं तैश्च सत्स्त्रिया सत्पतिर्यथा॥ ३१॥

मूलम्

ममोत्सवेषु सर्वेषु श्रीमद‍्भागवतं परम्।
शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या मम प्रीत्यै च सुव्रत॥ ३०॥
वस्त्रालङ्करणैः पुष्पैर्धूपदीपोपहारकैः।
वशीकृतो ह्यहं तैश्च सत्स्त्रिया सत्पतिर्यथा॥ ३१॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुव्रत! जो लोग मेरे पर्वोंसे सम्बन्ध रखनेवाले सभी उत्सवोंमें मेरी प्रसन्नताके लिये वस्त्र, आभूषण, पुष्प,धूप और दीप आदि उपहार अर्पण करते हुए परम उत्तम श्रीमद‍्भागवतपुराणका भक्तिपूर्वक श्रवण करते हैं, वे मुझे उसी प्रकार अपने वशमें कर लेते हैं, जैसे पतिव्रता स्त्री अपने साधुस्वभाववाले पतिको वशमें कर लेती है।
(स्कन्दपुराण, विष्णुखण्ड, मार्गशीर्षमाहात्म्य अ० १६)